प्रबंध काव्य: सोनपरी - सर्ग 4
रचताहर: लालमणि विक्रान्त
चौथा सर्ग
पढ़-लिखके अइलन सुबोध
कहला अब हम बनबो मुखिया।
तभिए हम्मर गाँव के लोगन
हो सकइ हथ सभ्भे सुखिया।
गाँव सुधरत देश सुधरतइ
अभी हम्मर इहे हको नारा।
रहे सुख-सुविधा जब गाँव में
काहे कोय जाय शहर बेचारा।
मुखिया जी स्वारथ में अन्हाड़
सूझइ नञ जनता के लाचारी।
समटो जल्दी अप्पन बिछौना
आ रहलो अब हम्मर बारी।
बकि अभी हइ चुनाव में देरी
शुरु करब जनता के सेवा।
हम्मर निम्मन काम देख के
जनता जी देथिन हमरा मेवा।
जनता के दिल पर राज करइ के
रहतइ हम्मर अप्पन तरीका।
मुखिया त हम होबइ बकि
करबइ नञ कहियो हम ठीका।
इसकुल अउर स्वास्थ्य केन्द्र के
चाल- चलन में करब सुधार।
बचवन के रहतइ पढ़ाय के
रोगी के इलाज के अधिकार।
गरीब के बुतरू भी पढ़-लिख के
जिनगी में सुख के उपजइतइ।
अउर गरीब-गुरबा के घर बैठल
निम्मन इलाज के सुविधा मिलतइ।
पहिले एकरा राह पर लाके
करबइ जन-गण के कल्याण।
अभी हथिन जे मुखिया जी
उनका नञ हइ एकर ध्यान।
जन-गण के कल्याण के खातिर
करइ लगलन सुबोध नित काम।
गूंजइ लगलइ जिला-भर में
तब सुबोध के सगरो नाम।
पेपर में भी छपइत हल
सुबोध करइ हल जे काम।
रसे-रस पसरल सुबोध के
चर्चा हो गेल ललित-ललाम।
पेपर में पढ़के सोनपरी के
खुशी से झूमइ लगलन मन
कहलक अइसने जीवन साथी
पाबइ के हे हम्मर प्रण।
हो गेलन अइसन संयोग कि
भेटा गेलन आज सुबोध।
सोनपरी के दिल में जइसे
होबइ लगल दूर गतिरोध।
कहलक सोनपरी सुबोध से
हमरो जीवन के हे अभिलाषा।
दीन-हीन जन के सेवा कर
बदलब जिनगी के परिभाषा।
मुस्करावइत बोलल सुबोध कि
कब हम ले अइअइ बरियाती।
हमरो मन के बात होबइ कि
मिलइ हम्मर संजोगल थाती।
सुन सुबोध के सोनपरी
कहलक अप्पन बात लजाके
रखबो अप्पन हृदय द्वार पर
तब हम वंदनवार सजाके।
अप्पन घर-परिवार के बता
बतिअइबो हम एक दिन आके।
इसकुल में अधिक व्यस्त ही
होतइ सभे अब औसर पाके।
जे करना हो जल्दी कर ला
फिन चुनाव हमरो आ जइतो।
अबकी त मुखिया चुनाव में
हमरो भाग्य द्वार खुल जइतो।
चलो कोट में कर लेम शादी
नयका राह हम त अपनइबो।
जहाँ दहेज ला जगह न होबे
अइसने सभे के संदेश सुनइबो।
बकि कुछ त नेम धरम के
सोनपरी कहलक अपना।
समय निकाल हम्मर घर आके
हम्मर मम्मी से बतियाबो।
मम्मी जे चाहथ हम करबो
हम्मर इहे हकइ कहनाम।
ओकरे बल इहाँ तक अइलूं
सभ्भे शुभ करथिन हम्मर राम।
बहुत दिनन के बाद सुबोध के
सोनपरी से होलइ अब बात।
सोनपरी अप्पन घर जाके
मम्मी से कइलन गलबात।
मम्मी कहलन सोनपरी से
हमरो मन लड़िका अइसने चाही।
अप्पन सोना-सन सोनपरी के
हम अइसने लड़िका से बिआही।
मिलल सोनपरी के सिग्नल
खुशी से हो गेल आत्मविभोर।
जिनगी के अंगना में अब त
होबइ वाला हइ मधुमय भोर।
सोनपरी के आनन पर के
सुन्दरता बन गेल चितचोर।
खुशी भरल उमड़ल नदियन -सन
जइसे बहइ कोर के छोड़।
सुरुज चान्द के मिलन के तिथि
आ गेलन हल बहुत नगीच।
खिलल कुसुम-सन सोनपरी
देलक संवाद सखियन के बीच।
सखियन कहलक शुरु करो तब
जिनगी के सुखमय अभियान।
हम सब भी देखब दूल्हा के
जे हथ सोनपरी के प्राण।
अतनइ में सुबोध आ गेलन
जइसे घटा बीच दिनमान।
सोनपरी से सखियन कहलन
लगइ हे अब हो गेल विहान।
सखियन करइ लगल सुबोध से
हँसी मजाक अउर ठिठोली।
सोन चिरइयाँ सोनपरी भी
चहकल पा सखियन के टोली।
पूरनमासी के शुभ दिन में
सोनपरी के हो गेल व्याह।
सोनपरी के संग सुबोध अब
पइलन जिनगी के खुशी अथाह।
सोनपरी सुबोध के घर के
बन गेलन हल पटरानी।
मम्मी अउर पापा सुबोध के
कहे लगलन अप्पन कहानी।
दुखछल हल हम्मर मन तब से
कहला सुबोध बनब मुखिया।
पढ़- लिख के तू का करबा
रहे रहब अब हम दुखिया।
सरकारी नौकरी करतन हल
हम्मर त हल इ हे अभिलाषा।
बकि आज अब मन हरियर हे
दूलहिन से पूरत हम्मर आशा।
धन के देवी बन अइली तू
इया ग्यान देवी बन अइली।
हम्मर घर -अंगना शोभल
चान सरंग के बन के अइली।
घर-बाहर चहुँ ओर अब तो हर
पसरइ कीर्ति सुगंध सगर।
हम्मर हइ आशीष इहे कि
सुखमय रहइ तोहर डगर।
इनको सपना पूरा होबइ
इनको त हइ नेक विचार।
अप्पन घर-परिवार छोड़के
इनका ला त हइ संसार।
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