मगही
[25]
दूरा-दलान
सुमंत
(मगही लेखक)
मौसम
के हिसाब से हर कोई बसंत के बहार लूट रहलन हे । जन्ने नजर घुमावऽ बसंत के बहार साफ-साफ
लौकऽ हे । गांव तो गांव भीड़-भाड़ से भरल शहर में भी बसंत अप्पन छाप छोड़ले हे । ठूंठ
पीपर तक पर हरिअरी छा गेलक हे । शहरी भले अप्पन काम-धंधा के फेरा में भाग-दउड़ में मशगुल
हथ, बाकि बसंत अप्पन छाप उकरे ऊपरे भी छोड़ले हे । देश-दुनिया लेल भले मथपीरी वाला महीना
फरवरी-मार्च होवे, जेकरा में सभे तरह के बजट बच्छर भर लेल पेश करल जाहे, बाकि हिन्दी
महीना के हिसाब से सबला मस्त महीना फागुन चल रहल हे । फागुन माने हंसी-खुशी, रंग-गुलाल,
गीत-गौनई, प्यार-दुलार के मदमस्त महीना, जेकर असर अइसन कि बूढ़ो जवान हो जा हथन । समूले
मगध में भर महीना लोग टोली में जात-पात से ऊपरे उठ के ढोल-मंजीरा, झाल-करताल के धुन
पर होली गीत गावऽ हथन । भगवान के नाम राम-कृष्ण-भोले शंकर से शुरू होवे वाला होली गीत
उहां तक पहुंच जाहे, जहां सभे एक रंग में रंगा जा हथ । का बूढ़, का जवान, का लइकन सब
होली के धून में मस्त हो जा हथन । आउ तब भर फागुन बुढ़वा देवर लागे, भर फागुन । माने
एक तो बसंत के बहार आउ दोसर फागुन महीना के मस्ती, लोग-बाग अप्पन सभे दुख-दरद भूला
के मस्ती में जीअ हथन ।
बाकि
दोसरा दन्ने इहे घड़ी देश के दिशा तय करल जा हे । आवे वाला साल लेल बजट बनऽ हे आउ ओकरे
मोताबिक देश के गाड़ी आगे बढ़ऽ हे । भारतीय रेल देश के सबला बड़का उपक्रम हे । दुनिया
में एकर अप्पन एगो अलगे पहचान हे । लाखो लाख लोग रोजे रेल से सफर करऽ हथन तऽ साथे-साथे
माल ढोवाई के भी काम रेल से होवऽ हे । मुम्बई आउ कोलकत्ता लेल तो रेल लाइफ लाईन हे
। जउन मुम्बई-कोलकत्ता में रेल के चक्का फेल तऽ पूरा महानगर फेल । अप्पन देश में आम
बजट के साथे रेल बजट भी पेश करल जाहे । रेल बजट में रेल मंत्री बासंती बयार बहावे के
पूरा कोरशिश करलन हे । न तो यात्री किराया बढ़ावल गेल आउ न माल किराया । चारगो नया ट्रेन
अंतोदय, हमसफर, उदय आउ तेजस एक्सप्रेस चलावे के सपना देखावल गेल हे । मेहरारू, बूढ़
आउ नौजवान सभे लेल ट्रेन में सुविधा बढ़ावल गेल हे । अलहेला लइकन लेल गरम दूध आउ गरम
पानी ट्रेन में भेंटाएत । बिहार के गयाजी आउ बिहारशरीफ स्टेशन चकाचक होएत । बिना फाटक
वाला रेलवे क्रांसिंग खत्म होएत, तऽ 2020 तक रिजर्वेशन में वेटिंग टिकट के झंझट खत्म
हो जाएत । माने रेल बजट एकदम से बसंत नियन सुहावन ।
एने अप्पन बिहार में भी आम बजट पेश करल
गेल, जेकरा में कृषि, शिक्षा, ऊर्जा आउ स्वास्थ्य पर बेसी करके जोर देवल गेल हे । राज्य
के विकास लेल मुख्यमंत्री के सातो निश्चय पर अमल करे लेल ठोस कदम उठावल जाएत । एकरा
लेल बजट राशि के आधा हिस्सा विकास योजना पर खरच होएत । मेडिकल आउ इंजिनियरिंग कालेज
के साथे पारा मेडिकल, पालटेकनिक, महिला आइटीआइ खोलल जाएत । माने राज्य के बजट पर भी
बसंत के बहार हे । केन्द्र के आम बजट से भी सभे के बड़ी उम्मीद हे, उहां भी बासंती बेयार
के कुछ न कुछ असर जरूर रहत । माने इ खुशगवार मौसम में सभे खुश रहऽ । अभी एतने...
