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Tuesday, September 27, 2011

36. "माहुरी मंडल नाटक" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द


मामना॰ = "माहुरी मंडल नाटक", लेखक स्व॰ गोपीचन्द लाल गुप्त बड़गवे, हसुआ निवासी, भूतपूर्व सम्पादक "माहुरी मयंक"; प्रकाशक - बाबू छठू राम, बाबू होरील रामजी, मइका-मर्चेण्ट, झुमरी तिलैया (कोडरमा); मुद्रक - बाबू प्रभुदयाल गुप्त, बरहपुरिया, कमला प्रेस, झरिया, 1923 ई॰ (वि॰सं॰ 1980); प्रथम बार 1000; द्वितीय संस्करणः सम्पादक - श्री शिव प्रसाद लोहानी, सम्पादक, माहुरी मयंक, नूरसराय (नालन्दा); प्रकाशकः श्री के॰एल॰ गुप्ता, स्वराज्यपुरी रोड, गया (बिहार), 1987 ई॰ (वि॰सं॰ 2043); 12+viii+108 पृष्ठ ।

देल सन्दर्भ में पहिला संख्या पृष्ठ और बिन्दु के बाद वला संख्या पंक्ति दर्शावऽ हइ ।

'माहुरी मण्डल नाटक' में खड़ी बोली का प्रयोग भी हुआ है किन्तु मुख्य पात्र सदा मगही में वार्तालाप करते हैं । नाटककार ने इसे स्वाभाविक बनाने का प्रयास किया है । अंग्रेजी पात्र अंग्रेजी हिन्दी और बंगाली पात्र बंगाली हिन्दी का प्रयोग करते हैं । मगही में वार्तालाप करने वालों की संख्या सर्वाधिक है । नाटक का मूल स्वर मगही है । नाटककार ने इसकी रचना हजारीबाग जिला के डोमचांच नामक कस्बे में निवास के समय वहीं किया । इनकी जन्मभूमि और स्थायी निवास हिसुआ (गया, अब नवादा जिला) था । इस कारण इसमें हिसुआ एवं डोमचांच क्षेत्रों में प्रयोग होनेवाली मगही दोनों का स्वरूप मिलता है ।

कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या - 211

ठेठ मगही शब्द :
1    अँधारे (~ से = अन्हारे से; सुबह से) (लौण्डी - मरौ कहरन कने चल गेलै, ओहू सब छौड़ा पूतन ताड़ीये ला मरल रहे हे । हाय रे हाय ! बचवा अँधारे से एक दाना नै मुह में देलके ह ।)    (मामना॰34.8)  
2    अख्तियार (ब्रज लाल - रतन, बुतरू ऐसन कर ह, एहू अपन हाथ के अख्तियार हे, जे भगवान के मंजूर हलो, होलो ।; माने न माने यह तो उनका अख्तियार । तुम सच्ची सच्ची बात सुनाये चले चलो ॥4॥)    (मामना॰39.17; 108.9)  
3    अचरा (एकरा अलावे और भी बहुत सा हिकमत है, जैसे जादे दाम वाला मारकीन के अचरा नम्बर वाला दु चार गज फाड़ के, कम दाम वाला मारकीन में लगा देली और गहकी से आने दू आने गज फायदा उठा लेली ।)     (मामना॰15.13, 14)  
4    अतर (= इत्र) (शौक से चूर दुकान में ओकरा एक घण्टा तो जी चाप के बैठले नै जाहे । ऐना कँगही कभी हाथ से नै कर हे । पैसा तो ओकरा पास झिटकी हो गेल हे । कभी तेल फुलेल, कभी अतर, कभी लवण्डर, कभी साबुन ।)    (मामना॰41.4)  
5    अदौ (= अदऊ; आदिकाल; पुराना जमाना; अनेक पीढ़ियों का क्रम)  (लुकाठ चन्द - तब क्या ? कोई कुल के चाल को भी उठा देगा । यह नौका गोसाईं, सीरा पिण्डा, शादी विवाह में बलि प्रदान का रिवाज है सो क्या मेरा चलाया हुआ है, मांस खाना माहुरी जाति की अदौ चाल है । यह जाति शाक्त है, शक्ति पूजा इसका मुख्य धर्म्म है ।)    (मामना॰67.15)  
6    अबर (महाजन - अच्छा जब तुम्हारी यही इच्छा है तो अबर वसन्त पंचमी में विद्यालय की नीवँ पड़ जायगी ।; जब तक लड़के को बीस वर्ष न होले, आपही कहिये कैसे करें ? खैर इस साल माफ करें । अबर साल तो जरूर करेंगे ।)    (मामना॰95.3; 96.8)  
7    आँख (~ में कान) (रतन चन्द - करम फूट गेले, अब बच के की करवे, एकठो आँख कान में लाल हले, सेऊ भगवान हर लेलका । एहीला बाबू के नै कर हलूं ।)    (मामना॰39.9-10)  
8    आंह-ऊंह (रास्ते में एक मोटे महाजन के तोंद से टकरा कर धम्मसा जमीन पर लुढ़क गया । अब लगे लोग हँसने । मैं तो कुढ़ गया । आखिर आंह ऊंह करते उठा और सड़क की राह ली ।)    (मामना॰79.20-21)  
9    आइन्दे (अब बहुत खराब हालत हो गेले, अगर सुधार के उपाय अभी से नै करल जैते तौ आइन्दे भारी नोकसान है ।)    (मामना॰48.19)  
10    आजिज (आप लोगों के इन आचरणों से मण्डल आजिज में आकर आप लोगों की तथा अपनी जाति भाइयों की भलाई समझ कर मण्डल से आप लोगों को यह सूचना दी जाती है कि आप लोग तीन वर्ष के लिये जाति से खारिज कर दिये गये ।)    (मामना॰74.10)  
11    आव (= आउ; और) (रेवाचन्द - जादे नरहनी चोख रहे हे, तो कोल्हू नै काटे । तोरा से जब एके गहकी नै पटौ तो आव की होतौ ।)    (मामना॰15.2)  
12    इ (= ई) (सेवा - बहुत सस्ता - चौदह आने, कह कै गज दियो । - ग्राहक - इ सब ढेल-फेकरउअल रहे द, ठीक-ठीक मोल कर ।)    (मामना॰17.9)  
13    ई (तीसरा माहुरी - हुः ई खूब कहलँ, अरे भाई अगर येही सब जब मरदाना के काम करते तो मरदाना मुआ कि घर में अण्डा पारता ?; चौथा माहुरी - अच्छा तोहिनही ढेर देर से बकबाद कर रहला ह, अब ई तो कह कि स्त्री शिक्षा कैसन देवे के चाही ।)    (मामना॰45.15; 46.18)  
14    एकर (ग्राहक - आप बात बनाव हे, लगे हई कि एकर करनी ए नै हई । मरदे १२ गज के इगारह गज नाप के औ कहे कुछ बीच प पड़लो की । देख तो वही कपड़वा हे जे हम पसन्द करलीयै हल ।)    (मामना॰18.7)  
15    एकरा (रेवा चन्द {डरता हुआ} नै जमादार साहिब, हम तो एकरा चिन्हवो नै कर हिय ।; बलाय से, कोई हमरा भला कहे या बुरा, हम अपन घर में भोज करके पाक हो जैबे । एकरा वास्ते गोतियारे रहे चाहे टूट जाय ।)    (मामना॰19.10; 38.4)  
16    एने (= एन्ने; इधर) (जब बड़के बड़के करे लगला तो हम्मर कौन गिनती । फेर एने से दक्खिन के माहुरी के रीत रहुरास कुछ कम नै हे ।)    (मामना॰27.20-21)  
17    एहू (= यह भी) (पाड़े जी - चू चे चो ला ली ले अस्वनी मेख रास, लड़का के नाम लालजी, हां - बहुत ठीक ! और लड़की के नाम तोहरा भले चू अच्छर एहू मेख रास खूब ठीक - {कुछ सोचकर) नाड़ी भकूट सब जेहे से बच जाहो जजमान ! चूक मत इ काम करे जुकुर हो ।)    (मामना॰28.8)
18    ऐना (शौक से चूर दुकान में ओकरा एक घण्टा तो जी चाप के बैठले नै जाहे । ऐना कँगही कभी हाथ से नै कर हे । पैसा तो ओकरा पास झिटकी हो गेल हे ।)    (मामना॰41.2)
19    ऐसन (= अइसन) (सेवा - हुः, ऊ की तो लेतै हल, ऊ सार मंगनी के माल खोजले चल हलौ, ९९१२ साढ़े सात आने लगाव हलौ ऐसन ऐसन लेवे लगै तो जगहा चाही । बाते बात में सार के तरवा के धूर कपार चढ़ हलै ।; रेवा चन्द - ऐ जी, ऐते हुज्जत के तो काम नै । अगर तोहरा पसन्द नै हो धरदा हम्मर कपड़ा, तोहरा ऐसन ऐसन ढेर गहकी आव हथ । महराज ! इन के वास्ते हमनही चोर ही ।)     (मामना॰14.17; 18.12)
20    ओं-ना-मा-सी-धं (से हमर जात में कोई बेश तरह से पढ़लो देख ह । ओं, ना मा सी धं आ गेले, कि माय बाप समझ गेला कि बस बहुत हो गेले ।)    (मामना॰41.11-12)
21    ओकर  (पाड़े जी - तो जजमान ! ऐते काहेला, तू हमरा सगुनवा दे दा । और वो हो देहो, हम जहां ओकर हत्था में पकड़ैलियै तो काम बनले बनावल हो, हमहूँ निश्चिन्त तू हूँ निश्चिन्त ।)    (मामना॰30.19)
22    ओकरा (पाड़े जी - दु चार वेस घर के चरचा हय । इन साल नन्हका के निवाह वहो नै ? - रतन चन्द - भला अभी कौन जुकुर हय । सरहो के धोती तो पेहेनवे नै कर हे । ई साल ओकरा कहीं नैं लगतै ।; पाड़े जी - जी अ, चिरञ्जवी होय जजमान ! - वृद्ध - रामू पाड़े जी के सरबत लाहुन, ओकरा में जरा गुलाब जल दे देमही ।)    (मामना॰26.11; 29.14)
