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Monday, June 13, 2016

रूसी उपन्यास "कालापानी" ; भाग-2; अध्याय-10: जेल से मुक्ति



कालापानी
(साइबेरिया में जेल के जिनगी)

भाग-2; अध्याय-10: जेल से मुक्ति  

ई सब कुछ जेल में हमर अंतिम साल के दौरान होलइ । ई अंतिम साल लगभग ओइसीं हमरा लगी स्मरणीय हइ, जइसन कि पहिला, विशेष करके जेल में सबसे अंतिम समय । लेकिन विस्तार से कउची बतावल जाय । हमरा खाली आद पड़ऽ हइ, कि ई साल में, जेल के अवधि के जल्दी से जल्दी समाप्त करे के हमर पूरा उजलत के बावजूद, हमर निर्वासन के सब पहिलौका साल के अपेक्षा हमर जिनगी जादे हलका हलइ । सबसे पहिले, कैदी लोग के बीच अब हमर कइएक मित्र आउ प्रियजन हलइ, जे आखिरकार ई समझ चुकले हल, कि हम निम्मन अदमी हिअइ । ओकन्हीं में से कइएक हमरा प्रति निष्ठावान हलइ आउ हार्दिक रूप से हमरा प्यार करऽ हलइ । हमरा आउ हमर साथी के जेल से अलविदा करते बखत, पायोनियर [1] लगभग रो पड़लइ, आउ जेल से मुक्त होला पर जब हमन्हीं बाद में, पूरा महिन्ना ई शहर में रहलिअइ, एगो सरकारी बिल्डिंग में, त लगभग हरेक दिन ऊ हमन्हीं हियाँ भेंट दे हलइ, खाली हमन्हीं के एक झलक पावे लगी । तइयो अइसनो व्यक्तित्व हलइ जे अंतिम तक कठोर आउ गैरमिलनसार रहलइ, जेकरा, लगऽ हइ, हमरा साथ एक्को शब्द बोलना भारी पड़ऽ हलइ - भगमान जाने काहे । लगऽ हलइ, हमन्हीं बीच कोय बाधा (देवाल) हलइ । अंतिम समय में हमरा सामान्यतः अधिक सुविधा हलइ, बनिस्बत कातोर्गा के पूरे अवधि के दौरान ।  हमरा मालूम चललइ कि शहर में मिलिट्री स्टाफ में कइएक लोग हमर परिचित आउ स्कूल के पुरनकन साथी लोग भी हलइ । हम ओकन्हीं साथ संबंध के पुनरारंभ कइलइ । ओकन्हीं के माध्यम से हमरा पास जादे पइसा मिल जा हल, घर पर खत लिख सकऽ हलूँ, आउ किताबो मिल जा हले । कइएक साल से हम एक्को किताब नयँ पढ़ पइलूँ हल, आउ हमरा लगी ऊ विचित्र आउ साथे-साथ उत्तेजक छाप (exciting impression) के बारे वर्णन करना मोसकिल हइ, जे जेल में पहिला किताब पढ़ लेला पर हमर दिमाग पर पड़लइ । हमरा आद पड़ऽ हइ, हम ओकरा साँझ से पड़े लगी शुरू कइलिअइ, जखने बैरक बन कर देल गेले हल, आउ भोर होवे तक सारी रात पढ़ते रहलिअइ । ई एगो पत्रिका के अंक हलइ । समाचार मानूँ ऊ दुनियाँ से उड़के हमरा बिजुन आवऽ हलइ; पहिलौका पूरा जिनगी स्पष्ट आउ उज्ज्वल रूप में हमरा सामने उट्ठऽ हलइ, आउ हम पठित सामग्री से अंदाज लगावे के कोशिश करऽ हलिअइ - की ई जिनगी से हम बहुत पिछुआ गेलिअइ ? की ओकन्हीं हुआँ परी हमरा बेगर लम्मा समय गुजारते गेलइ, ओकन्हीं के अभी की उत्तेजित करऽ होतइ, ओकन्हीं के अभी की सवाल व्यस्त रक्खऽ होतइ ? हम शब्द पकड़ लिअइ, पंक्ति के बीच पढ़िअइ, गूढ़ अर्थ निकासे के, आउ पूर्वतर (शब्द/ घटना) पर इशारा समझे के प्रयास करिअइ; ऊ सुराग खोजिअइ, जे पहिले, हमर समय में, लोग के उत्तेजित करऽ हलइ, आउ हम अभी ई बात जानके केतना उदास होलिअइ, कि नयका जिनगी में हम केतना हद तक अजनबी हिअइ, हम अलग-थलग होल हिअइ । नयका के अभ्यस्त होवे के, नयका पीढ़ी से परिचित होवे के आवश्यकता हलइ । विशेष करके हम ओइसन लेख पर टूट पड़ऽ हलिअइ, जेकर निच्चे परिचित नाम मिल्लऽ हलइ, पहिले के नगीच अदमी के ... लेकिन अब तो नयकन-नयकन नाम सुनाय दे हलइ - नयकन कार्यकर्ता अवतरित हो रहले हल, आउ हम उत्सुकतापूर्वक ओकन्हीं से परिचित होवे लगी जल्दीबाजी कइलिअइ आउ हमरा ई बात से चिढ़ होवऽ हलइ, कि हमरा पुस्तक प्राप्त करे के बहुत कम आसार हलइ आउ ऊ सब तक पहुँचना बहुत मोसकिल हलइ । पहिले तो, पूर्व मेजर के रहते, जेल में किताब ले जाना भी खतरनाक हलइ । छानबीन होवे के हालत में पक्का सवाल उठते हल - "काहाँ से किताब अइलउ ? काहाँ मिललउ ? मतलब, तोर कहीं संबंध हउ ? ..." आउ अइसन सवाल के की जवाब देतिए हल ? आउ ओहे से, बिन किताब के जीते, हम अनिच्छा से बहुत अंतर्मुखी हो गेलिअइ, खुद से सवाल करऽ हलिअइ, ओकर हल खोजे के प्रयास करऽ हलिअइ, कभी-कभी ओकरा चलते कष्ट होवऽ हलइ ... लेकिन ई सब कुछ अइसे नयँ बतावल जा सकऽ हइ ! ...