प्रकाशित
प्रभात खबर-01-03-2016
मगही
[26]
दूरा-दलान
सुमंत
(मगही लेखक)
अपना
हिआं कहल गेल हे कि जहां मेहरारू सभे के पूजा होवऽ हे, उहां देओता के वास होवऽ हे ।
बाकि आज समाज में मेहरारू के हालत केकरो से छिप्पल नऽ हे । देवी-दुर्गा कहाय वाली मेहरारू
सभे बेसी करके बेचारी बन के जी रहलन हे । अपढ़वा तो अनपढ़वा हई हथन, पढ़ल-लिखल के भी हालत
समाज में बरोबरी वाला नऽ हे । मेहरारू सभे के ई हालत खाली अपने देश में नऽ दुनिया के
दोसरो देश में लगभग इहे हेऽ । शाइद इहे कारण हे कि विश्व स्तर पर 08 मार्च के अंतरराष्ट्रीय
महिला दिवस मनावल जा हे । इ अवसर पर लम्हर भाषण, सेमिनार आउ बड़ी कुछ के आयोजन भी करल
जाहे । बाकि एक दिन के बाद हालत जस के तस, फिन चुहिया के चुहिया कहानी नियन । मेहरारू
सभे के उचित मान आउ सम्मान भेंटाय, एकरा लेल सबला जरूरी हे कि इनकरा पढ़ाई के साथे-साथे
दोसरो क्षेत्र में विशेष आरक्षण के लाभ देवल जाए, जेकरा से आगे बढ़े के मौका भेंटाय
। आज भी केतने लड़की बीचे में अप्पन पढ़ाई-लिखाई छोड़ के घर-गृहस्ती के काम में लग जा
हथन । उनकरा में प्रतिभा के कउनो कमी नऽ रहऽ हे । इ बात मैट्रिक-आईए-बीए से लेके दोसर
प्रतियोगिता परीक्षा के परिणाम देखला से पता चलऽ हे । एकर बाबजूद इ पछूआ जा हथन । एकरा
लेल प्रयास करल जा रहल हे आउ उमें सफलता भी भेंटा रहल हे ।
अप्पन राज्य बिहार में मेहरारू सभे के
आगे बढ़ावे लेल सराहे जुकुर प्रयास करल गेल हे । इ कउनो हम मुंह देखौअल बात न कर रहली
हे । अरे हाथ कंगन के आरसी का आउ पढ़ल-लिखल लेल फारसी का इ तो देखे-सुने आउ निहारे के
बात हे । झुण्ड बना के एक ड्रेस में लड़की सभे के स्कूल जाना, एक तरह से बिहार के पहचान
समूले देश में बनल हे । प्राथमिक शिक्षक बहाली में मेहरारू सभे लेल पच्चास फिसदी आरक्षण,
सिपाही बहाली में आरक्षण आउ पंचायत चुनाव में पच्चास फिसदी आरक्षण देके सरकार एगो साहसिक
कदम उठौलक हे । जेकर परिणाम हेऽ कि आज सभे स्कूल में मास्टर जी के साथे आधा आधी मास्टरनी
जी भी लइकन के लिखा-पढा रहलन हे । मेहरारू सिपाही आज हाथ में बंदूक आउ लाठी-डंडा लेले
ड्यूटी कर रहलन हे, जे कभी सपनो में नऽ अदमी सोंचल हल । सिपाही माने मोछ वाला । पंचायत
चुनाव लेल नामांकन अपना हिआं चल रहल हे । एकरा में आधा सीट मेहरारू लेल हे । पंचायत
चुनाव में केतने अदमी बिना मुखिया के चुनाव लड़ले मेहरारू के नाम पर मुखिया जी बन गेलन
। कुछ लाजे-शरमे अपना के मुखिया जी न कहा के सौटकट में एमपी माने मुखिया पति कहा हथन
। अब इ सब होवे से मेहरारू सभे घर में मान-सम्मान बढ़ल हे । साथे-साथे उ घर के चहारदिवारी
