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Wednesday, March 11, 2009

चाणक्य तन्त्र (जासूसी कहानी) - भाग १

चाणक्य तन्त्र (जासूसी कहानी) - भाग १

मूल कन्नड - सास्कामूर्ति


मगही अनुवाद - नारायण प्रसाद


टेन्निस कोर्ट के समुच्चे क्षेत्र में तीव्र गति से छलांग लगइते गेंद के वापस उछालते रश्मि के ही देखते बीयर पी रहल हल गोपीनाथ । मुँह से "च्चऽ…" अवाज़ निकालके दयानन्द के तरफ मुड़के बोलल ।
“रश्मि के जब कभी देखऽ हूँ त हमरा एहे लगऽ हउ कि तोरा जइसन भाग्यशाली कोय नयँ हइ । कीऽ दिव्य सौन्दर्य हकइ !!”

दयानन्द के होठ पर विषाद के मुसकान उभर गेल ।
“ठीक हइ, गोपी । लेकिन बात एतने रहते हल त तोर बात सच होतो हल ।“

गोपीनाथ के त्योरी चढ़ गेल ।
"एतने रहते हल ! रश्मि तोरा से बहुत प्यार करऽ हउ, ई हमरा मालूम हकइ । फेर बात कीऽ हउ ?”
“एकरे बारे हम तोरा से बात करे के बहुत कोशिश कइलिअउ, लेकिन कइसे कहूँ एहे हमर समझ में नयँ आ रहल हल । अब तो हालत अइसन हो गेल ह कि कइसहूँ न कइसहूँ तो हमरा कहीं पड़त ।“
ओक्कर अवाज़ में स्पष्ट गम्भीरता देखके गोपीनाथ चकित हो गेल । दयानन्द के कुछ पल तक एक टक देखके रश्मि के तरफ देखलक ।

रश्मि चीता नियर उछलके खेल रहल हल । हरेक चोट के बाद ऊ धीमे अवाज़ में हुँकर रहल हल ।
कुच्छो समझ में नयँ अइला पर फेर दयानन्द के तरफ देखके पूछलक ।
"कीऽ बात हउ, दया ? तोर व्यवहार देखके तो अइसन लगऽ हउ कि बात बहुत गम्भीर हकउ ।“

दयानन्द कुर्सी के पीठ के तरफ ओठंगके एक ठो गहरा साँस लेलक । फेर धीमे अवाज़ में पूछलक ।
“गोपी, तूँ रश्मि के केतना दिन से जानऽ हँ ?”
“करीब दू बरस से ।“
“मतलब रश्मि आउ प्रभाकर के शादी हो गेला के बाद से ?”

गोपीनाथ एक ठो तीक्ष्ण दृष्टि डाललक ।
“प्रभाकर के व्यापार के देखभाल हमहीं करऽ हलूँ । ओक्कर सब्भे व्यापारिक लेखा-जोखा के हमहीं वकील हलूँ । ई तरह विवाह हो गेला के बाद रश्मि से परिचय होवे पर ओकरा साथ मिलना-जुलना भी स्वाभाविक रूप से हो गेलइ ।“
“तूँ रश्मि के केतना निकट से जानऽ हीं ?”
“केतना निकट से ! प्रभाकर के बाद रश्मि के व्यापार के हमरे वकील होवे से कुछ अधिक निकटता हो गेलइ ।“
“एतना निकटता कि ओक्कर हरेक चाल-चलन के तूँ अच्छा से भाँप सकऽ हीं ?”
“नयँ ।“ - गोपीनाथ गम्भीर हो गेल ।
“मतलब अगर ओक्कर चाल-चलन में कुछ अन्तर आ गेल होत त तोरा असानी से समझ में नयँ अइतउ, हइ न ?

गोपीनाथ एक ठो तीक्ष्ण दृष्टि डाललक ।
“हाँ । लेकिन ई अन्तर के हमरा से तूँ बेहतर समझ सकऽ हीं । अब कीऽ हो गेलो ह ? तोरा लगि ओक्कर प्रेम में कउनो तरह के अन्तर देखाय दे हउ ?”

एहे समय रश्मि खेले ल बन्द करके हॉल में आल । ई दूनहूँ के तरफ मुसकाते आउ हाथ हिलइते सम्मेलन हॉल के तरफ चलल ।
ओक्कर ओझल होवे तक ओकरे तरफ देखते गोपीनाथ दयानन्द के तरफ मुड़के एक कुतूहल दृष्टि डाललक ।
दयानन्द सिर हिलइलक ।

“बहुत कुछ अन्तर हो गेले ह ।“
“कोय आउ बीच में आ गेलो ह कीऽ ?”
“नयँ ।“
“फेर ?”

