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Friday, June 17, 2016

रूसी उपन्यास –"आझकल के हीरो" ; (लेखक के) प्रस्तावना



रूसी उपन्यास – “आझकल के हीरो”

मूल रूसी - मिख़ाइल ल्येरमन्तव (1814-1841)            मगही अनुवाद - नारायण प्रसाद

(द्वितीय संस्करण में लेखक के) प्रस्तावना

हरेक पुस्तक के प्रस्तावना पहिला आउ एकर साथे-साथ अंतिम चीज होवऽ हइ; ई या तो रचना के उद्देश्य के व्याख्या के रूप में, चाहे आलोचना पर स्पष्टीकरण आउ उत्तर के रूप में काम आवऽ हइ । लेकिन साधारणतः पाठक लोग के न तो नैतिक उद्देश्य आउ न समीक्षक के आक्षेप से कुछ लेना-देना रहऽ हइ, आउ ओहे से ओकन्हीं प्रस्तावना नयँ पढ़ते जा हइ । लेकिन खेद हइ, कि अइसन बात हइ, विशेष करके हमन्हीं हीं । हमन्हीं के जनता अभियो अइसन किशोरावस्था में (अर्थात् अपरिपक्व) आउ सरलहृदय हइ, कि कहानी के समझ नयँ पावऽ हइ, अगर एकर अंत में नैतिक शिक्षा नयँ मिल्लऽ हइ । ऊ परिहास नयँ भाँप पावऽ हइ, व्यंग्य नयँ समझ पावऽ हइ; ओकर बस लालन-पालन ही ठीक से नयँ हो पइले ह । ओकरा अभियो नयँ समझ में आवऽ हइ, कि शिष्ट समाज में आउ शिष्ट पुस्तक में प्रत्यक्ष अपशब्द के कोय स्थान नयँ हइ; कि आधुनिक शिक्षा स्तर अधिक तीक्ष्ण, लगभग अदृश्य, आउ तइयो मारक, शस्त्र के आविष्कार कइलके ह, जे चाटुकारिता के परिधान में दुर्निवार आउ अचूक प्रहार करऽ हइ ।
हमन्हीं के जनता एगो सुदूर प्रांत निवासी अदमी नियन होवऽ हइ, जे बैरी दरबार के दूगो कूटनीतिज्ञ के बातचीत चुपके-चोरी सुनके, आश्वस्त हो जा हइ, कि ओकन्हीं में से हरेक आपसी अत्यंत स्नेहमय मित्रता के हित में अपन सरकार के धोखा दे हइ । ई पुस्तक बिलकुल हाल में कुछ पाठक आउ पत्रिका (समीक्षक) के भी शब्द के शाब्दिक अर्थ ग्रहण करे के दुर्दैवी विश्वासशीलता के अनुभव कइलके ह । कुछ लोग तो भयंकर रूप से रुष्ट हो गेलथिन, आउ असल में, कि उनकन्हीं के सामने "आझकल के हीरो" जइसन दुराचारी के उदाहरण (आदर्श) के रूप में प्रस्तुत कइल जा हइ; कुछ दोसर लोग तो बहुत सूक्ष्मतापूर्वक टिप्पणी करते गेलथिन, कि रचनाकार अपन खुद के चित्र आउ अपन परिचित लोग के चित्र अंकित कइलका ह ... दकियानूसी आउ क्षुद्र मजाक ! लेकिन स्पष्ट हइ, रूस के सृजन ही अइसे होले ह, कि सब कुछ एकरा में नावा होते रहऽ हइ, सिवाय अइसन बेहूदगी के ।
हमन्हीं हीं मनोहर से मनोहर परीकथा मोसकिल से व्यक्तित्व के अपमान के प्रयास में आलोचना से बच पावऽ हइ।
आझकल के हीरो, हमर प्रिय महोदय, बस खाली एगो चित्र हइ, लेकिन एक व्यक्ति के नयँ - ई चित्र, हमन्हीं के समुच्चे पीढ़ी के विकार से निर्मित हइ । अपने हमरा फेर कहथिन, कि व्यक्ति एतना दुराचारी नयँ हो सकऽ हइ, लेकिन हम अपने के कहबइ, कि अगर अपने सब तरह के शोकात्मक आउ रोमांचक खलनायक के अस्तित्व के संभावना में विश्वास कइलथिन, त पिचोरिन के असलियत में काहे नयँ विश्वास करऽ हथिन ? अगर अपने बहुत अधिक भयंकर आउ दुष्ट लोग से संबंधित मनगढ़ंत कथासाहित्य के प्रशंसा कर सकऽ हथिन, त काहे ई चरित्र के, चाहे कपोल-कल्पित रहइ, अपने हीं जगह नयँ मिल सकऽ हइ ? की ई कारण से तो नयँ, कि अपने नवयुवक में जेतना अपेक्षा करऽ होथिन ओकरा से कहीं अधिक सत्य होवऽ हइ ? ...

अपने कहथिन, कि नैतिकता के एकरा से कोय फयदा नयँ होवऽ हइ । माफ करथिन । लोग के काफी मिष्टान्न खिलावल जा चुकले ह; ओकन्हीं के एकरा से पेट खराब हो गेले ह - अब  जरूरत हइ कड़वा दवाय के, कटु सत्य के। लेकिन एकरा बाद ई नयँ सोचथिन, कि ई पुस्तक के लेखक के कभियो लोग के दुराचार के सुधारक बन्ने के गौरवपूर्ण स्वप्न हलइ । अइसन अनाड़ीपन से ओकरा भगमान बचावे ! ओकरा बस आधुनिक व्यक्ति के चित्रित करे में खुशी होलइ, जे रूप में ओकरा समझऽ हइ, आउ ओकर आउ अपने के दुर्भाग्य वश, जेकरा साथ बहुत अकसर भेंट होले ह । एहो गनीमत हइ, कि रोग के निदान (diagnosis) हो गेले ह, लेकिन ओकर इलाज कइसे होतइ - ई तो भगमाने जानऽ हथिन ।


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