से बाहरे निकले के साहस भी जुटौलन हे । कुछ लोग महिला आरक्षण के ऊपरे अप्पन अंगुरी
उठावऽ हथन, जउन कुछ हद तक अपना के सही भी साबित करऽ हथन । बाकि एकरा से मेहरारू सभे
के परिवार आउ समाज में मान-सम्मान बढ़ल हे, इ बात से इन्कार न करल जा सकऽ हे । परिवार,
समाज, देश आउ दुनिया में मेहरारू सभे के मरद के बरोबर मान-सम्मान मिले के चाही, इ बड़
जरूरी बात हे । अभी एतने बात ।
प्रकाशित,
प्रभात खबर-08-03-2016
मगही
[27]
दूरा-दलान
सुमंत
(मगही लेखक)
इ
बात हमरो खुदे अप्पन कान के विश्वास नऽ हो रहल हे, बाकि एकदम से चौबीस कैरेट सोना लेखा
सच हे कि आजकल खाली अप्पन मगधे में नऽ समूले बिहार में होली से पहिलहीं जम के मन रहल
हे-होली । बात रंग-गुलाल के होवे, कि खाय-पीए के, इया फिन गाजा-बाजा के साथे नाचे-गावे
के सभे कुछ मौज-मस्ती में हो रहल हे । हम्मर बात समझलथिन कि एकदम से फारे-फार बतलावे
पड़त । जी, हम बात कर रहली हे-पंचायत चुनाव लेल होवे वाला नामांकन के । जइसन कि अपनन्हीं
सभे के भी मालूम हेऽ कि बिहार में पंचायत चुनाव दस चरण में होवे वाला हे, जेकरा लेल
अधिसूचना दूए मार्च के जारी कर देवल गेलक हे । दसो चरण लेल नामांकन से लेके चुनाव के
तारीख निर्धारित कर देवल गेल हे । अइसे पहिला चरण के पंचायत चुनाव 24 अप्रैल के माने
होली से ठीक एक महीना बाद हे आउ अंतिम चरण के चुनाव 30 मई के हे । नामांकन के काम तीने
मार्च से चल रहल हे । नामांकन आउ चुनाव के बीचे में 24 मार्च के होली परब पड़ रहल हे
। होली खास करके अप्पन मगध क्षेत्र के एगो अइसन परब हे, जेकर तैयारी एक तरह से बसंत
पंचमी के सरस्वती पूजे से शुरू हो जाहे । खास करके गांव में इ घड़ी खेती-बारी के काम
से किसान-मजूर निश्चिंत रहऽ हथन । रबी, दलहन, तेलहन के साथे सर-सब्जी के फसिल इ घड़ी
एकदम से अप्पन जवानी के दहलिज पर खाड़ खेत-बधार में बउराएल रहऽ हे । अइसन में किसान-मजूर
भी भर फागुन मारे खुशी के बउराएल रहऽ हथ । एक तो बसंत रितु आउ दोसरे में फागुन के मद
मस्त महीना, काम-धंधा बेसी कुछ हईए नऽ, अइसन में पूरा महीना सभे के लहालोट कटऽ हे । एगो कहउत बड़ प्रचलित हे कि एक तो करैला, ऊपरे से
नीम चढ़ल, एकर ठीक उल्टी बात, एक तो धमधम चमेली आउ ऊपरे से चंदन चढ़ल । ठीक इहे बात हो
गेल । एक तो मस्त महीना फागुन आउ मद मातल महीना चईत, ऊपरे से पंचायत चुनाव । एकदम से
चकाचक । चुनाव आयोग के सख्ती के बादो नामांकन घड़ी उम्मीदवार से लेके आम जन में जउन
तरह के उत्साह आउ उमंग लौक रहल हे, चुनाव जीतला के बाद का करतन, कहल हम्मर बस के बात
नऽ हे । पंचायत चुनाव भी अजबे हे । एक्के साथे जिला परिषद, पंचायत समिति, मुखिया, ग्राम
