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Thursday, March 05, 2009

1. भिक्षु जगदीश काश्यप

भिक्षु जगदीश काश्यप (1909 - 28 जनवरी 1976)

लेखक - श्री तारकेश्वर भारती (30 सितम्बर 1925 - 1996 (?))

नवनालन्दा महाविहार के उद्घाटन राष्ट्रपति कइलन हल । ऊ बखत हम गया में काम करऽ हली । अखबार में विवरण पढ़ली तो भारी खुशी होल । बस, बस पकड़ के राजगीर होते हुए पहुँच गेली नवनालन्दा महाविहार के परिसर में । उहाँ पहुँचला पर ऊँचा-ऊँचा भवन जैसे विहँस के हमरा पास बुलावे लगल । दाहिना तरफ विशाल जलाशय पछिया हवा से तरंगाइत हो के प्राचीन नालन्दा के अड़ोस-पड़ोस के अनगिनत सरोवर के याद दिलावे लगल । भवन के आँगन के लता-गुल्म आउ बिहँसइत फूल के कियारी मन मोह रहल हल ।

फाटक के भीतर घुसलिअइ तो चमन में चहलकदमी करइत एगो भिक्षु दिखाय पड़लन । गदराल देह, कद साधारण, माथा बेलमुंड, पीला कपड़ा पहिरले । हम जरा ठिठक गेली तब हमरा तरफ मुखातिब हो के पूछलन - "आ जा, किनको से मुलकात करे के हो ?"
"जी, भिक्षु काश्यप जी से ।" हम ऊ व्यक्ति के नीचे से ऊपर तक गौर से देख के महसूस कैलूँ, हो न हो एही भिक्षु जी हथ, बाकी मगही में बोललथिन एही गुने चकरा गेली ।
"तो आबऽ, हरियर घाँसे पर बैठ के बतियावल जाय" - एतना बोल के ऊ अपने पालथी मार के बैठ गेलन आउ हमरा पकड़ के बगल में बैठा लेलन । एतबड़गो अदमी के बराबरी में बैठे के साहस हम नञ बटोर सकली, घसक के आमने-सामने बैठ गेली ।

“अपने कहाँ से आ रहली हे ? अपने के नाम ?” - बोली में मानो मिसरी घोर के बोललन । अभी तलुक हम उनखा परनामो-पाती नञ कर सकलियइ हल । होसे नञ रहलइ । उनखर चरण छू के हम जवाब देलूँ - "आ तो रहली हे ई बखत राजगीर से, लेकिन रहना होवे हे गया में । नाम तारकेश्वर भारती हे ।" हम चरण तो एकाएक छू लेली हल, लगल कि ऊ केकरो से चरण छुआना पसन्द नञ करऽ हथिन ।
"तो कुछ कहल जाय, कन्ने चलली हे ?" - ऊ बोललन ।
"जी, अपने के दर्शन के चाह हमरा यहाँ खींच लइलक हे । दर्शन पा के कृतार्थ हो गेली ।"
उनखर गोल-गोल आँख भीतर के बात परखे में माहिर हलइ । बोललन - "ऊपरी बात छोड़ल जाय । काम के बात कहल जाय ।"
अब हम समझ गेली कि जादे आडम्बरपूर्ण शिष्टाचार उनखा नञ सोहा हे । ई वजह से सम्हल के निवेदन कइली - "नवनालन्दा महाविहार के स्थापना के उद्देश्य, कार्यक्रम, शिक्षण-विषय आउ ओक्कर स्तर के जानकारी चाहऽ ही ।"
उनखर चेहरा पर प्रसन्नता के रेखा उभर आल आउ मीठा-मीठा आउ धीरे-धीरे बोल के ऊ सब बात बता देलन । हम चले के इजाजत माँगली तो फाटक तक आ के बिदा कइलन । नवनालन्दा के पुरोधा, जगत विख्यात बौद्ध विद्वान एतना सरल, एतना अभिमानशून्य ! किमाश्चर्यम् इतः परम् ?

