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Friday, September 05, 2014

2.09 बेचारी लिज़ा


मूल रूसी:       निकोलाय करमज़िन (1766-1826)  
मगही अनुवाद: नारायण प्रसाद
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सन् 1791-1804 ई॰ के अवधि में करमज़िन खुद के रूस के सबसे बड़गर कहानीकार के रूप में स्थापित कइलका । ऊ एक दर्जन से जादे कहानी लिखलका । ई सब्भे भावुकतावादी शैली (Sentimentalist Style) में हलइ आउ अधिकतर बहुत लोकप्रिय हलइ । सबसे अधिक प्रसिद्ध कहानी में हकइ - "बेचारी लिज़ा" (1792), "नताल्या - बयार के बेटी" (1992)  आउ "बोर्नहोल्म टापू" (1793)। ई सब कहानी कइएक अनुकरण के प्रेरणा देलकइ आउ रूस में भावुकतावादी साहित्य के अधार बनलइ । "बेचारी लिज़ा" के लोकप्रियता से ई प्रकार के साहित्य रचना के एगो फैशन बन गेलइ आउ एकर अनुकरण पे कइए गो रचना प्रकाशित होलइ - जइसे, "बेचारी माशा" (ए॰ इज़माइलोव), "अभगली लिज़ा" (पी॰ दोलगोरुकोव), "बेचारी लिल्ला" (ए॰ पोपोव), "बेचारी मारिया के कहानी" (ए॰ ब्रुसिलोव) इत्यादि । सन् 1804 में करमज़िन के त्सार अलिक्सान्द्र-प्रथम के दरबार में इतिहासकार के रूप में नियुक्त कइल गेलइ आउ ऊ अपन शेष जीवन "रूस राज्य के इतिहास" के लेखन में बिता देलका । निधन के पहिले तक ऊ एकर बारहवाँ खंड के आधा तक पहुँच पइला जेकरा में "रूसी राज्य के इतिहास" के सतरहवीं शताब्दी के आरम्भ तक पहुँचइलका ।


"बेचारी लिज़ा" कहानी के सफलता अनुपम हलइ, जेकर बराबरी आउ कउनो से नयँ हलइ । ई कहानी अइसन सफल होलइ कि मास्को आवेवला सैलानी सब सिमोनोव मठ के पास के ऊ पोखरा देखे जरूर आवऽ हला जेकरा में ई कहानी के नायिका अभगली लिज़ा प्रेम में धोखा खइला के बाद आत्महत्या कर ले हइ । एतने नयँ, कइएक युवक प्रेमी-प्रेमिका अपन आद्यक्षर आउ विभिन्न कोमल भावना के पोखरा के पास के पेड़वन पर अंकित करे ल शुरू कर देलका, हियाँ तक कि आत्महत्या के कइएक घटना घट गेलइ ।


करमज़िन पहिला रूसी लेखक हला जे गद्य रचना के अइसन कलात्मक मंडन कइलका आउ ध्यान के अइसन स्तर देलका कि जेकरा चलते गद्य रचना के साहित्य के दर्जा मिल गेलइ । ओकर पहिले गद्य रचना के हीन समझल जा हलइ । रूसी के सबसे प्रसिद्ध आउ जानल-मानल कवि पुश्किन (1799-1837) भी करमज़िन के रूसी के पहिला सफल गद्य लेखक के रूप में स्वीकार कइलका हल ।
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1

शायद मास्को के निवासी ई शहर के इर्द-गिर्द के बारे ओतना नयँ जानऽ हका जेतना कि हम, काहे कि हमरा से जादे कोय खेत में नयँ जा हका, हमरा से जादे कोय पैदल नयँ चल्लऽ हका, बिना कोय प्लान के, बिना कोय उद्देश्य के - जाहाँ कहीं गोड़ ले जाय - घास के मैदान से होवे चाहे बाग-बगइचा से, पहाड़ से होवे चाहे मैदानी भाग से । हरेक ग्रीष्म ऋतु में हम खोज लेहूँ कोय नयका मनोरम स्थल, चाहे पुरनको में नयका सौन्दर्य । लेकिन सबसे मनोरम हमरा लगी ऊ जगह हके, जाहाँ सिमोनोव विहार [1] के अन्धकारपूर्ण गोथिक मीनार खड़ी हकइ । ई पहाड़ी पर खड़ी होके, दहिना करगी लगभग पूरा के पूरा मास्को के देखल जा सकऽ हइ, घर आउ गिरजाघर के ई भयंकर समूह के, जे अँखियन के एगो बड़का गो रंगभूमि नियर लगऽ हइ - एगो बहुत सुन्दर तस्वीर, खास करके जब एकरा पर सूरज के रोशनी पड़ऽ हइ, जब एकर साँझ के किरण असमान छुए वला बेशुमार सुनहरा गुम्बज आउ अनगिनती क्रॉस के चमकावऽ हइ ! निच्चे फैलल हइ उपजाऊ, गाढ़ा हरियर, पु्ष्पित हो रहल घास के मैदान आउ ओकर पीछू पियर बालू पर से बहऽ हकइ कज्जल नद्दी, जेकरा मत्स्य नौका के हलका चप्पू (डाँड़) हिलकोर रहले ह, या ऊ मालवाहक नौका के पतवार से शोर कर रहले ह, जे रूसी साम्राज्य के, अन्न से सबसे अधिक भरल-पूरल देश से आवऽ हइ आउ लालची (भुक्खल) मास्को के अन्न प्रदान करऽ हइ ।

नद्दी के दोसरा तरफ हकइ बतूल (oak) के उपवन, जेकर पास भेड़ के कइएक जत्था चरब करऽ हइ । हुआँ युवा गड़ेरियन पेड़ के छहुँरी में बइठल, सरल आउ दुखदायक गीत गा रहले ह आउ एकरा माध्यम से गरमी के दिन के मन से हटावे के कोशिश कर रहले ह, जे ओकन्हीं लगी नीरस हकइ । एकरा से आउ आगे, प्राचीन एल्म वृक्ष के गढ़गर हरियाली में सोना के गुम्बज वला दानिलोव विहार [2] चमकऽ हइ । आउ आगे, लगभग क्षितिज के पास वोरोब्योव गिरि [3] नीला देखाय दे हइ। बामा तरफ देखाय दे हकइ - विशाल, अनाज से लद्दल खेत-बारी, छोट्टे गो जंगल, तीन-चार छोटगर गाम आउ दूर में अपन उँचगर किला के साथ गाम कोलोमेन्स्कए [4]

अकसर हम ई जगह पे आवऽ हूँ आउ लगभग हमेशा हियाँ वसन्त के स्वागत करऽ हूँ । आउ हुएँ हम जाहूँ शरत्काल में भी, प्रकृति के साथ शोक मनावे खातिर । भयंकर रूप से हावा विलाप करऽ हइ - परित्यक्त विहार (मठ) के देवलियन पर, उँचगर-उँचगर बढ़ल घास से भरल कबर सब के बीच, आउ मठ के भित्तर सब के अन्हार गलियारा में । हुआँ कबर के पत्थर के खंडहर से ओठंग के, एकान्त आर्त्तनाद सुन्नऽ हूँ काल के, जे भूत के रसातल में निमग्न हो गेले ह, ऊ आर्त्तनाद, जेकरा से हमर दिल काँप उठऽ हके । कभी-कभी हम भित्तर (कोठरी) में घुस्सऽ हूँ, आउ ऊ सब के बारे कल्पना करऽ हूँ, जे एकरा में पहले रहऽ हलइ - दुखदायक तस्वीर ! हियाँ हम एगो पक्कल केश वला वृद्ध के देखऽ हूँ, जे क्रूसमूर्ति (crucifix) के सामने अपन घुटना टेकले हइ आउ प्रार्थना करब करऽ हइ अपन मृत्युलोक के बन्धन से मुक्ति पावे लगी, काहे कि ओकर जीवन के सब्भे खुशी गायब हो गेले ह, ओकर सब्भे भावना मर गेले ह, खाली ओकर रोग आउ कमजोरी के भावना के छोड़के । हुआँ एगो युवा मठवासी - पीयर चेहरा आउ मन्द दृष्टि वला - खिड़की के जाली से बाहर के मैदान तरफ अपन दृष्टि कइले हइ, खुशहाल चिरईं-चुरगुनी देखऽ हइ, जे हावा के समुद्र में पैर रहले ह, ऊ देखऽ हइ आउ ओकर आँख से कड़वा आँसू ढलक जा हइ । ऊ दुख में दिन काटऽ हइ, मुरझाऽ हइ, सूख जा हइ - आउ घंटा के उदास वादन हमरा ओकर अकाल मौत के घोषणा करऽ हइ । कभी-कभी मन्दिर (गिरजाघर) के दरवाजा पे मठ में होल चमत्कार सब के प्रस्तुतीकरण के जाँच करऽ हूँ, हुआँ अकास से मछली निच्चे गिरऽ हइ मठ के निवासी के संतृप्ति खातिर, ऊ मठ कइएक दुश्मन से घिरल हकइ, हियाँ कुमारी मरियम (Virgin Mary) के प्रतिमा दुश्मन के मार भगावऽ हइ । ई सब हमर स्मृति में अपन पितृभूमि के इतिहास के ताजा करऽ हइ - उदास इतिहास ऊ समय के, जब निर्मम तातार आउ लिथुआनी लोग अग्नि आउ तलवार से रूसी रजधानी के उपांत (environs) के विध्वंस कर रहले हल, तब अभागा मास्को अपन भयंकर विपत्ति में, असुरक्षित विधवा नियन, खाली भगमान तरफ से मदत के आशा कर रहल हल ।