पंचायत सदस्य, सरपंच आउ ग्राम कचहरी पंच के चुनाव होवऽ हे । जउन मतदाता के एक वोट देवे
में नानी मूअ हे, एक्के बेर उनकरा छौगो के वोट करे लेल छौगो बैलेट भेंटाएत, तऽ ढेर
के कपारे चकरी लेखा घुम जाएत । गलिमत इ रहऽ हे कि ढेर जगह पर वार्ड सदस्य आउ पंच के
साथे आउरो दोसर उम्मीदवार निर्विरोध चुना जा हथन । आउ न तऽ एक बेर छौगो बैलेट पर वोट
देवे में पढ़ल-लिखल तक के पसेना छूट जाहे । पंचायत चुनाव के प्रति अइसन उत्साह कि मरद-मेहरारू
नामांकन घड़ी एकदम से भेड़िया धसान जुट रहल हे । गाड़ी-छक्कड़ा, गाजा-बाजा, रंग-अबीर, मुर्ग-मोस्सलम
से लेके नस्ता-पानी के पोख्ता इंतजाम हो रहल हे । रंग-गुलाल उड़ावित, बाजा बजावित, नाचईत-गावईत
झुण्ड के देखला पर सहज बुझा हे कि होली से पहिलहीं जम के मन रहल हे-होली ।
प्रकाशित
प्रभात खबर-15-03-2016
मगही
[28]
दूरा-दलान
सुमंत
(मगही लेखक)
हमनी
सभे के भारतवासी होवे पर जेतना गुमान हेऽ, ओकरा से एक्को रती कम इ बात लेल भी गुमान हे कि हमनी बिहार के रहवईया सभे भाई-बहिन चाहे देश-विदेश
जहां भी रही बिहारी हे । अपना के बिहारी कहला इया कहौला से जउन खुशी के एहसास मन के
भीतर होवऽ हे, ओकरा इ कागज के पन्ना पर लिखल न जा सकऽ हे । अपना हिआं तो हठुआ से नौ
मन परब-त्योहार हे, ओकरे में कुछ उन्नईस तऽ कुछ बीस । निमन से चित्रगुप्त भगवान नियन
जउन परब-त्योहार के लेखा-जोखा तैयार करल जाए तऽ मुंह जब्बडी़ बात नऽ कह रहली हे-रोजे
कोई न कोई परब होवे के गारंटी हे । बाकि आम के भीड़ में कुछ खास होवऽ हथन, जिनकर महात्तम
बेसी होवऽ हे । ई बात परब-त्योहारो पर लागू होवऽ हे । आवेवाला हंसी-खुशी, रंग-गुलाल
के परब होली भी एगो अइसने खास परब हे, जेकरा में सभे के मन तरसऽ हे कि होली पर-परिवार
के साथे अप्पन घर में मनावल जाए । संस्कृत में कहल गेल हे कि प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम्
। माने जउन आंख के आगू हे, ओकरा लेल प्रमाण के का जरूरत ? होली परब से पहिले रेल के
आरक्षित सभे डिब्बा फुल । बिना आरक्षित रेल के डिब्बा में अइसन कचमाकूट भीड़ की गोड़-हाथ
पसारे के बात तो दूर, गलती से चुटियो घुस जाए तऽ ओकरा ससरे के मौका न भेंटाएत । गाड़ी-छक्कड़ा
में लोग चुटा-माटा लेखा लटक-फटक के जा हथ ।
परब-त्योहार नियन आजकल दिवस मनावे के भी
परम्परा दिन पर दिन जोर पकड़ले जा रहल हे । लइकाई के बात इयाद कर रहली हे पहिले हमनी
राष्ट्रीय परब के रूप में 15 अगस्त के स्वतंत्रता दिवस, 26 जनवरी के गणतंत्र दिवस,
02 अक्टूबर के गांधी दिवस आउ 14 नबम्वर के बाल दिवस, 05 सितम्बर के शिक्षक दिवस मनावऽ
