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Sunday, December 25, 2011

46. कहानी संग्रह "आधा सच आधा झूठ" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द


आसझू॰ = "आधा सच आधा झूठ" (मगही कहानी संग्रह), कहानीकार - सुमंत; प्रकाशक - सहयोगी प्रकाशन, गया; प्राप्ति स्थानः महेश शांति भवन, हनुमाननगर, ए॰पी॰ कॉलनी, गया - 823001; प्रथम संस्करण 2004 ई॰; 36 पृष्ठ । मूल्य – 25 रुपइया ।

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कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या - 183

ई कहानी संग्रह में कुल 12 कहानी हइ ।


क्रम सं॰
विषय-सूची 
पृष्ठ
0.
मेरी नजरों में
iii-iii
0.
कउन कहानी कहाँ हे
iv-iv



1.
कायापलट
1-3
2.
परयोग
4-6
3.
राम नाम सत्य हो गेल
7-9



4.
फाइनल परीक्षा
10-12
5.
वीरगति
12-12
6.
साहेब की बीबी
13-16



7.
अपहरण
17-20
8.
इंसाफ के भीख
21-23
9.
पाप के मोटरी
24-27



10.
पतिव्रता
28-33
11.
गाँव के मटखान
34-35
12.
कउन
36-36


ठेठ मगही शब्द ("" से "" तक):
1    अंधराना (= अंधा होना) (हम सहर में आके एकदमे से अंधरा गेली । पइसा के लोभ-लालच में पड़के, सहर के ब्यूटी पार्ले से लेके होटलो में जा्-आवे लगली, जब पता चलल कि हम्मर गोड़ भारी हो गेल ।)    (आसझू॰26.28)
2    अंधरिआ (घुँच ~) (सुहागरात के सज्जल-धज्जल सेज पर बइठल रश्मि इ उधेड़-बूँन में पड़ल हल कि आखिर अब ओकरा इ मोकाम पर का करे के चाही । जगमगाइत कमरा में भी ओकर आँख तर घुँच अंधरिआ छा गेल आउ उ बीतल दिन के इयाद में डूब गेल ।)    (आसझू॰28.3)
3    अकबकाना (सिपाही हड़बड़ा गेल । अकबकायल कहलक - "सर ! अपने, हम्मर मतलब हे कि अपने डी॰एम॰ साहेब के बाबूजी ही ?")    (आसझू॰14.14)
4    अगोरी (= रखवाली, देखभाल) (आज मछली के अगोरी के नाम पर सूरूज ढलइते गाँव के बिगड़ल जवान हाथ में बंदुक लेले मटखान के चारो पट्टी अगोरी कम आउ अप्पन ताकत जादे देखावऽ हथ ।)    (आसझू॰35.13, 15)
5    अचकचाना (= अकचकाना; आश्चर्यचकित होना) (शिवबालक बाबू गौर से गेट पर लगल नेम प्लेट के पढ़लन - निवास, आनंद, जिलाधिकारी ... । उ गेट भीर जाके कहलन - हमरा अप्पन बेटा आनंद से मिले ला हे । पुलिसवालन अचकचैलन, बाकि उ सभे के उनकर साहेब के बात इयाद आयल कि हम्मर माय-बाबूजी गाँव के रहेवाला एकदम से देहाती हथ - असली भारतीय ।)    (आसझू॰14.12)
6    अचकाना (= अकचकाना; आश्चर्यचकित होना) (खुफिया अधिकारी सावधानी बरतइत मंदिर में घुँस के ऊपरे तेज रोसनी डाललन त हर कोई देख के अचका गेलन । इ का, मंदिर के ऊपरे के ढेरे ईटा घसकल हल । उहाँ पर खाड़ अदमी के समझते देरी न लगल कि मंदिर में कोई तोड़-फोड़ न कैल गेल हे, बल्कि पुरान-धुरान मंदिर के ईटा-पथल गिरे से मूरती टूट गेलक हे ।; एही बीच शिवबालक बाबू कहलन - "बेटा, तोहर दरसन हो गेल, तू सही-सलामत ह । हमरा खुसी हे । हम वापिस गाँव लौटल चाहऽ ही, एही घड़ी ।" - "गाँव !" अचका के पूछलक आनंद - "बाकि काहे ?")    (आसझू॰3.1; 16.14)
7    अचके (= अचानक) (माय आउ मेहरारू भी भीरी जाए से कतराय लगलन, जबकि डाक्टर के कहना हल कि एड्स बेमारी साथे रहे, साथे खाए-पीए इया छूए से न लगे, तइयो काहे ला ... । ... एक रात अचके आनंद के घरे से रोवे-धोवे के आवाज आएल । गाँववालन के समझते देरी न लगल कि आनंद के राम नाम सत्य हो गेल ।; स्वर्ग के परी से कम न लग रहल हल रश्मि । अचके गाड़ी मंत्रीजी के आवास में दाखिल भेल ।)    (आसझू॰9.16; 31.21)
8    अनगुतीए (दुगो झोला भर गेल सर-समान से । अनगुतीए सोझ हो गेलन दूनो प्राणी बेटा भीर ।)    (आसझू॰14.3)
9    अनचितले (अभी पूरा से एक्को बच्छर न होएल हल कि एक दिन गाँव पर अनचितले में खबर आएल कि चाँदनी बड़ी जोर से बेमार हे, जेकर इलायज सहर के एगो नामी डाक्टरनी हीं हो रहल हे ।)    (आसझू॰26.14)
10    अरग (= अर्घ्य) (मनउती भी कम न कैलन हल । देव में सात सूप के अरग देवे के, उमगा पहाड़ पर खंसी के बलि चढ़ावे के, सिहुली दरगाह पर चदरा चढ़ावे के, पाँच बच्छर तक लगतरीये बाबाधाम काँर ले जाए के, घर में हनुमान जी के धाज्जा गाड़े जइसन केतनन मनउती पूरा कैलन हल, बाकि अब लेल जगेसर भूत-परेत, ओझा-डइया के चंगुल में न फँसलन हल ।)    (आसझू॰24.8)
11    अवछ (नौ बच्छर से ऊपरे हो गेलक हल जगेसर के विआह के बाकि अब लेल उनकर घरवाली आरती के गोदी न भरल हल । ... डाक्टर-वैद्य, दवा-दारू करावित थक के चूर हो गेलन हल जगेसर आउ दोसर दने आरती कोनो देओता-देवी के अवछ न छोड़लन हल । मनउती भी कम न कैलन हल ।)    (आसझू॰24.7)
12    असरा (= आसरा) (लूटपाट, अपहरण, हत्या, बलत्कार .... करेवालन के छोड़ल न जाएत । उ सभे के खिलाफ काड़ा से काड़ा कारवायी करल जाएत । काहे कि हमरा न तो अगिला बेर चुनाव के गम हे आउ न गुंडा-बदमास सभे के असरा ।)    (आसझू॰6.15)
13    आँख (~ में कान) (उनकर बस आँख में कान एकी गो बेटा हल - आनंद । लइकाइए से बड़ी तेज हल आउ 'होनहार वीरवान के होत चिकने पात' के कहउत एकदम से ओकरा पर फिट बइठऽ हल ।)    (आसझू॰13.3)
14    आंधर (= आन्हर; अन्धा) (एगो सिपाही कड़क के पूछलक - "ऐ बूढ़ा ... इधर कहाँ ? आंधर ह का ?" दूनो ठुकमुका गेलन ।)    (आसझू॰14.8)
15    आता-पता (= अता-पता) (टूटू के कहूँ आता-पता न चलल । थाना में अब लेल रिपोर्ट खाली इ लेल न लिखावल गेल हल कि पूरा घरवालन के सोलहो आना उम्मीद हल कि टूटू जरूर कोई जान-पहचान वाला हीं होयत ।)    (आसझू॰17.8)
16    आल-जाल (उ मौका के तलास करे लगलन कि कइसे सलमा के साथे उनकर मिलन होयत । उ अपना जानइते आल-जाल फैलौलन, आउ आखिर एक दिन उनकर बनल-बनावल जाल में बेचारी सलमा फँसहीं गेल ।)    (आसझू॰21.25)
17    आसीरवादी (= आशीर्वाद) (तू खुस रहऽ इहे हमनी के आसीरवादी हे । अब हमनी जा रहली हे - अप्पन गाँव ।)    (आसझू॰16.23)
18    इनकरा (~ बारे में = इनकर बारे में; तु॰ उनकरा) (रश्मि अप्पन कमरा में आके सोचइत-विचारइत रहल कि केते रहमदिल हथ मौसी । अब लेल इनकरा बारे में हम बेकार के बात सोचऽ हली ।)    (आसझू॰30.29)
19    इसे (= ई से; इस कारण) (नौकरी न भेंटायल हल तऽ इसे का, जगेसर पुरान बी॰ए॰ पास हलन । उनकर समझ हल कि अदमी के अंधविस्वास से हरमेसे दूर रहे के चाही ।)    (आसझू॰24.14)
20    ईटा (= ईंट) (खुफिया अधिकारी सावधानी बरतइत मंदिर में घुँस के ऊपरे तेज रोसनी डाललन त हर कोई देख के अचका गेलन । इ का, मंदिर के ऊपरे के ढेरे ईटा घसकल हल । उहाँ पर खाड़ अदमी के समझते देरी न लगल कि मंदिर में कोई तोड़-फोड़ न कैल गेल हे, बल्कि पुरान-धुरान मंदिर के ईटा-पथल गिरे से मूरती टूट गेलक हे ।)    (आसझू॰3.2)
