विजेट आपके ब्लॉग पर

Monday, October 24, 2016

रूसी उपन्यास "आझकल के हीरो" ; भाग-2 ; 2. राजकुमारी मेरी - अध्याय-21



रूसी उपन्यास – “आझकल के हीरो”
भाग-2
2. राजकुमारी मेरी - अध्याय-21

निच्चे दने के रस्ता से होके उतरते बखत, पत्थल सब के दरार के बीच हमरा ग्रुशनित्स्की के लाश पर नजर गेलइ । हम जाने-अनजाने अपन आँख बन कर लेलिअइ ... अपन घोड़ा के खोलके, हम घर लगी पैदल रवाना हो गेलिअइ। हमर दिल पर एगो पत्थल हलइ । सूरज हमरा आभाहीन प्रतीत हो रहले हल, ओकर किरण हमरा नयँ गरमाऽ रहले हल ।

उपनगर तक पहुँचे के पहिले, हम दहिना दने मुड़के दर्रा से होके जाय लगलिअइ । कउनो अदमी के नजर अइला पर हमरा कष्टकर हो सकऽ हलइ - हम अकेल्ले रहे लगी चाहऽ हलिअइ । लगाम ढीला छोड़के आउ सिर निच्चे छाती पर टेकले, हम दूर तक चल गेलिअइ । आखिरकार हम खुद के अइसन जगह पइलिअइ, जे हमरा लगी बिलकुल अनजान हलइ । हम घोड़वा के पीछू मोड़लिअइ आउ रस्ता खोजे लगलिअइ । सूर्यास्त हो चुकले हल, जब हम किस्लोवोद्स्क पहुँचलिअइ, थक्कल-माँदल, थक्कल-माँदल घोड़ा पर ।
हमर नौकर हमरा बतइलकइ, कि वेर्नर अइलथिन हल, आउ हमरा लगी दूगो पत्र सौंप गेलथिन हल - एगो उनका हीं से, आउ दोसरा ... वेरा के तरफ से ।
हम पहिलौका खोललिअइ, जेकरा में निम्नलिखित संदेश हलइ –
"सब कुछ के यथासंभव निम्मन ढंग से प्रबंध कइल गेलइ । लाश के विकृत दशा में लावल गेलइ, गोली छाती से निकास लेवल गेलइ । सब कोय आश्वस्त हइ, कि ओकर मौत के कारण दुर्घटना हइ, खाली कमांडर, जेकरा शायद अपने के झगड़ा के बारे मालूम हइ, सिर हिलइलकइ, लेकिन कुछ नयँ बोललइ । अपने के विरुद्ध कोय सबूत नयँ हइ, आउ अपने चैन के नीन सुत सकऽ हथिन ... अगर संभव होवइ तो ... अलविदा ..."

