अपमानित आउ तिरस्कृत
भाग 1
अध्याय 2
ऊ
बखत, ठीक एक साल पहिले, हम पत्रिका के मामले में सहभागिता निभा रहलिए हल, लेख
(articles) लिक्खऽ हलिअइ आउ हमरा पक्का विश्वास हलइ, कि हमरा कोय तो बड़गो, निम्मन चीज
लिक्खे में सफलता मिलतइ। हम तब एगो बड़गो उपन्यास लगी बैठल हलिअइ; लेकिन तइयो अइसे समाप्त
होलइ, कि हम - अब अस्पताल में हिअइ, आउ लगऽ हइ, जल्दीए मर जइबइ। आउ अगर जल्दीए मर जइबइ,
त लगऽ हइ, काहे लगी नोट लिक्खल जाय?
हमरा
ई जिनगी के सब कुछ कठिन, पिछला साल के जाने-अनजाने लगातार आद पड़ जा हइ। अब सब कुछ लिख
डाले के मन करऽ हके, आउ, अगर हम ई काम के आविष्कार नञ् करतूँ हल, त हमरा लगऽ हके, कि
हम अवसाद से मर जइतूँ हल। [*178] ई
सब विगत छाप कभी-कभी हमरा दर्द तक, यातना तक उत्तेजित करऽ हइ। लेखनी के अधीन ऊ सब अधिक
सांत्वनादायक, अधिक सुव्यवस्थित हो जइतइ; कमती सरसाम, कमती भयानक सपना नियन लगतइ। अइसन
हमरा लगऽ हइ। खाली लिक्खे के क्रियाविधि (mechanism) हइ, जे महत्त्वपूर्ण हइ - ई सांत्वना
दे हइ, ठंढा कर दे हइ, हमरा में पहिलउका लेखक के आदत के प्रेरित करऽ हइ, हमर संस्मरण
के आउ दुःस्वप्न के काम में, व्यस्तता में परिवर्तित करऽ हइ ... हाँ, हमरा निम्मन विचार
सुझलइ। एकरा
अलावे डाक्टर के सहायक (feldscher) के उत्तराधिकार;
कम से कम खिड़कियन
पर हमर नोट के चिपकइतइ, जब शीतकाल के फ्रेम लगावल जइतइ।
लेकिन, शायद, हम अपन कहानी, नञ् मालुम काहे,
बीच से शुरू कइलिअइ। अगर सब कुछ लिक्खल जाय के चाही, त शुरुए से शुरू करे के चाही।
अच्छऽ, त शुरुए से शुरू कइल जाय। तइयो, हमर आत्मकथा बड़गो नञ् होतइ।
हमर जन्म हियाँ नञ् होले हल, बल्कि हियाँ से
दूर, -स्की गुबेर्निया में। ई मानल जाय के चाही, कि हमर माता-पिता निम्मन लोग
हलथन, लेकिन हमरा बचपने में अनाथ छोड़ गेलथन, आउ हमर पालन-पोषण निकोलाय सिर्गेयिच इख़मेनेव,एगो
छोटगर जमींदार, के घर में होल, जे हमरा दया करके रख लेलका। उनकर बाल-बुतरू में खाली
एगो बेटी हलइ, नताशा, हमरा से तीन साल छोटगर। हमन्हीं दुन्नु भाय-बहिन नियन बड़गो होलिअइ।
ओह हमर प्रिय बचपन! केतना मूर्खतापूर्ण हइ तोरा बारे उदास होना आउ खेद प्रकट करना जिनगी
के पचीसमा बरिस में, आउ मरते बखत, आद करना खाली तोरा बारे उत्साह आउ कृतज्ञतापूर्वक!