लेकिन अधिकतम समय हमरा लिज़ा, बेचारी लिज़ा के दुर्भाग्य के यादगारी सिमोनोव मठ के देवाल के तरफ आकर्षित करऽ हके । आह ! हमरा ऊ सब चीज से लगाव हके, जे हमर दिल के छूअऽ हके आउ हमरा नाजुक शोक के आँसू बहावे पर लचार करऽ हके ।


2


मठ के देवाल से लगभग सत्तर सझेन [5] दूर, भूर्ज उपवन (birch grove) के पास, हरियर घास के मैदान के बीचोबीच, एगो खाली झोपड़ी हकइ - बिन दरवाजा के, बिन खिड़की के, बिन फर्श के । एकर छत के हिस्सा बहुत पहिलहीं सड़के ढह गेले हल । एहे झोपड़ी में आझ से लगभग तीस बरस पहिले सुन्दर, प्यारी लिज़ा अपन बूढ़ी माय के साथ रहऽ हलइ ।

लिज़ा के पिता एगो काफी धनी किसान हलइ, काहे कि ओकरा काम से प्रेम हलइ, खेती अच्छा से करऽ हलइ आउ हमेशे नशा से दूर रहऽ हलइ । लेकिन ओकर मौत के बात जल्दीए ओकर घरवली आउ बेटी गरीब हो गेलइ । आलसी मजूर खेती में ठीक से काम नयँ करऽ हलइ, जेकरा से अनाज के पैदावार अच्छा नयँ होवऽ हलइ । ओकन्हीं चौरहा पर खेती देवे ल मजबूर हो गेल, आउ ओहो बहुत कम कीमत पर । आउ ओकरो पर बेचारी मसोमतिया अपन मरद के मौत के शोक में लगभग हमेशे आँसू बहइते रहऽ हल - काहे कि किसैनी भी प्यार करे ल जानऽ हइ ! दिनोदिन ऊ कमजोर होल गेल आउ अब तो काम करे के भी लायक नयँ रहल । खाली लिज़ा, जे अपन बाप के मौत के बखत पनरह साल के हलइ, अकेल्ले लिज़ा, अपन नाजुक जवानी आउ अनुपम सौन्दर्य के बिना परवाह कइले, दिन-रात खट्टऽ हल, कपड़ा के बुनाई करऽ हल, पैताबा के बुनाई करऽ हल, वसन्त काल में फूल तोड़के लावऽ हल, आ गरमी में बेर चुन्नऽ हल - आउ मास्को जाके बेचऽ हल । भावुक भलमानस बुढ़िया अपन बेटी के अथक परिश्रम करते देखके अकसर अपन धीमे धड़कते दिल से चिपका ले हल, ओकरा भगमान के अशीर्वाद मानऽ हल, भरण-पोषण करे वली, आउ अपन बुढ़ारी के सुख समझऽ हल, आउ भगमान से प्रार्थना करऽ हल कि ऊ ओकरा ऊ सब कुछ लगी पुरस्कार दे जे ऊ अपन माय लगी कर रहल ह । "भगमान हमरा हाथ देलथिन ह काम करे लगी", लिज़ा बोलऽ हल, "जब हम बुतरू हलूँ त तूँ हमरा दूध पिलइलँऽ आउ हमर देखभाल कइलँऽ; अब हम्मर बारी हकइ तोर देखभाल करे के । खाली शोक करे ल बन कर, रोना बन कर; लोर बहइला से बाउ हमर जित्ता नयँ हो जयता ।" लेकिन अकसर नाजुक लिज़ा खुद अपन आँसू नयँ रोक पावऽ हल - आह ! ओकरा आद आ जा हल कि हमरा बाउजी हला जे अब नयँ रहला, लेकिन अपन माय के शान्ति खातिर अपन दिल के शोक के छिपावे के कोरसिस करऽ हल आउ कोरसिस करऽ हल कि ऊ सहज आउ खुश दिखे । "परलोक में, हमर दुलरी लिज़ा", शोकार्त्त बुढ़िया उत्तर दे हल, "ऊ लोक में हम रोना बन कर देबउ । हुआँ, लोग के कहना हइ, सब लोग खुश रहतइ; हमरा विश्वास हके, कि जब हम तोर बाउ के देखबउ त हम खुश होबउ । लेकिन हम अभी नयँ मरे ल चाहऽ हूँ - हमरा बिन तोर कीऽ होतउ ? तोरा हम केकरा पर छोड़िअउ ? नयँ, पहिले भगमान तोर घर तो बसा देथुन ! शायद जल्दीए एगो अच्छा अदमी मिल जइतउ । तब तोहन्हीं के, अपन दुलरुआ बुतरुअन के अशीर्वाद देके, अपना के क्रॉस करके, शान्ति से नम धरती में पड़ जइबउ ।"

लिज़ा के बाप के मरला दू साल हो गेलइ । घास के मैदान फूल से भर गेलइ, आउ लिज़ा मास्को आल मई कुमुदिनी (lily-of-the-valley) लेके । एगो नवजवान, जे खूबसूरत पहनावा-ओढ़ावा के साथ आउ देखे में सुत्थर हलइ, ओकरा रोडवा पर मिललइ । ऊ ओकरा फूल देखइलकइ - आउ शरम से ओकर गाल लाल हो गेलइ । "तूँ एकरा बेचऽ हकहो, जी ?", ऊ मुसकुरा के पुछलक । "हाँ जी", ऊ उत्तर देलक । "आ एकर केतना लेबहो ?" - "पाँच कोपेक ।" - "ई तो बहुत कम हइ । ई ल एक रूबल ।" लिज़ा अकचका गेल, नवजवान के तरफ नजर डाले के हिम्मत कइलक, आउ तब आउ भी जादे लजाके लाल हो गेल आउ अपन नजर जमीन तरफ करके ओकरा कहलक, कि रूबल नयँ लेत । - "काहे ?" - "हमरा फालतू नयँ चाही ।" - "हमर विचार से, एगो सुन्दर लड़की से तोड़ल ई सुन्दर मई कुमुदिनी के कीमत एक रूबल होवे के चाही । तूँ एकरा नयँ लेबऽ, त ई हको पाँच कोपेक । हमरा तो तोहरा से हमेशे फूल खरीदे लगी चाहम; हमर एहो इच्छा हके कि ई तूँ खाली हमरे लगी तोड़ऽ ।" लिज़ा फूल देलक, पाँच कोपेक लेलक, झुकके सलाम कइलक आउ जाय लगल, लेकिन अपरिचित नवजवान ओकर हाथ पकड़के रोक लेलकइ । "लड़की, तूँ काहाँ जइबऽ ?" - "घर ।" - "आउ तोहर घर काहाँ हको ?" लिज़ा बतइलक कि ऊ काहाँ रहऽ हइ, बतइलक आउ चल पड़ल । नवजवान ओकरा रोकले रखे ल नयँ चाहऽ हलइ, शायद ई बात के चलते कि ओज्जा से गुजरे वला रहगीर सब ओकन्हीं के देखके ठहर जा हलइ, आउ ठिठियाऽ हलइ ।

लिज़ा घरवा आके अपन मइया के ऊ सब कुछ बता देलकइ, जे-जे घटले हल । "तूँ अच्छा कइलँऽ, जे रूबल नयँ लेलँऽ । हो सकऽ हइ कि ई कोय खराब अदमी होवे ... ।" - "ओह, नयँ मइया ! हमरा नयँ लगऽ हइ कि ऊ अइसन होतइ । ओकर चेहरा सुन्दर हकइ, अइसन बढ़ियाँ बोल-चाल ... ।" "तइयो लिज़ा, ई जादे अच्छा हइ कि अपन मेहनत के कमाई खाल जाय आउ कुच्छो मंगनी के नयँ लेल जाय । तोरा अभी पता नयँ हकउ, दुलरी, कि कइसे खराब लोग एगो गरीब लड़की के भावना से खेलऽ हइ ! हमर करेजा में हौल कुद्दऽ हके जब तूँ शहर जा हँ । हम मूर्ति के पास हमेशे मोमबत्ती जलावऽ हूँ आउ भगवान से प्रार्थना करऽ हूँ कि ऊ सब्भे विपत से तोर रक्षा करथुन ।" लिज़ा के आँख में आँसू आ गेलइ । ऊ अपन मइया के चूम लेलकइ ।

