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Wednesday, March 11, 2009

चाणक्य तन्त्र (जासूसी कहानी) - भाग ३

चाणक्य तन्त्र (जासूसी कहानी) - भाग ३

मूल कन्नड - सास्कामूर्ति

मगही अनुवाद - नारायण प्रसाद

सुबह करीब नौ बजे के समय फोन के घंटी बज्जल । समुच्चे रात बिना नींद के गुजार देला के कारण दयानन्द के थोड़े झपकी नियर लग रहल हल । फोन के शब्द से सिहरल एक पल ओरा अइसन लगल जइसे सपना देख रहल ह । एक भ्रमित दृष्टि डाललक, फेर उठके जाके फोन के कान से लगइलक ।

"हैलो, दयानन्द बोल रहलिये ह ।"
"गुड मॉर्निंग सर ! हम ड्यूटी डॉक्टर सुनील बोल रहलिये ह ।"
"कीऽ बात हउ ?"
"सर, मिसेज़ रश्मि के घर पर पेपर डाले वला लड़कावा हीआँ अइले ह । ओक्कर कहना हइ कि रश्मि जी बंगला के कम्पाउण्ड में बेहोश पड़ल हथिन । ई देखके डरके दौड़के हीआँ आल ह । हमहीं जाके अटेंड करिअइ ? कि अप्पन कार भेजके उनका ऐडमिट कर दिअइ ?"
दयानन्द एक तुरी सिहर गेल । अप्पन अवाज में घबराहट के छिपावे के प्रयत्न करते बोलल -
"तुरन्त ऐडमिट कर ले । हम्मर V.I.P. वार्ड में रख । हम तुरन्ते आ रहलियो ह ।"
"येस सर !"

दयानन्द फोन काटके फेर गोपीनाथ के फोन कइलक ।
"गोपी, रश्मि अप्पन बंगला के कम्पाउण्ड में बेहोश पड़ल हइ ।"
एतना कहके पूरा बात बतइलक ।
"तोर बात सुनके शायद हम गलती कइलूँ , अइसन लग रहल ह ।"
"अच्छऽ, देखल जइतइ । हमहूँ आ रहलियो ह । दूनहूँ साथे चलल जाय ।"
दयानन्द के गला सूख रहल हल ।

ऊ किंकर्तव्यविमूढ़ होके एद्धिर-ओद्धिर चहलकदमी करे लगल । बाद में मुँह धोके कपड़ा बदल लेलक ।
बाहर कार के हॉर्न सुनाय देलक ।
आके कार में घुसके गोपीनाथ के तरफ मुड़ल ।
"गोपी ! ....."
"श्शऽऽऽऽऽ ...!" गोपीनाथ होंठ पर हाथ रखके मौन रहे के इशारा कइलक ।
"कुच्छो मत बोल । पहिले हुआँ जाके परिस्थिति के जाँच कइल जाय ।"

दयानन्द कुछ कहे के प्रयत्न कर रहल हल, लेकिन चुप हो गेल । खिड़की के बाहर देखते चुपचाप बइठल रहल ।
कार नर्सिंग होम पहुँचला पर ड्यूटी डॉक्टर सुनील दौड़के कार के पास आल ।
"कोय चिन्ता के बात नयँ हइ, सर । I think she is heavily drugged (लगऽ हइ, उनका जादे बेहोशी के दावा देल गेले ह ) । अभी तक होश नयँ अइले ह ।"
"Very fine (बहुत अच्छा) । हम देखऽ हिअउ ।"
दयानन्द कार से उतरके V.I.P. वार्ड के तरफ दौड़के गेल । गोपीनाथ ओक्कर पीछे-पीछे गेल ।
वार्ड में रश्मि पलंग पर आँख मूँदके सो रहल हल । एगो नर्स बगल में बइठल हल ।
नर्स आउ ड्यूटी डॉक्टर दूनहूँ के बाहर जाय के इशारा कइलक । उनकन्हीं के गेला के बाद रश्मि के पास स्टूल पर बैठ गेल ।

रश्मि शान्त निद्रा में देखाय दे रहल हल ।
दयानन्द के दिल जोर-जोर से धड़क रहल हल ।
हाथ पकड़के नाड़ी के परीक्षा कइलक । नाड़ी सामान्य स्थिति में हल ।
दयानन्द के हाथ काँप रहल हल । ई हस्त स्पन्दन के रोके के ऊ शत प्रयत्न कइलक ।

ओक्कर दृष्टि अचानक कुछ देखाय दे रहल वस्तु पर गेल । ओकर आँख चमक उठल आउ ऊ आगे झुकके देखलक । साँस तेज हो गेल हल ।
"माइ गॉड (हे भगवान) !" - अइसन उद्गार प्रकट करके जल्दी-जल्दी उठके बाहर गेल । जब ऊ वापस आल त ओक्कर हाथ में लम्बाई मापे के स्केल हल ।
दयानन्द स्केल के रश्मि के दहिना हाथ के टुट्टल अंगुरी पर रखके लम्बाई नापलक । नापे बखत दयानन्द के अंगुरी काँप रहल हल ।

अचानक ओक्कर मुँह से चीख निकल पड़ल ।
"माइ गॉड (हे भगवान) ! हम्मर रश्मि मिल गेल ! हीआँ देख । अंगुरी के लम्बाई दू सेंटीमीटर ! थैंक गॉड ! रश्मि हमरा फेर मिल गेल !" - अइसे चिल्लइते ओक्कर गरदन के गले लगाके गाल आउ निरार पर चुम्बन के बौछार कर देलक । पागल नियर रोवे लगल ।

गोपीनाथ के आँख में भी आँसू आ गेल । ऊ अपने आप बोल उठल ।
"दया ! अइसन होवे, ओहे ल तो तोर हाथ से ई नाटक करवइलिअउ ! तोर रश्मि से ओक्कर जयदाद लिखवा लेवे के झूठ बात बतावे पर कपटी लोग के ई कुतन्त्र खुलके सामने आल ! असली रश्मि के राते में लाके बंगला के कम्पाउण्ड के अन्दर फेंकके भाग गेते गेल !"

दयानन्द उठके गोपीनाथ के बाँह पकड़के आलिंगन करके सिर रखके सिसक-सिसकके मूक रोदन करते बीच में बोलल ।
"तोर तन्त्र अब समझ में अइलउ, गोपी ! कइएक जनम तक हम तोर ई ऋण के चुका नयँ पइवउ ! थैंक यू .... थैंक यू .... थैंक यू .... थैंक यू वेरी मच !"
गोपीनाथ प्यार से ओक्कर पीठ सहलइलक ।

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