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Monday, October 31, 2016

रूसी उपन्यास "आझकल के हीरो" ; भाग-2 ; 3. भाग्यवादी - अध्याय-2



रूसी उपन्यास – “आझकल के हीरो”
भाग-2
3. भाग्यवादी - अध्याय-2

हम उपनगर के सूनसान गल्ली से घर वापिस आ रहलिए हल । पूरा आउ लाल चान, आग के लाली नियन, घरवन के दाँतेदार (jagged) क्षितिज के पीछू से प्रकट होब करऽ हलइ । तरिंगन सब शांतिपूर्वक गहरा नीला मेहराब (आकाश) पर चमक रहले हल, आउ हमरा ई बात हास्यास्पद लगलइ, जब हमरा आद पड़लइ, कि कभी तो संत लोग हलथिन, जिनकर सोच हलइ, कि खगोलीय पिंड हमन्हीं के जमीन के मामले में, चाहे कइसनो कृत्रिम अधिकार के मामले में कोय क्षुद्र विवाद (trivial conflicts) में हिस्सा ले हथिन ! ... आउ की होलइ ? ई दीपक सब, जेकरा जलावल गेले हल, उनकन्हीं (संत लोग) के मतानुसार, खाली ई लगी, कि ओकन्हीं के युद्ध आउ विजय के प्रकाशित करइ, पहिलौके चमक के साथ जल्लऽ हइ, आउ ओकन्हीं के वासना आउ आशा ओकन्हीं के साथे बहुत पहिलहीं बुत गेलइ, जइसे कि एगो बेफिकर राही द्वारा जंगल के किनारे जलावल आग बुत जा हइ ! लेकिन कइसन इच्छाशक्ति ओकन्हीं के ई विश्वास देलइलकइ, कि ई पूरा आकाश आउ ओकरा पर के अनगिनत निवासी ओकन्हीं के मूक, लेकिन स्थायी, सहानुभूति के साथ देखब करऽ हइ ! ... आउ हमन्हीं, ओकन्हीं के दयनीय वंशज, जे पृथ्वी पर बिन कोय धारणा आउ गौरव के भटक रहलिए ह, बिन कोय आनंद आउ भय के, (सिवाय ऊ अनैच्छिक भय के, जे अनिवार्य अंत के बारे विचार अइला पर हृदय के संकुचित कर दे हइ), हमन्हीं सब न तो मानव कल्याण खातिर, न तो खुद के खुशियो खातिर, कोय बड़गो बलिदान करे में अभी सक्षम हिअइ, काहेकि हमन्हीं के एकर असंभावना मालूम हइ, आउ भावशून्यता के साथ एक शंका से दोसरा शंका से गुजरऽ हिअइ, जइसे कि हमन्हीं के पूर्वज लोग एक भ्रांत धारणा से दोसरा में पड़ जा हलथिन, लेकिन उनकन्हीं नियन बिन कोय आशा के, चाहे ऊ अनिश्चित, हलाँकि वास्तविक आनंद के, जेकरा से आत्मा के, लोग या भाग्य के साथ, हरेक संघर्ष में पाला पड़ऽ हइ ... 

आउ कइएक अइसन विचार हमर दिमाग से गुजरलइ । हम ओकरा रोकके नयँ रखलिअइ, काहेकि हमरा कइसनो भावात्मक (abstract) विचार पर ध्यान केंद्रित करना पसीन नयँ । आउ ई काहाँ ले जइतइ ? ... अपन जवानी के शुरुआत में हम स्वप्नद्रष्टा हलिअइ । हमरा बारी-बारी से कभी उदास, त कभी रंग-बिरंगा आकृति के दुलार करना निम्मन लगऽ हलइ, जे बेचैन आउ लोलुप कल्पना हमरा सामने चित्रित करऽ हलइ । लेकिन एकरा से हमरा लगी की रह गेल ? खाली थकान, जइसे रात के भूत के साथ लड़ाय के बाद आवऽ हइ, आउ खेद के साथ भरल एगो अस्पष्ट आदगार । ई बेकार के संघर्ष में हम आत्मा के जोश आउ इच्छाशक्ति के दृढ़ता क्षीण कर देलिअइ, जे वास्तविक जिनगी में आवश्यक हइ । हम ई जिनगी में प्रवेश कइलिअइ, जेकरा हम पहिलहीं कल्पना में जी चुकलिए हल, आउ हमरा बोरियत आउ चीढ़ होवे लगलइ, बिलकुल ओकरा नियन, जे एगो भद्दा नकल कइल पुस्तक पढ़ऽ हइ, जेकरा बारे ऊ बहुत पहिलहीं से परिचित हइ ।

