जोमुसिं॰ = "जोरन" (मगही कहानी संग्रह), कहानीकार - श्री मुद्रिका सिंह; प्रकाशक - सहयोगी प्रकाशन, गया; प्राप्ति स्थानः मुद्रिका सिंह, गौतम बुद्ध कालोनी, बढ़की डेल्हा, गया - 823002; मोबाइल - 09431207620; प्रथम संस्करण - 2004 ई॰; vi + 50 पृष्ठ । मूल्य – 25/- रुपये ।
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कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या - 377
ई कहानी संग्रह में कुल 9 कहानी हइ ।
क्रम सं॰ | विषय-सूची | पृष्ठ |
0. | अप्पन बात | i |
0. | हम्मर नजर में 'जोरन' | ii-iii |
0. | लिखताहर के जिनगी | iv-vi |
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1. | उलझन | 1-4 |
2. | चुटकटवा | 5-11 |
3. | सहर में मकान | 12-16 |
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4. | पराइवेट रजिस्टरेसन | 17-21 |
5. | मुखौटा | 22-27 |
6. | दीदा उलट गेल | 28-33 |
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7. | लकड़सुंघवा | 34-38 |
8. | मिसिर बाबा | 39-45 |
9. | मुआवजा | 46-50 |
ठेठ मगही शब्द ("अ" से "ह" तक):
1 अइसन (लइका के सादी-बिआह तो आझकल माय-बाप ला एगो "ब्लैंक चेक" कहावऽ हे जेकरा पर जेतना चाहऽ लिख दऽ । आऊ एगो तूँ हऽ जे असमान के अप्पन माथा पर उठइले फिरइत हऽ । भला बेटा के बिआह कऊन अइसन चीज हे जेकरा ला तूँ सोच में पड़ल हऽ ।; भाई अइसन दोस्त अगर न होवे तो भाई अइसन दुसमनो न होय । काहे कि आझ सहोदर भाइओ के दीदा उलट गेल हल ।) (जोमुसिं॰2.21; 33.25, 26)
2 अइसन-ओइसन (ई सुन के अगुआ आऊ कुटुम दुनो सन्न हो गेला । अब काटऽ तो खून नऽ । अइसन-ओइसन तो कोई कोई काम न हल, जेकरा आसानी से छोड़ देल जाइत हल । आऊ फिन पचास हजार रूपइओ कुटुम के औकात से जादे होइत हल ।) (जोमुसिं॰26.8)
3 अकिल (= अक्किल, अक्कल; अक्ल, बुद्धि) (जहिआ से बेटी किहाँ से ई चिट्ठी आयल हल, धुरफन्दी लाल के अकिले हेरा गेल हल । गाँव-घर में जहाँ दु-चार गो अदमी एक जगह जुट जा हलन ऊहें धुरफन्दी लाल के बात निकल जा हल ।) (जोमुसिं॰35.1)
4 अझुराना (= ओझराना) (हम भोरे-भोरे आँख मइसित अपन बिछौना पर से उठइते हली कि ई सब हल्ला-गुदाल कान में पड़ल । उठ के बाहरे अइली तऽ देखली कि आझ सबेरहीं से धनेसर आऊ मधेसर दुनों भाई अपने में अझुरायल हला ।) (जोमुसिं॰28.13)
5 अदमी (= आदमी) (हम हाँथ-गोड़ धोके तनी अरामे करे के फेर में हली कि उधर से हम्मर छोटकी बेटी झुनिआ दउड़ल आयल आऊ हँफइत बोलल - "पापा ! बुढ़वा दादा के दलान पर बड़ी मनी अदमी जमा होयल हथिन ।") (जोमुसिं॰34.6)
6 अधार (= आधार) (सोमर के गुजरला के बाद सनिचरी के जिए के एके गो अधार हल, नन्हें । सनिचरी अप्पन सब दुःख दरद भुला के नन्हें के देखभाल में लगल रहऽ हल ।) (जोमुसिं॰46.1)
7 अनचइती-पनचइती (अब लड़किओ ओला चुप कइसे रहत हल । अनचइती-पनचइती रोज होवे लगल । लेकिन मास्टरो साहेब अप्पन जिद पर अड़ गेला ।) (जोमुसिं॰26.15)
8 अनेसा (= अन्देशा) (जब नन्हें साम के नऽ लौटल तऽ घरे बुढ़िया के अनेसा होवे लगल । एने-ओने से पता चलल कि लउटइत बेजी जहाना के नगीच गाड़ी पलटी खा गेल हे, जेकरा में बीसन घायल हथ । दूगो मरिओ गेला हे । बुढ़िया के रात भर खटपटी लेले रहल ।) (जोमुसिं॰50.15)
9 अन्हरिआ (~ रात) (गाड़ी जहाना पहुँचहीं ओला हल कि एगो पुलिया भिजुन मोड़ लेवे में गाड़ी पलटी खा गेल । अन्हरिआ रात हल । अफरा-तफरा मच गेल ।) (जोमुसिं॰50.8)
10 अन्हार (= अन्धकार) (अब घर के चिराग बुझ गेल हल । मियाँ-बीबी हमेसा तनाव आऊ उदासी के महौल में रह रहलन हल । आँख के आगे हमेशा अन्हार लौकऽ हल ।; डाक्टरो साहेब अप्पन बड़का भाई साहेब के मंसा समझ गेलन हल, लेकिन उनखर सामने कहे के हिम्मत न जुटा रहलन हल । लेकिन उमर सरक रहल हल, ई से आगे साफ अन्हार लौके लगल हल । अब हमेसे चिंता आऊ तनाओ में रहे लगलन । ई से अब ई खूदे अप्पन जिनगी के अगला कदम के बारे में सोचे ला मजबूर हो गेलन ।) (जोमुसिं॰15.19; 31.27)
11 अपननहीं (= आप लोग) (हम अप्पन परेआस में केतना सफल होली हे, ई बात तो अपननहीं सभे एकरा देखला-सुनला के बाद तय करब, काहे कि जब ई दुनियाँ अप्पन दही के खट्टा न कहे तऽ हम ... ।) (जोमुसिं॰i.9)
12 अबरी (= इस बार, अभी तुरत; अगली बार) (महेस बाबू भी अब दुनों परानी सहरे में रहे के मन बना लेलन लेकिन कहलन कि जलदी में कोई काम करे के न चाही । तूँ ठीक से रहऽ । हम अबरी जब आयम तऽ ई बारे में भइआ से बात करम ।; काहे बाबू, अबरी बड़ी जलदी लौट अइलऽ । का बात हे ? कोई बिसेस काम पड़ गेल का ?; ऊ तेसरका बेर फारम पूरक परिछा के साथे भरवौलका । अबरी जुगाड़ लग गेल । कौपी बाहर आ गेल । आलोक बाजी मार लेलक । अबरी ऊ खाली पासे न भेल बिलुक पूरा सेन्टरे भर में टौप कर गेल ।) (जोमुसिं॰8.4, 19; 20.27, 28)
13 अमदनी (= आमदनी) (अमदनी तो हो जाहे, लेकिन कोल्हू के बैल के लेखा खट्टे पड़ रहल हे ।) (जोमुसिं॰6.17)
14 अमदी (= अदमी; आदमी) (अब ई समाज में अप्पन जगह बनावे के जुगाड़ में लग गेलन । लेकिन इनका लगल कि जब तक सहर में घर न हो जायत तब तक हम्मर गिनती बड़का अमदी में न होयत । ई लेके एने-ओने से लोन लेके एक कट्ठा जमीन सहर में खरीद लेलका ।) (जोमुसिं॰25.1)
15 अराम (= आराम) (हम हाँथ-गोड़ धोके तनी अरामे करे के फेर में हली कि उधर से हम्मर छोटकी बेटी झुनिआ दउड़ल आयल आऊ हँफइत बोलल - "पापा ! बुढ़वा दादा के दलान पर बड़ी मनी अदमी जमा होयल हथिन ।") (जोमुसिं॰34.4)
16 अलावहूँ (जटाधारी बाबू के अब आँख के निन हराम हो गेल । पास में फुटल कउड़िओ न हल । तिलक के पइसा के अलावहूँ मकान बनावे में कुछ करजा-पइंचा पहिलहीं हो गेल हल । खेती-बारी जादे हइए न हल, जेकरा बेच-खोंच के उनखर पइसा लउटयतन हल ।) (जोमुसिं॰26.25)
17 अलोप (= लुप्त, गायब) (कहानी 'दीदा उलट गेल' में विघटन के कगार पर पहुँचल समाज में अलोप होइत आदमियत आउ अपनापन के दरसावइत सोवारथ में आन्हर अदमी के चरित्र उजागर कैल गेल हे ।) (जोमुसिं॰iii.5)
18 असथाऊर (= स्थावर) (बाउजी अब बिलकुल असथाऊर हो गेलन हल । बड़का भाई के घर से मतलबे खतम हो गेल हल । घर पर छोटका भाई के हालत खुदे खराब हल, से बाउजी के का देखत-सुनत हल ?; लोग काने-कान इधर-उधर इनखर सादी-बिआह के बातो करे लगला हल । लेकिन डाक्टर साहेब अप्पन बड़का भाई से खार खा हला । उनखा सामने इनखर जुमान न हिल सकऽ हल । तऽ बिआह के बात कइसे उठयता हल । बाउजी अब असथाऊरे हो गेला हल ।) (जोमुसिं॰23.14; 31.9)
19 असथिर (= स्थिर) (एही कारन हल कि बनवारी बाबू अब एक जगह असथिर से रहल नऽ चाहऽ हलन । जरी मिआज बेस लगल कि चुपके से कभी बेटी हीं, कभी समधिआना निकल जा हलन ।) (जोमुसिं॰23.26)
20 असमान (= आसमान) (लइका के सादी-बिआह तो आझकल माय-बाप ला एगो "ब्लैंक चेक" कहावऽ हे जेकरा पर जेतना चाहऽ लिख दऽ । आऊ एगो तूँ हऽ जे असमान के अप्पन माथा पर उठइले फिरइत हऽ । भला बेटा के बिआह कऊन अइसन चीज हे जेकरा ला तूँ सोच में पड़ल हऽ ।; कुछ दिन इधर-उधर करके अप्पन घरनी के देखावे में कोई कोर कसर न रखला । अप्पन जिनगी के सब बचल-खुचल कमाई फूँक देलका । लेकिन जब डाक्टर जवाब दे देलक तऽ इनखर सिर पर असमान टूट पड़ल ।) (जोमुसिं॰2.21; 15.26)
21 असानी (= आसानी) (गाँव के बगले में बजार हल जहाँ सर-सब्जी असानी से बिक जा हल जे से कोई तरी दाल-रोटी के जुगाड़ हो जा हल ।) (जोमुसिं॰22.4)
22 असिरवाद (= आशीर्वाद) (मिसिर बाबा के असिरवादे से गुलबिया के जलम भेल हल । जब गुलबिआ के माय-बाबू सगरो देखा-सुना के थक गेला हल आऊ सनिचरी के गोदी न भरइत हल तऽ अन्त में फेंकन आऊ सनिचरी बाबा के सरन में आयल हल ।) (जोमुसिं॰40.5)
23 असिरवादी (= आशीर्वाद) (ऊ खइनी थुकइत हम्मरा असिरवादी बाँटइत बोललन - "अरे बात का रहतई हो ! हम ओही घड़ी धुरफन्दिया के कहऽ हली कि अरे बाप के दौलत में बेटा-बेटी दुनों के हक होवऽ हे, लेकिन ऊ हम्मर बात अनसुना करके सिलबा के बिआह बिना कुछ देले कर देलकई आऊ हम्मरा ई कह के चुप करा देलक हल कि अब तिलक-दहेज देना और लेना दुनों अपराध हे ।") (जोमुसिं॰34.12)
24 आउ (मगही माय के दूध से भरल हाँड़ी में हम 'जोरन' डाल रहली हे, जेकरा से मगध के माट्टी में रसल-बसल आउ पसरल मगही भासा जम जाय, जेकर मलाई, मखन आउ मट्ठा खा-खा के सब मगहिअन भाई-बहिन सरीर के साथे-साथे दिमागो से मजबूत बन जाथ आउ समाज के साथे देसो के माथा ऊपर उठावे में मदतगार बनथ ।) (जोमुसिं॰i.3)
25 आऊ (= आउ) (एने-ओने के बात होयला के बाद अप्पन समाचार भी कहे लगलन । एही बीच सिरीमती जी कटोरी में दुगो भभरा आऊ गिलास में पानी लेले आ गेलन ।; राधे बाबू भभरा खाय लगलन आऊ साथे-साथ अप्पन हाल-रोजगार के बातो कहे लगलन ।) (जोमुसिं॰1.13, 17)
26 आझ (हमनी दुनो लइकाइए से साथे-साथ पढ़ली-लिखली हल । ई लेल दुनो में पहिलहीं से दोस्ती आवइत हल जे आझ तक जइसे के तइसे बनल हल ।) (जोमुसिं॰1.8)
27 आन्हर (= आन्धर, अन्धा) (कहानी 'दीदा उलट गेल' में विघटन के कगार पर पहुँचल समाज में अलोप होइत आदमियत आउ अपनापन के दरसावइत सोवारथ में आन्हर अदमी के चरित्र उजागर कैल गेल हे ।) (जोमुसिं॰iii.5)
28 इनकर (अगर उपजल फसिल में से कुछ देवे में तोरा एतराज होवऽ हवऽ, तऽ इनकर हिस्सा बाँट के अलग कर देहू । अप्पन हिस्सा लेके इनखा जे मन होतई करतन । अप्पने नऽ करतन तो बँटइआ-चउठइआ तो लगा देतन । जहाँ कुछो न मिलइत हइ, कुछ तो मिलतइ ।) (जोमुसिं॰9.28)
29 इनखर (= इनकर) (आसपास के परिवेस में देखल-सुनल आउ भोगल घटना पे आधारित इनखर कहानी जीवंत आउ मरम के छुए ओला हे ।) (जोमुसिं॰ii.16)
30 इनखा (= इनका; इन्हें; ~ सामने = इनके सामने) (महेस बाबू बेस पढ़ल-लिखल अदमी हलन । ऊ पुराना जमाना के बी॰ए॰ पास हलन । ई लेल इनखा सामने आझो अच्छा-अच्छा पढ़ल-लिखल के घीग्घी बन्द हो जाहे ।) (जोमुसिं॰5.2)
31 इनसाल (पइसा सब एडभांस करौला के बाद कहलन कि इनसाल हम सादी के पछ में न ही । किराया के मकान में पुतोह कइसे ढुकायम ।) (जोमुसिं॰25.25)
32 इसकूल (जनानी के साथे रहे से तोरो बनल-बनावल खाना मिल जयतो आऊ लइकमनों के कोई अच्छा इसकूल में नाम लिखवा देबहू तऽ ओखिनियों के जिनगी बन जइतइ ।) (जोमुसिं॰7.10)
33 ई (ई सब बात होयला के बाद ऊ फिन कुछ रुक गेलन । हमरा लगल कि ई कऊनो गम्भीर संकट में जरूर फँस गेलन हे । काहे कि इनखर चेहरा पर कहियो हम उदासी आऊ परेसानी न देखली हल ।) (जोमुसिं॰2.7, 8)
34 उकटना (तेरहो खूँट के एक सनसे ~) ("डाक्टर के बिआह, आऊ फिन साले भर में बेटा" - ई दुनो बात जान के धनेसर बाबू के सपना टूट गेल । लगल कि कोई उनखर जरल देह पर नून छिट देलक होय । अब ऊ पागल लेखा बात-बात में बिगड़ जाथ । अगर अनजानो में कोई के मुँह से डाक्टर के बारे में कुछ निकल जाय तो ऊ उनखर तेरहो खूँट के एक सनसे उकट देथ ।) (जोमुसिं॰33.9)
35 उजर (= उज्जर, उजला) (जब घुटना तक लटकल फह-फह उजर कुरता आऊ चुस्त पैजामा पहिन के निकल जा हलन तऽ बेस-बेस नेतो इनखा सामने फेल कर जा हलन । बलौक से लेके कोट-कचहरी तक इनखर धाक हल ।) (जोमुसिं॰17.24)
36 उनकर (महेस बाबू के औरतो अब देहात जायल न चाहऽ हलन । लेकिन देहाती घी, साग, झंगरी, मकई ला उनकर परान छछनऽ हल । घरे ओला महिनका चाऊर, राहड़ के दाल, आलू-फुलकोबी के तरकारी के सोआद रह-रह के उनखा इयाद आवऽ हल ।) (जोमुसिं॰9.10)
37 उनका (= उन्हें) (खाद-बीज, दवाई-सिंचाई के खरचा जोड़े पर उनका फायदा नजर न आवे । ओकरो पर कटनी-पिटनी में देख-रेख करहीं पड़ऽ हल । ई लेके ऊ सोंचे लगलन कि जमीन बटाई देवे से अच्छा हे कि ओकरा बेच-बाच के पइसा बैंक में रख देल जाय जहाँ सूद-बेआजो मिलत आऊ पइसो हिफाजत से रहत ।) (जोमुसिं॰10.13)
38 उनखर (= उनकर) (समाज में अगुआ के पाक-साक रहे के चाही । कथनी आउ करनी में अंतर के भंडाफोड़ होयला पर उनखर हालत पातर हो जाहे ।) (जोमुसिं॰iii.10)
39 उनखा (= उनका; उन्हें) (जब ऊ रुकलन त फिन उनखा टोकली मगर लइकवा के का विचार हे, राधे बाबू ! ई तो तूँ हमरा कहवे न कयलऽ ।; साम के बखत बधार घुमे ला ऊ अकेले अकेले निकल गेलन हल । बुझामनो महतो घुमते-घुमते बाधे में उनखा मिल गेलन ।) (जोमुसिं॰3.25; 6.8)
40 उन्नइस-विनइस (भला छोटकी के जाय से का फरक पड़े ओला हई ? इहाँ भगमान के देनी से कऊन चीज के कमी हे, आऊ फिन जरा-मना उन्नइस-विनइस भेल तो पइसा पर अदमी भेंटाइए जा हे ।) (जोमुसिं॰7.6)
41 उबिआना (तऽ काहे नऽ छोटकी के साथे लेले जा । उनखो एक जगह रहते-रहते मन उबिआ गेलई हे । कुछ हावा-पानिओ बदल जइतई ।) (जोमुसिं॰8.26)
42 उबिआना (तोहनी दुनो भाई पढ़ल-लिखल हऽ । तनि अप्पन आऊ गाँव-घर के इज्जतो-पानी के खेयाल करइत जा । अरे जुदागी तो होयबे करत । तऽ एतना उबिआए से काम न चलत । दुनों सांत रहऽ, कोई न कोई रसता जरूरे निकलत ।) (जोमुसिं॰28.19)
43 उरेहना (कहानी मुआवजा में गरीब रैली के नाम पर सबजबाग देखा के जुटावल भीड़, भीड़ में आम अदमी के दुरगति आउ एकरा लेल भेल मौत पर मुआवजा के बेवस्था के चित्र उरेहल गेल हे ।) (जोमुसिं॰iii.19)
44 ऊ (ई सब बात होयला के बाद ऊ फिन कुछ रुक गेलन । हमरा लगल कि ई कऊनो गम्भीर संकट में जरूर फँस गेलन हे । काहे कि इनखर चेहरा पर कहियो हम उदासी आऊ परेसानी न देखली हल ।) (जोमुसिं॰2.8)
45 एकारसी (= एकादसी) (धुरफन्दी लाल तो चतुर खिलाड़ी हला । ई से बइठले-बइठले अइसन जुगाड़ भिड़ौलका कि आठ बिगहा जमीन भेंटा गेल । हिस्सा-बखरा बाँटेओला कोई हइए न हल । बिआह के मंच पर धुरफन्दी लाल तिलक-दहेज के खिलाफ फिर तगड़ा भाखन देलका आऊ कहलका कि सादी में तिलक-दहेज के रूप में हम एक छेदाम न जानी । ... "तरे-तरे गुड़ चुरा, ऊपरे से एकारसी" ओला कहाऊत सच निकलल । ई से मनोहर बाबू के ई बात लग गेल ।) (जोमुसिं॰37.25)
46 एतराज (= आपत्ति, उज्र) (अगर उपजल फसिल में से कुछ देवे में तोरा एतराज होवऽ हवऽ, तऽ इनकर हिस्सा बाँट के अलग कर देहू । अप्पन हिस्सा लेके इनखा जे मन होतई करतन । अप्पने नऽ करतन तो बँटइआ-चउठइआ तो लगा देतन । जहाँ कुछो न मिलइत हइ, कुछ तो मिलतइ ।) (जोमुसिं॰9.28)
47 एनहीं (हल्का-फुल्का चाय-पानी लेला के बाद अप्पन सिरीमती जी से दिन भर के एने-ओने के खबर लेइत हली कि एही बीच राधे बाबू पर सिरीमती जी के नजर पड़ल । ऊ कहलन - "एजी, लगऽ हो, राधे बाबू एनहीं आवइत हथुन ।") (जोमुसिं॰1.5)
48 एने-ओने (हल्का-फुल्का चाय-पानी लेला के बाद अप्पन सिरीमती जी से दिन भर के एने-ओने के खबर लेइत हली कि एही बीच राधे बाबू पर सिरीमती जी के नजर पड़ल ।; जइसे-तइसे रात बितला के बाद ऊ सबेरहीं गाँव आ गेलन । एने-ओने के पंच बोलयलन, पंचइती लग गेल ।) (जोमुसिं॰1.4; 11.17-18)
49 एरिआ-जेबार (जलदिए इनखर डाक्टरिओ बेस चले लगल । एरिआ-जेबार से रोगी आवे लगल हल ।) (जोमुसिं॰29.11)
50 एही (= एहे; यही) (हमहूँ पहिले एही सोंचऽ-समझऽ हली कि लइका ओला बाप भगसाली होवऽ हे आऊ ई घड़ी लइका के सादी-बिआह भी एगो अच्छा बिजनेस हे जेकरा में एक लगावऽ सोलह पावऽ ओला कहाऊत एकदम फिट जँचऽ हे ।) (जोमुसिं॰2.24)
51 एहू (= एहो; यह भी) (हाँ मुनी जी, एहू बात तूँ कहलऽ से ठीके कहलऽ । अभी अप्पन माय के पुछवे न कइली हे । फिन, लइका के मामु-ममानी से बाते न होयल हे । अपन सास-ससुर से पुछना भी लाजिमे समझऽ ही ।) (जोमुसिं॰4.5)
52 ओकर (= ओक्कर) (बात तो ठीक कहऽ हऽ चचा । लेकिन ओकरा जे बुझैलई से कैलक । ओकर हिस्सा हलई । ओकरा से हमरा का लेना-देनी हल ।) (जोमुसिं॰10.27)
53 ओकरा (खाद-बीज, दवाई-सिंचाई के खरचा जोड़े पर उनका फायदा नजर न आवे । ओकरो पर कटनी-पिटनी में देख-रेख करहीं पड़ऽ हल । ई लेके ऊ सोंचे लगलन कि जमीन बटाई देवे से अच्छा हे कि ओकरा बेच-बाच के पइसा बैंक में रख देल जाय जहाँ सूद-बेआजो मिलत आऊ पइसो हिफाजत से रहत ।; महेसवा के एतनो न बुझएलइ कि बड़ भाई आखिर बाप लेखा होवऽ हे, से तो तूँ बाप के मरला के बादो ओकरा पढ़ा-लिखा के नोकरिओ लगा देलहू । अरे एक दिन तो सब कोई जुदा होयबे करऽ हे लेकिन लोक-लिहाजो तो कोई चीज होवऽ हे कि न? अगर ऊ अप्पन जमीन तोरे दे देत हल तऽ तूँ का ओकरा पइसा न देतहु हल ?) (जोमुसिं॰10.15, 22, 25)
54 ओकरो (खाद-बीज, दवाई-सिंचाई के खरचा जोड़े पर उनका फायदा नजर न आवे । ओकरो पर कटनी-पिटनी में देख-रेख करहीं पड़ऽ हल । ई लेके ऊ सोंचे लगलन कि जमीन बटाई देवे से अच्छा हे कि ओकरा बेच-बाच के पइसा बैंक में रख देल जाय जहाँ सूद-बेआजो मिलत आऊ पइसो हिफाजत से रहत ।) (जोमुसिं॰10.13)
55 ओड़िआ (बटइआ पर लेके एगो बाछी रख लेलक हल । सबेरे उठ के बासी रोटी खा ले हल आऊ गाय के साथे लेके चरावे ला निकल पड़ऽ हल । साथ में मऊनी आऊ खुरपो रखऽ हल । ई लेके लउटित बेजी एक ओड़िआ घासो लेले आवऽ हल ।) (जोमुसिं॰46.17)
56 ओतिए, ओतीए (= वहीं) (एक दिन ऊ सराब पी के कहीं से हीरो-होन्डा से चलल आवइत हल कि रसते में एक्सीडेन्ट कर गेल आऊ ओकर परान ओतीए छूट गेल ।; "आँख बंद कर के हाँथ जोड़ के भगवान के नाम लिहें, फिन चाऊर खा के पानी पी लिहें आऊ फूल के ओतिए जमीन में गाड़ दिहें । अबरी जब तोरा महीना हो जइतऊ तऽ ओकर पचवाँ दिन इहाँ अइहें ।" ई तरी बाबा ओकरा तीन महीना तक दउड़इलन आऊ पत खेबी महीना होयला के पचवाँ दिन बोलाबथ ।) (जोमुसिं॰15.17; 41.15)
57 ओही (= ओहे; वही) (सुरेस बाबू आव देखलन न ताओ । ऊ ओही दिन से ताला तोड़ के ऊ घर में अप्पन गाय-गोरू बान्हे-छाने लगलन ।) (जोमुसिं॰11.7)
58 ओहू (= ओहो; वह भी) (एही बीच सिरीमती जी कटोरी में दुगो भभरा आऊ गिलास में पानी लेले आ गेलन । मुस्काइत बोललन - "लऽ, जे गरीब किहाँ हे ओकरा सोविकार करऽ । आउ हाँ, चाहो चढ़ा देलियो हे, ओहू लेके आवइत हियो ।) (जोमुसिं॰1.15)
59 ओहो (सादी के बाद एतना टूट गेलन कि गोतिआ-नइआ, हित-कुटुम, परिवार ओलन के एक गिलास पानिओ ला न पुछलन । अब इनकर चेहरा के पानी उतर गेल हल । जे बड़का बने के मुखौटा इनकर चेहरा पर हल ओहो अब हट चुकल हल ।) (जोमुसिं॰27.30)
60 औकात (अब इनकर धुन समाज में अपना औकात देखावे के सवार हो गेल । बाहरी तामझाम आऊ बातचीत करे के ढंग बदल गेल । औकात से जादे महिनी देखावे के चलते हमेसे इनखर हालत पतला रहऽ हल । फह-फह कुरता पर किरिच न टूटऽ हल ।) (जोमुसिं॰23.9, 10)
61 कऊची (= कउची, क्या) ("का कहलें, बाँट दऽ ! आझ तक हम तोर एक पाई जानऽ हिअऊ, तऽ कऊची बाँट दिअऊ ?") (जोमुसिं॰28.2)
62 कटनी-पिटनी (खाद-बीज, दवाई-सिंचाई के खरचा जोड़े पर उनका फायदा नजर न आवे । ओकरो पर कटनी-पिटनी में देख-रेख करहीं पड़ऽ हल । ई लेके ऊ सोंचे लगलन कि जमीन बटाई देवे से अच्छा हे कि ओकरा बेच-बाच के पइसा बैंक में रख देल जाय जहाँ सूद-बेआजो मिलत आऊ पइसो हिफाजत से रहत ।) (जोमुसिं॰10.13)
63 कड़-कड़ (अब जटाधारी बाबू लोक-लिहाज के डर से बाउजी के अपना साथे ले अयलन, लेकिन मासटरनी साहिबा के सोभाउ कड़-कड़ हल । ई लेके ससुर के सेवा तो दूर, इनखर खान-पान, देखो-रेख सही ढंग से नऽ हो पावऽ हल ।) (जोमुसिं॰23.20)
64 कद-काठी (अइसे तो धुरफन्दी बेस पढ़ल-लिखल अदमी हला । डील-डौल आऊ कद-काठी में कऊनो कमी न हल । रूप-रंग के अलावे गलो बेसे मिलल हल जेकरा चलते गावे-बजावे के सौखो रखऽ हला ।) (जोमुसिं॰35.7)
65 कनबह (~ देना) (मैटरिक परिछा में सामिल होवे ला सरकारी उमरो चउदह बरिस के आसपास तय कर देल गेल हे, लेकिन एकरो में कनबह देल हे । जे से सही उमर चाहे जे होवे मगर नोटरी इया न्यायिक दण्डाधिकारी के सपथ-पतर में उनकर उमर चउदह चढ़ल हे तऽ ओकरा कोई काटिओ न सकऽ हे, आऊ फिन कउनो इसकूल से पराइवेट रजिस्टरेसन करवा के परिछा देल जा सकऽ हे ।) (जोमुसिं॰17.14)
66 कनहूँ (= कहीं भी, किसी तरफ भी) (नन्हें के पनरह अदमि के खोराक मिल गेल । चुड़ा-मीठा, सतू के मोटरी ले के नन्हें गाड़ी के उपरे सवार हो गेल । गाड़ी नीचे से ऊपर तक ठइंच गेल । कनहूँ देहो हिलावे के जगह न रहल ।; कनहूँ गोड़ रखे के जगह न हल ।) (जोमुसिं॰49.14, 18)
67 कने (= कन्ने; किधर) (दन्ड-परनाम करइत बोललन - "अप्पने भोरे-भोरे कने कष्ट कइली मास्टर साहेब । ई गरीब के दोहारी पर तो अप्पने के सेवा करे लायक कुछो हइए न हे । एगो बेटी भी हल ओकरो पहिलहीं नहकार देली हे ।") (जोमुसिं॰27.3)
68 कमाना-खाना (अब नन्हें इसकूल छोड़ के माय साथे मजूरी करे लगल । जब नन्हें कमाय-खाय लगल, तऽ सनिचरी ओकर बिआह कर देवे के बात मने-मने सोचे लगल ।) (जोमुसिं॰47.3)
69 करजा-पइंचा (जटाधारी बाबू के अब आँख के निन हराम हो गेल । पास में फुटल कउड़िओ न हल । तिलक के पइसा के अलावहूँ मकान बनावे में कुछ करजा-पइंचा पहिलहीं हो गेल हल । खेती-बारी जादे हइए न हल, जेकरा बेच-खोंच के उनखर पइसा लउटयतन हल ।) (जोमुसिं॰26.26)
70 करना-धरना (नन्हें के आदत लइकइए से गाय-गोरू चरावे में लइकन के साथे बिगड़ गेल हल । ई से लाख जतन कैलो पर नन्हें न पढ़ सकल । बहुत करे-धरे से कोई तरी अप्पन नाओ-गाँओ लिखे ला सीख लेलक हल ।) (जोमुसिं॰46.27)
71 कहाऊत (हमहूँ पहिले एही सोंचऽ-समझऽ हली कि लइका ओला बाप भगसाली होवऽ हे आऊ ई घड़ी लइका के सादी-बिआह भी एगो अच्छा बिजनेस हे जेकरा में एक लगावऽ सोलह पावऽ ओला कहाऊत एकदम फिट जँचऽ हे ।) (जोमुसिं॰2.26)
72 कहा-सुनी (अब सतीस बाबू के जभिओ कुछ पइसा के जरूरत पड़े आलोक से माँग बइठत । कुछ दिन तक तो आलोक लोक-लिहाज ढोयलक आऊ सतीस बाबू के पइसा मिलइत रहल । लेकिन ई कब तक चले ओला हल । आखिर में एक दिन चचा-भतीजा में कहा-सुनी हो गेल । घर में बँटवारो हो गेल ।) (जोमुसिं॰21.5)
73 कहिना (कहऽ बाबू, कहिना डेरा आयल हे ?; ऊ चचा ठीके कहऽ हथुन । तूँ अप्पन भला-बुरा देखवऽ तऽ देखऽ । गोतिआ-नइआ कोई के कहिनो होयल हे से होयत ।; जे कहिनो समाजिक काम ला न एक पइसा निकालऽ हलन, न एक घन्टा समये देवे ला तइआर होवऽ हलन, अब सब काम में खुल के हाँथ बटावे लगलन । एको मिटिंग इनखा से न छुटे आऊ चन्दा उगाहिओ में दुहारीए-दुहारीए भटकल फिरथ ।) (जोमुसिं॰6.10; 8.2; 24.27)
74 काहे (= क्यों) (सुरेस बाबू बोललन - "तऽ एकरा में हम का कर सकऽ ही चचा !" बुझामन महतो कहलन - "कर काहे न सकऽ हऽ । ई खनदानी घर हे । मगर हाँ तूँ तइयार रहवऽ तबे नऽ । एक बात करऽ । ओकरा कुछ करे से पहिले ओकर घर के ताला तोड़ के तूँ घर कब्जा कर लऽ ।") (जोमुसिं॰11.3)
75 काहे कि (= क्योंकि) (ई सब बात होयला के बाद ऊ फिन कुछ रुक गेलन । हमरा लगल कि ई कऊनो गम्भीर संकट में जरूर फँस गेलन हे । काहे कि इनखर चेहरा पर कहियो हम उदासी आऊ परेसानी न देखली हल ।) (जोमुसिं॰2.8)
76 किरिच (अब इनकर धुन समाज में अपना औकात देखावे के सवार हो गेल । बाहरी तामझाम आऊ बातचीत करे के ढंग बदल गेल । औकात से जादे महिनी देखावे के चलते हमेसे इनखर हालत पतला रहऽ हल । फह-फह कुरता पर किरिच न टूटऽ हल ।) (जोमुसिं॰23.11)
77 किरिया-करम (एही हालत में ऊ कुछ दिन तक गाँव में रहलन । एक दिन सबेरे गाँव के बगल के तलाब में उनखर लास छहलायल मिलल । गाँव-घर के सब लोग मिलके गाँवें में उनकर किरिया-करम कर देलन ।) (जोमुसिं॰16.20)
78 किहाँ (एही बीच सिरीमती जी कटोरी में दुगो भभरा आऊ गिलास में पानी लेले आ गेलन । मुस्काइत बोललन - "लऽ, जे गरीब किहाँ हे ओकरा सोविकार करऽ । आउ हाँ, चाहो चढ़ा देलियो हे, ओहू लेके आवइत हियो ।; जब बिना पइसा के अप्पने सादी न करब आऊ हम एतना दे न सकऽ ही । तऽ हम जे देली हे से लौटा देल जाय । अब हम अप्पन बेटी के बिआह अप्पने किहाँ न करब ।) (जोमुसिं॰1.15; 26.21)
79 केतना (= कितना) (आखिर ई तरी दिन केतना दिन गुजरत हल । ऊ अब अप्पन जान देखे कि बेटा के जान देखे । जब सब रसता बन्द बुझायल तऽ अन्त में अप्पन बाजी के पास चुपके से एगो बैरन लगा देलक ।) (जोमुसिं॰38.5)
80 केवाला (ई लेके ऊ सोंचे लगलन कि जमीन बटाई देवे से अच्छा हे कि ओकरा बेच-बाच के पइसा बैंक में रख देल जाय जहाँ सूद-बेआजो मिलत आऊ पइसो हिफाजत से रहत । ई सोच के ऊ अप्पन हिस्सा के सब जमीन जेकर-तेकर हाथे केवाला कर देलन ।) (जोमुसिं॰10.17)
81 कोट (= कोर्ट) (जइसे-तइसे रात बितला के बाद ऊ सबेरहीं गाँव आ गेलन । एने-ओने के पंच बोलयलन, पंचइती लग गेल । अब सब पंच सुरेसे बाबू के दोस देवे लगलन । आउ उनखा कोट जाय के इजाजत दे देलन ।) (जोमुसिं॰11.19)
82 कोट-कचहरी (ई सुन के महेस बाबू के पारा चढ़ गेल । बोललन - "बुढ़ारी में भइया के माथा खराब हो गेल हे का ? पीछे में ताला तोड़ देवे से ऊ घर उनखर तो न हो जइतई ? कुछ न तो अभी कोट-कचहरी के रस्ता तो हम्मरा ला खुला हइए हे ।"; जब घुटना तक लटकल फह-फह उजर कुरता आऊ चुस्त पैजामा पहिन के निकल जा हलन तऽ बेस-बेस नेतो इनखा सामने फेल कर जा हलन । बलौक से लेके कोट-कचहरी तक इनखर धाक हल ।; कोई पंचो दुनो भाई के झगड़ा में पड़ल न चाह रहलन हे । मधेसर {डाक्टर} से विकलांग होवे के चलते कोट-कचहरी जायल न चाह रहलन हे ।) (जोमुसिं॰11.15; 17.26; 33.22)
83 खखनना ("अगर ई तूँ कर लेलें तऽ तोर गोदी जरूर भर जइतऊ ।" सनिचरी के लइका ला परान खखनइत हल । ऊ हाथ जोड़ले बोलल - "अपने हमरा ला भगमान ही मिसिर बाबा, अपने जे कहम हम सब करे ला तइयार ही ।") (जोमुसिं॰41.21)
84 खटना (अमदनी तो हो जाहे, लेकिन कोल्हू के बैल के लेखा खट्टे पड़ रहल हे ।; उहाँ तूँ परेसान रहऽ हऽ, इहाँ बेचारी बहुरियो दिन-रात खटते-खटते परेसान रहऽ हे, तइयो बड़की के ताना सुनहीं पड़ऽ हे ।) (जोमुसिं॰6.17, 24)
85 खटपटी (जब नन्हें साम के नऽ लौटल तऽ घरे बुढ़िया के अनेसा होवे लगल । एने-ओने से पता चलल कि लउटइत बेजी जहाना के नगीच गाड़ी पलटी खा गेल हे, जेकरा में बीसन घायल हथ । दूगो मरिओ गेला हे । बुढ़िया के रात भर खटपटी लेले रहल ।) (जोमुसिं॰50.18)
86 खडजन्तर (= षड्यंत्र) (गुलबिआ के गुलाबी रंग मिसिर बाबा के नीन उड़ा देलक , से बाबा अब गुलबिआ के अप्पन जाल में फँसावे के खडजन्तर रचे लगला ।) (जोमुसिं॰43.7)
87 खनदानी (= खानदानी) (सुरेस बाबू बोललन - "तऽ एकरा में हम का कर सकऽ ही चचा !" बुझामन महतो कहलन - "कर काहे न सकऽ हऽ । ई खनदानी घर हे । मगर हाँ तूँ तइयार रहवऽ तबे नऽ । एक बात करऽ । ओकरा कुछ करे से पहिले ओकर घर के ताला तोड़ के तूँ घर कब्जा कर लऽ ।") (जोमुसिं॰11.3)
88 खरचा-बरचा (बाउजी थक चुकलन हल । खरचा-बरचा में दिक्कत होवे लगल, ई लेके ई खुदे कुछ लइकन के पढ़ावे लगलन आउ अप्पन खरचा चलावे लगलन ।; लड़की ओला अछा खरचा-बरचा भी करे ला तइआर हलन ।) (जोमुसिं॰iv.24; 3.6)
89 खाना-खोराक (पइसा के रहते डाक्टर साहेब खाना-खोराक ला दोसरा पर मुँहताज रहऽ हला । कपड़ा-लत्ता, परला-हरला पर आऊ तकलीफ बढ़ जा हल ।) (जोमुसिं॰30.1)
90 खार (= जलन, डाह) (~ खाना) (तपेसर दा के बीच-बचाओ से हल्ला-गुदाल सांत हो गेल । लेकिन आझ तक दुनों भाई के बीच बँटवारा लेके खार बनले हे ।; लोग काने-कान इधर-उधर इनखर सादी-बिआह के बातो करे लगला हल । लेकिन डाक्टर साहेब अप्पन बड़का भाई से खार खा हला । उनखा सामने इनखर जुमान न हिल सकऽ हल । तऽ बिआह के बात कइसे उठयता हल ।) (जोमुसिं॰28.22; 31.8)
91 खिलान-पिलान (बिना तामझाम के सादा-सादी ढंग से समाज के दस गो अदमी के सामने माय-बाबू आऊ लइका-लइकी के सहमति पर फूल माला पहिरा के सादी करवा देल जा हल । एको पइसा नजाइज खरचा न होवऽ हल । एकर बाद आयल गेल, हित-कुटुम के खिलान-पिलान होवऽ हल ।) (जोमुसिं॰36.18)
92 खुसफैल ( नन्हें अब बकरी के दूध साथे रोटी खाय लगल आऊ बकरी के बच्चा से घर के आमदनियों बढ़े लगल । अब सनिचरी के हाँथ पहिले से जादे खुसफैल होल जाइत हल ।) (जोमुसिं॰46.22)
93 खूँट ("डाक्टर के बिआह, आऊ फिन साले भर में बेटा" - ई दुनो बात जान के धनेसर बाबू के सपना टूट गेल । लगल कि कोई उनखर जरल देह पर नून छिट देलक होय । अब ऊ पागल लेखा बात-बात में बिगड़ जाथ । अगर अनजानो में कोई के मुँह से डाक्टर के बारे में कुछ निकल जाय तो ऊ उनखर तेरहो खूँट के एक सनसे उकट देथ ।) (जोमुसिं॰33.9)
94 खेती-बारी (ई चलते ऊ कोई नोकरी-चाकरी के फेर में न रहलन, आऊ खेती-बारी देखे-सुने लगलन । खेती-बारियो भी अच्छा हल ।; कुछ दिन तक महेस बाबुओ खेती-बारी पर बिसेस धेयान देलन । बँटाइदारो कुछ इमानदारी बरतलक, आऊ गला-पानी बाँट के सहर तक पहुँचइलक भी । लेकिन ई जादे दिन न निबहल । महेस बाबुओ के खेती-बारी अब घाटा के सौदा नजर आवे लगल ।) (जोमुसिं॰5.10; 10.9, 11)
95 खेबी (= बेरी, बेजी, बार) ("आँख बंद कर के हाँथ जोड़ के भगवान के नाम लिहें, फिन चाऊर खा के पानी पी लिहें आऊ फूल के ओतिए जमीन में गाड़ दिहें । अबरी जब तोरा महीना हो जइतऊ तऽ ओकर पचवाँ दिन इहाँ अइहें ।" ई तरी बाबा ओकरा तीन महीना तक दउड़इलन आऊ पत खेबी महीना होयला के पचवाँ दिन बोलाबथ ।) (जोमुसिं॰41.17)
