अपमानित आउ तिरस्कृत
भाग 1
अध्याय 5
ई
तरह, इख़मेनेव परिवार पितिरबुर्ग स्थानान्तरित हो गेलइ। एतना लमगर वियोग के बाद नताशा
से अपन मिलन के वर्णन हम नञ् करबइ। ई चारो साल के दौरान हम कभियो ओकरा नञ् भुलइलिअइ।
निस्सन्देह, हम खुद ऊ भावना के पूरा नञ् समझऽ हलिअइ, जेकरा से हम ओकरा आद करऽ हलिअइ;
लेकिन जब हमन्हीं दुबारा मिललिअइ, त हम तुरते समझ गेलिअइ, कि ऊ हमर भाग्य में बद्दल
हलइ। [*186] शुरू में, उनकन्हीं के आगमन के
बाद प्रारम्भिक दिन में, हमरा हमेशे लगऽ हलइ, कि ऊ कइसूँ ई चार साल में बहुत कम बढ़ले
होत, मानु बिलकुल नञ् बदलले होत आउ ओइसने लड़की रहले होत, जइसन हमन्हीं के वियोग के
पहिले हलइ। लेकिन बाद में रोज दिन हम ओकरा में कुछ तो नावा देखऽ हलिअइ, तब तक हमरा
लगी बिलकुल अनजान, मानु हमरा से जान-बूझके गुप्त रक्खल, मानु लड़की जान-बूझके हमरा से
खुद के छिपइले रक्खऽ हलइ - आउ ई अंदाज केतना खुशी दे हलइ! बुढ़उ, पितिरबुर्ग में स्थानान्तरित
होला पर, पहिले तुरी झुँझलाल आउ चिड़चिड़ा हलथिन। मामला उनकर खराब चल रहले हल; ऊ गोसाऽ
जा हलथिन, आपा खो दे हलथिन, बिज़नेस दस्तावेज सब में लीन हो जा हलथिन, आउ उनका हमन्हीं
लगी कोय समय नञ् मिल्लऽ हलइ। आन्ना अन्द्रेयेव्ना तो खोवल-खोवल नियन चल्लऽ हलइ आउ शुरू-शुरू
में तो कुच्छो ओकरा समझ में नञ् आवऽ हलइ। पितिरबुर्ग से ओकरा भय लगऽ हलइ। ऊ उच्छ्वास
ले हलइ आउ सहम जा हलइ, अपन पहिलउका जिनगी के बारे रोवऽ हलइ, इख़मेनेवका के बारे, एकरा
बारे, कि नताशा बड़गो हो गेल ह, आउ ओकरा बारे सोचे वला कोय नञ् हके, आउ हमरा साथ विचित्र
स्पष्टवादिता से बात करे लगऽ हलइ, कोय आउ दोसरा जादे मित्रतापूर्ण विश्वास के काबिल
नञ् रहे के कारण।
अइकी
एहे समय, उनकन्हीं के आगमन के थोड़हीं समय बाद, हम अपन पहिला उपन्यास पूरा कइलिअइ, ठीक
ओहे, जेकरा से हमर साहित्यिक वृत्ति चालू होले हल, आउ, एगो नौसिखिया के रूप में, शुरू
में हमरा समझ में नञ् आवऽ हले, कि एकरा साथ की करूँ। इख़मेनेव परिवार के हम एकरा बारे
कुच्छो नञ् बतइलिअइ; उनकन्हीं तो हमरा से ई बात लगी लड़वो कइलथिन, कि हम निकम्मा जिनगी
गुजारऽ हिअइ, मतलब, न तो कोय सर्विस करऽ हइ आउ न कोय स्थान पावे के प्रयास करऽ हिअइ।
बुढ़उ तो हमरा बुरी तरह से आउ हियाँ तक कि झुँझलाके बुरा-भला सुनइलथिन, जाहिर हइ, हमरा
तरफ पैतृक सहानुभूति के चलते। हमरा तो बस लाज बरलइ उनका ई बात बतावे में कि हम कउची
करऽ हिअइ। लेकिन वास्तव में सीधे कइसे घोषित कइल जाय, कि हम कोय सर्विस करे लगी नञ्
चाहऽ हिअइ, बल्कि उपन्यास लिक्खे लगी चाहऽ हिअइ, आउ ओहे से ऊ बखत तक हम धोखा देलिअइ,
