फूसु॰ = "फूलवा" (मगही नाटक), नाटककार - सुमंत; प्रकाशक - सहयोगी प्रकाशन, गया; प्राप्ति स्थानः महेश शांति भवन, हनुमाननगर, ए॰पी॰ कॉलनी, गया - 823001; प्रथम संस्करण – 1996 ई॰; 40 पृष्ठ । मूल्य – अनुल्लिखित ।
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कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या - 199
ठेठ मगही शब्द ("अ" से "ह" तक):
1 अंधार (= अन्हार; अन्धकार) (एगो निन आउ दोसर खैनी, एकरा बिना जगे अंधार । जउन मरद खैनी नञ् खाय उ भी कोनो मरद हे भला । आजकल तो मेहरारूओ के चसका लगल हे - फीछे काहे रहत भला ।) (फूसु॰29.18)
2 अऊँठा (= अँगूठा) (एकरे बल पर देस के नेता गुलछर्रा उड़ावऽ हे । डिजल, खाद के दाम बढ़ा के, एकरे अऊँठा देखावऽ हे ॥ जन-जन जानऽ हथ इ बात के, भारत के इ जान हे । उ कोनो नञ् देओता-देवी, भारत के मजूर-किसान हे ॥; बुधन: {अऊँठा देखा के} बेटी ! हम तऽ ठहरली अऊँठा छाप । बाकि तोरा पढ़ा के अप्पन धरम पूरा कर देली ।) (फूसु॰20.21; 21.15)
3 अकबकाना (मधुकर अप्पन बैग उठा के चल जा हे, फूलवा जरा अकबका हे ।; राम-राम राजो भइया ! अरे ! एते अकबकायल काहे हऽ ?; राजो: ... हमरा फूलवा चाही - फूलवा । आझ उ भी जान जायत कि राजो के औकात केते हे - फूलवा ...। - नेताजी: जल्दी के काम सैतान के । इमें एते अकबकाय के बात नञ् हे । ढाढ़स रखऽ ढाढ़स ...।) (फूसु॰8.7; 13.5; 34.4)
4 अकबकाहट (राजो सिंह हाथ में पेपर लेले एने से ओने घुमित-फिरित हथ । उनकर चेहरा पर अकबकाहट हे ।) (फूसु॰13.3)
5 अखनी (= अभी, इस समय) (हम अखनी सुतब ।; तऽ हम अखनी जाइत ही ।) (फूसु॰29.4; 31.20)
6 अन्हरिया (दरोगा: इ हमरा भीर रपट लिखावे खाति गेल हल बेचारी । हम कहली चलऽ एस॰पी॰ भीर आऊ इहाँ ले अइली रात के अन्हरिया में ।) (फूसु॰35.8)
7 अवाज (= आवाज) (फिन से डंटा में ओटख सुतऽ हे, बाकि तनि देरी में केकरो आवे के अवाज सुन के मोटू हड़बड़ायल उठ के खाड़ा हो जा हे ।) (फूसु॰28.15)
8 आधे-आध (नेताजी: बिलौक से अप्पन गाँव तक पक्की रोड बने लेल ठेका होवेवाला हे, बोलऽ - ठेका चाही ? - राजो: अरे भइया ! नेकी आऊ पूच-पूच । हाथ से इ मोका नञ् निकले के चाही । फैदा आधे-आध । अरे रोड का बनत, गढ़ा-गुच्ची भर-भूर के ऊपरे से पीच के पोताइ करा देल जात ।) (फूसु॰4.20)
9 आरजू-मिनती (भगमान ! आदमी तो तोहरा से किसिम-किसिम के वरदान माँगऽ हथ । हमरा तो तोरा से बस एकी गो आरजू-मिनती हे कि तू हमरा मरला के बाद निनलोक भेजिहऽ जहाँ हम निन में तर रहव ।) (फूसु॰29.10)
10 आरी (खेत के ~) (बचल खैनी बजरंगी खा हे, आऊ एगो आरी पर झाड़ के अप्पन गमछी बिछावऽ हे ।) (फूसु॰9.4)
11 इमे, इमें (= ई में; इसमें) (जे सुनत उ एही कहत इमे नेसलाइट के हाथ हे, आऊ दोसर बिन बजार के पेपरो में निकलत कि नेसलाइट एगो आउ के जान ले लेल ।; रात के जरो हल्ला-गुदाल नञ् होल, तऽ इ कइसे मालूम होल कि फूलवा रात हीं से लपता हे । गाँववालन, इ सभे झूठ हे । इमें हम्मर बाप के चाल हे ।; हम्मर नजर में दूए बात हो सकऽ हे - पहिल इ कि इ ममला परेम के हे आऊ दोसर इ कि इमें नेसलाइट के हाथ हे ।) (फूसु॰15.16; 26.11, 17-18)
12 इहाँ (= यहाँ) (हम तोहरा हाथ जोड़ैत ही तू अभी इहाँ से जा ।) (फूसु॰8.3)
13 उपाय-पतर (दरद से पेट के अँतड़ी टीसटीसायत हे, बाकि बजरंगबली के किरपा से बजरंगी पाछे नञ् हटत । कोनो उपाय-पतर लौक रहल हे का मालिक ?) (फूसु॰11.17)
14 उलूल-जुलूल (राजो भइया ! अब जीऊ में आवऽ हो कि पोलटिस छोड़ देई । बड़ी गन्दा भे गेलवऽ । मंगरा-बुधना अंधरा-लंगड़ा सब तो नेते हो गेल । अच्छा भइया उलूल-जुलूल बात छोड़ऽ । एगो बात कहिओ ।) (फूसु॰4.15)
15 उसनना (= इसोरना; उबालना) (मधु: ... का होल हल काकी के ? - फूलवा: सच का जानी । तोहरे घरे धान उसनैत लुगा में आग लग गेल हल आउ ... ।) (फूसु॰7.8)
16 उसे (= उ से, ऊ से; उसके कारण) (तू तो कहउत के पक्किया माहटर हऽ, नञ् जानऽ का - हाथी चले बजार कुत्ता भूके हजार । तऽ उसे हाथी बजार जाय ला तो नञ् छोड़ देत ।) (फूसु॰18.15)
17 ऊपर-झाप्पर (राजो: हूँ ... अरे दर-दरोगा के पिमेंटे का हे । ठीक से चुल्हा पर हँड़िया चढ़ल मोस्किल हे । इ तो ऊपर-झाप्पर हे जे से बुलेट आऊ होण्डा हुनहुना हे ।) (फूसु॰15.4)
18 एकी (= एक्के; एक ही) (मोहरारू के एकी थप्पड़ में घबरा गेलऽ । अरे भइया, गाय के दूध पियल चाहऽ हऽ तऽ लतार तो सहहीं पड़त ।) (फूसु॰36.1)
19 एते (राम-राम राजो भइया ! अरे ! एते अकबकायल काहे हऽ ?; राजो: ... हमरा फूलवा चाही - फूलवा । आझ उ भी जान जायत कि राजो के औकात केते हे - फूलवा ...। - नेताजी: जल्दी के काम सैतान के । इमें एते अकबकाय के बात नञ् हे । ढाढ़स रखऽ ढाढ़स ...।) (फूसु॰13.5; 34.4)
20 एने (राजो सिंह हाथ में पेपर लेले एने से ओने घुमित-फिरित हथ । उनकर चेहरा पर अकबकाहट हे ।) (फूसु॰13.2)
21 ओइसहीं (दरोगा: ... नौकरी करे के हे तऽ नेताजी के बात कउन मुँह से उठाब । बाकि एगो हमरो बात मानब - हलाल होवेवाला आदमी के मुड़ी देह से अलगे होवे के चाही । - नेताजी: अरे जे कहवऽ ओही होयत । जइसने गधा पर एक मन ओइसहीं नौ मन । बाकि इ काहे ?) (फूसु॰15.14)
22 ओड़िया (गाँव के पगडंडी । ओड़िया आऊ हँसुआ लेले बुधन के बेटी फूलवा आवऽ हे । ओही घड़ी कंधा में बड़का बैग लटकैले सूटबूट में राजो सिंह के बेटा मधुकर आवऽ हे ।; सूरूज नीचे लटकल जायत हथ - का खायत आज गोली गइया । चली एकाध ओड़िया घास गढ़ ले ही ।) (फूसु॰6.1; 8.10)
23 ओने (राजो सिंह हाथ में पेपर लेले एने से ओने घुमित-फिरित हथ । उनकर चेहरा पर अकबकाहट हे ।) (फूसु॰13.2)
24 कनकनी (= कनकन्नी) (जाड़ा के कनकनियों में जे अप्पन देह भिड़ावऽ हे । गरमी के झनझनियों में जे अप्पन देह जरावऽ हे ॥ बरसा बरसे बिजली चमके, बइठे के नञ् नाम हे । उ कोनो नञ् देओता-देवी, भारत के मजूर-किसान हे ॥) (फूसु॰20.6)
25 कनून (= कानून) (दरोगा जी ! अपने तो कनून के रच्छा करेवाला ही । अब इ बोली - इ कहाँ के कनून हे कि हमर मन में गड़ल मूरती हमरा भीर नञ् आवे ।) (फूसु॰14.11, 12)
26 कहउत (= कहाउत; कहावत) (तू तो कहउत के पक्किया माहटर हऽ, नञ् जानऽ का - हाथी चले बजार कुत्ता भूके हजार । तऽ उसे हाथी बजार जाय ला तो नञ् छोड़ देत ।) (फूसु॰18.13)
27 कहिया (= किस दिन, कब; कहियो = किसी दिन, कभी) (आज छोड़ऽ भइया ! मुरगा-मोसल्लम के इंतजाम भुइंटोलिया पर होल हे । कहियो राते रंगीन कैल जायत ।) (फूसु॰5.11)
28 कहियो (= किसी दिन, कभी) (आज छोड़ऽ भइया ! मुरगा-मोसल्लम के इंतजाम भुइंटोलिया पर होल हे । कहियो राते रंगीन कैल जायत ।) (फूसु॰5.11)
29 काड़ा (= कड़ा, कठिन) (अप्पन देसे के नञ् खाली, दूसरो ला जान भिड़ावऽ हे । काड़ा मेनत करके ई, धरती से धन उपजावऽ हे ॥ लेकिन देखऽ देह तू ओकर, जइसे नञ् कुछ जान हे । उ कोनो नञ् देओता-देवी, भारत के मजूर-किसान हे ॥) (फूसु॰21.3)
30 किताब-कोपी (बुधन: वाह ! बेटी वाह ! किताब-कोपी में अइसनो निमन-निमन बात लिखल रहऽ हे ? - फूलवा: {खाड़ होके} हाँ बाबूजी ! एकरो से बेस-बेस बात रहऽ हे । पढ़तऽ तऽ जानतऽ ...।) (फूसु॰21.11)
31 किरिन (राजो: ... फूलवा के जाय के रस्ता तो इहे हे, रे .. ? - बजरंगी: हाँ, किरिन लुकलुकाइत हे, उ आविते होयत ।) (फूसु॰9.9)
32 किरिया (= कसम) (हमनी गरीब के का डर हे । नऽ धन नऽ दौलत, नऽ रुपैया नऽ पइसा । केकरो से दरो-दुस्मनी नऽ । तू जा ... हमरे किरिया । इ बेर केकरो नजर पड़ जायत तऽ इ गाँव में रहलो हराम हो जायत ।) (फूसु॰19.16)
33 कूलम (= कुल्लम; कुल मिलाकर) (हमनी आदमी {गिनती करके} एगो, दूगो, तीन गो ही आऊ काम कूलम दूगो हे - एगो तोहर जान आउ दोसर फूलवा के जवानी । माने आझ जान भी जायत आऊ जवानी भी लुटायत बाकि पहिले जान फिन जवानी ।) (फूसु॰23.4)
34 केते (= कितना) (हाँ ... बजरंगिया । अप्पन जिनगी में केते के जिनगी उजाड़ले ही, अब एगो आऊ के बारी हे ।; हमरा फूलवा चाही - फूलवा । आझ उ भी जान जायत कि राजो के औकात केते हे - फूलवा ...।) (फूसु॰11.20; 34.3)
35 केमाड़ी (= किवाड़) (फूलवा: केमाड़ी भिड़कैलऽ हे कि नञ् ? - बुधन: नञ् बेटी ! जा, जाके भिड़का आवऽ । {फूलवा केमाड़ी भिड़कावे खाति जा हे ।}) (फूसु॰21.20, 22)
36 कैल (= स॰क्रि॰ कैलक) (बुधन ... । तू केते नेक आदमी हलऽ ... तोहर इ हाल के कैल ... कने गेल बुधन के बेटी ? - राजो: उ तो ससुरी रात हीं से लपता हे भाई !) (फूसु॰26.2)
37 खाड़-खाड़ (= खड़े-खड़े) (ठीके कहल गेल हे - नीच के दूगो पइसा दे देवे के चाही बाकि दिमाग नञ् । खाड़-खाड़ मुँह का ताकइत हें ।; इ गाँव के रस्ता हे । हमनी के अइसे खाड़-खाड़ बतियायल ठीक नञ् हे ।) (फूसु॰3.10; 6.13)
38 खाड़ा (= खड़ा) (राजो: {खाड़ा होके} कउन दवाई, कइसन दवाई । देह के बेमारी खाति दवाई तो होवऽ हे बाकि दिल के बेमारी के दवाई {मुड़ी हिला के} कुछो नञ् हे ।; दारोगा जी आवऽ हथ, दूनो खाड़ा हो के हाथ जोड़ऽ हथ ।) (फूसु॰2.12; 14.4)
39 खाति (= खातिर, के लिए) (राजो: {खाड़ा होके} कउन दवाई, कइसन दवाई । देह के बेमारी खाति दवाई तो होवऽ हे बाकि दिल के बेमारी के दवाई {मुड़ी हिला के} कुछो नञ् हे ।; बुधन: ... जिनगी भर हम अपने के हुकुम बजौली, आऊ अंतिम साँस तक बजाएब बाकि ... - राजो: बाकि अप्पन बेटी के काम करे खाति इहाँ न भेजवे ... इहे कहल चाहऽ हें न ?; दरोगा: इ हमरा भीर रपट लिखावे खाति गेल हल बेचारी । हम कहली चलऽ एस॰पी॰ भीर आऊ इहाँ ले अइली रात के अन्हरिया में ।) (फूसु॰2.13; 3.5; 35.6)
40 खाय-पानी (= खाना-पानी) (अइसन पुत से निपुतरे निमन हल । बाकि का करी । बजरंगिया ! खाय-पानी के इंतजाम कर ।) (फूसु॰17.17)
41 खाली (= केवल) (अप्पन देसे के नञ् खाली, दूसरो ला जान भिड़ावऽ हे । काड़ा मेनत करके ई, धरती से धन उपजावऽ हे ॥ लेकिन देखऽ देह तू ओकर, जइसे नञ् कुछ जान हे । उ कोनो नञ् देओता-देवी, भारत के मजूर-किसान हे ॥) (फूसु॰21.1)
42 गढ़ा-गुच्ची (नेताजी: बिलौक से अप्पन गाँव तक पक्की रोड बने लेल ठेका होवेवाला हे, बोलऽ - ठेका चाही ? - राजो: अरे भइया ! नेकी आऊ पूच-पूच । हाथ से इ मोका नञ् निकले के चाही । फैदा आधे-आध । अरे रोड का बनत, गढ़ा-गुच्ची भर-भूर के ऊपरे से पीच के पोताइ करा देल जात ।) (फूसु॰4.21)