दोसर दिन लिज़ा सबसे उत्तम-उत्तम मई कुमुदिनी तोड़के जामा कइलक आउ एकरा लेके शहर चल पड़ल । ओकर नजर शान्ति से कुच्छो ढूँढ़ रहल हल ।
कइएक लोग ओकरा हीं से फूल खरीदे लगी चाह रहल हल, लेकिन ऊ जवाब देलक कि ई बेचे लगी नयँ हकइ, आउ कभी एद्धिर त कभी ओद्धिर नजर फेर रहल हल । साँझ हो गेल, ओकरा घर वापस जाय के हल, आउ फुलवा सब के मास्को नद्दी में फेंक देलकइ । "तोर केकरो जरूरत नयँ हकउ !" - लिज़ा बोल उठल, अपन दिल में कुछ उदासी के साथ ।

दोसर दिन ऊ खिड़की के पास बइठल हल, सूत कात रहल हल, आउ निम्न स्वर में करुण गीत गाब करऽ हल, लेकिन अचानक ऊ उछल पड़ल आउ चिल्ला उठल - "ओह ! ..." अपरिचित नवयुवक खिड़की के निच्चे खड़ी हलइ । "की होलउ ?" - डेराल मइया पुछलकइ, जे ओकर पासे बइठल हलइ । "कुछ नयँ माय" - कुछ लजाल स्वर में लिज़ा उत्तर देलक, - "हमरा खाली उनखा पर नजर पड़लइ ।" - "केकरा पर ?" - "ओहे सज्जन पे, जे हमरा से फुलवा खरदलका हल ।" बुढ़िया खिड़किया से बाहर हुलकके देखलकइ । नवयुवक ओकरा तरफ अइसन आदर से झुकलइ, अइसन मनमोहक दृष्टि के साथ कि ऊ बुढ़िया ओकरा बारे अच्छा छोड़के आउ कुछ नयँ सोच पइलकइ । "नमस्ते, बहुत अच्छी अम्मा !" ऊ बोलल । "हम बहुत थक्कल हकूँ । तोहरा पास ताजा दूध होतइ ?" सेवापरायण लिज़ा अपन मइया के उत्तर के बिना प्रतीक्षा कइले, शायद ई कारण कि ऊ ओकरा पहिलहीं से जानऽ हल, दौड़ल भित्तर गेल, एगो साफ-सुथरा मट्टी के बर्तन लइलक जे एगो साफ-सुथरा लकड़ी के ढक्कन से झाँपल हलइ, एगो गिलास निकाललक, एकरा साफ कइलक आउ एकरा एगो उज्जर तौलिया से पोंछके एकरा में दूध ढारलक आउ खिड़किया के बाहर देलक, लेकिन खुद अपन नजर जमीन पर रखले रहल । अपरिचित नवयुवक पीलक - आउ ई अमृत ओकरा हेबा (ग्रीक पौराणिक - शाश्वत युवावस्था आउ सौन्दर्य के देवी) के हाथ से पीलो पर ओतना स्वादिष्ट नयँ लगते हल । ई कोय भी अन्दाज लगा सकऽ हइ कि एकर बाद ऊ लिज़ा के धन्यवाद देलकइ, आउ धन्यवाद ओतना शब्द से नयँ देलकइ, जेतना दृष्टि (नजर) से । एहे दौरान नेकदिल बुढ़िया ओकरा अपन सुख-दुख के बारे बतइलकइ - अपन मरद के मौत के बारे आउ अपन बेटी के अच्छा गुण के बारे, ओकर काम के लगन आउ सुकुमारता के बारे, आदि आदि । ऊ ओकरा ध्यान से सुनलकइ, लेकिन ओकर नजर हलइ - ई बताना जरूरी हइ कि काहाँ ? आउ लिज़ा, शर्मीली लिज़ा कभी-कभी ऊ नवयुवक पर नजर डाल ले हलइ; लेकिन बिजली ओतना तेजी से चमकके बादल में नयँ छिप सकऽ हइ, जेतना तेजी से ओकर नीली-नीली आँख ऊ नवयुवक से नजर मिलला पर झट-दबर जमीन तरफ मुड़ जा हलइ । ऊ मइया के बोललइ, "हमर कामना हइ कि तोहर लड़की हमरा सिवाय आउ केकरो अपन काम के समान नयँ बेचे । ई तरह से ओकरा अकसर शहर जाय के जरूरत नयँ पड़तइ, आउ तोहरा ओकरा से बिछुड़े नयँ पड़तो । समय-समय पर हमहीं तोहन्हीं हीं आ जाल करबो ।" ई बात से लिज़ा के आँख में खुशी चमक उठल जेकरा छिपावे के ऊ असफल प्रयास कइलक । ओकर गाल ग्रीष्म ऋतु के साफ सन्ध्याकाल के लाली के तरह दमक उठल । ऊ अपन बामा आस्तीन के तरफ नजर डाललक आउ दहिना हाथ से खसोट लेलक । बुढ़िया खुशी से ऐ प्रस्ताव के स्वीकार कर लेलकइ, एकरा में ओकरा कोय बुरा नीयत के कोय शंका नयँ होलइ, आउ अपरिचित के ई विश्वास देलइलकइ कि लिज़ा के बुन्नल वस्त्र आउ मोजा बहुत उत्तम होवऽ हइ आउ बाकी सब के अपेक्षा जादे टिकाऊ होवऽ हइ ।

अन्हार होवे लगलइ आउ नवुवक अब जाय ल चहलकइ । "लेकिन अच्छे प्यारे मालिक, तोहरा कइसे पुकारल जाय ?" बुढ़िया पुछलकइ । "हमर नाम एरास्त हको" ऊ उत्तर देलकइ । लिज़ा निम्न स्वर में बोलल - "एरास्त, एरास्त !" ऊ ई नाम के करीब पाँच तुरी दोहरइलक, मानुँ ऊ एकरा कंठस्थ कर लेवे के कोशिश कर रहऽ हल । एरास्त ओकन्हीं से फिन मिल्ले तक बिदाई लेलक आउ चल पड़ल । लिज़ा नजर से ओकरा पीछा कइलक, आउ माय सोच में बइठल रहल, आउ अपन बेटी के हाथ पकड़के ओकरा कहलक - "ओह, लिज़ा ! ऊ केतना अच्छा आउ दयालु हका ! काश ओकरा अइसन तोरा दुलहा मिल्लउ !" लिज़ा के दिल जोर से धक् धक् करे लगल । "माय ! माय ! ई कइसे हो सकऽ हइ ? ऊ तो जमींदार हका, आ किसान सब में ..." लिज़ा अपन बात खतम नयँ कर पइलक ।

अब पाठक के जान लेवे के चाही कि ई नवयुवक, ई एरास्त, एगो धनी कुलीन व्यक्ति हलइ, उत्तम बुद्धि आउ नेकदिल वाला, स्वभाव से नेक, लेकिन कमजोर आउ चंचल । ऊ अन्यमनस्क जिनगी गुजारऽ हल, खाली अपन सुख के बारे सोचऽ हल, एकरा सांसारिक मनोरंजन में ढूँढ़ऽ हल, लेकिन अकसर ओरा नयँ मिल्लऽ हल - ऊ ऊब जा हल आउ अपन भाग के कोसऽ हल । लिज़ा के सौन्दर्य पहिला भेंट के दौरान ओकर दिल में जगह बना लेलक । ऊ उपन्यास आउ सौम्य काव्य पढ़ऽ हल, काफी सजीव कल्पना करऽ हल, आउ अकसर अपन कल्पनाशक्ति से ऊ (असली या नकली) समय में विचरण करऽ हल, जेकरा में, अगर कवि लोग पर विश्वास कइल जाय तो, सब लोग बेफिकर होके घास के हरियर मैदान में घुम्मऽ हल, साफ झरना में नेहा हल, पड़कोयँ (पंडुक) जइसे चुम्बन करऽ हल, गुलाब आउ विलायती मेंहदी (myrtle) तले अराम फरमावऽ हल, आउ अपन सारा दिन बिना कोय काम के आनन्द में गुजारऽ हल । ओकरा लगल कि ओरा लिज़ा में अइसन चीज मिल गेल जे ओकर दिल लम्बे समय से खोज रहल हल । "प्रकृति हमरा अपन आलिंगन खातिर बुला रहल ह, अपन पवित्र आनन्द तरफ" - ऊ सोचलक आउ फैसला कइलक, कम से कम अभी के लिए कि ऊँचगर समाज के त्याग देम ।