96 खोंइछा (अबकी बाबा एगो फूल आऊ अरवा चाऊर ओकर खोंइछा में डालइत बोललन - "जो अबरी सुते से पहिले एक हाँथ से पानी भर के सवा बिता जमीन लीप के ई फूल आऊ चाऊर ओही जगह रख दिहें ।") (जोमुसिं॰41.12)
97 खोंखना (= खाँसना) (मिसिर बाबा खोंखइत घर से बाहर निकललन आऊ गुलबिआ पर नजर पड़ते बोललन - "तऽ तूँ आ गेलँ गुलबिआ । हम समझली कि तूँ देरी से अयमऽ ।") (जोमुसिं॰43.24)
98 खोंता (डाक्टर साहेब के लगल कि अब किधर जाई । जउन पेड़ तर सरन लेले हली ओहू अब गिर गेल । अब अप्पन खोंता कहाँ बनाई ? अब रात-रात भर डाक्टर साहेब के नीन न आवे ।) (जोमुसिं॰32.13)
99 गछना (सोचलन कि हाँथ में एगो पइसा नऽ हे । कुटुम बराती आवे ला तंग करइते हे, तऽ कमो पर पचास-साठ हजार तो लगिए जायत । ई लेके कहलन कि जे गछल हल से पूरा कर द, तऽ सादी के दिन-तारीख तय हो जायत । अगुआ जइसे असमान से गिरल ।; तूँ तो टोला-महल्ला के अदमी हें । तऽ ई लेके तोरा ला हम सब उपाय-पतर कर देबऊ, लेकिन जे कहबऊ से सब तोरा आँख मून के करे पड़तऊ । अगर तोरा से ई हो सके तो गछ आउ न तो दोसर दोहारी देख । फेंकन आऊ सनिचरी दुनों हाथ जोड़ले मिसिर जी के बात मान लेलक, काहे कि गोदी भरे के एकरा आऊ कोई उपाय न बुझाइत हल ।) (जोमुसिं॰26.2; 40.14)
100 गन (सब हित-कुटुम के सामनहीं ऊ घर में जुदागी के टंठा डाल देलन । लेकिन माय कहलन कि जब तक हम बच रहली हे तोर हिस्सा कहाँ से अइलऊ ? जो अप्पन काम-काज कर गन । जहिना हम मर जइबऊ तहिना तूँ आके अप्पन हिस्सा-बखरा बाँट लिहें ।; पंच ? हम्मरा हीं भठिहारा कऊन पंच आबत ? आझ तक तो दोसर के पंचइती हम करइत अइली हे । जो, तोरा जे मन आबऊ से कर गन । हम सब समझ लेम ।) (जोमुसिं॰13.26; 28.9)
101 गर-गिरहस्थी (इनखर बाउजी श्री परमेश्वर सिंह आउ माय श्रीमती रामसखी देवी एगो सधारन किसान हलन, जे गर-गिरहस्थी से अप्पन परिवार चलावऽ हलन ।) (जोमुसिं॰iv.8)
102 गरमजरूआ (केस भेला पर एहू बात सामने आ गेल कि जऊन जमीन पर ऊ मकान बनौलका हे ऊ गरमजरूआ हे । ई करमचारी आऊ अंचल में पइसा देके नजाइज ढंग से दाखिल खारिज के रसीद ले लेलन हल । मलगुजारी ओला रसीदो जाली हल । अब ई केस में अइसन फँसलन कि आझ तक छुटकारा न भेल हे ।) (जोमुसिं॰15.4)
103 गला-पानी (= गल्ला-पानी) (कुछ दिन तक महेस बाबुओ खेती-बारी पर बिसेस धेयान देलन । बँटाइदारो कुछ इमानदारी बरतलक, आऊ गला-पानी बाँट के सहर तक पहुँचइलक भी । लेकिन ई जादे दिन न निबहल । महेस बाबुओ के खेती-बारी अब घाटा के सौदा नजर आवे लगल ।) (जोमुसिं॰10.10)
104 गाहे-बगाहे (अब महेस बाबू एगो किराया के मकान में परिवार के साथ रहे लगलन । गाँव-घर से उनखर मन धीरे-धीरे खिंचाए लगल । अब ऊ जल्दी घरहूँ जाय ला न चाहऽ हलन । परबो-तेओहार में कोई न कोई बहाना बना के सहरे में रह जा हलन । अब सुरेसे बाबू लइकन से भेंट-मुलकात करे के बहाना से गाहे-बगाहे सहर आ जा हलन ।) (जोमुसिं॰9.4)
105 गिरह (= गिर्रह; गाँठ) (~ बान्हना) (अब खूदे सिलबा अप्पन नइहर न आवे के गिरह बान्ह लेलक हे । कहऽ हे - "भाई-भौजाई केकर होयल हे जे हम्मर होयत ।") (जोमुसिं॰38.25)
106 गिरहस्थी (ओकरा लालन-पालन, पढ़ाई-लिखाई आउ सादी-बिआह में अप्पन सारा कमाई लगा देलन, लेकिन संयोग से दमाद अच्छा न भेंटायल । ससुरारी पइसा के चलते ऊ आउ बिगड़ गेल । बड़ी मोसकिल से ऊ अन्त में कुछ राह पर आयल तऽ एगो गुमटी खोल के अप्पन गिरहस्थी के भार अप्पन सिर लेलक ।) (जोमुसिं॰22.21)
107 गुड़-चुरा (= गुड़-चूड़ा) (धुरफन्दी लाल तो चतुर खिलाड़ी हला । ई से बइठले-बइठले अइसन जुगाड़ भिड़ौलका कि आठ बिगहा जमीन भेंटा गेल । हिस्सा-बखरा बाँटेओला कोई हइए न हल । बिआह के मंच पर धुरफन्दी लाल तिलक-दहेज के खिलाफ फिर तगड़ा भाखन देलका आऊ कहलका कि सादी में तिलक-दहेज के रूप में हम एक छेदाम न जानी । ... "तरे-तरे गुड़ चुरा, ऊपरे से एकारसी" ओला कहाऊत सच निकलल । ई से मनोहर बाबू के ई बात लग गेल ।) (जोमुसिं॰37.25)
108 गोड़ (हम हाँथ-गोड़ धोके तनी अरामे करे के फेर में हली कि उधर से हम्मर छोटकी बेटी झुनिआ दउड़ल आयल आऊ हँफइत बोलल - "पापा ! बुढ़वा दादा के दलान पर बड़ी मनी अदमी जमा होयल हथिन ।") (जोमुसिं॰34.4)
109 गोतिआ-नइआ (= गोतिया-नइया) (ऊ चचा ठीके कहऽ हथुन । तूँ अप्पन भला-बुरा देखवऽ तऽ देखऽ । गोतिआ-नइआ कोई के कहिनो होयल हे से होयत ।; सादी के बाद एतना टूट गेलन कि गोतिआ-नइआ, हित-कुटुम, परिवार ओलन के एक गिलास पानिओ ला न पुछलन । अब इनकर चेहरा के पानी उतर गेल हल । जे बड़का बने के मुखौटा इनकर चेहरा पर हल ओहो अब हट चुकल हल ।) (जोमुसिं॰8.1; 27.28)
110 गोतिया (एने-ओने के अइसने बात करके धनेसर बाबू अप्पन पिंड छुड़ा लेथ । ऊ न चाहऽ हलन कि डाक्टर के बिआह होवे काहे कि अभी ऊ जे कमाइत हे सब के सब उनखरे बाल-बच्चा आऊ परिवार ओलन में खरचा होइत हे । सादी के बाद ऊ तो गोतिया बन जायत । नगद-नरायन के साथे-साथ जर-जमीनो में अप्पन हिस्सा बँटावे लगत ।) (जोमुसिं॰31.19)
111 गोहूम (= गोधूम, गेहूँ) (एक दिन ऊ महेस बाबू के टोकइत कहलन - "कहऽ हऽ कि हम्मरा दस बिगहा जमीन हे, आऊ चाऊरो-गोहूम ला बजारे में झोला छानऽ हऽ । बड़का भइया के बड़ी गुन बखानइत रहऽ हऽ तऽ काहे छोट-छोट चीजो ला हम्मरा दोसरे के मुँह ताके पड़ऽ हे ।") (जोमुसिं॰9.13)
112 घर-गिरहस्थी (महेस बाबू साँस खींचइत बोललन - "हाँ चचा ! ठीक कहऽ हऽ । हमहूँ कम परेसान न ही, लेकिन सोचऽ ही, छोटकी के साथे ले जाय से घर-गिरहस्थी चौपट हो जायत ।"; आलोक बाबू अब सब समझऽ हलन । लेकिन कब तक निबाह करतन हल । उनखो पर घर-गिरहस्थी के भार आ गेल हल । ई लेके ऊ रोज-रोज के झंझट-पटपट से दूर हो जायल चाहऽ हलन । एक दिन ऊ फैसला कर लेलन कि अब चाहे जे होवे अप्पन तनख्वाह में से चचा के एको पइसा न देम ।; जब आलोक बाबू जेल काट के घर लौटलन तब तक समय गुजर चुकल हल । घर-गिरहस्थिओ सब चौपट हो गेल हल ।) (जोमुसिं॰6.29; 21.13, 27)
113 घरनी (कुछ दिन इधर-उधर करके अप्पन घरनी के देखावे में कोई कोर कसर न रखला । अप्पन जिनगी के सब बचल-खुचल कमाई फूँक देलका ।) (जोमुसिं॰15.24)
114 घरफोरनी (ऊ साम के बखत बुझामन चचा से जे बतकही करलन हल, सब कह सुनौलन । अब छोटकी सब बात सुनके टुभकलन - "अब तोर आँख खुललो । हम कहतिओ हल तऽ कहतऽ हल कि औरत जात घरफोरनी होवऽ हे ।") (जोमुसिं॰7.29)
115 घर-सोमारी (= घर-शुमारी) (एही वजह हे कि डेलहा पर अप्पन समाज के संगठन बनावे में स्वजाति के घर-सोमारी करे में ई खुल के हिस्सा लेलन, जेकर फल होयल कि इनखा लोग अखिल भारतीय दाँगी छत्रिय-संघ, साखा - डेलहा {गया} के अधच्छ पद पर बइठौलका ।) (जोमुसिं॰v.25)
116 घीग्घी (= घिग्घी) (महेस बाबू बेस पढ़ल-लिखल अदमी हलन । ऊ पुराना जमाना के बी॰ए॰ पास हलन । ई लेल इनखा सामने आझो अच्छा-अच्छा पढ़ल-लिखल के घीग्घी बन्द हो जाहे ।) (जोमुसिं॰5.3)
117 घीढ़ाढ़ी (= घीढ़ारी, घेढ़ारी, घृतढारी) (एकरे निदान ला ई नयका विधि से बिआहो कराना सुरू कर देलका हल जेकरा में बरहामन, नऊआ के अलावे मड़वा, मटकोर, घीढ़ाढ़ी के जरूरत न पड़ऽ हल ।) (जोमुसिं॰36.14)
118 चचा (= चाचा) (महेस बाबू साँस खींचइत बोललन - "हाँ चचा ! ठीक कहऽ हऽ । हमहूँ कम परेसान न ही, लेकिन सोचऽ ही, छोटकी के साथे ले जाय से घर-गिरहस्थी चौपट हो जायत ।; बात तो ठीक कहऽ हऽ चचा । लेकिन ओकरा जे बुझैलई से कैलक । ओकर हिस्सा हलई । ओकरा से हमरा का लेना-देनी हल ।) (जोमुसिं॰6.28; 10.26)
119 चचा-भतीजा (अब सतीस बाबू के जभिओ कुछ पइसा के जरूरत पड़े आलोक से माँग बइठत । कुछ दिन तक तो आलोक लोक-लिहाज ढोयलक आऊ सतीस बाबू के पइसा मिलइत रहल । लेकिन ई कब तक चले ओला हल । आखिर में एक दिन चचा-भतीजा में कहा-सुनी हो गेल । घर में बँटवारो हो गेल ।) (जोमुसिं॰21.5)
120 चर-चपरासी (बड़ा बाबू आऊ छोटा बाबू तक बात रहत हल तऽ कामो चल जायत हल । साहेब खुदे पइसा ला औफिस के पाछे ले जाके बतिआ हे । चर-चपरासी के कुछ चहवे करी । नस्ता-पानी में खरचा हे से अलावे ।) (जोमुसिं॰19.18)
121 चाऊर (= चाउर, चावल) (महेस बाबू के औरतो अब देहात जायल न चाहऽ हलन । लेकिन देहाती घी, साग, झंगरी, मकई ला उनकर परान छछनऽ हल । घरे ओला महिनका चाऊर, राहड़ के दाल, आलू-फुलकोबी के तरकारी के सोआद रह-रह के उनखा इयाद आवऽ हल ।) (जोमुसिं॰9.10)
122 चाऊर-गोहूम (= चावल-गेहूँ) (एक दिन ऊ महेस बाबू के टोकइत कहलन - "कहऽ हऽ कि हम्मरा दस बिगहा जमीन हे, आऊ चाऊरो-गोहूम ला बजारे में झोला छानऽ हऽ । बड़का भइया के बड़ी गुन बखानइत रहऽ हऽ तऽ काहे छोट-छोट चीजो ला हम्मरा दोसरे के मुँह ताके पड़ऽ हे ।") (जोमुसिं॰9.13)
123 चापाकल (गुलबिआ करेजा के धड़कन तामइत गोड़-हाँथ धोवे ला घर के अन्दर चापाकल पर चल पड़ल । कल पर जा के अभी हाँथ-मुँह धोवे ला सुरूए कयलक हल कि मिसिर बाबा अन्दर से बाहरी दरवाजा के केवाड़ी बंद कर देलका ।) (जोमुसिं॰44.20)
124 चाह (= चाय) (एही बीच सिरीमती जी कटोरी में दुगो भभरा आऊ गिलास में पानी लेले आ गेलन । मुस्काइत बोललन - "लऽ, जे गरीब किहाँ हे ओकरा सोविकार करऽ । आउ हाँ, चाहो चढ़ा देलियो हे, ओहू लेके आवइत हियो ।"; एही बीच चाहो आ गेल ।) (जोमुसिं॰1.15, 24)
125 चाही (= चाहिए) (पढ़ल-लिखल कमो होय तो काम चल जायत, लेकिन ओकर माय-बाप मोट पइसा देवेओला होवे के चाही । आऊ हाँ ! घर भी अइसन जगह होवे के चाही, जहाँ गाड़ी-छकड़ा आसानी से पहुँच जाय ।) (जोमुसिं॰3.22, 23)
126 चिरूआ (= चुरू; चुल्लू) (मिसिर बाबा, एक चिरूआ पानी एनहीं दे देथिन । हाँथ धो के परसादी खा लेबई ।) (जोमुसिं॰44.10)
127 चुड़ा-मीठा (नन्हें के पनरह अदमि के खोराक मिल गेल । चुड़ा-मीठा, सतू के मोटरी ले के नन्हें गाड़ी के उपरे सवार हो गेल । गाड़ी नीचे से ऊपर तक ठइंच गेल । कनहूँ देहो हिलावे के जगह न रहल ।) (जोमुसिं॰49.13)
128 चुल्हा-चऊँका (मास्टर साहेब के परसताओ मान के उनखे किहाँ भोजन-पानी करे लगला । डाक्टरी अच्छा चलइते हल । ई लेके ई धीरे-धीरे चुल्हा-चऊँका के सब खरचा चलावे लगलन ।) (जोमुसिं॰30.9)
129 चुल्हा-चऊका (डेरा में जनानी के नऽ रहे से औफिस से अयला के बाद चुल्हो-चऊका अपने करे पड़ऽ हे ।) (जोमुसिं॰6.19)
130 चुस (= चुस्त) (एक दिन नन्हें सांझ के बेर काम पर से लौटल आवइत हल । हाइ स्कूल पर ोकरा भेंट गाँवे के एगो पुरान साथी से हो गेल, जे फह-फह उजर कुरता आउ चुस पैजामा पेन्हले हल ।) (जोमुसिं॰47.9)
131 चेला-चाटी (ई अप्पन घर के आगे एही सब काम ला एगो कोठरी निकाल के ओकरा में बाजापता एगो औफिस खोल देलन हल, जेकरा में हमेसे दू-चार गो चेला-चाटी लगल-भिड़ल रहऽ हलन ।) (जोमुसिं॰39.23)
132 छछनना (परान ~) (महेस बाबू के औरतो अब देहात जायल न चाहऽ हलन । लेकिन देहाती घी, साग, झंगरी, मकई ला उनकर परान छछनऽ हल । घरे ओला महिनका चाऊर, राहड़ के दाल, आलू-फुलकोबी के तरकारी के सोआद रह-रह के उनखा इयाद आवऽ हल ।; नेता जी के बतावल सब इन्तजाम फेल हो गेल हल । खाय-पीए के बात तो दूर हल, लोग पेसाब-पखाना करहूँ ला छछन रहलन हल ।) (जोमुसिं॰9.10; 49.21)
133 छहलाना (एही हालत में ऊ कुछ दिन तक गाँव में रहलन । एक दिन सबेरे गाँव के बगल के तलाब में उनखर लास छहलायल मिलल । गाँव-घर के सब लोग मिलके गाँवें में उनकर किरिया-करम कर देलन ।) (जोमुसिं॰16.19)
134 छोटका (इहाँ सब भाई मिल-जुल के बाउजी के दाह संस्कार तो कर देलन हल, बाकि घर के माली हालत अच्छा न हल । सूरज बाबू के घर आ जाय से छोटकन भाई के कुछ हिम्मत हो गेल हल । दोसरका दिन दुधमुहीं कयला के बाद जब सब भाई एक जगह जमा होयलन तऽ काम-काज में खरचा-बरचा के बात उठल ।; बनवारी बाबू के तीन बेटा हल । ... बड़का आऊ मझला तो पढ़-लिख के नोकरिओ करे लगल, छोटका कुछ पढ़े में भद-भद हल, से ऊ सतमा पास करके बाउजी के काम-धन्धा में हाँथ बटावे लगल ।; गाँव-घर, माय-बाबू के सब सपना थोड़िके दिन में चकनाचूर हो गेल हल । ऊ तो छोटका बेटा रामधारी हल, जे इनखर बुढ़ारी के लाठी बनल हल ।) (जोमुसिं॰13.9; 22.9, 15)
135 छोटकी (महेस बाबू साँस खींचइत बोललन - "हाँ चचा ! ठीक कहऽ हऽ । हमहूँ कम परेसान न ही, लेकिन सोचऽ ही, छोटकी के साथे ले जाय से घर-गिरहस्थी चौपट हो जायत ।"; हम हाँथ-गोड़ धोके तनी अरामे करे के फेर में हली कि उधर से हम्मर छोटकी बेटी झुनिआ दउड़ल आयल आऊ हँफइत बोलल - "पापा ! बुढ़वा दादा के दलान पर बड़ी मनी अदमी जमा होयल हथिन ।") (जोमुसिं॰6.29; 34.5)
136 छोट-मोट (इनखर साहितिक जीवन इसकूल से सुरू भेल हल । पहिले छोट-मोट कविता ई मगही-हिन्दी में लिखऽ हला आउ कुछ दिन के बाद ऊ फट-फुट के भुला जा हल ।; अब मधेसर बाबूओ डाक्टर बन गेलन । गाँव के बगले में एगो छोट-मोट बजार हल जहाँ हप्ता में दु दिन मेलो लगऽ हल । मधेसर बाबू एही बजार में एगो छोट-मोट कोठरी लेके परैक्टिस सुरू कर देलन ।) (जोमुसिं॰vi.2; 29.9, 10)
137 छौ-पाँच (~ में) (मास्टर साहेब के बदली के कागज आ गेल । छौ-पाँच में मास्टर साहेब कुछ दिन तक तो जनानी डेरा न ले गेला, लेकिन आखिर ई बात कब तक निबहे ओला हल । एक दिन मास्टर साहेब डेरा खाली कर देलका ।) (जोमुसिं॰32.9)
138 जइसहीं (जब तक बाउजी बचऽ हलन जटाधारी बाबू अन्धविसवास, रूढ़ीवाद, पाखण्ड, कर्मकाण्ड, बरहामनवाद आऊ पूजापाठ के सख्त विरोधी हलन । लेकिन जइसहीं घर में लक्ष्मी आवे लगल इनखर विचार बदले लगल ।) (जोमुसिं॰24.10)
139 जतन (= यत्न) (नन्हें के आदत लइकइए से गाय-गोरू चरावे में लइकन के साथे बिगड़ गेल हल । ई से लाख जतन कैलो पर नन्हें न पढ़ सकल । बहुत करे-धरे से कोई तरी अप्पन नाओ-गाँओ लिखे ला सीख लेलक हल ।) (जोमुसिं॰46.27)
140 जतरा-पतरा (मिसिर बाबा ई इलाका के गुरु-पुरोहित हला । करमकांड, ज्योतिस, हस्त-रेखा, तंतर-मंतर, टोना-टोटका, जतरा-पतरा, सगुन में इनखर जोड़ के कोई पंडित न हला । ई सब के अलावे ई बइदगिरियो करऽ हलन ।) (जोमुसिं॰39.19)
141 जनानी (डेरा में जनानी के नऽ रहे से औफिस से अयला के बाद चुल्हो-चऊका अपने करे पड़ऽ हे ।; जनानी के साथे रहे से तोरो बनल-बनावल खाना मिल जयतो आऊ लइकमनों के कोई अच्छा इसकूल में नाम लिखवा देबहू तऽ ओखिनियों के जिनगी बन जइतइ ।) (जोमुसिं॰6.18; 7.8)
142 जमान (= जवान) (धीरे-धीरे नन्हें अब जमान होयत जाइत हल । अब ऊ अप्पन माय के दुःख-दरद बुझे लगल हल ।) (जोमुसिं॰46.13)
143 जमानी (= जवानी) (गुलबिआ एक जौ रोज बढ़े लगल । देखते-देखते ऊ जमानी के दहलीज पर पहुँच गेल । अब मिसिर बाबा के नजर तर गुलबिआ के चेहरा नाचे लगल ।) (जोमुसिं॰43.4)
144 जर-जमीन (देखऽ सुरेस बाबू ! तूँ बड़ी अकलमन्दी से एतना दिन तक घर-परिवार के निवाह कयलऽ । लेकिन अब महेसो लइका नऽ रह गेलन हे । इनखो तो खरचा-बरचा बढ़ले जाइत हई । जर-जमीन से कुछ मिलइते न हई । आखिर बाप-माय के जमीन-जायदाद में इनखो तो कुछ हिस्सा-बखरा होएब करऽ हई ।; बाउजी के काम-काज करके जटाधारी बाबुओ निसचिंत हो गेला । अब घर से फिर समपरक बढ़ौलका । जर-जमीन खुदे देखे-सुने लगला ।; एने-ओने के अइसने बात करके धनेसर बाबू अप्पन पिंड छुड़ा लेथ । ऊ न चाहऽ हलन कि डाक्टर के बिआह होवे काहे कि अभी ऊ जे कमाइत हे सब के सब उनखरे बाल-बच्चा आऊ परिवार ओलन में खरचा होइत हे । सादी के बाद ऊ तो गोतिया बन जायत । नगद-नरायन के साथे-साथ जर-जमीनो में अप्पन हिस्सा बँटावे लगत ।) (जोमुसिं॰9.26; 24.6; 31.20)
145 जरा-मना (भला छोटकी के जाय से का फरक पड़े ओला हई ? इहाँ भगमान के देनी से कऊन चीज के कमी हे, आऊ फिन जरा-मना उन्नइस-विनइस भेल तो पइसा पर अदमी भेंटाइए जा हे ।) (जोमुसिं॰7.5)
146 जरिको (कमाऊ पुत के बाप के दिमाग सतमा असमान पर चढ़ जाहे । विआह ला आयल अगुआ से मोल-जोल करे में ओकरा जरिको लाज सरम न लगे ।) (जोमुसिं॰ii.28)
147 जलम (= जन्म) (रामलाल बाबू के तीन बेटा हला । धनेसर, चनेसर आऊ मधेसर । धनेसर, चनेसर सुरुए से पढ़-लिख के नोकरी करे लगला हल । लेकिन छोटका भाई मधेसर जलमे से विकलांग हल ।) (जोमुसिं॰28.25)
148 जहिआ (= जहिया; जिस दिन) (जहिआ से बेटी किहाँ से ई चिट्ठी आयल हल, धुरफन्दी लाल के अकिले हेरा गेल हल । गाँव-घर में जहाँ दु-चार गो अदमी एक जगह जुट जा हलन ऊहें धुरफन्दी लाल के बात निकल जा हल ।) (जोमुसिं॰35.1)
149 जहिना (सब हित-कुटुम के सामनहीं ऊ घर में जुदागी के टंठा डाल देलन । लेकिन माय कहलन कि जब तक हम बच रहली हे तोर हिस्सा कहाँ से अइलऊ ? जो अप्पन काम-काज कर गन । जहिना हम मर जइबऊ तहिना तूँ आके अप्पन हिस्सा-बखरा बाँट लिहें ।; एक दिन तो ऊ आलोक के खुल के कह देलन कि तूँ अप्पन तनख्वाह के आधा पइसा हमरा दे दे न तो तोर नोकरी हम्मर मुट्ठी में हऊ । जहिना चाहबऊ तोर नोकरी तो जयबे करतऊ आऊ जेलो के हावा खइमें ।) (जोमुसिं॰13.27; 21.10)
150 जात (= जाति; वर्ग) (सिरीमती जी भी दोसर जात में बिआह करे के पछ में न हथ । लेकिन बात इहें तक रहत हल तइयो कोई झमेला नऽ हल ।; ऊ साम के बखत बुझामन चचा से जे बतकही करलन हल, सब कह सुनौलन । अब छोटकी सब बात सुनके टुभकलन - "अब तोर आँख खुललो । हम कहतिओ हल तऽ कहतऽ हल कि औरत जात घरफोरनी होवऽ हे ।") (जोमुसिं॰3.17; 7.29)
151 जानिस (= जानिस्ते, जनिस्ते) (बनवारी बाबू गरीबता हालतो में तीनों बेटा के पढ़ावे-लिखावे में कोई कोर-कसर न रखलन । अपना जानिस सादी-विआहो सोच-समझ के बेसे घर में कर देलन ।) (जोमुसिं॰22.7)
152 जामा (= जमा) (धिरे-धीरे कुछ पइसा जामा करके अब डेढ़ कट्ठा जमीनो सहर के बीच में ले लेलन हल ।) (जोमुसिं॰9.7)
153 जिनगी (जनानी के साथे रहे से तोरो बनल-बनावल खाना मिल जयतो आऊ लइकमनों के कोई अच्छा इसकूल में नाम लिखवा देबहू तऽ ओखिनियों के जिनगी बन जइतइ ।; डाक्टरो साहेब अप्पन बड़का भाई साहेब के मंसा समझ गेलन हल, लेकिन उनखर सामने कहे के हिम्मत न जुटा रहलन हल । लेकिन उमर सरक रहल हल, ई से आगे साफ अन्हार लौके लगल हल । अब हमेसे चिंता आऊ तनाओ में रहे लगलन । ई से अब ई खूदे अप्पन जिनगी के अगला कदम के बारे में सोचे ला मजबूर हो गेलन ।) (जोमुसिं॰7.10; 31.28)
154 जिला-जेवार (अब चाचा-भतीजा आमने-सामने आ गेलन हल । एक दूसर के खून के पिआसल इधर-उधर घुमइत-फिरइत रहऽ हलन । गाँव-घर, जिला-जेवार सब पंचइती करके थक गेला लेकिन कोई हल न निकलल ।) (जोमुसिं॰21.29)
155 जुकुत (= जुकुर, लायक) (इनखर पढ़ाई के भूख जगावे में श्री रानवृक्ष सिंह सिच्छक, डोमन बिगहा {ऊबेर} जहानाबाद के जोगदान काफी सराहे जुकुत हल ।) (जोमुसिं॰iv.14)
156 जुकुर(जब सिलबा बिआहे जुकुर हो गेल हल तऽ ऊ घड़ी इनखर जादू पुरे असमान पर हल । ई युवक संघ के आला अदमी बनल हला, जेकर नारा हल - "बेट-बेटी नहीं बिकेंगे - युवकों ने ललकार है' यानी तिलक-दहेज के बिना ही अब सादी होगी ।) (जोमुसिं॰36.3)
157 जुदागी (= जुदाई, बँटवारा) (महेस बाबुओ मुड़ी हिला देलन आऊ दुनो भाई में जुदागी हो गेल । महेस बाबू अप्पन खेत बँटइआ लगा के सहर लौट अयलन ।; जुदागी के बाद भाई से तफरका होइए गेल हल, से भाई के ऊ एको कट्ठा जमीन न देलन ।; सब हित-कुटुम के सामनहीं ऊ घर में जुदागी के टंठा डाल देलन । लेकिन माय कहलन कि जब तक हम बच रहली हे तोर हिस्सा कहाँ से अइलऊ ? जो अप्पन काम-काज कर गन । जहिना हम मर जइबऊ तहिना तूँ आके अप्पन हिस्सा-बखरा बाँट लिहें ।; तोहनी दुनो भाई पढ़ल-लिखल हऽ । तनि अप्पन आऊ गाँव-घर के इज्जतो-पानी के खेयाल करइत जा । अरे जुदागी तो होयबे करत । तऽ एतना उबिआए से काम न चलत । दुनों सांत रहऽ, कोई न कोई रसता जरूरे निकलत ।) (जोमुसिं॰10.7, 17; 13.25; 28.19)
158 जुमान (= जुबान) (लोग काने-कान इधर-उधर इनखर सादी-बिआह के बातो करे लगला हल । लेकिन डाक्टर साहेब अप्पन बड़का भाई से खार खा हला । उनखा सामने इनखर जुमान न हिल सकऽ हल । तऽ बिआह के बात कइसे उठयता हल ।) (जोमुसिं॰31.8)
159 जे (= जो) (अन्त में ई कहानी सेंगरह के तइयार करे में सामने इया पाछे से जे हमरा उत्साह बढ़ौलन हे, ऊ सभे के परति हम अभार जतावइत ही ।) (जोमुसिं॰i.15)
160 जेकर-तेकर (ई लेके ऊ सोंचे लगलन कि जमीन बटाई देवे से अच्छा हे कि ओकरा बेच-बाच के पइसा बैंक में रख देल जाय जहाँ सूद-बेआजो मिलत आऊ पइसो हिफाजत से रहत । ई सोच के ऊ अप्पन हिस्सा के सब जमीन जेकर-तेकर हाथे केवाला कर देलन ।) (जोमुसिं॰10.17)
161 जेकरा (लइका के सादी-बिआह तो आझकल माय-बाप ला एगो "ब्लैंक चेक" कहावऽ हे जेकरा पर जेतना चाहऽ लिख दऽ । आऊ एगो तूँ हऽ जे असमान के अप्पन माथा पर उठइले फिरइत हऽ । भला बेटा के बिआह कऊन अइसन चीज हे जेकरा ला तूँ सोच में पड़ल हऽ ।) (जोमुसिं॰2.20, 22)
162 जेतना (लइका के सादी-बिआह तो आझकल माय-बाप ला एगो "ब्लैंक चेक" कहावऽ हे जेकरा पर जेतना चाहऽ लिख दऽ । आऊ एगो तूँ हऽ जे असमान के अप्पन माथा पर उठइले फिरइत हऽ । भला बेटा के बिआह कऊन अइसन चीज हे जेकरा ला तूँ सोच में पड़ल हऽ ।) (जोमुसिं॰2.20)
163 जोरन (= जोड़न) (मगही माय के दूध से भरल हाँड़ी में हम 'जोरन' डाल रहली हे, जेकरा से मगध के माट्टी में रसल-बसल आउ पसरल मगही भासा जम जाय, जेकर मलाई, मखन आउ मट्ठा खा-खा के सब मगहिअन भाई-बहिन सरीर के साथे-साथे दिमागो से मजबूत बन जाथ आउ समाज के साथे देसो के माथा ऊपर उठावे में मदतगार बनथ ।) (जोमुसिं॰i.2)
164 झंगरी (= झंगड़ी) (महेस बाबू के औरतो अब देहात जायल न चाहऽ हलन । लेकिन देहाती घी, साग, झंगरी, मकई ला उनकर परान छछनऽ हल । घरे ओला महिनका चाऊर, राहड़ के दाल, आलू-फुलकोबी के तरकारी के सोआद रह-रह के उनखा इयाद आवऽ हल ।) (जोमुसिं॰9.10)
165 झंझट-पटपट (आलोक बाबू अब सब समझऽ हलन । लेकिन कब तक निबाह करतन हल । उनखो पर घर-गिरहस्थी के भार आ गेल हल । ई लेके ऊ रोज-रोज के झंझट-पटपट से दूर हो जायल चाहऽ हलन । एक दिन ऊ फैसला कर लेलन कि अब चाहे जे होवे अप्पन तनख्वाह में से चचा के एको पइसा न देम ।) (जोमुसिं॰21.5)
166 टंठा (सब हित-कुटुम के सामनहीं ऊ घर में जुदागी के टंठा डाल देलन । लेकिन माय कहलन कि जब तक हम बच रहली हे तोर हिस्सा कहाँ से अइलऊ ? जो अप्पन काम-काज कर गन । जहिना हम मर जइबऊ तहिना तूँ आके अप्पन हिस्सा-बखरा बाँट लिहें ।) (जोमुसिं॰13.25)
167 टीसन (ऊ दिन हम गाँव गेल हली । गाड़ी लेट से खुलल हल आऊ ठामे-ठामे भैकम के चलते ई टीसन करीब चार बजे पहुँचल हल ।) (जोमुसिं॰34.2)
168 टुभकना (ऊ साम के बखत बुझामन चचा से जे बतकही करलन हल, सब कह सुनौलन । अब छोटकी सब बात सुनके टुभकलन - "अब तोर आँख खुललो । हम कहतिओ हल तऽ कहतऽ हल कि औरत जात घरफोरनी होवऽ हे ।") (जोमुसिं॰7.28)
169 टोना-टोटका (मिसिर बाबा ई इलाका के गुरु-पुरोहित हला । करमकांड, ज्योतिस, हस्त-रेखा, तंतर-मंतर, टोना-टोटका, जतरा-पतरा, सगुन में इनखर जोड़ के कोई पंडित न हला । ई सब के अलावे ई बइदगिरियो करऽ हलन ।) (जोमुसिं॰39.19)
170 टोला-टाटी (एकर बेओहार से माय-बाबू तो खुस हइए हला, टोला-टाटी के जुआन लइकनो दाँत से अंगुरी काटे लगऽ हलन ।) (जोमुसिं॰39.16)
171 ठइंचना (नन्हें के पनरह अदमि के खोराक मिल गेल । चुड़ा-मीठा, सतू के मोटरी ले के नन्हें गाड़ी के उपरे सवार हो गेल । गाड़ी नीचे से ऊपर तक ठइंच गेल । कनहूँ देहो हिलावे के जगह न रहल ।) (जोमुसिं॰49.14)
172 डेरा-डन्डा (जब सूरज बाबू मैट्रिक के फारम भरलन तऽ उनखर सेन्टर गया सहर में आ गेल । ऊ कहिओ सहर-बजार देखलन नऽ हल । बाउजिओ खेती-बारी में लगल रहऽ हलन । अब सहर में रह के परिछा देवे के जब बारी आयल तऽ डेरा-डन्डा खोजे में उनखा बड़ी दिक्कत होल ।) (जोमुसिं॰12.9)
173 ढुकाना (= प्रवेश कराना) (पइसा सब एडभांस करौला के बाद कहलन कि इनसाल हम सादी के पछ में न ही । किराया के मकान में पुतोह कइसे ढुकायम ।) (जोमुसिं॰25.26)
174 तंतर-मंतर (मिसिर बाबा ई इलाका के गुरु-पुरोहित हला । करमकांड, ज्योतिस, हस्त-रेखा, तंतर-मंतर, टोना-टोटका, जतरा-पतरा, सगुन में इनखर जोड़ के कोई पंडित न हला । ई सब के अलावे ई बइदगिरियो करऽ हलन ।) (जोमुसिं॰39.19)
175 तइयो (सिरीमती जी भी दोसर जात में बिआह करे के पछ में न हथ । लेकिन बात इहें तक रहत हल तइयो कोई झमेला नऽ हल ।) (जोमुसिं॰3.18)
176 तकिआ-कलाम (ई समाज के सामने नाटक, एकांकी लिख के सच्चाई लावल चाहऽ हला । लेकिन एगो इनखर तकिआ कलाम हल कि 'उपदेस दोसरा ला होवऽ हे ' ।) (जोमुसिं॰35.23)
177 तनखाह (अब सूरज बाबू के हमेसा सहर में रहे के मौका मिल गेल । तनखाह के अलावे ऊपरी आमदनियो बेसे हो जा हल ।) (जोमुसिं॰12.25)
178 तनि (तोहनी दुनो भाई पढ़ल-लिखल हऽ । तनि अप्पन आऊ गाँव-घर के इज्जतो-पानी के खेयाल करइत जा । अरे जुदागी तो होयबे करत । तऽ एतना उबिआए से काम न चलत । दुनों सांत रहऽ, कोई न कोई रसता जरूरे निकलत ।) (जोमुसिं॰28.18)
179 तनि-तनि (~ बात पर) (मनोहरो अब सिलबा के साथे पहिलका बरताओ न करथ, तनि-तनि बात पर उखड़ जाथ ।) (जोमुसिं॰37.30)
180 तनी (हम हाँथ-गोड़ धोके तनी अरामे करे के फेर में हली कि उधर से हम्मर छोटकी बेटी झुनिआ दउड़ल आयल आऊ हँफइत बोलल - "पापा ! बुढ़वा दादा के दलान पर बड़ी मनी अदमी जमा होयल हथिन ।") (जोमुसिं॰34.4)
181 तफरका (जुदागी के बाद भाई से तफरका होइए गेल हल, से भाई के ऊ एको कट्ठा जमीन न देलन ।) (जोमुसिं॰10.18)
182 तरी (= तरह) (गाँव के बगले में बजार हल जहाँ सर-सब्जी असानी से बिक जा हल जे से कोई तरी दाल-रोटी के जुगाड़ हो जा हल ।; आखिर ई तरी दिन केतना दिन गुजरत हल । ऊ अब अप्पन जान देखे कि बेटा के जान देखे । जब सब रसता बन्द बुझायल तऽ अन्त में अप्पन बाजी के पास चुपके से एगो बैरन लगा देलक ।) (जोमुसिं॰22.4; 38.4)
183 तरे-तरे (= भीतर-भीतर, अन्दर-अन्दर) (धुरफन्दी लाल तो चतुर खिलाड़ी हला । ई से बइठले-बइठले अइसन जुगाड़ भिड़ौलका कि आठ बिगहा जमीन भेंटा गेल । हिस्सा-बखरा बाँटेओला कोई हइए न हल । बिआह के मंच पर धुरफन्दी लाल तिलक-दहेज के खिलाफ फिर तगड़ा भाखन देलका आऊ कहलका कि सादी में तिलक-दहेज के रूप में हम एक छेदाम न जानी । ... "तरे-तरे गुड़ चुरा, ऊपरे से एकारसी" ओला कहाऊत सच निकलल । ई से मनोहर बाबू के ई बात लग गेल ।) (जोमुसिं॰37.25)
184 तहिना (सब हित-कुटुम के सामनहीं ऊ घर में जुदागी के टंठा डाल देलन । लेकिन माय कहलन कि जब तक हम बच रहली हे तोर हिस्सा कहाँ से अइलऊ ? जो अप्पन काम-काज कर गन । जहिना हम मर जइबऊ तहिना तूँ आके अप्पन हिस्सा-बखरा बाँट लिहें ।) (जोमुसिं॰13.27)
185 तेसरका (ऊ तेसरका बेर फारम पूरक परिछा के साथे भरवौलका । अबरी जुगाड़ लग गेल । कौपी बाहर आ गेल । आलोक बाजी मार लेलक । अबरी ऊ खाली पासे न भेल बिलुक पूरा सेन्टरे भर में टौप कर गेल ।) (जोमुसिं॰20.26)
186 थोड़िके (गाँव-घर, माय-बाबू के सब सपना थोड़िके दिन में चकनाचूर हो गेल हल । ऊ तो छोटका बेटा रामधारी हल, जे इनखर बुढ़ारी के लाठी बनल हल ।) (जोमुसिं॰22.14)
187 थोड़िको (अगर एकरा से अपने के थोड़िको सहमति हमरा भेटा हे, तऽ एकरा से हमरा आगे बढ़े में मदत मिलत ।) (जोमुसिं॰i.12)
188 दन्ड-परनाम (एही बीच राधे बाबू आ गेलन । दन्ड-परनाम होयला के बाद ऊ हम्मरे साथे चउँकी पर बइठ गेलन ।; भाइओ अब बदल गेलन हल । दन्ड-परनाम भर रिसता रह गेल हल ।) (जोमुसिं॰1.11; 9.18)
189 दमाद (= दामाद) (ओकरा लालन-पालन, पढ़ाई-लिखाई आउ सादी-बिआह में अप्पन सारा कमाई लगा देलन, लेकिन संयोग से दमाद अच्छा न भेंटायल । ससुरारी पइसा के चलते ऊ आउ बिगड़ गेल ।; अब शिवधारी अप्पन सब जमीन-जायदाद दमाद के लिख-पढ़ के निश्चिंत हो गेला ।; आखिर मनोहर बाबू पाँच बच्छर तक तो तोरा से कुछो न माँगलथुन लेकिन जब तू अप्पन भतीजा आउ बेटा के बिआह में तिलक-दहेज के जगह पर आठ-दस बिगहा जमीन लिखा लेलहू तऽ फिन ऊ काहे मुँह बन्द कैले रहथ । दमाद हथ । तऽ उनखो माँग सहिए हे ।) (जोमुसिं॰22.19, 28; 38.20)
190 दरखास (डाक्टर साहबो भी मास्टरी ला अप्पन दरखास दे देलन आऊ फिर इनखर बहाली एगो बगले के इसकूल में हो गेल । अब डाक्टर साहेब, मास्टरो साहेब बन गेला ।) (जोमुसिं॰30.27)
191 दलान (= दालान) (हम हाँथ-गोड़ धोके तनी अरामे करे के फेर में हली कि उधर से हम्मर छोटकी बेटी झुनिआ दउड़ल आयल आऊ हँफइत बोलल - "पापा ! बुढ़वा दादा के दलान पर बड़ी मनी अदमी जमा होयल हथिन ।") (जोमुसिं॰34.6)
192 दाखिल-खारिज (केस भेला पर एहू बात सामने आ गेल कि जऊन जमीन पर ऊ मकान बनौलका हे ऊ गरमजरूआ हे । ई करमचारी आऊ अंचल में पइसा देके नजाइज ढंग से दाखिल खारिज के रसीद ले लेलन हल । मलगुजारी ओला रसीदो जाली हल । अब ई केस में अइसन फँसलन कि आझ तक छुटकारा न भेल हे ।) (जोमुसिं॰15.5)
193 दिआ (= दिया, दिका; द्वारा) (अपने कने कस्ट करे चल अइली सतीस बाबू ? अगर कोई काम हल तऽ कोई दिआ खबर भेज देती हल, हम खूदे आ जइती हल ।) (जोमुसिं॰18.8)
