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Thursday, November 24, 2011

40. कहानी संग्रह "मट्टी" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द


मशिलो॰ = "मट्टी" (मगही कहानी संग्रह), कहानीकार - श्री शिवप्रसाद लोहानी; प्रकाशक - सुकृति प्रकाशन, नूरसराय (नालन्दा), पिन-803113; वितरकः चिल्ड्रेन बुक सेन्टर प्रा॰लि॰, मछुआ टोली, पटना-800004; प्रथम संस्करण - 1996 ई॰; 120 पृष्ठ । मूल्य 39/- रुपये ।
पुस्तक प्राप्ति के अन्य स्थानः
(1) विद्या एजेन्सी, पुलपर, बिहारशरीफ (नालन्दा)
(2) जनकल्याण पुस्तक भण्डार, स्टेशन रोड, हिलसा (नालन्दा)
(3) माहुरी पुस्तक भण्डार, गनी मार्केट, के॰पी॰ रोड, गया
(4) किताब घर, झुमरी तिलैया (कोडरमा) ।

देल सन्दर्भ में पहिला संख्या पृष्ठ और बिन्दु के बाद वला संख्या पंक्ति दर्शावऽ हइ ।

कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या - 597

ई कहानी संग्रह में कुल 7 कहानी हइ ।


क्रम सं॰
विषय-सूची 
पृष्ठ
0.
समर्पण, अनुक्रम, जीवनवृत्त
1-6
0.
प्रस्तावना
7-17
0.
शुद्धिपत्र
18-18



1.
एक ढेला मट्टी
1-10
2.
दुखिनी दाई
11-26
3.
तरमन्ना के ताड़ी
27-42



4.
लसोढ़ा के लस्सा
43-57
5.
यौन स्वेच्छाचार औ एड्स
58-72
6.
बदलल गाँव
73-86



7.
फेन वसंत आ गेल
87-100

ठेठ मगही शब्द ("" से "" तक):

1    अइटा (= ईंट) (जब एकरा पीये के सीमित आदत हल तो औरत मरद दुनु अप्पन कमाई से गिरल-फुट्टल फूस के छौनी के झोपड़ीनुमा मकान तोड़ के अइटा गारा से दूगो छोटे गो भीतर बनैलक । ई दुनु भीतर के खपड़ा से छैलक ।)    (मशिलो॰28.6)
2    अइसन (= ऐसा; अइसने = ऐसा ही) (ई सुन के दुखिनी फफक-फफक के रोवे लगल । अइसने में माई भतिनी के चिट्ठी आल कि बापू बहुत बीमार हथ । अब तो दुखिनी के दिल में जिरिको चैन नई पड़े लगल ।)    (मशिलो॰12.9)
3    अकचकाना (बड़कू मियाँ के दाढ़ी देख के बुतरुआ डरल नीयर अकचका गेल मगर धीरे-धीरे जब दादा के पेयार से ओकर मन भर गेल तो ऐसन घड़ी भी आ गेल जब बुतरुआ के दादा बिना चैन नई पड़े ।)    (मशिलो॰5.19)
4    अकबक (~ लगना) (हमरा बचपन से ही ई आदत पड़ गेल हऽ कि सूते बखत मुँह मीठा हो जाय । कभी गुड़, कभी बताशा, कभी मिसरी खैते रहलूँ हऽ । एने दू महीना से बिना मीठा के ही तो अकबक लगऽ हे ।)    (मशिलो॰96.5)
5    अकबकाना (एक दिन रात में बुधिया औ सनिचरी दुनु के मुँह में सुत्तल में ताड़ी ठूँस देलक । दुनु अकबका के उठल तो सोमर हीं हीं करके हँसे लगल । जब दुनु माई बेटी ओ ओ करे लगल तो सोमर जोर से भभा के हँसल औ बोलल कि तू कहते रहँ हँ कि ताड़ी बेकार चीज हे ।)    (मशिलो॰29.5)
6    अखनी (= अभी, इस क्षण) (अखनी भी घिसिन्डी पर तरकट्टी, लबनी, टकही औ ताड़ के पत्ता के दोना रखल हे जेकरा पर विजेता सोमर खल्ली से लिखल हे ।)    (मशिलो॰42.6)
7    अघाना (अल्हो-मल्हो नीयर पोता के गोदी में लेके चूमे लगला, खेलावे लगला, धीमे-धीमे हँस के बतियावे लगला, हाथ के कँपत अंगुरी से कान नाक आँख के सहलावे लगला । लगल कि जैसे बुतरु में हसनैन साहब के खेला रहला हऽ औ पीछे में हसनैन के महतारी देख के अघा रहली हऽ ।)    (मशिलो॰5.14)
8    अचरा (= अँचरा, आँचल) (करुणा कुछ दूर हट के लुंडी के कपड़ा खोल के घास पर पसार देलकी औ ओकरे पर लोघड़ गेली । साड़ी के अचरा से मुँह झाप लेलकी । मुँह झापते सिसक-सिसक के रोवे लगली । लोर से अचरा भींग गेल ।)    (मशिलो॰89.14, 16)
