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Saturday, October 06, 2012

73. कहानी संग्रह "मगही विरंज" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द



मविक॰ = "मगही विरंज" (मगही कहानी संग्रह), कहानीकार श्री मनोज कुमार 'कमल'; प्रकाशक - ललित प्रकाशन, D-163, गणेश नगर पांडव नगर कांप्लेक्स, नई दिल्ली: 110092; प्रथम संस्करण - अप्रैल 2012 ; 104 पृष्ठ । मूल्य 150/- रुपये ।

देल सन्दर्भ में पहिला संख्या पृष्ठ और बिन्दु के बाद वला संख्या पंक्ति दर्शावऽ हइ ।

कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या - 299

ई कहानी संग्रह में कुल 20 कहानी हइ ।


ठेठ मगही शब्द ("" से "" तक):
1    अँतड़ी-पचउनी (सौंसे गाँव दौड़ पड़ल । का लइका, का बूढ़ा, का औरत, का मरद । उहाँ गेला पर देखलन कि मंगर के अँतड़ी-पचउनी सब बाहर हे । परान निकल गेल हल । भइँसा तनी दूर पर सीना तान के खड़ा हल । जइसे कहइत होय कि हमरा धोखा देवे के एही नतीजा हवऽ ।)    (मविक॰79.24)
2    अंगा-पैजामा (हमरा जी न पहिचानित ही । हम जी ही - अमित । हमरा झट से याद हो गेल । हमर ऑफिस में एही दुबर-पातर लइका योगदान कइलक हल । हम कहली कि हम पहिचानी कइसे ? हमरा भिर जे अमित हल - उ पतरा-दुबरा हल - माथ के केश उड़ल, अंगा-पैजामा वला आउ गोड़ में चप्पल । आझ के अमित मोटा-तगड़ा, कोट-पैंट, हिप्पी, लिबर्टी जूता, मुँह में गिलौरी आउ मारुति कारओला ।)    (मविक॰30.8)
3    अंगेया (हमरा याद हे हमर बहिन के बिआह हल । हमर बाबूजी अंगेया देवे ला अपन गिरहत किहाँ कहलन । हम कहली कि अंगेया देवे से का तोरा हीं खाय चल अयथु । बाबूजी कहलन कि बुड़बके रह गेलें । जाके जे कहइत हिअउ से कर । हम जाके कह अइलिअइ कि हमर बहिन के बिआह में अंगेया हवऽ ।; कउनो कारज में अंगेया देवे के मतलब हल उ कारज के खरचा भर समान मिल जाय । कोई बेमार-उमार पड़लन, खरचा गिरहते दे देलन। फिर कई साल में चुकावथ । सूद-उद कुछ न ।)    (मविक॰69.6, 7, 9, 12)
4    अइठ-बइठ (हम बड़ी दिन के बाद जानली कि दुनो दू जगह के रहेओला हथ । एगो छपरा के गुंजन आउ गया के गौतम हथ । दुनो के रहन-सहन, खान-पान, अइठ-बइठ में कोई अंतर न हल ।)    (मविक॰41.6)
5    अईं (~ जी !; ~ हो !) (हमरा मालुम हल कि मरदाना-मेहरारू में झगड़ा चलइत हल । हम उनखा से पुछली कि अईं जी ! दूनो में कातो झगड़ा हलो ? मरद-मेहरारू के झगड़ा खटिया पर जइते सब खतम हो जाहे ।; फूफा कहलथिन कि तूँ महाबुड़बके रह गेलें दीनदयाल ! अईं हो ! हमर समाचार ठीक कइसे रहत ? हम का बंड-बुंड ही कि अकेले हम ठीक तऽ सब ठीक ? हमरा नात-पोता, बेटा-पुतोह, भाई-भतीजा सब हथ ।)    (मविक॰32.4; 51.18 )
6    अकतियार (= अख्तियार) (हमरा से जादे अपने संसार देखली हे, देखइत भी हिया । लइका जलमावे के अकतियार औरत के वश में हे का ?)    (मविक॰55.16)
7    अकबार (दे॰ अँकवार) (होल हल्ला । कोई कहे कि गोली मार दे । कोई कुछ, कोई कुछ । जउन लइकी के सेनुर देली हल उ तो भाग गेल हल बाकि ओकर माय ओहिजे हलन । उ कने से तो एगो चिलोही लेके रणचंडी बन गेलन । हमरा भर अकबार के धर लेलन आउ कस के गरजलन । खबरदार जे कोई इ लइका में ठेक गेल ।; रिंकु हमरा तुरते माला पहिना देलन । हम लाज के मारे अपन अँचरा के आगे सरका लेली हल - घूँघट नियन करके । रिंकु के माय आके हमरा भर अकबार के धर लेलन हल । मने-मने हम अपन जीत पर खुश हली ।)    (मविक॰45.20; 62.12)
8    अकुराना (कउनो समाज अगर अपराध के अकुरा के उहईं मसल देवे त ऊ बड़का पेंड़ कइसे बनत । अपने समाज में हमर पहचान अछूत से हे, हिंदू से न । आउ समाज में जाके पूछऽ । उ सबसे पहिले अपना के मुसलमान, ईसाई, पारसी बतइतन । आउ हमनी सब अपना के बाभन, चमार, अहीर, राजपूत, कहार, कुम्हार, भुइयाँ आदि कहे ला तइयार ही, हिंदू न ।)    (मविक॰104.1)
9    अखबार-उखबार (अरे तोहनी सब गँवारे रह गेलें । पढ़-लिख के भी मूरूखे रह गेलें । तोहनी अखबार-उखबार न पढ़ें ? प्रधान मंत्री के खिलाफ में हमहूँ न खड़ा हलिअउ । अखबार में हमेशा नाम आवऽ हल । आउ सचे में अखबार के कतरन निकाल-निकाल के झोला से देखा देलन ।)    (मविक॰86.30-31)
10    अगलगी (हमर टोला के अगलगी के घटना के 'जाँच आयोग' के दस साल होला पर भी जाँच पूरा न भेल ।)    (मविक॰71.25)
11    अघाना (पत्नी के दुसरका भूमिका होवऽ हे माय के । माय जइसे अपन लइका के खियावऽ हे, पियावऽ हे बाकि अपने अघाय न । ओकरा नजर में लइकन के पेट हरदम हुकुरे-हुकुर करऽ हे । ओइसहीं पत्नी अपन मरदाना के हरदम मुँह ताकइत रहऽ हे कि काहे तो उदास हथ, काहे तो हँसइत न हथ ।)    (मविक॰56.5)
12    अधनीन (कभी-कभी चटाक के आवाज होवऽ हल । अधनीन में इ भरम होवऽ हल सबके कि हमरा मच्छर जे तंग करइत हल ओकरा मार देली ।)    (मविक॰96.23)
13    अनपुछ ('अपसोस' कहानी पति-पत्नी के एगो करुण गाथा हे । नौकरिहा मरद बेदरद हो गेल । पहिले तो जोरू के खूबे प्रेम देलक पर जब कोई संतान न भेल तऽ अनपुछ कर देलक ।)    (मविक॰10.3)
14    अनभख (उ हमरा से छोट हल । हमर गोतिया हल । इ से हमहु कहिनो-कहिनो ओकरा समझावऽ हली । हमर बात के ऊ अनभख मान लेलक । दंडो हमरे सामने भेलइ हल । उ हमर जानी दुश्मन बन गेल ।)    (मविक॰64.12)
15    अन्धारहीं (= अन्हारहीं; सुबह-सुबह) (बिहान भेला अन्धारहीं बड़ीमानी नेता अइलन । सब कहे लगलन कि तोहनी गाँव के जमींदारे पर केस करऽ । हमनी कहली कि आग लगावइत केकरो देखवे न कइली त केकरा पर केस करी ।)    (मविक॰70.1)
16    अबकहीं (ओकिल, कर्मचारी, मुवक्किल, गवाह सब धीरे-धीरे आ रहलन हल । सुधीर भी अबकहीं हमरो से पहिले आके एगो पेंड़ भिर खड़ा होके केकरो से बतिया रहलन हल ।)    (मविक॰32.11)
17    अरमेना (बाबू जी लइकाइये में बिआह कर देलन । खाइत-पिअइत बढ़ियाँ परिवार हल । मरदाना के आमदनी भी ठीके हल बाकि हलन उ शराबी । हमरा ऊ खाली अरमेना के साधन समझलन । समय से पहिले हम माय भी बन गेली ।)    (मविक॰82.21)
18    असुल (= असूल; वसूल) (आझ तबियत ठीक न हे । कहिनो कमा के असुल कर देम । हमर मजुरिये से काट लिहऽ ।)    (मविक॰50.6)
19    अहदी (एगो अदमी लगऽ हलन कि ओही महंथ हलन, एगो दूसर अदमी पर बिगड़ रहलन हल । तोहनी कमचोर हें, अहदी हें । बतावऽ अबहीं तक खरिहानी न उठल हे । गल्ला ला बेपारी आयल हे । ओकरा कउची देई तोर कपार ? तीन-तीन दफे तो ओकरा लौटा देली हे ।)    (मविक॰51.2)
20    अहीर (कउनो समाज अगर अपराध के अकुरा के उहईं मसल देवे त ऊ बड़का पेंड़ कइसे बनत । अपने समाज में हमर पहचान अछूत से हे, हिंदू से न । आउ समाज में जाके पूछऽ । उ सबसे पहिले अपना के मुसलमान, ईसाई, पारसी बतइतन । आउ हमनी सब अपना के बाभन, चमार, अहीर, राजपूत, कहार, कुम्हार, भुइयाँ आदि कहे ला तइयार ही, हिंदू न ।)    (मविक॰104.4)
21    आंधर (= आन्हर; अंधा) (जउन सरकार बने ओकरे में उ गोटी बैठा के मंत्री बन जा हलन । मंत्री बने के उनकर शौख हल । धन से आंधर हलन । कइगो करखाना हल उनकर । बड़ी इमानदार हलन ।)    (मविक॰29.8)
22    आगरों (अपने ई मत समझम कि हम आत्महत्या करे जाइत ही । बाकि पता न काहे हमरा आगरों मिलइत हेया । अपने हमर गलती के क्षमा जरूर कर देम ।)    (मविक॰57.8)
23    आना-कानी (गिरहस्ती में जानवर पोसल एक नंबर के धंधा होवऽ हे । दूध के दूध आउ तीन-चार साल में भइँस तइयार हो गेल तऽ एगो दामो बढ़ियाँ मिल जाहे । एकर मजा उ परिवार के मिलऽ हल से पोसे में आना-कानी न हल ।)    (मविक॰77.16)
24    आफत-सुलतानी (हमनी से काम लेवे ला गाँव के लोग तइयार न हथ । हमनी काम करल चाहवो करऽ ही त नेता आड़े आ जा हथ । आफत-सुलतानी में जे मदत करऽ हलन से सब के घर छोड़ के भागल रहे पड़इत हल । दूसर गाँव के आके कमाइत हथ । हमनी के काम न मिलइत हे ।)    (मविक॰70.27)
25    आरी (एक दिन हम एगो गिरहत के खेत पर काम करके  लौट रहली हल । माथा पर धान के बोझा हल । आरी के दुनो दने राहड़ के खेत हल । अकेले हली । गउएँ के दू-चार गो, लइकन तो न, जवाने कहऽ, हमरा पकड़ के बड़ी दूर रहड़िया में ले गेलन ।)    (मविक॰102.10)
26    आवा-जाही (चउदह-पंद्रह बरिस के होइत-होइत हमरा सबके भार उठावे पड़ल । लकड़ी-काठी, गोइठा-गोबर करी । चउँका कइसहुँ चल जाइत हल । हमरा भिर सबके आवा-जाही जादे होवे लगल हल ।)    (मविक॰101.9-10)
27    उकटना (तेरह कुरसी ~) (गाँव में कइसनो कारज होवे, जइसे - नाटक, संगीत-कीर्तन, अखंड रमलीला, तो गाँव के लोग चंदा करवे करऽ हथ । उनखा भिर कउनो चंदा ला पहुँच गेलन तो उनकर खैरियत न होवे । तेरह कुरसी उकट के रख देथ ।)    (मविक॰18.31)
28    उतरन-पतरन (हाँ बाबू, काम काहे न करवइ । दिन भर एने-ओने जे मारल फिरऽ ही ओकरा से तो अच्छा रहत । कम से कम खाय ला तो भर पेट मिलत न । उतरन-पतरन कपड़ा मिलिए जायत । आंधर के आँख मिल जायत त आउ का चाही मालिक ।)    (मविक॰99.14)
29    उदेस (= उद्देश्य) (सब कथा-कहानी के कोई न कोई उदेस होवऽ हे । बाकि कहानी ओही सार्थक मानल जाहे जेकरा से समाज के कुरीति मिटावल जाहे, दोष मिटावल जाहे ।)    (मविक॰15.7)
30    उपजाना (तनी देर के बाद टिकट निरीक्षक भी अइलन । बाकि अंगुरी लगे से जइसे लजउनी घाँस लजा के सिमट जाहे वइसहीं ओहु लजा के रह गेलन । बिना मांगले सलाह दे देलन कि मिल-जुल के चल जा । बिन उपजइले जमल कुश अइसन उनकर सलाह हमर दिमाग में गड़े लगल हल । बिन उपजावल मोथा अइसन हमर सीट पर लइकन बैठल हल ।)    (मविक॰39.13, 14)
31    उबियाना (= ऊबना) (दीनदयाल बाबू अइसन व्यक्ति हलन जे परिवार के जरा सा कलह से उबिया गेलन हल ।)    (मविक॰48.9)
32    एकक (दूसर गाँव के आके कमाइत हथ । हमनी के काम न मिलइत हे । कइसहुँ-कइसहुँ कर के एक साल में एकक गो घर बनल ओहू में सब परिवार के न बनल । मुरगी, बकरी, सुअर सब सिपाही लोग एकक गो करके खा गेलन ।; दू-चार गो तइयार हो गेलन । हम सबसे लिखा-पढ़ी करवा के उ सब के रखवा देली । चार अदमी अलगे-अलगे एकक गो रख लेलन हल ।)    (मविक॰70.29, 30; 99.29)
33    एकबैक (= अचानक) (धीरे-धीरे औरत से घर भर गेल । चोरावल लइका हली । कोई कुछ, कोई कुछ, जेतना मुँह ओतने बात । एगो कहित हल कि केतना टोहा-मोहा लइका हे । बेचारा के माय-बाप जानइत होतन कि बेटा पढ़े गेल हे आउ बेटा बेचारा बिआह करइत हे । एकबैक कनेया लेले जइतन त माय-बाप का कहतथिन ?; ऊ एकबैक एतबड़ कस के ठहाका लगौलन कि हमर सीटी-पीटी गुम हो गेल ।; अइसने एगो औरत से हमरा भेंट हो गेल, एकबैक ।)    (मविक॰44.2; 87.5; 100.12)
34    एतवड़ (एतना कस के झिकोर आउ पानी पड़े लगल कि केतनन पेंड़ उखड़ गेल । दीनदयाल बाबू अपने गाँव के एगो दलान पर ठहर गेलन । एतवड़ झिकोरे हल कि आगे बढ़े में बनइते न हल ।)    (मविक॰57.18)
35    एतवर (दे॰ एतवड़) (उहाँ गेला पर देखलन कि मंगर के अँतड़ी-पचउनी सब बाहर हे । परान निकल गेल हल । भइँसा तनी दूर पर सीना तान के खड़ा हल । ... मंगरि ओकरा भिर हाली-हाली जाके भूँकइत हल । मानो कहइत हल कि जानवर के जे धरम हल ओही तो कइलन हल, ओकरा ला तोरा एतवर गो सजा देवे के काम न हलउ । तू मालिक के साथ गद्दारी कइले हें ।; हम चार बजे भोरहीं उठ जाही । उठ के पर-पखाना लागी लोटा लेके जइसहीं गली में अइली कि इंजोरिया में सामने कई गो राइफलधारी पुलिस देख के हमर तो सीटी-पीटी गुम हो गेल । उ एतवर कसके डाँटलक कि डर के मारे हमर पखाने सूख गेल ।)    (मविक॰79.27; 88.6)
36    ओंठगन (= सहारा) (दुसमन के दुसमन यार बन जा हथ । उ हमरा ओंठगन देलन । एगो पहचान भी देलन । हालाँकि उहाँ भी हमरा लूटल गेल ।)    (मविक॰103.2)
