विजेट आपके ब्लॉग पर

Friday, May 20, 2016

मगही दूरा-दलान - जनवरी 2016 में प्रकाशित लेख



मगही
[17] दूरा-दलान
सुमंत (मगही लेखक)
अइसे तो दुनिया में आष्ट्रेलिया महादेश के विचित्रताओं के महादेश कहल जाहे, जहां कंगारू अप्पन बच्चा के अप्पन पेट में बनल थैली में लेके घुमऽ हे, यूकिलिप्टस एगो अइसन पेड़ हे जेकर पता कभीओ नऽ झरऽ हे, बाकि छाल साल में एक बेर झर जाहे, आर्टिजन बेल से पानी अपने आप ऊपरे फेंकइत रहऽ हे, आस्टिज नाम के पक्षी जनावर से भी तेज दउड़ लगावऽ हे.... इहे तरह से आउरो बड़ी कुछ हेऽ । अप्पन देश भी अजीबो गरीब हे । दू-दू महीना के छौगो अलगे-अलगे ऋतु हे आउ जाड़ा, गरमी, बरसात के तीन गो अलगे-अलगे मौसम । जाड़ा तऽ खूब जाड़ा, गरमी तऽ खूब गरमी आउ बरसात तऽ एकदम से दहा-बही । माने अइसन अजगुत कि खुद अपने पर विश्वास नऽ होवऽ हे । जाड़ा-पाला में जब नेहाली-कम्बल में घुंस के रात कटऽ हे, तब लगबे नऽ करे कि थोड़े दिन बाद एतने गरमी भी गिरत कि देह से तड़ातड़ पसेना छूटे लगत । पहाड़ी से घिरल अप्पन मगहिया क्षेत्र के तो बाते आउर हेऽ । ठंढा में पारा 3-4 डिग्री तक नीचे गिर जा हे तऽ गरमी में पारा 42-43 के आसपास चढ़ जाहे । माने इ कम अजगुत के बात नऽ हे कि हिआं के रहबईया इ जाड़ा-गरमी में सामंजस्य कइसे बइठावऽ हथन । गरमी तो खैर जइसे-तइसे पार लग जा हे, बाकि जाड़ा, जेकर नामे सुनते हाड़ कांपे लगऽ हे । अभी जाड़ा के मौसम एकदम से उठान पर हे । जाड़ा आगू सूरूज भगवान तक के घूठना टेक देवे पड़ऽ हे । शीतलहरी चलला पर सूरूज भगवान कन्ने लपता हो जा हथ थाह-पता नऽ चले ? जाड़ा में केतने दिन तो सूरूज के दर्शन दुर्लभ हो जाहे । सूरूज नऽ उगला पर लहरी लगा के ठंढाएल गोड़-हाथ के गरमावे पड़ऽ हे । गांव-देहात में तो पोरा-पतई के कउनो कमी नऽ रहऽ हे, बाकि शहर में ? हाड़ कपावेवाला ठंढा में शासन-प्रशासन के तरफ से जगह-जगह अलाव जरावल जा हे आउ लोग ठिठुरइत गोड़-हाथ के सेंक-सांक के दुरूस्त करऽ हथन । लइकन-जवान लेल जाड़ा बेसी फजिहतवाला नऽ हे, बाकि बूढ़ा-बूढ़ी आउ गोरू-जनावर लेल जाड़ा एकदम से जनमार हेऽ । इमें गोरू-जनावर तो अनबोलता हे आउ बूढ़ा-बूढ़ी बोलता होके भी आजकल अनबोलता बनल रहऽ हथन । इनकर सुनेवाला घर में अब कोई कहां हथ ? कुछो बोललन कि बेटा-पुतोह एक्के डांट में बोलती बंद कर देवऽ हथन । पहिले भर जाड़ा बूढ़ा-बूढ़ी लेल बोरसी सहारा रहऽ हल, अब कहां ? धूआं-धक्कड़ से घर खराब होवे के डर जे हे । ढेर घर में अब खटिया भी रहल कहां, जेकर नीचे बोरसी रखल जाए । पक्का के घर हे, तब तो आउरो फजेहत हे । बोरसी लेला से पक्का फूटे के डर हे । अब तो बड़कन घर में पथल लग रहलन हे, जेकरा चलते ठंढा आउरो बढ़ जाहे । बेसी करके बूढ़ा-बूढ़ी अब घर के भार हो गेलन हे आउ ऊपरे से जनमार जाड़ा, माने खाज में खुजली । जेते जल्दी जाड़ा भागे, ओतने निमन । जेतना जाड़ा में बूढ़ा-बूढ़ी के परेशानी ओकरा से बेसी गोरू-जनावर के । जाड़ा में जनावर के देह उतर जाहे । अब उनखरा लेल जूट के बोरा पर भी आफत टूटल हे । हर चीज लेल आजकल सस्ता-सुविस्ता प्लास्टिक के बोरा जे बजार में आ गेलक हे । अब जाड़ा गिरे चाहे पाला गिरे काटे तो पड़वे करत, अब किकुरी लगा के काटऽ कि दांत खटखटा के । अभी एतने पर दम धरऽ ।
प्रकाशित, प्रभात खबर-05-01-2016 