21    ईटा-पथल (= ईंट-पत्थर) (समूले सहर में इ खबर जंगल के आग नियन फैल गेल कि चौक भीर वाला 'महेश मंदिर' के मूरती रात खनी ईटा-पथल से मार-मार के तोड़ देल गेल । सगर से अदमी के उजूम बरसाती नदी के बाढ़ नियन उमड़ पड़ल ।; बाबा ओखनी सभे के एतने बता रहलन हल कि रात पहर उ ईटा-पथल चले के आवाज सुनलन, उ घड़ी बिजुली गुल हल । जब उ अंधारे में टोबित-टाबित ढिबरी जरा के मंदिर में आके देखलन तऽ एने-ओने सगर ईटा-पथल छितरायल हल आउ शिवलिंग के साथे-साथे बाबा भोलेनाथ के सवारी नंदी के मुड़ी भी हिगरल हल ।)    (आसझू॰1.2; 2.3, 5)
22    उजूम (= भीड़) (समूले सहर में इ खबर जंगल के आग नियन फैल गेल कि चौक भीर वाला 'महेश मंदिर' के मूरती रात खनी ईटा-पथल से मार-मार के तोड़ देल गेल । सगर से अदमी के उजूम बरसाती नदी के बाढ़ नियन उमड़ पड़ल ।; मंदिर के चौतरफा खाड़ उजूम के जब इ सच घटना के सही-सही जानकारी देल गेल त पहिले तो केकरो अप्पन कान पर विस्वासे न होयल ।)    (आसझू॰1.3; 3.5)
23    उठलक (= स॰क्रि॰ उठल, उठलइ) (राधा चुपचाप उठलक आउ दुपट्टा के पल्लू दाँत में दबौले प्रोफेसर साहेब के क्वार्टर से अप्पन पेट में पलइत पाप के झाँपले-तोपले बाहरे निकल के गर्ल होस्टल के राह धर लेलक आउ समूले रात ... ।)    (आसझू॰11.29)
24    उनकरा (= म॰ उनका; हि॰ उन्हें, उनको; ~ से/ साथे = म॰ उनका से/ उनकर साथे; हि॰ उनसे/ उनके साथ) (उनकरा रिटायर होवे में अब खाली नौ महीना बाकी हल ।; उनकरा बाबा तुलसीदास के एगो लाइन इयाद पड़ल - "खग जाने खग ही की भासा"  । से उ भी तपाक से कहलन - "मैडम, यू आर रौंग । वी आर पैरेंट्स ऑफ मि॰ आनंद ।"; शिवबालक बाबू खाड़ उ सिपाही से कहलन तू खाली डी॰एम॰ साहेब के इ जानकारी दे दऽ कि उनकर माय-बाबूजी उनकरा से मिले खातिर गेट पर खाड़ हथ । सिपाही उनकरा साथे चले ला कहल, बाकि उ इन्कार कर गेलन ।; चुप्पी के तोड़इत सलमा कहलक - बाकि इ में हम्मर अब्बा के सहमति जरूरी हे । उनकरा आवे तक इंतजार करे पड़त ।)    (आसझू॰13.10; 15.10; 16.1, 2; 23.12)
25    उमठना (लगतरीये सात बच्छर तक अपराध के करिआ साया में जीअइत, मन उमठ गेलक हल किशोरी के । उ एकरा छोड़ल चाहऽ हल बाकि मुसीबत इ हल कि उ दलदल से निकले त कइसे ?)     (आसझू॰5.10)
26    एकी (= एक्के; एक ही) (उनकर बस आँख में कान एकी गो बेटा हल - आनंद । लइकाइए से बड़ी तेज हल आउ 'होनहार वीरवान के होत चिकने पात' के कहउत एकदम से ओकरा पर फिट बइठऽ हल ।)    (आसझू॰13.4)
27    एक्की (= दे॰ एकी; एक्के; एक ही) (सभे कोई एक्की बात पूछ रहलन हल कि टूटू घर लौटल कि न ? सभे कोई के फोन पर एक्की जवाब देल जाइत हल - "अब लेल तो न ।"; फिन तो एक्की गो रस्ता बचल हे । पुलिस थाना चल के अपहरण रिपोर्ट लिखा देवल जाए ।)    (आसझू॰17.11, 13; 18.27)
28    एक्को (= एक भी) (अभी पूरा से एक्को बच्छर न होएल हल कि एक दिन गाँव पर अनचितले में खबर आएल कि चाँदनी बड़ी जोर से बेमार हे, जेकर इलायज सहर के एगो नामी डाक्टरनी हीं हो रहल हे ।)    (आसझू॰26.13)
29    एने-ओने (बाबा ओखनी सभे के एतने बता रहलन हल कि रात पहर उ ईटा-पथल चले के आवाज सुनलन, उ घड़ी बिजुली गुल हल । जब उ अंधारे में टोबित-टाबित ढिबरी जरा के मंदिर में आके देखलन तऽ एने-ओने सगर ईटा-पथल छितरायल हल आउ शिवलिंग के साथे-साथे बाबा भोलेनाथ के सवारी नंदी के मुड़ी भी हिगरल हल ।)    (आसझू॰2.5)
30    ओखनी (= ओकन्हीं) (कभी-कभार अप्पन लाठी भाँज-भुँज के उ अदमी सभे के काबू में कैले हलन । अइसन बुझा रहल हल कि ऊपरहीं से ओखनी के इहे आदेस मिलल हल ।)    (आसझू॰1.12)
31    ओझा-डइया (मनउती भी कम न कैलन हल । देव में सात सूप के अरग देवे के, उमगा पहाड़ पर खंसी के बलि चढ़ावे के, सिहुली दरगाह पर चदरा चढ़ावे के, पाँच बच्छर तक लगतरीये बाबाधाम काँर ले जाए के, घर में हनुमान जी के धाज्जा गाड़े जइसन केतनन मनउती पूरा कैलन हल, बाकि अब लेल जगेसर भूत-परेत, ओझा-डइया के चंगुल में न फँसलन हल ।)    (आसझू॰24.12)
32    ओहईं (= हुँए; वहीं) (जहाँ एक दने सहर के सभे मस्जिद चमचमा रहल हल, ओहईं महेश मंदिर के रंगाई-पोताई के बात तो दूर हल, जगह-जगह से प्लास्टर छूट के मंदिर के ढढरी लोक रहल हल ।)    (आसझू॰1.24)
33    कच-कच (~ हरिअरी) (मटखान के चारो दने कच-कच हरिअरी हल । पीपल, बर, नीम, पाकड़, आम, लिसोढ़ा, उड़हुल, कनैल, जामुन, ... के पेड़ बरसो से खाड़ हल ।)    (आसझू॰34.22)
34    कट-कट (~ काटना) (आनंद के माय-बाबूजी सोझ हो गेलन, आनंद गेठरी-मोटरी के अप्पन छाती से सटौले इ नजारा देख रहल हल । साथे-साथे ओकर दिमाग में सच भी लकड़ी में लगेवाला घुन के कीड़ा लेखा कट- कट काट रहल हल ।)    (आसझू॰16.26)
35    कसल (= स॰क्रि कसलक, कसलकइ) (उ अप्पन कमर कसल । आउ समूले पंचायत में घुम-घुम के एक रात गाँव में पंचइती लेल सभे के जोरिऐलक । सभे कोई मुखिया बीरेन्द्र सिंह के सर्वसम्मति से पंच चुललन ।)    (आसझू॰22.24)
36    कहउत (= कहावत) (उनकर बस आँख में कान एकी गो बेटा हल - आनंद । लइकाइए से बड़ी तेज हल आउ 'होनहार वीरवान के होत चिकने पात' के कहउत एकदम से ओकरा पर फिट बइठऽ हल ।)    (आसझू॰13.5)
37    कहल (= स॰क्रि॰ कहलक, कहलकइ) (शिवबालक बाबू खाड़ उ सिपाही से कहलन तू खाली डी॰एम॰ साहेब के इ जानकारी दे दऽ कि उनकर माय-बाबूजी उनकरा से मिले खातिर गेट पर खाड़ हथ । सिपाही उनकरा साथे चले ला कहल, बाकि उ इन्कार कर गेलन ।)    (आसझू॰16.2)
38    काड़ा (= कड़ा) (समूले सूब्बा में शांति के साम्राज्य होयत । लूटपाट, अपहरण, हत्या, बलत्कार .... करेवालन के छोड़ल न जाएत । उ सभे के खिलाफ काड़ा से काड़ा कारवायी करल जाएत ।)    (आसझू॰6.13, 14)
39    कान (आँख में ~) (उनकर बस आँख में कान एकी गो बेटा हल - आनंद । लइकाइए से बड़ी तेज हल आउ 'होनहार वीरवान के होत चिकने पात' के कहउत एकदम से ओकरा पर फिट बइठऽ हल ।)    (आसझू॰13.3)
40    काना-फूसकी (कॉलेज के लइका-लइकी के बीच परेम के इ खबर जंगल के आग लेख सगर फैल गेल । काना-फूसकी होवे लगल कि राधा अप्पन रूप-जाल में आखिर मालदार प्रो॰ आनंद के फँसा ही लेल आउ जल्दीये उ ओकर मेहरारू बनके रानी लेखा राज करत ।)    (आसझू॰10.21)
41    कुल-खनदान (आरती चुप रहलन । थोड़के देरी के बाद जगेसर कहलन - "कउन सोंच में डूब गेलऽ ?" - "कउनो सोच में नऽ बाकि सुनऽ ही बाल-बुतरु पर कुल-खनदान आउ माय-बाप के असर पड़ऽ हे ।")    (आसझू॰25.18-19)