बोललिअइ, कि हमरा कोय जगह (पद) नञ् देते जा हइ, कि हम यथाशक्ति एकर खोज में हिअइ। उनका
हमरा में विश्वास करे के कोय फुरसत नञ् हलइ। हमरा आद पड़ऽ हइ, कि एक रोज नताशा, हमन्हीं
के बातचीत के सुनके, हमरा गुप्त रूप से बगल में ले गेलइ आउ आँसू भरले हमर भाग्य के
बारे सोचे लगी निवेदन कइलकइ, हमरा से पूछताछ कइलकइ, पूछके मालुम कइलकइ - कि हम ठीक-ठीक
की करऽ हिअइ, आउ, जब हम ओकरा सामने खुलके बात नञ् कइलिअइ, त हमरा से वचन लेलकइ, कि
हम आलसी आउ निकम्मा बनके खुद के बरबाद नञ् करबइ। सच हइ, कि हम हलाँकि ओकरा नञ् बतइलिअइ
कि हम की करऽ हिअइ, लेकिन आद पड़ऽ हइ, कि अपन रचना के बारे, अपन पहिला उपन्यास के बारे,
ओकर एक्को गो प्रशंसासूचक शब्द खातिर, हम आलोचक आउ समीक्षक लोग के सब्भे सम्मानसूचक
टिप्पणी, जे बाद में अपना बारे सुनलिअइ, वापिस कर देतिए हल। आउ अइकी, आखिरकार, हमर
उपन्यास प्रकाशित हो गेलइ। एकर प्रकाशन के बहुत पहिलहीं से साहित्यिक जगत् में हलचल
आउ शोर-गुल उठले हल। बी॰ एगो बुतरू नियन खुश हो गेलथिन हल, हमर पांडुलिपि के पढ़ला पर।
नञ्! अगर हम कभी खुश होलिअइ, त ई हमर सफलता के पहिलउका आनंददायक क्षण के खुशी भी नञ्
हलइ, बल्कि तब, जब हम न तो केकरो पढ़के सुनइलिए हल आउ न तो केकरो अपन पांडुलिपि देखइलिए
हल - ऊ लमगर रतियन में, उल्लासपूर्ण आशा आउ सपना आउ रचना के प्रति भावनात्मक लगाव के
बीच; जब हम अपन कल्पना जगत् में जीयऽ हलिअइ, ऊ सब पात्र के साथ, जेकर हम खुद निर्माण
कइलिअइ, अपन रिश्तेदार नियन, मानु वस्तुतः ओकन्हीं अस्तित्व में हलइ; ओकन्हीं के प्यार
करऽ हलिअइ, ओकन्हीं साथ खुश आउ दुखी होवऽ हलिअइ, आउ कभी-कभी अपन सीधा-सादा हीरो पर
अत्यंत निष्कपट आँसू के साथ रोवो करऽ हलिअइ। आउ हम वर्णन नञ् कर सकऽ हिअइ, कि बूढ़ा-बूढ़ी
हमर सफलता देखके केतना खुश होलथिन, हलाँकि पहिले तो अत्यंत अचंभित होलथिन - एतना भयंकर
रूप से उनकन्हीं के ई बात विचित्र लगलइ! आन्ना अन्द्रेयेव्ना के, मसलन, कइसूँ विश्वास
नञ् हो रहले हल, कि नयका, सब्भे लोग द्वारा प्रशंसित होल, लेखक - ओहे [*187] वान्या हइ, जे इत्यादि, इत्यादि, ... आउ लगातार
सिर हिला रहले हल। बुढ़उ देर तक नञ् माने लगी तैयार होलथिन आउ शुरू में, पहिलउका अफवाह
पर, डरियो गेलथिन; गमा देल सेवावृत्ति के बारे बोले लगलथिन, सामान्यतः सब्भे लेखक के
अव्यवस्थित व्यवहार के बारे। लेकिन लगातार नयका अफवाह, पत्रिका सब में विज्ञापन आउ
आखिरकार कइएक प्रशंसात्मक शब्द, जे हमरा बारे ऊ सुनलथिन ओइसन लोग के मुँह से, जेकन्हीं
के आदरपूर्वक विश्वास करऽ हलथिन, उनका ई मामला पर अपन विचार बदले लगी बाध्य कर देलकइ।