साहित्य-सेवा सायते रोटी जुटावे हे साहित्यकार ला । बाकी ई रोग के रोगी चंगा नञ होवे हे । कुसंगत से ई रोग हमरो लग गेल हल । गया में साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक गतिविधि से जुड़ल रहली । डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री के मौन-मुखर प्रेरणा से मगही में भी लिखे के हबस होल । 'नैना काजर' कहानी १९५६ में 'मगही' पत्रिका में छपल, जेकर सम्पादन-निर्देशक काश्यप जी तथा सम्पादक डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री आउ ठाकुर रामबालक सिंह हलन । मगहिया लोग ऊ कहानी के जरूरत से जादे सराहलन । हमरा छटपटी समाल कि नालन्दा के इर्द-गिर्द कउनो स्कूल में आ जैती हल तो मगही में जम के कुछ काम करतूँ हल । मनोरथ पूरो हो गेल । उच्च विद्यालय दहपर-सरगाँव (पटना - अब नालन्दा) में प्रधानाध्यापक हो के चल अइली । मगही में कामे करे के, आउ काश्यप जी से सरोकार बढ़ावे के, मौका मिल गेल ।

काश्यप जी सच्चा मानी में मगध के नया सांस्कृतिक जागरण के पुरोधा आउ मगही के महान उन्नायक हलन । आजादी के ठीक बाद ऊ काशी से नालन्दा अइलन आउ मगध ला एगो नया युग सिरज देलन ।
भिक्षु जगदीश काश्यप - भिक्षु पूर्व काल के जगदीश नारायण - के जनम राजगीर के पास रौनिया गाँव में १९०९ ई॰ के कातिक मास में एक कायस्थ परिवार में होल हल । सुप्रसिद्ध वैदिक रिसर्च-स्कॉलर पं॰ अयोध्या प्रसाद इनखर मामा लगऽ हलन । नालन्दा कॉलेज में एक बार वैदिक गणित पर पंडित जी के अद्भुत विद्वत्तापूर्ण भाषण होल हल जबकि गणित के भारी-भारी सवाल ऊ लिखते-लिखते हल कर देलन हल । सभा के अध्यक्ष काश्यप जी से अपन रिस्ता बता के ऊ एहू कहलन कि गिरहस्ती के जंजाल से बच के निकल भागे में ऊ काश्यप जी के मदद कइलन हल । पंडित जी के प्रभाव से पहिले ई आर्यसमाज दने झुकलन, बाकी फिनु बौद्ध धर्म के तरफ मुड़ गेलन । भिक्षु जी के लिखाई-पढ़ाई राँची, पटना आउ काशी में भेल । काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र आउ संस्कृत में एम॰ए॰ कइलन । १९३२-३३ में गुरुकुल बैद्यनाथधाम के आचार्य पद के सुशोभित कइलन । १९३४ में लंका जा के प्रवज्या ग्रहण कइलन आउ उहाँ के विद्यालंकार कॉलेज में पालि भाषा आउ बौद्ध-साहित्य के गहन अध्ययन कइलन । १९३५-३६ में मलाया, बर्मा, पेनांग आउ सिंगापुर के परिदर्शन कर के चीनी भासा सिखलन आउ बौद्ध धर्म के धुआँधार प्रचार कइलन । स्वदेश लौट के १९३८-४० में उच्च विद्यालय, सारनाथ के प्रधानाध्यापक बनलन । फिनु १९४०-५० में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में पालि के प्राध्यापक रहलन ।

