मगही
[04] दूरा-दलान
सुमंत
(मगही लेखक)
मुम्बई
ब्लास्ट के दोषी याकूब मेनन के फांसी होवे का बाद एक बेर फिन से अप्पन देश में बहस
छिड़ गेल हे कि फांसी होवे के चाही कि नऽ होवे के चाही । कुछ लोग मानऽ हथन कि फांसी
मानवता के खिलाफ हे, इ बात से हमहूं सहमत ही । इहे कारण हे कि दुनिया के कुछे अंगुरी
पर गिनल-गोथल देश बच गेलन हे, जहां फांसी के सजाय देवल जाहे, जेकरा में अप्पन देश भारत
भी एगो हे । अब अप्पन देश के कानून के किताब में जबले फांसी के प्रावधान हे, फांसी
के सजाय होला पर फांसी पड़वे करत । आगे हम अप्पन बात कही, ओकरा से पहिले एगो हाल में
घटल सच घटना सुनावल चाहऽ ही । इ घटना गया जिला के गुरूआ प्रखण्ड अन्तर्गत एगो गांव
के हेऽ, जहां अप्पन बेटी ओझा के कहला पर अप्पन माय के पेट हंसुआ से फाड़ के ओकर पेट
में कपड़ा में लाल मिचाई के बुकनी, राख, अच्छत बांध के डाल देल आउ फिन मोटका सूई से
माय के पेट गेंदरा लेखा सी देलक । विश्वास न होवऽ हे, बाकि इ घटना सच हे । बेटी इ काहे
ला कैलक ? बतलावऽ ही- बिआह के कैकन बच्छर बीतला के बादो ओकरा बाल-बच्चा न होवऽ हल ।
ओझा बतौलक हल कि इ करला से तोर गोदी भर सकऽ हे । अंधविश्वास के जाल में अझुराएल बेटी
उ काम करलक जे अदमी मन में सोंच तक न सकऽ हे । घटना के जानकारी भेंटैला पर गांव के
अदमी ओकर माय के मेडिकल कालेज अस्पताल लौलन, बाकि उनकरा बचावल नऽ जा सकल । मौत के मुंह
में समाएल माय मरते दम तक अप्पन बेटी के निर्दोष बता रहल हल । वाह रे माय के ममता आउ
दोसरा तरफ बेटी के अंधविश्वास । ई तरह के घटना आझो घर-परिवार-समाज में घट रहल हे ।
का ई मानवता के खिलाफ नऽ हे । अइसन ढोंग-अंधविश्वास के बढ़ावा देवेवाला ओझा-गुणी के
जबले फांसी हे, फांसी अइसन सख्त सजाय न देवे के चाहि-का ? बाकि समस्या इ बात के हे
कि अइसन के सजाय देवे लेल गोवाह कहां से भेंटैतन ? कानून बिना गोवाह के कुछ कर न सकऽ
हे । बिना गोवाही के थाना-पुलिस करला पर महीना-दू महीना के सजाए तो हो सकऽ हे, बाकि
फांसी नऽ । समाज में अंधविश्वास फैलावे वालन के कमी न हे । इ सभे अंधविश्वासे के रोटी
पर शान के जिनगी जीअ हथन । जबले समाज में अंधविश्वास फैलावे वालन के फांसी अइसन सख्त
से सख्त सजाय न भेंटात, अंधविश्वास न रूकत । अंधविश्वास के रोके लेल केतने संगठन काम
कर रहल हे । गांव-गांव घुम-घुम के लोग के समझा-बूझा रहलन हे, बाबजूद एकर अंधविश्वास
के कुछ अइसन घटना सामने आवऽ हे, जेकर कल्पना अदमी सपनो में न कर सकऽ हथन । इ चलते आज
जहां अदमी फांसी के सजाय पर रोक लगावे के बात कर रहलन हे-हम एतने बात कह रहली हे कि
अंधविश्वास के जड़ मूल से खत्म करे लेल अंधविश्वास के ठेकेदार के भी फांसी अइसन सख्त
से सख्त सजाय होवे के चाही, जबले फांसी के सजाय कानून के किताब में हे ।
प्रकाशित,
प्रभात खबर-04-08-2015
मगही
[05]
दूरा-दलान
सुमंत
(मगही लेखक)
कुछ