194 दिन-दुनियाँ (सुरेस बाबुओ आखिर दिन-दुनियाँ देखले हलन । ऊ समझ गेलन कि पानी अब सिर के ऊपरे होवे ओला हे । ई से एकर उपाई जल्दीए कर देवे में गुंजाइस हे ।; एकर अलावे ई आझ तक अप्पन पूँजी लगा के कोई रोजगार न कयलन हल, बिलुक बाते इनखर पूँजी हल, जेकर बल पर अप्पन दिन-दुनियाँ चला रहला हल ।) (जोमुसिं॰10.1; 35.19)
195 दुगनाना (= दुगना होना) (डाक्टर साहबो भी मास्टरी ला अप्पन दरखास दे देलन आऊ फिर इनखर बहाली एगो बगले के इसकूल में हो गेल । अब डाक्टर साहेब, मास्टरो साहेब बन गेला । अब आमदनी तो दुगना गेल, लेकिन परेसानिओ पहिले से जादहीं हो गेल हल ।) (जोमुसिं॰30.29)
196 दुधमुहीं (इहाँ सब भाई मिल-जुल के बाउजी के दाह संस्कार तो कर देलन हल, बाकि घर के माली हालत अच्छा न हल । सूरज बाबू के घर आ जाय से छोटकन भाई के कुछ हिम्मत हो गेल हल । दोसरका दिन दुधमुहीं कयला के बाद जब सब भाई एक जगह जमा होयलन तऽ काम-काज में खरचा-बरचा के बात उठल ।) (जोमुसिं॰13.10)
197 दुसरका (दुसरका दिन सबेरहीं महेस बाबू नेहा-धोवा के जाय ला तइयार हो गेलन । भौजाई उनखा कहलन कि खा-पी के जइतऽ हल तऽ अच्छा होइत हल ।; ई लेके जब दुसरका साल अगुआ के साथे कुटुम दिन तारीख ला पहुँचल तऽ ई अब अप्पन रंग बदल देलन । सोचलन कि हाँथ में एगो पइसा नऽ हे । कुटुम बराती आवे ला तंग करइते हे, तऽ कमो पर पचास-साठ हजार तो लगिए जायत ।) (जोमुसिं॰8.6; 25.30)
198 दुहारी (जे कहिनो समाजिक काम ला न एक पइसा निकालऽ हलन, न एक घन्टा समये देवे ला तइआर होवऽ हलन, अब सब काम में खुल के हाँथ बटावे लगलन । एको मिटिंग इनखा से न छुटे आऊ चन्दा उगाहिओ में दुहारीए-दुहारीए भटकल फिरथ ।; तोरा से सरीर का माटिओ छुआ हे । लेकिन जब तूँ हमर सरन में आ गेले हें, तऽ ई बात तूँ जान ले कि आझ तक हमर दुहारी से कोई निरास न लौटल हे ।) (जोमुसिं॰24.30; 40.12)
199 देखल-सुनल (आसपास के परिवेस में देखल-सुनल आउ भोगल घटना पे आधारित इनखर कहानी जीवंत आउ मरम के छुए ओला हे ।) (जोमुसिं॰ii.16)
200 देखाना-सुनाना (मिसिर बाबा के असिरवादे से गुलबिया के जलम भेल हल । जब गुलबिआ के माय-बाबू सगरो देखा-सुना के थक गेला हल आऊ सनिचरी के गोदी न भरइत हल तऽ अन्त में फेंकन आऊ सनिचरी बाबा के सरन में आयल हल ।) (जोमुसिं॰40.6)
201 देनी (= देन) (भला छोटकी के जाय से का फरक पड़े ओला हई ? इहाँ भगमान के देनी से कऊन चीज के कमी हे, आऊ फिन जरा-मना उन्नइस-विनइस भेल तो पइसा पर अदमी भेंटाइए जा हे ।) (जोमुसिं॰7.5)
202 दोसरका (= दुसरका) (सूरज बाबू दोसरका दिन चुपचाप अप्पन काम पर सहर लौट अयला ।) (जोमुसिं॰13.28)
203 दोहारी (= दुहारी) (तूँ तो टोला-महल्ला के अदमी हें । तऽ ई लेके तोरा ला हम सब उपाय-पतर कर देबऊ, लेकिन जे कहबऊ से सब तोरा आँख मून के करे पड़तऊ । अगर तोरा से ई हो सके तो गछ आउ न तो दोसर दोहारी देख । फेंकन आऊ सनिचरी दुनों हाथ जोड़ले मिसिर जी के बात मान लेलक, काहे कि गोदी भरे के एकरा आऊ कोई उपाय न बुझाइत हल ।; नन्हें दिन-दिन भर एने-ओने लइकन साथे खेलइत-कुदइत रहऽ हल । भूख लगला पर धरखा पर से आधा रोटी उतार के खा ले हल आऊ फिन लइकन साथे खेले में लग जा हल । साँझ जब होवऽ हल, अप्पन दोहारी पर बइठ के माय के आवे के इन्तजार करे लगऽ हल ।) (जोमुसिं॰40.15; 46.7)
204 दोहारी (दन्ड-परनाम करइत बोललन - "अप्पने भोरे-भोरे कने कष्ट कइली मास्टर साहेब । ई गरीब के दोहारी पर तो अप्पने के सेवा करे लायक कुछो हइए न हे । एगो बेटी भी हल ओकरो पहिलहीं नहकार देली हे ।"; सुबह से साम तक इसकूल में माथा-पच्ची कयला के बाद जब डेरा लौटथ तो इहाँ पहिलहीं से मरीज लोग दोहारी घेरले रहथ । नस्तो-पानी के फुर्सत इनखा न मिले । आराम तो हराम हो गेल ।) (जोमुसिं॰27.3; 31.3)
205 धरखा (= ताखा) (दिन भर बन-मजूरी कैला के बाद जब बेर डूबे घर लौटऽ हल, तऽ सब से पहिले नन्हें के खोज करऽ हल । नन्हें दिन-दिन भर एने-ओने लइकन साथे खेलइत-कुदइत रहऽ हल । भूख लगला पर धरखा पर से आधा रोटी उतार के खा ले हल आऊ फिन लइकन साथे खेले में लग जा हल ।; रात में खा-पी के माय-बेटा सबेरहीं साथ ही सूत जा हल । भोरे उठ के नन्हें ला दू गो रोटी बना के धरखा पर कटोरी में कर के रख दे हल आऊ फिन ऊ काम पर चल जा हल ।) (जोमुसिं॰46.6, 11)
206 धोकड़ी (= जेब) (ऊ मेहनत से पढ़ल-लिखल तऽ ओकरा नोकरी भेंटा गेलई । हाँ, जब जादे लोग तंग करे लगलथ तऽ ऊ एगो चौकलेट जरूर थमा देथ । आऊ कुछ दिन तक ऊ धोकड़ी में चौकलेट लेके चलबो करऽ हलन ।) (जोमुसिं॰24.25)
207 नइहर (एक दिन सिलबा के नइहर से बिआह के नेओता लेके हजाम आयल । हजाम के आवभगत में कोई कमी न होयल । सिलवा के चचेरा भाई के बिआह हल ।; अब खूदे सिलबा अप्पन नइहर न आवे के गिरह बान्ह लेलक हे । कहऽ हे - "भाई-भौजाई केकर होयल हे जे हम्मर होयत ।"; पंडिताइन माय-बेटी नइहर चल गेलथुन हे ऊहाँ सारा के बेटी के सादी हई ।) (जोमुसिं॰36.31; 38.29; 43.27)
208 नऊआ (= नउआ, नाई) (एकरे निदान ला ई नयका विधि से बिआहो कराना सुरू कर देलका हल जेकरा में बरहामन, नऊआ के अलावे मड़वा, मटकोर, घीढ़ाढ़ी के जरूरत न पड़ऽ हल ।) (जोमुसिं॰36.14)
209 नगद-नरायन (एने-ओने के अइसने बात करके धनेसर बाबू अप्पन पिंड छुड़ा लेथ । ऊ न चाहऽ हलन कि डाक्टर के बिआह होवे काहे कि अभी ऊ जे कमाइत हे सब के सब उनखरे बाल-बच्चा आऊ परिवार ओलन में खरचा होइत हे । सादी के बाद ऊ तो गोतिया बन जायत । नगद-नरायन के साथे-साथ जर-जमीनो में अप्पन हिस्सा बँटावे लगत ।) (जोमुसिं॰31.19)
210 नगीच (= नजदीक) (बात अइसन हे मुनी बाबू कि हम अप्पन लइका के सादी अप्पन साखा से अलग करे के विचार रखऽ हली आउ एही से एगो अच्छा सुखी-सम्पन्न, पढ़ल-लिखल परिवार के हिंआ अप्पन रिसतो तै कर देली हल । लड़की भी पढ़ल-लिखल, सुनर-सुसील, गुनवान हल, जेकरा हम काफी नगीच से देखली हल ।; एक दिन सबेरहीं बनवारी बाबू के ई चोला बाथरूम में गिरल मिलल । जटाधारी बाबू नगीच जाके देखलन । इनकर परान-पखेरू निकल चुकल हल ।) (जोमुसिं॰3.5; 24.3)
211 नगीची (= नजदीकी) (बाहरी फोकस, पेन्हावा-ओढ़ावा आऊ सोआगत-सतकार में महिनी देखवइते हला । ई लेके कुटुम के समझ में न आयल कि ई केतना पानी में हथ आऊ ई नगीची के जानल-पहचानल अगुआ से जल्दी बाते करल न चाहऽ हलन ।; एक-दुगो तो इनखर बेओहार से एतना परेसान हो गेलन कि ओखनी हमेसा के लेल बजारे छोड़ देलन । जे दु-चार गो मधेसर बाबू के नगीची आऊ सलाहकार हला ओहू भाग खड़ा होयलन ।) (जोमुसिं॰25.19; 33.14)
212 नजाइज (= नाजायज) (केस भेला पर एहू बात सामने आ गेल कि जऊन जमीन पर ऊ मकान बनौलका हे ऊ गरमजरूआ हे । ई करमचारी आऊ अंचल में पइसा देके नजाइज ढंग से दाखिल खारिज के रसीद ले लेलन हल । मलगुजारी ओला रसीदो जाली हल । अब ई केस में अइसन फँसलन कि आझ तक छुटकारा न भेल हे ।; बिना तामझाम के सादा-सादी ढंग से समाज के दस गो अदमी के सामने माय-बाबू आऊ लइका-लइकी के सहमति पर फूल माला पहिरा के सादी करवा देल जा हल । एको पइसा नजाइज खरचा न होवऽ हल । एकर बाद आयल गेल, हित-कुटुम के खिलान-पिलान होवऽ हल ।) (जोमुसिं॰15.5; 36.17)
213 नस्ता-पानी (बड़ा बाबू आऊ छोटा बाबू तक बात रहत हल तऽ कामो चल जायत हल । साहेब खुदे पइसा ला औफिस के पाछे ले जाके बतिआ हे । चर-चपरासी के कुछ चहवे करी । नस्ता-पानी में खरचा हे से अलावे ।; सुबह से साम तक इसकूल में माथा-पच्ची कयला के बाद जब डेरा लौटथ तो इहाँ पहिलहीं से मरीज लोग दोहारी घेरले रहथ । नस्तो-पानी के फुर्सत इनखा न मिले । आराम तो हराम हो गेल ।) (जोमुसिं॰19.18; 31.3)
214 नाक (ऊ साम के बखत बुझामन चचा से जे बतकही करलन हल, सब कह सुनौलन । अब छोटकी सब बात सुनके टुभकलन - "अब तोर आँख खुललो । हम कहतिओ हल तऽ कहतऽ हल कि औरत जात घरफोरनी होवऽ हे । नाक न रहे त ई मइले खाय लगे । से सब बात अप्पने सुन लेलऽ । हम तोरा का कहिओ । ऊ चचा ठीके कहऽ हथुन ।") (जोमुसिं॰7.29-30)
215 ना-नुकूर (जइसे-जइसे हम उपाय बतावऽ हिअऊ, ओइसे-ओइसे तूँ करले जो । मगर एक बात के खेयाल रखिहें कि ई बात तेसर के कान में न जाय । न तो बनल खेल बिगड़ जइतऊ आऊ मसान के बिगड़ला पर जानो पर आफत आ जइतऊ । फेंकन दुनों परानी हाँथ जोड़ले भगमान के कथा नियन सुनइत चल गेल, कहीं पर ना-नुकूर न कयलक ।) (जोमुसिं॰40.29)
216 निअन (= नियन, नियर, नीयर; के समान) (महेस बाबू खाय लगलन लेकिन उनखा आझ खाना में कोई सवादे न मिल रहल हल । जइसे-तइसे खा पीके अप्पन घर में सुते चल गेलन । लेकिन उनखर आँख से नीन कोटा के रासन निअन गायब हो गेल हल ।) (जोमुसिं॰7.20)
217 निन (= नीन, नींद) (जटाधारी बाबू के अब आँख के निन हराम हो गेल । पास में फुटल कउड़िओ न हल । तिलक के पइसा के अलावहूँ मकान बनावे में कुछ करजा-पइंचा पहिलहीं हो गेल हल । खेती-बारी जादे हइए न हल, जेकरा बेच-खोंच के उनखर पइसा लउटयतन हल ।) (जोमुसिं॰26.24)
218 निबहना (कुछ दिन तक महेस बाबुओ खेती-बारी पर बिसेस धेयान देलन । बँटाइदारो कुछ इमानदारी बरतलक, आऊ गला-पानी बाँट के सहर तक पहुँचइलक भी । लेकिन ई जादे दिन न निबहल ।) (जोमुसिं॰10.11)
219 निवाह (= निर्वाह) (देखऽ सुरेस बाबू ! तूँ बड़ी अकलमन्दी से एतना दिन तक घर-परिवार के निवाह कयलऽ । लेकिन अब महेसो लइका नऽ रह गेलन हे । इनखो तो खरचा-बरचा बढ़ले जाइत हई । जर-जमीन से कुछ मिलइते न हई । आखिर बाप-माय के जमीन-जायदाद में इनखो तो कुछ हिस्सा-बखरा होएब करऽ हई ।) (जोमुसिं॰9.24)
220 नीन (डाक्टर साहेब के लगल कि अब किधर जाई । जउन पेड़ तर सरन लेले हली ओहू अब गिर गेल । अब अप्पन खोंता कहाँ बनाई ? अब रात-रात भर डाक्टर साहेब के नीन न आवे ।; तोरा जागे से समाज आऊ सरकार दुनो के नीन खुलत । जब तक बच्चा न रोवे, माय के दूध पिलावे के धेयान न रहे । ई सरकार के नीन तोड़ावे ला अप्पन आवाज आझ बुलन्द करऽ ।) (जोमुसिं॰32.14; 49.25, 26)
221 नून ("डाक्टर के बिआह, आऊ फिन साले भर में बेटा" - ई दुनो बात जान के धनेसर बाबू के सपना टूट गेल । लगल कि कोई उनखर जरल देह पर नून छिट देलक होय ।) (जोमुसिं॰33.7)
222 नून-मिचाई (~ लगा के कहना) (अब बुझामन के दुनो हाँथ में लड्डू मिल गेल हल । ऊ अप्पन भतिजवा के कह-सुन के तुरते चुपके से महेस बाबू के पास भेज देलका । ऊ नून-मिचाई लगा के महेस बाबू के कहलक - "देखलऽ नऽ, सहोदर भाई के कमाल । उनखा ई न चाहऽ हलई । कम से कम तूँ पुछहूँ से चल गेलऽ । आखिर ऊ घर तो तोरे हल ।") (जोमुसिं॰11.10)
223 नोकरिआह (अब दु-दु गो बेटा के नोकरिआह हो जाय से बनवारी बाबू के बुढ़ारी में आँख के चमक कुछ बढ़ गेल हल, लेकिन पुनियाँ के चाँद नियन ई रोसनी जलदीए गायब हो गेल, काहे कि नोकरी लगइते दुनो बेटा अप्पन औरत के साथे सहरे में रहे लगलन हल ।) (जोमुसिं॰22.10)
224 पंचइती (= पंचायत) (जइसे-तइसे रात बितला के बाद ऊ सबेरहीं गाँव आ गेलन । एने-ओने के पंच बोलयलन, पंचइती लग गेल ।; अब चाचा-भतीजा आमने-सामने आ गेलन हल । एक दूसर के खून के पिआसल इधर-उधर घुमइत-फिरइत रहऽ हलन । गाँव-घर, जिला-जेवार सब पंचइती करके थक गेला लेकिन कोई हल न निकलल ।; पंच ? हम्मरा हीं भठिहारा कऊन पंच आबत ? आझ तक तो दोसर के पंचइती हम करइत अइली हे । जो, तोरा जे मन आबऊ से कर गन । हम सब समझ लेम ।) (जोमुसिं॰11.18; 21.29; 28.9)
225 पढ़ल-लिखल (बात अइसन हे मुनी बाबू कि हम अप्पन लइका के सादी अप्पन साखा से अलग करे के विचार रखऽ हली आउ एही से एगो अच्छा सुखी-सम्पन्न, पढ़ल-लिखल परिवार के हिंआ अप्पन रिसतो तै कर देली हल । लड़की भी पढ़ल-लिखल, सुनर-सुसील, गुनवान हल, जेकरा हम काफी नगीच से देखली हल ।; तोहनी दुनो भाई पढ़ल-लिखल हऽ । तनि अप्पन आऊ गाँव-घर के इज्जतो-पानी के खेयाल करइत जा । अरे जुदागी तो होयबे करत । तऽ एतना उबिआए से काम न चलत । दुनों सांत रहऽ, कोई न कोई रसता जरूरे निकलत ।) (जोमुसिं॰3.3, 4; 28.18)
226 पढ़ाना-लिखाना (छोटका भाई मधेसर जलमे से विकलांग हल । हाँथ आऊ पैर दुनों से लाचार हला, लेकिन दिमाग से विकलांग न हला । ई लेके बाउजी आऊ बड़कन भाई लोगनो के मधेसर पर खास धेयान रहऽ हल । इनखर देख-रेख के अलावे पढ़ावे-लिखावहूँ में तनिक कंजूसी न कयलन हल ।) (जोमुसिं॰29.1)
227 पत (= प्रत्येक, हर) ("आँख बंद कर के हाँथ जोड़ के भगवान के नाम लिहें, फिन चाऊर खा के पानी पी लिहें आऊ फूल के ओतिए जमीन में गाड़ दिहें । अबरी जब तोरा महीना हो जइतऊ तऽ ओकर पचवाँ दिन इहाँ अइहें ।" ई तरी बाबा ओकरा तीन महीना तक दउड़इलन आऊ पत खेबी महीना होयला के पचवाँ दिन बोलाबथ ।) (जोमुसिं॰41.17)
228 परना-हरना (पइसा के रहते डाक्टर साहेब खाना-खोराक ला दोसरा पर मुँहताज रहऽ हला । कपड़ा-लत्ता, परला-हरला पर आऊ तकलीफ बढ़ जा हल ।) (जोमुसिं॰30.2)
229 परब-तेओहार (= पर्व-त्योहार) (अब महेस बाबू एगो किराया के मकान में परिवार के साथ रहे लगलन । गाँव-घर से उनखर मन धीरे-धीरे खिंचाए लगल । अब ऊ जल्दी घरहूँ जाय ला न चाहऽ हलन । परबो-तेओहार में कोई न कोई बहाना बना के सहरे में रह जा हलन । अब सुरेसे बाबू लइकन से भेंट-मुलकात करे के बहाना से गाहे-बगाहे सहर आ जा हलन ।) (जोमुसिं॰9.2)
230 परसादी (पगली ! तूँ फेंकन के बेटी हें तऽ हमरो तो बेटिए होयलें । काम पीछे होयत । पहिले मुँह-हाँथ धो के कुछ परसादी रखल हऊ से खा ले ।; मिसिर बाबा, एक चिरूआ पानी एनहीं दे देथिन । हाँथ धो के परसादी खा लेबई ।; अरे अन्दर चल के कलवा पर हाँथ-मुँह धो ले आऊ बइठ के परसादी खा ले ।) (जोमुसिं॰44.5, 11, 14)
231 परान (= प्राण) (महेस बाबू के औरतो अब देहात जायल न चाहऽ हलन । लेकिन देहाती घी, साग, झंगरी, मकई ला उनकर परान छछनऽ हल । घरे ओला महिनका चाऊर, राहड़ के दाल, आलू-फुलकोबी के तरकारी के सोआद रह-रह के उनखा इयाद आवऽ हल ।) (जोमुसिं॰9.10)
232 परानी (महेस बाबू भी अब दुनों परानी सहरे में रहे के मन बना लेलन लेकिन कहलन कि जलदी में कोई काम करे के न चाही । तूँ ठीक से रहऽ । हम अबरी जब आयम तऽ ई बारे में भइआ से बात करम ।) (जोमुसिं॰8.2)
233 पलटी (~ खाना) (गाड़ी जहाना पहुँचहीं ओला हल कि एगो पुलिया भिजुन मोड़ लेवे में गाड़ी पलटी खा गेल । अन्हरिआ रात हल । अफरा-तफरा मच गेल ।) (जोमुसिं॰50.8)
234 पहिलका (अब सुरेसे बाबू लइकन से भेंट-मुलकात करे के बहाना से गाहे-बगाहे सहर आ जा हलन । लेकिन महेस बाबू तो अब पूरा तरह से सहरिआ हो गेलन हल । भाई के साथ भी उनखर पहिलका बरताव न हल । ऊ आवथ इया जाथ एकरा से महेस बाबू के अब कुछ लेना-देना न हल ।) (जोमुसिं॰9.5)
235 पहिलहीं (हमनी दुनो लइकाइए से साथे-साथ पढ़ली-लिखली हल । ई लेल दुनो में पहिलहीं से दोस्ती आवइत हल जे आझ तक जइसे के तइसे बनल हल ।; सुबह से साम तक इसकूल में माथा-पच्ची कयला के बाद जब डेरा लौटथ तो इहाँ पहिलहीं से मरीज लोग दोहारी घेरले रहथ । नस्तो-पानी के फुर्सत इनखा न मिले । आराम तो हराम हो गेल ।) (जोमुसिं॰1.8; 31.2)
236 पहिलौंठ (मगही कहानी में जोरन के काम करइत मगह के उजागर पुत मुद्रिका सिंह के पहिलौंठ कहानी सेंगरह 'जोरन' हे ।) (जोमुसिं॰ii.13)
237 पहुँचल (~ फकीर) (साहेब खुदे पइसा ला औफिस के पाछे ले जाके बतिआ हे । चर-चपरासी के कुछ चहवे करी । नस्ता-पानी में खरचा हे से अलावे । सतीस बाबू अपने पहुँचल फकीर हथ । एक पइसा जादे कहली नऽ कि नीचे से ऊपर तक बबाल मचा देता ।) (जोमुसिं॰19.19)
238 पाक-साक (समाज में अगुआ के पाक-साक रहे के चाही । कथनी आउ करनी में अंतर के भंडाफोड़ होयला पर उनखर हालत पातर हो जाहे ।) (जोमुसिं॰iii.9)
239 पाछे (= पीछे) (अन्त में ई कहानी सेंगरह के तइयार करे में सामने इया पाछे से जे हमरा उत्साह बढ़ौलन हे, ऊ सभे के परति हम अभार जतावइत ही ।) (जोमुसिं॰i.15)
240 पुनियाँ (= पूर्णिमा) (अब दु-दु गो बेटा के नोकरिआह हो जाय से बनवारी बाबू के बुढ़ारी में आँख के चमक कुछ बढ़ गेल हल, लेकिन पुनियाँ के चाँद नियन ई रोसनी जलदीए गायब हो गेल, काहे कि नोकरी लगइते दुनो बेटा अप्पन औरत के साथे सहरे में रहे लगलन हल ।) (जोमुसिं॰22.12)
241 पेन्हावा-ओढ़ावा (बाहरी फोकस, पेन्हावा-ओढ़ावा आऊ सोआगत-सतकार में महिनी देखवइते हला । ई लेके कुटुम के समझ में न आयल कि ई केतना पानी में हथ आऊ ई नगिची के जानल-पहचानल अगुआ से जल्दी बाते करल न चाहऽ हलन ।) (जोमुसिं॰25.17)
242 पोटना (= फुसलाना, बहलाना, अपने अनुकूल बनाना) (ई सोभाऊ से मिलनसार आऊ मीठा बोलेओला हदमी हला । ई लेके इनखा अप्पन काम में कोई दिक्कत न होवऽ हल । जेकरा से काम पड़ऽ हल, ओकरा कह सुन के पोटिए ले हला । ई लेके गाँव ओला अदमी इनका लकड़सुंघवा निअन बुझऽ हला ।) (जोमुसिं॰35.12)
243 पोसतारी (= गौंढ़ा, बरकुरबा; गाँव के नजदीक की उपजाऊ जमीन) (माय सूरज बाबू के साथे जाय ला तइयार न होयलन । तऽ सूरज बाबू कहलन किजब ई जइबे न करत तऽ एकर परवरिस ला दस कट्ठा पोसतारीओला जमीन छोड़ के बाकी हिस्सा हम्मरा अलग कर दऽ । हम अप्पन हिस्सा बटइया-चउठइया लगा देम, काहे कि हम्मरा खेती-बारी करे-करावे के फुर्सत कहाँ हे ?) (जोमुसिं॰13.22)
244 फटना-फुटना (इनखर साहितिक जीवन इसकूल से सुरू भेल हल । पहिले छोट-मोट कविता ई मगही-हिन्दी में लिखऽ हला आउ कुछ दिन के बाद ऊ फट-फुट के भुला जा हल ।) (जोमुसिं॰vi.3)
245 फरिआना (बेटी के केते दिन तक अप्पन घर में रखता हल । अब रिटायरमेन्टो नगीचे आ गेल हल । ई लेके कुछ ले-दे के मामला सलटावहीं में गुंजाइस बुझला । एने-ओने छक्का-पंजा मारलका, कुछ नतीजा न निकलल । अन्त में काफी कहा-सुनी के बाद डेढ़ लाख नगद पर बात फरिआ गेल ।) (जोमुसिं॰38.25)
246 फह-फह (~ उजर) (जब घुटना तक लटकल फह-फह उजर कुरता आऊ चुस्त पैजामा पहिन के निकल जा हलन तऽ बेस-बेस नेतो इनखा सामने फेल कर जा हलन । बलौक से लेके कोट-कचहरी तक इनखर धाक हल ।; औकात से जादे महिनी देखावे के चलते हमेसे इनखर हालत पतला रहऽ हल । फह-फह कुरता पर किरिच न टूटऽ हल ।) (जोमुसिं॰17.24; 23.11)
247 फाजिल (= अधिक, अतिरिक्त) (अब आलोक परिछा के फारम भर देलक, लेकिन सतीस बाबू एक छेदामो फाजिल न देलन ।) (जोमुसिं॰20.9)
248 फिन (मिसिर बाबा पहिले सनिचरी के फिन ओकर बेटी गुलबिया के जाल में फँसा के अप्पन हवस के सिकार बनावऽ हे ।; अब सिलबा अप्पन बेटा आऊ मरद साथे फिन से नया जिंदगी सुरू कर देलक ।) (जोमुसिं॰iii.15; 38.27)
249 फिनो (महेस बाबू सहर गेलन आऊ दुइए रोज के बाद फिनो घर लऊट अइलन ।) (जोमुसिं॰8.16)
250 बँटइआ (= बटइया) (महेस बाबुओ मुड़ी हिला देलन आऊ दुनो भाई में जुदागी हो गेल । महेस बाबू अप्पन खेत बँटइआ लगा के सहर लौट अयलन ।) (जोमुसिं॰10.7)
251 बँटइआ-चउठइआ (अगर उपजल फसिल में से कुछ देवे में तोरा एतराज होवऽ हवऽ, तऽ इनकर हिस्सा बाँट के अलग कर देहू । अप्पन हिस्सा लेके इनखा जे मन होतई करतन । अप्पने नऽ करतन तो बँटइआ-चउठइआ तो लगा देतन । जहाँ कुछो न मिलइत हइ, कुछ तो मिलतइ ।; बनवारी बाबू के तीन बेटा हला । शिवधारी, जटाधारी आऊ रामधारी । ई साधारन तबका के किसान हला । अप्पन खेती-बारी कमे हल, लेकिन बँटइया-चउठइया से अप्पन हाल-रोजगार चला ले हला ।) (जोमुसिं॰9.30; 22.3)
252 बँटाइदार (कुछ दिन तक महेस बाबुओ खेती-बारी पर बिसेस धेयान देलन । बँटाइदारो कुछ इमानदारी बरतलक, आऊ गला-पानी बाँट के सहर तक पहुँचइलक भी । लेकिन ई जादे दिन न निबहल ।) (जोमुसिं॰10.10)
253 बंस-खूट (देखऽ सुरेस बाबू ! लेनी-देनी तो हइए हे । अप्पन बंस-खूट के जमीन हल । लेकिन जे भेल से भेल । कम से कम अब तूँ सचेत जरूर हो जा । कहीं घरवो दुसरे के न लिख देओ ? एक अंगना में दू जात हो जायत तऽ इज्जत-पानी कइसे बचत ?) (जोमुसिं॰10.29)
254 बइदगिरी (मिसिर बाबा ई इलाका के गुरु-पुरोहित हला । करमकांड, ज्योतिस, हस्त-रेखा, तंतर-मंतर, टोना-टोटका, जतरा-पतरा, सगुन में इनखर जोड़ के कोई पंडित न हला । ई सब के अलावे ई बइदगिरियो करऽ हलन ।) (जोमुसिं॰39.20)
255 बखत (साम के बखत बधार घुमे ला ऊ अकेले अकेले निकल गेलन हल । बुझामनो महतो घुमते-घुमते बाधे में उनखा मिल गेलन ।) (जोमुसिं॰6.7)
256 बचल-खुचल (कुछ दिन इधर-उधर करके अप्पन घरनी के देखावे में कोई कोर कसर न रखला । अप्पन जिनगी के सब बचल-खुचल कमाई फूँक देलका । लेकिन जब डाक्टर जवाब दे देलक तऽ इनखर सिर पर असमान टूट पड़ल ।) (जोमुसिं॰15.25)
257 बच्छर (अब गाँव-घर के कुछ मानिन्दे लोग धुरफन्दी लाल के समझौलन आउ कहलन कि आखिर मनोहर बाबू पाँच बच्छर तक तो तोरा से कुछो न माँगलथुन लेकिन जब तू अप्पन भतीजा आउ बेटा के बिआह में तिलक-दहेज के जगह पर आठ-दस बिगहा जमीन लिखा लेलहू तऽ फिन ऊ काहे मुँह बन्द कैले रहथ । दमाद हथ । तऽ उनखो माँग सहिए हे ।) (जोमुसिं॰38.18)
258 बछर (= बच्छर) (एने-ओने बेटा के बिआह करे के बातो चलौलक । एक जगह तो रिसतो हो गेल हल लेकिन लइकी के दादी के अचानक मर जाय के चलते सादी अगिला बछर पर टाल देल गेल ।) (जोमुसिं॰47.6)
259 बजाय (धुरफन्दी लाल के अब ढलती उमर हल । इनखर मंतर अब सब कोई बुझ गेला हल । ई लेके जब गाँव में चिट्ठी पहुँचल हल तऽ जादेतर लोग के चेहरा पर रहम के बजाय नफरते के रंग झलकऽ हल ।) (जोमुसिं॰38.10)
260 बजार (= बाजार) (एक दिन ऊ महेस बाबू के टोकइत कहलन - "कहऽ हऽ कि हम्मरा दस बिगहा जमीन हे, आऊ चाऊरो-गोहूम ला बजारे में झोला छानऽ हऽ । बड़का भइया के बड़ी गुन बखानइत रहऽ हऽ तऽ काहे छोट-छोट चीजो ला हम्मरा दोसरे के मुँह ताके पड़ऽ हे ।"; "घर ओला मकान में तोरा हिस्सा न मिलतऊ, अलबत्ता बजार के जमीन में दु गो कोठरी भर तोरा मिल जएतऊ ।"; बाउजीओ टहलइत-फिरइत कभी घर तो कभी बजार करइत रहऽ हलन ।) (जोमुसिं॰9.13; 28.4; 29.24)
261 बटइया (= बँटइया) (धीरे-धीरे नन्हें अब जमान होयत जाइत हल । अब ऊ अप्पन माय के दुःख-दरद बुझे लगल हल । ई से ऊ अब अप्पन माय के काम में हाँथ बटावे लगल हल । बटइआ पर लेके एगो बाछी रख लेलक हल ।) (जोमुसिं॰46.15)
262 बटइया-चउठइया (माय सूरज बाबू के साथे जाय ला तइयार न होयलन । तऽ सूरज बाबू कहलन किजब ई जइबे न करत तऽ एकर परवरिस ला दस कट्ठा पोसतारीओला जमीन छोड़ के बाकी हिस्सा हम्मरा अलग कर दऽ । हम अप्पन हिस्सा बटइया-चउठइया लगा देम, काहे कि हम्मरा खेती-बारी करे-करावे के फुर्सत कहाँ हे ?) (जोमुसिं॰13.23)
263 बटाई (= बटइया) (खाद-बीज, दवाई-सिंचाई के खरचा जोड़े पर उनका फायदा नजर न आवे । ओकरो पर कटनी-पिटनी में देख-रेख करहीं पड़ऽ हल । ई लेके ऊ सोंचे लगलन कि जमीन बटाई देवे से अच्छा हे कि ओकरा बेच-बाच के पइसा बैंक में रख देल जाय जहाँ सूद-बेआजो मिलत आऊ पइसो हिफाजत से रहत ।) (जोमुसिं॰10.14)
264 बड़का (जब तूँ पढ़-लिख के बड़का अदमी बन जयबऽ तऽ सहर में मकान बना लिहऽ । हमरा निअन गरीब अदमी सहर में कहाँ से मकान बना सकऽ हे ।; बनवारी बाबू के तीन बेटा हल । ... बड़का आऊ मझला तो पढ़-लिख के नोकरिओ करे लगल, छोटका कुछ पढ़े में भद-भद हल, से ऊ सतमा पास करके बाउजी के काम-धन्धा में हाँथ बटावे लगल ।) (जोमुसिं॰12.16; 22.8)
265 बड़की (~ माय) (लइकाइए में इनखर माय इनखा छोड़ के विदा ले लेलन हल, ई से इनखर पालन-पोसन बड़की माय {चचानी} आउ बड़की भौजाई के हाँथ से होयल ।) (जोमुसिं॰iv.10, 11)
266 बड़गो (= बड़गर, बड़ा) (हाँ मुनी बाबू, तोर बात सुनके अब हम्मर माथा कुछ हलका जरूर हो गेल हे । आझ तूँ हम्मरा बड़गो बात बतैलऽ हे । हम जलदिए में ई उलझन से निकलल चाहित ही ।; एकरो से बड़गो बात ई हल कि इनखा एके गो बेटा हल । आऊ ओकरो देखे ओला कोई न हल । ई लेके ओकरो पीए के आदत लग गेल हल ।) (जोमुसिं॰4.27; 15.14)
267 बड़ी (= बड़, बहुत) (बड़ी दिन से तोरा से भेंट न होइत हल से तोरा देखे लागी एक दिन सहरो जाय के मन बना लेली हल ।; ऊ कहिओ सहर-बजार देखलन नऽ हल । बाउजिओ खेती-बारी में लगल रहऽ हलन । अब सहर में रह के परिछा देवे के जब बारी आयल तऽ डेरा-डन्डा खोजे में उनखा बड़ी दिक्कत होल ।; ससुरारी पइसा के चलते ऊ आउ बिगड़ गेल । बड़ी मोसकिल से ऊ अन्त में कुछ राह पर आयल तऽ एगो गुमटी खोल के अप्पन गिरहस्थी के भार अप्पन सिर लेलक ।) (जोमुसिं॰6.11; 12.9; 22.20)
268 बतकही (ऊ साम के बखत बुझामन चचा से जे बतकही करलन हल, सब कह सुनौलन । अब छोटकी सब बात सुनके टुभकलन - "अब तोर आँख खुललो । हम कहतिओ हल तऽ कहतऽ हल कि औरत जात घरफोरनी होवऽ हे ।") (जोमुसिं॰7.27)
269 बतिआना (बड़ा बाबू आऊ छोटा बाबू तक बात रहत हल तऽ कामो चल जायत हल । साहेब खुदे पइसा ला औफिस के पाछे ले जाके बतिआ हे । चर-चपरासी के कुछ चहवे करी । नस्ता-पानी में खरचा हे से अलावे ।) (जोमुसिं॰19.17)
270 बधार (साम के बखत बधार घुमे ला ऊ अकेले अकेले निकल गेलन हल । बुझामनो महतो घुमते-घुमते बाधे में उनखा मिल गेलन ।) (जोमुसिं॰6.7)
271 बन-मजूर (महेस बाबू साँस खींचइत बोललन - "हाँ चचा ! ठीक कहऽ हऽ । हमहूँ कम परेसान न ही, लेकिन सोचऽ ही, छोटकी के साथे ले जाय से घर-गिरहस्थी चौपट हो जायत । अकेले भौजाई का करतन ? घर-अंगना देखतन कि बन-मजूर के देखतन ।) (जोमुसिं॰6.30)
272 बन-मजूरी (दिन भर बन-मजूरी कैला के बाद जब बेर डूबे घर लौटऽ हल, तऽ सब से पहिले नन्हें के खोज करऽ हल । नन्हें दिन-दिन भर एने-ओने लइकन साथे खेलइत-कुदइत रहऽ हल । भूख लगला पर धरखा पर से आधा रोटी उतार के खा ले हल आऊ फिन लइकन साथे खेले में लग जा हल ।; भइआ ! हम अनपढ़ अदमी, बन-मजूरी कर के कोई तरी अप्पन पेट भर रहली हे । रैली का होवऽ हे, से तो हम बुझवे न करी ।) (जोमुसिं॰46.3; 47.18-19)
273 बनल-बनावल (जनानी के साथे रहे से तोरो बनल-बनावल खाना मिल जयतो आऊ लइकमनों के कोई अच्छा इसकूल में नाम लिखवा देबहू तऽ ओखिनियों के जिनगी बन जइतइ ।) (जोमुसिं॰7.9)
274 बनाना-खाना (एक दिन मिसिर बाबा के ससुरार से बिआह के नेओता आ गेल । बाबा घर-दुआर देखे-सुने के बहाना बना के नेओता में न गेला । अप्पन औरत आऊ बेटी के ससुरार भेजवा देलका आऊ चले बेजी कहलका कि हम इहाँ खूदे बना खा लेम ।) (जोमुसिं॰43.11)
275 बरकुरबा (= गौंढ़ा, पोसतारी; गाँव के नजदीक की उपजाऊ जमीन) (मनमौजी बाबू तो बड़ा जुगाड़िया निकललन । साँपो मर गेल आऊ लाठिओ न टुटल । काहे कि तिलक-दहेज के नाम पर तो एको पाई लेवे न कयलका, लेकिन पाँच बिगहा बरकुरबा तो हाँथ लगिए गेलई । काहे कि लड़की के कोई सहोदर भाई न हथ, आऊ बहिनो में ऊ अकेले हथ ।) (जोमुसिं॰37.7)
276 बराती (= बारात) (ई लेके जब दुसरका साल अगुआ के साथे कुटुम दिन तारीख ला पहुँचल तऽ ई अब अप्पन रंग बदल देलन । सोचलन कि हाँथ में एगो पइसा नऽ हे । कुटुम बराती आवे ला तंग करइते हे, तऽ कमो पर पचास-साठ हजार तो लगिए जायत ।) (जोमुसिं॰25.32)
277 बाउजी (= बाबूजी) (इनखर बाउजी श्री परमेश्वर सिंह आउ माय श्रीमती रामसखी देवी एगो सधारन किसान हलन, जे गर-गिरहस्थी से अप्पन परिवार चलावऽ हलन ।; ऊ कहिओ सहर-बजार देखलन नऽ हल । बाउजिओ खेती-बारी में लगल रहऽ हलन । अब सहर में रह के परिछा देवे के जब बारी आयल तऽ डेरा-डन्डा खोजे में उनखा बड़ी दिक्कत होल ।; बनवारी बाबू के तीन बेटा हल । ... बड़का आऊ मझला तो पढ़-लिख के नोकरिओ करे लगल, छोटका कुछ पढ़े में भद-भद हल, से ऊ सतमा पास करके बाउजी के काम-धन्धा में हाँथ बटावे लगल ।; बाउजी अब बिलकुल असथाऊर हो गेलन हल । बड़का भाई के घर से मतलबे खतम हो गेल हल । घर पर छोटका भाई के हालत खुदे खराब हल, से बाउजी के का देखत-सुनत हल ?) (जोमुसिं॰iv.7; 12.7; 22.9; 23.14, 15)
278 बाजापता (= बजाप्ते) (ई अप्पन घर के आगे एही सब काम ला एगो कोठरी निकाल के ओकरा में बाजापता एगो औफिस खोल देलन हल, जेकरा में हमेसे दू-चार गो चेला-चाटी लगल-भिड़ल रहऽ हलन ।) (जोमुसिं॰39.22)
279 बात (~ उठना) (बुझामन महतो कहलन - "कर काहे न सकऽ हऽ । ई खनदानी घर हे । मगर हाँ तूँ तइयार रहवऽ तबे नऽ । एक बात करऽ । ओकरा कुछ करे से पहिले ओकर घर के ताला तोड़ के तूँ घर कब्जा कर लऽ । अगर कुछ बातो उठत तो ओकरा घर के जे कीमत लगत, चुकता कर दिअहू ।") (जोमुसिं॰11.5)
280 बाध (साम के बखत बधार घुमे ला ऊ अकेले अकेले निकल गेलन हल । बुझामनो महतो घुमते-घुमते बाधे में उनखा मिल गेलन ।) (जोमुसिं॰6.8)
281 बानी (फेंकन दुनों परानी हाँथ जोड़ले भगमान के कथा नियन सुनइत चल गेल, कहीं पर ना-नुकूर न कयलक । तब मिसिर बाबा हवन-कुंड से एक मुठी बानी निकाल के आँख बंद करके कुछ बुदबुदयलन, फिन ऊ सनिचरी के अचरा में एकरा बांध लेवे कहलन आऊ एहू कहलन कि घर जा के जऊन घर में सुतऽ हें ओकर सिरहाना तरफ एकरा रख दिहें आऊ थोड़ा सा चाट लिहें ।) (जोमुसिं॰40.30)
282 बान्हना-छानना (सुरेस बाबू आव देखलन न ताओ । ऊ ओही दिन से ताला तोड़ के ऊ घर में अप्पन गाय-गोरू बान्हे-छाने लगलन ।) (जोमुसिं॰11.8)