१९५० में नालन्दा के जीर्णोद्धार के अपन मिसन के तहत नालन्दा कॉलेज में पालि विभाग के शुभारम्भ कर के १९५०-५१ में विभागाध्यक्ष रहलन । डॉ॰ चन्द्रिका सिंह 'उपासक' के काशी से साथ लइलन हल । नवनालन्दा महाविहार के स्थापना ला एँड़ी-चोटी के पसीना एक कइलन । आखिरकार बिहार सरकार के शिक्षा-मंत्री आचार्य बदरीनाथ वर्मा आउ शिक्षा-सचिव जगदीशचन्द्र माथुर के सहयोग से भिक्षु जी के सपना साकार होल । राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद दिनांक २० नवम्बर १९५१ के दिन नवनालन्दा महाविहार के शिलान्यास कइलन । तब से, बीच के कुछ बरिस के छोड़ के जबकि ऊ वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय के पालि-विभागाध्यक्ष हो के चल गेलन हल, काश्यप जी नवनालन्दा महाविहार (नालन्दा पालि-प्रतिष्ठान) के निदेशक के रूप में, देश-विदेश में प्रसिद्ध शिक्षा-केन्द्र के रूप में ओकर विकास करे के काम में दिन-रात जुटल रहलन ।

बौद्ध-जगत में इनकर गिनती राहुल सांकृत्यायन आउ भदंत आनंद कौशल्यायन जउरे भारी विद्वान के रूप में हल । तीनो मिल के 'खुद्दक निकाय' के सम्पादन भी कइलन हल । त्रिपिटक के गहन अध्ययन के कारण १९४० में भिक्षु जी के लंका में त्रिपिटकाचार्य के उपाधि से सम्मानित कैल गेल हल । त्रिपिटक के नागरी में छपावे के भारत सरकार के योजना के ई सरकार के आग्रह पर संपादक के रूप में पूरा कइलन । १९५२ में टोकियो में दोसर विश्व-बौद्ध-महासम्मेलन में भाग लेलन आउ बौद्ध-साहित्य के अथाह पांडित्य के परिचय देलन ।

टोकियो से लौटलन तो १९५० में स्थापित साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संस्था 'मगध संघ' द्वारा २ नवंबर १९५२ के दिन बिहारशरीफ में श्री बिहार हिन्दी पुस्तकालय के परिसर में उनखर सार्वजनिक अभिनन्दन होल । ऊ घड़ी मगध संघ के दोसर अधिवेशन के अध्यक्ष पद से ऊ नागरिक जन से लोकभासा मगही के अपनावे के आहवान कइलन । स्थापना के बादे से ऊ निर्देशक के रूप में मगध संघ के मार्गदर्शन करइत रहलन । अध्यक्ष योगेन्द्र श्रीवास्तव, मंत्री हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, सह-मंत्री रवीन्द्र कुमार, साहित्य मंत्री महेश्वर तिवारी अइसन मगध संघ के कार्यकर्त्ता सब के ऊ प्रेरणा केन्द्र हलन । उनकरे संपादन-निर्देशन में १९५१ में बिहारशरीफ से हिन्दी द्विमासिक 'नालन्दा' के प्रकाशन ई मंडली द्वारा होल हल । ओही वर्ष मगध संघ के प्रस्ताव पर सुरेन्द्र प्रसाद 'तरुण' राजगीर में मगध सांस्कृतिक संघ के स्थापना कइलन । ओहू काश्यपे जी के मार्गदर्शन में काम करऽ हलइ ।

१९५५ में बिहार मगही मंडल, पटना आउ मगध संघ, बिहाशरीफ के मगही मासिक 'मगही' जब पटना से निकलल तो ओकर प्रधान संपादक बने ला तो ऊ तइयार न होलन, बाकी निर्देशक बने ला, खास कर के प्रियदर्शी जी के आग्रह मान के, राजी हो गेलन । प्रथमांक ला एक सौ रुपइया तुरते निकाल के देलन । फिर तो मगही आन्दोलन के ऊ केन्द्र में आ गेलन । ६ जनवरी १९५७ के दिन डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री के भारी उद्योग से एकंगरसराय में जब पहिला मगही महासम्मेलन होल तो ओकर अध्यक्षता काश्यपे जी कइलन । दोसर मगही महासम्मेलन ५ अप्रैल १९६४ के दिन मगध संघ के चौदहवाँ अधिवेशन पर बिहारशरीफ में होल हल । मगध शोध संस्थान के स्थापना के प्रस्ताव ओकरा में पास होल हल ।