9    अच्छका (हम तो एही चाहऽ हियो कि भगवान हमरा जेतना जल्दी उठा लेथ ओतने अच्छा । मगर मौत भी तो अच्छके अदमी के आवऽ हे ।)    (मशिलो॰91.11)
10    अजादी (= आजादी) (पहिला बात रहत हल तो कोई बात नई, अब तो अजब हाल हल । अजादी के बाद धीरे-धीरे वोट के गन्दा राजनीति के वजह से जात-पात के भावना देहातन में तेजी से बढ़ल ।; अजादी मिले के एही तो लाभ मिलल कि बढ़िया बढ़िया शैम्पन, वोदका, भिस्की इफरात से मिले लगल ।; अजादी के कुछ बरस के बाद वोट पावे ला राजनीतिक पार्टी के लोग सब जात-पात के भावना पूरा फैलैलका ।)    (मशिलो॰14.16; 36.6; 74.12)
11    अढ़ाई (= ढाई) (दुखिनी दाई के पुराना रोजगार बूँट के सत्तू के अढ़ाई सौ, पाँच सौ ग्राम औ एक किलो के पैकेट निकाल देलक । आसपास के कसबा औ जिला के बजार में दुखिनी दाई के बूँट के सत्तू लोग चाव से खरीदऽ हला ।)    (मशिलो॰26.9)
12    अता-पता (जब मंजरा बजे लगल, ढोलक, झाल मजीरा के अवाज से वातावरण भर गेल तो ई की ! लोग-बाग अचम्भित हो गेल कि करकी छिनार के अता-पता नई हे मगर ममता बेवा हाथ उठैले लचक-लचक के नाचते भगत जी के आगे आ जुटली ।)    (मशिलो॰52.15)
13    अदमी (= अमदी; आदमी) (मगर ई सोच के दिल पर पत्थर रख देलका कि बेटवा कहत कि फौजी अदमी के दिल एतना कमजोर हे कि झुठे मुठे के मुँह देखे के बात करऽ हला ।; अदमी अदमी के अवाज में फरक होवऽ हे । एकर फरक कान तुरते पहचान लेहे कि ई फलनमा के खड़ाऊँ के चटचट अवाज हे ।)    (मशिलो॰3.12; 43.6)
14    अनठियाना (कुछ पुराना बूढ़ अदमी कभी कभार प्रणाम करे तो इनका बड़ी खुशी होवे औ ओकरा बोलाके दस मिनट बात कैला के बादे छोड़थ । इनकर जब चलती हल तो जे प्रणाम करऽ हल ओकरा आहिस्ते से मूड़ी झुका के जवाब देके अनठिया दे हला ।)    (मशिलो॰79.17)
15    अनबेरा (~ करना) (चुपचाप साँझ के मन्दिरवा के चबूतरा पर बैठ के तै कर लीहऽ कि कैसे चन्दा कइल जाये । मन्दिरवा पर साँझ के तो ऐसे भी बहुते अदमी अनबेरा करे ला बैठले रहऽ हे ।)    (मशिलो॰47.14)
16    अनबोलपन (मगर करमचन्द के सीधापन, अनबोलपन वृत्ति औ नरम-गरम सह के भी साथ रहे के प्रवृत्ति के कारण सविता समझऽ हल कि ऊ व्यावहारिक यौन मनोविज्ञान के प्रस्तावित प्रतिष्ठान अप्पन रुचि के मोताबिक खोलत चलावत, एकरा में करमचन्द कभी बाधक नइ बनत ।)    (मशिलो॰65.5)
17    अन्देशा (= अनेसा; आशंका, संशय; अमंगल होने का डर) (कानूनी कमजोरी भी हल काहे कि उनकर बाबूजी ज्यादेतर खेत के खरीद बड़के बेटा के नाम से कैलका हल । थाना कचहरी होला से बात उल्टा पड़े के अन्देशा हल । बात बढ़े पर बड़का बाबू के नाम वाला पूरा खेत करुणा के हो जात हल औ मरूसी खेत में आधा हिस्सा होत हल से अलगे ।)    (मशिलो॰99.4)
18    अपने (= आप; स्वयं, खुद) (आजकल के नइकन लोग जे ई कहऽ हथ कि बेटा-बेटी में कोई फरक करे के नई चाही से आके देखथ हम्मर हाल । ई खाली कहे के बात औ कोरा बकवास हे । बेटा होवे पर तो ऊ ऐसन कभी नई करत हल कि बूढ़ा बाप-माई के छोड़ के अपने मौज करे ला कलकत्ता चल जात हल ।; राजू ओकरा नहिरा जाये देवे ला तैयारे नई हल । कहऽ हल कि जब तोर माई-बाप अपने पास रखे ला चाहऽ हला तो हमरा से बियाह काहे ला कैलका ।)    (मशिलो॰11.15; 12.6)
19    अप्पन (= अपना) (एकाध साल तो ई दिल्ली में रहला । ओकर बाद इनका इंग्लैंड भेजल गेल । अप्पन काम से हुआँ अच्छा जगह बना लेलका ।)    (मशिलो॰1.19)