लोग जे बेसी पढ़-लिख गेलन हे, उनकर नजर में मगही अप्पन माय के नऽ गाँव-देहात में बसे
वालन ठेंठ गँवार के गँवारू बोली हे । मगही बोलला से सर-समाज में उनकर मान-सम्मान पर
ठेंस लगऽ हे । ई चलते जान के भी उ लोग मगही बोले से परहेज करऽ हथन । इ तो मगही लेल
बड़ जुलुम के बात हे । जउन अदमी खुद अपने मगही बोले से परहेज करतन, वाजिब बात हे कि
उनकर अगिला पीढी के बाल-बच्चा तो मगही एकदमे न सीख पौतन, फिन बोलतन कहाँ से । तब अइसन
में एगो विकट सवाल मन के कोना में उठऽ हे कि मगही दुनिया के केतने दोसर विलुप्त होईत
भाषा नियन एकदिन विलुप्त हो जाएत का ? हम आशावादी ही इ चलते हम तो इहे कहवई कि नऽ अइसन
होवे के रहतक हल तऽ अब ले मगही कहिंए उपह जाएत हल । इ केतने तरह के झंझावत आउ दंश झेलल
हे, बाकी अजगुत ई बात के हे कि अप्पन मगही आझो जस के तस जिन्दा हे । कोई राजा-महाराजा
इया शासन-प्रशासन के कृपा से नऽ, अप्पन मगहिया माटी के जुड़ाव से । मगही किताब के पन्ना
में कम आउ मगहियन में रग-रग में बेसी करके अइसन रचल-बसल हे कि एकरा एक देसरा से अलग
ओइसहीं न करल जा सकऽ हे- जइसे दूध आउ पानी के । आदिकाल से लेके आजतक मगही के बोलताहर-लिखताहर
भेंटा हथन । हिन्दी साहित्य के आदिकाल में सिद्ध-साहित्य के चौरासी सिद्ध के जिकीर
राहुल सांकृत्यायन करलन हे । इ चौरासी सिद्ध में बेसी करके कवि मगहिया हलन आउ उनकर
रचना आज के मगही से मेल खा हे । चौरासी सिद्ध कवि के सिरमौर कवि सरहपाद हथन, जिनकरा
सरहपा, सरोजवज्र, राहुलभद्र नाम से भी जानल जाहे आउ एतने नऽ इनकरा ढेर आलोचक हिन्दी
साहित्य के आदिकवि भी मानऽ हथन, के रचना में भी मगही के प्रभाव देखल जा सकऽ हे ।
संस्कृत
के विद्वान कहलन हे-सब्बेसां मूल भाषाय मगधाय निरूतिया । माने सभे भाषा के मूल मगही
हे । कवि कच्चान भी कहलन हे-सा मागधी मूल भाषा । माने मागधी मूल भाषा हे । बाद में
दोसर तेसर भाषा के उत्पति होएल । मिलाजुला के इ बात बिना लाग-लपेट के कहल जा सकऽ हे
कि मगही पुरान भाषा हे, जेकर मान बढ़ावे के जरूरत हे । इ बात सही हे कि मगही साहित्य
में संस्कृत के महाकवि कालिदास, अवधि लेखा रामचरितमानस लिखेवाला गोस्वामी तुलसीदास,
ब्रजभाषा के कवि सूरदास, मैथिली के महाकवि विद्यापति.. पैदा नऽ लेलन, तईयो मगही अप्पन
पहचान आझो जस के तस बनौले हे । लोग के मुँहा-मुँही से हम सुनली हे-जउन बेटी आउ बोली
के बचा के रखऽ हथन, उनकर कोई बाल-बाँका न कर सकऽ हे । मगहियन के साथे इहे होएल । इ
जहाँ कहीं भी गेलन बेटी आउ बोली के बचा के रखलन । जेकर परिणाम आज इ हे कि अप्पन देश
के केतने राज्य आउ दुनिया के केतने देश में मगहिया भई-बहिन भेंटा जैतन, जिनकर असली
पहचान रंग-रूप, पेहनाव-ओढावा, खान-पिअन नऽ मगही बोली आउ भाषा से होवऽ हे । अब मगही
के नाम से अप्पन नाक-मुँह सिकोड़े वालन भाई-बहिन से हम हथजोड़ी करके बेसी कुछ नऽ, खाली
एतने कहवई-मगही बोले-बतिआए में शरम कइसन ???
