अध्याय
- 2
मार्गदर्शक
हमर धरती, प्यारी धरती,
अपरिचित धरती !
हम न तो अपन मन से तोरा पास अइलूँ,
आउ न तो हमर उम्दा घोड़ा ले आल ।
हमरा नियन निम्मन नवयुवक के ले आल,
फुरतीलापन, नवयुवक के साहस,
आउ कलाली के मतवालापन ।
--- पुराना गीत
यात्रा
के दौरान हमर विचार बहुत मनोहर नयँ हलइ । हमर हारल रकम, ऊ जमाना के कीमत के अनुसार,
बहुत हलइ । हम अपन दिल में नयँ समझ नयँ सकऽ हलिअइ कि सिम्बिर्स्क के सराय में हमर व्यवहार
बेवकूफी वला हलइ, आउ सावेलिच के सामने हम खुद के दोषी अनुभव कर रहलिए हल । ई सब कुछ
हमरा मानसिक यातना देब करऽ हलइ । बुढ़उ कोचवान के सीट पर उदास बैठल हलइ, हमरा दने पीठ
कइले, आउ चुपचाप हलइ, कभी-कभार खाली खोंख-खाँख ले हलइ । हम पक्का ओकरा साथ सुलह करे
लगी चाहऽ हलिअइ आउ हमरा समझ में नयँ आवऽ हलइ कि बात काहाँ से शुरू करूँ । आखिर हम ओकरा
कहलिअइ - "अच्छऽ, अच्छऽ, सावेलिच ! बहुत हो गेलउ, सुलह कर लेल जाय, हम दोषी हकिअउ;
खुद देखऽ हिअउ कि दोषी हकिअउ । हम कल्हे हरक्कत कइलिअइ, आउ तोरा बेकार में अपमानित
कइलिअउ । हम वचन दे हिअउ कि आगू से अधिक बुद्धिमानी से काम लेबउ आउ तोर बात मानबउ ।
बस, गोस्सा मत कर; सुलह कर लेल जाय ।"
"ओह,
प्यारे प्योत्र अन्द्रेइच !" ऊ गहरा साँस लेके उत्तर देलकइ । "गोस्सा तो
हमरा खुद पर आवऽ हइ; हम सब तरह से दोषी हिअइ । हम कइसे तोरा सराय में अकेल्ले छोड़ देलियो
! की कइल जाय ? शैतान हमरा पथभ्रष्ट कर देलक - घूमते-फिरते गिरजादार (sexton) के बीवी
से मिल्ले के विचार दिमाग में घुस गेलइ, जे हमर बुतरू के सहधर्ममाता हइ । आउ अइकी
- सहधर्ममाता भिर रुकलिअइ, कि जइसे जेल में बैठ गेलिअइ । बस विपत्ति ! कइसे हम मालिक-मालकिन
के अपन मुँह देखइबइ ? की कहथिन उनकन्हीं, जब जनथिन कि बुतरू पीयऽ हइ आउ जूआ खेलऽ हइ
?"
बेचारा
सावेलिच के तसल्ली देवे लगी हम ओकरा वचन देलिअइ कि आगू ओकर बिन सहमति के एक्को कोपेक
खरच नयँ करबइ । ऊ धीरे-धीरे शांत हो गेलइ, हलाँकि अभियो बीच-बीच में सिर हिलइते बड़बड़ा
हलइ - "सो रूबल ! कीऽ ई मामूली बात हइ !"
हम
अपन गंतव्य स्थान के नगीच पहुँच रहलिए हल । हमर चारो तरफ टिल्हा आउ गड्ढा से ऊबड़-खाबड़
होल सूनसान रेगिस्तान फैलल हलइ । सब कुछ बरफ से ढँक्कल हलइ । सूरज डूब रहले हल । किबित्का
सँकरा रस्ता से गुजर रहले हल, चाहे अधिक सही तौर पर कहल जाय त किसान सब के स्लेज (बरफगाड़ी)
द्वारा छोड़ल लीक पर से । अचानक कोचवान एक तरफ देखे लगलइ, आउ आखिर अपन टोपी उतारके हमरा
दने मुड़लइ आउ कहलकइ - "मालिक, हमरा वापिस मुड़े के औडर दे हो ?"
"ई
काहे लगी ?"
"मौसम
के भरोसा नयँ - हावा जरी जोर पकड़ब करऽ हइ; देखहो, कइसे ई ताजा पड़ल बरफ के उड़ाब करऽ
हइ ।"
"त
एकरा में की मुसीबत हइ !"
"आउ
देखहो हुआँ की हइ ? (कोचवान चाभुक से पूरब दने इशारा कइलकइ ।)
"हमरा
तो कुच्छो नयँ देखाय दे हके, सिवाय उज्जर स्तेप (घास के विशाल मैदान) आउ साफ आकाश के
।"
"लेकिन
अउकी - अउकी, ऊ बादर ।"
हम
देखलिअइ कि वास्तव में आकाश के अंतिम छोर पर उज्जर बादर हइ, जेकरा हम पहिले दूर के
एगो छोटगर टिल्हा समझ लेलिए हल । कोचवान हमरा समझइलकइ कि ई बादर बरफीला तूफान के लक्षण
हइ ।
हम
ऊ क्षेत्र के बरफीला तूफान के बारे सुनलिए हल आउ जानऽ हलिअइ कि गाड़ी सब के पूरा के
पूरा कारवाँ ओकरा से ढँक (दब) जा हलइ । सावेलिच, कोचवान के बात से सहमत होके, वापिस
मुड़े के सलाह देलकइ । लेकिन हावा हमरा बरियार (बहुत तेज) नयँ लगलइ; हमरा अगला स्टेशन
तक ठीक समय पर पहुँच जाय के आशा हलइ आउ जरी आउ तेजी से गाड़ी हाँके के औडर देलिअइ ।
कोचवान
गाड़ी सरपट दौड़इलकइ; लेकिन ऊ लगातार पूरब तरफ देखते रहलइ । घोड़वन तेजी से दौड़ रहले हल
। हावा एहे दौरान लगातार अधिकाधिक तेज होते जा रहले हल । बादर के टुकड़ा छोटकुन्ना एगो
उज्जर तूफानी बादर में बदल गेलइ, जे भयंकर रूप से उपरे उठलइ, बढ़लइ आउ धीरे-धीरे आसमान
के ढँक लेलकइ। हलका बरफ के फाहा पड़े लगलइ - आउ अचानक बरफ के गोला बरसे लगलइ । हावा
गरजे लगलइ; बरफीला तूफान चालू हो गेलइ । एक पल में कार आसमान बरफ के समुद्र से घुल-मिल
गेलइ । सब कुछ गायब हो गेलइ। "मालिक", कोचवान चिल्लइलइ, "आफत - बरफीला
तूफान ! ..."
हम
किबित्का से बहरसी हुलकलिअइ - सगरो अन्हेरा आउ चक्रवात हलइ । हावा अइसन भयंकर अभिव्यक्तित्व
से गरज रहले हल कि ई सजीव प्रतीत होवऽ हलइ; बरफ हमरा आउ सावेलिच के ढँक लेलकइ; घोड़वन
कदम-कदम चल रहले हल - आउ जल्दीए रुक गेलइ ।
"तूँ
चल काहे नयँ रहलहीं हँ ?" हम अधीर होके कोचवान के पुछलिअइ ।
"लेकिन
चल्ले से की फयदा ?" अपन सीट पर से उतरते ऊ बोललइ, "मालुम नयँ काहाँ पहुँच
गेते गेलिए ह - कोय रस्ता नयँ, आउ चारो तरफ अन्हेरा हइ ।"
हम
ओकरा फटकारे लगलिअइ । सावेलिच ओकर पक्ष लेलकइ - "ओकर बात काहे नयँ मनलहो",
ऊ गोस्सा में बोललइ, "वापिस सराय जाल जा सकऽ हलइ, चाय पीयल जा सकऽ हलइ, आउ सुबह
होवे तक सुत्तल जा सकऽ हलइ, तब तक तूफान शांत हो जइते हल, आउ फेर आगू सफर कइल जा सकऽ
हलइ । जल्दीबाजी की हलइ ? अइसन तो नयँ हलइ कि शादी में जाब करऽ हलिअइ !"
सावेलिच
के कहना सही हलइ । अब कुछ नयँ कइल जा सकऽ हलइ । बरफ के ओइसीं झड़ी लगल हलइ । किबित्का
के आसपास बरफ के ढेर जामा हो रहले हल । घोड़वन सिर निच्चे कइले खड़ी हलइ आउ बीच-बीच में
सिहर उट्ठऽ हलइ । कोचवान चारो तरफ घूम-फिर रहले हल, कुछ काम नयँ रहला से घोड़वन के साज
के ठीक कर रहले हल । सावेलिच बड़बड़ा रहले हल; हम सब्भे दिशा में नजर डललिअइ, ई आशा करते
कि कम से कम कोय घर चाहे रस्ता के लक्षण मिल जाय, लेकिन कुच्छो नयँ नजर अइलइ, सिवाय
बरफीला तूफान के धुँधला चक्कर के ... अचानक हमरा कुछ तो कार-कार नियन देखाय देलकइ ।
"ए, कोचवान !" हम चिल्लइलिअइ, "देख - हुआँ परी कउची कार-कार देखाय दे
हइ ?"
कोचवान
ध्यान से देखे लगलइ । "भगमान जाने, मालिक", अपन सीट पर बैठते ऊ कहलकइ,
"कोय गाड़ी हो सकऽ हइ, कोय पेड़ हो सकऽ हइ, लेकिन लगऽ हइ कि ई हिल-डुल रहले ह ।
हो सकऽ हइ, या तो भेड़िया रहइ, चाहे कोय इंसान ।" हम ओकरा अपरिचित चीज तरफ गाड़ी
बढ़ावे लगी औडर देलिअइ, जे तुरतम्मे हमन्हीं तरफ बढ़े लगलइ । दू मिनट के बाद हमन्हीं एगो अदमी भिर पहुँचलिअइ । "ए भले इंसान
!" कोचवान ओकरा चीखते पुकरलकइ । "तोरा मालुम हको कि रस्ता काहाँ हइ
?"
"रस्ता
तो हिएँ हइ; हम तो ठोस पट्टी पर खड़ी हिअइ", राहगीर उत्तर देलकइ, "लेकिन एकरा
से की फयदा?"
"सुनऽ,
प्यारे किसान भाय", हम ओकरा कहलिअइ, "की तोरा ई इलाका के जनकारी हको ? की
तूँ हमरा रात गुजारे वला जगह पर ले चल सकऽ हो ?"
"ई
इलाका तो हमर जानल-पछानल हइ", राहगीर उत्तर देलकइ, "भगमान के किरपा से पैदल
आउ घोड़ा से ई पूरा इलाका के लम्मइए-चौलइए सगरो हमर घुम्मल-फिरल हइ । लेकिन देखऽ कि
कइसन मौसम हइ - रस्ता से पक्का भटक जइबऽ । बेहतर हिएँ ठहरके इंतजार करे के चाही, हो
सकऽ हइ कि तूफान शांत हो जाय आउ आसमान साफ हो जाय - तब नक्षत्र सब के सहायता से रस्ता
ढूँढ़ लेते जइबइ ।"
ओकर
शांत मुद्रा हमर हौसला बढ़इलकइ । हम भगमान के इच्छा पर खुद के सौंपके स्तेप के बीच रात
गुजारे के निर्णय कर चुकलिए हल कि अचानक राहगीर कोचवान के सीट पर बैठ गेलइ आउ कोचवान
के कहलकइ - "खैर, भगमान के किरपा से, घर नगीचे हको; गाड़ी दहिना दने मोड़ऽ आउ चलऽ
।"
"लेकिन
दहिना दने काहे लगी जइअइ ?" कोचवान नराजगी जाहिर करते पुछलकइ ।
"तोहरा
कन्ने रस्ता देखाय दे हको ? शायद - अनकर घोड़ा, जूआ अप्पन नयँ, चल पड़, रुक मत (अनकर
चुक्का, अनकर घी, पाँड़े के बाप के लग्गल की) ।"
कोचवान
के बात हमरा सही लगलइ । "वास्तव में", हम कहलिअइ, "तोरा कइसे लगऽ हको
कि घर थोड़हीं दूर पर हइ ?"
"काहेकि
हावा ओधरे से बहलइ", राहगीर जवाब देलकइ, "आउ हमरा ओकरा में धुआँ के गन्ह
अइलइ; मतलब, गाँव नगीच हइ ।"
ओकर
तीक्ष्ण बुद्धि आउ गन्ह के तीव्र संवेदन हमरा आश्चर्यचकित कर देलकइ । हम कोचवान के
गाड़ी बढ़ावे के आदेश दे देलिअइ । घोड़वन के गहरा बरफ से होके कदम बढ़ावे में भारी मोसकिल
हो रहले हल । किबित्का धीरे-धीरे चल रहले हल, कभी बरफ के टिल्हा पर चढ़ते, त कभी गड्ढा
में ढुलकते आउ कभी एक बगल झुकते, त कभी दोसरा बगल । ई एगो जहाज के तूफानी समुद्र में
यात्रा नियन हलइ । सावेलिच कराह रहले हल, आउ मिनट-मिनट भर में हमरा तरफ टकरा जा हलइ
। हम परदा गिरा देलिअइ, फ़र-कोट ओढ़ लेलिअइ आउ बरफीला तूफान के गीत आउ धीरे-धीरे चल रहल
किबित्का के हिचकोला के लोरी से झुक्के (ऊँघे) लगलिअइ ।
हमरा
एगो सपना अइलइ, जेकरा हम कभियो नयँ भूल पइलिअइ आउ जब अपन जिनगी के विचित्र परिस्थिति
सब के साथ ओकरा पर विचार करऽ हिअइ, त ओकरा में अभियो तक हमरा कुछ तो भविष्यसूचक देखाय
दे हइ । पाठक हमरा क्षमा करथिन - काहेकि संभवतः ऊ अपन अनुभव से जानऽ हथिन कि अंधविश्वास
के प्रति सब तरह के संभव घृणा के बावजूद, इंसान में अंधविश्वास के अधीन हो जाना केतना
स्वाभाविक हइ ।
हम
मन आउ भावना के अइसन स्थिति में हलिअइ, जब यथार्थ सपना के अधीन हो जा हइ, आउ पहिला
नींद के अस्पष्ट दृष्टि में एकरा में मिल जा हइ । हमरा प्रतीत होलइ, कि तूफान अभियो
जोर पर हइ आउ हमन्हीं अभियो बरफीला रेगिस्तान में भटकब करऽ हिअइ ... अचानक हमरा गेट
नजर अइलइ आउ हम अपन हवेली के प्रांगण में गाड़ी से प्रवेश कइलिअइ । हमर पहिला विचार
हलइ - ई भय कि कहीं पिताजी हमर पैतृक छत के बहाने अवांछित वापसी से क्रोधित नयँ हो
जाथिन आउ एकरा जानबूझके कइल आज्ञा के उल्लंघन नयँ मान लेथिन । बेचैनी में हम किबित्का
से उछलके निच्चे चल अइलिअइ आउ देखऽ हिअइ - हमर माय गहरा शोक के मुद्रा में हमरा से
मिल्ले खातिर ड्योढ़ी पर आब करऽ हइ । "शांत", ऊ हमरा से बोलऽ हइ, "पिताजी
मृत्युशय्या पर पड़ल हथुन आउ तोरा से बिदा लेवे लगी चाहऽ हथुन ।" भय से आतंकित
होल हम ओकर पीछू-पीछू शय्याकक्ष में जा हिअइ । देखऽ हिअइ, कमरा में मद्धिम रोशनी हइ;
बिछावन भिर लोग शोकग्रस्त मुद्रा में खड़ी हथिन । हम धीरे से बिछावन भिर जा हिअइ; माय
परदा जरी सुन उठावऽ हइ आउ बोलऽ हइ - "अन्द्रेय पित्रोविच, पित्रुशा आ गेलो; ऊ
तोहर बेमारी के खबर पाके वापिस आ गेलो; ओकरा आशीर्वाद देहो ।" हम टेहुना के बल
खड़ी हो गेलइ आउ रोगी पर अपन नजर टिका देलिअइ । ई की ? ... हमर पिताजी के स्थान पर हम
देखऽ हिअइ कि बिछावन पर एगो कार दाढ़ी वला मुझीक (देहाती/ किसान) पड़ल हइ, खुशी से हमरा
दने तकते । किंकर्तव्यविमूढ़ होल हम माय दने मुड़लिअइ, आउ बोललिअइ - "एकर की मतलब
हइ ?" ई तो पिताजी नयँ हथिन । आउ ई देहाती से भला हम आशीर्वाद काहे लगी माँगिअइ
?" - "बात बराबरे हइ, पित्रुशा", माय हमरा उत्तर देलकइ, "ई तोर
धर्मपिता हथुन; उनकर हाथ चुमहीं, आउ उनका तोरा आशीर्वाद देवे देहीं ..." हम सहमत
नयँ होलिअइ । तब मुझीक बिछावन पर से उछलके खड़ी हो गेलइ, आउ अपन
पीठ तरफ से एगो कुल्हाड़ी लेलकइ [13] आउ चारो दने भाँजे लगलइ । हम भाग जाय लगी चहलिअइ
... लेकिन भाग नयँ सकलिअइ; कमरा लाश से भर गेलइ; हम लशवन से टकरा गेलइ आउ खून के डबरी
(pools) में फिसल गेलिअइ ... भयंकर मुझीक प्यार से हमरा बोलइलकइ, आउ कहलकइ -
"डर मत, हमरा भिर आव, हम तोरा आशीर्वाद देबउ ..." भय आउ किंकर्व्यविमूढ़ता
हमरा पर हावी हो गेलइ ... तखनिएँ हमर नीन खुल गेलइ; घोड़वन खड़ी हलइ; सावेलिच हमर बाँह
हिलइते कहब करऽ हलइ - "बहरसी निकसऽ, छोटे मालिक - हम सब पहुँच गेते गेलिअइ ।"
"काहाँ
पहुँच गेते गेलिअइ ?" अपन आँख मलते हम पुछलिअइ ।
"रस्ता
के किनारे के सराय (लाइन होटल) में । भगमान मदद कइलथिन, हम सब के गाड़ी सीधे बाड़ा भिर
पहुँच गेलइ । बहरसी आथिन, छोटे मालिक, आउ जल्दी से जल्दी आग ताप लेथिन ।"
हम
किबित्का से बहरसी अइलिअइ । बरफीला तूफान अभियो चालू हलइ, हलाँकि जोर कम हो गेले हल
। अइसन घुप्प अन्हेरा हलइ कि हाथ के हाथ नयँ सुज्झऽ हलइ । सराय के मालिक हमन्हीं से
फाटक पर मिललइ, जे अपन कोट के स्कर्ट के अंदर एगो ललटेन लेले हलइ, आउ हमरा एगो कमरा
में ले गेलइ, जे तंग हलइ, लेकिन काफी साफ-सुथरा हलइ; एगो मशाल एकरा प्रकाशित कर रहले
हल । देवाल पर एगो राइफल आउ उँचगर कज़ाक टोपी टँग्गल हलइ ।
सराय
मालिक, जे पीढ़ी से याइक कज़ाक [14] हलइ, करीब साठ साल के
मुझीक लगलइ, अभियो ताजा आउ जोशीला हलइ । सावेलिच हमर पीछू चाय-सेट लेले अइलइ, आग मँगलकइ,
ताकि चाय बना सकइ, जे हमरा कभियो ओतना जरूरी नयँ लगले हल । सराय मालिक आग के जोगाड़
करे चल गेलइ ।
"आउ
मार्गदर्शक काहाँ हका ?" हम सावेलिच के पुछलिअइ । "हियाँ परी, हुजूर",
उपरे से एगो अवाज उत्तर देलकइ । हम पोलाती [15] पर नजर
डललिअइ, आउ हमरा कार दाढ़ी आउ दू गो चमकते आँख देखाय देलकइ। "कीऽ भाय, ठिठुर गेलऽ
?" - "कइसे नयँ ठिठुरबइ खाली एगो पतरगर अर्म्याक
[16] में ! एगो भेड़ के खाल के कोट हलइ, लेकिन अपन पाप कउची छिपअइ, कल्हे हम कलाली
में एकरा गिरवी पर रख देलिअइ – तखने पाला एतना भयंकर नयँ लगऽ हलइ ।"
तखनिएँ
सराय मालिक उबलते समोवार [17] लेले अंदर अइलइ । हम अपन
मार्गदर्शक के एक कप चाय पेश कइलिअइ । मुझीक पोलाती से उतरके निच्चे अइलइ । ओकर शकल-सूरत
हमरा अनोखा लगलइ - ऊ करीब चालीस साल के हलइ, मँझोला कद, दुब्बर-पातर आउ चौड़गर कन्हा
। ओकर कार दाढ़ी में सफेदी के झलक हलइ; सजीव बड़गर-बड़गर आँख हिल-डुल रहले हल । ओकर चेहरा
पर यथेष्ट मनोहर, लेकिन धूर्त्त अभिव्यक्ति हलइ । ओकर सिर के बाल गोल कट्टल हलइ; ऊ
एगो फट्टल-फुट्टल अर्म्याक आउ तातारी सलवार पेन्हले हलइ। हम ओकरा एक कप चाय देलिअइ;
ऊ एक चुस्की लेके जाँच कइलकइ आउ मुँह फोकरइलकइ । "हुजूर, हमरा पर एगो मेहरबानी
करथिन - एक गिलास शराब लावे लगी कह देथिन; चाय हमन्हीं कज़ाक के पेय नयँ हइ।" हम
खुशी से ओकर इच्छा के पूर्ति कर देलिअइ ।
सराय
मालिक अलमारी से एक श्तोफ़ (करीब 1.2 लीटर के बोतल) आउ एक गिलास निकसलकइ, ओकरा भिर अइलइ
आउ ओकर चेहरा पर निगाह डालके कहलकइ - "अरे, फेर से हमन्हीं के इलाका में आ गेलहीं
! कद्धिर से भगमान तोरा ले अइलउ?" हमर मार्गदर्शक अर्थपूर्ण ढंग से आँख मालकइ
आउ रहस्यमय भाषा में उत्तर देलकइ - "साग-सब्जी के बगीचा में उड़के अइलिअइ, पटसन
पर चोंच मालिअइ; दादी पत्थल फेंकलकइ - लेकिन बगल से निकस गेलइ । खैर, आउ तोहन्हीं सब
के की हाल-चाल हको ?"
"हमन्हीं
सब के !" सराय मालिक जवाब देलकइ, अन्योक्तिपरक वार्तालाप जारी रखते । "शाम
के प्रार्थना के घंटा बजावे के बखत हो गेलइ, लेकिन पादरी के पत्नी इजाजत नयँ दे हइ
- पादरी कुटुमतारे गेल हइ, शैतान सब कब्रिस्तान में हइ ।"
"चुप
रहऽ चचा", हमर अवारा मार्गदर्शक एतराज कइलकइ, "अगर बारिश होतइ, तब खुमी
(mushrooms) भी होतइ; आउ जब खुमी होतइ, त टोकरी भी होतइ । आउ अभी (हियाँ परी फेर से
आँख मालकइ) कुल्हाड़ी अपन पीठ पीछू नुकाके रक्खऽ - वन-रक्षक घूम-फिर रहलो ह । हुजूर ! अपने के सेहत खातिर !" ई शब्द के साथ
ऊ गिलास लेलकइ, क्रॉस कइलकइ आउ एक साँस में गटक गेलइ । फेर ऊ हमरा तरफ सिर झुकइलकइ
आउ पोलाती पर वापिस चल गेलइ ।
तखने
हमरा ई चोरवन के बातचीत कुच्छो नयँ समझ में अइलइ; लेकिन बाद में अंदाज लगा लेलिअइ,
कि चर्चा याइक सेना के बारे चल रहले हल, जेकरा सन् 1772 के
विद्रोह के बाद ऊ जमाना में अभी-अभी शांत कइल गेले हल [18] । सावेलिच बड़ी अप्रसन्नता
के मुद्रा में ई सब सुन रहले हल । ऊ कभी तो सराय मालिक दने त कभी मार्गदर्शक दने शंका
के दृष्टि से देखइ । रस्ता के बगल के ई सराय, चाहे जेकरा स्थानीय भाषा में 'उमेत' कहल
जा हइ, एक तरफ हटके, स्तेप में, कइसनो गाँव से बिलकुल दूर हलइ, आउ चोर के अड्डा से
बहुत कुछ मिल्लऽ-जुल्लऽ हलइ । लेकिन कुछ नयँ कइल जा सकऽ हलइ । सफर जारी रक्खे के बारे
सोचल भी नयँ जाल सकऽ हलइ । सावेलिच के बेचैनी से हमरा बड़ी मजा आब करऽ हलइ । ई दौरान
हम रात गुजारे के मन बना लेलिअइ आउ बेंच पर सुत गेलिअइ । सावेलिच स्टोव [19] पर चल
जाय के फैसला कइलकइ; सराय मालिक फर्श पर पड़ गेलइ । जल्दीए पूरा झोपड़ी घोंघर पारे लगलइ,
आउ हम तो मरल नियन सुत गेलिअइ।
सुबह
में काफी देर से जगला पर हम देखलिअइ कि बरफीला तूफान शांत हो चुकले हल । सूरज चमक रहले
हल । असीम स्तेप में आँख के चौंधिआवे वला बरफ के चादर पड़ल हलइ । घोड़वन के साज लगा देवल
गेले हल । हम सराय के मालिक के हिसाब-किताब चुकता कर देलिअइ, जे एतना कम रकम लेलके
हल कि सावेलिच भी ओकरा से बहस नयँ कइलकइ आउ मोल-मोलई करे लगी भी शुरू नयँ कइलकइ, जे
ऊ अपन आदत के मोताबिक साधारणतः करऽ हलइ, आउ कल्हे के सब्भे शंका ओकर दिमाग से निकस
गेलइ । हम मार्गदर्शक के बोलइलिअइ, कइल मदत खातिर ओकरा धन्यवाद देलिअइ आउ सावेलिच के
ओकरा वोदका लगी आधा रूबल (अर्थात् पचास कोपेक) देवे लगी आदेश देलिअइ । सावेलिच नाक-भौं
सिकुड़लकइ । "आधा रूबल वोदका लगी !" ऊ कहलकइ, "काहे लगी ई ? ई लगी, कि
तूँ ओकरा सराय में पहुँचावे के मेहरबानी कइलहो? तूँ जे कहो, छोटे मालिक - हमन्हीं के
पास फालतू आधा रूबल नयँ हइ । अगर हरेक कोय के वोदका लगी बख़्शीश देवे लगभो, त खुद्दे
जल्दीए हमन्हीं के भुखले रहे पड़तइ ।"
हम
सावेलिच के साथ बहस नयँ कर पइलिअइ । पैसा, हमर वचन के अनुसार, पूरा तरह से ओकर अधीन
में हलइ । तइयो हमरा खराब लग रहले हल कि ऊ अदमी के हम पुरस्कृत नयँ कर पइलिअइ, जे हमरा
