आपखु॰ = "आँख के पट्टी खुल गेल" (मगही नुक्कड़ नाटक संग्रह), नाटककार - श्री वासुदेव प्रसाद; प्रकाशक - जन साहित परकासन, सुदर्शन बिगहा, पो॰ - तिनेरी, गया - 824118; प्राप्ति स्थानः मुद्रिका सिंह, गौतम बुद्ध कालोनी, टेकारी रोड, डेल्हा, गया - 823002; प्रथम संस्करण - दिसम्बर 2005 ई॰; 64 पृष्ठ । मूल्य – 40/- रुपये ।
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कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या - 435
ई नुक्कड़ नाटक संग्रह में कुल 15 नाटक हइ ।
क्रम सं॰ | विषय-सूची | पृष्ठ |
0. | हम कहल चाहऽ ही | 1-1 |
0. | हम्मर मजर में | 2-3 |
0. | हमनियों कहिथी | 4-4 |
0. | कउन कहाँ | 5-5 |
1. | आँख के पट्टी खुल गेल | 6-8 |
2. | ई कहिना ला | 9-12 |
3. | करमकांड के भंडा फूटल | 13-15 |
4. | कसम | 16-19 |
5. | चक्कर नासमझी के | 20-24 |
6. | ढोलहा | 25-28 |
7. | तगादा | 29-33 |
8. | तरपन | 34-37 |
9. | तूहूँ पढ़ऽ | 38-41 |
10. | दिमाग के घुंडी खुल गेल | 42-45 |
11. | धरम के मरम | 46-48 |
12. | बुझइत दीआ बर गेल | 49-54 |
13. | भेड़िया धँसान | 55-58 |
14. | मूँड़-माँड़ के टीका | 59-61 |
15. | संकलप | 62-64 |
ठेठ मगही शब्द ("अ" से "ह" तक):
1 अँचरैल (बड़ी जल्दी ठीक हो जाएगा इसका पेट-दरद । एकरा पर चुड़ैल, अँचरैल सभे बिगड़ल है । चमरखानी जूता से मार के भगावे पड़ेगा ओखनी के ।) (आपखु॰52.2)
2 अइँटा (= ईंट) (हमरो अइँटा के भट्ठा पर काम मिलल हल ।दू के जगह पर चार अईंटा लाद दे जा हल हमरा पर । पूरा मजूरी कहाँ तक मिलत, खाहूँ-पीए में कोताहिए बरतल जा हल ।) (आपखु॰10.21)
3 अइसन (एकरा पढ़ लेवे के बाद कलाकार लोग एकरा सही रूप देतन, जेकरा से आम जनता के मुनायल आँख के परदा हट जायत आउ ओखनि के साफ-साफ अप्पन आउ समाज के भलाई लोके लगत, साफ-सुथरा समाज बन जायत । जब अइसन होयत, तभिए हम अप्पन मेहनत के सही समझब, हम एही कहल चाहऽ ही ।; अइसन बात ! लगऽ हे, हमनी दुन्नों एक्की नाधा के बैल बुझा रहली हे । अइसने घटना तो हमरो साथे घटल हे भाई ।) (आपखु॰1.22; 10.18, 19)
4 अईंटा (= अइँटा; ईंट) (हमरो अइँटा के भट्ठा पर काम मिलल हल ।दू के जगह पर चार अईंटा लाद दे जा हल हमरा पर । पूरा मजूरी कहाँ तक मिलत, खाहूँ-पीए में कोताहिए बरतल जा हल ।) (आपखु॰10.21)
5 अकबकाना (ससि: लगलऽ न अकबकाए जाय ला ? - नेमन: बोलहटा देवे के बादो तो उहाँ केतनन काम करे के हे ।; तूहूँ ठीके कहित हऽ । अब अकबकाय से काम थोड़े चलत । {मुखिया जी बिलकुल नजीक आ जा हथ । अन्हार में ऊ एखनी के चिन्हें में ठुकमुका हथ ।}) (आपखु॰43.5; 63.33)
6 अकमन (= अकवन; आक) (बाबाजी सब के साथे-साथे हमनियों के ठग रहलन हे, भुलावा में रखले हथ । हमनी के आँख में अकमन के दूध डाल रहलन हे, तइओ हमनी के आँख बन्द के बन्द हे ।) (आपखु॰44.19)
7 अक्किल (= अक्ल) (तूँ बीच में भच्चर-भच्चर काहे ला करे लगलें, ऐं ? सभे बेकूफे हथिन का, तूहीं एगो बड़ी अक्किल ओला बनले हें न ? ई नासतिक के फेरा में तूँ कइसे पड़ गेलऽ जजमान ?) (आपखु॰36.22)
8 अगड़ा-पिछड़ा (केतना मिल्लत हल ऊ वखत अपना में । हिन्दू-मुसलमान, सिख-इसाई में भेद-भाओ न लोकऽ हल । ऊ वखत अगड़ा-पिछड़ा, हरिजन-बड़जन के सवाल पैदा न भेल हल ।) (आपखु॰62.33)
9 अगे (बुतरू: अँखिया देखा दऽ, बाजी! {रो के} अरे बाप रे बाप ! अगे मइया गे !) (आपखु॰35.24)
10 अचक्के (= अचानक) (हम ढकनियाँ फोरिये नऽ सकियो, काकी ! अबकहीं नउनियाँ भउजी चऊँका पर से अचक्के ठेल देलन, जेकरा चलते हम्मर कमर में दरद बुझा रहल हे ।) (आपखु॰6.4)
11 अझका (= आज वाला) (रामधनी: बड़ी हरज हे मालिक ! मजूरन तगादा कर रहलन हे । - मनोहर: अझके रोज आके ले जइहऽ ।) (आपखु॰29.19)
12 अटकना (सूखले पूड़ी खैतन का ? कइसहुँ निंगल गेलन । पूड़ी उनखर कंठ में अटकियो गेल हल सरकार ! ऊ बड़ी अकबक में हो गेलन हल कातो ।) (आपखु॰14.6)
13 अटकोर-मटकोर (परोहित: काहे हो ! रब्बी न उपजलउ हे का ? कुरिया देवे गुने बहाना मार रहले हें का रे मरदे ? - बलदेव: न सरकार ! अइसन बात न हे । असल बात हे कि ई साल माँई {बेटी} के सादी में फँस गेली हम । से तो अपने जानइते ही सब बात । अटकोर-मटकोर, मड़वा-भतवान, घीढ़ारी, अठौंगरा आउ अइसने-अइसन नेग-दस्तूर के झमेला में महिनों बीत गेल, जेकरा चलते गेहूँ जर के भाँग हो गेल, खाली भूँस्से तो हाँथ लगल सरकार । अभिओ अगर लाठा-कुँड़ी सोझ हो जाय तऽ मड़ुआ-मकई उपजा के बाल-बुतरून के पाली-पोसी ।) (आपखु॰21.35)
14 अठौंगरा (= अठमँगरा) (परोहित: काहे हो ! रब्बी न उपजलउ हे का ? कुरिया देवे गुने बहाना मार रहले हें का रे मरदे ? - बलदेव: न सरकार ! अइसन बात न हे । असल बात हे कि ई साल माँई {बेटी} के सादी में फँस गेली हम । से तो अपने जानइते ही सब बात । अटकोर-मटकोर, मड़वा-भतवान, घीढ़ारी, अठौंगरा आउ अइसने-अइसन नेग-दस्तूर के झमेला में महिनों बीत गेल, जेकरा चलते गेहूँ जर के भाँग हो गेल, खाली भूँस्से तो हाँथ लगल सरकार । अभिओ अगर लाठा-कुँड़ी सोझ हो जाय तऽ मड़ुआ-मकई उपजा के बाल-बुतरून के पाली-पोसी ।) (आपखु॰22.1)
15 अनेयाय (= अन्याय) (देखऽ नऽ, पंडा कइसन गुलछर्रा उड़ा रहलन हे । तोन्द फुला के गद्दी पर बइठ के पंखा के हावा खाइत हथ, पान चाभ रहलन हे, मलपूआ पर हाँथ फेर रहलन हे । एतना अनेयाय, एतना लूट, बाप रे बाप !; पहिले एन्ने के लोग अनपढ़ हलन, अब लोग पढ़े-लिखे पर धेआन दे रहलन हे । कुछ समझे-बूझे के कोरसिस कर रहलन हे आउ अपना पर होइत अनेआय के बरदास करे लेल तइयारे न हथ ।) (आपखु॰61.11; 63.4)
16 अन्धरजाल (अंधविसवासे नऽ महराज, अन्धरजाल हवऽ, अन्धरजाल ! एहे चक्कर में डाल के तोहनी हम सब के भरमौले चलित हऽ आउ मनमाना लूट मचौले हऽ । धरम के माने उलटा-सीधा समझा-बुझा के हलुआ-पूड़ी चाभ रहलऽ हे ।) (आपखु॰60.23)
17 अन्हार (एहे न भूल हवऽ तोर । कहावतो हे - 'आँख हे तऽ सब कुछ हे, आँख न तऽ सगरो अन्हार हे ।'; तूहूँ ठीके कहित हऽ । अब अकबकाय से काम थोड़े चलत । {मुखिया जी बिलकुल नजीक आ जा हथ । अन्हार में ऊ एखनी के चिन्हें में ठुकमुका हथ ।}; के हऽ भाई ? अन्हार में का कर रहलऽ हे तोहनी ?) (आपखु॰34.20; 63.34, 36)
18 अपनहीं (= आप ही) (हमनी जाम कहाँ ? हमनी के तो अपनहीं के सरन में रहे के हे ।) (आपखु॰15.14)
19 अपरेसन (= ऑपरेशन; शल्यक्रिया) (रामधन: सब बता रहली हे सरकार ! उनखर घाओ के अपरेसन बड़ी असान हे । - परोहित: जब असान हइए हे, तऽ देरी करे के कउन काम हे एकरा में ? कराइए दे अपरेसन ।) (आपखु॰14.28, 30)
20 अप्पन (एकरा पढ़ लेवे के बाद कलाकार लोग एकरा सही रूप देतन, जेकरा से आम जनता के मुनायल आँख के परदा हट जायत आउ ओखनि के साफ-साफ अप्पन आउ समाज के भलाई लोके लगत, साफ-सुथरा समाज बन जायत । जब अइसन होयत, तभिए हम अप्पन मेहनत के सही समझब, हम एही कहल चाहऽ ही ।) (आपखु॰1.21, 23)
21 अबकहीं (= अभी-अभी) (हम ढकनियाँ फोरिये नऽ सकियो, काकी ! अबकहीं नउनियाँ भउजी चऊँका पर से अचक्के ठेल देलन, जेकरा चलते हम्मर कमर में दरद बुझा रहल हे ।; बात का हे ? अबकहीं तो सिपाही जी अप्पन जेबी गरम करके गेलन हे । तोरो चाही का कुछ ?) (आपखु॰6.3; 16.32)
22 अमदनी (= आमदनी) (नेमन: का मिलत हमरा मजूरी बाबू ? इही दू-चार रूपिया मिल जायत आउ का ? - ससि: आरती-पूजा में एतने अमदनी होत का ?) (आपखु॰43.14)
23 अमदी (= अदमी; आदमी) (अइसन कलाकार आउ साहित लिखे ओला अमदी के पाके खाली हमहीं नऽ धन्य ही, बलिक समाज आउ देसो गौरव महसूस करऽ हे । हम इनखर लमहर जिनगी के कामना करऽ ही ।; बड़ी गरीब अमदी ही बाबू । बाजी लचारी में हम्मर पढ़ाई-लिखाई छोड़ा के एगो अमदी साथे काम करे लेल इहाँ भेजलन हल, बाकि इहाँ लाके तो ऊ आउ फाँसी पर लटका देलक ।) (आपखु॰4.9; 10.10, 11)
24 असमान (= आसमान) (अब हम बजार न जायब । पहिले अप्पन समांगे से निपट ले ही । उ सभे के का हे ? जे बीत रहल हे, से हमरा पर नऽ । ऊ वखत तो लगऽ हल ओखनी के गोड़ असमान में हल ।) (आपखु॰30.31)
25 असरा (= आसरा) (हमरो बाजी बेमार हलन भाई । मइआ कइसहूँ गोबर-गोइठा करके दिन गुजार रहल हल । उहाँ हमरो असरा जोहाइत होत ।) (आपखु॰11.13)
26 असान (= आसान) (रामधन: सब बता रहली हे सरकार ! उनखर घाओ के अपरेसन बड़ी असान हे । - परोहित: जब असान हइए हे, तऽ देरी करे के कउन काम हे एकरा में ? कराइए दे अपरेसन ।) (आपखु॰14.28, 29)
27 असानी (= आसानी) (अभी तो बाबा किहाँ जाए के ढेर टैम हो । तूँ उहाँ असानी से जा सकऽ हऽ ।) (आपखु॰55.19)
28 आउ (= और) ('चक्कर नासमझी के' आउ 'बुझइत दीआ बर गेल' में नाटककार ओझा-डइया, भूत-परेत, टोटका, झाड़-फूँक, चमतकार के बकवास, झूठा आउ फरेबिअन के दिमागी उपज बता के एकरा से होसियार रहे ला सनेस देलन हे ।) (आपखु॰2.19)
29 आझ (बात तो ठीक कहित हऽ जजमान ! हमनी के पुरखन चलाँक हलन, जे ई बेवस्था कायम कैलन जेकर फैदा आझो हमनी उठा रहली हे ।; अच्छा, आझ छोड़ दे हिओ । बाकि जइसे सब के करमकांड करे ला समझौले चलऽ हऽ, ओइसहीं अब अंधविसवास, ढोंग-ढकोसला, गलत परंपरा के मेटावे ला एक्कर भेद खोल-खोल के परचार में लग जा ।) (आपखु॰15.25, 28)
30 आन्हर (तूँ धक्का मार देलें, हमरा चोट लगल कि न, ऐं ? बिलकुल आन्हरे हें का ?) (आपखु॰9.6)
31 आस (~ लगाना) (परोहित: तोरा उलटे लोक रहल हे, तऽ हम का कर सकऽ ही ? अरे तोहर पुरखन कहिना से आस लगौले हलन कि हम्मर खनदान में कउनों अइसन जलम ले, जे गया धाम में पिंडदान करके हमनी के आस पूरा कर दे, से तूँ कर देलें । अब चाहवे का करी तोरा ? - रामनाथ: कपार चाही अब हमरा । परोहित जी, लीपा-पोती मत करऽ । लगऽ हे कि इनखा से हम्मर पुरखन सभे बात के खबर कर रहलन हे ।) (आपखु॰60.3)
32 आस (~ लगाना) (परोहित: तोरा उलटे लोक रहल हे, तऽ हम का कर सकऽ ही ? अरे तोहर पुरखन कहिना से आस लगौले हलन कि हम्मर खनदान में कउनों अइसन जलम ले, जे गया धाम में पिंडदान करके हमनी के आस पूरा कर दे, से तूँ कर देलें । अब चाहवे का करी तोरा ? - रामनाथ: कपार चाही अब हमरा । परोहित जी, लीपा-पोती मत करऽ । लगऽ हे कि इनखा से हम्मर पुरखन सभे बात के खबर कर रहलन हे ।) (आपखु॰60.3)
33 इंगोरा (सभे अप्पन-अप्पन लिट्टी पर इंगोरा रखऽ हे । ई बात के गिरह बान्ह ले आझ ।) (आपखु॰38.23)
34 इनखर (वासुदेव भाई 'सादा जीवन ऊँच्च विचार' के जीता-जागता परतिमूरति हथ । इनखर तनि गो देह में बड़का गो लूर आउ विचार हे ।) (आपखु॰3.5)
35 इनखा (ओइसे तो हम अप्पन सभे रचना बिना इनखा देखौले कहईं भेजवे न करी ।) (आपखु॰1.11)
36 इन्तेजाम (= इन्तजाम) (देखऽ न, खेत केवाला कर देली गरज में । खालीक मियाँ रुपिया देवे में आझ-कल करित हथ । तोहर बाजा के बजाई बाकी थोड़े रहत । जइसहीं इन्तेजाम हो जायत, ले जइहऽ आके ।) (आपखु॰29.17)
37 इसर महादे (= ईश्वर महादेव) (काली-काली, महाकाली, दुन्नों हाँथ लगावे ताली, बरम्हाँ के बेटी, इनर के साली, मेरा बचन जाय न खाली, दोहाइ इसर महादे गउरा पारवती, नैना-जोगनि, कामरू-कमछेआ के छूः ।) (आपखु॰50.15)
38 इहाँ (= हीआँ; यहाँ) (ऊ हमरा इहाँ लाके एगो होटल में रखा देलक । उहाँ हम्मर औकात से जादे काम लेल जा हल आउ खाय वखत बच्चल-खुच्चल, बासी-कुसी खाय ला मिलऽ हल । सेहू भर पेट नहिएँ ।; का कहिओ, हम ऐली हे इहाँ पिंडदान करे खातिर । हम्मर साथी बिछड़ गेलन हे । हम एन्ने-ओन्ने बिलटल चल रहली हे ।) (आपखु॰10.14; 34.5)
39 इही (= एही) (नेमन: का मिलत हमरा मजूरी बाबू ? इही दू-चार रूपिया मिल जायत आउ का ? - ससि: आरती-पूजा में एतने अमदनी होत का ?) (आपखु॰43.13)
40 ई (= यह) (खन कहऽ हथ ई काम कर, उ काम कर । हमरा तो कुछ समझे में न आ रहल हे कि का करूँ ।) (आपखु॰6.5)
41 उ (= ऊ; वह) (खन कहऽ हथ ई काम कर, उ काम कर । हमरा तो कुछ समझे में न आ रहल हे कि का करूँ ।) (आपखु॰6.5)
42 उकल-विकल (काकी गरदनियाँ में जे हँसुली पेन्हा देलन हल, ओकरा में पलकिया के फुदनमें घूँस गेलो आउ गलवे कसा गेलो । हम्मर तो पराने उकल-विकल होवे लगलो आउ लगलियो गरगराय । ऊ घड़ी पहुना फुदना काट के न निकालतन हल, तऽ हम साफे हली ।; ओझा मंतर पढ़के आग में बामर दे हे । रोगी काफी उकल-विकल होके चिल्ला हे ।; का कहिओ मास्टर साहेब, दिनहीं से विनोद के पेट में बड़ी जोर से दरद हो रहल हे । बड़ी उकल-विकल में हे ई ।) (आपखु॰6.25; 51.6; 52.12)
43 उघारे-पघारे (देखऽ काका ! पहिले तोहनी पढ़ल-लिक्खल बहुत कम हलऽ । साइते कउनों पढ़ल-लिखल मिलऽ हलन तोहर समाज में । सादा-सादी कपड़ा पहनले रहऽ हलन । केतनन तो उघारे-पघारे रह के जिनगी गुजार ले हलन ।) (आपखु॰42.24)
44 उधार (= उद्धार) (अरे तोहर पुरखन के तो उधार हो गेल, इहाँ आके तरपन आउ पिंडदान कर देवे पर ।; कपार उधार हो गेलन ओखनी । उधार तो हम हो गेली कि हमरा पास एको पइसा न बचल ।) (आपखु॰59.29, 31)
45 उनको (= उन्हें भी) (ऊ उहाँ खड़ा-बइठल सभे के गोड़ लागऽ हे। बिरजू काका उहईं बइठल हथ । उनको पाँओं लागऽ हे ।) (आपखु॰6.8)
46 उनखर (= उनकर) (लोकइत तो अभिओ हइ काका, बाकि बाबाजी अइसन बीख घोर देलन हे कि दुनियाँ कहीं जाय, उनखर पेट भरइत रहत ।; मालिक बेमार होके बाबाधाम से लौटलन हल । उनखर गोड़ अइसन थकुचा गेल हल कि टीसन से टाँग के लावे पड़ल हल उनखा ।) (आपखु॰7.31; 55.30)
47 उनखा (= म॰ उनका; हि॰ उन्हें, उनको) (मालिक बेमार होके बाबाधाम से लौटलन हल । उनखर गोड़ अइसन थकुचा गेल हल कि टीसन से टाँग के लावे पड़ल हल उनखा ।) (आपखु॰55.31)
48 उसकाना (= प्रेरित करना) (अरण्यदेव भाई सिन्हा जी हमरा बराबर लिखे-पढ़े लेल उसकावित रहऽ हलन ।) (आपखु॰1.3)