42    कैकन (= कइएक) (समूले सूब्बे में फिरौती लेल अपहरण के व्यापार अप्पन जड़ी तरबूजा के जड़ी नियन एकदम गहराई में जमा चुकल हल । इ व्यापार के फरे-फुलाय से न खाली पुलिसवालन परेसान हलन बल्कि सरकार भी परेसान हल । एक साल में जल्दी-जल्दी कैकन पुलिस पदाधिकारी सभे के एने से ओने तबादला करल गेल हल, त दोसर दने सरकार के मंत्री सभे के विभाग में भी फेर-बदल जारी हल ।; कैकन मंत्री इ बात से एकदमें असहमत हलन कि गृह मंत्रालय जइसन महत्वपूर्ण विभाग नामी-गिरामी अपराधी के कोनो भी कीमत पर न देल जाए, बाकि जादेतर मंत्री सभे के मत हल कि सूब्बा में शांति लेल परयोगे के तौर पर, इ बेर गृहमंत्री किशोरी उर्फ लंगड़ा के बनाबल जाए ।; धीरे-धीरे हत्या, लूट, अपहरण, बलत्कार जइसन कैकन संगीन अपराध के अपराधी बन गेल - लंगड़ा ।; कैकन गो नामी अपराधी पुलिस भीर आके आत्मसमर्पन करलन त केतनन गुंडा-बदमास के पुलिस मुठभेड़ में मार गिरैलक ।; आनंद के गाँव के कैकन गो लइकन लुधियाना, सूरत, मुम्बई में मर-मजूरी करऽ हलन ।)    (आसझू॰4.4, 10; 5.5; 6.21; 7.5)
43    कैल (= स॰क्रि॰ कइलक, कइलकइ) (गाड़ी ब्यूटी पार्लर भीर रोकलन आउ रश्मि से कहलन - चलऽ । रश्मि ना-नुकुर कैल बाकि मौसी के बात न उठौलक ।)    (आसझू॰31.18)
44    कोइरी (अब तो लइकनो अपने में एक दोसरा के जाति के नाम से संबोधित करऽ हथ - पाँड़े, दुसधा, कोइरिया, बभना, चमरा, भुईमा, ... । भला केते बदल गेलक ई गाँव ।)    (आसझू॰35.8)
45    कोरसिस (= कोशिश) (पूरा घर हरान-परेसान हल । सभे एक दोसरा से इ जाने के कोरसिस कर रहलन हल कि कहूँ कल कोई ओकरा डाँट-फटकार तो न लगैलक हल । आखिर टूटू इस्कूल से लौट के अब लेल घरे काहे न आएल ?; क...उ...न आँख खोले के पूरा कोरसिस कैल बाकि आँख खुल नऽ सकल आउ उ हरमेसा लेल बंद हो गेल। मुड़ी एक दने लोघड़ा गेल ।)    (आसझू॰17.2; 36.1)
46    खंसी (= खस्सी, खँस्सी, पाठा) (मनउती भी कम न कैलन हल । देव में सात सूप के अरग देवे के, उमगा पहाड़ पर खंसी के बलि चढ़ावे के, सिहुली दरगाह पर चदरा चढ़ावे के, पाँच बच्छर तक लगतरीये बाबाधाम काँर ले जाए के, घर में हनुमान जी के धाज्जा गाड़े जइसन केतनन मनउती पूरा कैलन हल, बाकि अब लेल जगेसर भूत-परेत, ओझा-डइया के चंगुल में न फँसलन हल ।)    (आसझू॰24.9)
47    खनी (= क्षण, समय) (समूले सहर में इ खबर जंगल के आग नियन फैल गेल कि चौक भीर वाला 'महेश मंदिर' के मूरती रात खनी ईटा-पथल से मार-मार के तोड़ देल गेल । सगर से अदमी के उजूम बरसाती नदी के बाढ़ नियन उमड़ पड़ल ।)    (आसझू॰1.2)
48    खाड़ (= खड़ा) (मंदिर के चौतरफा खाड़ उजूम के जब इ सच घटना के सही-सही जानकारी देल गेल त पहिले तो केकरो अप्पन कान पर विस्वासे न होयल ।; कमसिन जवानी के दहलीज पर खाड़ उन्नइस-बीस के राधा बी॰ए॰ पार्ट टू के छात्रा हल, जे एक बरिस पहिले अप्पन गाँव से आके राजधानी के नामी कॉलेज में दाखिला लेलक हल ।)    (आसझू॰3.5; 10.4)
49    खिड़की-केबाड़ी ( मंदिर से सटले बगले में एगो कमरा हल, बिना खिड़की-केबाड़ी के जेकरे में बाबा रात काटऽ हलन, अकेले भूत लेखा ।)    (आसझू॰1.22)
50    गँठरी (= गठरी) (आनंद के माय रात भर जग के बेटा के पसंद के एक-एक समान के गँठरी बनौलन, चार दिन पहिलहीं से जुगाड़ करे में बेदम हलन । बूट के सत्तू, गेहूँम, मसुरी, राहड़, चाउर के भुंजा, आँटा आउ गुड़ के बनल टिकरी, निमकी ... सभे कुछ बाँध-बूँध के फिट हो गेलन ।)    (आसझू॰13.25)
51    गठरी-मोटरी (दूनो उ सहर में पहुँचलन जहाँ उनकर बेटा आनंद डी॰एम॰ हल । टिसन से रिक्सा सवार होके गठरी-मोटरी लेले जिलाधिकारी के निवास पर दुपहरिया के पहुँचलन ।)    (आसझू॰14.5)
52    गढ़ाना (धीरे-धीरे दूनो के दोस्ती गढ़ाइत चल गेल आउ एक दिन राधा अप्पन मोहन के बाँह में समा के अप्पन गरम साँस के ठंढा भी कर लेलक ।)    (आसझू॰11.1)
53    गरीब-गुरुबा (दिन में गरीब-गुरुबा, असहाय-अपंग-भिखमंगा सभे मंदिर के टूटल-फूटल सीढ़ी पर बइठ के इया फिन सुत के आराम करऽ हलन ।)    (आसझू॰1.18)
54    गेठरी-मोटरी (= गठरी-मोटरी) (शिवबालक बाबू खाड़ हो गेलन, बाकि आनंद के माय थकल-हारल गेठरी-मोटरी पर अप्पन कपार धैले पड़ल हलन ।; आनंद के माय-बाबूजी सोझ हो गेलन, आनंद गेठरी-मोटरी के अप्पन छाती से सटौले इ नजारा देख रहल हल । साथे-साथे ओकर दिमाग में सच भी लकड़ी में लगेवाला घुन के कीड़ा लेखा कट- कट काट रहल हल ।)    (आसझू॰15.26; 16.24)
55    गेल (= अ॰क्रि॰ गेलक) (खुफिया अधिकारी सावधानी बरतइत मंदिर में घुँस के ऊपरे तेज रोसनी डाललन त हर कोई देख के अचका गेलन । इ का, मंदिर के ऊपरे के ढेरे ईटा घसकल हल । उहाँ पर खाड़ अदमी के समझते देरी न लगल कि मंदिर में कोई तोड़-फोड़ न कैल गेल हे, बल्कि पुरान-धुरान मंदिर के ईटा-पथल गिरे से मूरती टूट गेलक हे ।)     (आसझू॰3.3)
56    गेलक (= अ॰क्रि॰ गेल, गेलइ) (खुफिया अधिकारी सावधानी बरतइत मंदिर में घुँस के ऊपरे तेज रोसनी डाललन त हर कोई देख के अचका गेलन । इ का, मंदिर के ऊपरे के ढेरे ईटा घसकल हल । उहाँ पर खाड़ अदमी के समझते देरी न लगल कि मंदिर में कोई तोड़-फोड़ न कैल गेल हे, बल्कि पुरान-धुरान मंदिर के ईटा-पथल गिरे से मूरती टूट गेलक हे ।; पं॰ दीनानाथ के दीनता अब कोसो दूर भाग गेलक, काहे कि महेश मंदिर के कायापलट हो चुकल हल ।; लगतरीये सात बच्छर तक अपराध के करिआ साया में जीअइत, मन उमठ गेलक हल किशोरी के ।; आनंद पूरे एक बच्छर बाद होली में घरे आवे ला मन बनौलक बाकि कम्पनी के मैनेजर छुट्टी देवे से इन्कार कर गेलक ।)    (आसझू॰3.2, 18; 5.10; 8.5)
57    गेहूँम (= गोहूम, गोधूम, गेहूँ) (आनंद के माय रात भर जग के बेटा के पसंद के एक-एक समान के गँठरी बनौलन, चार दिन पहिलहीं से जुगाड़ करे में बेदम हलन । बूट के सत्तू, गेहूँम, मसुरी, राहड़, चाउर के भुंजा, आँटा आउ गुड़ के बनल टिकरी, निमकी ... सभे कुछ बाँध-बूँध के फिट हो गेलन ।)    (आसझू॰13.26)
58    गोदी (बाले-बच्चा के एतने सौक हवऽ तऽ केकरो गोदी ले लऽ बाकि खूब बेस से सोंच-समझ लऽ ।)    (आसझू॰25.14)
59    गोर-नार (राधा जे खाली नामे से राधा न हल, बल्कि गोर-नार, सुन्नर-सलोनी, छरहर बदनवाली राधा के देख के भला कउन नौजवान के आँख न चौंधिया जा हल ।)    (आसझू॰10.9)
60    घर-दूरा (= घर-द्वार) (अरे देओता-देवी के पूजला से कम से कम घर-दूरा के साथे-साथे मन आउ देह तो पवितर होवऽ हे । अइसे जगेसर के विस्वास तो देओता-देवी पर भी न हल ।; दोसरा दिन जब रश्मि कोचिंग से लौटल तऽ मौसी कइसे ओकरे रस्ता देख रहलन हल । कहलन, जल्दी तइयार होके चलऽ । घर-दूरा देखा देही, चलके । रश्मि तइयारी में जुट गेल ।)    (आसझू॰24.17; 31.13)
61    घुँच (~ अंधरिआ) (सुहागरात के सज्जल-धज्जल सेज पर बइठल रश्मि इ उधेड़-बूँन में पड़ल हल कि आखिर अब ओकरा इ मोकाम पर का करे के चाही । जगमगाइत कमरा में भी ओकर आँख तर घुँच अंधरिआ छा गेल आउ उ बीतल दिन के इयाद में डूब गेल ।)    (आसझू॰28.3)
62    चमार (अब तो लइकनो अपने में एक दोसरा के जाति के नाम से संबोधित करऽ हथ - पाँड़े, दुसधा, कोइरिया, बभना, चमरा, भुईमा, ... । भला केते बदल गेलक ई गाँव ।)    (आसझू॰35.8)
63    चलाक (= चालाक) (आउ सुनऽ, जादे चलाक बने के कोरसिस जे कैलऽ तऽ टूटू के लास उहे मंदिर के पाछे पड़ल भेंटाएत ।)    (आसझू॰18.10)