20    अबरी (= इस बार; अगली बार) (पंडितजी से पतरा देखावल गेल तो मालूम होल कि अबरी दुखिनी के बेटा होवत ।; एकरे ला भगवान के धन्यवाद देलक कि दिल के बात अबरी पूरा होके रहत ।; दुखिनी के दुख के कौन ठिकाना । अइसने में ऊ फेन पानी पौलक । अबरी ओकरा बेटा होल ।)    (मशिलो॰13.20; 14.2, 11)
21    अमदनी (= आमदनी) (जब सब रुंजी-पूंजी खतम हो गेल औ अमदनी के कोई जरिया नई रहल तो दुखिनी दाई बगल के बजार के गोला में जाके अनाज फटके के काम करे लगल ।)    (मशिलो॰18.11)
22    अमूमन (= बहुधा, प्रायशः; साधारणतया) (ऐसे तो बड़कू मियाँ अमूमन कहीं नई जा हला मगर जुमा के दिन नेमाज पढ़े मसजिद घंटा दू घंटा ला जरुरे जा हला ।; औरत के अमूनन नहीरा के शिकायत तनिको बरदास्त नई होवऽ हे ।)    (मशिलो॰5.22; 35.14)
23    अलगे-अलगे (= अलग-अलग) (अजादी के बाद धीरे-धीरे वोट के गन्दा राजनीति के वजह से जात-पात के भावना देहातन में तेजी से बढ़ल । बाभन, रजपूत, कुरमी, कोयरी, गोआला, दुसाध, पासी, चमार सब अलगे-अलगे खिचड़ी पकावे लगल । गाँव के एक दू घर बनिया, कुम्हार, धोबी, मुसलमान, बड़ही, नउआ के तो कोई कीमते नई हल । बेसी जात वालन के बिना पैसा के ई सब गुलाम बने ला मजबूर हो जा हल ।)    (मशिलो॰14.19)
24    अलील (= रोगी, बीमार; खराब; दूषित) (हम तो चिट्ठी लिखलियो हल कि बहू-पोता के साथ आवऽ । हसनैन जवाब में कहलका कि बेटा के महतारी के तबियत अलील हल से गुनी ऊ अकेले अइला ।)    (मशिलो॰2.15)
25    अल्ला (~ कोस दूर = बहुत दूर) (खुशी से मन नाचे लगल जरुर पर छोट-2 दू गो बुतरु औ अकेले एगो औरत । पति अल्ला कोस बंगला-कलकत्ता में सैकड़ों कोस दूर ।)    (मशिलो॰14.13)
26    अल्हो-मल्हो (= अल्लो-मल्लो) (डेरा पहुँच के पोता के देख के बड़कू मियाँ के खुशी के ठेकाना नई रहल । अल्हो-मल्हो नीयर पोता के गोदी में लेके चूमे लगला, खेलावे लगला, धीमे-धीमे हँस के बतियावे लगला, हाथ के कँपत अंगुरी से कान नाक आँख के सहलावे लगला ।)    (मशिलो॰5.9)
27    अवाज (= आवाज) (खूँटी के खड़ाऊँ पर बुले के चटचट अवाज हो रहल हल । सभे खड़ाऊँ पेहने वालन के खड़ाऊँ पर बुले के अवाज एक रंग के नई होवऽ हे । अदमी अदमी के अवाज में फरक होवऽ हे । एकर फरक कान तुरते पहचान लेहे कि ई फलनमा के खड़ाऊँ के चटचट अवाज हे ।)    (मशिलो॰43.4, 5, 6, 8)
28    अशीरवाद (= आशीर्वाद) (फाटक के लटकल सिकड़ी में बैल के बाँध के हर एक किनारे रखलका औ पाण्डेय जी के पाँव लगी कैलका। पंडित जी 'खुश रह' के अशीरवाद देके हाल-चाल पुछलका।)    (मशिलो॰43.17)
29    असानी (= आसानी) (ममता औ रामजी के हाथापाई में लसोढ़ा के ई चिपचिपा पदार्थ दुनु के अंग-प्रत्यंग में लग के लस्सा नीयर सट जा हल जे जोर देके विलग कैल जा सकऽ हल । मगर दुनु के आंतरिक भाव यही हल कि ई लस्सा सटले रहे, असानी से नई छूटे ।)    (मशिलो॰51.9)
30    आख (= आँख) (ई सुनला पर रामवदन जी जब मूड़ी घुमैलका तो गमला में बिना सुगंध के विलायती फूल पर दृष्टि गेल । ई देख के उनखा अप्पन खेत के जमीन में उपजल परोर, पुरी-परोर, बैगन, उड़हुल, कद्दू, कोहड़ा के फूलन, मकई के बाल-धनबाल, मोछा पर ध्यान चल गेल । ई सोचते ही उनखा सिहरन आ गेल औ लम्बा स्वांस लेके आह करके आख मून्द लेलका ।)    (मशिलो॰86.21)
31    आपाधापी (सोमर कामचोर नई हल । एही गुनी रोज एकर दुहारी पर भोरे-भोरे दू चार किसान चलावे ला आवऽ हला । किसान सब के आपाधापी एतना बढ़ते गेल कि निश्चित मजूरी के अलावे एकरा ताड़ी पीये के पैसा अलग से मिले लगल ।)    (मशिलो॰27.16)