43 गमछी (बचल खैनी बजरंगी खा हे, आऊ एगो आरी पर झाड़ के अप्पन गमछी बिछावऽ हे ।) (फूसु॰9.4)
44 गलमोछा (फूलवा: {भीतर से} बचावऽ ... बचावऽ ... बाबू ... {एतनहीं में दूगो गलमोछा बाँधले आदमी एगो के हाथ बन्दूक आऊ दोसर के हाथ में पसुली हे, आके बुधना के पकड़ऽ हथ ।}) (फूसु॰22.4)
45 गारत (धीरे बोल, नञ् तो तोहर आँख के सामने फूलवा के इज्जत गारत में मिला देवउ ।) (फूसु॰22.13)
46 गोड़ (भइंसी के गोड़ फिसुलला से बेस अंटकहीं में हे भइया ।) (फूसु॰5.1)
47 गोली ("गोला" का स्त्री॰; ~ गइया) (सूरूज नीचे लटकल जायत हथ - का खायत आज गोली गइया । चली एकाध ओड़िया घास गढ़ ले ही ।) (फूसु॰8.10)
48 गोस्सा (= गुस्सा) (दरोगा कुरसी पर बइठऽ हथ । फूलवा गोस्सा में लाल-पिअर हो जा हे ।) (फूसु॰35.10)
49 घरइया (बूड़बक, अरे गोरकी तो घरइया नाम हे, आऊ दोसरका का हे ?) (फूसु॰8.17)
50 घिचिर-पिचिर (दरोगा: इ का घिचिर-पिचिर करइत ह । साफ-साफ बतलावऽ, बूझौल बूझौला से का फैदा ।) (फूसु॰14.17)
51 चलाक (= चलाँक; चालाक) (फूलवा: बाकि ... इ का लेल देइत हऽ मालिक ? - बजरंगी: ढेर चलाक मत बनऽ, चुपचाप रख लऽ ।) (फूसु॰10.13)
52 चाही (ठीके कहल गेल हे - नीच के दूगो पइसा दे देवे के चाही बाकि दिमाग नञ् । खाड़-खाड़ मुँह का ताकइत हें ।; बुधना के बेटी हमर मन के मंदिर में समा गेल हे । कुकरम चाहे जे होवे, उ हमरा चाही ... ।) (फूसु॰3.9; 4.1)
53 चिखना (= चखना) (नेताजी: ... पहिले इ बतावऽ इंतजाम का का कइले ह । छूटा बोतल, मुरगा आऊ मछली के चिखना, आऊ उपरे से सहर के नामी-गिरामी रेखा बाई के मोजरा ।) (फूसु॰13.15)
54 चिनौटी (= चुनौटी) (चिनौटी निकाल के डंटा काँख तर चाँप के खैनी मलइत एने से ओने घुमऽ फिरऽ हे ।) (फूसु॰29.15)
55 चौका-बरतन (मालिक ... जब हम बुधना से कहली कि कल से तोर बेटी मालिक घर चौका-बरतन करत तऽ उ बोलल ... {जोर से} जा, अपन मालिक से कह दऽ, हम्मर बेटी हमरा रहते इ काम नञ् करत ।) (फूसु॰2.2)
56 छोट (= छोटा) (लऽ, तऽ तू हमरा बड़का बूझऽ हऽ आउ अपना के छोटका । आदमी जनम से बड़ आउ छोट नञ् होवे, उ तो करम से होवऽ हे ।) (फूसु॰19.3)
57 छोटका (लऽ, तऽ तू हमरा बड़का बूझऽ हऽ आउ अपना के छोटका । आदमी जनम से बड़ आउ छोट नञ् होवे, उ तो करम से होवऽ हे ।) (फूसु॰19.2)
58 छोट-मोट (तऽ एही बात पर छोट-मोट पाटी हो जाय, का राजो भइया ।) (फूसु॰15.21)
59 जइसहीं (जइसहीं खाँची बजरंगी पकड़ऽ हे कि फुलवा अप्पन गोड़ से ओकर पेट में मारऽ हे, उ गिर के कराहे लगऽ हे ।) (फूसु॰10.16)
60 जरना (= जलना) (रट-रट, मर-मर काम करऽ हे, लेकिन भूखे पेट जरऽ हे । देह पर कपड़ा फटल-चिटल, सुखुआ अप्पन नाम धरऽ हे ॥ जाके देखऽ गाँव-गाँव में, टुटल जे मकान हे । उ कोनो नञ् देओता-देवी, भारत के मजूर-किसान हे ॥) (फूसु॰20.13)
61 जराना (= जलाना) (जाड़ा के कनकनियों में जे अप्पन देह भिड़ावऽ हे । गरमी के झनझनियों में जे अप्पन देह जरावऽ हे ॥ बरसा बरसे बिजली चमके, बइठे के नञ् नाम हे । उ कोनो नञ् देओता-देवी, भारत के मजूर-किसान हे ॥) (फूसु॰20.9)
62 जहिया (आहिस्ते बोल, नञ् तो कान के चदरा के साथे हम्मर दिलो के चदरा फट जायत । जहिया से बुधना के बेटी के देखली हे - नऽ रात के निन नऽ दिन के चैन हे ।) (फूसु॰2.7)
63 जिनगी (आगे एगो लबज भी नञ् निकालऽ । हम तोहरे से पूछल चाहऽ ही फूल के बिना भौंरा के जिनगी कोनो जिनगी हे ।; हाँ ... बजरंगिया । अप्पन जिनगी में केते के जिनगी उजाड़ले ही, अब एगो आऊ के बारी हे ।; बूड़बक ! फूलवा नञ्, बुधना के जिनगी उजड़त आऊ फिन फूलवा अकेले हार-पार के हमरा भीर आयत ।) (फूसु॰7.19, 20; 11.19, 20; 12.12)
64 जीऊ (राजो भइया ! अब जीऊ में आवऽ हो कि पोलटिस छोड़ देई । बड़ी गन्दा भे गेलवऽ । मंगरा-बुधना अंधरा-लंगड़ा सब तो नेते हो गेल । अच्छा भइया उलूल-जुलूल बात छोड़ऽ । एगो बात कहिओ ।) (फूसु॰4.12)
65 जेहल (= जेल) (हम जे कुछ कहली ठीक कहली । अब तोहनी सब जेहल के हावा खाय के तइयारी करऽ ।; बाबू जी के जेहल जाय से पहिले हम फूलवा के मांग में सेनुर डाल के समाज के सड़ल रेवाज तोड़ल चाहऽ ही ।) (फूसु॰38.8, 20)
66 झँपकी (एस॰पी॰ निवास पर कुरसी-टेबुल लगल हे । कोना में एगो टूल पर मोटू सिपाही जेकर बड़का लादा हे, झँपकी पर झँपकी लेइत हे ।) (फूसु॰28.3)
67 झनझनी (= झनझन्नी) (जाड़ा के कनकनियों में जे अप्पन देह भिड़ावऽ हे । गरमी के झनझनियों में जे अप्पन देह जरावऽ हे ॥ बरसा बरसे बिजली चमके, बइठे के नञ् नाम हे । उ कोनो नञ् देओता-देवी, भारत के मजूर-किसान हे ॥) (फूसु॰20.8)
68 झाँपना-पोतना (सिपाही आऊ गाँववालन मिल के लास झाँप-पोत के उठावऽ हथ ।) (फूसु॰27.10-11)
69 टीसटीसाना (दरद से पेट के अँतड़ी टीसटीसायत हे, बाकि बजरंगबली के किरपा से बजरंगी पाछे नञ् हटत । कोनो उपाय-पतर लौक रहल हे का मालिक ?) (फूसु॰11.15)
70 टूल (= स्टूल) (एस॰पी॰ निवास पर कुरसी-टेबुल लगल हे । कोना में एगो टूल पर मोटू सिपाही जेकर बड़का लादा हे, झँपकी पर झँपकी लेइत हे ।) (फूसु॰28.2)
71 टेम (= टैम; टाइम, समय) (साहेब के आवे के टेम हो गेल, निन तोड़े के चाही ।) (फूसु॰29.13)
72 टोना (राजो बाँह फैलावऽ हे, फूलवा राजो के गाल पर थप्पड़ मारऽ हे । राजो गाल टोवे लगऽ हे ।) (फूसु॰35.19)
73 डंटा (फिन से डंटा में ओटख सुतऽ हे, बाकि तनि देरी में केकरो आवे के अवाज सुन के मोटू हड़बड़ायल उठ के खाड़ा हो जा हे ।; चिनौटी निकाल के डंटा काँख तर चाँप के खैनी मलइत एने से ओने घुमऽ फिरऽ हे ।) (फूसु॰28.13; 29.15)
74 डरामा (= ड्रामा) (राजो - डरामा बन्द कर । नजीक आवे दे ।) (फूसु॰9.18)
75 डलडा-फलडा (भगवान ! इ ठीका हाथ से नञ् जाय के चाही । मिलला पर पूरे पाँच किलो लड्डू चढ़ायब । आऊ हाँ, कोनो डलडा-फलडा के नञ्, घीउ के ...।) (फूसु॰5.18)
76 डिपटी (= ड्यूटी) (एस॰पी॰: कोनो आयल हल का ? - मोटू: हम का जानि । हम्मर डिपटी तो अपने के आवे के बाद सुरू होवऽ हे सर !) (फूसु॰30.8)
77 ढूढ़ना (= ढूँढ़ना) (दरोगा: का ... बेटी गायब ? ओ ! तऽ तो इ पर-परेम के ममला हे । सिपाही ! घर के तलासी लऽ । कहीं कोनो परेम के पाती भेंटाय तऽ ओकरा ढूढ़ऽ ।) (फूसु॰25.15)
78 ढेर (= जादे, बहुत) (फूलवा: बाकि ... इ का लेल देइत हऽ मालिक ? - बजरंगी: ढेर चलाक मत बनऽ, चुपचाप रख लऽ ।) (फूसु॰10.13)
79 तइयो (= तो भी) (राजो भइया ! साँप भी मरा गेल आऊ लाठी भी नञ् टूटल । तइयो थोथना काहे लटकैले हऽ ।) (फूसु॰33.4)
80 तमहेड़ा (इ सरवा लादा नञ् तमहेड़ा हे तमहेड़ा ।) (फूसु॰30.5)
81 तर-तइयारी (गाँव के लोगन पता करऽ कि बुधना के बेटी आखिर गेल कहाँ ? आऊ हाँ, बुधन के सद्गति के तर-तइयारी करऽ ।) (फूसु॰27.3-4)
82 तरहथी (दहीना हाथ के तरहथी में खुजली होवे लगल । बुझा हे बड़ा माल हाथ लगत ।) (फूसु॰5.2)
83 थोथना (राजो भइया ! साँप भी मरा गेल आऊ लाठी भी नञ् टूटल । तइयो थोथना काहे लटकैले हऽ ।) (फूसु॰33.4)
84 दर-दरोगा (राजो: हूँ ... अरे दर-दरोगा के पिमेंटे का हे । ठीक से चुल्हा पर हँड़िया चढ़ल मोस्किल हे । इ तो ऊपर-झाप्पर हे जे से बुलेट आऊ होण्डा हुनहुना हे ।) (फूसु॰15.2)
85 दर-दुस्मनी (हमनी गरीब के का डर हे । नऽ धन नऽ दौलत, नऽ रुपैया नऽ पइसा । केकरो से दरो-दुस्मनी नऽ ।) (फूसु॰19.15)
86 दरोगा (= दारोगा) (दरोगा जी ! अपने तो कनून के रच्छा करेवाला ही । अब इ बोली - इ कहाँ के कनून हे कि हमर मन में गड़ल मूरती हमरा भीर नञ् आवे ।) (फूसु॰14.11)
87 दहीना (= दाहिना) (दहीना हाथ के तरहथी में खुजली होवे लगल । बुझा हे बड़ा माल हाथ लगत ।) (फूसु॰5.2)
88 दुहारी (कहऽ, दिल के दुहारी खोल के कहऽ ।) (फूसु॰4.16)
89 देखल (= देखलक) (राजो: बूड़बक ! फूलवा नञ्, बुधना के जिनगी उजड़त आऊ फिन फूलवा अकेले हार-पार के हमरा भीर आयत । अभी चल बजरंगिया, उपाय होयत । कोई देखल तो नञ् रे ... ? - बजरंगी: कोई नञ् देखल हे मालिक, बजरंगबली के किरपा से ।) (फूसु॰12.4, 5)
90 देल (= स॰क्रि॰ देलक) (राजो: मुडे खराब कर देल ... ।; एगो सहरी बाबू के साथे घंटा पहर बितावे के हजार रुपैया कम हल का । जाने हथ देल पगली ।; उ अप्पन इयार के फेरा में बापे के मुड़ी कटवा देल ।) (फूसु॰3.16; 9.13; 26.7)
91 दोसरका (बूड़बक, अरे गोरकी तो घरइया नाम हे, आऊ दोसरका का हे ?) (फूसु॰8.18)
92 धूरी (= धूली) (फूलवा: इ का ... {खचिया आउ हँसुआ गिर जा हे} कहइत हऽ । हम तो तोहर गोड़ के धूरियो के बराबर नञ् ही छोटे ... ।) (फूसु॰7.15)
93 नञ् (दरोगा जी ! अपने तो कनून के रच्छा करेवाला ही । अब इ बोली - इ कहाँ के कनून हे कि हमर मन में गड़ल मूरती हमरा भीर नञ् आवे ।) (फूसु॰14.13)
94 नदान (= नादान) (नेताजी: एगो नदान लइका । एकर बात के बुरा नञ् मानिहऽ । राजो भइया ! आँख लाल काहे कैले ह । आखिर खून तो अपने हे ।; लइका नदान हे । सेयान होवे दऽ, सभे कुछ समझ जायत ।) (फूसु॰17.13; 33.16)
95 नामी-गिरामी (नेताजी: ... पहिले इ बतावऽ इंतजाम का का कइले ह । छूटा बोतल, मुरगा आऊ मछली के चिखना, आऊ उपरे से सहर के नामी-गिरामी रेखा बाई के मोजरा ।) (फूसु॰13.16)
96 निक (= नीक, अच्छा) (बाप के अन्तिम इच्छा के पुराई बेटा के हाथ से होवे तऽ इ से आऊ निक बात का हे ।) (फूसु॰37.19)
97 निगुन (= निगुना, निगुनियाँ, निगुनी) (हमरे नियन सभे के नजर खुल गेल हे । अब कोनो के बाल-बुतरू हमरा नियन निगुन अऊँठा छाप नञ् रहत ।) (फूसु॰21.18)
98 निन (= नीन; नींद) (आहिस्ते बोल, नञ् तो कान के चदरा के साथे हम्मर दिलो के चदरा फट जायत । जहिया से बुधना के बेटी के देखली हे - नऽ रात के निन नऽ दिन के चैन हे ।; ओह ... मछड़ ... तू हम्मर निन खराब कैलऽ । ऐय ... हम तोहरा नञ् छोड़वऽ, बनुक नञ्, तोप से उड़ा देव ।; भगमान ! आदमी तो तोहरा से किसिम-किसिम के वरदान माँगऽ हथ । हमरा तो तोरा से बस एकी गो आरजू-मिनती हे कि तू हमरा मरला के बाद निनलोक भेजिहऽ जहाँ हम निन में तर रहव ।) (फूसु॰2.8; 28.10; 29.12)
99 निनलोक (भगमान ! आदमी तो तोहरा से किसिम-किसिम के वरदान माँगऽ हथ । हमरा तो तोरा से बस एकी गो आरजू-मिनती हे कि तू हमरा मरला के बाद निनलोक भेजिहऽ जहाँ हम निन में तर रहव ।) (फूसु॰29.11)
100 निपुत्तर (अइसन पुत से निपुतरे निमन हल । बाकि का करी । बजरंगिया ! खाय-पानी के इंतजाम कर ।) (फूसु॰17.16)