283 बिजुली (= बिजली) (हाले में ऊ बिजुली विभाग के बड़ा बाबू के ओहदा से रिटायर होयलन हे ।) (जोमुसिं॰5.4)
284 बिलुक (= बल्कि) (ऊ तेसरका बेर फारम पूरक परिछा के साथे भरवौलका । अबरी जुगाड़ लग गेल । कौपी बाहर आ गेल । आलोक बाजी मार लेलक । अबरी ऊ खाली पासे न भेल बिलुक पूरा सेन्टरे भर में टौप कर गेल ।; एकर अलावे ई आझ तक अप्पन पूँजी लगा के कोई रोजगार न कयलन हल, बिलुक बाते इनखर पूँजी हल, जेकर बल पर अप्पन दिन-दुनियाँ चला रहला हल ।) (जोमुसिं॰20.28; 35.18)
285 बिहान (अब औरत आऊ बेटा के गमौला के बाद सूरज बाबू बिल्कुल टूट चुकलन हल । उधर नौकरी से रिटायरमेन्ट के तलवारो लटक चुकल हल । हाथो-गोड़ अब जवाबे देले जाइत हल । ई सब सोच-सोच के रात भर जग के बिहान करे लगलन ।) (जोमुसिं॰16.3)
286 बुढ़वा (अब बाउजी घर के बोझ बन चुकलन हल । ई लेके दुनो परानी एही चाहऽ हलन कि बुढ़वा कहिआ मर जाय कि एकरा से पिन्ड छुटे आऊ बदनामिओ मेट जाय ।) (जोमुसिं॰23.32)
287 बुढ़हारी (= बुढ़ारी) (ई लेके ससुर के सेवा तो दूर, इनखर खान-पान, देखो-रेख सही ढंग से नऽ हो पावऽ हल । ऊपरे से दस गो बात सुने ला मिलिए जा हल । लेकिन बुढ़हारी अपने आप में एगो बीमारी हे । ई बीमारी जब पकड़ ले हे तऽ अदमी बेचारा बन जाहे ।) (जोमुसिं॰23.22)
288 बुढ़ारी (= बुढ़ापा) (ई सुन के महेस बाबू के पारा चढ़ गेल । बोललन - "बुढ़ारी में भइया के माथा खराब हो गेल हे का ? पीछे में ताला तोड़ देवे से ऊ घर उनखर तो न हो जइतई ? कुछ न तो अभी कोट-कचहरी के रस्ता तो हम्मरा ला खुला हइए हे ।"; अब दु-दु गो बेटा के नोकरिआह हो जाय से बनवारी बाबू के बुढ़ारी में आँख के चमक कुछ बढ़ गेल हल, लेकिन पुनियाँ के चाँद नियन ई रोसनी जलदीए गायब हो गेल, काहे कि नोकरी लगइते दुनो बेटा अप्पन औरत के साथे सहरे में रहे लगलन हल ।; गाँव-घर, माय-बाबू के सब सपना थोड़िके दिन में चकनाचूर हो गेल हल । ऊ तो छोटका बेटा रामधारी हल, जे इनखर बुढ़ारी के लाठी बनल हल ।) (जोमुसिं॰11.13; 22.11, 15)
289 बेचना-खोंचना (जटाधारी बाबू के अब आँख के निन हराम हो गेल । पास में फुटल कउड़िओ न हल । तिलक के पइसा के अलावहूँ मकान बनावे में कुछ करजा-पइंचा पहिलहीं हो गेल हल । खेती-बारी जादे हइए न हल, जेकरा बेच-खोंच के उनखर पइसा लउटयतन हल ।) (जोमुसिं॰26.27)
290 बेचना-बाचना (खाद-बीज, दवाई-सिंचाई के खरचा जोड़े पर उनका फायदा नजर न आवे । ओकरो पर कटनी-पिटनी में देख-रेख करहीं पड़ऽ हल । ई लेके ऊ सोंचे लगलन कि जमीन बटाई देवे से अच्छा हे कि ओकरा बेच-बाच के पइसा बैंक में रख देल जाय जहाँ सूद-बेआजो मिलत आऊ पइसो हिफाजत से रहत ।) (जोमुसिं॰10.15)
291 बेजाय (गाँव-घर में जहाँ दु-चार गो अदमी एक जगह जुट जा हलन ऊहें धुरफन्दी लाल के बात निकल जा हल । जेत मुड़ी तेत बात । कोई कहथ - धुरफन्दिआ के अबरिए पाला पड़लई हे । ई आझ तक दोसरा के आँख में धुरी झोंक के अप्पन काम चाँदी करइत आ रहल हल । कोई धुरफन्दी के बेस कहथ तो कोई बेजाय ।) (जोमुसिं॰35.6)
292 बेजी (एक दिन मिसिर बाबा के ससुरार से बिआह के नेओता आ गेल । बाबा घर-दुआर देखे-सुने के बहाना बना के नेओता में न गेला । अप्पन औरत आऊ बेटी के ससुरार भेजवा देलका आऊ चले बेजी कहलका कि हम इहाँ खूदे बना खा लेम ।; सबेरे उठ के बासी रोटी खा ले हल आऊ गाय के साथे लेके चरावे ला निकल पड़ऽ हल । साथ में मऊनी आऊ खुरपो रखऽ हल । ई लेके लउटित बेजी एक ओड़िआ घासो लेले आवऽ हल ।; लौटती बेजी बस खुलते-खुलते पटने में मुँहलुकान हो गेल । सब जल्दी पहुँचे के ताक में हला ।) (जोमुसिं॰43.10; 46.17; 50.4)
293 बेस (गाँव-घर में जहाँ दु-चार गो अदमी एक जगह जुट जा हलन ऊहें धुरफन्दी लाल के बात निकल जा हल । जेत मुड़ी तेत बात । कोई कहथ - धुरफन्दिआ के अबरिए पाला पड़लई हे । ई आझ तक दोसरा के आँख में धुरी झोंक के अप्पन काम चाँदी करइत आ रहल हल । कोई धुरफन्दी के बेस कहथ तो कोई बेजाय । अइसे तो धुरफन्दी बेस पढ़ल-लिखल अदमी हला । डील-डौल आऊ कद-काठी में कऊनो कमी न हल । रूप-रंग के अलावे गलो बेसे मिलल हल जेकरा चलते गावे-बजावे के सौखो रखऽ हला ।) (जोमुसिं॰35.5, 6, 8)
294 बैरन (~ चिट्ठी) (ई कह के ऊ हम्मर हाँथ में एगो बैरन चिट्ठी थमहा देलन । हम चिट्ठी खोल के पढ़े लगली । ई चिट्ठी सिलबा अप्पन ससुरार अप्पन बाबू जी धुरफन्दी लाल के पास लिखलक हल ।) (जोमुसिं॰34.18)
295 भगमान (भला छोटकी के जाय से का फरक पड़े ओला हई ? इहाँ भगमान के देनी से कऊन चीज के कमी हे, आऊ फिन जरा-मना उन्नइस-विनइस भेल तो पइसा पर अदमी भेंटाइए जा हे ।) (जोमुसिं॰7.5)
296 भगसाली (= भाग्यशाली) (हमहूँ पहिले एही सोंचऽ-समझऽ हली कि लइका ओला बाप भगसाली होवऽ हे आऊ ई घड़ी लइका के सादी-बिआह भी एगो अच्छा बिजनेस हे जेकरा में एक लगावऽ सोलह पावऽ ओला कहाऊत एकदम फिट जँचऽ हे ।) (जोमुसिं॰2.24)
297 भठिहारा ("पंच ? हम्मरा हीं भठिहारा कऊन पंच आबत ? आझ तक तो दोसर के पंचइती हम करइत अइली हे । जो, तोरा जे मन आबऊ से कर गन । हम सब समझ लेम ।") (जोमुसिं॰28.8)
298 भद (= भोद्दा) (बनवारी बाबू के तीन बेटा हल । ... बड़का आऊ मझला तो पढ़-लिख के नोकरिओ करे लगल, छोटका कुछ पढ़े में भद-भद हल, से ऊ सतमा पास करके बाउजी के काम-धन्धा में हाँथ बटावे लगल ।) (जोमुसिं॰22.9)
299 भभरा (एने-ओने के बात होयला के बाद अप्पन समाचार भी कहे लगलन । एही बीच सिरीमती जी कटोरी में दुगो भभरा आऊ गिलास में पानी लेले आ गेलन ।; राधे बाबू भभरा खाय लगलन आऊ साथे-साथ अप्पन हाल-रोजगार के बातो कहे लगलन ।) (जोमुसिं॰1.13, 17)
300 भिजुन (= भिर, भीर, पास) (एकरा बारे में हम तो जादे जानवे न करी । ई लेल तोरा भिजुन आ गेली हे । एकर रजिस्टरेसन हो जाय के चाही ।) (जोमुसिं॰18.21)
301 भुखल-पिआसल (आझ से तूँ गुलबिआ न रह के हम गुलाबी रानी हो गेलें । तोरा उहाँ का मिलऽ हऊ ? दिन भर भुखल-पिआसल एने-ओने काम करे पड़ऽ हऊ आऊ कभी-कभी पेटो पर पानी पड़ जा हऊ ।) (जोमुसिं॰44.25)
302 भुखाना (ई सुन के सतीस बाबू कहला - "जब एही बात हल तऽ अपने काहे ला हमरा एतना परेसान कइली । ई सब तो हम दु दिन में हाजिर कर देम । अब एकरा पर खरचा का पड़तइ सेहू सुन ली ।" हेडमास्टर साहेब सकरपंच में पड़ गेलन । इनखा से का कही ? पराइवेट फारम के नाम पर औफिस तो भुखायल बाघ नियन खाए ला दउड़ऽ हे ।) (जोमुसिं॰19.15)
303 भेंड़ी (~ से जादे गड़ेरी) (आलोक परिछा देवे सेन्टर पर पहुँच गेल । इहाँ परिछा हौल के माजरे कुछ आउर हल । भेंड़ी से जादे गड़ेरिए हल । मछली बाजार लेखा कोहराम मचल हल । कोई आवे कोई जाए कोई अन्तर पड़े ओला न हल ।) (जोमुसिं॰20.12)
304 भैकम (= vaccuum) (ऊ दिन हम गाँव गेल हली । गाड़ी लेट से खुलल हल आऊ ठामे-ठामे भैकम के चलते ई टीसन करीब चार बजे पहुँचल हल ।) (जोमुसिं॰34.2)
305 मंगनी (~ में = व्यर्थ में) (देख बेटा ! ई सब नेता लोग के अप्पन धन्धा हे । ऊ सब अप्पन गोटी लाल करे ला दोसर के कन्धा पर झंडा रख दे हथ । एकरा से न कोई गरीब के फयदा होवे ओला हे, न तो कुछ मिलतऊ जुलतऊ । मंगनी में दिन भर के मजुरिओ जइतऊ ।) (जोमुसिं॰48.3)
306 मइसना (= मैंजना, मलना) (हम भोरे-भोरे आँख मइसित अपन बिछौना पर से उठइते हली कि ई सब हल्ला-गुदाल कान में पड़ल । उठ के बाहरे अइली तऽ देखली कि आझ सबेरहीं से धनेसर आऊ मधेसर दुनों भाई अपने में अझुरायल हला ।) (जोमुसिं॰28.11)
307 मऊनी (बटइआ पर लेके एगो बाछी रख लेलक हल । सबेरे उठ के बासी रोटी खा ले हल आऊ गाय के साथे लेके चरावे ला निकल पड़ऽ हल । साथ में मऊनी आऊ खुरपो रखऽ हल । ई लेके लउटित बेजी एक ओड़िआ घासो लेले आवऽ हल ।) (जोमुसिं॰46.17)
308 मजूर (सब मजूर नन्हें के बात सुन के अब मालिको से अप्पन हक-हिस्सा के बात करे लगल । नन्हें तो अब मजूर के नेते बन गेल ।) (जोमुसिं॰48.32; 49.1)
309 मजूरी (अब नन्हें इसकूल छोड़ के माय साथे मजूरी करे लगल । जब नन्हें कमाय-खाय लगल, तऽ सनिचरी ओकर बिआह कर देवे के बात मने-मने सोचे लगल ।) (जोमुसिं॰47.2)
310 मझला (बनवारी बाबू के तीन बेटा हल । ... बड़का आऊ मझला तो पढ़-लिख के नोकरिओ करे लगल, छोटका कुछ पढ़े में भद-भद हल, से ऊ सतमा पास करके बाउजी के काम-धन्धा में हाँथ बटावे लगल ।) (जोमुसिं॰22.8)
311 मटकोर (एकरे निदान ला ई नयका विधि से बिआहो कराना सुरू कर देलका हल जेकरा में बरहामन, नऊआ के अलावे मड़वा, मटकोर, घीढ़ाढ़ी के जरूरत न पड़ऽ हल ।) (जोमुसिं॰36.14)
312 मड़वा (एकरे निदान ला ई नयका विधि से बिआहो कराना सुरू कर देलका हल जेकरा में बरहामन, नऊआ के अलावे मड़वा, मटकोर, घीढ़ाढ़ी के जरूरत न पड़ऽ हल ।) (जोमुसिं॰36.14)
313 मदत (= मदद) (अगर एकरा से अपने के थोड़िको सहमति हमरा भेटा हे, तऽ एकरा से हमरा आगे बढ़े में मदत मिलत ।) (जोमुसिं॰i.13)
314 मदतगार (= मददगार) (मगही माय के दूध से भरल हाँड़ी में हम 'जोरन' डाल रहली हे, जेकरा से मगध के माट्टी में रसल-बसल आउ पसरल मगही भासा जम जाय, जेकर मलाई, मखन आउ मट्ठा खा-खा के सब मगहिअन भाई-बहिन सरीर के साथे-साथे दिमागो से मजबूत बन जाथ आउ समाज के साथे देसो के माथा ऊपर उठावे में मदतगार बनथ ।) (जोमुसिं॰i.8)
315 मनी (= बड़ी ~) (हम हाँथ-गोड़ धोके तनी अरामे करे के फेर में हली कि उधर से हम्मर छोटकी बेटी झुनिआ दउड़ल आयल आऊ हँफइत बोलल - "पापा ! बुढ़वा दादा के दलान पर बड़ी मनी अदमी जमा होयल हथिन ।") (जोमुसिं॰34.6)
316 मलगुजारी (= मालगुजारी) (केस भेला पर एहू बात सामने आ गेल कि जऊन जमीन पर ऊ मकान बनौलका हे ऊ गरमजरूआ हे । ई करमचारी आऊ अंचल में पइसा देके नजाइज ढंग से दाखिल खारिज के रसीद ले लेलन हल । मलगुजारी ओला रसीदो जाली हल । अब ई केस में अइसन फँसलन कि आझ तक छुटकारा न भेल हे ।) (जोमुसिं॰15.6)
317 महिनका (महेस बाबू के औरतो अब देहात जायल न चाहऽ हलन । लेकिन देहाती घी, साग, झंगरी, मकई ला उनकर परान छछनऽ हल । घरे ओला महिनका चाऊर, राहड़ के दाल, आलू-फुलकोबी के तरकारी के सोआद रह-रह के उनखा इयाद आवऽ हल ।) (जोमुसिं॰9.10)
318 महिनी (अब इनकर धुन समाज में अपना औकात देखावे के सवार हो गेल । बाहरी तामझाम आऊ बातचीत करे के ढंग बदल गेल । औकात से जादे महिनी देखावे के चलते हमेसे इनखर हालत पतला रहऽ हल । फह-फह कुरता पर किरिच न टूटऽ हल ।; बेटा के नोकरी हो जाय से जटाधारी बाबू के गोड़ जमीन से ऊपर उठ गेल हल । अब हर कामे में महिनी देखावे लगलन । जे कहिनो समाजिक काम ला न एक पइसा निकालऽ हलन, न एक घन्टा समये देवे ला तइआर होवऽ हलन, अब सब काम में खुल के हाँथ बटावे लगलन ।; बाहरी फोकस, पेन्हावा-ओढ़ावा आऊ सोआगत-सतकार में महिनी देखवइते हला । ई लेके कुटुम के समझ में न आयल कि ई केतना पानी में हथ आऊ ई नगिची के जानल-पहचानल अगुआ से जल्दी बाते करल न चाहऽ हलन ।) (जोमुसिं॰23.10; 24.27; 25.18)
319 महीना (= मासिक स्राव, महिनवारी) ("आँख बंद कर के हाँथ जोड़ के भगवान के नाम लिहें, फिन चाऊर खा के पानी पी लिहें आऊ फूल के ओतिए जमीन में गाड़ दिहें । अबरी जब तोरा महीना हो जइतऊ तऽ ओकर पचवाँ दिन इहाँ अइहें ।" ई तरी बाबा ओकरा तीन महीना तक दउड़इलन आऊ पत खेबी महीना होयला के पचवाँ दिन बोलाबथ ।) (जोमुसिं॰41.15)
320 महौल (= माहौल) (अब घर के चिराग बुझ गेल हल । मियाँ-बीबी हमेसा तनाव आऊ उदासी के महौल में रह रहलन हल । आँख के आगे हमेशा अन्हार लौकऽ हल ।; गाँव-घर के अलावे हित-कुटुमो के नेओतलन । सब खुसी के महौल में खयलका-पिलका हल । सिलबो के दिल में अब माय-बाप से बिछुड़ला के कोई गम न रह गेल हल ।) (जोमुसिं॰15.19; 36.28)
321 मामु-ममानी (= मामा-मामी) (हाँ मुनी जी, एहू बात तूँ कहलऽ से ठीके कहलऽ । अभी अप्पन माय के पुछवे न कइली हे । फिन, लइका के मामु-ममानी से बाते न होयल हे । अपन सास-ससुर से पुछना भी लाजिमे समझऽ ही ।) (जोमुसिं॰4.7)
322 मिआज (= मिजाज) (एही कारन हल कि बनवारी बाबू अब एक जगह असथिर से रहल नऽ चाहऽ हलन । जरी मिआज बेस लगल कि चुपके से कभी बेटी हीं, कभी समधिआना निकल जा हलन ।) (जोमुसिं॰23.26)
323 मुँहलुकान ("जनानी के साथे रहे से तोरो बनल-बनावल खाना मिल जयतो आऊ लइकमनों के कोई अच्छा इसकूल में नाम लिखवा देबहू तऽ ओखिनियों के जिनगी बन जइतइ । .. अब भला-बुरा तूँ अप्पन देखऽ ।" मुँहलुकान होइए गेल हल । बुझामन मने मन मुसकाइत चल पड़लन ।; ऊ दिन हम गाँव गेल हली । गाड़ी लेट से खुलल हल आऊ ठामे-ठामे भैकम के चलते ई टीसन करीब चार बजे पहुँचल हल । इहाँ से गाँव चार-पाँच किलोमीटर पड़ जा हल । ई लेके घर पहुँचते-पहुँचते मुँहलुकान हो गेल हल ।; जब साम हो गेल तऽ बाबा दुनों के खाना खिलवा देलन आऊ कहलन कि इहाँ से एक माइल पछिम एगो सिवाला मिलतऊ । जब मुँहलुकान हो जइतऊ तऽ तोहनी दुनों सिवाला पर चल जइहें ।; लौटती बेजी बस खुलते-खुलते पटने में मुँहलुकान हो गेल । सब जल्दी पहुँचे के ताक में हला ।) (जोमुसिं॰7.12; 34.3; 42.10; 50.4)
324 मुड़ी (= मूड़ी; सिर) (महेस बाबुओ मुड़ी हिला देलन आऊ दुनो भाई में जुदागी हो गेल । महेस बाबू अप्पन खेत बँटइआ लगा के सहर लौट अयलन ।; गाँव-घर में जहाँ दु-चार गो अदमी एक जगह जुट जा हलन ऊहें धुरफन्दी लाल के बात निकल जा हल । जेत मुड़ी तेत बात । कोई कहथ - धुरफन्दिआ के अबरिए पाला पड़लई हे । ई आझ तक दोसरा के आँख में धुरी झोंक के अप्पन काम चाँदी करइत आ रहल हल । कोई धुरफन्दी के बेस कहथ तो कोई बेजाय ।) (जोमुसिं॰10.6; 35.3)
325 रसल-बसल (मगही माय के दूध से भरल हाँड़ी में हम 'जोरन' डाल रहली हे, जेकरा से मगध के माट्टी में रसल-बसल आउ पसरल मगही भासा जम जाय, जेकर मलाई, मखन आउ मट्ठा खा-खा के सब मगहिअन भाई-बहिन सरीर के साथे-साथे दिमागो से मजबूत बन जाथ आउ समाज के साथे देसो के माथा ऊपर उठावे में मदतगार बनथ ।) (जोमुसिं॰i.3)
326 रस्ता (= रास्ता) (ई सुन के महेस बाबू के पारा चढ़ गेल । बोललन - "बुढ़ारी में भइया के माथा खराब हो गेल हे का ? पीछे में ताला तोड़ देवे से ऊ घर उनखर तो न हो जइतई ? कुछ न तो अभी कोट-कचहरी के रस्ता तो हम्मरा ला खुला हइए हे ।") (जोमुसिं॰11.15)
327 राहड़ (= अरहर) (महेस बाबू के औरतो अब देहात जायल न चाहऽ हलन । लेकिन देहाती घी, साग, झंगरी, मकई ला उनकर परान छछनऽ हल । घरे ओला महिनका चाऊर, राहड़ के दाल, आलू-फुलकोबी के तरकारी के सोआद रह-रह के उनखा इयाद आवऽ हल ।) (जोमुसिं॰9.11)
328 रूखर (~ सोभाव) (डाक्टर साहेब अब अप्पन पैर पर खड़ा हो गेलन । ओने बड़कन दुनों भाई धनेसर आऊ चनेसर नोकरी में हइए हला । ई लेके परिवार में अब कउनो बात के कमी न रह गेल हल, लेकिन मंझिला भाई कुछ रूखर सोभाओ के हला । बाउजीओ से इनखा कमे पटऽ हल ।) (जोमुसिं॰29.14)
329 लइका (जनानी के साथे रहे से तोरो बनल-बनावल खाना मिल जयतो आऊ लइकमनों के कोई अच्छा इसकूल में नाम लिखवा देबहू तऽ ओखिनियों के जिनगी बन जइतइ ।) (जोमुसिं॰7.9)
330 लइका-लइकी (एकरे निदान ला ई नयका विधि से बिआहो कराना सुरू कर देलका हल जेकरा में बरहामन, नऊआ के अलावे मड़वा, मटकोर, घीढ़ाढ़ी के जरूरत न पड़ऽ हल । बिना तामझाम के सादा-सादी ढंग से समाज के दस गो अदमी के सामने माय-बाबू आऊ लइका-लइकी के सहमति पर फूल माला पहिरा के सादी करवा देल जा हल ।) (जोमुसिं॰36.16)
331 लकड़सुंघवा (जेकरा से काम पड़ऽ हल, ओकरा कह सुन के पोटिए ले हला । ई लेके गाँव ओला अदमी इनका लकड़सुंघवा निअन बुझऽ हला । जइसे :लकड़सुंघवा कोई के लकड़ी सुंघा के अप्पन बस में कर लेहे ओइसहीं इनखर बात के परभाओ पड़ऽ हल । एही लेके लोग इनका लकड़सुंघवा गुरुजी नामे रख देलन हल । लकड़सुंघवा गुरुजी हाँथ के सफाई में बी॰ए॰ आऊ मुँह के सफाई में एम॰ए॰ कैले हला ।) (जोमुसिं॰35.13, 15)
332 लगतरिए (" ... बताओ तो, तोरा से पंडिताइन कऊन बात में जादे हथ । तोर सुरत के आगे ऊ टिकिओ न सकऽ हथ ।" मिसिर बाबा लगतरिए का-का बोल गेलन ।) (जोमुसिं॰44.18)
333 लगल-भिड़ल (ई पद से अलग होयला के बादो, आझो समाजिक काम में लगल-भिड़ल रहऽ हथ ।) (जोमुसिं॰vi.1)
334 लेके (= लिए, कारण; ई ~ = इसलिए) (बाउजी थक चुकलन हल । खरचा-बरचा में दिक्कत होवे लगल, ई लेके ई खुदे कुछ लइकन के पढ़ावे लगलन आउ अप्पन खरचा चलावे लगलन ।; खेती-बारियो भी अच्छा हल । खाय-पीए के कोई दिक्कत न हल, ई लेके हाथो खुला रहऽ हल । हितो-कुटुम में इनखर अच्छा पुछ रहऽ हल ।; एकरो से बड़गो बात ई हल कि इनखा एके गो बेटा हल । आऊ ओकरो देखे ओला कोई न हल । ई लेके ओकरो पीए के आदत लग गेल हल ।; अब ई समाज में अप्पन जगह बनावे के जुगाड़ में लग गेलन । लेकिन इनका लगल कि जब तक सहर में घर न हो जायत तब तक हम्मर गिनती बड़का अमदी में न होयत । ई लेके एने-ओने से लोन लेके एक कट्ठा जमीन सहर में खरीद लेलका ।) (जोमुसिं॰iv.25; 5.11; 15.15; 25.1)
335 लेखा (= सदृश, समान) (महेसवा के एतनो न बुझएलइ कि बड़ भाई आखिर बाप लेखा होवऽ हे, से तो तूँ बाप के मरला के बादो ओकरा पढ़ा-लिखा के नोकरिओ लगा देलहू । अरे एक दिन तो सब कोई जुदा होयबे करऽ हे लेकिन लोक-लिहाजो तो कोई चीज होवऽ हे कि न? अगर ऊ अप्पन जमीन तोरे दे देत हल तऽ तूँ का ओकरा पइसा न देतहु हल ?) (जोमुसिं॰10.21)
336 लेना-देनी (बात तो ठीक कहऽ हऽ चचा । लेकिन ओकरा जे बुझैलई से कैलक । ओकर हिस्सा हलई । ओकरा से हमरा का लेना-देनी हल ।) (जोमुसिं॰10.27)
337 लेनी-देनी (देखऽ सुरेस बाबू ! लेनी-देनी तो हइए हे । अप्पन बंस-खूट के जमीन हल । लेकिन जे भेल से भेल । कम से कम अब तूँ सचेत जरूर हो जा । कहीं घरवो दुसरे के न लिख देओ ? एक अंगना में दू जात हो जायत तऽ इज्जत-पानी कइसे बचत ?) (जोमुसिं॰10.28)
338 लेल (= लगि, लगी, लागी; के लिए) (राधे बाबू के चेहरा पर परेसानी साफ-साफ झलकइत हल मगर हमरो पूरा बात जाने के लालसा हल । ई लेल उनखा पीछा करे से हम बाजे न आवइत हली ।) (जोमुसिं॰3.28)
339 लेले-देले ("तऽ काहे नऽ छोटकी के साथे लेले जा । उनखो एक जगह रहते-रहते मन उबिआ गेलई हे । कुछ हावा-पानिओ बदल जइतई । आऊ तोरा खाय-पीए के आराम हो जइतो ।" महेस बाबू तो एही चाहवे करऽ हलन । दूसरका दिन ऊ सबेरहीं बाल-बच्चा के लेले-देले सहर चल अयलन ।) (जोमुसिं॰8.29)
340 लोक-लिहाज (महेसवा के एतनो न बुझएलइ कि बड़ भाई आखिर बाप लेखा होवऽ हे, से तो तूँ बाप के मरला के बादो ओकरा पढ़ा-लिखा के नोकरिओ लगा देलहू । अरे एक दिन तो सब कोई जुदा होयबे करऽ हे लेकिन लोक-लिहाजो तो कोई चीज होवऽ हे कि न? अगर ऊ अप्पन जमीन तोरे दे देत हल तऽ तूँ का ओकरा पइसा न देतहु हल ?; अब सतीस बाबू के जभिओ कुछ पइसा के जरूरत पड़े आलोक से माँग बइठत । कुछ दिन तक तो आलोक लोक-लिहाज ढोयलक आऊ सतीस बाबू के पइसा मिलइत रहल । लेकिन ई कब तक चले ओला हल ।; अब जटाधारी बाबू लोक-लिहाज के डर से बाउजी के अपना साथे ले अयलन, लेकिन मासटरनी साहिबा के सोभाउ कड़-कड़ हल । ई लेके ससुर के सेवा तो दूर, इनखर खान-पान, देखो-रेख सही ढंग से नऽ हो पावऽ हल ।) (जोमुसिं॰10.23; 21.3; 23.19)
341 लौकना (अन्हार ~) (अब घर के चिराग बुझ गेल हल । मियाँ-बीबी हमेसा तनाव आऊ उदासी के महौल में रह रहलन हल । आँख के आगे हमेशा अन्हार लौकऽ हल ।) (जोमुसिं॰15.19)
342 सकड़पंच (= सकरपंच) (~ में पड़ना) (कमाऊ पुत के बाप के दिमाग सतमा असमान पर चढ़ जाहे । विआह ला आयल अगुआ से मोल-जोल करे में ओकरा जरिको लाज सरम न लगे । कुल पइसा लेला के बाद आनाकानी करे से बाज न आवे, मगर सकड़पंच में पड़ गेला के बाद ओकर हेंकड़ी गुम हो जाहे आउ मन बढ़ल मिजाज भी जमीन पर आ जाहे ।) (जोमुसिं॰iii.1)
343 सकरपंच (~ में पड़ना) (ई सुन के सतीस बाबू कहला - "जब एही बात हल तऽ अपने काहे ला हमरा एतना परेसान कइली । ई सब तो हम दु दिन में हाजिर कर देम । अब एकरा पर खरचा का पड़तइ सेहू सुन ली ।" हेडमास्टर साहेब सकरपंच में पड़ गेलन । इनखा से का कही ? पराइवेट फारम के नाम पर औफिस तो भुखायल बाघ नियन खाए ला दउड़ऽ हे ।) (जोमुसिं॰19.14)
344 सगरो (मिसिर बाबा के असिरवादे से गुलबिया के जलम भेल हल । जब गुलबिआ के माय-बाबू सगरो देखा-सुना के थक गेला हल आऊ सनिचरी के गोदी न भरइत हल तऽ अन्त में फेंकन आऊ सनिचरी बाबा के सरन में आयल हल ।) (जोमुसिं॰40.6)
345 सतमा (= सातवाँ) (बनवारी बाबू के तीन बेटा हल । ... बड़का आऊ मझला तो पढ़-लिख के नोकरिओ करे लगल, छोटका कुछ पढ़े में भद-भद हल, से ऊ सतमा पास करके बाउजी के काम-धन्धा में हाँथ बटावे लगल ।) (जोमुसिं॰22.9)
346 सनसे (एक ~) ("कहऽ बाबू, कहिना डेरा आयल हे ? आऊ समाचार तो ठीक-ठाक हौ न ? बड़ी दिन से तोरा से भेंट न होइत हल से तोरा देखे लागी एक दिन सहरो जाय के मन बना लेली हल । बाकि देखऽ ई संजोग कि तूँ इहें मिल गेलऽ ।" बुझामन महतो एक सनसे बोलइत जाइत हलन । महेस बाबू के कुछ कहे के मौके न मिल रहल हल ।; "डाक्टर के बिआह, आऊ फिन साले भर में बेटा" - ई दुनो बात जान के धनेसर बाबू के सपना टूट गेल । लगल कि कोई उनखर जरल देह पर नून छिट देलक होय । अब ऊ पागल लेखा बात-बात में बिगड़ जाथ । अगर अनजानो में कोई के मुँह से डाक्टर के बारे में कुछ निकल जाय तो ऊ उनखर तेरहो खूँट के एक सनसे उकट देथ ।) (जोमुसिं॰6.13; 33.9)
347 सबेरहीं (ऊ दिन साँझ के समय हम्मर गाड़ी सबेरहीं आ गेल हल ।) (जोमुसिं॰1.1)
348 समाजिक (= सामाजिक) (बेटा के नोकरी हो जाय से जटाधारी बाबू के गोड़ जमीन से ऊपर उठ गेल हल । अब हर कामे में महिनी देखावे लगलन । जे कहिनो समाजिक काम ला न एक पइसा निकालऽ हलन, न एक घन्टा समये देवे ला तइआर होवऽ हलन, अब सब काम में खुल के हाँथ बटावे लगलन ।) (जोमुसिं॰24.27)
349 सर-सब्जी (गाँव के बगले में बजार हल जहाँ सर-सब्जी असानी से बिक जा हल जे से कोई तरी दाल-रोटी के जुगाड़ हो जा हल ।) (जोमुसिं॰22.4)
350 सलटाना (मामला ~) (बेटी के केते दिन तक अप्पन घर में रखता हल । अब रिटायरमेन्टो नगीचे आ गेल हल । ई लेके कुछ ले-दे के मामला सलटावहीं में गुंजाइस बुझला ।) (जोमुसिं॰38.23)
351 ससुरारी (ओकरा लालन-पालन, पढ़ाई-लिखाई आउ सादी-बिआह में अप्पन सारा कमाई लगा देलन, लेकिन संयोग से दमाद अच्छा न भेंटायल । ससुरारी पइसा के चलते ऊ आउ बिगड़ गेल ।) (जोमुसिं॰22.20)
352 सहरिआ (अब ऊ जल्दी घरहूँ जाय ला न चाहऽ हलन । परबो-तेओहार में कोई न कोई बहाना बना के सहरे में रह जा हलन । अब सुरेसे बाबू लइकन से भेंट-मुलकात करे के बहाना से गाहे-बगाहे सहर आ जा हलन । लेकिन महेस बाबू तो अब पूरा तरह से सहरिआ हो गेलन हल ।) (जोमुसिं॰9.5)
353 सादी-उदी (कहऽ ! बड़का बाबू के कहीं सादी-उदी ठीक कर देलऽ ?) (जोमुसिं॰2.14)
354 सारा (= साला) (पंडिताइन माय-बेटी नइहर चल गेलथुन हे ऊहाँ सारा के बेटी के सादी हई ।) (जोमुसिं॰43.28)
355 सिवाला (= शिवालय) (जब साम हो गेल तऽ बाबा दुनों के खाना खिलवा देलन आऊ कहलन कि इहाँ से एक माइल पछिम एगो सिवाला मिलतऊ । जब मुँहलुकान हो जइतऊ तऽ तोहनी दुनों सिवाला पर चल जइहें ।) (जोमुसिं॰42.9, 10)
356 सुतना (महेस बाबू खाय लगलन लेकिन उनखा आझ खाना में कोई सवादे न मिल रहल हल । जइसे-तइसे खा पीके अप्पन घर में सुते चल गेलन । लेकिन उनखर आँख से नीन कोटा के रासन निअन गायब हो गेल हल ।) (जोमुसिं॰7.19)
357 सुनर (= सुन्नर, सुन्दर) (बात अइसन हे मुनी बाबू कि हम अप्पन लइका के सादी अप्पन साखा से अलग करे के विचार रखऽ हली आउ एही से एगो अच्छा सुखी-सम्पन्न, पढ़ल-लिखल परिवार के हिंआ अप्पन रिसतो तै कर देली हल । लड़की भी पढ़ल-लिखल, सुनर-सुसील, गुनवान हल, जेकरा हम काफी नगीच से देखली हल ।) (जोमुसिं॰3.4)
358 सुन्नर (= सुन्दर) (बाबूजी के विचार से सादी अप्पन गोत्र में होना जरूरी हे । फिर जहाँ लड़की सुन्नर चाँन मामा होय ।; लड़किओ सुन्नर आऊ पढ़ल-लिखल हल । ई लेके इनखा पसन्द आ गेल ।) (जोमुसिं॰3.15; 25.22)
359 से (= सो, वह) (हाँ मुनी जी, एहू बात तूँ कहलऽ से ठीके कहलऽ । अभी अप्पन माय के पुछवे न कइली हे । फिन, लइका के मामु-ममानी से बाते न होयल हे । अपन सास-ससुर से पुछना भी लाजिमे समझऽ ही ।) (जोमुसिं॰4.6)
360 सेंगरह (= संग्रह) (अन्त में ई कहानी सेंगरह के तइयार करे में सामने इया पाछे से जे हमरा उत्साह बढ़ौलन हे, ऊ सभे के परति हम अभार जतावइत ही ।; मगही कहानी में जोरन के काम करइत मगह के उजागर पुत मुद्रिका सिंह के पहिलौंठ कहानी सेंगरह 'जोरन' हे ।) (जोमुसिं॰i.15; ii.13)
361 सेंगारना (= जमा करना, संग्रह करना) (मगही कहानी में जोरन के काम करइत मगह के उजागर पुत मुद्रिका सिंह के पहिलौंठ कहानी सेंगरह 'जोरन' हे । एकरा में इनखर उलझन, चुटकटवा, सहर में मकान, पराइवेट रजिस्टरेसन, मुखौटा, दीदा उलट गेल, लकड़सुंघवा, मिसिर बाबा आउ मुआवजा कहानी सेंगारल गेल हे ।) (जोमुसिं॰ii.15)
362 सोआद (= स्वाद) (महेस बाबू के औरतो अब देहात जायल न चाहऽ हलन । लेकिन देहाती घी, साग, झंगरी, मकई ला उनकर परान छछनऽ हल । घरे ओला महिनका चाऊर, राहड़ के दाल, आलू-फुलकोबी के तरकारी के सोआद रह-रह के उनखा इयाद आवऽ हल ।) (जोमुसिं॰9.11)
363 सोभाउ (= सोभाव; स्वभाव) (अब जटाधारी बाबू लोक-लिहाज के डर से बाउजी के अपना साथे ले अयलन, लेकिन मासटरनी साहिबा के सोभाउ कड़-कड़ हल । ई लेके ससुर के सेवा तो दूर, इनखर खान-पान, देखो-रेख सही ढंग से नऽ हो पावऽ हल ।) (जोमुसिं॰23.20)
364 हमनी (= हमन्हीं) (हमनी दुनो लइकाइए से साथे-साथ पढ़ली-लिखली हल । ई लेल दुनो में पहिलहीं से दोस्ती आवइत हल जे आझ तक जइसे के तइसे बनल हल ।) (जोमुसिं॰1.8)
365 हमरा (= हमें; ~ सामने = हमारे सामने) ) (अन्त में ई कहानी सेंगरह के तइयार करे में सामने इया पाछे से जे हमरा उत्साह बढ़ौलन हे, ऊ सभे के परति हम अभार जतावइत ही ।) (जोमुसिं॰i.15)
366 हमहूँ (हमहूँ पहिले एही सोंचऽ-समझऽ हली कि लइका ओला बाप भगसाली होवऽ हे आऊ ई घड़ी लइका के सादी-बिआह भी एगो अच्छा बिजनेस हे जेकरा में एक लगावऽ सोलह पावऽ ओला कहाऊत एकदम फिट जँचऽ हे ।) (जोमुसिं॰2.23)
367 हरिअर (= हरियर; हरा) (एगो बकरियो रखले हल जेकरा पर नन्हें के खास धेयान रहऽ हल । बकरी जब बच्चा देलक, तऽ नन्हें ओकरा ला पीपर के हरिअर-हरिअर पत्ता लावे लगल ।) (जोमुसिं॰46.19)
368 हरिआना (संजोग के बात अइसन बनल कि साल के अन्दरे में डाक्टर साहेब के एगो बेटो पैदा ले लेलक । अब इनखर बगिया हरिआ उठल ।) (जोमुसिं॰33.3)
369 हाँथ (= हाथ) (बनवारी बाबू के तीन बेटा हल । ... बड़का आऊ मझला तो पढ़-लिख के नोकरिओ करे लगल, छोटका कुछ पढ़े में भद-भद हल, से ऊ सतमा पास करके बाउजी के काम-धन्धा में हाँथ बटावे लगल ।) (जोमुसिं॰22.10)
370 हाँथ-गोड़ (हम हाँथ-गोड़ धोके तनी अरामे करे के फेर में हली कि उधर से हम्मर छोटकी बेटी झुनिआ दउड़ल आयल आऊ हँफइत बोलल - "पापा ! बुढ़वा दादा के दलान पर बड़ी मनी अदमी जमा होयल हथिन ।") (जोमुसिं॰34.4)
371 हाथ-गोड़ (अब औरत आऊ बेटा के गमौला के बाद सूरज बाबू बिल्कुल टूट चुकलन हल । उधर नौकरी से रिटायरमेन्ट के तलवारो लटक चुकल हल । हाथो-गोड़ अब जवाबे देले जाइत हल । ई सब सोच-सोच के रात भर जग के बिहान करे लगलन ।) (जोमुसिं॰16.2)
372 हावा (= हवा) (अगर परिवार के बीच जलदी में कोई बात तै न होयल तो ओकरो दिन-दुनियाँ के हावा तो लगवे करत न ? अभी तो एही कहित हे कि माय-बाउजी जे करतन हम्मरा कबुल होयत ।; एक दिन तो ऊ आलोक के खुल के कह देलन कि तूँ अप्पन तनख्वाह के आधा पइसा हमरा दे दे न तो तोर नोकरी हम्मर मुट्ठी में हऊ । जहिना चाहबऊ तोर नोकरी तो जयबे करतऊ आऊ जेलो के हावा खइमें ।) (जोमुसिं॰4.2; 21.11)
373 हावा-पानी (तऽ काहे नऽ छोटकी के साथे लेले जा । उनखो एक जगह रहते-रहते मन उबिआ गेलई हे । कुछ हावा-पानिओ बदल जइतई ।; ऊ दसहारा में घरे पहुँच गेलन हल । उहाँ गेला पर उनखो घर के हावा-पानी बदलल नजर आयल । भाइओ अब बदल गेलन हल । दन्ड-परनाम भर रिसता रह गेल हल ।) (जोमुसिं॰8.27; 9.17)
374 हिंआ (= हियाँ, यहाँ) (बात अइसन हे मुनी बाबू कि हम अप्पन लइका के सादी अप्पन साखा से अलग करे के विचार रखऽ हली आउ एही से एगो अच्छा सुखी-सम्पन्न, पढ़ल-लिखल परिवार के हिंआ अप्पन रिसतो तै कर देली हल । लड़की भी पढ़ल-लिखल, सुनर-सुसील, गुनवान हल, जेकरा हम काफी नगीच से देखली हल ।) (जोमुसिं॰3.3)
375 हित-कुटुम (खेती-बारियो भी अच्छा हल । खाय-पीए के कोई दिक्कत न हल, ई लेके हाथो खुला रहऽ हल । हितो-कुटुम में इनखर अच्छा पुछ रहऽ हल ।; सब हित-कुटुम के सामनहीं ऊ घर में जुदागी के टंठा डाल देलन । लेकिन माय कहलन कि जब तक हम बच रहली हे तोर हिस्सा कहाँ से अइलऊ ? जो अप्पन काम-काज कर गन । जहिना हम मर जइबऊ तहिना तूँ आके अप्पन हिस्सा-बखरा बाँट लिहें ।) (जोमुसिं॰5.11; 13.24)