32    आम (= आऊँगा) (मगर जब जातरा के दिन आयल तो बड़कू मियाँ के मन अजब तरह के हो गेल । लगल कि पक्कल आम के की भरोसा, फिन घुर के रमजानपुर आम कि नई ।)    (मशिलो॰3.9)
33    आरजू (संयोग के बात हल कि हसनैन साहब के बिहार शरीफ के एगो दोस्त एक हफ्ता ला घर जा रहला हल । उनके से अप्पन बाबा के खाहिस कहके आरजू कैलका कि ई दुनु चीज लेले आवथ ।; एकरा पर दुखिनी दाई कुछ नई बोले । दुखिनी दाई बड़ी पितमरु मनमरु औरत हल जे उधार लेवे वालन के उधार चुकावे ला निहोरा करऽ हल, आरजू करऽ हल ।)    (मशिलो॰8.22; 15.19)
34    आरी (खेत के ~) (दूर से ही बेटा के देख के बड़कू मियाँ दौड़ पड़ला । खेत के आरिये पर बेटा से लिपट गेला ।)    (मशिलो॰2.8)
35    आहिस्ते-आहिस्ते (= आस्ते-आस्ते; धीरे-धीरे) (ई काम जब दुखिनी दाई करे लगल तो आहिस्ते-2  दुखिनी दाई के सत्तू के नाम फैल गेल औ एकर आमदनी से ओकर गुजारा ढंग से होवे लगल ।)    (मशिलो॰18.16)
36    इजहार (~ करना = अभिव्यक्त करना) (बहुत सा बेमेल बियाह में मन के ढोल औ हृदय के सरगम नई बजऽ हे केवल दोसर वादक ढोल-झाल सिंघा बजा के खुशी के झूठ इजहार करऽ हे ।)    (मशिलो॰54.4)
37    इजारा (ऊ बजार जाके पता लगैलक तो मालूम होल कि सोमर पाँच सौ रुपैया में अप्पन घर के झगड़ू हीं इजारा रख सब पैसा के ताड़ी पी गेल । चूंकि घर सनीचरी के नाम से हल से गुनी रजिस्ट्री नई होल हल ।)    (मशिलो॰38.20)
38    इत्तर (= इत्र) (फौज में जब कभी गाँव के ख्याल आवऽ हल ई मट्टी के जरा सा छू के देह में इत्तर नीयर लगा ले हला । एकरा से उनका बड़ी सुकुन मिलऽ हल ।)    (मशिलो॰3.22)
39    इनकर (= इनका) (हसनैन पढ़े में अच्छा हला से पढ़ लिख के एम॰ए॰ पास कैला पर विदेश सेवा में इनकर नौकरी लग गेल ।)    (मशिलो॰1.17)
40    इनका (= इन्हें) (लगल कि पक्कल आम के की भरोसा, फिन घुर के रमजानपुर आम कि नई । ई चिन्ता इनका बड़ी सतावे लगल ।)    (मशिलो॰3.10)
41    इन्कन्हीं (= इनकन्हीं, एकन्हीं) (सौदा बेचे वालन सिन्दुरिया सबसे जबर्दस्ती उधार लेके कीमत नई देवे लगला । मांगला पर पीट-पाट करे लग गेला । ई वजह से सिन्दुरिया औ अइसन-अइसन दोसर कम संख्या वालन जात के भय सतावे लगल । इन्कन्हीं के तो कमा के खाये के हल । से ई सब गाँव के घर-दुआर बेच-बाच के शहर में जा बसला ।; खाली ओही दू घर बचला जिनका खेती हल । इन्कन्हीं के बी खेती करना औ कराना कठिन होते जा रहल हल ।; इन्कन्हीं सब जिद करके थोड़ा खेत बेचवा करके, शहर में मकान बनाके किराया से आमदनी करे लगला ।)    (मशिलो॰74.19; 75.2, 6)
42    इन्कर (= इनकर) (गरीब-गुरबा के मोके-बेमोके थोड़ा-बहुत रुपैया भी बिना बेयाज के दे दे हला । छोट-मोट आपसी झगड़ा के पंचायती कर निपटा दे हला, कभी-कभार दोसर पार्टी के ले-देला के झंझट खतम करवा दे हला । ई सब गुनी इन्कर दलान पर हर समय दू-चार अदमी बैठल मिलवे करऽ हल ।)    (मशिलो॰76.16)
43    इन्तजाम (ई भी कहलका कि तोहरे साथ लेले चलबो । पासपोर्ट भीजा सब के इन्तजाम हो जैतो ।; ए बेटा ! लगऽ हो कि हम अब नई बचवो । हमर खाहिस हो कि जब हम मरबो तो अपने देश भारत के बीनल गाँव के खादी के कफन के इन्तजाम करीहऽ ।; ममता के बारे में अफवाह हे कि ई भी डायन के काम सीख रहल हऽ। जलमते बेटा के गियारी ममोर देलक, फेन मरदवो के खा गेल । ई गुनी एकरो साथे नचावे के इन्तजाम कर देल जाय ।; जनम देके पोस-पाल के, पढ़ा-लिखा के, काम में लगावे के यथासम्भव इन्तजाम कर के, जे माई-बाप बुढ़ारी में प्रवेश कर जाहे तो ज्यादेतर बेटा सब बाप-माई के खोज-खबर नई ले हका ।)    (मशिलो॰2.17; 8.12; 46.6; 94.4)