देर तक हम दोसरौका पत्र खोले के निर्णय नयँ कर पइलिअइ ... कउची ऊ हमरा लिख सकले होत ? ... एगो भारी आशंका हमर आत्मा के चिंतित कइले हलइ । अइकी ई हइ पत्र, जेकर हरेक शब्द हमर स्मृति में अमिट छाप नियन अंकित हो गेलइ –
"हम ई पूरा विश्वास के साथ तोरा लिख रहलियो ह, कि हमन्हीं के आउ आगू भेंट नयँ हो सकतइ । कुछ साल पहिले, तोरा से विदा होते, हम बिलकुल एहे सोचऽ हलियो; लेकिन भगमान के हमरा दोसरा तुरी परीक्षा लेवे के इच्छा हलइ । हम ई परीक्षा के सहन नयँ कर पइलिअइ । हमर कमजोर दिल फेर से एगो परिचित अवाज के समर्पित कर देलकइ ... तूँ हमरा एकरा लगी नफरत नयँ करबहो, सच हइ न ? ई पत्र विदाई आउ पाप स्वीकारोक्ति (confession) दुन्नु साथे होतइ । हम तोरा ऊ सब कुछ बता देवे लगी कर्तव्यबद्ध हकियो, जे ऊ बखत से अभी तक हमर दिल में जामा हो चुकलो ह, जबसे ई तोरा प्यार करऽ हको ।  हम तोरा पर दोषारोपण नयँ करबो - तूँ हमरा साथ ओइसीं व्यवहार कइलऽ, जइसे कोय भी दोसरा मरद करते हल । तूँ हमरा अप्पन समझके प्यार कइलऽ, आनंद, चिंता आउ दुख के स्रोत के रूप में, जे एक दोसरा से अदल-बदल कइल जा सकऽ हलइ, जेकरा बिना जिनगी उबाऊ आउ एकसुरा (monotonous) हो जइतइ । हम ई शुरुए में समझ गेलिए हल ... लेकिन तूँ दुखी हलऽ, आउ हम खुद के बलिदान कर देलियो, ई आशा करते, कि कभी तो तूँ हमर बलिदान के महत्त्व समझबऽ, कि कभी तो तूँ हमर गंभीर कोमलता के समझबऽ, जे कइसनो शर्त पर नयँ निर्भर करऽ हइ । तब से बहुत समय गुजर चुकलो ह - हम तोर आत्मा के सब रहस्य में प्रवेश कइलियो ... आउ हमरा दृढ़ विश्वास हो गेल, कि ऊ व्यर्थ के आशा हलइ । ई हमरा लगी केतना कटु हलइ ! लेकिन हमर प्यार हमर आत्मा से विकसित होले हल । ई धुँधला हो गेलइ, लेकिन बुतलइ नयँ ।

हमन्हीं हमेशे लगी अलग होब करऽ हिअइ; तइयो तूँ आश्वस्त हो सकऽ ह, कि हम कभी कोय दोसरा के प्यार नयँ कर सकम । हमर आत्मा अपन सब खजाना, अपन अश्रु, आउ आशा तोरा पर खरच कर चुकलो ह । तोरा से एक तुरी प्यार करे वली दोसर मरद तरफ बिन कोय नफरत के नयँ देख सकऽ हइ, ई कारण से नयँ, कि तूँ ओकन्हीं से बेहतर हकहो, ओह, नयँ ! लेकिन तोर स्वभाव में कुछ तो खास हइ, जे खाली तोहर खुद के हइ, कुछ तो अभिमानी आउ रहस्यमय । तोहर स्वर में, चाहे तूँ कुच्छो बोलहो, अजेय शक्ति हइ । तोहरा नियन आउ कोय नयँ लगातार प्यार कइल जाय लगी चाहऽ हइ । बुराई केकरो में ओतना आकर्षक नयँ होवऽ हइ, केकरो दृष्टि ओतना परमानंद के आश्वासन नयँ दे हइ, कोय अपन श्रेष्ठता के बेहतर उपयोग नयँ कर सकऽ हइ, आउ कोय वास्तव में ओतना दुखी नयँ हो सकऽ हइ, जेतना तूँ, काहेकि प्रतिकूल परिस्थिति में कोय खुद के आश्वस्त करे के ओतना प्रयास नयँ करऽ हइ ।

अब हमरा अपन शीघ्र प्रस्थान के कारण तोरा समझावे के चाही । ई तोरा लगी कम महत्त्वपूर्ण लगतो, काहेकि ई बात के खाली हमरे से संबंध हइ ।