लिज़ा तरफ लउटल जाय । रात हो गेलइ - माय अपन बेटी के आशीर्वाद देलक आउ ओकरा लगी सुन्दर सपना के कामना कइलक, लेकिन अबरी ओकर कामना पूरा नयँ होलइ - लिज़ा के ठीक से नीन नयँ अइलइ । ओकर दिल में नयका मेहमान, एरास्त के प्रतिमा, एतना ओकरा सामने अइसन सजीव रूप से प्रकट रहऽ हलइ कि ऊ लगभग हरेक मिनट जग जा हल, जगके आह भरऽ हल । सूर्योदय के पहिलहीं लिज़ा उठ गेल, मास्को नद्दी के किनारे गेल, घास पर बइठ गेल, आउ उदास मन से उज्जर-उज्जर कुहरा तरफ नजर गड़इले रहल, जे हावा में लहरा रहल हल आउ उपरे उठके प्रकृति के हरियरका वस्त्र पर चमकइत बून डाल रहल हल । सगरो शान्ति के छाल हल । लेकिन जल्दीए उगइत सूरज सम्पूर्ण सृष्टि के जगा देलका - उपवन, झाड़ी सब सजीव हो उठल, चिरईं-चिरगुनी तेजी से उड़के असमान में विचरके गावे लगल, फूल अपन पंखुड़ी फइलइलक - जीवनदायक प्रकाश के किरण के पान करे लगी । लिकिन लिज़ा उदासे बइठल रहल । आह, लिज़ा, लिज़ा ! तोरा की हो गेलो ह ? ई बखत तक, चिरईं-चुरगुनी के साथ-साथ उठके, तूँ साथे-साथ सुबह में खुशी मनावऽ हलँऽ, आउ तोर शुद्ध आनन्दित आत्मा तोर आँख में चमकऽ हलउ, ठीक ओइसहीं जइसे सूरज आसमानी ओसकण में चमकऽ हइ; लेकिन अभी तूँ सोच में डुब्बल हकँऽ, आउ वैश्विक आनन्द तोर दिल खातिर अनजाना हकउ । एहे दौरान एगो नवयुवक गरेड़ी नदिया के किनारे बाँसुरी बजइते भेड़ के जत्था के हाँकले जा रहल हल । लिज़ा अपन नजर ओकरा पर डाललक आउ सोचे लगल - "काश, जे अभी हमर विचार में रहऽ हके, ऊ एगो सधारण किसान के रूप में पैदा होत हल, गरेड़ी के रूप में - आउ अगर ऊ हमरा भिर से होके भेड़ के जत्था के हाँकते जाल रहत हल; ओह ! हम ओकरा तरफ मुसकरइते झुक जइतूँ हल आउ ओकरा हार्दिक भाव से कहतूँ हल ए प्यारे गरेड़िये ! अपन भेड़ के जत्था के हाँकले काहाँ जा रहलऽ ह ? हीयों तोर भेड़ सब लगी हरियर घास हको, हीयों लाल-लाल फूल खिल्लऽ हको, जेकरा से तोर हैट खातिर माला तैयार कइल जा सकऽ हइ ।' ऊ हमरा तरफ प्यार भरल नजर से देखत हल, शायद हमर हाथ पकड़त हल ... एगो सपना !" गरेड़िया बाँसुरी बजइते पास से गुजरल आउ अपन बहुरंगा भेड़ के जत्था के साथ पास के पहाड़ी के पीछे गुम हो गेल ।

अचानक लिज़ा के पतवार के अवाज सुनाय पड़ल - नद्दी तरफ नजर दौड़इलक त ओकरा एगो नाव देखाय देलक, आउ नाव में हल - एरास्त ।

ओकर दिल जोर से धक्-धक् करे लगल, आउ वस्तुतः, डर से नयँ । ऊ उठ गेल आउ चल जाय ल चाहलक, लेकिन जा नयँ सकल । एरास्त कूदके किनारे आ गेल, लिज़ा भिर आल आउ ओकर सपना आंशिक रूप से पूरा भेल - काहे कि ऊ ओकरा तरफ प्यार भरल नजर से देखलकइ, आउ ओकर हाथ पकड़लकइ ... लेकिन लिज़ा, लिज़ा खड़ी रहल अपन नजर निच्चे कइले, ओकर गाल प्रज्वलित होल हल, दिल धड़-धड़ कर रहल हल - ऊ ओकरा से अपन हाथ खींच नयँ सकल, ऊ मुड़ नयँ सकल जब ऊ अपन गुलाबी होंठ के साथ ओकर नजीक आ रहल हल ... ओह ! ऊ ओकरा चूम लेलकइ, एतना गरमाहट के साथ चुम्बन लेलकइ कि समुच्चे विश्व ओकरा आग में जलते जइसन लगलइ ! "प्यारी लिज़ा !", एरास्त कहलकइ, "प्यारी लिज़ा ! हम तोरा से प्यार करऽ हियो !" आउ ई शब्द ओकरा आत्मा के गहराई में गूँज गेलइ, दिव्य मनोहर संगीत जइसे । ऊ मोसकिल से अपन कान पर विश्वास कर पइलक आउ ...

लेकिन हियाँ हम अपन लेखनी के हटा ले ही । खाली हम एतने कहम कि अइसन हर्षावेश के क्षण में लिज़ा के लाज गायब हो गेल - एरास्त समझ गेल कि हम प्रिय हकूँ, एगो नयका, पवित्तर, खुला हृदय के चहेता हकूँ ।
ओकन्हीं घास पर बइठल हल, आउ अइसे कि ओकन्हीं के बीच के फासला जादे नयँ हलइ, एक दोसरा के आँख में आँख डालके देख रहल हल, एक दोसरा से बात कर रहल हल - "हमरा प्यार करऽ !" आउ दू घंटा ओकन्हीं लगी एगो पल जइसे लगलइ । अन्त में लिज़ा के ध्यान में आल कि हमर मइया हमरा खातिर चिन्ता करत । अब अलग होवे के चाही । "ओह, एरास्त !", ऊ बोलल, "तूँ हमरा हमेशे प्यार करबऽ न ?" - "हमेशे, प्यारी लिज़ा, हमेशे !" ऊ उत्तर देलकइ । "आउ एकरा बारे हमरा वचन दे सकऽ ह ?" - "हाँ, प्यारी लिज़ा, हाँ !" - "नयँ ! हमरा तोहर कसम के जरूरत नयँ । हमरा तोरा पर विश्वास हको, एरास्त, विश्वास हको । की तूँ बेचारी लिज़ा के धोखा दे सकऽ ह ? की अइसन हो सकऽ हइ ?" - "कभी नयँ, कभी नयँ, प्यारी लिज़ा !" - "हम केतना खुश हकूँ, आउ मइया केतना खुश होतइ जब जानतइ कि तूँ हमरा प्यार करऽ ह !" - "अरे नयँ, लिज़ा ! मइया के बतावे के कोय जरूरत नयँ हइ ।" - "लेकिन काहे ?" - "वृद्ध लोग शंकालु होवऽ हका । ऊ कुछ तो खराब कल्पना कर लेता ।" - "अइसन नयँ हो सकऽ हइ ।" - "लेकिन हम विनती करऽ हियो कि उनका ई बारे कुच्छो नयँ बतइहऽ ।" - "ठीक हको, हमरा तोर बात माने पड़त, हलाँकि हम ओकरा से कुच्छो छिपावे ल नयँ चाहतूँ हल ।"

दुन्नू अन्तिम बखत एक दोसरा के चुम्बन लेलक आउ अलविदा होल । दुन्नू प्रतिज्ञा कइलक रोज दिन साँझ के मिल्ले लगी - या तो नद्दी के किनारे, या भूर्ज उपवन में, चाहे लिज़ा के झोंपड़ी के पास, एतना खाली निश्चित हलइ कि दुन्नू के मिलना चाही । लिज़ा चल पड़ल, लेकिन ओकर नजर सो मर्तबे एरास्त तरफ मुड़ल, जे अभी तक नद्दी के किनारे खड़ी हलइ आउ ओकर नजर लिज़े के पीछा कर रहले हल ।

लिज़ा अपन झोंपड़ी में वापस आल, लेकिन ओइसन स्थिति में बिलकुल नयँ जइसन में ऊ बाहर गेल हल । ओकर चेहरा पर आउ ओकर सब्भे चाल-चलन पर दिली खुशी प्रत्यक्ष देखाय दे रहल हल । "ऊ हमरा प्यार करऽ हका !", ऊ सोच रहल हल आउ एहे विचार में खो गेल हल । "ओह, माय !" लिज़ा अपन मइया के कहलक जे अभी-अभी जग्गल हल, "ओह, माय ! केतना सुन्दर सुबह हकइ ! खेत में सब कुछ केतना खुशहाल हइ ! भरुही (skylark) एतना अच्छा से पहिले कभी नयँ गइलकइ, सूरज कभी एतना तीव्र रूप से नयँ चमकलइ, फूल सब कभी एतना सुन्दर नयँ महँकलइ !" बुढ़िया टहले वली छड़ी के सहारे घास के मैदान लगी निकल पड़ल ताकि ई सुन्दर सुबह के मजा ले सके, जेकर लिज़ा एतना मनोहर रंग में वर्णन कइलके हल । वास्तव में ओकरा अनुपम रूप में मनोहर लगलइ, ओकर दुलारी बेटी अपन खुशी से ओकरा लगी समुच्चे प्रकृति के खुशनुमा बना देलके हल । "ओह लिज़ा !", ऊ बोलल, "भगवान के सब सृष्टि केतना अच्छा हकइ ! हम ई धरती पर छो दशक जीलूँ हँ, तइयो हम भगवान के सृष्टि के यथेष्ट रूप से देख नयँ पावऽ हूँ, साफ आसमान के देखके नयँ अघा हूँ, जे उँचगर रेवटी जइसन लगऽ हइ, आउ न पृथ्वी के, जे हरेक साल नयका-नयका घास आउ फूल से भर जा हइ । निश्चय ही आसमानी राजा मानव के बहुत प्यार करऽ हला जे ओकरा लगी संसार के एतना सुन्दर तरह से सजइलका ह । ओह, लिज़ा ! के मरे लगी चाहतइ, अगर कुछ समय खातिर भी शोक नयँ रहे ? ... निश्चित रूप से अइसन होवहीं के हइ । शायद हम सब अपन आत्मा के भूल जइअइ, अगर अमन्हीं के आँख से कभी लोर नयँ गिरइ ।" आउ लिज़ा सोच रहल हल, "ओह ! हम अपन आत्मा के भी जल्दीए भूल जाम तो भूल जाम, लेकिन अपन प्रिय मित्र के नयँ !

