भोजपुरी-मैथिली की आवाज विस तक पहुंची
03 Sep 2011, 01:00 am
जमशेदपुर, निज प्रतिनिधि :
संथाली-बांग्ला समेत 11 झारखंडी भाषाओं को दर्जा मिलने के बाद भोजपुरी-मैथिली, मगही, अंगिका, अवधी आदि को भी सम्मान देने की मांग जोर पकड़ चुकी है। भारतीय भोजपुरी संघ ने इसकी आवाज झारखंड के विधानसभा अध्यक्ष तक पहुंचाई। संघ के अध्यक्ष आनंद बिहारी दुबे ने शुक्रवार को रांची में विस अध्यक्ष सीपी सिंह से मिलकर ज्ञापन भी सौंपा, जिसमें इन भाषाओं को भी झारखंड में द्वितीय राजभाषा का दर्जा देने की मांग की गई है। दुबे ने कहा कि राज्य के निर्माण व विकास में भोजपुरी, मगही, मैथिली, अंगिका आदि बोलने वालों का बड़ा योगदान रहा है, लेकिन झारखंड सरकार द्वारा जिन 11 भाषाओं को द्वितीय राजभाषा का दर्जा देने की तैयारी है, उसमें इन भाषाओं को शामिल नहीं किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। संघ ने विस अध्यक्ष से कहा कि भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका व अवधी भाषियों को उम्मीद थी कि जब कभी अन्य भाषाओं को द्वितीय राजभाषा का दर्जा मिलेगा, उन्हें अवश्य प्राथमिकता मिलेगी। राज्य के पलामू, गढ़वा, लातेहार, दुमका, देवघर, पाकुड़, साहेबगंज, गोड्डा, जामताड़ा, रांची, धनबाद, रामगढ़, हजारीबाग, बोकारो, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां आदि जिलों में 50 प्रतिशत से ज्यादा आबादी इन भाषा-भाषियों की है। इसलिए यह कहीं से उचित नहीं लगता कि झारखंड सरकार इन भाषाओं को द्वितीय राजभाषा का दर्जा न दे। संघ ने विस अध्यक्ष से आग्रह किया कि झारखंड सरकार अन्य भाषाओं के साथ इन भाषाओं को भी द्वितीय राजभाषा घोषित करे।
मैथिली बने दूसरी राजभाषा: चौधरी
03 Sep 2011, 01:00 am
जमशेदपुर, जागरण कार्यालय :
मैथिली द्वितीय राजभाषा संघर्ष समिति के संयोजक सह अंतरराष्ट्रीय मैथिली परिषद के प्रदेश संगठन प्रभारी डा. रवींद्र चौधरी ने कहा कि यदि झारखंड विधान सभा के इसी सत्र में द्वितीय राजभाषा बिल पर बहस कर इसे जोड़ा नहीं गया तो आगामी 10 सितंबर को राजभवन रांची के समक्ष महाधरना का आयोजन किया जाएगा। डा. चौधरी ने बताया कि जिस प्रकार दिल्ली सरकार द्वारा मैथिली- भोजपुरी अकादमी का गठन किया गया है, उसके लिए यहां भी द्वितीय राजभाषा की मान्यता पर दोनों भाषियों को एक साथ संषर्घ करने की जरूरत है।
संथाली राजभाषा के मुद्दे पर सरकार ने ठगा : झादिपा
03 Sep 2011, 01:00 am
जमशेदपुर, नगर संवाददाता : झारखंड दिशोम पार्टी की केंद्रीय अध्यक्ष सुमित्रा मुर्मू ने कहा है कि झारखंड सरकार ने संथाली को द्वितीय राजभाषा बनाने की घोषणा कर आदिवासियों को ठगने का काम किया है। मुर्मू के मुताबिक संविधान में 'द्वितीय' राजभाषा बनाने का प्रावधान ही नहीं है। राष्ट्रपति की सहमति से कुछ भाषाओं को विशेष भाषा का दर्जा जरूर दिया जा सकता, लेकिन द्वितीय राजभाषा बनाने जैसा कोई प्रावधान नहीं। संथाली बोलने वालों की जनसंख्या झारखंड में बहुत अधिक है, इसलिए इस भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए था न कि द्वितीय राजभाषा बनाने का झुनझुना पकड़ाना चाहिए था। ऐसा कर सरकार ने वोटबैंक की रोटी सेंकने की कोशिश की है। आदिवासियों को इस तकनीकी पेंच को समझना होगा। यह समझना होगा कि द्वितीय राजभाषा का कोई मतलब ही नहीं होता।
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