हम जेल अइलिए हल जाड़ा में आउ ओहे से हमर रिहाई भी जाड़े में होवे वला हलइ, महिन्ना के ओहे तारीख के, जब हम अइलिए हल । केतना उताहुल होके हम जाड़ा के इंतजार करऽ हलिअइ, ग्रीष्म काल के अंत में कइसन खुशी से पेड़ पर के पत्ता मुरझइते आउ स्तेप में घास के बेरंग होते देखऽ हलिअइ । लेकिन अइकी ग्रीष्म काल गुजर गेलइ, शरद् ऋतु में हावा साँय-साँय करे लगलइ; अइकी पहिला बरफबारी होवे लगलइ ... आखिरकार ई जाड़ा आ गेलइ, जेकर हम लम्मा समय से इंतजार करब करऽ हलिअइ ! हमर दिल अजादी के बड़गो पूर्वाभास से कभी-कभी जोर-जोर से धड़के लगइ । लेकिन विचित्र बात हलइ - जइसे-जइसे समय अधिक गुजरते गेलइ आउ हमर अवधि पूरा होवे के समय आउ नगीच अइलइ, ओतने अधिक अधीर आउ अधीर होते गेलिअइ । लगभग बिलकुल अंतिम दिन में हम अचंभित भी होलिअइ आउ खुद के धिक्कारे लगलिअइ - हमरा लगलइ, कि हम बिलकुल शांतभाव आउ शून्यभाव हो गेलिअइ । फुरसत के समय प्रांगण में हमरा से कइएक लोग मिल्ले वला कैदी हमरा से बातचीत करऽ हलइ, हमरा बधाई दे हलइ –
"त अइकी, बबुआ अलिक्सांद्र पित्रोविच, जल्दीए, जल्दीए, तोरा अजादी मिल जइतो । हमन्हीं सब के अकेल्ले छोड़ देबहो ।"
"आउ की, मार्तिनोव, तोहरो तो जल्दीए छुटकारा मिलतो न ?" हम जवाब दे हिअइ ।
"हमरा तो ! ई मत पुच्छऽ ! अभी सात साल आउ गुजारे के हको ..."
आउ उच्छ्वास लेके, चुप हो जा हइ, अन्यमनस्क होल देखे लगऽ हइ, मानूँ भविष्य में नजर डाल रहल होवे ... हाँ, कइएक लोग हार्दिक रूप से आउ खुशी से हमरा बधाई दे हलइ । हमरा लगलइ, कि सब कोय मानूँ हमरा साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार करे लगलइ । हम, स्पष्टतः, ओकन्हीं लगी अप्पन नयँ रहलिअइ; ओकन्हीं हमरा अलविदा कर रहले हल । का-चिन्स्की भी, जे उच्चकुलीन में से एगो पोलिस्तानी, शांत आउ कोमल नौजवान व्यक्ति हलइ, हमरे नियन, फुरसत में प्रांगण में बहुत जादे घुम्मे-फिरे में दिलचस्पी ले हलइ । साफ हावा आउ कसरत से ऊ अपन सेहत बरकरार रक्खे, आउ बैरक में दमघोंटू रात के सब तरह के हानि के क्षतिपूर्ति करे के बारे सोचऽ हलइ । "हम अधीरतापूर्वक अपने के रिहाई के इंतजार कर रहलिए ह", एक तुरी टहले के बखत मिलला पर ऊ मुसकइते हमरा से बोललइ, "अपने बाहर जइथिन, आउ तखने हम जानबइ, कि हमर रिहाई लगी पक्का एक साल रह गेल ।"