शाम के ई घटना हमर मस्तिष्क पर एगो काफी गहरा छाप छोड़लकइ आउ हमर स्नायु के उत्तेजित कइलकइ । हमरा पक्का ई मालूम नयँ, कि अब हमरा पूर्वनिर्धारण में विश्वास हइ कि नयँ, लेकिन ई शाम में हमरा दृढ़ विश्वास हलइ । प्रमाण विलक्षण हलइ, आउ हम ई बात के बावजूद, कि अपन पूर्वज लोग पर आउ उनकर सेवापरायण फलित ज्योतिष पर हँसलिअइ, हम जाने-अनजाने उनकर लीक पर चल पड़लिअइ, लेकिन हम खुद के समय पर ई खतरनाक रस्ता पर जाय से रोक लेलिअइ, आउ ई नियम के ध्यान में रखते, कि कुच्छो के निर्णायक रूप से (decisively) अस्वीकार नयँ करे के चाही आउ कउनो बात पर आँख मूनके विश्वास नयँ करे के चाही, हम पराभौतिकी (metaphysics) के बगल कर देलिअइ आउ अपन गोड़ के निच्चे देखना चालू कइलिअइ । अइसन सवधानी बहुत सुअवसर पर होलइ - कुछ तो मोटगर आउ मोलायम, लेकिन स्पष्टतया एगो निर्जीव, पर ठोकर खाके हम लगभग गिरिए गेलूँ हल । झुकके देखऽ ही - चान सीधे रस्ता पर चमक रहले हल - आउ ओहो कउची ? हमर सामने एगो सूअर पड़ल हले, तलवार से दू टुकड़ा होल ... मोसकिल से हम ओकरा देख पइलिए हल, कि हमरा कदम के आहट सुनाय देलकइ । दू कज़ाक गल्ली से दौड़ल आब करऽ हलइ, एगो हमरा भिर अइलइ आउ पुछलकइ, कि की हमरा एगो पीयल कज़ाक पर नजर पड़ले हल, जे एगो सूअर के पीछा कर रहले हल । हम ओकरा बतइलिअइ, कि हमरा कज़ाक से भेंट तो नयँ होले हल, आउ ओकर प्रचंड वीरता के अभागल शिकार दने इशारा कइलिअइ ।
"कइसन डाकू हइ !" दोसरा कज़ाक बोललइ, "जइसीं चिख़िर (काकेशियाई नयका लाल दारू, चाहे द्राक्षारस) चढ़ा ले हइ, ओइसीं ऊ सब कुछ काटे-कुट्टे लगऽ हइ, जे ओकर सामने पड़ जा हइ । येरेमेइच, ओकर पीछू चलल जाय, ओकरा बान्ह-छान्ह लेवे के चाही, नयँ तो..."
ओकन्हीं चल गेलइ, आउ हम अधिक सवधानी से अपन रस्ता पर चलते रहलिअइ आउ आखिरकार अपन क्वार्टर तक सकुशल पहुँच गेलिअइ ।
हम एगो वृद्ध उर्यादनिक (कज़ाक सर्जेंट) के हियाँ रहऽ हलिअइ, जेकरा हम ओकर निम्मन स्वभाव के चलते पसीन करऽ हलइ, आउ विशेष करके ओकर सुंदर बेटी नास्त्या के कारण ।
ऊ, हमेशे नियन, विकेट गेट भिर फरकोट पेन्हले हमर इंतजार करब करऽ हलइ । चान ओकर प्यारा ठोर के प्रकाशित कर रहले हल, जे रात के ठंढक के चलते नीला हो गेले हल । हमरा पछान गेला पर, ऊ मुसकइलइ, लेकिन हमरा ओकरा से काम नयँ हलइ । "शुभ रात्रि, नास्त्या", पास से गुजरते हम कहलिअइ । ऊ कुछ तो उत्तर देवे लगी चहलकइ, लेकिन खाली उच्छ्वास लेलकइ ।