पटना में संस्थान के स्थापना के असफल प्रयास के बाद डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री ओकर स्थापना लगी बिहारशरीफ में डॉ॰ सरयू प्रसाद हीं अम्बेर आउ हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी हीं सोहसराय आवा-जाही कर रहलन हल तो सहजोग वास्ते हमरो मुँह छूलन, आउ हम झटपट तइयार हो गेली । भारत सरकार के उपमंत्री प्रो॰ सिद्धेश्वर प्रसाद भी जुड़ गेलन । निश्चय होल कि संस्थान के स्थापना नालन्दा में काश्यप जी के अध्यक्षता में कैल जाय । सिद्धेश्वर बाबू, शास्त्री जी, सरयू बाबू आउ प्रियदर्शी जी के आहवान पर मगही के जानल-मानल विद्वान सब के सभा नवनालन्दा महाविहार के परिसर में काश्यप जी के अध्यक्षता में २९ जनवरी १९६७ के दिन होल । संस्थान के रूपरेखा स्वीकार कैल गेल आउ कार्यसमिति के गठन होल । भिक्षु जगदीश काश्यप के अध्यक्ष आउ डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री के निदेशक बनावल गेल । प्रो॰ सिद्धेश्वर प्रसाद आउ डॉ॰ वी॰ पी॰ सिन्हा उपाध्यक्ष तथा डॉ॰ सरयू प्रसाद आउ हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी मंत्री-सहमंत्री बनलन । अनेगन विद्वान के साथे-साथ हमरो कार्यसमिति में रक्खल गेल ।

संस्थान के पहिला अधिवेशन सुरेन्द्र प्रसाद 'तरुण' के मूल्यवान सहजोग से राजगीर में २ आउ ३ मार्च १९६८ के दिन होल । संस्थान के अध्यक्ष के रूप में काश्यप जी अध्यक्ष के आसन पर हलन । मगही के प्रचार-प्रसार, साहित्य-सृजन, सर्वेक्षण आउ शोध के योजना पर कइ-गो प्रस्ताव स्वीकार कैल गेल । पिछला कार्यसमिति के विस्तार कर के आउ कइ-गो विद्वान के पदाधिकारी बनावल गेल । हमरा संगठन मंत्री के भार सौंपल गेल । अब भिक्षु जी से मिले के अनेक बार मौका मिलल । मिलते रहे से समीपता मिलल । संस्थान के कार्यक्रम आउ रूपरेखा के ठोस आधार देवे ला भिक्षु जी के विशाल अनुभव आउ प्रगाढ़ पाण्डित्य के निर्देशन के बार-बार जरूरत पड़ल ।

हमनी सब बड़गो काम देख के थरभसा जा हली तब भिक्षु जी बहुत बारीकी से सुलझा बता दे हलथिन । 'जेतना सहजोग शोध नियन भारी आउ कठिन काम में मिले के चाही, नञ मिल रहल हे' के रोना सुन के उनखर पेसानी पर चिन्ता के कउनो रेखा कभियो नञ उभरल । उनखर विचार में 'ई सब होवे करे हे' के भाव रहऽ हल । अप्पन खरा-खोटा अनुभव कैक बार सुनावऽ हलन । एहू बतउलन कि नवनालन्दा महाविहार के खड़ा कर के ई रूप देवे में उनका गाँधी जी के ई कथन के संचाय के व्यवहारिक तौर पर साक्षात्कार भेल कि अच्छा काम पवित्र उद्देश्य रख के, शत-प्रतिशत ईमानदारी से करवऽ तो, नञ तो जन-सहजोग के अभाव होतो, नञ पइसा के ।