हली । अब तो बेलेनटाईन डे, मदर डे, फादर डे, फुल डे आउ राम जाने ई गाड़ी जाके कहां रूकत
? 22 मार्च के बिहार दिवस मनावे के परम्परा बेसी पुरान नऽ हे, बाकि आज के तारीख में
जउन खुशी आउ उत्साह के साथे ई समूले सूबा में मनावल जा हे, दोसर कउनो परब से ई कम नऽ
हे । भोरे से लेके पहर रात तक एक पर बढ़ के एक कार्यक्रम राजधानी से लेके जिला-जेवार
स्तर पर आयोजित करल जा हे । अंग्रेज अप्पन सुविधा लेल 1912 में बिहार के बंगाल से अलगे
कर देलन हल । बाद में 01 अप्रैल 1936 में उड़िसा आउ 15 नबम्बर 2000 के बिहार से झारखण्ड
राज्य अलगे हो गेलक । खास करके बिहार से झारखण्ड राज्य के अलगे होला पर लोग के बुझाएल
की अब बिहार में बाढ-बालू आउ सुखाड छोड़ के कुछो न बचल । बाकि बिहार अप्पन मेहनत के
बल उ कारनामा कर देखौलक कि आज बिहार पाछे नऽ हे । बिहार दिवस के अवसर पर हमनी अपना
के गौरवांवित महशूस करऽ ही कि हम बिहारी ही । उ राज्य के रहबईया ही जहां भगवान बुद्ध
के ज्ञान भेंटाएल, सिक्ख गुरू गोविन्द सिंह के जलम होएल, बाबू वीर कुंवर सिंह अस्सी
बच्छर के उमर में अंग्रेज सभे के नाक में दम करलन, गांधी जी चम्पारण से सत्याग्रह के
शुरूआत करलन, जहां नालन्दा के खण्डहर ई बात के गोवाही दे रहल हे कि कभी उ दुनिया के
नामी विश्वविद्यालय हल, जहां सम्राट अशोक, चन्द्रगुप्त, शेरशाह शासन के बागडोर सम्हारलन,
जहां महान खगोल विद् आर्यभट्ट, गुरू चाणक्य,
चिकित्सक जीवक, कवि विद्यापति, भीखारी ठाकुर होएलन । उहां के वासी होवे के नाते बिहार
दिवस पर हमरा बिहारी होवे के गर्व हे ।
प्रकाशित
प्रभात खबर-22-03-2016
मगही
[29]
दूरा-दलान
सुमंत
(मगही लेखक)
फगुआ
तो एकदम से निके-सुखे कट गेल । शासन-प्रशासन के इ बात लेल ओड़िया-खंचिया से धन्यवाद
देल चाहऽ ही जिनकर प्रयास से होली के नाम पर हुड़दंग फैलावे वालन के इ बेर दाल नऽ गलल
। जहां-तहां लोग हुड़दंग करे के सुरसार भी करलन तऽ पहिले से मुस्तैद प्रशासन हुड़दंगी
के एक नऽ चले देलन । इ बच्छर अगजा भोर में फूंकाएल, इ चलते दोसरका दिन आंतर के बाद
सग्गर होली एक दिन बाद मनावल गेल । कादो-माटी के नाम पर गाँव-शहर, टोला-टाटी में पहिले
जउन तरह के हुड़दंग करल जा हल, इ बेर कहूं देखे-सुने ला नऽ भेंटाएल । कुर्त्ता फार होली
इ बच्छर इतिहास लेखा बन के रह गेल । लोग मिलजुल के रंग-गुलाल के परब होली खुशी आउ उत्साह
से मनौलन । परिवार के साथे बिना डर बिना भय के लोग एक दोसरा के घरे होली के बधाई देवे
गेलन । देर रात तक आवा-जाही बनल रहल । कहूं कोई तरह के अप्रिय घटना नऽ घटल । गयाजी