हम अपन कमरा के दरवाजा अपन पीछू बन कर लेलिअइ, मोमबत्ती जलइलिअइ आउ बिछौना पर पड़ गेलिअइ । लेकिन नीन हमरा हमेशे के अपेक्षा जादे इंतजार करइलकइ । जब हमरा नीन पड़लइ, तखने पूरब में पीयर होवे लगले हल, लेकिन - स्पष्ट हलइ, स्वर्ग (भाग्य) में लिक्खल हलइ, कि हमरा ई रात नीन नयँ अइतइ । चार बजे सुबह में दू मुट्ठी हमरा हीं खिड़की पर दस्तक देवे लगलइ । हम उछलके खड़ी हो गेलिअइ । "की बात हइ ? ..." - "उट्ठऽ, पोशाक पेन्हके तैयार हो जा !" कइएक स्वर हमरा लगी चिखलइ । हम तेजी से पोशाक पेन्हलिअइ आउ बाहर निकसलिअइ । "जानऽ हो, की होलइ ?" तीन अफसर एक स्वर में बोलते गेलथिन, जे हमरा लगी अइलथिन हल । उनकन्हीं मौत नियन पीयर हलथिन ।
"की ?"
"वुलिच मारल गेलइ ।"
हम स्तंभित हो गेलिअइ ।
"हाँ, मारल गेलइ", उनकन्हीं बात जारी रखलथिन, "शीघ्र चलल जाय ।"
"लेकिन कद्धिर ?"
"रस्ता में मालूम पड़तो ।"
हमन्हीं चल पड़लिअइ । उनकन्हीं हमरा सब कुछ बतइलथिन, जे कुछ घटले हल, ऊ विचित्र पूर्वनिर्धारण के बारे कइएक टिप्पणी के साथ, जे ओकर मौत के आध घंटा पहिले ओकरा अनिवार्य मौत से बचा लेलके हल । वुलिच अन्हार सड़क पर अकेल्ले जा रहले हल । ओकरा भिर ऊ पीयल कज़ाक सरपट अइलइ, जे पहिले सूअर के काट देलके हल, आउ शायद, ओकर सामने से गुजर जइते हल, ओकरा बिन देखले, अगर वूलिच अचानक रुकके ओकरा संबोधित करके नयँ कहते हल - "भाय, केकरा ढूँढ़ रहलहो ह ?" - "तोरा !" कज़ाक जवाब देलकइ, ओकरा पर तलवार से प्रहार करते, आउ ओकरा कन्हा से लेके लगभग दिल तक दू टुकड़ा कर देलकइ ... दू कज़ाक, जे हमरा से मिलते गेले हल आउ हत्यारा के पीछा कर रहले हल, ओकरा भिर पहुँचलइ, घायल अफसर के उठा लेलकइ, लेकिन ऊ अब अंतिम साँस ले रहले हल आउ ऊ खाली एतने बोल पइलकइ - "ऊ सही हलइ !" खाली हमहीं समझ पइलिअइ ई शब्द के अस्पष्ट अर्थ - ई हमरा से संबंधित हलइ । जाने-अनजाने हम ऊ बेचारा के भाग्य के भविष्यवाणी कर देलिए हल; हमर छट्ठा इंद्रिय (instinct) हमरा धोखा नयँ देलके हल - हम ओकर परिवर्तित होल चेहरा पर निकट भविष्य में ओकर मौत के छाप बिलकुल सही-सही पढ़ लेलिए हल ।
हत्यारा एगो खाली झोपड़ी में बन हो गेले हल, जे स्तानित्सा (कज़ाक गाँव) के आखिर में हलइ । हमन्हीं ओद्धिर बढ़लिअइ । कइएक औरत कनते ओधरे दौड़ल जाब करऽ हलइ । समय से पिछुआल कोय कज़ाक तेजी से निकसके सड़क पर निकसऽ हलइ, जल्दी-जल्दी में कमर में खंजर खोंसते, आउ दौड़ते-दौड़ते हमन्हीं के सामने से गुजर जा हलइ । भगदड़ भयंकर हलइ ।

अइकी आखिरकार हमन्हीं हुआँ पहुँचलिअइ, त देखऽ हिअइ -  ऊ झोपड़ी के चारो तरफ, जेकर दरवाजा आउ शटर अंदर से बन हइ, भीड़ लगल हइ । अफसर आउ कज़ाक लोग आपस में गरमागरम बहस कर रहते जा रहला ह - औरत लोग विलाप कर रहला ह, कोसते आउ शिकायत करते । ओकन्हीं में से हमर नजर एगो बुढ़िया के आश्चर्यजनक चेहरा पर पड़लइ, जे उग्र उदासी व्यक्त कर रहले हल । ऊ एगो मोटगर लट्ठा (log) पर बैठल हलइ, अपन केहुनी के टेहुना पर टिकइले आउ हाथ से सिर के सहारा देले । ऊ हत्यारा के माय हलइ । ओकर ठोर बीच-बीच में हिल्लऽ हलइ - की फुसफुसाहट में ई प्रार्थना करब करऽ हलइ, कि सराप (शाप) देब करऽ हलइ ?

ई दौरान अपराधी के पकड़े लगी कुछ तो फैसला करे के चाही हल । लेकिन कोय नयँ आगू आवे के साहस करब करऽ हलइ । हम खिड़की भिर गेलिअइ आउ शटर के दरार से देखलिअइ । ओकर चेहरा पीयर हलइ, ऊ फर्श पर पड़ल हलइ, दहिना हाथ में पिस्तौल लेले; खून से लथपथ तलवार ओकर बगल में पड़ल हलइ । ओकर अभिव्यंजक (expressive) आँख भयंकर रूप से चारो तरफ घूर रहले हल । कभी-कभी ऊ चौंक जाय आउ अपन सिर पकड़ लेइ, मानूँ अस्पष्ट रूप से कल के घटना के आद कर रहल होवे । हम ई बेचैन नजर में कोय बड़गो दृढ़ संकल्प नयँ पढ़लिअइ आउ मेजर के कहलिअइ, कि ऊ बेकारे कज़ाक लोग के दरवाजा तोड़े आउ ओद्धिर घुस्से के औडर नयँ देब करऽ हथिन, काहेकि ई काम करना अभिए बेहतर हइ, बनिस्पत बाद के, जब ऊ बिलकुल होश में आ जइतइ ।