प्रकाशित,
प्रभात खबर-11-08-2015
मगही
[06]
दूरा-दलान
सुमंत
(मगही लेखक)
ई
बात सोलहो के सोलहो आना सच हेऽ कि आधुनिकता के चकाचौंध दादा राज से चलल आ रहल पुरान
परम्परा के दिन पर दिन गारत में मिला के एकदम से मटियामेट करते जा रहल हे । अप्पन देश
भारत दुनिया भर में अप्पन खास सभ्यता-संस्कृति आउ परम्परा लेल आझो जानल जा हे । इहाँ
के खान-पीअन, पेहनाव-ओढावा, रहन-सहन, बोल-चाल, परब-त्योहार, आचार-विचार, रीति-रेवाज
आउ परम्परा के अप्पन महातम हे । इहाँ हिन्दी के हर महीना चाहे उ जेठ के तपईत दुपहरिया
होवे कि माघ के कनकनी, चाहे भादो के घुंच अन्हरिया रात, फागुन के फगुनाहट होवे इया
फिन मनभावन सावन के रिमझिम पड़ईत फुहार सभे के अप्पन अलगे पहचान हेऽ । खास महीना में
खास परब-त्योहार के साथे खास रीति-रेवाज आउ परम्परा प्रचलित हेऽ ।
मनभावन सावन महीना चल रहल हे । सउँसे धरती
हरिआएल हे । जहाँ भी नजर उठा के देखऽ कच-कच हरिअरी लौकत । अब उ पेड़-बगान होवे कि खेत-खरिहान
। इ घड़ी अहरा-पोखरा, नदी-नाला सभे में जवानी हिलोर मारे लगऽ हे । आसमान में उमड़ईत-घुमड़ईत
बदरी आउ बरसा के फूहार तन-मन के तर कर देवऽ हे । अइसन में सावन महीना के चर्चा नऽ करल
जाए, तऽ तो ई बेईमानी होवत । ई चलते हम सावन महीना के चर्चा करल चाहऽ ही । मनभावन सावन
महीना में संगी-सहेली साथे चिड़ई-चुरगुन नियन चहकईत आम के बगीचा में लगल झुलूआ पर पेंघा
मारईत कजरी गावे के परम्परा अब जब गाँव-देहात
में नऽ रहल तऽ शहर के बात का करिओ ? इ परम्परा अप्पन आखरी साँस गिनईत खतमे खतम हे ।
लोग इहे महीना में जंगल-पहाड़-झरना पर जाके समूह में वनभोज मनावऽ हलन । मिलजुल के मजे
से नेहान-धोवान करके खीर-पुड़ी के साथे आलूदम के मजा अंगुरी चाट-चाट के लेवऽ हल । अब
वनभोज लेल जंगल-पहाड़-झरना कहाँ, बड़का-बड़का रेस्टूरेंट खुलल हे, जहाँ जाके लोग देशी-विदेशी
व्यंजन के मजा ले हथन । महीना सावन के रहे कि भादो के कि कोई और महीना । सावने महीना
में नया बिआहल लड़की के नईहर में ससुराल से सावनपुरिया जा हल । जेकर केतना तैयारी होवऽ
हल । अब कहाँ ? अब तो बिआहे घड़ी सबकुछ साथे हो जाहे । आन-जान, खान-पीअन सब फ्री । भर
सावन महीना घरा-घरी मांस-मछली का लहसुन-प्याज तक पर पाबंदी लग जा हल । रोज शिव मंदिर
में बेलपत्र चढ़ैले बिना पेट पूजा के मनाही हल । अब तो केतने गाँव अइसन हो गेल जहाँ
बेल के पेड़ कहाँ ? धरम में आस्था रखेवालन सोमवार के सोमवारी करऽ हथन । सावन महीना में
काँवर लेके बाबाधाम जाएवालन के भीड़ दिन पर दिऩ बढ़ल हे । अब इ भगवान शिव के प्रति बढ़ईत
आस्था हे कि आधुनिकता के चकाचौंध, इ विचार करेवाला बात हे । सावने महीना हल जब गाँव-घर
के लड़की सभे मेंहदी के पता के कूट-पीस के हाथ में मेंहदी लगावऽ हलन । अब तो नामी-गिरामी
कम्पनी वालन बजार में मेहदी बारहो महीना बेच रहलन हे आउ लगावे वालन लगा भी रहलन हे
। अब मेंहदी लगावे के परम्परा इ आधुनिक युग में फैशन के रूप ले लेलक हे ।
माने अंतिम में ठोक-ठेंठा के इ बात बिना
लाग-लगाव के कहल जा सकऽ हे कि सचों में आधुनिकता के चकाचौंध में पुरान परम्परा मटियामेट