23    ओदा (मोती चन्द - मनसा बाबू, हम्मर तो नाबे डूब गेलो । - मनसा राम - आखिर सुने भी तो क्या बात है । - घोंचू राम - इकी कहे पारत-सुनहे-हमरा से । हम सब ऐसन ठग के पाले परलिऔ कि नै कहे पारवो । "ओदा वद चूड़ा के भर भर गाल" के हाल हो लो । कुछ दिन तो सब माहुरी फोक्स साहब के यहां परकला ओहू साहब दस पन्दरह हजार लेके जे विलायत गेले ह अबतक पता नै ।)    (मामना॰25.4)
24    ओहू (लौण्डी - मरौ कहरन कने चल गेलै, ओहू सब छौड़ा पूतन ताड़ीये ला मरल रहे हे । हाय रे हाय ! बचवा अँधारे से एक दाना नै मुह में देलके ह ।)    (मामना॰34.8)
25    औ (= आउ; और) (घोंचू राम - तोरे देखा देखी साढ़े पाँच हजार के माल देलिऔ औ सब जेवर गहना खो बैठलिऔ ।; वृद्ध - अच्चा तो की करवो हो - ऐसन दुचार पाँच सौ केते आव जाहे, जाहो ठीक करहो । - पाड़े जी - औ हमरा नै कहल हो, कि दया होतै ?)    (मामना॰24.15; 30.3)
26    औकात (प्रचारक - यजमान ! चन्दा के तकादा हो, तोहर यही चैत के वादा हो । तोहरा वास्ते तीन रुपया नै कुछ जादा हो, मिलना चाहिये । - माहुरी - प्रचारक जी, भला हम्मर औकात भी देख हहे कि ऐसही बोल हे ।)    (मामना॰76.4)
27    औसान (= आसान) (रतनचन्द - अच्छा, लड़किया के टीपनवा रखले जा हो, पण्डित जी से देखलैवै न । - पाड़े जी - कोई हरज नै । जजमान ! एते केतो देखे हे । देख बाबू चमरू राम के सभापति दसवा अधिवेशन मिरजागंज के लेचकर पढ़वे करल होत कह हथ गनना कोई चीजे नै हे । बेस बात हे सब मिल के उठा द तो हमन ही के भी औसान हो जाय ।)    (मामना॰28.17)
28    कँगही (= कंघी) (शौक से चूर दुकान में ओकरा एक घण्टा तो जी चाप के बैठले नै जाहे । ऐना कँगही कभी हाथ से नै कर हे । पैसा तो ओकरा पास झिटकी हो गेल हे ।)    (मामना॰41.2)
29    कत्तीदार (~ पगड़ी) (मंत्री - नहीं, नहीं, आप उदास न हों, मण्डल आपके लिये सबसे पहिले लखनऊ की कत्तीदार पगड़ी स्वीकार कर चुकी है, {झँपे हुए तस्त से निकाल कर सिर पर रखते हैं} यह लीजिये, इसे मंजूर कीजिये ।)    (मामना॰101.11)
30    कनवां (= कनमा; सेर का सोलहवाँ हिस्सा) (नै पड़ता पड़ रहले ह तो अगूठा दाब के नाप ले गेली, गज के पन्दरह कनवां नापल जैतौ । ऐसन ऐसन बहुत हिकमत हे ।)    (मामना॰16.9)
31    कने (= कन्ने; किधर) (सेवा - राम राम ! कह कने किरपा करल हो । कुछ चाही भी ?; ग्राहक - चाही तो जरूरे मगर सावजी ! तबरी जे कपड़वा देल हो काहे तो छो गिरह घट गेलै ।; बालक - बबा, पाड़े जी ऐलथिन ह, बोलै ले अइयेन । वृद्ध - हां हां, कने हथुन, बोलाहुन बोलाहुन, पूछे के की काम हे ।)    (मामना॰16.11; 29.10)
32    कपार (सेवा - हुः, ऊ की तो लेतै हल, ऊ सार मंगनी के माल खोजले चल हलौ, 9912 साढ़े सात आने लगाव हलौ ऐसन ऐसन लेवे लगै तो जगहा चाही । बाते बात में सार के तरवा के धूर कपार चढ़ हलै ।)    (मामना॰14.18)
33    कहवैया (नै नै, जरूर हमनियो के सभा होवे के चाही, नै सभा होले से हमनही के इ दशा हे । जे जेकरा मन में आवे हे कर गुजरे हे । कोई कहवैया न सुनवैया । सभा चले चाहे नै चले जेतना दिन चलते सुधार हो जैते ।)    (मामना॰50.19)
34    कहिना (= कब) (वृद्ध - अच्छा तो फेर कहिना ऐब हो, जब तक लड़की हमरा घर में आ नै जैतो तब तक हमरा नीन्द नै ।)    (मामना॰30.16)
35    काम (वृद्ध - हां जरा धीरे बोलहो, कोई सुन लेतै तो भारी मोशकिल होते, जा हम कि तोहरा से बाहर हियो, हम्मर कम्मा तो जुटा दा ।)    (मामना॰30.5)
36    कि (= की; क्या) (घोंचू राम - आंरे झखुरिये, चिन्तामन बाबू के तोहूँ माल देलहे हल ? - झखुरी - हम तो भारी फरकट में परलिऔ । पहिले जे दू तीन खेप माल लेलकौ पहिलेई टकवें देलको । फेर तीन हजार जे लेके बैठलौ कि से आज तक एक पैसा नै । तोहूँ कुछ मुड़ैल कि - ?)    (मामना॰24.13)
37    किरपा (= कृपा) (सेवा - राम राम ! कह कने किरपा करल हो । कुछ चाही भी ?; ग्राहक - चाही तो जरूरे मगर सावजी ! तबरी जे कपड़वा देल हो काहे तो छो गिरह घट गेलै ।)    (मामना॰16.11)
38    किहाँ (= के यहाँ) (रतन चन्द - कहां के चरचा लैलहो ह । - पाड़े जी - वह नारायन राम के पोती नूरसराय । और एक चरचा दक्खिन के हो रेम्वा बाबू ढेहू राम किहाँ से । आज कल उन कर लेयाकत दू लाख से ऊँचा हैन । इ दूनू काम जेहे से खूब सरधा के हो ।; पांड़ेजी - अपनेही किहां ऐली हल, बाबू कृष्ण किशोर के चरचा है न ।)    (मामना॰27.14; 96:1)
39    की (= क्या) (रेवा चन्द - की रे सेवा, ऊ जे लमका मुरेठवा वाला गहकिया ऐलौ हल, कितना के कपड़ा लेलकौ हल ?; तोरा से जब एके गहकी नै पटौ तो आव की होतौ ।; बालक - बबा, पाड़े जी ऐलथिन ह, बोलै ले अइयेन । वृद्ध - हां हां, कने हथुन, बोलाहुन बोलाहुन, पूछे के की काम हे ।)    (मामना॰14.13; 15.2; 29.10)
40    केतो (= के तो, कौन तो) (सब सही, मगर हम्मर जतिया इ सब कुछ सुनतै, हियाँ केकर तो केतो सुने हे । घर में अप्पन चार बाप बेटा में बनवे नै करे, उन कर कहल केतो सुने हे ।)    (मामना॰49.12, 13)
41    खन्नास (गोपाल चन्द - खूब कहा ! ठीक है, जो महामूर्ख, पर घराने का हीन, ऐबदार, मा बाप से रहित अगर वह बुड्ढा खन्नास है, तो वह एक नहीं दो शादी शौक से कर ले सकता है । किन्तु हमारे ऐसे कुमार ही रह जाय !)    (मामना॰33.16)
42    खरमण्डल (लुकाठ चन्द - दवा हमारे पास है । जो तुमको एक कहे, उसको तुम दो कहो, जो तुम्हारा एक ऐब निकाले उसका तुम दस निकालो । अगर वह महामण्डल तय्यार करता है, तो तुम खरमण्डल तय्यार करो ।)    (मामना॰68.19)
43    खाय (= खाई; गड्ढा; खाना, भोजन) (कितनी कुरीतियों के पंजे में जा फँसे थे । उसको निकाल जाति उद्धार कर रहा है ॥6॥ सब धर्म्म कर्म्म पथ से विचलित ही हो चुके थे । अब तो सुधर्म्म का ही संचार कर रहा है ॥7॥ उन्नति शिखर से अवनति के खाय में गिरे थे । उपर निकालने का श्रम सार कर रहा है ॥8॥)    (मामना॰99.13)
44    खुद्दे (हां फेर कान्द हे, कान्दला से घुर ऐतौ । भूत की लगतो, इ सब बाल विवाह हिन्दुस्तान के तबाह कर देलके, ई फेर में हम खुद्दे पड़ल ही ।)    (मामना॰40.16)
45    खैरखाह (जो अपना ऐब न देखे, और दूसरे के ऐब को ढूँढ़ कर मजलिस में सुनावे, माहुरियों में वही खैर खाह मेम्बर है ।)    (मामना॰72.15)
46    खोचा (= खोंचा; हुरकोंचा; घुरपेटा) (मजाकी राम - तो भाई ! बात बात के पीछे यह जो माहुरी मण्डल खोचा लगाया करता है, उसकी दवा क्या है ? - लुकाठ चन्द - दवा हमारे पास है । जो तुमको एक कहे, उसको तुम दो कहो, जो तुम्हारा एक ऐब निकाले उसका तुम दस निकालो ।)    (मामना॰68.15)
47    गछना (पाड़े जी - हम तो बहुत धुन लगा रहलिऔ ह - मगर कोई गच्छौ तब न ? निसठा हाल कहिऔ ।)    (मामना॰32.6)
48    गण्डा (महाराज ! आप इसकी चिन्ता न करें, जब हम चलेंगे तो हमारे साथ आगे पीछे दहिने बायें सवा नौ गण्डे चेले चल पड़ेंगे ।)    (मामना॰65.2)
49    गत (= गति) (रतन चन्द - ठीक है, जे चार आदमी के कहल नै माने हे सेकर एही गत होवे हे ।; की जाने कैसन घर हले । कौन देवता भूत लग गेले जे हम इ गत में पहुँचलूं ।)    (मामना॰40.2; 12)
50    गन (रेवा चन्द - जा ह की नै, रुपै लेले चल हथ, एक पैसा नै मिलतो, जा नालिस कर गन ।)    (मामना॰19.3)