एतने में वृद्ध एसाउल (कज़ाक कप्तान) दरवाजा भिर गेलइ आउ ओकरा नाम से पुकरलकइ । ऊ प्रतिसाद (response) देलकइ ।
"भाय येफ़िमिच, तूँ पाप कइलँऽ हँ", एसाउल कहलकइ, "त तोरा आत्मसमर्पण करे के सिवा कोय चारा नयँ हकउ!"
"हम आत्मसमर्पण नयँ करम !" कज़ाक उत्तर देलकइ ।
"भगमान से तो डर । वस्तुतः तूँ तो अभिशप्त चेचेन नयँ हकँऽ, बल्कि एगो पक्का क्रिश्चियन । खैर, अगर पाप तोरा बहका देलको ह, त कुछ नयँ कइल जा सकऽ हउ - तूँ अपन भाग्य से बच नयँ पइमँऽ !"
"हम आत्मसमर्पण नयँ करम !" भयंकर रूप से कज़ाक चिल्लइलइ, आउ जब घोड़ा चढ़इलकइ, त ओकर अवाज सुनाय पड़लइ ।
"ए चाची !" एसाउल बुढ़िया के कहलकइ, "अपन बेटवा से जरी बात करहीं, शायद तोर बात सुनतउ ... वास्तव में ई खाली भगमान के गोस्सा बरइतउ । आउ देखहीं, ई महाशय लोग दू घंटा से इंतजार करब करऽ हथिन ।"
बुढ़िया उनका तरफ एकटक देखते रहलइ आउ सिर हिलइलकइ । "वसीली पित्रोविच", मेजर के पास जाके एसाउल कहलकइ, "ऊ आत्मसमर्पण नयँ करतइ - हम ओकरा जानऽ हिअइ । आउ अगर हमन्हीं दरवाजा तोड़ दे हिअइ, त ऊ हमन्हीं के कइएक लोग के मार देतइ । की ई बेहतर नयँ होतइ कि अपने ओकरा शूट कर देवे के आज्ञा देथिन ? शटर में दरार काफी चौला हइ ।"

एहे समय हमर दिमाग में एगो विचित्र विचार कौंधलइ । वुलिच नियन, हम भाग्य के अजमावे के सोचलिअइ ।
"ठहरथिन", हम मेजर के कहलिअइ, "हम ओकरा जिंदा पकड़ लेबइ ।"
एसाउल के ओकरा साथ बातचीत शुरू करे के कहके आउ दरवाजा भिर तीन कज़ाक के रखके, जे बतावल इशारा पर एकरा तोड़के हमर मदद लगी झपट पड़इ, हम झोपड़ी के चक्कर लगइलिअइ आउ निर्णायक खिड़की बिजुन अइलिअइ । हमर दिल जोर-जोर से धड़क रहल हल ।
"अरे अभिशप्त !" एसाउल चिल्लइलइ । "की तूँ हमन्हीं पर हँस रहलहीं हँ ? कि सोचऽ हीं, कि हमन्हीं तोरा काबू में नयँ कर लेते जइबउ ?"
ऊ पूरा जोर लगाके दरवाजा खटखटावे लगलइ । हम, अपन नजर दरार पर टिकइले, कज़ाक के हरेक हरक्कत पर ध्यान देते रहलिअइ, जेकरा ई तरफ से हमला के अपेक्षा नयँ हलइ - आउ अचानक शटर के घींचके अलगे कर देलिअइ आउ सिर निच्चे मुँहें कइले खिड़की से होके अंदर झपट पड़लिअइ । हमर कान के ठीक उपरे गोली के अवाज सुनाय पड़लइ, गोली हमर स्कंधिका (epaulettes) के फाड़ देलकइ । लेकिन धुआँ, जे पूरे कमरा में भर गेले हल, हमर प्रतिद्वंद्वी के अपन बगली में पड़ल तलवार खोजे में बाधा डललकइ । हम ओकरा बाँह से जकड़ लेलिअइ; कज़ाक लोग दरवाजा तोड़के अंदर घुसते गेलइ, आउ तीनो मिनट नयँ गुजरलइ, कि अपराधी के बान्ह लेवल गेलइ आउ गार्ड के अधीन ले जाल गेलइ । लोग तितर-बितर हो गेते गेलइ । अफसर लोग हमरा बधाई देते गेलथिन - आउ जे बिलकुल तर्कसंगत हलइ !

ई सब घटना के बाद, लगऽ हइ, कि कइसे अदमी भाग्यवादी नयँ बन जइतइ ? लेकिन कोय अदमी कइसे ई पक्का जान पइतइ, कि ऊ कोय मामले में कायल (convinced) हइ कि नयँ ? ... आउ अकसर केतना तुरी हमन्हीं भावना के धोखा, चाहे तर्क के गलती के, दृढ़ विश्वास (conviction) समझ लेते जा हिअइ ! ...
हमरा सब कुछ में शंका करना पसीन हइ - मस्तिष्क के ई प्रवृत्ति के कारण चरित्र के दृढ़संकल्पना में कोय बाधा नयँ आवऽ हइ - एकर विपरीत, जाहाँ तक हमरा से संबंध हइ, त हम हमेशे आउ अधिक साहस के साथ आगू बढ़ऽ हिअइ, जब हमरा मालूम नयँ रहऽ हइ, कि आगू हमरा साथ की होवे वला हइ । वस्तुतः मौत से बत्तर तो कुछ नयँ होवऽ हइ - आउ मौत से कोय बच नयँ सकऽ हइ !