44    इफरात (= बहुतायत) (अजादी मिले के एही तो लाभ मिलल कि बढ़िया बढ़िया शैम्पन, वोदका, भिस्की इफरात से मिले लगल ।)    (मशिलो॰36.8)
45    ई (= यह, इस) (ईद के मोका पर तो रमजानपुर में ऐसहीं गहमागहमी रहऽ हके, ई साल एकरा में बढ़ोतरी हो गेल काहे कि कई बरस के बाद हसनैन साहब विदेश से घर आ रहला हऽ ।; बात ई हल कि बड़कू मियाँ फौज में हवलदार हला औ जब ई बाहरे हला तो हसनैन के जनम देके महतारी बेचारी चल बसला ।)    (मशिलो॰1.1, 12, 13)
46    उछाह (= उत्साह) (उनकर रमजानपुर आवे के समाचार से गाँव औ इलाका में खुशी के लहर दौड़ गेल । जुआन सब में तो औ जादे उछाह देखे आवऽ हे, खास के पढ़ल लिखल बेरोजगार जवान के तो कई प्रकार के लाभ देखे में आवे लगल ।; बड़कू मियाँ के उछाह के की ठिकाना ।)    (मशिलो॰1.6, 9)
47    उजरा (ऐसने विचार क्रम चलते-चलते ऊ नींद के गोद में जा गिरल । उठल तब ही जब रौदा से सभे वातावरण उजरा हो चुकल हल ।)    (मशिलो॰94.16)
48    उज्जर (= उजला) (दोसर उड़हुल के पेड़ पर कद्दू के लत्तरी चढ़ गेल हल । कद्दू के उज्जर फूल औ उड़हुल के लाल फूल मिल के अजीब शोभा बिखेर रहऽ हल ।; थोड़ा दूर पर बैगन औ पुरी-परोर के गाछ हल, कुछ भुट्टा भी हल । बैगन के नीला फूल, पुरी-परोर के उज्जर बैगनी फूल, भुट्टा के मोछ औ धनबाल सब मन के मोह रहल हल ।)    (मशिलो॰81.20; 82.6)
49    उठी-बैठी (गाँव वालन सब एकर बाद सोमर के एतना झमारलक, थूक चटा के उठी-बैठी करैलक कि अब ताड़ी नई पीयम । औ सचमुच में सोमर ताड़ी पीना छोड़ देलक ।)    (मशिलो॰30.20)
50    उनइस-बीस (~ कहना) (महेश ओतना कहबे कइलन हल तो हमरा ओइसन कठोर वचन बोले के नई चाहऽ हल । आखिर ऊ गाँव-घर के रिश्ता में देवर लगऽ हका । देवर के उनइस-बीस कहे के परम्परागत अधिकार हे । फेन महेश कभी-कभार हम्मर छोट-मोट काम भी तो कर दे हका ।)    (मशिलो॰88.17)
51    उनकन्हीं (= ओकन्हीं) (गाँव वालन जब ई तरमन्ना के खरीद लेलका तो पुरनकन ताड़ छेवे वालन के हटा के गाँव के दोसर पासी के देलका जेकरा में उनकन्हीं के पक्का दखल हो जाये ।)    (मशिलो॰32.10)
52    उनकर (= उनका) (जब कस्टम वाला मट्टी के ढेला पर हथौड़ी चलावऽ हल तो बड़कू मियाँ के लगऽ हल कि उनकर छाती पर हथौड़ी से वार करल जा रहल हऽ औ समूचे देह गनगना जा हल ।; सोचलक कि रामू बाबू गलती से दोसर पोटरी दे देलका । ई उनकर अप्पन पोटरी होत ।)    (मशिलो॰4.13; 22.19)
53    उनका (= उन्हें) (ई सुन के बड़कू मियाँ के छाती फूल गेल । उनका विलायत जाइ के मन हइए हल । मगर उनका ई बात लिखे में अच्छा नई लगऽ हल ।)    (मशिलो॰2.18)
54    उनखनहीं (= उनकन्हीं, ओकन्हीं) (मगर माई-बाप की कहता । ई काम तो उनखनहीं के हे कि जहाँ चाहथ ऊ शादी करथ ।)    (मशिलो॰63.15)
55    उनखर (= उनकर) (हरखू के ई कहना हल कि करुणा फफक-फफक के रोवे लगली । तब हरखू बड़ी समझैलक औ कहलक कि ई तो भगवान के केल हे मालकिन, उनखे मरजी से सब होवऽ हे, बिना उनखर मरजी के एगो पत्ता भी नई हिलऽ हे ।)    (मशिलो॰90.16)
56    उनखा (= उनका; उन्हें) (उनका लगल कि लकड़ी भूसा के आग तापूँ मगर हुआँ ई सब कहाँ । हुआँ तो बिजली के हीटर हल मगर ओकरा से उनखा संतोष नई होवऽ हल ।; हरखू के ई कहना हल कि करुणा फफक-फफक के रोवे लगली । तब हरखू बड़ी समझैलक औ कहलक कि ई तो भगवान के केल हे मालकिन, उनखे मरजी से सब होवऽ हे, बिना उनखर मरजी के एगो पत्ता भी नई हिलऽ हे ।)    (मशिलो॰8.3; 90.15)