51    गनना (= गणना) (घर घराना में कोई हर्ज नै । लड़की भी मिडिल पास हे । अपने खुद चतुर ही, कहे के की काम हे । टीपन रखले जाही । गनना बहुत अच्छा बने हे ।)    (मामना॰96.17)
52    गहकी (रेवा चन्द - की रे सेवा, ऊ जे लमका मुरेठवा वाला गहकिया ऐलौ हल, कितना के कपड़ा लेलकौ हल ?; जादे नरहनी चोख रहे हे, तो कोल्हू नै काटे । तोरा से जब एके गहकी नै पटौ तो आव की होतौ ।)    (मामना॰14.14; 15.2)
53    गिटपिट (~ कतना) (दूसरा माहुरी - बात सही हे । चार अक्षर अङ्गरेजी पढ़ के गिटपिट करे आ गेला से कोई शिक्षिता नै हो जा हे ।)    (मामना॰46.1)
54    गिरह (= गिरही) (सेवा - राम राम ! कह कने किरपा करल हो । कुछ चाही भी ?; ग्राहक - चाही तो जरूरे मगर सावजी ! तबरी जे कपड़वा देल हो काहे तो छो गिरह घट गेलै ।)    (मामना॰16.12)
55    गिरही (= गिरह) (खैर धीरे-धीरे आ जैते । मगर ऊ तो नै आवे कि - चौदह गिरही पनहा गज भर कैसे कर देहहीं ।; ऐं रे - एचरा {? एकरा} में कौन सा अकिलमन्दी हे, सुन - चौदह गिरही के की करे के चाही कि गज के बामा चंगुल से दबा के दहिना हाँथ से पूना {? पूरा} गज भर कपड़ा देखला देवे के चाही !)    (मामना॰16.2, 5)
56    गोड़ (रतन चन्द - अहा ऐलहो पाड़े जी ! गोड़ लागी ।)    (मामना॰26.5)
57    गोतिया (झम्मन राम - हां भले मिलल, देख, मनसा बाबू, हमरा गोतिया चूल्हन राम के पुतहू के मरला आज डेढ़ बरस हो गेले एकरा भोज करे के फुरसते नै हे ।)    (मामना॰38.8)
58    गोतियारे (बलाय से, कोई हमरा भला कहे या बुरा, हम अपन घर में भोज करके पाक हो जैबे । एकरा वास्ते गोतियारे रहे चाहे टूट जाय ।; परसाल भी देखला, हमर लड़की रह गेले । इस साल भी रह जाय चाहे हे । कौन रंग से गोतियारे निवहे है ।)    (मामना॰38.4, 12)
59    गोवार (= ग्वाला, गोप) (हुआँ कि कहियो "गोप कान्फ्रेन्स" होलौ हल । मानो गोवार जाति के सभा । ऊ सभा में भारी भारी विद्वान लेक्चर दे हलथिन । पाँच छौ हजार रुपया जमा होलै । ऊ रुपैया से स्कूल खुलतै जेकरा में गरीब गोवार के लड़का पढ़ता ।)    (मामना॰49.4, 7)
60    घुरना (= लौटना) (रतन चन्द - करम फूट गेले, अब बच के की करवे, एकठो आँख कान में लाल हले, सेऊ भगवान हर लेलका । ... ब्रज लाल - जानिह कि हम्मर नै हले, अबकी रोला-धोला से घुर ऐतो ।; हां फेर कान्द हे, कान्दला से घुर ऐतौ । भूत की लगतो, इ सब बाल विवाह हिन्दुस्तान के तबाह कर देलके, ई फेर में हम खुद्दे पड़ल ही ।)    (मामना॰39.14; 40.14)
61    चच्चा (तुमको अपने पिता, चाचा, भाई आदि बड़ों को निरादर वाचक शब्दों से याने अहो ददा, अहो भइया, अहो चच्चा अथवा अरे फलनवा सम्बोधन करके पुकारना भारी असभ्यता है । जो शिक्षित जाति तुमलोगों को, कहां गेलही हो दद्दा, अवैं न हो चच्चा इत्यादि कहते सुनती है वह तुम्हारी हँसी उड़ाती है, अब से ऐसा कदापि न बोलो ।)    (मामना॰89.13)
62    चलना-उलना (मगर इ कह देहिओ, इ सब सभा उभा चलतो उलतो नै ।)    (मामना॰49.22)
63    चाभना (चबा-चबा कर खाना; चूसना) (यह माहुरी मण्डल का मेल, था मेरे बांये हाथ का खेल, मेरे प्रचार से सारा अत्याचार मिट गया, घूम-घाम कर कहीं चाभा माल, और कहीं क्या कहूं {धीरे से - मुँह बनाकर} पिट गया ।)    (मामना॰105.6)
64    चाभुक (= चाबुक) (न मालूम किस हरामजादे ने गाड़ीवान को इशारा कर दिया, उसने तान कर सड़ाक सड़ाक तीन चाभुक जमाया, जो ठीक आकर मेरी पीठ पर लगी ।)    (मामना॰80.5)
65    चाही (= चाहिए) (सेवा - हुः, ऊ की तो लेतै हल, ऊ सार मंगनी के माल खोजले चल हलौ, 9912 साढ़े सात आने लगाव हलौ ऐसन ऐसन लेवे लगै तो जगहा चाही । बाते बात में सार के तरवा के धूर कपार चढ़ हलै ।; अकिल होवे के चाही, गहकी पटावे के हजार हिकमत हे ।; ऐं रे - एचरा {? एकरा} में कौन सा अकिलमन्दी हे, सुन - चौदह गिरही के की करे के चाही कि गज के बामा चंगुल से दबा के दहिना हाँथ से पूना {? पूरा} गज भर कपड़ा देखला देवे के चाही !; सेवा - राम राम ! कह कने किरपा करल हो । कुछ चाही भी ?; ग्राहक - चाही तो जरूरे मगर सावजी ! तबरी जे कपड़वा देल हो काहे तो छो गिरह घट गेलै ।)    (मामना॰14.17; 15.18; 16.5, 11, 12)
66    चिन्हना (रेवा चन्द {डरता हुआ} नै जमादार साहिब, हम तो एकरा चिन्हवो नै कर हिय । - पुलिस - अच्छा, दुकान से उतरो तो हम तुम्हें चिन्हा देते हैं ।)    (मामना॰19.11)
67    चिन्हाना (रेवा चन्द {डरता हुआ} नै जमादार साहिब, हम तो एकरा चिन्हवो नै कर हिय । - पुलिस - अच्छा, दुकान से उतरो तो हम तुम्हें चिन्हा देते हैं ।)    (मामना॰19.12)
68    चोख (= तेज धार वाला, धारदार, पैना) (रेवाचन्द - जादे नरहनी चोख रहे हे, तो कोल्हू नै काटे । तोरा से जब एके गहकी नै पटौ तो आव की होतौ । हम रहतिये हल तो ऊ धोबिया के पाट देतिअइ हल कि ओहू सार जानता हल कि कोई दुकानदार से काम पटले ह । सीधा के आज कल जमाना है ?)    (मामना॰15.1)
69    छानी (पाड़े - बाबू ! आज कल जेकर छानी पर फूस नै हे सेउ बड़के घर ताके हे । बबुआ माहुरी के विबाह खाली पढ़ले से नै हो जाहे ।)    (मामना॰32.10)
70    छौड़ा (लौण्डी - मरौ कहरन कने चल गेलै, ओहू सब छौड़ा पूतन ताड़ीये ला मरल रहे हे । हाय रे हाय ! बचवा अँधारे से एक दाना नै मुह में देलके ह ।)    (मामना॰34.8)
71    जगहा (= जगह) (सेवा - हुः, ऊ की तो लेतै हल, ऊ सार मंगनी के माल खोजले चल हलौ, ९९१२ साढ़े सात आने लगाव हलौ ऐसन ऐसन लेवे लगै तो जगहा चाही । बाते बात में सार के तरवा के धूर कपार चढ़ हलै ।)    (मामना॰14.17)
72    जजमान (पाड़े जी - जय हो जजमान । - रतन चन्द - अहा ऐलहो पाड़े जी ! गोड़ लागी ।; तू जजमान ई कौन भरम में पड़ल ह । भला कह तो । ऐसन ऐसन काम जेहे से छोट कहाव हे ।; पाड़े जी - पसन्दे पसन्द जजमान जजमानी से हम्मर राय लेलहो । नन्हका मइया के हुआँ करे के बहुत दिन से हौसला हलैन ।)    (मामना॰26.4; 27.4, 9)
73    जजमानी (पाड़े जी - पसन्दे पसन्द जजमान जजमानी से हम्मर राय लेलहो । नन्हका मइया के हुआँ करे के बहुत दिन से हौसला हलैन ।; अच्छा तो चल, पहिले अप्पन गाँवे में एकर सभा करके तब हुआँ चलते चलिह ।)    (मामना॰27.9)
74    जन्नी (= औरत, स्त्री) (पहिला माहुरी - तो इ एकरा में तोरा की राय जँच हो ! कि जन्नी के पढ़ौला से अच्छा हे ?)    (मामना॰45.1)
75    जमाकड़ा  (कल सुना कि माहुरी मण्डल का जमाकड़ा जमा था । चार दिन के छोकड़े जिनको अभी सर होकर लँगोटी भी पहरने नहीं आती, लेक्चर झाड़ते हैं ।)    (मामना॰65.18)
76    जात (= जाति) (हां अब चलाना चाहिये, आज कल मण्डल की धूम है, कहीं कोई सुन ले तो मुश्किल होगा । क्योंकि आखिर जात का वारा है ।)    (मामना॰69.2)
77    जुकुर (पाड़े जी - दु चार वेस घर के चरचा हय । इन साल नन्हका के निवाह वहो नै ? - रतन चन्द - भला अभी कौन जुकुर हय । सरहो के धोती तो पेहेनवे नै कर हे । ई साल ओकरा कहीं नैं लगतै ।; नाड़ी भकूट सब जेहे से बच जाहो जजमान ! चूक मत इ काम करे जुकुर हो ।; नै नै इ सब नै बोले के चाही, मनसा बाबू के घर कुछ दूसे जुकुर नै हे । अगर सब माहुरी गौरी बाबू के ऐसन हो जाय तो दुनिया में माहुरी जाति के ऐसन कोई जाते नै ।)    (मामना॰26.10; 28.10; 50.9)