37    ओड़िया (हम सोंचली कि अगर कम दाम माँगऽ हिया तब सब गहँकी शंका करे लगतन कि का बात हउ, एतना कम दाम माँगइत हथुन । चाहे तो इ बैला में कउनो ऐब हउ या इ अदमिये बुड़बक हउ । जबकि हम अपन पहिनावा बोल-चाल से ओइसन लगऽ न हली आउ  न तो कउनो ओड़िया तर के झाँपल खसी-पठरू हली । गाँव-जेवार के लोग जानवे करऽ हलन ।)    (मविक॰94.5)
38    ओतवर (= ओतवड़) (हमनी कइ दफे खिड़की से देखली हेया । आखिर पइपवा रतिया में पूरब से पछिम, उतर से दखिन कइसे हो जाहे । ओतवर-ओतवर भारी पाइप हेया ।)    (मविक॰97.22)
39    ओरियाना (= समाप्त होना) (जब तक उ शादी में न पहुँच जाथ तब तक गीत शुरुए न होवऽ हल । हर नेग-दस्तूर के अलग-अलग गीत । गीत तो उनकर ओरिअइवे न करऽ हल ।)    (मविक॰18.11)
40    ओसाना (गोमस्ता जी हाथ में एगो लाठी लेके धीरे-धीरे आगे बढ़लन । देखऽ हथ कि पाँच गो चोर ओसावल धान के बोरा में भर रहल हे ।)    (मविक॰23.19)
41    ओहिजे (= वहीं) (होल हल्ला । कोई कहे कि गोली मार दे । कोई कुछ, कोई कुछ । जउन लइकी के सेनुर देली हल उ तो भाग गेल हल बाकि ओकर माय ओहिजे हलन । उ कने से तो एगो चिलोही लेके रणचंडी बन गेलन । हमरा भर अकबार के धर लेलन आउ कस के गरजलन । खबरदार जे कोई इ लइका में ठेक गेल ।)    (मविक॰45.19)
42    कचरस (तब तक हमर इशारा पर चाय आवे ल हल । सब कोई चाय पीये लगलन । ओकर बाध हमर कोलसार में केतारी के कचरस पर ओइसहीं टूट पड़लन जइसे मिठाई पर मखियन । ओती घड़ी केतारी पेराइत हल से तुरते सब के कचरस पियावे के इंतजाम कइल गेल हल ।)    (मविक॰89.4, 5)
43    कथक्कड़ (ई तरह के घटना कि पढ़ल-लिखल लड़िका के बिआह लागी चोरबे कोई आउ लड़िका गाँव के सबसे खूबसूरत लड़की के माँग में सेनुर भर देवे, फिर लड़की के बाप अपन बेटी के ओकरे साथे विदा करे ला तैयार हो जाय, एगो अबूझ पहेली नियन लगऽ हे । पर पहिले ई तरह के घटना जरूरे घटल होएत । ओकरे आधार मान के इया अपन गाँव-जेवार के कोई कथक्कड़ से भाव ग्रहण करके कथा के सरूप गढ़े में लेखक के खूबे सफलता मिलल हे ।)    (मविक॰9.13)
44    कबारना (= उखाड़ना (लइकाई में हम सबसे पहिला चोरी कइली हल । एगो के खेत से धनियाँ कबार के ।; लइकाई में अगर पहिला चोरी धनियाँ कबार के कइली हल ओतिये घड़ी हमरा डाँट देत हल, आगे से हमर मन न बढ़त हल ।)    (मविक॰84.1, 4)
45    कमचोट्टा (उनखा अलगे एकांत में ले जाके सब बात बता देली कि देखऽ इ कहिनो काम न अइतो । एकदम सुस्त हराम हवऽ । कमचोट्टा हवऽ । तू एकदम मत लऽ ।)    (मविक॰94.12)
46    कमचोर (= कामचोर) (एगो अदमी लगऽ हलन कि ओही महंथ हलन, एगो दूसर अदमी पर बिगड़ रहलन हल । तोहनी कमचोर हें, अहदी हें । बतावऽ अबहीं तक खरिहानी न उठल हे । गल्ला ला बेपारी आयल हे । ओकरा कउची देई तोर कपार ? तीन-तीन दफे तो ओकरा लौटा देली हे ।)    (मविक॰51.1)
47    कमाना-खाना (आवइत-जाइत गाँव के गिरहत से राम-सलाम होवे लगल । अब उ पहिलका मन तो न हे । केतनो होवे, अब उ सब हमनी के शंके के नजर से देखऽ हथ । जे रात-बिरात तक कमा हली से अब बेरिये डुबे भगा दे हथ ।)    (मविक॰71.13)
48    कमाना-खाना (हम भविष्य देखित ही कि तोरा जमीन दिला देबो त का जनी हमरे से टे-पों बतिआय लगबऽ तऽ ? छठन कहलन कि का यार ! हमरा खाय के ठेकाने न हे आउ तोरा से टे-पों कर के का करम । गोमस्ता जी एगो कागज पकड़ा के कहलन कि इ लऽ तीस बिगहा के जमीन । तोरा कमाय-खाय ला दिलवा देलियो हे ।)    (मविक॰25.24)
49    कविता-उविता (उ दुनो जानऽ हथी कि इ मास्टर हथ । कुछ कविता-उविता लिखइत रहऽ हथ । कविता सुने ला हमरा भिर आ जा हथ ।)    (मविक॰41.9)
50    कसुरवार (हम मने-मन निश्चय कर लेली हल कि एकर बदला हम जरूर लेम । जे कसुरवार हथ उनका सजा जरूर दिलायेम ।)    (मविक॰102.20)
51    कहार (कउनो समाज अगर अपराध के अकुरा के उहईं मसल देवे त ऊ बड़का पेंड़ कइसे बनत । अपने समाज में हमर पहचान अछूत से हे, हिंदू से न । आउ समाज में जाके पूछऽ । उ सबसे पहिले अपना के मुसलमान, ईसाई, पारसी बतइतन । आउ हमनी सब अपना के बाभन, चमार, अहीर, राजपूत, कहार, कुम्हार, भुइयाँ आदि कहे ला तइयार ही, हिंदू न ।)    (मविक॰104.4)
52    कहा-सुनी (पंचायत में खूब काह-सुनी भेल । फिर सब कहलन कि लइका के बोला के पूछल जाय । हमरा बोलावल गेल ।)    (मविक॰47.1)
53    का जनी (= की जनी; का जानी; क्या जाने) (हम भविष्य देखित ही कि तोरा जमीन दिला देबो त का जनी हमरे से टे-पों बतिआय लगबऽ तऽ ? छठन कहलन कि का यार ! हमरा खाय के ठेकाने न हे आउ तोरा से टे-पों कर के का करम ।)    (मविक॰25.21)
54    काड़ा (= भैंस का नर बच्चा) (चार-पाँच बियान के बढ़ियाँ भइँस हल - बड़ी दुधगर । पहिलौंठ में उ काड़ा बच्चा देलक हल । मंगर ओकरा बढ़ियाँ देख के घरहीं रख लेलन हल । हरो चलऽ हल ।)    (मविक॰77.27)
55    काड़ा-काड़ी (मंगर पढ़ल-लिखल कम हलन । बढ़ियाँ गिरहस्त हलन । जमीन कम हल । ... पूरा भरल परिवार हल उनखर बाकि उनखर काम हल खाली भइँस चरावे के । तीन-चार गो भइँस पोसऽ हलन । घरहीं के काड़ा-काड़ी डेओढ़ होयल रहऽ हल । गिरहस्ती में जानवर पोसल एक नंबर के धंधा होवऽ हे ।)    (मविक॰77.13)
56    कातो (हमरा मालुम हल कि मरदाना-मेहरारू में झगड़ा चलइत हल । हम उनखा से पुछली कि अईं जी ! दूनो में कातो झगड़ा हलो ? मरद-मेहरारू के झगड़ा खटिया पर जइते सब खतम हो जाहे ।; हमनी के तीर फिर गेल । आउ रस्तवे भुला गेली । साँझ हो गेल, सगरो अंधार छा गेल । गीता डेराय लगल । ... हम सोंचली कि घबराय से काम गड़बड़ा जायेत । हम गीता के कहली कि सर जी हमनी के किताब में पढ़ावऽ हथुन, धीरज न खोवे के चाही । बाबूजी कइसन-कइसन बढ़ियाँ-बढ़ियाँ खिस्सा कहऽ हथु जेकरा में ध्रुव, प्रहलाद, मोरध्वज लइकन के कहानी बढ़ियाँ लगल हल । ध्रुव तो कातो हमनियों से छोटा हलन । जंगल में अकेले गेलन हल । आउ डेरइवो न करऽ हलन । हमनी दुगो हिया । गीता कहलक - उ तो भगवान के कातो भगत हलन ।; बड़का कातो विदवान हलन वाजपेयी जी । संसद में कउन केतना उनकर बात मानऽ हलन । प्रधान मंत्री केतना दिन रहलन ।)    (मविक॰32.4; 74.29, 31; 87.17)
57    कारज (गाँव में कइसनो कारज होवे, जइसे - नाटक, संगीत-कीर्तन, अखंड रमलीला, तो गाँव के लोग चंदा करवे करऽ हथ । उनखा भिर कउनो चंदा ला पहुँच गेलन तो उनकर खैरियत न होवे । तेरह कुरसी उकट के रख देथ ।)    (मविक॰18.29)
58    किकुरना (जब जाड़ा लगऽ हे तब मैदान में दौड़ लगावऽ हिया । या पइपवे के एने से ओने ढकेलऽ हिया । एकरा से देह में कुछ गरमी आ जा हे । कुछ देर राहत मिल जा हे । आउ फिर किकुर के एके साथे सुते के कोसिस करऽ हिया ।)    (मविक॰99.8)
59    किताब-उताब (हमरे हीं सालो भर काम करिहऽ इ कह के गिरहत एक बिगहा जमीन देले हलन । उनखरे खइहन-बीहन से रोपा जा हल । उ एक बिगहा के सब पैदा हमरे हीं चल जा हल । गिरहते के लइकन से किताब-उताब लेके पढ़ ले हली । कइसहुँ करके बी.ए. कर गेली हल ।)    (मविक॰69.5)
60    किरिया-कसम (हम कहलि कि उ दिन हमरा तू झूठ मानलऽ । हम केतनो किरिया-कसम खइली बाकि हमरा पर तोरा बिसवासे न भेल ।)    (मविक॰95.2)
61    कुचुआ (= केंचुली) (रमा आझ चिट्ठी लिखे बइठलन । लगऽ हे कि आझ जिनगी के सउँसे साधना कागज पर उकेर देतन । साँप के कुचुआ अइसन मइल के आवरण आझ उतार के फेंके ला तइयार हथ ।)    (मविक॰54.3)
62    कुबेर (एक दिन हम समय से न अइली । गीता के माय चिंतित भेलन कि आझ कुबेर काहे भेल ?)    (मविक॰73.28)
63    कुम्हार (कउनो समाज अगर अपराध के अकुरा के उहईं मसल देवे त ऊ बड़का पेंड़ कइसे बनत । अपने समाज में हमर पहचान अछूत से हे, हिंदू से न । आउ समाज में जाके पूछऽ । उ सबसे पहिले अपना के मुसलमान, ईसाई, पारसी बतइतन । आउ हमनी सब अपना के बाभन, चमार, अहीर, राजपूत, कहार, कुम्हार, भुइयाँ आदि कहे ला तइयार ही, हिंदू न ।)    (मविक॰104.4)
64    कुरसी (तेरह ~ उकट के रख देना) (गाँव में कइसनो कारज होवे, जइसे - नाटक, संगीत-कीर्तन, अखंड रमलीला, तो गाँव के लोग चंदा करवे करऽ हथ । उनखा भिर कउनो चंदा ला पहुँच गेलन तो उनकर खैरियत न होवे । तेरह कुरसी उकट के रख देथ ।)    (मविक॰18.31)
65    कुल-कुटुम (हमरा लगल कि कुल-कुटुम के बात हे, इनखा सब सच-सच बता देवे के चाही । कल के गेले धोखा होइतन त हमरा इ दोस देतन । इ से उनखा अलगे एकांत में ले जाके सब बात बता देली कि देखऽ इ कहिनो काम न अइतो । एकदम सुस्त हराम हवऽ । कमचोट्टा हवऽ । तू एकदम मत लऽ । हम जेतने उनखा सड बतावी ओतने उ लट्टु होलन । उ समझइत हलन कि कुल-कुटुम के चलते इनखा कम दाम देम ।)    (मविक॰94.9, 13)
66    केतारी (तब तक हमर इशारा पर चाय आवे ल हल । सब कोई चाय पीये लगलन । ओकर बाध हमर कोलसार में केतारी के कचरस पर ओइसहीं टूट पड़लन जइसे मिठाई पर मखियन । ओती घड़ी केतारी पेराइत हल से तुरते सब के कचरस पियावे के इंतजाम कइल गेल हल ।)    (मविक॰89.4, 5)
67    कोरहाग (= कोहाग, कुहाग; झमेला, बखेड़ा, क्लेश, दुख) (दीनदयाल बाबू घर के कोरहाग से उबिया के सब कुछ छोड़-छाड़ के निकल गेलन । पर ऊ जहाँ भी गेलन अपन घर से जादे कोरहाग देखाई देलक । तब ऊ लौट के अपन घरे आ गेलन ।)    (मविक॰9.27, 28)
68    कोलसार (तब तक हमर इशारा पर चाय आवे ल हल । सब कोई चाय पीये लगलन । ओकर बाध हमर कोलसार में केतारी के कचरस पर ओइसहीं टूट पड़लन जइसे मिठाई पर मखियन । ओती घड़ी केतारी पेराइत हल से तुरते सब के कचरस पियावे के इंतजाम कइल गेल हल ।)    (मविक॰89.4)
69    खँड़ी (अपने हमरा धर्मपत्नी के रूप में हाँथ धर के अपना लेली हल । पत्नी के धरम के हम निबाह कइली कि न ? अपने जब छोड़ के गेली त हमरा एगो खँड़ी के भट्टी के एगो घर रहे ला सब दे देलन हे ।)    (मविक॰55.24)
70    खइहन-बीहन (हमर बाबूजी मजूरी करऽ हथ । एगो गिरहत किहाँ सालो भर काम करऽ हथ । सालो भर काम मिल जाहे करीब-करीब । हमरे हीं सालो भर काम करिहऽ इ कह के गिरहत एक बिगहा जमीन देले हलन । उनखरे खइहन-बीहन से रोपा जा हल ।)    (मविक॰69.3)
71    खखुआना (आउ कहीं कोई टेढ़ मिल गेलन त ओइसहीं खखुअइतन जइसे कतिकसन के कुत्ता के सब झंझोट लेहे ।)    (मविक॰68.18)
72    खपड़ी (= खपरी) (लइकन दिन भर में दस दफे लड़थ आउ साथे खेलथ बाकि गोतनी दुनो के मन फूटल खपड़ी अइसन भेल, से मिले के नामे न ले ।; एने सरकार 'जाँच आयोग' के गठन कइलन, के ओने हमहुँ अपन मेहरारू के जाँच करे ला कहली । उ कुछ देर के बाध आके बतइलक कि छठना के मेहररूआ खपड़ी चढ़ौले हल - सत्तू के अनाज भूँजे ला । तनी सुन बंडोआ आयल आउ फूस के छप्पर हल, से धर लेकइ । सउँसे टोला जर गेलइ ।)    (मविक॰48.14; 70.18)
73    खर-खर (पेड़ के छाँह में तनी देर सुस्ताय ला रुकलन कि ओने से एगो अदमी आवइत हलन । उ संयोग से उनकर फूफा हलन । ओहु बूढ़ा हो गेलन हल बाकि हलन खर-खर ।)    (मविक॰51.15)
74    खरचा-पानी (प्रणाम-पाती के बाद उ कहलन कि तोरा बिसवासे न होतउ । हम प्रधान मंत्री के खिलाफ चुनाव में खड़ा भे गेलियो हे । कुछ खरचा-पानी घट गेलउ से लेवे आ गेली हे । चुनाव के बीच में उ घरे आ गेलन हल एही अचरज के बात हल ।)    (मविक॰87.32)
75    खरिहानी (एगो अदमी लगऽ हलन कि ओही महंथ हलन, एगो दूसर अदमी पर बिगड़ रहलन हल । तोहनी कमचोर हें, अहदी हें । बतावऽ अबहीं तक खरिहानी न उठल हे । गल्ला ला बेपारी आयल हे । ओकरा कउची देई तोर कपार ? तीन-तीन दफे तो ओकरा लौटा देली हे ।)    (मविक॰51.2)