जब ऊ देखलथिन, कि हमरा पास अचानक ढेर सारा पैसा आ टपकलइ, आउ पता चललइ, कि केतना पैसा
साहित्यिक रचना खातिर मिल सकऽ हइ, त उनकर अन्तिम सन्देह भी दूर हो गेलइ। सन्देह से
पूरा उत्साहवर्द्धक विश्वास में संक्रमण (transitions) में तीव्र, बुतरू नियन हमर भाग्य
पर खुश होते, ऊ अचानक अत्यंत अनियंत्रित आशा में निमग्न हो गेलथिन, हमर भविष्य के मामले
में अत्यंत चकाचौंध कर देवे वला स्वप्न में। रोज दिन ऊ हमरा लगी नयका वृत्ति आउ योजना
के कल्पना करऽ हलथिन, आउ ई सब योजना में कउची-कउची नञ् हलइ! ऊ हमरा प्रति कुछ तो विशेष,
अभी तक अवर्तमान, आदर प्रदर्शित करे लगलथिन। लेकिन तइयो, हमरा आद पड़ऽ हइ, कभी-कभी,
सन्देह उनका पर हावी हो जा हलइ, अकसर अत्यन्त उत्साहपूर्ण कपोल-कल्पना के बीच, आउ फेर
से ऊ भ्रमित हो जा हलथिन।
"लेखक,
कवि! कइसूँ विचित्र लगऽ हइ ... कब कवि रैंक में अइला ह? लोग तो अइसूँ कलम घिसते रहऽ
हइ, जेकरा पर विश्वास नञ् कइल जा सकऽ हइ!"
हम
नोटिस कइलिअइ, कि अइसन सन्देह आउ सब अइसन नाजुक सवाल उनका सबसे अकसर गोधूलि वेला में
आवऽ हलइ (एतना निम्मन से सब विवरण हमरा आद हइ आउ सब्भे ऊ सुनहरा समय!)। गोधूलि वेला
में हमन्हीं के बुढ़उ कइसूँ विशेष रूप से नर्भस हो जा हलथिन, भावुक आउ शक्की। नताशा
आउ हम ई बात के जानऽ हलिअइ आउ पहलिहीं से हँस्सऽ हलिअइ।
हमरा आद हइ, कि हम उनका सुमारोकोव के जेनरल
(सेनापति) बन्ने के मजेदार कहानी से प्रोत्साहित करऽ हलिअइ, ई बात के बारे, कि कइसे
देर्झाविन के दस रूबल के बैंकनोट सहित नासदान (snuff-box) भेजल गेले हल, कि कइसे खुद
साम्राज्ञी लोमोनोसोव के हियाँ भेंट देलथिन हल; पुश्किन के बारे बतइलिअइ, गोगल के बारे
भी।
"जानऽ हिअइ, भाय, सब कुछ जानऽ हिअइ",
बुढ़उ एतराज कइलथिन, शायद, जिनगी में पहिले तुरी ई सब कहानी सुनके। "हूँ! सुन,
वान्या, लेकिन आखिर हम तइयो खुश हिअउ, कि तोर भद्दी रचना कविता में नञ् लिक्खल हउ।
कविता तो, भाय, बकवास हइ; तूँ तो बहस नञ् कर, आउ हमरा, बुढ़वा, पर विश्वास कर; हम तोर
भलाय चाहऽ हिअउ; पक्का बकवास हइ, फुरसत के समय के उपयोग! कविता तो जिमनैसियम (हाई स्कूल)
के छात्र लोग के लिक्खे के रहऽ हइ; कविता तो तोहन्हीं नवयुवक लोग के पागलखाना ले जइतउ
... मानऽ हिअइ, कि पुश्किन महान हलथिन, केऽ ई बात से इनकार करतइ! लेकिन तइयो ई सब तुकबन्दी
हइ, आउ एकरा से जादे कुछ नञ्; ई तरह, कुछ तो अल्पकालिक ... हम, लेकिन, ई बहुत कम पढ़लियो
ह ... गद्य साहित्य के अलगहीं बात हइ! हियाँ लेखक सिखाइयो सकऽब हइ - एकरा से पितृभूमि
के प्रति प्रेम के चर्चा कइल जा सकऽ हइ, चाहे सामान्य रूप से सद्गुण के बारे ... हाँ!