किला में लौटला पर, हम माक्सीम माक्सीमिच के ऊ सब कुछ बतइलिअइ, जे हमरा साथ घटले हल आउ जेकर हम साक्षी हलिअइ, आउ पूर्वनिर्धारण के बारे उनकर विचार जाने लगी चहलिअइ । शुरू-शुरू में उनका ई शब्द समझ में नयँ अइलइ, लेकिन हम उनका, जेतना हो सकलइ, ओतना समझइलिअइ, आउ तब ऊ बतइलथिन, सार्थक रूप से सिर हिलइते –
"जी हाँ ! वास्तव में जी ! ई एगो पेचीदा मामला हइ ! ... लेकिन, ई एशियाई पिस्तौल के घोड़ा से अकसर मिसफायर होवऽ हइ, अगर ठीक से तेल डालल नयँ रहऽ हइ, चाहे अँगुरी के दबाव काफी नयँ होवऽ हइ । हम स्वीकार करऽ हिअइ, कि हमरा चेर्केस राइफल भी पसीन नयँ; ई हमन्हीं जइसन लोग खातिर कइसूँ अनुचित होवऽ हइ । एकर कुंदा (butt) एतना छोटगर होवऽ हइ, कि तोरा सावधान रहे पड़तो, कि कहीं नाक नयँ जर जाय ... लेकिन ओकन्हीं के तलवार - बस ओकरा तो हम आदर करऽ हिअइ !"
कुछ पल सोचला के बाद ऊ आगू बोललथिन -
"हाँ, हमरा ऊ बेचारा पर तरस आवऽ हइ ... शैताने ओकर दिमाग खराब कर देलके होत कि रात में ऊ पियक्कड़ से बातचीत कइलकइ ! ... लेकिन तइयो, स्पष्ट हइ, कि ओकर जन्म के समइए में प्रारब्ध में अइसन लिक्खल हलइ..."
एकरा से आउ कुछ जादे हम उनका से प्राप्त नयँ कर पइलिअइ - उनका साधारणतः पराभौतिक (metaphysical) वाद-विवाद पसीन नयँ ।

--- समाप्त ---
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Saturday, October 29, 2016

रूसी उपन्यास "आझकल के हीरो" ; भाग-2 ; 3. भाग्यवादी - अध्याय-1



रूसी उपन्यास – “आझकल के हीरो”
भाग-2
3. भाग्यवादी - अध्याय-1

हमरा एक तुरी कइसूँ दू सप्ताह एगो कज़ाक गाँव के बामा बगल में रहे के अवसर मिललइ । हिएँ परी पैदल सेना के एगो बटालियन के मुकाम हलइ । अफसर लोग बारी-बारी एक दोसरा के हियाँ एकत्र होते जा हलथिन, आउ शाम के ताश खेलते जा हलथिन । एक तुरी, बोस्टन (ताश के एगो खेल) से ऊबके आउ ताश के गड्डी टेबुल के निच्चे फेंकके, हमन्हीं मेजर एस॰ के हियाँ बहुत देर तक बैठल रहलिअइ । बातचीत,  हमेशे के अपेक्षा, रोचक हलइ । चर्चा के विषय हलइ, कि मुसलमान लोग के ई विश्वास, कि मनुष्य के भाग्य स्वर्ग में लिक्खल जा हइ, हमन्हीं क्रिश्चियन में भी  कइएक श्रद्धालु के बीच पावल जा हइ । हरेक कोय, ई विश्वास के पक्ष आउ विपक्ष में, तरह-तरह के असाधारण घटना के वर्णन कइलकइ ।
"ई सब कुछ, भद्रजन (gentlemen), कुछ नयँ साबित करऽ हइ", वृद्ध मेजर कहलथिन, "वस्तुतः अपने सब में से कोय भी ऊ सब विचित्र घटना के साक्षी नयँ हलथिन, जेकर आधार पर अपन विचार के समर्थन करते जा हथिन..."
"वास्तव में, कोय नयँ", कइएक लोग कहते गेलथिन, "लेकिन हमन्हीं विश्वसनीय लोग से सुनलिए ह ..."
"ई सब कुछ बकवास हइ !" कोय तो कहलकइ, "काहाँ परी ई विश्वसनीय लोग हइ, जे ऊ सूची (लिस्ट) देखलके ह, जेकरा में हमन्हीं के मौत के घड़ी निश्चित कइल हइ ? ... आउ अगर ठीक-ठीक पूर्वनिर्धारण (predestination) हइ, त काहे लगी हमन्हीं के इच्छाशक्ति आउ विवेक देल गेले ह ? काहे लगी हमन्हीं के अपन-अपन कृत्य के उत्तरदायी होवे के चाही ?"