78    जेकर (= जिसका) (पाड़े - बाबू ! आज कल जेकर छानी पर फूस नै हे सेउ बड़के घर ताके हे । बबुआ माहुरी के विबाह खाली पढ़ले से नै हो जाहे ।)    (मामना॰32.10)
79    जेहेसे, जेहे से (पाड़े जी - बबुआ के बात, अब जेहेसे केकरा देख ह कि लड़का के बुढ़ाठ करके बिआह हे । ऐसने लड़का लड़की से जेहे से मड़वा के शोभा होव हे । जे काम निबह गेले से निबह गेले । जजमान ! छोट पर की जा ह । अच्छा काम धर ले रहे हे । देख कीरत राम सोह के लड़का जेहे से कै बरस के हले, परसाल हमी करैलू ह ।; तू जजमान ई कौन भरम में पड़ल ह । भला कह तो । ऐसन ऐसन काम जेहे से छोट कहाव हे ।; इ दूनू काम जेहे से खूब सरधा के हो ।; नाड़ी भकूट सब जेहे से बच जाहो जजमान ! चूक मत इ काम करे जुकुर हो ।; पाड़े जी - जुटले जुटल हय, हमरा तो खुश कर देहो, खैर दूसौ हि देहो, बड़ हैरान भी हो रहलियै ह । केतना दम पट्टी सेतो जेहेसे काम बनले ह ।; पाड़े जी - जजमान के बात, अजी हमनही के ऐही कामे हे परसाल झखुरी राम के जे होलैन, जेहेसे आज तक कोई जानलकै । ऐसन हमनही कौन साल नै दूएक काम कराव ही । माहुरी मण्डल होल करे ।)    (मामना॰26.12, 14, 17; 27.6, 16; 28.9; 30.9, 13)
80    झँपना (= ढँकना, छिपना) (मंत्री - नहीं, नहीं, आप उदास न हों, मण्डल आपके लिये सबसे पहिले लखनऊ की कत्तीदार पगड़ी स्वीकार कर चुकी है, (झँपे हुए तस्त से निकाल कर सिर पर रखते हैं) यह लीजिये, इसे मंजूर कीजिये ।)    (मामना॰101.12)
81    झका-झकी (वाहवा ! यह खूब ! किसी को ला, किसी को काफ, और हमारे साथ यह सूखा-साखा इनसाफ । मगर यह समझ लेना, यह मण्डल के नेताओं की लम्बी-चौड़ी बात सिर्फ हमारे जान और जिगर की करामत है । यह जो झका-झकी देखते हो, यह मेरे दम की रोशनी है ।)    (मामना॰101.8)
82    झखना (इ सब बाल विवाह हिन्दुस्तान के तबाह कर देलके, ई फेर में हम खुद्दे पड़ल ही । भाई जी ! लोग तो समझे हे कि हम बेटा बिआह के निश्चिन्त हो जाम, मगर होव हे उलटे । एक चिन्ता के जगह चौबीस सिर पर सवार हो जाहे । हमहूं शौख से दूनू बेटा के बिआहलू तहिना से झखते दिन जाहे ।)    (मामना॰40.20)
83    झवांना (= झमाना) (पढ़कर दोनों चिन्तित भाव से झवां कर बैठ जाते हैं ।)    (मामना॰74.17)
84    झिकटी (= झिटकी) (शौक से चूर दुकान में ओकरा एक घण्टा तो जी चाप के बैठले नै जाहे । ऐना कँगही कभी हाथ से नै कर हे । पैसा तो ओकरा पास झिटकी हो गेल हे ।)    (मामना॰41.3)
85    टण्ठ (भाई से झगड़ा और लड़के को लण्ठ, बइमानी की आदर औ बात बात में टण्ठ । मण्डल को चौपट औ कढुए {? कछुए} की चाल, अगर कोई बोले तो हप्प सा गाल ॥)    (मामना॰70.5)
86    टीपन (= जन्मकुण्डली) (रतन चन्द - कहां के चरचा लैलहो ह । - पाड़े जी - वह नारायन राम के पोती नूरसराय । और एक चरचा दक्खिन के हो रेम्वा बाबू ढेहू राम किहाँ से । ... रतन चन्द - ... अच्छा वेस, जाहो दू में जे तोहरा पसन्द हो ओ ठीक करहो । मगर रसिया वरनिया जरा वेस से देख लेब हो । - पाड़े जी - अच्छा जरा नन्हका के टिपनवा देखियै । {रतन चन्द टीपन लाकर देते हैं}; रतनचन्द - अच्छा, लड़किया के टीपनवा रखले जा हो, पण्डित जी से देखलैवै न ।; घर घराना में कोई हर्ज नै । लड़की भी मिडिल पास हे । अपने खुद चतुर ही, कहे के की काम हे । टीपन रखले जाही । गनना बहुत अच्छा बने हे ।)    (मामना॰28.4, 5, 11; 96.17)
87    टुनमुनिया (~ बच्चा) (नौका गुसांई के बहाने हाड़ मांस से जिह्वा गोसांई की पूजा करते थे । नन्हे टुनमुनिया बच्चे का विवाह कर उसकी किस्मत का घड़ा फोड़ते और आप सातवें आसमान पर चढ़ते थे ।)    (मामना॰70.20)
88    ढेर (= बहुत) (रेवा चन्द - ऐ जी, ऐते हुज्जत के तो काम नै । अगर तोहरा पसन्द नै हो धरदा हम्मर कपड़ा, तोहरा ऐसन ऐसन ढेर गहकी आव हथ । महराज ! इन के वास्ते हमनही चोर ही ।)    (मामना॰18.12)
89    ढेल-फेकरउअल (सेवा - बहुत सस्ता - चौदह आने, कह कै गज दियो । - ग्राहक - इ सब ढेल-फेकरउअल रहे द, ठीक-ठीक मोल कर ।)    (मामना॰17.9)
90    तकादा (माहुरी - अच्छा मिरा, केने ऐलहो, की इरादा हो ? - प्रचारक - यजमान ! चन्दा के तकादा हो, तोहर यही चैत के वादा हो । तोहरा वास्ते तीन रुपया नै कुछ जादा हो, मिलना चाहिये ।)    (मामना॰76.1)
91    तखनी (= उस समय; तखनिये = उसी समय) (लौण्डी - बचइह मोरा ! जान गेलो ! बड़ी मार बाप रे बाप । तखनिये कहलूं कि इ रस्ता नै जैबो ।)    (मामना॰35.18)
92    तबरी (सेवा - राम राम ! कह कने किरपा करल हो । कुछ चाही भी ?; ग्राहक - चाही तो जरूरे मगर सावजी ! तबरी जे कपड़वा देल हो काहे तो छो गिरह घट गेलै ।)    (मामना॰16.12)
93    तरवा (= तलवा) (सेवा - हुः, ऊ की तो लेतै हल, ऊ सार मंगनी के माल खोजले चल हलौ, 9912 साढ़े सात आने लगाव हलौ ऐसन ऐसन लेवे लगै तो जगहा चाही । बाते बात में सार के तरवा के धूर कपार चढ़ हलै ।)    (मामना॰14.18)
94    तस्त (= फा॰ तश्त; थाल, बड़ी थाली) (मंत्री - नहीं, नहीं, आप उदास न हों, मण्डल आपके लिये सबसे पहिले लखनऊ की कत्तीदार पगड़ी स्वीकार कर चुकी है, (झँपे हुए तस्त से निकाल कर सिर पर रखते हैं) यह लीजिये, इसे मंजूर कीजिये ।)    (मामना॰101.12)
95    तूहूँ (पाड़े जी - तो जजमान ! ऐते काहेला तू हमरा सगुनवा दे दा । और वो हो देहो, हम जहां ओकर हत्था में पकड़ैलियै तो काम बनले बनावल हो, हमहूँ निश्चिन्त तू हूँ निश्चिन्त ।)    (मामना॰30.20)
96    तोरा  (तोरा से जब एके गहकी नै पटौ तो आव की होतौ ।)    (मामना॰15.2)
97    तोहरा (रेवा चन्द - ऐ जी, ऐते हुज्जत के तो काम नै । अगर तोहरा पसन्द नै हो धरदा हम्मर कपड़ा, तोहरा ऐसन ऐसन ढेर गहकी आव हथ । महराज ! इन के वास्ते हमनही चोर ही ।; कोई शुभ काम करते हमरा दफा के नै बन है । हम तोहरा हियां जाय ला हलियो । तू कौनो तरह से समझा-बुझा के ओकरा भोजिया करा देहो ।)    (मामना॰18.11, 12; 38.17)
98    थोड़ेई (= थोड़े ही) (प्रचारक - मत दीजिये, कुछ भीख माँगने आये हैं थोड़ेई । "जो लगस्सी सो करस्सी चरस्सी चाहे न चरस्सी" मर गये, किस सूमड़े के मुँह देख कर उठे ये आज एक पैसा न मिला ।)    (मामना॰77.11)
99    ददा (परसाल कहलियै तो चल गेले चाईंबासा । फेर ऐले तो भी कह हे रुपये नै हे, कभी कह हे कि ददा के बीमारी में बझल ही, बस यही तरह एक न एक बहाना हरदम ।)    (मामना॰38.14)
100    दफा (कोई शुभ काम करते हमरा दफा के नै बन है । हम तोहरा हियां जाय ला हलियो । तू कौनो तरह से समझा-बुझा के ओकरा भोजिया करा देहो ।)    (मामना॰38.17)
101    दस्तन्दाजी (लुकाठ चन्द - हां तब और क्या ? मैं तुम से साफ कहे देता हूँ अगर मण्डल ने खाने पीने, मौज शौक में किसी तरह दस्तन्दाजी किया, तो इस मण्डल को सुरक जाउंगा ।)    (मामना॰68.13)
102    दहिना (= दाहिना) (ऐं रे - एचरा {? एकरा} में कौन सा अकिलमन्दी हे, सुन - चौदह गिरही के की करे के चाही कि गज के बामा चंगुल से दबा के दहिना हाँथ से पूना {? पूरा} गज भर कपड़ा देखला देवे के चाही !)    (मामना॰16.6)
103    दिहन्दा (सभापति - बहुत ठीक, तो लीजिये यह ना, दिहन्दों की फेहरिस्त । इन लोगों से चन्दे का रुपया तहसील कर शीघ्र भेजिये ।)    (मामना॰65.8)