एकर बाद एरास्त आउ लिज़ा, अपन वचन नयँ टूटे ई डर से, हरेक साँझ एक दोसरा से मिल्ले लगल (जब लिज़ा के माय सो जा हल) - या तो नद्दी के किनारे, या भूर्ज उपवन में, लेकिन अकसर शताब्दी पुराना बलूत (oak) के छाया में (झोपड़ी से करीब अस्सी सझेन [5] के दूरी पर) - बलूत, जेकर छाया प्राचीन काल के खन्नल गहिड़ा, साफ पोखरा पे पड़ऽ हलइ । हुआँ हरियर-हरियर डाली से होके अकसर शांत चान के किरिंग से लिज़ा के चमकदार केश चानी जइसन लगऽ हलइ, जेकरा साथ हलका पछिया हावा आउ प्यारा दोस्त के हाथ खेलवाड़ करऽ हलइ; अकसर एकर किरिंग सुकुमार लिज़ा के आँख पर प्यार के चमकते आँसू पर प्रकाश डालऽ हलइ, जेकरा एरास्त के चुम्बन सुखा दे हलइ । ओकन्हीं आलिंगन कइलक, लेकिन कुँआरी लजालु सिन्थिया [6] ओकन्हीं से बादल के पीछे अपना के नयँ छिपइलक - ओकन्हीं के आलिंगन विशुद्ध आउ निष्पाप हलइ । "कब तूँ", लिज़ा एरास्त के बोलल, "कब तूँ हमरा से कहबऽ, 'तोरा से हम प्यार करऽ हियो, दोस्त !', जब तूँ हमरा अपन छाती से लगावऽ ह आउ अपन सुकुमार आँख से हमरा तरफ देखऽ ह, ओह !, तब हमरा एतना अच्छा लगऽ हको, एतना अच्छा कि हम खुद के भूल जा हूँ, सब कुछ भूल जा हूँ, सिवाय एरास्त के । अचरज, ई एगो अचरज के बात हइ दोस्त, कि तोरा बारे जाने के पहिले हम शान्ति से आउ खुशी से जीयऽ हलूँ ! अब हमरा ई समझ में नयँ आवऽ हको, अब हमरा लगऽ हको कि तोरा बेगर जिनगी जिनगी नयँ, बल्कि दुख आउ उबाहट । तोहर आँख के बेगर चमकत चान भी अन्धकारपूर्ण लगऽ हके; तोहर बोली के बेगर गइते कोयल के बोलियो कर्कश लगऽ हके; तोहर साँस के बेगर शीतल हावा भी अप्रिय लगऽ हके ।" एरास्त अपन गरेड़िन (लिज़ा के ऊ अइसहीं पुकारऽ हलइ) पर मोहित हल, आउ ई देखके कि ऊ हमरा केतना प्यार करऽ हके, ऊ अपने के खुशनसीब समझऽ हल । उच्च वर्ग के सब्भे मनोहारी मनोरंजन ओकरा ऊ सुख के अपेक्षा तुच्छ लग रहल हल, जेकरा से विशुद्ध आत्मा के भावपूर्ण मित्रता ओकर हृदय के पोषित कर रहले हल । घृणा से ऊ तिरस्करणीय विलासिता के बारे में सोचलक, जेकरा से पहिले ओकर भावना अघा गेल हल। ऊ सोचलक, "हम लिज़ा के साथ जीयम, जइसे एगो भाय अपन बहिन के साथ जीयऽ हइ । ओकर प्यार के हम दुरुपयोग नयँ करम आउ हमेशे खुश रहम !"

मूर्ख नवजवान ! अपन दिल के तूँ जानऽ हँ ? अपन चाल-चलन के बारे हमेशे जवाब दे पयमँऽ ? की तोर विवेक हमेशे तोर भावना के वश में रक्खऽ हउ ?

लिज़ा चाहऽ हलइ कि एरास्त अकसर हमर माय के हियाँ आल-जाल करे । "हम ओकरा प्यार करऽ ही", ऊ बोलल, "आउ हम ओकर भला चाहऽ ही, आ हमरा लगऽ हके कि तोहरा से भेंट करना हर कोय लगी एगो बड़गो आशीर्वाद हइ ।" वास्तव में बुढ़िया जब कभी ओकरा देखऽ हलइ त हमेशे खुश होवऽ हलइ । ओकरा ओरा साथ अपन स्वर्गीय पति के बारे बात करे में अच्छा लगऽ हलइ आउ ओकरा अपन जवानी के दिन के बारे बतावे में, आउ एकरा बारे कि ऊ कइसे पहिले तुरी अपन प्रिय इवान से मिल्लल हल, आउ ऊ ओकरा केतना प्यार करऽ हल, आउ केतना प्यार आउ हिल-मिलके ओकरा साथ रहऽ हल । "आह ! हम दुन्नू एक दोसरा के आँख में आँख मिलाके कभी नयँ देख पइलूँ - ऊ घड़ी तक भी, जब निर्दय मौत उनका हमरा से बिछुड़ा देलक । ऊ हमर बाँहें पर मरला ।" एरास्त ओकर बात बिन देखावा के, खुशी से ध्यान से सुन्नऽ हलइ । ऊ लिज़ा के बनावल वस्तु सब के खरीद ले हलइ, आउ हमेशे ओकर वास्तविक आँकल मूल्य से दस गुना देवे ल चाहऽ हलइ, लेकिन बुढ़िया फालतू कभियो नयँ ले हलइ ।

एहे तरह कइएक सप्ताह बीत गेलइ । एक बार साँझ के एरास्त बहुत देर से लिज़ा के इंतजार कर रहल हल । अन्त में ऊ अइलइ, लेकिन एतना दुखी हलइ कि एरास्त डर गेल । लिज़ा के आँख आँसू से लाल हो गेले हल । "लिज़ा, लिज़ा ! तोरा कि हो गेलो ह ?" - "आह, एरास्त ! हम रो रहलूँ हल !" - "केकरा बारे ? की बात हको ?" - "हमरा तोरा सब कुछ बताहीं पड़त । हमरा लगी एगो वर ढूँढ़ल जा चुकले ह, पड़ोस के एगो धनी किसान के बेटा । हमर मइया के इच्छा हइ कि हम ओकरा से शादी कर लिअइ ।" - "आउ तोरा ई बात मंजूर हको ?" - "निर्दयी कहीं के ! एहो कोय पुच्छे के बात हकइ ? आउ, मइया खातिर हमरा दुख हके; ऊ रोवऽ हके आउ कहऽ हके कि हम ओकर मन के शान्ति नयँ चाहऽ हिअइ, कि मरे खनी ओकरा बड़ी तकलीफ होतइ, अगर जीवित रहते ऊ हमर शादी नयँ कर देतइ । आह ! मइया के ई नयँ मालूम कि हमरा एगो एतना प्रिय मित्र हके ।" एरास्त लिज़ा के चूम लेलकइ आउ बोललइ कि ओकर खुशी दुनियाँ के सब चीज से अधिक प्यारा हइ, कि ओकर मइया के मौत के बाद ऊ अपन साथ ले जइतइ आउ बिन बिछड़े हमेशे ओकरा साथ रहतइ, गाँव में आउ घना जंगल में, जइसे कि स्वर्ग में । लेकिन लिज़ा एगो शांत उच्छ्वास के साथ बोलल - "लेकिन तूँ हमर पति कभी नयँ बन सकऽ ह !" - "काहे नयँ ?" - "हम एगो किसान के लड़की हकूँ ।" - "तूँ तो हमर अपमान कर रहलऽ ह । तोर दोस्त लगी सबसे महत्त्वपूर्ण हकइ आत्मा, भावुक विशुद्ध आत्मा, आउ लिज़ा हमेशे हमर दिल के करीब रहत ।"

ऊ आत्मसमर्पण करके ओकरा से आलिंगनबद्ध हो गेल - आउ ई पल ओकर पवित्रता खातिर घातक हो गेल ! एरास्त अपन रक्त में असामान्य उत्तेजना अनुभव कइलक - लिज़ा ओकरा पहिले कभियो एतना आकर्षक नयँ लगल हल, ओकर स्पर्श कभियो ओकरा ओतना तीव्र रूप से प्रभाव नयँ डाललक हल, ओकर चुम्बन कभियो ओतना उत्तेजक नयँ लगल हल - लिज़ा के कुछ नयँ मालूम हल, कोय बात के ओकरा सन्देह नयँ हल, कोय बात के डर नयँ हल - साँझ के अन्हेरा कामना के पोषित कर रहल हल, असमान में एक्को तरिंगन नयँ देखाय दे रहल हल, कोय किरण ई गलती पर प्रकाश नयँ डाल पइलक । एरास्त के अनुभव होल कि ओकर देह कँप रहल ह, लिज़ा के भी ओइसहीं लग रहल हल, ओकरा ई समझ में नयँ आ रहल हल कि अइसन काहे हो रहल ह, आउ ओकरा साथ की हो रहल ह ... आह, लिज़ा, लिज़ा ! तोर रक्षक देवदूत कहाँ हका ? तोर निर्दोषता कहाँ हकउ ?