ओहे बखत एक अफसर, जे कमरा के एगो कोना में बैठल हलइ, उठलइ आउ धीरे-धीरे टेबुल भिर आके, सबके तरफ शांत नजर डललकइ । ऊ जन्म से एगो सर्बियन हलइ, जइसन कि ओकर नाम से स्पष्ट हलइ ।

लेफ्टेनेंट वुलिच के बाह्याकृति ओकर स्वभाव के पूरा-पूरा दर्शावऽ हलइ । उँचगर कद आउ चेहरा के सामर रंग, कार केश, कार सूक्ष्मदर्शी आँख, बड़गर लेकिन सीधगर नाक, जे ओकर राष्ट्रीयता के वैशिष्ट्य हलइ, उदासीन आउ भावशून्य मुसकान, जे ओकर ठोर पर हमेशे पसरल रहऽ हलइ - ई सब कुछ मानूँ ओकरा एगो विशिष्ट प्रकार के व्यक्ति बना देलके हल, जेकरा चलते ऊ अपन विचार आउ भावना के, भाग्य द्वारा देल अपन साथी सब से, साझा नयँ कर सकऽ हलइ ।

ऊ बहादुर हलइ, कम बोलऽ हलइ, लेकिन तीक्ष्णतापूर्वक; अपन मन के आउ परिवार के रहस्य के बारे केकरो पर विश्वास नयँ करऽ हलइ; शराब लगभग बिलकुल नयँ पीयऽ हलइ, कज़ाक लड़कियन पर कभी लाइन नयँ मारऽ हलइ, जेकर सौंदर्य के ओइसन लोग के कल्पनो करना मोसकिल हइ, जे ओकन्हीं के कभी नयँ देखलके ह । तइयो कहल जा हलइ, कि कर्नल के घरवली ओकर अभिव्यंजक (expressive) आँख के प्रति विरक्त नयँ हलइ; लेकिन ऊ गंभीरतापूर्वक क्रोधित हो जा हलइ, जब एकरा बारे इशारा कइल जा हलइ ।

ओकरा एक्के व्यसन हलइ, जेकरा ऊ नयँ छिपावऽ हलइ - जूआ के व्यसन । एक तुरी ऊ हरा टेबुल भिर बैठ गेलइ कि ऊ सब कुछ भूल जा हलइ, आउ सामान्यतया हार जा हलइ; लेकिन लगातार विफलता खाली ओकर हठ के जागृत करऽ हलइ । कहते जा हलइ, कि एक तुरी, अभियान के दौरान, रात में, ऊ बैंक [1] अपन तकिया पर रखलके हल, आउ ओकरा भाग्य भयंकर रूप से साथ देलकइ । अचानक गोलीबारी के अवाज सुनाय देलकइ, अलार्म बजावल गेलइ, सब कोय उछल पड़लइ आउ हथियार दने दौड़ पड़ते गेलइ । "अपन पूरा बैंक दाँव पर लगावऽ !" बिन उठले, वुलिच अत्यंत जोशीला जुआड़ी में से एगो तरफ चिल्लइलइ । "सत्ता पर लगावऽ", दौड़ते-दौड़ते युद्ध पर जइतहीं ऊ जवाब देलकइ । सर्वसामान्य भगदड़ के बावजूद, वुलिच ताश के पत्ता अकेलहीं चलते रहलइ, आउ सत्ता अइलइ ।

जब ऊ सीमा पर अइलइ, त हुआँ परी जोरदार गोलीबारी हो रहले हल । वुलिच चेचेन लोग के न तो गोली के फिकिर कइलकइ, न तो तलवार के - ऊ अपन भाग्यशाली जुआड़ी के खोजब करऽ हलइ । "सत्ता तोर पक्ष में अइलो !" ऊ चिल्लइलइ, आखिरकार ओकरा सीमा पर गोलीबारी करे वला लोग के बीच देखके, जे दुश्मन के जंगल से बाहर खदेड़े लगी शुरू कर देलके हल, आउ नगीच जाके, अपन सिक्का के बटुआ आउ कागजी नोट के बटुआ निकसलकइ आउ ऊ भाग्यशाली के सौंप देलकइ, ओकर एतराज के बावजूद कि ई भुगतान के उचित जगह नयँ हइ । ई अप्रिय कर्तव्य के पूरा करके, ऊ फुरती से आगू गेलइ, सैनिक लोग के साथ लेलकइ आउ अंतिम बखत तक चेचेन के साथ अत्यंत शांतिपूर्वक गोलीबारी करते रहलइ । जब लेफ्टेनेंट वुलिच टेबुल भिर अइलइ, त सब कोय चुप हो गेलइ, ओकरा तरफ से कइसनो मौलिक हरक्कत के प्रत्याशा करते ।

