रूसी
उपन्यास "आझकल के हीरो"
भाग-1
1.
बेला - अध्याय-2
"अइकी
देखथिन, हम तेरेक के पार एगो किला में कंपनी के साथ हलिअइ - लगभग पाँच साल पहिले ।
एक तुरी, शरत्काल में रसद के साथ एगो गाड़ी अइलइ; गाड़ी में एगो अफसर हलइ, पचीस साल के
एगो नौजवान । ऊ हमरा सामने पूरा वरदी में प्रस्तुत होलइ आउ बतइलकइ, कि ओकरा हमरा हीं
किला में रहे के औडर मिलले ह । ऊ एतना पतरा, गोरा हलइ, ओकर वरदी एतना नावा हलइ, कि
हम तुरतम्मे अंदाज लगा लेलिअइ, कि ऊ काकेशिया में हमन्हीं हीं हाले में अइले ह ।
"तोहर, शायद", हम ओकरा पुछलिअइ, "रूस से हियाँ बदली होलो ह?"
- "बिलकुल सही, मिस्टर स्टाफ-कप्तान", ऊ उत्तर देलकइ । हम ओकरा हाथ से पकड़
लेलिअइ आउ कहलिअइ - "बहुत खुशी के बात हको, बहुत खुशी के बात हको । तोहरा जरी
बोर होतो ... लेकिन तइयो हमन्हीं दुन्नु मित्रतापूर्वक रहबइ ... आउ, किरपा करके, हमरा
खाली, माक्सीम माक्सीमिच पुकारऽ, आउ, काहे लगी एतना पूरा वरदी ? हमेशे हमरा भिर छज्जेदार
टोपी (forage cap) में आवऽ ।" ओकरा क्वाटर ले जाल गेलइ, आउ ऊ किला में टिक गेलइ
।
"आउ
ओकर नाम की हलइ ?" हम माक्सीम माक्सीमिच के पुछलिअइ ।
"ओकर
नाम हलइ ... ग्रिगोरी अलिक्सांद्रविच पिचोरिन । निम्मन छोकरा हलइ, हम अपने के विश्वास
देला सकऽ हिअइ; खाली जरी विचित्र । जइसे, उदाहरण के तौर पे, बारिश में, ठंढी में दिन
भर शिकार पर; सब कोय ठिठुर जइतइ, थक जइतइ - लेकिन ओकरा लगी कुछ नयँ । आउ दोसरा तुरी
ऊ अपन कमरा में बइठल रहइ, हावा के एगो झोंका आवइ, आउ ऊ विश्वास देलावइ, कि ओकरा सरदी
पकड़ लेलकइ; शटर पर दस्तक होवइ, त ऊ चौंक जाय आउ ओकर चेहरा पीयर पड़ जाय; आउ हम देखिअइ
कि जंगली सूअर के अकेल्ले पीछा करइ; अइसनो होवइ, कि पूरे घंटा के घंटा ओकरा से एगो
शब्द नयँ निकास पाहो, लेकिन जइसीं कभी-कभी कहानी सुनावे लगो, त हँसते-हँसते पेट में
दरद होवे लगो ... जी हाँ, ओकरा में बड़गो विचित्रता हलइ, आउ शायद, धनगर व्यक्ति हलइ
- ओकरा पास केतना तरह-तरह के बेशकीमती नुमाइशी चीज हलइ ! ..."
"आउ
लम्मा समय तक अपने के साथ रहलइ ?" हम फेर पुछलिअइ ।
"हाँ,
लगभग एक साल । लेकिन ई साल हमरा स्मृति में हइ; ऊ हमरा बहुत परेशान कइलकइ, त काहे नयँ
आद रहतइ ! ई सच हइ, कि अइसन लोग हइ, जेकर जन्मे से (भागे में) लिक्खल रहऽ हइ, कि ओकरा
साथ तरह-तरह के असाधारण बात होहीं के चाही !"
"असाधारण
?" उत्सुकता के मुद्रा में हम उद्गार प्रकट कइलिअइ, ओकरा लगी चाय ढारते ।
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