प्रबंध काव्य: सोनपरी - सर्ग 3
रचताहर: लालमणि विक्रान्त
तेसर सर्ग
भाग्य के सूरज
जिनगी के अकास में
चमकइ हइ एक दिन।
ओकर चमक से दुनिया
जगमग होबइ हे
बिकसइ हइ एक दिन।
औसर भी सभे के
दे हथ भगवान जी
करतब देखाबइ के।
मौका जे चूक जाय
हाथ मलइत रहतइ
इन्तजार करो मौका आबइ के।
औसर आबइत हो
तोहर दूरा पर
अउर लौट जाय।
दोसर कोय का करतो
अपने अनकट्ठल हा
सोंचो दोसर उपाय।
सोनपरी चेतल हलन
औसर के फयदा
तुरते उठइलन।
सरकारी इसकुल में
शिक्षक के कुरसी पर
आसन जमइलन।
इसकुल के हाल देख
सोनपरी चौंकल
बस इसकुल हे नाम के।
कइसन बदरंग हाल
होबे पढ़ाय नञ
लगे विधि वाम हे।
इसकुल के रहतइ
अइसने हाल जब
का होतइ देश व समाज के।
बिन शिक्षा पइले
कइसे साकार होत
सपना राम राज के।
सोनपरी समय पर
जाइत हली इसकुल रोज
ठाढ़ रहइ हली ओहँइ पास में।
अइतन हेडमास्टर त
खुलत इसकुल गेट
रहइ हली आस में।
रोज इहे हाल हल
हेड मास्टर के आदत
रोज लेट आबइ के।
आखिर हेडमास्टर के
कोशिश के करे
बात समझाबइ के।
मास्टर के भी त
अइसने चाल-ढाल
कुँइअन में जइसे घोरल भांग हे।
लड़िकन के बाप के
जइसे कोय मतलब नञ
उनकर भी त नञ कोय माँग हे।ह
बहुतों दिन तलक
अइसहीं चलइत रहल
हाल इसकुल के।
गार्जियन भी नञ अइलन
इसकुल तरफ देखइ ला
कहियो भी भूल के।
बकि सच के सूरज
एक दिन निकलइ
भागलइ बदरी छोड़ आसमान के।
मौसम बदलइ
फिरलइ दिन इसकुल के
जइसे किरपा होल रहे भगवान के।
इहे तरह से समय
बदलइत रहइ सबके
नियम भी त इहे जहान के।
धीरज साहस संयम
अपनाबइ हथ लोग जे
वक्त आबइ हइ उनकरो गौरव गान के।
हेडमास्टर साहब के
हो गेलन ट्रांसफर
गेला मन मार के।
सोनपरी चुप रहलन
मास्टर निमझान हला
देख रंगत बयार के।
सोनपरी इसकुल के
हली सीनियर टीचर
मिलल इसकुल के प्रभार।
अब त इसकुल संचालन के
सोनपरी के माथा पर
आ गेलन भार।
मिलल प्रभार त
एक -दू दिन बाद
कहलन सभे मास्टर से सोनपरी।
बदलइ के हइ सभे
रचल आ रहल रेबाज
खुलत इसकुल अब देख के घड़ी।
इसकुल खुलइ लगल समय
मास्टर लगला करमराय
बकि कउन उपाय।
सोनपरी बोललन
बहुत हो गेलइ आझ तलक
चलइ दहो इसकुल के नियम से भाय।
इसकुल हे गाँव में
गरीब के बचवन के
होबे पढ़ाय।
सभे मिल सोंचइ के
कन्नी कटाबो नञ
हम्मर हो इहे राय।
सहे-सहे दिन बीतल
होबे लगल पढ़ाय
उहे इसकुल में।
जिनगी विकास में
शिक्षा अनमोल हे
जिनगी के मूल हे।
इर्द-गिर्द होबे लगल
इसकुल पढ़ाय के
चरचा सरेआम।
उहे इसकुल बकि
आज काहे पसर रहल
इसकुल के नाम।
काम निम्मन जे करे
ओकरे सगर गूंजइ हे
दुनिया में नाम।
जिनगी होबइ हे
ओइसने लोगन के
सच में अभिराम।
अब ले गरीब के बचवन ला
गाँव में पढ़ाय के
सरकारी इसकुल हे।
इहाँ के दशा देख
मन बौख जइतो
शिक्षा विभाग के जइसे इहे रूल हे।
बिल्डिंग-पर बिल्डिंग
इसकुल के नजारा हो
पढ़इ के परिवेश नञ।
इहे ला कहइत ही
आज तलक होलइ नञ
विकसित अपन देश नञ।
केकरो विकास ला
अउर कुछ रहे नञ
शिक्षा जरुरी हइ।
संकट सभे सहके
बचवन के शिक्षा दहो
ई त मजबूरी हइ।
प्राइवेट इसकुल भी त
बिजनेस विस्तार के
बड़गो दोकान हो।
पढ़वइ -पढ़ावइ के माहौल कहाँ
संस्कार सिखाबइ नञ
बनल बुतरूअन कुबान हो।
स्वारथ में लीन लोग
खोललन इसकुल जब
कइसन फिन आशा हो।
जिनगी के अंगना में
सच हम कहइ हियो
पसरल अमासा हो।
बिना संस्कार के
शिक्षा त बेरथ हो
कइसनो इसकुल रहइ
संस्कार जरुरी हइ।
अइसन बात त
रिसि-मुनि सभे कहइ।
योग के महत्त्व
आज के शिक्षा में
स्वास्थ्य ला जरुरी हइ।
बिना सुन्दर स्वास्थ्य के
जिनगी जहान सभे
सच में मजबूरी हइ।
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