मगही
[18] दूरा-दलान
सुमंत (मगही लेखक)
सच कहिओ! जब गांव के लड़की सभे एक जौरे साइकिल से पढ़े जा हथन, तऽ एकदम से हम्मर जीउ जुड़ा जा हे । अभिओ अप्पन आंख पर विश्वास नऽ होवऽ हे कि इ सच हे कि निंन में देखल कोई सपना । इ सही हे कि अप्पन बिहार अभीओ शिक्षा के ममला में पछूआएल हे आउ मरद से मेहरारू तो आउरो पाछे हथन । बाकि जब से लड़की सभे के पढ़े खातीर सरकार तरफ से साइकिल भेंटाए लगल हे, लड़की सभे पढ़ाई में कउनो तरह के कोताही नऽ कर रहलन हे । लड़की सभे साइकिल से इस्कूल आउ कोचिंग तो जाहीं रहलन हे, साथे-साथे बजार से जरूरत के सर-समान भी साईकिल पर लाद के ला रहलन हे । एक जौरे लड़की सभे के साईकिल चलावित देखला पर इहे बुझा हे कि लड़की अब लड़का सभे से कउनो तरह से कम नऽ हे । कभी लड़की सभे के साइकिल चलावे के एकदम से मनाही हल, तब हाथ पर गिनल-गोथल कोई लड़की साईकिल चलावऽ भी हल, तऽ देखवईया दांत से अंगुरी काट ले हलन । सांझ पहर दूरा-दलान में चरचा के विषय हो जा हल कि आज फलन बाबू के बेटी साइकिल चला रहल हल । आउ आज एक जौरे साइकिल चलावित लड़की अप्पन राज्य बिहार के जइसे खास पहचान बन गेलन हे । कहल जाहे कि एगो लड़की के पढ़ला से पूरा परिवार पढ़ जाहे । अब तो अपना हिआं झुण्ड में लड़की पढ़ रहलन हे । अइसन में उ दिन दूर नऽ रहे वाला हे, जब बिहार में सभे पढ़ लिख जैतन । लड़की सभे के उत्साह देख के ढेर लोग तो इहां तक कहे लगलन हे कि पढ़ाई-लिखाई के ममला में लड़का सभे लड़की से पछूआ रहलन हे । अब लड़की के माय-बाप भी उनकरा पढ़े से रोक नऽ रहलन हे । समझदार माय-बाप लड़की के मैट्रिक छोड़ आईए-बीए तक करवा रहलन हे । लड़का पढ़े कि न पढ़े, बाकि लड़की जउन पढ़ेला चाह रहल हे, ओकर गार्जियन रोक नऽ रहलन हे । एकर पाछे कारण आउरो हेऽ, बाकि लड़की सभे के पढ़ाई जारी रखे में साइकिल के भूमिका अहम  हे, जेकरा सिरे से नकारल नऽ जा सकऽ हे । पहिले गांव के इस्कूल में पढ़ला के बाद लड़की सभे के सामने दोसरा इस्कूल में पढ़े में जउन सबला भारी मोसिबत हल, उ हल आवे जाए के । लड़की सभे के साइकिल इ मोसिबत के दूर कर देल । अब उनकरा लेल दू-चार किलोमीटर कुछ रहहीं नऽ गेल । साइकिल उठौलन आउ दू-चार सखी-सहेली मिलके सोझ हो गेलन । माय-बाप भी निफिकीर । कउनो तरह के चिन्ता नऽ । काहे से कि बेटी अकेले तो हे नऽ । सरकार के देल साइकिल लड़की सभे लेल खाली साईकिल नऽ वरदान साबित हो गेल, जेकर फल आज नऽ कल जरूर भेंटाएत । जरूरत इ बात के हे कि इ तरह के सरकारी योजना के कउनो हाल में खत्म नऽ करल जाए । अब तो लड़की सभे लेल साइकिल वाला इ परयोग दोसर राज्य में भी अपनावल जा रहल हे । सचो एगो खाली हमरे नऽ ढेरे के जीउ जुड़ा जाहे, जब गांव के लड़की सभे एक जौरे साइकिल से पढ़े जा हथन ।
प्रकाशित, प्रभात खबर-12 जनवरी 2016  