101 निमन (= नीमन; अच्छा) (अइसन पुत से निपुतरे निमन हल । बाकि का करी । बजरंगिया ! खाय-पानी के इंतजाम कर ।) (फूसु॰17.16)
102 निमन-निमन (बुधन: वाह ! बेटी वाह ! किताब-कोपी में अइसनो निमन-निमन बात लिखल रहऽ हे ? - फूलवा: {खाड़ होके} हाँ बाबूजी ! एकरो से बेस-बेस बात रहऽ हे । पढ़तऽ तऽ जानतऽ ...।) (फूसु॰21.12)
103 नियन (= नियर; समान, जैसा) (हम तऽ ठहरली अऊँठा छाप । बाकि तोरा पढ़ा के अप्पन धरम पूरा कर देली । हमरे नियन सभे के नजर खुल गेल हे । अब कोनो के बाल-बुतरू हमरा नियन निगुन अऊँठा छाप नञ् रहत ।) (फूसु॰21.17)
104 निसा (= नशा) (हाँ बेटा ! हम्मर आँख पर दौलत के निसा चढ़ल हल, अब हट गेल ।) (फूसु॰39.18)
105 नेसलाइट (= नक्सलाइट) (जे सुनत उ एही कहत इमे नेसलाइट के हाथ हे, आऊ दोसर बिन बजार के पेपरो में निकलत कि नेसलाइट एगो आउ के जान ले लेल ।; हम्मर नजर में दूए बात हो सकऽ हे - पहिल इ कि इ ममला परेम के हे आऊ दोसर इ कि इमें नेसलाइट के हाथ हे ।; बाकि नेसलाइट इहाँ ... नञ् ... तोहर अप्पन दिमाग का कहऽ हो नेताजी ?) (फूसु॰15.17, 18; 26.18, 19)
106 पर-परेम (दरोगा: का ... बेटी गायब ? ओ ! तऽ तो इ पर-परेम के ममला हे । सिपाही ! घर के तलासी लऽ । कहीं कोनो परेम के पाती भेंटाय तऽ ओकरा ढूढ़ऽ ।; नेताजी: राजो भइया ! ममला तो परे-परेम के लगऽ हे । - मधु: इ एकदमे झूठ हे ।) (फूसु॰25.13; 26.21)
107 पसुली (= हँसुली; पासी का ताड़-खजूर छेवने का धारदार हँसिया; काटने का बिना दाँतों का औजार) (फूलवा: {भीतर से} बचावऽ ... बचावऽ ... बाबू ... {एतनहीं में दूगो गलमोछा बाँधले आदमी एगो के हाथ बन्दूक आऊ दोसर के हाथ में पसुली हे, आके बुधना के पकड़ऽ हथ ।}; आदमी २ बुधना के छाती पर झुँक के अप्पन गोड़ रखऽ हे आउ पसुली नीचे ले जाके बुधना के गरदन काट ले हे ।) (फूसु॰22.5; 23.18)
108 पाछे (= पीछे) (दरद से पेट के अँतड़ी टीसटीसायत हे, बाकि बजरंगबली के किरपा से बजरंगी पाछे नञ् हटत । कोनो उपाय-पतर लौक रहल हे का मालिक ?) (फूसु॰11.16)
109 पाटी (= पार्टी) (तऽ एही बात पर छोट-मोट पाटी हो जाय, का राजो भइया ।) (फूसु॰15.21)
110 पीच (नेताजी: बिलौक से अप्पन गाँव तक पक्की रोड बने लेल ठेका होवेवाला हे, बोलऽ - ठेका चाही ? - राजो: अरे भइया ! नेकी आऊ पूच-पूच । हाथ से इ मोका नञ् निकले के चाही । फैदा आधे-आध । अरे रोड का बनत, गढ़ा-गुच्ची भर-भूर के ऊपरे से पीच के पोताइ करा देल जात ।) (फूसु॰4.22)
111 पीताहर (राजो भइया ! बोतल भी हे, गिलास भी हे, हमनी एकर पीताहर भी ही बाकि पियावेवाली ?) (फूसु॰16.10)
112 पूच-पूच (= पूछ-पूछ) (नेताजी: बिलौक से अप्पन गाँव तक पक्की रोड बने लेल ठेका होवेवाला हे, बोलऽ - ठेका चाही ? - राजो: अरे भइया ! नेकी आऊ पूच-पूच । हाथ से इ मोका नञ् निकले के चाही । फैदा आधे-आध । अरे रोड का बनत, गढ़ा-गुच्ची भर-भूर के ऊपरे से पीच के पोताइ करा देल जात ।) (फूसु॰4.17)
113 पेन्हना (= पहनना) (बुधन के बेटी फूलवा साड़ी पेन्हले संझौती देखावित हे । जइसहीं उ संझौती के दीया रखऽ हे कि ओही घड़ी मधुकर धीरे से आके पीछे से फूलवा के आँख मून्दऽ हे ।) (फूसु॰18.1)
114 पोलटिस (= पोलिटिक्स, राजनीति) (राजो भइया ! अब जीऊ में आवऽ हो कि पोलटिस छोड़ देई । बड़ी गन्दा भे गेलवऽ । मंगरा-बुधना अंधरा-लंगड़ा सब तो नेते हो गेल । अच्छा भइया उलूल-जुलूल बात छोड़ऽ । एगो बात कहिओ ।) (फूसु॰4.12)
115 पोसमाटम (= पोस्टमॉर्टम) (दरोगा: नेता होके इ बचकानी बात । खून होल हे, खून । लास के पोसमाटम होयत ।) (फूसु॰27.6)
116 फरना-फूलना (युग-युग जीअ, फरऽ-फूलऽ । उ सभे के भी गोड़ लगऽ ।) (फूसु॰39.14)
117 फारे-फार (बजरंगी: नञ् मालिक । ओकर दिमाग तो सतमा आसमान पर चढ़ल हे, बजरंगबली के किरपा से । - राजो: {दाँत किच के} का ... सतमा आसमान, हम नञ् समझली । फारे-फार बतलाव ।) (फूसु॰1.16)
118 फिन (= फिर) (बूड़बक ! फूलवा नञ्, बुधना के जिनगी उजड़त आऊ फिन फूलवा अकेले हार-पार के हमरा भीर आयत ।) (फूसु॰12.2)
119 फिनो (= फिन; फिर) (मधुकर चल जा हे । मोटू टूल पर झँपकी लेवे लगऽ हे । झँपकी लेइत फिनो गिर जा हे ।) (फूसु॰29.6)
120 फिसुलना (= फिसलना) (भइंसी के गोड़ फिसुलला से बेस अंटकहीं में हे भइया ।) (फूसु॰5.1)
121 बचकानी (~ बात) (दरोगा: नेता होके इ बचकानी बात । खून होल हे, खून । लास के पोसमाटम होयत ।) (फूसु॰27.5)
122 बजार (= बाजार) (तू तो कहउत के पक्किया माहटर हऽ, नञ् जानऽ का - हाथी चले बजार कुत्ता भूके हजार । तऽ उसे हाथी बजार जाय ला तो नञ् छोड़ देत ।) (फूसु॰18.14, 15)
123 बड़ (= बड़ा) (लऽ, तऽ तू हमरा बड़का बूझऽ हऽ आउ अपना के छोटका । आदमी जनम से बड़ आउ छोट नञ् होवे, उ तो करम से होवऽ हे ।) (फूसु॰19.3)
124 बड़का (गाँव के बड़का राजो सिंह के घर में कुरसी-टेबुल लगल हे । एगो कोना में हनुमान जी के मूरती सजल हे । राजो पूजा करित धूप देखावित हथ ।; गाँव के पगडंडी । ओड़िया आऊ हँसुआ लेले बुधन के बेटी फूलवा आवऽ हे । ओही घड़ी कंधा में बड़का बैग लटकैले सूटबूट में राजो सिंह के बेटा मधुकर आवऽ हे ।; लऽ, तऽ तू हमरा बड़का बूझऽ हऽ आउ अपना के छोटका । आदमी जनम से बड़ आउ छोट नञ् होवे, उ तो करम से होवऽ हे ।) (फूसु॰1.1; 6.2; 19.1)
125 बड़ी (= बहुत) (राजो भइया ! अब जीऊ में आवऽ हो कि पोलटिस छोड़ देई । बड़ी गन्दा भे गेलवऽ । मंगरा-बुधना अंधरा-लंगड़ा सब तो नेते हो गेल । अच्छा भइया उलूल-जुलूल बात छोड़ऽ । एगो बात कहिओ ।; राजो: दरोगा जी ! बड़ी नेक हल बुधना, बाकि एकर जान कउन लेल, पता नञ् । रात के हल्लो-गुदाल नञ् होल । - दरोगा: हम बड़ी सरमिंदा ही ।) (फूसु॰4.13; 25.5, 8)
126 बनुक (= बन्हूक; बन्दूक) (ओह ... मछड़ ... तू हम्मर निन खराब कैलऽ । ऐय ... हम तोहरा नञ् छोड़वऽ, बनुक नञ्, तोप से उड़ा देव ।) (फूसु॰28.11)
127 बाकि (= लेकिन) (राजो: {खाड़ा होके} कउन दवाई, कइसन दवाई । देह के बेमारी खाति दवाई तो होवऽ हे बाकि दिल के बेमारी के दवाई {मुड़ी हिला के} कुछो नञ् हे ।; बुधन: ... जिनगी भर हम अपने के हुकुम बजौली, आऊ अंतिम साँस तक बजाएब बाकि ... - राजो: बाकि अप्पन बेटी के काम करे खाति इहाँ न भेजवे ... इहे कहल चाहऽ हें न ?; तू कहइत ह, तऽ हम जाइत ही, बाकि जे हम कहली से इयाद रखिहऽ ।) (फूसु॰2.13; 3.4, 5; 8.4)
128 बाल-बुतरू (हम तऽ ठहरली अऊँठा छाप । बाकि तोरा पढ़ा के अप्पन धरम पूरा कर देली । हमरे नियन सभे के नजर खुल गेल हे । अब कोनो के बाल-बुतरू हमरा नियन निगुन अऊँठा छाप नञ् रहत ।) (फूसु॰21.18)
129 बिलौक (= ब्लॉक, प्रखण्ड) (बिलौक से अप्पन गाँव तक पक्की रोड बने लेल ठेका होवेवाला हे, बोलऽ - ठेका चाही ?) (फूसु॰4.17)
130 बुझाना (= लगना, प्रतीत होना) (बुधना के बुद्धि हेरायल हे मालिक । गोरकी इस्कूल-कौलेज में का पढ़े लगल कि बुधना के बुझाय लगल हम्मर बेटी राजबाला हो गेल ।; दहीना हाथ के तरहथी में खुजली होवे लगल । बुझा हे बड़ा माल हाथ लगत ।) (फूसु॰3.19; 5.3)
131 बूझाना (बूझौल ~) (दरोगा: इ का घिचिर-पिचिर करइत ह । साफ-साफ बतलावऽ, बूझौल बूझौला से का फैदा ।) (फूसु॰14.18)
132 बूझौल (दरोगा: इ का घिचिर-पिचिर करइत ह । साफ-साफ बतलावऽ, बूझौल बूझौला से का फैदा ।) (फूसु॰14.18)
133 बूड़बक (= बुड़बक) (बूड़बक, अरे गोरकी तो घरइया नाम हे, आऊ दोसरका का हे ?; इ तो अइसन चीज हे जेकरा देख के बूढ़ भी जवान आऊ बूड़बक भी सेयान हो जा हथ ।) (फूसु॰8.17; 16.17)
134 बेमारी (राजो: {खाड़ा होके} कउन दवाई, कइसन दवाई । देह के बेमारी खाति दवाई तो होवऽ हे बाकि दिल के बेमारी के दवाई {मुड़ी हिला के} कुछो नञ् हे ।) (फूसु॰2.13, 14)
135 भइंसी (भइंसी के गोड़ फिसुलला से बेस अंटकहीं में हे भइया ।) (फूसु॰4.22)
136 भगमान (= भगवान) (भगमान ! आदमी तो तोहरा से किसिम-किसिम के वरदान माँगऽ हथ । हमरा तो तोरा से बस एकी गो आरजू-मिनती हे कि तू हमरा मरला के बाद निनलोक भेजिहऽ जहाँ हम निन में तर रहव ।) (फूसु॰29.8)
137 भरना-भूरना (नेताजी: बिलौक से अप्पन गाँव तक पक्की रोड बने लेल ठेका होवेवाला हे, बोलऽ - ठेका चाही ? - राजो: अरे भइया ! नेकी आऊ पूच-पूच । हाथ से इ मोका नञ् निकले के चाही । फैदा आधे-आध । अरे रोड का बनत, गढ़ा-गुच्ची भर-भूर के ऊपरे से पीच के पोताइ करा देल जात ।) (फूसु॰4.21)
138 भिड़काना (= भिरकाना, लगाना) (फूलवा: केमाड़ी भिड़कैलऽ हे कि नञ् ? - बुधन: नञ् बेटी ! जा, जाके भिड़का आवऽ । {फूलवा केमाड़ी भिड़कावे खाति जा हे ।}) (फूसु॰21.20, 21, 22)
139 भीर (= भीरी; पास) (बूड़बक ! फूलवा नञ्, बुधना के जिनगी उजड़त आऊ फिन फूलवा अकेले हार-पार के हमरा भीर आयत ।; दरोगा जी ! अपने तो कनून के रच्छा करेवाला ही । अब इ बोली - इ कहाँ के कनून हे कि हमर मन में गड़ल मूरती हमरा भीर नञ् आवे ।; दरोगा: इ हमरा भीर रपट लिखावे खाति गेल हल बेचारी । हम कहली चलऽ एस॰पी॰ भीर आऊ इहाँ ले अइली रात के अन्हरिया में ।) (फूसु॰12.3; 14.13; 35.6, 7)
140 भुइंटोली (आज छोड़ऽ भइया ! मुरगा-मोसल्लम के इंतजाम भुइंटोलिया पर होल हे । कहियो राते रंगीन कैल जायत ।) (फूसु॰5.11)
141 भूकना (= भूकना) (तू तो कहउत के पक्किया माहटर हऽ, नञ् जानऽ का - हाथी चले बजार कुत्ता भूके हजार । तऽ उसे हाथी बजार जाय ला तो नञ् छोड़ देत ।) (फूसु॰18.14)
142 मइसना (= मैंजना, दबाना) (बजरंगिया ! जरा गोड़ मइस । {बजरंगी गोड़ मइसऽ हे ।}) (फूसु॰9.7)
143 मचोड़ना (जउन फूल हमरा भा जा हे ओकरा खाली तोड़ के सूघवे नञ् करऽ ही, बिना मचोड़ले दम कहाँ ले ही, का बजरंगिया !) (फूसु॰8.23)
144 मछड़ (= मच्छड़; मच्छर) (ओह ... मछड़ ... तू हम्मर निन खराब कैलऽ । ऐय ... हम तोहरा नञ् छोड़वऽ, बनुक नञ्, तोप से उड़ा देव ।) (फूसु॰28.9)
145 मछी (= मच्छी) (छि ! छि ! छि ! छि ! इ दाल में मछी कहाँ से गिर गेल । तू कउन, सरम तनिको नञ् लगे - एगो मोट-झोंट आदमी के निन खराब करयत ।) (फूसु॰29.1)
146 मजूर-किसान (बात सुनऽ हम सुनवित हिय, जे अप्पन देस के जान हे । उ कोनो नञ् देओता-देवी, भारत के मजूर-किसान हे ॥) (फूसु॰20.5)
147 मड़ोड़ना (= मरोड़ना) (असली नागिन तो अभी जिंदा हे, जब तक ओकर फन नञ् मड़ोड़ब, तब तक चैन कहाँ हे । उ ... माने फूलवा नागिन हे नागिन । अरे बुधना तो बेचारा हल, उ तो फोकटिये में मरा गेल ।) (फूसु॰33.6)
148 ममला (= मामला) (दरोगा: का ... बेटी गायब ? ओ ! तऽ तो इ पर-परेम के ममला हे । सिपाही ! घर के तलासी लऽ । कहीं कोनो परेम के पाती भेंटाय तऽ ओकरा ढूढ़ऽ ।; हम्मर नजर में दूए बात हो सकऽ हे - पहिल इ कि इ ममला परेम के हे आऊ दोसर इ कि इमें नेसलाइट के हाथ हे ।; नेताजी: राजो भइया ! ममला तो परे-परेम के लगऽ हे । - मधु: इ एकदमे झूठ हे ।) (फूसु॰25.13; 26.17, 21)
149 मर-मजूरी (बाबुजी घरे नञ् हथ । उ देरी से अयतन, काहे कि मर-मजूरी अब तो सहर जाके करे पड़ऽ हे ।) (फूसु॰19.7)
150 मलपुआ (= मालपूआ) (रेखा बाई कोई अइसन तान छेड़ऽ कि मन मलपुआ नियन लब-लबा-लब हो जाय ।) (फूसु॰16.19)
151 महजिद (मियाँ के दौड़ ~ तक) (उ ससुरी जायत कहाँ ? मियाँ के दौड़ महजिद तक । उ थाना गेल होयत ।) (फूसु॰34.22)
152 माहटर (= मास्टर) (तू तो कहउत के पक्किया माहटर हऽ, नञ् जानऽ का - हाथी चले बजार कुत्ता भूके हजार । तऽ उसे हाथी बजार जाय ला तो नञ् छोड़ देत ।) (फूसु॰18.13)
153 मिलिट-मिलिट (= मिनट-मिनट) (एस॰पी॰: कोनो आयल हल का ? - मोटू: हम का जानि । हम्मर डिपटी तो अपने के आवे के बाद सुरू होवऽ हे सर ! - एस॰पी॰: आऊ हमरा आवे से पहिले तू बइठ के झँपकी लेहऽ ! - मोटू: नञ् सर ! {कान धर के रोवइत} आझ तो हम मिलिट-मिलिट पर आँख फाड़-फाड़ के देखइत हली ।) (फूसु॰30.13)
154 मुड़ी (= सिर) (राजो: {खाड़ा होके} कउन दवाई, कइसन दवाई । देह के बेमारी खाति दवाई तो होवऽ हे बाकि दिल के बेमारी के दवाई {मुड़ी हिला के} कुछो नञ् हे ।; अरे ररे ! मुड़ी काहे झुकौले हऽ, हमरा से नञ् बोलवऽ का ?; नौकरी करे के हे तऽ नेताजी के बात कउन मुँह से उठाब । बाकि एगो हमरो बात मानब - हलाल होवेवाला आदमी के मुड़ी देह से अलगे होवे के चाही ।) (फूसु॰2.14; 6.8; 15.11)
155 मुरगा-मोसल्लम (आज छोड़ऽ भइया ! मुरगा-मोसल्लम के इंतजाम भुइंटोलिया पर होल हे । कहियो राते रंगीन कैल जायत ।) (फूसु॰5.10)
156 मुसुर-मुसुर (लगऽ हे गोरकीये मुसुर-मुसुर चलइत आवित हे । हूँ, ससुरी के का चाल हे ।) (फूसु॰9.15)
157 मोजरा (= मुजरा) (नेताजी: ... पहिले इ बतावऽ इंतजाम का का कइले ह । छूटा बोतल, मुरगा आऊ मछली के चिखना, आऊ उपरे से सहर के नामी-गिरामी रेखा बाई के मोजरा ।) (फूसु॰13.17)
158 मोट-झोंट (छि ! छि ! छि ! छि ! इ दाल में मछी कहाँ से गिर गेल । तू कउन, सरम तनिको नञ् लगे - एगो मोट-झोंट आदमी के निन खराब करयत ।) (फूसु॰29.2-3)
159 रंडी-पतुरिया (दरोगा: नाचऽ गावऽ पीअ पीआवऽ ...। - फूलवा: हम कोनो रंडी-पतुरिया ही का । जब ले देह में जान हे, इ नञ् करव ।) (फूसु॰36.22)
160 रपट (दरोगा: इ हमरा भीर रपट लिखावे खाति गेल हल बेचारी । हम कहली चलऽ एस॰पी॰ भीर आऊ इहाँ ले अइली रात के अन्हरिया में ।) (फूसु॰35.6)
161 रस्ता (= रास्ता) (राजो: ... फूलवा के जाय के रस्ता तो इहे हे, रे .. ? - बजरंगी: हाँ, किरिन लुकलुकाइत हे, उ आविते होयत ।) (फूसु॰9.8)
162 रिपोट (= रपट; रिपोर्ट) (थाना के रिपोट के मोताबिक बुधना के हत्या के पीछे फूलवा के हाथ हे, जे ओही रात से अप्पन परेमी के साथे फरार हो गेल हे ।) (फूसु॰31.6)
163 रेवाज (= रिवाज) (बाबू जी के जेहल जाय से पहिले हम फूलवा के मांग में सेनुर डाल के समाज के सड़ल रेवाज तोड़ल चाहऽ ही ।) (फूसु॰38.22)
164 लंगा (= नंगा) (तऽ तू अइसे नञ् मानवऽ । बजरंगिया ! एकरा सड़िया खोल के लंगा कर दे ... ।) (फूसु॰37.14)
165 लतार (= लताड़, लत्ती, लात की मार) (मोहरारू के एकी थप्पड़ में घबरा गेलऽ । अरे भइया, गाय के दूध पियल चाहऽ हऽ तऽ लतार तो सहहीं पड़त ।) (फूसु॰36.2)
166 लपता (= लापता) (बुधन ... । तू केते नेक आदमी हलऽ ... तोहर इ हाल के कैल ... कने गेल बुधन के बेटी ? - राजो: उ तो ससुरी रात हीं से लपता हे भाई ! - नेताजी: का कहलऽ ... रात हीं से लपता, तऽ एकर माने {सोच के} उ अप्पन इयार के फेरा में बापे के मुड़ी कटवा देल । - मधु: रात के जरो हल्ला-गुदाल नञ् होल, तऽ इ कइसे मालूम होल कि फूलवा रात हीं से लपता हे । गाँववालन, इ सभे झूठ हे । इमें हम्मर बाप के चाल हे ।) (फूसु॰26.4, 5, 10)
167 लबज (= लफ्ज) (आगे एगो लबज भी नञ् निकालऽ । हम तोहरे से पूछल चाहऽ ही फूल के बिना भौंरा के जिनगी कोनो जिनगी हे ।) (फूसु॰7.18)
168 लम्बर (= नम्बर) (हम तो लम्बर दू गेल हली । आके केमाड़ी खोल के देखली तऽ आँख बन्द आऊ डिबिया गायब हल बजरंगबली के किरपा से ।) (फूसु॰34.14)
169 लादा (= लेदा, तोंद) (एस॰पी॰ निवास पर कुरसी-टेबुल लगल हे । कोना में एगो टूल पर मोटू सिपाही जेकर बड़का लादा हे, झँपकी पर झँपकी लेइत हे ।; इ सरवा लादा नञ् तमहेड़ा हे तमहेड़ा ।) (फूसु॰28.3; 30.5)
170 लास (= लहास; लाश) (बुधन के खून से सनायल लास पड़ल हे । ... लास देखके दरोगा जी टोपी उतारऽ हथ ।) (फूसु॰25.1, 3)
171 लुकलुकाना (बेर ~, किरिन ~) (राजो: ... फूलवा के जाय के रस्ता तो इहे हे, रे .. ? - बजरंगी: हाँ, किरिन लुकलुकाइत हे, उ आविते होयत ।) (फूसु॰9.9)
172 लुगा (मधु: ... का होल हल काकी के ? - फूलवा: सच का जानी । तोहरे घरे धान उसनैत लुगा में आग लग गेल हल आउ ... ।) (फूसु॰7.8)
173 लेल (= लगि, लागि; के लिए) (हम तो जीत लेल बगावत के झंडा उठा लेली हे ।) (फूसु॰31.14)
174 लेल (= स॰क्रि॰ लेलक) (जे सुनत उ एही कहत इमे नेसलाइट के हाथ हे, आऊ दोसर बिन बजार के पेपरो में निकलत कि नेसलाइट एगो आउ के जान ले लेल ।; राजो: दरोगा जी ! बड़ी नेक हल बुधना, बाकि एकर जान कउन लेल, पता नञ् । रात के हल्लो-गुदाल नञ् होल ।) (फूसु॰15.19; 25.6)
175 लेहाज (= लिहाज) (घर तो एगो मन्दिर होवऽ हे । आऊ मन्दिर में मदिरा, मन्दिर में मोजरा । कुछ उमर के लेहाज करऽ, ढकनी भर पानी में नाक डुबा के जान हथ दऽ । बाबूजी ! हम इ लेल लेहाज करित ही कि तू हमरा जलमा देले हऽ, नञ तो तोहर खून पी जैती ।) (फूसु॰17.5, 7)
176 लौकना (= लउकना, दिखना) (दरद से पेट के अँतड़ी टीसटीसायत हे, बाकि बजरंगबली के किरपा से बजरंगी पाछे नञ् हटत । कोनो उपाय-पतर लौक रहल हे का मालिक ?) (फूसु॰11.17)
177 संझौती (बुधन के बेटी फूलवा साड़ी पेन्हले संझौती देखावित हे । जइसहीं उ संझौती के दीया रखऽ हे कि ओही घड़ी मधुकर धीरे से आके पीछे से फूलवा के आँख मून्दऽ हे ।) (फूसु॰18.1, 2)
178 सउसे (= सउँसे, समूचा) (नेताजी: {हाथ जोड़ के} हम भी माफी चाहऽ ही सउसे समाज से ।) (फूसु॰40.1)
179 सर-सबूत (एस॰पी॰: ओ ... बइठऽ । तोहर फोन मिलल हल । बाकि बिना कोनो सर-सबूत के केकरा पकड़ी ।) (फूसु॰30.21)
180 ससुरार (= ससुराल) (अब तोहनी ससुरार के तइयारी करऽ, हम मंतर वाँचऽ ही ।) (फूसु॰39.6)
181 ससुरी (लगऽ हे गोरकीये मुसुर-मुसुर चलइत आवित हे । हूँ, ससुरी के का चाल हे ।; बुधन ... । तू केते नेक आदमी हलऽ ... तोहर इ हाल के कैल ... कने गेल बुधन के बेटी ? - राजो: उ तो ससुरी रात हीं से लपता हे भाई !; उ ससुरी जायत कहाँ ? मियाँ के दौड़ महजिद तक । उ थाना गेल होयत ।) (फूसु॰9.16; 26.4; 34.21)
182 साबस (= शाबाश) (साबस बेटा । तू जरूर बाप के नाम उजागर करवऽ, नेता बनके, हाँ ।) (फूसु॰27.18)
183 सामना-सामनी (दारोगा जी के आवे दऽ । बात सामना-सामनी हो जायत । पहिले इ बतावऽ इंतजाम का का कइले ह ।) (फूसु॰13.12)
184 सार, सारा (= साला) (मुँह का ताकइत हऽ । सरवा के हाथ पीछे करके बाँधऽ ।; इ सरवा लादा नञ् तमहेड़ा हे तमहेड़ा ।) (फूसु॰22.14; 30.5)
185 सुतना (= सोना, नींद लेना) (ओह ... मछड़ ... तू हम्मर निन खराब कैलऽ । ऐय ... हम तोहरा नञ् छोड़व, बनुक नञ्, तोप से उड़ा देव । बाकि अभी सुते दऽ ।) (फूसु॰28.12)
186 सेनुर (= सिन्दूर) (तू अप्पन हिफाजत तब तक करिहऽ, जब तक हम तोहर मांग में सेनुर नञ् डाल देई ।; बाबू जी के जेहल जाय से पहिले हम फूलवा के मांग में सेनुर डाल के समाज के सड़ल रेवाज तोड़ल चाहऽ ही ।; मधुकर पाकिट से सेनुर निकालऽ हे आउ फूलवा के मांग सेनुर से सजा दे हे ।) (फूसु॰7.13; 38.21; 39.2, 3)
187 सेयान (इ तो अइसन चीज हे जेकरा देख के बूढ़ भी जवान आऊ बूड़बक भी सेयान हो जा हथ ।; लइका नदान हे । सेयान होवे दऽ, सभे कुछ समझ जायत ।) (फूसु॰16.17; 33.16)
188 सौटकट (शॉर्टकट) (नेताजी: सौटकट में बात इ हे दारोगा जी कि देस के तेजी से बढ़ित आबादी में से एगो आदमी के जिनगी हलाल करे के हे ।) (फूसु॰14.19)
189 हँड़िया (राजो: हूँ ... अरे दर-दरोगा के पिमेंटे का हे । ठीक से चुल्हा पर हँड़िया चढ़ल मोस्किल हे । इ तो ऊपर-झाप्पर हे जे से बुलेट आऊ होण्डा हुनहुना हे ।) (फूसु॰15.3)
190 हँसुआ (गाँव के पगडंडी । ओड़िया आऊ हँसुआ लेले बुधन के बेटी फूलवा आवऽ हे । ओही घड़ी कंधा में बड़का बैग लटकैले सूटबूट में राजो सिंह के बेटा मधुकर आवऽ हे ।) (फूसु॰6.1)
191 हथना (= हतना; समाप्त करना; जान ~ = आत्महत्या करना) (एगो सहरी बाबू के साथे घंटा पहर बितावे के हजार रुपैया कम हल का । जाने हथ देल पगली ।) (फूसु॰9.13)
192 हलाल (~ करना, ~ होना) (नेताजी: सौटकट में बात इ हे दारोगा जी कि देस के तेजी से बढ़ित आबादी में से एगो आदमी के जिनगी हलाल करे के हे ।; नौकरी करे के हे तऽ नेताजी के बात कउन मुँह से उठाब । बाकि एगो हमरो बात मानब - हलाल होवेवाला आदमी के मुड़ी देह से अलगे होवे के चाही ।) (फूसु॰14.21; 15.11)
193 हल्ला-गुदाल (राजो: दरोगा जी ! बड़ी नेक हल बुधना, बाकि एकर जान कउन लेल, पता नञ् । रात के हल्लो-गुदाल नञ् होल ।) (फूसु॰25.6-7)
194 हल्ला-गोहार (आदमी १: {बन्दूक सटा के} हल्ला-गोहार कैलें तऽ मुड़ी उतार लेवउ । तोहर फूल अइसन बेटी फूलवा हमर कब्जा में हे ।) (फूसु॰22.7)
195 हारना-पारना (बूड़बक ! फूलवा नञ्, बुधना के जिनगी उजड़त आऊ फिन फूलवा अकेले हार-पार के हमरा भीर आयत ।) (फूसु॰12.2)
196 हावा (= हवा) (हम जे कुछ कहली ठीक कहली । अब तोहनी सब जेहल के हावा खाय के तइयारी करऽ ।) (फूसु॰38.8)
197 हिगराना (= अलग करना) (खाड़ मुँह का ताकैत ह, एकर मुड़ी देह से हिगरा दऽ ।) (फूसु॰23.16)
198 हुनहुनाना (राजो: हूँ ... अरे दर-दरोगा के पिमेंटे का हे । ठीक से चुल्हा पर हँड़िया चढ़ल मोस्किल हे । इ तो ऊपर-झाप्पर हे जे से बुलेट आऊ होण्डा हुनहुना हे ।) (फूसु॰15.4)
