मगही
[01]
दूरा-दलान
सुमंत
(मगही लेखक)
जहिंआ
से होश सम्हारली, सुनते आ रहली हे-अप्पन देश भारत गाँव के देश हे । जहाँ के सतर फिसद
आबादी खेती-बारी करेवालन किसान-मजूर के हे । अब ले इहे बात सुन रहली हे । अपने सभे
के भेजा में भी इहे बात भरल गेल होतई । बात सच भी हे । बाकि मन में कसक इ बात के हेऽ
कि आज दुनिया कहाँ से कहाँ चल गेल । अदमी केतना बच्छर पहिले चन्दा मामू के छाती पर
गोड़ रख ऐलन । कउनो बुरा काम नऽ करलक । बाकि कुछ भेंटाएल भी तो नऽ । अदमी के अंदाजा
हल कि रात के चमचम चमके वाला चाँद ऊपरे सोना-चाँदी के भंडार होएत, बाकि कुछो हाथ न
लगल । ठीक ओसहीं जइसे आजादी के बाद सभे के इ लगल हल कि अप्पन देश के किसान-मजूर के
हालत सुधरत । गरीब किसान-मजूर खुशहाल हो जएतन । बाकि अइसन होएल कहाँ ? किसान-मजूर के
हाल आझो बेहाल हेऽ । दोसरा के पेट भरे ला अनाज उपजावे वाला ढेर किसान के हालत इ हे
कि खुद उनकरे पेट निमन से न भरल रहल हे । खेती करे लेल नया-नया औजार के इजाद होएलक,
बेसी पैदावार लेल उन्नत किस्म के बीज बनावल गेल, एक पर एक रासायनिक खाद, किटनाशी दवाई......
बाबजूद एकर किसान-मजूर के हालत आझो जस के तस बनल हे । गाँव से हल-बैल उपह गेल । ट्रैक्टर
आउ पावर टेलर के आवे से खेत के जोताई आसान तो हो गेल, बाकि जर-जनावर के रहला से जउन
कम्पोस्ट तइयार होवऽ हल, अब कहाँ ? जानवर के नाम पर पहिले बैल-भइंसा के साथे दूधारू
गाय-भइंस भी किसान रखऽ हलन । दूध-दही के कउनो कमी नऽ होवऽ हल । खेत के पटवन लेल जबसे
डिजल-मोटर आएल अहरा-पोखरा-पईन दिन पर दिन सब इया तो खतम हो गेल । अहरा-पोखरा-पईन के
सफाई लेल पहिले गोमाम होवऽ हल । गाँव के सभे लोग श्रमदान से अहरा-पोखरा के सफाई करऽ
हलन । अब नाम के सरकारी ठेका होवऽ हे । समय पर वर्षा न होवे से किसान के अलगे परेशानी
हे । धान अइसन फसल के रोपाई लेल वर्षा जरूरी हे । डिजल-मोटर के भरोसे एकर रोपाई सम्भव
न हे । किसान तो एकदम से बेचारा बन के रह गेलन हे । जउन फसल किसान पैदा करऽ हथन, बजार
में ओकर भाव कम रहऽ हे आउ रोपे के बेर ओकर बिचड़ा लेवे में निमन-निमन किसान के दम छूट
जा हे । सरकारी मदद बीचे में बिचौलिया चट कर जा हथ । खाद के कलाबाजारी आम बात हे ।
व्यापारी जान के खाद के किल्लत पैदा कर देवऽ हथन आउ किसान से बेसी पइसा वसुलऽ हथ ।
आबादी बढला से खेत के जोत कम हो गेलक हे, इ चलते भी किसान-मजूर के हालत खराब होएलक
हे । हम्मर बस एतने निहोरा हे कि जउन हमनी इ बात के स्वीकारऽ ही कि अप्पन देश भारत
किसान-मजूर के देश हे, तब किसान-मजूर के बेहाल हालत के सुधारे के सख्त जरूरत हे आउ
जबला देश के किसान-मजूर खुशहाल न रहतन, देश खुशहाल न रह पौतक । लाल बहादुर शास्त्री
जी क देले जय जवान जय किसान खाली नारा से काम न चलत, जरूरत हे - किसान-मजूर के हालत
सुधारे लेल जमीनी काम करे के ।
प्रकाशित,
प्रभात खबर-14-07-2015
मगही
[02]
दूरा-दलान
सुमंत
(मगही लेखक)
आज