मगही
[19] दूरा-दलान
सुमंत (मगही लेखक)
हिन्दी के महीना में कनकनी लेल बदनाम पूस महीना बस अंगुरी पर गिनल-गोथल चार-पांच दिन आउ बचल हे । अब ले पूस पीठा खैलऽ कि नऽ । हमरा तो पूस पीठा के नाम सुनते मुंह पनिया जाहे । नया चाउर के आंटा में किसिम-किसिम के चीज डाल के पीठा बनावल जाहे । आलूवाला पीठा, दालवाला पीठा, खोवावाला पीठा, बेदामवाला पीठा, नारियलवाला पीठा, तीसीवाला पीठा, गुड़वाला पीठा, चीनीवाला पीठा आउ कउन-कउन तरह के पीठा बनावल जाहे, इ तो बनावेवाला पर निर्भर करऽ हे । एतना तरह के पीठा जब एक बेर एक साथे भर थरिया परसा हे, तब मन बहके लगऽ हे कि इ खाउं कि उ खाउं कि सभे एक्के बेर सपेट जाउं । आज बजार में एक पर एक खाय-पीए के समान आएल हे-फास्ट फूड, चाइनिज फूड, बरर्गर, पीजा, मैगी-टैगी आउ केतना चीज जेकर नाम तक हमरा नऽ ओरिया  हे, बाकि खाय के जउन मजा पूस पीठा में मिलऽ हे, दोसरा चीज में उ मजा कहां ? बजारू सामान खाए-पीए से पेट के बेमारी के शिकायत आम हो गेलक हे । अब तो गैष्टिक चीनिया बेमारी से साइदे कउनो घर बचल होएत जहां इ दून्नों में से कोई एगो बेमारी दस्तक नऽ देले होएत । बेसी तेल-मसाला से बनल सामान खैला से मुंह कुछ देरी लेल चटपटा तो जरूर हेऽ बाकि बाद में भोगऽ भोगना । पूस पीठा जेतना मन होवे खा लऽ । सबेरे उठ के बसिऔड़ा भी चढ़ा लऽ, एगो ढेकार तक नऽ ऐतो ? अब पूछबऽ काहे, तब एकर एकदम से सीधा-सीधी जबाब हे । पीठा कउनो घीउ-तेल-डलडा-रिफाइन में थोड़े न छना हे, ई तो पानी में छना हे । एकरे पर एगो खिस्सा इयाद आ गेल । अप्पन मगहिया क्षेत्र के एगो नामी बाबा हलन-झुनुकिया बाबा, जे अयोध्या में रहऽ हलन । एक बेर भंडारा करल । झुनुकिया बाबा के भंडारा में साधु-संत के साथे भक्तन के जुटान एतना न हो गेल कि खाय-पीए के इंतजाम डोले लगल । बाबा के चेला कहलक घीउ खतम हो गेल । झुनुकिया बाबा चेला के सरयू नदी के पानी लावे ला कहलन । आउ कहल जाहे, बाकि के समान सरयू नदी के पानी में बनल । थोड़े देरी लेल अंधविश्वास लगऽ हे, बाकि पूस पीठा जउन बिधि बनावल जाहे, बात सच लगऽ हे ।
            अप्पन मगहिया माटी के भीतर सोना-चांदी-कोयला-लोहा......के भंडार तो भरल नऽ हे, बाकि मगहिया माटी में जउन फसल उपजऽ हे, उ सोना-चांदी से कम नऽ हे । इहे चलते इहां के रहवईया मौसम के अनुसार खाय-पीए के चीज बनावऽ हथन । पूस महीना में पूस पीठा तो बनवे करऽ हे, साथे-साथे चाउर के आंटा में गुड़-तिल-सोंठ-मेथी के साथे बेदाम-गड़ी-छूहाड़ा डाल के लड़ूआ भी बनावल जा हे । इहां पीठा के साथे लड़ूआ के बात न करल बेइमानी होतक । एगो लड़ूआ खैला के बाद का मजाल जे कनकनी बूढ़ा-बूढ़ी के भी जरा मरो सतावे आउ जवान तो जवान हथन । लड़ूआ में भी घीउ-तेल-मसाला कुछो नऽ, एकदम से पूस पीठा नियन निछूक्का । अब तो पीठा आउ लड़ूआ के नाम से मुंह अइसन पनिया रहल हे कि आगे कुछो भी लिखना हमरा लेल मोस्किल हो रहल हे । से अभी एतने बात कहके अपने सभे के पूस पीठा लेल नेओत रहली हे ।
प्रकाशित, प्रभात खबर-19 जनवरी 2016  