"भद्रजन !" ऊ कहलकइ (ओकर स्वर शांत हलइ, हलाँकि तान (टोन) सामान्य से निच्चे हलइ), "भद्रजन ! खोखला वाद-विवाद काहे लगी ? अपने सब के सबूत चाही - हम अपने सब के खुद पर अजमावे के प्रस्ताव रक्खऽ हिअइ, कि की अदमी अपन इच्छा से अपन जिनगी के खतम कर सकऽ हइ, कि हमन्हीं में से हरेक लगी पहिलहीं से निर्णायक क्षण निश्चित कइल हइ ... किनका चाही ?"
"हमरा नयँ, हमरा नयँ !" सगरो तरफ से अवाज अइलइ, "कइसन विचित्र व्यक्ति हइ ! कइसन विचार दिमाग में घुस्सऽ हइ ! ..."
"हम बाजी लगावऽ हिअइ !" हम मजाक में बोललिअइ ।
"कइसन ?"
"हम दृढ़तापूर्वक कहऽ हिअइ, कि पूर्वनिर्धारण जइसन कुछ नयँ होवऽ हइ", हम कहलिअइ, सोना के बीस सिक्का टेबुल पर बिखेरते - ऊ सब, जे हमर जेभी में हलइ ।
"हमरा स्वीकार हइ", वुलिच तानरहित स्वरूप में उत्तर देलकइ ।
"मेजर, अपने जज होथिन; अइकी सोना के पनरह सिक्का हइ, बाकी पाँच अपने हमरा देथिन, आउ एकरा में ऊ जोड़के अनुग्रह करथिन ।"
"ठीक हइ", मेजर कहलथिन, "खाली हमरा ई समझ में नयँ आवऽ हइ, वास्तव में बात की हइ आउ कइसे अपने सब विवाद के निर्णय करथिन ? ..."

वुलिच चुपचाप मेजर के शयनकक्ष में चल गेलइ; हमन्हीं ओकर पीछू-पीछू गेते गेलिअइ । ऊ देवाल भिर गेलइ, जेकरा पर हथियार टँगल हलइ, आउ कइएक तरह के पिस्तौल में से बिन कोय विशेष के चुनाव कइले अइसीं एगो के खूँटी पर से उतार लेलकइ । हमन्हीं अभियो ओकरा समझ नयँ पइलिअइ । लेकिन जब ऊ एकर घोड़ा चढ़इलकइ आउ बारूद भरलकइ, त कइएक लोग, जाने-अनजाने चीख पड़लइ, आउ ओकर हाथ पकड़ लेते गेलइ ।
"तूँ की करे लगी चाहऽ हो ? सुन्नऽ, ई पागलपन हको !" लोग ओकरा पर चिल्लइलइ ।
"भद्रजन !" ऊ अपन हाथ छोड़इते धीरे-धीरे बोललइ, "केऽ हमरा लगी बीस स्वर्णमुद्रा चुकावे लगी तैयार हकऽ ?"

सब कोय चुप हो गेलइ आउ दूर हट गेलइ । वुलिच बाहर निकसके दोसर कमरा में चल गेलइ आउ टेबुल भिर बैठ गेलइ । सब कोय ओकर पीछू-पीछू गेलइ । ऊ इशारा से अपन चारो तरफ हमन्हीं के बैठे कहलकइ । चुपचाप ओकर बात मान लेते गेलिअइ । ई क्षण ऊ हमन्हीं पर रहस्यमय प्रभाव प्राप्त कर लेलके हल । हम ओकरा एकटक ओकर आँख में आँख डालके देख रहलिए हल, लेकिन ऊ शांत आउ अविचल दृष्टि से हमर खोजी दृष्टि के प्रत्युत्तर देलकइ, आउ ओकर पीयर ठोर मुसका रहले हल । लेकिन ओकर शांत मुद्रा के बावजूद, हमरा लगलइ, हम ओकर पीयर चेहरा पर मौत के छाप भाँप गेलिअइ । हम नोटिस कइलिए हल, आउ कइएक बुजुर्ग योद्धा हमर प्रेक्षण (observations) के पुष्टि कइलका हल, कि अकसर ऊ अदमी के चेहरा पर, जे कुच्छे घंटा में में मरे वला रहऽ हइ, दुर्निवार भाग्य के एगो विचित्र छाप होवऽ हइ, अइसन कि कोय अभ्यस्त आँख ओकरा पछाने में विरले विफल हो सकऽ हइ ।
"अपने आझ मर जइथिन !" हम ओकरा कहलिअइ ।
ऊ तेजी से हमरा दने मुड़लइ, लेकिन जवाब धीरे-धीरे आउ शांति से देलकइ - "शायद, हाँ, शायद, नयँ ..."
फेर, मेजर के संबोधित करते, पुछलकइ - "की पिस्तौल में गोली बोजल हइ ?"
मेजर भ्रांति (confusion) में ठीक से आद नयँ कर पइलका ।
"ओह बहुत हो गेलो, वुलिच", कोय तो चिल्लइलइ, "ई पक्का बोजल हइ, अगर बिछौना के सिरहाना दने लटकल हलइ । मजाक काहे लगी ! ..."
"भद्दा मजाक हइ !" एगो दोसर व्यक्ति बोललइ ।
हम पाँच के विरुद्ध पचास रूबल के दाँव लगावऽ हियो, कि ई पिस्तौल लोड कइल नयँ हइ !" एगो तेसर व्यक्ति चिखलइ ।
नयका बाजी लगावल गेलइ । हम ई लमगर रस्म से ऊब गेलूँ ।
"सुनथिन", हम कहलिअइ, "या तो खुद के शूट कर लेथिन, चाहे पिस्तौल के पहिलौका जगह पर रख देथिन, आउ सुत्ते लगी चलल जाय ।"
"सही बात हइ", कइएक लोग चिल्लइलइ, "सुत्ते लगी चल्लल जाय ।"
"भद्रजन, हम अपने सब से जगह से नयँ हिल्ले के निवेदन करऽ हिअइ !" पिस्तौल के नली अपन निरार पर रखते वुलिच बोललइ ।
सब कोय स्तब्ध रह गेलइ ।
"मिस्टर पिचोरिन", ऊ आगू बोललइ, "एक कार्ड लेथिन आउ उपरे उछलाथिन ।"