हियाँ परी हम अइसीं उल्लेख करबइ, कि स्वप्नमयता आउ लमगर विरक्ति के चलते अजादी हमन्हीं के जेल में कइसूँ असली अजादी से जादे अजाद प्रतीत होवऽ हलइ, मतलब ऊ, जेकर वस्तुतः वास्तविकता में अस्तित्व हइ (actually exists in reality) । कैदी लोग असली अजादी के संकल्पना (idea, notion) के बढ़ा-चढ़ा दे हलइ, आउ ई बिलकुल स्वाभाविक हइ, हरेक कैदी लगी बिलकुल स्वाभाविक । एगो अफसर के कोय गुदड़िया नौकर के हमन्हीं हीं लगभग राजा समझल जा हलइ, कैदी के तुलना में अजादी के लगभग आदर्श, काहेकि ऊ बिन हजामत कइल, बिन बेड़ी के आउ बिन कोय मार्गरक्षी के एन्ने-ओन्ने जा सकऽ हलइ ।

ठीक अंतिम दिन के पूर्वसंध्या पर, गोधूलि वेला में, छरदेवारी के चारो तरफ हम अंतिम तुरी अपन समुच्चे जेल के चक्कर लगइलिअइ । केतना हजार तुरी हम ई छरदेवारी के चक्कर लगइलूँ हल एतना सब साल में ! हियाँ बैरक सब के पिछुआनी में कठोर सश्रम कारावास के अपन पहिला साल में अकेल्ले, अनाथ, दुखी हम भटकते रहऽ हलूँ। आद पड़ऽ हइ, कि कइसे हम तखने गिनती करते रहऽ हलिअइ, कि केतना हजार दिन हमरा लगी (ई जेल में) बच गेल ह । हे भगमान, केतना पहिले के ई बात हइ ! अइकी हियाँ, ई कोनमा में, हमन्हीं के उकाब कैद में जीयऽ हलइ; अइकी हियाँ हमरा से अकसर पित्रोव भेंट करऽ हलइ । ऊ अभियो हमरा नयँ छोड़लके ह । ऊ दौड़ल आवइ, आउ जइसे ऊ हमर विचार के भाँप जाय, चुपचाप हमर बगल में चलते रहइ आउ कुछ बात पर अचंभित देखाय देइ । हमन्हीं के बैरक के  लकड़ी के ई कार होल कुंदा के चौकोर ढाँचा से मानसिक रूप से विदा हो रहलिए हल । तखने पहिले तुरी हमरा ऊ सब केतना अमित्र भाव से हक्का-बक्का कइलके हल । हो सकऽ हइ, तहिया के तुलना में अभी पुराना पड़ गेले ह; लेकिन हमरा ई दृष्टिगोचर नयँ हलइ । आउ ई सब देवाल के बीच जवानी के केतना समय बेकार में दफन हो गेलइ, हियाँ फोकट में केतना बड़गो शक्ति बरबाद हो गेलइ ! वस्तुतः अइसन सब कुछ कहल जाय के चाही - वास्तव में ई लोग असाधारण लोग हलइ । शायद, ई लोग हमन्हीं के देश के सब लोग के अपेक्षा सबसे अधिक प्रतिभाशाली, सबसे अधिक बलशाली हइ । लेकिन ओकन्हीं के महाबल बेकारे में बरबाद हो गेलइ, आउ बरबाद हो गेलइ असामान्य रूप से, अवैध रूप से, पुनः अप्राप्य रूप से । आउ केऽ दोषी हइ ?
एहे बात - केऽ दोषी हइ ?