आझ हमर पति हमर कमरा में अइला आउ हमरा ग्रुशनित्स्की के साथ तोहर झगड़ा के बात बतइलका । स्पष्टतः हमर चेहरा के रंगत बहुत बदल गेलइ, काहेकि ऊ देर तक आउ एकटक हमर आँख में आँख मिलाके देखते रहला । हम लगभग मूर्छित होके गिरहीं वली हलिअइ, ई विचार पर, कि तोरा आझ लड़े के हको आउ एकर कारण हम हकिअइ । हमरा लगलइ, कि हम पगलाऽ जाम ... लेकिन अभी, जब हम सोच-विचार कर सकऽ हिअइ, त हम आश्वस्त हिअइ, कि तूँ जीवित रहबऽ; ई असंभव हइ, कि तूँ हमरा बेगर मरभो, असंभव ! हमर पति देर तक कमरा में चहलकदमी करते रहला । हमरा नयँ मालूम, कि ऊ हमरा से कुछ बोलला; हमरा आद नयँ, कि हम उनका की उत्तर देलिअइ ... शायद, हम उनका कहलिअइ, कि हम तोरा प्यार करऽ हियो... खाली एहे आद हइ, कि हमन्हीं के बातचीत के अंत में ऊ हमरा भयंकर शब्द से अपमानित कइलका आउ बहरसी निकस गेला । हम सुनलिअइ, कि ऊ (कोचवान के) करेता (घोड़ागाड़ी) के तैयार करे लगी औडर देलथिन... अइकी तीन घंटा हो चुकलो ह, खिड़की भिर बइठल-बइठल आउ तोर वापसी के इंतजार कर रहलियो ह ... लेकिन तूँ जिंदा हकऽ, तूँ मर नयँ सकऽ हकऽ ! ... करेता लगभग तैयार हइ ... अलविदा, अलविदा ... हम तो बरबाद हो गेलियो - लेकिन एकरा से की ? ... अगर हम आश्वस्त होतियो हल, कि तूँ हमेशे हमरा आद करबऽ - हम प्यार करे के बात नयँ कहऽ हियो - नयँ, खाली आद करे के ... अलविदा; कोय तो आ रहलो ह ... हमरा ई पत्र नुका लेवे के चाही ...
तूँ राजकुमारी मेरी के प्यार नयँ करऽ हो, सच हइ न ? तूँ ओकरा से शादी नयँ करभो न ? सुनऽ, हमरा लगी तोरा ई बलिदान करहीं पड़तो - हम तोरा लगी ई दुनियाँ में सब कुछ खो देलियो ह ..."

हम पागल नियन सायबान (पोर्च) पर पहुँचलूँ, अपन चेर्केस घोड़ा पर उछलके सवार हो गेलूँ, जेकरा प्रांगण में लावल गेले हल, आउ सरपट, पूरे गति से, पितिगोर्स्क के रस्ता पर रवाना हो गेलूँ । हम थकके चूर होल घोड़वा के क्रूरतापूर्वक दौड़इले जाब करऽ हलिअइ, जे, हिनहिनइते आउ पूरे फेन के साथ, पथरीला रस्ता पर तेजी से लेले जाब करऽ हलइ ।

पछमी पर्वत शिखर पर अराम कर रहल कार बादर में सूरज छिप चुकले हल । दर्रा में अन्हेरा आउ आर्द्रता हलइ । पोदकुमोक नदी पत्थल पर से गुजरते बखत मंद आउ नीरस स्वर में गरज रहले हल । अधीरतापूर्वक हम हँफते सरपट जा रहलूँ हल । पितिगोर्स्क में ओकरा से भेंट नयँ होवे के विचार, हमर दिल पर हथौड़ा नियन प्रहार कर रहल हल ! एक मिनट, आउ एक मिनट लगी ओकरा देखे, अलविदा कहे, ओकरा से हाथ मिलावे लगी ... हम प्रार्थना कर रहलूँ हल, कोस रहलूँ हल, कन रहलूँ हल, हँस रहलूँ हल ... नयँ, कुच्छो हमर चिंता आउ निराशा के अभिव्यक्त नयँ कर सकऽ हइ ! ... हमेशे लगी खो देवे के संभावना के दशा में वेरा हमरा लगी दुनियाँ के सब कुछ से अधिक बहुमूल्य लगे लगलइ - जिनगी, सम्मान, सुख से अधिक बहुमूल्य ! भगमान जाने, कइसन-कइसन विचित्र, कइसन-कइसन पागल विचार हमर मस्तिष्क में आ रहले हल ... आउ ई दौरान हम सरपट जा रहलूँ हल, घोड़वा के क्रूरतापूर्वक दौड़इते । आउ अइकी हम नोटिस करे लगलिअइ, कि हमर घोड़ा जादे कठिनाई से साँस लेब करऽ हलइ; ऊ दू तुरी समतल जगह पर भी लड़खड़ा गेलइ ... कज़ाक लोग के गाँव एस्सेनतुकी पाँच विर्स्ता दूर रह गेले हल, जाहाँ परी हम बदलके दोसर घोड़ा पर सवार हो सकऽ हलिअइ ।