57    ऊ (= वह, वो, वे) (हम तो चिट्ठी लिखलियो हल कि बहू-पोता के साथ आवऽ । हसनैन जवाब में कहलका कि बेटा के महतारी के तबियत अलील हल से गुनी ऊ अकेले अइला ।)    (मशिलो॰2.15)
58    ऊकसावा (रात में खटिया पर पड़ल-पड़ल महेश बाबू सोचलका कि करुणा तो बड़ी भावुक औरत हे । अगर एकर अन्दर के दमित यौन के ऊकसावा कैल जाय तो हो सकऽ हे ई उमर में भी कामैषणा से परिपूरित हो जाय ।)    (मशिलो॰97.3)
59    ए (= "ही" अर्थ में प्रत्यय; बड़ा+ए = बड़े; मट्टिये = मट्टी+ए) (ओही तरह से ई बार भी अप्पन बक्सा में एक ढेला मट्टी रख लेलका । विदेश के बात हल से मट्टी के ढेला जिरी बड़े हल ।; जब मट्टी के चूरला पर भी खाली मट्टिये निकसल तो कस्टम वाला के चेहरा कुछ उदास हो गेल ।)    (मशिलो॰4.5, 19)
60    एकट्ठा (= इकट्ठा, एकत्र) (अच्छा होवे कि खेत के रकबा के ऊपर पाँच रुपये बिघा चन्दा एकट्ठा कर लेल जाय । मगर जब ई बात होल कि जिनका खेत के अलावे सरकारी नौकरी औ बेहवार भी हे ओकरा से बेसी चन्दा लेल जाय ।)    (मशिलो॰46.13)
61    एकर (= इसका; ~ बाद = इसके बाद) (एकर बाद ऊ कहलका कि कै ठो बाप के ई नसीब होवऽ हे कि बेटा पोता पुतोहू के सामने, ऊ भी विदेश में मरे ।; एकर बड़की बहिन के बियाह अच्छा घर में हो गेल ।)    (मशिलो॰10.1; 11.2)
62    एकरा (= इसको; ~ में = इसमें)  (ईद के मोका पर तो रमजानपुर में ऐसहीं गहमागहमी रहऽ हके, ई साल एकरा में बढ़ोतरी हो गेल काहे कि कई बरस के बाद हसनैन साहब विदेश से घर आ रहला हऽ ।; एकरा से उनका बड़ी सुकुन मिलऽ हल ।)    (मशिलो॰1.2; 4.1)
63    एकहरे (~ सरियाना) (एकर अलावे ई भी कहलका कि बाकी पैसा के चक्की गुड़ लेले अइहऽ । गुड़ के बड़ा कगज में एकहरे सरिया के बिछौना के नीचे रख देम तो कोई के पता नई चलत ।)    (मशिलो॰95.22)
64    एतना (= इतना) (मगर ई सोच के दिल पर पत्थर रख देलका कि बेटवा कहत कि फौजी अदमी के दिल एतना कमजोर हे कि झुठे मुठे के मुँह देखे के बात करऽ हला ।; मगर भतिनी के पास एतना रकम कहाँ हल कि ऊ बड़का डाक्टर से देखावत हल ।)    (मशिलो॰3.12; 12.21)
65    एता (= एत्ता; एतना; इतना; यहाँ) (धीरे-धीरे सरदी के तेज प्रकोप आ गेल । एता बेसी ठंढ में रहे के उनका आदत नई हल, ओकरो में बुढ़ारी के शरीर ।; गाँव वालन सब चकित हल कि ई बड़का घर के लड़का एता छोट काम कैसे करऽ हे । ई कुल खनदान के नइया डुबा देलक ।)    (मशिलो॰6.4; 17.9)
66    एने-ओने (= एन्ने-ओन्ने; इधर-उधर) (लड़कन बुतरु खुशी में एने ओने खेल धूप रहला हऽ ।; जज साहब लसोढ़ा कभी नई देखलका हल । वकील साहब उनखा बतैलका कि ई प्रजाति अब खतम हो रहल हऽ । पहिले सड़क के किनारे एने ओने फनेला, लसोढ़ा, इमली, आम, सिरिस, कहुआ आदि देशी पेड़ लगऽ हल जेकरा में औषधीय गुण भी हल ।)    (मशिलो॰7.2; 54.22)
67    एवज (के ~ में = के बदले में) (जे नकदी मजूरी ई दुनु के मिले ओकरा में पच्चीस प्रतिशत कटते जाय । बेयाज के एवज में एही बात तै होल औ पाँच सौ रुपया किसान जी के ओकरा हीं बाकी रहत ।)    (मशिलो॰41.15)
68    एही (= यही) (हसनैन साहब कहलका कि ऐसन खुशनुमा धूप जब हियाँ ऊगऽ हे तो सभे ऑफिस दोकान बन्द हो जाहे औ सब एही बीच पर पहुँच के आनन्द ले हका ।; ठीक कहल गेल हे, कहीं धूप कहीं छाया, एही हे भगवान के माया ।)    (मशिलो॰7.13, 18)
69    ऐसन (= अइसन; ऐसा) (जैसे ही हसनैन साहब रमजानपुर पहुचला, बात बिजली ऐसन फैल गेल औ जे जहाँ जौन काम पर लगल हल छोड़-छाड़ के दौड़ पड़ल ।)    (मशिलो॰2.3)