हो रहल हे ।
प्रकाशित,
प्रभात खबर-18-08-2015
मगही
[07]
दूरा-दलान
सुमंत
(मगही लेखक)
ई
बात बिना लाग-लपेटा के कहल जा सकऽ हे कि आज लोग-बाग मोबाईल के दुनिया में जी रहलन हे
। जउन कउनो कारण से मोबाईल एकबाएक काम करना बंद कर देवे, तब तेजी से भागइत-दउड़इत दुनिया
के रफ्तार पर ब्रेक लग जाएत आउ केतने के जान-प्राण छटपटा के रह जाएत । हर हाथ में मोबाईल,
अभी होएल कि नऽ बाकी इ बात के पूरा पूरी गरेन्टी दे सकली हे कि हर घर में मोबाईल हो
चुकल हे । अदमी अमीर होवे कि गरीब, पढ़ल-लिखल होवे कि निठाह अनपढ़-गँवार, बूढ़ होवे कि
जवान, मेहरारू होवे कि मरद, लड़का होवे कि लड़की सभे भीर मोबाईल भेंटा जाएत । इ छोटहन
मोबाईल वरदान हेऽ कि अभिशाप इ एगो विचार करेवाला बड़ी काड़ा प्रश्न हे ? हमरा निमन से
इयाद हे कि छठा-सतमा से लेके नौवा-दसमा तक विज्ञान-वरदान या अभिशाप विषय पर लेख लिखे
ला कहल जा हल । अब तो पढ़ाई के रंग-रूप एतने न बदल गेलक हे कि अब कउन तो लेख लिखऽ हथन
। खत्म हो गेल लेख लिखाई, चिट्ठी-पतरी लिखे पर तो ई मोबईलवा एकदम से शैतीन बन के रोक
लगा देलक । न तो आज जे लेख लिखे के परम्परा जिन्दा रहईत, तऽ मोबईल-वरदान या अभिशाप
विषय पर जरूर लेख लिखाएत हल । खैर ! कउनो बात नऽ हे-उलट-पलट प्रकृति के नियम हे । मोबाईल
देखे में तो हेऽ एकदम से छोटहन गो चीज, बाकी अपने में पूरा दुनिया के समेटले रहऽ हे
। बशर्ते मोबाईल में पईसा आउ नेटवर्क रहे । कोई केतने दूर रहथन, सेकण्डो न लगे आउ हाय-हैलो
शुरू । का बनौलऽ, का खएल से लेके आउ का-का...... । एतने नऽ आजकल सभे चीज मोबाईल में
समाएल हेऽ-रेडियो, टीवी, विडियो, इन्टरनेट । घर बइठल, राह चलते, खेत-बधार जहाँ पावऽ
शुरू हो जा, कउनो तरह के समस्या नऽ हे । मोबाईल वरदान हेऽ कि अभिशाप, एकरा पर ढेर लोग
अप्पन माथा-पेंची कर रहलन हे । बाकी हम अपना तरफ से इ कहल चाहऽ ही कि मोबाईल वरदान
रहे कि अभिशाप इ एकदम से झूठ के खजाना हे । घर में घुसिआएल रहऽ आउ दुहारी पर खाड़ अदमी
के आँख में धूरी झोंकईत कह दऽ कि हम तो अभी जरूरी काम से दिल्ली-ढाका निकलल ही, काम
बन जाएतो । ड्यूटी में देरी होएला पर अप्पन बॉस के मोबाईल टुनटुना के कउनो बहाना बना
दऽ । अब जहाँ जउन चीज से फैदा हेऽ नुकशान भी कुछ न कुछ होएवे करत । चोर-लफंगा लेल मोबाईल
निमन काम करऽ हे, बाकी जबकभी मोबाईले गल्ला के फॉस बन जाहे । एकरे लोकेशन पर केते बेर
पुलिस गुण्डा-बदमाश के अप्पन गिरिफ्त में ले लेवऽ हे । युवा प्रेमी सभे लेल मोबाईन
उनकर दिल के फोंफी से कम न हे । बेधड़क अप्पन मन के बात कहऽ, बिना कउनो प्रोबलेम के
। ई मोबाईल दिल के दूरी एकदम से ओसही कम कर देलक जइसे वामन भगवान तीने डेग में आकाश
से लेके पाताल नाप देलन हल । मोबाईल अदमी लेल विज्ञान के देल एगो अदभूत उपहार हे, जेकरा
में गुण के साथे अवगुण भी हे । अब जौ के साथे घुन के पिसायवाला कहउत बड़ पुरान हे ।
मोबाईल अदमी लेल वरदान बेसी आउ अभिशाप कम हे ।
प्रकाशित,
प्रभात खबर-25-08-2015
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