104    दूसना (= दोष देना) (नै नै इ सब नै बोले के चाही, मनसा बाबू के घर कुछ दूसे जुकुर नै हे । अगर सब माहुरी गौरी बाबू के ऐसन हो जाय तो दुनिया में माहुरी जाति के ऐसन कोई जाते नै ।)     (मामना॰50.9)
105    देखादेखी (घोंचू राम - तोरे देखा देखी साढ़े पाँच हजार के माल देलिऔ औ सब जेवर गहना खो बैठलिऔ ।)    (मामना॰24.14)
106    दोवाह (पांड़ेजी - आश्चर्य्य हे, पहिले बारह ही वर्ष में लड़कन दोवाह हो जा हला । अब बीसो बरस हो गेला पर माय बाप के फिकिर नयह । जब से मण्डल होलेह, कोइ सोलह बरस के पहिले तो वियाह के चरचे नै करे हे ।)    (मामना॰96.10)
107    धम्मसा (= धम से) (रास्ते में एक मोटे महाजन के तोंद से टकरा कर धम्मसा जमीन पर लुढ़क गया । अब लगे लोग हँसने । मैं तो कुढ़ गया । आखिर आंह ऊंह करते उठा और सड़क की राह ली ।)    (मामना॰79.19)
108    धूम-धमार (मंत्री जी ! प्रचार तो वह हो रहा है जिसका नाम, घर-द्वार गली बाजार जिधर घूमता हूँ माहुरी मण्डल ही की धूम धमार है । थोड़े ही दिनों में यह जाति पुनिया के चाँद सी चमकने लगी ।)    (मामना॰80.21)
109    धूर (= धूलि) (सेवा - हुः, ऊ की तो लेतै हल, ऊ सार मंगनी के माल खोजले चल हलौ, 9912 साढ़े सात आने लगाव हलौ ऐसन ऐसन लेवे लगै तो जगहा चाही । बाते बात में सार के तरवा के धूर कपार चढ़ हलै ।)    (मामना॰14.18)
110    नद्दी (= नदी) (लौण्डी - नै मायँ, इ रस्तवा कायम गंज के नै हय, कायम गंज के रस्तवा एक नद्दी लगै हय ।)    (मामना॰34.3)
111    नन्हका (पाड़े जी - दु चार वेस घर के चरचा हय । इन साल नन्हका के निवाह वहो नै ?; पाड़े जी - पसन्दे पसन्द जजमान जजमानी से हम्मर राय लेलहो । नन्हका मइया के हुआँ करे के बहुत दिन से हौसला हलैन ।; पाड़े जी - अच्छा जरा नन्हका के टिपनवा देखियै । {रतन चन्द टीपन लाकर देते हैं})    (मामना॰26.8; 27.10; 28.4)
112    नरहनी (रेवाचन्द - जादे नरहनी चोख रहे हे, तो कोल्हू नै काटे । तोरा से जब एके गहकी नै पटौ तो आव की होतौ । हम रहतिये हल तो ऊ धोबिया के पाट देतिअइ हल कि ओहू सार जानता हल कि कोई दुकानदार से काम पटले ह । सीधा के आज कल जमाना है ?)    (मामना॰15.1)
113    निवाहना (= विवाह करना) (पाड़े जी - दु चार वेस घर के चरचा हय । इन साल नन्हका के निवाह वहो नै ?)    (मामना॰26.9)
114    निश्चिन्त (पाड़े जी - तो जजमान ! ऐते काहेला तू हमरा सगुनवा दे दा । और वो हो देहो, हम जहां ओकर हत्था में पकड़ैलियै तो काम बनले बनावल हो, हमहूँ निश्चिन्त तू हूँ निश्चिन्त ।; भाई जी ! लोग तो समझे हे कि हम बेटा बिआह के निश्चिन्त हो जाम, मगर होव हे उलटे । एक चिन्ता के जगह चौबीस सिर पर सवार हो जाहे ।)    (मामना॰30.20, 21; 40.17)
115    निसठा (पाड़े जी - हम तो बहुत धुन लगा रहलिऔ ह - मगर कोई गच्छौ तब न ? निसठा हाल कहिऔ ।)    (मामना॰32.7)
116    नै  (= नयँ, नहीं) (रेवाचन्द - जादे नरहनी चोख रहे हे, तो कोल्हू नै काटे । तोरा से जब एके गहकी नै पटौ तो आव की होतौ ।; कर चुकल सारे दूकान दारी, लूरे नै हो, तो दूकान पर काहेला बैठलँ हँ ?; की नै लूर हय जरा सुनियै भी तो ।; सुन, आज कल सचाई के जमाना नै हे ।)    (मामना॰15.1, 7, 9, 10)
117    नैं (= नै, नञ, नहीं) (पाड़े जी - दु चार वेस घर के चरचा हय । इन साल नन्हका के निवाह वहो नै ? - रतन चन्द - भला अभी कौन जुकुर हय । सरहो के धोती तो पेहेनवे नै कर हे । ई साल ओकरा कहीं नैं लगतै ।)    (मामना॰26.10)
118    नोकसानी (अब बहुत खराब हालत हो गेले, अगर सुधार के उपाय अभी से नै करल जैते तौ आइन्दे भारी नोकसान है ।)    (मामना॰48.20)
119    नौका गुसांई (नौका गुसांई के बहाने हाड़ मांस से जिह्वा गोसांई की पूजा करते थे ।)    (मामना॰70.19)
120    नौका गोसांई (लुकाठ चन्द - तब क्या ? कोई कुल के चाल को भी उठा देगा । यह नौका गोसाईं, सीरा पिण्डा, शादी विवाह में बलि प्रदान का रिवाज है सो क्या मेरा चलाया हुआ है, मांस खाना माहुरी जाति की अदौ चाल है । यह जाति शाक्त है, शक्ति पूजा इसका मुख्य धर्म्म है ।; नौका गुसांई के बहाने हाड़ मांस से जिह्वा गोसांई की पूजा करते थे ।)    (मामना॰67.13; 70.19)
121    पड़ता (= परता; दर जो उत्पादन व्यय, खरीद मूल्य से अधिक हो; लाभदायक दर; बिक्री का मुनाफा सहित लागत; भाव, जिसमें लाभ हो) (नै पड़ता पड़ रहले ह तो अगूठा दाब के नाप ले गेली, गज के पन्दरह कनवां नापल जैतौ । ऐसन ऐसन बहुत हिकमत हे ।; सेवा - खैर पड़ता तो नै हो, मगर ला तोहरा दे देहियो ।)    (मामना॰16.8; 17.17)
122    पनहा (= धोती, साड़ी, कपड़ा आदि की चौड़ाई; ओसार, अरज; चोर द्वारा चुराए अथवा बभधक व्यक्ति, पशु या वस्तु आदि को वापस करने का शुल्क; फिरौती; चोरी आदि का पता रखनेवाला, चोर का सोरहिया) (खैर धीरे-धीरे आ जैते । मगर ऊ तो नै आवे कि - चौदह गिरही पनहा गज भर कैसे कर देहहीं ।; रेवाचन्द - {दूसरा कपड़ा दिखलाते हुए} हां - देख तो कैसन मुराई के बोकला, डबल पनहा नया चालान के माल हो ।)    (मामना॰16.2; 17.2)
123    परकना (मोती चन्द - मनसा बाबू, हम्मर तो नाबे डूब गेलो । - मनसा राम - आखिर सुने भी तो क्या बात है । - घोंचू राम - इकी कहे पारत-सुनहे-हमरा से । हम सब ऐसन ठग के पाले परलिऔ कि नै कहे पारवो । "ओदा वद चूड़ा के भर भर गाल" के हाल हो लो । कुछ दिन तो सब माहुरी फोक्स साहब के यहां परकला ओहू साहब दस पन्दरह हजार लेके जे विलायत गेले ह अबतक पता नै ।)    (मामना॰25.6)
124    परना (= पड़ना) (मोती चन्द - मनसा बाबू, हम्मर तो नाबे डूब गेलो । - मनसा राम - आखिर सुने भी तो क्या बात है । - घोंचू राम - इकी कहे पारत-सुनहे-हमरा से । हम सब ऐसन ठग के पाले परलिऔ कि नै कहे पारवो । "ओदा वद चूड़ा के भर भर गाल" के हाल हो लो । कुछ दिन तो सब माहुरी फोक्स साहब के यहां परकला ओहू साहब दस पन्दरह हजार लेके जे विलायत गेले ह अबतक पता नै ।)    (मामना॰25.4)
125    पाट (धोबिया के ~) (रेवाचन्द - जादे नरहनी चोख रहे हे, तो कोल्हू नै काटे । तोरा से जब एके गहकी नै पटौ तो आव की होतौ । हम रहतिये हल तो ऊ धोबिया के पाट देतिअइ हल कि ओहू सार जानता हल कि कोई दुकानदार से काम पटले ह । सीधा के आज कल जमाना है ?)    (मामना॰15.3)
126    पानी (~ पाना) (रतन चन्द - ठीक है, जे चार आदमी के कहल नै माने हे सेकर एही गत होवे हे । आज तीनो बरस बिआहला नै होले । दूनू बेटा पुतोह से हाथ धो बैठलूं । परसाल पानी पौते पुतोहू गेले, बुझलू हल कि बेटा हे तो पुतहू ऐते देरी नै लगते ।)    (मामना॰40.4)
127    पारना (अण्डा ~) (तीसरा माहुरी - हुः ई खूब कहलँ, अरे भाई अगर येही सब जब मरदाना के काम करते तो मरदाना मुआ कि घर में अण्डा पारता ?)    (मामना॰45.17)
128    पारना (कहे ~) (मोती चन्द - मनसा बाबू, हम्मर तो नाबे डूब गेलो । - मनसा राम - आखिर सुने भी तो क्या बात है । - घोंचू राम - इकी कहे पारत-सुनहे-हमरा से । हम सब ऐसन ठग के पाले परलिऔ कि नै कहे पारवो । "ओदा वद चूड़ा के भर भर गाल" के हाल हो लो । कुछ दिन तो सब माहुरी फोक्स साहब के यहां परकला ओहू साहब दस पन्दरह हजार लेके जे विलायत गेले ह अबतक पता नै ।)    (मामना॰25.3, 4)