सब कुछ बच जइते हल, अगर हमर घोड़ा के दम दस मिनट भी आउ टिक जइते हल ! लेकिन एगो छोटगर दर्रा से खुद के उपरे उठइते बखत, अचानक पर्वत से बाहर निकसते, एगो तीक्ष्ण मोड़ पर, जमीन पर गिर पड़लइ । हम झट से कूद गेलिअइ । ओकरा उठावे लगी चाहऽ हिअइ, लगाम से झटकके घिंच्चऽ हिअइ - लेकिन व्यर्थ । ओकर जकड़ल दाँत के बीच से होके मोसकिल से सुनाय पड़े लायक आह निकस पड़लइ । कुछ मिनट के बाद ऊ मर गेलइ। आखिरी आशा खोके, हम स्तेप में अकेल्ले रह गेलूँ । हम पैदल आगू बढ़े लगी कोशिश कइलूँ - हमर गोड़ जवाब दे देलक । दिन के चिंता आउ अनिद्रा से चूर होल, हम भिंगल घास पर गिर पड़लूँ आउ एगो बुतरू नियन कन्ने लगलूँ।
आउ देर तक हम बिन हिलले-डुलले पड़ल रहलिअइ आउ जोर-जोर से रो रहलिए हल, अश्रु आउ सिसकन के रोके के बिन कोय प्रयास कइले । हम सोचलिअइ, हमर छाती फट जात; सब हमर कठोरता, सब हमर शांति - धुआँ नियन गायब हो गेल । हमर आत्मा शक्तिहीन हो गेल, तर्कशक्ति शांत हो गेल, आउ अगर ई पल कोय हमरा देखत हल, त ऊ घृणा से अपन मुँह मोड़ लेत हल ।  

जब रात के ओस आउ पर्वतीय हावा हमर गरम सिर के ताजा कइलकइ आउ विचार सामान्य दशा में अइलइ, त हम समझ गेलिअइ, कि बरबाद नष्ट सुख के पीछू पड़ना बेकार आउ अर्थहीन हइ । हमरा अभी आउ की चाही हल? ओकरा देखे लगी ? काहे लगी ? की हमन्हीं दुन्नु के बीच सब कुछ समाप्त नयँ हो गेलइ ? एगो कटु  विदाई के चुंबन हमर स्मृति के समृद्ध नयँ करतइ, आउ ओकर बाद हमन्हीं के अलग होना खाली आउ कठिन होतइ । तइयो हमरा लगी खुशी के बात हइ, कि हम कन सकऽ हिअइ ! लेकिन, शायद, एकर कारण हइ - अस्तव्यस्त स्नायु (shattered nerves), अनिद्रा में गुजारल रात, पिस्तौल के नली के सामने के दू मिनट आउ खाली पेट ।

