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Saturday, December 19, 2020

प्रबंध काव्य: सोनपरी - सर्ग 1

प्रबंध काव्य: सोनपरी - सर्ग 1 

रचताहर:    लालमणि विक्रान्त 

पहिला सर्ग: ग्यान के किरण

  (1)

सांझ पहर

नदी के कछार पर

एकटक निहार रहल

पसरल अरुणाई के।

मंत्रमुग्ध -सन सुबोध

हेर रहल

सूरज भगवान के 

विदाई के।

 

 (2)

सूरज भगवान जे

जहान के 

रश्मि रोज बाँटइत

आबइत हथ रथ पर।

सिखवइत हथ रोज-रोज

रे मनुज!

बाँटइत बढ़इत रहें

ग्यान के किरण

जिनगी के पथ पर।

 

 (3)

सच हे 

कहइत हथ लोग

जिनगी जहान में 

रोशनी जे बाँटइत हथ

बिना लोभ -मोह के।

भोगइ नञ

अइसन जन

जिनगी के राह में 

कहइँ भी विछोह के।

 

 (4)

नदी के कछार पर

पसरल हरियल कचोर

अउर जलधार पर 

आगु बढ़इ के होड़।

देख मन सुबोध के 

सोंचइत खड़ा उहाँ

जिनगी के अंगना में 

होतइ कइसे करके

खुशियन से भरल भोर।

 

 (5)

साहस -शैल के भाव

दिल में जब भरल रहइ

फिन कहाँ

भव-भय भार

बोझ कोय सहइ हे।

निडर भाव से बढ़इत 

नित नया शिखर गढ़इत

अइसने के जिनगी में 

वसंत के बयार बहइ हे।

 (6)

सच में ओइसने जन के

आरती उतारइ ही

जुड़इ हे जे जनहित से

अपन स्वार्थ छोड़के।

जिनगी-भर लोग उनकर

चरनन के धूरी

लगबइ निरार पर

विपदा से बचइ ला

आशा में भोर के।

 

 (7)

सहे-सहे सांझ

अपन अंचरा उड़ावइत

बाँहु वलय में 

अन्हार के समाबइत

बढ़ रहल

सखी रजनी से मिलइ ला।

मस्ती भरल चाल में 

सोलहो सिंगार कर

फूल-सन खिलइ ला।

 

 (8)

खुरपी से घास गढ़

सोनपरी ठाढ़ हल

गाछ तर

बोझा बौसाव -भर बान्हके

केकरो इन्तजार में।

कि उठा देत बोझा

हो रहल अन्हार

का करब इहाँ

ठाढ़ अब बघार में 

 

 (9)

मौसम पतझर के

आउ सांझ के पहर

बिछल जमीन पर

सूखल पत्ता के ढ़ेर।

ओकरे पर 

चलल आबइ

सोंचइत कुछ राह में 

लपकइत सुबोध

हो रहल अबेर।

 

(10)

ठिठक गेल पाँव

तब सुबोध के

अनचक्के नजर पड़ल

गाछ तर खड़ी

सोनपरी पर।

सोनपरी कइलक संकेत

बोझा उठाबइ ला

ठुकमुका गेल पहिले 

नजर दे घड़ी पर।

 

 (11)

अन्ने-ओन्ने देखके

झट सुबोध

उठा देलक

सोनपरी के

घास बान्हल बोझा।

सोनपरी चल देकर

झटक के 

अपन घर तरफ

राह पकड़ सोझा।

 

(12)

बोझा के भार से

राह चलइत सोनपरी 

घाम से भरल देह

लचकइत कमर

बकि चाल मस्त।

लुक-लुक बेरिया

घर पहुंचइत-पहुंचइत

हो गेल हल

सोनपरी पस्त।

 

 (13)

सरोवर के तट पर

सोनपरी के घर

घर पहुंचइत सोनपरी 

बोझा पटक देलक

लगल आराम करइ।

सुसतइला पर

हाथ-मुंह धोलक

जुट गेल फिन

घर के काम करइ।

 

 (14)

चूल्हा सुलगइलक

मम्मी कहे लगली

थक्कल तू अइली हें

जा तू पढ़ाय कर।

पढ़इ में कोताही नञ

पढ़के होशियार बन

 खूब धन कमइहें

ध्यान देखिहें माय पर।

 

 (15)

छोटगर एगो भाय हल

ओकरा बोलाके

किताब निकाललक

लग गेल पढ़ाय ला।

भाय- बहिन दुन्हू

बैठ पढ़े लगली

थकल दिमाग जब

लगली बतिआय ला।

 

 (16)

मम्मी लगलन समझाबे

पढ़ल-लिखल लोग

जिनगी -भर

चैन के वंशी बजाबइ हे।

संकट उनका देख

ससर के

भागइ एतना दूर

 कि कई पुस्त तलक

उनकर घर में नजर न आबइ हे।

 

 (17)

शिक्षा हइ अनमोल रतन

परतर के करे एकर?

मिल जाइत जिनका के

उनकर जिनगी - सरंग से

संकट के बादल

खुद से सरस जा हइ।

रोशनी झकास

उनकर जिनगी के अंगना में 

खुशी के पसर जा हइ।

 

 (18)

लोग कहइ हथ

शिक्षा के मतलब

नैतिकता के झकास

जिनगी के हर गली मोड़ पर

 जनबइ जबानी पर।

असर करइ सौंसे समाज पर

जमबइ अपन रंग

अउर देखाबइ जोर

सौंसे जिन्दगानी पर।

 

 (19)

अइसन नञ कि

पढ़ल-लिखल लोग

नैतिकता रख ताक पर

आकंठ डूबल हथ

हर दिन बटमारी में।

अइसन शिक्षा कउन काम के 

विकसित नञ करे समझ शक्ति 

अउर ढकेल दे जे

नव जुवकन के बेरोजगारी में।


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