376 हिस्सा-बखरा (देखऽ सुरेस बाबू ! तूँ बड़ी अकलमन्दी से एतना दिन तक घर-परिवार के निवाह कयलऽ । लेकिन अब महेसो लइका नऽ रह गेलन हे । इनखो तो खरचा-बरचा बढ़ले जाइत हई । जर-जमीन से कुछ मिलइते न हई । आखिर बाप-माय के जमीन-जायदाद में इनखो तो कुछ हिस्सा-बखरा होएब करऽ हई ।; हम्मरा तो सहर के खरचा से तबाही बनल रहऽ हे । ओकरो पर गेस्टिंग से परेसान रहऽ ही । हम करचा कहाँ से दे सकऽ ही ? आखिर हम्मर हिस्सा-बखरा तो तोहनिएँ सब खाइत-पिअइत हऽ, काम-काजो मिल-जुल के पार लगावऽ ।) (जोमुसिं॰9.27; 13.14)
377 हेराना (जहिआ से बेटी किहाँ से ई चिट्ठी आयल हल, धुरफन्दी लाल के अकिले हेरा गेल हल । गाँव-घर में जहाँ दु-चार गो अदमी एक जगह जुट जा हलन ऊहें धुरफन्दी लाल के बात निकल जा हल ।) (जोमुसिं॰35.2)
2 अइसन-ओइसन (ई सुन के अगुआ आऊ कुटुम दुनो सन्न हो गेला । अब काटऽ तो खून नऽ । अइसन-ओइसन तो कोई कोई काम न हल, जेकरा आसानी से छोड़ देल जाइत हल । आऊ फिन पचास हजार रूपइओ कुटुम के औकात से जादे होइत हल ।) (जोमुसिं॰26.8)
3 अकिल (= अक्किल, अक्कल; अक्ल, बुद्धि) (जहिआ से बेटी किहाँ से ई चिट्ठी आयल हल, धुरफन्दी लाल के अकिले हेरा गेल हल । गाँव-घर में जहाँ दु-चार गो अदमी एक जगह जुट जा हलन ऊहें धुरफन्दी लाल के बात निकल जा हल ।) (जोमुसिं॰35.1)
4 अझुराना (= ओझराना) (हम भोरे-भोरे आँख मइसित अपन बिछौना पर से उठइते हली कि ई सब हल्ला-गुदाल कान में पड़ल । उठ के बाहरे अइली तऽ देखली कि आझ सबेरहीं से धनेसर आऊ मधेसर दुनों भाई अपने में अझुरायल हला ।) (जोमुसिं॰28.13)
5 अदमी (= आदमी) (हम हाँथ-गोड़ धोके तनी अरामे करे के फेर में हली कि उधर से हम्मर छोटकी बेटी झुनिआ दउड़ल आयल आऊ हँफइत बोलल - "पापा ! बुढ़वा दादा के दलान पर बड़ी मनी अदमी जमा होयल हथिन ।") (जोमुसिं॰34.6)
6 अधार (= आधार) (सोमर के गुजरला के बाद सनिचरी के जिए के एके गो अधार हल, नन्हें । सनिचरी अप्पन सब दुःख दरद भुला के नन्हें के देखभाल में लगल रहऽ हल ।) (जोमुसिं॰46.1)
7 अनचइती-पनचइती (अब लड़किओ ओला चुप कइसे रहत हल । अनचइती-पनचइती रोज होवे लगल । लेकिन मास्टरो साहेब अप्पन जिद पर अड़ गेला ।) (जोमुसिं॰26.15)
8 अनेसा (= अन्देशा) (जब नन्हें साम के नऽ लौटल तऽ घरे बुढ़िया के अनेसा होवे लगल । एने-ओने से पता चलल कि लउटइत बेजी जहाना के नगीच गाड़ी पलटी खा गेल हे, जेकरा में बीसन घायल हथ । दूगो मरिओ गेला हे । बुढ़िया के रात भर खटपटी लेले रहल ।) (जोमुसिं॰50.15)
9 अन्हरिआ (~ रात) (गाड़ी जहाना पहुँचहीं ओला हल कि एगो पुलिया भिजुन मोड़ लेवे में गाड़ी पलटी खा गेल । अन्हरिआ रात हल । अफरा-तफरा मच गेल ।) (जोमुसिं॰50.8)
10 अन्हार (= अन्धकार) (अब घर के चिराग बुझ गेल हल । मियाँ-बीबी हमेसा तनाव आऊ उदासी के महौल में रह रहलन हल । आँख के आगे हमेशा अन्हार लौकऽ हल ।; डाक्टरो साहेब अप्पन बड़का भाई साहेब के मंसा समझ गेलन हल, लेकिन उनखर सामने कहे के हिम्मत न जुटा रहलन हल । लेकिन उमर सरक रहल हल, ई से आगे साफ अन्हार लौके लगल हल । अब हमेसे चिंता आऊ तनाओ में रहे लगलन । ई से अब ई खूदे अप्पन जिनगी के अगला कदम के बारे में सोचे ला मजबूर हो गेलन ।) (जोमुसिं॰15.19; 31.27)
11 अपननहीं (= आप लोग) (हम अप्पन परेआस में केतना सफल होली हे, ई बात तो अपननहीं सभे एकरा देखला-सुनला के बाद तय करब, काहे कि जब ई दुनियाँ अप्पन दही के खट्टा न कहे तऽ हम ... ।) (जोमुसिं॰i.9)
12 अबरी (= इस बार, अभी तुरत; अगली बार) (महेस बाबू भी अब दुनों परानी सहरे में रहे के मन बना लेलन लेकिन कहलन कि जलदी में कोई काम करे के न चाही । तूँ ठीक से रहऽ । हम अबरी जब आयम तऽ ई बारे में भइआ से बात करम ।; काहे बाबू, अबरी बड़ी जलदी लौट अइलऽ । का बात हे ? कोई बिसेस काम पड़ गेल का ?; ऊ तेसरका बेर फारम पूरक परिछा के साथे भरवौलका । अबरी जुगाड़ लग गेल । कौपी बाहर आ गेल । आलोक बाजी मार लेलक । अबरी ऊ खाली पासे न भेल बिलुक पूरा सेन्टरे भर में टौप कर गेल ।) (जोमुसिं॰8.4, 19; 20.27, 28)
13 अमदनी (= आमदनी) (अमदनी तो हो जाहे, लेकिन कोल्हू के बैल के लेखा खट्टे पड़ रहल हे ।) (जोमुसिं॰6.17)
14 अमदी (= अदमी; आदमी) (अब ई समाज में अप्पन जगह बनावे के जुगाड़ में लग गेलन । लेकिन इनका लगल कि जब तक सहर में घर न हो जायत तब तक हम्मर गिनती बड़का अमदी में न होयत । ई लेके एने-ओने से लोन लेके एक कट्ठा जमीन सहर में खरीद लेलका ।) (जोमुसिं॰25.1)
15 अराम (= आराम) (हम हाँथ-गोड़ धोके तनी अरामे करे के फेर में हली कि उधर से हम्मर छोटकी बेटी झुनिआ दउड़ल आयल आऊ हँफइत बोलल - "पापा ! बुढ़वा दादा के दलान पर बड़ी मनी अदमी जमा होयल हथिन ।") (जोमुसिं॰34.4)
16 अलावहूँ (जटाधारी बाबू के अब आँख के निन हराम हो गेल । पास में फुटल कउड़िओ न हल । तिलक के पइसा के अलावहूँ मकान बनावे में कुछ करजा-पइंचा पहिलहीं हो गेल हल । खेती-बारी जादे हइए न हल, जेकरा बेच-खोंच के उनखर पइसा लउटयतन हल ।) (जोमुसिं॰26.25)
17 अलोप (= लुप्त, गायब) (कहानी 'दीदा उलट गेल' में विघटन के कगार पर पहुँचल समाज में अलोप होइत आदमियत आउ अपनापन के दरसावइत सोवारथ में आन्हर अदमी के चरित्र उजागर कैल गेल हे ।) (जोमुसिं॰iii.5)
18 असथाऊर (= स्थावर) (बाउजी अब बिलकुल असथाऊर हो गेलन हल । बड़का भाई के घर से मतलबे खतम हो गेल हल । घर पर छोटका भाई के हालत खुदे खराब हल, से बाउजी के का देखत-सुनत हल ?; लोग काने-कान इधर-उधर इनखर सादी-बिआह के बातो करे लगला हल । लेकिन डाक्टर साहेब अप्पन बड़का भाई से खार खा हला । उनखा सामने इनखर जुमान न हिल सकऽ हल । तऽ बिआह के बात कइसे उठयता हल । बाउजी अब असथाऊरे हो गेला हल ।) (जोमुसिं॰23.14; 31.9)
19 असथिर (= स्थिर) (एही कारन हल कि बनवारी बाबू अब एक जगह असथिर से रहल नऽ चाहऽ हलन । जरी मिआज बेस लगल कि चुपके से कभी बेटी हीं, कभी समधिआना निकल जा हलन ।) (जोमुसिं॰23.26)
20 असमान (= आसमान) (लइका के सादी-बिआह तो आझकल माय-बाप ला एगो "ब्लैंक चेक" कहावऽ हे जेकरा पर जेतना चाहऽ लिख दऽ । आऊ एगो तूँ हऽ जे असमान के अप्पन माथा पर उठइले फिरइत हऽ । भला बेटा के बिआह कऊन अइसन चीज हे जेकरा ला तूँ सोच में पड़ल हऽ ।; कुछ दिन इधर-उधर करके अप्पन घरनी के देखावे में कोई कोर कसर न रखला । अप्पन जिनगी के सब बचल-खुचल कमाई फूँक देलका । लेकिन जब डाक्टर जवाब दे देलक तऽ इनखर सिर पर असमान टूट पड़ल ।) (जोमुसिं॰2.21; 15.26)
21 असानी (= आसानी) (गाँव के बगले में बजार हल जहाँ सर-सब्जी असानी से बिक जा हल जे से कोई तरी दाल-रोटी के जुगाड़ हो जा हल ।) (जोमुसिं॰22.4)
22 असिरवाद (= आशीर्वाद) (मिसिर बाबा के असिरवादे से गुलबिया के जलम भेल हल । जब गुलबिआ के माय-बाबू सगरो देखा-सुना के थक गेला हल आऊ सनिचरी के गोदी न भरइत हल तऽ अन्त में फेंकन आऊ सनिचरी बाबा के सरन में आयल हल ।) (जोमुसिं॰40.5)
23 असिरवादी (= आशीर्वाद) (ऊ खइनी थुकइत हम्मरा असिरवादी बाँटइत बोललन - "अरे बात का रहतई हो ! हम ओही घड़ी धुरफन्दिया के कहऽ हली कि अरे बाप के दौलत में बेटा-बेटी दुनों के हक होवऽ हे, लेकिन ऊ हम्मर बात अनसुना करके सिलबा के बिआह बिना कुछ देले कर देलकई आऊ हम्मरा ई कह के चुप करा देलक हल कि अब तिलक-दहेज देना और लेना दुनों अपराध हे ।") (जोमुसिं॰34.12)
24 आउ (मगही माय के दूध से भरल हाँड़ी में हम 'जोरन' डाल रहली हे, जेकरा से मगध के माट्टी में रसल-बसल आउ पसरल मगही भासा जम जाय, जेकर मलाई, मखन आउ मट्ठा खा-खा के सब मगहिअन भाई-बहिन सरीर के साथे-साथे दिमागो से मजबूत बन जाथ आउ समाज के साथे देसो के माथा ऊपर उठावे में मदतगार बनथ ।) (जोमुसिं॰i.3)
25 आऊ (= आउ) (एने-ओने के बात होयला के बाद अप्पन समाचार भी कहे लगलन । एही बीच सिरीमती जी कटोरी में दुगो भभरा आऊ गिलास में पानी लेले आ गेलन ।; राधे बाबू भभरा खाय लगलन आऊ साथे-साथ अप्पन हाल-रोजगार के बातो कहे लगलन ।) (जोमुसिं॰1.13, 17)
26 आझ (हमनी दुनो लइकाइए से साथे-साथ पढ़ली-लिखली हल । ई लेल दुनो में पहिलहीं से दोस्ती आवइत हल जे आझ तक जइसे के तइसे बनल हल ।) (जोमुसिं॰1.8)
27 आन्हर (= आन्धर, अन्धा) (कहानी 'दीदा उलट गेल' में विघटन के कगार पर पहुँचल समाज में अलोप होइत आदमियत आउ अपनापन के दरसावइत सोवारथ में आन्हर अदमी के चरित्र उजागर कैल गेल हे ।) (जोमुसिं॰iii.5)
28 इनकर (अगर उपजल फसिल में से कुछ देवे में तोरा एतराज होवऽ हवऽ, तऽ इनकर हिस्सा बाँट के अलग कर देहू । अप्पन हिस्सा लेके इनखा जे मन होतई करतन । अप्पने नऽ करतन तो बँटइआ-चउठइआ तो लगा देतन । जहाँ कुछो न मिलइत हइ, कुछ तो मिलतइ ।) (जोमुसिं॰9.28)
29 इनखर (= इनकर) (आसपास के परिवेस में देखल-सुनल आउ भोगल घटना पे आधारित इनखर कहानी जीवंत आउ मरम के छुए ओला हे ।) (जोमुसिं॰ii.16)
30 इनखा (= इनका; इन्हें; ~ सामने = इनके सामने) (महेस बाबू बेस पढ़ल-लिखल अदमी हलन । ऊ पुराना जमाना के बी॰ए॰ पास हलन । ई लेल इनखा सामने आझो अच्छा-अच्छा पढ़ल-लिखल के घीग्घी बन्द हो जाहे ।) (जोमुसिं॰5.2)
31 इनसाल (पइसा सब एडभांस करौला के बाद कहलन कि इनसाल हम सादी के पछ में न ही । किराया के मकान में पुतोह कइसे ढुकायम ।) (जोमुसिं॰25.25)
32 इसकूल (जनानी के साथे रहे से तोरो बनल-बनावल खाना मिल जयतो आऊ लइकमनों के कोई अच्छा इसकूल में नाम लिखवा देबहू तऽ ओखिनियों के जिनगी बन जइतइ ।) (जोमुसिं॰7.10)
33 ई (ई सब बात होयला के बाद ऊ फिन कुछ रुक गेलन । हमरा लगल कि ई कऊनो गम्भीर संकट में जरूर फँस गेलन हे । काहे कि इनखर चेहरा पर कहियो हम उदासी आऊ परेसानी न देखली हल ।) (जोमुसिं॰2.7, 8)
34 उकटना (तेरहो खूँट के एक सनसे ~) ("डाक्टर के बिआह, आऊ फिन साले भर में बेटा" - ई दुनो बात जान के धनेसर बाबू के सपना टूट गेल । लगल कि कोई उनखर जरल देह पर नून छिट देलक होय । अब ऊ पागल लेखा बात-बात में बिगड़ जाथ । अगर अनजानो में कोई के मुँह से डाक्टर के बारे में कुछ निकल जाय तो ऊ उनखर तेरहो खूँट के एक सनसे उकट देथ ।) (जोमुसिं॰33.9)
35 उजर (= उज्जर, उजला) (जब घुटना तक लटकल फह-फह उजर कुरता आऊ चुस्त पैजामा पहिन के निकल जा हलन तऽ बेस-बेस नेतो इनखा सामने फेल कर जा हलन । बलौक से लेके कोट-कचहरी तक इनखर धाक हल ।) (जोमुसिं॰17.24)
36 उनकर (महेस बाबू के औरतो अब देहात जायल न चाहऽ हलन । लेकिन देहाती घी, साग, झंगरी, मकई ला उनकर परान छछनऽ हल । घरे ओला महिनका चाऊर, राहड़ के दाल, आलू-फुलकोबी के तरकारी के सोआद रह-रह के उनखा इयाद आवऽ हल ।) (जोमुसिं॰9.10)
37 उनका (= उन्हें) (खाद-बीज, दवाई-सिंचाई के खरचा जोड़े पर उनका फायदा नजर न आवे । ओकरो पर कटनी-पिटनी में देख-रेख करहीं पड़ऽ हल । ई लेके ऊ सोंचे लगलन कि जमीन बटाई देवे से अच्छा हे कि ओकरा बेच-बाच के पइसा बैंक में रख देल जाय जहाँ सूद-बेआजो मिलत आऊ पइसो हिफाजत से रहत ।) (जोमुसिं॰10.13)
38 उनखर (= उनकर) (समाज में अगुआ के पाक-साक रहे के चाही । कथनी आउ करनी में अंतर के भंडाफोड़ होयला पर उनखर हालत पातर हो जाहे ।) (जोमुसिं॰iii.10)
39 उनखा (= उनका; उन्हें) (जब ऊ रुकलन त फिन उनखा टोकली मगर लइकवा के का विचार हे, राधे बाबू ! ई तो तूँ हमरा कहवे न कयलऽ ।; साम के बखत बधार घुमे ला ऊ अकेले अकेले निकल गेलन हल । बुझामनो महतो घुमते-घुमते बाधे में उनखा मिल गेलन ।) (जोमुसिं॰3.25; 6.8)
40 उन्नइस-विनइस (भला छोटकी के जाय से का फरक पड़े ओला हई ? इहाँ भगमान के देनी से कऊन चीज के कमी हे, आऊ फिन जरा-मना उन्नइस-विनइस भेल तो पइसा पर अदमी भेंटाइए जा हे ।) (जोमुसिं॰7.6)
41 उबिआना (तऽ काहे नऽ छोटकी के साथे लेले जा । उनखो एक जगह रहते-रहते मन उबिआ गेलई हे । कुछ हावा-पानिओ बदल जइतई ।) (जोमुसिं॰8.26)
42 उबिआना (तोहनी दुनो भाई पढ़ल-लिखल हऽ । तनि अप्पन आऊ गाँव-घर के इज्जतो-पानी के खेयाल करइत जा । अरे जुदागी तो होयबे करत । तऽ एतना उबिआए से काम न चलत । दुनों सांत रहऽ, कोई न कोई रसता जरूरे निकलत ।) (जोमुसिं॰28.19)
43 उरेहना (कहानी मुआवजा में गरीब रैली के नाम पर सबजबाग देखा के जुटावल भीड़, भीड़ में आम अदमी के दुरगति आउ एकरा लेल भेल मौत पर मुआवजा के बेवस्था के चित्र उरेहल गेल हे ।) (जोमुसिं॰iii.19)
44 ऊ (ई सब बात होयला के बाद ऊ फिन कुछ रुक गेलन । हमरा लगल कि ई कऊनो गम्भीर संकट में जरूर फँस गेलन हे । काहे कि इनखर चेहरा पर कहियो हम उदासी आऊ परेसानी न देखली हल ।) (जोमुसिं॰2.8)
45 एकारसी (= एकादसी) (धुरफन्दी लाल तो चतुर खिलाड़ी हला । ई से बइठले-बइठले अइसन जुगाड़ भिड़ौलका कि आठ बिगहा जमीन भेंटा गेल । हिस्सा-बखरा बाँटेओला कोई हइए न हल । बिआह के मंच पर धुरफन्दी लाल तिलक-दहेज के खिलाफ फिर तगड़ा भाखन देलका आऊ कहलका कि सादी में तिलक-दहेज के रूप में हम एक छेदाम न जानी । ... "तरे-तरे गुड़ चुरा, ऊपरे से एकारसी" ओला कहाऊत सच निकलल । ई से मनोहर बाबू के ई बात लग गेल ।) (जोमुसिं॰37.25)
46 एतराज (= आपत्ति, उज्र) (अगर उपजल फसिल में से कुछ देवे में तोरा एतराज होवऽ हवऽ, तऽ इनकर हिस्सा बाँट के अलग कर देहू । अप्पन हिस्सा लेके इनखा जे मन होतई करतन । अप्पने नऽ करतन तो बँटइआ-चउठइआ तो लगा देतन । जहाँ कुछो न मिलइत हइ, कुछ तो मिलतइ ।) (जोमुसिं॰9.28)
47 एनहीं (हल्का-फुल्का चाय-पानी लेला के बाद अप्पन सिरीमती जी से दिन भर के एने-ओने के खबर लेइत हली कि एही बीच राधे बाबू पर सिरीमती जी के नजर पड़ल । ऊ कहलन - "एजी, लगऽ हो, राधे बाबू एनहीं आवइत हथुन ।") (जोमुसिं॰1.5)
48 एने-ओने (हल्का-फुल्का चाय-पानी लेला के बाद अप्पन सिरीमती जी से दिन भर के एने-ओने के खबर लेइत हली कि एही बीच राधे बाबू पर सिरीमती जी के नजर पड़ल ।; जइसे-तइसे रात बितला के बाद ऊ सबेरहीं गाँव आ गेलन । एने-ओने के पंच बोलयलन, पंचइती लग गेल ।) (जोमुसिं॰1.4; 11.17-18)
49 एरिआ-जेबार (जलदिए इनखर डाक्टरिओ बेस चले लगल । एरिआ-जेबार से रोगी आवे लगल हल ।) (जोमुसिं॰29.11)
50 एही (= एहे; यही) (हमहूँ पहिले एही सोंचऽ-समझऽ हली कि लइका ओला बाप भगसाली होवऽ हे आऊ ई घड़ी लइका के सादी-बिआह भी एगो अच्छा बिजनेस हे जेकरा में एक लगावऽ सोलह पावऽ ओला कहाऊत एकदम फिट जँचऽ हे ।) (जोमुसिं॰2.24)
51 एहू (= एहो; यह भी) (हाँ मुनी जी, एहू बात तूँ कहलऽ से ठीके कहलऽ । अभी अप्पन माय के पुछवे न कइली हे । फिन, लइका के मामु-ममानी से बाते न होयल हे । अपन सास-ससुर से पुछना भी लाजिमे समझऽ ही ।) (जोमुसिं॰4.5)
52 ओकर (= ओक्कर) (बात तो ठीक कहऽ हऽ चचा । लेकिन ओकरा जे बुझैलई से कैलक । ओकर हिस्सा हलई । ओकरा से हमरा का लेना-देनी हल ।) (जोमुसिं॰10.27)
53 ओकरा (खाद-बीज, दवाई-सिंचाई के खरचा जोड़े पर उनका फायदा नजर न आवे । ओकरो पर कटनी-पिटनी में देख-रेख करहीं पड़ऽ हल । ई लेके ऊ सोंचे लगलन कि जमीन बटाई देवे से अच्छा हे कि ओकरा बेच-बाच के पइसा बैंक में रख देल जाय जहाँ सूद-बेआजो मिलत आऊ पइसो हिफाजत से रहत ।; महेसवा के एतनो न बुझएलइ कि बड़ भाई आखिर बाप लेखा होवऽ हे, से तो तूँ बाप के मरला के बादो ओकरा पढ़ा-लिखा के नोकरिओ लगा देलहू । अरे एक दिन तो सब कोई जुदा होयबे करऽ हे लेकिन लोक-लिहाजो तो कोई चीज होवऽ हे कि न? अगर ऊ अप्पन जमीन तोरे दे देत हल तऽ तूँ का ओकरा पइसा न देतहु हल ?) (जोमुसिं॰10.15, 22, 25)
54 ओकरो (खाद-बीज, दवाई-सिंचाई के खरचा जोड़े पर उनका फायदा नजर न आवे । ओकरो पर कटनी-पिटनी में देख-रेख करहीं पड़ऽ हल । ई लेके ऊ सोंचे लगलन कि जमीन बटाई देवे से अच्छा हे कि ओकरा बेच-बाच के पइसा बैंक में रख देल जाय जहाँ सूद-बेआजो मिलत आऊ पइसो हिफाजत से रहत ।) (जोमुसिं॰10.13)
55 ओड़िआ (बटइआ पर लेके एगो बाछी रख लेलक हल । सबेरे उठ के बासी रोटी खा ले हल आऊ गाय के साथे लेके चरावे ला निकल पड़ऽ हल । साथ में मऊनी आऊ खुरपो रखऽ हल । ई लेके लउटित बेजी एक ओड़िआ घासो लेले आवऽ हल ।) (जोमुसिं॰46.17)
56 ओतिए, ओतीए (= वहीं) (एक दिन ऊ सराब पी के कहीं से हीरो-होन्डा से चलल आवइत हल कि रसते में एक्सीडेन्ट कर गेल आऊ ओकर परान ओतीए छूट गेल ।; "आँख बंद कर के हाँथ जोड़ के भगवान के नाम लिहें, फिन चाऊर खा के पानी पी लिहें आऊ फूल के ओतिए जमीन में गाड़ दिहें । अबरी जब तोरा महीना हो जइतऊ तऽ ओकर पचवाँ दिन इहाँ अइहें ।" ई तरी बाबा ओकरा तीन महीना तक दउड़इलन आऊ पत खेबी महीना होयला के पचवाँ दिन बोलाबथ ।) (जोमुसिं॰15.17; 41.15)
57 ओही (= ओहे; वही) (सुरेस बाबू आव देखलन न ताओ । ऊ ओही दिन से ताला तोड़ के ऊ घर में अप्पन गाय-गोरू बान्हे-छाने लगलन ।) (जोमुसिं॰11.7)
58 ओहू (= ओहो; वह भी) (एही बीच सिरीमती जी कटोरी में दुगो भभरा आऊ गिलास में पानी लेले आ गेलन । मुस्काइत बोललन - "लऽ, जे गरीब किहाँ हे ओकरा सोविकार करऽ । आउ हाँ, चाहो चढ़ा देलियो हे, ओहू लेके आवइत हियो ।) (जोमुसिं॰1.15)
59 ओहो (सादी के बाद एतना टूट गेलन कि गोतिआ-नइआ, हित-कुटुम, परिवार ओलन के एक गिलास पानिओ ला न पुछलन । अब इनकर चेहरा के पानी उतर गेल हल । जे बड़का बने के मुखौटा इनकर चेहरा पर हल ओहो अब हट चुकल हल ।) (जोमुसिं॰27.30)
60 औकात (अब इनकर धुन समाज में अपना औकात देखावे के सवार हो गेल । बाहरी तामझाम आऊ बातचीत करे के ढंग बदल गेल । औकात से जादे महिनी देखावे के चलते हमेसे इनखर हालत पतला रहऽ हल । फह-फह कुरता पर किरिच न टूटऽ हल ।) (जोमुसिं॰23.9, 10)
61 कऊची (= कउची, क्या) ("का कहलें, बाँट दऽ ! आझ तक हम तोर एक पाई जानऽ हिअऊ, तऽ कऊची बाँट दिअऊ ?") (जोमुसिं॰28.2)
62 कटनी-पिटनी (खाद-बीज, दवाई-सिंचाई के खरचा जोड़े पर उनका फायदा नजर न आवे । ओकरो पर कटनी-पिटनी में देख-रेख करहीं पड़ऽ हल । ई लेके ऊ सोंचे लगलन कि जमीन बटाई देवे से अच्छा हे कि ओकरा बेच-बाच के पइसा बैंक में रख देल जाय जहाँ सूद-बेआजो मिलत आऊ पइसो हिफाजत से रहत ।) (जोमुसिं॰10.13)
63 कड़-कड़ (अब जटाधारी बाबू लोक-लिहाज के डर से बाउजी के अपना साथे ले अयलन, लेकिन मासटरनी साहिबा के सोभाउ कड़-कड़ हल । ई लेके ससुर के सेवा तो दूर, इनखर खान-पान, देखो-रेख सही ढंग से नऽ हो पावऽ हल ।) (जोमुसिं॰23.20)
64 कद-काठी (अइसे तो धुरफन्दी बेस पढ़ल-लिखल अदमी हला । डील-डौल आऊ कद-काठी में कऊनो कमी न हल । रूप-रंग के अलावे गलो बेसे मिलल हल जेकरा चलते गावे-बजावे के सौखो रखऽ हला ।) (जोमुसिं॰35.7)
65 कनबह (~ देना) (मैटरिक परिछा में सामिल होवे ला सरकारी उमरो चउदह बरिस के आसपास तय कर देल गेल हे, लेकिन एकरो में कनबह देल हे । जे से सही उमर चाहे जे होवे मगर नोटरी इया न्यायिक दण्डाधिकारी के सपथ-पतर में उनकर उमर चउदह चढ़ल हे तऽ ओकरा कोई काटिओ न सकऽ हे, आऊ फिन कउनो इसकूल से पराइवेट रजिस्टरेसन करवा के परिछा देल जा सकऽ हे ।) (जोमुसिं॰17.14)
66 कनहूँ (= कहीं भी, किसी तरफ भी) (नन्हें के पनरह अदमि के खोराक मिल गेल । चुड़ा-मीठा, सतू के मोटरी ले के नन्हें गाड़ी के उपरे सवार हो गेल । गाड़ी नीचे से ऊपर तक ठइंच गेल । कनहूँ देहो हिलावे के जगह न रहल ।; कनहूँ गोड़ रखे के जगह न हल ।) (जोमुसिं॰49.14, 18)
67 कने (= कन्ने; किधर) (दन्ड-परनाम करइत बोललन - "अप्पने भोरे-भोरे कने कष्ट कइली मास्टर साहेब । ई गरीब के दोहारी पर तो अप्पने के सेवा करे लायक कुछो हइए न हे । एगो बेटी भी हल ओकरो पहिलहीं नहकार देली हे ।") (जोमुसिं॰27.3)
68 कमाना-खाना (अब नन्हें इसकूल छोड़ के माय साथे मजूरी करे लगल । जब नन्हें कमाय-खाय लगल, तऽ सनिचरी ओकर बिआह कर देवे के बात मने-मने सोचे लगल ।) (जोमुसिं॰47.3)
69 करजा-पइंचा (जटाधारी बाबू के अब आँख के निन हराम हो गेल । पास में फुटल कउड़िओ न हल । तिलक के पइसा के अलावहूँ मकान बनावे में कुछ करजा-पइंचा पहिलहीं हो गेल हल । खेती-बारी जादे हइए न हल, जेकरा बेच-खोंच के उनखर पइसा लउटयतन हल ।) (जोमुसिं॰26.26)
70 करना-धरना (नन्हें के आदत लइकइए से गाय-गोरू चरावे में लइकन के साथे बिगड़ गेल हल । ई से लाख जतन कैलो पर नन्हें न पढ़ सकल । बहुत करे-धरे से कोई तरी अप्पन नाओ-गाँओ लिखे ला सीख लेलक हल ।) (जोमुसिं॰46.27)
71 कहाऊत (हमहूँ पहिले एही सोंचऽ-समझऽ हली कि लइका ओला बाप भगसाली होवऽ हे आऊ ई घड़ी लइका के सादी-बिआह भी एगो अच्छा बिजनेस हे जेकरा में एक लगावऽ सोलह पावऽ ओला कहाऊत एकदम फिट जँचऽ हे ।) (जोमुसिं॰2.26)
72 कहा-सुनी (अब सतीस बाबू के जभिओ कुछ पइसा के जरूरत पड़े आलोक से माँग बइठत । कुछ दिन तक तो आलोक लोक-लिहाज ढोयलक आऊ सतीस बाबू के पइसा मिलइत रहल । लेकिन ई कब तक चले ओला हल । आखिर में एक दिन चचा-भतीजा में कहा-सुनी हो गेल । घर में बँटवारो हो गेल ।) (जोमुसिं॰21.5)
73 कहिना (कहऽ बाबू, कहिना डेरा आयल हे ?; ऊ चचा ठीके कहऽ हथुन । तूँ अप्पन भला-बुरा देखवऽ तऽ देखऽ । गोतिआ-नइआ कोई के कहिनो होयल हे से होयत ।; जे कहिनो समाजिक काम ला न एक पइसा निकालऽ हलन, न एक घन्टा समये देवे ला तइआर होवऽ हलन, अब सब काम में खुल के हाँथ बटावे लगलन । एको मिटिंग इनखा से न छुटे आऊ चन्दा उगाहिओ में दुहारीए-दुहारीए भटकल फिरथ ।) (जोमुसिं॰6.10; 8.2; 24.27)
74 काहे (= क्यों) (सुरेस बाबू बोललन - "तऽ एकरा में हम का कर सकऽ ही चचा !" बुझामन महतो कहलन - "कर काहे न सकऽ हऽ । ई खनदानी घर हे । मगर हाँ तूँ तइयार रहवऽ तबे नऽ । एक बात करऽ । ओकरा कुछ करे से पहिले ओकर घर के ताला तोड़ के तूँ घर कब्जा कर लऽ ।") (जोमुसिं॰11.3)
75 काहे कि (= क्योंकि) (ई सब बात होयला के बाद ऊ फिन कुछ रुक गेलन । हमरा लगल कि ई कऊनो गम्भीर संकट में जरूर फँस गेलन हे । काहे कि इनखर चेहरा पर कहियो हम उदासी आऊ परेसानी न देखली हल ।) (जोमुसिं॰2.8)
76 किरिच (अब इनकर धुन समाज में अपना औकात देखावे के सवार हो गेल । बाहरी तामझाम आऊ बातचीत करे के ढंग बदल गेल । औकात से जादे महिनी देखावे के चलते हमेसे इनखर हालत पतला रहऽ हल । फह-फह कुरता पर किरिच न टूटऽ हल ।) (जोमुसिं॰23.11)
77 किरिया-करम (एही हालत में ऊ कुछ दिन तक गाँव में रहलन । एक दिन सबेरे गाँव के बगल के तलाब में उनखर लास छहलायल मिलल । गाँव-घर के सब लोग मिलके गाँवें में उनकर किरिया-करम कर देलन ।) (जोमुसिं॰16.20)
78 किहाँ (एही बीच सिरीमती जी कटोरी में दुगो भभरा आऊ गिलास में पानी लेले आ गेलन । मुस्काइत बोललन - "लऽ, जे गरीब किहाँ हे ओकरा सोविकार करऽ । आउ हाँ, चाहो चढ़ा देलियो हे, ओहू लेके आवइत हियो ।; जब बिना पइसा के अप्पने सादी न करब आऊ हम एतना दे न सकऽ ही । तऽ हम जे देली हे से लौटा देल जाय । अब हम अप्पन बेटी के बिआह अप्पने किहाँ न करब ।) (जोमुसिं॰1.15; 26.21)
79 केतना (= कितना) (आखिर ई तरी दिन केतना दिन गुजरत हल । ऊ अब अप्पन जान देखे कि बेटा के जान देखे । जब सब रसता बन्द बुझायल तऽ अन्त में अप्पन बाजी के पास चुपके से एगो बैरन लगा देलक ।) (जोमुसिं॰38.5)
80 केवाला (ई लेके ऊ सोंचे लगलन कि जमीन बटाई देवे से अच्छा हे कि ओकरा बेच-बाच के पइसा बैंक में रख देल जाय जहाँ सूद-बेआजो मिलत आऊ पइसो हिफाजत से रहत । ई सोच के ऊ अप्पन हिस्सा के सब जमीन जेकर-तेकर हाथे केवाला कर देलन ।) (जोमुसिं॰10.17)
81 कोट (= कोर्ट) (जइसे-तइसे रात बितला के बाद ऊ सबेरहीं गाँव आ गेलन । एने-ओने के पंच बोलयलन, पंचइती लग गेल । अब सब पंच सुरेसे बाबू के दोस देवे लगलन । आउ उनखा कोट जाय के इजाजत दे देलन ।) (जोमुसिं॰11.19)
82 कोट-कचहरी (ई सुन के महेस बाबू के पारा चढ़ गेल । बोललन - "बुढ़ारी में भइया के माथा खराब हो गेल हे का ? पीछे में ताला तोड़ देवे से ऊ घर उनखर तो न हो जइतई ? कुछ न तो अभी कोट-कचहरी के रस्ता तो हम्मरा ला खुला हइए हे ।"; जब घुटना तक लटकल फह-फह उजर कुरता आऊ चुस्त पैजामा पहिन के निकल जा हलन तऽ बेस-बेस नेतो इनखा सामने फेल कर जा हलन । बलौक से लेके कोट-कचहरी तक इनखर धाक हल ।; कोई पंचो दुनो भाई के झगड़ा में पड़ल न चाह रहलन हे । मधेसर {डाक्टर} से विकलांग होवे के चलते कोट-कचहरी जायल न चाह रहलन हे ।) (जोमुसिं॰11.15; 17.26; 33.22)
83 खखनना ("अगर ई तूँ कर लेलें तऽ तोर गोदी जरूर भर जइतऊ ।" सनिचरी के लइका ला परान खखनइत हल । ऊ हाथ जोड़ले बोलल - "अपने हमरा ला भगमान ही मिसिर बाबा, अपने जे कहम हम सब करे ला तइयार ही ।") (जोमुसिं॰41.21)
84 खटना (अमदनी तो हो जाहे, लेकिन कोल्हू के बैल के लेखा खट्टे पड़ रहल हे ।; उहाँ तूँ परेसान रहऽ हऽ, इहाँ बेचारी बहुरियो दिन-रात खटते-खटते परेसान रहऽ हे, तइयो बड़की के ताना सुनहीं पड़ऽ हे ।) (जोमुसिं॰6.17, 24)
85 खटपटी (जब नन्हें साम के नऽ लौटल तऽ घरे बुढ़िया के अनेसा होवे लगल । एने-ओने से पता चलल कि लउटइत बेजी जहाना के नगीच गाड़ी पलटी खा गेल हे, जेकरा में बीसन घायल हथ । दूगो मरिओ गेला हे । बुढ़िया के रात भर खटपटी लेले रहल ।) (जोमुसिं॰50.18)
86 खडजन्तर (= षड्यंत्र) (गुलबिआ के गुलाबी रंग मिसिर बाबा के नीन उड़ा देलक , से बाबा अब गुलबिआ के अप्पन जाल में फँसावे के खडजन्तर रचे लगला ।) (जोमुसिं॰43.7)
87 खनदानी (= खानदानी) (सुरेस बाबू बोललन - "तऽ एकरा में हम का कर सकऽ ही चचा !" बुझामन महतो कहलन - "कर काहे न सकऽ हऽ । ई खनदानी घर हे । मगर हाँ तूँ तइयार रहवऽ तबे नऽ । एक बात करऽ । ओकरा कुछ करे से पहिले ओकर घर के ताला तोड़ के तूँ घर कब्जा कर लऽ ।") (जोमुसिं॰11.3)
88 खरचा-बरचा (बाउजी थक चुकलन हल । खरचा-बरचा में दिक्कत होवे लगल, ई लेके ई खुदे कुछ लइकन के पढ़ावे लगलन आउ अप्पन खरचा चलावे लगलन ।; लड़की ओला अछा खरचा-बरचा भी करे ला तइआर हलन ।) (जोमुसिं॰iv.24; 3.6)
89 खाना-खोराक (पइसा के रहते डाक्टर साहेब खाना-खोराक ला दोसरा पर मुँहताज रहऽ हला । कपड़ा-लत्ता, परला-हरला पर आऊ तकलीफ बढ़ जा हल ।) (जोमुसिं॰30.1)
90 खार (= जलन, डाह) (~ खाना) (तपेसर दा के बीच-बचाओ से हल्ला-गुदाल सांत हो गेल । लेकिन आझ तक दुनों भाई के बीच बँटवारा लेके खार बनले हे ।; लोग काने-कान इधर-उधर इनखर सादी-बिआह के बातो करे लगला हल । लेकिन डाक्टर साहेब अप्पन बड़का भाई से खार खा हला । उनखा सामने इनखर जुमान न हिल सकऽ हल । तऽ बिआह के बात कइसे उठयता हल ।) (जोमुसिं॰28.22; 31.8)
91 खिलान-पिलान (बिना तामझाम के सादा-सादी ढंग से समाज के दस गो अदमी के सामने माय-बाबू आऊ लइका-लइकी के सहमति पर फूल माला पहिरा के सादी करवा देल जा हल । एको पइसा नजाइज खरचा न होवऽ हल । एकर बाद आयल गेल, हित-कुटुम के खिलान-पिलान होवऽ हल ।) (जोमुसिं॰36.18)
92 खुसफैल ( नन्हें अब बकरी के दूध साथे रोटी खाय लगल आऊ बकरी के बच्चा से घर के आमदनियों बढ़े लगल । अब सनिचरी के हाँथ पहिले से जादे खुसफैल होल जाइत हल ।) (जोमुसिं॰46.22)
93 खूँट ("डाक्टर के बिआह, आऊ फिन साले भर में बेटा" - ई दुनो बात जान के धनेसर बाबू के सपना टूट गेल । लगल कि कोई उनखर जरल देह पर नून छिट देलक होय । अब ऊ पागल लेखा बात-बात में बिगड़ जाथ । अगर अनजानो में कोई के मुँह से डाक्टर के बारे में कुछ निकल जाय तो ऊ उनखर तेरहो खूँट के एक सनसे उकट देथ ।) (जोमुसिं॰33.9)
94 खेती-बारी (ई चलते ऊ कोई नोकरी-चाकरी के फेर में न रहलन, आऊ खेती-बारी देखे-सुने लगलन । खेती-बारियो भी अच्छा हल ।; कुछ दिन तक महेस बाबुओ खेती-बारी पर बिसेस धेयान देलन । बँटाइदारो कुछ इमानदारी बरतलक, आऊ गला-पानी बाँट के सहर तक पहुँचइलक भी । लेकिन ई जादे दिन न निबहल । महेस बाबुओ के खेती-बारी अब घाटा के सौदा नजर आवे लगल ।) (जोमुसिं॰5.10; 10.9, 11)
95 खेबी (= बेरी, बेजी, बार) ("आँख बंद कर के हाँथ जोड़ के भगवान के नाम लिहें, फिन चाऊर खा के पानी पी लिहें आऊ फूल के ओतिए जमीन में गाड़ दिहें । अबरी जब तोरा महीना हो जइतऊ तऽ ओकर पचवाँ दिन इहाँ अइहें ।" ई तरी बाबा ओकरा तीन महीना तक दउड़इलन आऊ पत खेबी महीना होयला के पचवाँ दिन बोलाबथ ।) (जोमुसिं॰41.17)
96 खोंइछा (अबकी बाबा एगो फूल आऊ अरवा चाऊर ओकर खोंइछा में डालइत बोललन - "जो अबरी सुते से पहिले एक हाँथ से पानी भर के सवा बिता जमीन लीप के ई फूल आऊ चाऊर ओही जगह रख दिहें ।") (जोमुसिं॰41.12)
97 खोंखना (= खाँसना) (मिसिर बाबा खोंखइत घर से बाहर निकललन आऊ गुलबिआ पर नजर पड़ते बोललन - "तऽ तूँ आ गेलँ गुलबिआ । हम समझली कि तूँ देरी से अयमऽ ।") (जोमुसिं॰43.24)
98 खोंता (डाक्टर साहेब के लगल कि अब किधर जाई । जउन पेड़ तर सरन लेले हली ओहू अब गिर गेल । अब अप्पन खोंता कहाँ बनाई ? अब रात-रात भर डाक्टर साहेब के नीन न आवे ।) (जोमुसिं॰32.13)