विज्ञान केतना तरक्की करलक हे, इ बात केकरो से नुक्कल-छिप्पल नऽ हे । चाँद पर अदमी
कहिंए पहुँच गेलन । अंतरिक्ष में जाके वैज्ञानिक सभे एक पर एक प्रयोग कर रहलन हे ।
अब तो अंतरिक्ष में आम अदमी के जाए लेल भी बुकिंग हो रहल हे । घर में रखल टी० वी० देश-दुनिया
के दर्शन घर बइठल करा रहल हे आउ मोबाइल, उ तो सचो दुनिया के मुट्ठी में कैद कर लेलक
हे । तइयो लोग अझो अंधविश्वास के जाल में इ कदर से अझुराएल-पझुराएल हथ कि निकलना मोस्किल
जान पड़ऽ हे । आझो लोग भूत-प्रेत, ओझा-डाइन, पीर-फकीर पर आँख मून के विश्वास करऽ हथन
। कुछ लोग इ सोंच हथन कि अंधविश्वास अनपढ़-गँवार के मन में बेसी होवऽ हे, बाकि अइसन
बात हेऽ नऽ । ढेर पढ़ल-लिखल अदमी भी एकर फेरा में पड़ के अप्पन जिनगी में जहर धोरे के
काम कर रहलन हे । शहर से बेसी देहात में अंधविश्वास अप्पन जड़ी करमी के साग लेखा सगर
फैलौले हे ।
शहर
में जगह के कमी होवे के चलते ढेर छोट-मोट देवी-देवता न रह पौलन, बाकि गाँव-देहात में
आझो हथन । देवी मईया, ब्रह्म बाबा, गोरइया-डिहवार से लेके आउ कउन-कउन.... ? गाँव में
कोई मामूली दावा-वीरे करे वाला डाक्टर रहथन इया नऽ रहथन, झाड़-फूंक, गण्डा-ताबिज करेवाला
ओझा-गुणी जरूर भेंटा जतन । जिनकर रोटी आझो मजे में अंधविश्वास के तावा पर सेंका रहल
हे । उनकरा भीर सभे रोग के दवाई हे । उनकरा प्रचार लेल रेडियो-टीवी-अखवार में विज्ञापन
के कउनो जरूरत नऽ हे । बस मुँहा-मुँही उनकर प्रचार हो जाहे । सुनऽ ही हैजा-प्लेग-चेचक
जइसन महामारी गाँव के गाँव उजाड़ के रख देवऽ हल, ओकर जड़ी में अंधविश्वास हल । लोग के
लगऽ हल, इ महामारी कउनो बेमारी न दैवी प्रकोप हे, जेकर इलाज कोई ओझा-गुणी कर सकऽ हे
। इ हे फेरा में दू-चार, दस-बीस अदमी के जान का जा हल अदमी गाँव छोड़ के दोसरा जगह भाग
जा हलन । तब सचो में मेडिकल साइंस एतना उन्नत न हल । आज समय बदलल हे । लोग बेमारी के
इलाज लेल डाक्टर भीर जा हथ । तइयो ढेर अइसनो हथन जे दवा-विरो के साथे-साथे झाड़-फूंक
भी करवावऽ हथ । भले एकरा से कउनो फैदा नऽ होवे ।
मन के शान्ति लेल पूजा-पाठ जरूरी हे ।
अज्ञानता दूर करे लेल गुरूजी के शरण में जाना भी जरूरी हे । एकर मतलब इ नऽ हे कि पूजा-पाठ
के नाम पर लाखो लूटावल जाए । गुरू के नाम पर बनौरी बाबा क गोड़ पूजाए लगे । अब जरा दिल-दिमाग
से सोंचथिन - आज बाबा के नाम पर केतने लोग व्यापार कर रहलन हे आउ लोग ऑख रहते अंधा
बना के लूटा रहलन हे । इ नया जमाना के पनपल नया अंधविश्वास हे । एकरा में अनपढ़ से बेसी
पढ़ल-लिखल लोग अप्पन कमाई के पइसा आउ समय गँवा रहलन हे । अंधभक्ति केतने के अंधार में
ढकेल रहल हे । केतने बाबा के आश्रम में अवैध धंधा चल रहल हे, बाबजूद अंधविश्वासी लोग
अंधराएल दउड़ लगा रहलन हे । एकरा से बचे के जरूरत हे । कबीरदास ठीके कहलन हे-
पाहन
पूजै हरि मिलै, तो मैं पूजूँ पहाड़ ।
ताते
से चक्की भली पीस खाय संसार । ।
भाई-बहिन-बेसी
हम का कहिओ ?
प्रकाशित,
प्रभात खबर-21-07-2015
मगही
[03]
दूरा-दलान
सुमंत
(मगही लेखक)
हमनी
भारत के रहवईया ही, ई बात के हमनी के गुमान हे । बाकी ई बात के मन में अफसोस भी हेऽ
कि पढ़ाई-लिखाई के ममला में हमनी आझो दोसर देश के तुलना में पाछे ही । आझो अपना हिंआ
के चालीस फिसद आबादी ठेप्पा बोर हे । खास करके मेहरारू सभे पढ़ाई-लिखाई में बेसी पछूआएल
हथन । सरकार तरफ से पूरा जोर लगावल जा रहलक हे कि कोई जतन पूरा देश पढ़-लिख जाए । पढ़
भी रहलन हे, इ बात के मन में खुशी हे, बाकी जब पढ़ल-लिखल अदमी भी पुरान परम्परा के पाछे
पगला जा हथन, तऽ मन कचोट के रह जाहे । भूत-भूतंगड़,
ओझा-डाईन के नाम पर अबला मेहरारू के बाल मुड़ा के लंगे गाँव घुमावे के बात पर एक्को
पाई विश्वास तो नऽ होवऽ हे, बाकी केतने जगह पर आझो इ तरह के घटना हो जा हे । लोग सरपंच
जी के फैसला मानथन कि न, आझो केतने लोग हथन जे समाज के फैसला माने लेल मजबूर हथन ।
सामाजिक फैसला आगू थाना-पुलिस, कोर्ट-कचहरी कुछो नऽ काम करऽ हे । इ तरह के काम तथाकथित
समाज के मुट्ठी भर लोग करऽ हथन, बाकी बदनामी तो पूरे समाज के होवऽ हे । इहां हम अपने
सभे से कुछ अइसने परम्परा के बात करल चाहऽ ही ।
गयाजी के मैनचेस्टर कहे जाएवाला पटवा टोली
अब आईआईटीअन के हव हो गेलक हे । आज के तारीख में पटवा टोली के लगभग सभे घर में आईआईटी
इन्जिनियर हो गेलन हे । अब तो हिआं के लइकन सिविल सेवा परीक्षा में भी धाजा लहरावे
लगलन हे । बाबजूद एकर पटवा समाज पुरान परम्परा में अझुराएल-पझुराएल हे । इहाँ आझो सामाजिक
दंड के आधार पर दोषी के हुक्का-पानी बंद कर देवल जा हे । बाल विवाह के साथे वैवाहिक
संबंध अपने समाज में करे के परम्परा हे । इ परम्परा तोड़े के मतलब हे - समाज के नजर
में गिर जाना । गयाजी दुनिया में मोक्षधाम के रूप में जानल जा हे । इहॉ रहेवाला गयावाल
पण्डा समाज आझो पुरान परम्परा के ढो रहलन हे । पण्डा समाज में बेटी के विवाह अंदरे
गया भर में होवऽ हे । समाज से बाहरे निकल के बेटी विआहना सामाजिक अपराध हे । हिआं ढेर
जाति अइसन हथन, जहॉ विधवा विवाह नऽ होवे । अब उ बाल विधवा भी काहे नऽ रहे । समाज में
विधवा के नऽ खाली नीच नजर से देखल जा हे बिलुक कोई शुभ काम में उनकर परछाईं पड़ना भी
अशुभ मानल जा हे । हद के बात तो इ हे कि उ अप्पन बेटा-बेटी के विआह के वैवाहिक काम
भी अपने नऽ कर सकऽ हथन । ई परम्परा अब ले ढोवा रहल हे । समाज में आझो इ बात घर कैले
हे कि बिना बेटा के भव सागर पार उतरना मोस्किल हे । मोक्ष प्राप्ति लेल जरूरी हे कि
बेटा के हाथे पिण्डा पारल जाए । बेटा के चाह में कन्या भ्रूण हत्या के साथे आबादी भी
बढ रहल हे, जे न खाली पर-परिवार, समाज लेल बिलुक देश-दुनिया लेल बोझा हे । पढ़ल लिखल
लोग पुरान परम्परा के पाछे पगलाएल दउड़ मारथन, समाज लेल इ निमन बात नऽ हे । एकरा पर
सभे के मिलजुल के विचार करल जरूरी हे ।
प्रकाशित,
प्रभात खबर दैनिक-28-07-2015
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