हम टेबुल पर से, जइसन कि हमरा अभी आद पड़ऽ हइ, लाल के एक्का उठइलिअइ आउ उपरे दने फेंकलिअइ । सब कोय दम साध लेलकइ; सब आँख, भय आउ एक प्रकार के अनिश्चित उत्सुकता के मुद्रा में, पिस्तौल से निर्णायक एक्का पर फिर रहले हल, जे हावा में लहरइते, धीरे-धीरे निच्चे आब करऽ हलइ । जइसीं ऊ टेबुल के स्पर्श कइलकइ, वुलिच घोड़ा दबा देलकइ ... गोली नयँ चललइ (मिसफायर) !
"भगमान के किरपा !" कइएक लोग चिल्लइलइ, "पिस्तौल लोड कइल नयँ हलइ ..."
"तइयो देख तो लेल जाय", वुलिच कहलकइ ।
ऊ फेर से घोड़ा चढ़इलकइ, आउ खिड़की पर के टँगल एगो टोपी पर निशाना लगइलकइ; गोली चल्ले के अवाज सुनाय देलकइ - धुआँ कमरा में भर गेलइ । जब ई छँट गेलइ, टोपी निच्चे कइल गेलइ - एकर ठीक बीचो-बीच से होके गोली गुजरले हल आउ देवाल में बहुत अंदर तक घुस गेले हल ।

तीन मिनट तक कोय एक्को शब्द नयँ बोललइ । वुलिच अत्यंत शांत मुद्रा में हमर स्वर्णमुद्रा के अपन बटुआ में डललकइ ।
ई बात पर बहस चले लगलइ, कि पहिले तुरी पिस्तौल से गोली काहे नयँ चललइ । कुछ लोग दावा कइलकइ, कि पिस्तौल के पेट (चैंबर) गंदगी से अवरुद्ध हो गेले होत; दोसर लोग कानाफूसी करते गेलइ, कि पहिले बारूद गीला हलइ आउ बाद में वुलिच ताजा बारूद भरलकइ; लेकिन हम ई बात पर दृढ़ हलिअइ, कि दोसरका अनुमान गलत हलइ, काहेकि हम पूरे समय तक अपन नजर पिस्तौल से नयँ हटइलिए हल ।
"जूआ के मामले में अपने भाग्यशाली हथिन", हम वुलिच के कहलिअइ ...
"अपन जन्म से पहिले तुरी", ऊ आत्मसंतुष्टि के साथ मुसकइते उत्तर देलकइ, "ई बैंक आउ श्तोस [1] से बेहतर हइ।"
"लेकिन ई जरी जादे खतरनाक हइ ।"
"एकरा से की ? की अपने पूर्वनिर्धारण पर विश्वास करे लगलथिन ?"
"विश्वास हइ; खाली हमरा अभी ई समझ में नयँ आवऽ हइ, कि हमरा काहे अइसन लगलइ, कि जइसे अपने आझ पक्का मरे वला हथिन ..."
एहे व्यक्ति, जे कुच्छे देर पहिले अपन निरार पर अत्यंत शांत मुद्रा में निशाना लगइलके हल, अब अचानक लाल हो गेलइ आउ घबराल देखाय देलकइ ।
"खैर, अब काफी हो गेलइ !" उठते ऊ कहलकइ, "हमन्हीं के बाजी खतम हो गेलइ, आउ अब अपने के टिप्पणी, हमरा लगऽ हइ, अनुचित हइ ..."
ऊ अपन टोपी उठइलकइ आउ चल गेलइ । ई हमरा विचित्र लगलइ - आउ अकारण नयँ ! ...

जल्दीए सब लोग अपन-अपन घर चल गेते गेलइ, भिन्न-भिन्न तरह से वुलिच के सनक के बारे बतिअइते, आउ शायद, एक स्वर में हमरा अहंकारी कहते, काहेकि हम ऊ अदमी के विरुद्ध बाजी लगइलिए हल, जे खुद पर गोली चलावे लगी चाहऽ हलइ, मानूँ ओकरा, हमरा बेगर अनुकूल अवसर नयँ मिलते हल ! ...


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