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Monday, October 03, 2016

रूसी उपन्यास "आझकल के हीरो" ; भाग-2 ; 2. राजकुमारी मेरी - अध्याय-9



रूसी उपन्यास – “आझकल के हीरो”
भाग-2
2. राजकुमारी मेरी - अध्याय-9

4 जून

आझ हम वेरा के देखलिअइ । ऊ तो अपन डाह से मानूँ हमर जान ले लेलकइ । लगऽ हइ, छोटकी राजकुमारी के दिमाग में अइलइ कि अपन हृदय के गुप्त बात बतावे के मामले में ऊ विश्वसनीय हइ - स्वीकार कइल जाय के चाही, कि ई सफल चयन हइ !
"हमरा अंदाज हकइ, कि ई सब प्रकरण की मोड़ ले सकऽ हइ", वेरा हमरा से बोललइ, "बेहतर एहे हइ, कि तूँ अभी सीधे हमरा बतावऽ, कि तूँ उनका से प्रेम करऽ हो ।"
"लेकिन अगर हम उनका से प्रेम नयँ करऽ हिअइ तो ?"
"तब उनका पीछा करे, परेशान करे आउ उनकर कल्पना के उत्तेजित करे के जरूरते की हइ ? ... ओह, हम तोरा निम्मन से जानऽ हियो ! सुन्नऽ, अगर तूँ चाहऽ ह, कि हम तोरा पर विश्वास करियो, त एक सप्ताह के बाद किस्लोवोद्स्क [1] आवऽ; परसुन हमन्हीं हुआँ जा रहलियो ह । बड़की राजकुमारी हियाँ परी आउ जादे दिन ठहरथुन ।
कहीं पासे में किराया के मकान ले लिहऽ । हमन्हीं झरना के नगीच एगो बड़गर घर में बिचला तल्ला (mezzanine floor) पर रहबो, निच्चे राजकुमारी लिगोव्स्काया; आउ पासे में ओहे मालिक के घर हइ, जे अभी खाली हइ ... अइबऽ न ? ..."
हम वचन देलिअइ, आउ ओहे दिन ई मकान के किराया पर लेवे लगी अदमी भेज देलिअइ ।
ग्रुशनित्स्की हमरा हीं छो बजे शाम में अइलइ आउ सूचित कइलकइ, कि बिहान ओकर वरदी तैयार हो जइतइ, ठीक बॉल नृत्य के पहिले ।
"आखिर हम उनका साथ समुच्चे शाम नृत्य करबइ ... आउ हम जी भरके बात करबइ !" ऊ आगू बोललइ ।
"बॉल नृत्य कब हइ ?"
"बिहान ! की वास्तव में नयँ जानऽ हो ? बड़गो उत्सव हइ, आउ हियाँ के प्राधिकारी एकर प्रबंध के जिम्मेवारी लेलथिन हँ ..."
"बुलवार चल्लल जाय ..."
"कइसनो हालत में नयँ, अइसन खराब ओवरकोट में ..."
"की, ई तोरा अब नयँ निम्मन लगऽ हको ? ..."
हम एकल्ले बाहर गेलिअइ, आउ राजकुमारी मेरी से भेंट होला पर, उनका माज़ुर्का नृत्य लगी आमंत्रित कइलिअइ। ऊ अचंभित आउ खुश लगलथिन ।
"हमरा तो लगऽ हलइ, कि अपने खाली आवश्यकतानुसार नृत्य करऽ हथिन, जइसन कि पिछले तुरी कइलथिन हल", बहुत मधुर मुसकान के साथ ऊ कहलथिन ...
लगऽ हइ, ग्रुशनित्स्की के अनुपस्थिति पर उनकर ध्यान नयँ गेलइ ।
"अपने के बिहान सुखद अचंभा होतइ", हम उनका कहलिअइ ।
"कउन बात से ? …"
"ई रहस्य हइ ... बॉल नृत्य के दौरान अपने के खुद पता चल जइतइ ।"

हम अपन शाम बड़की राजकुमारी के हियाँ गुजरलिअइ; कोय अतिथि नयँ हलइ, सिवाय वेरा आउ एगो अत्यंत विनोदी वृद्ध के । हम जोश में हलिअइ, बिन कोय तैयारी कइले रंग-बिरंग के असाधारण कहानी सुनइलिअइ । छोटकी राजकुमारी हमर सामने बैठल हलथिन आउ हमर बकवास के एतना गंभीर, विवशताजन्य, आउ कोमल भी, ध्यान से सुन रहलथिन हल, कि हमरा शरम लगलइ । उनकर सजीवता, उनकर नखरेबाजी, उनकर सनक, उनकर धृष्ट मुखमुद्रा, घृणापूर्ण मुसकान, अन्यमनस्क निगाह - ई सब काहाँ चल गेलइ ? ...

वेरा के ध्यान ई सब कुछ पर गेलइ । ओकर बेमरियाहा चेहरा पर गंभीर उदासी छाल हलइ । ऊ खिड़की भिर छाया में बैठल हलइ, एगो चौड़गर अरामकुरसी पर डुब्बल ... हमरा ओकरा पर तरस आ गेलइ ... तब ओकरा साथ परिचय आउ हमन्हीं के प्रेम के पूरा नाटकीय कहानी सुनइलइ, जाहिर हइ, कल्पित नाम के माध्यम से ई सब कुछ के गुप्त रखके ।
हम सजीवता से अपन कोमलता, अपन चिंता, हर्षावेश के चित्रित कइलिअइ; हम एतना अनुकूल प्रकाश में ओक्कर व्यवहार, चरित्र के प्रस्तुत कइलिअइ, कि ओकरा जाने-अनजाने हमर छोटकी राजकुमारी के साथ प्रेम प्रदर्शन के माफ करे पड़लइ ।
ऊ उठ गेलइ, आके हमन्हीं भिर बैठ गेलइ, सजीव हो उठलइ ... आउ हमन्हीं के दू बजे रात में जाके कहीं आद पड़लइ, कि डाक्टर साहब हमन्हीं के एगारह बजे सुत जाय लगी औडर देलथिन हल ।


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