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Saturday, December 19, 2020

प्रबंध काव्य: सोनपरी - सर्ग 5

 प्रबंध काव्य: सोनपरी - सर्ग 5 

रचताहर:    लालमणि विक्रान्त 

 

पाँचवाँ सर्ग--मेहनत के फल

 

कदम-दर-कदम बढ़ रहलन

सुबोध राह फरछाके।

रहिया के काँटा -कूसा

अउर राह के रोड़ा 

 दुन्नू हाथ हटा के।

 तय कर रहलन हल दूरी

बकि एक दिन भेंट हो गेलन

मुखिया जी जे हथ पुरनका।

उनकर माथा पर त लगे हल

गिरइवला हे ठनका।

 

आँख लाल भौंवा टेढ़ा हल

बोलला बात गरम हो।

रे सुबोध! अभियो तू समझें

राजनीति से हट जो।

राजनीति के रहिया

सच में संकटमय हउ जानें।

चाहइ हें कि भला होबइ

त हम्मर बतियां मानें।

जेकर राह में संकट बनमें

ऊ तोहरा नञ छोड़तो।

सच मानें त कहइत हिअइ

अभियो बदलें रस्ता।

 

पढ़ल-लिखल तू

नौकरी कर ले

खुलल हउ अभी दुआरी।

सुखमय तोहर जिनगी होतउ

अइसन सुख के नञ टारी।

समय बीततउ फिन पछतइमें 

इहे हाल होबइ वाला हउ।

अभी अगर नञ राह पकड़में

फिन मौका नञ मिलतउ।

भटक गेलें तू राह लगइ हे

मति गेलउ हे मारल

जिनगी बीततऊ अकारथ।

 

सभे तरह से कह देलिअउ

फिन हमहूं राह अपनइबउ।

नञ कहिहें फिन हमारा

मुखिया जी नञ तू कहला हल।

 

कहलक सुबोध

सुन ला मुखिया जी

हम नञ केकरो राह के बाधा

हमरा का तू कहइत आज

सोंचले रहता हल पहिले

त गाँव भी रहतइ हल सुखमय

काहे हम अइसन करतूं हल

पढ़-लिख गाँव के सेवा ला

काहे अइसन व्रत लेतूं हल।

 

गांव के हाल देख के बोलो 

दुर्गति लोगन भोग रहल हे

गांव आबइ ला सड़क के हालत

कइसन बद -से-बदतर कइला।

इसकुल में पढ़ाय न होबे

अस्पताल रोज बन्द रहइ हइ।

पुस्तकालय भवन ढहल हो

गांव गली में पानी पसरल

इहे तू बोलइ ला अइला।

 

लूटो गांव के मन -भर लूटो

फिन नञ अइसन मौका मिलतो

आबइ वाला समय में देखिहा

इहे गाँव में विकास के 

कइसन कलियन खिलतइ।

अउर सुनइ के हो मुखिया जी

त तू तनी ठहर के सुन ला 

पोखर के पानी सूखबइला।

अउर क्रिकेट के होलइ खेल

पोखर खेल मैदान बनल हल।

जनता पानी ला तरसल।

इहे तोहर विकास के रेल।

 

अब जनता के हाथ सभे कुछ

परिवर्तन आबइवाला हो।

परिवर्तन युग के नियम हइ।

अभी वसंत फिन गर्मी अइतइ

फिन बरसात के रोक सकइ हे।

पतझर भी अइतइ मुखिया जी

दम हो त तनी रोक बतइहा।

 

हमरा राह देखाबइ अइला

अपने राह से भटकल हा।

नित विकास फंड के कइला

तरह -तरह से बटमारी।

देखबइ ला अइला होशियारी।

छोड़ो हमरा समय न एतना

हमरा करना बहुत काम हे।

घर -घर जाके दुखड़ा सुन के

नयका राह बनाबइ के हे।

दुनिया के राह देखाबइ हे।

 

सांझ पहर घर जा घरनी से

सभे बात सुबोध बतिअइलक।

मुखिया जी का-का कहलन

सोनपरी से कुछ न छिपइलक।

सोनपरी कहलन संकट से

घबराबइ के काम न करिहा।

कतनउ लोग डेराबइ बकि

अप्पन लक्ष्य तरफ तू बढ़िहा।

शुभ कार्य जे लोग करइ हे

ओकर रक्षा भगवान करइ हथ।

अप्पन राह बढ़इत लोग के

साहस संबल भगवान देबइ हथ।

 

जनता के कल्याण कार्य के

रस्ता कोय न रोक सकइ हे।

जननी जन्मभूमि के खातिर 

बढ़इवला के कोय कि टोक सकइ हे।

बढ़ल चलल जा राह ठीक हो

जल्दी अब चुनाव भी अइतो।

जाति धरम के भेद न करिहा

सभे लोग तब तोहरे जितइतो।

 

सच के जीत सभे दिन होलइ

बकि परेशानी भी रहतइ।

इहो सच अनरथ जे करता

उनकर दंभ-महल भी ढहतइ।

 

पंचायत के सभे गाँव के

देखइ के हइ एक नजर से।

जे गरीब असहाय लोग हथ

उनका जोड़ो प्रगति डगर से।

अइसन काम करब कि जनता

निर्विरोध चुन देतइ मुखिया।

अउर अप्पन पंचायत के

लोगन भी बन जइतन सुखिया।

 

दिन-दिन त चुनाव के दिन भी

देखो त नगीच आ रहलइ।

जन्ने देखो एक्के चरचा

तोहर जीत के हाबा बहलइ।

मेहनत के फल मीठ होबइ हे

कहलन हे ई बात गेयानी।

जन गण के दुख दूर करइ ला

बनल रहो तू त अभियानी।

 

सहे-सहे आ गेल चुनाव

मिटिंग-पर-मिटिंग होल गाँव में।

सभे सहमत होलन एक बात पर

मठ पर पीपर गाछ छांव में।

उहां पुरनका मुखिया जी 

अप्पन बात रखइत रह गेलन।

गाँव के बुढ़वन जुअनकन सभ्भे

निर्णय अप्पन सुना चल देलन।

 

बदलो अब जुग बदलइवाला

छोड़ो बात पुरनका अब हम।

नया राह पर नया नीति ले 

बढ़ब धजा हाथ में ले हम।

अब सुबोध के मिलतो मौका

इहे अबकी मुखिया बनतो।

छोड़ सभे अब बात पुरनका

गाँव गली में खुशी मचलतो। 

 

आखिर इहे सभे हो गेल

बन गेल सुबोध गाँव के मुखिया।

खुशी के लहर गाँव में दौड़ल

चाहे सुखिया चाहे दुखिया।

तब सुबोध के शपथ ग्रहण में 

बीडियो साहब गाँव में अइलन।

शपथ ग्रहण में सभे लोग के

मिलजुल काम करइ ला कहलन।

 

लगल सुबोध अप्पन काम में 

जनता के काम साधइ लगला।

रहे गाँव में मिलजुल सभे कोय

प्रेम सूत में बान्हइ लगला।

गाँव कमेटी बनल विकास ला

सभे टोला के दू-दू लोग।

बुढ़वन के संग जुअनकन भी

नया-पुराना के बनल संजोग।

 

जाति - धरम के भेद-भाव के

भागल भाव गाँव से दूर।

औरत -मरद सभे के संगठन

बनल गाँव हो गेल मशहूर।

पहिल काम पौधा रोपण के 

कइलन सुबोध शुरूआत।

जइसे आहर के अलंग पर

उतरल होबे आज बरियात।

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