129    पुतहू (रतन चन्द - ठीक है, जे चार आदमी के कहल नै माने हे सेकर एही गत होवे हे । आज तीनो बरस बिआहला नै होले । दूनू बेटा पुतोह से हाथ धो बैठलूं । परसाल पानी पौते पुतोहू गेले, बुझलू हल कि बेटा हे तो पुतहू ऐते देरी नै लगते ।)    (मामना॰40.4)
130    पुतोह (रतन चन्द - ठीक है, जे चार आदमी के कहल नै माने हे सेकर एही गत होवे हे । आज तीनो बरस बिआहला नै होले । दूनू बेटा पुतोह से हाथ धो बैठलूं । परसाल पानी पौते पुतोहू गेले, बुझलू हल कि बेटा हे तो पुतहू ऐते देरी नै लगते ।)    (मामना॰40.3)
131    पुतोहू (रतन चन्द - ठीक है, जे चार आदमी के कहल नै माने हे सेकर एही गत होवे हे । आज तीनो बरस बिआहला नै होले । दूनू बेटा पुतोह से हाथ धो बैठलूं । परसाल पानी पौते पुतोहू गेले, बुझलू हल कि बेटा हे तो पुतहू ऐते देरी नै लगते ।)    (मामना॰40.4)
132    पेहेनना (= पेन्हना; पहनना) (पाड़े जी - दु चार वेस घर के चरचा हय । इन साल नन्हका के निवाह वहो नै ? - रतन चन्द - भला अभी कौन जुकुर हय । सरहो के धोती तो पेहेनवे नै कर हे । ई साल ओकरा कहीं नैं लगतै ।)    (मामना॰26.11)
133    फका-फकी (अगर माहुरी मण्डल चल गया तो सारे मजे किरकिरे हो जायँगे । अब ही कुछ ही दिनों से तो बिचारे माहुरी प्याजी खुशबू से दिमाग तर कर रहे थे । सिक्रेट की फका फकी से इञ्जन को भी मात करने लगे थे । नौका गुसांई के बहाने हाड़ मांस से जिह्वा गोसांई की पूजा करते थे ।)    (मामना॰70.18)
134    फजीहत (हम हूँ तो नै जानियै कि कौन रास्ता कने गेलै ह, गाड़िया छूट गेला से न, इ फजीहत में पड़ल, नै तो काहे ऐसन होतै हल ।)    (मामना॰34.6)
135    फरकट (घोंचू राम - आंरे झखुरिये, चिन्तामन बाबू के तोहूँ माल देलहे हल ? - झखुरी - हम तो भारी फरकट में परलिऔ । पहिले जे दू तीन खेप माल लेलकौ पहिलेई टकवें देलको । फेर तीन हजार जे लेके बैठलौ कि से आज तक एक पैसा नै । तोहूँ कुछ मुड़ैल कि - ?)    (मामना॰24.10)
136    फरहर (इ जे घर पीछे दू-एक विधवा देख रहला ह से सब बाल विवाह के फसाद हो । माहुरी में कोई फरहर लड़का नै देख इ भी बाले विवाह के बदौलत । करल की जाहे ।)    (मामना॰41.8)
137    फलना (तुमको अपने पिता, चाचा, भाई आदि बड़ों को निरादर वाचक शब्दों से याने अहो ददा, अहो भइया, अहो चच्चा अथवा अरे फलनवा सम्बोधन करके पुकारना भारी असभ्यता है । जो शिक्षित जाति तुमलोगों को, कहां गेलही हो दद्दा, अवैं न हो चच्चा इत्यादि कहते सुनती है वह तुम्हारी हँसी उड़ाती है, अब से ऐसा कदापि न बोलो ।)    (मामना॰89.14)
138    फाजिल (ग्राहक – १२ गज मारकीन लेवै, जरा अच्छा देख के निकाल हो उ । – रेवा चन्द - निकाल देहुन, ९५३५ बढ़ीया कपड़ा है न, दु पैसा फाजिल लगतैन, कोई दिन रह जैतन ।)    (मामना॰16.19)
139    फेर (= फिर) (घोंचू राम - आंरे झखुरिये, चिन्तामन बाबू के तोहूँ माल देलहे हल ? - झखुरी - हम तो भारी फरकट में परलिऔ । पहिले जे दू तीन खेप माल लेलकौ पहिलेई टकवें देलको । फेर तीन हजार जे लेके बैठलौ कि से आज तक एक पैसा नै । तोहूँ कुछ मुड़ैल कि - ?; जब बड़के बड़के करे लगला तो हम्मर कौन गिनती । फेर एने से दक्खिन के माहुरी के रीत रहुरास कुछ कम नै हे ।; वृद्ध - अच्छा तो फेर कहिना ऐब हो, जब तक लड़की हमरा घर में आ नै जैतो तब तक हमरा नीन्द नै ।)    (मामना॰24.11; 27.20; 30.16)
140    बकबाद (= बकवास) (चौथा माहुरी - अच्छा तोहिनही ढेर देर से बकबाद कर रहला ह, अब ई तो कह कि स्त्री शिक्षा कैसन देवे के चाही ।)    (मामना॰46.18)
141    बझना (परसाल कहलियै तो चल गेले चाईंबासा । फेर ऐले तो भी कह हे रुपये नै हे, कभी कह हे कि ददा के बीमारी में बझल ही, बस यही तरह एक न एक बहाना हरदम ।)    (मामना॰38.14)
142    बनाव (भाई-भाई में बेटे बाप में चचा भतीजे में, स्त्री पुरुष में याने जिधर देखता हूँ एक से दूसरे को बनाव नहीं ।)    (मामना॰51.17)
143    बबा (= बाबा) (बालक - बबा, पाड़े जी ऐलथिन ह, बोलै ले अइयेन । वृद्ध - हां हां, कने हथुन, बोलाहुन बोलाहुन, पूछे के की काम हे ।)    (मामना॰29.9)
144    बरबराना (= बड़बड़ाना) (भाई मनसा राम ! यह क्या खुद ब खुद बरबरा रहे हौ । बेफाइदे दूसरे की फिक्र अपने माथे मढ़ाते हो, मुरदा दोजख जाय या बिहिस्त, तुमको इस से क्या मतलब ।)    (मामना॰52.10)
145    बात (रतन चन्द - भला अभी कौन जुकुर हय । सरहो के धोती तो पेहेनवे नै कर हे । ई साल ओकरा कहीं नैं लगतै । - पाड़े जी - बबुआ के बात, अब जेहेसे केकरा देख ह कि लड़का के बुढ़ाठ करके बिआह हे । ऐसने लड़का लड़की से जेहे से मड़वा के शोभा होव हे । जे काम निबह गेले से निबह गेले ।; पाड़े जी - जजमान के बात, अजी हमनही के ऐही कामे हे परसाल झखुरी राम के जे होलैन, जेहेसे आज तक कोई जानलकै । ऐसन हमनही कौन साल नै दूएक काम कराव ही । माहुरी मण्डल होल करे ।)    (मामना॰26.12; 30.12)
146    बामा (= बायाँ) (ऐं रे - एचरा {? एकरा} में कौन सा अकिलमन्दी हे, सुन - चौदह गिरही के की करे के चाही कि गज के बामा चंगुल से दबा के दहिना हाँथ से पूना {? पूरा} गज भर कपड़ा देखला देवे के चाही !)    (मामना॰16.5)
147    बिआहना (पाड़े जी - बबुआ के बात, अब जेहेसे केकरा देख ह कि लड़का के बुढ़ाठ करके बिआह हे । ऐसने लड़का लड़की से जेहे से मड़वा के शोभा होव हे । जे काम निबह गेले से निबह गेले ।)     (मामना॰26.13)
148    बीच (~ पड़ना) (ग्राहक - ऐं हो सेवा - तोरा केकरो ठके के नै हलौ तो हमहीं हलिओ । - दुकानदार सेवा - की हलौ, कुछ पड़लो की । - ग्राहक - आप बात बनाव हे, लगे हई कि एकर करनी ए नै हई । मरदे १२ गज के इगारह गज नाप के औ कहे कुछ बीच प पड़लो की । देख तो वही कपड़वा हे जे हम पसन्द करलीयै हल ।)    (मामना॰18.6, 9)
149    बुढ़ाठ (रतन चन्द - भला अभी कौन जुकुर हय । सरहो के धोती तो पेहेनवे नै कर हे । ई साल ओकरा कहीं नैं लगतै । - पाड़े जी - बबुआ के बात, अब जेहेसे केकरा देख ह कि लड़का के बुढ़ाठ करके बिआह हे । ऐसने लड़का लड़की से जेहे से मड़वा के शोभा होव हे । जे काम निबह गेले से निबह गेले ।)    (मामना॰26.13)
150    बुतरू (ब्रज लाल - रतन, बुतरू ऐसन कर ह, एहू अपन हाथ के अख्तियार हे, जे भगवान के मंजूर हलो, होलो ।)    (मामना॰39.17)
151    बोकला (रेवाचन्द - {दूसरा कपड़ा दिखलाते हुए} हां - देख तो कैसन मुराई के बोकला, डबल पनहा नया चालान के माल हो ।)    (मामना॰17.2)
152    भकूट (पाड़े जी - चू चे चो ला ली ले अस्वनी मेख रास, लड़का के नाम लालजी, हां - बहुत ठीक ! और लड़की के नाम तोहरा भले चू अच्छर एहू मेख रास खूब ठीक - {कुछ सोचकर) नाड़ी भकूट सब जेहे से बच जाहो जजमान ! चूक मत इ काम करे जुकुर हो ।)    (मामना॰28.9)
153    भड़सार (माहुरी - कि अभी चन्दा देवो, इ साल भड़सार में जे घटी लगल ह जीए जाने हे, सूता के दर उतर गेला से तीन हजार के फेर में हियो, औ सभा तभा की होतो हमरा अखने मण्डले सूझो हो ?)    (मामना॰77.7)
154    मंगनी (सेवा - हुः, ऊ की तो लेतै हल, ऊ सार मंगनी के माल खोजले चल हलौ, ९९१२ साढ़े सात आने लगाव हलौ ऐसन ऐसन लेवे लगै तो जगहा चाही । बाते बात में सार के तरवा के धूर कपार चढ़ हलै ।)    (मामना॰14.15)
