प्रबंध काव्य: सोनपरी - सर्ग 2
रचताहर: लालमणि विक्रान्त
दूसर सर्ग: प्रेम के हिलोर
सोंटल बदन
सोनपरी के
नरकटिया के पेड़ -सन।
अउर केश
झूमइ कान्हा पर
तोड़इ संन्यासी के प्रण।
नयन बाँक
जे तीर चलाबे
घायल करे मन-प्राण के।
लोल कपोल
अउर नञ कुछ कम
गाहक बनतइ जान के।
रत-रत ठोर
लगइ कि जइसे
खइलक मगही पान के।
दाँत के पंगत
चमचम चमके
बिजुरी आसमान के।
झटक के चलतो
देखइत बनतो
नर्तन होबइत उरोज के।
रुकलो पाँव
अगर कहइँ त
देखो ओकर पोज के।
कमर देख के
डर सतबइ हे
काहे एते कमजोर हे।
तइयो सुंदरता
शरीर के
पसरल पोरे-पोर हे।
श्यामल आनन
बिहँसइ हे जब
का करतइ जे गोर हे।
लगइ कि जइसे
बीतल रतिया
हो रहलइ अब भोर हे।
इसकुल जाइत
सोनपरी जब
नदी के कोरे-कोर।
नजर पड़इते
दहक उठल
सुबोध के पोरे-पोर।
नजर झुकइले सोनपरी
जा रहलन
जब इसकुल के ओर।
बन गेलन सोनपरी
सुबोध ला
बड़गो चितचोर।
उठइ लगल
दिल के तलाव में
मधुमय प्रेम हिलोर।
देख-देख सोनपरी के
सुध-बुध खोके सुबोध
होलइ आनंद विभोर।
मौसम वसंत के
प्रेम के पराग
चढ़ल आसमान।
छेड़ देलक
धरती से सरंग
मिलन के अभियान।
एक दिन मौका पा
टोक देलक
राह में सुबोध।
सहे-सहे
होबइ लगल दूर
राह के अवरोध।
समय के चक्र
अपन गति में
चलइत रहल।
तरह-तरह के
बयार जब -तब
बहइत रहल।
एक दिन साँझ पहर
सोनपरी खड़ी हल
सखी के इन्तजार में।
फर-फर उड़ रहल
हरियर दुपट्टा
पछिया बयार में।
अनचक्के सोनपरी
देखलक सुबोध के
इहे मुँह आबइत।
लपकल चलल आबइत
झूमइत राह में
गीत गुनगुनाबइत।
पुछलक सोनपरी से सुबोध
बताबो कि कब तलक
हम्मर अंगना जगमगइबी।
कब तलक हम्मर दिल में
उठइत ज्वार -भाटा-सन
कुहराम तू मचइबी।
कहलक सोनपरी
अभी पढ़इ दा हमरा
जोर नञ मचाबो।
हम्मर पढ़ाय में
प्रेम गीत गाके
आफत नञ लाबो।
प्रेम के मतलब नञ
बनो अवरोध
जिनगी के राह में।
खलल नञ डालो
प्रेम के नाम पर
पढ़इ के चाह में।
अभी त वक्त हइ
जिनगी जहान में
पढ़ के आगु बढ़इ के।
मेहनत के बल से
बुद्धि के साथ ले
शिखर पर चढ़इ के।
माय के कहनाम से
पढ़इ के हइ हमरा
धन के सरिता बहाबइ ले।
सुख -समृद्धि के लक्ष्मी
अपन घर -अंगना में
हमारा हइ बोलाबइ ले।
अभी वक्त हइ हमरा
औसर के गंगा में
गोंता लगाबइ के।
समय चूक गेला पर
रहतइ काम बस
बैठ पछताबइ के।
समय सभे दिन एक- सन
रहतइ नञ
हम जानइ ही।
समय के साथ चलइ के
बुढ़वन के कहल बात
दिल से हम मानइ ही।
सोनपरी कहलक बात एक
सुबोध से
मन थिर करइ के काम हे।
समय के उपयोग जे
करइ से चूकइ हे
उनकर जिनगी में राम-राम हे।
बात अपन कहके
सोनपरी घर तरफ
तेज कदम चल देलक।
समय के उपयोग आउ
पढ़इ के महत्त्व पर
आज खूब बल देलक।
बीतइत समय रहल
वक्त बढ़ल तेजी से
बकि हल मुकाम पर।
मेहनत के जोर से
गति बढ़ल चलल गेल
लक्ष्य अभिराम पर।
मेहनतकश लोग
अपन लक्ष्य पर झंडा
फहराइए के छोड़इ हे।
लक्ष्य के राह में
जमल चट्टान के
हिम्मत के हथौड़ा से तोड़इ हे।
उदाहरण भी एक-से -एक
मौजूद हइ इतिहास में
देखइ के काम हइ।
पर्वत पुरुष दशरथ
अउर लौंगी भुइयां
गूंजइत सगर नाम हइ।
एक-न-एक दिन
मेहनत अपन मंजिल पर
झंडा फहराबइ हे।
लोग सभे जहान के
अइसन लोगन के
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