99 गछना (सोचलन कि हाँथ में एगो पइसा नऽ हे । कुटुम बराती आवे ला तंग करइते हे, तऽ कमो पर पचास-साठ हजार तो लगिए जायत । ई लेके कहलन कि जे गछल हल से पूरा कर द, तऽ सादी के दिन-तारीख तय हो जायत । अगुआ जइसे असमान से गिरल ।; तूँ तो टोला-महल्ला के अदमी हें । तऽ ई लेके तोरा ला हम सब उपाय-पतर कर देबऊ, लेकिन जे कहबऊ से सब तोरा आँख मून के करे पड़तऊ । अगर तोरा से ई हो सके तो गछ आउ न तो दोसर दोहारी देख । फेंकन आऊ सनिचरी दुनों हाथ जोड़ले मिसिर जी के बात मान लेलक, काहे कि गोदी भरे के एकरा आऊ कोई उपाय न बुझाइत हल ।) (जोमुसिं॰26.2; 40.14)
100 गन (सब हित-कुटुम के सामनहीं ऊ घर में जुदागी के टंठा डाल देलन । लेकिन माय कहलन कि जब तक हम बच रहली हे तोर हिस्सा कहाँ से अइलऊ ? जो अप्पन काम-काज कर गन । जहिना हम मर जइबऊ तहिना तूँ आके अप्पन हिस्सा-बखरा बाँट लिहें ।; पंच ? हम्मरा हीं भठिहारा कऊन पंच आबत ? आझ तक तो दोसर के पंचइती हम करइत अइली हे । जो, तोरा जे मन आबऊ से कर गन । हम सब समझ लेम ।) (जोमुसिं॰13.26; 28.9)
101 गर-गिरहस्थी (इनखर बाउजी श्री परमेश्वर सिंह आउ माय श्रीमती रामसखी देवी एगो सधारन किसान हलन, जे गर-गिरहस्थी से अप्पन परिवार चलावऽ हलन ।) (जोमुसिं॰iv.8)
102 गरमजरूआ (केस भेला पर एहू बात सामने आ गेल कि जऊन जमीन पर ऊ मकान बनौलका हे ऊ गरमजरूआ हे । ई करमचारी आऊ अंचल में पइसा देके नजाइज ढंग से दाखिल खारिज के रसीद ले लेलन हल । मलगुजारी ओला रसीदो जाली हल । अब ई केस में अइसन फँसलन कि आझ तक छुटकारा न भेल हे ।) (जोमुसिं॰15.4)
103 गला-पानी (= गल्ला-पानी) (कुछ दिन तक महेस बाबुओ खेती-बारी पर बिसेस धेयान देलन । बँटाइदारो कुछ इमानदारी बरतलक, आऊ गला-पानी बाँट के सहर तक पहुँचइलक भी । लेकिन ई जादे दिन न निबहल । महेस बाबुओ के खेती-बारी अब घाटा के सौदा नजर आवे लगल ।) (जोमुसिं॰10.10)
104 गाहे-बगाहे (अब महेस बाबू एगो किराया के मकान में परिवार के साथ रहे लगलन । गाँव-घर से उनखर मन धीरे-धीरे खिंचाए लगल । अब ऊ जल्दी घरहूँ जाय ला न चाहऽ हलन । परबो-तेओहार में कोई न कोई बहाना बना के सहरे में रह जा हलन । अब सुरेसे बाबू लइकन से भेंट-मुलकात करे के बहाना से गाहे-बगाहे सहर आ जा हलन ।) (जोमुसिं॰9.4)
105 गिरह (= गिर्रह; गाँठ) (~ बान्हना) (अब खूदे सिलबा अप्पन नइहर न आवे के गिरह बान्ह लेलक हे । कहऽ हे - "भाई-भौजाई केकर होयल हे जे हम्मर होयत ।") (जोमुसिं॰38.25)
106 गिरहस्थी (ओकरा लालन-पालन, पढ़ाई-लिखाई आउ सादी-बिआह में अप्पन सारा कमाई लगा देलन, लेकिन संयोग से दमाद अच्छा न भेंटायल । ससुरारी पइसा के चलते ऊ आउ बिगड़ गेल । बड़ी मोसकिल से ऊ अन्त में कुछ राह पर आयल तऽ एगो गुमटी खोल के अप्पन गिरहस्थी के भार अप्पन सिर लेलक ।) (जोमुसिं॰22.21)
107 गुड़-चुरा (= गुड़-चूड़ा) (धुरफन्दी लाल तो चतुर खिलाड़ी हला । ई से बइठले-बइठले अइसन जुगाड़ भिड़ौलका कि आठ बिगहा जमीन भेंटा गेल । हिस्सा-बखरा बाँटेओला कोई हइए न हल । बिआह के मंच पर धुरफन्दी लाल तिलक-दहेज के खिलाफ फिर तगड़ा भाखन देलका आऊ कहलका कि सादी में तिलक-दहेज के रूप में हम एक छेदाम न जानी । ... "तरे-तरे गुड़ चुरा, ऊपरे से एकारसी" ओला कहाऊत सच निकलल । ई से मनोहर बाबू के ई बात लग गेल ।) (जोमुसिं॰37.25)
108 गोड़ (हम हाँथ-गोड़ धोके तनी अरामे करे के फेर में हली कि उधर से हम्मर छोटकी बेटी झुनिआ दउड़ल आयल आऊ हँफइत बोलल - "पापा ! बुढ़वा दादा के दलान पर बड़ी मनी अदमी जमा होयल हथिन ।") (जोमुसिं॰34.4)
109 गोतिआ-नइआ (= गोतिया-नइया) (ऊ चचा ठीके कहऽ हथुन । तूँ अप्पन भला-बुरा देखवऽ तऽ देखऽ । गोतिआ-नइआ कोई के कहिनो होयल हे से होयत ।; सादी के बाद एतना टूट गेलन कि गोतिआ-नइआ, हित-कुटुम, परिवार ओलन के एक गिलास पानिओ ला न पुछलन । अब इनकर चेहरा के पानी उतर गेल हल । जे बड़का बने के मुखौटा इनकर चेहरा पर हल ओहो अब हट चुकल हल ।) (जोमुसिं॰8.1; 27.28)
110 गोतिया (एने-ओने के अइसने बात करके धनेसर बाबू अप्पन पिंड छुड़ा लेथ । ऊ न चाहऽ हलन कि डाक्टर के बिआह होवे काहे कि अभी ऊ जे कमाइत हे सब के सब उनखरे बाल-बच्चा आऊ परिवार ओलन में खरचा होइत हे । सादी के बाद ऊ तो गोतिया बन जायत । नगद-नरायन के साथे-साथ जर-जमीनो में अप्पन हिस्सा बँटावे लगत ।) (जोमुसिं॰31.19)
111 गोहूम (= गोधूम, गेहूँ) (एक दिन ऊ महेस बाबू के टोकइत कहलन - "कहऽ हऽ कि हम्मरा दस बिगहा जमीन हे, आऊ चाऊरो-गोहूम ला बजारे में झोला छानऽ हऽ । बड़का भइया के बड़ी गुन बखानइत रहऽ हऽ तऽ काहे छोट-छोट चीजो ला हम्मरा दोसरे के मुँह ताके पड़ऽ हे ।") (जोमुसिं॰9.13)
112 घर-गिरहस्थी (महेस बाबू साँस खींचइत बोललन - "हाँ चचा ! ठीक कहऽ हऽ । हमहूँ कम परेसान न ही, लेकिन सोचऽ ही, छोटकी के साथे ले जाय से घर-गिरहस्थी चौपट हो जायत ।"; आलोक बाबू अब सब समझऽ हलन । लेकिन कब तक निबाह करतन हल । उनखो पर घर-गिरहस्थी के भार आ गेल हल । ई लेके ऊ रोज-रोज के झंझट-पटपट से दूर हो जायल चाहऽ हलन । एक दिन ऊ फैसला कर लेलन कि अब चाहे जे होवे अप्पन तनख्वाह में से चचा के एको पइसा न देम ।; जब आलोक बाबू जेल काट के घर लौटलन तब तक समय गुजर चुकल हल । घर-गिरहस्थिओ सब चौपट हो गेल हल ।) (जोमुसिं॰6.29; 21.13, 27)
113 घरनी (कुछ दिन इधर-उधर करके अप्पन घरनी के देखावे में कोई कोर कसर न रखला । अप्पन जिनगी के सब बचल-खुचल कमाई फूँक देलका ।) (जोमुसिं॰15.24)
114 घरफोरनी (ऊ साम के बखत बुझामन चचा से जे बतकही करलन हल, सब कह सुनौलन । अब छोटकी सब बात सुनके टुभकलन - "अब तोर आँख खुललो । हम कहतिओ हल तऽ कहतऽ हल कि औरत जात घरफोरनी होवऽ हे ।") (जोमुसिं॰7.29)
115 घर-सोमारी (= घर-शुमारी) (एही वजह हे कि डेलहा पर अप्पन समाज के संगठन बनावे में स्वजाति के घर-सोमारी करे में ई खुल के हिस्सा लेलन, जेकर फल होयल कि इनखा लोग अखिल भारतीय दाँगी छत्रिय-संघ, साखा - डेलहा {गया} के अधच्छ पद पर बइठौलका ।) (जोमुसिं॰v.25)
116 घीग्घी (= घिग्घी) (महेस बाबू बेस पढ़ल-लिखल अदमी हलन । ऊ पुराना जमाना के बी॰ए॰ पास हलन । ई लेल इनखा सामने आझो अच्छा-अच्छा पढ़ल-लिखल के घीग्घी बन्द हो जाहे ।) (जोमुसिं॰5.3)
117 घीढ़ाढ़ी (= घीढ़ारी, घेढ़ारी, घृतढारी) (एकरे निदान ला ई नयका विधि से बिआहो कराना सुरू कर देलका हल जेकरा में बरहामन, नऊआ के अलावे मड़वा, मटकोर, घीढ़ाढ़ी के जरूरत न पड़ऽ हल ।) (जोमुसिं॰36.14)
118 चचा (= चाचा) (महेस बाबू साँस खींचइत बोललन - "हाँ चचा ! ठीक कहऽ हऽ । हमहूँ कम परेसान न ही, लेकिन सोचऽ ही, छोटकी के साथे ले जाय से घर-गिरहस्थी चौपट हो जायत ।; बात तो ठीक कहऽ हऽ चचा । लेकिन ओकरा जे बुझैलई से कैलक । ओकर हिस्सा हलई । ओकरा से हमरा का लेना-देनी हल ।) (जोमुसिं॰6.28; 10.26)
119 चचा-भतीजा (अब सतीस बाबू के जभिओ कुछ पइसा के जरूरत पड़े आलोक से माँग बइठत । कुछ दिन तक तो आलोक लोक-लिहाज ढोयलक आऊ सतीस बाबू के पइसा मिलइत रहल । लेकिन ई कब तक चले ओला हल । आखिर में एक दिन चचा-भतीजा में कहा-सुनी हो गेल । घर में बँटवारो हो गेल ।) (जोमुसिं॰21.5)
120 चर-चपरासी (बड़ा बाबू आऊ छोटा बाबू तक बात रहत हल तऽ कामो चल जायत हल । साहेब खुदे पइसा ला औफिस के पाछे ले जाके बतिआ हे । चर-चपरासी के कुछ चहवे करी । नस्ता-पानी में खरचा हे से अलावे ।) (जोमुसिं॰19.18)
121 चाऊर (= चाउर, चावल) (महेस बाबू के औरतो अब देहात जायल न चाहऽ हलन । लेकिन देहाती घी, साग, झंगरी, मकई ला उनकर परान छछनऽ हल । घरे ओला महिनका चाऊर, राहड़ के दाल, आलू-फुलकोबी के तरकारी के सोआद रह-रह के उनखा इयाद आवऽ हल ।) (जोमुसिं॰9.10)
122 चाऊर-गोहूम (= चावल-गेहूँ) (एक दिन ऊ महेस बाबू के टोकइत कहलन - "कहऽ हऽ कि हम्मरा दस बिगहा जमीन हे, आऊ चाऊरो-गोहूम ला बजारे में झोला छानऽ हऽ । बड़का भइया के बड़ी गुन बखानइत रहऽ हऽ तऽ काहे छोट-छोट चीजो ला हम्मरा दोसरे के मुँह ताके पड़ऽ हे ।") (जोमुसिं॰9.13)
123 चापाकल (गुलबिआ करेजा के धड़कन तामइत गोड़-हाँथ धोवे ला घर के अन्दर चापाकल पर चल पड़ल । कल पर जा के अभी हाँथ-मुँह धोवे ला सुरूए कयलक हल कि मिसिर बाबा अन्दर से बाहरी दरवाजा के केवाड़ी बंद कर देलका ।) (जोमुसिं॰44.20)
124 चाह (= चाय) (एही बीच सिरीमती जी कटोरी में दुगो भभरा आऊ गिलास में पानी लेले आ गेलन । मुस्काइत बोललन - "लऽ, जे गरीब किहाँ हे ओकरा सोविकार करऽ । आउ हाँ, चाहो चढ़ा देलियो हे, ओहू लेके आवइत हियो ।"; एही बीच चाहो आ गेल ।) (जोमुसिं॰1.15, 24)
125 चाही (= चाहिए) (पढ़ल-लिखल कमो होय तो काम चल जायत, लेकिन ओकर माय-बाप मोट पइसा देवेओला होवे के चाही । आऊ हाँ ! घर भी अइसन जगह होवे के चाही, जहाँ गाड़ी-छकड़ा आसानी से पहुँच जाय ।) (जोमुसिं॰3.22, 23)
126 चिरूआ (= चुरू; चुल्लू) (मिसिर बाबा, एक चिरूआ पानी एनहीं दे देथिन । हाँथ धो के परसादी खा लेबई ।) (जोमुसिं॰44.10)
127 चुड़ा-मीठा (नन्हें के पनरह अदमि के खोराक मिल गेल । चुड़ा-मीठा, सतू के मोटरी ले के नन्हें गाड़ी के उपरे सवार हो गेल । गाड़ी नीचे से ऊपर तक ठइंच गेल । कनहूँ देहो हिलावे के जगह न रहल ।) (जोमुसिं॰49.13)
128 चुल्हा-चऊँका (मास्टर साहेब के परसताओ मान के उनखे किहाँ भोजन-पानी करे लगला । डाक्टरी अच्छा चलइते हल । ई लेके ई धीरे-धीरे चुल्हा-चऊँका के सब खरचा चलावे लगलन ।) (जोमुसिं॰30.9)
129 चुल्हा-चऊका (डेरा में जनानी के नऽ रहे से औफिस से अयला के बाद चुल्हो-चऊका अपने करे पड़ऽ हे ।) (जोमुसिं॰6.19)
130 चुस (= चुस्त) (एक दिन नन्हें सांझ के बेर काम पर से लौटल आवइत हल । हाइ स्कूल पर ोकरा भेंट गाँवे के एगो पुरान साथी से हो गेल, जे फह-फह उजर कुरता आउ चुस पैजामा पेन्हले हल ।) (जोमुसिं॰47.9)
131 चेला-चाटी (ई अप्पन घर के आगे एही सब काम ला एगो कोठरी निकाल के ओकरा में बाजापता एगो औफिस खोल देलन हल, जेकरा में हमेसे दू-चार गो चेला-चाटी लगल-भिड़ल रहऽ हलन ।) (जोमुसिं॰39.23)
132 छछनना (परान ~) (महेस बाबू के औरतो अब देहात जायल न चाहऽ हलन । लेकिन देहाती घी, साग, झंगरी, मकई ला उनकर परान छछनऽ हल । घरे ओला महिनका चाऊर, राहड़ के दाल, आलू-फुलकोबी के तरकारी के सोआद रह-रह के उनखा इयाद आवऽ हल ।; नेता जी के बतावल सब इन्तजाम फेल हो गेल हल । खाय-पीए के बात तो दूर हल, लोग पेसाब-पखाना करहूँ ला छछन रहलन हल ।) (जोमुसिं॰9.10; 49.21)
133 छहलाना (एही हालत में ऊ कुछ दिन तक गाँव में रहलन । एक दिन सबेरे गाँव के बगल के तलाब में उनखर लास छहलायल मिलल । गाँव-घर के सब लोग मिलके गाँवें में उनकर किरिया-करम कर देलन ।) (जोमुसिं॰16.19)
134 छोटका (इहाँ सब भाई मिल-जुल के बाउजी के दाह संस्कार तो कर देलन हल, बाकि घर के माली हालत अच्छा न हल । सूरज बाबू के घर आ जाय से छोटकन भाई के कुछ हिम्मत हो गेल हल । दोसरका दिन दुधमुहीं कयला के बाद जब सब भाई एक जगह जमा होयलन तऽ काम-काज में खरचा-बरचा के बात उठल ।; बनवारी बाबू के तीन बेटा हल । ... बड़का आऊ मझला तो पढ़-लिख के नोकरिओ करे लगल, छोटका कुछ पढ़े में भद-भद हल, से ऊ सतमा पास करके बाउजी के काम-धन्धा में हाँथ बटावे लगल ।; गाँव-घर, माय-बाबू के सब सपना थोड़िके दिन में चकनाचूर हो गेल हल । ऊ तो छोटका बेटा रामधारी हल, जे इनखर बुढ़ारी के लाठी बनल हल ।) (जोमुसिं॰13.9; 22.9, 15)
135 छोटकी (महेस बाबू साँस खींचइत बोललन - "हाँ चचा ! ठीक कहऽ हऽ । हमहूँ कम परेसान न ही, लेकिन सोचऽ ही, छोटकी के साथे ले जाय से घर-गिरहस्थी चौपट हो जायत ।"; हम हाँथ-गोड़ धोके तनी अरामे करे के फेर में हली कि उधर से हम्मर छोटकी बेटी झुनिआ दउड़ल आयल आऊ हँफइत बोलल - "पापा ! बुढ़वा दादा के दलान पर बड़ी मनी अदमी जमा होयल हथिन ।") (जोमुसिं॰6.29; 34.5)
136 छोट-मोट (इनखर साहितिक जीवन इसकूल से सुरू भेल हल । पहिले छोट-मोट कविता ई मगही-हिन्दी में लिखऽ हला आउ कुछ दिन के बाद ऊ फट-फुट के भुला जा हल ।; अब मधेसर बाबूओ डाक्टर बन गेलन । गाँव के बगले में एगो छोट-मोट बजार हल जहाँ हप्ता में दु दिन मेलो लगऽ हल । मधेसर बाबू एही बजार में एगो छोट-मोट कोठरी लेके परैक्टिस सुरू कर देलन ।) (जोमुसिं॰vi.2; 29.9, 10)
137 छौ-पाँच (~ में) (मास्टर साहेब के बदली के कागज आ गेल । छौ-पाँच में मास्टर साहेब कुछ दिन तक तो जनानी डेरा न ले गेला, लेकिन आखिर ई बात कब तक निबहे ओला हल । एक दिन मास्टर साहेब डेरा खाली कर देलका ।) (जोमुसिं॰32.9)
138 जइसहीं (जब तक बाउजी बचऽ हलन जटाधारी बाबू अन्धविसवास, रूढ़ीवाद, पाखण्ड, कर्मकाण्ड, बरहामनवाद आऊ पूजापाठ के सख्त विरोधी हलन । लेकिन जइसहीं घर में लक्ष्मी आवे लगल इनखर विचार बदले लगल ।) (जोमुसिं॰24.10)
139 जतन (= यत्न) (नन्हें के आदत लइकइए से गाय-गोरू चरावे में लइकन के साथे बिगड़ गेल हल । ई से लाख जतन कैलो पर नन्हें न पढ़ सकल । बहुत करे-धरे से कोई तरी अप्पन नाओ-गाँओ लिखे ला सीख लेलक हल ।) (जोमुसिं॰46.27)
140 जतरा-पतरा (मिसिर बाबा ई इलाका के गुरु-पुरोहित हला । करमकांड, ज्योतिस, हस्त-रेखा, तंतर-मंतर, टोना-टोटका, जतरा-पतरा, सगुन में इनखर जोड़ के कोई पंडित न हला । ई सब के अलावे ई बइदगिरियो करऽ हलन ।) (जोमुसिं॰39.19)
141 जनानी (डेरा में जनानी के नऽ रहे से औफिस से अयला के बाद चुल्हो-चऊका अपने करे पड़ऽ हे ।; जनानी के साथे रहे से तोरो बनल-बनावल खाना मिल जयतो आऊ लइकमनों के कोई अच्छा इसकूल में नाम लिखवा देबहू तऽ ओखिनियों के जिनगी बन जइतइ ।) (जोमुसिं॰6.18; 7.8)
142 जमान (= जवान) (धीरे-धीरे नन्हें अब जमान होयत जाइत हल । अब ऊ अप्पन माय के दुःख-दरद बुझे लगल हल ।) (जोमुसिं॰46.13)
143 जमानी (= जवानी) (गुलबिआ एक जौ रोज बढ़े लगल । देखते-देखते ऊ जमानी के दहलीज पर पहुँच गेल । अब मिसिर बाबा के नजर तर गुलबिआ के चेहरा नाचे लगल ।) (जोमुसिं॰43.4)
144 जर-जमीन (देखऽ सुरेस बाबू ! तूँ बड़ी अकलमन्दी से एतना दिन तक घर-परिवार के निवाह कयलऽ । लेकिन अब महेसो लइका नऽ रह गेलन हे । इनखो तो खरचा-बरचा बढ़ले जाइत हई । जर-जमीन से कुछ मिलइते न हई । आखिर बाप-माय के जमीन-जायदाद में इनखो तो कुछ हिस्सा-बखरा होएब करऽ हई ।; बाउजी के काम-काज करके जटाधारी बाबुओ निसचिंत हो गेला । अब घर से फिर समपरक बढ़ौलका । जर-जमीन खुदे देखे-सुने लगला ।; एने-ओने के अइसने बात करके धनेसर बाबू अप्पन पिंड छुड़ा लेथ । ऊ न चाहऽ हलन कि डाक्टर के बिआह होवे काहे कि अभी ऊ जे कमाइत हे सब के सब उनखरे बाल-बच्चा आऊ परिवार ओलन में खरचा होइत हे । सादी के बाद ऊ तो गोतिया बन जायत । नगद-नरायन के साथे-साथ जर-जमीनो में अप्पन हिस्सा बँटावे लगत ।) (जोमुसिं॰9.26; 24.6; 31.20)
145 जरा-मना (भला छोटकी के जाय से का फरक पड़े ओला हई ? इहाँ भगमान के देनी से कऊन चीज के कमी हे, आऊ फिन जरा-मना उन्नइस-विनइस भेल तो पइसा पर अदमी भेंटाइए जा हे ।) (जोमुसिं॰7.5)
146 जरिको (कमाऊ पुत के बाप के दिमाग सतमा असमान पर चढ़ जाहे । विआह ला आयल अगुआ से मोल-जोल करे में ओकरा जरिको लाज सरम न लगे ।) (जोमुसिं॰ii.28)
147 जलम (= जन्म) (रामलाल बाबू के तीन बेटा हला । धनेसर, चनेसर आऊ मधेसर । धनेसर, चनेसर सुरुए से पढ़-लिख के नोकरी करे लगला हल । लेकिन छोटका भाई मधेसर जलमे से विकलांग हल ।) (जोमुसिं॰28.25)
148 जहिआ (= जहिया; जिस दिन) (जहिआ से बेटी किहाँ से ई चिट्ठी आयल हल, धुरफन्दी लाल के अकिले हेरा गेल हल । गाँव-घर में जहाँ दु-चार गो अदमी एक जगह जुट जा हलन ऊहें धुरफन्दी लाल के बात निकल जा हल ।) (जोमुसिं॰35.1)
149 जहिना (सब हित-कुटुम के सामनहीं ऊ घर में जुदागी के टंठा डाल देलन । लेकिन माय कहलन कि जब तक हम बच रहली हे तोर हिस्सा कहाँ से अइलऊ ? जो अप्पन काम-काज कर गन । जहिना हम मर जइबऊ तहिना तूँ आके अप्पन हिस्सा-बखरा बाँट लिहें ।; एक दिन तो ऊ आलोक के खुल के कह देलन कि तूँ अप्पन तनख्वाह के आधा पइसा हमरा दे दे न तो तोर नोकरी हम्मर मुट्ठी में हऊ । जहिना चाहबऊ तोर नोकरी तो जयबे करतऊ आऊ जेलो के हावा खइमें ।) (जोमुसिं॰13.27; 21.10)
150 जात (= जाति; वर्ग) (सिरीमती जी भी दोसर जात में बिआह करे के पछ में न हथ । लेकिन बात इहें तक रहत हल तइयो कोई झमेला नऽ हल ।; ऊ साम के बखत बुझामन चचा से जे बतकही करलन हल, सब कह सुनौलन । अब छोटकी सब बात सुनके टुभकलन - "अब तोर आँख खुललो । हम कहतिओ हल तऽ कहतऽ हल कि औरत जात घरफोरनी होवऽ हे ।") (जोमुसिं॰3.17; 7.29)
151 जानिस (= जानिस्ते, जनिस्ते) (बनवारी बाबू गरीबता हालतो में तीनों बेटा के पढ़ावे-लिखावे में कोई कोर-कसर न रखलन । अपना जानिस सादी-विआहो सोच-समझ के बेसे घर में कर देलन ।) (जोमुसिं॰22.7)
152 जामा (= जमा) (धिरे-धीरे कुछ पइसा जामा करके अब डेढ़ कट्ठा जमीनो सहर के बीच में ले लेलन हल ।) (जोमुसिं॰9.7)
153 जिनगी (जनानी के साथे रहे से तोरो बनल-बनावल खाना मिल जयतो आऊ लइकमनों के कोई अच्छा इसकूल में नाम लिखवा देबहू तऽ ओखिनियों के जिनगी बन जइतइ ।; डाक्टरो साहेब अप्पन बड़का भाई साहेब के मंसा समझ गेलन हल, लेकिन उनखर सामने कहे के हिम्मत न जुटा रहलन हल । लेकिन उमर सरक रहल हल, ई से आगे साफ अन्हार लौके लगल हल । अब हमेसे चिंता आऊ तनाओ में रहे लगलन । ई से अब ई खूदे अप्पन जिनगी के अगला कदम के बारे में सोचे ला मजबूर हो गेलन ।) (जोमुसिं॰7.10; 31.28)
154 जिला-जेवार (अब चाचा-भतीजा आमने-सामने आ गेलन हल । एक दूसर के खून के पिआसल इधर-उधर घुमइत-फिरइत रहऽ हलन । गाँव-घर, जिला-जेवार सब पंचइती करके थक गेला लेकिन कोई हल न निकलल ।) (जोमुसिं॰21.29)
155 जुकुत (= जुकुर, लायक) (इनखर पढ़ाई के भूख जगावे में श्री रानवृक्ष सिंह सिच्छक, डोमन बिगहा {ऊबेर} जहानाबाद के जोगदान काफी सराहे जुकुत हल ।) (जोमुसिं॰iv.14)
156 जुकुर(जब सिलबा बिआहे जुकुर हो गेल हल तऽ ऊ घड़ी इनखर जादू पुरे असमान पर हल । ई युवक संघ के आला अदमी बनल हला, जेकर नारा हल - "बेट-बेटी नहीं बिकेंगे - युवकों ने ललकार है' यानी तिलक-दहेज के बिना ही अब सादी होगी ।) (जोमुसिं॰36.3)
157 जुदागी (= जुदाई, बँटवारा) (महेस बाबुओ मुड़ी हिला देलन आऊ दुनो भाई में जुदागी हो गेल । महेस बाबू अप्पन खेत बँटइआ लगा के सहर लौट अयलन ।; जुदागी के बाद भाई से तफरका होइए गेल हल, से भाई के ऊ एको कट्ठा जमीन न देलन ।; सब हित-कुटुम के सामनहीं ऊ घर में जुदागी के टंठा डाल देलन । लेकिन माय कहलन कि जब तक हम बच रहली हे तोर हिस्सा कहाँ से अइलऊ ? जो अप्पन काम-काज कर गन । जहिना हम मर जइबऊ तहिना तूँ आके अप्पन हिस्सा-बखरा बाँट लिहें ।; तोहनी दुनो भाई पढ़ल-लिखल हऽ । तनि अप्पन आऊ गाँव-घर के इज्जतो-पानी के खेयाल करइत जा । अरे जुदागी तो होयबे करत । तऽ एतना उबिआए से काम न चलत । दुनों सांत रहऽ, कोई न कोई रसता जरूरे निकलत ।) (जोमुसिं॰10.7, 17; 13.25; 28.19)
158 जुमान (= जुबान) (लोग काने-कान इधर-उधर इनखर सादी-बिआह के बातो करे लगला हल । लेकिन डाक्टर साहेब अप्पन बड़का भाई से खार खा हला । उनखा सामने इनखर जुमान न हिल सकऽ हल । तऽ बिआह के बात कइसे उठयता हल ।) (जोमुसिं॰31.8)
159 जे (= जो) (अन्त में ई कहानी सेंगरह के तइयार करे में सामने इया पाछे से जे हमरा उत्साह बढ़ौलन हे, ऊ सभे के परति हम अभार जतावइत ही ।) (जोमुसिं॰i.15)
160 जेकर-तेकर (ई लेके ऊ सोंचे लगलन कि जमीन बटाई देवे से अच्छा हे कि ओकरा बेच-बाच के पइसा बैंक में रख देल जाय जहाँ सूद-बेआजो मिलत आऊ पइसो हिफाजत से रहत । ई सोच के ऊ अप्पन हिस्सा के सब जमीन जेकर-तेकर हाथे केवाला कर देलन ।) (जोमुसिं॰10.17)
161 जेकरा (लइका के सादी-बिआह तो आझकल माय-बाप ला एगो "ब्लैंक चेक" कहावऽ हे जेकरा पर जेतना चाहऽ लिख दऽ । आऊ एगो तूँ हऽ जे असमान के अप्पन माथा पर उठइले फिरइत हऽ । भला बेटा के बिआह कऊन अइसन चीज हे जेकरा ला तूँ सोच में पड़ल हऽ ।) (जोमुसिं॰2.20, 22)
162 जेतना (लइका के सादी-बिआह तो आझकल माय-बाप ला एगो "ब्लैंक चेक" कहावऽ हे जेकरा पर जेतना चाहऽ लिख दऽ । आऊ एगो तूँ हऽ जे असमान के अप्पन माथा पर उठइले फिरइत हऽ । भला बेटा के बिआह कऊन अइसन चीज हे जेकरा ला तूँ सोच में पड़ल हऽ ।) (जोमुसिं॰2.20)
163 जोरन (= जोड़न) (मगही माय के दूध से भरल हाँड़ी में हम 'जोरन' डाल रहली हे, जेकरा से मगध के माट्टी में रसल-बसल आउ पसरल मगही भासा जम जाय, जेकर मलाई, मखन आउ मट्ठा खा-खा के सब मगहिअन भाई-बहिन सरीर के साथे-साथे दिमागो से मजबूत बन जाथ आउ समाज के साथे देसो के माथा ऊपर उठावे में मदतगार बनथ ।) (जोमुसिं॰i.2)
164 झंगरी (= झंगड़ी) (महेस बाबू के औरतो अब देहात जायल न चाहऽ हलन । लेकिन देहाती घी, साग, झंगरी, मकई ला उनकर परान छछनऽ हल । घरे ओला महिनका चाऊर, राहड़ के दाल, आलू-फुलकोबी के तरकारी के सोआद रह-रह के उनखा इयाद आवऽ हल ।) (जोमुसिं॰9.10)
165 झंझट-पटपट (आलोक बाबू अब सब समझऽ हलन । लेकिन कब तक निबाह करतन हल । उनखो पर घर-गिरहस्थी के भार आ गेल हल । ई लेके ऊ रोज-रोज के झंझट-पटपट से दूर हो जायल चाहऽ हलन । एक दिन ऊ फैसला कर लेलन कि अब चाहे जे होवे अप्पन तनख्वाह में से चचा के एको पइसा न देम ।) (जोमुसिं॰21.5)
166 टंठा (सब हित-कुटुम के सामनहीं ऊ घर में जुदागी के टंठा डाल देलन । लेकिन माय कहलन कि जब तक हम बच रहली हे तोर हिस्सा कहाँ से अइलऊ ? जो अप्पन काम-काज कर गन । जहिना हम मर जइबऊ तहिना तूँ आके अप्पन हिस्सा-बखरा बाँट लिहें ।) (जोमुसिं॰13.25)
167 टीसन (ऊ दिन हम गाँव गेल हली । गाड़ी लेट से खुलल हल आऊ ठामे-ठामे भैकम के चलते ई टीसन करीब चार बजे पहुँचल हल ।) (जोमुसिं॰34.2)
168 टुभकना (ऊ साम के बखत बुझामन चचा से जे बतकही करलन हल, सब कह सुनौलन । अब छोटकी सब बात सुनके टुभकलन - "अब तोर आँख खुललो । हम कहतिओ हल तऽ कहतऽ हल कि औरत जात घरफोरनी होवऽ हे ।") (जोमुसिं॰7.28)
169 टोना-टोटका (मिसिर बाबा ई इलाका के गुरु-पुरोहित हला । करमकांड, ज्योतिस, हस्त-रेखा, तंतर-मंतर, टोना-टोटका, जतरा-पतरा, सगुन में इनखर जोड़ के कोई पंडित न हला । ई सब के अलावे ई बइदगिरियो करऽ हलन ।) (जोमुसिं॰39.19)
170 टोला-टाटी (एकर बेओहार से माय-बाबू तो खुस हइए हला, टोला-टाटी के जुआन लइकनो दाँत से अंगुरी काटे लगऽ हलन ।) (जोमुसिं॰39.16)
171 ठइंचना (नन्हें के पनरह अदमि के खोराक मिल गेल । चुड़ा-मीठा, सतू के मोटरी ले के नन्हें गाड़ी के उपरे सवार हो गेल । गाड़ी नीचे से ऊपर तक ठइंच गेल । कनहूँ देहो हिलावे के जगह न रहल ।) (जोमुसिं॰49.14)
172 डेरा-डन्डा (जब सूरज बाबू मैट्रिक के फारम भरलन तऽ उनखर सेन्टर गया सहर में आ गेल । ऊ कहिओ सहर-बजार देखलन नऽ हल । बाउजिओ खेती-बारी में लगल रहऽ हलन । अब सहर में रह के परिछा देवे के जब बारी आयल तऽ डेरा-डन्डा खोजे में उनखा बड़ी दिक्कत होल ।) (जोमुसिं॰12.9)
173 ढुकाना (= प्रवेश कराना) (पइसा सब एडभांस करौला के बाद कहलन कि इनसाल हम सादी के पछ में न ही । किराया के मकान में पुतोह कइसे ढुकायम ।) (जोमुसिं॰25.26)
174 तंतर-मंतर (मिसिर बाबा ई इलाका के गुरु-पुरोहित हला । करमकांड, ज्योतिस, हस्त-रेखा, तंतर-मंतर, टोना-टोटका, जतरा-पतरा, सगुन में इनखर जोड़ के कोई पंडित न हला । ई सब के अलावे ई बइदगिरियो करऽ हलन ।) (जोमुसिं॰39.19)
175 तइयो (सिरीमती जी भी दोसर जात में बिआह करे के पछ में न हथ । लेकिन बात इहें तक रहत हल तइयो कोई झमेला नऽ हल ।) (जोमुसिं॰3.18)
176 तकिआ-कलाम (ई समाज के सामने नाटक, एकांकी लिख के सच्चाई लावल चाहऽ हला । लेकिन एगो इनखर तकिआ कलाम हल कि 'उपदेस दोसरा ला होवऽ हे ' ।) (जोमुसिं॰35.23)
177 तनखाह (अब सूरज बाबू के हमेसा सहर में रहे के मौका मिल गेल । तनखाह के अलावे ऊपरी आमदनियो बेसे हो जा हल ।) (जोमुसिं॰12.25)
178 तनि (तोहनी दुनो भाई पढ़ल-लिखल हऽ । तनि अप्पन आऊ गाँव-घर के इज्जतो-पानी के खेयाल करइत जा । अरे जुदागी तो होयबे करत । तऽ एतना उबिआए से काम न चलत । दुनों सांत रहऽ, कोई न कोई रसता जरूरे निकलत ।) (जोमुसिं॰28.18)
179 तनि-तनि (~ बात पर) (मनोहरो अब सिलबा के साथे पहिलका बरताओ न करथ, तनि-तनि बात पर उखड़ जाथ ।) (जोमुसिं॰37.30)
180 तनी (हम हाँथ-गोड़ धोके तनी अरामे करे के फेर में हली कि उधर से हम्मर छोटकी बेटी झुनिआ दउड़ल आयल आऊ हँफइत बोलल - "पापा ! बुढ़वा दादा के दलान पर बड़ी मनी अदमी जमा होयल हथिन ।") (जोमुसिं॰34.4)
181 तफरका (जुदागी के बाद भाई से तफरका होइए गेल हल, से भाई के ऊ एको कट्ठा जमीन न देलन ।) (जोमुसिं॰10.18)
182 तरी (= तरह) (गाँव के बगले में बजार हल जहाँ सर-सब्जी असानी से बिक जा हल जे से कोई तरी दाल-रोटी के जुगाड़ हो जा हल ।; आखिर ई तरी दिन केतना दिन गुजरत हल । ऊ अब अप्पन जान देखे कि बेटा के जान देखे । जब सब रसता बन्द बुझायल तऽ अन्त में अप्पन बाजी के पास चुपके से एगो बैरन लगा देलक ।) (जोमुसिं॰22.4; 38.4)
183 तरे-तरे (= भीतर-भीतर, अन्दर-अन्दर) (धुरफन्दी लाल तो चतुर खिलाड़ी हला । ई से बइठले-बइठले अइसन जुगाड़ भिड़ौलका कि आठ बिगहा जमीन भेंटा गेल । हिस्सा-बखरा बाँटेओला कोई हइए न हल । बिआह के मंच पर धुरफन्दी लाल तिलक-दहेज के खिलाफ फिर तगड़ा भाखन देलका आऊ कहलका कि सादी में तिलक-दहेज के रूप में हम एक छेदाम न जानी । ... "तरे-तरे गुड़ चुरा, ऊपरे से एकारसी" ओला कहाऊत सच निकलल । ई से मनोहर बाबू के ई बात लग गेल ।) (जोमुसिं॰37.25)
184 तहिना (सब हित-कुटुम के सामनहीं ऊ घर में जुदागी के टंठा डाल देलन । लेकिन माय कहलन कि जब तक हम बच रहली हे तोर हिस्सा कहाँ से अइलऊ ? जो अप्पन काम-काज कर गन । जहिना हम मर जइबऊ तहिना तूँ आके अप्पन हिस्सा-बखरा बाँट लिहें ।) (जोमुसिं॰13.27)
185 तेसरका (ऊ तेसरका बेर फारम पूरक परिछा के साथे भरवौलका । अबरी जुगाड़ लग गेल । कौपी बाहर आ गेल । आलोक बाजी मार लेलक । अबरी ऊ खाली पासे न भेल बिलुक पूरा सेन्टरे भर में टौप कर गेल ।) (जोमुसिं॰20.26)
186 थोड़िके (गाँव-घर, माय-बाबू के सब सपना थोड़िके दिन में चकनाचूर हो गेल हल । ऊ तो छोटका बेटा रामधारी हल, जे इनखर बुढ़ारी के लाठी बनल हल ।) (जोमुसिं॰22.14)
187 थोड़िको (अगर एकरा से अपने के थोड़िको सहमति हमरा भेटा हे, तऽ एकरा से हमरा आगे बढ़े में मदत मिलत ।) (जोमुसिं॰i.12)
188 दन्ड-परनाम (एही बीच राधे बाबू आ गेलन । दन्ड-परनाम होयला के बाद ऊ हम्मरे साथे चउँकी पर बइठ गेलन ।; भाइओ अब बदल गेलन हल । दन्ड-परनाम भर रिसता रह गेल हल ।) (जोमुसिं॰1.11; 9.18)
189 दमाद (= दामाद) (ओकरा लालन-पालन, पढ़ाई-लिखाई आउ सादी-बिआह में अप्पन सारा कमाई लगा देलन, लेकिन संयोग से दमाद अच्छा न भेंटायल । ससुरारी पइसा के चलते ऊ आउ बिगड़ गेल ।; अब शिवधारी अप्पन सब जमीन-जायदाद दमाद के लिख-पढ़ के निश्चिंत हो गेला ।; आखिर मनोहर बाबू पाँच बच्छर तक तो तोरा से कुछो न माँगलथुन लेकिन जब तू अप्पन भतीजा आउ बेटा के बिआह में तिलक-दहेज के जगह पर आठ-दस बिगहा जमीन लिखा लेलहू तऽ फिन ऊ काहे मुँह बन्द कैले रहथ । दमाद हथ । तऽ उनखो माँग सहिए हे ।) (जोमुसिं॰22.19, 28; 38.20)
190 दरखास (डाक्टर साहबो भी मास्टरी ला अप्पन दरखास दे देलन आऊ फिर इनखर बहाली एगो बगले के इसकूल में हो गेल । अब डाक्टर साहेब, मास्टरो साहेब बन गेला ।) (जोमुसिं॰30.27)
191 दलान (= दालान) (हम हाँथ-गोड़ धोके तनी अरामे करे के फेर में हली कि उधर से हम्मर छोटकी बेटी झुनिआ दउड़ल आयल आऊ हँफइत बोलल - "पापा ! बुढ़वा दादा के दलान पर बड़ी मनी अदमी जमा होयल हथिन ।") (जोमुसिं॰34.6)
192 दाखिल-खारिज (केस भेला पर एहू बात सामने आ गेल कि जऊन जमीन पर ऊ मकान बनौलका हे ऊ गरमजरूआ हे । ई करमचारी आऊ अंचल में पइसा देके नजाइज ढंग से दाखिल खारिज के रसीद ले लेलन हल । मलगुजारी ओला रसीदो जाली हल । अब ई केस में अइसन फँसलन कि आझ तक छुटकारा न भेल हे ।) (जोमुसिं॰15.5)
193 दिआ (= दिया, दिका; द्वारा) (अपने कने कस्ट करे चल अइली सतीस बाबू ? अगर कोई काम हल तऽ कोई दिआ खबर भेज देती हल, हम खूदे आ जइती हल ।) (जोमुसिं॰18.8)
194 दिन-दुनियाँ (सुरेस बाबुओ आखिर दिन-दुनियाँ देखले हलन । ऊ समझ गेलन कि पानी अब सिर के ऊपरे होवे ओला हे । ई से एकर उपाई जल्दीए कर देवे में गुंजाइस हे ।; एकर अलावे ई आझ तक अप्पन पूँजी लगा के कोई रोजगार न कयलन हल, बिलुक बाते इनखर पूँजी हल, जेकर बल पर अप्पन दिन-दुनियाँ चला रहला हल ।) (जोमुसिं॰10.1; 35.19)
195 दुगनाना (= दुगना होना) (डाक्टर साहबो भी मास्टरी ला अप्पन दरखास दे देलन आऊ फिर इनखर बहाली एगो बगले के इसकूल में हो गेल । अब डाक्टर साहेब, मास्टरो साहेब बन गेला । अब आमदनी तो दुगना गेल, लेकिन परेसानिओ पहिले से जादहीं हो गेल हल ।) (जोमुसिं॰30.29)
196 दुधमुहीं (इहाँ सब भाई मिल-जुल के बाउजी के दाह संस्कार तो कर देलन हल, बाकि घर के माली हालत अच्छा न हल । सूरज बाबू के घर आ जाय से छोटकन भाई के कुछ हिम्मत हो गेल हल । दोसरका दिन दुधमुहीं कयला के बाद जब सब भाई एक जगह जमा होयलन तऽ काम-काज में खरचा-बरचा के बात उठल ।) (जोमुसिं॰13.10)