मगही
[20] दूरा-दलान
सुमंत (मगही लेखक)
अइसे लत कउनो चीज के भी होवे, ओकर परिणाम आझ नऽ कल बुरा होवऽ हे । एतने नऽ लत लग गेला के बाद ओकरा छोड़ाना बड़ मोस्किल  बात हे । अब ओकरा लतिआव चाहे गरिआबऽ कोई फरक नऽ पड़ऽ हे ।  लत भी केतने तरह के होवऽ हे । जउन हम गिनावल भी चाहि तऽ सभे लत गिनावल पार नऽ लगत । इ लेल हम दोसर-तेसर लत के छोड़ के निशा के लत पर अपनन्हीं से चर्चा करल चाहऽ ही । पास-पड़ोस, गांव-घर, गल्ली-मोहल्ला साइते कोई अइसन होएत, जहां निशेबाज न होएतन । अब निशा भी रगन-विरगन के होवऽ हे । बाकि अपना हिंआं दारू-ताड़ी-गांजा आउ भांग के पान करे वाला बेसी करके हथन । बीड़ी-सिगरेट-खैनी आउ गुटका तो आज सोहाग भाग हो गेलक हे । अइसे देखल जाए तऽ इहो सब जानलेवा हे । बेसी करके मुंह के कैन्सर बीड़ी-सिगरेट-खैनी आउ गुटका के सेवन से होवऽ हे, बाकी पीताहर इ बात के मानथन तब तो । जिनकरा बीड़ी-सिगरेट फूकफूकावे, खैनी दबाबे आउ गुटका चिबाबे के लत लग गेल, बिना कोई बड़का बेमारी होले छोड़े के नाम न लेवऽ हथ । सिगरेट के डिब्बा पर तो बशर्ते चेतावनी लिखल रहऽ हे-सिगरेट पीना स्वस्थ्य लेल हानिकारक हे । अपना हिआं गुटका पर प्रतिबंधों लगल, बाकी काहे ला तो कोई मानतन । चोरी-छिप्पे हरमेसे चलते रहल । आझो गुटका के पिलकी आउ पाउच सग्गर भेंटा जाएत । अब का हे कि दारू-ताड़ी-गांजा-भांग नियन बीड़ी-सिगरेट-खैनी आउ गुटका घर उजाड़न नऽ हे ।
            दारू-ताड़ी-गांजा-भांग के लत केतने घर उजाड़ के रख देलक । इ सब निशा के अइसन लत हे कि बिना पीले निंन तक हराम हो जा हे । पहली अप्रील से बिहार सरकार देशी दारू के बिक्री पर रोक लगावे जा रहल हे, जेकर जेतना भी तारीफ करल जाए, कम होएत । अगिला बच्छर से देशी के साथे-साथे विदेशी दारू पर भी रोक लगावे के सरकार मन बनौले हे । अब ढेर लोग के मन में इ बात के शका होवऽ हे कि रोक लगौला से का होएत, लुक्का-छिप्पी सब भेंटाएत । बाकी ओखनी के इ बात सोंचल हमरा जानिस्ते निमन नऽ हे । दारू केतने परिवार के उजाड़ के रख देलक हे । ढेर लोग मानऽ हथन कि ताड़ी ताड़-खजूर के रस हे, जेकरा पी ला से फैदा छोड़ नुकसान नऽ हे । बाकी मुंहलुकउनिए पीअल जाए, तब । इहां तो जिनकरा ताड़ी के लत लग गेल पीतारह दिन-दुपहरिया कुछो न देखऽ हथन । भूखले तऽ भूखले पेट निमक-मिचाई चाटईत लवनी खाली कर देवऽ हथन । अब पीला के बाद उनकरा हाथ के घड़ी रखे पड़े कि साइकिल, कोई फिकीर न । केतने बेर दारू नियन ताड़ी पीए से केतने के मौत हो चुकल हे । गंजेड़ी आउ भंगेड़ी के तो बाते मत पूछऽ । एकरा लोग शंकर भगवान के बूटी मानऽ हथन आउ हरहर भोले, बमबम भोले के नाम लेवईत गांजा सूटकाव हथ आउ भांग गटकाव हथ । जब रोग पटकऽ हे, तब बाबा भोले नऽ डाक्टर साहेब के सूई-दवाई काम देवऽ हे । निशा के लत सबला बुरा हे । एकरा से दूर रहे के चाही । सरकार-शासन आउ प्रशासन के भी  एकरा तरफ ध्यान देवे के जरूरत हे, जेकरा लेल एगो कदम तो सरकार तरफ से उठावल गेल हे । निशा नाश के जड़ी हे । इ लेल एकरा से बचल जरूरी हे । हम अपन्न्हीं सभे से हाथ जोड़ के निहोरा करऽ ही कि निशा के लत बुरा हे, एकरा छोड़ऽ ।
प्रकाशित, प्रभात खबर-26-01-2016

No comments: