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Thursday, August 17, 2017

रूसी उपन्यास - "कप्तान के बिटिया" ; अध्याय-8

अध्याय - 8
अनिमंत्रित अतिथि

अनिमंत्रित अतिथि तातार से भी बत्तर ।
--- कहावत
चौक निर्जन हो गेलइ । हम एक्के जगुन खड़ी रहलिअइ आउ दिमाग में एतना भयंकर छाप के कारण भ्रांत अपन विचार के व्यवस्थित नयँ कर पइलिअइ ।  
मारिया इवानोव्ना के भाग्य के अनिश्चितता हमरा सबसे जादे व्यथित कर रहले हल । ऊ काहाँ हइ ? ओकर की होलइ ? की ऊ कहीं नुक पइलइ ? की ओकर शरण-स्थल विश्वसनीय हइ ? ... चिंताजनक विचार के साथ भरल हम कमांडर के घर में प्रवेश कइलिअइ ... सब कुछ वीरान हलइ; कुरसी, टेबुल, संदूक तोड़ डालल गेले हल; बरतन टुट्टल-फुट्टल हलइ; सब कुछ लुट्टल जा चुकले हल । हम छोटका जीना पर से तेजी से उपरे गेलिअइ, जे उपरे के रोशनीदार छोटका कमरा में ले जा हलइ, आउ जिनगी में पहिले तुरी मारिया इवानोव्ना के कमरा में प्रवेश कइलिअइ । हम ओकर पलंग के देखलिअइ, जेकरा डाकू सब तोड़-ताड़ देलके हल; अलमारी तोड़के लूट लेवल गेले हल; देव-प्रतिमा के खाली पड़ल स्टैंड के सामने अभियो एगो दीपक मिरमिराब करऽ हलइ । खिड़कियन के बीच के देवाल पर के छोटका दर्पण सुरक्षित हलइ ... ई शांत कुमारी कन्या के छोटकुन्ना कमरा के मालकिन काहाँ हलइ ? एगो भयंकर विचार हमर दिमाग में कौंध गेलइ - हम कल्पना में ओकरा डाकू लोग के हाथ में देखलिअइ ... हमर दिल बैठ गेल ... हम जोर से, जोर-जोर से रोवे लगलिअइ आउ जोर से अपन प्रेयसी के नाम उच्चारित कइलिअइ ... एहे पल एगो हलका आहट सुनाय देलकइ, आउ अलमारी के पीछू से पीयर पड़ल आउ कँपते पलाशा प्रकट होलइ ।
"ओह, प्योत्र अन्द्रेइच !" उपरे तरफ हाथ झटकते ऊ बोललइ । "कइसन दिन हइ ! कइसन भयंकर ! ..."
"आउ मारिया इवानोव्ना ?" हम अधीरतापूर्वक पुछलिअइ, "मारिया इवानोव्ना के की होलइ ?"
"छोटकी मालकिन जिंदा हथिन", पलाशा उत्तर देलकइ । "ऊ अकुलिना पम्फ़िलोव्ना के हियाँ नुक्कल हथिन ।"
"पादरी के हियाँ !" हम आतंकित होल चीख पड़लिअइ । "हे भगमान ! लेकिन हुएँ तो पुगाचोव हइ ! ..."
हम तो दौड़ते कमरा के बाहर निकसलिअइ, पल भर में सड़क पर पहुँच गेलिअइ आउ बिन कुछ देखते-भालते आउ बिन कुछ अनुभव करते बेतहाशा पादरी के घर तरफ दौड़ते गेलिअइ । हुआँ पर चीख, ठहाका आउ गीत सुनाय देब करऽ हलइ ... पुगाचोव अपन साथी सब के साथ दावत उड़ाब करऽ हलइ । पलाशा भी ओधरे हमरे पीछू दौड़ल अइलइ । हम ओकरा अकुलिना पम्फ़िलोव्ना के धीरे से बोलावे लगी भेजलिअइ । करीब एक मिनट के बाद पादरी के पत्नी हाथ में खाली स्तोफ़ (शराब के बोतल) लेले प्रवेश-कक्ष में अइलथिन ।
"भगमान के खातिर बताथिन, मारिया इवानोव्ना काहाँ हइ ?" हम अनिर्वचनीय उत्तेजना के साथ पुछलिअइ।
"पड़ल हइ, हमर दुलारी, हमर घर में पलंग पर, हुआँ बीच के ओट के पीछू", पादरी के पत्नी बोललथिन । "लेकिन, प्योत्र अन्द्रेइच, आफत लगभग अइते-अइते बचलइ, लेकिन, भगमान के किरपा से बाद में सब कुछ ठीक होलइ - जइसीं बदमाश भोजन लगी बैठलइ कि ऊ, हमर बेचारी बच्ची, के नीन खुल गेलइ आउ कराह उठलइ ! ...  हम तो अइसीं मूर्छित हो गेलिअइ । ऊ सुन लेलके हल – ‘आउ केऽ ई तोरा हीं कराहऽ हको, बूढ़ी?’ हम चोरवा के झुकके कहऽ हिअइ – ‘हमर भतीजी, सम्राट्; बेमार पड़ल हइ, अइकी ई दोसरा सप्ताह चल्लब करऽ हइ ।’
‘आउ तोर भतीजी जवान हको ?’
‘जवान हइ, सम्राट् ।‘
‘जरी हमरा देखावऽ तो, बूढ़ी, अपन भतीजी के ।’
हमर तो दिल के धड़कने बंद हो गेल, लेकिन कुछ नयँ कइल जा सकऽ हलइ ।
‘अपने के मर्जी, सम्राट्; खाली लड़की अपने के सेवा में उठके आवे में सक्षम नयँ हइ ।’
‘कोय बात नयँ, बूढ़ी, हम खुद्दे जाके देख लेबइ ।’
आउ वास्तव में ऊ अभिशप्त ओट के पीछू गेलइ; की सोचऽ हो ! ऊ परदा हटइलकइ, बाज नियन अपन आँख से निगाह डललकइ ! - आउ बस ... भगमान बचइलथिन ! आउ विश्वास करभो, हम आउ हमर पति तो शहीद के मौत मरे के तैयारी कर लेते गेलिए हल । भाग्यवश, ऊ, हमर प्यारी बच्ची, ओकरा नयँ पछनलकइ । हे भगमान, कइसन दिन देखे लगी जीलिए ह ! कुछ कहल नयँ जा सकऽ हइ ! बेचारे इवान कुज़मिच ! केऽ कल्पनो कइलके होत ! ... आउ वसिलीसा इगोरोव्ना ? आउ इवान इग्नातिच ? ओकरा काहे लगी ? ... तोहरा कइसे छोड़ देते गेलो ? आउ श्वाब्रिन, अलिक्सेय इवानिच के बारे की सोचऽ हो ? वास्तव में ऊ गोलगंटा कट कटवा लेलकइ आउ अखने हिएँ परी ओकन्हीं साथे दावत उड़ा रहले ह ! बड़गो चलता पुरजा हइ, आउ कुछ नयँ कहल जा सकऽ हइ ! आउ जइसीं हम बेमार भतीजी के बारे कहलिअइ, कि ऊ, तूँ विश्वास करभो, हमरा दने अइसे देखलकइ, जइसे हमर दिल में छूरी आरपार कर देलकइ; लेकिन ऊ भेद नयँ खोललकइ, आउ एकरा लगी ओकरा धन्यवाद ।"
तखनिएँ नशा में धुत्त अतिथि लोग के चीख आउ फ़ादर गेरासिम के अवाज सुनाय देलकइ । अतिथि लोग शराब के माँग करब करऽ हलइ, मेजबान अपन पत्नी के पुकारब करऽ हलइ । पादरी के पत्नी हड़बड़ा गेलथिन।
"अभी घर चल जा, प्योत्र अन्द्रेइच", ऊ कहलका, "अभी हम तोहरा साथ नयँ रह सकऽ हकियो; बदमाश लोग के अभी रंगरेली चल रहले ह । नशा में धुत्त हाथ के पल्ले पड़ जइबऽ त आफत आ जइतो । अलविदा, प्योत्र अन्द्रेइच । जे होतइ, से होतइ; शायद भगमान हमन्हीं के साथ नयँ छोड़थिन ।"
पादरी के पत्नी चल गेलथिन । कुछ आश्वस्त होल हम अपन क्वार्टर दने रवाना हो गेलिअइ । चौक से होके गुजरते बखत हम कुछ बश्कीर लोग के देखलिअइ, जे टिकठी के आसपास भीड़ लगइले हलइ आउ फाँसी पर लटकल लोग से बूट घिंच्चब करऽ हलइ; हम मोसकिल से अपन क्रोधावेश के नियंत्रित कइलिअइ, ई अहसास करते कि बीच में दखल देवे से कोय फयदा नयँ होतइ । अफसर लोग के घर लूटते, किला के आसपास डाकू सब दौड़-धूप कर रहले हल ।  सगरो नशा में धुत्त विद्रोही लोग के चीख सुनाय पड़ रहले हल । हम घर अइलिअइ । सावेलिच हमरा दहलीज पर मिललइ ।
"भगमान के किरपा !" हमरा देखके ऊ बोललइ । "हम तो सोचब करऽ हलिअइ कि बदमाश लोग तोरा फेर से पकड़ लेते गेलो । अच्छऽ, बबुआ प्योत्र अन्द्रेइच ! विश्वास करभो ? सब कुछ हमन्हीं के लूट लेते गेलइ, बदमाश लोग - पोशाक, कपड़ा-लत्ता, समान, अरतन-बरतन - कुच्छो नयँ छोड़लकइ । खैर, तइयो की होलइ ! भगमान के किरपा हइ कि तोरा जिंदा छोड़ देते गेलो ! आउ बबुआ, तूँ पछनलहो सरदरवा के ?"
"नयँ, नयँ पछनलिअइ । केऽ हइ ऊ ?"
"की कहऽ हथिन, बबुआ ? तूँ ऊ पियक्कड़ के भूल गेलहो, जे तोहरा से सराय में तुलूप (जानवर के खाल के कोट) ठग लेलको हल ? खरगोश के छोटकुन्ना तुलूप बिलकुल नावा हलइ, लेकिन ऊ दुष्ट ओकरा कइसूँ घींच-घाँचके पेन्हलके हल, जेकरा से सब्भे सीयन चरचरइते उघर गेले हल !"
हमरा अचरज होलइ । वास्तव में पुगाचोव आउ हमर पथ-प्रदर्शक के बीच समानता आश्चर्यजनक हलइ । हमरा विश्वास हो गेलइ कि पुगाचोव आउ ऊ पथ-प्रदर्शक एक्के अदमी हलइ, आउ तब हमरा पर जे दया देखावल गेले हल ओकर कारण समझ में आ गेलइ । हम परिस्थिति के अइसन विचित्र शृंखला से आश्चर्यचकित होल बेगर नयँ रह सकलिअइ - बालक के तुलूप (खरगोश के खाल के कोट), एगो अवारा के देल गेल भेंट, हमरा फाँसी के फंदा से बचा लेलके हल, आउ रोड से हटके बन्नल सराय सब में भटके वला, एगो पियक्कड़, किला सब पर घेराबन्दी कर रहले हल आउ साम्राज्य के नींव हिला रहले हल !
"कुछ खाय लगी चाही ?" सावेलिच अपन अपरिवर्तित आदत के मोताबिक पुछलकइ । "घर में तो कुछ नयँ हइ; जाके तलाशबो आउ तोरा लगी कुछ तैयार कर देबो ।"
अकेल्ले रह गेला पर हम विचार में खो गेलिअइ । हम की करतिए हल ? ई दुष्ट के अधीन किला में हीं रहना, चाहे ओकर गिरोह में शामिल हो जाना, एगो अफसर लगी अशोभनीय हलइ । कर्तव्य के माँग हलइ कि हमरा ओन्ने जाय के चाही, जन्ने वर्तमान कठिन परिस्थिति में अभियो पितृभूमि लगी हमर सेवा उपयोगी हो सकऽ हलइ ... लेकिन प्रेम दृढ़तापूर्वक परामर्श दे हलइ कि हम मारिया इवानोव्ना बिजुन रहिअइ आउ ओकर रक्षक आउ संरक्षक बनिअइ । हलाँकि परिस्थिति में त्वरित आउ असंदिग्ध परिवर्तन के हमरा पूर्वाभास हो रहले हल, लेकिन ओकर (मारिया के) स्थिति के खतरा के कल्पना करके हम काँपे बेगर नयँ रह सकऽ हलिअइ । हमर विचार-शृंखला एगो कज़ाक के आगमन से टूट गेलइ, जे भागते अइलइ आउ ई सूचना देलकइ कि "महान सम्राट् तोरा खुद के पास आवे लगी आदेश देलथुन हँ ।"
"ऊ काहाँ परी हथिन ?" आज्ञापालन खातिर खुद के तैयार करते हम पुछलिअइ ।
"कमांडर के घर में", कज़ाक उत्तर देलकइ । "दुपहर के भोजन के बाद सम्राट् हमन्हीं के पिता स्नानगृह गेलथिन, आउ अभी अराम फरमा रहलथिन हँ । लेकिन, अत्रभवान् उच्चकुलीन, सब कुछ से स्पष्ट हइ, कि ऊ बड़गो हस्ती हथिन - भोजन के बखत दू गो झौंसल दुधपिलुआ सूअर खाय के किरपा कइलथिन, आउ एतना गरम भाफ के स्नान कइलथिन कि तरास कुरोच्किन भी सहन नयँ कर पइलकइ, तन साफ करे के झाड़ू फ़ोमका बिकबायेव के दे देलकइ आउ खुद बड़ी मोसकिल से ठंढा पानी से होश में अइलइ । ई बात के विरुद्ध कुछ नयँ कहल जा सकऽ हइ कि उनकर सब तरीका निराला हइ ... स्नानगृह में, सुन्नल जा हइ, अपन छाती पर ऊ अप्पन सम्राट्-चिह्न देखइलथिन - एक तरफ पाँच कोपेक के सिक्का एतना बड़गर दू सिर वला उकाब, आउ दोसरा तरफ खुद अपन चित्र ।"
हम कज़ाक के मत के खंडन करना आवश्यक नयँ समझलिअइ आउ ओकरा साथे कमांडर के घर दने रवाना हो गेलिअइ, पहिलहीं से पुगाचोव के साथ भेंट के कल्पना करते आउ ई बात के पूर्वानुमान लगावे के प्रयास करते कि एकर अंत कइसे होतइ । पाठक असानी से कल्पना कर सकऽ हका कि हम बिलकुल शांतचित्त नयँ हलिअइ।
अन्हेरा छाय लगले हल, जब हम कमांडर के घर पहुँचलिअइ । फाँसी के शिकार लोग के साथ टिकठी अब भयंकर रूप से कार लग रहले हल । कमांडर के पत्नी के लाश अभियो ड्योढ़ी के निच्चे पड़ल हलइ, जाहाँ परी दू कज़ाक पहरा देब करऽ हलइ । कज़ाक, जे हमरा लइलके हल, हमरा बारे सूचित करे चल गेलइ, आउ तुरतम्मे वापिस आके हमरा ओहे कमरा में ले गेलइ, जाहाँ परी मारिया इवानोव्ना से एतना प्यार से विदा लेलिए हल। एगो असाधारण दृश्य हमरा सामने देखाय देलकइ - मेजपोश से ढँक्कल आउ स्तोफ़ (शराब के बोतल) आउ गिलास से सज्जल टेबुल भिर पुगाचोव आउ दस कज़ाक चीफ़ हैट लगइले आउ रंगीन कमीज पेन्हले बैठल हलइ, शराब से थोपड़ा लाल होल हलइ आउ आँख चमक रहले हल । ओकन्हीं बीच नयका शामिल होल गद्दार न तो श्वाब्रिन हलइ, न तो हमन्हीं के सर्जेंट । "ओ, अत्रभवान् उच्चकुलीन !" हमरा देखके पुगाचोव कहलकइ । "स्वागत हइ ! बैठ जाय के किरपा करथिन ।" ओकर साथी लोग सरकके एक दोसरा से सटके हमरा लगी जगह बनइते गेलइ । हम चुपचाप टेबुल के अंतिम छोर पर बैठ गेलिअइ । हमर पड़ोसी, जे एगो सुडौल आउ सुंदर जवान कज़ाक हलइ, हमरा लगी एक गिलास में सादा वोदका ढरलकइ, जेकरा हम स्पर्श नयँ कइलिअइ । उत्सुकतापूर्वक हम एकत्र लोग के ध्यान से देखे लगलिअइ । पुगाचोव पहिला सीट पर बैठल हलइ, टेबुल पर केहुनी टिकइले आउ दाढ़ी के अपन चौड़गर मुट्ठी से सहारा देले । ओकर चेहरा के नाक-नक्शा ठीक-ठाक आउ काफी मनोहर हलइ आउ ओकरा में कुच्छो क्रूर नयँ नजर आवऽ हलइ । ऊ अकसर लगभग पचास साल के एगो अदमी के संबोधित कर रहले हल - ओकरा कभी काउंट, त कभी तिमोफ़ेइच नाम से, आउ कभी-कभार आदर से चाचा कहते । सब कोय आपस में साथी के रूप में व्यवहार कर रहले हल आउ अपन नेता के कोय विशेष प्राथमिकता (preference) नयँ देब करऽ हलइ । चर्चा चल्लब करऽ हलइ - सुबह के आक्रमण के बारे, विद्रोह के सफलता के बारे आउ भावी कार्रवाई के बारे । हरेक कोय डींग हाँकऽ हलइ, अपन विचार प्रस्तुत करऽ हलइ आउ स्वतंत्रतापूर्वक पुगाचोव के साथ वाद-विवाद करऽ हलइ । आउ एहे विचित्र युद्ध-परिषद् (war/ military  council) में ओरेनबुर्ग पर आक्रमण करे के निर्णय कइल गेलइ - एगो साहसपूर्ण निर्णय, आउ जे दुर्भाग्यपूर्ण सफलता तक पहुँचते-पहुँचते रह गेलइ !  कल सुबह के अभियान के घोषणा कइल गेलइ । "अच्छऽ, भाय लोग", पुगाचोव कहलकइ, "सुत्ते के पहिले हमर प्रिय गीत छेड़ल जाय । चुमाकोव [42] ! शुरू करऽ !" हमर पड़ोसी कोमल स्वर में बजरा घिंच्चे वलन के एगो उदासी भरल गीत गावे लगी शुरू कइलकइ, आउ सब कोय एकरा समवेत स्वर (chorus) में गावे लगलइ –
सरसर नयँ कर, हरियर बलूत जंगल माय,
बाधा नयँ दे हमरा, ई नेकदिल युवक के, विचार सोचे में,
कि बिहान हमरा, ई नेकदिल युवक के, पूछताछ में जाय के हउ
भयंकर जज के सामने, खास सम्राट् के ।

                        आउ महामहिम सम्राट् हमरा से पुच्छे लगथिन -
तूँ बताव, बताव, बच्चे, किसान के बेटे,
कइसे केकरा साथ तूँ चोरी कइलहीं, केकरा साथ लुटलहीं,
की तोरा साथ बहुत्ते साथी हलउ ?

हम तोहरा बतइबो, हमन्हीं के आशा, न्यायप्रिय सम्राट्,
सब कुछ सच कहबो तोहरा, सब सच,
कि साथी हमर हलइ चार गो -
पहिला तो हमर साथी हलइ अन्हरिया रात,

आउ दोसर हमर साथी हलइ दमास्क स्टील के छूरी,
आउ तेसर साथी के रूप में हलइ हमर उम्दा घोड़ा,
आउ चौठा हमर साथी हलइ कस्सल धनुष,
कि संदेशवाहक हमर हलइ लाल तप्त (red-hot) तीर ।

तब बोलता हमन्हीं के आशा, न्यायप्रिय सम्राट् -
शाबास बच्चे, किसान के बेटे,
कि तूँ जानऽ हलँऽ चोरी करे लगी, आउ उत्तर देवे लगी !
हम ओकरा लगी तोरा, बच्चे, दे हिअउ
मैदान बीच महल उँचगर,
कि दू गो खंभा, अर्गला (cross-bar) के साथ । [43]
ई बताना असंभव हइ कि टिकठी के बारे, ओहे लोग द्वारा गावल जा रहल ई लोकगीत हमरा पर कइसन प्रभाव डललकइ, जेकन्हीं के भाग्य में खुद टिकठी पर चढ़े के बद्दल हलइ । ओकन्हीं के भयानक चेहरा, लयबद्ध स्वर, विषादजनक अभिव्यक्ति, जे ओकन्हीं शब्द में भर रहले हल, अइसूँ अभिव्यक्तिपूर्ण हलइ - ई सब हमरा एक प्रकार के काव्यात्मक भय से हिला देलकइ ।
अतिथि लोग एक-एक गिलास आउ पीते गेलइ, टेबुल पर से उठ गेते गेलइ आउ पुगाचोव से विदा लेते गेलइ। हम ओकन्हिंएँ नियन करे लगी चहलिअइ, लेकिन पुगाचोव हमरा से कहलकइ - "ठहरऽ, हम तोहरा से जरी बात करे लगी चाहऽ हियो ।" हमन्हीं दुन्नु आमने-सामने हलिअइ ।
हमन्हीं के पारस्परिक मौन कुछ मिनट तक जारी रहलइ । पुगाचोव हमरा दने एकटक देख रहले हल, बीच-बीच में धूर्तता आउ व्यंग्य के असाधारण अभिव्यक्ति के साथ बामा आँख के सिकोड़ते । आखिरकार ऊ हँस पड़लइ, आउ अइसन सहज प्रसन्नता के साथ कि हमहूँ ओकरा दने तकते हँस्से लगलिअइ, खुद नयँ जानते कि काहे लगी । "त अत्रभवान् उच्चकुलीन ?" ऊ हमरा कहलकइ । "तूँ तो डर गेलऽ हल, ई बात के स्वीकार करऽ, जब हमर जवान लोग तोर गरदन में रस्सी डललको हल ? हम बाजी लगा सकऽ हियो कि तोहर पैर के तले से मिट्टी घसक गेलो हल ... अगर तोहर नौकर बीच में नयँ अइतो हल, त तूँ तो फाँसी पर लटकिए गेलऽ होत। हम बुड्ढा खुसट के तुरतम्मे पछान लेलिअइ । लेकिन तूँ सोचवो कइलहो होत, अत्रभवान् उच्चकुलीन, कि ऊ अदमी जे तोरा सराय तक ले गेलो हल, खुद महामहिम सम्राट् हलथिन ? (हियाँ परी ऊ रोबदार आउ रहस्यमय मुद्रा धारण कर लेलकइ ।) तूँ हमरा सामने बड़गो दोषी हकहो", ऊ बात जारी रखलकइ, "लेकिन हम तोर उपकार के चलते तोरा क्षमा कर देलियो, ई लगी कि तूँ हमरा पर ऊ बखत अनुग्रह कइलऽ हल, जब हम अपन दुश्मन सब से खुद के नुकावे लगी लचार हलिअइ । एतने नयँ, अभी आउ देखबऽ ! हम तोरा पर आउ अनुग्रह देखइबो, जब हम अपन राज्य प्राप्त कर लेबो ! उत्साह के साथ हमर सेवा करे के वचन दे हो ?"
ई बदमाश के प्रश्न आउ ओकर धृष्टता हमरा एतना मनोरंजक लगलइ कि हम मुसकुराय बेगर नयँ रह सकलिअइ।
"तूँ मुसकुरा हो काहे लगी ?" नाक-भौं सिकोड़ते ऊ हमरा पुछलकइ । "कि तोरा विश्वास नयँ कि हम महान सम्राट् हिअइ ? सीधे-सीधे उत्तर दऽ ।"
हम तो संकोच में पड़ गेलिअइ - एगो अवारा के सम्राट् मान लेवे के स्थिति में हम नयँ हलिअइ - ई हमरा अक्षम्य कायरता लगलइ । ओकरा मुँहें पर एगो झूठा दावेदार कहना खुद के मौत के बोलावा देना हलइ; आउ ऊ, जेकरा पर हम सब लोग के नजर में आउ क्रोधावेश के पहिला झोंक में टिकठी पर चढ़े लगी तैयार हलिअइ, अब हमरा व्यर्थ के आत्मप्रशंसा प्रतीत होलइ । हम दुविधा में पड़ गेलिअइ । पुगाचोव निर्दयतापूर्वक हमर उत्तर के प्रतीक्षा कर रहले हल । आखिरकार (आउ अभियो हम आत्म-संतुष्टि के साथ ई पल के आद करऽ हिअइ) हमर मानवीय दुर्बलता पर कर्तव्य भावना के विजय होलइ । हम पुगाचोव के उत्तर देलिअइ - "सुन्नऽ; हम तोरा सब कुछ सच बतइबो । खुद्दे सोचहो, हम तोरा सम्राट् मान सकऽ हियो ? तूँ चतुर व्यक्ति हकहो - तूँ खुद्दे समझ जइबहो कि हम तोरा से चलाँकी करब करऽ हियो ।"
"त हम तोर विचार से केऽ हिअइ ?"
"भगमाने तोरा जानऽ हथुन; लेकिन तूँ जे भी रहऽ, तूँ एगो खतरनाक खेल खेल रहलऽ ह ।"
पुगाचोव हमरा पर एगो तेज निगाह डललकइ ।
"त तोरा विश्वास नयँ हको", ऊ कहलकइ, "कि हम सम्राट् प्योत्र फ़्योदरोविच हिअइ ? अच्छऽ, ठीक हइ । लेकिन की वास्तव में सफलता साहसी के नयँ मिल्लऽ हइ ? की वास्तव में प्राचीन काल में ग्रिश्का ओत्रेप्येव [44] शासन नयँ कइलके हल ? हमरा बारे जे सोचे के मर्जी हको सोचऽ, लेकिन हमर त्याग नयँ करऽ । हम ई रहिअइ चाहे ऊ रहिअइ, एकरा से तोरा की लेना-देना ? जे भी पादरी होवऽ हइ, ऊ फ़ादर कहला हइ । निष्ठा आउ सच्चाई से हमर सेवा करऽ, आउ हम तोरा फ़ील्डमार्शल आउ राजकुमार बना देबो । तोर की विचार हको?"
"नयँ", हम दृढ़तापूर्वक कहलिअइ । "हम जन्मजात कुलीन (nobleman) हकिअइ; हम महामहिम साम्राज्ञी के प्रति निष्ठा के शपथ लेलिए ह - तोहर सेवा हम नयँ कर सकऽ हियो । अगर तूँ वास्तव में हमर भलाई चाहऽ हकऽ, त हमरा ओरेनबुर्ग जाय दऽ ।"
पुगाचोव सोचे लगलइ ।
"आउ अगर हम छोड़ दियो", ऊ कहलकइ, "त वचन दे हो कि कम से कम हमर विरुद्ध सेवा (युद्ध) नयँ करभो?"
"कइसे हम ई वचन दे सकऽ हियो ?" हम उत्तर देलिअइ । "खुद्दे जानऽ हो, ई हम्मर मर्जी नयँ हइ - अगर हमरा तोहर विरुद्ध जाय के आदेश देल जा हइ - त जइबो, कुछ नयँ कइल जा सकऽ हइ । तूँ तो अभी खुद कमांडर हकहो; खुद अपन लोग से आदेश पालन के माँग करऽ हो । कइसन लगतइ, अगर हम सेवा से इनकार करबइ, जब हमर सेवा के जरूरत होतइ ? हमर जान तोर हाथ में हको - अगर हमरा छोड़ दे हो - त धन्यवाद; अगर हमरा प्राणदंड दे हो - भगमान तोर जज हथुन; लेकिन हम तोहरा से सच कह देलियो ।"
हमर निष्कपटता से पुगाचोव दंग रह गेलइ ।
"अइसीं होवे", हमर कन्हा थपथपइते ऊ कहलकइ । "अगर प्राणदंड त प्राणदंड - क्षमा त क्षमा । चारो दने जन्ने मन करे ओन्ने जा आउ जे मर्जी से करऽ । बिहान हमरा से विदाई लेवे लगी आ जा, आउ अब सुत्ते चल जा, आउ हमरो अभी झुकनी बर रहलो ह ।"
हम पुगाचोव से विदा लेलिअइ आउ बाहर रोड पर आ गेलिअइ । रात शांत आउ ठंढगर हलइ । चान आउ तरिंगन उद्दीप्त (brightly) चमक रहले हल, जेकरा से चौक आउ टिकठी प्रकाशित होल हलइ । किला में सब कुछ शांत हलइ आउ अन्हेरा छाल हलइ । खाली कलाली में रोशनी हलइ आउ देर तक रंगरेली मनावे वलन के चीख सुनाय देब करऽ हलइ । पादरी के घर दने नजर डललिअइ । शटर आउ गेट बंद हलइ । लगऽ हलइ, ओकर अंदर सब कुछ शांत हइ ।
हम अपन क्वार्टर अइलिअइ आउ सावेलिच के अपन अनुपस्थिति के कारण शोक करते पइलिअइ । हमर मुक्ति के समाचार से ओकरा बयान के बाहर खुशी होलइ । "तोर कीर्ति बन्नल रहो भगमान !" ऊ खुद के क्रॉस करके बोललइ । "सुबह होतहीं किला छोड़ देते जइबइ आउ भाग्य जन्ने ले जाय ओन्ने चल जइते जइबइ । हम तोरा लगी कुछ बनइलियो ह; कुछ खा लऽ बबुआ, आउ सुबह होवे तक अइसे अराम से सुत्तऽ, मानूँ तूँ ईसा मसीह के गोदी में हकऽ ।"
हम ओकर सलाह मान लेलिअइ, आउ रजके खाके, मानसिक आउ शारीरिक रूप से थक्कल-माँदल, खाली फर्श पर सुत गेलिअइ ।

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