64    चाउर (= चावल) (आनंद के माय रात भर जग के बेटा के पसंद के एक-एक समान के गँठरी बनौलन, चार दिन पहिलहीं से जुगाड़ करे में बेदम हलन । बूट के सत्तू, गेहूँम, मसुरी, राहड़, चाउर के भुंजा, आँटा आउ गुड़ के बनल टिकरी, निमकी ... सभे कुछ बाँध-बूँध के फिट हो गेलन ।)    (आसझू॰13.26)
65    चाही (उनकर बड़की बेटी बोलल - "पुलिस थाना चल के रिपोर्ट लिखवावे के चाही ।" बाकि बेटी, समय बड़ी नाजुक होवऽ हे । हमनी के सोच-समझ से काम लेवे के चाही ।)    (आसझू॰18.21, 23)
66    छम्मक-छल्लो (पेहनावा-ओढ़ावा से तो उनकर उमर के पते न चलऽ हल । पैंतालीस बरिस से ऊपरे के सिम्मी मौसी अठारह-बीस के छम्मक-छल्लो लगऽ हलन ।)    (आसझू॰28.23)
67    छरहर (राधा जे खाली नामे से राधा न हल, बल्कि गोर-नार, सुन्नर-सलोनी, छरहर बदनवाली राधा के देख के भला कउन नौजवान के आँख न चौंधिया जा हल ।)    (आसझू॰10.9)
68    छोट (सलमा, जेकर अब्बाजान कोलकत्ता में रह के छोट-मोट फल के दोकान चलावऽ हलन, इहाँ अप्पन अम्मा आउ दुगो अपना से छोट भाई के साथे रहऽ हल ।)    (आसझू॰21.9)
69    छोट-मोट (सलमा, जेकर अब्बाजान कोलकत्ता में रह के छोट-मोट फल के दोकान चलावऽ हलन, इहाँ अप्पन अम्मा आउ दुगो अपना से छोट भाई के साथे रहऽ हल ।)    (आसझू॰21.8)
70    छोटहन (इ पर एगो पत्रकार चुटकी लेइत कहलन - "भला दूध के रखवइया बिलाई कइसे हो सकल हे ?" इ पर मुख्यमंत्री छोटहन पलटवार करित कहलन - "पत्रकार बंधु ! लोहा के लोहे न काटऽ हे ।"; मटखान के पूरबी किनार पर ठीक मंदिर के सामने एगो छोटहन गो मस्जिद हल, जहाँ से अजान पड़ऽ हल ।)    (आसझू॰6.7; 34.19)
71    जर-जमीन (आरती के बाभूजी अप्पन बेटी के बिआह जगेसर से उनकर पढ़ाई आउउ जरे-जमीन देख के कैलन हल । कोनो चीज के कमिओ न हल, बाकि ... एक रात आरती अप्पन मरद से कहलन - "दोसर बिआह कर लऽ ।")    (आसझू॰25.2)
72    जात (= जाति, वर्ग) (गाँव के बीच में हल एगो बड़का मटखान, ओकरे चारो दने गाँव के समूला आबादी बसल हल । हर जात आउ बेरादरी के टोला अलगे-अलगे हल बाकि सभे एक साथे मिलजुल के रहऽ हलन - एकदम से दूध आउ पानी नियन ।)    (आसझू॰34.2)
73    जेवारी (घर पर बधाई देवे आएल कुटुम्ब-परिवार के साथे जेवारी अदमी सभे के अभिनंदन स्वीकार कर रहलन हल शिवबालक बाबू आउ उनकर मेहरारू ।)    (आसझू॰13.7)
74    जेहल (सपथ लेला के तुरंते बाद उ जेहल के चहारदिवारी में कैद हो गेल । बाकि फरक एतना हल कि उ जेहल में अपराधी न, नेता हल, उ भी बहुमत दल के सदस्य ।)    (आसझू॰5.19)
75    जोरियाना (= जोड़ियाना; जौर करना) (उ अप्पन सभे प्रमाण-पत्र के जोरिया के एगो फाइल में रख लेलक आउ गाँवेवालन के साथे बूढ़ी माय, भइया-भउजी, नौजवान मेहरारू आउ साल भर के लइका के छोड़ के मुम्बई के गाड़ी धर लेलक ।; उ अप्पन कमर कसल । आउ समूले पंचायत में घुम-घुम के एक रात गाँव में पंचइती लेल सभे के जोरिऐलक । सभे कोई मुखिया बीरेन्द्र सिंह के सर्वसम्मति से पंच चुललन ।)    (आसझू॰7.9; 22.25)
76    झटे-पटे (= झट-पट) (झटे-पटे एगो समिति गठित कैल गेल जेकर सचिव नगर विधायक के बनावल गेल ।)    (आसझू॰3.13)
77    झाँपना-तोपना (राधा चुपचाप उठलक आउ दुपट्टा के पल्लू दाँत में दबौले प्रोफेसर साहेब के क्वार्टर से अप्पन पेट में पलइत पाप के झाँपले-तोपले बाहरे निकल के गर्ल होस्टल के राह धर लेलक आउ समूले रात ... ।)    (आसझू॰12.1-2)
78    टगना (अच्छा तो इ होयत कि एकर जानकारी पहिले थानेदार के देल जाय आउ हम टगइत-टगइत चल देली ।)    (आसझू॰2.17)
79    टघराना (उ अमर हो गेल । ओकर जिनगी सुफल हो गेल बेटी ! अप्पन आँख से लोर न टघरइहऽ । तू भारत के मेहरारू हऽ ।)    (आसझू॰12.24)
80    टिकरी (आनंद के माय रात भर जग के बेटा के पसंद के एक-एक समान के गँठरी बनौलन, चार दिन पहिलहीं से जुगाड़ करे में बेदम हलन । बूट के सत्तू, गेहूँम, मसुरी, राहड़, चाउर के भुंजा, आँटा आउ गुड़ के बनल टिकरी, निमकी ... सभे कुछ बाँध-बूँध के फिट हो गेलन ।)    (आसझू॰14.1)
81    टोला-टाटी (नौ बच्छर से ऊपरे हो गेलक हल जगेसर के विआह के बाकि अब लेल उनकर घरवाली आरती के गोदी न भरल हल । टोला-टाटी तो ताना कसवे करऽ हल बाकि जगेसर के बूढ़ी माय तो बाते-बात पर कह दे हलन - "इ तो नटिन हे नटिन ! नौ बच्छर बीत गेल तइयो एगो छूछून्दरो न पैदा कर सकल हे निगोड़ी ।")    (आसझू॰24.2)
82    ठउरे (= पास में) (नकाबपोस साथे चले लेल कहलक । ठउरे एगो मारुति लगल हल ।)    (आसझू॰19.24)
83    ठुकमुकाना (एगो सिपाही कड़क के पूछलक - "ऐ बूढ़ा ... इधर कहाँ ? आंधर ह का ?" दूनो ठुकमुका गेलन ।)    (आसझू॰14.9)
84    डाक्टरनी (अप्पन बूढ़ी माय के राय-मसबीरा से जगेसर एगो लड़की के गोदी ले लेलन । उ लड़की के सहर के एगो डाक्टरनी हीं काम करेवाली दाई लाके देलक हल आउ बदलइया कुछ रुपइयो लेलक हल ।; अभी पूरा से एक्को बच्छर न होएल हल कि एक दिन गाँव पर अनचितले में खबर आएल कि चाँदनी बड़ी जोर से बेमार हे, जेकर इलायज सहर के एगो नामी डाक्टरनी हीं हो रहल हे ।; उ आइ॰एस-सी॰ में बायलोजी लेलक, इ सोच के कि आगे उ डाक्टरनी बनत ।)    (आसझू॰25.25; 26.20; 28.13)
85    ढढरी (जहाँ एक दने सहर के सभे मस्जिद चमचमा रहल हल, ओहईं महेश मंदिर के रंगाई-पोताई के बात तो दूर हल, जगह-जगह से प्लास्टर छूट के मंदिर के ढढरी लोक रहल हल ।)    (आसझू॰2.1)
86    ढारहस (= ढाढ़स) (बहू के आँख नम होयल बाकि मन के ढारहस बांध के कहलन - बाबूजी ! हम भी फौज के नौकरी करव, देस के सेवा खातिर ।)    (आसझू॰12.26)
87    ढिबरी (बाबा ओखनी सभे के एतने बता रहलन हल कि रात पहर उ ईटा-पथल चले के आवाज सुनलन, उ घड़ी बिजुली गुल हल । जब उ अंधारे में टोबित-टाबित ढिबरी जरा के मंदिर में आके देखलन तऽ एने-ओने सगर ईटा-पथल छितरायल हल आउ शिवलिंग के साथे-साथे बाबा भोलेनाथ के सवारी नंदी के मुड़ी भी हिगरल हल ।)    (आसझू॰2.4)
88    ढेला-ढुकुर (~ करना) (भीड़ में से कुछ लुंगेरा आउ गुंडा-बदमास सभे बीच-बीच में पुलिसवालन पर ढेला-ढुकुर भी कर रहलन हल, बाकि पुलिस के जवान संयम से काम ले रहलन हल ।)    (आसझू॰1.10)
89    तइयो (= तो भी) (किशोरी के बूढ़ माय-बाबूजी, मेहरारू आउ दुन्नो बेटा मारल गेल । इ हदसा में भागित किशोरी के बामा गोड़ में गोली लगल, तइयो उ बच गेल ।)    (आसझू॰4.26)
90    थोड़के (आरती चुप रहलन । थोड़के देरी के बाद जगेसर कहलन - "कउन सोंच में डूब गेलऽ ?" - "कउनो सोच में नऽ बाकि सुनऽ ही बाल-बुतरु पर कुल-खनदान आउ माय-बाप के असर पड़ऽ हे ।")    (आसझू॰25.16)
91    दने (= दन्ने; तरफ) (एक साल में जल्दी-जल्दी कैकन पुलिस पदाधिकारी सभे के एने से ओने तबादला करल गेल हल, त दोसर दने सरकार के मंत्री सभे के विभाग में भी फेर-बदल जारी हल ।; क...उ...न आँख खोले के पूरा कोरसिस कैल बाकि आँख खुल नऽ सकल आउ उ हरमेसा लेल बंद हो गेल। मुड़ी एक दने लोघड़ा गेल ।)    (आसझू॰4.5; 36.2)
92    दसकोसी (गाँव के भोली-बाली लड़की हल रश्मि जे मैट्रिक के परीच्छा में 90 फीसदी अंक ललाके न खाली घरेवालन के बल्कि दसकोसी तक के अदमी सभे के सोंचे पर मजबूर कर देलक हल ।)    (आसझू॰28.6)
93    दुसाध (अब तो लइकनो अपने में एक दोसरा के जाति के नाम से संबोधित करऽ हथ - पाँड़े, दुसधा, कोइरिया, बभना, चमरा, भुईमा, ... । भला केते बदल गेलक ई गाँव ।)    (आसझू॰35.8)
94    देल (= स॰क्रि॰ देलक, देलकइ) (रश्मि अप्पन माय के फारे-फार बता देल । बाकि ओकर माय-बाबूजी लोक-लाज के डर से जल्दी से जल्दी ओकर हाथ पीअर कर देल चाहऽ हलन ।)    (आसझू॰33.1)
95    देवीथान (मटखान के पच्छिमी किनार पर सूरूज मंदिर, शिव मंदिर आउ देवीथान हल, जहाँ सबेरहीं से पूजा-पाठ होवे लगऽ हल ।)    (आसझू॰34.16)
96    दोसर (= दूसरा) (एक साल में जल्दी-जल्दी कैकन पुलिस पदाधिकारी सभे के एने से ओने तबादला करल गेल हल, त दोसर दने सरकार के मंत्री सभे के विभाग में भी फेर-बदल जारी हल ।)    (आसझू॰4.5)
97    दोसरका (एतने में मंत्रीजी दोसर कमरा से एगो हाथ में मोबाइल आउ दोसरका हाथ में दारू के गिलास लेले निकललन ।; रश्मि दोसरके दिन बिना केकरो बतैले बोरिया-बिस्तर बाँध के अप्पन घरे के राह धर लेल ।)    (आसझू॰31.29; 32.18)
98    धाज्जा (= धाजा, ध्वजा) (मनउती भी कम न कैलन हल । देव में सात सूप के अरग देवे के, उमगा पहाड़ पर खंसी के बलि चढ़ावे के, सिहुली दरगाह पर चदरा चढ़ावे के, पाँच बच्छर तक लगतरीये बाबाधाम काँर ले जाए के, घर में हनुमान जी के धाज्जा गाड़े जइसन केतनन मनउती पूरा कैलन हल, बाकि अब लेल जगेसर भूत-परेत, ओझा-डइया के चंगुल में न फँसलन हल ।)    (आसझू॰24.11)
99    नजीक (= नगीच; नजदीक) (बात कहइत-कहइत उ एकदम नजीक आ गेलन आउ रश्मि पर ओइसहीं झपटा मारलन जइसे बाज चिरई पर मारऽ हे ।)    (आसझू॰32.12)
100    नहकार (~ चल जाना = नकारना, अस्वीकार करना) (आनंद बाबूजी से कहलक हल कि नौकरी से त्यागपत्र देके चलऽ साथे रहऽ बाकि शिवबालक बाबू के इ बात गला से नीचे न उतरल । उ नहकार चल गेलन । अलबत्ते माय बाबूजी बेटा से ओकर सादी-विआह के बारे में पूछलन त उ साफे टाल गेल आउ कहलक कोई निमन लड़की भेंटा जाएत त खुदे विआह कर लेव । माय बाबूजी चुप्पी साध लेलन, आखिर उनकर बेटा अब डी॰एम॰ साहेब जे हल ।; बाकि अब लेल जगेसर भूत-परेत, ओझा-डइया के चंगुल में न फँसलन हल । गाँव-घर के अदमी केते बेर कहलन हल बाकि जगेसर साफे नहकार चल जा हलन ।)    (आसझू॰13.13; 24.14)
101    नाज-नखड़ा (गाँव के भोलाभाला आनंद के सहरवाली लड़की के नाज-नखड़ा मालूम न हल । अप्पन वेतन के बड़गर हिस्सा उ रीमा पर खरच करे लगल । पहिले घरे भेजेवाला पइसा बंद कैलक, फिन उधार-पइँचा ।)    (आसझू॰8.18)
102    ना-नुकुर (गाड़ी ब्यूटी पार्लर भीर रोकलन आउ रश्मि से कहलन - चलऽ । रश्मि ना-नुकुर कैल बाकि मौसी के बात न उठौलक ।)    (आसझू॰31.18)
103    नामी-गिरामी (खुफिया विभाग से जुड़ल कुछ अधिकारी सभे भी आ चुकलन हल । सहर के नामी-गिरामी अदमी सभे के साथे उ मंदिर के मुआयना करल चाहऽ हलन ।; कैकन मंत्री इ बात से एकदमें असहमत हलन कि गृह मंत्रालय जइसन महत्वपूर्ण विभाग नामी-गिरामी अपराधी के कोनो भी कीमत पर न देल जाए, बाकि जादेतर मंत्री सभे के मत हल कि सूब्बा में शांति लेल परयोगे के तौर पर, इ बेर गृहमंत्री किशोरी उर्फ लंगड़ा के बनाबल जाए ।; इहे सोंच-समझ के रश्मि के नाम राजधानी के सबला नामी-गिरामी कॉलेज में लिखावल गेल ।)    (आसझू॰2.20; 4.11; 28.11)
104    निके-सुखे (सूरूज ढलइते गाँव के मरद-मेहरारू, बाल-बुतरु घर में कैदी लेखा कैद हो जा हथ आउ सगर रात राम-रहीम के नाम भजइते निके-सुखे सबेरे होवे के मने-मने इंतजार करइत रहऽ हथ ।)    (आसझू॰35.26)
105    निफिकिर (= बेफिक्र) (मैट्रिक के परीच्छा पास कैला के बाद बूढ़ी दादी के लाख माना कैला के बाद भी जगेसर आउ आरती चाँदनी के कॉलेज में पढ़ावे लेल सहर भेज देलन । उहाँ ओकरा सहर के हावा लगइते देरी न लगल । चाँदनी सहर में पढ़ाई कम आउ हेहरई जादे करे लगल । गाँव में ओकर माय-बाबूजी एकदम निफिकिर पड़ल हलन ।)    (आसझू॰26.12)
106    निमकी (आनंद के माय रात भर जग के बेटा के पसंद के एक-एक समान के गँठरी बनौलन, चार दिन पहिलहीं से जुगाड़ करे में बेदम हलन । बूट के सत्तू, गेहूँम, मसुरी, राहड़, चाउर के भुंजा, आँटा आउ गुड़ के बनल टिकरी, निमकी ... सभे कुछ बाँध-बूँध के फिट हो गेलन ।)    (आसझू॰14.1)
107    नियन (= जैसा) (समूले सहर में इ खबर जंगल के आग नियन फैल गेल कि चौक भीर वाला 'महेश मंदिर' के मूरती रात खनी ईटा-पथल से मार-मार के तोड़ देल गेल । सगर से अदमी के उजूम बरसाती नदी के बाढ़ नियन उमड़ पड़ल ।; गाँव के बीच में हल एगो बड़का मटखान, ओकरे चारो दने गाँव के समूला आबादी बसल हल । हर जात आउ बेरादरी के टोला अलगे-अलगे हल बाकि सभे एक साथे मिलजुल के रहऽ हलन - एकदम से दूध आउ पानी नियन ।)    (आसझू॰1.1, 4; 34.4)
108    पंचइती (उ अप्पन कमर कसल । आउ समूले पंचायत में घुम-घुम के एक रात गाँव में पंचइती लेल सभे के जोरिऐलक । सभे कोई मुखिया बीरेन्द्र सिंह के सर्वसम्मति से पंच चुललन ।)    (आसझू॰22.25)
109    पगार (= वेतन) (चार-पाँच बच्छर से कमाइत ओकरे गाँव के कोनो भी लइका के पाँच हजार से जादे पगार न भेंटा हल आउ आनंद के सुरूमें-सुरूमें में डिप्लोमा डिग्री के चलते सात हजार के नौकरी भेंटा गेल ।)    (आसझू॰7.22)
110    पटपटाना (हैलो ! ... हैलो ! ...। उ रिसिभर रखलन । उनकर ओठ पटपटा रहल हल । लिलार से पसेना टपक रहल हल । पोछलन आउ सौटकटे में कहलन - टूटू के अपहरण हो गेलक हे ।)    (आसझू॰18.13)
111    पट्टी (= तरफ, ओर) (आज मछली के अगोरी के नाम पर सूरूज ढलइते गाँव के बिगड़ल जवान हाथ में बंदुक लेले मटखान के चारो पट्टी अगोरी कम आउ अप्पन ताकत जादे देखावऽ हथ ।)    (आसझू॰35.15)
112    पड़ी (~ गिराना) (साहेब के बीबी गोल-मटोल बस एतने कहलन - "ओके" आउ घर में घुस गेलन । सिपाही ओखनी के रोकलन, बाकि काहे ला । शिवबालक बाबू अप्पन मेहरारू के साथे तेज डेग से गेट के बाहरे हो गेलन आउ दूनो माय-बाप गेट पर एक दने भिखमंगा लेखा पड़ी गिरा देलन ।)    (आसझू॰15.20)
113    पवितर (= पवित्तर, पवित्र) (अरे देओता-देवी के पूजला से कम से कम घर-दूरा के साथे-साथे मन आउ देह तो पवितर होवऽ हे । अइसे जगेसर के विस्वास तो देओता-देवी पर भी न हल ।)    (आसझू॰24.17)
114    पहिलहीं (आनंद के माय रात भर जग के बेटा के पसंद के एक-एक समान के गँठरी बनौलन, चार दिन पहिलहीं से जुगाड़ करे में बेदम हलन । बूट के सत्तू, गेहूँम, मसुरी, राहड़, चाउर के भुंजा, आँटा आउ गुड़ के बनल टिकरी, निमकी ... सभे कुछ बाँध-बूँध के फिट हो गेलन ।)    (आसझू॰13.25)
115    पाछ (= पाछे, पीछे) (मेहरारू पाछ लगल ऐलन आउ कहलन - "का बात भेल ?")    (आसझू॰18.17)
116    पाछे (= पीछे) (आउ सुनऽ, जादे चलाक बने के कोरसिस जे कैलऽ तऽ टूटू के लास उहे मंदिर के पाछे पड़ल भेंटाएत ।)    (आसझू॰18.11)
117    पाटी-पउआ (नारंगी लेखा ऊपरे से एक देखाएवाला इ गाँव भीतरे से कैकन टुकड़ा में बँट गेलक हल । जात-धरम आउ पाटी-पउआ के नाम पर ।)    (आसझू॰35.4)
118    पुरान-धुरान (खुफिया अधिकारी सावधानी बरतइत मंदिर में घुँस के ऊपरे तेज रोसनी डाललन त हर कोई देख के अचका गेलन । इ का, मंदिर के ऊपरे के ढेरे ईटा घसकल हल । उहाँ पर खाड़ अदमी के समझते देरी न लगल कि मंदिर में कोई तोड़-फोड़ न कैल गेल हे, बल्कि पुरान-धुरान मंदिर के ईटा-पथल गिरे से मूरती टूट गेलक हे ।)    (आसझू॰3.3)
119    पेहनावा-ओढ़ावा (पेहनावा-ओढ़ावा से तो उनकर उमर के पते न चलऽ हल । पैंतालीस बरिस से ऊपरे के सिम्मी मौसी अठारह-बीस के छम्मक-छल्लो लगऽ हलन ।)    (आसझू॰28.21-22)
120    फरना-फुलाना (समूले सूब्बे में फिरौती लेल अपहरण के व्यापार अप्पन जड़ी तरबूजा के जड़ी नियन एकदम गहराई में जमा चुकल हल । इ व्यापार के फरे-फुलाय से न खाली पुलिसवालन परेसान हलन बल्कि सरकार भी परेसान हल ।)    (आसझू॰4.3)
121    फारे-फार (= साफ-साफ, विस्तार से) (रश्मि अप्पन माय के फारे-फार बता देल । बाकि ओकर माय-बाबूजी लोक-लाज के डर से जल्दी से जल्दी ओकर हाथ पीअर कर देल चाहऽ हलन ।)    (आसझू॰33.1)
122    फिन (= फिर) (जादेतर मंत्री सभे अप्पन मत लंगड़ा के पच्छ में देलन । फिन का हल, सभे कोई गृहमंत्री के रूप में किशोरी उर्फ लंगड़ा के नाम पर सहमति के मोहर लगा देलन ।; दुपहरिया के फिन से ओही जालिम अदमी के फोन आएल । कहलक - "बेस न कैलऽ पुलिस भीर सूचना देके ।" - फिन हम का करती हल । पाँच लाख रुपइया कहाँ से लइती हल भला ।)    (आसझू॰5.26; 19.2, 4)
123    बच्छर (लगतरीये सात बच्छर तक अपराध के करिआ साया में जीअइत, मन उमठ गेलक हल किशोरी के ।; चार-पाँच बच्छर से कमाइत ओकरे गाँव के कोनो भी लइका के पाँच हजार से जादे पगार न भेंटा हल आउ आनंद के सुरूमें-सुरूमें में डिप्लोमा डिग्री के चलते सात हजार के नौकरी भेंटा गेल ।; आनंद पूरे एक बच्छर बाद होली में घरे आवे ला मन बनौलक बाकि कम्पनी के मैनेजर छुट्टी देवे से इन्कार कर गेलक ।)    (आसझू॰5.9; 7.21; 8.4)
124    बड़का (गाँव के बीच में हल एगो बड़का मटखान, ओकरे चारो दने गाँव के समूला आबादी बसल हल । हर जात आउ बेरादरी के टोला अलगे-अलगे हल बाकि सभे एक साथे मिलजुल के रहऽ हलन - एकदम से दूध आउ पानी नियन ।)    (आसझू॰34.1)
125    बड़की (~ बेटी) (उनकर बड़की बेटी बोलल - "पुलिस थाना चल के रिपोर्ट लिखवावे के चाही ।")    (आसझू॰18.20)
126    बड़गर (= बड़ा, बड़ा-सा) (गाँव के भोलाभाला आनंद के सहरवाली लड़की के नाज-नखड़ा मालूम न हल । अप्पन वेतन के बड़गर हिस्सा उ रीमा पर खरच करे लगल । पहिले घरे भेजेवाला पइसा बंद कैलक, फिन उधार-पइँचा ।)    (आसझू॰8.18)
127    बर (= बरगद, वटवृक्ष) (मटखान के चारो दने कच-कच हरिअरी हल । पीपल, बर, नीम, पाकड़, आम, लिसोढ़ा, उड़हुल, कनैल, जामुन, ... के पेड़ बरसो से खाड़ हल ।)    (आसझू॰34.22)
128    बर-बटाई (= बर-बटइया) (खानदानी जमीन तो कमे हल बाकि आनंद के बाबूजी बर-बटाई करके ओकरा एलेक्ट्रॉनिक डिप्लोमाधारी बनौलन, बाकि कउन काम के जब उनकर जीते जी ओकर नौकरीए न भेंटायल ।)    (आसझू॰7.1-2)
129    बाँधना-बूँधना (आनंद के माय रात भर जग के बेटा के पसंद के एक-एक समान के गँठरी बनौलन, चार दिन पहिलहीं से जुगाड़ करे में बेदम हलन । बूट के सत्तू, गेहूँम, मसुरी, राहड़, चाउर के भुंजा, आँटा आउ गुड़ के बनल टिकरी, निमकी ... सभे कुछ बाँध-बूँध के फिट हो गेलन ।)    (आसझू॰14.2)
130    बाभन (अब तो लइकनो अपने में एक दोसरा के जाति के नाम से संबोधित करऽ हथ - पाँड़े, दुसधा, कोइरिया, बभना, चमरा, भुईमा, ... । भला केते बदल गेलक ई गाँव ।)    (आसझू॰35.8)
131    बामा (= बायाँ) (किशोरी के बूढ़ माय-बाबूजी, मेहरारू आउ दुन्नो बेटा मारल गेल । इ हदसा में भागित किशोरी के बामा गोड़ में गोली लगल, तइयो उ बच गेल ।; इ तो नटिन हे नटिन ! नौ बच्छर बीत गेल तइयो एगो छूछून्दरो न पैदा कर सकल हे निगोड़ी ।)    (आसझू॰4.26; 24.4)
132    बाल-बुतरु (आरती चुप रहलन । थोड़के देरी के बाद जगेसर कहलन - "कउन सोंच में डूब गेलऽ ?" - "कउनो सोच में नऽ बाकि सुनऽ ही बाल-बुतरु पर कुल-खनदान आउ माय-बाप के असर पड़ऽ हे ।"; सूरूज ढलइते गाँव के मरद-मेहरारू, बाल-बुतरु घर में कैदी लेखा कैद हो जा हथ आउ सगर रात राम-रहीम के नाम भजइते निके-सुखे सबेरे होवे के मने-मने इंतजार करइत रहऽ हथ ।)    (आसझू॰25.18; 35.25)
133    बिरानी (नारंगी लेखा ऊपरे से एक देखाएवाला इ गाँव भीतरे से कैकन टुकड़ा में बँट गेलक हल । जात-धरम आउ पाटी-पउआ के नाम पर । बरस भर के भाईचारा आउ परेम ईर्ष्या आउ द्वेष में बदल चुकल हे । सगर बुझा हे बिरानी छायल हे ।)    (आसझू॰35.5)
134    बुढ़ारी (दूनों मूरती लेखा खाड़ मने-मने बोललन - "साहेब के बीबी" । दूनो के अप्पन बुढ़ारी के आँख पर विस्वास न हो रहल हल कि ओखनी के सामने खाड़ उनकर पुतोह हे या फिन दू टक्का के नाचे-गावेवाली सड़क छाप कोई लड़की ।)    (आसझू॰15.6)
135    बूट (= बूँट, चना) (आनंद के माय रात भर जग के बेटा के पसंद के एक-एक समान के गँठरी बनौलन, चार दिन पहिलहीं से जुगाड़ करे में बेदम हलन । बूट के सत्तू, गेहूँम, मसुरी, राहड़, चाउर के भुंजा, आँटा आउ गुड़ के बनल टिकरी, निमकी ... सभे कुछ बाँध-बूँध के फिट हो गेलन ।)    (आसझू॰13.26)
136    बेजाय (आरी के कपार टनकल । ओकरा इयाद आएल अपने कहल बात कि बाल-बच्चा पर कुल-खानदान आउ माय-बाप के असर पड़ऽ हे । सच लगल । बाकि संतोख इहे बात के हल कि सभे बेजाय बात सहर में घटल ।)    (आसझू॰27.9)
137    बेमार (= बीमार) (अभी पूरा से एक्को बच्छर न होएल हल कि एक दिन गाँव पर अनचितले में खबर आएल कि चाँदनी बड़ी जोर से बेमार हे, जेकर इलायज सहर के एगो नामी डाक्टरनी हीं हो रहल हे ।)    (आसझू॰26.14)
138    भाँजना-भुँजना (भीड़ में से कुछ लुंगेरा आउ गुंडा-बदमास सभे बीच-बीच में पुलिसवालन पर ढेला-ढुकुर भी कर रहलन हल, बाकि पुलिस के जवान संयम से काम ले रहलन हल । कभी-कभार अप्पन लाठी भाँज-भुँज के उ अदमी सभे के काबू में कैले हलन ।)    (आसझू॰1.11)
139    भीर (= पास) (समूले सहर में इ खबर जंगल के आग नियन फैल गेल कि चौक भीर वाला 'महेश मंदिर' के मूरती रात खनी ईटा-पथल से मार-मार के तोड़ देल गेल । सगर से अदमी के उजूम बरसाती नदी के बाढ़ नियन उमड़ पड़ल ।; कैकन गो नामी अपराधी पुलिस भीर आके आत्मसमर्पन करलन त केतनन गुंडा-बदमास के पुलिस मुठभेड़ में मार गिरैलक ।; दुगो झोला भर गेल सर-समान से । अनगुतीए सोझ हो गेलन दूनो प्राणी बेटा भीर ।)    (आसझू॰1.2; 6.21; 14.3)