गलती एक मिनट तक चलल । लिज़ा के अपन संवेदना समझ में नयँ आल, ओकरा अचरज लग रहल हल आउ ऊ सवाल कर रहल हल । एरास्त चुप्पी साधले हल, शब्द ढूँढ़ रहल हल लेकिन ओकरा नयँ मिलल । लिज़ा बोलल - "ओह ! हमरा डर लग रहल ह । हमन्हीं के साथ जे कुछ होल ऊ बात के डर लग रहल ह ! हमरा अइसन लगल जइसे हम मर रहलूँ हँ, जइसे हमर आत्मा ... नयँ, हम ई नयँ कह सकऽ ही ! ... तूँ चुपचाप काहे हकऽ, एरास्त ? आह भर रहलऽ ह ? हे भगवान ! की बात हकइ ?" एहे दौरान बिजली चमकलइ आउ बादल गरजलइ । लिज़ा के पूरा देह कँपे लगलइ । ऊ कहलकइ - "एरास्त, एरास्त ! केतना भयंकर लगऽ हइ ! हमरा डर लगऽ हके कि कहीं बादर के गरजन हमरा एगो अपराधी जइसन मार नयँ दे !" आँधी के गरजन भयंकर हलइ, करिया बादर से जोरदार बारिश हो रहल हल - लग रहल हल कि प्रकृति लिज़ा के अस्मत के बरबादी पर शोक मना रहल हल । एरास्त लिज़ा के शान्त करे के प्रयास कर रहल हल आउ ओकरा झोपड़ी में ले गेल । ओकर आँख से आँसू गिरे लगल, जब एरास्त ओकरा से बिदा होवे लगल । "आह एरास्त ! हमरा विश्वास देलावऽ कि हमन्हीं पहिलहीं जइसन खुश रहम !" - "रहम, लिज़ा, रहम !", ऊ जवाब देलक, "भगवान अइसन करे ! हम तोरा पर अविश्वास नयँ कर सकऽ हियो, काहे कि हम तोरा बहुत प्यार करऽ हियो ! खाली हमर दिल में ... बहुत हो गेल ! अलविदा ! बिहान, बिहान हमन्हीं फेर मिल्लम ।"

ओकन्हीं के मिलन जारी रहल, लेकिन सब कुछ केतना बदल गेल हल ! एरास्त के अब अपन लिज़ा के खाली विशुद्ध प्यार से सन्तोष नयँ होवऽ हलइ, न खाली ओकर प्यार भरल दृष्टि से, न ओकर खाली हाथ के स्पर्श से, न खाली चुम्बन से, आउ न खाली विशुद्ध आलिंगन से । ओकरा आउ कुछ अधिक, अधिक चाही हल, आउ अन्त में ओकर सब इच्छा समाप्त हो गेलइ । आ जे कोय अपन दिल के जानऽ हइ, आउ जे कोय एकर सबसे सुकुमार आनन्द के प्रकृति के बारे सोचलक ह, ऊ अवश्य के हमरा से सहमत होत कि सब्भे इच्छा के पूर्ति हो जाना प्यार के सबसे खतरनाक प्रलोभन हकइ । लिज़ा अब एरास्त लगी विशुद्धता के अइसन देवदूत नयँ हलइ, जे पहिले ओकर कल्पना के प्रज्वलित कइलके हल आउ ओकर आत्मा के आनन्दित करऽ हलइ । निष्काम प्यार अब अइसन भावना के सामने झुक गेले हल, जेकरा पर ऊ गर्व नयँ कर सकऽ हलइ आउ जे ओकरा लगी अब नया नयँ रह गेले हल । जाहाँ तक लिज़ा के बात हइ, त ऊ ओकरा लगी अपना के समर्पित कर देलक हल, ऊ जीयऽ हल आउ साँस ले हल त खाली ओकरे लगी, सब कुछ के मामले में एगो मेमना के तरह ओकर इच्छा के मोताबिक अपना के ढाल लेलक हल आउ ओकर खुशी में अपन खुशी अनुभव करऽ हल।
ऊ ओकरा में बदलाव देखलक, आउ अकसर ओकरा से बोलऽ हल, "पहिले तूँ जादे खुश रहऽ हलऽ, हमन्हीं पहिले जादे निश्चिन्त आउ सुखी हलूँ, आउ पहिले हमरा तोर प्यार के खोवे के ओतना डर नयँ लगऽ हले !" कभी-कभी विदा होते बखत ऊ लिज़ा से बोलऽ हल, "लिज़ा, कल हम तोरा से नयँ मिल सकऽ हकियो - हमरा एगो जरूरी काम हको ।" आउ अइसन शब्द पर लिज़ा उच्छ्वास ले हल ।

अन्त में ऊ लगातार पाँच दिन तक ओकरा नयँ देख पइलक आउ बहुत बेचैन हो उठल; छठा दिन ऊ लटकल मुँह लेके आल आउ बोलल - "प्यारी लिज़ा ! हमरा तोरा से कुछ समय खातिर विदा होवे पड़त । तूँ जानऽ ह कि हमन्हीं हीं युद्ध के समय चल रहल, हम नौकरी पर हकूँ, हमर रेजिमेंट (सैन्यदल) अभियान पर जा रहल ह ।" लिज़ा के चेहरा पीयर पड़ गेल आउ लगभग मूर्छित हो गेल । एरास्त ओकरा प्यार से ढाढ़स बँधइलक, आउ बोलल कि ऊ हमेशे अपन प्यारी लिज़ा के प्यार करते रहत आउ वापस अइला के बाद कभियो ओकरा से अलग नयँ होत । लिज़ा बहुत देर तक चुप रहल, फिनु ओकर आँख में आँसू बह चलल, ओकर हाथ पकड़के ओकरा तरफ डालके प्यार के सब सुकुमारता के साथ ऊ पुछलक, "तूँ ठहर नयँ सकऽ ह ?" - "ठहर सकऽ हिअइ", ऊ बोलल, "लेकिन बड़गो बदनामी के साथ, हमर इज्जत खातिर बड़गो दाग के साथ । सब कोय हमरा से घृणा करत; सब कोय हमरा से कतरात, कायर समझके, हमरा पितृभूमि के अयोग्य पुत्र समझके ।" - "ओह, अगर अइसन बात हकइ", लिज़ा बोलल, "त जा, जा, जाहाँ भगवान चाहऽ हका ! लेकिन ओकन्हीं तोरा जानो मर दे सकऽ हको ।" - "प्यारी लिज़ा, पितृभूमि खातिर शहीद होना भयंकर बात नयँ हकइ ।" - "हम तो मर जइबो जइसहीं तूँ ई दुनियाँ छोड़ देबऽ ।" - "लेकिन अइसन तूँ सोचवे काहे करऽ ह ? हम आशा करऽ हूँ कि हम जिन्दा बच जाम, हमर प्यारी दोस्त, हम आशा करऽ हूँ कि तोहरा पास वापस आम ।" - "भगवान अइसन करे ! भगवान अइसन करे ! हरेक दिन, हरेक पल हम ई लगी प्रार्थना करबो । ओह, हमरा काहे नयँ पढ़े आवऽ हके आउ न लिक्खे आवऽ हके । तोरा साथ जे कुछ होतो हल, तूँ हमरा सब कुछ सूचित करतऽ हल, आउ हम तोहरा लिखतूँ हल - अपन दुख-तकलीफ के बारे, अपन आँसू के बारे !" - "नयँ, अपन खियाल रक्खऽ, लिज़ा, अपन दोस्त खातिर अपन खियाल रक्खऽ । हम ई नयँ चाहऽ ही कि तूँ हमर गैरहाजिरी में तूँ रोवऽ ।" - "निर्दयी कहीं के ! तूँ हमरा ई खुशी से भी वंचित करे ल चाहऽ ह ! नयँ ! तोरा से अलगे होके ओहे बखत हम रोना बन करम, जब हमर दिल सूख के पत्थल हो जात ।" - "ऊ सुखद पल के बारे सोचऽ, जब हमन्हीं फेनु मिल्लम ।" - "हाँ सोचम, सोचम एकरा बारे ! काश, ई पल जल्दीए आवे ! प्रिय, दुलारे एरास्त ! आद रखिहऽ, आद रखिहऽ अपन बेचारी लिज़ा के बारे, जे खुद से जादे तोहरा प्यार करऽ हको !"