तहिना आसमान में एतना उज्ज्वल सूर्य हलइ, एतना पितिरबुर्ग से भिन्न सूर्य आउ हम सब
के छोटगर हृदय एतना तेजी से आउ आनंदपूर्वक धड़कऽ हलइ। तहिना चारो बगल खेत आउ जंगल हलइ,
आउ मरल पत्थल के ढेर नञ्, जइसन अभी हइ। केतना आश्चर्यजनक हलइ बाग आउ पार्क वसिल्येव्स्की
में, जाहाँ परी निकोलाय सिर्गेयिच मैनेजर हलथिन; ई बाग में नताशा आउ हम टहले लगी जा
हलिअइ, आउ बाग के पीछू हलइ बड़गो, नम जंगल, जाहाँ परी हम, बुतरुअन, दुन्नु एक तुरी भुला
गेलिए हल ... सुनहरा, उत्तम समय! जिनगी अपन पहिलउका अनुभव रहस्मय आउ मोहक रूप से बतावऽ
हलइ, आउ केतना मिठगर हलइ ओकरा से परिचित होना। ऊ जमाना में हरेक झाड़ी के पीछू, हरेक
पेड़ के पीछू, मानु आउ कोय तो रहऽ हलइ, हम सब लगी रहस्यमय आउ अनजान; परीलोक
(fairyland) वास्तविकता से मिल गेले हल; आउ, जब, कभी-कभार, गहरी घाटी में शाम के कुहासा
घना हो जा हलइ आउ धूसर घुमावदार जटा के रूप में ऊ सब झाड़ी से चिपक जा हलइ, जे हमन्हीं
के विशाल दर्रा के पथरीला किनारा से चिपकल रहऽ हलइ, त नताशा आउ हम, किनारा पर, एक दोसरा
के हाथ थामले, भयानक उत्सुकता से गहराई में हुलकऽ हलिअइ आउ आशा करऽ हलिअइ, कि अइकी
कोय तो दर्रा के तल से कुहासा के बीच से हमन्हीं तरफ अइतइ चाहे प्रतिसाद (respond)
देतइ आउ धाय के परीकथा असली, कानूनी सच लगतइ। एक तुरी बाद में, बहुत बाद में, हम नताशा
के आद देलइलिअइ, जइसीं हमन्हीं लगी ऊ बखत एक तुरी "बाल पुस्तक" उपलब्ध कइल
गेलइ, तइसीं तुरतम्मे दौड़ल बाग में चल गेलिअइ, पोखरा भिर, जाहाँ परी पुरनका घना मेपल
के निच्चे हमन्हीं के प्रिय हरियरका बेंच हलइ, हुआँ बैठ गेते गेलिअइ आउ पढ़े लगलिअइ
"अल्फ़ोन्सो आउ दालिन्दा" - एगो परीकथा। अभियो तक हम ई कहानी के बिन कइसनो
विचित्र हृदय सिहरन के आद नञ् कर पावऽ हिअइ, आउ जब हम, एक साल पहिले, नताशा के पहिला
दू पंक्ति आद देलइलिअइ - "अल्फ़ोन्स, हमर कहानी के हीरो, पुर्तगाल में पैदा होले
हल; दोन रामिरो, ओकर पिता" इत्यादि, त हम लगभग रो पड़लिअइ। हो सकऽ हइ, ई बहुत मूर्खतापूर्ण
लगले होत, आउ ओहे से, शायद, नताशा हमर हर्षातिरेक पर एतना विचित्र ढंग से मुसकइलइ।
लेकिन, तुरतम्मे खुद के नियंत्रित कर लेलकइ (हमरा ई आद हइ) आउ हमर सांत्वना खातिर खुद
[*179]
पुरनका जमाना के बारे आद करे लगलइ। शब्द पर शब्द आउ खुद द्रवीभूत हो गेलइ। गौरवशाली
हलइ ई शाम; हमन्हीं सब कुछ स्मरण करे लगलिअइ - आउ ओहो, जब हमरा प्रान्तीय शहर में आवासीय
विद्यालय में भेज देल गेले हल, केतना ऊ तब कनले हल! - आउ हमन्हीं के अन्तिम बिदाई,
जब हम हमेशे लगी वसील्येव्स्की छोड़ देलिए हल। हम तब अपन आवासीय विद्यालय के पढ़ाई समाप्त
कर चुकलिए हल आउ विश्विद्यालय में दाखिला हेतु तैयारी करे लगी पितिरबुर्ग जा रहलिए
हल। हमर तब सतरह साल के हलिअइ, ऊ पनरह साल के। नताशा बोलऽ हइ, कि हम तहिया एतना बेढब
हलिअइ, एतना लमढेंग कि हमरा तरफ देखके हँसले बेगर नञ् रहल जा सकऽ हलइ। बिदाई के बखत
हम ओकरा बगल में ले गेलिअइ, ओकरा कुछ तो महत्त्वपूर्ण बात बतावे लगी; लेकिन हमर जीभ
कइसूँ अचानक अकड़ गेलइ आउ तालु में चिपकल रह गेलइ। ऊ आद करऽ हइ, कि हम बड़गो उत्तेजना
में हलिअइ। जाहिर हइ, हमन्हीं के बातचीत निम्मन से नञ् हो पइलइ। हमरा समझ में नञ् आ
रहल हल, कि कउची कहूँ, आउ ओहो, शायद, हमरा समझ नञ् पइलकइ। हम खाली जोर से रो पड़लिअइ,
आउ अइसीं चल गेलिअइ, बिन कुच्छो कहले। हमन्हीं के बहुत बाद में भेंट होलइ, पितिरबुर्ग
में। ई दू साल पहिले के बात हइ। बुढ़उ इख़मेनेव हियाँ अपन केस के मामले में दौड़धूप करे
लगी अइलथिन हल, आउ हम अभी-अभी साहित्यकार के पेशा शुरू कइलिए हल।
No comments:
Post a Comment