76    खसी-पठरू (हम सोंचली कि अगर कम दाम माँगऽ हिया तब सब गहँकी शंका करे लगतन कि का बात हउ, एतना कम दाम माँगइत हथुन । चाहे तो इ बैला में कउनो ऐब हउ या इ अदमिये बुड़बक हउ । जबकि हम अपन पहिनावा बोल-चाल से ओइसन लगऽ न हली आउ  न तो कउनो ओड़िया तर के झाँपल खसी-पठरू हली । गाँव-जेवार के लोग जानवे करऽ हलन ।)    (मविक॰94.6)
77    खस्सी-पठरू (आग के तितकी समय पाके ज्वाला बनिये जाहे । सनम {बाघ के बच्चे का नाम} के हृदय में स्वाभिमान जगे लगल हल । वातावरण के अभाव हल । अब छोटे-छोटे खस्सी-पठरू ओकरा से डरे लगलन हल ।)    (मविक॰91.31-32)
78    खाड़ा (= खड़ी; खड़ा) (हमनी दुनो गपशप करइत कचहरी में चल गेली । अप्पन ओकिल के पीछे खाड़ा भे गेली । सुधीर भी अप्पन ओकिल के पीछे खाड़ा हलन । सगरो सन्नाटा हल ।)    (मविक॰37.8, 9)
79    खाना-उना (परिवार के एगो औरत घुघा काढ़ले कपस-कपस के कहे लगल कि हम केतनो कहली कि खा लेथ, तब न खइलन । बनाके खा-उ के सुते चल गेलन हल ।; क्लिनिक में खाना-उना बने के इंतजाम हइए हे । उहइँ खायल जायेत । काहेकि होटल के खाना हमरा पसंद न पड़ऽ हल ।)    (मविक॰17.14; 96.11)
80    खासमखास (ध्रुव तो कातो हमनियों से छोटा हलन । जंगल में अकेले गेलन हल । आउ डेरइवो न करऽ हलन । हमनी दुगो हिया । गीता कहलक - उ तो भगवान के कातो भगत हलन । हम कहली - अरे भगत के का कोई अलगे जात हे । हमनियों उनखर नाम लेम त भगत हो गेली आउ का ? भगवान केकरो खासमखास न हथु ।)    (मविक॰75.1)
81    खुत्थी (= थाती, धरोहर, अमानत; रुपया भरकर कमर में बाँधने की कपड़े की पतली लंबी थैली, डोरा; कटी फसलों की खूँटी) (दशहरा, दिवाली, छठ, होली कउनो परब होवे, का मजाल कि गली में गनौरा-कचरा मिल जाय । जेकर गली में गनौरा, गंदगी नजर आयल कि ओकर शामत आ गेल । गरज-गरज के हल्ला करे लगतन हल मानो फुआ । बाप के करेजा काढ़ के फेंक देलन । बाप के खुत्थी हइन ।)    (मविक॰19.13)
82    खूँटा (हमरा देखे में लगल कि उ सब पढ़ल-लिखल परिवार हे । हम साइकिल एक दने खड़ा करके पानी पीये के बहाना बनउली । बगले में खूँटा ठोक के बाँस के चचरी बनवल हल । ओकरे पर बइठे ला सब कहलन ।)    (मविक॰73.16)
83    गड़ना (दिमाग में ~) (तनी देर के बाद टिकट निरीक्षक भी अइलन । बाकि अंगुरी लगे से जइसे लजउनी घाँस लजा के सिमट जाहे वइसहीं ओहु लजा के रह गेलन । बिना मांगले सलाह दे देलन कि मिल-जुल के चल जा । बिन उपजइले जमल कुश अइसन उनकर सलाह हमर दिमाग में गड़े लगल हल ।)    (मविक॰39.14)
84    गन (लाश उठाके छठन अपन माथा पर रखके चल देलन । गोमस्ता जी के कहलन कि जाके सुतऽ गन । ततकी कपूर अइसन नीन जे उड़ गेल, से फिर काहे ला आवे के नाम ले ।; घरे काम करे में मन न लगइत हउ तऽ बाहरे जो कमो गन ।)    (मविक॰24.22; 50.20)
85    गनौरा-कचरा (दशहरा, दिवाली, छठ, होली कउनो परब होवे, का मजाल कि गली में गनौरा-कचरा मिल जाय । जेकर गली में गनौरा, गंदगी नजर आयल कि ओकर शामत आ गेल । गरज-गरज के हल्ला करे लगतन हल मानो फुआ । बाप के करेजा काढ़ के फेंक देलन । बाप के खुत्थी हइन ।)    (मविक॰19.11)
86    गबड़ा (= गड्ढा) (सब भइँस-भइँसा एगो गबड़ा में बोरल हल । कातिक के महीना हल । रउदा बड़ी तीखा हल । राड़ के बोली आउ कातिक के रउदा सबसे बरदास्त न होवे ।)    (मविक॰79.7)
87    गरहई (हमरा भिर एगो बैल हल । बड़ी नीमन । सुन्नर शरीर । फह-फह उजर । मुठरिया सिंग । गोड़ सुडौल । छोटे-छोटे पोंछी । बाकि हल एकदम गर्ह । हर-पालो देखइते खूँटा पर पड़ जा हल । केतनो उपाय करऽ, उठे ला तइयारे न होवऽ हल । ... पता न कइसे उ समझ जा हल कि हमरा अब सब काम में लगौतन । बस उ अपन गरहई कर दे हल ।)    (मविक॰93.14)
88    गर्ह (हमरा भिर एगो बैल हल । बड़ी नीमन । सुन्नर शरीर । फह-फह उजर । मुठरिया सिंग । गोड़ सुडौल । छोटे-छोटे पोंछी । बाकि हल एकदम गर्ह । हर-पालो देखइते खूँटा पर पड़ जा हल । केतनो उपाय करऽ, उठे ला तइयारे न होवऽ हल । ... पता न कइसे उ समझ जा हल कि हमरा अब सब काम में लगौतन । बस उ अपन गरहई कर दे हल ।)    (मविक॰93.11)
89    गल्ला-उल्ला (पहिले सब साथे बनावऽ-खा हलन । बाकि जब से पुतोहन आयल हे आपस में टीका-टिप्पणी रेसावादी करे लगलन हल । तहिना से मानो फुआ अलगहीं बनावऽ-खा हलन । जब कभी तनी-मानी गल्ला-उल्ला केकरो गरीब-गुरबा के दे दे हलन तब औरत लोग के आँख लगऽ हल ।)    (मविक॰20.16)
90    गस्ती (~ मार देना) (टाँगी जइसहीं चलौलन कि ओतिये घड़ी सनम छलाँग लगा देलक । ओकरा बचावे में टाँगी अइसन छटकल कि प्रताप बाबू के गोड़े पर आके लग गेल । पैर कट गेल हल । ओकरा से खून बहे लगल हल । प्रताप बाबू के गस्ती मार देलक ।)    (मविक॰92.9)
91    गहँकी (= गहकी, गाहक, गाँहक; ग्राहक) (जइसे सेमर के लाल-लाल खूब बढ़ियाँ फूल देख के चिरईं ओकरा पर खूब लोभा हथ ओइसहीं एकर रूप-रंग देख के गहँकी खूब मड़राय लगलन । हम सोंचली कि अगर कम दाम माँगऽ हिया तब सब गहँकी शंका करे लगतन कि का बात हउ, एतना कम दाम माँगइत हथुन ।)    (मविक॰94.1, 2)
92    गहिड़ा (= गड्ढा) (अभी अदमी के जिनगी एगो दरद के टिल्हा बन गेल हे । एकर नीचे द्वंद्व के पानी भरल गहिड़ा हे । दरद के टिल्हा के काट के अगर ऊ गहिड़ा में भर देल जाय तऽ जिनगी में बसल दरद अउ द्वंद्व दूनो के खतम कैल जा सकऽ हे ।)    (मविक॰12.19)
93    गाँव-जेवार (हम सोंचली कि अगर कम दाम माँगऽ हिया तब सब गहँकी शंका करे लगतन कि का बात हउ, एतना कम दाम माँगइत हथुन । चाहे तो इ बैला में कउनो ऐब हउ या इ अदमिये बुड़बक हउ । जबकि हम अपन पहिनावा बोल-चाल से ओइसन लगऽ न हली आउ  न तो कउनो ओड़िया तर के झाँपल खसी-पठरू हली । गाँव-जेवार के लोग जानवे करऽ हलन ।)    (मविक॰94.6)
94    गारी-उरी (गारी-उरी देके अँचरा से खोल के पैसा मुँह पर फेंक दे हलन । सबसे जादे चंदा दे हलन । लइकन सब मूड़ी गाड़ के चुपचाप सुनऽ हलन । पैसा मिलइते सब भाग जाथ ।)    (मविक॰19.5)
95    गिरहत (= गृहस्थ) (हमर बाबूजी मजूरी करऽ हथ । एगो गिरहत किहाँ सालो भर काम करऽ हथ । सालो भर काम मिल जाहे करीब-करीब ।)    (मविक॰69.1)
96    गिरहस्त (मंगर पढ़ल-लिखल कम हलन । बढ़ियाँ गिरहस्त हलन । जमीन कम हल । ... पूरा भरल परिवार हल उनखर बाकि उनखर काम हल खाली भइँस चरावे के । तीन-चार गो भइँस पोसऽ हलन । घरहीं के काड़ा-काड़ी डेओढ़ होयल रहऽ हल । गिरहस्ती में जानवर पोसल एक नंबर के धंधा होवऽ हे ।)    (मविक॰77.9)
97    गिरहस्ती (मंगर पढ़ल-लिखल कम हलन । बढ़ियाँ गिरहस्त हलन । जमीन कम हल । ... पूरा भरल परिवार हल उनखर बाकि उनखर काम हल खाली भइँस चरावे के । तीन-चार गो भइँस पोसऽ हलन । घरहीं के काड़ा-काड़ी डेओढ़ होयल रहऽ हल । गिरहस्ती में जानवर पोसल एक नंबर के धंधा होवऽ हे ।)    (मविक॰77.13)
98    गुड़की (अब भइँसा भइँस के छोड़ के नहर से निकल गेल । ओकर दूनो आँख लाल-लाल अँगार भे गेल । उ दौड़ के आयल आउ मंगर के उठा के माथा से फेंक देलक से उ नहर के पानी में फेंका गेलन । उपरे से भइँसा भी कुदल बाकि मंगर पानी में गुड़की मार के भाग गेलन । ... घरे के जउन भइँसा गऊ अइसन सीधा-साधा हल उ मंगर के जान मारे के ताक में रहे लगल ।)    (मविक॰78.13)
99    गुरही (= गुर्ही, गुढ़ी; वैरभाव, अपकार करने का गुप्त भाव; grudge) (गोतनी के बात के गुरही झुंझलाहट अपन लइकन के पीट के शांत करऽ हलन ।)    (मविक॰49.1)
100    गेंठी (भगवान तो लता के साथे जोड़ी बनइलन हल त दुसरा से कइसे गेंठी जोड़ायत हल ।)    (मविक॰47.20)
101    गोइठा-गोबर (चउदह-पंद्रह बरिस के होइत-होइत हमरा सबके भार उठावे पड़ल । लकड़ी-काठी, गोइठा-गोबर करी । चउँका कइसहुँ चल जाइत हल । हमरा भिर सबके आवा-जाही जादे होवे लगल हल ।)    (मविक॰101.9)
102    गोमस्ता (= गोमाश्ता) (रमेसर सिंह गोमस्ता हलन । बैदराबाद के नील कोठी में अंगरेज बाबू रहऽ हल । उ रमेसर सिंह के अपने गाँव में गोमस्ता बना देलक हल । उ अंगरेज उनका खूब मानऽ हल । गोमस्ता जी जे कहऽ हलन, अंगरेज अफसर उहे करऽ हल । उ दबंग जात के पहलवान आदमी हलन ।)    (मविक॰23.5, 6, 7)
103    गोरइया-डिघवार (अपने या अपने के परिवार के जादे चिंता हमर माय के हल । डाक्टर-वैद, ओझा-गुनी, गोरइया-डिघवार, कहाँ-कहाँ न देखवौलक, पुजवौलक बाकि सब बेकार गेल । सब कहथ कि तोरा में कोइ दोष न हउ ।)    (मविक॰55.19)
104    गौंत (दे॰ गौत, गवत; पशुओं का भोज्य पदार्थ) (भविष्य के आशा में वर्तमान के दुख सहे में अच्छा लगऽ हे । उ परिवार के दिमाग में हल कि मानो फुआ के मरला पर सब धन हमरे तो होवत । जे बुझा हे से गलवे न तनी-मानी बेच के जमा होवऽ हे । बाकी घास-भूँसा गौंत सब तो हमनियें खाइत ही ।; मंगर खाली जानवरे में लगले रहऽ हलन, सबेरे से साँझ तक । घरहुँ गौंत के कमी न हल बाकि सालो भर उ भइँस जरूरे चरावऽ हलन ।)    (मविक॰20.28; 77.17)
105    घास-भूँसा (भविष्य के आशा में वर्तमान के दुख सहे में अच्छा लगऽ हे । उ परिवार के दिमाग में हल कि मानो फुआ के मरला पर सब धन हमरे तो होवत । जे बुझा हे से गलवे न तनी-मानी बेच के जमा होवऽ हे । बाकी घास-भूँसा गौंत सब तो हमनियें खाइत ही ।)    (मविक॰20.28)
106    घीन (= घृणा) (हमरा न्याय मिले में जेतने देरी होइत हल, हमर मन में ओतने घीन बढ़ल जाइत हल ।; हमरा भी अपन समुदाय से घीन बरे लगल हल ।)    (मविक॰102.28; 103.10)
107    घुघा (परिवार के एगो औरत घुघा काढ़ले कपस-कपस के कहे लगल कि हम केतनो कहली कि खा लेथ, तब न खइलन । बनाके खा-उ के सुते चल गेलन हल ।)    (मविक॰17.13)
108    चपोतना (उ सबके सब बेटिकट भी हल । हम उ सबके किरपा पर खिड़की भिर बैठ गेली । कुछ समान के सरिया के रख देली । एगो चद्दर निकाल के चपोत के बिछा देली ।)    (मविक॰38.14)
109    चमार (कउनो समाज अगर अपराध के अकुरा के उहईं मसल देवे त ऊ बड़का पेंड़ कइसे बनत । अपने समाज में हमर पहचान अछूत से हे, हिंदू से न । आउ समाज में जाके पूछऽ । उ सबसे पहिले अपना के मुसलमान, ईसाई, पारसी बतइतन । आउ हमनी सब अपना के बाभन, चमार, अहीर, राजपूत, कहार, कुम्हार, भुइयाँ आदि कहे ला तइयार ही, हिंदू न ।)    (मविक॰104.4)
110    चरचकवा (= चार चक्के वाला वाहन) (जेतना हल ओतने में संतोष हल । चार गो बेटी के शादी कर देली हल । एगो आउ रह गेल हल । एही से हमरा चरचकवा कहिनो खरीदे के ताकत न भेल ।)    (मविक॰29.30)
111    चिताने (सबेरे जब हम उठली कि अब घर में झाड़ु लगा देही तब देखली कि फुआ जी कलवा भिर चिताने गिरल हथ ।)    (मविक॰17.16)
112    चिन्हानी (= चिह्न) (उ बतइलथिन कि माथा में चोट लगे से उनकर परान निकललो हे । कलवा पर गोड़वा फिसल गेलइन होवे ओकर रगड़ायल के चिन्हानियो हे ।)    (मविक॰17.23)
113    चिलोही (= सब्जी आदि काटने और तराशने का लोहे के फल वाला एक औजार, पहँसुल, बैठी) (होल हल्ला । कोई कहे कि गोली मार दे । कोई कुछ, कोई कुछ । जउन लइकी के सेनुर देली हल उ तो भाग गेल हल बाकि ओकर माय ओहिजे हलन । उ कने से तो एगो चिलोही लेके रणचंडी बन गेलन । हमरा भर अकबार के धर लेलन आउ कस के गरजलन । खबरदार जे कोई इ लइका में ठेक गेल ।)    (मविक॰45.19)
114    चुलबुली (हम कम औकात ओली लइकी हली । अपन औकात समझऽ हली । ढंग से रहऽ हली । सब अइसन हमरा बने के आदत न हल । पढ़े से काम रहऽ हल । चुलबुली न करऽ हली । हलाँकि मने मन लगऽ हल कि इ हमरे होके रहतन हल ।)    (मविक॰59.3)
115    चौरा (कहिनो-कहिनो कमो काम के लोग बढ़ियाँ मजदूरी दे दे हलन । चौरा अइसन सब हमरा भिर मड़राय लगलन हल । देह के अंग-अंग में नया उभार आ गेल हल ।)    (मविक॰101.11)
116    छछनना (हम उ सब से पुछली कि अगर तोहनी के काम मिलतउ त करवहीं ? उ सब एके दफे छछनल अइसन बोलल - हाँ बाबू, काम काहे न करवइ । दिन भर एने-ओने जे मारल फिरऽ ही ओकरा से तो अच्छा रहत ।)    (मविक॰99.12)
117    छुटम-छूट (= मनमाना) (उनकर काम में केकरो कहे न पड़ल । सब कोई अपन मने से काम में लग जा हलन । पाँच रंगन के मिठाई-पूड़ी, सब छुटम-छूट हल ।)    (मविक॰21.23)
118    छुटहा (= छुट्टा) (कनहुँ बात चलल कि फलाना जगह लांगड़ छुटहा असहाय जानवर हे ओकरा अपना भिर ले आवथ । खूब सेवा करइथ । जब उ ठीक हो जाय तब केकरो पोसे ओलन के मंगनिये दे देथ ।)    (मविक॰90.18)
119    जजात (मंगर एगो कुत्ती भी पोसले हलन । ... भइँसो चरावित हल त साथहीं, सुतऽ हल त ओहिजे, कनहुँ चल गेलन त जानवर के केकरो जजात में जाय न देवे । मैदान गेलन त तनी दूर पर बैठल रहऽ हल ।)    (मविक॰77.21)
120    जनमउती (गोलि चलावे ला, बम बनावे ला सीख गेलि हल । हम अपने जनमउती समाज के विरुद्ध मोरचा खोल देली ।)    (मविक॰103.13)
121    जबूर (= जब्र) (हमरा याद पड़ गेल कि रमेसर बाबू हमरा पर अगुआ बन के परसाल गेल हलन । बाबू जी शादी करे से नहकार देलन हल । उ में रमेसर बाबू तिलक बदे समाज के कोढ़ कहलन हल, जेकरा चलते बेटी के बिआह केतना जबूर हो गेल हे । एही से सब कोइ लइकी के जनम लेला पर नाक-भौं सिकोड़ऽ हथ आउ लइका के जनम लेला पर ढोल बजवऽ हथ ।)    (मविक॰44.19)
122    जवार (एक दफे हम चाईबासा गेल हली । उहईं जवार के कुछ अदमी रहऽ हलन ।)    (मविक॰73.6)
123    जहुआ-पहुआ (= आने-जाने वाले लोग; अपरिचित तथा असंबंधित लोग) (नया-नया जे भी बेटी-पुतोह आवथ-जाथ मानो फुआ के एगो लुग्गा दे हलन । उ उ लुग्गा कोई गरीब के दे दे हलन । ई सब बात के तकलीफ नागो बाबू के पुतोहन के जादे खटकऽ हल कि हमनी के न देके जहुआ-पहुआ के दे दे हथ ।)    (मविक॰20.23)
124    जाँपना (दे॰ जाँतना) (दउड़ के एगो के कपार पर एक्के लाठी मार के भाग गेलन । अंधरिया में कने गेलन, पता न चलल । तनी देर के बाद जब सन्नाटा भेल त गोड़ जाँपले-जाँपले खरिहान में गेलन । देखऽ हथ कि जेकरा मारलि हे, उ मरल पड़ल हे ।)    (मविक॰23.23)
125    जाहिल-जठ (उ सब लइकन के हाव-भाव, बातचीत के सुनके कपार पकड़ लेली । सोंचली कि इ सब जाहिल जठ हे । एकरा से बात करे के मतलब हे बेइज्जती ।)    (मविक॰39.5)
126    जेठ (= पति का बड़ा भाई) (हमर जेठानी के पाँच बेटी हल । जेठ घरहीं खेती-बारी करऽ हलन । जेठानी तनी कड़ा मिजाज के हथ । उनकर चार बेटी के बिआह हो गेल हल । एगो के होवे ला हल । पैसा के जरूरत हल । जेठानी के व्यवहार से सुधीर एको पैसा देवे ला तैयार न हलन ।)    (मविक॰36.6)
127    जेठानी (= जेठ की पत्नी) (हमर जेठानी के पाँच बेटी हल । जेठ घरहीं खेती-बारी करऽ हलन । जेठानी तनी कड़ा मिजाज के हथ । उनकर चार बेटी के बिआह हो गेल हल । एगो के होवे ला हल । पैसा के जरूरत हल । जेठानी के व्यवहार से सुधीर एको पैसा देवे ला तैयार न हलन ।)    (मविक॰36.6, 8)
128    जोतना-कोड़ना (मानो फुआ के चचेरा भाई नगीना सिंह उर्फ नागो । उनकर चार-पाँच गो बेटा-पुतोह, पोता-पोती सब हथ । मानो फुआ के सब जमीन ओही जोतऽ-कोड़ऽ हलन ।)    (मविक॰20.13)
129    झंझोटना (आउ कहीं कोई टेढ़ मिल गेलन त ओइसहीं खखुअइतन जइसे कतिकसन के कुत्ता के सब झंझोट लेहे ।)    (मविक॰68.19)
130    झराना (जब तक उ शादी में न पहुँच जाथ तब तक गीत शुरुए न होवऽ हल । हर नेग-दस्तूर के अलग-अलग गीत । गीत तो उनकर ओरिअइवे न करऽ हल । हर विध के सटीक गीत । लोक-विध में जहाँ चूक भेल कि पंडित झरा गेलन ।)    (मविक॰18.12)
131    झुलफी (चारो रंगदार के चारो फोर्स झुलफी पकड़ले हलन । हमरा दने उ सब अइसन ताकइत हल जइसे पिंजरा के बाघ कउनो बकरी के देखऽ हे । लगइत हल कि सब कच्चे चिबा जायत ।)    (मविक॰40.22, 24)
132    टंट-घंट (घर से गीत गावे के अवाज आ रहल हल । उ से लगऽ हल कि बिआह के टंट-घंट शुरू हो गेल हल । हमरो बीध करावे ला बोलावल गेल । ना-नुकुर कइली त बेइज्जती सहे पड़ल ।)    (मविक॰43.26)
133    टाँगी (एक दिन के बात हे कि प्रताप बाबू टाँगी से लकड़ी काटइत हलन । एगो घायल भालू आ गेल हल उनकर संग्रहालय में । उ चले-फिरे से लाचार हल । उ चाहऽ हलन कि ओकरा ले भी पलानी अइसन बना देई कि ओकरा दिक्कत न होवे । ओकरे लागी लकड़ी काटइत हलन । टाँगी जइसहीं चलौलन कि ओतिये घड़ी सनम छलाँग लगा देलक । ओकरा बचावे में टाँगी अइसन छटकल कि प्रताप बाबू के गोड़े पर आके लग गेल ।)    (मविक॰92.3, 6,7)
134    टाँटी (~ लगना) (दुनो एके जात हइ हो ? - का जनी, सार कउन जात हे ? कहाँ के हे ? हमरा जे चिन्हइलऽ से हवऽ कि न ? इ दुनो एके रूम में रहऽ हवऽ । गाँव में तोरे एगो लइकी हवऽ आउ गाँव खाली हो गेल ? जेकरा जरूरत हे से कर लेवे । आयल घर में टाँटी लगऽ हे ?)    (मविक॰41.29)
135    टुकुर-टुकुर (~ देखना) (रधिया लोर बहावित टुकुर-टुकुर अपन बेटा के देखित कह रहल हल - हाँ बेटा ! पहिला भूल न सुधारे के एही नतीजा निकलऽ हे बाकि बीतल समय आझ तक न केकरो लौटल हे, न लौटत ।)    (मविक॰84.7)
136    टेंपू (दे॰ टेम्पू) (कहे लगलन, "मारऽ हे भतार, देखऽ हे संसार, फिर भी अपने भतार ।" फिर हमनी के एके टेंपू पर बइठा के सुधीर के डेरा ले गेलन । दुनो के भला-बुरा समझा के एके साथे रहे के कसम खिलवा देलन ।)    (मविक॰37.18)
137    टे-पों (हम भविष्य देखित ही कि तोरा जमीन दिला देबो त का जनी हमरे से टे-पों बतिआय लगबऽ तऽ ? छठन कहलन कि का यार ! हमरा खाय के ठेकाने न हे आउ तोरा से टे-पों कर के का करम ।)    (मविक॰25.21, 22)
138    टोना-टाना (एतना कहइत-कहइत उ अंतिम हिचकी लेलक । आउ शांत हो गेल । हम ओकरा टो-टा के देखली । ऊ अब ई दुनियाँ में न हल ।)    (मविक॰104.7)
139    टोहा-मोहा (धीरे-धीरे औरत से घर भर गेल । चोरावल लइका हली । कोई कुछ, कोई कुछ, जेतना मुँह ओतने बात । एगो कहित हल कि केतना टोहा-मोहा लइका हे । बेचारा के माय-बाप जानइत होतन कि बेटा पढ़े गेल हे आउ बेटा बेचारा बिआह करइत हे ।)    (मविक॰43.32)
140    ठंढ-उंढ (राते इगारह बजे तक रधवा कहार हीं हलन । ओकर छउँड़ी के देह छूट गेल तबे अइलन हल । राते के निहा रहलन हल जेकर अवाज हम सुनली हल । केकरो हीं खा-पीअ तो हलन न । ओकर बाधे बनइलन-खइलन होवे । लगऽ हे कि ठंढ-उंढ मार देलइन हल ।)    (मविक॰17.12)
141    ठकुरबारी (ओही गाँव के एक किनारे कृष्ण भगवान के मूरत बनल ठकुरबारी हल । घंटी बजल से दीनदयाल बाबू ओनहीं चल गेलन ।)    (मविक॰50.31)
142    डेओढ़ (मंगर पढ़ल-लिखल कम हलन । बढ़ियाँ गिरहस्त हलन । जमीन कम हल । ... पूरा भरल परिवार हल उनखर बाकि उनखर काम हल खाली भइँस चरावे के । तीन-चार गो भइँस पोसऽ हलन । घरहीं के काड़ा-काड़ी डेओढ़ होयल रहऽ हल । गिरहस्ती में जानवर पोसल एक नंबर के धंधा होवऽ हे ।)    (मविक॰77.13)
143    डोल-पत्ता (मंगर एगो पीपर के पेड़ तर गमछा बिछा के सुतलन हल । हवा चलल से उनखा नीन आ गेल आउ सब लइकन ओहिजे डोल-पत्ता खेले में मगन हल ।)    (मविक॰79.11)
144    ढाहना-ढुहना (पचास गो लठैत ले ले । सब पता बता के कहलन कि ओकर घर ढाह-ढुह के रेंड़ी बुन दे ।;  भोर होइत-होइत छठन के घर ढाह-ढुह के सच्चे रेंड़ी बुन देल गेल । तनी सुन बात के बतंगड़ भे गेल । एही से अदमी के जोश में होश न खोवे के चाही ।)    (मविक॰27.14, 21)
145    तनी-मानी (पहिले सब साथे बनावऽ-खा हलन । बाकि जब से पुतोहन आयल हे आपस में टीका-टिप्पणी रेसावादी करे लगलन हल । तहिना से मानो फुआ अलगहीं बनावऽ-खा हलन । जब कभी तनी-मानी गल्ला-उल्ला केकरो गरीब-गुरबा के दे दे हलन तब औरत लोग के आँख लगऽ हल ।)    (मविक॰20.16)
146    तमकना (हमर औकात का हे इ बता देम तोरा । बड़ा औकात ओला में हऽ । बाबूजी बड़ी समझइलन हल कि हम अपने के न कहइत ही । हम तो एगो उदाहरण देली हे । बाकि केतनो समझौलन बाबूजी उ सब न मानलन । तमक के चलिये देलन हल ।)    (मविक॰45.3)
147    तरिआना (= धन या सामान जमा होना; पेंदे में या तल में मैल आदि का बैठना) (दाना लगल पाँच मन तो पाँचे मन देवे परत, चाहे बीसो मन काहे न उपज जाय । गोमस्ता जी के चलते छठन के खेत में दाना भी कमे लगऽ हल । पाँच-सात साल में ढेर तरिआ गेलन हल छठन ।)    (मविक॰26.3)
148    तहीन (= तहिन, तहिने, तहिकन) (हइ महरज ~ !) (चारो आश्रम में गृहस्थे आश्रम सबसे बढ़ियाँ हे रे मरदे तहीन ! चल-चल तोरा साथे हमहुँ तोर घरे चलऽ हिवऽ । कइसन बढ़ियाँ परिवार हे तोर ।; उनकर यार कहलन - कहलीवऽ हल न रे मरदे तहीन ! आखिर अपन अपने होवऽ हे ।)    (मविक॰52.8, 15)
149    तिनडड़िया (रात के तिनडड़िया से पता लगल कि अभी आधो रात न भेल हे ।)    (मविक॰24.5)
150    तिरछहीं (= तिरछे ही; कोनाहिए) (तिरछहीं अपने लोग अइली होवे । कइसे आ गेली एही हमरा अचरज लगइत हे । बेर डुबे के बाद उ रस्ता से कउनो आवऽ-जा हथ थोड़े ।)    (मविक॰97.16)
151    तीर (गणेश बोलल - जखनी आवऽ हलऽ तखनी न अइलऽ आउ मइया बड़ी सोंच में हल, तऽ हमनी दुनो तोरा खोजे ला चल देली । कहके जइती हल त मइया जाय न-न देत हल । हमनी के तीर फिर गेल । आउ रस्तवे भुला गेली । साँझ हो गेल, सगरो अंधार छा गेल । गीता डेराय लगल ।)    (मविक॰74.23)
152    थपड़ोजिन (गाड़ी एक-दु मील आगे बढ़ल हल । बगल में जी.टी. रोड हल । दस गो गाड़ी लगल हल फोर्स के । हल्ला हो गेल - मजिस्टेट चेकिंग ... मजिस्टेट चेकिंग । लइकन सब भदोइया बेंग अइसन उछल-उछल के भाग चलल । बाकि गेट पर जाके फिनो लौट आयल । काहे कि तब तक कुछ जवान गाड़ी में आ गेलन हल आउ एक-दु गो पर हंटरोमाइसिन, थपड़ोजिन आउ लपड़-लड्डू के बरसा कर रहल हलन ।)    (मविक॰40.2)
153    दरिद्दर (जेठ के आग अइसन सगरो इ बात फैल गेल कि अइसन महात्मा आयल हथ कि उनका भिर जे गेल उनखे अइसन हो जाहे । उनखा अइसन होवे के मतलब हल घर में दरिद्दर के बुलाहट । ... अब कोई उ रसता से जाय ला तइयारे न हल । अपन लइकन-फइकन, औरत-मरद सबके सभे मना कर देलन कि ओने मोहे कोई मत जइहें, न तो उनखे अइसन हो जयमे ।)    (मविक॰65.12)
154    दहाना (= बेच देना; से छुटकारा पा लेना) (बैलवा के बेचे लागी बगले के मेला मँगरा हाट में ले गेली । ... हम तो इहे सोंच के गेली कि भागल भूत के लंगोटिये काफी होवत । जे मिलत ओकरे में इनखा दहा देम ।)    (मविक॰93.23)
155    दिकु (= दिक्कू; {छोटानागपुर क्षेत्र} अन्य जाति या सम्प्रदाय का व्यक्ति) (हमरा देखे में लगल कि उ सब पढ़ल-लिखल परिवार हे । हम साइकिल एक दने खड़ा करके पानी पीये के बहाना बनउली । बगले में खूँटा ठोक के बाँस के चचरी बनवल हल । ओकरे पर बइठे ला सब कहलन । वेशभूषा से सब समझ गेलन कि ई दिकु हथ ।)    (मविक॰73.17)
156    दुधगर (चार-पाँच बियान के बढ़ियाँ भइँस हल - बड़ी दुधगर । पहिलौंठ में उ काड़ा बच्चा देलक हल । मंगर ओकरा बढ़ियाँ देख के घरहीं रख लेलन हल । हरो चलऽ हल ।)    (मविक॰77.26)
157    दुबर-पातर (= दुबला-पतला) (हमरा जी न पहिचानित ही । हम जी ही - अमित । हमरा झट से याद हो गेल । हमर ऑफिस में एही दुबर-पातर लइका योगदान कइलक हल । हम कहली कि हम पहिचानी कइसे ? हमरा भिर जे अमित हल - उ पतरा-दुबरा हल - माथ के केश उड़ल, अंगा-पैजामा वला आउ गोड़ में चप्पल । आझ के अमित मोटा-तगड़ा, कोट-पैंट, हिप्पी, लिबर्टी जूता, मुँह में गिलौरी आउ मारुति कारओला ।)    (मविक॰30.6)
158    देखा-हिंसकी (भगवान के भगति केकरो कहे से न होवे, या देखा हिंसकी भी न होवे । केकरो से रसता भले ही पूछ लेथ बाकि चले पड़ऽ हे अपनहीं से ।; जगतगुरु शंकराचार्य जी लिखलन हल अपन मन के बात, उ हमनी सब के मन के बात लिखलन हल थोड़े । हमनी देखा-हिंसकी ओही प्रार्थना हाँथ जोड़ के करे लगऽ ही कि कुछ न चाही, आउ मन में हे कि सब कुछ चाही ।)    (मविक॰72.1, 20)
159    देवर-भैंसुर (उनकर ससुरार से देवर-भैंसुर, उनकर लइकन सब भी अइलन । गउएँ के चिरारी पर उनकर चिता सजावल गेल ।)    (मविक॰21.16)
160    देवीथान (देवी थान के मंदिर बनवे ला अपने से जब चंदा माँगल गेल हल तब अपने ना-नुकुर कइली हल । हम जोर देके अपने से ढेर मानी चंदा न दिवइली हल ?)    (मविक॰56.19)
161    दोगना (= दुगुना) (हमर जात भले अछूत हल, परिवार भले अछूत हल बाकि हम न । सब दोगना मजदूरी दे देथ । बड़ी लोग देथ । बाकि हमरा एही पता न चलऽ हल कि अइसन सब काहे करइत हलन ।)    (मविक॰101.17)
162    धिराना (कइ गो हमरा भिर अइलन कि मजूरी बढ़वे ला अपना हीं हड़ताल करवा दे । तोरे नेता बना दे हिअउ । हम कहली कि हमरा हीं मजूरी के कोई झगड़े न हे तऽ हड़ताल काहे ला करावी । ... हमरा न हे नेता बने ला । हमरा धिरा के सब चल गेलन ।)    (मविक॰69.27)
163    धोकड़ी (= जेभी; जेब) (खादी के कुर्ता-धोती, ओकरा पर जवाहर बंडी, गोड़ में हवाई चप्पल, कान्हा में भूदानी झोला, लंबा बाल, माथा पर गाँधी टोपी, धोकड़ी में हजार गो पुर्जा, चाल एकदम मतवाला - लइका-बूढ़ा, जवान, औरत-मरद सबके सामने हाँथ जोड़के खड़ा हो जा हलन ।)    (मविक॰85.16)
164    न-न (गणेश बोलल - जखनी आवऽ हलऽ तखनी न अइलऽ आउ मइया बड़ी सोंच में हल, तऽ हमनी दुनो तोरा खोजे ला चल देली । कहके जइती हल त मइया जाय न-न देत हल । हमनी के तीर फिर गेल । आउ रस्तवे भूला गेली । साँझ हो गेल, सगरो अंधार छा गेल । गीता डेराय लगल ।; उ सब कहलन कि न-न, मत मानिहऽ । अईं भाई, जउन बात के आझे कह देइत ह तब कल्ह कउन मुँह लेके तोरा भिर हमनी जायेम ।)    (मविक॰74.23; 94.25)
165    ननद-गोतनी (हमरा हीं सुहागरात के लइकी पति के दरसन न करऽ हे । सात फेरा पूरा कइला पर सबेरे हम ससुराल चल अइली हल । इहाँ एगो अलगे झंझट । ननद-गोतनी सब लुका के रखलन ।)    (मविक॰35.15)
166    ननदोसी (इ सब विचारे करइत हली कि कने से तो हमर ननदोसी खोजइत-खोजइत आ गेलन । हमनी दुनो अपन दुख-सुख बतिअइते हली कि ओकिल हमर एगो अदमी से खबर करवइलन कि जज साहेब बैठ गेलथु ।)    (मविक॰37.5)
167    ना-नुकुर (घर से गीत गावे के अवाज आ रहल हल । उ से लगऽ हल कि बिआह के टंट-घंट शुरू हो गेल हल । हमरो बीध करावे ला बोलावल गेल । ना-नुकुर कइली त बेइज्जती सहे पड़ल ।; देवी थान के मंदिर बनवे ला अपने से जब चंदा माँगल गेल हल तब अपने ना-नुकुर कइली हल । हम जोर देके अपने से ढेर मानी चंदा न दिवइली हल ?)    (मविक॰43.26; 56.20)
168    नास-निपुत्तर (रमेसर कहलन कि का कही भाई, हम बूढ़ा हो गेली । नास-निपुत्तर ही । भाई-भतीजा भी न हे । गाँव के सब ताना मारऽ हथ । लगऽ हे कि थकला पर एक लोटा पनियों के देत ।)    (मविक॰49.32)
169    निचलका (= निचलौका, नीचे वाला) (बड़कन हीं लइकी-लइका अपने से जीवन साथी खोजऽ हे त बड़प्पन मानल जाहे । छोटकन के उ पूछे ला तइयारे न हे । निचलका आउ केतना नीचे जायत । बिचबिचवा के हालत सबसे खराब हे । हमनी किहाँ के लइकी अगर लइका अपने से खोज लेलक त बड़का लांछन लग जाहे ।)    (मविक॰33.23)
170    निट्ठुर (= निष्ठुर) (हमर घुंघट जइसहीं हटौलन कि हम अवाक रह गेली । हम सब लाज छोड़ के उनकर गला में लटपटा गेली । हम रोवे लगली - इ तो हमरे सपना के राजकुमारे हलन । हम उनका से कहली कि एतना बड़ा परीक्षा तूँ काहे लेलऽ ? एतना निट्ठुर काहे भे गेलऽ ? हम आशंका के बीच कुछ कर लेती हल तब का होवत हल ?)    (मविक॰35.25)
171    निफिकिर (= बेफिक्र) (तोर सब बात हम गुप्त रखबो यार । एकरा ला निफिकिर रहऽ ।; सब काम हो गेलवऽ । अब निफिकिर रहऽ ।)    (मविक॰24.16, 26)
172    नेग-जोग (हमर तो एके गो सपना के राजकुमार हथ - सुधीर । सब नेग-जोग भेल । बाबूजी कन्यादान भी कर देलन । हम सब काम बेमन से करइत हली ।)    (मविक॰35.10)
173    नेग-दस्तूर (जब तक उ शादी में न पहुँच जाथ तब तक गीत शुरुए न होवऽ हल । हर नेग-दस्तूर के अलग-अलग गीत । गीत तो उनकर ओरिअइवे न करऽ हल ।)    (मविक॰18.10)
174    नेटा-फेफन (उनखे हीं रह के तब तक खा-पीअ हलन जखनी तक ऊ हुँकारी न भर देथ । उनकर लइकन के नेटा-फेफन पोछे से भी बाज न आवथ । उनखा हीं झाड़ुओ लगावे से बाज न आवथ ।)    (मविक॰86.22)
175    नेवता-पेहानी (भगिना कहलक कि इ रिंकी जी । इ हमर बाबूजी के ममेरी बहिन न लगऽ हथ । इनखर माय-बाबूजी न हथिन । भाइयो न हलथिन । तीन गो बहिने हथिन खाली । नेवता-पेहानी हमरा हीं से चलऽ हइन ।)    (मविक॰58.11)
176    नौकरिहा (= नौकरियाहा; नौकरी करनेवाला) ('अपसोस' कहानी पति-पत्नी के एगो करुण गाथा हे । नौकरिहा मरद बेदरद हो गेल । पहिले तो जोरू के खूबे प्रेम देलक पर जब कोई संतान न भेल तऽ अनपुछ कर देलक ।; शिक्षा मंत्री के नेव देवे ला हल । गाँव के जेतना नौकरिहा हलन सबके बोलावल गेल । टिंकु के भी बोलावल गेल हल ।)    (मविक॰10.1; 61.10)
177    पंचयती (दे॰ पंचइती) (खूब हल्ला भेल । गाँव के पंचयती लगल । कुछ कुटुंब के एगो-दूगो के, आउ जेवार के दू-चार गो मानिंद अदमी के बोला के रमेसर बाबू ले अइलन हल ।; पंचायत में पंच लागी कोई गोतिया, भाय-भतीजा न होवे, न होवे के चाही । अइसन जे कइल चाहे ओकरा पंचयती में बैठहीं के न चाही । आउ बैठे त दूध के दूध आउ पानी के पानी कर देवे ।)    (मविक॰46.20; 64.1)
178    पऊर (= पउर, पउरी, परुई, परूई) (अगहन के महीना हल । छठन के खेत में खूब धान हल । ओकर बड़का आउ मंझिला लड़का खेते पर हल धान काटइत । कनहुँ से गोमस्ता जी भी पहुँच गेलन । पऊर पर गमछी बिछा के बइठ गेलन । बातचीत कुछ होवे लगल ।)    (मविक॰26.9)
179    पतरा (= पतला) (जब नजर उठा के देखली त एकर सादगी पर मन प्रसन्न भेल । पतरे शरीर, पैजामा-अंगा, कान्हा पर एगो गमछी । हमरा ताकला पर फिर सिर झुका के प्रणाम कइलक ।)    (मविक॰28.10)
180    पतरा-दुबरा (हमरा जी न पहिचानित ही । हम जी ही - अमित । हमरा झट से याद हो गेल । हमर ऑफिस में एही दुबर-पातर लइका योगदान कइलक हल । हम कहली कि हम पहिचानी कइसे ? हमरा भिर जे अमित हल - उ पतरा-दुबरा हल - माथ के केश उड़ल, अंगा-पैजामा वला आउ गोड़ में चप्पल । आझ के अमित मोटा-तगड़ा, कोट-पैंट, हिप्पी, लिबर्टी जूता, मुँह में गिलौरी आउ मारुति कारओला ।)    (मविक॰30.8)
181    परजात (बाकि फिर सोची कि हमर सुधीर पता न कहाँ हथ । हम घरे से गेली आउ ओहु नकार देलन तब का होवत ? मरद बड़ा परजात होवऽ हे । हमरा गुने कहीं अवगुन न हो जाय ।)    (मविक॰34.10)
182    परना (= पड़ना) (गोड़ ~) (ई गाँव में पढ़ल-लिखल के कमी हल । गाँव के लइकी या औरत तो केउ पढ़ले न हलन । बीमारी पर काबू पइला के बाद हम ई गाँव के शिक्षित करे के ठान लेली । घरे-घर जाके सब के उत्साह जगउली । केकरो गोड़ परके, केकरो समझा के, केकरो हाँथ जोड़ के जइसे भी भेल, अकेले खूब मेहनत कइली ।)    (मविक॰59.25)
183    पर-पखाना (जब अपने मोटर साइकिल से घायल होली हल, अपने के रात-दिन एक करके सेवा कइली हल । पर-पखाना, पेशाब सब फेंकली ।; हम चार बजे भोरहीं उठ जाही । उठ के पर-पखाना लागी लोटा लेके जइसहीं गली में अइली कि इंजोरिया में सामने कई गो राइफलधारी पुलिस देख के हमर तो सीटी-पीटी गुम हो गेल । उ एतवर कसके डाँटलक कि डर के मारे हमर पखाने सूख गेल ।)    (मविक॰56.17; 88.4)
184    परिवरगर (= परिवार वाला, जिसके परिवार में बहुत सदस्य हों) (छठन गोप भी नामी पहलवान हलन । ... गरीब हलन । परिवरगर भी । तंगी हालत रहऽ हल । इ गोमस्ते जी भिर जादे रहऽ हलन ।)    (मविक॰23.11)
185    पलानी (एक दिन के बात हे कि प्रताप बाबू टाँगी से लकड़ी काटइत हलन । एगो घायल भालू आ गेल हल उनकर संग्रहालय में । उ चले-फिरे से लाचार हल । उ चाहऽ हलन कि ओकरा ले भी पलानी अइसन बना देई कि ओकरा दिक्कत न होवे ।)    (मविक॰92.5)
186    पहचनाना (= पहचान में आना; लोगों की नजर में आना) (नया-नया जे भी बेटी-पुतोह आवथ-जाथ मानो फुआ के एगो लुग्गा दे हलन । उ उ लुग्गा कोई गरीब के दे दे हलन । ई सब बात के तकलीफ नागो बाबू के पुतोहन के जादे खटकऽ हल कि हमनी के न देके जहुआ-पहुआ के दे दे हथ । नागो बाबू के मन में भी ई बात खटकवे करऽ हल । बाकि उ तनी समझदार हलन । पहचनायल न चाहऽ हलन ।)    (मविक॰20.25)
187    पहिलौंठ (चार-पाँच बियान के बढ़ियाँ भइँस हल - बड़ी दुधगर । पहिलौंठ में उ काड़ा बच्चा देलक हल । मंगर ओकरा बढ़ियाँ देख के घरहीं रख लेलन हल । हरो चलऽ हल ।)    (मविक॰77.26)
188    पानी-उनी (उ अकेले हल । जखनी ओकरा पानी-उनी, दवा-दारू के जरूरत पड़े त हम या अपन परिवार से ओकरा मदद करवा दे हली ।)    (मविक॰100.22)
189    पिराना (गरमी के दिन हल । सबके नीन आ गेल हल । छोटका बेटा रवि के पेट पिराइत हल से उ करीब-करीब जगले हल ।)    (मविक॰64.26)
190    पुरधाइन (मानो फुआ गाँव के एगो सभ्य औरत, सुसंस्कार में पलल, मानवता रग-रग में भरल, दुखियन के सेवा करेओली, अनाथ के नाथ, निर्बल के बल, लोकरीत के पुरधाइन, ममता अउ दया के सच्छात मूरत हलन ।)    (मविक॰18.4)
191    पेन्हना-ओढ़ना (सुख के माने सब समजऽ हथ कि कउनो काम न करे पड़त हल । बैठले खाय-पिये ला मिलत हल । नौकर-चाकर रहत हल । खूब बढ़ियाँ खाय-पिये, पेन्हे-ओढ़े के मिलत हल ।)    (मविक॰48.4)
192    पैजामा-अंगा (जब नजर उठा के देखली त एकर सादगी पर मन प्रसन्न भेल । पतरे शरीर, पैजामा-अंगा, कान्हा पर एगो गमछी । हमरा ताकला पर फिर सिर झुका के प्रणाम कइलक ।)    (मविक॰28.10)
193    पोंछी (= पुच्छी; पूँछ) (हमरा भिर एगो बैल हल । बड़ी नीमन । सुन्नर शरीर । फह-फह उजर । मुठरिया सिंग । गोड़ सुडौल । छोटे-छोटे पोंछी । बाकि हल एकदम गर्ह । हर-पालो देखइते खूँटा पर पड़ जा हल । केतनो उपाय करऽ, उठे ला तइयारे न होवऽ हल । ... पता न कइसे उ समझ जा हल कि हमरा अब सब काम में लगौतन । बस उ अपन गरहई कर दे हल ।)    (मविक॰93.11)
194    फलना (इहाँ तो अपने औकाते भूल के देखा-देखी करे लगऽ ही । फलना एतना खरच कइलन त हम काहे न । उ काहे कइलन सेहु न देखबऽ । अप्पन आउ उनकर औकात के अंतर बुझ के जे शादी करे ला तइयार हे ओकरा ला बेटी आझो बोझ न हे रमेसर बाबू ।)    (मविक॰44.27)
195    फलना-फलना (हमनी कहली कि आग लगावइत केकरो देखवे न कइली त केकरा पर केस करी । बाकि दुसरका गाँव के सब एक जगह मीटिंग करके तय कइलन कि फलना-फलना के मुदालय करे के चाही । ओही सब जने-तने फोन कइलन ।)    (मविक॰70.3)
196    फलाना (= फलना, फलाँ) (कनहुँ बात चलल कि फलाना जगह लांगड़ छुटहा असहाय जानवर हे ओकरा अपना भिर ले आवथ । खूब सेवा करइथ । जब उ ठीक हो जाय तब केकरो पोसे ओलन के मंगनिये दे देथ ।)    (मविक॰90.18)
197    बंड-बुंड (फूफा कहलथिन कि तूँ महाबुड़बके रह गेलें दीनदयाल ! अईं हो ! हमर समाचार ठीक कइसे रहत ? हम का बंड-बुंड ही कि अकेले हम ठीक तऽ सब ठीक ? हमरा नात-पोता, बेटा-पुतोह, भाई-भतीजा सब हथ ।)    (मविक॰51.18)
198    बंडी (खादी के कुर्ता-धोती, ओकरा पर जवाहर बंडी, गोड़ में हवाई चप्पल, कान्हा में भूदानी झोला, लंबा बाल, माथा पर गाँधी टोपी, धोकड़ी में हजार गो पुर्जा, चाल एकदम मतवाला - लइका-बूढ़ा, जवान, औरत-मरद सबके सामने हाँथ जोड़के खड़ा हो जा हलन ।)    (मविक॰85.15)
199    बंडोआ (= बिंडोवा) (एने सरकार 'जाँच आयोग' के गठन कइलन, के ओने हमहुँ अपन मेहरारू के जाँच करे ला कहली । उ कुछ देर के बाध आके बतइलक कि छठना के मेहररूआ खपड़ी चढ़ौले हल - सत्तू के अनाज भूँजे ला । तनी सुन बंडोआ आयल आउ फूस के छप्पर हल, से धर लेकइ । सउँसे टोला जर गेलइ ।)    (मविक॰70.19)
200    बदे (= बारे में; बदले में; ओर से; वास्ते) (हमरा याद पड़ गेल कि रमेसर बाबू हमरा पर अगुआ बन के परसाल गेल हलन । बाबू जी शादी करे से नहकार देलन हल । उ में रमेसर बाबू तिलक बदे समाज के कोढ़ कहलन हल, जेकरा चलते बेटी के बिआह केतना जबूर हो गेल हे । एही से सब कोइ लइकी के जनम लेला पर नाक-भौं सिकोड़ऽ हथ आउ लइका के जनम लेला पर ढोल बजवऽ हथ ।)    (मविक॰44.18)
201    बनाना-खाना (राते इगारह बजे तक रधवा कहार हीं हलन । ओकर छउँड़ी के देह छूट गेल तबे अइलन हल । राते के निहा रहलन हल जेकर अवाज हम सुनली हल । केकरो हीं खा-पीअ तो हलन न । ओकर बाधे बनइलन-खइलन होवे । लगऽ हे कि ठंढ-उंढ मार देलइन हल ।; मानो फुआ के चचेरा भाई नगीना सिंह उर्फ नागो । उनकर चार-पाँच गो बेटा-पुतोह, पोता-पोती सब हथ । मानो फुआ के सब जमीन ओही जोतऽ-कोड़ऽ हलन । पहिले सब साथे बनावऽ-खा हलन । बाकि जब से पुतोहन आयल हे आपस में टीका-टिप्पणी रेसावादी करे लगलन हल । तहिना से मानो फुआ अलगहीं बनावऽ-खा हलन ।)    (मविक॰17.12; 20.14, 16)
202    बमबेहड़ (परंपरा के निरवाह आँख मुन के करइत रहली । कहिनो चौखट न लाँघली । उनखा मर गेला पर लइकन आउ बमबेहड़ भे गेल । लइकन कुसंगति में पड़ गेल । बापे अइसन शराबी आउ जुआरी भी हो गेल ।)    (मविक॰82.28)
203    बरखी (= वार्षिक श्राद्ध) (उनकर काम में केकरो कहे न पड़ल । सब कोई अपन मने से काम में लग जा हलन । पाँच रंगन के मिठाई-पूड़ी, सब छुटम-छूट हल । / बरखी के दू दिन बाद मुखिया जी गाँव के एगो सभा बोलइलन । ओकरा में ससुरार के लोग भी बुलावल गेल ।)    (मविक॰21.25)
204    बरदास (= बर्दाश्त) (खेत में दाना न करे देहे । तीन साल से ओकरा हीं बाकी हे । हम अपने के डर बतइली तऽ सरकार अपनहूँ के बड़ी गाली बकलक । अब सरकार हमरा बरदास न हो रहल हे ।)    (मविक॰27.8)
205    बरना (दुख ~) (अइसन भी होवऽ हे कि लोग कहानी जानइत हथ बाकि ओकरा कहे में सकुचाइत हथ, लिखे में सकुचाइत हथ । ऊ सोंचऽ हथ कि हम जे कहम ओकरा से केकरो दुख न बर जाय । कुछ अइसन भी होवऽ हथ जे सोंचऽ हथ कि हम जे देखइत ही उ बात कहिये देम, चाहे केकरो दुख बरे - बलइए से बाकि सच्चाई तो कड़ुवा होवे करऽ हे ।)    (मविक॰15.10, 12)
206    बराहिल (गोमस्ता जि के कचहरिये भिर खरिहान हल । अगहन या पूस के महीना हल । उ दिन उनकर बराहिल कहीं चल गेलन हल ।)    (मविक॰23.17)
207    बरिअरी (= बरिअइँ; जोर-जबरदस्ती; जबरदस्ती, जबरन) (हिंदू धरम में सेनुर एके बार देल जाहे । जेकरा देली उ धरमपत्नी भेल । अगर हमरा विवश कइल जायत त बरिअरी कर तो लेम बाकि उ लड़की राँड़ होके रहत ।; रिंकी बेटी ! तोर बात हमनी माने ला तइयार न ही । बरिअरी छोड़ के चलिए जयबऽ, त हम का करबो ।; हमनी के रहे ला टेंट के इंतजाम भेल । गाँव के दलान छोड़ा के बरिअरी टेंट में रहे ला कहल गेल । जे न आवल चाहलन उनखा सिपाही से बरिअरी लाके रखलक कि गाँव में सुरक्षित न हेया ।)    (मविक॰47.7; 60.21; 70.8)
208    बरिआरी (= जबरदस्ती; बलपूर्वक) (अब उ हमर दमाद हे । एकरा ला जे करे के होवे, करइजो । हमर बेटी के सेनुर देलक हे । देर करइत हें काहे रे ससुरा ! जो न जल्दी । पीछे-पीछे दिनेश बाबू अपने चल देलन । फिर का हल, सउँसे समाज जाके पहिले लइका मान के हमरा बरिआरी अपन घरे ले अइलन ।; हमर गाँव में कोई तनाव या झगड़ा न हल । बरिआरी नेता लोग झगड़ा लगा देलन । पुलिस के कैंप बन गेल ।)    (मविक॰45.32; 70.21)
209    बाध (= बाद) (राते इगारह बजे तक रधवा कहार हीं हलन । ओकर छउँड़ी के देह छूट गेल तबे अइलन हल । राते के निहा रहलन हल जेकर अवाज हम सुनली हल । केकरो हीं खा-पीअ तो हलन न । ओकर बाधे बनइलन-खइलन होवे । लगऽ हे कि ठंढ-उंढ मार देलइन हल ।; अपन सहोदर भाइयो में एतना मिलाप न रहऽ हे । अपने दुनो के बारे में तो बड़ी दिन के बाध जानली कि दू परिवार ही ।; बिआह के बाध दस साल तक रमा देवी अपन मरदाना दीनदयाल बाबू के साथे बड़ी बढ़ियाँ से बितौलन ।)    (मविक॰17.11; 41.17; 53.12)
210    बाभन (हरिजन, बाभन, अहीर, लाला आउ मियाँ सब मास्टर के अलगे-अलगे बैठे ला या खाय ला थोड़े इंतजाम हे । ई सब शिक्षा आउ सफाई के दोष हे । हमनियों शिक्षित हो जाई तऽ सब दोष अपने मिट जायत ।; कउनो समाज अगर अपराध के अकुरा के उहईं मसल देवे त ऊ बड़का पेंड़ कइसे बनत । अपने समाज में हमर पहचान अछूत से हे, हिंदू से न । आउ समाज में जाके पूछऽ । उ सबसे पहिले अपना के मुसलमान, ईसाई, पारसी बतइतन । आउ हमनी सब अपना के बाभन, चमार, अहीर, राजपूत, कहार, कुम्हार, भुइयाँ आदि कहे ला तइयार ही, हिंदू न ।)    (मविक॰71.22; 104.3)
211    बिचबिचवा (बड़कन हीं लइकी-लइका अपने से जीवन साथी खोजऽ हे त बड़प्पन मानल जाहे । छोटकन के उ पूछे ला तइयारे न हे । निचलका आउ केतना नीचे जायत । बिचबिचवा के हालत सबसे खराब हे । हमनी किहाँ के लइकी अगर लइका अपने से खोज लेलक त बड़का लांछन लग जाहे ।)    (मविक॰33.25)
212    बिलाला (= बिलोला; बेसहारा) (इ का सत्य न हे कि केतनो बदचलन औरत होवे, पति के रहते ओकर सब झँपा जाहे ? अबहियों पुरुष प्रधान संसार हे, जेकरा में अकेले नारी के जीवन बेकार न हे का ? हमरा कुछ भे गेल त लइकन सब बिलाला होके रह जायत ।)    (मविक॰36.29)
213    बीध (दे॰ बिध, विध) (मन के न चाहलो पर लोक परंपरा के अनेक बीध हमरा से करावल गेल । जहिना से तिलक गेल हल ओकर बाद से हमरा घुमे-फिरे के मनाही हो गेल हल । उ दिन भी आइए गेल जउन दिन बारात आयल ।; घर से गीत गावे के अवाज आ रहल हल । उ से लगऽ हल कि बिआह के टंट-घंट शुरू हो गेल हल । हमरो बीध करावे ला बोलावल गेल । ना-नुकुर कइली त बेइज्जती सहे पड़ल ।)    (मविक॰35.5; 43.26)
214    बुड़बक (= मूर्ख) (हम सोंचली कि अगर कम दाम माँगऽ हिया तब सब गहँकी शंका करे लगतन कि का बात हउ, एतना कम दाम माँगइत हथुन । चाहे तो इ बैला में कउनो ऐब हउ या इ अदमिये बुड़बक हउ । जबकि हम अपन पहिनावा बोल-चाल से ओइसन लगऽ न हली आउ  न तो कउनो ओड़िया तर के झाँपल खसी-पठरू हली । गाँव-जेवार के लोग जानवे करऽ हलन ।)    (मविक॰94.4)
215    बेकत (दुनो ~ = दम्पती; पति-पत्नी) (दुनो बेकत के आँख के लोर बंदे न होइत हल । ओइसन रोबाई अपन बाल-बच्चा के मरलो पर लोग न करे ।)    (मविक॰92.22)
216    बेजाय (कभी-कभी मन में सोंचे लगली हल कि एक-न-एक दिन बिआह तो होवे करत । अगर इ लइका हमरा से बिआह करे त का बेजाय होवे ? एकरा से का बढ़ियाँ मिलत हमर वर । बाकि फिन अपने लजा जा हली ।)    (मविक॰33.14)
217    बेपारी (एगो अदमी लगऽ हलन कि ओही महंथ हलन, एगो दूसर अदमी पर बिगड़ रहलन हल । तोहनी कमचोर हें, अहदी हें । बतावऽ अबहीं तक खरिहानी न उठल हे । गल्ला ला बेपारी आयल हे । ओकरा कउची देई तोर कपार ? तीन-तीन दफे तो ओकरा लौटा देली हे ।)    (मविक॰51.2)
218    बेमार-उमार (कउनो कारज में अंगेया देवे के मतलब हल उ कारज के खरचा भर समान मिल जाय । कोई बेमार-उमार पड़लन, खरचा गिरहते दे देलन। फिर कई साल में चुकावथ । सूद-उद कुछ न ।)    (मविक॰69.11)
219    बेर (~ डुबना) (आवइत-जाइत गाँव के गिरहत से राम-सलाम होवे लगल । अब उ पहिलका मन तो न हे । केतनो होवे, अब उ सब हमनी के शंके के नजर से देखऽ हथ । जे रात-बिरात तक कमा हली से अब बेरिये डुबे भगा दे हथ ।; तिरछहीं अपने लोग अइली होवे । कइसे आ गेली एही हमरा अचरज लगइत हे । बेर डुबे के बाद उ रस्ता से कउनो आवऽ-जा हथ थोड़े ।)    (मविक॰71.13; 97.17)
220    भगिना (= भगना; भागिनेय, बहन का पुत्र) (एक दिन हमर भगिना हमरा भिर गेल । हम पुछली कि कने चलले हें । बड़ा सपर के अइले हें ।; भगिना कहलक कि इ रिंकी जी । इ हमर बाबूजी के ममेरी बहिन न लगऽ हथ । इनखर माय-बाबूजी न हथिन । भाइयो न हलथिन । तीन गो बहिने हथिन खाली । नेवता-पेहानी हमरा हीं से चलऽ हइन ।)    (मविक॰58.4, 9)
221    भदोइया (~ बेंग) (गाड़ी एक-दु मील आगे बढ़ल हल । बगल में जी.टी. रोड हल । दस गो गाड़ी लगल हल फोर्स के । हल्ला हो गेल - मजिस्टेट चेकिंग ... मजिस्टेट चेकिंग । लइकन सब भदोइया बेंग अइसन उछल-उछल के भाग चलल । बाकि गेट पर जाके फिनो लौट आयल । काहे कि तब तक कुछ जवान गाड़ी में आ गेलन हल आउ एक-दु गो पर हंटरोमाइसिन, थपड़ोजिन आउ लपड़-लड्डू के बरसा कर रहल हलन ।)    (मविक॰39.32)
222    भनभनी (लइका जब अवारा हो गेल तऽ उ का करथ । उनखर डाँट-फटकार समझावल के कोई असर ओकरा पर न हल । नतीजा हल कि ओहु सबके माथा झुकवे परऽ हल । मइया के तनी भनभनी लगऽ हलइन काहे कि मनमा बढ़ावल उनखरे हलइन ।)    (मविक॰64.9)
223    भरनठ (= भ्रष्ट) (किस्मत जखनी खराब हो जाहे तखन बुधिये भरनठ हो जाहे । किस्मत में जे होवे के रहऽ हे ओही होवऽ हे ।)    (मविक॰79.5)
224    भुइयाँ (कउनो समाज अगर अपराध के अकुरा के उहईं मसल देवे त ऊ बड़का पेंड़ कइसे बनत । अपने समाज में हमर पहचान अछूत से हे, हिंदू से न । आउ समाज में जाके पूछऽ । उ सबसे पहिले अपना के मुसलमान, ईसाई, पारसी बतइतन । आउ हमनी सब अपना के बाभन, चमार, अहीर, राजपूत, कहार, कुम्हार, भुइयाँ आदि कहे ला तइयार ही, हिंदू न ।)    (मविक॰104.4)
225    भैंसुर (बाबूजी के बीस बीघा जमीन हल आउ एही एगो बेटिये हलन । वीदवा होला के बाद ससुर जी कहलथिन कि चल के उहईं रहऽ । देवर भी अलथिन, भैंसुर भी अलथिन बाकि उहाँ जाय ला मानो फुआ तइयार न भेलन । कहलन कि हम बिआहे में गेली हे । केकरो से जान-पहचान न हे ।)    (मविक॰20.1)
226    भोज-भात (हमर एगो आदत हे दूर देश के शहर-नगर में जायेम त ओहिजा देहातो में घुमे के जुगाड़ करऽ ही । उहाँ के वातावरण कइसन हे, रहन-सहन कइसन हे इ सब जाने ला हम उ सब के कहऽ ही कि अपने इहाँ के सबसे बढ़ियाँ भोजन कउची हे ? बिआह-शादी, भोज-भात, मरनी-जीनी में कइसे का-का होवऽ हे ?)    (मविक॰73.10)
227    मजिस्टेट (गाड़ी एक-दु मील आगे बढ़ल हल । बगल में जी.टी. रोड हल । दस गो गाड़ी लगल हल फोर्स के । हल्ला हो गेल - मजिस्टेट चेकिंग ... मजिस्टेट चेकिंग । लइकन सब भदोइया बेंग अइसन उछल-उछल के भाग चलल । बाकि गेट पर जाके फिनो लौट आयल । काहे कि तब तक कुछ जवान गाड़ी में आ गेलन हल आउ एक-दु गो पर हंटरोमाइसिन, थपड़ोजिन आउ लपड़-लड्डू के बरसा कर रहल हलन ।)    (मविक॰39.31, 32)
228    मथठोकवा (अरे ! राज चलावऽ हथ अफसर । नेता तो मथठोकवा होवऽ हथ । पहिला लोकसभा में 26 गो भी मैट्रीक पास एम.पी. न हलन । ओकर बात छोड़ऽ । देवेगौड़ा जी हिंदी न बोलऽ हलन । प्रधान मंत्री भेलन कि न ? फूलन देवी कउन बड़का विदवान हलन । भगवतीया देवी केतना पढ़ल हलन । इ तो एगो बानगी हेया । अइसन केतने हथ । एगो बात सुनऽ - "भला हो प्रजातंत्र के, अनहोनी करवाय । बने निरक्षर मूखिया, अफसर ढोवथ चाय ॥")    (मविक॰87.8)
229    मरद-मेहरारू (हमरा मालुम हल कि मरदाना-मेहरारू में झगड़ा चलइत हल । हम उनखा से पुछली कि अईं जी ! दूनो में कातो झगड़ा हलो ? मरद-मेहरारू के झगड़ा खटिया पर जइते सब खतम हो जाहे ।)    (मविक॰32.4)
230    मरदाना-मेहरारू (हम अपन सरबेटी के बिआह में ससुराल गेली हल । उहाँ हमर साला के एगो सरहजो आयल हलन । उनकर मरदनो हलन आयल । हमरा मालुम हल कि मरदाना-मेहरारू में झगड़ा चलइत हल ।)    (मविक॰32.3)
231    मरदे (अपन परिवार के सब हाल दीनदयाल बाबू बता देलन । ई बात सुनइते उनकर यार कहे लगलन - अरे मरदे ! ओही परिवार के जंजाल ला हम छछनइत ही हो । आउ ओकरे छोड़ के भागल जाइत हऽ उबिया के । अरे मरदे ! अइसन न करे के चाही ।)    (मविक॰52.5, 6)
232    मरनी-जीनी (मानो फुआ ! अइसने एगो औरत हलन । कइसनो समाजिक काम होवे उनकर उहाँ रहना जरूरी हो जा हल । मरनी-जीनी, शादी-बिआह में उ जाके खड़ा जरूर हो जा हलन ।; हमर एगो आदत हे दूर देश के शहर-नगर में जायेम त ओहिजा देहातो में घुमे के जुगाड़ करऽ ही । उहाँ के वातावरण कइसन हे, रहन-सहन कइसन हे इ सब जाने ला हम उ सब के कहऽ ही कि अपने इहाँ के सबसे बढ़ियाँ भोजन कउची हे ? बिआह-शादी, भोज-भात, मरनी-जीनी में कइसे का-का होवऽ हे ?)    (मविक॰18.8; 73.10)
233    मर-मसाला (खाय तो न अइलन गिरहत बाकि बारात के खाय भर दाल-चाउर, तेल-तरकारी, मर-मसाला आउ बहिन लगी साड़ी-साया, कुर्ती भेजवा देलन ।)    (मविक॰69.11)
234    मलकिनी (= पत्नी) 9दूसरा दिन झूलन का गायबे न हो गेलन । घर में एगो मलकिनी आउ एगो बेटिये हलथिन ।)    (मविक॰87.27)
235    महादे (= महादेव) (हमर मन तो केकरो में लग गेल हल । हम महादे पुजइत हली । मनउती मानइत हली बाकि सामने कुछ कहे से लाचार हली ।)    (मविक॰34.3)
236    महाबुड़बक (फूफा कहलथिन कि तूँ महाबुड़बके रह गेलें दीनदयाल ! अईं हो ! हमर समाचार ठीक कइसे रहत ? हम का बंड-बुंड ही कि अकेले हम ठीक तऽ सब ठीक ? हमरा नात-पोता, बेटा-पुतोह, भाई-भतीजा सब हथ ।)    (मविक॰51.17)
237    मानिंद (गाँव के पाँच-सात आदमी जे मानिंदे मानल जा हलन उनका लेके मुखिया जी मानो फुआ के कमरा में गेलन । उहाँ आउ कुछ न, खाली एगो टुटल बक्सा मिलल जेकरा में एगो गुदरी में लपेटल 33 हजार रुपइया मिलल हल ।; खूब हल्ला भेल । गाँव के पंचयती लगल । कुछ कुटुंब के एगो-दूगो के, आउ जेवार के दू-चार गो मानिंद अदमी के बोला के रमेसर बाबू ले अइलन हल ।)    (मविक॰21.11; 46.21)
238    माल (उ हमरा छाती से लगाके हमर लोर पोंछ के कहलन कि अब जब हम मिल गेली तब सब शिकायत खतम । पहिले से जानतऽ हल त एतना परेम न रह जइतो हल । कखनी उनकर बाँह के माल बनाके सुतली, हमरा पता न चलल ।)    (मविक॰35.31)
239    मुठरिया (~ सींग) (हमरा भिर एगो बैल हल । बड़ी नीमन । सुन्नर शरीर । फह-फह उजर । मुठरिया सिंग । गोड़ सुडौल । छोटे-छोटे पोंछी । बाकि हल एकदम गर्ह । हर-पालो देखइते खूँटा पर पड़ जा हल । केतनो उपाय करऽ, उठे ला तइयारे न होवऽ हल । ... पता न कइसे उ समझ जा हल कि हमरा अब सब काम में लगौतन । बस उ अपन गरहई कर दे हल ।)    (मविक॰93.10)
240    मुसहरा (= वेतन) (जज साहेब अप्पन चश्मा हँटा के पहिले एक बार सगरो ताकलन आउ फिर चश्मा लगा के फैसला ओला कागज पढ़े लगलन । फैसला जे सुनइलन ओकर अनुसार सुधीर के मुसहरा में आधा हिंस्सा हमरा मिले के हल । अचलो संपत्ति में भी आधे हिंस्सा मिलल हल ।)    (मविक॰37.12)
241    मैदान (~ जाना) (मंगर एगो कुत्ती भी पोसले हलन । ... भइँसो चरावित हल त साथहीं, सुतऽ हल त ओहिजे, कनहुँ चल गेलन त जानवर के केकरो जजात में जाय न देवे । मैदान गेलन त तनी दूर पर बैठल रहऽ हल ।; प्रधान मंत्री के खिलाफ जे जे चुनाव लड़इत हथ उनखर रक्षा के जिम्मेवारी सरकार के हे । हमनी इनखर सुरक्षा में ही । चोबिसो घंटा इनखरे साथे रहे के हे । बाकि ई तो चकमा देके मैदान के बहाना बना के भाग अइलन ।)    (मविक॰77.21; 88.25)
242    मोछकबरा (उनखा भिर कउनो चंदा ला पहुँच गेलन तो उनकर खैरियत न होवे । तेरह कुरसी उकट के रख देथ । एक पैसा न दे हलन । आउ जब कउनो न माँगलक, आउ कउनो गली में भेटा गेल तब भी खैरियत न । रोवे लगऽ हलन आउ गारी से हाड़ छेद दे हलन । तोर बाप-दादा के हिम्मत न हउ कि बिना पुछले हमरा काम करतउ । आउ तोहनी मोछकबरा के नतियन हमरा गाँव से भगावल चाहइत हें ?)    (मविक॰19.2)
243    मोथा (तनी देर के बाद टिकट निरीक्षक भी अइलन । बाकि अंगुरी लगे से जइसे लजउनी घाँस लजा के सिमट जाहे वइसहीं ओहु लजा के रह गेलन । बिना मांगले सलाह दे देलन कि मिल-जुल के चल जा । बिन उपजइले जमल कुश अइसन उनकर सलाह हमर दिमाग में गड़े लगल हल । बिन उपजावल मोथा अइसन हमर सीट पर लइकन बैठल हल ।; उ फिर से आनंद चाहऽ हलन, चाहऽ हलन कि पहिले ओला दिन लौटे बाकि किसान जइसे खेत से जेतने मोथा निकालऽ हथ ओतने फिर जम जाहे, ओइसहीं दीनदयाल बाबू लाचार होके उबिया गेलन हल घर से ।)    (मविक॰39.14; 49.9)
244    मोहे (= मुँहें, ओर, तरफ) (जेठ के आग अइसन सगरो इ बात फैल गेल कि अइसन महात्मा आयल हथ कि उनका भिर जे गेल उनखे अइसन हो जाहे । उनखा अइसन होवे के मतलब हल घर में दरिद्दर के बुलाहट । ... अब कोई उ रसता से जाय ला तइयारे न हल । अपन लइकन-फइकन, औरत-मरद सबके सभे मना कर देलन कि ओने मोहे कोई मत जइहें, न तो उनखे अइसन हो जयमे ।)    (मविक॰65.18)
245    रंगन (= तरह, प्रकार) (लइकन के तो बाघ आउ बिलाई में कउनो अंतरे न पड़ऽ हल । उ सब ला दूनो एक रंगन हल ।)    (मविक॰91.24)
246    रंथी (= अरथी) (जिनकर अंतिम यात्रा के रंथी या डोली उठल हल उनकर नाम हल झूलन बाबू । सउँसे गाँव के लोग उनका झूलन कक्का कहऽ हलन । हम उनकर काका के एगो 'का' हँटा दे हली आ खाली 'झूलन का' कहऽ हली ।)    (मविक॰85.9)
247    रमलीला (= रामलीला) (गाँव में कइसनो कारज होवे, जइसे - नाटक, संगीत-कीर्तन, अखंड रमलीला, तो गाँव के लोग चंदा करवे करऽ हथ । उनखा भिर कउनो चंदा ला पहुँच गेलन तो उनकर खैरियत न होवे । तेरह कुरसी उकट के रख देथ ।)    (मविक॰18.29)
248    राजपूत (कउनो समाज अगर अपराध के अकुरा के उहईं मसल देवे त ऊ बड़का पेंड़ कइसे बनत । अपने समाज में हमर पहचान अछूत से हे, हिंदू से न । आउ समाज में जाके पूछऽ । उ सबसे पहिले अपना के मुसलमान, ईसाई, पारसी बतइतन । आउ हमनी सब अपना के बाभन, चमार, अहीर, राजपूत, कहार, कुम्हार, भुइयाँ आदि कहे ला तइयार ही, हिंदू न ।)    (मविक॰104.4)
249    राड़ (= बदमाश) (सब भइँस-भइँसा एगो गबड़ा में बोरल हल । कातिक के महीना हल । रउदा बड़ी तीखा हल । राड़ के बोली आउ कातिक के रउदा सबसे बरदास्त न होवे ।)    (मविक॰79.8)
250    रात-बिरात (आवइत-जाइत गाँव के गिरहत से राम-सलाम होवे लगल । अब उ पहिलका मन तो न हे । केतनो होवे, अब उ सब हमनी के शंके के नजर से देखऽ हथ । जे रात-बिरात तक कमा हली से अब बेरिये डुबे भगा दे हथ ।)    (मविक॰71.12)
251    राहड़ (= अरहर) (एक दिन हम एगो गिरहत के खेत पर काम करके  लौट रहली हल । माथा पर धान के बोझा हल । आरी के दुनो दने राहड़ के खेत हल । अकेले हली । गउएँ के दू-चार गो, लइकन तो न, जवाने कहऽ, हमरा पकड़ के बड़ी दूर रहड़िया में ले गेलन ।)    (मविक॰102.10, 11)
252    रुसना (बिआह के बाध दस साल तक रमा देवी अपन मरदाना दीनदयाल बाबू के साथे बड़ी बढ़ियाँ से बितौलन । फिर रुस के गेलन से लौटे के नाम न लेलन ।)    (मविक॰53.13)
253    रूसना (नीन हमरा से रूस के चल गेल हल । भूत के आतंक बनल हल । ओकर कउनो रूपे-रेखा न बनइत हल । हम निश्चय कइली एकर पता हम जरूर लगाएम आखिर बात का हे ।)    (मविक॰97.31)
254    रेंड़ी (= रेंड़, एरण्ड) (पचास गो लठैत ले ले । सब पता बता के कहलन कि ओकर घर ढाह-ढुह के रेंड़ी बुन दे ।;  भोर होइत-होइत छठन के घर ढाह-ढुह के सच्चे रेंड़ी बुन देल गेल । तनी सुन बात के बतंगड़ भे गेल । एही से अदमी के जोश में होश न खोवे के चाही ।)    (मविक॰27.14, 21)
255    रेसावादी (= रेसाबादी; छीन-झपट, ईरा-ईरी, होड़, स्पर्द्धा, हिसका करने की क्रिया या भाव) (मानो फुआ के चचेरा भाई नगीना सिंह उर्फ नागो । उनकर चार-पाँच गो बेटा-पुतोह, पोता-पोती सब हथ । मानो फुआ के सब जमीन ओही जोतऽ-कोड़ऽ हलन । पहिले सब साथे बनावऽ-खा हलन । बाकि जब से पुतोहन आयल हे आपस में टीका-टिप्पणी रेसावादी करे लगलन हल । तहिना से मानो फुआ अलगहीं बनावऽ-खा हलन ।)    (मविक॰20.15)
256    रोबाई (= रोवाई, रोवाय; रुदन) (दुनो बेकत के आँख के लोर बंदे न होइत हल । ओइसन रोबाई अपन बाल-बच्चा के मरलो पर लोग न करे ।)    (मविक॰92.23)
257    रोवा-पीटी (अब उ हमर दमाद हे । एकरा ला जे करे के होवे, करइजो । हमर बेटी के सेनुर देलक हे । देर करइत हें काहे रे ससुरा ! जो न जल्दी । पीछे-पीछे दिनेश बाबू अपने चल देलन । फिर का हल, सउँसे समाज जाके पहिले लइका मान के हमरा बरिआरी अपन घरे ले अइलन । हमरा कहला पर गुंजन के भी उ सब ले अइलन हल । हमनी अब अपना के सुरक्षित मान रहली हल । रमेसर बाबू के घर में रोवा-पीटी शुरू हो गेल हल ।)    (मविक॰46.2)
258    लगहर (~ गाय) (जेल के खिड़की बंद का भेल रधिया के करेजा पर जइसे कोई पत्थर पटक देलक । ओकरे सामने सिपाही ओकर लइका के खींच के ले जाइत हल जइसे लगहर गाय के बाछा ओकर थान से बरियारी हटावल जाइत होय ।)    (मविक॰81.3)
259    लजउनी (= लजौनी) (तनी देर के बाद टिकट निरीक्षक भी अइलन । बाकि अंगुरी लगे से जइसे लजउनी घाँस लजा के सिमट जाहे वइसहीं ओहु लजा के रह गेलन । बिना मांगले सलाह दे देलन कि मिल-जुल के चल जा । बिन उपजइले जमल कुश अइसन उनकर सलाह हमर दिमाग में गड़े लगल हल ।)    (मविक॰39.12)
260    लपड़-लड्डू (गाड़ी एक-दु मील आगे बढ़ल हल । बगल में जी.टी. रोड हल । दस गो गाड़ी लगल हल फोर्स के । हल्ला हो गेल - मजिस्टेट चेकिंग ... मजिस्टेट चेकिंग । लइकन सब भदोइया बेंग अइसन उछल-उछल के भाग चलल । बाकि गेट पर जाके फिनो लौट आयल । काहे कि तब तक कुछ जवान गाड़ी में आ गेलन हल आउ एक-दु गो पर हंटरोमाइसिन, थपड़ोजिन आउ लपड़-लड्डू के बरसा कर रहल हलन ।)    (मविक॰40.3)
261    लमका (= लम्मा; लम्बा) (सब अइसन हमरा बने के आदत न हल । पढ़े से काम रहऽ हल । चुलबुली न करऽ हली । हलाँकि मने मन लगऽ हल कि इ हमरे होके रहतन हल । बाकि अपन भावना इनका भिर कभी न देखइली । इनका भिर लइकी के एगो लमका कतार हल । ओकरा में हम बेलाग हली ।)    (मविक॰59.5)
262    लांगड़ (= लंगड़ा) (कनहुँ बात चलल कि फलाना जगह लांगड़ छुटहा असहाय जानवर हे ओकरा अपना भिर ले आवथ । खूब सेवा करइथ । जब उ ठीक हो जाय तब केकरो पोसे ओलन के मंगनिये दे देथ ।)    (मविक॰90.18)
263    लारे-पोवारे (बाघिन के बच्चा के साँस चलइत हल । लारे-पोवारे उ ओकरा उठाके तुरते चल देलन । तनिको देर न कइलन । आउ गाड़ी दउड़इले चल अइलन प्रताप बाबू भिर ।)    (मविक॰91.13)
264    लिहाजी (बढ़ियाँ काम में लजाय के का बात हे । 'लिहाजी औरत छिनार आउ लिहाजी मरद भिखार होवऽ हे ।' लाज के भी एगो सीमा होवे के चाही ।)    (मविक॰34.27)
265    लुग्गा (नया-नया जे भी बेटी-पुतोह आवथ-जाथ मानो फुआ के एगो लुग्गा दे हलन । उ उ लुग्गा कोई गरीब के दे दे हलन ।)    (मविक॰20.21, 22)
266    लोक-विध (जब तक उ शादी में न पहुँच जाथ तब तक गीत शुरुए न होवऽ हल । हर नेग-दस्तूर के अलग-अलग गीत । गीत तो उनकर ओरिअइवे न करऽ हल । हर विध के सटीक गीत । लोक-विध में जहाँ चूक भेल कि पंडित झरा गेलन ।)    (मविक॰18.11)
267    विध (= विधि) (जब तक उ शादी में न पहुँच जाथ तब तक गीत शुरुए न होवऽ हल । हर नेग-दस्तूर के अलग-अलग गीत । गीत तो उनकर ओरिअइवे न करऽ हल । हर विध के सटीक गीत । लोक-विध में जहाँ चूक भेल कि पंडित झरा गेलन ।)    (मविक॰18.11)
268    विरंज (= बिरंज; मेवा मिले सुगंधित चावल को घी में सिझाकर तैयार किया गया मीठा पुलाव) (गाँव-देहात में बराती के खिआवे ला विरंज बनावल जाहे जे बढ़िया चाउर, मेवा, घी-चीनी के योग से बनऽ हे । ई खर्चीला खाद्य हे । से सब कोई के बस के चीज न हे बाकि गाँव-देहात में बराती के साथे गोतिया-नइया के भी खुश रखना जरूरी समझल जाहे ।  से कहानी के नायक 'रमेसर बा' अप्पन बैल बेच के विरंज बना के खिलौलन आउ परंपरा के निर्वाह में उजड़ गेलन ।; चंदा करके गाँव के लोग बैल खरीद देलन आउ बैल बेच के विरंज खाय के दोष से मुक्ति पा गेलन ।)    (मविक॰14.4, 8, 12)
269    सकबकाना (= सकपकाना) (चुपचाप जे कहल जा हउ से करइ जो । हमनी सकबका गेली । हमर करेजवा धक-धक करे लगल हल ।)    (मविक॰43.11)
270    सकुनत (= सकूनत; सकना की जमीन; जमीन जिस पर घर बना हो या जो बासगीत के योग्य हो, बासडीह; घर के पास की खुली जमीन) (मुखिया जे कहे लगलन, " हमरा भिर जे कागज हे ओकर अनुसार, मानो फुआ के बैंक में दस लाख पाँच हजार पाँच सौ तेहत्तर रुपइया जमा हे । बीस बिगहा जमीन हे जे नागो बाबू जोतऽ हथ, जेकरा में एक बिगहा सकुनत के जमीन हे । कुछ गहना भी हमरा भिर रख देलन हल ।")    (मविक॰22.3)
271    सच्छात (= साक्षात्) ( (मानो फुआ गाँव के एगो सभ्य औरत, सुसंस्कार में पलल, मानवता रग-रग में भरल, दुखियन के सेवा करेओली, अनाथ के नाथ, निर्बल के बल, लोकरीत के पुरधाइन, ममता अउ दया के सच्छात मूरत हलन ।)    (मविक॰18.4)
272    सन (= जैसा, सदृश; जूट, पटुआ, पाट, सनई) (लगन बीतल जा रहल हे । हम हाँथ में पीतल के थारी में सेनुर आउ सन लेले कहली कि पंडित जी, इ जिनगी के सनेह हे । सब काम अपने के कहल मानली त एहु मानवे करम बाकि हमरा हीं के चाल हे कि मड़वा के पाँच फेरा लगा के सेनुर देल जाहे ।)    (मविक॰45.6)
273    सपरना (एक दिन हमर भगिना हमरा भिर गेल । हम पुछली कि कने चलले हें । बड़ा सपर के अइले हें ।)    (मविक॰58.5)
274    सम्हारना (= सँभालना) (हम कहली कि सुनऽ अमित ! जउन पेंड़ लगइली ओकरा काटम तो न बाकि ओकरा सम्हारम जरूर ताकि बढ़ियाँ फल देवे ।; हम एगो स्वयंसेवी संस्था 'कल्याणी' से जुड़ल ही । हम तीन बरिस अपने के गाँव में रह के कुछ काम कइली । इ में हमर संस्था के इशारा हल । अब दु-चार गो युवक एकरा सम्हारे लायक होयल हथ । उ एकरा सम्हारतन ।)    (मविक॰31.20; 60.17, 18)
275    सरबेटी (= साले की बेटी) (हम अपन सरबेटी के बिआह में ससुराल गेली हल । उहाँ हमर साला के एगो सरहजो आयल हलन । उनकर मरदनो हलन आयल । हमरा मालुम हल कि मरदाना-मेहरारू में झगड़ा चलइत हल ।)    (मविक॰32.1)
276    सरहज (हम अपन सरबेटी के बिआह में ससुराल गेली हल । उहाँ हमर साला के एगो सरहजो आयल हलन । उनकर मरदनो हलन आयल । हमरा मालुम हल कि मरदाना-मेहरारू में झगड़ा चलइत हल ।)    (मविक॰32.2)
277    सवासिन (केकरो घर में लइका होवे ला होवे, खासकर के सवासिन के, तऽ मानो फुआ बिन बुलौले तूफान अइसन पहुँच जाथ । एकरा में उनका तजुर्बो हलइन ।; कउनो सवासिन के भी उ गाँव के सवासिन मानऽ हलन । ई से बिना बुलौले ओकर बिआह में जरूरे जा हलन ।)    (मविक॰18.17, 22)
278    ससुरा (अब उ हमर दमाद हे । एकरा ला जे करे के होवे, करइजो । हमर बेटी के सेनुर देलक हे । देर करइत हें काहे रे ससुरा ! जो न जल्दी । पीछे-पीछे दिनेश बाबू अपने चल देलन । फिर का हल, सउँसे समाज जाके पहिले लइका मान के हमरा बरिआरी अपन घरे ले अइलन ।)    (मविक॰45.31)
279    सादा-सपेटा (धनवान के लइका हलन टिंकु । सादा-सपेटा रहऽ हलन, बाकि ढंग से ।)    (मविक॰58.30)
280    सारा (= चिता, चिरारी; साला) (बढ़ियाँ सारा सजावल गेल । बेटा मुँह में आग देलथिन । जब सारा धाँय-धाँय लहरे लगल, जब चारो दने आग धर लेलक, बड़का-बड़का लहर उठे लगल कि एकाएक मंगरि बीचे सारा पर कुद के चल गेल । सब हँ-हँ करइते हलन कि तब तक मंगरि लहर गेल हल । ... सब कोई कहे लगलन कि मंगर के मंगरि उ जनम के औरत हलइन से ई जनम में साथे सती हो गेलइन ।)    (मविक॰80.2, 3, 4)
281    सिन (= उपनाम 'सिंह') (छठन तैश में आके कहलन - यार, जउन दिन परेश सिन इ जमीन पर आ जइतन उ दिन केतने औरत राँड़ हो जथिन । केतने औरत के ... कट जाएत । ए बात सुन के गोमस्ता जी हकबका गेलन । परेश सिन उनकरे गोतिया हलन ।)    (मविक॰26.16, 18)
282    सीटी-पीटी (दे॰ सिट्टी-पिट्टी) (~ गुम होना) (ऊ एकबैक एतबड़ कस के ठहाका लगौलन कि हमर सीटी-पीटी गुम हो गेल ।; हम चार बजे भोरहीं उठ जाही । उठ के पर-पखाना लागी लोटा लेके जइसहीं गली में अइली कि इंजोरिया में सामने कई गो राइफलधारी पुलिस देख के हमर तो सीटी-पीटी गुम हो गेल । उ एतवर कसके डाँटलक कि डर के मारे हमर पखाने सूख गेल ।)    (मविक॰87.5; 88.6)
283    सीधा-साधा (अब भइँसा भइँस के छोड़ के नहर से निकल गेल । ओकर दूनो आँख लाल-लाल अँगार भे गेल । उ दौड़ के आयल आउ मंगर के उठा के माथा से फेंक देलक से उ नहर के पानी में फेंका गेलन । उपरे से भइँसा भी कुदल बाकि मंगर पानी में गुड़की मार के भाग गेलन । ... घरे के जउन भइँसा गऊ अइसन सीधा-साधा हल उ मंगर के जान मारे के ताक में रहे लगल ।)    (मविक॰78.18)
284    सुतना-पड़ना (उ कस के हमरा आउ सिपहिअन के भी डाँटे लगलन । हमरा कच्चे नीन काहे जगा देलऽ । ई तो हमर अधिकार के हनन हे । तोहनी एतना तंग करके रख देलऽ ह कि बढ़ियाँ से सुतहुँ-पड़हुँ न देइत ह सब ।)    (मविक॰88.11)
285    सुन (= सन, -सा) (भोर होइत-होइत छठन के घर ढाह-ढुह के सच्चे रेंड़ी बुन देल गेल । तनी सुन बात के बतंगड़ भे गेल । एही से अदमी के जोश में होश न खोवे के चाही ।; फिर एक दिन मालुम भेल कि हमर शादी ठीक हो गेल । लइका टाटा में रहऽ हे । एम.ए. में पढ़ऽ हे । ओकर बाबूजी उहईं नौकरी करइत हथ । नाम सुधीर हे । सुधीर के नाम से दिल थोड़ा ठंढा तो भेल बाकि तनीये सुन । लगल कि नाम एके रंगन होवे से का होवऽ हे ।; दीनदयाल बाबू सोंचे लगलन कि धत तेरी के ! तनी सुन अनाज ला इ लड़इत हे आउ हमरा हीं कोठी के कोठी भरल हे ।; विचार भेल कि उनखे भिर चल के सुतल जाय । उहइँ आराम होयत । तनी सुन चलहीं न पड़त ।)    (मविक॰27.22; 34.7; 50.8; 96.18)
286    सुनरई (= सुन्दरता) (हमर सुनरई के बखान अपने के परिवार ओतने कइलन हल कि कालिदास भी शकुंतला के ओतना बड़ाय न कइलन हे । अग्नि आउ ब्राह्मण के गवाह बनाके वैदिक रीति से हाँथ पकड़लऽ हल । हमर सुनरई आउ व्यवहार के चर्चा खूब भेल हल ।)    (मविक॰54.32; 55.4)
287    सुस्ताना (पेड़ के छाँह में तनी देर सुस्ताय ला रुकलन कि ओने से एगो अदमी आवइत हलन । उ संयोग से उनकर फूफा हलन । ओहु बूढ़ा हो गेलन हल बाकि हलन खर-खर ।)    (मविक॰51.14)
288    सूटर (= स्वेटर) (जब भोरे-भोरे साइकिल चलाके इस्कुल जाई तो देह में गरमी आ जाय आउ अपन सूटर निकाल के रख देवे पड़े ।)    (मविक॰99.10)
289    सूद-उद (कउनो कारज में अंगेया देवे के मतलब हल उ कारज के खरचा भर समान मिल जाय । कोई बेमार-उमार पड़लन, खरचा गिरहते दे देलन। फिर कई साल में चुकावथ । सूद-उद कुछ न ।)    (मविक॰69.14)
290    हंटरोमाइसिन (गाड़ी एक-दु मील आगे बढ़ल हल । बगल में जी.टी. रोड हल । दस गो गाड़ी लगल हल फोर्स के । हल्ला हो गेल - मजिस्टेट चेकिंग ... मजिस्टेट चेकिंग । लइकन सब भदोइया बेंग अइसन उछल-उछल के भाग चलल । बाकि गेट पर जाके फिनो लौट आयल । काहे कि तब तक कुछ जवान गाड़ी में आ गेलन हल आउ एक-दु गो पर हंटरोमाइसिन, थपड़ोजिन आउ लपड़-लड्डू के बरसा कर रहल हलन ।)    (मविक॰40.2)
291    हर-पालो (हमरा भिर एगो बैल हल । बड़ी नीमन । सुन्नर शरीर । फह-फह उजर । मुठरिया सिंग । गोड़ सुडौल । छोटे-छोटे पोंछी । बाकि हल एकदम गर्ह । हर-पालो देखइते खूँटा पर पड़ जा हल । केतनो उपाय करऽ, उठे ला तइयारे न होवऽ हल । ... पता न कइसे उ समझ जा हल कि हमरा अब सब काम में लगौतन । बस उ अपन गरहई कर दे हल ।)    (मविक॰93.11)
292    हरिजन (हरिजन, बाभन, अहीर, लाला आउ मियाँ सब मास्टर के अलगे-अलगे बैठे ला या खाय ला थोड़े इंतजाम हे । ई सब शिक्षा आउ सफाई के दोष हे । हमनियों शिक्षित हो जाई तऽ सब दोष अपने मिट जायत ।)    (मविक॰71.22)
293    हाँहे-फाँहे (दे॰ हाँफे-फाँफे) (खूब भिनसरवे उठके चल देलन । नीलकोठी बैदराबाद पहुँच गेलन । साहेब के पास हाँहे-फाँहे जाके गोड़े धर के रोवे लगलन ।)    (मविक॰27.1)
294    हाय-हुल्ला (जैसे वैद लोग नब्जे पकड़ के सउसे रोग के जानकारी पा ले हथ, ओइसहीं लेखक आज के हाय-हुल्ला समय के सच के बड़ी बारीकी से समझलन हे अउ एकर निदान रूप में पढ़ाई के महत्व आउ परिवार नियोजन के रेखांकित कैलन हे ।)    (मविक॰11.14)
295    हिया (= ही, हूँ, हकूँ, हकिअइ) (हमरा से जादे अपने संसार देखली हे, देखइत भी हिया ।; हम कभी-कभी सोंचऽ हिया कि गाँव के गिरहत सवर्ण या बड़का जात के कहाँ हथ । हमरे जतिया इनखा साथे जे कुरसी पर काम करइथे या अफसरे हे या नेतवने हे, से सबके साथे खाइत-पीअइत हथ ।; ध्रुव तो कातो हमनियों से छोटा हलन । जंगल में अकेले गेलन हल । आउ डेरइवो न करऽ हलन । हमनी दुगो हिया ।; हम काहे न चुनाव लड़ सकऽ हिया ? हम एम.पी., एम.एल.ए. बनके प्रधान मंत्री, मुखमंत्री काहे न बन सकऽ हिया ?; हम एक गिलास पानी माँगली आउ कहली कि हमनी खइले-पीले हिया ।)    (मविक॰55.15; 71.14; 74.31; 86.3, 4; 97.10)
296    हुकुर-हुकुर (पत्नी के दुसरका भूमिका होवऽ हे माय के । माय जइसे अपन लइका के खियावऽ हे, पियावऽ हे बाकि अपने अघाय न । ओकरा नजर में लइकन के पेट हरदम हुकुरे-हुकुर करऽ हे । ओइसहीं पत्नी अपन मरदाना के हरदम मुँह ताकइत रहऽ हे कि काहे तो उदास हथ, काहे तो हँसइत न हथ ।)    (मविक॰56.6)
297    हेया (= हइ, हकइ, हे) (अपने ई मत समझम कि हम आत्महत्या करे जाइत ही । बाकि पता न काहे हमरा आगरों मिलइत हेया ।; जइसन बाद में सुनली कि रमेसर बाबू कहऽ हलन कि परिवार रहे त ओइसने लगइत हे कि हमर पुतोहे हेया ।; गाँव के दलान छोड़ा के बरिअरी टेंट में रहे ला कहल गेल । जे न आवल चाहलन उनखा सिपाही से बरिअरी लाके रखलक कि गाँव में सुरक्षित न हेया ।; तोर बेटा जज बाबु हथु । उनखरे भिर हमर बड़का बेटवा के केस हेया ।; जब अदमी अंतिम यात्रा करऽ हथ तखनिये सबके पता चलऽ हे कि राम नाम सत्य हेया ।; कउनो कोट हमरा सजा थोड़े देलक हेया ।; एकरा में पूछे के का बात हेया ?; एगो सच के हजार दफे झूठ के कहल पर जाय त उ सचो झूठे लगऽ हेया या एगो झूठ के हजार दफे सच कहल जाय त झूठो सचे लगे लगऽ हेया, जबकि सचाई कुछ आउ होवऽ हेया ।; हमनी कइ दफे खिड़की से देखली हेया ।; कउनो कहऽ हल - गदरायल यौवन ई उर्वशी हेया, मेनका हेया, रंभा हेया, पता न केतना नाम सब अपन मन में धइले हलन ।)    (मविक॰57.8; 60.2; 70.9; 83.4; 85.2; 86.2, 9; 96.3, 4; 97.21; 101.31, 32)
298    हेरान (= हैरान, परेशान) (इ तो किरानी सीधे न कहतन कि बिना घूँस लेले काम न करबो । खाली टालित जइतन । अपने दस-पाँच बार दउड़ला पर हेरान होके कुछ देवे करबऽ ।)    (मविक॰28.5)
299    हो (= उम्र में छोटे, विशेष रूप से लड़के, को सम्बोधित करने हेतु प्रयुक्त शब्द)  (अईं ~ !) (फूफा कहलथिन कि तूँ महाबुड़बके रह गेलें दीनदयाल ! अईं हो ! हमर समाचार ठीक कइसे रहत ? हम का बंड-बुंड ही कि अकेले हम ठीक तऽ सब ठीक ? हमरा नात-पोता, बेटा-पुतोह, भाई-भतीजा सब हथ ।)    (मविक॰51.18)


 

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