199 हेराना (= भुला जाना, गायब होना) (बुधना के बुद्धि हेरायल हे मालिक । गोरकी इस्कूल-कौलेज में का पढ़े लगल कि बुधना के बुझाय लगल हम्मर बेटी राजबाला हो गेल ।) (फूसु॰3.18)
2 अऊँठा (= अँगूठा) (एकरे बल पर देस के नेता गुलछर्रा उड़ावऽ हे । डिजल, खाद के दाम बढ़ा के, एकरे अऊँठा देखावऽ हे ॥ जन-जन जानऽ हथ इ बात के, भारत के इ जान हे । उ कोनो नञ् देओता-देवी, भारत के मजूर-किसान हे ॥; बुधन: {अऊँठा देखा के} बेटी ! हम तऽ ठहरली अऊँठा छाप । बाकि तोरा पढ़ा के अप्पन धरम पूरा कर देली ।) (फूसु॰20.21; 21.15)
3 अकबकाना (मधुकर अप्पन बैग उठा के चल जा हे, फूलवा जरा अकबका हे ।; राम-राम राजो भइया ! अरे ! एते अकबकायल काहे हऽ ?; राजो: ... हमरा फूलवा चाही - फूलवा । आझ उ भी जान जायत कि राजो के औकात केते हे - फूलवा ...। - नेताजी: जल्दी के काम सैतान के । इमें एते अकबकाय के बात नञ् हे । ढाढ़स रखऽ ढाढ़स ...।) (फूसु॰8.7; 13.5; 34.4)
4 अकबकाहट (राजो सिंह हाथ में पेपर लेले एने से ओने घुमित-फिरित हथ । उनकर चेहरा पर अकबकाहट हे ।) (फूसु॰13.3)
5 अखनी (= अभी, इस समय) (हम अखनी सुतब ।; तऽ हम अखनी जाइत ही ।) (फूसु॰29.4; 31.20)
6 अन्हरिया (दरोगा: इ हमरा भीर रपट लिखावे खाति गेल हल बेचारी । हम कहली चलऽ एस॰पी॰ भीर आऊ इहाँ ले अइली रात के अन्हरिया में ।) (फूसु॰35.8)
7 अवाज (= आवाज) (फिन से डंटा में ओटख सुतऽ हे, बाकि तनि देरी में केकरो आवे के अवाज सुन के मोटू हड़बड़ायल उठ के खाड़ा हो जा हे ।) (फूसु॰28.15)
8 आधे-आध (नेताजी: बिलौक से अप्पन गाँव तक पक्की रोड बने लेल ठेका होवेवाला हे, बोलऽ - ठेका चाही ? - राजो: अरे भइया ! नेकी आऊ पूच-पूच । हाथ से इ मोका नञ् निकले के चाही । फैदा आधे-आध । अरे रोड का बनत, गढ़ा-गुच्ची भर-भूर के ऊपरे से पीच के पोताइ करा देल जात ।) (फूसु॰4.20)
9 आरजू-मिनती (भगमान ! आदमी तो तोहरा से किसिम-किसिम के वरदान माँगऽ हथ । हमरा तो तोरा से बस एकी गो आरजू-मिनती हे कि तू हमरा मरला के बाद निनलोक भेजिहऽ जहाँ हम निन में तर रहव ।) (फूसु॰29.10)
10 आरी (खेत के ~) (बचल खैनी बजरंगी खा हे, आऊ एगो आरी पर झाड़ के अप्पन गमछी बिछावऽ हे ।) (फूसु॰9.4)
11 इमे, इमें (= ई में; इसमें) (जे सुनत उ एही कहत इमे नेसलाइट के हाथ हे, आऊ दोसर बिन बजार के पेपरो में निकलत कि नेसलाइट एगो आउ के जान ले लेल ।; रात के जरो हल्ला-गुदाल नञ् होल, तऽ इ कइसे मालूम होल कि फूलवा रात हीं से लपता हे । गाँववालन, इ सभे झूठ हे । इमें हम्मर बाप के चाल हे ।; हम्मर नजर में दूए बात हो सकऽ हे - पहिल इ कि इ ममला परेम के हे आऊ दोसर इ कि इमें नेसलाइट के हाथ हे ।) (फूसु॰15.16; 26.11, 17-18)
12 इहाँ (= यहाँ) (हम तोहरा हाथ जोड़ैत ही तू अभी इहाँ से जा ।) (फूसु॰8.3)
13 उपाय-पतर (दरद से पेट के अँतड़ी टीसटीसायत हे, बाकि बजरंगबली के किरपा से बजरंगी पाछे नञ् हटत । कोनो उपाय-पतर लौक रहल हे का मालिक ?) (फूसु॰11.17)
14 उलूल-जुलूल (राजो भइया ! अब जीऊ में आवऽ हो कि पोलटिस छोड़ देई । बड़ी गन्दा भे गेलवऽ । मंगरा-बुधना अंधरा-लंगड़ा सब तो नेते हो गेल । अच्छा भइया उलूल-जुलूल बात छोड़ऽ । एगो बात कहिओ ।) (फूसु॰4.15)
15 उसनना (= इसोरना; उबालना) (मधु: ... का होल हल काकी के ? - फूलवा: सच का जानी । तोहरे घरे धान उसनैत लुगा में आग लग गेल हल आउ ... ।) (फूसु॰7.8)
16 उसे (= उ से, ऊ से; उसके कारण) (तू तो कहउत के पक्किया माहटर हऽ, नञ् जानऽ का - हाथी चले बजार कुत्ता भूके हजार । तऽ उसे हाथी बजार जाय ला तो नञ् छोड़ देत ।) (फूसु॰18.15)
17 ऊपर-झाप्पर (राजो: हूँ ... अरे दर-दरोगा के पिमेंटे का हे । ठीक से चुल्हा पर हँड़िया चढ़ल मोस्किल हे । इ तो ऊपर-झाप्पर हे जे से बुलेट आऊ होण्डा हुनहुना हे ।) (फूसु॰15.4)
18 एकी (= एक्के; एक ही) (मोहरारू के एकी थप्पड़ में घबरा गेलऽ । अरे भइया, गाय के दूध पियल चाहऽ हऽ तऽ लतार तो सहहीं पड़त ।) (फूसु॰36.1)
19 एते (राम-राम राजो भइया ! अरे ! एते अकबकायल काहे हऽ ?; राजो: ... हमरा फूलवा चाही - फूलवा । आझ उ भी जान जायत कि राजो के औकात केते हे - फूलवा ...। - नेताजी: जल्दी के काम सैतान के । इमें एते अकबकाय के बात नञ् हे । ढाढ़स रखऽ ढाढ़स ...।) (फूसु॰13.5; 34.4)
20 एने (राजो सिंह हाथ में पेपर लेले एने से ओने घुमित-फिरित हथ । उनकर चेहरा पर अकबकाहट हे ।) (फूसु॰13.2)
21 ओइसहीं (दरोगा: ... नौकरी करे के हे तऽ नेताजी के बात कउन मुँह से उठाब । बाकि एगो हमरो बात मानब - हलाल होवेवाला आदमी के मुड़ी देह से अलगे होवे के चाही । - नेताजी: अरे जे कहवऽ ओही होयत । जइसने गधा पर एक मन ओइसहीं नौ मन । बाकि इ काहे ?) (फूसु॰15.14)
22 ओड़िया (गाँव के पगडंडी । ओड़िया आऊ हँसुआ लेले बुधन के बेटी फूलवा आवऽ हे । ओही घड़ी कंधा में बड़का बैग लटकैले सूटबूट में राजो सिंह के बेटा मधुकर आवऽ हे ।; सूरूज नीचे लटकल जायत हथ - का खायत आज गोली गइया । चली एकाध ओड़िया घास गढ़ ले ही ।) (फूसु॰6.1; 8.10)
23 ओने (राजो सिंह हाथ में पेपर लेले एने से ओने घुमित-फिरित हथ । उनकर चेहरा पर अकबकाहट हे ।) (फूसु॰13.2)
24 कनकनी (= कनकन्नी) (जाड़ा के कनकनियों में जे अप्पन देह भिड़ावऽ हे । गरमी के झनझनियों में जे अप्पन देह जरावऽ हे ॥ बरसा बरसे बिजली चमके, बइठे के नञ् नाम हे । उ कोनो नञ् देओता-देवी, भारत के मजूर-किसान हे ॥) (फूसु॰20.6)
25 कनून (= कानून) (दरोगा जी ! अपने तो कनून के रच्छा करेवाला ही । अब इ बोली - इ कहाँ के कनून हे कि हमर मन में गड़ल मूरती हमरा भीर नञ् आवे ।) (फूसु॰14.11, 12)
26 कहउत (= कहाउत; कहावत) (तू तो कहउत के पक्किया माहटर हऽ, नञ् जानऽ का - हाथी चले बजार कुत्ता भूके हजार । तऽ उसे हाथी बजार जाय ला तो नञ् छोड़ देत ।) (फूसु॰18.13)
27 कहिया (= किस दिन, कब; कहियो = किसी दिन, कभी) (आज छोड़ऽ भइया ! मुरगा-मोसल्लम के इंतजाम भुइंटोलिया पर होल हे । कहियो राते रंगीन कैल जायत ।) (फूसु॰5.11)
28 कहियो (= किसी दिन, कभी) (आज छोड़ऽ भइया ! मुरगा-मोसल्लम के इंतजाम भुइंटोलिया पर होल हे । कहियो राते रंगीन कैल जायत ।) (फूसु॰5.11)
29 काड़ा (= कड़ा, कठिन) (अप्पन देसे के नञ् खाली, दूसरो ला जान भिड़ावऽ हे । काड़ा मेनत करके ई, धरती से धन उपजावऽ हे ॥ लेकिन देखऽ देह तू ओकर, जइसे नञ् कुछ जान हे । उ कोनो नञ् देओता-देवी, भारत के मजूर-किसान हे ॥) (फूसु॰21.3)
30 किताब-कोपी (बुधन: वाह ! बेटी वाह ! किताब-कोपी में अइसनो निमन-निमन बात लिखल रहऽ हे ? - फूलवा: {खाड़ होके} हाँ बाबूजी ! एकरो से बेस-बेस बात रहऽ हे । पढ़तऽ तऽ जानतऽ ...।) (फूसु॰21.11)
31 किरिन (राजो: ... फूलवा के जाय के रस्ता तो इहे हे, रे .. ? - बजरंगी: हाँ, किरिन लुकलुकाइत हे, उ आविते होयत ।) (फूसु॰9.9)
32 किरिया (= कसम) (हमनी गरीब के का डर हे । नऽ धन नऽ दौलत, नऽ रुपैया नऽ पइसा । केकरो से दरो-दुस्मनी नऽ । तू जा ... हमरे किरिया । इ बेर केकरो नजर पड़ जायत तऽ इ गाँव में रहलो हराम हो जायत ।) (फूसु॰19.16)
33 कूलम (= कुल्लम; कुल मिलाकर) (हमनी आदमी {गिनती करके} एगो, दूगो, तीन गो ही आऊ काम कूलम दूगो हे - एगो तोहर जान आउ दोसर फूलवा के जवानी । माने आझ जान भी जायत आऊ जवानी भी लुटायत बाकि पहिले जान फिन जवानी ।) (फूसु॰23.4)
34 केते (= कितना) (हाँ ... बजरंगिया । अप्पन जिनगी में केते के जिनगी उजाड़ले ही, अब एगो आऊ के बारी हे ।; हमरा फूलवा चाही - फूलवा । आझ उ भी जान जायत कि राजो के औकात केते हे - फूलवा ...।) (फूसु॰11.20; 34.3)
35 केमाड़ी (= किवाड़) (फूलवा: केमाड़ी भिड़कैलऽ हे कि नञ् ? - बुधन: नञ् बेटी ! जा, जाके भिड़का आवऽ । {फूलवा केमाड़ी भिड़कावे खाति जा हे ।}) (फूसु॰21.20, 22)
36 कैल (= स॰क्रि॰ कैलक) (बुधन ... । तू केते नेक आदमी हलऽ ... तोहर इ हाल के कैल ... कने गेल बुधन के बेटी ? - राजो: उ तो ससुरी रात हीं से लपता हे भाई !) (फूसु॰26.2)
37 खाड़-खाड़ (= खड़े-खड़े) (ठीके कहल गेल हे - नीच के दूगो पइसा दे देवे के चाही बाकि दिमाग नञ् । खाड़-खाड़ मुँह का ताकइत हें ।; इ गाँव के रस्ता हे । हमनी के अइसे खाड़-खाड़ बतियायल ठीक नञ् हे ।) (फूसु॰3.10; 6.13)
38 खाड़ा (= खड़ा) (राजो: {खाड़ा होके} कउन दवाई, कइसन दवाई । देह के बेमारी खाति दवाई तो होवऽ हे बाकि दिल के बेमारी के दवाई {मुड़ी हिला के} कुछो नञ् हे ।; दारोगा जी आवऽ हथ, दूनो खाड़ा हो के हाथ जोड़ऽ हथ ।) (फूसु॰2.12; 14.4)
39 खाति (= खातिर, के लिए) (राजो: {खाड़ा होके} कउन दवाई, कइसन दवाई । देह के बेमारी खाति दवाई तो होवऽ हे बाकि दिल के बेमारी के दवाई {मुड़ी हिला के} कुछो नञ् हे ।; बुधन: ... जिनगी भर हम अपने के हुकुम बजौली, आऊ अंतिम साँस तक बजाएब बाकि ... - राजो: बाकि अप्पन बेटी के काम करे खाति इहाँ न भेजवे ... इहे कहल चाहऽ हें न ?; दरोगा: इ हमरा भीर रपट लिखावे खाति गेल हल बेचारी । हम कहली चलऽ एस॰पी॰ भीर आऊ इहाँ ले अइली रात के अन्हरिया में ।) (फूसु॰2.13; 3.5; 35.6)
40 खाय-पानी (= खाना-पानी) (अइसन पुत से निपुतरे निमन हल । बाकि का करी । बजरंगिया ! खाय-पानी के इंतजाम कर ।) (फूसु॰17.17)
41 खाली (= केवल) (अप्पन देसे के नञ् खाली, दूसरो ला जान भिड़ावऽ हे । काड़ा मेनत करके ई, धरती से धन उपजावऽ हे ॥ लेकिन देखऽ देह तू ओकर, जइसे नञ् कुछ जान हे । उ कोनो नञ् देओता-देवी, भारत के मजूर-किसान हे ॥) (फूसु॰21.1)
42 गढ़ा-गुच्ची (नेताजी: बिलौक से अप्पन गाँव तक पक्की रोड बने लेल ठेका होवेवाला हे, बोलऽ - ठेका चाही ? - राजो: अरे भइया ! नेकी आऊ पूच-पूच । हाथ से इ मोका नञ् निकले के चाही । फैदा आधे-आध । अरे रोड का बनत, गढ़ा-गुच्ची भर-भूर के ऊपरे से पीच के पोताइ करा देल जात ।) (फूसु॰4.21)
43 गमछी (बचल खैनी बजरंगी खा हे, आऊ एगो आरी पर झाड़ के अप्पन गमछी बिछावऽ हे ।) (फूसु॰9.4)
44 गलमोछा (फूलवा: {भीतर से} बचावऽ ... बचावऽ ... बाबू ... {एतनहीं में दूगो गलमोछा बाँधले आदमी एगो के हाथ बन्दूक आऊ दोसर के हाथ में पसुली हे, आके बुधना के पकड़ऽ हथ ।}) (फूसु॰22.4)