ओकन्हीं बीच ई परिस्थिति में जे कुछ बात होलइ ऊ सबके वर्णन करे में हम सक्षम नयँ ही । लेकिन दोसर दिन ओकन्हीं के मिलन के अन्तिम दिन हलइ ।

एरास्त लिज़ा के मइयो से विदाई लेवे ल चाहऽ हल, जे आँसू नयँ रोक पइलक जब ऊ सुनलक कि ओकर दयालु सुन्दर ठाकुर युद्ध पर जाय वला हका । ऊ ओकरा कुछ पैसा लेवे ल ई बात कहके बाध्य कर देलक - "हम ई नयँ चाहम कि लिज़ा हमर अनुपस्थिति में अपन काम के चीज बेचे, जे समझौता के मोताबिक हम्मर हके ।" बुढ़िया ओकरा आशीर्वाद के झड़ी लगा देलकइ । ऊ बोललइ - "भगवान करे कि तूँ हमन्हीं के पास कुशलपूर्वक वापस आवऽ आउ ई जिनगी में तोहरा फेनु देख पावूँ ! हो सकऽ हइ कि हमर लिज़ा के ऊ बखत तक वांछित दुलहा मिल जाय । भगवान के हम केतना धन्यवाद देम अगर विवाह के बखत तूँ अइबऽ ! आउ जब लिज़ा के बुतरू होतइ, त ई जान ल कि ओकन्हीं के तोरा धर्मपिता बने पड़तो ! ओह ! हमरो ऊ बखत तक जीए के मन करत !" लिज़ा अपन माय के बगल में खड़ी रहल आउ ओकरा भर नजर देख नयँ पइलक । पाठक असानी से कल्पना कर सकऽ हका कि ओकरा ई पल में कइसन लग रहल होत ।

लेकिन उ की अनुभव कर रहल हल जब एरास्त ओकरा अन्तिम तुरी आलिंगन करके, अन्तिम तुरी ओकरा अपन छाती से लगाके कहलकइ - "अलविदा लिज़ा ! ..." कइसन मर्मस्पर्शी चित्र ! उषाकाल, लाल सागर जइसे, पूरबी अकाश में पसर गेल हल । एरास्त बलूत के डढ़ियन के निच्चे खड़ी हल, अपन बेचारी प्रेमविह्वल दुखी सहेली के आलिंगन में लेले, जे ओकरा से विदाई लेते बखत, वस्तुतः अपन आत्मा से विदाई ले रहल हल । समुच्चे प्रकृति बिलकुल चुपचाप हल ।

लिज़ा सिसक रहल हल, एरास्त कन रहल हल । ऊ लिज़ा के छोड़ देलक त ऊ गिर पड़ल । उठके अपन टेहुना के बल खड़ी होल, अपन हाथ उठाके अकाश तरफ कइलक आउ एरास्त तरफ एक टक देखते रहल, जे दूर जा रहल, आउ दूर, आउ दूर, अन्त में इड़ोत हो गेल । सूर्योदय हो गेल, आउ लिज़ा, परित्यक्त, बेचारी, अपन सब भावना आउ होश खो देलक ।

ऊ होश में आल आउ दुनियाँ ओकरा दुखी आउ उदास प्रतीत होल । ओकर हृदय के प्रिय के साथे-साथ प्रकृति के सब्भे आनन्द ओकरा लगी गायब हो गल हल । ऊ सोच रहल हल - "आह ! ई मरुभूमि में हम हम अकेल्ले काहे ल रह गेलूँ ? प्रिय एरास्त के पाछु-पाछू हमर उड़के जाय में के रोक रहल ह ? युद्ध हमरा लगी भयंकर नयँ हके; भयंकर हुआँ लगत जाहाँ हमर मित्र नयँ रहत । उनखा साथ जीए, उनखा साथ मरे ल चाहऽ हूँ, अथवा उनखर अनमोल जिनगी के अपन जान देके बचावे ल चाहऽ हूँ । रुकऽ, रुकऽ, प्यारे ! हम उड़के तोहरा पास आ रहलियो ह !" ऊ एरास्त के पीछू दौड़के जाय लगी तैयार होल, लेकिन ई विचार कि "हमरा पास माय हके !", ओकरा रोक लेलक । लिज़ा आह भरलक आउ अपन मूड़ी गोतले शान्ति से डेग बढ़इले अपन झोपड़ी तरफ चल पड़ल । ई बखत से ओकर दिन उदासी आउ शोक के दिन हल, जेकरा अपन सुकुमार मइया से छिपावे पड़ल - जे से ओकर दिल के आउ तकलीफ भोगे पड़ल ! ओकर दिल के थोड़े स चैन तब पड़ऽ हल, जब लिज़ा घना जंगल में अकेल्ले रहला पर मनमाना आँसू बहा सकऽ हल आउ अपन प्रिय से विरह के आह भरऽ हल । अकसर उदास पड़कोयँ ओकर आह के साथ अपन विषादपूर्ण अवाज मिला दे हल । लेकिन कभी-कभार, हलाँकि विरले सही, आशा के सुनहरा किरण, सान्त्वना के किरण ओकर शोक के अन्हेरा पर रोशनी डालऽ हलइ । "जखनी ऊ हमरा पा वापस अइता, त हम केतना खुश होम ! सब कुछ केतना बदल जात !" अइसन विचार अइला पर ओकर दृष्टि चमक उठऽ हल, ओकर गाल गुलाबी हो जा हल, आउ तूफानी रात के बाद के मई के सुबह जइसन लिज़ा मुसकुरा उठऽ हल । ई तरह करीब दू महिन्ना गुजर गेल ।

एक दिन लिज़ा के गुलाबजल खरीदे लगी मास्को जाय पड़लइ । एकरा से ओकर मइया अपन आँख के इलाज करऽ हलइ । एगो बड़गो रोड पे ऊ सामने से एगो शानदार गाड़ी अइते देखलक, जेकरा में ओकरा एरास्त पर नजर पड़ल । "आह !" लिज़ा चिल्ला उठल आउ ओकरा तरफ दौड़ पड़ल, लेकिन गाड़ी तब तक ओकरा भिर से गुजर गेल आउ एगो ड्योढ़ी तरफ मुड़ गेल । एरास्त बाहर होल आउ बड़का भवन के प्रवेशद्वार पे जाहीं वला हल कि अचानक ऊ अपना के लिज़ा के आलिंगन में पइलक । ओकर चेहरा पीयर पड़ गेल, फिनु लिज़ा के अचरज के बिना कोय उत्तर देले ओकरा हाथ पकड़ले अपन अध्ययन-कक्ष में ले आल, दरवाजा बन कइलक आउ ओकरा से कहलक - "लिज़ा ! अब परिस्थिति बिलकुल बदल गेलो ह; शादी खातिर हमर मंगनी हो चुकलो ह; तूँ हमरा शान्ति से रहे दे आउ अपनो मन के शान्ति खातिर हमरा भूल जो । हम तोरा प्यार करऽ हलिअउ आउ अभियो प्यार करऽ हिअउ, मतलब तोरा लगी हमर शुभकामना हकउ । ई हकउ सो रूबल, एकरा ले ले ।" ऊ ओकर जेभी में पइसा डाल देलकइ आउ बोललइ - "हमरा अन्तिम तुरी चुम्बन लेवे दे आउ अपन घर चल जो ।" एकर पहिले कि लिज़ा के कुछ समझ में आत हल, ऊ ओकरा अपन अध्ययन-कक्ष से ओकरा बाहर ले आल आउ नौकर के बोलल - "ई लड़की के गल्ली तक छोड़ आव ।"

ई पल हमर दिल में तो खून खौल रहल ह । एरास्त में मानव के हम भूल जा हकूँ - ओकरा तो हम शाप देवे लगी तैयार हकूँ, लेकिन हमर जीभ नयँ चल पावऽ हके । हम ओकरा तरफ देखऽ हकूँ आउ हमर चेहरा पर आँसू ढलक जा हके । आह ! हम अइसन दुखद सत्यकथा के बदले कोय उपन्यास काहे नयँ लिक्खऽ हकूँ ?