भिक्षु जी से मिल के बतियाय के मौका हमरा जब-तब मिलिये जा हल, बाकी हम बराबर खयाल कइली कि उनखर बातचीत प्रचारात्मक नञ होवऽ हल । गहरा विद्वान हलन, बौद्ध-दर्शन में पारंगत मानल जा हलन, बाकी बातचीत में ऊ विद्वत्ता नञ छलकावऽ हलन । सायत छलकेवला अधजल गगरी नञ हलन, ई वजह से । उनखर ज्ञान अन्तर्मुखी हल, बहिर्मुखी नञ । अपने मन से कुच्छो नञ बोलथुन-बतइथुन । पुछला पर सहज भाव से, बिलकुल सुलझल ढंग से, बता के नेहाल कर देथुन ।

हम जाने चाहऽ हलियइ कि अप्पन अधीनस्थ आदमी के साथ उनखर बरताव कइसन रहऽ हलइ । एकर अध्ययन अपना जानते बारीकी से कर के देखलियइ तो पइलियइ कि उनखर प्रशासन में भी नेह के मिठास रहऽ हलइ । ऊ गंभीर बनल रहऽ हलथिन, बनल की, सुभाव से ही गंभीर हलथिन आउ भिक्षु-जीवन उनखर गंभीरता में हजाफा ला देलकइ हल । एकरा से लोग उनखा से डरऽ हलन नञ, लेहाज रक्खऽ हलन ।

काश्यप जी के दैनिक परिचर्या जाने के हमरा कौतूहल हल, ई गुने उनखा से हम कभी भोर के मिललूँ तो कभी साँझ के, आउ दुपहरिया के भी । भरल भादो सुक्खल जेठ ऊ ब्राह्ममुहूर्त्ते में जग जा हलन । उठते के साथ कुछ मंत्र गुनगुना हलन । स्नानादि से निबट के प्राणायाम या ओइसने कुछ करते हम उनखा देखलूँ हल । धर्म के किताब रोज पढ़े के रुटीन हल । हलन तो बौद्ध, बाकी हिन्दू दर्शनशास्त्र, जैन आगम ग्रंथ आउ पाश्चात्य दर्शनशास्त्र के भी अध्ययन ऊ मनोयोग से करऽ हलन । छेड़ला पर कउनो धरम के दार्शनिक बारीकी पर सुलझल विचार परगट करऽ हलन । मधुकर-कृति के आदमी हलन । जहाँ से जे ज्ञान मिले, संचय कर लेबे के ऊ आग्रही हलन ।

उनखर स्वास्थ्य अच्छा रहऽ हलइ एकर रहस्य उनखर पौष्टिक आहार नञ हलइ । भोजन बिलकुल सादा करऽ हलन । 'शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्' मान के शरीर कामचलाऊ रखे ला उनखर आहार-निद्रा के कार्यक्रम चलऽ हलइ ।

अकसर साधक, सन्त, तपस्वी, साधु जन-समाज से छिटकल चलऽ हथ । भिक्षु जी अपवाद हलथिन । अमीर-गरीब, विद्वान-अपढ़, बालक-वृद्ध सब से मिलऽ हलथिन आउ उनखर समस्या धीरज से सुन के, आउ धीरे-धीरे बोल के, समाधान भी सुझा दे हलथिन ।