140    भीरी (= भीर, पास) (माय आउ मेहरारू भी भीरी जाए से कतराय लगलन, जबकि डाक्टर के कहना हल कि एड्स बेमारी साथे रहे, साथे खाए-पीए इया छूए से न लगे, तइयो काहे ला ... । ... एक रात अचके आनंद के घरे से रोवे-धोवे के आवाज आएल । गाँववालन के समझते देरी न लगल कि आनंद के राम नाम सत्य हो गेल ।)    (आसझू॰9.11)
141    भुंजा (आनंद के माय रात भर जग के बेटा के पसंद के एक-एक समान के गँठरी बनौलन, चार दिन पहिलहीं से जुगाड़ करे में बेदम हलन । बूट के सत्तू, गेहूँम, मसुरी, राहड़, चाउर के भुंजा, आँटा आउ गुड़ के बनल टिकरी, निमकी ... सभे कुछ बाँध-बूँध के फिट हो गेलन ।)    (आसझू॰14.1)
142    भुईआँ (अब तो लइकनो अपने में एक दोसरा के जाति के नाम से संबोधित करऽ हथ - पाँड़े, दुसधा, कोइरिया, बभना, चमरा, भुईमा, ... । भला केते बदल गेलक ई गाँव ।)    (आसझू॰35.8)
143    मटखान (गाँव के बीच में हल एगो बड़का मटखान, ओकरे चारो दने गाँव के समूला आबादी बसल हल ।; इ गाँव के एकता के पाछे मटखानो के हाथ रहल हल । मटखान कइसे बनल, कहेवालन तो जेतने मुँह ओतने बात कहऽ हथ बाकि एकर बने के कहानी एतने हे कि इ गाँव कि इ गाँव के लगभग सभे घर इहे मटखान के पवितर माटी से बनल हे । आज जब ढेरे अदमी के घर पक्का के बन गेलक हे तइयो उ भी मटखान के माटी के उपयोग जरूरे करऽ हथ ।)    (आसझू॰34.1, 6, 8, 10)
144    मनउती (नौ बच्छर से ऊपरे हो गेलक हल जगेसर के विआह के बाकि अब लेल उनकर घरवाली आरती के गोदी न भरल हल । ... डाक्टर-वैद्य, दवा-दारू करावित थक के चूर हो गेलन हल जगेसर आउ दोसर दने आरती कोनो देओता-देवी के अवछ न छोड़लन हल । मनउती भी कम न कैलन हल ।)    (आसझू॰24.8)
145    ममला (= मामला) (थानेदार कहलन - "ठीके हे, हमनिओ कहाँ-कहाँ न छान मारली बाकि ममला तो कुछ आउरो हल । हमनी चलऽ ही ।" आउ चल देलन, जइसे ओखनी के सभे कुछ मालूम हल ।)    (आसझू॰20.10)
146    मर-मजूरी (आनंद के गाँव के कैकन गो लइकन लुधियाना, सूरत, मुम्बई में मर-मजूरी करऽ हलन ।)    (आसझू॰7.6)
147    मसुरी (= मसूर) (आनंद के माय रात भर जग के बेटा के पसंद के एक-एक समान के गँठरी बनौलन, चार दिन पहिलहीं से जुगाड़ करे में बेदम हलन । बूट के सत्तू, गेहूँम, मसुरी, राहड़, चाउर के भुंजा, आँटा आउ गुड़ के बनल टिकरी, निमकी ... सभे कुछ बाँध-बूँध के फिट हो गेलन ।)    (आसझू॰13.26)
148    माना (= मना) (मैट्रिक के परीच्छा पास कैला के बाद बूढ़ी दादी के लाख माना कैला के बाद भी जगेसर आउ आरती चाँदनी के कॉलेज में पढ़ावे लेल सहर भेज देलन । उहाँ ओकरा सहर के हावा लगइते देरी न लगल ।)    (आसझू॰26.8)
149    माय-बाप (आरती चुप रहलन । थोड़के देरी के बाद जगेसर कहलन - "कउन सोंच में डूब गेलऽ ?" - "कउनो सोच में नऽ बाकि सुनऽ ही बाल-बुतरु पर कुल-खनदान आउ माय-बाप के असर पड़ऽ हे ।")    (आसझू॰25.19)
150    मिंझाना (= बुताना; आग आदि बूझना या बुझाना) (उ अप्पन ननद के सच बात बतला देल जे गोस्सा के मिंझाइत इंगोरा में घीउ के काम कैल आउ एक्की बेर धधक उठल। आनंद के माय-बाबूजी आउ बहीन मिलजुल के कविता के मुँह में कपड़ा ठूँस के जबरदस्ती मट्टी के तेल छिड़क के आग लगा देलन ।)    (आसझू॰36.24)
151    मुड़ी (= सिर) (बाबा ओखनी सभे के एतने बता रहलन हल कि रात पहर उ ईटा-पथल चले के आवाज सुनलन, उ घड़ी बिजुली गुल हल । जब उ अंधारे में टोबित-टाबित ढिबरी जरा के मंदिर में आके देखलन तऽ एने-ओने सगर ईटा-पथल छितरायल हल आउ शिवलिंग के साथे-साथे बाबा भोलेनाथ के सवारी नंदी के मुड़ी भी हिगरल हल ।; सचो शिवलिंग के साथे-साथे नणदी के मुड़ी भी गायब हल ।)    (आसझू॰2.7, 25)
152    मोटरी (आरती धीरे सुन कान में फुसफुसैलन, ई पाप के मोटरी कहाँ-कहाँ लेले चलवऽ, चलके गंगा माई में प्रवाहित कर दऽ । ओइसने कइलन । आरती आउ जगेसर गंगा नहा के जइसे कउनो बड़का पाप से मुक्ति पा लेलन ।)    (आसझू॰27.12)
153    रखवइया (इ पर एगो पत्रकार चुटकी लेइत कहलन - "भला दूध के रखवइया बिलाई कइसे हो सकल हे ?" इ पर मुख्यमंत्री छोटहन पलटवार करित कहलन - "पत्रकार बंधु ! लोहा के लोहे न काटऽ हे ।")    (आसझू॰6.6)
154    रस्ता (= रास्ता) (फिन तो एक्की गो रस्ता बचल हे । पुलिस थाना चल के अपहरण रिपोर्ट लिखा देवल जाए ।)    (आसझू॰18.27)
155    राहड़ (= अरहर, तूर) (आनंद के माय रात भर जग के बेटा के पसंद के एक-एक समान के गँठरी बनौलन, चार दिन पहिलहीं से जुगाड़ करे में बेदम हलन । बूट के सत्तू, गेहूँम, मसुरी, राहड़, चाउर के भुंजा, आँटा आउ गुड़ के बनल टिकरी, निमकी ... सभे कुछ बाँध-बूँध के फिट हो गेलन ।)    (आसझू॰13.26)
156    लइकाइ (= लड़कपन, बचपन) (उनकर बस आँख में कान एकी गो बेटा हल - आनंद । लइकाइए से बड़ी तेज हल आउ 'होनहार वीरवान के होत चिकने पात' के कहउत एकदम से ओकरा पर फिट बइठऽ हल ।)    (आसझू॰13.4)
157    लगतरीये (= लगातार) (लगतरीये सात बच्छर तक अपराध के करिआ साया में जीअइत, मन उमठ गेलक हल किशोरी के ।; तू एतना बड़ा अदमी बन गेलऽ । हमनी बड़ी खुस ही । बगले में खाड़ बूढ़ी माय के आँख लगतरीये बह रहल हल । उ बार-बार अप्पन अँचरा से लोर पोछइत हलन, बाकि ... ।)    (आसझू॰5.9; 16.18)
158    लझुराना (राधा प्रोफेसर साहेब के अप्पन कोमल बाँह में लपेटले जब इ गरमागरम खबर देलक कि जल्दीये माय बनेवाली हे तऽ प्रो॰ आनंद अपने आप के काँट में लझुरायल पैलन । उनकर गोड़ तर के जमीन खिसकइत नजर आ रहल हल । ओठ आउ गला दूनो सुखल जा रहल हल । चेहरो पर बारह बजल हल ।)    (आसझू॰11.9)
159    लमहर (लमहर समय से टूटल-फूटल महेश मंदिर के सुधी लेवेवाला कोई न हल, एगो दीनानाथ बाबा के छोड़ के ।)    (आसझू॰1.15)
160    लास (= लाश) (आउ सुनऽ, जादे चलाक बने के कोरसिस जे कैलऽ तऽ टूटू के लास उहे मंदिर के पाछे पड़ल भेंटाएत ।; हो-हल्ला भी भेल, बाकि खाना बनावे के बहाना बना के लास बनल कविता के सहर के अस्पताल में ले जायल गेल ।)    (आसझू॰18.11; 36.27)
161    लिसोढ़ा (= लसोढ़ा) (मटखान के चारो दने कच-कच हरिअरी हल । पीपल, बर, नीम, पाकड़, आम, लिसोढ़ा, उड़हुल, कनैल, जामुन, ... के पेड़ बरसो से खाड़ हल ।)    (आसझू॰34.23)
162    लुंगेरा (भीड़ में से कुछ लुंगेरा आउ गुंडा-बदमास सभे बीच-बीच में पुलिसवालन पर ढेला-ढुकुर भी कर रहलन हल, बाकि पुलिस के जवान संयम से काम ले रहलन हल ।)    (आसझू॰1.9)
163    लेल (= अ॰ तक) (राधा आउ आनंद के दोस्ती के खबर से अब लेल राधा के घरवालन बेखबर हलन ।; आखिर टूटू इस्कूल से लौट के अब लेल घरे काहे न आएल ?)    (आसझू॰10.26; 17.3)
164    लेल (= स॰क्रि॰ लेलक, लेलकइ) (कॉलेज के लइका-लइकी के बीच परेम के इ खबर जंगल के आग लेख सगर फैल गेल । काना-फूसकी होवे लगल कि राधा अप्पन रूप-जाल में आखिर मालदार प्रो॰ आनंद के फँसा ही लेल आउ जल्दीये उ ओकर मेहरारू बनके रानी लेखा राज करत ।)    (आसझू॰10.22)
165    लेलक (= स॰क्रि॰ लेल) (कमसिन जवानी के दहलीज पर खाड़ उन्नइस-बीस के राधा बी॰ए॰ पार्ट टू के छात्रा हल, जे एक बरिस पहिले अप्पन गाँव से आके राजधानी के नामी कॉलेज में दाखिला लेलक हल ।; धीरे-धीरे दूनो के दोस्ती गढ़ाइत चल गेल आउ एक दिन राधा अप्पन मोहन के बाँह में समा के अप्पन गरम साँस के ठंढा भी कर लेलक ।)    (आसझू॰10.6; 11.3)
166    सगर (= सगरो; सभी जगह) (समूले सहर में इ खबर जंगल के आग नियन फैल गेल कि चौक भीर वाला 'महेश मंदिर' के मूरती रात खनी ईटा-पथल से मार-मार के तोड़ देल गेल । सगर से अदमी के उजूम बरसाती नदी के बाढ़ नियन उमड़ पड़ल ।; बाबा ओखनी सभे के एतने बता रहलन हल कि रात पहर उ ईटा-पथल चले के आवाज सुनलन, उ घड़ी बिजुली गुल हल । जब उ अंधारे में टोबित-टाबित ढिबरी जरा के मंदिर में आके देखलन तऽ एने-ओने सगर ईटा-पथल छितरायल हल आउ शिवलिंग के साथे-साथे बाबा भोलेनाथ के सवारी नंदी के मुड़ी भी हिगरल हल ।; कॉलेज के लइका-लइकी के बीच परेम के इ खबर जंगल के आग लेख सगर फैल गेल । काना-फूसकी होवे लगल कि राधा अप्पन रूप-जाल में आखिर मालदार प्रो॰ आनंद के फँसा ही लेल आउ जल्दीये उ ओकर मेहरारू बनके रानी लेखा राज करत ।)    (आसझू॰1.3; 2.5; 10.21)
167    सज्जल-धज्जल (सुहागरात के सज्जल-धज्जल सेज पर बइठल रश्मि इ उधेड़-बूँन में पड़ल हल कि आखिर अब ओकरा इ मोकाम पर का करे के चाही ।)    (आसझू॰28.1)
168    समझाव-बुझव (इ जानइते कि आनंद विआह कर लेल, पूरा परिवार दहाड़ मार के टूट पड़ल । जेतना मुँह ओतना बात । पूरा गाँव में खलबली मच गेल । समझाव-बुझाव होयल । बाकि तइयो आनंद के माय-बाबूजी गोस्सा में तमतमायल रहलन आउ रहथ काहे नऽ, चार-पाँच लाख के सोना के चिड़ई जे हाथ से उड़ गेल ।)    (आसझू॰36.17)
169    समूला (करवट बदलइत समूला रात बीत गेलक, बाकि राधा के आँख के पिपनी पलो भर ला न झँपल ।; गाँव के बीच में हल एगो बड़का मटखान, ओकरे चारो दने गाँव के समूला आबादी बसल हल । हर जात आउ बेरादरी के टोला अलगे-अलगे हल बाकि सभे एक साथे मिलजुल के रहऽ हलन - एकदम से दूध आउ पानी नियन ।)    (आसझू॰10.1; 34.2)
170    समूले (= समूचे) (समूले सहर में इ खबर जंगल के आग नियन फैल गेल कि चौक भीर वाला 'महेश मंदिर' के मूरती रात खनी ईटा-पथल से मार-मार के तोड़ देल गेल । सगर से अदमी के उजूम बरसाती नदी के बाढ़ नियन उमड़ पड़ल ।; समूले सूब्बे में फिरौती लेल अपहरण के व्यापार अप्पन जड़ी तरबूजा के जड़ी नियन एकदम गहराई में जमा चुकल हल । इ व्यापार के फरे-फुलाय से न खाली पुलिसवालन परेसान हलन बल्कि सरकार भी परेसान हल ।)    (आसझू॰1.1; 4.1)
171    सर-समान (दुगो झोला भर गेल सर-समान से । अनगुतीए सोझ हो गेलन दूनो प्राणी बेटा भीर ।; सर-समान लेले दूनो गेट पर गेलन जहाँ तीन-चार गो पुलिसवालन पहरेदारी कर रहलन हल ।; आनंद गेट से बहरैलन आउ अप्पन माय-बाबूजी के गोड़ पर जइसे गिर गेलन । जल्दी-जल्दी सभे सर-समान अपने ऊपर लादइत कहलन - बाबूजी, खबर तो कर देतऽ हल, हम खुदे आ जइती हल ।)    (आसझू॰14.2, 6; 16.7)
172    सिकड़ (= सिक्कड़) (एही बीच एगो अदमी के नजर मंदिर में टंगल घंटा पर गेल जे जमीन पर गिरल हल, सिकड़ समेत ।)    (आसझू॰2.28)
173    सुन (= सन; से) (आरती धीरे सुन कान में फुसफुसैलन, ई पाप के मोटरी कहाँ-कहाँ लेले चलवऽ, चलके गंगा माई में प्रवाहित कर दऽ । ओइसने कइलन । आरती आउ जगेसर गंगा नहा के जइसे कउनो बड़का पाप से मुक्ति पा लेलन ।)    (आसझू॰27.12)
174    सुन्नर-सलोनी (राधा जे खाली नामे से राधा न हल, बल्कि गोर-नार, सुन्नर-सलोनी, छरहर बदनवाली राधा के देख के भला कउन नौजवान के आँख न चौंधिया जा हल ।)    (आसझू॰10.9)
175    सोझ (~ होना) (दुगो झोला भर गेल सर-समान से । अनगुतीए सोझ हो गेलन दूनो प्राणी बेटा भीर ।; आनंद के माय-बाबूजी सोझ हो गेलन, आनंद गेठरी-मोटरी के अप्पन छाती से सटौले इ नजारा देख रहल हल । साथे-साथे ओकर दिमाग में सच भी लकड़ी में लगेवाला घुन के कीड़ा लेखा कट- कट काट रहल हल ।)    (आसझू॰14.3; 16.24)
176    सौटकट (= शौर्टकट) (हैलो ! ... हैलो ! ...। उ रिसिभर रखलन । उनकर ओठ पटपटा रहल हल । लिलार से पसेना टपक रहल हल । पोछलन आउ सौटकटे में कहलन - टूटू के अपहरण हो गेलक हे ।)    (आसझू॰18.14)
177    हथना (अप्पन जान ~ = आत्महत्या करना) (जे हमरा उचित न्याय न भेंटायत त हम भरल पंचायत में छाती पर मुक्का मार-मार के अप्पन जान हथ देव ।; माय-बाप मिलके ओहईं ओकर क्रिया-करम कर देलन, इ सोच के कि घरे ले गेला पर दादीओ अप्पन जान हथ देतन ।)    (आसझू॰23.4; 26.23)
178    हरमेसा (= हमेशा) (क...उ...न आँख खोले के पूरा कोरसिस कैल बाकि आँख खुल नऽ सकल आउ उ हरमेसा लेल बंद हो गेल। मुड़ी एक दने लोघड़ा गेल ।)    (आसझू॰36.2)
179    हरमेसे (=हमेशे) (नौकरी न भेंटायल हल तऽ इसे का, जगेसर पुरान बी॰ए॰ पास हलन । उनकर समझ हल कि अदमी के अंधविस्वास से हरमेसे दूर रहे के चाही ।)    (आसझू॰24.16)
180    हरिअरी (मटखान के चारो दने कच-कच हरिअरी हल । पीपल, बर, नीम, पाकड़, आम, लिसोढ़ा, उड़हुल, कनैल, जामुन, ... के पेड़ बरसो से खाड़ हल ।)    (आसझू॰34.22)
181    हावा (= हवा) (सबके सब खामोस हलन, अइसन बुझायल जइसे हावा तक थम गेल । चुप्पी के तोड़इत सलमा कहलक - बाकि इ में हम्मर अब्बा के सहमति जरूरी हे । उनकरा आवे तक इंतजार करे पड़त ।; मैट्रिक के परीच्छा पास कैला के बाद बूढ़ी दादी के लाख माना कैला के बाद भी जगेसर आउ आरती चाँदनी के कॉलेज में पढ़ावे लेल सहर भेज देलन । उहाँ ओकरा सहर के हावा लगइते देरी न लगल ।; कोचिंग करेवाली ओकर सखी-सहेली के ताम-झाम देख के ओकरो मन कुलबुलाएल, माने रश्मि के भी सहर के गंदा हावा आखिरकार लगहीं गेल ।)    (आसझू॰23.11; 26.10; 29.18)
182    हिगरना (बाबा ओखनी सभे के एतने बता रहलन हल कि रात पहर उ ईटा-पथल चले के आवाज सुनलन, उ घड़ी बिजुली गुल हल । जब उ अंधारे में टोबित-टाबित ढिबरी जरा के मंदिर में आके देखलन तऽ एने-ओने सगर ईटा-पथल छितरायल हल आउ शिवलिंग के साथे-साथे बाबा भोलेनाथ के सवारी नंदी के मुड़ी भी हिगरल हल ।)    (आसझू॰2.7)
183    हेहरई (मैट्रिक के परीच्छा पास कैला के बाद बूढ़ी दादी के लाख माना कैला के बाद भी जगेसर आउ आरती चाँदनी के कॉलेज में पढ़ावे लेल सहर भेज देलन । उहाँ ओकरा सहर के हावा लगइते देरी न लगल । चाँदनी सहर में पढ़ाई कम आउ हेहरई जादे करे लगल ।)    (आसझू॰26.11)
 

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