दयानन्द कुछ उत्तर नयँ देलक । गोपीनाथ बोलल ।
“अगले महीने तोर दूनहूँ के बियाह होवेवला हउ अइसन तूँहीं कहलँ हँल । जाहाँ तक प्रतिष्ठा के सवाल हउ, तूँ रश्मि से कहीं ऊपर हकँ । पाँच नर्सिंग होम हकउ । कइएक बंगला हउ । बेंगलूर के एगो प्रतिष्ठित डॉक्टर हकँ । जाय दे । प्रतिष्ठा के बात छोड़ । ई परस्पर प्रेम के बात हकउ । त अइसन कीऽ बात हो सकऽ हउ ?”

दयानन्द सिगरेट के लम्बा कश खींचके गहरा धुआँ छोड़लक ।
“गोपी, ओक्कर व्यवहार में आल अन्तर के देखके भी तूँ शायद अनुभव नयँ कइलँ । दू महिन्ना पहिले रश्मि के मध्यमा अँगुरी ओक्कर कार के दरवाजा में अटके से टूट गेलइ । ई तोरा मालूम हउ । पहिले ओक्कर खेल अच्छा होलो पर सामान्य स्तर के हलइ । लेकिन अँगुरी कट गेला के बाद ओक्कर खेल आउ सुधर गेले ह ! ! ई तो होलउ एक बात । ओक्कर बाल के सुन्दरता आउ ओक्कर भावना के कोमलता अब नयँ रहल । हमरा दूर रक्खे के कोशिश कर रहल ह ।“
"तोर कहल सहिये हउ । लेकिन ई सब बदलाव नयँ होवे के चाही हल, अइसन बात तो नयँ हइ न ? प्रभाकर के मौत के दुःख से मुक्ति पावल ओक्कर अभी के सौन्दर्य लगऽ हइ !"

दयानन्द ओकरा तरफ देखलक । नाक-भौं सिकोड़ते बोलल ।
"रश्मि के अँगुरी कट गेले ह । टेनिस रैकेट के घुमावे-फिरावे लगि शक्तिये मिल्लऽ हइ ई अँगुरी से । फिर भी पहले के अपेक्षा अभी के ओक्कर खेल में बहुत अन्तर देखाय दे हइ । अगर संक्षेप में कहल जाय त कइएक बरस से बिना मध्यमा अँगुरी के अभ्यास कइल खिलाड़िन के तरह ऊ खेलऽ हइ ! ई कइसे सम्भव होलइ ? पहले के सौम्य मृदु मधुर रश्मि अब शक्तिशाली मादक सुन्दरी बन गेले ह ! हमरा देखतहीं भावना के खिंचाव से मृदु हो जाय वला ओक्कर मुख में अब अचानक बल पड़ जा हइ ! अइसन काहे ?"

गोपीनाथ ओक्कर मुख के तीक्ष्ण दृष्टि से देखलक । दयानन्द कुछ तो प्रमुख विषय छिपा रहल ह, ई स्पष्ट हो गेल । गम्भीर होके पूछलक ।
“त तोर विचार में ओक्कर बदलाव के कीऽ कारण हो सकऽ हइ ?”

बहुत समय तक मौन छाल रहलइ ।
दिन के गरमी आँख पर असर डाल रहले हल ।
दयानन्द हाथ के सिगरेट के फेंकके एक दोसर जलइलक आउ गहरा कश लेके गहरा धुआँ छोड़लक ।
आगे के विषय के प्रस्तुत करे के तैयारी करते समय ओक्कर मुख पर दसो भावना प्रहार कर रहल हल ।
एक उच्छ्वास लेके ऊ कहलक ।