दोसरा दिन जल्दी सुबहे, लोग के काम पर जाय के पहिलहीं, जब ठीक फरीछ होवे लगले हल, सब्भे बैरक के चक्कर लगइलिअइ, सब कैदी के अलविदा कहे लगी । कइएक घट्ठेदार, मजबूत हाथ हमरा तरफ हार्दिक रूप से बढ़लइ । कुछ लोग तो बिलकुल साथी नियन दबइलकइ, लेकिन अइसन कम्मे हलइ । दोसरा लोग बहुत निम्मन से समझऽ हलइ, कि हम अब ओकन्हीं के अपेक्षा बिलकुल दोसरे अदमी हो जइबइ । जानऽ हलइ, कि शहर में हमर परिचय हइ, कि हम तुरतम्मे हियाँ से भलमानुस लोग (noblemen) के पास रवाना हो जइबइ आउ ई भलमानुस लोग के बगल में बइठबइ, बराबरी के हैसियत से । ओकन्हीं ई समझऽ हलइ आउ हमरा साथ हलाँकि हार्दिक भाव से विदाई लेलकइ, हलाँकि प्यार से भी, लेकिन साथी के साथ नियन तो बिलकुल नयँ, बल्कि जइसे मालिक के साथ नियन । कुछ लोग तो हमरा से मुँह फेर लेलकइ आउ कठोरता से हमर विदाई के जवाब देवे से इनकार कर देलकइ । कुछ लोग तो हमरा तरफ एक प्रकार के घृणा के दृष्टि से देखलकइ ।

ढोल बजलइ, आउ सब कोय काम पर रवाना होलइ, लेकिन हम घर पर रहलिअइ । सुशिलोव ई सुबह लगभग सब कोय से पहिले उठलइ आउ अपन पूरा जोर लगाके दौड़-धूप कइलकइ, ताकि हमरा लगी चाय बना सकइ । बेचारा सुशिलोव ! ऊ कन्ने लगलइ, जब हम ओकरा जेल के अपन पुरनका कपड़ा, कमीज, अंदर के पट्टा (under-fetters) आउ कुछ पइसा देलिअइ । "हमरा ई नयँ चाही, ई नयँ !" ऊ बोललइ, अपन कँपते होंठ के बलपूर्वक नियंत्रित करते, "हमरा तो अपने के खोना केतना कष्टदायक लगऽ हइ, अलिक्सांद्र पित्रोविच ? हम अपने के बेगर हियाँ कइसे रहबइ !"
अंतिम तुरी हम अकीम अकीमिच से भी बिदा होलिअइ ।
"अपनहूँ के तो बारी जल्दीए अइतइ !" हम ओकरा कहलिअइ ।
"जी, हमरा तो लम्मा समय तक, हमरा अभियो बहुत लम्मा समय तक रहे के हइ जी", ऊ बड़बड़इलइ, हमर हाथ दबइते । हम तेजी से ओकर कन्हा पर खुद के लगा लेलिअइ, आउ हमन्हीं एक दोसरा के चुंबन करते गेलिअइ ।
कैदी लोग के बाहर गेला के दस मिनट बाद हमन्हिंयों जेल से बाहर हो गेते गेलिअइ, कभियो वापिस नयँ आवे लगी - हम आउ हमर साथी, जेकरा साथे हम अइलिए हल । सीधे लोहार के पास जाय के हलइ, ताकि बेड़ी हटावल जा सकइ । लेकिन अब सशस्त्र मार्गरक्षी हमन्हीं के साथ-साथ नयँ अइलइ - हमन्हीं सर्जेंट के साथ रवाना होते गेलिअइ । इंजीनियरी वर्कशॉप में हमन्हिंएँ के कैदी लोग हमन्हीं के बेड़ी हटावऽ हलइ । हम प्रतीक्षा कइलिअइ, जब हमर साथी के बेड़ी हटावल जा रहले हल, आउ बाद में हम खुद भी अहरन (निहाई, anvil) भिर गेलिअइ । लोहार लोग हमर पीठिया के अपना दने कर लेते गेलइ, पीछू से हमर गोड़ उठइलकइ, अहरन पर ओकरा धइलकइ ... ओकन्हीं हलचल करते गेलइ, काम आउ कुशलता से, जरी निम्मन से, करे लगी चाहऽ हलइ ।

"अरे कीलक (rivet), कीलक तो सबसे पहिले घुमाव ! ...", बुढ़गर लोहरवा आदेश देलकइ, "ओकरा रखहीं, अइकी अइसे, ठीक हउ ... अब हथौड़ी से एकरा पीट ..."

बेड़ी गिर पड़लइ । हम ओकरा उठा लेलिअइ ... हमरा ओकरा अपन हाथ में रखके अंतिम तुरी ओकरा पर एक नजर फेरे के मन कर रहले हल । अभी मानूँ हमरा अचरज लगब करऽ हलइ, कि ऊ अबकहीं तो हमर गोड़ में हलइ ।

"अच्छऽ, भगमान किरपा करथुन ! भगमान किरपा करथुन !" रुँधल, कर्कश, लेकिन मानूँ कोय चीज से प्रसन्न स्वर में कैदी लोग बोलते गेलइ ।
"हाँ, भगमान के किरपा ! अजादी, नयका जिनगी, मरला के बाद पुनर्जीवन ... कइसन शुभ पल हइ !"

सूची            पिछला                   भाग-1 ; (लेखक के) भूमिका


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