197 दुसरका (दुसरका दिन सबेरहीं महेस बाबू नेहा-धोवा के जाय ला तइयार हो गेलन । भौजाई उनखा कहलन कि खा-पी के जइतऽ हल तऽ अच्छा होइत हल ।; ई लेके जब दुसरका साल अगुआ के साथे कुटुम दिन तारीख ला पहुँचल तऽ ई अब अप्पन रंग बदल देलन । सोचलन कि हाँथ में एगो पइसा नऽ हे । कुटुम बराती आवे ला तंग करइते हे, तऽ कमो पर पचास-साठ हजार तो लगिए जायत ।) (जोमुसिं॰8.6; 25.30)
198 दुहारी (जे कहिनो समाजिक काम ला न एक पइसा निकालऽ हलन, न एक घन्टा समये देवे ला तइआर होवऽ हलन, अब सब काम में खुल के हाँथ बटावे लगलन । एको मिटिंग इनखा से न छुटे आऊ चन्दा उगाहिओ में दुहारीए-दुहारीए भटकल फिरथ ।; तोरा से सरीर का माटिओ छुआ हे । लेकिन जब तूँ हमर सरन में आ गेले हें, तऽ ई बात तूँ जान ले कि आझ तक हमर दुहारी से कोई निरास न लौटल हे ।) (जोमुसिं॰24.30; 40.12)
199 देखल-सुनल (आसपास के परिवेस में देखल-सुनल आउ भोगल घटना पे आधारित इनखर कहानी जीवंत आउ मरम के छुए ओला हे ।) (जोमुसिं॰ii.16)
200 देखाना-सुनाना (मिसिर बाबा के असिरवादे से गुलबिया के जलम भेल हल । जब गुलबिआ के माय-बाबू सगरो देखा-सुना के थक गेला हल आऊ सनिचरी के गोदी न भरइत हल तऽ अन्त में फेंकन आऊ सनिचरी बाबा के सरन में आयल हल ।) (जोमुसिं॰40.6)
201 देनी (= देन) (भला छोटकी के जाय से का फरक पड़े ओला हई ? इहाँ भगमान के देनी से कऊन चीज के कमी हे, आऊ फिन जरा-मना उन्नइस-विनइस भेल तो पइसा पर अदमी भेंटाइए जा हे ।) (जोमुसिं॰7.5)
202 दोसरका (= दुसरका) (सूरज बाबू दोसरका दिन चुपचाप अप्पन काम पर सहर लौट अयला ।) (जोमुसिं॰13.28)
203 दोहारी (= दुहारी) (तूँ तो टोला-महल्ला के अदमी हें । तऽ ई लेके तोरा ला हम सब उपाय-पतर कर देबऊ, लेकिन जे कहबऊ से सब तोरा आँख मून के करे पड़तऊ । अगर तोरा से ई हो सके तो गछ आउ न तो दोसर दोहारी देख । फेंकन आऊ सनिचरी दुनों हाथ जोड़ले मिसिर जी के बात मान लेलक, काहे कि गोदी भरे के एकरा आऊ कोई उपाय न बुझाइत हल ।; नन्हें दिन-दिन भर एने-ओने लइकन साथे खेलइत-कुदइत रहऽ हल । भूख लगला पर धरखा पर से आधा रोटी उतार के खा ले हल आऊ फिन लइकन साथे खेले में लग जा हल । साँझ जब होवऽ हल, अप्पन दोहारी पर बइठ के माय के आवे के इन्तजार करे लगऽ हल ।) (जोमुसिं॰40.15; 46.7)
204 दोहारी (दन्ड-परनाम करइत बोललन - "अप्पने भोरे-भोरे कने कष्ट कइली मास्टर साहेब । ई गरीब के दोहारी पर तो अप्पने के सेवा करे लायक कुछो हइए न हे । एगो बेटी भी हल ओकरो पहिलहीं नहकार देली हे ।"; सुबह से साम तक इसकूल में माथा-पच्ची कयला के बाद जब डेरा लौटथ तो इहाँ पहिलहीं से मरीज लोग दोहारी घेरले रहथ । नस्तो-पानी के फुर्सत इनखा न मिले । आराम तो हराम हो गेल ।) (जोमुसिं॰27.3; 31.3)
205 धरखा (= ताखा) (दिन भर बन-मजूरी कैला के बाद जब बेर डूबे घर लौटऽ हल, तऽ सब से पहिले नन्हें के खोज करऽ हल । नन्हें दिन-दिन भर एने-ओने लइकन साथे खेलइत-कुदइत रहऽ हल । भूख लगला पर धरखा पर से आधा रोटी उतार के खा ले हल आऊ फिन लइकन साथे खेले में लग जा हल ।; रात में खा-पी के माय-बेटा सबेरहीं साथ ही सूत जा हल । भोरे उठ के नन्हें ला दू गो रोटी बना के धरखा पर कटोरी में कर के रख दे हल आऊ फिन ऊ काम पर चल जा हल ।) (जोमुसिं॰46.6, 11)
206 धोकड़ी (= जेब) (ऊ मेहनत से पढ़ल-लिखल तऽ ओकरा नोकरी भेंटा गेलई । हाँ, जब जादे लोग तंग करे लगलथ तऽ ऊ एगो चौकलेट जरूर थमा देथ । आऊ कुछ दिन तक ऊ धोकड़ी में चौकलेट लेके चलबो करऽ हलन ।) (जोमुसिं॰24.25)
207 नइहर (एक दिन सिलबा के नइहर से बिआह के नेओता लेके हजाम आयल । हजाम के आवभगत में कोई कमी न होयल । सिलवा के चचेरा भाई के बिआह हल ।; अब खूदे सिलबा अप्पन नइहर न आवे के गिरह बान्ह लेलक हे । कहऽ हे - "भाई-भौजाई केकर होयल हे जे हम्मर होयत ।"; पंडिताइन माय-बेटी नइहर चल गेलथुन हे ऊहाँ सारा के बेटी के सादी हई ।) (जोमुसिं॰36.31; 38.29; 43.27)
208 नऊआ (= नउआ, नाई) (एकरे निदान ला ई नयका विधि से बिआहो कराना सुरू कर देलका हल जेकरा में बरहामन, नऊआ के अलावे मड़वा, मटकोर, घीढ़ाढ़ी के जरूरत न पड़ऽ हल ।) (जोमुसिं॰36.14)
209 नगद-नरायन (एने-ओने के अइसने बात करके धनेसर बाबू अप्पन पिंड छुड़ा लेथ । ऊ न चाहऽ हलन कि डाक्टर के बिआह होवे काहे कि अभी ऊ जे कमाइत हे सब के सब उनखरे बाल-बच्चा आऊ परिवार ओलन में खरचा होइत हे । सादी के बाद ऊ तो गोतिया बन जायत । नगद-नरायन के साथे-साथ जर-जमीनो में अप्पन हिस्सा बँटावे लगत ।) (जोमुसिं॰31.19)
210 नगीच (= नजदीक) (बात अइसन हे मुनी बाबू कि हम अप्पन लइका के सादी अप्पन साखा से अलग करे के विचार रखऽ हली आउ एही से एगो अच्छा सुखी-सम्पन्न, पढ़ल-लिखल परिवार के हिंआ अप्पन रिसतो तै कर देली हल । लड़की भी पढ़ल-लिखल, सुनर-सुसील, गुनवान हल, जेकरा हम काफी नगीच से देखली हल ।; एक दिन सबेरहीं बनवारी बाबू के ई चोला बाथरूम में गिरल मिलल । जटाधारी बाबू नगीच जाके देखलन । इनकर परान-पखेरू निकल चुकल हल ।) (जोमुसिं॰3.5; 24.3)
211 नगीची (= नजदीकी) (बाहरी फोकस, पेन्हावा-ओढ़ावा आऊ सोआगत-सतकार में महिनी देखवइते हला । ई लेके कुटुम के समझ में न आयल कि ई केतना पानी में हथ आऊ ई नगीची के जानल-पहचानल अगुआ से जल्दी बाते करल न चाहऽ हलन ।; एक-दुगो तो इनखर बेओहार से एतना परेसान हो गेलन कि ओखनी हमेसा के लेल बजारे छोड़ देलन । जे दु-चार गो मधेसर बाबू के नगीची आऊ सलाहकार हला ओहू भाग खड़ा होयलन ।) (जोमुसिं॰25.19; 33.14)
212 नजाइज (= नाजायज) (केस भेला पर एहू बात सामने आ गेल कि जऊन जमीन पर ऊ मकान बनौलका हे ऊ गरमजरूआ हे । ई करमचारी आऊ अंचल में पइसा देके नजाइज ढंग से दाखिल खारिज के रसीद ले लेलन हल । मलगुजारी ओला रसीदो जाली हल । अब ई केस में अइसन फँसलन कि आझ तक छुटकारा न भेल हे ।; बिना तामझाम के सादा-सादी ढंग से समाज के दस गो अदमी के सामने माय-बाबू आऊ लइका-लइकी के सहमति पर फूल माला पहिरा के सादी करवा देल जा हल । एको पइसा नजाइज खरचा न होवऽ हल । एकर बाद आयल गेल, हित-कुटुम के खिलान-पिलान होवऽ हल ।) (जोमुसिं॰15.5; 36.17)
213 नस्ता-पानी (बड़ा बाबू आऊ छोटा बाबू तक बात रहत हल तऽ कामो चल जायत हल । साहेब खुदे पइसा ला औफिस के पाछे ले जाके बतिआ हे । चर-चपरासी के कुछ चहवे करी । नस्ता-पानी में खरचा हे से अलावे ।; सुबह से साम तक इसकूल में माथा-पच्ची कयला के बाद जब डेरा लौटथ तो इहाँ पहिलहीं से मरीज लोग दोहारी घेरले रहथ । नस्तो-पानी के फुर्सत इनखा न मिले । आराम तो हराम हो गेल ।) (जोमुसिं॰19.18; 31.3)
214 नाक (ऊ साम के बखत बुझामन चचा से जे बतकही करलन हल, सब कह सुनौलन । अब छोटकी सब बात सुनके टुभकलन - "अब तोर आँख खुललो । हम कहतिओ हल तऽ कहतऽ हल कि औरत जात घरफोरनी होवऽ हे । नाक न रहे त ई मइले खाय लगे । से सब बात अप्पने सुन लेलऽ । हम तोरा का कहिओ । ऊ चचा ठीके कहऽ हथुन ।") (जोमुसिं॰7.29-30)
215 ना-नुकूर (जइसे-जइसे हम उपाय बतावऽ हिअऊ, ओइसे-ओइसे तूँ करले जो । मगर एक बात के खेयाल रखिहें कि ई बात तेसर के कान में न जाय । न तो बनल खेल बिगड़ जइतऊ आऊ मसान के बिगड़ला पर जानो पर आफत आ जइतऊ । फेंकन दुनों परानी हाँथ जोड़ले भगमान के कथा नियन सुनइत चल गेल, कहीं पर ना-नुकूर न कयलक ।) (जोमुसिं॰40.29)
216 निअन (= नियन, नियर, नीयर; के समान) (महेस बाबू खाय लगलन लेकिन उनखा आझ खाना में कोई सवादे न मिल रहल हल । जइसे-तइसे खा पीके अप्पन घर में सुते चल गेलन । लेकिन उनखर आँख से नीन कोटा के रासन निअन गायब हो गेल हल ।) (जोमुसिं॰7.20)
217 निन (= नीन, नींद) (जटाधारी बाबू के अब आँख के निन हराम हो गेल । पास में फुटल कउड़िओ न हल । तिलक के पइसा के अलावहूँ मकान बनावे में कुछ करजा-पइंचा पहिलहीं हो गेल हल । खेती-बारी जादे हइए न हल, जेकरा बेच-खोंच के उनखर पइसा लउटयतन हल ।) (जोमुसिं॰26.24)
218 निबहना (कुछ दिन तक महेस बाबुओ खेती-बारी पर बिसेस धेयान देलन । बँटाइदारो कुछ इमानदारी बरतलक, आऊ गला-पानी बाँट के सहर तक पहुँचइलक भी । लेकिन ई जादे दिन न निबहल ।) (जोमुसिं॰10.11)
219 निवाह (= निर्वाह) (देखऽ सुरेस बाबू ! तूँ बड़ी अकलमन्दी से एतना दिन तक घर-परिवार के निवाह कयलऽ । लेकिन अब महेसो लइका नऽ रह गेलन हे । इनखो तो खरचा-बरचा बढ़ले जाइत हई । जर-जमीन से कुछ मिलइते न हई । आखिर बाप-माय के जमीन-जायदाद में इनखो तो कुछ हिस्सा-बखरा होएब करऽ हई ।) (जोमुसिं॰9.24)
220 नीन (डाक्टर साहेब के लगल कि अब किधर जाई । जउन पेड़ तर सरन लेले हली ओहू अब गिर गेल । अब अप्पन खोंता कहाँ बनाई ? अब रात-रात भर डाक्टर साहेब के नीन न आवे ।; तोरा जागे से समाज आऊ सरकार दुनो के नीन खुलत । जब तक बच्चा न रोवे, माय के दूध पिलावे के धेयान न रहे । ई सरकार के नीन तोड़ावे ला अप्पन आवाज आझ बुलन्द करऽ ।) (जोमुसिं॰32.14; 49.25, 26)
221 नून ("डाक्टर के बिआह, आऊ फिन साले भर में बेटा" - ई दुनो बात जान के धनेसर बाबू के सपना टूट गेल । लगल कि कोई उनखर जरल देह पर नून छिट देलक होय ।) (जोमुसिं॰33.7)
222 नून-मिचाई (~ लगा के कहना) (अब बुझामन के दुनो हाँथ में लड्डू मिल गेल हल । ऊ अप्पन भतिजवा के कह-सुन के तुरते चुपके से महेस बाबू के पास भेज देलका । ऊ नून-मिचाई लगा के महेस बाबू के कहलक - "देखलऽ नऽ, सहोदर भाई के कमाल । उनखा ई न चाहऽ हलई । कम से कम तूँ पुछहूँ से चल गेलऽ । आखिर ऊ घर तो तोरे हल ।") (जोमुसिं॰11.10)
223 नोकरिआह (अब दु-दु गो बेटा के नोकरिआह हो जाय से बनवारी बाबू के बुढ़ारी में आँख के चमक कुछ बढ़ गेल हल, लेकिन पुनियाँ के चाँद नियन ई रोसनी जलदीए गायब हो गेल, काहे कि नोकरी लगइते दुनो बेटा अप्पन औरत के साथे सहरे में रहे लगलन हल ।) (जोमुसिं॰22.10)
224 पंचइती (= पंचायत) (जइसे-तइसे रात बितला के बाद ऊ सबेरहीं गाँव आ गेलन । एने-ओने के पंच बोलयलन, पंचइती लग गेल ।; अब चाचा-भतीजा आमने-सामने आ गेलन हल । एक दूसर के खून के पिआसल इधर-उधर घुमइत-फिरइत रहऽ हलन । गाँव-घर, जिला-जेवार सब पंचइती करके थक गेला लेकिन कोई हल न निकलल ।; पंच ? हम्मरा हीं भठिहारा कऊन पंच आबत ? आझ तक तो दोसर के पंचइती हम करइत अइली हे । जो, तोरा जे मन आबऊ से कर गन । हम सब समझ लेम ।) (जोमुसिं॰11.18; 21.29; 28.9)
225 पढ़ल-लिखल (बात अइसन हे मुनी बाबू कि हम अप्पन लइका के सादी अप्पन साखा से अलग करे के विचार रखऽ हली आउ एही से एगो अच्छा सुखी-सम्पन्न, पढ़ल-लिखल परिवार के हिंआ अप्पन रिसतो तै कर देली हल । लड़की भी पढ़ल-लिखल, सुनर-सुसील, गुनवान हल, जेकरा हम काफी नगीच से देखली हल ।; तोहनी दुनो भाई पढ़ल-लिखल हऽ । तनि अप्पन आऊ गाँव-घर के इज्जतो-पानी के खेयाल करइत जा । अरे जुदागी तो होयबे करत । तऽ एतना उबिआए से काम न चलत । दुनों सांत रहऽ, कोई न कोई रसता जरूरे निकलत ।) (जोमुसिं॰3.3, 4; 28.18)
226 पढ़ाना-लिखाना (छोटका भाई मधेसर जलमे से विकलांग हल । हाँथ आऊ पैर दुनों से लाचार हला, लेकिन दिमाग से विकलांग न हला । ई लेके बाउजी आऊ बड़कन भाई लोगनो के मधेसर पर खास धेयान रहऽ हल । इनखर देख-रेख के अलावे पढ़ावे-लिखावहूँ में तनिक कंजूसी न कयलन हल ।) (जोमुसिं॰29.1)
227 पत (= प्रत्येक, हर) ("आँख बंद कर के हाँथ जोड़ के भगवान के नाम लिहें, फिन चाऊर खा के पानी पी लिहें आऊ फूल के ओतिए जमीन में गाड़ दिहें । अबरी जब तोरा महीना हो जइतऊ तऽ ओकर पचवाँ दिन इहाँ अइहें ।" ई तरी बाबा ओकरा तीन महीना तक दउड़इलन आऊ पत खेबी महीना होयला के पचवाँ दिन बोलाबथ ।) (जोमुसिं॰41.17)
228 परना-हरना (पइसा के रहते डाक्टर साहेब खाना-खोराक ला दोसरा पर मुँहताज रहऽ हला । कपड़ा-लत्ता, परला-हरला पर आऊ तकलीफ बढ़ जा हल ।) (जोमुसिं॰30.2)
229 परब-तेओहार (= पर्व-त्योहार) (अब महेस बाबू एगो किराया के मकान में परिवार के साथ रहे लगलन । गाँव-घर से उनखर मन धीरे-धीरे खिंचाए लगल । अब ऊ जल्दी घरहूँ जाय ला न चाहऽ हलन । परबो-तेओहार में कोई न कोई बहाना बना के सहरे में रह जा हलन । अब सुरेसे बाबू लइकन से भेंट-मुलकात करे के बहाना से गाहे-बगाहे सहर आ जा हलन ।) (जोमुसिं॰9.2)
230 परसादी (पगली ! तूँ फेंकन के बेटी हें तऽ हमरो तो बेटिए होयलें । काम पीछे होयत । पहिले मुँह-हाँथ धो के कुछ परसादी रखल हऊ से खा ले ।; मिसिर बाबा, एक चिरूआ पानी एनहीं दे देथिन । हाँथ धो के परसादी खा लेबई ।; अरे अन्दर चल के कलवा पर हाँथ-मुँह धो ले आऊ बइठ के परसादी खा ले ।) (जोमुसिं॰44.5, 11, 14)
231 परान (= प्राण) (महेस बाबू के औरतो अब देहात जायल न चाहऽ हलन । लेकिन देहाती घी, साग, झंगरी, मकई ला उनकर परान छछनऽ हल । घरे ओला महिनका चाऊर, राहड़ के दाल, आलू-फुलकोबी के तरकारी के सोआद रह-रह के उनखा इयाद आवऽ हल ।) (जोमुसिं॰9.10)
232 परानी (महेस बाबू भी अब दुनों परानी सहरे में रहे के मन बना लेलन लेकिन कहलन कि जलदी में कोई काम करे के न चाही । तूँ ठीक से रहऽ । हम अबरी जब आयम तऽ ई बारे में भइआ से बात करम ।) (जोमुसिं॰8.2)
233 पलटी (~ खाना) (गाड़ी जहाना पहुँचहीं ओला हल कि एगो पुलिया भिजुन मोड़ लेवे में गाड़ी पलटी खा गेल । अन्हरिआ रात हल । अफरा-तफरा मच गेल ।) (जोमुसिं॰50.8)
234 पहिलका (अब सुरेसे बाबू लइकन से भेंट-मुलकात करे के बहाना से गाहे-बगाहे सहर आ जा हलन । लेकिन महेस बाबू तो अब पूरा तरह से सहरिआ हो गेलन हल । भाई के साथ भी उनखर पहिलका बरताव न हल । ऊ आवथ इया जाथ एकरा से महेस बाबू के अब कुछ लेना-देना न हल ।) (जोमुसिं॰9.5)
235 पहिलहीं (हमनी दुनो लइकाइए से साथे-साथ पढ़ली-लिखली हल । ई लेल दुनो में पहिलहीं से दोस्ती आवइत हल जे आझ तक जइसे के तइसे बनल हल ।; सुबह से साम तक इसकूल में माथा-पच्ची कयला के बाद जब डेरा लौटथ तो इहाँ पहिलहीं से मरीज लोग दोहारी घेरले रहथ । नस्तो-पानी के फुर्सत इनखा न मिले । आराम तो हराम हो गेल ।) (जोमुसिं॰1.8; 31.2)
236 पहिलौंठ (मगही कहानी में जोरन के काम करइत मगह के उजागर पुत मुद्रिका सिंह के पहिलौंठ कहानी सेंगरह 'जोरन' हे ।) (जोमुसिं॰ii.13)
237 पहुँचल (~ फकीर) (साहेब खुदे पइसा ला औफिस के पाछे ले जाके बतिआ हे । चर-चपरासी के कुछ चहवे करी । नस्ता-पानी में खरचा हे से अलावे । सतीस बाबू अपने पहुँचल फकीर हथ । एक पइसा जादे कहली नऽ कि नीचे से ऊपर तक बबाल मचा देता ।) (जोमुसिं॰19.19)
238 पाक-साक (समाज में अगुआ के पाक-साक रहे के चाही । कथनी आउ करनी में अंतर के भंडाफोड़ होयला पर उनखर हालत पातर हो जाहे ।) (जोमुसिं॰iii.9)
239 पाछे (= पीछे) (अन्त में ई कहानी सेंगरह के तइयार करे में सामने इया पाछे से जे हमरा उत्साह बढ़ौलन हे, ऊ सभे के परति हम अभार जतावइत ही ।) (जोमुसिं॰i.15)
240 पुनियाँ (= पूर्णिमा) (अब दु-दु गो बेटा के नोकरिआह हो जाय से बनवारी बाबू के बुढ़ारी में आँख के चमक कुछ बढ़ गेल हल, लेकिन पुनियाँ के चाँद नियन ई रोसनी जलदीए गायब हो गेल, काहे कि नोकरी लगइते दुनो बेटा अप्पन औरत के साथे सहरे में रहे लगलन हल ।) (जोमुसिं॰22.12)
241 पेन्हावा-ओढ़ावा (बाहरी फोकस, पेन्हावा-ओढ़ावा आऊ सोआगत-सतकार में महिनी देखवइते हला । ई लेके कुटुम के समझ में न आयल कि ई केतना पानी में हथ आऊ ई नगिची के जानल-पहचानल अगुआ से जल्दी बाते करल न चाहऽ हलन ।) (जोमुसिं॰25.17)
242 पोटना (= फुसलाना, बहलाना, अपने अनुकूल बनाना) (ई सोभाऊ से मिलनसार आऊ मीठा बोलेओला हदमी हला । ई लेके इनखा अप्पन काम में कोई दिक्कत न होवऽ हल । जेकरा से काम पड़ऽ हल, ओकरा कह सुन के पोटिए ले हला । ई लेके गाँव ओला अदमी इनका लकड़सुंघवा निअन बुझऽ हला ।) (जोमुसिं॰35.12)
243 पोसतारी (= गौंढ़ा, बरकुरबा; गाँव के नजदीक की उपजाऊ जमीन) (माय सूरज बाबू के साथे जाय ला तइयार न होयलन । तऽ सूरज बाबू कहलन किजब ई जइबे न करत तऽ एकर परवरिस ला दस कट्ठा पोसतारीओला जमीन छोड़ के बाकी हिस्सा हम्मरा अलग कर दऽ । हम अप्पन हिस्सा बटइया-चउठइया लगा देम, काहे कि हम्मरा खेती-बारी करे-करावे के फुर्सत कहाँ हे ?) (जोमुसिं॰13.22)
244 फटना-फुटना (इनखर साहितिक जीवन इसकूल से सुरू भेल हल । पहिले छोट-मोट कविता ई मगही-हिन्दी में लिखऽ हला आउ कुछ दिन के बाद ऊ फट-फुट के भुला जा हल ।) (जोमुसिं॰vi.3)
245 फरिआना (बेटी के केते दिन तक अप्पन घर में रखता हल । अब रिटायरमेन्टो नगीचे आ गेल हल । ई लेके कुछ ले-दे के मामला सलटावहीं में गुंजाइस बुझला । एने-ओने छक्का-पंजा मारलका, कुछ नतीजा न निकलल । अन्त में काफी कहा-सुनी के बाद डेढ़ लाख नगद पर बात फरिआ गेल ।) (जोमुसिं॰38.25)
246 फह-फह (~ उजर) (जब घुटना तक लटकल फह-फह उजर कुरता आऊ चुस्त पैजामा पहिन के निकल जा हलन तऽ बेस-बेस नेतो इनखा सामने फेल कर जा हलन । बलौक से लेके कोट-कचहरी तक इनखर धाक हल ।; औकात से जादे महिनी देखावे के चलते हमेसे इनखर हालत पतला रहऽ हल । फह-फह कुरता पर किरिच न टूटऽ हल ।) (जोमुसिं॰17.24; 23.11)
247 फाजिल (= अधिक, अतिरिक्त) (अब आलोक परिछा के फारम भर देलक, लेकिन सतीस बाबू एक छेदामो फाजिल न देलन ।) (जोमुसिं॰20.9)
248 फिन (मिसिर बाबा पहिले सनिचरी के फिन ओकर बेटी गुलबिया के जाल में फँसा के अप्पन हवस के सिकार बनावऽ हे ।; अब सिलबा अप्पन बेटा आऊ मरद साथे फिन से नया जिंदगी सुरू कर देलक ।) (जोमुसिं॰iii.15; 38.27)
249 फिनो (महेस बाबू सहर गेलन आऊ दुइए रोज के बाद फिनो घर लऊट अइलन ।) (जोमुसिं॰8.16)
250 बँटइआ (= बटइया) (महेस बाबुओ मुड़ी हिला देलन आऊ दुनो भाई में जुदागी हो गेल । महेस बाबू अप्पन खेत बँटइआ लगा के सहर लौट अयलन ।) (जोमुसिं॰10.7)
251 बँटइआ-चउठइआ (अगर उपजल फसिल में से कुछ देवे में तोरा एतराज होवऽ हवऽ, तऽ इनकर हिस्सा बाँट के अलग कर देहू । अप्पन हिस्सा लेके इनखा जे मन होतई करतन । अप्पने नऽ करतन तो बँटइआ-चउठइआ तो लगा देतन । जहाँ कुछो न मिलइत हइ, कुछ तो मिलतइ ।; बनवारी बाबू के तीन बेटा हला । शिवधारी, जटाधारी आऊ रामधारी । ई साधारन तबका के किसान हला । अप्पन खेती-बारी कमे हल, लेकिन बँटइया-चउठइया से अप्पन हाल-रोजगार चला ले हला ।) (जोमुसिं॰9.30; 22.3)
252 बँटाइदार (कुछ दिन तक महेस बाबुओ खेती-बारी पर बिसेस धेयान देलन । बँटाइदारो कुछ इमानदारी बरतलक, आऊ गला-पानी बाँट के सहर तक पहुँचइलक भी । लेकिन ई जादे दिन न निबहल ।) (जोमुसिं॰10.10)
253 बंस-खूट (देखऽ सुरेस बाबू ! लेनी-देनी तो हइए हे । अप्पन बंस-खूट के जमीन हल । लेकिन जे भेल से भेल । कम से कम अब तूँ सचेत जरूर हो जा । कहीं घरवो दुसरे के न लिख देओ ? एक अंगना में दू जात हो जायत तऽ इज्जत-पानी कइसे बचत ?) (जोमुसिं॰10.29)
254 बइदगिरी (मिसिर बाबा ई इलाका के गुरु-पुरोहित हला । करमकांड, ज्योतिस, हस्त-रेखा, तंतर-मंतर, टोना-टोटका, जतरा-पतरा, सगुन में इनखर जोड़ के कोई पंडित न हला । ई सब के अलावे ई बइदगिरियो करऽ हलन ।) (जोमुसिं॰39.20)
255 बखत (साम के बखत बधार घुमे ला ऊ अकेले अकेले निकल गेलन हल । बुझामनो महतो घुमते-घुमते बाधे में उनखा मिल गेलन ।) (जोमुसिं॰6.7)
256 बचल-खुचल (कुछ दिन इधर-उधर करके अप्पन घरनी के देखावे में कोई कोर कसर न रखला । अप्पन जिनगी के सब बचल-खुचल कमाई फूँक देलका । लेकिन जब डाक्टर जवाब दे देलक तऽ इनखर सिर पर असमान टूट पड़ल ।) (जोमुसिं॰15.25)
257 बच्छर (अब गाँव-घर के कुछ मानिन्दे लोग धुरफन्दी लाल के समझौलन आउ कहलन कि आखिर मनोहर बाबू पाँच बच्छर तक तो तोरा से कुछो न माँगलथुन लेकिन जब तू अप्पन भतीजा आउ बेटा के बिआह में तिलक-दहेज के जगह पर आठ-दस बिगहा जमीन लिखा लेलहू तऽ फिन ऊ काहे मुँह बन्द कैले रहथ । दमाद हथ । तऽ उनखो माँग सहिए हे ।) (जोमुसिं॰38.18)
258 बछर (= बच्छर) (एने-ओने बेटा के बिआह करे के बातो चलौलक । एक जगह तो रिसतो हो गेल हल लेकिन लइकी के दादी के अचानक मर जाय के चलते सादी अगिला बछर पर टाल देल गेल ।) (जोमुसिं॰47.6)
259 बजाय (धुरफन्दी लाल के अब ढलती उमर हल । इनखर मंतर अब सब कोई बुझ गेला हल । ई लेके जब गाँव में चिट्ठी पहुँचल हल तऽ जादेतर लोग के चेहरा पर रहम के बजाय नफरते के रंग झलकऽ हल ।) (जोमुसिं॰38.10)
260 बजार (= बाजार) (एक दिन ऊ महेस बाबू के टोकइत कहलन - "कहऽ हऽ कि हम्मरा दस बिगहा जमीन हे, आऊ चाऊरो-गोहूम ला बजारे में झोला छानऽ हऽ । बड़का भइया के बड़ी गुन बखानइत रहऽ हऽ तऽ काहे छोट-छोट चीजो ला हम्मरा दोसरे के मुँह ताके पड़ऽ हे ।"; "घर ओला मकान में तोरा हिस्सा न मिलतऊ, अलबत्ता बजार के जमीन में दु गो कोठरी भर तोरा मिल जएतऊ ।"; बाउजीओ टहलइत-फिरइत कभी घर तो कभी बजार करइत रहऽ हलन ।) (जोमुसिं॰9.13; 28.4; 29.24)
261 बटइया (= बँटइया) (धीरे-धीरे नन्हें अब जमान होयत जाइत हल । अब ऊ अप्पन माय के दुःख-दरद बुझे लगल हल । ई से ऊ अब अप्पन माय के काम में हाँथ बटावे लगल हल । बटइआ पर लेके एगो बाछी रख लेलक हल ।) (जोमुसिं॰46.15)
262 बटइया-चउठइया (माय सूरज बाबू के साथे जाय ला तइयार न होयलन । तऽ सूरज बाबू कहलन किजब ई जइबे न करत तऽ एकर परवरिस ला दस कट्ठा पोसतारीओला जमीन छोड़ के बाकी हिस्सा हम्मरा अलग कर दऽ । हम अप्पन हिस्सा बटइया-चउठइया लगा देम, काहे कि हम्मरा खेती-बारी करे-करावे के फुर्सत कहाँ हे ?) (जोमुसिं॰13.23)
263 बटाई (= बटइया) (खाद-बीज, दवाई-सिंचाई के खरचा जोड़े पर उनका फायदा नजर न आवे । ओकरो पर कटनी-पिटनी में देख-रेख करहीं पड़ऽ हल । ई लेके ऊ सोंचे लगलन कि जमीन बटाई देवे से अच्छा हे कि ओकरा बेच-बाच के पइसा बैंक में रख देल जाय जहाँ सूद-बेआजो मिलत आऊ पइसो हिफाजत से रहत ।) (जोमुसिं॰10.14)
264 बड़का (जब तूँ पढ़-लिख के बड़का अदमी बन जयबऽ तऽ सहर में मकान बना लिहऽ । हमरा निअन गरीब अदमी सहर में कहाँ से मकान बना सकऽ हे ।; बनवारी बाबू के तीन बेटा हल । ... बड़का आऊ मझला तो पढ़-लिख के नोकरिओ करे लगल, छोटका कुछ पढ़े में भद-भद हल, से ऊ सतमा पास करके बाउजी के काम-धन्धा में हाँथ बटावे लगल ।) (जोमुसिं॰12.16; 22.8)
265 बड़की (~ माय) (लइकाइए में इनखर माय इनखा छोड़ के विदा ले लेलन हल, ई से इनखर पालन-पोसन बड़की माय {चचानी} आउ बड़की भौजाई के हाँथ से होयल ।) (जोमुसिं॰iv.10, 11)
266 बड़गो (= बड़गर, बड़ा) (हाँ मुनी बाबू, तोर बात सुनके अब हम्मर माथा कुछ हलका जरूर हो गेल हे । आझ तूँ हम्मरा बड़गो बात बतैलऽ हे । हम जलदिए में ई उलझन से निकलल चाहित ही ।; एकरो से बड़गो बात ई हल कि इनखा एके गो बेटा हल । आऊ ओकरो देखे ओला कोई न हल । ई लेके ओकरो पीए के आदत लग गेल हल ।) (जोमुसिं॰4.27; 15.14)
267 बड़ी (= बड़, बहुत) (बड़ी दिन से तोरा से भेंट न होइत हल से तोरा देखे लागी एक दिन सहरो जाय के मन बना लेली हल ।; ऊ कहिओ सहर-बजार देखलन नऽ हल । बाउजिओ खेती-बारी में लगल रहऽ हलन । अब सहर में रह के परिछा देवे के जब बारी आयल तऽ डेरा-डन्डा खोजे में उनखा बड़ी दिक्कत होल ।; ससुरारी पइसा के चलते ऊ आउ बिगड़ गेल । बड़ी मोसकिल से ऊ अन्त में कुछ राह पर आयल तऽ एगो गुमटी खोल के अप्पन गिरहस्थी के भार अप्पन सिर लेलक ।) (जोमुसिं॰6.11; 12.9; 22.20)
268 बतकही (ऊ साम के बखत बुझामन चचा से जे बतकही करलन हल, सब कह सुनौलन । अब छोटकी सब बात सुनके टुभकलन - "अब तोर आँख खुललो । हम कहतिओ हल तऽ कहतऽ हल कि औरत जात घरफोरनी होवऽ हे ।") (जोमुसिं॰7.27)
269 बतिआना (बड़ा बाबू आऊ छोटा बाबू तक बात रहत हल तऽ कामो चल जायत हल । साहेब खुदे पइसा ला औफिस के पाछे ले जाके बतिआ हे । चर-चपरासी के कुछ चहवे करी । नस्ता-पानी में खरचा हे से अलावे ।) (जोमुसिं॰19.17)
270 बधार (साम के बखत बधार घुमे ला ऊ अकेले अकेले निकल गेलन हल । बुझामनो महतो घुमते-घुमते बाधे में उनखा मिल गेलन ।) (जोमुसिं॰6.7)
271 बन-मजूर (महेस बाबू साँस खींचइत बोललन - "हाँ चचा ! ठीक कहऽ हऽ । हमहूँ कम परेसान न ही, लेकिन सोचऽ ही, छोटकी के साथे ले जाय से घर-गिरहस्थी चौपट हो जायत । अकेले भौजाई का करतन ? घर-अंगना देखतन कि बन-मजूर के देखतन ।) (जोमुसिं॰6.30)
272 बन-मजूरी (दिन भर बन-मजूरी कैला के बाद जब बेर डूबे घर लौटऽ हल, तऽ सब से पहिले नन्हें के खोज करऽ हल । नन्हें दिन-दिन भर एने-ओने लइकन साथे खेलइत-कुदइत रहऽ हल । भूख लगला पर धरखा पर से आधा रोटी उतार के खा ले हल आऊ फिन लइकन साथे खेले में लग जा हल ।; भइआ ! हम अनपढ़ अदमी, बन-मजूरी कर के कोई तरी अप्पन पेट भर रहली हे । रैली का होवऽ हे, से तो हम बुझवे न करी ।) (जोमुसिं॰46.3; 47.18-19)
273 बनल-बनावल (जनानी के साथे रहे से तोरो बनल-बनावल खाना मिल जयतो आऊ लइकमनों के कोई अच्छा इसकूल में नाम लिखवा देबहू तऽ ओखिनियों के जिनगी बन जइतइ ।) (जोमुसिं॰7.9)
274 बनाना-खाना (एक दिन मिसिर बाबा के ससुरार से बिआह के नेओता आ गेल । बाबा घर-दुआर देखे-सुने के बहाना बना के नेओता में न गेला । अप्पन औरत आऊ बेटी के ससुरार भेजवा देलका आऊ चले बेजी कहलका कि हम इहाँ खूदे बना खा लेम ।) (जोमुसिं॰43.11)
275 बरकुरबा (= गौंढ़ा, पोसतारी; गाँव के नजदीक की उपजाऊ जमीन) (मनमौजी बाबू तो बड़ा जुगाड़िया निकललन । साँपो मर गेल आऊ लाठिओ न टुटल । काहे कि तिलक-दहेज के नाम पर तो एको पाई लेवे न कयलका, लेकिन पाँच बिगहा बरकुरबा तो हाँथ लगिए गेलई । काहे कि लड़की के कोई सहोदर भाई न हथ, आऊ बहिनो में ऊ अकेले हथ ।) (जोमुसिं॰37.7)
276 बराती (= बारात) (ई लेके जब दुसरका साल अगुआ के साथे कुटुम दिन तारीख ला पहुँचल तऽ ई अब अप्पन रंग बदल देलन । सोचलन कि हाँथ में एगो पइसा नऽ हे । कुटुम बराती आवे ला तंग करइते हे, तऽ कमो पर पचास-साठ हजार तो लगिए जायत ।) (जोमुसिं॰25.32)
277 बाउजी (= बाबूजी) (इनखर बाउजी श्री परमेश्वर सिंह आउ माय श्रीमती रामसखी देवी एगो सधारन किसान हलन, जे गर-गिरहस्थी से अप्पन परिवार चलावऽ हलन ।; ऊ कहिओ सहर-बजार देखलन नऽ हल । बाउजिओ खेती-बारी में लगल रहऽ हलन । अब सहर में रह के परिछा देवे के जब बारी आयल तऽ डेरा-डन्डा खोजे में उनखा बड़ी दिक्कत होल ।; बनवारी बाबू के तीन बेटा हल । ... बड़का आऊ मझला तो पढ़-लिख के नोकरिओ करे लगल, छोटका कुछ पढ़े में भद-भद हल, से ऊ सतमा पास करके बाउजी के काम-धन्धा में हाँथ बटावे लगल ।; बाउजी अब बिलकुल असथाऊर हो गेलन हल । बड़का भाई के घर से मतलबे खतम हो गेल हल । घर पर छोटका भाई के हालत खुदे खराब हल, से बाउजी के का देखत-सुनत हल ?) (जोमुसिं॰iv.7; 12.7; 22.9; 23.14, 15)
278 बाजापता (= बजाप्ते) (ई अप्पन घर के आगे एही सब काम ला एगो कोठरी निकाल के ओकरा में बाजापता एगो औफिस खोल देलन हल, जेकरा में हमेसे दू-चार गो चेला-चाटी लगल-भिड़ल रहऽ हलन ।) (जोमुसिं॰39.22)
279 बात (~ उठना) (बुझामन महतो कहलन - "कर काहे न सकऽ हऽ । ई खनदानी घर हे । मगर हाँ तूँ तइयार रहवऽ तबे नऽ । एक बात करऽ । ओकरा कुछ करे से पहिले ओकर घर के ताला तोड़ के तूँ घर कब्जा कर लऽ । अगर कुछ बातो उठत तो ओकरा घर के जे कीमत लगत, चुकता कर दिअहू ।") (जोमुसिं॰11.5)
280 बाध (साम के बखत बधार घुमे ला ऊ अकेले अकेले निकल गेलन हल । बुझामनो महतो घुमते-घुमते बाधे में उनखा मिल गेलन ।) (जोमुसिं॰6.8)
281 बानी (फेंकन दुनों परानी हाँथ जोड़ले भगमान के कथा नियन सुनइत चल गेल, कहीं पर ना-नुकूर न कयलक । तब मिसिर बाबा हवन-कुंड से एक मुठी बानी निकाल के आँख बंद करके कुछ बुदबुदयलन, फिन ऊ सनिचरी के अचरा में एकरा बांध लेवे कहलन आऊ एहू कहलन कि घर जा के जऊन घर में सुतऽ हें ओकर सिरहाना तरफ एकरा रख दिहें आऊ थोड़ा सा चाट लिहें ।) (जोमुसिं॰40.30)
282 बान्हना-छानना (सुरेस बाबू आव देखलन न ताओ । ऊ ओही दिन से ताला तोड़ के ऊ घर में अप्पन गाय-गोरू बान्हे-छाने लगलन ।) (जोमुसिं॰11.8)
283 बिजुली (= बिजली) (हाले में ऊ बिजुली विभाग के बड़ा बाबू के ओहदा से रिटायर होयलन हे ।) (जोमुसिं॰5.4)
284 बिलुक (= बल्कि) (ऊ तेसरका बेर फारम पूरक परिछा के साथे भरवौलका । अबरी जुगाड़ लग गेल । कौपी बाहर आ गेल । आलोक बाजी मार लेलक । अबरी ऊ खाली पासे न भेल बिलुक पूरा सेन्टरे भर में टौप कर गेल ।; एकर अलावे ई आझ तक अप्पन पूँजी लगा के कोई रोजगार न कयलन हल, बिलुक बाते इनखर पूँजी हल, जेकर बल पर अप्पन दिन-दुनियाँ चला रहला हल ।) (जोमुसिं॰20.28; 35.18)
285 बिहान (अब औरत आऊ बेटा के गमौला के बाद सूरज बाबू बिल्कुल टूट चुकलन हल । उधर नौकरी से रिटायरमेन्ट के तलवारो लटक चुकल हल । हाथो-गोड़ अब जवाबे देले जाइत हल । ई सब सोच-सोच के रात भर जग के बिहान करे लगलन ।) (जोमुसिं॰16.3)