70    ऐसहीं (= अइसहीं) (ईद के मोका पर तो रमजानपुर में ऐसहीं गहमागहमी रहऽ हके, ई साल एकरा में बढ़ोतरी हो गेल काहे कि कई बरस के बाद हसनैन साहब विदेश से घर आ रहला हऽ ।)    (मशिलो॰1.1)
71    ओ (= "भी" अर्थ में प्रयुक्त प्रत्यय; ओकरा+ओ = ओकरो) (धीरे-धीरे सरदी के तेज प्रकोप आ गेल । एता बेसी ठंढ में रहे के उनका आदत नई हल, ओकरो में बुढ़ारी के शरीर ।)    (मशिलो॰6.5)
72    ओइसन (= वैसा;  ओइसने = वैसे ही) (औरत के मरला पर जेतना दुःख होल हल कुछ ओइसने भाव मन में घुमड़ रहल हल ।; बिजली के हीटर से उनका ओइसन सुकुन नई मिलऽ हल जैसन रमजानपुर में तेज रौदा में धान के पोआर पर बैठ के लगऽ हल ।)    (मशिलो॰4.18; 6.7)
73    ओ-ओ (एक दिन रात में बुधिया औ सनिचरी दुनु के मुँह में सुत्तल में ताड़ी ठूँस देलक । दुनु अकबका के उठल तो सोमर हीं हीं करके हँसे लगल । जब दुनु माई बेटी ओ ओ करे लगल तो सोमर जोर से भभा के हँसल औ बोलल कि तू कहते रहँ हँ कि ताड़ी बेकार चीज हे ।)    (मशिलो॰29.6)
74    ओकन्हीं (दुनु छूरा रखके इम्तहान देलक, छूरा देखके कोई मास्टर ओकन्हीं से छेड़-छाड़ नई कैलक औ इम्तहान में पास हो गेल ।; भतीजा सब के लाम तो ओकन्हीं सब के जैसन सुभाव हे ऊ सब हम्मर खेत के अप्पन नाम से लिखावे लागी ही बेदम रहत ।)    (मशिलो॰17.5; 91.5)
75    ओकर (= ओक्कर; उसका; ~ बाद = उसके बाद) (एकाध साल तो ई दिल्ली में रहला । ओकर बाद इनका इंग्लैंड भेजल गेल । अप्पन काम से हुआँ अच्छा जगह बना लेलका ।)    (मशिलो॰1.18)
76    ओकरा (= उसको; ~ में = उसमें) (बड़कू मियाँ के उछाह के की ठिकाना । एके ठो बेटा हल । ओकरा कई बरस के बाद बुढ़ारी में देखता तो ऊ सुख के वर्णन करना कठिन हे ।; हवाई जहाज पर चढ़े के पहिले बक्सा खोल के जब कस्टम वाला देखलक तो ओकरा ई बात समझ में नई आल कि ई मट्टी के ढेला काहे ला ले जा रहला हऽ ।)    (मशिलो॰1.10; 4.7)
77    ओजा (= ओज्जा, उस जगह) (ऊ भी खैनी खा हला, से खैनी औ गलबात में हिस्सा लेवे खातिर ऊ ओजा पहुँच गेला।)    (मशिलो॰44.6)
78    ओजे (= ओज्जे, उसी जगह, वहीं) (ओकरा में महाजन के खरीद के पुर्जा भी हल । छागल में आधा चाँदी औ आधा खाद हल । से गुनी ओकर दाम कम मिलल । करुणा ऊ पुर्जा फाड़ के ओजे बीग देलक काहे कि अगर पुर्जा कोई के हाथ लग जात हल तो घर में कोहराम मच जात हल ।)    (मशिलो॰95.1)
79    ओठगन (ई दुनु भीतर के खपड़ा से छैलक । छोटे गो ओसारा भी बनल । मगर ई ओसारा फूस के हल जेकर ओठगन तीन गो बड़ा समाठ हल ।)    (मशिलो॰28.9)
80    ओने (= ओन्ने; उधर) (ओने दुखनी के भी कलकत्ता में तनिको मन नई लगे । जिरिगो कोठरी में रहे पड़ऽ हल । पखाना के ओइसने किल्लत हल ।)    (मशिलो॰11.18)
81    ओही (= ओहे; वही, उसी) (ओही आँख के लाल के बरसों बाद देख के बड़कू मियाँ खुश काहे नई होता ।; ओही तरह से ई बार भी अप्पन बक्सा में एक ढेला मट्टी रख लेलका ।; इन्कन्हीं के तो कमा के खाये के हल । से ई सब गाँव के घर-दुआर बेच-बाच के शहर में जा बसला । ज्यादेतर लोग विन्ध्याचल चल गेला जहाँ ओही सब समान पसार के बेचे लगला । खाली ओही दू घर बचला जिनका खेती हल ।)    (मशिलो॰2.1; 4.3; 74.22; 75.1)
82    औ (= आउ, और) (उनकर रमजानपुर आवे के समाचार से गाँव औ इलाका में खुशी के लहर दौड़ गेल । जुआन सब में तो औ जादे उछाह देखे आवऽ हे, खास के पढ़ल लिखल बेरोजगार जवान के तो कई प्रकार के लाभ देखे में आवे लगल ।)    (मशिलो॰1.5, 6)