49 उहईं (= वहीं) (ऊ उहाँ खड़ा-बइठल सभे के गोड़ लागऽ हे। बिरजू काका उहईं बइठल हथ । उनको पाँओं लागऽ हे ।; नऽ भाई, हम्मर नन्हका तो कुछ दिन पहिलहीं पटना चल गेल हे, अप्पन परिवार के लेके आउ उहईं कमा-खा रहल हे । आझ हमनियों दुननों बेकत सेली-सोंटा लेके उहईं जा रहली हे ।) (आपखु॰6.7; 62.20, 21)
50 उहाँ (= हुआँ; वहाँ) (ऊ उहाँ खड़ा-बइठल सभे के गोड़ लागऽ हे। बिरजू काका उहईं बइठल हथ । उनको पाँओं लागऽ हे ।) (आपखु॰6.7)
51 ऊ (= वह) (ऊ उहाँ खड़ा-बइठल सभे के गोड़ लागऽ हे। बिरजू काका उहईं बइठल हथ । उनको पाँओं लागऽ हे ।; ऊ हमरा इहाँ लाके एगो होटल में रखा देलक । उहाँ हम्मर औकात से जादे काम लेल जा हल आउ खाय वखत बच्चल-खुच्चल, बासी-कुसी खाय ला मिलऽ हल । सेहू भर पेट नहिएँ ।) (आपखु॰6.7; 10.14)
52 एकरा (एकरा पढ़ लेवे के बाद कलाकार लोग एकरा सही रूप देतन, जेकरा से आम जनता के मुनायल आँख के परदा हट जायत आउ ओखनि के साफ-साफ अप्पन आउ समाज के भलाई लोके लगत, साफ-सुथरा समाज बन जायत ।) (आपखु॰1.20)
53 एक्की (= एक्के; एक ही) (अइसन बात ! लगऽ हे, हमनी दुन्नों एक्की नाधा के बैल बुझा रहली हे । अइसने घटना तो हमरो साथे घटल हे भाई ।) (आपखु॰10.18)
54 एखनी (= इनकन्हीं) (एखनी भेटैला दिन से हर-हमेसे साहित लिखे ला हम्मर धेआन दिआवित रहलन हे ।; एक दिन भट्ठवो पर लोग बतिया रहलन हल कि लचार बुतरून के बहला-फुसला के दलाल लोग बाहर ले जा हथ । एखनी के कमाई पर मौज करऽ हथ दलाल लोग । काहे कि मजुरियो तो कमे देवे पड़ऽ हे ओखनी के ।; झगरू: ई सब कउन हलन रामकिरीत ? - बेआदर: एखनिएँ पल-स-पोलियो के टीका लेवे लेल कहित चलऽ हथ काका ।) (आपखु॰1.15; 11.5; 28.10)
55 एने-ओन्ने (हाँ भाई ! अब घरहीं पर मर-मजूरी करके परिवार में रहब । समय निकाल के पढ़वो-लिखवो करब । न पढ़े के चलते न दर-दर के ठोकर खा रहली हे, मारल चलइत ही एन्ने-ओन्ने ।) (आपखु॰12.8)
56 एही (= यही, इसी) (जब अइसन होयत, तभिए हम अप्पन मेहनत के सही समझब, हम एही कहल चाहऽ ही ।) (आपखु॰1.23)
57 एहे (= यही; ~ फेर में = इसी फेर में) (उ वखत देवी-देओता के बिगड़ जाय के चलते लोग दवा-बीरो करावे से कतरा हलन । रात-दिन ओखनी झूठ-मूठ के पूजा-पाठ, होम-जाप, ओझा-डइआ के चक्कर में फँसल रहऽ हलन । एहे फेरा में महमारी जोर पकड़ ले हल आउ गाँओ उजड़ जा हल ।; बात तो ठीके हे । बजारे तो एहे काम से जा रहली हे ।) (आपखु॰26.29; 30.18)
58 एहो (= यह भी) (एक बात आउ जान ले बलदेव ! कल चँदर-गरहनों हउ । एक्कर पहिले न पहुँचावे पर सीधे दोगना हो जैतउ । एहो जान ले तूँ ।) (आपखु॰23.26)
59 ओइसे (ओइसे तो हम अप्पन सभे रचना बिना इनखा देखौले कहईं भेजवे न करी ।) (आपखु॰1.11)
60 ओकरा (एहे हम्मर धेआन नाटक खेले तरफ झुकौलन हल आउ हम कुल के ओकरा में हिस्सा लेवे लगली ।; हमरा साथे एगो बुतरू आउ आयल हल । ओकरा दोकान में रख देल गेल हल । दोकान ओला ओकरा रात-दिन कोल्हुआ बैल जइसन खटावइत हल । ऊ बेमार पड़ गेल आउ इलाज न होवे के चलते मरिओ गेल ।बाकि के पूच्छऽ हे ओक्कर बारे में ?) (आपखु॰1.6; 11.20)
61 ओकिली (= वकीली, वकालत) (फिन जिरह करे लगलें तूँ ? इहाँ तोर ओकिली न चलतउ । हम तो मास्टर साहेब से बतिया रहली हे । तूँ बीच में काहे ला टपक पड़लें, ऐं ?) (आपखु॰39.9)
62 ओक्कर (हमरा साथे एगो बुतरू आउ आयल हल । ओकरा दोकान में रख देल गेल हल । दोकान ओला ओकरा रात-दिन कोल्हुआ बैल जइसन खटावइत हल । ऊ बेमार पड़ गेल आउ इलाज न होवे के चलते मरिओ गेल । बाकि के पूच्छऽ हे ओक्कर बारे में ?; ओक्कर मइओ तो थेथरे हो गेल हे । सुनित हें, मुनमा के जरा जल्दीये भेज दीहें आउ हाँ, तूहूँ नस्ता-पानी लेके फुरतीये चल अइहें । हम बढका अहरी जा रहलिअउ हे लाठा-कुँड़ी लेके ।) (आपखु॰11.22; 20.10)
63 ओखनी (= ओकन्हीं, उनकन्हीं) (एकरा पढ़ लेवे के बाद कलाकार लोग एकरा सही रूप देतन, जेकरा से आम जनता के मुनायल आँख के परदा हट जायत आउ ओखनी के साफ-साफ अप्पन आउ समाज के भलाई लोके लगत, साफ-सुथरा समाज बन जायत ।; हाँ काका, हम तोहर बात नऽ मानली से भोग लेली आउ अब ओखनियों के लोक रहलइन हे ।; एक दिन भट्ठवो पर लोग बतिया रहलन हल कि लचार बुतरून के बहला-फुसला के दलाल लोग बाहर ले जा हथ । एखनी के कमाई पर मौज करऽ हथ दलाल लोग । काहे कि मजुरियो तो कमे देवे पड़ऽ हे ओखनी के ।) (आपखु॰1.21; 7.26; 11.6)
64 ओझइ (चन्दर, देखता का है ? जल्दी से ओझइ के सब समान ले आओ ।; चन्दरो ओझइ के समान लेके पहुँच जा हथ । ओझा हाथ में कनइल लेके ओझइ सुरू करऽ हे ।; देखऽ न ही, कातो सूई-दवाई करे से एक्कर भूत भाग जा हे आउ पेट के दरद ठीक हो जा हे । अगर अइसन हो जायत, तऽ हम छोड़िए देब आझ से ओझइ करे ला ।) (आपखु॰49.31, 33; 54.8)
65 ओझा-डइया ('चक्कर नासमझी के' आउ 'बुझइत दीआ बर गेल' में नाटककार ओझा-डइया, भूत-परेत, टोटका, झाड़-फूँक, चमतकार के बकवास, झूठा आउ फरेबिअन के दिमागी उपज बता के एकरा से होसियार रहे ला सनेस देलन हे ।; उ वखत देवी-देओता के बिगड़ जाय के चलते लोग दवा-बीरो करावे से कतरा हलन । रात-दिन ओखनी झूठ-मूठ के पूजा-पाठ, होम-जाप, ओझा-डइआ के चक्कर में फँसल रहऽ हलन । एहे फेरा में महमारी जोर पकड़ ले हल आउ गाँओ उजड़ जा हल ।) (आपखु॰2.19; 26.28)
66 ओनहीं (= उधर ही) (मनोहर: {अन्दर पुकारऽ हथ} भइया भइया ! - अवाज: {भीतरे से} ओनहीं गेलथुन हे । एतना जल्दी बजार से लौट ऐलऽ ?; हमरा का पता ? हमरा कह के थोड़हीं गेलन हे । ओनहीं जाके देखऽ नऽ ।) (आपखु॰30.33, 35)
67 ओला (= वाला) (अइसन न कि मालिक के अमदी इहऊँ खोजित-खोजित पहुँच जाथ, आउ 'फिन बैतलवा डाल पर' ओला कहाउत हमनियों पर लागू हो जाय ।) (आपखु॰11.30)
68 औसान (~ तेरह होना) (हनीफ: तूँ हऽ बदरी भाई ? हम्मर तो औसाने तेरह हो गेल कि मारहीं ओला कउनों आ गेल हे का रे दादा ?) (आपखु॰62.5)
69 कंटाह (रामधन: {अपने-अपने} तूँ का कहल चाहिथऽ बाजी ? तोर बात हम्मर माथा में अटिए न रहलो हे । हमनी तोहर काम में आवे ओला सभे समान कंटाह बाबा के दान करिए देलिओ । बचल-खुचल समान बिहने परोहित जी के दान करिए देवो ।; दसमा के दिन कंटाह बाबा के दान में मिलल समान से उनखा तो फैदा होइए रहल होत ।) (आपखु॰13.6, 27)
70 कउची (ऐं, अइसन बात हे ? जब पैदे न होत, तऽ हमनी कउची खाके जीअम ?) (आपखु॰18.21)
71 ककारनी मइया (हे देवी मइया, ककारनी मइया, डाँक बाबा, घर के देओ-मून ! काहे बिगड़ल हऽ हमरा पर ।) (आपखु॰49.17)
72 कखनी (= कब) (कखनी से तोरा कन्ने-कन्ने खोजित चलित ही । तूँ भागल चाहित हें का ?; विनोद: पेटवा पिरा रहलो हे, बाजी ! - चन्दर: कखनी से बाबू ?) (आपखु॰12.12; 49.8)
73 कजरउटी (कियवे उठावऽ ननदी पूरबी इंगुरवा, कजरउटिय उठावऽ नैन कजरवा हे नऽ ।) (आपखु॰52.9)
74 कथे (> कथा+ए) (ससि: आउ बाबाजी उहाँ बइठ के खाली पेआजे छिलतन का ? - नेमन: ई का कह रहलऽ हे ससि बाबू । उ तो खाली कथे कहे के न भागी हथ ।) (आपखु॰43.8)
75 कनइल (चन्दरो ओझइ के समान लेके पहुँच जा हथ । ओझा हाथ में कनइल लेके ओझइ सुरू करऽ हे ।) (आपखु॰49.33)
76 कन्ने (= किधर) (बाजी, कन्ने गेलइ मइया ?) (आपखु॰49.5)
77 कन्ने-कन्ने (= किधर-किधर) (कखनी से तोरा कन्ने-कन्ने खोजित चलित ही । तूँ भागल चाहित हें का ?) (आपखु॰12.13)
78 कपार (हाँ काका ! हम्मर गोस्सा तो तरवा से कपार पर चढ़ गेलो । लगे कि काकी के घोर के पी जाई, बाकि मन मसोस के रह गेली ।; ई बात हमरा सामने मत बोलल करऽ । ई बात सुन के हम्मर तरवा के लहर कपार पर चढ़ जाहे, समझलें ?; कपार समझ रहलऽ हे तूँ । समझवे करतऽ हल, तऽ पढ़े जाय में अड़ंगा लगौतऽ हल ? आझ के जमाना में पढ़ना बड़ी जरूरी हे, बाजी !; अरे तोहर पुरखन के तो उधार हो गेल, इहाँ आके तरपन आउ पिंडदान कर देवे पर । … कपार उधार हो गेलन ओखनी । उधार तो हम हो गेली कि हमरा पास एको पइसा न बचल ।; परोहित: तोरा उलटे लोक रहल हे, तऽ हम का कर सकऽ ही ? अरे तोहर पुरखन कहिना से आस लगौले हलन कि हम्मर खनदान में कउनों अइसन जलम ले, जे गया धाम में पिंडदान करके हमनी के आस पूरा कर दे, से तूँ कर देलें । अब चाहवे का करी तोरा ? - रामनाथ: कपार चाही अब हमरा । परोहित जी, लीपा-पोती मत करऽ । लगऽ हे कि इनखा से हम्मर पुरखन सभे बात के खबर कर रहलन हे ।) (आपखु॰7.1; 32.22; 39.18; 59.31; 60.6)
79 कबारना (= उखाड़ना) (बकमें गारी तूँ । जादे बात बढ़ौलें, तऽ तोर जीभे कबार लेबउ, हाँ ।) (आपखु॰46.35)
80 कमाना-धमाना (मँगनी लेलन न तऽ आउ का ? ओखनिएँ के बनावल वेवस्था से तो हमनी पेरा रहली हे आउ ओखनी बिना कमैले-धमैले चैन के बंसी बजा रहलन हे ।) (आपखु॰32.20)
81 कमिऔटा (मानिक: वेपार ! एक्कर का माने ? - हरि: जइसे तूँ कमिऔटा करके अप्पन बाल-बचन के पाल-पोस रहलऽ हे । कउनों दोकान चलाके अप्पन काम चलावित हे ।) (आपखु॰58.3)
82 करखाना (= कारखाना) (तोहनी दुन्नों के बात सुन के सभे आँख तर लोक रहल हे कि अखबार-मैगजीन में लिक्खल बात बिलकुले सही रहऽ हे । राम सिंह के लोहा ओला करखाना में केतनन लइकन के खटइत तो जरूरे देखऽ ही हम ।; दोकानदार आउ करखाना के मालिक अप्पन पूँजी लगाके नऽ फैदा उठा रहलन हे ।) (आपखु॰11.15; 58.6)
83 कल-करखाना (मानिक: वेपार ! एक्कर का माने ? - हरि: जइसे तूँ कमिऔटा करके अप्पन बाल-बचन के पाल-पोस रहलऽ हे । कउनों दोकान चलाके अप्पन काम चलावित हे । केतनन कल-करखाना के मालिक हथ आउ ओकरे से ओखनी के वेपार चल रहल हे ।) (आपखु॰58.4)
84 कलेयान (= कल्याण) (अब जे मिलल से मिलल । जादा लोभ करे के न हे । इहाँ से घँसकहीं में कलेयान हे अब ।) (आपखु॰61.5)
85 कल्ह (= कल) (काहे रामधन, तूँ रोवे काहे लगलें हो ? हमरा अधरतिया में काहे ला बोलौले हें रे मरदे ? पहिले ई बताओ । अरे, कल्ह तो सराध करावे ला टैम पर पहुँचवे करती हल ।) (आपखु॰13.17)
86 कहाउत ('मूँड़-माँड़ के टीका' एगो देहाती कहाउत हे, जेक्कर माने होवऽ हे - बेकूफ बनाके के केकरो ठगना आउ तरपन में एकरा में पितरन के तारे खातिर पिंड-दान के पोल खोलल गेल हे ।; 'बेल के मारल बबूर तर' ओला कहाउत हो गेल । काम करते-करते पेरा गेली आउ पेटो पर बज्जड़ पर गेल ।; अइसन न कि मालिक के अमदी इहऊँ खोजित-खोजित पहुँच जाथ, आउ 'फिन बैतलवा डाल पर' ओला कहाउत हमनियों पर लागू हो जाय ।) (आपखु॰2.14; 10.5; 11.27)
87 कहिना (= कहिया; किस दिन, कब; कहिनो = कभी भी) (घरे बाजी के हाँथ बिलकुले खाली हल । ऊ टकटकी लगौले होतन हमरे तरफ "बबुआ कहिना खरचा भेजऽ हे ?"; काम के भीड़-भाड़ कहिनो खतम होवे के हे काका ?; हमहूँ तइआरे ही । सभे काम-धाम छोड़ के हम खुदे टीका पिलावे में हाथ बँटायब । बाकि एक्कर तारीख कहिना नियत कैल गेल हे ?; परोहित: तोरा उलटे लोक रहल हे, तऽ हम का कर सकऽ ही ? अरे तोहर पुरखन कहिना से आस लगौले हलन कि हम्मर खनदान में कउनों अइसन जलम ले, जे गया धाम में पिंडदान करके हमनी के आस पूरा कर दे, से तूँ कर देलें । अब चाहवे का करी तोरा ? - रामनाथ: कपार चाही अब हमरा । परोहित जी, लीपा-पोती मत करऽ । लगऽ हे कि इनखा से हम्मर पुरखन सभे बात के खबर कर रहलन हे ।) (आपखु॰11.11; 27.14; 28.19; 60.3)
88 का (= की; क्या) (खन कहऽ हथ ई काम कर, उ काम कर । हमरा तो कुछ समझे में न आ रहल हे कि का करूँ ।) (आपखु॰6.6)
89 कातो (कातो राते तोरा गस्ती मार देलक हल हो ?; हम तो बेहोस हली । मउसी कातो कहलन कि बाबू के उहई से कोई कुछ कर देलक हे, गे मइया ! उनखे कहे पर भइया ओझा के बोला लौलन । कातो झाड़ो-फूँक खूब भेलो । बाकि तइओ हम होस में न अइली ।; मास्टर साहेब कातो डाँकडर के बोला लौलन । ऊ सूई-दवाई कैलन, पानी चढ़ौलन तऽ होस भेल ।; ऊ तो अप्पन दच्छिना लेल कूद-फाँद कैले हलन कातो ।; कातो ओकर बाजी अइसहीं जमीन पर सुतल हलन । उनखा बिच्छा मार देलक । रात भर उनखा छटपटइते बितल ।; पूड़ी उनखर कंठ में अटकियो गेल हल सरकार ! ऊ बड़ी अकबक में हो गेलन हल कातो ।; कातो ओकर इज्जत जा रहलइ हे । बड़ी इज्जत ओला बनल हे ऊ । बाकि जे गत करावऽ से तूँ नऽ ।; देखऽ न ही, कातो सूई-दवाई करे से एक्कर भूत भाग जा हे आउ पेट के दरद ठीक हो जा हे । अगर अइसन हो जायत, तऽ हम छोड़िए देब आझ से ओझइ करे ला ।) (आपखु॰7.5, 16, 18, 21, 24; 13.34; 14.7; 31.34; 54.6)
90 कान्हा (= कन्हा; कन्धा) (सहर के एगो सँड़क । एगो जातरी माथा पर गठरी-मोटरी टाँगले लोकइत हे । ओकरा साथे एगो बुतरू कान्हा पर झोला लटकौले साथे-साथे चल रहल हे ।) (आपखु॰34.2)
91 काहे (= क्यों; ~ कि = क्योंकि) (अच्छा, तोनी जरा ई तो बतावऽ । निकल तो गेलऽ चंगुल से, बाकि घरे जैवऽ कइसे ? काहे कि भाड़ा-उड़ा ला पइसा-कउड़ी तो होवे न करतो ।) (आपखु॰11.30)
92 कि (= या) (ठीका ! कउची के ठीका ? सड़क के कि पइन के ?) (आपखु॰25.9)
93 किरिन (= किरण) (वायुमंडल में ओजोन के परत हे, जे सुरूज के नोकसान करेओला किरिन के धरती पर आवे से रोकऽ हे । हावा में फैलल परदुसन के चलते ओकर पेन्दी में छेद हो रहल हे, जेकरा चलते हमनी के नोकसान पहुँचावे ओला किरिन बिना रोक-टोक के इहाँ तक पहुँच जायत ।; ऊ किरिन धरती पर पहुँच के अप्पन असर डालत । तरह-तरह के रोग पैदा करत ।) (आपखु॰18.12, 14, 18)
94 किहाँ (= के यहाँ) (तोरा अइसन केतनन बेकूफ जजमान पड़ल हथ । देख नऽ, सीमरा रमेसर किहाँ कलहे सतइसा करावे ला हे ।; हम अपनहीं से भेंट करे लेल जा रहली हे । रमेस बाबू अपने किहाँ तगादा में भेजलन हे ।) (आपखु॰22.11; 30.17)
95 कुटही (= कुट्टी) (पलटू कुटही काट रहलन हे ।) (आपखु॰38.1)
96 कुटुम्म (= कुटुम्ब, मेहमान) (अभी इन्तजाम करे जा रहली हे मालिक ! देखूँ कल्ह हमरा किहाँ कुटुम्म आवे ओला हथ माइ के सादी तय करे ला । हम्मर हाथ में एक्को पइसा न हे ।) (आपखु॰29.32)
97 कुरी (= हिस्सा, भाग) (बलदेव: तऽ कराइए देल जाय सरकार ! हमर बाल-बच्चन के जिनगी एकरे पर टिकल हे । मड़ुआ न होत त खायब का सरकार ? - परोहित: काहे हो ! रब्बी न उपजलउ हे का ? कुरिया देवे गुने बहाना मार रहले हें का रे मरदे ?) (आपखु॰21.32)
98 केकरा (= किसको; केकरो = किसी को भी) (देखऽ तो ई केतना होसिआर बन रहल हे । अपना आगे केकरो लगावले नऽ चाहे ।) (आपखु॰47.35)
99 केवाला (तूहूँ आ गेलऽ रामधनी जी ! बाकि लगऽ हो तोरा हराने होवे पड़तो । देखऽ न, खेत केवाला कर देली गरज में । खालीक मियाँ रुपिया देवे में आझ-कल करित हथ । तोहर बाजा के बजाई बाकी थोड़े रहत । जइसहीं इन्तेजाम हो जायत, ले जइहऽ आके ।) (आपखु॰29.15)
100 कोरसिस (= कोशिश) (हाँ-हाँ ! जेतना लोग अयतन, अप्पन जेबी भरहीं के कोरसिस करतन, आउ का ?) (आपखु॰17.4)
101 कोहड़ा-भतुआ (मौलबी: तऽ झगड़े करे के इरादा हउ का हो ? - पुजेरी: तऽ तूँ हमरा कोहड़े-भतुआ समझ रहले हें का ? सावन से भादवे दूबर रहल हे का ?) (आपखु॰47.2)
102 खखन (= जल्दीबाजी) (परोहित: {खखन में} ई सब फरेब हे, जजमान ! करमकांड झूठा हे, जाल-फरेब हे । - रामधन: खखन में ई सब मत कहऽ परोहित जी ! मत कहऽ इ सभे बात । हमरा तो तोर पेट फारहीं पड़त ।; ऊ खखन में जल्दी चल जा हथ । कुच्छे देरी में ओझा के साथ आ जा हथ ।) (आपखु॰15.12, 13; 49.28)
103 खन (= क्षण, पल, कभी) (खन कहऽ हथ ई काम कर, उ काम कर । हमरा तो कुछ समझे में न आ रहल हे कि का करूँ ।) (आपखु॰6.5)
104 खनती (= खनित्र) (ऊ खेत में पहुँच के समान नीचे रखऽ हथ । हाँथ में खनती लेके खंभा गाड़े लगऽ हथ बाकि ऊ खड़े न हो रहल हे ।) (आपखु॰20.16)
105 खनदान (= खानदान) (अरे भाई ! ई सब बेबस्था ओही लोग के खनदान ओलन बनौलन हे, जेकरा चलते उहाँ बइठल-बइठल मौज मार रहलन हे, हमनी के मनमाना लूट रहलन हे । अप्पन वेपार में लगल हथ ओखनी ।; परोहित: तोरा उलटे लोक रहल हे, तऽ हम का कर सकऽ ही ? अरे तोहर पुरखन कहिना से आस लगौले हलन कि हम्मर खनदान में कउनों अइसन जलम ले, जे गया धाम में पिंडदान करके हमनी के आस पूरा कर दे, से तूँ कर देलें । अब चाहवे का करी तोरा ? - रामनाथ: कपार चाही अब हमरा । परोहित जी, लीपा-पोती मत करऽ । लगऽ हे कि इनखा से हम्मर पुरखन सभे बात के खबर कर रहलन हे ।) (आपखु॰57.34; 60.3)
106 खभौनी (= खमौनी, ठेकुआ) (कलही में होतो ननदी तोहरो गवनमाँ, अहे एहे में बनैवइ हम खभौनियाँ हे नऽ ।) (आपखु॰52.13)
107 खरच-बरच, खरच-वरच (चलऽ न हमरा साथे । इहाँ एक से एक बढ़ियाँ-बढ़ियाँ डॉकडर चिकित्सा सिविर में बइठल हथ । बगले में बिना खरच-बरच के अनेकन चिकित्सालय में सभे रोग के इलाज हो रहल हे ।; तूँ पढ़े जैवें तऽ ओकरो ला खरच-वरच चहवे करी । चही कि न ?) (आपखु॰36.6; 38.15)
108 खिआना (= घिसना) (दउनी में बैल के गोड़ अइसने खिआ गेल हे कि ओखनी रेहट में चलवे नऽ करतन । अब बुझा रहल हे कि बिना लाठा-कुँड़ी सोझ करले गुजरे न होवे के हे ।) (आपखु॰20.7)
109 खिचड़ा-मलीदा (बिना मुसलमान भाई के सामिल होले होली में रंग-अबीर उड़ावे में मज्जे न मिलऽ हल । इहाँ तक कि मोहर्रम में खिचड़ा-मलीदा आउ होली-दसहरा में मिठाई, पूआ-पूड़ी एक्के पाँत में बइठ के खा-पीअ हलन ।) (आपखु॰63.10)
110 खिसियाना (काहे काका ! हम्मर का कसूर हे कि तूँ हमरा पर खिसिया गेलऽ ।) (आपखु॰6.11)
111 खिस्सा (= किस्सा) (सतनरायन के कथा में एगो परसंग आयल हे ध्वज तुंगभद्र राजा के, जे गोवाल-बाल किहाँ पूजा के अवहेलना कैलन, पूजा के परसादी नऽ खैलन । जब ऊ अप्पन घर ऐलन तऽ देखऽ हथ, उनखर महल-अँटारी ढह-ढनमना गेल । गाय-भईंस, हाँथी-घोड़ा सभे मर-ओरिया गेल । सुनलऽ हे कि न ई खिस्सा ?) (आपखु॰45.8)
112 खोइछा (= खोंइछा, खोइँछा) (केहे तोरा देलथुन हे बैमत बतीसो गहनमा हे, अहे कउनि देलथुन सोलहो सिंगरवा हे नऽ । केहे तोरा देलथुन हे बैमत खोइछा भरल चउरा हे, अहे केहे देलथुन गहन अकवरिया हे नऽ ।) (आपखु॰52.29)
113 गछाना (बलदेव: महराज तईहन ! तऽ हमरा किहाँ फोकट में काम करा देवऽ का ? काम होवे के पते नऽ हे आउ पहिलहीं मनचाहा दछिना गछा लेलन हमरा से ।) (आपखु॰22.14)
114 गठरी-मोटरी (सहर के एगो सँड़क । एगो जातरी माथा पर गठरी-मोटरी टाँगले लोकइत हे । ओकरा साथे एगो बुतरू कान्हा पर झोला लटकौले साथे-साथे चल रहल हे ।) (आपखु॰34.1)
115 गत (= गति, हालत, दुर्दशा) (तऽ, हमरा का कहऽ हऽ काका ? हम तो तोहर बात पर अड़ले हली । बाकी जे गत करौलन से चनकी काकी नऽ ।; कातो ओकर इज्जत जा रहलइ हे । बड़ी इज्जत ओला बनल हे ऊ । बाकि जे गत करावऽ से तूँ नऽ ।; हम तोरा गत करा रहली हे ? ई तूँ का बोल रहलऽ हे आझ ?) (आपखु॰6.15; 31.35; 32.1)
116 गते-गते (= धीरे-धीरे) (देखऽ काका, अब पहिलका जमाना न रह गेल हे । गते-गते सब कुछ बदल रहल हे ।) (आपखु॰42.11)
117 गन (हम बात में काहे ला बझौले रहवो तोरा, जे गोसाइत हऽ हमरा पर । जा, जे बुझाओ से करऽ गन ।) (आपखु॰35.12)
118 गरगराना (काकी गरदनियाँ में जे हँसुली पेन्हा देलन हल, ओकरा में पलकिया के फुदनमें घूँस गेलो आउ गलवे कसा गेलो । हम्मर तो पराने उकल-विकल होवे लगलो आउ लगलियो गरगराय । ऊ घड़ी पहुना फुदना काट के न निकालतन हल, तऽ हम साफे हली ।) (आपखु॰6.25)
119 गरज (तूहूँ आ गेलऽ रामधनी जी ! बाकि लगऽ हो तोरा हराने होवे पड़तो । देखऽ न, खेत केवाला कर देली गरज में । खालीक मियाँ रुपिया देवे में आझ-कल करित हथ । तोहर बाजा के बजाई बाकी थोड़े रहत । जइसहीं इन्तेजाम हो जायत, ले जइहऽ आके ।) (आपखु॰29.15)
120 गरह-गोचर (= ग्रह-गोचर) (परोहित जी हमरा पर गरह-गोचरो बतावऽ हलन । ओकरे फसाद हे का रे बाप ?; अच्छा, हम परोहिते जी के बोला लावऽ ही । ओहे जोग-जाप करके गरह-गोचर सांत कर देतन । हम्मर काम बन जायत ।) (आपखु॰20.23, 31)
121 गाँओं-गिराओं (= गाँव-गिराँव) (देखिते हऽ गाँओं-गिराओं के हालत । रोज हल्ला-गुल्ला हो रहल हे । तूहीं नऽ बोलित हलऽ कि के कखनी मरा-कटा जायत, कउनों के पता नऽ हे ।) (आपखु॰62.12)
122 गाछी (अरे, हे मुनमा ! नऽ सुनित हें का रे ? मड़ुआ के गाछी बुन देली आउ लगऽ हे, उ पटवे न करत । बिजुली लाईन के ओइसहीं टाना-टानी हे ।) (आपखु॰20.5)
123 गारी (बकमें गारी तूँ । जादे बात बढ़ौलें, तऽ तोर जीभे कबार लेबउ, हाँ ।) (आपखु॰46.35)
124 गिरह (~ बान्हना) (लीक से हटे के कहऽ हौ भइया ! बाकि हमहुँ तोर लीक पर अब नऽ चल सकऽ हिओ । तूँ ई बात के गिरह बान्ह लऽ ।; हाँ मास्टर साहेब, आझ हम गिरह बान्ह लेलिओ अप्पन जिनगी के काई छोड़ावे ला ।) (आपखु॰32.31; 41.5)
125 गे (बुतरू: अँखिया देखा दऽ, बाजी! {रो के} अरे बाप रे बाप ! अगे मइया गे !) (आपखु॰35.24)
126 गेठरी-मोटरी (अरे, तूँ गेठरी-मोटरी लेले हऽ ! का बात हे भाई ?) (आपखु॰62.11)
127 गोड़ (= पैर) (ऊ उहाँ खड़ा-बइठल सभे के गोड़ लागऽ हे। बिरजू काका उहईं बइठल हथ । उनको पाँओं लागऽ हे ।) (आपखु॰6.7)
128 गोबर-गोइठा (~ करना) (हमरो बाजी बेमार हलन भाई । मइआ कइसहूँ गोबर-गोइठा करके दिन गुजार रहल हल । उहाँ हमरो असरा जोहाइत होत ।) (आपखु॰11.12)
129 गोरइया बाबा (का भेलउ बाबू ? हम्मर तो औसाने तेरह हो गेल बप ? अच्छा ठहर जरा । हम गोरइया बाबा के पीड़ी से माटी ले आवऽ ही मना-दना के ।) (आपखु॰49.11)
130 गोसाना (हम बात में काहे ला बझौले रहवो तोरा, जे गोसाइत हऽ हमरा पर । जा, जे बुझाओ से करऽ गन ।) (आपखु॰35.11)
131 गोस्सा (हाँ काका ! हम्मर गोस्सा तो तरवा से कपार पर चढ़ गेलो । लगे कि काकी के घोर के पी जाई, बाकि मन मसोस के रह गेली ।) (आपखु॰7.1)
132 घँसकना (= घसकना, निकल देना, निकल भागना) (अब जे मिलल से मिलल । जादा लोभ करे के न हे । इहाँ से घँसकहीं में कलेयान हे अब ।) (आपखु॰61.5)
133 घिघिआना (= गिड़गिड़ाना) (सिपाही: {डाँट के} तोहनी सभे ई का कर रहले हें ? अन्दर जाय के मन हउ का ? - मजूर: {घिघिआ के} न हजूर, अन्दर काहे ला जाम ? हमनी सरकार के हुकुम से बाहर थोड़े ही ।) (आपखु॰16.5)
134 घिरना (= घृणा) (बात कउनों छिपल थोड़े हे मुखिया जी । देखिए रहली हे, आझ गाँओं के सोन्हई खतम हो रहल हे आउ बदबू अप्पन धाक जमौले चलल जाइत हे । सभे जगह घिरना के महौल कायम हो गेल हे ।) (आपखु॰64.10)
135 घिसिआना (= घसीटना) (जान न मारऽ हे बाकि जिनगी भर रिरिआवऽ हे । हे अइसन ई रोग कि सब दिन रोगिअन के घिसिआवऽ हे ॥) (आपखु॰27.21)
136 घीढ़ारी (परोहित: काहे हो ! रब्बी न उपजलउ हे का ? कुरिया देवे गुने बहाना मार रहले हें का रे मरदे ? - बलदेव: न सरकार ! अइसन बात न हे । असल बात हे कि ई साल माँई {बेटी} के सादी में फँस गेली हम । से तो अपने जानइते ही सब बात । अटकोर-मटकोर, मड़वा-भतवान, घीढ़ारी, अठौंगरा आउ अइसने-अइसन नेग-दस्तूर के झमेला में महिनों बीत गेल, जेकरा चलते गेहूँ जर के भाँग हो गेल, खाली भूँस्से तो हाँथ लगल सरकार । अभिओ अगर लाठा-कुँड़ी सोझ हो जाय तऽ मड़ुआ-मकई उपजा के बाल-बुतरून के पाली-पोसी ।) (आपखु॰22.1)
137 चँदर-गरहन (= चंद्र-ग्रहण) (एक बात आउ जान ले बलदेव ! कल चँदर-गरहनों हउ । एक्कर पहिले न पहुँचावे पर सीधे दोगना हो जैतउ । एहो जान ले तूँ ।) (आपखु॰23.26)
138 चउठारी (संकर के घर के भीतर ओला भाग । समय - पाँच बजे सांझ । बरात लउटे के बाद चउठारी के दिन । संकर कुछ गोसायल बुझा रहल हे ।) (आपखु॰6.2)
139 चऊँका (हम ढकनियाँ फोरिये नऽ सकियो, काकी ! अबकहीं नउनियाँ भउजी चऊँका पर से अचक्के ठेल देलन, जेकरा चलते हम्मर कमर में दरद बुझा रहल हे ।) (आपखु॰6.3)
140 चकरी (परोहित: तऽ हम एकरा में का करी बलदेव ? लठवो हमरे सोझ करे का कहऽ हें रे मरदे ? - बलदेव: न, सरकार ! अपने से अइसन काम कराके नरक के भागी बनब हम । बाकि कउनों अइसन उपाय कर देल जाय कि कइसहूँ ई सोझ हो जाय आउ हम्मर मड़ुआ बच जाय । देखी नऽ, चकरी चढ़ावऽ ही, तऽ मकरी टूट जाहे । मकरी ठीक होवऽ हे, तऽ बरहे टूट जाहे । हम तो परेसान-परेसान हो गेली, सरकार ।) (आपखु॰21.19)
141 चच्चा (= चचा; चाचा) (परसाल हम्मर चच्चो गया तरपन करे ऐलन हल । इहाँ पंडा जी उनखर सभे झोली जार लेलन । टिकटो कटावे ला पइसा न रहल उनखा पास ।) (आपखु॰35.29)
142 चमरखानी (~ जूता) (बड़ी जल्दी ठीक हो जाएगा इसका पेट-दरद । एकरा पर चुड़ैल, अँचरैल सभे बिगड़ल है । चमरखानी जूता से मार के भगावे पड़ेगा ओखनी के ।) (आपखु॰52.2)
143 चलाँक (= चालाक) (बात तो ठीक कहित हऽ जजमान ! हमनी के पुरखन चलाँक हलन, जे ई बेवस्था कायम कैलन जेकर फैदा आझो हमनी उठा रहली हे ।) (आपखु॰15.24)
144 चही (= चाही; चाहिए; चहवे > चही + प्रत्यय '-ए' = चाहिए ही) (तूँ पढ़े जैवें तऽ ओकरो ला खरच-वरच चहवे करी । चही कि न ?) (आपखु॰38.15)
145 चाभना (देखऽ नऽ, पंडा कइसन गुलछर्रा उड़ा रहलन हे । तोन्द फुला के गद्दी पर बइठ के पंखा के हावा खाइत हथ, पान चाभ रहलन हे, मलपूआ पर हाँथ फेर रहलन हे । एतना अनेयाय, एतना लूट, बाप रे बाप !) (आपखु॰61.10)
146 चाही (= चाहिए) (एहो तो ठीके कहित हवऽ पलटू जी । पढ़े-लिक्खे में बाधा न डाले के चाही ।) (आपखु॰39.12)
147 चीं-चपड़, चीं-चफड़ (अबे, ओ पंडित के औलाद ! जादे चीं-चपड़ कैलें नऽ, तऽ तोरो टेटुआ दबा देवउ हम, समझलें कि न ?) (आपखु॰46.33)
148 चुक्का (हम तो मुँह ताकइते रह गेली आउ बाबा के चरन में पहुँचहुँ न पौली । एगो जातरी तो पानी से भरल चुक्का हमरे पर फेंक देलक ।) (आपखु॰57.7)
149 चुनना-चानना (कइसहूँ घरे लउट के पुरनके काम करबें आउ का ? कइसन उहाँ सँड़क पर छितरायल पोलीथिन-पलास्टिक के फटल-टूटल चीज चुन-चान के जमा करऽ हली आउ ओकरे बेच के हाल-रोजगार चलावऽ हली ।) (आपखु॰11.34)
150 चोरी-चुहारी (हाँ भाई ! हम का जानऽ हली, दरबारो में चोरी-चुहारी, ठगवनीजी होवऽ हे । हम हाय-हाय करके रह गेली ।) (आपखु॰57.21)
151 छल-छलावा (बाबाजी झूठ हथ कि उनखर पोथिये झूठ हे ? झूठ हे उनखर सब बनावल विधान-कनून, जे छल-छलावा, परपंच, ठगी से भरल हे ।) (आपखु॰45.26)
152 जइसन (राजेन्द्र प्रसाद सिंह, रामलखन प्रसाद सिन्हा आउ शिव प्रसाद सिंह जइसन सफल कलाकार, लेखक आउ रंगकर्मी से मिलना कम रहस से भरल बात नऽ हे, जेखनि से आगे बढ़े में हमरा भरपूर मदद मिलल ।; हमरा साथे एगो बुतरू आउ आयल हल । ओकरा दोकान में रख देल गेल हल । दोकान ओला ओकरा रात-दिन कोल्हुआ बैल जइसन खटावइत हल । ऊ बेमार पड़ गेल आउ इलाज न होवे के चलते मरिओ गेल । बाकि के पूच्छऽ हे ओक्कर बारे में ?) (आपखु॰1.8; 11.21)
153 जइसहीं (= जैसे ही) (गोड़ लागे ला जइसहीं झुकली, खूटिया से मथवे टकरा गेल । अँखिया तो मउरिया से झँकायल हल । खैर मनावऽ कि हम्मर आँख बच गेल, न तो एक बैटरी साफे हल ।; आरती करे ला जइसहीं खड़ा भेली, तऽ चक्कर आ गेल आउ गिर पड़ली । हमरा तो कुछ होसे न रहल ।) (आपखु॰6.32; 7.13)
154 जज-बलिस्टर (= जज-बैरिस्टर) (बबुन: {खीझ के} कपार समझ रहलऽ हे तूँ । समझवे करतऽ हल, तऽ पढ़े जाय में अड़ंगा लगौतऽ हल ? आझ के जमाना में पढ़ना बड़ी जरूरी हे, बाजी ! - पलटू: जरूरी हे ओकरा, जेकरा जज-बलिस्टर बने के हे । हमरा एकरा से मतलबे न हे, समझलें ? हमरा तो सब दिन धूर फाँके के हे ।) (आपखु॰39.20)
155 जजमान (= यजमान) (परोहित: {खखन में} ई सब फरेब हे, जजमान ! करमकांड झूठा हे, जाल-फरेब हे । - रामधन: खखन में ई सब मत कहऽ परोहित जी ! मत कहऽ इ सभे बात । हमरा तो तोर पेट फारहीं पड़त ।) (आपखु॰15.12)
156 जतसारी (हाँथ में कनइल लेके जतसारी गावऽ हे ।) (आपखु॰50.24)