अगर विपत्ति से नयँ तो कम से कम बहुत अप्रिय परिस्थिति से बचा लेलके हल । "ठीक
हको", हम विरक्ति से कहलिअइ, "अगर आधा रूबल देवे लगी नयँ चाहऽ हो, त हमर
पोशाक में से ओकरा लगी कुच्छो निकास देहो। ऊ बहुत कमती बस्तर पेन्हले हइ । ओकरा हमर
खरगोश के खाल के कोट दे देहो ।"
"सुनऽ,
प्यारे प्योत्र अन्द्रेइच !" सावेलिच कहलकइ । "काहे लगी ओकरा तोहर खरगोश
के खाल के कोट चाही? ऊ कुत्ता के पिल्ला अगलहीं कलाली में जाके दारू पीके उड़ा देतइ
।"
"ई
तोरा चिंता करे के जरूरत नयँ हको, बूढ़े बाबा", हमर अवारा मार्गदर्शक कहलकइ,
"हम पीके उड़ा देबइ कि नयँ । हुजूर हमरा फ़र-कोट अपन कन्हा से देवे लगी चाहऽ हथिन
- ई तोहर मालिक के मर्जी हइ, आउ तोर नौकर वला काम बहस करना नयँ, बल्कि आज्ञापालन करना
हको ।"
"तूँ
भगमान से नयँ डेराऽ हीं, डाकू !" क्रुद्ध स्वर में सावेलिच ओकरा उत्तर देलकइ ।
"तूँ देखऽ हीं कि बुतरू अभियो नादान हथिन, आउ तोरा उनकर सीधापन के चलते उनका लुट्टे
में खुशी होवऽ हउ । तोरा काहे लगी ई रईसी फ़र-कोट चाही ? तूँ अपन अभिशप्त कन्हा पर एकरा
घींच-घाँचके अँटाइयो नयँ सकम्हीं ।"
"अपन
जादे बुद्धि मत लगावऽ, हम निवेदन करऽ हियो", हम अपन बुजुर्ग खिदमतगार से कहलिअइ,
"अभिए फ़र-कोट लेके आवऽ ।"
"हे
भगमान !" हमर सावेलिच आह भरलकइ । "खरगोश के खाल के कोट लगभग बिलकुल नावा
हइ ! आउ ई केकरो लगी निम्मन होते हल, लेकिन ई फटीचर पियक्कड़ के !"
लेकिन
तइयो खरगोश के खाल के कोट आ गेलइ । मुझीक तुरतम्मे एकरा पेन्हके अजमावे लगलइ । वास्तव
में, खाल के कोट, जे हमरो लगी छोट्टे होवे लगले हल, ओकरा लगी जरी कस्सत हलइ । तइयो
ऊ कइसूँ घींच-घाँचके एकरा पेन्हिए लेलकइ, लेकिन सिलइअन भिर चीरते-चारते । सावेलिच लगभग
चीखते-चीखते रह गेलइ, जब सिलइअन भिर धागा के टुट्टे के अवाज सुनलकइ । ई अवारा हमर उपहार
से अत्यंत खुश होलइ । ऊ हमरा किबित्का तक छोड़े अइलइ आउ निच्चे झुकके बोललइ -
"धन्यवाद हुजूर ! अपने के किरपा लगी अपने के भगमान पुरस्कार देथुन । अपने के किरपा
के हम कभी नयँ भूलबइ ।" ऊ अपन रस्ता चल गेलइ, आउ हम आगू रवाना होलिअइ, सावेलिच
के खीझ पर बिन कोय ध्यान देले, आउ जल्दीए भूल गेलिअइ कल्हे वला बरफीला तूफान के बारे,
अपन मार्गदर्शक के बारे आउ खरगोश के खाल के कोट के बारे ।
ओरेनबुर्ग
पहुँचला पर हम सीधे जेनरल (सेनापति) भिर हाजिर होलिअइ । हम एगो उँचगर कद के व्यक्ति
देखलिअइ, लेकिन बुढ़ापा के कारण झुक चुकल । उनकर लमगर केश बिलकुल उज्जर हलइ । उनकर पुरनका
बदरंग वरदी हमरा आन्ना इओआन्नोव्ना [20] के बखत के फौजी के आद देला देलकइ, आउ उनकर
बोली में जर्मन लहजा के जबरदस्त प्रभाव देखाय दे हलइ । हम उनका पिताजी के पत्र सौंप
देलिअइ । उनकर नाम देखके ऊ हमरा दने एगो तेज निगाह डललथिन - "हे भगमान
!" ऊ बोललथिन । "लगवो नयँ करऽ हइ जादे दिन होले ह जब अन्द्रेय पित्रोविच
तोर उमर के हला, आउ अब अइकी अइसन ओकर बेटा हइ ! आह, समय, समय !" ऊ चिट्ठी के कवर खोललथिन आउ धीमे अवाज में पढ़े लगलथिन,