155    मइयो (बुड्ढी - बाप रे बाप, इ की भेलै गे माँइँ, छोड़ दे, हमर जान छोड़ दे, दौड़िह जी लेताहर बाबू, मरलूं गे मइयो ।; लौण्डी - अगे मइयो गे मइयो, निकाल बेटी निकाल गहनवा, अब नै जान बचतौ ।)    (मामना॰35.6,11)
156    मड़बा (गोपाल चन्द - तब और क्या कुछ उमर ज्यादे है । या या पढ़े नहीं है । सिर्फ पिता नहीं है तो इस से क्या ? इन्ट्रेस की परीक्षा दे चुके । घर ही में मड़बा बांधेगे ।)    (मामना॰32.18)
157    मरकच्चो (राम के भतीजा के परसाल मरकच्चो में होलैन । कै बरस के ह्लै सरहो के सात बरस भी नै लगलै हल ।)    (मामना॰27.3)
158    महराज (=महरज; महाराज) (रेवा चन्द - ऐ जी, ऐते हुज्जत के तो काम नै । अगर तोहरा पसन्द नै हो धरदा हम्मर कपड़ा, तोहरा ऐसन ऐसन ढेर गहकी आव हथ । महराज ! इन के वास्ते हमनही चोर ही ।; ग्राहक - काहे महराज ! हमर रुपैया देवे के मन नै हो की ?)    (मामना॰18.13; 19.1)
159    माँइँ (= मायँ) (बुड्ढी - बाप रे बाप, इ की भेलै गे माँइँ, छोड़ दे, हमर जान छोड़ दे, दौड़िह जी लेताहर बाबू, मरलूं गे मइयो ।)    (मामना॰35.6)
160    माड़ी (रेवाचन्द - {दूसरा कपड़ा दिखलाते हुए} हां - देख तो कैसन मुराई के बोकला, डबल पनहा नया चालान के माल हो । ... रेवाचन्द - एकरो से अच्छा चाही, तो य देख, कैसन अच्छा हो, जरा सा माड़ी नै, पानी बांध के चलल जा ।)    (मामना॰17.6)
161    मायँ (लौण्डी - नै मायँ, इ रस्तवा कायम गंज के नै हय, कायम गंज के रस्तवा एक नद्दी लगै हय ।)    (मामना॰34.2)
162    मारकीन (एकरा अलावे और भी बहुत सा हिकमत है, जैसे जादे दाम वाला मारकीन के अचरा नम्बर वाला दु चार गज फाड़ के, कम दाम वाला मारकीन में लगा देली और गहकी से आने दू आने गज फायदा उठा लेली ।; ग्राहक - 12 गज मारकीन लेवै, जरा अच्छा देख के निकाल हो उ । -  रेवा चन्द - निकाल देहुन, 9535 बढ़ीया कपड़ा है न, दु पैसा फाजिल लगतैन, कोई दिन रह जैतन ।)     (मामना॰15.13)
163    मिजान (माहुरी मसगुल हो कर बही के मिजान देने में मस्त है ।)    (मामना॰76.16)
164    मिरा (= मीरा) (माहुरी - अच्छा मिरा, केने ऐलहो, की इरादा हो ? - प्रचारक - यजमान ! चन्दा के तकादा हो, तोहर यही चैत के वादा हो । तोहरा वास्ते तीन रुपया नै कुछ जादा हो, मिलना चाहिये ।)    (मामना॰75.18)
165    मीरा (= मीर; स्वामी, मालिक) (की कहियो, वह भागलो, बड़ी मार मीरा ! {रोती है} कहां से ऐबो करलूं ।; इ की कहथुन - सुन, जैसे इ गेला, तीन चोपर बड़का बड़का लाठी लेके ऐलो, तीन लाठी तो खटोलिया पर मारलको और तीन चार लाठी हमरा, कहे जेवर लाव, रुपया लाव, मिठाई लाव, हम कहलिये जान छोर दे इतने में तोहनी अइल, आव तो कुछ नै लेवे सकलो मिठइया सब ले गेलो मीरा ।)    (मामना॰36.13)
166    मुराई (रेवाचन्द - {दूसरा कपड़ा दिखलाते हुए} हां - देख तो कैसन मुराई के बोकला, डबल पनहा नया चालान के माल हो ।)    (मामना॰17.1)
167    मुरेठा (रेवा चन्द - की रे सेवा, ऊ जे लमका मुरेठवा वाला गहकिया ऐलौ हल, कितना के कपड़ा लेलकौ हल ?)    (मामना॰14.13)
168    मेख (= मेष) (पाड़े जी - चू चे चो ला ली ले अस्वनी मेख रास, लड़का के नाम लालजी, हां - बहुत ठीक ! और लड़की के नाम तोहरा भले चू अच्छर एहू मेख रास खूब ठीक - {कुछ सोचकर) नाड़ी भकूट सब जेहे से बच जाहो जजमान ! चूक मत इ काम करे जुकुर हो ।)    (मामना॰28.6, 8)
169    य (= ये; ई) (रेवाचन्द - एकरो से अच्छा चाही, तो य देख, कैसन अच्छा हो, जरा सा माड़ी नै, पानी बांध के चलल जा ।)    (मामना॰17.5)
170    रहुरास (जब बड़के बड़के करे लगला तो हम्मर कौन गिनती । फेर एने से दक्खिन के माहुरी के रीत रहुरास कुछ कम नै हे ।)    (मामना॰27.21)
171    रास (= राशि) (रतन चन्द - कहां के चरचा लैलहो ह । - पाड़े जी - वह नारायन राम के पोती नूरसराय । और एक चरचा दक्खिन के हो रेम्वा बाबू ढेहू राम किहाँ से । ... रतन चन्द - ... अच्छा वेस, जाहो दू में जे तोहरा पसन्द हो ओ ठीक करहो । मगर रसिया वरनिया जरा वेस से देख लेब हो । - पाड़े जी - अच्छा जरा नन्हका के टिपनवा देखियै । {रतन चन्द टीपन लाकर देते हैं); पाड़े जी - चू चे चो ला ली ले अस्वनी मेख रास, लड़का के नाम लालजी, हां - बहुत ठीक !;  )    (मामना॰28.2, 6, 8)
172    रीत-रहुरास (जब बड़के बड़के करे लगला तो हम्मर कौन गिनती । फेर एने से दक्खिन के माहुरी के रीत रहुरास कुछ कम नै हे ।)    (मामना॰27.20-21)
173    लण्ठ (भाई से झगड़ा और लड़के को लण्ठ, बइमानी की आदर औ बात बात में टण्ठ । मण्डल को चौपट औ कढुए {? कछुए} की चाल, अगर कोई बोले तो हप्प सा गाल ॥)    (मामना॰70.4)
174    लमका (रेवा चन्द - की रे सेवा, ऊ जे लमका मुरेठवा वाला गहकिया ऐलौ हल, कितना के कपड़ा लेलकौ हल ?)    (मामना॰14.13)
175    लवण्डर (शौक से चूर दुकान में ओकरा एक घण्टा तो जी चाप के बैठले नै जाहे । ऐना कँगही कभी हाथ से नै कर हे । पैसा तो ओकरा पास झिटकी हो गेल हे । कभी तेल फुलेल, कभी अतर, कभी लवण्डर, कभी साबुन ।)    (मामना॰41.4)
176    लिवड़ी (= लिबड़ी; कपड़ा-लत्ता) (तों कि ठगैले - हमर तो लिवड़ी वर्तन सब चौपट हो गेलौ । अब करम के नाम झक्ख हिऔ ।)    (मामना॰24.16)
177    लूर (कर चुकल सारे दूकान दारी, लूरे नै हो, तो दूकान पर काहेला बैठलँ हँ ?; की नै लूर हय जरा सुनियै भी तो ।)    (मामना॰15.7, 9)
178    लेचकर (= लेक्चर) (रतनचन्द - अच्छा, लड़किया के टीपनवा रखले जा हो, पण्डित जी से देखलैवै न । - पाड़े जी - कोई हरज नै । जजमान ! एते केतो देखे हे । देख बाबू चमरू राम के सभापति दसवा अधिवेशन मिरजागंज के लेचकर पढ़वे करल होत कह हथ गनना कोई चीजे नै हे । बेस बात हे सब मिल के उठा द तो हमन ही के भी औसान हो जाय ।)    (मामना॰28.15)
179    लेताहर (बुड्ढी - बाप रे बाप, इ की भेलै गे माँइँ, छोड़ दे, हमर जान छोड़ दे, दौड़िह जी लेताहर बाबू, मरलूं गे मइयो ।; एक ओर से मनसा राम दूसरी तरफ से लेताहर कहारों को लेकर आता है । बदमास लोग भागते हैं ।; क्या कहें - हम लेताहर आये थे, यह लड़की नूरसराय की है । कायम गंज जा रही है ।)    (मामना॰35.7, 14; 36.4)
180    लेयाकत (= लियाकत) (रतन चन्द - कहां के चरचा लैलहो ह । - पाड़े जी - वह नारायन राम के पोती नूरसराय । और एक चरचा दक्खिन के हो रेम्वा बाबू ढेहू राम किहाँ से । आज कल उन कर लेयाकत दू लाख से ऊँचा हैन । इ दूनू काम जेहे से खूब सरधा के हो ।)    (मामना॰27.15)
181    वरन (= वर्ण) (रतन चन्द - कहां के चरचा लैलहो ह । - पाड़े जी - वह नारायन राम के पोती नूरसराय । और एक चरचा दक्खिन के हो रेम्वा बाबू ढेहू राम किहाँ से । ... रतन चन्द - ... अच्छा वेस, जाहो दू में जे तोहरा पसन्द हो ओ ठीक करहो । मगर रसिया वरनिया जरा वेस से देख लेब हो । - पाड़े जी - अच्छा जरा नन्हका के टिपनवा देखियै । {रतन चन्द टीपन लाकर देते हैं))    (मामना॰28.2)
182    वारा (हां अब चलाना चाहिये, आज कल मण्डल की धूम है, कहीं कोई सुन ले तो मुश्किल होगा । क्योंकि आखिर जात का वारा है ।)    (मामना॰69.2)