हमरा तो, भाय, खुद के अभिव्यक्त करे नञ् आवऽ हउ, लेकिन तूँ तो हमरा समझऽ हँ; प्यार
से बोलऽ हिअउ। अच्छऽ, अच्छऽ, पढ़!" - ऊ कइसूँ बात खतम कइलथिन कइसनो संरक्षण के
लहजा में, जब हम आखिरकार पुस्तक लइलिअइ आउ हम सब चाय के बाद गोल मेज भिर बैठ गेते गेलिअइ,
"पढ़ जरी, कि तूँ ओकरा में कउची लिखलऽ हँ; लोग तोरा बारे बहुत चिल्ला हउ! देखल
जाय, देखल जाय!"
हम पुस्तक खोललिअइ आउ पढ़े के तैयारी कइलिअइ।
ऊ शाम के अभी-अभी हमर उपन्यास मुद्रित होके निकसले हल, आउ हम, एक प्रति आखिरकार हथियाके,
इख़मेनेव परिवार के हियाँ अपन रचना के पढ़े खातिर दौड़ पड़लिअइ।
[*188] हमरा केतना संताप
आउ झुँझलाहट
होलइ, कि हम उनकन्हीं
के ओकरा
पहिले पढ़के
नञ् सुनइलिअइ,
पांडुलिपि से,
जे संपादक
के हाथ
में हलइ!
नताशा भी
झुँझलाहट से
रो उठलइ,
हमरा से
लड़ पड़लइ,
हमरा बुरा-भला सुनइलकइ,
कि दोसर
लोग हमर
उपन्यास पहिले
पढ़ऽ हइ,
बनिस्पत ओकरा
के
... लेकिन अइकी
आखिरकार हम
सब टेबुल
भिर बैठऽ
हिअइ। बुढ़उ
असामान्य रूप
से गंभीर
आउ संदेहात्मक
चेहरा बनइले
हलथिन। ऊ
बहुत कठोरतापूर्वक
निर्णय करे
लगी चाहऽ
हलथिन, "खुद के आश्वस्त
करे लगी"। बुढ़ियो असामान्य रूप
से खुश
देखाय दे
रहला हल;
ऊ पाठन खातिर लगभग
नयका टोपी
पहिन लेलका
हल। ऊ बहुत पहिलहीं से नोटिस कर चुकले हल,
कि हम ओकर अमूल्य नताशा के तरफ असीम प्रेम से देखऽ हिअइ; कि हमर आत्मा आँख में लीन
होके विलीन हो जा हइ, जब हम ओकरा साथ बात करऽ हिअइ, कि नताशा भी कइसूँ हमरा तरफ पहिले
के अपेक्षा अधिक प्रसन्नता से देखऽ हइ। हाँ! आखिरकार ऊ समय आ गेलइ, सफलता के पल में
आ गेलइ, स्वर्णिम आशा के आउ बिलकुल पूर्ण आनंद के, सब कुछ एक्के साथ, सब कुछ एक्के
तुरी आ गेलइ! बुढ़ियो देखलकइ, कि ओकर बुढ़उ भी हमरा बहुत जादे प्रशंसा करे लगला ह आउ
कइसूँ विशेष ढंग से हमरा दने आउ अपन बेटी दने ताकऽ हका ... आउ अचानक डर गेलइ - आखिर
हम न तो काउंट हलिअइ, न प्रिंस, न राजकीय प्रिंस, चाहे कम से कम जूरी लोग में से कॉलेजिएट
काउंसेलर, नवयुवक, ऑर्डर के साथ आउ सुंदर! आन्ना अन्द्रेयेव्ना आधा देखे लगी नञ् चाहऽ
हलइ।
"लोग
व्यक्ति के प्रशंसा करऽ हइ", ऊ हमरा बारे सोचऽ हलइ, "लेकिन काहे लगी - मालुम
नञ्। लेखक, कवि ... लेकिन आखिर की होवऽ हइ लेखक?"
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