बीच-बीच में अपन टिप्पणी करते। "आदरणीय महोदय अन्द्रेय कार्लोविच, आशा करऽ हिअइ
कि महामहिम" ... ई सब कइसन औपचारिकता हइ? उफ, ओकरा शरम भी नयँ आवऽ हइ ! निस्संदेह
- अनुशासन सबसे पहिले आवऽ हइ, लेकिन की अपन पुरनका कामरेड (साथी) के अइसीं लिक्खल जा
हइ ? ... "महामहिम नयँ भुलइलथिन होत" ... हूँ ... "आउ ... जब ... स्वर्गीय
फ़ील्ड-मार्शल मीन ... अभियान में ... आउ ... करोलिन्का भी" ... आहा, ब्रूडर (भाय)
! त ओकरा अभियो हमन्हीं के पुरनका हरक्कत आद हइ ? "आउ अब काम के बात ... अपने
के पास अपन निकम्मा" ... हूँ ... "साही के दस्ताना में एकरा वश में रक्खे
लगी" ... ई "साही के दस्ताना" के की मतलब हइ ? ई शायद कोय रूसी कहावत
हइ ... ई 'साही के दस्ताना में वश में रकखे लगी' के की मतलब हइ ? - ऊ हमरा दने मुखातिब
होते दोहरइलथिन ।
"एकर
मतलब हइ", हम उनका यथासंभव अधिक निर्दोष मुद्रा में उत्तर देलिअइ, "दुलार
से पेश आना, अधिक सख्ती से नयँ, कुछ अधिक अजादी देना, साही दस्ताना में रखना ।"
"हूँ,
समझलिअइ ... 'आउ ओकरा कोय अजादी नयँ देना' - नयँ, लगऽ हइ, ‘साही दस्ताना’ के ऊ अर्थ
नयँ हइ ... 'एकरा साथ ... ओकर पासपोर्ट' ... काहाँ हइ ई ? ओ, अइकी हइ ... 'सिम्योनोव्स्की
रेजिमेंट में भेज देना' ... ठीक हइ, ठीक हइ - सब कुछ हो जइतइ ... 'रैंक पर ध्यान नयँ
करके खुद के आलिंगन करे के अनुमति दऽ आउ ... पुरनका साथी आउ दोस्त के रूप में' - आह
! आखिर अंदाज लगा लेलकइ ... इत्यादि इत्यादि ... अच्छऽ, बबुआ", पत्र पूरा पढ़ लेला
के बाद आउ पासपोर्ट एक बगल रखके ऊ कहलथिन, "सब कुछ हो जइतइ - तूँ अफसर के रूप
में *** रेजिमेंट में भेज देवल जइबऽ, आउ तोर समय बरबाद नयँ होवे, ओहे से बिहाने बेलागोर्स्क
किला लगी रवाना हो जा, जाहाँ तूँ एगो निम्मन आउ ईमानदार व्यक्ति, कप्तान मिरोनोव के
अधीन काम करबऽ । हुआँ तूँ एगो वास्तविक फौजी सेवा में होबऽ, अनुशासन सीखबऽ । ओरेनबुर्ग
में तोरा करे लायक कुछ नयँ हको; जवान अदमी लगी आलस्य हानिकारक होवऽ हइ । आउ आझ के दुपहर
के भोजन हमरा साथ करे लगी स्वागत हको ।"
"बद
से बत्तर !" हम मने-मन सोचलिअइ, "हमरा ई बात से की फयदा होलइ कि जब हम मइया
के पेटवे में हलिअइ त हम गार्ड सेना में सर्जेंट हलिअइ ! ई हमरा काहाँ पहुँचा देलकइ
? किर्गिज़-कायसाक स्तेप के बोर्डर पर *** रेजिमेंट में आउ सूनसान किला में !
..."
हम
अन्द्रेय कार्लोविच के हियाँ दुपहर के भोजन कइलिअइ, जब तेसरा व्यक्ति उनकर पुरनका सहयोगी
(फौजी अफसर) भी साथ में हलइ । उनकर भोजन के टेबुल भिर सख्त जर्मन मितव्ययिता बरतल जा
हलइ, आउ हमरा लगऽ हइ कि उनकर अविवाहित (जीवन में) भोजन के समय कभी-कभी अतिरिक्त अतिथि
के देखे के भय हमरा शीघ्रातिशीघ्र दूर करके गैरिसन (किला के रक्षक सेना) में भेजना
आंशिक रूप से एक कारण हलइ। अगले दिन हम जेनरल से विदा होलिअइ आउ हम अपन गंतव्य स्थान
तरफ रवाना हो गेलिअइ ।
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