45 गारत (धीरे बोल, नञ् तो तोहर आँख के सामने फूलवा के इज्जत गारत में मिला देवउ ।) (फूसु॰22.13)
46 गोड़ (भइंसी के गोड़ फिसुलला से बेस अंटकहीं में हे भइया ।) (फूसु॰5.1)
47 गोली ("गोला" का स्त्री॰; ~ गइया) (सूरूज नीचे लटकल जायत हथ - का खायत आज गोली गइया । चली एकाध ओड़िया घास गढ़ ले ही ।) (फूसु॰8.10)
48 गोस्सा (= गुस्सा) (दरोगा कुरसी पर बइठऽ हथ । फूलवा गोस्सा में लाल-पिअर हो जा हे ।) (फूसु॰35.10)
49 घरइया (बूड़बक, अरे गोरकी तो घरइया नाम हे, आऊ दोसरका का हे ?) (फूसु॰8.17)
50 घिचिर-पिचिर (दरोगा: इ का घिचिर-पिचिर करइत ह । साफ-साफ बतलावऽ, बूझौल बूझौला से का फैदा ।) (फूसु॰14.17)
51 चलाक (= चलाँक; चालाक) (फूलवा: बाकि ... इ का लेल देइत हऽ मालिक ? - बजरंगी: ढेर चलाक मत बनऽ, चुपचाप रख लऽ ।) (फूसु॰10.13)
52 चाही (ठीके कहल गेल हे - नीच के दूगो पइसा दे देवे के चाही बाकि दिमाग नञ् । खाड़-खाड़ मुँह का ताकइत हें ।; बुधना के बेटी हमर मन के मंदिर में समा गेल हे । कुकरम चाहे जे होवे, उ हमरा चाही ... ।) (फूसु॰3.9; 4.1)
53 चिखना (= चखना) (नेताजी: ... पहिले इ बतावऽ इंतजाम का का कइले ह । छूटा बोतल, मुरगा आऊ मछली के चिखना, आऊ उपरे से सहर के नामी-गिरामी रेखा बाई के मोजरा ।) (फूसु॰13.15)
54 चिनौटी (= चुनौटी) (चिनौटी निकाल के डंटा काँख तर चाँप के खैनी मलइत एने से ओने घुमऽ फिरऽ हे ।) (फूसु॰29.15)
55 चौका-बरतन (मालिक ... जब हम बुधना से कहली कि कल से तोर बेटी मालिक घर चौका-बरतन करत तऽ उ बोलल ... {जोर से} जा, अपन मालिक से कह दऽ, हम्मर बेटी हमरा रहते इ काम नञ् करत ।) (फूसु॰2.2)
56 छोट (= छोटा) (लऽ, तऽ तू हमरा बड़का बूझऽ हऽ आउ अपना के छोटका । आदमी जनम से बड़ आउ छोट नञ् होवे, उ तो करम से होवऽ हे ।) (फूसु॰19.3)
57 छोटका (लऽ, तऽ तू हमरा बड़का बूझऽ हऽ आउ अपना के छोटका । आदमी जनम से बड़ आउ छोट नञ् होवे, उ तो करम से होवऽ हे ।) (फूसु॰19.2)
58 छोट-मोट (तऽ एही बात पर छोट-मोट पाटी हो जाय, का राजो भइया ।) (फूसु॰15.21)
59 जइसहीं (जइसहीं खाँची बजरंगी पकड़ऽ हे कि फुलवा अप्पन गोड़ से ओकर पेट में मारऽ हे, उ गिर के कराहे लगऽ हे ।) (फूसु॰10.16)
60 जरना (= जलना) (रट-रट, मर-मर काम करऽ हे, लेकिन भूखे पेट जरऽ हे । देह पर कपड़ा फटल-चिटल, सुखुआ अप्पन नाम धरऽ हे ॥ जाके देखऽ गाँव-गाँव में, टुटल जे मकान हे । उ कोनो नञ् देओता-देवी, भारत के मजूर-किसान हे ॥) (फूसु॰20.13)
61 जराना (= जलाना) (जाड़ा के कनकनियों में जे अप्पन देह भिड़ावऽ हे । गरमी के झनझनियों में जे अप्पन देह जरावऽ हे ॥ बरसा बरसे बिजली चमके, बइठे के नञ् नाम हे । उ कोनो नञ् देओता-देवी, भारत के मजूर-किसान हे ॥) (फूसु॰20.9)
62 जहिया (आहिस्ते बोल, नञ् तो कान के चदरा के साथे हम्मर दिलो के चदरा फट जायत । जहिया से बुधना के बेटी के देखली हे - नऽ रात के निन नऽ दिन के चैन हे ।) (फूसु॰2.7)
63 जिनगी (आगे एगो लबज भी नञ् निकालऽ । हम तोहरे से पूछल चाहऽ ही फूल के बिना भौंरा के जिनगी कोनो जिनगी हे ।; हाँ ... बजरंगिया । अप्पन जिनगी में केते के जिनगी उजाड़ले ही, अब एगो आऊ के बारी हे ।; बूड़बक ! फूलवा नञ्, बुधना के जिनगी उजड़त आऊ फिन फूलवा अकेले हार-पार के हमरा भीर आयत ।) (फूसु॰7.19, 20; 11.19, 20; 12.12)
64 जीऊ (राजो भइया ! अब जीऊ में आवऽ हो कि पोलटिस छोड़ देई । बड़ी गन्दा भे गेलवऽ । मंगरा-बुधना अंधरा-लंगड़ा सब तो नेते हो गेल । अच्छा भइया उलूल-जुलूल बात छोड़ऽ । एगो बात कहिओ ।) (फूसु॰4.12)
65 जेहल (= जेल) (हम जे कुछ कहली ठीक कहली । अब तोहनी सब जेहल के हावा खाय के तइयारी करऽ ।; बाबू जी के जेहल जाय से पहिले हम फूलवा के मांग में सेनुर डाल के समाज के सड़ल रेवाज तोड़ल चाहऽ ही ।) (फूसु॰38.8, 20)
66 झँपकी (एस॰पी॰ निवास पर कुरसी-टेबुल लगल हे । कोना में एगो टूल पर मोटू सिपाही जेकर बड़का लादा हे, झँपकी पर झँपकी लेइत हे ।) (फूसु॰28.3)
67 झनझनी (= झनझन्नी) (जाड़ा के कनकनियों में जे अप्पन देह भिड़ावऽ हे । गरमी के झनझनियों में जे अप्पन देह जरावऽ हे ॥ बरसा बरसे बिजली चमके, बइठे के नञ् नाम हे । उ कोनो नञ् देओता-देवी, भारत के मजूर-किसान हे ॥) (फूसु॰20.8)
68 झाँपना-पोतना (सिपाही आऊ गाँववालन मिल के लास झाँप-पोत के उठावऽ हथ ।) (फूसु॰27.10-11)
69 टीसटीसाना (दरद से पेट के अँतड़ी टीसटीसायत हे, बाकि बजरंगबली के किरपा से बजरंगी पाछे नञ् हटत । कोनो उपाय-पतर लौक रहल हे का मालिक ?) (फूसु॰11.15)
70 टूल (= स्टूल) (एस॰पी॰ निवास पर कुरसी-टेबुल लगल हे । कोना में एगो टूल पर मोटू सिपाही जेकर बड़का लादा हे, झँपकी पर झँपकी लेइत हे ।) (फूसु॰28.2)
71 टेम (= टैम; टाइम, समय) (साहेब के आवे के टेम हो गेल, निन तोड़े के चाही ।) (फूसु॰29.13)
72 टोना (राजो बाँह फैलावऽ हे, फूलवा राजो के गाल पर थप्पड़ मारऽ हे । राजो गाल टोवे लगऽ हे ।) (फूसु॰35.19)
73 डंटा (फिन से डंटा में ओटख सुतऽ हे, बाकि तनि देरी में केकरो आवे के अवाज सुन के मोटू हड़बड़ायल उठ के खाड़ा हो जा हे ।; चिनौटी निकाल के डंटा काँख तर चाँप के खैनी मलइत एने से ओने घुमऽ फिरऽ हे ।) (फूसु॰28.13; 29.15)
74 डरामा (= ड्रामा) (राजो - डरामा बन्द कर । नजीक आवे दे ।) (फूसु॰9.18)
75 डलडा-फलडा (भगवान ! इ ठीका हाथ से नञ् जाय के चाही । मिलला पर पूरे पाँच किलो लड्डू चढ़ायब । आऊ हाँ, कोनो डलडा-फलडा के नञ्, घीउ के ...।) (फूसु॰5.18)
76 डिपटी (= ड्यूटी) (एस॰पी॰: कोनो आयल हल का ? - मोटू: हम का जानि । हम्मर डिपटी तो अपने के आवे के बाद सुरू होवऽ हे सर !) (फूसु॰30.8)
77 ढूढ़ना (= ढूँढ़ना) (दरोगा: का ... बेटी गायब ? ओ ! तऽ तो इ पर-परेम के ममला हे । सिपाही ! घर के तलासी लऽ । कहीं कोनो परेम के पाती भेंटाय तऽ ओकरा ढूढ़ऽ ।) (फूसु॰25.15)
78 ढेर (= जादे, बहुत) (फूलवा: बाकि ... इ का लेल देइत हऽ मालिक ? - बजरंगी: ढेर चलाक मत बनऽ, चुपचाप रख लऽ ।) (फूसु॰10.13)
79 तइयो (= तो भी) (राजो भइया ! साँप भी मरा गेल आऊ लाठी भी नञ् टूटल । तइयो थोथना काहे लटकैले हऽ ।) (फूसु॰33.4)
80 तमहेड़ा (इ सरवा लादा नञ् तमहेड़ा हे तमहेड़ा ।) (फूसु॰30.5)
81 तर-तइयारी (गाँव के लोगन पता करऽ कि बुधना के बेटी आखिर गेल कहाँ ? आऊ हाँ, बुधन के सद्गति के तर-तइयारी करऽ ।) (फूसु॰27.3-4)
82 तरहथी (दहीना हाथ के तरहथी में खुजली होवे लगल । बुझा हे बड़ा माल हाथ लगत ।) (फूसु॰5.2)
83 थोथना (राजो भइया ! साँप भी मरा गेल आऊ लाठी भी नञ् टूटल । तइयो थोथना काहे लटकैले हऽ ।) (फूसु॰33.4)
84 दर-दरोगा (राजो: हूँ ... अरे दर-दरोगा के पिमेंटे का हे । ठीक से चुल्हा पर हँड़िया चढ़ल मोस्किल हे । इ तो ऊपर-झाप्पर हे जे से बुलेट आऊ होण्डा हुनहुना हे ।) (फूसु॰15.2)
85 दर-दुस्मनी (हमनी गरीब के का डर हे । नऽ धन नऽ दौलत, नऽ रुपैया नऽ पइसा । केकरो से दरो-दुस्मनी नऽ ।) (फूसु॰19.15)
86 दरोगा (= दारोगा) (दरोगा जी ! अपने तो कनून के रच्छा करेवाला ही । अब इ बोली - इ कहाँ के कनून हे कि हमर मन में गड़ल मूरती हमरा भीर नञ् आवे ।) (फूसु॰14.11)
87 दहीना (= दाहिना) (दहीना हाथ के तरहथी में खुजली होवे लगल । बुझा हे बड़ा माल हाथ लगत ।) (फूसु॰5.2)
88 दुहारी (कहऽ, दिल के दुहारी खोल के कहऽ ।) (फूसु॰4.16)
89 देखल (= देखलक) (राजो: बूड़बक ! फूलवा नञ्, बुधना के जिनगी उजड़त आऊ फिन फूलवा अकेले हार-पार के हमरा भीर आयत । अभी चल बजरंगिया, उपाय होयत । कोई देखल तो नञ् रे ... ? - बजरंगी: कोई नञ् देखल हे मालिक, बजरंगबली के किरपा से ।) (फूसु॰12.4, 5)
90 देल (= स॰क्रि॰ देलक) (राजो: मुडे खराब कर देल ... ।; एगो सहरी बाबू के साथे घंटा पहर बितावे के हजार रुपैया कम हल का । जाने हथ देल पगली ।; उ अप्पन इयार के फेरा में बापे के मुड़ी कटवा देल ।) (फूसु॰3.16; 9.13; 26.7)
91 दोसरका (बूड़बक, अरे गोरकी तो घरइया नाम हे, आऊ दोसरका का हे ?) (फूसु॰8.18)
92 धूरी (= धूली) (फूलवा: इ का ... {खचिया आउ हँसुआ गिर जा हे} कहइत हऽ । हम तो तोहर गोड़ के धूरियो के बराबर नञ् ही छोटे ... ।) (फूसु॰7.15)
93 नञ् (दरोगा जी ! अपने तो कनून के रच्छा करेवाला ही । अब इ बोली - इ कहाँ के कनून हे कि हमर मन में गड़ल मूरती हमरा भीर नञ् आवे ।) (फूसु॰14.13)
94 नदान (= नादान) (नेताजी: एगो नदान लइका । एकर बात के बुरा नञ् मानिहऽ । राजो भइया ! आँख लाल काहे कैले ह । आखिर खून तो अपने हे ।; लइका नदान हे । सेयान होवे दऽ, सभे कुछ समझ जायत ।) (फूसु॰17.13; 33.16)
95 नामी-गिरामी (नेताजी: ... पहिले इ बतावऽ इंतजाम का का कइले ह । छूटा बोतल, मुरगा आऊ मछली के चिखना, आऊ उपरे से सहर के नामी-गिरामी रेखा बाई के मोजरा ।) (फूसु॰13.16)
96 निक (= नीक, अच्छा) (बाप के अन्तिम इच्छा के पुराई बेटा के हाथ से होवे तऽ इ से आऊ निक बात का हे ।) (फूसु॰37.19)
97 निगुन (= निगुना, निगुनियाँ, निगुनी) (हमरे नियन सभे के नजर खुल गेल हे । अब कोनो के बाल-बुतरू हमरा नियन निगुन अऊँठा छाप नञ् रहत ।) (फूसु॰21.18)
98 निन (= नीन; नींद) (आहिस्ते बोल, नञ् तो कान के चदरा के साथे हम्मर दिलो के चदरा फट जायत । जहिया से बुधना के बेटी के देखली हे - नऽ रात के निन नऽ दिन के चैन हे ।; ओह ... मछड़ ... तू हम्मर निन खराब कैलऽ । ऐय ... हम तोहरा नञ् छोड़वऽ, बनुक नञ्, तोप से उड़ा देव ।; भगमान ! आदमी तो तोहरा से किसिम-किसिम के वरदान माँगऽ हथ । हमरा तो तोरा से बस एकी गो आरजू-मिनती हे कि तू हमरा मरला के बाद निनलोक भेजिहऽ जहाँ हम निन में तर रहव ।) (फूसु॰2.8; 28.10; 29.12)
99 निनलोक (भगमान ! आदमी तो तोहरा से किसिम-किसिम के वरदान माँगऽ हथ । हमरा तो तोरा से बस एकी गो आरजू-मिनती हे कि तू हमरा मरला के बाद निनलोक भेजिहऽ जहाँ हम निन में तर रहव ।) (फूसु॰29.11)
100 निपुत्तर (अइसन पुत से निपुतरे निमन हल । बाकि का करी । बजरंगिया ! खाय-पानी के इंतजाम कर ।) (फूसु॰17.16)
101 निमन (= नीमन; अच्छा) (अइसन पुत से निपुतरे निमन हल । बाकि का करी । बजरंगिया ! खाय-पानी के इंतजाम कर ।) (फूसु॰17.16)
102 निमन-निमन (बुधन: वाह ! बेटी वाह ! किताब-कोपी में अइसनो निमन-निमन बात लिखल रहऽ हे ? - फूलवा: {खाड़ होके} हाँ बाबूजी ! एकरो से बेस-बेस बात रहऽ हे । पढ़तऽ तऽ जानतऽ ...।) (फूसु॰21.12)
103 नियन (= नियर; समान, जैसा) (हम तऽ ठहरली अऊँठा छाप । बाकि तोरा पढ़ा के अप्पन धरम पूरा कर देली । हमरे नियन सभे के नजर खुल गेल हे । अब कोनो के बाल-बुतरू हमरा नियन निगुन अऊँठा छाप नञ् रहत ।) (फूसु॰21.17)
104 निसा (= नशा) (हाँ बेटा ! हम्मर आँख पर दौलत के निसा चढ़ल हल, अब हट गेल ।) (फूसु॰39.18)
105 नेसलाइट (= नक्सलाइट) (जे सुनत उ एही कहत इमे नेसलाइट के हाथ हे, आऊ दोसर बिन बजार के पेपरो में निकलत कि नेसलाइट एगो आउ के जान ले लेल ।; हम्मर नजर में दूए बात हो सकऽ हे - पहिल इ कि इ ममला परेम के हे आऊ दोसर इ कि इमें नेसलाइट के हाथ हे ।; बाकि नेसलाइट इहाँ ... नञ् ... तोहर अप्पन दिमाग का कहऽ हो नेताजी ?) (फूसु॰15.17, 18; 26.18, 19)
106 पर-परेम (दरोगा: का ... बेटी गायब ? ओ ! तऽ तो इ पर-परेम के ममला हे । सिपाही ! घर के तलासी लऽ । कहीं कोनो परेम के पाती भेंटाय तऽ ओकरा ढूढ़ऽ ।; नेताजी: राजो भइया ! ममला तो परे-परेम के लगऽ हे । - मधु: इ एकदमे झूठ हे ।) (फूसु॰25.13; 26.21)
107 पसुली (= हँसुली; पासी का ताड़-खजूर छेवने का धारदार हँसिया; काटने का बिना दाँतों का औजार) (फूलवा: {भीतर से} बचावऽ ... बचावऽ ... बाबू ... {एतनहीं में दूगो गलमोछा बाँधले आदमी एगो के हाथ बन्दूक आऊ दोसर के हाथ में पसुली हे, आके बुधना के पकड़ऽ हथ ।}; आदमी २ बुधना के छाती पर झुँक के अप्पन गोड़ रखऽ हे आउ पसुली नीचे ले जाके बुधना के गरदन काट ले हे ।) (फूसु॰22.5; 23.18)
108 पाछे (= पीछे) (दरद से पेट के अँतड़ी टीसटीसायत हे, बाकि बजरंगबली के किरपा से बजरंगी पाछे नञ् हटत । कोनो उपाय-पतर लौक रहल हे का मालिक ?) (फूसु॰11.16)
109 पाटी (= पार्टी) (तऽ एही बात पर छोट-मोट पाटी हो जाय, का राजो भइया ।) (फूसु॰15.21)
110 पीच (नेताजी: बिलौक से अप्पन गाँव तक पक्की रोड बने लेल ठेका होवेवाला हे, बोलऽ - ठेका चाही ? - राजो: अरे भइया ! नेकी आऊ पूच-पूच । हाथ से इ मोका नञ् निकले के चाही । फैदा आधे-आध । अरे रोड का बनत, गढ़ा-गुच्ची भर-भूर के ऊपरे से पीच के पोताइ करा देल जात ।) (फूसु॰4.22)
111 पीताहर (राजो भइया ! बोतल भी हे, गिलास भी हे, हमनी एकर पीताहर भी ही बाकि पियावेवाली ?) (फूसु॰16.10)
112 पूच-पूच (= पूछ-पूछ) (नेताजी: बिलौक से अप्पन गाँव तक पक्की रोड बने लेल ठेका होवेवाला हे, बोलऽ - ठेका चाही ? - राजो: अरे भइया ! नेकी आऊ पूच-पूच । हाथ से इ मोका नञ् निकले के चाही । फैदा आधे-आध । अरे रोड का बनत, गढ़ा-गुच्ची भर-भूर के ऊपरे से पीच के पोताइ करा देल जात ।) (फूसु॰4.17)
113 पेन्हना (= पहनना) (बुधन के बेटी फूलवा साड़ी पेन्हले संझौती देखावित हे । जइसहीं उ संझौती के दीया रखऽ हे कि ओही घड़ी मधुकर धीरे से आके पीछे से फूलवा के आँख मून्दऽ हे ।) (फूसु॰18.1)
114 पोलटिस (= पोलिटिक्स, राजनीति) (राजो भइया ! अब जीऊ में आवऽ हो कि पोलटिस छोड़ देई । बड़ी गन्दा भे गेलवऽ । मंगरा-बुधना अंधरा-लंगड़ा सब तो नेते हो गेल । अच्छा भइया उलूल-जुलूल बात छोड़ऽ । एगो बात कहिओ ।) (फूसु॰4.12)
115 पोसमाटम (= पोस्टमॉर्टम) (दरोगा: नेता होके इ बचकानी बात । खून होल हे, खून । लास के पोसमाटम होयत ।) (फूसु॰27.6)
116 फरना-फूलना (युग-युग जीअ, फरऽ-फूलऽ । उ सभे के भी गोड़ लगऽ ।) (फूसु॰39.14)
117 फारे-फार (बजरंगी: नञ् मालिक । ओकर दिमाग तो सतमा आसमान पर चढ़ल हे, बजरंगबली के किरपा से । - राजो: {दाँत किच के} का ... सतमा आसमान, हम नञ् समझली । फारे-फार बतलाव ।) (फूसु॰1.16)
118 फिन (= फिर) (बूड़बक ! फूलवा नञ्, बुधना के जिनगी उजड़त आऊ फिन फूलवा अकेले हार-पार के हमरा भीर आयत ।) (फूसु॰12.2)
119 फिनो (= फिन; फिर) (मधुकर चल जा हे । मोटू टूल पर झँपकी लेवे लगऽ हे । झँपकी लेइत फिनो गिर जा हे ।) (फूसु॰29.6)
120 फिसुलना (= फिसलना) (भइंसी के गोड़ फिसुलला से बेस अंटकहीं में हे भइया ।) (फूसु॰5.1)
121 बचकानी (~ बात) (दरोगा: नेता होके इ बचकानी बात । खून होल हे, खून । लास के पोसमाटम होयत ।) (फूसु॰27.5)
122 बजार (= बाजार) (तू तो कहउत के पक्किया माहटर हऽ, नञ् जानऽ का - हाथी चले बजार कुत्ता भूके हजार । तऽ उसे हाथी बजार जाय ला तो नञ् छोड़ देत ।) (फूसु॰18.14, 15)
123 बड़ (= बड़ा) (लऽ, तऽ तू हमरा बड़का बूझऽ हऽ आउ अपना के छोटका । आदमी जनम से बड़ आउ छोट नञ् होवे, उ तो करम से होवऽ हे ।) (फूसु॰19.3)
124 बड़का (गाँव के बड़का राजो सिंह के घर में कुरसी-टेबुल लगल हे । एगो कोना में हनुमान जी के मूरती सजल हे । राजो पूजा करित धूप देखावित हथ ।; गाँव के पगडंडी । ओड़िया आऊ हँसुआ लेले बुधन के बेटी फूलवा आवऽ हे । ओही घड़ी कंधा में बड़का बैग लटकैले सूटबूट में राजो सिंह के बेटा मधुकर आवऽ हे ।; लऽ, तऽ तू हमरा बड़का बूझऽ हऽ आउ अपना के छोटका । आदमी जनम से बड़ आउ छोट नञ् होवे, उ तो करम से होवऽ हे ।) (फूसु॰1.1; 6.2; 19.1)
125 बड़ी (= बहुत) (राजो भइया ! अब जीऊ में आवऽ हो कि पोलटिस छोड़ देई । बड़ी गन्दा भे गेलवऽ । मंगरा-बुधना अंधरा-लंगड़ा सब तो नेते हो गेल । अच्छा भइया उलूल-जुलूल बात छोड़ऽ । एगो बात कहिओ ।; राजो: दरोगा जी ! बड़ी नेक हल बुधना, बाकि एकर जान कउन लेल, पता नञ् । रात के हल्लो-गुदाल नञ् होल । - दरोगा: हम बड़ी सरमिंदा ही ।) (फूसु॰4.13; 25.5, 8)
126 बनुक (= बन्हूक; बन्दूक) (ओह ... मछड़ ... तू हम्मर निन खराब कैलऽ । ऐय ... हम तोहरा नञ् छोड़वऽ, बनुक नञ्, तोप से उड़ा देव ।) (फूसु॰28.11)
127 बाकि (= लेकिन) (राजो: {खाड़ा होके} कउन दवाई, कइसन दवाई । देह के बेमारी खाति दवाई तो होवऽ हे बाकि दिल के बेमारी के दवाई {मुड़ी हिला के} कुछो नञ् हे ।; बुधन: ... जिनगी भर हम अपने के हुकुम बजौली, आऊ अंतिम साँस तक बजाएब बाकि ... - राजो: बाकि अप्पन बेटी के काम करे खाति इहाँ न भेजवे ... इहे कहल चाहऽ हें न ?; तू कहइत ह, तऽ हम जाइत ही, बाकि जे हम कहली से इयाद रखिहऽ ।) (फूसु॰2.13; 3.4, 5; 8.4)
128 बाल-बुतरू (हम तऽ ठहरली अऊँठा छाप । बाकि तोरा पढ़ा के अप्पन धरम पूरा कर देली । हमरे नियन सभे के नजर खुल गेल हे । अब कोनो के बाल-बुतरू हमरा नियन निगुन अऊँठा छाप नञ् रहत ।) (फूसु॰21.18)
129 बिलौक (= ब्लॉक, प्रखण्ड) (बिलौक से अप्पन गाँव तक पक्की रोड बने लेल ठेका होवेवाला हे, बोलऽ - ठेका चाही ?) (फूसु॰4.17)
130 बुझाना (= लगना, प्रतीत होना) (बुधना के बुद्धि हेरायल हे मालिक । गोरकी इस्कूल-कौलेज में का पढ़े लगल कि बुधना के बुझाय लगल हम्मर बेटी राजबाला हो गेल ।; दहीना हाथ के तरहथी में खुजली होवे लगल । बुझा हे बड़ा माल हाथ लगत ।) (फूसु॰3.19; 5.3)
131 बूझाना (बूझौल ~) (दरोगा: इ का घिचिर-पिचिर करइत ह । साफ-साफ बतलावऽ, बूझौल बूझौला से का फैदा ।) (फूसु॰14.18)
132 बूझौल (दरोगा: इ का घिचिर-पिचिर करइत ह । साफ-साफ बतलावऽ, बूझौल बूझौला से का फैदा ।) (फूसु॰14.18)
133 बूड़बक (= बुड़बक) (बूड़बक, अरे गोरकी तो घरइया नाम हे, आऊ दोसरका का हे ?; इ तो अइसन चीज हे जेकरा देख के बूढ़ भी जवान आऊ बूड़बक भी सेयान हो जा हथ ।) (फूसु॰8.17; 16.17)
134 बेमारी (राजो: {खाड़ा होके} कउन दवाई, कइसन दवाई । देह के बेमारी खाति दवाई तो होवऽ हे बाकि दिल के बेमारी के दवाई {मुड़ी हिला के} कुछो नञ् हे ।) (फूसु॰2.13, 14)
135 भइंसी (भइंसी के गोड़ फिसुलला से बेस अंटकहीं में हे भइया ।) (फूसु॰4.22)
136 भगमान (= भगवान) (भगमान ! आदमी तो तोहरा से किसिम-किसिम के वरदान माँगऽ हथ । हमरा तो तोरा से बस एकी गो आरजू-मिनती हे कि तू हमरा मरला के बाद निनलोक भेजिहऽ जहाँ हम निन में तर रहव ।) (फूसु॰29.8)
137 भरना-भूरना (नेताजी: बिलौक से अप्पन गाँव तक पक्की रोड बने लेल ठेका होवेवाला हे, बोलऽ - ठेका चाही ? - राजो: अरे भइया ! नेकी आऊ पूच-पूच । हाथ से इ मोका नञ् निकले के चाही । फैदा आधे-आध । अरे रोड का बनत, गढ़ा-गुच्ची भर-भूर के ऊपरे से पीच के पोताइ करा देल जात ।) (फूसु॰4.21)
138 भिड़काना (= भिरकाना, लगाना) (फूलवा: केमाड़ी भिड़कैलऽ हे कि नञ् ? - बुधन: नञ् बेटी ! जा, जाके भिड़का आवऽ । {फूलवा केमाड़ी भिड़कावे खाति जा हे ।}) (फूसु॰21.20, 21, 22)
139 भीर (= भीरी; पास) (बूड़बक ! फूलवा नञ्, बुधना के जिनगी उजड़त आऊ फिन फूलवा अकेले हार-पार के हमरा भीर आयत ।; दरोगा जी ! अपने तो कनून के रच्छा करेवाला ही । अब इ बोली - इ कहाँ के कनून हे कि हमर मन में गड़ल मूरती हमरा भीर नञ् आवे ।; दरोगा: इ हमरा भीर रपट लिखावे खाति गेल हल बेचारी । हम कहली चलऽ एस॰पी॰ भीर आऊ इहाँ ले अइली रात के अन्हरिया में ।) (फूसु॰12.3; 14.13; 35.6, 7)
140 भुइंटोली (आज छोड़ऽ भइया ! मुरगा-मोसल्लम के इंतजाम भुइंटोलिया पर होल हे । कहियो राते रंगीन कैल जायत ।) (फूसु॰5.11)
141 भूकना (= भूकना) (तू तो कहउत के पक्किया माहटर हऽ, नञ् जानऽ का - हाथी चले बजार कुत्ता भूके हजार । तऽ उसे हाथी बजार जाय ला तो नञ् छोड़ देत ।) (फूसु॰18.14)
142 मइसना (= मैंजना, दबाना) (बजरंगिया ! जरा गोड़ मइस । {बजरंगी गोड़ मइसऽ हे ।}) (फूसु॰9.7)
143 मचोड़ना (जउन फूल हमरा भा जा हे ओकरा खाली तोड़ के सूघवे नञ् करऽ ही, बिना मचोड़ले दम कहाँ ले ही, का बजरंगिया !) (फूसु॰8.23)
144 मछड़ (= मच्छड़; मच्छर) (ओह ... मछड़ ... तू हम्मर निन खराब कैलऽ । ऐय ... हम तोहरा नञ् छोड़वऽ, बनुक नञ्, तोप से उड़ा देव ।) (फूसु॰28.9)
145 मछी (= मच्छी) (छि ! छि ! छि ! छि ! इ दाल में मछी कहाँ से गिर गेल । तू कउन, सरम तनिको नञ् लगे - एगो मोट-झोंट आदमी के निन खराब करयत ।) (फूसु॰29.1)
146 मजूर-किसान (बात सुनऽ हम सुनवित हिय, जे अप्पन देस के जान हे । उ कोनो नञ् देओता-देवी, भारत के मजूर-किसान हे ॥) (फूसु॰20.5)
147 मड़ोड़ना (= मरोड़ना) (असली नागिन तो अभी जिंदा हे, जब तक ओकर फन नञ् मड़ोड़ब, तब तक चैन कहाँ हे । उ ... माने फूलवा नागिन हे नागिन । अरे बुधना तो बेचारा हल, उ तो फोकटिये में मरा गेल ।) (फूसु॰33.6)
148 ममला (= मामला) (दरोगा: का ... बेटी गायब ? ओ ! तऽ तो इ पर-परेम के ममला हे । सिपाही ! घर के तलासी लऽ । कहीं कोनो परेम के पाती भेंटाय तऽ ओकरा ढूढ़ऽ ।; हम्मर नजर में दूए बात हो सकऽ हे - पहिल इ कि इ ममला परेम के हे आऊ दोसर इ कि इमें नेसलाइट के हाथ हे ।; नेताजी: राजो भइया ! ममला तो परे-परेम के लगऽ हे । - मधु: इ एकदमे झूठ हे ।) (फूसु॰25.13; 26.17, 21)
149 मर-मजूरी (बाबुजी घरे नञ् हथ । उ देरी से अयतन, काहे कि मर-मजूरी अब तो सहर जाके करे पड़ऽ हे ।) (फूसु॰19.7)
150 मलपुआ (= मालपूआ) (रेखा बाई कोई अइसन तान छेड़ऽ कि मन मलपुआ नियन लब-लबा-लब हो जाय ।) (फूसु॰16.19)
151 महजिद (मियाँ के दौड़ ~ तक) (उ ससुरी जायत कहाँ ? मियाँ के दौड़ महजिद तक । उ थाना गेल होयत ।) (फूसु॰34.22)
152 माहटर (= मास्टर) (तू तो कहउत के पक्किया माहटर हऽ, नञ् जानऽ का - हाथी चले बजार कुत्ता भूके हजार । तऽ उसे हाथी बजार जाय ला तो नञ् छोड़ देत ।) (फूसु॰18.13)
153 मिलिट-मिलिट (= मिनट-मिनट) (एस॰पी॰: कोनो आयल हल का ? - मोटू: हम का जानि । हम्मर डिपटी तो अपने के आवे के बाद सुरू होवऽ हे सर ! - एस॰पी॰: आऊ हमरा आवे से पहिले तू बइठ के झँपकी लेहऽ ! - मोटू: नञ् सर ! {कान धर के रोवइत} आझ तो हम मिलिट-मिलिट पर आँख फाड़-फाड़ के देखइत हली ।) (फूसु॰30.13)
154 मुड़ी (= सिर) (राजो: {खाड़ा होके} कउन दवाई, कइसन दवाई । देह के बेमारी खाति दवाई तो होवऽ हे बाकि दिल के बेमारी के दवाई {मुड़ी हिला के} कुछो नञ् हे ।; अरे ररे ! मुड़ी काहे झुकौले हऽ, हमरा से नञ् बोलवऽ का ?; नौकरी करे के हे तऽ नेताजी के बात कउन मुँह से उठाब । बाकि एगो हमरो बात मानब - हलाल होवेवाला आदमी के मुड़ी देह से अलगे होवे के चाही ।) (फूसु॰2.14; 6.8; 15.11)
155 मुरगा-मोसल्लम (आज छोड़ऽ भइया ! मुरगा-मोसल्लम के इंतजाम भुइंटोलिया पर होल हे । कहियो राते रंगीन कैल जायत ।) (फूसु॰5.10)
156 मुसुर-मुसुर (लगऽ हे गोरकीये मुसुर-मुसुर चलइत आवित हे । हूँ, ससुरी के का चाल हे ।) (फूसु॰9.15)
157 मोजरा (= मुजरा) (नेताजी: ... पहिले इ बतावऽ इंतजाम का का कइले ह । छूटा बोतल, मुरगा आऊ मछली के चिखना, आऊ उपरे से सहर के नामी-गिरामी रेखा बाई के मोजरा ।) (फूसु॰13.17)
158 मोट-झोंट (छि ! छि ! छि ! छि ! इ दाल में मछी कहाँ से गिर गेल । तू कउन, सरम तनिको नञ् लगे - एगो मोट-झोंट आदमी के निन खराब करयत ।) (फूसु॰29.2-3)
159 रंडी-पतुरिया (दरोगा: नाचऽ गावऽ पीअ पीआवऽ ...। - फूलवा: हम कोनो रंडी-पतुरिया ही का । जब ले देह में जान हे, इ नञ् करव ।) (फूसु॰36.22)
160 रपट (दरोगा: इ हमरा भीर रपट लिखावे खाति गेल हल बेचारी । हम कहली चलऽ एस॰पी॰ भीर आऊ इहाँ ले अइली रात के अन्हरिया में ।) (फूसु॰35.6)
161 रस्ता (= रास्ता) (राजो: ... फूलवा के जाय के रस्ता तो इहे हे, रे .. ? - बजरंगी: हाँ, किरिन लुकलुकाइत हे, उ आविते होयत ।) (फूसु॰9.8)
162 रिपोट (= रपट; रिपोर्ट) (थाना के रिपोट के मोताबिक बुधना के हत्या के पीछे फूलवा के हाथ हे, जे ओही रात से अप्पन परेमी के साथे फरार हो गेल हे ।) (फूसु॰31.6)
163 रेवाज (= रिवाज) (बाबू जी के जेहल जाय से पहिले हम फूलवा के मांग में सेनुर डाल के समाज के सड़ल रेवाज तोड़ल चाहऽ ही ।) (फूसु॰38.22)
164 लंगा (= नंगा) (तऽ तू अइसे नञ् मानवऽ । बजरंगिया ! एकरा सड़िया खोल के लंगा कर दे ... ।) (फूसु॰37.14)
165 लतार (= लताड़, लत्ती, लात की मार) (मोहरारू के एकी थप्पड़ में घबरा गेलऽ । अरे भइया, गाय के दूध पियल चाहऽ हऽ तऽ लतार तो सहहीं पड़त ।) (फूसु॰36.2)
166 लपता (= लापता) (बुधन ... । तू केते नेक आदमी हलऽ ... तोहर इ हाल के कैल ... कने गेल बुधन के बेटी ? - राजो: उ तो ससुरी रात हीं से लपता हे भाई ! - नेताजी: का कहलऽ ... रात हीं से लपता, तऽ एकर माने {सोच के} उ अप्पन इयार के फेरा में बापे के मुड़ी कटवा देल । - मधु: रात के जरो हल्ला-गुदाल नञ् होल, तऽ इ कइसे मालूम होल कि फूलवा रात हीं से लपता हे । गाँववालन, इ सभे झूठ हे । इमें हम्मर बाप के चाल हे ।) (फूसु॰26.4, 5, 10)
167 लबज (= लफ्ज) (आगे एगो लबज भी नञ् निकालऽ । हम तोहरे से पूछल चाहऽ ही फूल के बिना भौंरा के जिनगी कोनो जिनगी हे ।) (फूसु॰7.18)
168 लम्बर (= नम्बर) (हम तो लम्बर दू गेल हली । आके केमाड़ी खोल के देखली तऽ आँख बन्द आऊ डिबिया गायब हल बजरंगबली के किरपा से ।) (फूसु॰34.14)
169 लादा (= लेदा, तोंद) (एस॰पी॰ निवास पर कुरसी-टेबुल लगल हे । कोना में एगो टूल पर मोटू सिपाही जेकर बड़का लादा हे, झँपकी पर झँपकी लेइत हे ।; इ सरवा लादा नञ् तमहेड़ा हे तमहेड़ा ।) (फूसु॰28.3; 30.5)
170 लास (= लहास; लाश) (बुधन के खून से सनायल लास पड़ल हे । ... लास देखके दरोगा जी टोपी उतारऽ हथ ।) (फूसु॰25.1, 3)
171 लुकलुकाना (बेर ~, किरिन ~) (राजो: ... फूलवा के जाय के रस्ता तो इहे हे, रे .. ? - बजरंगी: हाँ, किरिन लुकलुकाइत हे, उ आविते होयत ।) (फूसु॰9.9)
172 लुगा (मधु: ... का होल हल काकी के ? - फूलवा: सच का जानी । तोहरे घरे धान उसनैत लुगा में आग लग गेल हल आउ ... ।) (फूसु॰7.8)
173 लेल (= लगि, लागि; के लिए) (हम तो जीत लेल बगावत के झंडा उठा लेली हे ।) (फूसु॰31.14)
174 लेल (= स॰क्रि॰ लेलक) (जे सुनत उ एही कहत इमे नेसलाइट के हाथ हे, आऊ दोसर बिन बजार के पेपरो में निकलत कि नेसलाइट एगो आउ के जान ले लेल ।; राजो: दरोगा जी ! बड़ी नेक हल बुधना, बाकि एकर जान कउन लेल, पता नञ् । रात के हल्लो-गुदाल नञ् होल ।) (फूसु॰15.19; 25.6)
175 लेहाज (= लिहाज) (घर तो एगो मन्दिर होवऽ हे । आऊ मन्दिर में मदिरा, मन्दिर में मोजरा । कुछ उमर के लेहाज करऽ, ढकनी भर पानी में नाक डुबा के जान हथ दऽ । बाबूजी ! हम इ लेल लेहाज करित ही कि तू हमरा जलमा देले हऽ, नञ तो तोहर खून पी जैती ।) (फूसु॰17.5, 7)
176 लौकना (= लउकना, दिखना) (दरद से पेट के अँतड़ी टीसटीसायत हे, बाकि बजरंगबली के किरपा से बजरंगी पाछे नञ् हटत । कोनो उपाय-पतर लौक रहल हे का मालिक ?) (फूसु॰11.17)
177 संझौती (बुधन के बेटी फूलवा साड़ी पेन्हले संझौती देखावित हे । जइसहीं उ संझौती के दीया रखऽ हे कि ओही घड़ी मधुकर धीरे से आके पीछे से फूलवा के आँख मून्दऽ हे ।) (फूसु॰18.1, 2)
178 सउसे (= सउँसे, समूचा) (नेताजी: {हाथ जोड़ के} हम भी माफी चाहऽ ही सउसे समाज से ।) (फूसु॰40.1)
179 सर-सबूत (एस॰पी॰: ओ ... बइठऽ । तोहर फोन मिलल हल । बाकि बिना कोनो सर-सबूत के केकरा पकड़ी ।) (फूसु॰30.21)
180 ससुरार (= ससुराल) (अब तोहनी ससुरार के तइयारी करऽ, हम मंतर वाँचऽ ही ।) (फूसु॰39.6)
181 ससुरी (लगऽ हे गोरकीये मुसुर-मुसुर चलइत आवित हे । हूँ, ससुरी के का चाल हे ।; बुधन ... । तू केते नेक आदमी हलऽ ... तोहर इ हाल के कैल ... कने गेल बुधन के बेटी ? - राजो: उ तो ससुरी रात हीं से लपता हे भाई !; उ ससुरी जायत कहाँ ? मियाँ के दौड़ महजिद तक । उ थाना गेल होयत ।) (फूसु॰9.16; 26.4; 34.21)
182 साबस (= शाबाश) (साबस बेटा । तू जरूर बाप के नाम उजागर करवऽ, नेता बनके, हाँ ।) (फूसु॰27.18)
183 सामना-सामनी (दारोगा जी के आवे दऽ । बात सामना-सामनी हो जायत । पहिले इ बतावऽ इंतजाम का का कइले ह ।) (फूसु॰13.12)
184 सार, सारा (= साला) (मुँह का ताकइत हऽ । सरवा के हाथ पीछे करके बाँधऽ ।; इ सरवा लादा नञ् तमहेड़ा हे तमहेड़ा ।) (फूसु॰22.14; 30.5)
185 सुतना (= सोना, नींद लेना) (ओह ... मछड़ ... तू हम्मर निन खराब कैलऽ । ऐय ... हम तोहरा नञ् छोड़व, बनुक नञ्, तोप से उड़ा देव । बाकि अभी सुते दऽ ।) (फूसु॰28.12)
186 सेनुर (= सिन्दूर) (तू अप्पन हिफाजत तब तक करिहऽ, जब तक हम तोहर मांग में सेनुर नञ् डाल देई ।; बाबू जी के जेहल जाय से पहिले हम फूलवा के मांग में सेनुर डाल के समाज के सड़ल रेवाज तोड़ल चाहऽ ही ।; मधुकर पाकिट से सेनुर निकालऽ हे आउ फूलवा के मांग सेनुर से सजा दे हे ।) (फूसु॰7.13; 38.21; 39.2, 3)
187 सेयान (इ तो अइसन चीज हे जेकरा देख के बूढ़ भी जवान आऊ बूड़बक भी सेयान हो जा हथ ।; लइका नदान हे । सेयान होवे दऽ, सभे कुछ समझ जायत ।) (फूसु॰16.17; 33.16)
188 सौटकट (शॉर्टकट) (नेताजी: सौटकट में बात इ हे दारोगा जी कि देस के तेजी से बढ़ित आबादी में से एगो आदमी के जिनगी हलाल करे के हे ।) (फूसु॰14.19)
189 हँड़िया (राजो: हूँ ... अरे दर-दरोगा के पिमेंटे का हे । ठीक से चुल्हा पर हँड़िया चढ़ल मोस्किल हे । इ तो ऊपर-झाप्पर हे जे से बुलेट आऊ होण्डा हुनहुना हे ।) (फूसु॰15.3)
190 हँसुआ (गाँव के पगडंडी । ओड़िया आऊ हँसुआ लेले बुधन के बेटी फूलवा आवऽ हे । ओही घड़ी कंधा में बड़का बैग लटकैले सूटबूट में राजो सिंह के बेटा मधुकर आवऽ हे ।) (फूसु॰6.1)
191 हथना (= हतना; समाप्त करना; जान ~ = आत्महत्या करना) (एगो सहरी बाबू के साथे घंटा पहर बितावे के हजार रुपैया कम हल का । जाने हथ देल पगली ।) (फूसु॰9.13)
192 हलाल (~ करना, ~ होना) (नेताजी: सौटकट में बात इ हे दारोगा जी कि देस के तेजी से बढ़ित आबादी में से एगो आदमी के जिनगी हलाल करे के हे ।; नौकरी करे के हे तऽ नेताजी के बात कउन मुँह से उठाब । बाकि एगो हमरो बात मानब - हलाल होवेवाला आदमी के मुड़ी देह से अलगे होवे के चाही ।) (फूसु॰14.21; 15.11)
193 हल्ला-गुदाल (राजो: दरोगा जी ! बड़ी नेक हल बुधना, बाकि एकर जान कउन लेल, पता नञ् । रात के हल्लो-गुदाल नञ् होल ।) (फूसु॰25.6-7)
194 हल्ला-गोहार (आदमी १: {बन्दूक सटा के} हल्ला-गोहार कैलें तऽ मुड़ी उतार लेवउ । तोहर फूल अइसन बेटी फूलवा हमर कब्जा में हे ।) (फूसु॰22.7)
195 हारना-पारना (बूड़बक ! फूलवा नञ्, बुधना के जिनगी उजड़त आऊ फिन फूलवा अकेले हार-पार के हमरा भीर आयत ।) (फूसु॰12.2)
196 हावा (= हवा) (हम जे कुछ कहली ठीक कहली । अब तोहनी सब जेहल के हावा खाय के तइयारी करऽ ।) (फूसु॰38.8)
197 हिगराना (= अलग करना) (खाड़ मुँह का ताकैत ह, एकर मुड़ी देह से हिगरा दऽ ।) (फूसु॰23.16)
198 हुनहुनाना (राजो: हूँ ... अरे दर-दरोगा के पिमेंटे का हे । ठीक से चुल्हा पर हँड़िया चढ़ल मोस्किल हे । इ तो ऊपर-झाप्पर हे जे से बुलेट आऊ होण्डा हुनहुना हे ।) (फूसु॰15.4)
199 हेराना (= भुला जाना, गायब होना) (बुधना के बुद्धि हेरायल हे मालिक । गोरकी इस्कूल-कौलेज में का पढ़े लगल कि बुधना के बुझाय लगल हम्मर बेटी राजबाला हो गेल ।) (फूसु॰3.18)
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