157 जनकारी (= जानकारी) (बेआदर: ठीके तो कहिथऽ । बाकि कारन के जनकारी होवे के चाही न ? - झगरू: हाँ-हाँ, जनकारी तो जरूर होवे के चाही ।) (आपखु॰26.10, 11)
158 जरना (= जलना) (अटकोर-मटकोर, मड़वा-भतवान, घीढ़ारी, अठौंगरा आउ अइसने-अइसन नेग-दस्तूर के झमेला में महिनों बीत गेल, जेकरा चलते गेहूँ जर के भाँग हो गेल, खाली भूँस्से तो हाँथ लगल सरकार ।) (आपखु॰22.2)
159 जहईं (~ के तहईं) (ई बात जरूर हे कि ओकरा नोकरी न लगल बाकि बेपार के चलते आझ मालदार बन गेलन हे । आझ ऊ दोसरो के पइसा-कउड़ी देके आगे बढ़ा रहलन हे । ई बात हे कि न पलटू जी ? अनपढ़ रहे पर ऊ जहईं के तहईं रह जैतन हल ।; बाप रे, दुनियाँ कहाँ से कहाँ चलल जाइत हे आउ हमनी जहईं के तहईं पापड़ बेल रहली हे ।) (आपखु॰40.20; 45.31)
160 जिकिर (= जिक्र, उल्लेख) (हाँ सरकार ! एकरो जिकिर कैलन हे ऊ । कातो ओकर बाजी अइसहीं जमीन पर सुतल हलन । उनखा बिच्छा मार देलक । रात भर उनखा छटपटइते बितल ।) (आपखु॰13.34)
161 जिनगी (अइसन कलाकार आउ साहित लिखे ओला अमदी के पाके खाली हमहीं नऽ धन्य ही, बलिक समाज आउ देसो गौरव महसूस करऽ हे । हम इनखर लमहर जिनगी के कामना करऽ ही ।) (आपखु॰4.10)
162 जिरह (फिन जिरह करे लगलें तूँ ? इहाँ तोर ओकिली न चलतउ । हम तो मास्टर साहेब से बतिया रहली हे । तूँ बीच में काहे ला टपक पड़लें, ऐं ?) (आपखु॰39.9)
163 जूटना (= ममोसर होना) (बेबस्था बनावे ओलन हमनी के खून-पसेना के कमाई लूट के मौज कर रहलन हे आउ हमनी के रोटी पर नूनों न जूट रहल हे ।) (आपखु॰33.5)
164 जेकरा (एकरा पढ़ लेवे के बाद कलाकार लोग एकरा सही रूप देतन, जेकरा से आम जनता के मुनायल आँख के परदा हट जायत आउ ओखनि के साफ-साफ अप्पन आउ समाज के भलाई लोके लगत, साफ-सुथरा समाज बन जायत ।) (आपखु॰1.20)
165 जेखनि (= जिनकन्हीं) (राजेन्द्र प्रसाद सिंह, रामलखन प्रसाद सिन्हा आउ शिव प्रसाद सिंह जइसन सफल कलाकार, लेखक आउ रंगकर्मी से मिलना कम रहस से भरल बात नऽ हे, जेखनि से आगे बढ़े में हमरा भरपूर मदद मिलल ।) (आपखु॰1.9)
166 जेतना (= जितना) (हाँ-हाँ ! जेतना लोग अयतन, अप्पन जेबी भरहीं के कोरसिस करतन, आउ का ?) (आपखु॰17.4)
167 जेबी (= जेभी; जेब) (मजूर अप्पन-अप्पन कमर से रुपिया निकाल के सिपाही के हाँथ में थम्हावऽ हथ । सिपाही झटका से जेबी में रखऽ हे ।; हाँ भाई ! बाकि पइसा जेबी में पहुँच गेला पर कुल घुड़की हवा में बिला गेल ।; बात का हे ? अबकहीं तो सिपाही जी अप्पन जेबी गरम करके गेलन हे । तोरो चाही का कुछ ?) (आपखु॰16.20, 24, 32)
168 जेहल (लचारी में उ बिन टिकटे गाड़ी में चढ़ गेलन । टी॰टी॰ आके धर लेलक आउ जेहल के हावा खाय पड़ल उनखा ।) (आपखु॰35.32)
169 जोग-जाप (अच्छा, हम परोहिते जी के बोला लावऽ ही । ओहे जोग-जाप करके गरह-गोचर सांत कर देतन । हम्मर काम बन जायत ।) (आपखु॰20.31)
170 जोगाना (देख मौलबी, जादे एन्ने-ओन्ने कैलें नऽ, तऽ हम तोर नरेटी फोर देवउ, बुझलें ? आझ तक हम ठाकुरजी के केतना जोगा के रखले हली, जिनखा तूँ भरनठ कर के रख देलें आउ ऊपरे से बोकराती झाड़ रहले हें, ऐं ?) (आपखु॰46.31)
171 जोलहंडी (का बतावी हम । हम तो ठाकुर जी के पूजा कर रहली हल । ई जोलहंडी धक्का देके हम्मर ठाकुरजी के गिरा के भरनठ कर देलक । अब ठाकुरजी के सुद्ध करे में केतना टटेर करे पड़त हमरा, से समझइत हे ई ?) (आपखु॰47.20)
172 जौर (हमहुँ उहाँ जाय लेल सूअर बेच के रुपेया जौर कैले हली बाकि लगऽ हे अब हम्मर डोरी जुटवे नऽ करत बाबा से ।) (आपखु॰55.17)
173 झंझटाह (हाँ भाई ! कुटुम्म दहेज में खूब पइसा अइँठ लेलन आउ सादी बाबाधाम करे पर अड़ गेलन । हम तो लचार हली । करती का हल ? सभे समान लेके बाबाधाम पहुँचली । बाकि उहाँ के विआह हमरा काफी झंझटाह आउ महँगा बुझायल ।) (आपखु॰56.8)
174 टटेर (~ करना) (का बतावी हम । हम तो ठाकुर जी के पूजा कर रहली हल । ई जोलहंडी धक्का देके हम्मर ठाकुरजी के गिरा के भरनठ कर देलक । अब ठाकुरजी के सुद्ध करे में केतना टटेर करे पड़त हमरा, से समझइत हे ई ?) (आपखु॰47.22)
175 टाना-टानी (अरे, हे मुनमा ! नऽ सुनित हें का रे ? मड़ुआ के गाछी बुन देली आउ लगऽ हे, उ पटवे न करत । बिजुली लाईन के ओइसहीं टाना-टानी हे ।) (आपखु॰20.6)
176 टिकस (= टिकट) (अब जल्दी में ठाकुरजी के पुजवो करिए ले ही । पठवा तो गड़िओ में बइठल-बइठल हो जायेत । टिकस कटाइए लेली हे, गाड़ी आवत, चढ़ जायब ।; मौलबिओ ओही ठामा पुजेरी के बगले में नमाज अदा करे लेल बज्जू बनावऽ हे, फिन जानीमाज़ बिछाके नमाज पढ़े लगऽ हे ।) (आपखु॰46.4, 7)
177 टीसन (= स्टेशन) (मालिक बेमार होके बाबाधाम से लौटलन हल । उनखर गोड़ अइसन थकुचा गेल हल कि टीसन से टाँग के लावे पड़ल हल उनखा ।; जब तोरा जाहीं के हे, तऽ एकरा में देरी करे के कउन काम । धर लऽ अप्पन टीसन के राह । मलकिनी तोहर राह देखित होथुन ।) (आपखु॰55.30; 63.18)
178 टेंट (सिपाही: जब अइसन बात हे तऽ निकाल टेंट से पुरकस रकम । किफायत से काम चले के न हे । देखइत हें कि नऽ ? मँहगी केतना बढ़ रहल हे ।) (आपखु॰16.17)
179 टेटन (बिरजू : आउ ई लिलरा पर टेटन कइसन हउ संकर ? - संकर : का कहिओ, काका ! हमर दोहारी पर एगो देओता देखवे कैलऽ होत जेकरा सामने खूँटी में चूड़ी टाँगल रहऽ हई । ...गोड़ लागे ला जइसहीं झुकली, खूटिया से मथवे टकरा गेल । अँखिया तो मउरिया से झँकायल हल । खैर मनावऽ कि हम्मर आँख बच गेल, न तो एक बैटरी साफे हल ।) (आपखु॰6.27)
180 टैम (= टाइम, समय) (काहे रामधन, तूँ रोवे काहे लगलें हो ? हमरा अधरतिया में काहे ला बोलौले हें रे मरदे ? पहिले ई बताओ । अरे, कल्ह तो सराध करावे ला टैम पर पहुँचवे करती हल ।; जोग-जाप कर देवद तोर नाम से बाद में । काहे कि ई काम में ढेर टैम लग जैतउ । हाँ, जल्दी में लाठा-कुँड़ी के आरती हो जा सकऽ हे । एकरे से काम चल जैतउ ।; अभी तो बाबा किहाँ जाए के ढेर टैम हो । तूँ उहाँ असानी से जा सकऽ हऽ ।) (आपखु॰13.17; 21.28; 55.19)
181 टोकनी (तूँ तो इनखा समझा रहलऽ हे कि विसुन भगवान के सरन में पहुँच जाय पर एक्कर आँख ठीक हो जायत । तऽ तूँ अप्पन अँखिया पर टोकनियाँ काहे ला चढ़ौले चलइत हऽ, ऐं ?) (आपखु॰36.26)
182 ठगबनीजी (हाँ भाई ! हम का जानऽ हली, दरबारो में चोरी-चुहारी, ठगबनीजी होवऽ हे । हम हाय-हाय करके रह गेली ।) (आपखु॰57.21)
183 ठगाना (= ठगा जाना) (तइओ तो तोर आँख पर पट्टी बन्हले हवऽ महराज । लइका के आँख में दरद हवऽ, ओक्कर इलाज न करौलऽ आउ चल ऐलऽ इहाँ ठगाय ।) (आपखु॰35.34)
184 ठुकमुकाना (तूहूँ ठीके कहित हऽ । अब अकबकाय से काम थोड़े चलत । {मुखिया जी बिलकुल नजीक आ जा हथ । अन्हार में ऊ एखनी के चिन्हें में ठुकमुका हथ ।}) (आपखु॰63.34)
185 डहल (~ जीउ) (मास्टर जी ! तूँ कुच्छो मत बोलऽ आझ । हम्मर कुल में एहे एगो दीआ हे, जे बुतल चाहऽ हे । हलाँकि ई कुच्छो करे ला बाकी न छोड़लन हे । हम्मर डहल जीउ हे, बाप ! अइसहीं तबकी हम्मर बाबू देखते-देखते लुटा गेलन हल ।) (आपखु॰53.20)
186 डाँक बाबा (हे देवी मइया, ककारनी मइया, डाँक बाबा, घर के देओ-मून ! काहे बिगड़ल हऽ हमरा पर ।) (आपखु॰49.17)
187 डाक-डीहवार (घर के पूजवान के साथ-साथ गाँव के डाक-डीहवारो बिगड़ गया है, रे बाबा ! जल्दी से मुरगा लाके जिआओ ।) (आपखु॰50.21)
188 डीहबर (अरे, किया भेलऽ, कहमाँ गेलऽ, गउआँ डीहबरवा हो, अहो, जागऽ, जागऽ, जागऽ तूहूँ बलिया आजु केरा बेरिया हो ।; अहो, आजु पंथिया साजऽ, बाबा डीहबर लेले बाइसो पंथिया हो ।) (आपखु॰50.4, 7)
189 डेहंडल (अरे, हे रे ! तोरा सुनाइए न पड़ित हउ कि सुनियो के मटेरले हें । बड़ा डेहंडल हो गेल हे ससुरा के नाती । ओक्कर मइओ तो थेथरे हो गेल हे ।) (आपखु॰20.10)
190 ढकनी (हम ढकनियाँ फोरिये नऽ सकियो, काकी ! अबकहीं नउनियाँ भउजी चऊँका पर से अचक्के ठेल देलन, जेकरा चलते हम्मर कमर में दरद बुझा रहल हे ।) (आपखु॰6.3)
191 ढगवनिजी (= ठगवनिजी, ठगबनिजी) (तऽ ओइसन बेबस्था के ढोले चले से का फैदा, जे झूठा अभिमान आउ ढगवनिजी से भटल हे ।) (आपखु॰33.9)
192 ढहना-ढनमनाना (सतनरायन के कथा में एगो परसंग आयल हे ध्वज तुंगभद्र राजा के, जे गोवाल-बाल किहाँ पूजा के अवहेलना कैलन, पूजा के परसादी नऽ खैलन । जब ऊ अप्पन घर ऐलन तऽ देखऽ हथ, उनखर महल-अँटारी ढह-ढनमना गेल । गाय-भईंस, हाँथी-घोड़ा सभे मर-ओरिया गेल । सुनलऽ हे कि न ई खिस्सा ?) (आपखु॰45.6-7)
193 ढेढ़ाना (सूप ~) (रामकिरीत: उ टीका न हे काका । एकरा में दवाई के दू बून्द पिलावल जा हे जीभ पर । सूई न भोंकल जाय । - झगरू: सूप ढेढ़ावे से कहीं ऊँट भागल हे रामकिरीत ? हमरा तो अबहिओं विसवास न हो रहल हे तोर बात पर ।) (आपखु॰25.19)
194 ढेर (= बहुत) (सभे-कउनों के तो गाँओं छोड़ना संभव न हे, बाकि ढेर लोग गाँओं छोड़िए रहलन हे ।) (आपखु॰62.24)
195 ढोलहा (झगरू: {जोर से} का हो रामकिरीत, ई ढोल काहे ला बज रहल हे । - रामकिरीत: ढोलहा पड़ रहल हे, काका । - झगरू: कउची के ढोलहा भाई ? - रामकिरीत: बुतरूअन के टीका लगे ओला हे, काका !) (आपखु॰25.6, 7)
196 तइओ (= तइयो; तो भी) (तइओ तो तोर आँख पर पट्टी बन्हले हवऽ महराज । लइका के आँख में दरद हवऽ, ओक्कर इलाज न करौलऽ आउ चल ऐलऽ इहाँ ठगाय ।) (आपखु॰35.34)
197 तइहन (= तहिन, तहिने, तईहन, तहिकन) (महराज तइहन ! उलटे हमरे भकचोन्हर बना रहलऽ हे । सब चौपट करके रख देलऽ आउ अब उल्टा-सीधा बतिया रहलऽ हे ।) (आपखु॰59.20)
198 तईहन (= तहिन, तहिने, तइहन, तहिकन) (महराज ~) (परोहित: मर भकचोन्हर कहीं के, घबराउँ न तऽ का ? तोरा अइसन केतनन बेकूफ जजमान पड़ल हथ । देख नऽ, सीमरा रमेसर किहाँ कलहे सतइसा करावे ला हे । - बलदेव: महराज तईहन ! तऽ हमरा किहाँ फोकट में काम करा देवऽ का ? काम होवे के पते नऽ हे आउ पहिलहीं मनचाहा दछिना गछा लेलन हमरा से ।) (आपखु॰22.13)
199 तज्जुब (= ताज्जुब) (अइसन बात ! हमरा तो तज्जुब बुझा रहलो हे ।) (आपखु॰55.32)
200 तनि (वासुदेव भाई 'सादा जीवन ऊँच्च विचार' के जीता-जागता परतिमूरति हथ । इनखर तनि गो देह में बड़का गो लूर आउ विचार हे ।) (आपखु॰3.5)
201 तनि-मनि (= तनी-मनी) (मानिक: ई तो बड़ी तज्जुब के बात हे भाई । तऽ तो उहाँ बहुते भीड़ जुट गेलो होत । - हरि: तनि-मनि । सब हमरे बेकूफ बनावे लगलन । अनजान अमदी पर विसवास करके समान छोड़े पर हमरे दुसे लगलन ।) (आपखु॰57.18)
202 तरवन्ना (दाल-भात-चटनी खा के पढ़े गेली हल आउ आवइत खनी महेन्दर साथे तरवन्ना में खाजो खा लेली हल ।) (आपखु॰54.11)
203 तरवा (हाँ काका ! हम्मर गोस्सा तो तरवा से कपार पर चढ़ गेलो । लगे कि काकी के घोर के पी जाई, बाकि मन मसोस के रह गेली ।; ई बात हमरा सामने मत बोलल करऽ । ई बात सुन के हम्मर तरवा के लहर कपार पर चढ़ जाहे, समझलें ?) (आपखु॰7.1; 32.22)
204 तरी (= तरह) (तोर कहल तो अभिओ हम्मर समझ में न आ रहल हे, भाई ! जरा एकरा बेस तरी समझा के बतावऽ न हमरा ।) (आपखु॰26.18)
205 तरेगन (= तरिंगन; तारा) (जादे तंग करवे तऽ अइसन झापड़ मारवउ कि दिन में तरेगन लोक जैतउ, हाँ ।) (आपखु॰38.30)
206 तहईं (जहईं के ~) (ई बात जरूर हे कि ओकरा नोकरी न लगल बाकि बेपार के चलते आझ मालदार बन गेलन हे । आझ ऊ दोसरो के पइसा-कउड़ी देके आगे बढ़ा रहलन हे । ई बात हे कि न पलटू जी ? अनपढ़ रहे पर ऊ जहईं के तहईं रह जैतन हल ।; बाप रे, दुनियाँ कहाँ से कहाँ चलल जाइत हे आउ हमनी जहईं के तहईं पापड़ बेल रहली हे ।) (आपखु॰40.20; 45.31)
207 तहिआ (= उस दिन; तहिए से = उसी दिन से) (पढ़े-लिखे आ गेल हल, तहिए से हम थोड़-बहुत कविता, कहानी आउ लेख लिखे में लग गेली हल ।) (आपखु॰1.1)
208 तहिन (= तहिने, तइहन, तहिकन) (तूँ जाय देवऽ कि न जी, कि बाते में बझौले रहवऽ महराज तहिन ।) (आपखु॰35.9)
209 ताखा (= धरखा; ताक) (मजूर 2: हाँ भाई ! बाकि पइसा जेबी में पहुँच गेला पर कुल घुड़की हवा में बिला गेल । - मजूर 3: आउ ताखा पर रखा गेल उनखर कुल नियम-कनून ।) (आपखु॰16.26)
210 तार (= ताड़ का वृक्ष) (विनोद: {बता के} आझ रामू बाबा के तरवा तर होके अइलिओ हे, बाजी ! - चन्दर: {अपने-आप} हाय हो बाप ! इ उहाँ काहे ला गेलइ हल गे मइया । उ तरवा पर तो भूत रहऽ हइ । ओहे धर लेलक हे का ?) (आपखु॰49.21, 23)
211 तुरूक (= तुर्क) (राम-राम ! हम्मर ठाकुरजी के ई तुरूक छू के अपवित्तर कर देलक आउ हम्मरे आँख देखा रहल हे, कह रहल हे कि हम्मर नमाज नपाक हो गेल ।) (आपखु॰46.19)
212 तोहनी (= तोहन्हीं; तुमलोग) (तोहनी दुन्नों के बात सुन के सभे आँख तर लोक रहल हे कि अखबार-मैगजीन में लिक्खल बात बिलकुले सही रहऽ हे । राम सिंह के लोहा ओला करखाना में केतनन लइकन के खटइत तो जरूरे देखऽ ही हम ।; हमनी के कमाई पर बड़ी मौज कैलऽ हे तोहनी ।) (आपखु॰11.14; 15.20)
213 थकुचाना (मालिक बेमार होके बाबाधाम से लौटलन हल । उनखर गोड़ अइसन थकुचा गेल हल कि टीसन से टाँग के लावे पड़ल हल उनखा ।; ऊ वखत हम्मर गोड़ो काम न कर रहल हल । कइकन जगह थकुचा आउ सूज गेल हल ।) (आपखु॰55.30; 57.24)
214 थेथर (अरे, हे रे ! तोरा सुनाइए न पड़ित हउ कि सुनियो के मटेरले हें । बड़ा डेहंडल हो गेल हे ससुरा के नाती । ओक्कर मइओ तो थेथरे हो गेल हे । सुनित हें, मुनमा के जरा जल्दीये भेज दीहें आउ हाँ, तूहूँ नस्ता-पानी लेके फुरतीये चल अइहें । हम बढका अहरी जा रहलिअउ हे लाठा-कुँड़ी लेके ।) (आपखु॰20.10)
215 थोड़हीं (= थोड़े ही) (हमरा का पता ? हमरा कह के थोड़हीं गेलन हे । ओनहीं जाके देखऽ नऽ ।) (आपखु॰30.35)
216 दमा-सुरसुरी (एहे खाय से होतइ ननदी दमा-सुरसुरिया, अहे एहे खाय से होतइ जर-बोखरवा हे नऽ । भइया के होतइ भउजी नाम निसतइया, अहे बाबूजी के के पगड़ी नसैतइ हे नऽ ।) (आपखु॰52.14)
217 दरकार (बात बढ़ावे के कउनों दरकार नऽ हे ।) (आपखु॰48.1)
218 दवा-बीरो (उ वखत देवी-देओता के बिगड़ जाय के चलते लोग दवा-बीरो करावे से कतरा हलन । रात-दिन ओखनी झूठ-मूठ के पूजा-पाठ, होम-जाप, ओझा-डइआ के चक्कर में फँसल रहऽ हलन । एहे फेरा में महमारी जोर पकड़ ले हल आउ गाँओ उजड़ जा हल ।) (आपखु॰26.27)
219 दस-करमा (= दसमा) (रामधन के बाउजी मर गेलन हे । दसकरमो भे गेल हे । दसकरमा के रात में ऊ सूतल हथ ।) (आपखु॰13.2)
220 दसमा (= दस-करमा) (दसमा के दिन कंटाह बाबा के दान में मिलल समान से उनखा तो फैदा होइए रहल होत ।) (आपखु॰13.26)
221 दान-दच्छिना (ऊ कुच्छो दान-दच्छिना न कैलक बाउजी के मरे पर ।) (आपखु॰13.32)
222 दुख-बलाय (एहे भरम-जाल में तो सब के भरमौले हऽ तोहनी । जब पिंडदान आउ तरपने करे से सबके दुख-बलाय मेट जाय, तऽ इहाँ बेस-बेस डॉकडर पेआज छीले ला बइठल हथ का ?) (आपखु॰36.19)
223 दुसना (मानिक: ई तो बड़ी तज्जुब के बात हे भाई । तऽ तो उहाँ बहुते भीड़ जुट गेलो होत । - हरि: तनि-मनि । सब हमरे बेकूफ बनावे लगलन । अनजान अमदी पर विसवास करके समान छोड़े पर हमरे दुसे लगलन ।) (आपखु॰57.19)
224 दूबर (= दु्ब्बर; दुर्बल, कमजोर) (मौलबी: तऽ झगड़े करे के इरादा हउ का हो ? - पुजेरी: तऽ तूँ हमरा कोहड़े-भतुआ समझ रहले हें का ? सावन से भादवे दूबर रहल हे का ?) (आपखु॰47.2)
225 दूरूस (= दुरुश्त) (हाँ-हाँ, तोरा हरे-फिटकीरी काहे ला रहतो । बुढ़ारी में पालकी पर चढ़े के सौख मेटिए गेलो । होस तो हम्मर न दुरूस हो रहल हे ।; होस दूरूस होवो चाहे जे, बाकि हम अप्पन लीक से हटिए न सकी ।) (आपखु॰32.28, 29)
226 देओ-मून (= देव-मुनि) (हे देवी मइया, ककारनी मइया, डाँक बाबा, घर के देओ-मून ! काहे बिगड़ल हऽ हमरा पर ।; ओझा मंतर पढ़के आग में बामर दे हे, देओ-मून के मनावऽ हे । बाकि तइयो रोगी दरद से परेसान हो रहल हे । उ चिल्ला हे ।) (आपखु॰49.18; 51.22)
227 दोकान (= दुकान) (हमरा साथे एगो बुतरू आउ आयल हल । ओकरा दोकान में रख देल गेल हल । दोकान ओला ओकरा रात-दिन कोल्हुआ बैल जइसन खटावइत हल । ऊ बेमार पड़ गेल आउ इलाज न होवे के चलते मरिओ गेल । बाकि के पूच्छऽ हे ओक्कर बारे में ?) (आपखु॰11.20, 21)
228 दोकानदार (= दुकानदार) (दोकानदार आउ करखाना के मालिक अप्पन पूँजी लगाके नऽ फैदा उठा रहलन हे ।) (आपखु॰58.4)
229 दोस (= दोष; दोस्त) (एकरा में हम्मर का कसूर हे भाई ? ई सभे तो बेवस्था के नऽ दोस हे ।) (आपखु॰15.21)
230 दोहारी (का कहिओ, काका ! हमर दोहारी पर एगो देओता देखवे कैलऽ होत जेकरा सामने खूँटी में चूड़ी टाँगल रहऽ हई ।) (आपखु॰6.28)
231 धत् (~ तेरी के !) (धत् तेरी के ! बाबाधाम में आउ अइसन बात !; धत् तेरी के ! अरे, ई तो मुखिया जी हथ । हमनी बेकार डेरा रहली हल । बाकि ई बखत मुखिया जी कहाँ जा रहलन हे भाई ?) (आपखु॰56.22; 63.27)
232 धूर (= धूल) (पलटू: जरूरी हे ओकरा, जेकरा जज-बलिस्टर बने के हे । हमरा एकरा से मतलबे न हे, समझलें ? हमरा तो सब दिन धूर फाँके के हे । - मास्टर: तूँ तो धूर फाँकते हऽ, बाकि बुतरूअन के काहे ला अप्पन नाधा में जोत रहलऽ हे ।) (आपखु॰39.21, 22)
233 धूरी (= धूल, धूलि) (खेले वखत लइकन एक्कर आँख में धूरी डाल देलन हे, जेकरा चलते परेसानी में हे ई ।) (आपखु॰34.11)
234 धोवल-धावल (~ भईस कादो में बोरना) (भाई साहेब, सभे धरम चौपट हो गेल हम्मर । धोवल-धावल भईस कादो में बोर गेल । नरको में तो जगह न मिलत हमरा । आझ एकरा से फरिआइए लेवे दऽ हमरा ।) (आपखु॰47.26)
235 नउनियाँ (हम ढकनियाँ फोरिये नऽ सकियो, काकी ! अबकहीं नउनियाँ भउजी चऊँका पर से अचक्के ठेल देलन, जेकरा चलते हम्मर कमर में दरद बुझा रहल हे ।) (आपखु॰6.3)
236 नजीक (= नजदीक) (तेतर नजीक आ जाहे ।; तूहूँ ठीके कहित हऽ । अब अकबकाय से काम थोड़े चलत । {मुखिया जी बिलकुल नजीक आ जा हथ । अन्हार में ऊ एखनी के चिन्हें में ठुकमुका हथ ।}) (आपखु॰29.24; 63.34)
237 नन्हका (नऽ भाई, हम्मर नन्हका तो कुछ दिन पहिलहीं पटना चल गेल हे, अप्पन परिवार के लेके आउ उहईं कमा-खा रहल हे ।) (आपखु॰62.19)
238 नपाक (पुजेरी: अरे-अरे, ई का ? देखऽ तो ई मौलबी हम्मर ठाकुरजी के बरनठ कर देलक । - मौलबी: हम तोर ठाकुर के भरनठ कर देलिअउ कि तूहीं हम्मर नमाज के नपाक कर देलें पंडित ?; राम-राम ! हम्मर ठाकुरजी के ई तुरूक छू के अपवित्तर कर देलक आउ हम्मरे आँख देखा रहल हे, कह रहल हे कि हम्मर नमाज नपाक हो गेल ।) (आपखु॰46.17, 20)
239 नबावी (~ छाँटना) (करमें बदमासी ! हम्मर नमाज के नपाक करके उलटे नबावी छाँट रहले हें ?) (आपखु॰46.21)
240 नरेटी (~ फोरना) (देख मौलबी, जादे एन्ने-ओन्ने कैलें नऽ, तऽ हम तोर नरेटी फोर देवउ, बुझलें ? आझ तक हम ठाकुरजी के केतना जोगा के रखले हली, जिनखा तूँ भरनठ कर के रख देलें आउ ऊपरे से बोकराती झाड़ रहले हें, ऐं ?) (आपखु॰46.30)
241 नस्ता-पानी (ओक्कर मइओ तो थेथरे हो गेल हे । सुनित हें, मुनमा के जरा जल्दीये भेज दीहें आउ हाँ, तूहूँ नस्ता-पानी लेके फुरतीये चल अइहें । हम बढका अहरी जा रहलिअउ हे लाठा-कुँड़ी लेके ।) (आपखु॰20.12)
242 नाधा (~ में जोतना) (पलटू: जरूरी हे ओकरा, जेकरा जज-बलिस्टर बने के हे । हमरा एकरा से मतलबे न हे, समझलें ? हमरा तो सब दिन धूर फाँके के हे । - मास्टर: तूँ तो धूर फाँकते हऽ, बाकि बुतरूअन के काहे ला अप्पन नाधा में जोत रहलऽ हे ।) (आपखु॰39.22)
243 नाधा (अइसन बात ! लगऽ हे, हमनी दुन्नों एक्की नाधा के बैल बुझा रहली हे । अइसने घटना तो हमरो साथे घटल हे भाई ।) (आपखु॰10.18)
244 नाम-हिसती (तऽ हमरा अप्पन नाम बुड़ावे कहऽ हलऽ का हो ? पूरा समाजे जानित हे कि हम्मर खनदान कहिनों नाम हिसती वरदास नऽ कैलन हे ।) (आपखु॰32.6)
245 निमन (= निम्मन, नीमन; अच्छा) (तब तो अइसन बढ़ियाँ काम में सबके लग जाय के चाही । एकरा से निमन काम आउ का हो सकऽ हे ।) (आपखु॰28.24)
246 निसा (= नशा) (धरम के निसा सवार हो जाय पर सभे बात भूल के बात-बात में झगड़ा करे ला लोग उतारू हो जा हे ।) (आपखु॰48.2)
247 नीमन (गलत थोड़े लिखलन हे राहुल जी । अब तो अप्पन सभे गलती के भुलाके नीमन महौल कायम करे के हे । अप्पन बोली बेओहार में बदलाऔ लावे के हे ।) (आपखु॰64.16)
248 नून (जरल देह में ~ लगाना) (हम्मर जरल देह में नून मत लगावऽ भइया ! हम्मर देह में आग धधक रहल हे ।; बेबस्था बनावे ओलन हमनी के खून-पसेना के कमाई लूट के मौज कर रहलन हे आउ हमनी के रोटी पर नूनों न जूट रहल हे ।) (आपखु॰31.9; 33.5)
249 नोंचना (लगऽ हे, हमरा लोग तवाह कर देतन, नोंच के खा जैतन । सादी का भेल, हमरा नाको दम हो गेल ।) (आपखु॰30.11)
250 पंथवारी (तोहनी सुनवे कैलऽ होत कि उ वखत देवी मइआ के रंथी गाँओ-गाँओ में घूमऽ हल, जेकरा में पंथवारी रहऽ हलन आउ साथे भारी लाओ-लसकर रहऽ हल । ओखनी जहाँ चाह ले हलन, महमारी फैला दे हलन ।) (आपखु॰26.23)
251 पइन (ठीका ! कउची के ठीका ? सड़क के कि पइन के ?) (आपखु॰25.9)
252 पइसा (~ पीटना) (तोरो कहल ठीके हे । बाकि उहाँ तो अइसन वेपारी बइठल हथ जे बिना पूँजी-पगहा लगौले पइसा पीट रहलन हे ।) (आपखु॰58.8)
253 पगलाना (= पागल होना; पागल करना या बनाना) (बेआदर: कउन बात के चरचा छिड़ल हे काका ? - झगरू: देखऽ नऽ बेआदर, आझ रामकिरीत पगलौले हथ हमरा ।) (आपखु॰25.24)
254 पढ़ल-लिक्खल (= पढ़ल-लिखल) (देखऽ काका ! पहिले तोहनी पढ़ल-लिक्खल बहुत कम हलऽ । साइते कउनों पढ़ल-लिखल मिलऽ हलन तोहर समाज में । सादा-सादी कपड़ा पहनले रहऽ हलन । केतनन तो उघारे-पघारे रह के जिनगी गुजार ले हलन ।) (आपखु॰42.22)
255 पढ़ल-लिखल (देखऽ काका ! पहिले तोहनी पढ़ल-लिक्खल बहुत कम हलऽ । साइते कउनों पढ़ल-लिखल मिलऽ हलन तोहर समाज में । सादा-सादी कपड़ा पहनले रहऽ हलन । केतनन तो उघारे-पघारे रह के जिनगी गुजार ले हलन ।) (आपखु॰42.23)
256 पनरह (= पन्द्रह) (वासुदेव भाई दोआरा लिक्खल "आँख के पट्टी खुल गेल" एगो संग्रह हे छोट-मूट पनरह गो नुक्कड़ नाटक के । पाँच से पनरह मिनिट के भीतर खेलल जाय ओला ई सभे नाटक देखे में नन्हें गो जरूर लगऽ हे, बाकि एक्कर असर आउ परभाओ देखताहर पर बड़ी भारी पड़ऽ हे ।) (आपखु॰2.2, 3)
257 परना (= पड़ना) ('बेल के मारल बबूर तर' ओला कहाउत हो गेल । काम करते-करते पेरा गेली आउ पेटो पर बज्जड़ पर गेल ।) (आपखु॰10.6)
258 परनाम (= प्रणाम) (बलदेव: {चेहा के} कउन, मास्टर साहेब ? परनाम ! - मास्टरजी: परनाम बलदेव भाई, परनाम ! तूँ ओझा के काहे ला बोलावल चाहऽ हऽ ?) (आपखु॰24.6, 7)
259 परपराना (बबुन: एक तो तूँ लिख लोढ़ा पढ़ पत्थल रह गेलऽ । कम से कम हमनिओं के तो पढ़े-लिक्खे दऽ । - पलटू: फिन तूँ परपराय लगलें न ?) (आपखु॰39.26)
260 परसादी (सतनरायन के कथा में एगो परसंग आयल हे ध्वज तुंगभद्र राजा के, जे गोवाल-बाल किहाँ पूजा के अवहेलना कैलन, पूजा के परसादी नऽ खैलन । जब ऊ अप्पन घर ऐलन तऽ देखऽ हथ, उनखर महल-अँटारी ढह-ढनमना गेल । गाय-भईंस, हाँथी-घोड़ा सभे मर-ओरिया गेल । सुनलऽ हे कि न ई खिस्सा ?; गोवाल-बाल किहाँ सतनरायन के पूजा में परसादी न खाय के चलते ई हाल भेल हे । तूँ अभियो पूजा के परसादी खा जा । सब कुछ पहिले जइसन हो जायत ।; ऊ उहाँ जाके पता लगौलन आउ हँड़िया में लगल परसादी का लेलन । सब कुछ पहिले जइसन हो गेल ।; आझ अछूत किहाँ ओखनी पूजा करावऽ हथ, ठाकुर जी के परसादी में खूब डुबा-डुबा के नहावऽ हथ । ठाकुर जी के पेट तो नहावइते खनी भर जाहे । बाकि बाबाजी परसादी खा हथ का ? नऽ खाथ । उनका छूत लग जाहे ।) (आपखु॰45.5, 11, 12, 14, 17, 18)
261 परसाल (परसाल हम्मर चच्चो गया तरपन करे ऐलन हल । इहाँ पंडा जी उनखर सभे झोली जार लेलन । टिकटो कटावे ला पइसा न रहल उनखा पास ।; मानिक: ... खादे ओला पइसा लेके ऊ उहाँ चल गेलन । एहे चलते परहो साल खाद नऽ पड़ल । एकरा चलते धान के उपज बढ़ियाँ नऽ होल हल । - हरि: काहे ? परसाल तो धान के सीजन बहुत बढ़ियाँ हल ।) (आपखु॰35.29; 55.28)
262 परहे (= परसाल; परहो = परसाल भी) (मानिक: ... खादे ओला पइसा लेके ऊ उहाँ चल गेलन । एहे चलते परहो साल खाद नऽ पड़ल । एकरा चलते धान के उपज बढ़ियाँ नऽ होल हल । - हरि: काहे ? परसाल तो धान के सीजन बहुत बढ़ियाँ हल ।) (आपखु॰55.26)
263 परान (= प्राण) (कन्ने गेलें मइया ! अब परान न बचत रे बाप !) (आपखु॰49.30)
264 परोहित (= पुरोहित) (हमनी तोहर काम में आवे ओला सभे समान कंटाह बाबा के दान करिए देलिओ । बचल-खुचल समान बिहने परोहित जी के दान करिए देवो ।) (आपखु॰13.7)
265 पहिलका (एगो बुतरू गंजी-पैंट पन्हले सड़क पर भागल जा रहल हे । ओक्कर आगे एगो दोसर बुतरू लपकल जाइत हे । पहिलका के पिछलका से धक्का लग जाहे आउ ऊ गिर पड़ऽ हे ।; हाय ! कहाँ चल गेल पहिलका दिन ! आउ कहाँ भुला गेल ऊ वखत के मेल-मोहब्बत-भाईचारा ?) (आपखु॰9.3; 63.13)
266 पहुना (काकी गरदनियाँ में जे हँसुली पेन्हा देलन हल, ओकरा में पलकिया के फुदनमें घूँस गेलो आउ गलवे कसा गेलो । हम्मर तो पराने उकल-विकल होवे लगलो आउ लगलियो गरगराय । ऊ घड़ी पहुना फुदना काट के न निकालतन हल, तऽ हम साफे हली ।) (आपखु॰6.25)
267 पिछलका (एगो बुतरू गंजी-पैंट पन्हले सड़क पर भागल जा रहल हे । ओक्कर आगे एगो दोसर बुतरू लपकल जाइत हे । पहिलका के पिछलका से धक्का लग जाहे आउ ऊ गिर पड़ऽ हे ।) (आपखु॰9.3)
268 पिराना (= पीड़ा करना, दुखना) (अँखिया बड़ी पिराइत हे बाजी ! कनहुँ देखा दऽ नऽ ।; विनोद: पेटवा पिरा रहलो हे, बाजी ! - चन्दर: कखनी से बाबू ?) (आपखु॰34.23; 49.7)
269 पीड़ी (= पिंडी) (का भेलउ बाबू ? हम्मर तो औसाने तेरह हो गेल बप ? अच्छा ठहर जरा । हम गोरइया बाबा के पीड़ी से माटी ले आवऽ ही मना-दना के ।) (आपखु॰49.11)
270 पुजेरी (= पुजारी) (एगो पुजेरी ठाकुरजी के पूजा के तइआरी में हथ ।; मौलबिओ ओही ठामा पुजेरी के बगले में नमाज अदा करे लेल बज्जू बनावऽ हे, फिन जानीमाज़ बिछाके नमाज पढ़े लगऽ हे ।; मौलबी साहेब नमाज पढ़े के दौरान सीजदा करऽ हथ । इनखर मुँह पच्छिम तरफ हे, पुजेरी पूरब तरफ मुँह कर के चंदन घीसे में लीन हथ ।) (आपखु॰46.2, 7, 12)
271 पुरखन (अरे तोहर पुरखन के तो उधार हो गेल, इहाँ आके तरपन आउ पिंडदान कर देवे पर ।; कपार उधार हो गेलन ओखनी । उधार तो हम हो गेली कि हमरा पास एको पइसा न बचल ।; परोहित: तोरा उलटे लोक रहल हे, तऽ हम का कर सकऽ ही ? अरे तोहर पुरखन कहिना से आस लगौले हलन कि हम्मर खनदान में कउनों अइसन जलम ले, जे गया धाम में पिंडदान करके हमनी के आस पूरा कर दे, से तूँ कर देलें । अब चाहवे का करी तोरा ? - रामनाथ: कपार चाही अब हमरा । परोहित जी, लीपा-पोती मत करऽ । लगऽ हे कि इनखा से हम्मर पुरखन सभे बात के खबर कर रहलन हे ।) (आपखु॰59.29; 60.2, 7)
272 पुरनका (आपसी भेद-भाओ भुला के भाईचारा कायम करे खातिर अपना में बदलाओ लावे के जरूरत हे । अप्पन पुरनका सान-सौकत ढोले चले से अब काम चले के न हे ।) (आपखु॰64.19)
273 पूँजी-पगहा (तोरो कहल ठीके हे । बाकि उहाँ तो अइसन वेपारी बइठल हथ जे बिना पूँजी-पगहा लगौले पइसा पीट रहलन हे ।) (आपखु॰58.7)
274 पूआ-पूड़ी (बिना मुसलमान भाई के सामिल होले होली में रंग-अबीर उड़ावे में मज्जे न मिलऽ हल । इहाँ तक कि मोहर्रम में खिचड़ा-मलीदा आउ होली-दसहरा में मिठाई, पूआ-पूड़ी एक्के पाँत में बइठ के खा-पीअ हलन ।) (आपखु॰63.11)
275 पूड़ी (= पूरी) (रघवा अप्पन बाप के रोआँ जला देलक आउ उहाँ सरग में भोग करे ओला समान हमनि के दान करबे न कैलक । सूखले पूड़ी परस देलक, समझलें ?; सूखले पूड़ी खैतन का ? कइसहुँ निंगल गेलन । पूड़ी उनखर कंठ में अटकियो गेल हल सरकार ! ऊ बड़ी अकबक में हो गेलन हल कातो ।) (आपखु॰14.3, 5)