त की एरास्त लिज़ा से झूठ बोल रहले हल, जब ऊ ओकरा कहलके हल कि हमरा युद्ध पर जाय के हके ? नयँ, वास्तव में ऊ सेना में भरती होल हल, लेकिन दुश्मन के साथ लड़े के बदले ऊ जुआ खेललक आउ अपन सब जायदाद गँवा बइठल । जल्दीए युद्ध समाप्त हो गेलइ आउ एरास्त मास्को वापस आल कर्जा के बोझ लेले । अब ओकरा पास एक्के उपाय रह गेल हल अपन परिस्थिति के सुधारे लगी - एगो वइसगर धनवान विधवा से शादी करना, जे लम्बे समय से ओकरा प्यार करऽ हलइ । लिज़ा खातिर एगो सच्चा आह भरला के बाद, ऊ एहे बात के अन्तिम फैसला कर लेलक आउ ओहे विधवा के घर में रहे लगी आ गेल । लेकिन ई सब से कि ऊ दोषमुक्त हो जइतइ ?

लिज़ा अपना के गल्ली में पइलक, आउ अइसन स्थिति में, जेकर वर्णन कोय कलम नयँ कर सकऽ हइ । "ऊ हमरा निकाल बाहर कइलक ? ऊ आउ केकरो प्यार करऽ हके ? हम तो मर गेलूँ !" ई हल ओकर विचार, ओकर भावना ! क्रूर मूर्छा कुछ समय खातिर बाधा डाललक । एगो नेकदिल औरत, जे ऊ गल्ली से होके जा रहल हल, जमीन पर पड़ल लिज़ा के पास रुक गेलइ, आउ ओकरा होश में लावे के कोशिश कइलकइ ।  अभगली आँख खोललक, ई नेकदिल औरत के मदत से खड़ी होल, ओकरा धन्यवाद देलक आउ चल पड़ल, ओकरा खुद्दे नयँ मालूम कद्धिर । ऊ सोचलक - "हम जीए ल नयँ चाहऽ हूँ, बिलकुल नयँ ! ... काश, अकाश हमरा पर गिर पड़त हल ! काश जमीन बेचारी के निगल जात हल ! ... नयँ ! अकाश नयँ गिरत, जमीन नयँ काँपत ! हमरा दुखे लिखल हके !"  ऊ शहर से बाहर निकलल आउ अचानक ऊ खुद के एगो गहिड़ा पोखरा के किनारे पइलक, जेकरा पर प्राचीन बलूत के छाया पड़ रहल हल । ई बलूत सब कुछ सप्ताह पहिले ओकर हर्षोन्माद के मूक साक्षी रहल हल । ई स्मरण ओकर आत्मा के हिला के रख देलक; सबसे भयंकर, हृदय के पीड़ा ओकर चेहरा पर देखाय देलक । लेकिन कुछ मिनट के बाद ऊ गहरा सोच में डूब गेल । ऊ खु के चारो तरफ देखलक, अपन पड़ोसी के बेटी (एगो पनरह साल के लड़की) के देखलक, जे ऊ रस्ता से जा रहल हल । ऊ ओकरा बोलइलक आउ अपन जेभी से दस इम्पेरियाल [7] निकाल के ओकरा देके कहलक - "प्रिये अन्युता, प्रिये सखी ! ई पइसा हमर मइया के दे दिहँऽ, ई पइसा चोरावल नयँ हकइ, ओकरा कहिहँऽ कि लिज़ा तोरा सामने अपराधी हको, कि ऊ एगो निर्दय अदमी खातिर अपन प्यार के बात छिपइलको हल, ओकर नाम हको - ए ... लेकिन ओकर नाम जानके की फयदा ? बतइहँऽ कि ऊ ओकरा धोखा देलकइ । कहिहँऽ कि ओकरा माफ कर देहो - भगवान ओकरा मदत करथिन । हमर मइया के हाथ के ओइसहीं चुमिहँऽ, जइसे अभी हम तोर चूम रहलियो ह । कहिहँऽ कि बेचारी लिज़ा तोरा चुम्मे ल कहलको हल । कहिहँऽ कि ऊ ... ।" एतना कहिए के ऊ पनिया में कूद गेल । अन्युता चीख पड़ल, रोवे लगल, लेकिन ओकरा बचा नयँ सकल । ऊ दौड़ल गाँव गेल । लोग जमा हो गेला आउ लिज़ा के बाहर निकसलका, लेकिन ऊ तब तक मर चुकल हल

ई तरह ऊ दिल आउ देह से सुत्थर लड़की आत्महत्या कर लेलक । जब हमन्हीं हुआँ जाम, एगो नयका जिनगी में, त हमन्हीं भेटम, हम तोरा पछान लेम, सुकुमार लिज़ा !

ओकरा पोखरा के नजीक दफना देते गेला, छायादार बलूत के निच्चे, आउ ओकर कबर पर एगो लकड़ी के क्रॉस रख देलका । हियाँ अकसर हम बइठऽ हूँ, सोच में डुब्बल, लिज़ा के मट्टी के आधान पे ओठंगके; पोखरा हमर आँख के सामने हलचल करऽ हके, पतवन हमर सिर के उपरे खड़खड़इते रहऽ हके ।

लिज़ा के मइया के अपन बेटी ई भयंकर मौत के बात मालूम पड़ल, आउ दहशत से ओकर खून सूख गेल, ओकर आँख हमेशे लगी बन हो गेलइ । झोपड़ी उजाड़ हो गेलइ । ओकरा में हावा आह भरऽ हइ, आउ अन्धविश्वासी गाँव के लोग रतिया के ई शोर सुनके बोलऽ हइ - "हुआँ मरल लिज़ा कराह रहले ह; हुआँ बेचारी लिज़ा विलाप कर रहले ह !"

एरास्त अपन जिनगी के अन्तिम बखत तक दुखी रहल । लिज़ा के दुर्भाग्य के बारे जानके ओकरा शान्ति नयँ मिलल आउ अपना के ओकर हत्यारा मानलक । ओकरा से हमरा परिचय होल ओकर मौत के एक साल पहिले । ऊ खुद्दे हमरा ई कहानी सुनइलक आउ हमरा लिज़ा के कबर तक ले गेल । अब, शायद, ओकन्हीं के बीच समझौता हो गेले ह !



(प्रथम प्रकाशित 1792)

नोट:
[1] सिमोनोव विहार मठवासी फ्योदोर (दीक्षा 'सिमोन' के नाम से) द्वारा सन् 1370 में स्थापित । सन् 1379 में मूल स्थान से आधा मील पूरब घसका देल गेलइ । सन् 1923 में बल्शेविक द्वारा एकरा समाप्त करके ऑटोमोबाइल प्लांट लगवा देल गेलइ । फेर 1990 में एकर कुछ हिस्सा के रूसी सनातन गिरजाघर के सौंप देवल गेलइ आउ पुनरुद्धार के बाद एकर सर्विस 1992 से शुरू होलइ । [http://en.wikipedia.org/wiki/Simonov_Monastery]

[2] दानिलोव विहार - अलिक्सान्द्र नेव्स्की के पुत्र राजकुमार दानिल द्वारा तेरहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में स्थापित । [http://en.wikipedia.org/wiki/Danilov_Monastery]

[3] वोरोब्योव गिरि - मास्को के दक्षिण-पश्चिम में मास्को नदी के दहिना कगार तरफ करीब 200-230 मी॰ उँचगर पहाड़ी । सन् 1924-1991 के बीच व्लदीमिर लेनिन के आरदरार्थ एकर नाम लेनिन गिरि (पहाड़ी) देल गेले हल । [http://en.wikipedia.org/wiki/Sparrow_Hills]

[4] कोलोमेन्स्कए मास्को शहर के केन्द्र से कुछ किलोमीटर दक्षिण-पूरब बसल गाम, जेकरा 1960 के दशक में मास्को के हिस्सा बना देवल गेलइ । उल्लिखित किला शायद चरतल्ला किला हलइ जेकरा महारानी कैथेरिन के आदेश पे सन् 1767 में, 1660 के दशक में त्सार अलेक्सिस मिखायलविच के शासन-काल में लकड़ी के खड़ा कइल पुरनका किला के स्थान पे बनावल गेले हल। [http://en.wikipedia.org/wiki/Kolomenskoye]

[5] सझेन = प्राचीन काल में रूस में प्रयुक्त करीब 2.134 मीटर के बराबर दूरी के एगो इकाई । अतः 70 सझेन = 70 x 2.134 = 149.38 मीटर = 150 मीटर (लगभग); 80 सझेन = 80 x 2.134 = 170.72 मीटर = 170 मीटर (लगभग)

[6] सिन्थिया (Cynthia) - अर्तेमिस; सतीत्व के द्योतक आउ शिकार के ग्रीक देवी, जिनकर जन्म सिन्थस (Cynthus) पर्वत पर होले हल ।
[7] इम्पेरियाल -  रूस में 1917 ई॰ के पहिले - सोना के सिक्का (1755 ई॰ से 10 रूबल के बराबर, आउ 1897 ई॰ से 15 रूबल के बराबर) । चूँकि ई कहानी 1792 में प्रकाशित होले हल, दस इम्पेरियाल = 100 रूबल ।
 



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