“सबसे बड़ा कारण तो रश्मि के हाथ के अँगुरी से सम्बन्धित हइ ।“
“हाथ के अँगुरी ? ई कइसे ?” - गोपीनाथ अचरज से पूछलक ।
दयानन्द एक बार खखरके गला साफ करके बोलल ।
“रश्मि के अँगुरी के लम्बाई कट जाय के समय जेतना हलइ ओकरा से जादे हो गेले ह !!”
“लम्बाई जादे हो गेले ह ! ई तूँ कीऽ कह रहलँ हँ, हमरा कुच्छो समझ में नयँ आवऽ हउ । कहे के हउ त ठीक से कह ।“
“मतलब ई कि रश्मि के अँगुरी कट गेला पर दू सेंटीमीटर हलइ आउ दुइये सप्ताह के बाद कट्टल अँगुरी अब एक सेंटीमीटर से बढ़ गेले ह !!”
“What a fine discovery (केतना बड़ा खोज कइलँ हँ ) ! तोरा लम्बाई नापे के कीऽ जरूरत पड़ गेलउ ?”
“ई तमाशा के बात नयँ हइ, गोपी । टुट्टल अँगुरी के बारह से चौबीस घंटा के अन्दर फेर से जोड़के, मैल वगैरह लग्गल जगह पर जोंक डाल देल जा हइ, करीब चौदह से बीस जोंक । ई जोक सब रक्त चूस ले हइ त टुट्टल अँगुरी में रक्त संचालन चालू हो जा हइ । एकरा माइक्रो-मैस्क्यूलर सर्जरी कहल जा हइ । लेकिन ई प्रसंग में अइसन नयँ हो सकऽ हइ । अँगुरी पूरा बर्बाद हो गेले ह । मतलब समझ में अइलउ ? टुट्टल अँगुरी के फेर से बढ़ना सम्भव नयँ ! ई तोरा कुछ विचित्र नयँ लगऽ हउ ?”
“ई कुछ असामान्य विकास हो सकऽ हइ ।“
“असम्भव । पहले अइसन कभी देखे में नयँ अइले ह ।“

दयानन्द एद्धिर-ओद्धिर नज़र डालके जेभी से रूमाल निकालके मुँह पोंछलक । पास आल बैरा के आउ दू ठो बीयर लावे ल कहलक । बीयर आ गेला पर गिलास में ढारके धीरे-धीरे पीते उफनके आ रहल उद्वेग के रोके के कोशिश कइलक ।

गोपीनाथ आगे झुकके ओरा तरफ निगाह डालते पूछलक ।
“अंगुरी के लम्बाई बढ़ गेले ह ! ठीक हइ, मान लेलिअउ । त तोर विचार में एक्कर कीऽ कारण हो सकऽ हइ ?”
दयानन्द आगे झुकके ओक्कर निगाह के सामना कइलक । ओक्कर आँख तीक्ष्ण रूप से चमक रहल हल । उचित शब्द मिल गेल जइसन समझके बोलल ।
“एकर एक्के कारण हो सकऽ हइ । आज के रश्मि रश्मि हइए नयँ हइ !!”

गोपीनाथ काँप गेल । ओक्कर शरीर तेजी से पसीने-पसीने हो गेल । ऊ रोमांचित हो उठल । साँस तेज हो गेल । मुँह खुल्लल के खुल्ले रह गेलइ ।

दयानन्द बात आगे बढ़इलक ।
“लगभग डेढ़ महिन्ना पहिले एक दिन हम नर्सिंग होम से वापस आ रहलूँ हल । केम्पेगौडा रोड पर ट्रैफ़िक जाम हो गेले हल । गाड़ी के रोकके हम एद्धिर-ओद्धिर नज़र डाललूँ । रस्तवा के किनारे एगो अदमी नारियर पानी (डाभ पानी) बेच रहले हल । पासे में एक ठो अम्बासडर कार खड़ी हलइ । डाभ वाला डाभ काटके ऊ कार के पास गेलइ । कार से एक ठो सुन्दर हाथ बाहर निकललइ आउ डाभ ले लेलकइ । ई एक ठो सधारण बात हलइ । लेकिन हम्मर ध्यान खींच लेलकइ एक ठो कट्टल मध्यमा अंगुरी ! कंगन पेन्हले एगो औरत के दहिना हाथ ! हम जे स्थान पर हलिअइ हूआँ से ऊ औरत के अच्छा से देख सकऽ हलिअइ । अइसहीं देखलिअइ । हम्मर दिल के धड़कन एक पल लगि स्तब्ध हो गेलइ । ऊ आउ कोय नयँ, रश्मि ! हरेक अंश में रश्मिये के तद्रूपी ! एतने में ट्रैफ़िक थोड़े ढीला पड़ जाय से हम आगे बढ़ गेलिअइ । ऊ समय हमरा ई घटना अद्भुत लगलो पर धीरे-धीरे स्मृति से ओझल हो गेलइ । ई घटना के पनरऽ दिन बाद रश्मि के अंगुरी कार के दरवाजा में अटकके कट गेलइ । ई दूनहूँ घटना हम्मर मन में गहराई से उतर गेलइ । बार-बार हम एकरे बारे सोचे लगलिअइ ! हम जे तद्रूपी के देखलिये हल ओक्कर अंगुरी कट्टल हलइ । आउ अब रश्मि के अंगुरी भी कट गेलइ ! दूनहूँ घटना में कटले ह मध्यमा अंगुरी ही !”