के होली दोसर जगह के होली से एकदमे अलग तरह के होवऽ हे । होली के एक दिन बाद झुमटा
निकालल जा हल । जेकर रूप आज बदल गेलक हे आउ ओकर जगह पर मटका फोड़े के परम्परा जोर पकड़ले
हे । मटका फोड़े में रंग के जगह एक दोसरा के पानी पोरावल जा हे । माने होली के दोसरा
दिन बाद भी निके-सुखे घर से निकलना गयाजी में मोस्किल हे । जहां मटका फूटऽ हे, उहां
दू-चार घंटा पानी के बौछार इ तरह से करल जाहे कि उहां से गुजरइत लोग के बचना मोस्किल
हे । एतने नऽ गयाजी में बूढ़-पुरनिया लेल बुढ़वा मंगल भी मनावे के परम्परा कभी हल, जउन
होली के बाद आवेवाला मंगल के मनावल जा हल । अब धीरे-धीरे बुढ़वा मंगल खत्म होवे पर हे
। जहां-तहां अभिओ मंदिर में बइठ के बूढ़ा लोग दम तोड़इत बुढ़वा मंगल मनावऽ हथन । काशी
अइसन खास जगह पर आझो बुढ़वा मंगल मनावल जा हे । होवे कुछो बाकि इ बेर होली पर हुड़दंगी
सभे के हुड़दंग मचावे के मौका नऽ भेंटाएल । अइसे गुड फ्राइडे आउ ओकरे बाद दिन चौथा शनिचर
होवे से बैंक के साथे ढेरे ऑफिस, स्कूल-कॉलेज के बंद रहला से होली के सुरूर एतवार तक
सभे पर सवार रहल । अब जाके सोमवार से सभे सामान्य होलन । प्रशासन के मुस्तैदी से होली
के रंग कहूं बदरंग नऽ होएल । अब तो फागुन के बाद फागुन से भी बेसी रसगर आउ लासा सन
लसलस महीना चइत जेकरा हिन्दी के नया साल संवत् के पहिला महीना मानल जा हे, चढ़ल हे ।
चइत महीना फागुन से भी बेसी आग लगावन हे । चइत के महीना में विरहीन के विरह वेदना आउरो
बढ़ जा हे । इ चइत के महीना में कोयली के बोली विरहीन के करेजा गोली नियन बेधऽ हे ।
जेकर जिकीर मगही के पारम्परिक चइती गीत में केतना निमन से करल गेल हे-
कोयली
मीठी बोलिया हो, कोयली मीठी बोलिया ।
आज
काहे बोले आधी रतिया हो रामा, कोयली....
रोजे-रोजे
बोले कोयली, भोर-भिनसरवा
आज
काहे बोले आधी रतिया हो रामा, कोयली...
होवे
दे बिहान कोयली, खोंतवा उजाड़वऊं
जड़ी
से कटइवौ धानी बगिया हो रामा, कोयली...
माने बसंत पंचमी के दिन से बसंत अप्पन
जादू जउन सग्गर बिखेरले हे, उ फागुन के बादो भर चइत कपार चढ़ के बोलइत रहत । परकीरति
के साथे हर कोई मगन हथ । आम के बउराएल मंजर में लगल टिकोरा सनासन बढ़ रहल हे, खेत में
गेहूंम के बूढ़ाएल बाली झूम रहल हे, डाली पर बइठल कोयली दिने-राते कूहूंक रहल हे, महुआ
से रसगर फूल टपक रहल हे, पछूआ हावा धधा रहल हे, अइसन में अदमी के मन बेकाबू न होवे,
इ तो न्याय नऽ हे । इ लेल ढोलक-छाल-मंजीरा के ताल पर लोग-बाग अब फगुआ के जगह पर चइती
गीत गा रहलन हे-चइत मासे होवऽ नऽ सहइया हो रामा........ ।
प्रकाशित
प्रभात खबर-29-03-2016
No comments:
Post a Comment