सब कुछ बेहतर लगी हइ ! ई नयका कष्ट, मिलिट्री शैली में कहल जाय तो, हमरा में भाग्यशाली मोड़ लइलकइ । रोना स्वास्थ्यवर्द्धक हइ; आउ बाद में, शायद, अगर हम घोड़ा पर सवार होके रवाना नयँ होतिए हल, आउ वापसी यात्रा में पनरह विर्स्ता पैदल चल्ले लगी लचार नयँ होतिए हल, त एहो रात के नीन हमर आँख के बन नयँ कर पइते हल ।
हम किस्लोवोद्स्क पाँच बजे सुबह वापिस अइलिअइ, बिछौना पर पड़ गेलिअइ आउ वाटरलू के बाद नैपोलियन के नीन में सुत गेलिअइ ।
जब हम जगलिअइ, त प्रांगण में अन्हेरा हो चुकले हल । हम खुल्लल खिड़की भिर बैठ गेलिअइ, अर्ख़ालुक (चेर्केस ओवरकोट) के बोताम खोललिअइ - आउ पहाड़ी हावा हमर छाती के ताजा कर देलकइ, जे अभियो तक थकान के भारी नीन से भी राहत नयँ पइलके हल । दूर में नदी के पीछू, ओकरा पर छाया प्रदान कर रहल घना लिंडेन (लेमू) के शिखर से होके, किला आउ उपनगर के बिल्डिंग (इमारत) में रोशनी लुकलुका रहले हल । हमन्हीं के प्रांगण में सब कुछ शांत हलइ, (बड़की) राजकुमारी के घर में अन्हेरा हलइ ।

डाक्टर अइलथिन । उनकर त्योरी चढ़ल हलइ; आउ सामान्य अभ्यास के विपरीत, हमरा तरफ अपन हाथ नयँ बढ़इलथिन ।
"अपने काहाँ से आ रहलथिन हँ, डाक्टर ?"
"राजकुमारी लिगोव्स्काया के हियाँ से । उनकर बेटी बेमार हथिन - स्नायु दुर्बलता (nervous breakdown) ... लेकिन मामला ई नयँ हइ, बल्कि अइकी ई हइ - प्राधिकारी लोग के आशंका हइ, आउ हलाँकि कुच्छो सकारात्मक रूप से प्रमाणित नयँ कइल जा सकऽ हइ, तइयो हम अपने के आउ अधिक सवधान रहे के परामर्श दे हिअइ । राजकुमारी हमरा आझ बतइलथिन, कि उनका मालूम हइ, कि अपने उनकर बेटी लगी द्वंद्वयुद्ध कइलथिन । उनका ई सब कुछ ऊ बुढ़उ बता देलकइ ... ओकर की नाम हइ ? ऊ रेस्तोराँ में ग्रुशनित्स्की के साथ अपने के झगड़ा के साक्षी हलइ । हम अपने के सचेत करे लगी अइलिअइ । अलविदा । शायद, हमन्हीं के आउ आगू एक दोसरा से भेंट नयँ हो पइतइ, अपने के कहीं तो तबादला (बदली) कर देल जइतइ । ऊ दहलीज पर रुकलथिन । उनका हमरा साथ हाथ मिलावे के मन कर रहले हल ... आउ अगर हम एकरा लगी लेशो मात्र इच्छा जाहिर करतिए हल, त ऊ झट से हमर गरदन से लिपट जइथिन हल; लेकिन हम भावशून्य मुद्रा में रह गेलिअइ, पत्थल नियन - आउ ऊ निकस गेलथिन ।

त अइकी लोग अइसन होवऽ हइ ! ओकन्हीं सब्भे अइसने होवऽ हइ - कोय कृत्य के बुरा पक्ष के बारे पहिलहीं जानऽ हइ, मदत करऽ हइ, सलाह दे हइ, एकर अनुमोदन भी करऽ हइ, ई देखते कि आउ कोय उपाय नयँ हइ - आउ बाद में एकरा से अपन हाथ धो (पीछू कर) ले हइ आउ गोस्सा से ओकरा तरफ से मुँह मोड़ ले हइ, जे सब जिमेवारी के भार खुद पर लेवे के साहस कइलकइ । सब्भे ओइसने हइ, सबसे उदार लोग भी, सबसे बुद्धिमान लोग भी ! ...


अनूदित साहित्य             सूची            पिछला                     अगला

No comments: