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Thursday, May 12, 2016

मगही दूरा-दलान - जुलाई 2015 में प्रकाशित लेख



मगही
[01] दूरा-दलान


सुमंत (मगही लेखक)         

जहिंआ से होश सम्हारली, सुनते आ रहली हे-अप्पन देश भारत गाँव के देश हे । जहाँ के सतर फिसद आबादी खेती-बारी करेवालन किसान-मजूर के हे । अब ले इहे बात सुन रहली हे । अपने सभे के भेजा में भी इहे बात भरल गेल होतई । बात सच भी हे । बाकि मन में कसक इ बात के हेऽ कि आज दुनिया कहाँ से कहाँ चल गेल । अदमी केतना बच्छर पहिले चन्दा मामू के छाती पर गोड़ रख ऐलन । कउनो बुरा काम नऽ करलक । बाकि कुछ भेंटाएल भी तो नऽ । अदमी के अंदाजा हल कि रात के चमचम चमके वाला चाँद ऊपरे सोना-चाँदी के भंडार होएत, बाकि कुछो हाथ न लगल । ठीक ओसहीं जइसे आजादी के बाद सभे के इ लगल हल कि अप्पन देश के किसान-मजूर के हालत सुधरत । गरीब किसान-मजूर खुशहाल हो जएतन । बाकि अइसन होएल कहाँ ? किसान-मजूर के हाल आझो बेहाल हेऽ । दोसरा के पेट भरे ला अनाज उपजावे वाला ढेर किसान के हालत इ हे कि खुद उनकरे पेट निमन से न भरल रहल हे । खेती करे लेल नया-नया औजार के इजाद होएलक, बेसी पैदावार लेल उन्नत किस्म के बीज बनावल गेल, एक पर एक रासायनिक खाद, किटनाशी दवाई...... बाबजूद एकर किसान-मजूर के हालत आझो जस के तस बनल हे । गाँव से हल-बैल उपह गेल । ट्रैक्टर आउ पावर टेलर के आवे से खेत के जोताई आसान तो हो गेल, बाकि जर-जनावर के रहला से जउन कम्पोस्ट तइयार होवऽ हल, अब कहाँ ? जानवर के नाम पर पहिले बैल-भइंसा के साथे दूधारू गाय-भइंस भी किसान रखऽ हलन । दूध-दही के कउनो कमी नऽ होवऽ हल । खेत के पटवन लेल जबसे डिजल-मोटर आएल अहरा-पोखरा-पईन दिन पर दिन सब इया तो खतम हो गेल । अहरा-पोखरा-पईन के सफाई लेल पहिले गोमाम होवऽ हल । गाँव के सभे लोग श्रमदान से अहरा-पोखरा के सफाई करऽ हलन । अब नाम के सरकारी ठेका होवऽ हे । समय पर वर्षा न होवे से किसान के अलगे परेशानी हे । धान अइसन फसल के रोपाई लेल वर्षा जरूरी हे । डिजल-मोटर के भरोसे एकर रोपाई सम्भव न हे । किसान तो एकदम से बेचारा बन के रह गेलन हे । जउन फसल किसान पैदा करऽ हथन, बजार में ओकर भाव कम रहऽ हे आउ रोपे के बेर ओकर बिचड़ा लेवे में निमन-निमन किसान के दम छूट जा हे । सरकारी मदद बीचे में बिचौलिया चट कर जा हथ । खाद के कलाबाजारी आम बात हे । व्यापारी जान के खाद के किल्लत पैदा कर देवऽ हथन आउ किसान से बेसी पइसा वसुलऽ हथ । आबादी बढला से खेत के जोत कम हो गेलक हे, इ चलते भी किसान-मजूर के हालत खराब होएलक हे । हम्मर बस एतने निहोरा हे कि जउन हमनी इ बात के स्वीकारऽ ही कि अप्पन देश भारत किसान-मजूर के देश हे, तब किसान-मजूर के बेहाल हालत के सुधारे के सख्त जरूरत हे आउ जबला देश के किसान-मजूर खुशहाल न रहतन, देश खुशहाल न रह पौतक । लाल बहादुर शास्त्री जी क देले जय जवान जय किसान खाली नारा से काम न चलत, जरूरत हे - किसान-मजूर के हालत सुधारे लेल जमीनी काम करे के ।

प्रकाशित, प्रभात खबर-14-07-2015
   
मगही
[02] दूरा-दलान


सुमंत (मगही लेखक)          

आज विज्ञान केतना तरक्की करलक हे, इ बात केकरो से नुक्कल-छिप्पल नऽ हे । चाँद पर अदमी कहिंए पहुँच गेलन । अंतरिक्ष में जाके वैज्ञानिक सभे एक पर एक प्रयोग कर रहलन हे । अब तो अंतरिक्ष में आम अदमी के जाए लेल भी बुकिंग हो रहल हे । घर में रखल टी० वी० देश-दुनिया के दर्शन घर बइठल करा रहल हे आउ मोबाइल, उ तो सचो दुनिया के मुट्ठी में कैद कर लेलक हे । तइयो लोग अझो अंधविश्वास के जाल में इ कदर से अझुराएल-पझुराएल हथ कि निकलना मोस्किल जान पड़ऽ हे । आझो लोग भूत-प्रेत, ओझा-डाइन, पीर-फकीर पर आँख मून के विश्वास करऽ हथन । कुछ लोग इ सोंच हथन कि अंधविश्वास अनपढ़-गँवार के मन में बेसी होवऽ हे, बाकि अइसन बात हेऽ नऽ । ढेर पढ़ल-लिखल अदमी भी एकर फेरा में पड़ के अप्पन जिनगी में जहर धोरे के काम कर रहलन हे । शहर से बेसी देहात में अंधविश्वास अप्पन जड़ी करमी के साग लेखा सगर फैलौले हे ।
शहर में जगह के कमी होवे के चलते ढेर छोट-मोट देवी-देवता न रह पौलन, बाकि गाँव-देहात में आझो हथन । देवी मईया, ब्रह्म बाबा, गोरइया-डिहवार से लेके आउ कउन-कउन.... ? गाँव में कोई मामूली दावा-वीरे करे वाला डाक्टर रहथन इया नऽ रहथन, झाड़-फूंक, गण्डा-ताबिज करेवाला ओझा-गुणी जरूर भेंटा जतन । जिनकर रोटी आझो मजे में अंधविश्वास के तावा पर सेंका रहल हे । उनकरा भीर सभे रोग के दवाई हे । उनकरा प्रचार लेल रेडियो-टीवी-अखवार में विज्ञापन के कउनो जरूरत नऽ हे । बस मुँहा-मुँही उनकर प्रचार हो जाहे । सुनऽ ही हैजा-प्लेग-चेचक जइसन महामारी गाँव के गाँव उजाड़ के रख देवऽ हल, ओकर जड़ी में अंधविश्वास हल । लोग के लगऽ हल, इ महामारी कउनो बेमारी न दैवी प्रकोप हे, जेकर इलाज कोई ओझा-गुणी कर सकऽ हे । इ हे फेरा में दू-चार, दस-बीस अदमी के जान का जा हल अदमी गाँव छोड़ के दोसरा जगह भाग जा हलन । तब सचो में मेडिकल साइंस एतना उन्नत न हल । आज समय बदलल हे । लोग बेमारी के इलाज लेल डाक्टर भीर जा हथ । तइयो ढेर अइसनो हथन जे दवा-विरो के साथे-साथे झाड़-फूंक भी करवावऽ हथ । भले एकरा से कउनो फैदा नऽ होवे ।
            मन के शान्ति लेल पूजा-पाठ जरूरी हे । अज्ञानता दूर करे लेल गुरूजी के शरण में जाना भी जरूरी हे । एकर मतलब इ नऽ हे कि पूजा-पाठ के नाम पर लाखो लूटावल जाए । गुरू के नाम पर बनौरी बाबा क गोड़ पूजाए लगे । अब जरा दिल-दिमाग से सोंचथिन - आज बाबा के नाम पर केतने लोग व्यापार कर रहलन हे आउ लोग ऑख रहते अंधा बना के लूटा रहलन हे । इ नया जमाना के पनपल नया अंधविश्वास हे । एकरा में अनपढ़ से बेसी पढ़ल-लिखल लोग अप्पन कमाई के पइसा आउ समय गँवा रहलन हे । अंधभक्ति केतने के अंधार में ढकेल रहल हे । केतने बाबा के आश्रम में अवैध धंधा चल रहल हे, बाबजूद अंधविश्वासी लोग अंधराएल दउड़ लगा रहलन हे । एकरा से बचे के जरूरत हे । कबीरदास ठीके कहलन हे-
पाहन पूजै हरि मिलै, तो मैं पूजूँ पहाड़ ।
ताते से चक्की भली पीस खाय संसार । ।
भाई-बहिन-बेसी हम का कहिओ ?

प्रकाशित, प्रभात खबर-21-07-2015

मगही
[03] दूरा-दलान


सुमंत (मगही लेखक)

हमनी भारत के रहवईया ही, ई बात के हमनी के गुमान हे । बाकी ई बात के मन में अफसोस भी हेऽ कि पढ़ाई-लिखाई के ममला में हमनी आझो दोसर देश के तुलना में पाछे ही । आझो अपना हिंआ के चालीस फिसद आबादी ठेप्पा बोर हे । खास करके मेहरारू सभे पढ़ाई-लिखाई में बेसी पछूआएल हथन । सरकार तरफ से पूरा जोर लगावल जा रहलक हे कि कोई जतन पूरा देश पढ़-लिख जाए । पढ़ भी रहलन हे, इ बात के मन में खुशी हे, बाकी जब पढ़ल-लिखल अदमी भी पुरान परम्परा के पाछे पगला जा हथन, तऽ मन कचोट के रह जाहे ।  भूत-भूतंगड़, ओझा-डाईन के नाम पर अबला मेहरारू के बाल मुड़ा के लंगे गाँव घुमावे के बात पर एक्को पाई विश्वास तो नऽ होवऽ हे, बाकी केतने जगह पर आझो इ तरह के घटना हो जा हे । लोग सरपंच जी के फैसला मानथन कि न, आझो केतने लोग हथन जे समाज के फैसला माने लेल मजबूर हथन । सामाजिक फैसला आगू थाना-पुलिस, कोर्ट-कचहरी कुछो नऽ काम करऽ हे । इ तरह के काम तथाकथित समाज के मुट्ठी भर लोग करऽ हथन, बाकी बदनामी तो पूरे समाज के होवऽ हे । इहां हम अपने सभे से कुछ अइसने परम्परा के बात करल चाहऽ ही ।
            गयाजी के मैनचेस्टर कहे जाएवाला पटवा टोली अब आईआईटीअन के हव हो गेलक हे । आज के तारीख में पटवा टोली के लगभग सभे घर में आईआईटी इन्जिनियर हो गेलन हे । अब तो हिआं के लइकन सिविल सेवा परीक्षा में भी धाजा लहरावे लगलन हे । बाबजूद एकर पटवा समाज पुरान परम्परा में अझुराएल-पझुराएल हे । इहाँ आझो सामाजिक दंड के आधार पर दोषी के हुक्का-पानी बंद कर देवल जा हे । बाल विवाह के साथे वैवाहिक संबंध अपने समाज में करे के परम्परा हे । इ परम्परा तोड़े के मतलब हे - समाज के नजर में गिर जाना । गयाजी दुनिया में मोक्षधाम के रूप में जानल जा हे । इहॉ रहेवाला गयावाल पण्डा समाज आझो पुरान परम्परा के ढो रहलन हे । पण्डा समाज में बेटी के विवाह अंदरे गया भर में होवऽ हे । समाज से बाहरे निकल के बेटी विआहना सामाजिक अपराध हे । हिआं ढेर जाति अइसन हथन, जहॉ विधवा विवाह नऽ होवे । अब उ बाल विधवा भी काहे नऽ रहे । समाज में विधवा के नऽ खाली नीच नजर से देखल जा हे बिलुक कोई शुभ काम में उनकर परछाईं पड़ना भी अशुभ मानल जा हे । हद के बात तो इ हे कि उ अप्पन बेटा-बेटी के विआह के वैवाहिक काम भी अपने नऽ कर सकऽ हथन । ई परम्परा अब ले ढोवा रहल हे । समाज में आझो इ बात घर कैले हे कि बिना बेटा के भव सागर पार उतरना मोस्किल हे । मोक्ष प्राप्ति लेल जरूरी हे कि बेटा के हाथे पिण्डा पारल जाए । बेटा के चाह में कन्या भ्रूण हत्या के साथे आबादी भी बढ रहल हे, जे न खाली पर-परिवार, समाज लेल बिलुक देश-दुनिया लेल बोझा हे । पढ़ल लिखल लोग पुरान परम्परा के पाछे पगलाएल दउड़ मारथन, समाज लेल इ निमन बात नऽ हे । एकरा पर सभे के मिलजुल के विचार करल जरूरी हे ।
प्रकाशित, प्रभात खबर दैनिक-28-07-2015 

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