“माइ गॉड (हे भगवान) ! तुम .....”

गोपीनाथ के बात के दयानन्द बीचहीं में रोकते बोलल –
“ई दूनहूँ घटना के बीच कोय परस्पर सम्बन्ध हके अइसन सोचे ल हम मज़बूर हो गेलूँ । ई घटना कइसे घट्टल एरा बारे हम रश्मि के कइएक तुरी पूछलूँ । लेकिन ओकरा कुच्छो स्मरण नयँ आ रहल हल । ओक्कर अंगुरी के इलाज खातिर हमहीं देखभाल कइलूँ , पूरा स्वस्थ होवे तक । मतलब समझ में अइलउ ? बाद में हम अन्तःप्रेरणा से ओक्कर कट्टल अंगुरी के लम्बाई नापके अप्पन डायरी में नोट कर लेलूँ । अइसन हम काहे कइलूँ , ई ऊ बखत हमरा समझ में नयँ आल । जाय दे । रश्मि के अंगुरी बिलकुल स्वस्थ हो गेलइ । बाद में एहे कोय पनरऽ दिन पहिले रश्मि क्लब से वापस आल । ऊ दिन रश्मि के व्यवहार में कुछ बदलाव आल जइसन देखाय देलक । हम सूक्ष्म दृष्टि से ओकरा देखलूँ । मन में अनुभव करे भर सूक्ष्म परिवर्तन ! पहिले के कोमलता नयँ । पहिले के भावनापूर्ण बात नयँ । एक प्रकार के धृष्टता आउ मादकता देखाय देलक ।“

गोपीनाथ के त्योरी में बल पड़ गेल ।
“हो सकऽ हइ कि तोर नोट कइल अंगुरी के लम्बाई में कोय गलती होवे ।“
“अइसन नयँ हो सकऽ हइ । हम पूरा सावधानी से लिखलूँ हँ ।“
“ई तूँ कइसे कह सकऽ हीं कि रश्मि के ई व्यवहार सहज नयँ हइ ?”
“गोपी, तूँ रश्मि के खाली वकील हकँ । हम ओक्कर प्रेमी हकूँ । अतः ओक्कर मामले में हम जे सूक्ष्म से सूक्ष्म बात के समझ सकऽ हूँ ऊ तोरा लिए सम्भव नयँ ।“

गोपीनाथ सिर हिलइलक ।
“आगे बोल ।“
दयानन्द खाँसके अप्पन गला ठीक कइलक ।
“अब रश्मि के बारे पहले ध्यान देके सुन आउ तब उत्तर दे । रश्मि अप्पन वसीयत बनइलक ह ?”
“ नयँ !”
“रश्मि वसीयत बनइलक ह कि नयँ एरा बारे केकरो पूछलँ हँ ?”
“नयँ !”
“तूँ ई विषय में कउनो सन्दर्भ में केकरो से कहूँ बात कइलँ हँ ?”
“नयँ !”
“अइसन तूँ निश्चयपूर्वक कह सकऽ हँ ?”
“निश्चयपूर्वक !”
“रश्मि के पिता के जयदाद आउ प्रभाकर के जयदाद रश्मिये के मिलले ह न ?”
“हाँ ।“
“जयदाद के मूल्य कीऽ हइ ?”
“लगभग पचासी लाख ।“

“अच्छऽ । प्रभाकर के गुजरल एक बरस हो गेलइ । रश्मि आउ हम बचपन से एक्के साथ पललूँ-बढ़लूँ । शायद एक दूसरे के अचेतन रूप से प्यार करते रहलूँ । रश्मि के बियाह के समय हम अमेरिका में हलूँ । प्रभाकर के मौत के एक महिन्ना बाद हम अप्पन देश वापस आ गेलूँ । रश्मि के आउ कोय सहारा नयँ हलइ । ई तरह हम्मर आउ ओक्कर सम्पर्क निकट हो गेलइ । अचेतन प्रेम जग गेलइ । हम दूनहूँ बियाह करे के निर्णय कर लेलूँ । ई बियाह के बाद ई जयदाद हम्मर कब्जा में आ जात । ई सब बात तो एक तरफ । अब रश्मि के ई पसन्द नयँ । ओक्कर बदलल व्यवहारे चिल्ला-चिल्लाके अइसन कह रहल ह ।“