286 बुढ़वा (अब बाउजी घर के बोझ बन चुकलन हल । ई लेके दुनो परानी एही चाहऽ हलन कि बुढ़वा कहिआ मर जाय कि एकरा से पिन्ड छुटे आऊ बदनामिओ मेट जाय ।) (जोमुसिं॰23.32)
287 बुढ़हारी (= बुढ़ारी) (ई लेके ससुर के सेवा तो दूर, इनखर खान-पान, देखो-रेख सही ढंग से नऽ हो पावऽ हल । ऊपरे से दस गो बात सुने ला मिलिए जा हल । लेकिन बुढ़हारी अपने आप में एगो बीमारी हे । ई बीमारी जब पकड़ ले हे तऽ अदमी बेचारा बन जाहे ।) (जोमुसिं॰23.22)
288 बुढ़ारी (= बुढ़ापा) (ई सुन के महेस बाबू के पारा चढ़ गेल । बोललन - "बुढ़ारी में भइया के माथा खराब हो गेल हे का ? पीछे में ताला तोड़ देवे से ऊ घर उनखर तो न हो जइतई ? कुछ न तो अभी कोट-कचहरी के रस्ता तो हम्मरा ला खुला हइए हे ।"; अब दु-दु गो बेटा के नोकरिआह हो जाय से बनवारी बाबू के बुढ़ारी में आँख के चमक कुछ बढ़ गेल हल, लेकिन पुनियाँ के चाँद नियन ई रोसनी जलदीए गायब हो गेल, काहे कि नोकरी लगइते दुनो बेटा अप्पन औरत के साथे सहरे में रहे लगलन हल ।; गाँव-घर, माय-बाबू के सब सपना थोड़िके दिन में चकनाचूर हो गेल हल । ऊ तो छोटका बेटा रामधारी हल, जे इनखर बुढ़ारी के लाठी बनल हल ।) (जोमुसिं॰11.13; 22.11, 15)
289 बेचना-खोंचना (जटाधारी बाबू के अब आँख के निन हराम हो गेल । पास में फुटल कउड़िओ न हल । तिलक के पइसा के अलावहूँ मकान बनावे में कुछ करजा-पइंचा पहिलहीं हो गेल हल । खेती-बारी जादे हइए न हल, जेकरा बेच-खोंच के उनखर पइसा लउटयतन हल ।) (जोमुसिं॰26.27)
290 बेचना-बाचना (खाद-बीज, दवाई-सिंचाई के खरचा जोड़े पर उनका फायदा नजर न आवे । ओकरो पर कटनी-पिटनी में देख-रेख करहीं पड़ऽ हल । ई लेके ऊ सोंचे लगलन कि जमीन बटाई देवे से अच्छा हे कि ओकरा बेच-बाच के पइसा बैंक में रख देल जाय जहाँ सूद-बेआजो मिलत आऊ पइसो हिफाजत से रहत ।) (जोमुसिं॰10.15)
291 बेजाय (गाँव-घर में जहाँ दु-चार गो अदमी एक जगह जुट जा हलन ऊहें धुरफन्दी लाल के बात निकल जा हल । जेत मुड़ी तेत बात । कोई कहथ - धुरफन्दिआ के अबरिए पाला पड़लई हे । ई आझ तक दोसरा के आँख में धुरी झोंक के अप्पन काम चाँदी करइत आ रहल हल । कोई धुरफन्दी के बेस कहथ तो कोई बेजाय ।) (जोमुसिं॰35.6)
292 बेजी (एक दिन मिसिर बाबा के ससुरार से बिआह के नेओता आ गेल । बाबा घर-दुआर देखे-सुने के बहाना बना के नेओता में न गेला । अप्पन औरत आऊ बेटी के ससुरार भेजवा देलका आऊ चले बेजी कहलका कि हम इहाँ खूदे बना खा लेम ।; सबेरे उठ के बासी रोटी खा ले हल आऊ गाय के साथे लेके चरावे ला निकल पड़ऽ हल । साथ में मऊनी आऊ खुरपो रखऽ हल । ई लेके लउटित बेजी एक ओड़िआ घासो लेले आवऽ हल ।; लौटती बेजी बस खुलते-खुलते पटने में मुँहलुकान हो गेल । सब जल्दी पहुँचे के ताक में हला ।) (जोमुसिं॰43.10; 46.17; 50.4)
293 बेस (गाँव-घर में जहाँ दु-चार गो अदमी एक जगह जुट जा हलन ऊहें धुरफन्दी लाल के बात निकल जा हल । जेत मुड़ी तेत बात । कोई कहथ - धुरफन्दिआ के अबरिए पाला पड़लई हे । ई आझ तक दोसरा के आँख में धुरी झोंक के अप्पन काम चाँदी करइत आ रहल हल । कोई धुरफन्दी के बेस कहथ तो कोई बेजाय । अइसे तो धुरफन्दी बेस पढ़ल-लिखल अदमी हला । डील-डौल आऊ कद-काठी में कऊनो कमी न हल । रूप-रंग के अलावे गलो बेसे मिलल हल जेकरा चलते गावे-बजावे के सौखो रखऽ हला ।) (जोमुसिं॰35.5, 6, 8)
294 बैरन (~ चिट्ठी) (ई कह के ऊ हम्मर हाँथ में एगो बैरन चिट्ठी थमहा देलन । हम चिट्ठी खोल के पढ़े लगली । ई चिट्ठी सिलबा अप्पन ससुरार अप्पन बाबू जी धुरफन्दी लाल के पास लिखलक हल ।) (जोमुसिं॰34.18)
295 भगमान (भला छोटकी के जाय से का फरक पड़े ओला हई ? इहाँ भगमान के देनी से कऊन चीज के कमी हे, आऊ फिन जरा-मना उन्नइस-विनइस भेल तो पइसा पर अदमी भेंटाइए जा हे ।) (जोमुसिं॰7.5)
296 भगसाली (= भाग्यशाली) (हमहूँ पहिले एही सोंचऽ-समझऽ हली कि लइका ओला बाप भगसाली होवऽ हे आऊ ई घड़ी लइका के सादी-बिआह भी एगो अच्छा बिजनेस हे जेकरा में एक लगावऽ सोलह पावऽ ओला कहाऊत एकदम फिट जँचऽ हे ।) (जोमुसिं॰2.24)
297 भठिहारा ("पंच ? हम्मरा हीं भठिहारा कऊन पंच आबत ? आझ तक तो दोसर के पंचइती हम करइत अइली हे । जो, तोरा जे मन आबऊ से कर गन । हम सब समझ लेम ।") (जोमुसिं॰28.8)
298 भद (= भोद्दा) (बनवारी बाबू के तीन बेटा हल । ... बड़का आऊ मझला तो पढ़-लिख के नोकरिओ करे लगल, छोटका कुछ पढ़े में भद-भद हल, से ऊ सतमा पास करके बाउजी के काम-धन्धा में हाँथ बटावे लगल ।) (जोमुसिं॰22.9)
299 भभरा (एने-ओने के बात होयला के बाद अप्पन समाचार भी कहे लगलन । एही बीच सिरीमती जी कटोरी में दुगो भभरा आऊ गिलास में पानी लेले आ गेलन ।; राधे बाबू भभरा खाय लगलन आऊ साथे-साथ अप्पन हाल-रोजगार के बातो कहे लगलन ।) (जोमुसिं॰1.13, 17)
300 भिजुन (= भिर, भीर, पास) (एकरा बारे में हम तो जादे जानवे न करी । ई लेल तोरा भिजुन आ गेली हे । एकर रजिस्टरेसन हो जाय के चाही ।) (जोमुसिं॰18.21)
301 भुखल-पिआसल (आझ से तूँ गुलबिआ न रह के हम गुलाबी रानी हो गेलें । तोरा उहाँ का मिलऽ हऊ ? दिन भर भुखल-पिआसल एने-ओने काम करे पड़ऽ हऊ आऊ कभी-कभी पेटो पर पानी पड़ जा हऊ ।) (जोमुसिं॰44.25)
302 भुखाना (ई सुन के सतीस बाबू कहला - "जब एही बात हल तऽ अपने काहे ला हमरा एतना परेसान कइली । ई सब तो हम दु दिन में हाजिर कर देम । अब एकरा पर खरचा का पड़तइ सेहू सुन ली ।" हेडमास्टर साहेब सकरपंच में पड़ गेलन । इनखा से का कही ? पराइवेट फारम के नाम पर औफिस तो भुखायल बाघ नियन खाए ला दउड़ऽ हे ।) (जोमुसिं॰19.15)
303 भेंड़ी (~ से जादे गड़ेरी) (आलोक परिछा देवे सेन्टर पर पहुँच गेल । इहाँ परिछा हौल के माजरे कुछ आउर हल । भेंड़ी से जादे गड़ेरिए हल । मछली बाजार लेखा कोहराम मचल हल । कोई आवे कोई जाए कोई अन्तर पड़े ओला न हल ।) (जोमुसिं॰20.12)
304 भैकम (= vaccuum) (ऊ दिन हम गाँव गेल हली । गाड़ी लेट से खुलल हल आऊ ठामे-ठामे भैकम के चलते ई टीसन करीब चार बजे पहुँचल हल ।) (जोमुसिं॰34.2)
305 मंगनी (~ में = व्यर्थ में) (देख बेटा ! ई सब नेता लोग के अप्पन धन्धा हे । ऊ सब अप्पन गोटी लाल करे ला दोसर के कन्धा पर झंडा रख दे हथ । एकरा से न कोई गरीब के फयदा होवे ओला हे, न तो कुछ मिलतऊ जुलतऊ । मंगनी में दिन भर के मजुरिओ जइतऊ ।) (जोमुसिं॰48.3)
306 मइसना (= मैंजना, मलना) (हम भोरे-भोरे आँख मइसित अपन बिछौना पर से उठइते हली कि ई सब हल्ला-गुदाल कान में पड़ल । उठ के बाहरे अइली तऽ देखली कि आझ सबेरहीं से धनेसर आऊ मधेसर दुनों भाई अपने में अझुरायल हला ।) (जोमुसिं॰28.11)
307 मऊनी (बटइआ पर लेके एगो बाछी रख लेलक हल । सबेरे उठ के बासी रोटी खा ले हल आऊ गाय के साथे लेके चरावे ला निकल पड़ऽ हल । साथ में मऊनी आऊ खुरपो रखऽ हल । ई लेके लउटित बेजी एक ओड़िआ घासो लेले आवऽ हल ।) (जोमुसिं॰46.17)
308 मजूर (सब मजूर नन्हें के बात सुन के अब मालिको से अप्पन हक-हिस्सा के बात करे लगल । नन्हें तो अब मजूर के नेते बन गेल ।) (जोमुसिं॰48.32; 49.1)
309 मजूरी (अब नन्हें इसकूल छोड़ के माय साथे मजूरी करे लगल । जब नन्हें कमाय-खाय लगल, तऽ सनिचरी ओकर बिआह कर देवे के बात मने-मने सोचे लगल ।) (जोमुसिं॰47.2)
310 मझला (बनवारी बाबू के तीन बेटा हल । ... बड़का आऊ मझला तो पढ़-लिख के नोकरिओ करे लगल, छोटका कुछ पढ़े में भद-भद हल, से ऊ सतमा पास करके बाउजी के काम-धन्धा में हाँथ बटावे लगल ।) (जोमुसिं॰22.8)
311 मटकोर (एकरे निदान ला ई नयका विधि से बिआहो कराना सुरू कर देलका हल जेकरा में बरहामन, नऊआ के अलावे मड़वा, मटकोर, घीढ़ाढ़ी के जरूरत न पड़ऽ हल ।) (जोमुसिं॰36.14)
312 मड़वा (एकरे निदान ला ई नयका विधि से बिआहो कराना सुरू कर देलका हल जेकरा में बरहामन, नऊआ के अलावे मड़वा, मटकोर, घीढ़ाढ़ी के जरूरत न पड़ऽ हल ।) (जोमुसिं॰36.14)
313 मदत (= मदद) (अगर एकरा से अपने के थोड़िको सहमति हमरा भेटा हे, तऽ एकरा से हमरा आगे बढ़े में मदत मिलत ।) (जोमुसिं॰i.13)
314 मदतगार (= मददगार) (मगही माय के दूध से भरल हाँड़ी में हम 'जोरन' डाल रहली हे, जेकरा से मगध के माट्टी में रसल-बसल आउ पसरल मगही भासा जम जाय, जेकर मलाई, मखन आउ मट्ठा खा-खा के सब मगहिअन भाई-बहिन सरीर के साथे-साथे दिमागो से मजबूत बन जाथ आउ समाज के साथे देसो के माथा ऊपर उठावे में मदतगार बनथ ।) (जोमुसिं॰i.8)
315 मनी (= बड़ी ~) (हम हाँथ-गोड़ धोके तनी अरामे करे के फेर में हली कि उधर से हम्मर छोटकी बेटी झुनिआ दउड़ल आयल आऊ हँफइत बोलल - "पापा ! बुढ़वा दादा के दलान पर बड़ी मनी अदमी जमा होयल हथिन ।") (जोमुसिं॰34.6)
316 मलगुजारी (= मालगुजारी) (केस भेला पर एहू बात सामने आ गेल कि जऊन जमीन पर ऊ मकान बनौलका हे ऊ गरमजरूआ हे । ई करमचारी आऊ अंचल में पइसा देके नजाइज ढंग से दाखिल खारिज के रसीद ले लेलन हल । मलगुजारी ओला रसीदो जाली हल । अब ई केस में अइसन फँसलन कि आझ तक छुटकारा न भेल हे ।) (जोमुसिं॰15.6)
317 महिनका (महेस बाबू के औरतो अब देहात जायल न चाहऽ हलन । लेकिन देहाती घी, साग, झंगरी, मकई ला उनकर परान छछनऽ हल । घरे ओला महिनका चाऊर, राहड़ के दाल, आलू-फुलकोबी के तरकारी के सोआद रह-रह के उनखा इयाद आवऽ हल ।) (जोमुसिं॰9.10)
318 महिनी (अब इनकर धुन समाज में अपना औकात देखावे के सवार हो गेल । बाहरी तामझाम आऊ बातचीत करे के ढंग बदल गेल । औकात से जादे महिनी देखावे के चलते हमेसे इनखर हालत पतला रहऽ हल । फह-फह कुरता पर किरिच न टूटऽ हल ।; बेटा के नोकरी हो जाय से जटाधारी बाबू के गोड़ जमीन से ऊपर उठ गेल हल । अब हर कामे में महिनी देखावे लगलन । जे कहिनो समाजिक काम ला न एक पइसा निकालऽ हलन, न एक घन्टा समये देवे ला तइआर होवऽ हलन, अब सब काम में खुल के हाँथ बटावे लगलन ।; बाहरी फोकस, पेन्हावा-ओढ़ावा आऊ सोआगत-सतकार में महिनी देखवइते हला । ई लेके कुटुम के समझ में न आयल कि ई केतना पानी में हथ आऊ ई नगिची के जानल-पहचानल अगुआ से जल्दी बाते करल न चाहऽ हलन ।) (जोमुसिं॰23.10; 24.27; 25.18)
319 महीना (= मासिक स्राव, महिनवारी) ("आँख बंद कर के हाँथ जोड़ के भगवान के नाम लिहें, फिन चाऊर खा के पानी पी लिहें आऊ फूल के ओतिए जमीन में गाड़ दिहें । अबरी जब तोरा महीना हो जइतऊ तऽ ओकर पचवाँ दिन इहाँ अइहें ।" ई तरी बाबा ओकरा तीन महीना तक दउड़इलन आऊ पत खेबी महीना होयला के पचवाँ दिन बोलाबथ ।) (जोमुसिं॰41.15)
320 महौल (= माहौल) (अब घर के चिराग बुझ गेल हल । मियाँ-बीबी हमेसा तनाव आऊ उदासी के महौल में रह रहलन हल । आँख के आगे हमेशा अन्हार लौकऽ हल ।; गाँव-घर के अलावे हित-कुटुमो के नेओतलन । सब खुसी के महौल में खयलका-पिलका हल । सिलबो के दिल में अब माय-बाप से बिछुड़ला के कोई गम न रह गेल हल ।) (जोमुसिं॰15.19; 36.28)
321 मामु-ममानी (= मामा-मामी) (हाँ मुनी जी, एहू बात तूँ कहलऽ से ठीके कहलऽ । अभी अप्पन माय के पुछवे न कइली हे । फिन, लइका के मामु-ममानी से बाते न होयल हे । अपन सास-ससुर से पुछना भी लाजिमे समझऽ ही ।) (जोमुसिं॰4.7)
322 मिआज (= मिजाज) (एही कारन हल कि बनवारी बाबू अब एक जगह असथिर से रहल नऽ चाहऽ हलन । जरी मिआज बेस लगल कि चुपके से कभी बेटी हीं, कभी समधिआना निकल जा हलन ।) (जोमुसिं॰23.26)
323 मुँहलुकान ("जनानी के साथे रहे से तोरो बनल-बनावल खाना मिल जयतो आऊ लइकमनों के कोई अच्छा इसकूल में नाम लिखवा देबहू तऽ ओखिनियों के जिनगी बन जइतइ । .. अब भला-बुरा तूँ अप्पन देखऽ ।" मुँहलुकान होइए गेल हल । बुझामन मने मन मुसकाइत चल पड़लन ।; ऊ दिन हम गाँव गेल हली । गाड़ी लेट से खुलल हल आऊ ठामे-ठामे भैकम के चलते ई टीसन करीब चार बजे पहुँचल हल । इहाँ से गाँव चार-पाँच किलोमीटर पड़ जा हल । ई लेके घर पहुँचते-पहुँचते मुँहलुकान हो गेल हल ।; जब साम हो गेल तऽ बाबा दुनों के खाना खिलवा देलन आऊ कहलन कि इहाँ से एक माइल पछिम एगो सिवाला मिलतऊ । जब मुँहलुकान हो जइतऊ तऽ तोहनी दुनों सिवाला पर चल जइहें ।; लौटती बेजी बस खुलते-खुलते पटने में मुँहलुकान हो गेल । सब जल्दी पहुँचे के ताक में हला ।) (जोमुसिं॰7.12; 34.3; 42.10; 50.4)
324 मुड़ी (= मूड़ी; सिर) (महेस बाबुओ मुड़ी हिला देलन आऊ दुनो भाई में जुदागी हो गेल । महेस बाबू अप्पन खेत बँटइआ लगा के सहर लौट अयलन ।; गाँव-घर में जहाँ दु-चार गो अदमी एक जगह जुट जा हलन ऊहें धुरफन्दी लाल के बात निकल जा हल । जेत मुड़ी तेत बात । कोई कहथ - धुरफन्दिआ के अबरिए पाला पड़लई हे । ई आझ तक दोसरा के आँख में धुरी झोंक के अप्पन काम चाँदी करइत आ रहल हल । कोई धुरफन्दी के बेस कहथ तो कोई बेजाय ।) (जोमुसिं॰10.6; 35.3)
325 रसल-बसल (मगही माय के दूध से भरल हाँड़ी में हम 'जोरन' डाल रहली हे, जेकरा से मगध के माट्टी में रसल-बसल आउ पसरल मगही भासा जम जाय, जेकर मलाई, मखन आउ मट्ठा खा-खा के सब मगहिअन भाई-बहिन सरीर के साथे-साथे दिमागो से मजबूत बन जाथ आउ समाज के साथे देसो के माथा ऊपर उठावे में मदतगार बनथ ।) (जोमुसिं॰i.3)
326 रस्ता (= रास्ता) (ई सुन के महेस बाबू के पारा चढ़ गेल । बोललन - "बुढ़ारी में भइया के माथा खराब हो गेल हे का ? पीछे में ताला तोड़ देवे से ऊ घर उनखर तो न हो जइतई ? कुछ न तो अभी कोट-कचहरी के रस्ता तो हम्मरा ला खुला हइए हे ।") (जोमुसिं॰11.15)
327 राहड़ (= अरहर) (महेस बाबू के औरतो अब देहात जायल न चाहऽ हलन । लेकिन देहाती घी, साग, झंगरी, मकई ला उनकर परान छछनऽ हल । घरे ओला महिनका चाऊर, राहड़ के दाल, आलू-फुलकोबी के तरकारी के सोआद रह-रह के उनखा इयाद आवऽ हल ।) (जोमुसिं॰9.11)
328 रूखर (~ सोभाव) (डाक्टर साहेब अब अप्पन पैर पर खड़ा हो गेलन । ओने बड़कन दुनों भाई धनेसर आऊ चनेसर नोकरी में हइए हला । ई लेके परिवार में अब कउनो बात के कमी न रह गेल हल, लेकिन मंझिला भाई कुछ रूखर सोभाओ के हला । बाउजीओ से इनखा कमे पटऽ हल ।) (जोमुसिं॰29.14)
329 लइका (जनानी के साथे रहे से तोरो बनल-बनावल खाना मिल जयतो आऊ लइकमनों के कोई अच्छा इसकूल में नाम लिखवा देबहू तऽ ओखिनियों के जिनगी बन जइतइ ।) (जोमुसिं॰7.9)
330 लइका-लइकी (एकरे निदान ला ई नयका विधि से बिआहो कराना सुरू कर देलका हल जेकरा में बरहामन, नऊआ के अलावे मड़वा, मटकोर, घीढ़ाढ़ी के जरूरत न पड़ऽ हल । बिना तामझाम के सादा-सादी ढंग से समाज के दस गो अदमी के सामने माय-बाबू आऊ लइका-लइकी के सहमति पर फूल माला पहिरा के सादी करवा देल जा हल ।) (जोमुसिं॰36.16)
331 लकड़सुंघवा (जेकरा से काम पड़ऽ हल, ओकरा कह सुन के पोटिए ले हला । ई लेके गाँव ओला अदमी इनका लकड़सुंघवा निअन बुझऽ हला । जइसे :लकड़सुंघवा कोई के लकड़ी सुंघा के अप्पन बस में कर लेहे ओइसहीं इनखर बात के परभाओ पड़ऽ हल । एही लेके लोग इनका लकड़सुंघवा गुरुजी नामे रख देलन हल । लकड़सुंघवा गुरुजी हाँथ के सफाई में बी॰ए॰ आऊ मुँह के सफाई में एम॰ए॰ कैले हला ।) (जोमुसिं॰35.13, 15)
332 लगतरिए (" ... बताओ तो, तोरा से पंडिताइन कऊन बात में जादे हथ । तोर सुरत के आगे ऊ टिकिओ न सकऽ हथ ।" मिसिर बाबा लगतरिए का-का बोल गेलन ।) (जोमुसिं॰44.18)
333 लगल-भिड़ल (ई पद से अलग होयला के बादो, आझो समाजिक काम में लगल-भिड़ल रहऽ हथ ।) (जोमुसिं॰vi.1)
334 लेके (= लिए, कारण; ई ~ = इसलिए) (बाउजी थक चुकलन हल । खरचा-बरचा में दिक्कत होवे लगल, ई लेके ई खुदे कुछ लइकन के पढ़ावे लगलन आउ अप्पन खरचा चलावे लगलन ।; खेती-बारियो भी अच्छा हल । खाय-पीए के कोई दिक्कत न हल, ई लेके हाथो खुला रहऽ हल । हितो-कुटुम में इनखर अच्छा पुछ रहऽ हल ।; एकरो से बड़गो बात ई हल कि इनखा एके गो बेटा हल । आऊ ओकरो देखे ओला कोई न हल । ई लेके ओकरो पीए के आदत लग गेल हल ।; अब ई समाज में अप्पन जगह बनावे के जुगाड़ में लग गेलन । लेकिन इनका लगल कि जब तक सहर में घर न हो जायत तब तक हम्मर गिनती बड़का अमदी में न होयत । ई लेके एने-ओने से लोन लेके एक कट्ठा जमीन सहर में खरीद लेलका ।) (जोमुसिं॰iv.25; 5.11; 15.15; 25.1)
335 लेखा (= सदृश, समान) (महेसवा के एतनो न बुझएलइ कि बड़ भाई आखिर बाप लेखा होवऽ हे, से तो तूँ बाप के मरला के बादो ओकरा पढ़ा-लिखा के नोकरिओ लगा देलहू । अरे एक दिन तो सब कोई जुदा होयबे करऽ हे लेकिन लोक-लिहाजो तो कोई चीज होवऽ हे कि न? अगर ऊ अप्पन जमीन तोरे दे देत हल तऽ तूँ का ओकरा पइसा न देतहु हल ?) (जोमुसिं॰10.21)
336 लेना-देनी (बात तो ठीक कहऽ हऽ चचा । लेकिन ओकरा जे बुझैलई से कैलक । ओकर हिस्सा हलई । ओकरा से हमरा का लेना-देनी हल ।) (जोमुसिं॰10.27)
337 लेनी-देनी (देखऽ सुरेस बाबू ! लेनी-देनी तो हइए हे । अप्पन बंस-खूट के जमीन हल । लेकिन जे भेल से भेल । कम से कम अब तूँ सचेत जरूर हो जा । कहीं घरवो दुसरे के न लिख देओ ? एक अंगना में दू जात हो जायत तऽ इज्जत-पानी कइसे बचत ?) (जोमुसिं॰10.28)
338 लेल (= लगि, लगी, लागी; के लिए) (राधे बाबू के चेहरा पर परेसानी साफ-साफ झलकइत हल मगर हमरो पूरा बात जाने के लालसा हल । ई लेल उनखा पीछा करे से हम बाजे न आवइत हली ।) (जोमुसिं॰3.28)
339 लेले-देले ("तऽ काहे नऽ छोटकी के साथे लेले जा । उनखो एक जगह रहते-रहते मन उबिआ गेलई हे । कुछ हावा-पानिओ बदल जइतई । आऊ तोरा खाय-पीए के आराम हो जइतो ।" महेस बाबू तो एही चाहवे करऽ हलन । दूसरका दिन ऊ सबेरहीं बाल-बच्चा के लेले-देले सहर चल अयलन ।) (जोमुसिं॰8.29)
340 लोक-लिहाज (महेसवा के एतनो न बुझएलइ कि बड़ भाई आखिर बाप लेखा होवऽ हे, से तो तूँ बाप के मरला के बादो ओकरा पढ़ा-लिखा के नोकरिओ लगा देलहू । अरे एक दिन तो सब कोई जुदा होयबे करऽ हे लेकिन लोक-लिहाजो तो कोई चीज होवऽ हे कि न? अगर ऊ अप्पन जमीन तोरे दे देत हल तऽ तूँ का ओकरा पइसा न देतहु हल ?; अब सतीस बाबू के जभिओ कुछ पइसा के जरूरत पड़े आलोक से माँग बइठत । कुछ दिन तक तो आलोक लोक-लिहाज ढोयलक आऊ सतीस बाबू के पइसा मिलइत रहल । लेकिन ई कब तक चले ओला हल ।; अब जटाधारी बाबू लोक-लिहाज के डर से बाउजी के अपना साथे ले अयलन, लेकिन मासटरनी साहिबा के सोभाउ कड़-कड़ हल । ई लेके ससुर के सेवा तो दूर, इनखर खान-पान, देखो-रेख सही ढंग से नऽ हो पावऽ हल ।) (जोमुसिं॰10.23; 21.3; 23.19)
341 लौकना (अन्हार ~) (अब घर के चिराग बुझ गेल हल । मियाँ-बीबी हमेसा तनाव आऊ उदासी के महौल में रह रहलन हल । आँख के आगे हमेशा अन्हार लौकऽ हल ।) (जोमुसिं॰15.19)
342 सकड़पंच (= सकरपंच) (~ में पड़ना) (कमाऊ पुत के बाप के दिमाग सतमा असमान पर चढ़ जाहे । विआह ला आयल अगुआ से मोल-जोल करे में ओकरा जरिको लाज सरम न लगे । कुल पइसा लेला के बाद आनाकानी करे से बाज न आवे, मगर सकड़पंच में पड़ गेला के बाद ओकर हेंकड़ी गुम हो जाहे आउ मन बढ़ल मिजाज भी जमीन पर आ जाहे ।) (जोमुसिं॰iii.1)
343 सकरपंच (~ में पड़ना) (ई सुन के सतीस बाबू कहला - "जब एही बात हल तऽ अपने काहे ला हमरा एतना परेसान कइली । ई सब तो हम दु दिन में हाजिर कर देम । अब एकरा पर खरचा का पड़तइ सेहू सुन ली ।" हेडमास्टर साहेब सकरपंच में पड़ गेलन । इनखा से का कही ? पराइवेट फारम के नाम पर औफिस तो भुखायल बाघ नियन खाए ला दउड़ऽ हे ।) (जोमुसिं॰19.14)
344 सगरो (मिसिर बाबा के असिरवादे से गुलबिया के जलम भेल हल । जब गुलबिआ के माय-बाबू सगरो देखा-सुना के थक गेला हल आऊ सनिचरी के गोदी न भरइत हल तऽ अन्त में फेंकन आऊ सनिचरी बाबा के सरन में आयल हल ।) (जोमुसिं॰40.6)
345 सतमा (= सातवाँ) (बनवारी बाबू के तीन बेटा हल । ... बड़का आऊ मझला तो पढ़-लिख के नोकरिओ करे लगल, छोटका कुछ पढ़े में भद-भद हल, से ऊ सतमा पास करके बाउजी के काम-धन्धा में हाँथ बटावे लगल ।) (जोमुसिं॰22.9)
346 सनसे (एक ~) ("कहऽ बाबू, कहिना डेरा आयल हे ? आऊ समाचार तो ठीक-ठाक हौ न ? बड़ी दिन से तोरा से भेंट न होइत हल से तोरा देखे लागी एक दिन सहरो जाय के मन बना लेली हल । बाकि देखऽ ई संजोग कि तूँ इहें मिल गेलऽ ।" बुझामन महतो एक सनसे बोलइत जाइत हलन । महेस बाबू के कुछ कहे के मौके न मिल रहल हल ।; "डाक्टर के बिआह, आऊ फिन साले भर में बेटा" - ई दुनो बात जान के धनेसर बाबू के सपना टूट गेल । लगल कि कोई उनखर जरल देह पर नून छिट देलक होय । अब ऊ पागल लेखा बात-बात में बिगड़ जाथ । अगर अनजानो में कोई के मुँह से डाक्टर के बारे में कुछ निकल जाय तो ऊ उनखर तेरहो खूँट के एक सनसे उकट देथ ।) (जोमुसिं॰6.13; 33.9)
347 सबेरहीं (ऊ दिन साँझ के समय हम्मर गाड़ी सबेरहीं आ गेल हल ।) (जोमुसिं॰1.1)
348 समाजिक (= सामाजिक) (बेटा के नोकरी हो जाय से जटाधारी बाबू के गोड़ जमीन से ऊपर उठ गेल हल । अब हर कामे में महिनी देखावे लगलन । जे कहिनो समाजिक काम ला न एक पइसा निकालऽ हलन, न एक घन्टा समये देवे ला तइआर होवऽ हलन, अब सब काम में खुल के हाँथ बटावे लगलन ।) (जोमुसिं॰24.27)
349 सर-सब्जी (गाँव के बगले में बजार हल जहाँ सर-सब्जी असानी से बिक जा हल जे से कोई तरी दाल-रोटी के जुगाड़ हो जा हल ।) (जोमुसिं॰22.4)
350 सलटाना (मामला ~) (बेटी के केते दिन तक अप्पन घर में रखता हल । अब रिटायरमेन्टो नगीचे आ गेल हल । ई लेके कुछ ले-दे के मामला सलटावहीं में गुंजाइस बुझला ।) (जोमुसिं॰38.23)
351 ससुरारी (ओकरा लालन-पालन, पढ़ाई-लिखाई आउ सादी-बिआह में अप्पन सारा कमाई लगा देलन, लेकिन संयोग से दमाद अच्छा न भेंटायल । ससुरारी पइसा के चलते ऊ आउ बिगड़ गेल ।) (जोमुसिं॰22.20)
352 सहरिआ (अब ऊ जल्दी घरहूँ जाय ला न चाहऽ हलन । परबो-तेओहार में कोई न कोई बहाना बना के सहरे में रह जा हलन । अब सुरेसे बाबू लइकन से भेंट-मुलकात करे के बहाना से गाहे-बगाहे सहर आ जा हलन । लेकिन महेस बाबू तो अब पूरा तरह से सहरिआ हो गेलन हल ।) (जोमुसिं॰9.5)
353 सादी-उदी (कहऽ ! बड़का बाबू के कहीं सादी-उदी ठीक कर देलऽ ?) (जोमुसिं॰2.14)
354 सारा (= साला) (पंडिताइन माय-बेटी नइहर चल गेलथुन हे ऊहाँ सारा के बेटी के सादी हई ।) (जोमुसिं॰43.28)
355 सिवाला (= शिवालय) (जब साम हो गेल तऽ बाबा दुनों के खाना खिलवा देलन आऊ कहलन कि इहाँ से एक माइल पछिम एगो सिवाला मिलतऊ । जब मुँहलुकान हो जइतऊ तऽ तोहनी दुनों सिवाला पर चल जइहें ।) (जोमुसिं॰42.9, 10)
356 सुतना (महेस बाबू खाय लगलन लेकिन उनखा आझ खाना में कोई सवादे न मिल रहल हल । जइसे-तइसे खा पीके अप्पन घर में सुते चल गेलन । लेकिन उनखर आँख से नीन कोटा के रासन निअन गायब हो गेल हल ।) (जोमुसिं॰7.19)
357 सुनर (= सुन्नर, सुन्दर) (बात अइसन हे मुनी बाबू कि हम अप्पन लइका के सादी अप्पन साखा से अलग करे के विचार रखऽ हली आउ एही से एगो अच्छा सुखी-सम्पन्न, पढ़ल-लिखल परिवार के हिंआ अप्पन रिसतो तै कर देली हल । लड़की भी पढ़ल-लिखल, सुनर-सुसील, गुनवान हल, जेकरा हम काफी नगीच से देखली हल ।) (जोमुसिं॰3.4)
358 सुन्नर (= सुन्दर) (बाबूजी के विचार से सादी अप्पन गोत्र में होना जरूरी हे । फिर जहाँ लड़की सुन्नर चाँन मामा होय ।; लड़किओ सुन्नर आऊ पढ़ल-लिखल हल । ई लेके इनखा पसन्द आ गेल ।) (जोमुसिं॰3.15; 25.22)
359 से (= सो, वह) (हाँ मुनी जी, एहू बात तूँ कहलऽ से ठीके कहलऽ । अभी अप्पन माय के पुछवे न कइली हे । फिन, लइका के मामु-ममानी से बाते न होयल हे । अपन सास-ससुर से पुछना भी लाजिमे समझऽ ही ।) (जोमुसिं॰4.6)
360 सेंगरह (= संग्रह) (अन्त में ई कहानी सेंगरह के तइयार करे में सामने इया पाछे से जे हमरा उत्साह बढ़ौलन हे, ऊ सभे के परति हम अभार जतावइत ही ।; मगही कहानी में जोरन के काम करइत मगह के उजागर पुत मुद्रिका सिंह के पहिलौंठ कहानी सेंगरह 'जोरन' हे ।) (जोमुसिं॰i.15; ii.13)
361 सेंगारना (= जमा करना, संग्रह करना) (मगही कहानी में जोरन के काम करइत मगह के उजागर पुत मुद्रिका सिंह के पहिलौंठ कहानी सेंगरह 'जोरन' हे । एकरा में इनखर उलझन, चुटकटवा, सहर में मकान, पराइवेट रजिस्टरेसन, मुखौटा, दीदा उलट गेल, लकड़सुंघवा, मिसिर बाबा आउ मुआवजा कहानी सेंगारल गेल हे ।) (जोमुसिं॰ii.15)
362 सोआद (= स्वाद) (महेस बाबू के औरतो अब देहात जायल न चाहऽ हलन । लेकिन देहाती घी, साग, झंगरी, मकई ला उनकर परान छछनऽ हल । घरे ओला महिनका चाऊर, राहड़ के दाल, आलू-फुलकोबी के तरकारी के सोआद रह-रह के उनखा इयाद आवऽ हल ।) (जोमुसिं॰9.11)
363 सोभाउ (= सोभाव; स्वभाव) (अब जटाधारी बाबू लोक-लिहाज के डर से बाउजी के अपना साथे ले अयलन, लेकिन मासटरनी साहिबा के सोभाउ कड़-कड़ हल । ई लेके ससुर के सेवा तो दूर, इनखर खान-पान, देखो-रेख सही ढंग से नऽ हो पावऽ हल ।) (जोमुसिं॰23.20)
364 हमनी (= हमन्हीं) (हमनी दुनो लइकाइए से साथे-साथ पढ़ली-लिखली हल । ई लेल दुनो में पहिलहीं से दोस्ती आवइत हल जे आझ तक जइसे के तइसे बनल हल ।) (जोमुसिं॰1.8)
365 हमरा (= हमें; ~ सामने = हमारे सामने) ) (अन्त में ई कहानी सेंगरह के तइयार करे में सामने इया पाछे से जे हमरा उत्साह बढ़ौलन हे, ऊ सभे के परति हम अभार जतावइत ही ।) (जोमुसिं॰i.15)
366 हमहूँ (हमहूँ पहिले एही सोंचऽ-समझऽ हली कि लइका ओला बाप भगसाली होवऽ हे आऊ ई घड़ी लइका के सादी-बिआह भी एगो अच्छा बिजनेस हे जेकरा में एक लगावऽ सोलह पावऽ ओला कहाऊत एकदम फिट जँचऽ हे ।) (जोमुसिं॰2.23)
367 हरिअर (= हरियर; हरा) (एगो बकरियो रखले हल जेकरा पर नन्हें के खास धेयान रहऽ हल । बकरी जब बच्चा देलक, तऽ नन्हें ओकरा ला पीपर के हरिअर-हरिअर पत्ता लावे लगल ।) (जोमुसिं॰46.19)
368 हरिआना (संजोग के बात अइसन बनल कि साल के अन्दरे में डाक्टर साहेब के एगो बेटो पैदा ले लेलक । अब इनखर बगिया हरिआ उठल ।) (जोमुसिं॰33.3)
369 हाँथ (= हाथ) (बनवारी बाबू के तीन बेटा हल । ... बड़का आऊ मझला तो पढ़-लिख के नोकरिओ करे लगल, छोटका कुछ पढ़े में भद-भद हल, से ऊ सतमा पास करके बाउजी के काम-धन्धा में हाँथ बटावे लगल ।) (जोमुसिं॰22.10)
370 हाँथ-गोड़ (हम हाँथ-गोड़ धोके तनी अरामे करे के फेर में हली कि उधर से हम्मर छोटकी बेटी झुनिआ दउड़ल आयल आऊ हँफइत बोलल - "पापा ! बुढ़वा दादा के दलान पर बड़ी मनी अदमी जमा होयल हथिन ।") (जोमुसिं॰34.4)
371 हाथ-गोड़ (अब औरत आऊ बेटा के गमौला के बाद सूरज बाबू बिल्कुल टूट चुकलन हल । उधर नौकरी से रिटायरमेन्ट के तलवारो लटक चुकल हल । हाथो-गोड़ अब जवाबे देले जाइत हल । ई सब सोच-सोच के रात भर जग के बिहान करे लगलन ।) (जोमुसिं॰16.2)
372 हावा (= हवा) (अगर परिवार के बीच जलदी में कोई बात तै न होयल तो ओकरो दिन-दुनियाँ के हावा तो लगवे करत न ? अभी तो एही कहित हे कि माय-बाउजी जे करतन हम्मरा कबुल होयत ।; एक दिन तो ऊ आलोक के खुल के कह देलन कि तूँ अप्पन तनख्वाह के आधा पइसा हमरा दे दे न तो तोर नोकरी हम्मर मुट्ठी में हऊ । जहिना चाहबऊ तोर नोकरी तो जयबे करतऊ आऊ जेलो के हावा खइमें ।) (जोमुसिं॰4.2; 21.11)
373 हावा-पानी (तऽ काहे नऽ छोटकी के साथे लेले जा । उनखो एक जगह रहते-रहते मन उबिआ गेलई हे । कुछ हावा-पानिओ बदल जइतई ।; ऊ दसहारा में घरे पहुँच गेलन हल । उहाँ गेला पर उनखो घर के हावा-पानी बदलल नजर आयल । भाइओ अब बदल गेलन हल । दन्ड-परनाम भर रिसता रह गेल हल ।) (जोमुसिं॰8.27; 9.17)
374 हिंआ (= हियाँ, यहाँ) (बात अइसन हे मुनी बाबू कि हम अप्पन लइका के सादी अप्पन साखा से अलग करे के विचार रखऽ हली आउ एही से एगो अच्छा सुखी-सम्पन्न, पढ़ल-लिखल परिवार के हिंआ अप्पन रिसतो तै कर देली हल । लड़की भी पढ़ल-लिखल, सुनर-सुसील, गुनवान हल, जेकरा हम काफी नगीच से देखली हल ।) (जोमुसिं॰3.3)
375 हित-कुटुम (खेती-बारियो भी अच्छा हल । खाय-पीए के कोई दिक्कत न हल, ई लेके हाथो खुला रहऽ हल । हितो-कुटुम में इनखर अच्छा पुछ रहऽ हल ।; सब हित-कुटुम के सामनहीं ऊ घर में जुदागी के टंठा डाल देलन । लेकिन माय कहलन कि जब तक हम बच रहली हे तोर हिस्सा कहाँ से अइलऊ ? जो अप्पन काम-काज कर गन । जहिना हम मर जइबऊ तहिना तूँ आके अप्पन हिस्सा-बखरा बाँट लिहें ।) (जोमुसिं॰5.11; 13.24)
376 हिस्सा-बखरा (देखऽ सुरेस बाबू ! तूँ बड़ी अकलमन्दी से एतना दिन तक घर-परिवार के निवाह कयलऽ । लेकिन अब महेसो लइका नऽ रह गेलन हे । इनखो तो खरचा-बरचा बढ़ले जाइत हई । जर-जमीन से कुछ मिलइते न हई । आखिर बाप-माय के जमीन-जायदाद में इनखो तो कुछ हिस्सा-बखरा होएब करऽ हई ।; हम्मरा तो सहर के खरचा से तबाही बनल रहऽ हे । ओकरो पर गेस्टिंग से परेसान रहऽ ही । हम करचा कहाँ से दे सकऽ ही ? आखिर हम्मर हिस्सा-बखरा तो तोहनिएँ सब खाइत-पिअइत हऽ, काम-काजो मिल-जुल के पार लगावऽ ।) (जोमुसिं॰9.27; 13.14)
377 हेराना (जहिआ से बेटी किहाँ से ई चिट्ठी आयल हल, धुरफन्दी लाल के अकिले हेरा गेल हल । गाँव-घर में जहाँ दु-चार गो अदमी एक जगह जुट जा हलन ऊहें धुरफन्दी लाल के बात निकल जा हल ।) (जोमुसिं॰35.2)
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