183    वेस (~ से = अच्छी तरह) (रतन चन्द - कहां के चरचा लैलहो ह । - पाड़े जी - वह नारायन राम के पोती नूरसराय । और एक चरचा दक्खिन के हो रेम्वा बाबू ढेहू राम किहाँ से । ... रतन चन्द - ... अच्छा वेस, जाहो दू में जे तोहरा पसन्द हो ओ ठीक करहो । मगर रसिया वरनिया जरा वेस से देख लेब हो । - पाड़े जी - अच्छा जरा नन्हका के टिपनवा देखियै । {रतन चन्द टीपन लाकर देते हैं))    (मामना॰28.3)
184    शौख (इ सब बाल विवाह हिन्दुस्तान के तबाह कर देलके, ई फेर में हम खुद्दे पड़ल ही । भाई जी ! लोग तो समझे हे कि हम बेटा बिआह के निश्चिन्त हो जाम, मगर होव हे उलटे । एक चिन्ता के जगह चौबीस सिर पर सवार हो जाहे । हमहूं शौख से दूनू बेटा के बिआहलू तहिना से झखते दिन जाहे ।)    (मामना॰40.19)
185    सड़ाक-सड़ाक (न मालूम किस हरामजादे ने गाड़ीवान को इशारा कर दिया, उसने तान कर सड़ाक सड़ाक तीन चाभुक जमाया, जो ठीक आकर मेरी पीठ पर लगी ।)    (मामना॰80.4-5)
186    सभा-उभा (मगर इ कह देहिओ, इ सब सभा उभा चलतो उलतो नै ।)    (मामना॰49.22)
187    सभा-तभा (माहुरी - कि अभी चन्दा देवो, इ साल भड़सार में जे घटी लगल ह जीए जाने हे, सूता के दर उतर गेला से तीन हजार के फेर में हियो, औ सभा तभा की होतो हमरा अखने मण्डले सूझो हो ?)    (मामना॰77.9)
188    समाना (= घुसना; घुसाना) (क्यों कर भला समावे कूएँ में सारी दरिया । क्यों कर बयां हो सारा जो कार कर रहा है ॥13॥ माने न माने कोई पर बात है ये वाजिब । यह माहुरी का गुलसन गुलजार कर रहा है ॥14॥)    (मामना॰100.1)
189    सरधा (= श्रद्धा) (रतन चन्द - कहां के चरचा लैलहो ह । - पाड़े जी - वह नारायन राम के पोती नूरसराय । और एक चरचा दक्खिन के हो रेम्वा बाबू ढेहू राम किहाँ से । आज कल उन कर लेयाकत दू लाख से ऊँचा हैन । इ दूनू काम जेहे से खूब सरधा के हो ।)    (मामना॰27.16)
190    सरबत (= शरबत) (पाड़े जी - जी अ, चिरञ्जवी होय जजमान ! - वृद्ध - रामू पाड़े जी के सरबत लाहुन, ओकरा में जरा गुलाब जल दे देमही ।)    (मामना॰29.14)
191    सरहो (पाड़े जी - दु चार वेस घर के चरचा हय । इन साल नन्हका के निवाह वहो नै ? - रतन चन्द - भला अभी कौन जुकुर हय । सरहो के धोती तो पेहेनवे नै कर हे । ई साल ओकरा कहीं नैं लगतै ।; राम के भतीजा के परसाल मरकच्चो में होलैन । कै बरस के ह्लै सरहो के सात बरस भी नै लगलै हल ।)    (मामना॰26.10; 27.3)
192    सार (= साला) (सेवा - हुः, ऊ की तो लेतै हल, ऊ सार मंगनी के माल खोजले चल हलौ, ९९१२ साढ़े सात आने लगाव हलौ ऐसन ऐसन लेवे लगै तो जगहा चाही । बाते बात में सार के तरवा के धूर कपार चढ़ हलै ।; कर चुकल सारे दूकान दारी, लूरे नै हो, तो दूकान पर काहेला बैठलँ हँ ?)    (मामना॰14.15, 18; 15.7)
193    सिक्रेट (= सिगरेट) (अगर माहुरी मण्डल चल गया तो सारे मजे किरकिरे हो जायँगे । अब ही कुछ ही दिनों से तो बिचारे माहुरी प्याजी खुशबू से दिमाग तर कर रहे थे । सिक्रेट की फका फकी से इञ्जन को भी मात करने लगे थे । नौका गुसांई के बहाने हाड़ मांस से जिह्वा गोसांई की पूजा करते थे ।)    (मामना॰70.18)
194    सीरा-पिण्डा (लुकाठ चन्द - तब क्या ? कोई कुल के चाल को भी उठा देगा । यह नौका गोसाईं, सीरा पिण्डा, शादी विवाह में बलि प्रदान का रिवाज है सो क्या मेरा चलाया हुआ है, मांस खाना माहुरी जाति की अदौ चाल है । यह जाति शाक्त है, शक्ति पूजा इसका मुख्य धर्म्म है ।)    (मामना॰67.13)
195    सुतक्कड़ (तुम्ही सब से सुतक्कड़ क्या बड़े हो, उठो क्यों बन्धुवर सोये पड़े हो ॥)    (मामना॰62.3)
196    सुन-गुन (वृद्ध - मगर खूब होशियारी से, बात नै फूटे पावो । जरा सुन गुन होलो, तो सब गुड़ माटी ।; माहुरी - आव एने बैठहे - कह कहां से फिर किरपा करलहे । एने मण्डल के कुछ सुन गुन नै सुनियो ।)    (मामना॰30.10; 76.19)
197    सुनवैया (नै नै, जरूर हमनियो के सभा होवे के चाही, नै सभा होले से हमनही के इ दशा हे । जे जेकरा मन में आवे हे कर गुजरे हे । कोई कहवैया न सुनवैया । सभा चले चाहे नै चले जेतना दिन चलते सुधार हो जैते ।)    (मामना॰50.19)
198    सूखा-साखा (वाहवा ! यह खूब ! किसी को ला, किसी को काफ, और हमारे साथ यह सूखा-साखा इनसाफ । मगर यह समझ लेना, यह मण्डल के नेताओं की लम्बी-चौड़ी बात सिर्फ हमारे जान और जिगर की करामत है । यह जो झका-झकी देखते हो, यह मेरे दम की रोशनी है ।)    (मामना॰101.5)
199    सूमड़ा (प्रचारक - मत दीजिये, कुछ भीख माँगने आये हैं थोड़ेई । "जो लगस्सी सो करस्सी चरस्सी चाहे न चरस्सी" मर गये, किस सूमड़े के मुँह देख कर उठे ये आज एक पैसा न मिला ।)    (मामना॰77.13)
200    सेउ (= वह भी) (पाड़े - बाबू ! आज कल जेकर छानी पर फूस नै हे सेउ बड़के घर ताके हे । बबुआ माहुरी के विबाह खाली पढ़ले से नै हो जाहे ।)    (मामना॰32.10)
201    सेऊ (रतन चन्द - करम फूट गेले, अब बच के की करवे, एकठो आँख कान में लाल हले, सेऊ भगवान हर लेलका । एहीला बाबू के नै कर हलूं ।)    (मामना॰39.10)
202    सेतो (= से तो; वह तो) (सेतो सही है । इ वखत जने देख सब अप्पन अप्पन उन्नति में लगल हथ ।)    (मामना॰49.1)
203    हप्प (भाई से झगड़ा और लड़के को लण्ठ, बइमानी की आदर औ बात बात में टण्ठ । मण्डल को चौपट औ कढुए {? कछुए} की चाल, अगर कोई बोले तो हप्प सा गाल ॥)    (मामना॰70.7)
204    हमर (ग्राहक - काहे महराज ! हमर रुपैया देवे के मन नै हो की ?)    (मामना॰19.1)
205    हमरा (वृद्ध - अच्छा तो फेर कहिना ऐब हो, जब तक लड़की हमरा घर में आ नै जैतो तब तक हमरा नीन्द नै ।; बलाय से, कोई हमरा भला कहे या बुरा, हम अपन घर में भोज करके पाक हो जैबे । एकरा वास्ते गोतियारे रहे चाहे टूट जाय ।)    (मामना॰30.17; 38.2)
206    हमहूँ (पाड़े जी - तो जजमान ! ऐते काहेला, तू हमरा सगुनवा दे दा । और वो हो देहो, हम जहां ओकर हत्था में पकड़ैलियै तो काम बनले बनावल हो, हमहूँ निश्चिन्त तू हूँ निश्चिन्त ।)    (मामना॰30.20)
207    हाथ (पाड़े जी - तो जजमान ! ऐते काहेला, तू हमरा सगुनवा दे दा । और वो हो देहो, हम जहां ओकर हत्था में पकड़ैलियै तो काम बनले बनावल हो, हमहूँ निश्चिन्त तू हूँ निश्चिन्त ।)    (मामना॰30.19)
208    हिकमत (एकरा अलावे और भी बहुत सा हिकमत है, जैसे जादे दाम वाला मारकीन के अचरा नम्बर वाला दु चार गज फाड़ के, कम दाम वाला मारकीन में लगा देली और गहकी से आने दू आने गज फायदा उठा लेली ।; अकिल होवे के चाही, गहकी पटावे के हजार हिकमत हे ।; नै पड़ता पड़ रहले ह तो अगूठा दाब के नाप ले गेली, गज के पन्दरह कनवां नापल जैतौ । ऐसन ऐसन बहुत हिकमत हे ।)    (मामना॰15.12, 19; 16.9)
209    हियां (= हियाँ; यहाँ) (कोई शुभ काम करते हमरा दफा के नै बन है । हम तोहरा हियां जाय ला हलियो । तू कौनो तरह से समझा-बुझा के ओकरा भोजिया करा देहो ।)    (मामना॰38.17)
210    हुआँ (= वहाँ) (पाड़े जी - पसन्दे पसन्द जजमान जजमानी से हम्मर राय लेलहो । नन्हका मइया के हुआँ करे के बहुत दिन से हौसला हलैन ।)    (मामना॰27.9; 50.23)
211    हुज्जत (रेवा चन्द - ऐ जी, ऐते हुज्जत के तो काम नै । अगर तोहरा पसन्द नै हो धरदा हम्मर कपड़ा, तोहरा ऐसन ऐसन ढेर गहकी आव हथ । महराज ! इन के वास्ते हमनही चोर ही ।)    (मामना॰18.11)
 

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