276 पेआज (= प्याज) (ससि: लगलऽ न अकबकाए जाय ला ? - नेमन: बोलहटा देवे के बादो तो उहाँ केतनन काम करे के हे । - ससि: आउ बाबाजी उहाँ बइठ के खाली पेआजे छिलतन का ?) (आपखु॰43.7)
277 पेन्हाना (= पहनाना) (काकी गरदनियाँ में जे हँसुली पेन्हा देलन हल, ओकरा में पलकिया के फुदनमें घूँस गेलो आउ गलवे कसा गेलो । हम्मर तो पराने उकल-विकल होवे लगलो आउ लगलियो गरगराय । ऊ घड़ी पहुना फुदना काट के न निकालतन हल, तऽ हम साफे हली ।) (आपखु॰6.23)
278 पेराना ('बेल के मारल बबूर तर' ओला कहाउत हो गेल । काम करते-करते पेरा गेली आउ पेटो पर बज्जड़ पर गेल ।; हम तोरा चलते पेरा रहली हे । सादी भेल तोर बेटा के आउ फेरा में पड़ल ही हम ।; असल गलती हे समाज के बीच फैलल बेबस्था के जेकरा चलते समुचे समाज पेरा रहल हे, बरबाद हो रहल हे ।) (आपखु॰10.5; 31.13; 33.3)
279 फरिआना (भाई साहेब, सभे धरम चौपट हो गेल हम्मर । धोवल-धावल भईस कादो में बोर गेल । नरको में तो जगह न मिलत हमरा । आझ एकरा से फरिआइए लेवे दऽ हमरा ।) (आपखु॰47.27)
280 फिन (बिरजू : देखलें नऽ सतनारायन के सत । फिन का भेलउ ? - संकर : का पता ? हम तो बेहोसे हली ।) (आपखु॰7.15)
281 फुदना (काकी गरदनियाँ में जे हँसुली पेन्हा देलन हल, ओकरा में पलकिया के फुदनमें घूँस गेलो आउ गलवे कसा गेलो । हम्मर तो पराने उकल-विकल होवे लगलो आउ लगलियो गरगराय । ऊ घड़ी पहुना फुदना काट के न निकालतन हल, तऽ हम साफे हली ।) (आपखु॰6.24, 26)
282 फेरा (= बखेड़ा, उलझन) (भारी ~) (अवाज: सत-आठ दिन कउनो काम न होत । ऊ औतन तभे काम सुरू कैल जायत ।) - मानिक: ऊ औतन तऽ काम सुरू होत, ई तो भारी फेरा हो गेल ।) (आपखु॰55.13)
283 फोकट (बलदेव: महराज तईहन ! तऽ हमरा किहाँ फोकट में काम करा देवऽ का ? काम होवे के पते नऽ हे आउ पहिलहीं मनचाहा दछिना गछा लेलन हमरा से ।) (आपखु॰22.13)
284 फोरना (= फोड़ना) (हम ढकनियाँ फोरिये नऽ सकियो, काकी ! अबकहीं नउनियाँ भउजी चऊँका पर से अचक्के ठेल देलन, जेकरा चलते हम्मर कमर में दरद बुझा रहल हे ।; देख मौलबी, जादे एन्ने-ओन्ने कैलें नऽ, तऽ हम तोर नरेटी फोर देवउ, बुझलें ? आझ तक हम ठाकुरजी के केतना जोगा के रखले हली, जिनखा तूँ भरनठ कर के रख देलें आउ ऊपरे से बोकराती झाड़ रहले हें, ऐं ?) (आपखु॰6.3; 46.30)
285 बचल-खुचल (= बच्चल-खुच्चल) (हमनी तोहर काम में आवे ओला सभे समान कंटाह बाबा के दान करिए देलिओ । बचल-खुचल समान बिहने परोहित जी के दान करिए देवो ।) (आपखु॰13.7)
286 बच्चल-खुच्चल (ऊ हमरा इहाँ लाके एगो होटल में रखा देलक । उहाँ हम्मर औकात से जादे काम लेल जा हल आउ खाय वखत बच्चल-खुच्चल, बासी-कुसी खाय ला मिलऽ हल । सेहू भर पेट नहिएँ ।) (आपखु॰10.15)
287 बजार (= बाजार) (बजार जाइत ही हो । कह, का कहऽ हें ?; बात तो ठीके हे । बजारे तो एहे काम से जा रहली हे ।) (आपखु॰29.28; 30.18)
288 बज्जड़ (~ परना) ('बेल के मारल बबूर तर' ओला कहाउत हो गेल । काम करते-करते पेरा गेली आउ पेटो पर बज्जड़ पर गेल ।) (आपखु॰10.6)
289 बज्जू (मौलबिओ ओही ठामा पुजेरी के बगले में नमाज अदा करे लेल बज्जू बनावऽ हे, फिन जानीमाज़ बिछाके नमाज पढ़े लगऽ हे ।) (आपखु॰46.8)
290 बझाना (= फँसाना, किसी दूसरे काम में व्यस्त रखना) (तूँ जाय देवऽ कि न जी, कि बाते में बझौले रहवऽ महराज तहिन ।) (आपखु॰35.9)
291 बड़ही (= बढ़ई) (तूँ फिनों ई चक्कर में पड़ गेलऽ का बलदेव भाई ? एक्कर ओझा तो बड़ही हथ, जे अप्पन बसुला-रूखान से एकरा ठीक कर देतन ।) (आपखु॰24.11)
292 बड़ी (= बहुत) (बड़ी गरीब अमदी ही बाबू । बाजी लचारी में हम्मर पढ़ाई-लिखाई छोड़ा के एगो अमदी साथे काम करे लेल इहाँ भेजलन हल, बाकि इहाँ लाके तो ऊ आउ फाँसी पर लटका देलक ।; आझ के जमाना में पढ़ना बड़ी जरूरी हे, बाजी !; का कहिओ मास्टर साहेब, दिनहीं से विनोद के पेट में बड़ी जोर से दरद हो रहल हे । बड़ी उकल-विकल में हे ई ।) (आपखु॰10.10; 39.19; 52.11, 12)
293 बढ़का (= बड़का) (ओक्कर मइओ तो थेथरे हो गेल हे । सुनित हें, मुनमा के जरा जल्दीये भेज दीहें आउ हाँ, तूहूँ नस्ता-पानी लेके फुरतीये चल अइहें । हम बढका अहरी जा रहलिअउ हे लाठा-कुँड़ी लेके ।; नेमन: घरे ही बढ़का बाबू !) (आपखु॰20.12; 42.3)
294 बढ़नी (= झाड़ू) (कहमाँ उपजइ दीदी सिकिया बढ़नियाँ, अहे कहमाँ उपजइ दउदी गेहुमाँ हे नऽ ?) (आपखु॰50.26)
295 बढ़न्ती (आग जले से, कल-करखाना आउ गाड़ी में कोइला-डीजल जले से धुइयाँ निकलऽ हे । ओकरो से कारबन-डाइऑक्साइड जादे पैदा होवऽ हे, जेकरा चलते वायुमंडल में एक्कर बढ़न्ती हो रहल हे ।) (आपखु॰18.4)
296 बढ़ियाँ (= बढ़िया) (तब तो अइसन बढ़ियाँ काम में सबके लग जाय के चाही । एकरा से निमन काम आउ का हो सकऽ हे ।) (आपखु॰28.23)
297 बतकही (एही वखत गाँओ के नन्द बाबू आ जा हथ । दुन्नों के बतकही सुन के अवाक रह जा हथ ।; का सुनी तोर कहल ? हम अप्पन काम देखी कि तोर बतकही सुनी, ऐं ?) (आपखु॰32.32; 35.6)
298 बतकूचन (= बतकुच्चन) (का दुन्नों भाई अपने में बतकूचन कर रहलऽ हे ? हम सभे बात बगल से सुन लेली हे ।) (आपखु॰32.34)
299 बतियाना (एक दिन भट्ठवो पर लोग बतिया रहलन हल कि लचार बुतरून के बहला-फुसला के दलाल लोग बाहर ले जा हथ । एखनी के कमाई पर मौज करऽ हथ दलाल लोग । काहे कि मजुरियो तो कमे देवे पड़ऽ हे ओखनी के ।; हम तो मास्टर साहेब से बतिया रहली हे । तूँ बीच में काहे ला टपक पड़लें, ऐं ?; महराज तइहन ! उलटे हमरे भकचोन्हर बना रहलऽ हे । सब चौपट करके रख देलऽ आउ अब उल्टा-सीधा बतिया रहलऽ हे ।; हम उल्टा-सीधा का बतियावऽ ही रामनाथ ? हम तो तोहर पुरखन के तारे खातिर न इहाँ आके पिंडदान करावे लेल राय देली हल ।) (आपखु॰11.4; 39.10; 59.21, 22)
300 बम (बिगड़ के ~ होना) (मालिक ई बातचीत सुन लेइतन हल, तो बिगड़ के बम हो जैतन हल आउ अपनहुँ के खरा-खोटा सुनहीं पड़ित हल ।) (आपखु॰42.10)
301 बरदास, वरदास (= बर्दाश्त, सहन) (तऽ हमरा अप्पन नाम बुड़ावे कहऽ हलऽ का हो ? पूरा समाजे जानित हे कि हम्मर खनदान कहिनों नाम हिसती वरदास नऽ कैलन हे ।; हम्मर बात से तोरा चीढ़ हौ नऽ, तऽ तोरो बात हम्मर बरदास के बाहर हौ ।; तोरा बरदास न हउ नऽ, तऽ तोरा जे बुझाउ से तूँ कर । एकरा में हमरा हरे-फिटकीरी न हे ।; पहिले एन्ने के लोग अनपढ़ हलन, अब लोग पढ़े-लिखे पर धेआन दे रहलन हे । कुछ समझे-बूझे के कोरसिस कर रहलन हे आउ अपना पर होइत अनेआय के बरदास करे लेल तइयारे न हथ ।) (आपखु॰32.6, 23, 25; 63.4)
302 बरबराना (= बड़बड़ाना) (तूँ फिन लगलें बरबराय ?) (आपखु॰39.15)
303 बरहा (परोहित: तऽ हम एकरा में का करी बलदेव ? लठवो हमरे सोझ करे का कहऽ हें रे मरदे ? - बलदेव: न, सरकार ! अपने से अइसन काम कराके नरक के भागी बनब हम । बाकि कउनों अइसन उपाय कर देल जाय कि कइसहूँ ई सोझ हो जाय आउ हम्मर मड़ुआ बच जाय । देखी नऽ, चकरी चढ़ावऽ ही, तऽ मकरी टूट जाहे । मकरी ठीक होवऽ हे, तऽ बरहे टूट जाहे । हम तो परेसान-परेसान हो गेली, सरकार ।) (आपखु॰21.20)
304 बरात (= बारात) (संकर के घर के भीतर ओला भाग । समय - पाँच बजे सांझ । बरात लउटे के बाद चउठारी के दिन । संकर कुछ गोसायल बुझा रहल हे ।) (आपखु॰6.1)
305 बरिआर (= बलवान, शक्तिशाली) (बचावे ओलन जीवानु देह में जब कमजोर पड़ जा हथ, रोग फैलावे ओलन ओखनी तब बरिआर हो जा हथ । असर डालऽ हथ तब बुतरून पर, अपंग बनाके छोड़ऽ हथ, रहे न दे हथ कहईं केकरो के, मनोबल सबके तोड़ऽ हथ ॥) (आपखु॰27.29)
306 बलिक (= बल्कि) (अइसन कलाकार आउ साहित लिखे ओला अमदी के पाके खाली हमहीं नऽ धन्य ही, बलिक समाज आउ देसो गौरव महसूस करऽ हे । हम इनखर लमहर जिनगी के कामना करऽ ही ।) (आपखु॰4.10)
307 बसुला-रूखान (तूँ फिनों ई चक्कर में पड़ गेलऽ का बलदेव भाई ? एक्कर ओझा तो बड़ही हथ, जे अप्पन बसुला-रूखान से एकरा ठीक कर देतन ।) (आपखु॰24.11)
308 बहिर (= वधिर; बहरा) (पूछे पर ऊ बतौलक कि सहर-बजार में लौडीसपीकर बजे से आवाज जोर से निकलऽ हे, जे कान के परदा फाड़ सकऽ हे । अमदी के बहिर होवे के डर हे ।) (आपखु॰18.29)
309 बाकि (= बकि; लेकिन) (हमरा साथे एगो बुतरू आउ आयल हल । ओकरा दोकान में रख देल गेल हल । दोकान ओला ओकरा रात-दिन कोल्हुआ बैल जइसन खटावइत हल । ऊ बेमार पड़ गेल आउ इलाज न होवे के चलते मरिओ गेल । बाकि के पूच्छऽ हे ओक्कर बारे में ?) (आपखु॰11.22)
310 बाजी (= बाबूजी) (बड़ी गरीब अमदी ही बाबू । बाजी लचारी में हम्मर पढ़ाई-लिखाई छोड़ा के एगो अमदी साथे काम करे लेल इहाँ भेजलन हल, बाकि इहाँ लाके तो ऊ आउ फाँसी पर लटका देलक ।; घरे बाजी के हाँथ बिलकुले खाली हल । ऊ टकटकी लगौले होतन हमरे तरफ "बबुआ कहिना खरचा भेजऽ हे ?"; हमरो बाजी बेमार हलन भाई । मइआ कइसहूँ गोबर-गोइठा करके दिन गुजार रहल हल । उहाव हमरो असरा जोहाइत होत ।) (आपखु॰10.10; 11.10, 12)
311 बान्हना (= बाँधना) (मंच पर कुछ मजूर पेड़ काटे के नाटक करऽ हथ । कुछ बोझा बान्हइत हथ ।; लीक से हटे के कहऽ हौ भइया ! बाकि हमहुँ तोर लीक पर अब नऽ चल सकऽ हिओ । तूँ ई बात के गिरह बान्ह लऽ ।; हाँ मास्टर साहेब, आझ हम गिरह बान्ह लेलिओ अप्पन जिनगी के काई छोड़ावे ला ।) (आपखु॰16.2; 32.31; 41.5)
312 बामर (= बुकनी, चूरा, धूरा) (ओझा मंतर पढ़के आग में बामर दे हे । रोगी काफी उकल-विकल होके चिल्ला हे ।) (आपखु॰51.6)
313 बारना (= जलाना; दीया ~ = दीपक जलाना) (बार न दीवा के ।) (आपखु॰22.24)
314 बासी-कुसी (ऊ हमरा इहाँ लाके एगो होटल में रखा देलक । उहाँ हम्मर औकात से जादे काम लेल जा हल आउ खाय वखत बच्चल-खुच्चल, बासी-कुसी खाय ला मिलऽ हल । सेहू भर पेट नहिएँ ।) (आपखु॰10.15)
315 बिच्छा (= बिच्छू) (हाँ सरकार ! एकरो जिकिर कैलन हे ऊ । कातो ओकर बाजी अइसहीं जमीन पर सुतल हलन । उनखा बिच्छा मार देलक । रात भर उनखा छटपटइते बितल ।) (आपखु॰13.34)
316 बिजुली (= बिजली) (अरे, हे मुनमा ! नऽ सुनित हें का रे ? मड़ुआ के गाछी बुन देली आउ लगऽ हे, उ पटवे न करत । बिजुली लाईन के ओइसहीं टाना-टानी हे ।) (आपखु॰20.6)
317 बिलटना (अमदी: काहे भाई, तूँ एन्ने-ओन्ने भुचड़ियाल काहे चल रहलऽ हे ? - जातरी: का कहिओ, हम ऐली हे इहाँ पिंडदान करे खातिर । हम्मर साथी बिछड़ गेलन हे । हम एन्ने-ओन्ने बिलटल चल रहली हे ।) (आपखु॰34.6)
318 बिलाना (= गायब होना) (हाँ भाई ! बाकि पइसा जेबी में पहुँच गेला पर कुल घुड़की हवा में बिला गेल ।) (आपखु॰16.24)
319 बीख (= बिख; विष) (लोकइत तो अभिओ हइ काका, बाकि बाबाजी अइसन बीख घोर देलन हे कि दुनियाँ कहीं जाय, उनखर पेट भरइत रहत ।) (आपखु॰7.30)
320 बीहन (बात अइसन हे सरकार कि हम मड़ुआ के बीहन बुन देली सूखल खेत में । अब पटावे ला चाहऽ ही, तऽ पटल न चाहित हे ।) (आपखु॰21.10)
321 बुझउअल (~ बुझाना) (अरे, तूँ बुझउअल मत बुझाओ हमनी के । जे बात हउ, साफ-साफ कह ।) (आपखु॰10.8)
322 बुझाना (हम ढकनियाँ फोरिये नऽ सकियो, काकी ! अबकहीं नउनियाँ भउजी चऊँका पर से अचक्के ठेल देलन, जेकरा चलते हम्मर कमर में दरद बुझा रहल हे ।) (आपखु॰6.4)
323 बुड़बक (= मूर्ख) (ई सभे नुक्कड़ नाटक के हम शुरू से अन्त तक बड़ी धेआन से पढ़ली हे आउ खेलितो देखली हे । मगही के बड़ी असान भासा-सैली में लिक्खल गेल हे, जेकरा बुड़बक से बुड़बक अमदिओ समझ लेत एकरा ।) (आपखु॰2.9)
324 बुढ़ारी (= बुढ़ापा) (हाँ-हाँ, तोरा हरे-फिटकीरी काहे ला रहतो । बुढ़ारी में पालकी पर चढ़े के सौख मेटिए गेलो । होस तो हम्मर न दूरूस हो रहल हे ।; आझ ऊ किताब, अखबार, चिट्ठी-चपाती सभे कुछ पढ़-लिख ले हथ कि न ? ओहो तो बुढ़ारिए में लिखना-पढ़ना सुरू कैलन हल ।) (आपखु॰32.28; 40.36)
325 बुतरू (एगो बुतरू गंजी-पैंट पन्हले सड़क पर भागल जा रहल हे । ओक्कर आगे एगो दोसर बुतरू लपकल जाइत हे ।; एक दिन भट्ठवो पर लोग बतिया रहलन हल कि लचार बुतरून के बहला-फुसला के दलाल लोग बाहर ले जा हथ । एखनी के कमाई पर मौज करऽ हथ दलाल लोग । काहे कि मजुरियो तो कमे देवे पड़ऽ हे ओखनी के ।) (आपखु॰9.2, 3; 11.4)
326 बेइजती (= बेइज्जती) (हरि: ... हमरा बेइजतियो कम न उठावे पड़ल । - मानिक: बेइजती ! - हरि: मामूली बेइजती नऽ, भारी बेइजती । हम तो मन मसोस के रह गेली । खून के घोंट पीके रह जाय पड़ल ।) (आपखु॰56.9, 10, 11)
327 बेकूफ (= बेवकूफ) ('मूँड़-माँड़ के टीका' एगो देहाती कहाउत हे, जेक्कर माने होवऽ हे - बेकूफ बनाके केकरो ठगना आउ तरपन में एकरा में पितरन के तारे खातिर पिंड-दान के पोल खोलल गेल हे ।; तोरा अइसन केतनन बेकूफ जजमान पड़ल हथ । देख नऽ, सीमरा रमेसर किहाँ कलहे सतइसा करावे ला हे ।; परोहित: अब लगऽ हे कि हमनी के भंडा फूट के रहत । जब एकरा अइसन बेकूफ जजमान सोंच-समझ सकऽ हे, तो दोसर के का कहल जाय । कइसन लोल-पोट देके जजमान के इहाँ फँसा-फँसा के लाबऽ हली । अपने तो मनमाना दान-दच्छिना लेवे करऽ हली आउ पंडो जी कमीसन में भरपूर दे दे हलन ।) (आपखु॰2.14; 22.10; 60.34)
328 बेकूफी (= बेवकूफी) (अप्पन बेकूफी के चलते लाभ के बदले घाटा उठा रहली हे ।) (आपखु॰33.11)
329 बेचना-बाचना (हाँ भाई ! लकड़िए बेच-बाच के तो हमनी अप्पन बुतरून के परवरिस करऽ ही ।) (आपखु॰17.15)
330 बेपार, वेपार (= व्यापार) (ई बात जरूर हे कि ओकरा नोकरी न लगल बाकि बेपार के चलते आझ मालदार बन गेलन हे ।; अरे भाई ! ई सब बेबस्था ओही लोग के खनदान ओलन बनौलन हे, जेकरा चलते उहाँ बइठल-बइठल मौज मार रहलन हे, हमनी के मनमाना लूट रहलन हे । अप्पन वेपार में लगल हथ ओखनी ।) (आपखु॰40.18; 58.1)
331 बेबस्था (= व्यवस्था) (अरे भाई ! ई सब बेबस्था ओही लोग के खनदान ओलन बनौलन हे, जेकरा चलते उहाँ बइठल-बइठल मौज मार रहलन हे, हमनी के मनमाना लूट रहलन हे । अप्पन वेपार में लगल हथ ओखनी ।) (आपखु॰57.34)
332 बेमार (= बीमार) (हमरा साथे एगो बुतरू आउ आयल हल । ओकरा दोकान में रख देल गेल हल । दोकान ओला ओकरा रात-दिन कोल्हुआ बैल जइसन खटावइत हल । ऊ बेमार पड़ गेल आउ इलाज न होवे के चलते मरिओ गेल । बाकि के पूच्छऽ हे ओक्कर बारे में ?; मालिक बेमार होके बाबाधाम से लौटलन हल । उनखर गोड़ अइसन थकुचा गेल हल कि टीसन से टाँग के लावे पड़ल हल उनखा ।) (आपखु॰11.22; 55.29)
333 बेमारी (= बीमारी) (आझ अपसन-अइसन इलाज निकल गेल हे कि ओइसन बेमारी कहऊँ सुनहूँ में न आवे । आउ कउनों कारन से होइओ जा हे तऽ दवा-दारू के बल पर कउनों मरवो न करत ।) (आपखु॰27.2)
334 बेरा (दिन भर के भूलल सांझ के घरे चल आवऽ हे, तऽ ओकरा भुलल न कहल जाय । अच्छा चल, अब खाहूँ-पीए के बेरा हो रहल हे ।) (आपखु॰8.11)
335 बेवस्था, वेवस्था (= व्यवस्था) (ई वेवस्था में तो ई सब करहीं पड़तउ ।; एकरा में हम्मर का कसूर हे भाई ? ई सभे तो बेवस्था के नऽ दोस हे ।; बात तो ठीक कहित हऽ जजमान ! हमनी के पुरखन चलाँक हलन, जे ई बेवस्था कायम कैलन जेकर फैदा आझो हमनी उठा रहली हे ।) (आपखु॰7.9)
336 बैमत (= बायमत) (अब एकरा पर बैमत खेलावऽ ही । बिना बैमत खेलौले ई ठीक नहीं होगा ।; केहे तोरा देलथु हे बैमत लाली-लाली डोलिया हे, अहे केहे देलथुन सबुजी भल ओहरवा हे नऽ । केहे तोरा देलथुन हे बैमत बतीसो गहनमा हे, अहे कउनि देलथुन सोलहो सिंगरवा हे नऽ । केहे तोरा देलथुन हे बैमत खोइछा भरल चउरा हे, अहे केहे देलथुन गहन अकवरिया हे नऽ ।) (आपखु॰52.22, 25, 27, 29)
337 बोकराती (~ झाड़ना) (देख मौलबी, जादे एन्ने-ओन्ने कैलें नऽ, तऽ हम तोर नरेटी फोर देवउ, बुझलें ? आझ तक हम ठाकुरजी के केतना जोगा के रखले हली, जिनखा तूँ भरनठ कर के रख देलें आउ ऊपरे से बोकराती झाड़ रहले हें, ऐं ?) (आपखु॰46.32)
338 बोझा (~ बान्हना) (मंच पर कुछ मजूर पेड़ काटे के नाटक करऽ हथ । कुछ बोझा बान्हइत हथ ।) (आपखु॰16.1)
339 बोरना (भाई साहेब, सभे धरम चौपट हो गेल हम्मर । धोवल-धावल भईस कादो में बोर गेल । नरको में तो जगह न मिलत हमरा । आझ एकरा से फरिआइए लेवे दऽ हमरा ।) (आपखु॰47.27)
340 बोलहटा (नेमन ठाकुर कथा सुने के बोलहटा देइत चल रहलन हे ।; सिनाथ बाबू किहाँ कथा सुने के बोलहटा हे, सरकार !; ससि: लगलऽ न अकबकाए जाय ला ? - नेमन: बोलहटा देवे के बादो तो उहाँ केतनन काम करे के हे ।; तूँ तो घरे-घरे कथा सुने के बोलहटा देइते चलित हऽ । कथा सुने जैवे करतन लोग ् बाकि तोरा समझ में आवऽ हो न कि ओकरा में एको बात सच न हे ।) (आपखु॰42.2, 6; 43.6; 44.33)
341 भकचोन्हर (= भकचोंधर; मूर्ख, अज्ञानी) (परोहित: मर भकचोन्हर कहीं के, घबराउँ न तऽ का ? तोरा अइसन केतनन बेकूफ जजमान पड़ल हथ । देख नऽ, सीमरा रमेसर किहाँ कलहे सतइसा करावे ला हे ।; महराज तइहन ! उलटे हमरे भकचोन्हर बना रहलऽ हे । सब चौपट करके रख देलऽ आउ अब उल्टा-सीधा बतिया रहलऽ हे ।) (आपखु॰22.10; 59.20)
342 भगमान (= भगवान) (हाँ, काका ! राते हमरा किहाँ सतनरायन भगमान के पूजा न हलो ।काकी जइते कह देलन हल कि पूजा में तोरे सहे पड़तउ संकर । उनखर बात उठौती हल कइसे ? दिन भर पानियों न पीली ।) (आपखु॰7.6)
343 भच्चर-भच्चर (तूँ बीच में भच्चर-भच्चर काहे ला करे लगलें, ऐं ? सभे बेकूफे हथिन का, तूहीं एगो बड़ी अक्किल ओला बनले हें न ? ई नासतिक के फेरा में तूँ कइसे पड़ गेलऽ जजमान ?) (आपखु॰36.21)
344 भरनठ (पुजेरी: अरे-अरे, ई का ? देखऽ तो ई मौलबी हम्मर ठाकुरजी के बरनठ कर देलक । - मौलबी: हम तोर ठाकुर के भरनठ कर देलिअउ कि तूहीं हम्मर नमाज के नपाक कर देलें पंडित ?) (आपखु॰46.16, 17)
345 भाँग (जर के ~ होना) (अटकोर-मटकोर, मड़वा-भतवान, घीढ़ारी, अठौंगरा आउ अइसने-अइसन नेग-दस्तूर के झमेला में महिनों बीत गेल, जेकरा चलते गेहूँ जर के भाँग हो गेल, खाली भूँस्से तो हाँथ लगल सरकार ।) (आपखु॰22.2)
346 भाड़ा-उड़ा (अच्छा, तोनी जरा ई तो बतावऽ । निकल तो गेलऽ चंगुल से, बाकि घरे जैवऽ कइसे ? काहे कि भाड़ा-उड़ा ला पइसा-कउड़ी तो होवे न करतो ।) (आपखु॰11.30)
347 भिजुन (= बिजुन; पास) (देखावे के टैमे न हे हमरा भिजुन ।) (आपखु॰34.15)
348 भीरी (= भीर; पास, नजदीक) (अमदी: {भीरी आके} काहे भाई ? तोहनी अप्पन गरदन पर कुल्हाड़ी काहे चला रहलऽ हे ? - मजूर 1: बात का हे ? अबकहीं तो सिपाही जी अप्पन जेबी गरम करके गेलन हे । तोरो चाही का कुछ ?) (आपखु॰16.30)
349 भुचड़ियाना (अमदी: काहे भाई, तूँ एन्ने-ओन्ने भुचड़ियाल काहे चल रहलऽ हे ? - जातरी: का कहिओ, हम ऐली हे इहाँ पिंडदान करे खातिर । हम्मर साथी बिछड़ गेलन हे । हम एन्ने-ओन्ने बिलटल चल रहली हे ।) (आपखु॰34.4)
350 मँगनी (हमनी के कमाई में उनखरो हिस्सा न होवऽ हइ, भाई ! उ मँगनी थोड़े लेलन ।; मँगनी लेलन न तऽ आउ का ? ओखनिएँ के बनावल वेवस्था से तो हमनी पेरा रहली हे आउ ओखनी बिना कमैले-धमैले चैन के बंसी बजा रहलन हे ।) (आपखु॰32.17, 19)
351 मँहगी (= महँगाई) (सिपाही: जब अइसन बात हे तऽ निकाल टेंट से पुरकस रकम । किफायत से काम चले के न हे । देखइत हें कि नऽ ? मँहगी केतना बढ़ रहल हे ।) (आपखु॰16.18)
352 मइआ (= मइया; माँ) (हमरो बाजी बेमार हलन भाई । मइआ कइसहूँ गोबर-गोइठा करके दिन गुजार रहल हल । उहाव हमरो असरा जोहाइत होत ।) (आपखु॰11.12)
353 मइया (बुतरू: अँखिया देखा दऽ, बाजी! {रो के} अरे बाप रे बाप ! अगे मइया गे !; बाजी, कन्ने गेलइ मइया ?) (आपखु॰35.24; 49.5)
354 मउरी (गोड़ लागे ला जइसहीं झुकली, खूटिया से मथवे टकरा गेल । अँखिया तो मउरिया से झँकायल हल । खैर मनावऽ कि हम्मर आँख बच गेल, न तो एक बैटरी साफे हल ।) (आपखु॰6.32)
355 मकरी (परोहित: तऽ हम एकरा में का करी बलदेव ? लठवो हमरे सोझ करे का कहऽ हें रे मरदे ? - बलदेव: न, सरकार ! अपने से अइसन काम कराके नरक के भागी बनब हम । बाकि कउनों अइसन उपाय कर देल जाय कि कइसहूँ ई सोझ हो जाय आउ हम्मर मड़ुआ बच जाय । देखी नऽ, चकरी चढ़ावऽ ही, तऽ मकरी टूट जाहे । मकरी ठीक होवऽ हे, तऽ बरहे टूट जाहे । हम तो परेसान-परेसान हो गेली, सरकार ।) (आपखु॰21.19, 20)
356 मजूर (मंच पर कुछ मजूर पेड़ काटे के नाटक करऽ हथ । कुछ बोझा बान्हइत हथ ।) (आपखु॰16.1)
357 मजूरी (= मजदूरी) (हमरो अइँटा के भट्ठा पर काम मिलल हल ।दू के जगह पर चार अईंटा लाद दे जा हल हमरा पर । पूरा मजूरी कहाँ तक मिलत, खाहूँ-पीए में कोताहिए बरतल जा हल ।; एक दिन भट्ठवो पर लोग बतिया रहलन हल कि लचार बुतरून के बहला-फुसला के दलाल लोग बाहर ले जा हथ । एखनी के कमाई पर मौज करऽ हथ दलाल लोग । काहे कि मजुरियो तो कमे देवे पड़ऽ हे ओखनी के ।) (आपखु॰10.22; 11.6)
358 मटेरना (अरे, हे रे ! तोरा सुनाइए न पड़ित हउ कि सुनियो के मटेरले हें । बड़ा डेहंडल हो गेल हे ससुरा के नाती । ओक्कर मइओ तो थेथरे हो गेल हे ।) (आपखु॰20.10)
359 मड़वा-भतवान (परोहित: काहे हो ! रब्बी न उपजलउ हे का ? कुरिया देवे गुने बहाना मार रहले हें का रे मरदे ? - बलदेव: न सरकार ! अइसन बात न हे । असल बात हे कि ई साल माँई {बेटी} के सादी में फँस गेली हम । से तो अपने जानइते ही सब बात । अटकोर-मटकोर, मड़वा-भतवान, घीढ़ारी, अठौंगरा आउ अइसने-अइसन नेग-दस्तूर के झमेला में महिनों बीत गेल, जेकरा चलते गेहूँ जर के भाँग हो गेल, खाली भूँस्से तो हाँथ लगल सरकार । अभिओ अगर लाठा-कुँड़ी सोझ हो जाय तऽ मड़ुआ-मकई उपजा के बाल-बुतरून के पाली-पोसी ।) (आपखु॰22.1)
360 मड़वा-मड़ई (उहाँ तो सभे समान किराया पर मिलऽ हे, सादी करे लेल जगह किराया पर, ठहरे लागि मकान किराया पर, मड़वा-मड़ई किराया पर, इहाँ तक कि गीतहारिनों किराये पर ।) (आपखु॰56.15)
361 मनाना-दनाना (का भेलउ बाबू ? हम्मर तो औसाने तेरह हो गेल बप ? अच्छा ठहर जरा । हम गोरइया बाबा के पीड़ी से माटी ले आवऽ ही मना-दना के ।) (आपखु॰49.11)
362 मनि (ढेर ~) (आझ पेड़-कटाई से परेयावरन बिगड़ गेल हे, परदूसन बढ़ रहल हे । एहे खातिर ढेर मनि पेंड़ लगावे ला 'संकलप' लेल गेल हे ।) (आपखु॰2.31)
363 मर (= धत् !) (मर भकचोन्हर कहीं के, घबराउँ न तऽ का ? तोरा अइसन केतनन बेकूफ जजमान पड़ल हथ । देख नऽ, सीमरा रमेसर किहाँ कलहे सतइसा करावे ला हे ।; मर भकचोन्हर कहीं के, देरी कर रहले हैं अपने आउ दोस दे रहले हें हमरा । जल्दी लाओ नऽ आरती करे के सब समान ।) (आपखु॰22.10, 19)
364 मरदे (काहे रामधन, तूँ रोवे काहे लगलें हो ? हमरा अधरतिया में काहे ला बोलौले हें रे मरदे ? पहिले ई बताओ । अरे, कल्ह तो सराध करावे ला टैम पर पहुँचवे करती हल ।; तूँ फिन रोवे लगलें हो । चुप रह न रे मरदे । बतिया कह नऽ भाई पहिले ।) (आपखु॰13.17; 14.18)
365 मरना-ओरियाना (सतनरायन के कथा में एगो परसंग आयल हे ध्वज तुंगभद्र राजा के, जे गोवाल-बाल किहाँ पूजा के अवहेलना कैलन, पूजा के परसादी नऽ खैलन । जब ऊ अप्पन घर ऐलन तऽ देखऽ हथ, उनखर महल-अँटारी ढह-ढनमना गेल । गाय-भईंस, हाँथी-घोड़ा सभे मर-ओरिया गेल । सुनलऽ हे कि न ई खिस्सा ?) (आपखु॰45.7)
366 मर-मजूरी (हाँ भाई ! अब घरहीं पर मर-मजूरी करके परिवार में रहब । समय निकाल के पढ़वो-लिखवो करब । न पढ़े के चलते न दर-दर के ठोकर खा रहली हे, मारल चलइत ही एन्ने-ओन्ने ।) (आपखु॰12.6)
367 मलकिनी (= पत्नी) (तऽ खाली तूहीं हऽ आउ तोहर मलकिनी ?; जब तोरा जाहीं के हे, तऽ एकरा में देरी करे के कउन काम । धर लऽ अप्पन टीसन के राह । मलकिनी तोहर राह देखित होथुन ।) (आपखु॰62.26; 63.19)
368 महमारी (= महामारी) (पहिले के लोग महमारी फैले के कारन देवी-देओता के परकोप मानऽ हलन । लोग अंधविसवास में पड़के असली बात के न समझ पावऽ हलन ।) (आपखु॰26.19)
369 महराज (~ तईहन !; ~ तहिन !; ~ तइहन !; {बिहारशरीफ के मगही में - "महरज", जैसे - "महरज तहिने !", "हइ महरज तहिने !", "महरज तहिकन !"}) (परोहित: मर भकचोन्हर कहीं के, घबराउँ न तऽ का ? तोरा अइसन केतनन बेकूफ जजमान पड़ल हथ । देख नऽ, सीमरा रमेसर किहाँ कलहे सतइसा करावे ला हे । - बलदेव: महराज तईहन ! तऽ हमरा किहाँ फोकट में काम करा देवऽ का ? काम होवे के पते नऽ हे आउ पहिलहीं मनचाहा दछिना गछा लेलन हमरा से ।; तूँ जाय देवऽ कि न जी, कि बाते में बझौले रहवऽ महराज तहिन ।; महराज तइहन ! उलटे हमरे भकचोन्हर बना रहलऽ हे । सब चौपट करके रख देलऽ आउ अब उल्टा-सीधा बतिया रहलऽ हे ।; अंधविसवासे नऽ महराज, अन्धरजाल हवऽ, अन्धरजाल ! एहे चक्कर में डाल के तोहनी हम सब के भरमौले चलित हऽ आउ मनमाना लूट मचौले हऽ । धरम के माने उलटा-सीधा समझा-बुझा के हलुआ-पूड़ी चाभ रहलऽ हे ।) (आपखु॰22.13; 35.10; 59.20; 60.23)
370 महौल (= माहौल) (हाँ भाई, आझ एहे महौल सगरे पसरल हे । केकरा पर का बितत, के कखनी मरा जायत, कउनो के पते न चल रहल हे ।; आझ गाँओं के महौल बिलकुले गड़बड़ा गेल हे, विखा गेल हे । एगो के राओं-भाओं दोसरा के सहाइते नऽ हे ।; बात कउनों छिपल थोड़े हे मुखिया जी । देखिए रहली हे, आझ गाँओं के सोन्हई खतम हो रहल हे आउ बदबू अप्पन धाक जमौले चलल जाइत हे । सभे जगह घिरना के महौल कायम हो गेल हे ।; गलत थोड़े लिखलन हे राहुल जी । अब तो अप्पन सभे गलती के भुलाके नीमन महौल कायम करे के हे । अप्पन बोली बेओहार में बदलाऔ लावे के हे ।) (आपखु॰62.9, 28; 64.10, 16)
371 माँई, माई (= बेटी) (परोहित: काहे हो ! रब्बी न उपजलउ हे का ? कुरिया देवे गुने बहाना मार रहले हें का रे मरदे ? - बलदेव: न सरकार ! अइसन बात न हे । असल बात हे कि ई साल माँई {बेटी} के सादी में फँस गेली हम । से तो अपने जानइते ही सब बात । अटकोर-मटकोर, मड़वा-भतवान, घीढ़ारी, अठौंगरा आउ अइसने-अइसन नेग-दस्तूर के झमेला में महिनों बीत गेल, जेकरा चलते गेहूँ जर के भाँग हो गेल, खाली भूँस्से तो हाँथ लगल सरकार । अभिओ अगर लाठा-कुँड़ी सोझ हो जाय तऽ मड़ुआ-मकई उपजा के बाल-बुतरून के पाली-पोसी ।; अभी इन्तजाम करे जा रहली हे मालिक ! देखूँ कल्ह हमरा किहाँ कुटुम्म आवे ओला हथ माइ के सादी तय करे ला । हम्मर हाथ में एक्को पइसा न हे ।) (आपखु॰21.34; 29.32)
372 मान-मरजदा (= मान-मर्यादा) (हरिहर केतन दुःख झेल के अप्पन बुतरू के पढ़ौलन । ओकरे बदौलत आझ उनखर बेटा औफिसर बन गेल हे जेकरा चलते हरिहरो भाई के मान-मरजदा बढ़ गेल हे ।) (आपखु॰40.4)
373 मारल (~ चलना; ~ बुलना) (हाँ भाई ! अब घरहीं पर मर-मजूरी करके परिवार में रहब । समय निकाल के पढ़वो-लिखवो करब । न पढ़े के चलते न दर-दर के ठोकर खा रहली हे, मारल चलइत ही एन्ने-ओन्ने ।) (आपखु॰12.8)
374 मूनना (= मूँदना, बंद करना) (बात अइसन हे काका कि पहिले खोजहुँ पर पढ़ल-लिखल अमदी न मिलऽ हलन । सभे कउनों बिना समझले-बूझले आँख मून के केकरो कहल पर विसवास कर ले हलन ।) (आपखु॰26.15)
375 मोटरी-गेठरी (रामनाथ मोटरी-गेठरी लेके चल जा हथ ।; कुछ देरी बाद मोटरी-गेठरी टाँगले एगो अमदी देखाई पड़ऽ हे ।) (आपखु॰61.12; 62.3)
376 रंथी (तोहनी सुनवे कैलऽ होत कि उ वखत देवी मइआ के रंथी गाँओ-गाँओ में घूमऽ हल, जेकरा में पंथवारी रहऽ हलन आउ साथे भारी लाओ-लसकर रहऽ हल । ओखनी जहाँ चाह ले हलन, महमारी फैला दे हलन ।) (आपखु॰26.22)
377 रंथी-पंथवारी (आउ आझ ? कहाँ चल गेल देवी-देओता आउ उनखर रंथी-पंथवारी ? उ सभे आझ काहे न महमारी उठा रहलन हे, गाँओं के गाँओं काहे न उजाड़ कर रहलन हे ?) (आपखु॰26.34)
378 रहस (= रहस्य) (राजेन्द्र प्रसाद सिंह, रामलखन प्रसाद सिन्हा आउ शिव प्रसाद सिंह जइसन सफल कलाकार, लेखक आउ रंगकर्मी से मिलना कम रहस से भरल बात नऽ हे, जेखनि से आगे बढ़े में हमरा भरपूर मदद मिलल ।) (आपखु॰1.9)
379 राओं-भाओं (आझ गाँओं के महौल बिलकुले गड़बड़ा गेल हे, विखा गेल हे । एगो के राओं-भाओं दोसरा के सहाइते नऽ हे ।) (आपखु॰62.29)
380 राय-मसविरा (हरिहर चचा के तो दिने फिर गेल । जिनखा से ई राय ले हलन आझ ओखनी इनखे से राय-मसविरा लेवे आवऽ हथ ।) (आपखु॰40.8)
381 रिरिआना (जान न मारऽ हे बाकि जिनगी भर रिरिआवऽ हे । हे अइसन ई रोग कि सब दिन रोगिअन के घिसिआवऽ हे ॥) (आपखु॰27.20)
382 रेहट (दउनी में बैल के गोड़ अइसने खिआ गेल हे कि ओखनी रेहट में चलवे नऽ करतन । अब बुझा रहल हे कि बिना लाठा-कुँड़ी सोझ करले गुजरे न होवे के हे ।) (आपखु॰20.7)
383 रोग-बलाय (परोहित जी आउ ओझा जी के बात सुनवे कैले हें । ओखनी सभे साफ-साफ कहलन कि जाके तरपन कर दीहऽ, सभे रोग-बलाय भाग जैतो तोर ।) (आपखु॰34.26)
384 लउकना (दे॰ लोकना) (अभी सब के आँख पर पट्टी न लगल हे हो, जब ई पट्टी खुल जायत तऽ सभे कउनों के लउके लगत ।) (आपखु॰7.29)
385 लचार (= लाचार) (एक दिन भट्ठवो पर लोग बतिया रहलन हल कि लचार बुतरून के बहला-फुसला के दलाल लोग बाहर ले जा हथ । एखनी के कमाई पर मौज करऽ हथ दलाल लोग । काहे कि मजुरियो तो कमे देवे पड़ऽ हे ओखनी के ।; हाँ भाई ! कुटुम्म दहेज में खूब पइसा अइँठ लेलन आउ सादी बाबाधाम करे पर अड़ गेलन । हम तो लचार हली । करती का हल ? सभे समान लेके बाबाधाम पहुँचली । बाकि उहाँ के विआह हमरा काफी झंझटाह आउ महँगा बुझायल ।) (आपखु॰11.4; 56.7)
386 लचारी (= लाचारी) (बड़ी गरीब अमदी ही बाबू । बाजी लचारी में हम्मर पढ़ाई-लिखाई छोड़ा के एगो अमदी साथे काम करे लेल इहाँ भेजलन हल, बाकि इहाँ लाके तो ऊ आउ फाँसी पर लटका देलक ।) (आपखु॰10.10)
387 लपकना (एगो बुतरू गंजी-पैंट पन्हले सड़क पर भागल जा रहल हे । ओक्कर आगे एगो दोसर बुतरू लपकल जाइत हे ।) (आपखु॰9.3)
388 लमहर (अइसन कलाकार आउ साहित लिखे ओला अमदी के पाके खाली हमहीं नऽ धन्य ही, बलिक समाज आउ देसो गौरव महसूस करऽ हे । हम इनखर लमहर जिनगी के कामना करऽ ही ।) (आपखु॰4.10)
389 लहास (= लाश) (ओझा: ... हम असल ओझा होवेगा तो तोहनी सभे के ठीक करके रहेगा । हम उठा देता है हैजा इस गाँओं में । जब लहास पर लहास उठेगा तब पता चलेगा बुधराम ओझा में कैसा गुन है ।) (आपखु॰54.23)
390 ला (= लगि, लागि, लागी; लिए) (गोड़ लागे ला जइसहीं झुकली, खूटिया से मथवे टकरा गेल । अँखिया तो मउरिया से झँकायल हल । खैर मनावऽ कि हम्मर आँख बच गेल, न तो एक बैटरी साफे हल ।) (आपखु॰6.31)
391 लाओ-लसकर (तोहनी सुनवे कैलऽ होत कि उ वखत देवी मइआ के रंथी गाँओ-गाँओ में घूमऽ हल, जेकरा में पंथवारी रहऽ हलन आउ साथे भारी लाओ-लसकर रहऽ हल । ओखनी जहाँ चाह ले हलन, महमारी फैला दे हलन ।) (आपखु॰26.23)
392 लाठा-कुँड़ी (दउनी में बैल के गोड़ अइसने खिआ गेल हे कि ओखनी रेहट में चलवे नऽ करतन । अब बुझा रहल हे कि बिना लाठा-कुँड़ी सोझ करले गुजरे न होवे के हे ।; ओक्कर मइओ तो थेथरे हो गेल हे । सुनित हें, मुनमा के जरा जल्दीये भेज दीहें आउ हाँ, तूहूँ नस्ता-पानी लेके फुरतीये चल अइहें । हम बढका अहरी जा रहलिअउ हे लाठा-कुँड़ी लेके ।) (आपखु॰20.8, 13)
393 लूर (= बुद्धि, अक्ल) (वासुदेव भाई 'सादा जीवन ऊँच्च विचार' के जीता-जागता परतिमूरति हथ । इनखर तनि गो देह में बड़का गो लूर आउ विचार हे ।) (आपखु॰3.5)
394 लूर-अक्किल ('मूँड़-माँड़ के टीका' एगो देहाती कहाउत हे, जेक्कर माने होवऽ हे - बेकूफ बनाके के केकरो ठगना आउ तरपन में एकरा में पितरन के तारे खातिर पिंड-दान के पोल खोलल गेल हे । साथे-साथ सरग-नरक, भाग-भगमान, देवी-देओता, अंधविसवास के परदाफासो कैल गेल हे आउ लूर-अक्किल, बुद्धि-विवेक से काम लेवे पर जोर देल गेल हे ।) (आपखु॰2.17)
395 लेल (= ला, लगि, लगी, लागि; के लिए) (अरण्यदेव भाई सिन्हा जी हमरा बराबर लिखे-पढ़े लेल उसकावित रहऽ हलन ।) (आपखु॰1.3)
396 लोकना (= दिखना) (हाँ काका, हम तोहर बात नऽ मानली से भोग लेली आउ अब ओखनियों के लोक रहलइन हे ।; लोकइत तो अभिओ हइ काका, बाकि बाबाजी अइसन बीख घोर देलन हे कि दुनियाँ कहीं जाय, उनखर पेट भरइत रहत ।) (आपखु॰7.27, 30)
397 लोल-पोट (परोहित: अब लगऽ हे कि हमनी के भंडा फूट के रहत । जब एकरा अइसन बेकूफ जजमान सोंच-समझ सकऽ हे, तो दोसर के का कहल जाय । कइसन लोल-पोट देके जजमान के इहाँ फँसा-फँसा के लाबऽ हली । अपने तो मनमाना दान-दच्छिना लेवे करऽ हली आउ पंडो जी कमीसन में भरपूर दे दे हलन ।) (आपखु॰60.35)
398 लौडीसपीकर (= लाउड-स्पीकर) (पूछे पर ऊ बतौलक कि सहर-बजार में लौडीसपीकर बजे से आवाज जोर से निकलऽ हे, जे कान के परदा फाड़ सकऽ हे । अमदी के बहिर होवे के डर हे ।) (आपखु॰18.28)
399 वखत (= बखत; वक्त, समय) ('करमकांड के भंडा फूटल' में मरे के बाद सराध करे वखत करमकांड - जइसे सेजियादान, गऊ दान आदि के ढोंग-ढकोसला पर चोट कर के ओकर भंडा फोड़ल गेल हे ।; ऊ हमरा इहाँ लाके एगो होटल में रखा देलक । उहाँ हम्मर औकात से जादे काम लेल जा हल आउ खाय वखत बच्चल-खुच्चल, बासी-कुसी खाय ला मिलऽ हल । सेहू भर पेट नहिएँ ।) (आपखु॰2.28; 10.15)
400 विआह, बिआह (= विवाह) (हाँ भाई ! कुटुम्म दहेज में खूब पइसा अइँठ लेलन आउ सादी बाबाधाम करे पर अड़ गेलन । हम तो लचार हली । करती का हल ? सभे समान लेके बाबाधाम पहुँचली । बाकि उहाँ के विआह हमरा काफी झंझटाह आउ महँगा बुझायल ।) (आपखु॰56.8)
401 विखाना (आझ गाँओं के महौल बिलकुले गड़बड़ा गेल हे, विखा गेल हे । एगो के राओं-भाओं दोसरा के सहाइते नऽ हे ।) (आपखु॰62.29)
402 वेपारी, बेपारी (= व्यापारी) (तोरो कहल ठीके हे । बाकि उहाँ तो अइसन वेपारी बइठल हथ जे बिना पूँजी-पगहा लगौले पइसा पीट रहलन हे ।; हमनी अपने आप उहाँ जाके लुटा जाही आउ होसियार वेपारी के पौ बारह रहऽ हे ।) (आपखु॰58.7, 19)
403 सगरे (= सगरो; सर्वत्र, सभी जगह) (सगरे तो खोज के हार गेली । धरती में समा गेलन आझ का ?) (आपखु॰31.2)
404 सगरो (माथा तो सभे के हे बाकि सब के माथा सगरो काम न करे काका । रामकिरीत भाई ठीक कह रहलन हे ।) (आपखु॰25.31)
405 सतइसा (तोरा अइसन केतनन बेकूफ जजमान पड़ल हथ । देख नऽ, सीमरा रमेसर किहाँ कलहे सतइसा करावे ला हे ।) (आपखु॰22.11)
406 सनेस (= सन्देश) ('चक्कर नासमझी के' आउ 'बुझइत दीआ बर गेल' में नाटककार ओझा-डइया, भूत-परेत, टोटका, झाड़-फूँक, चमतकार के बकवास, झूठा आउ फरेबिअन के दिमागी उपज बता के एकरा से होसियार रहे ला सनेस देलन हे ।; आझ से हमनी आपस में मेल-जोल बढ़ावे के सनेस सभे कउनों के देम ।) (आपखु॰2.21; 48.9)
407 सफील (ई जगह ठीक हे, साफ-सुथरा, नमाज पढ़े लायक । अइसने सफील जगह हम खोजिओ रहली हल ।) (आपखु॰46.10)
408 समांग (हम्मर माथा में एक्को बात अँटिए नऽ रहल हे । हम्मर समांगो तो अइसने बिगड़ल हथ । देखऽ तो पता हे केकरो ? {जोर से पुकार के} अरे, मुनमा ... । तोरा कुछ फिकिर न हउ रे ?; अब हम बजार न जायब । पहिले अप्पन समांगे से निपट ले ही । उ सभे के का हे ? जे बीत रहल हे, से हमरा पर नऽ । ऊ वखत तो लगऽ हल ओखनी के गोड़ असमान में हल ।) (आपखु॰20.28; 30.30)
409 समान (= सामान) (हाँ भाई ! कुटुम्म दहेज में खूब पइसा अइँठ लेलन आउ सादी बाबाधाम करे पर अड़ गेलन । हम तो लचार हली । करती का हल ? सभे समान लेके बाबाधाम पहुँचली । बाकि उहाँ के विआह हमरा काफी झंझटाह आउ महँगा बुझायल ।; उहाँ तो सभे समान किराया पर मिलऽ हे, सादी करे लेल जगह किराया पर, ठहरे लागि मकान किराया पर, मड़वा-मड़ई किराया पर, इहाँ तक कि गीतहारिनों किराये पर ।) (आपखु॰56.7, 14)
410 सरकार (= ब्राह्मण या पुरोहित के लिए प्रयुक्त सम्बोधन शब्द) (परोहित: ... दसमा के दिन कंटाह बाबा के दान में मिलल समान से उनखा तो फैदा होइए रहल होत । - रामधन: हाँ सरकार ! ई बात कहलन हे हमरा से । जउन समान के कंटाह बाबा इहाँ काम में लावऽ हथ, ऊ सब बाबूजी के उहाँ पइठ हो जाहे ।; हाँ सरकार ! एकरो जिकिर कैलन हे ऊ । कातो ओकर बाजी अइसहीं जमीन पर सुतल हलन । उनखा बिच्छा मार देलक । रात भर उनखा छटपटइते बितल ।; पूड़ी उनखर कंठ में अटकियो गेल हल सरकार ! ऊ बड़ी अकबक में हो गेलन हल कातो ।) (आपखु॰13.29, 34; 14.6)
411 सराध (= श्राद्ध) (काहे रामधन, तूँ रोवे काहे लगलें हो ? हमरा अधरतिया में काहे ला बोलौले हें रे मरदे ? पहिले ई बताओ । अरे, कल्ह तो सराध करावे ला टैम पर पहुँचवे करती हल ।) (आपखु॰13.17)
412 ससुरा (~ के नाती) (अरे, हे रे ! तोरा सुनाइए न पड़ित हउ कि सुनियो के मटेरले हें । बड़ा डेहंडल हो गेल हे ससुरा के नाती । ओक्कर मइओ तो थेथरे हो गेल हे ।) (आपखु॰20.10)
413 सहना (= उपवास करना) (हाँ, काका ! राते हमरा किहाँ सतनरायन भगमान के पूजा न हलो ।काकी जइते कह देलन हल कि पूजा में तोरे सहे पड़तउ संकर । उनखर बात उठौती हल कइसे ? दिन भर पानियों न पीली ।) (आपखु॰7.7)
414 साइत (= शायद) (देखऽ काका ! पहिले तोहनी पढ़ल-लिक्खल बहुत कम हलऽ । साइते कउनों पढ़ल-लिखल मिलऽ हलन तोहर समाज में । सादा-सादी कपड़ा पहनले रहऽ हलन । केतनन तो उघारे-पघारे रह के जिनगी गुजार ले हलन ।) (आपखु॰42.22)
415 साहित (= साहित्य) (लइकाइए से हम्मर झुकाओ साहित तरफ हल ।) (आपखु॰1.1)
416 सिनाथ (~ बाबू = शिवनाथ बाबू) (सिनाथ बाबू किहाँ कथा सुने के बोलहटा हे, सरकार !) (आपखु॰42.6)
417 सिलेट-पिलसीट (= स्लेट-पेंसिल) (कल्ह से तो बबुन इसकूल जैवे करतो । बाकि तूहूँ सिलेट-पिलसीट लेके रात ओला इसकूल में पढ़े जा ।) (आपखु॰41.3)
418 सीक (= सींक, छोलनी) (कहमाँ उपजइ दीदी सिकिया बढ़नियाँ, अहे कहमाँ उपजइ दउदी गेहुमाँ हे नऽ ?) (आपखु॰50.26)
419 सीजदा (मौलबी साहेब नमाज पढ़े के दौरान सीजदा करऽ हथ । इनखर मुँह पच्छिम तरफ हे, पुजेरी पूरब तरफ मुँह कर के चंदन घीसे में लीन हथ ।) (आपखु॰46.11)
420 सेजियादान ('करमकांड के भंडा फूटल' में मरे के बाद सराध करे वखत करमकांड - जइसे सेजियादान, गऊ दान आदि के ढोंग-ढकोसला पर चोट कर के ओकर भंडा फोड़ल गेल हे ।) (आपखु॰2.28)
421 सेली-सोंटा (नऽ भाई, हम्मर नन्हका तो कुछ दिन पहिलहीं पटना चल गेल हे, अप्पन परिवार के लेके आउ उहईं कमा-खा रहल हे । आझ हमनियों दुननों बेकत सेली-सोंटा लेके उहईं जा रहली हे ।) (आपखु॰62.21)
422 सोझ (दउनी में बैल के गोड़ अइसने खिआ गेल हे कि ओखनी रेहट में चलवे नऽ करतन । अब बुझा रहल हे कि बिना लाठा-कुँड़ी सोझ करले गुजरे न होवे के हे ।; तऽ हम एकरा में का करी बलदेव ? लठवो हमरे सोझ करे का कहऽ हें रे मरदे ?) (आपखु॰20.8; 21.15)
423 सोन्हई (बात कउनों छिपल थोड़े हे मुखिया जी । देखिए रहली हे, आझ गाँओं के सोन्हई खतम हो रहल हे आउ बदबू अप्पन धाक जमौले चलल जाइत हे । सभे जगह घिरना के महौल कायम हो गेल हे ।) (आपखु॰64.9)
424 सौख (= शौक) (हाँ-हाँ, तोरा हरे-फिटकीरी काहे ला रहतो । बुढ़ारी में पालकी पर चढ़े के सौख मेटिए गेलो । होस तो हम्मर न दूरूस हो रहल हे ।) (आपखु॰32.28)
425 हँसुली (काकी गरदनियाँ में जे हँसुली पेन्हा देलन हल, ओकरा में पलकिया के फुदनमें घूँस गेलो आउ गलवे कसा गेलो । हम्मर तो पराने उकल-विकल होवे लगलो आउ लगलियो गरगराय । ऊ घड़ी पहुना फुदना काट के न निकालतन हल, तऽ हम साफे हली ।) (आपखु॰6.23)
426 हमनी (= हमन्हीं) (अरे, तूँ बुझउअल मत बुझाओ हमनी के । जे बात हउ, साफ-साफ कह ।; हाँ-हाँ, साफे कहे पर न पता चलत हमनी के ।; हमनी के कमाई पर बड़ी मौज कैलऽ हे तोहनी ।) (आपखु॰10.8, 9; 15.20)
427 हमरा (अरण्यदेव भाई {सिन्हा जी} हमरा बराबर लिखे-पढ़े लेल उसकावित रहऽ हलन ।; हमरा साथे एगो बुतरू आउ आयल हल । ओकरा दोकान में रख देल गेल हल । दोकान ओला ओकरा रात-दिन कोल्हुआ बैल जइसन खटावइत हल । ऊ बेमार पड़ गेल आउ इलाज न होवे के चलते मरिओ गेल । बाकि के पूच्छऽ हे ओक्कर बारे में ?) (आपखु॰1.3; 11.20)
428 हम्मर (लइकाइए से हम्मर झुकाओ साहित तरफ हल ।) (आपखु॰1.1)
429 हर-हमेसे (एखनि भेटैला दिन से हर-हमेसे साहित लिखे ला हम्मर धेआन दिआवित रहलन हे ।) (आपखु॰1.15)
430 हरान (तूहूँ आ गेलऽ रामधनी जी ! बाकि लगऽ हो तोरा हराने होवे पड़तो । देखऽ न, खेत केवाला कर देली गरज में । खालीक मियाँ रुपिया देवे में आझ-कल करित हथ । तोहर बाजा के बजाई बाकी थोड़े रहत । जइसहीं इन्तेजाम हो जायत, ले जइहऽ आके ।) (आपखु॰29.15)
431 हरिजन-बड़जन (केतना मिल्लत हल ऊ वखत अपना में । हिन्दू-मुसलमान, सिख-इसाई में भेद-भाओ न लोकऽ हल । ऊ वखत अगड़ा-पिछड़ा, हरिजन-बड़जन के सवाल पैदा न भेल हल ।) (आपखु॰62.34)
432 हरे-फिटकीरी (तोरा बरदास न हउ नऽ, तऽ तोरा जे बुझाउ से तूँ कर । एकरा में हमरा हरे-फिटकीरी न हे ।; हाँ-हाँ, तोरा हरे-फिटकीरी काहे ला रहतो । बुढ़ारी में पालकी पर चढ़े के सौख मेटिए गेलो । होस तो हम्मर न दुरूस हो रहल हे ।) (आपखु॰32.26, 27)
433 हलुआ-पूड़ी (अंधविसवासे नऽ महराज, अन्धरजाल हवऽ, अन्धरजाल ! एहे चक्कर में डाल के तोहनी हम सब के भरमौले चलित हऽ आउ मनमाना लूट मचौले हऽ । धरम के माने उलटा-सीधा समझा-बुझा के हलुआ-पूड़ी चाभ रहलऽ हे ।) (आपखु॰60.25)
434 हिंस्सा (= हिस्सा) (मजूर 2: जब तोहरो लेवहीं के हे, तऽ लेइए लऽ अप्पन हिंस्सा । - अमदी: हिस्सा ! कइसन हिंस्सा ?) (आपखु॰17.1, 2)
435 हुरकुचना (मुद्रिका सिंह, जे अब हम्मर समधियो हथ, किताब छपावे लेल हमरा कम नऽ हुरकुचलन हे ।) (आपखु॰1.7)
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