नवनालन्दा महाविहार जइसन अन्तरराष्ट्रीय संस्था के निर्माण हँसी-खेल नञ हे । अप्पन नेक सुभाव, संगठन-पटुता आउ प्रेरक व्यक्तित्व से ऊ सपना के साकार कर छोड़लन । जे संस्था के संस्थापक होवऽ हे ओक्कर माथा में ओक्कर एगो खाका खिंच जा हे, एही से संस्था ओक्कर मन के अनुकूल बन के तरक्की करते जा हे । भिक्षु जी महाविहार ला चुन-चुन के शिक्षक बहाल कइलन हल । भारी-भरकम डिग्री से कर्मठता, समर्पण आउ ईमानदारी पर जादे ध्यान देलन हल । जब तलुक ऊ रहलन, नवनालन्दा महाविहार कुछ अइसने बुझा हल जइसे प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय अँगड़ाई ले के उठ रहल हे । आगे तो - 'रम गया जोगी, हवन की राख खाली रह गई !' पता नञ, नालन्दा विश्वविद्यालय के स्थापना कब होत आउ के करत ?

काश्यप जी मगही, हिन्दी, पालि, अंग्रेजी आदि कइ भासा में लिखऽ हलन । मगही पत्रिका में उनखर लेख छपऽ हल । 'इंटरमीडियट मगही गद्य-पद्य संग्रह (मातृभासा)' में उनखर लेख 'पटना कइसे बसल' छपल हे । 'खुद्दक निकाय', 'दीघ्घ निकाय', 'संयुत्त निकाय', 'उदान' आउ 'मिलिन्द पन्ह' के उनखर हिन्दी अनुवाद प्रसिद्ध हे । त्रिपिटक के नागरी संस्करण के संपादन-प्रकाशन उनखर ऐतिहासिक महत्त्व के काम हे । 'पालि महाव्याकरण' उनखर अमर कृति हे । 'पाश्चात्य तर्कशास्त्र' हिन्दी में पाठ्यग्रंथ के रूप में चलऽ हल । 'बुद्धिज़्म फ़ॉर एव्रीबॉडी' उनखर अंग्रेजी कृति हल, जेकर अनुवाद फ्रेंच, जर्मन आदि कैक भासा में कैल गेल हल ।

'परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते ?' इनसान के साथ जिनगी आउ मौत के झमेला लगले हे । भिक्षु जगदीश काश्यप अपवाद कइसे रहतन हल ? २८ जनवरी १९७६ ऊ तिथि हल जब उनखर तिरोभाव हो गेल । उनखर देहावसान बौद्ध-जगत में गहरा अवसाद भर देलक । ऊ तो निर्वाण पा गेलन, बुद्ध के शरण में जा पहुँचलन, बाकी श्रमण-परम्परा के आगे बढ़ावे वाला, शिक्षा, भासा आउ संस्कृति के पुरोधा उनखर टक्कर के कोय दोसर नञ देखाय पड़ रहल हे । उनखर कृति नवनालन्दा महाविहार उनखर कीर्ति-पताका हे । जब तलुक ई पताका फहरत, भिक्षु जी यश-शरीर में जीवित रहतन ।

["मागधी विधा विविधा" (विविध विधा में स्तरीय मगही लेखन के परिचायक एगो संकलन); खण्ड-१: मगही गद्य साहित्य; सम्पादक - हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, मगध संघ प्रकाशन, सोहसराय (नालन्दा); १९८२; कुल पृष्ठ ४+१४२+२; ई संस्मरण पृ॰ १११-११६ पे छप्पल हकइ]

NOTE:
"Bhikkhu Jagdish Kashyap was born as Jagdish Narain in 1908 at Ranchi in the state of Bihar in India. But his ancestral home was in the village of Raunia in the district of Gaya. Raunia village is not far from the Barabar Hills in one direction and Rajgir and Nalanda in another." - p.xv in "Bhikkhu Jagdish Kashyap (A Biography)", pp.xv-xxxi in the book "STUDIES IN PALI AND BUDDHISM - A Memorial Volume in Honour of Bhikkhu Jagdish Kashyap", Editor: A. K. Narain; IInd Edition 2006; 1st Published 1979; Publisher: B.R. Publishing Corporation [A Division of BRPC (India) Ltd.], 425, Nimri Colony, Ashok Vihar, Phase-IV, Delhi-110052; Cost: Rs. 750/-.

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