“दया”, गोपीनाथ के अवाज में कुछ रुकावट आल । फेर बोलल - "तोर ई सन्देह लगि कुछ आउ पुष्टिकारक अंश होला पर उत्तम होतउ ।“
दयानन्द सिर हिलइलक ।
“अच्छऽ । रश्मि के अंगुरी कट्टे पर हमरा अचानक ई तद्रूपी के विषय आद आल । कट्टल भाग के जाँच कइलूँ । अंगुरी में कोकेन इंजेक्शन (सूय) देल गेल ह, ई मालूम पड़ल । मतलब, रश्मि के बेहोश करके अंगुरी में कोकेन देके ओक्कर अंगुरी के वांछित कउनो कार के दरवाजा में अटकाके कुचलना सम्भव हल । ई बात ध्यान में अइतहीं कउनो भयंकर जालसाजी के लहर दिमाग में कौंध गेल । रश्मि के प्राण संकट में हके अइसन कल्पना दृढ़ हो गेल । तुरन्त ओक्कर अंगुरी के लम्बाई अप्पन डायरी में नोट कर लेलूँ । चौकन्ना होके ओक्कर निगरानी करे लगलूँ । लेकिन एक रात क्लब से वापस आल रश्मि दोसरे देखाय पड़ल ! ओक्कर बदलल व्यक्तिगत स्वभाव आउ व्यवहार हम्मर अनुभव में आल । एरा बारे निश्चिन्त होवे लगि एक दिन ओरा निद्रा स्वापक औषधि (नींद के दवा) पिलाके ओक्कर अंगुरी के लम्बाई नाप लेलूँ । अंगुरी के लम्बाई एक सेंटीमीटर से बढ़ गेल हल !”

मौन छा गेल ।
माहौल के भयंकरता ऊ मौन के साथ-साथ बढ़के नस-नस में गहराई से प्रवेश कर गेल । एक सर्द अमानुष हाथ दूनहूँ के दिल पर पड़ गेल ।

गोपीनाथ उद्गार प्रकट कइलक ।
“मतलब कि रश्मि के अपहरण करके ओक्कर जगह पर ओक्कर तद्रूपी लाके तोरो दूर करके रश्मि के जयदाद हड़पे के ई व्यवस्थित जाल हइ !”
“बिलकुल ठीक, गोपी !” - दयानन्द चिल्ला उठल ।
“अब सन्देह के बात ई हइ कि अगर रश्मि के अपहरण हो गेल होत त ऊ जिन्दा भी हके कि नयँ !”
“हाँ, गोपी ! एहे बात हमरा खइले जा रहल ह ।“
“नयँ, दया । रश्मि के जयदाद अप्पन कब्जा में आवे तक षड्यन्त्रकारी सब ओकरा मार नयँ सकऽ हइ । ई हम एतना बरस के अप्पन अनुभव के अधार पर कह रहलियो ह । रश्मि जीवित हउ !”
“तोर बात सच होवे एहे हम्मर कामना हके । लेकिन अब कीऽ करूँ ?”

गोपीनाथ सिर हिलाके छाती पर ठुड्डी जमाके सोचे लगल । बाद में सिर उठाके बोलल ।
“परिस्थिति बहुत गम्भीर हउ । विषय हम सबके मालूम रहलो पर सौ बार सोचके आगे कदम बढ़ावे के प्रसंग ! ई संकटपूर्ण व्यूह के बीच हम्मर एक्को गलत कदम अगर पड़ गेल त हमरा जान गँवावे पड़ सक़ऽ हके ! हीआँ हमरा आँख-मिचौली के खेल खेलना उचित नयँ । बाहरे से सामना करके ई व्यूह के तोड़ सकऽ हकूँ ।“
“हमरा समझ में नयँ आल ।“
“तोरा जे चाकू देखावे ओकरा तूँ पिस्तौल देखाव !”
“पिस्तौल ! हमरा पास पिस्तौल कहाँ हके ?”
“ई पिस्तौल कहाँ हकउ एहे खोजना तो हम्मर काम हके ! समझ में अइलउ ?”

दयानन्द चकित होके कुछ पल मौन रहल । फेर ओक्कर मुँह से उद्गार निकल पड़ल ।
“मतलब, नहला पर दहला !”
“बिलकुल ठीक ।“
“लेकिन कइसे ?”
“ई व्यूह खातिर हम सब के प्रतिव्यूह रचे पड़त !” - एतना कहके गोपी अप्पन गाल खुजलइलक ।

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