83    औकात (सनीचरी के रख के खिलावे के ओकरा औकात नई हल । ई गुनी सनीचरी के एगो भीतर रहे ला दे देलक । सनीचरी काम करे में हाबड़ हईये हल से निकौनी, कोड़नी, अनाज फटके, गोयठा ठोके के काम करे लगल ।)    (मशिलो॰37.14)
84    औढरधनी (= औढर-दानी) (गुलाब के जब ई मालूम होल तो माई के डाँट के कहलक कि हम रुपैया माँगऽ हियो तो तू नई देहऽ औ दोसर-दोसर ला औढरधनी बनऽ हऽ । ई कह के ऊ सब हीं गेल जेकरा हीं रुपैया बाकी हल । ई ऊ सब के बकड़ी, बाछा-बाछी, गाय-भैंस खोल के ले आल ।)    (मशिलो॰17.21)
85    औना-पौना (= तीन चौथाई अंश, पौन भाग; आधे तिहाई पर, कम दाम पर) (दुखिनी दाई के डर हो गेल कि थोड़ा बहुत गिरमी के चीज जे बचऽ हे ऐसन न हो कि गुलाब बेच दे । से चीज वालन के निहोरा करके ब्याज के रकम कुछ कम करके सबके दे देलक । औने-पौने में कुछ बाकी भी रह गेल से नई लौटल । ई बाकी रुपैया ला कई मरतबा कहलक मगर फेन भी कोई नई देलक ।)    (मशिलो॰17.16)
86    ककहरा (बुधिया के गाँव के पाठशाला में पढ़े ला बैठा देलक । कुछ महीना में बुधिया हिन्दी के ककहरा सीख गेल औ दसका तक के खोढ़ा भी याद कर लेलक ।)    (मशिलो॰37.19)
87    कछटना (हम तोहर ई चलाकी नई समझलियो हल । मगर हम्मर हाथ तो भाई नीयर राखी बंधावे ला कछटते रहऽ हलो ।)    (मशिलो॰58.11)
88    कटहर (= कटहल) (जाये बखत सास कहलकी कि पानी पावे बखत ऊ ऐती औ घर सम्हार देती काहे कि नया पानी पावे बखत एगो बूढ़-पुरनिया के रहना जरूरी हे । ऊ हिदायत करते गेली कि भारी चीज नई उठावथ औ कटहर, हरदी के हलुआ, आम बगैरह नई खाथ, दूध खूब पीयथ ।)    (मशिलो॰67.2)
89    कटहर (= कटहल) (जाये बखत सास कहलकी कि पानी पावे बखत ऊ ऐती औ घर सम्हार देती काहे कि नया पानी पावे बखत एगो बूढ़-पुरनिया के रहना जरूरी हे । ऊ हिदायत करते गेली कि भारी चीज नई उठावथ औ कटहर, हरदी के हलुआ, आम बगैरह नई खाथ, दूध खूब पीयथ ।)    (मशिलो॰67.2)
90    कट्टीस (~ करना) (अच्छा, अब तोरा से बोलवे नई करम । तू भी समझ लीहऽ कि महेश के भावना मर गेल, ओकर जिन्दगी खतम हो गेल । आज से महेश से तू कट्टीस कर लऽ ।)    (मशिलो॰88.2)
91    कट्ठा (रामवदन जी पूछलका कि कैसे कट्ठा ई जमीन बिकल । लेवेवाला बोलल कि दू हजार रुपये कट्ठा । रामवदन जी एकरा पर गोस्सा गेला कि ई की बात हे, ई तो दस हजार रुपैया कट्ठा एक बरस पहिले ही लेवे वाला तैयार हल ।)    (मशिलो॰86.4, 5, 7)
92    कड़ाही (= कराही) (चूल्हा पर चढ़ल कड़ाही के गरम तेल में पानी पड़ गेला पर छन्न से आवाज करके जैसे आग के लहर उठ जाहे ओइसहीं करुणा के दिल के खौलल तेल में महेश के बात से पानी नीयर पड़ गेल ।)    (मशिलो॰87.1)
93    कनिआय (आज राजा के बुतरु हे, कल राधे के बुतरु होत, परसो डोमनी के बुतरु होत । नईकी कनिआय औ पढ़े लिखे वाला तेज लड़कन के कम खतरा थोड़े हे । छिनरी जब तक नई नाचत गाँव के खैरियत नई होत ।)    (मशिलो॰45.19)
94    कपार (तरवा के धूर ~ पर चढ़ना) (ई सुन के गुलाब औ सतीश के तरवा के धूर कपार पर चढ़ गेल ।; सनीचरी झगड़ू से मिलल तो झगड़ू कहलक कि फलना साव तो बीस पैसे रुपया फी माह बेयाज ले हलौ, हम तो दसे पैसे बेयाज जोड़लियो हऽ । ई सुन के सनीचरी के तरवा के धूर कपार पर चढ़ गेल ।; मोका पाके हरखू एक दिन महेश बाबू के ई सब बात कहलक । महेश बाबू के तरवा के धूर कपार पर चढ़ गेल । कहलका कि आजे छोटे बाबू से कहम कि राड़ी पर एतना जुलुम मत करऽ ।)    (मशिलो॰24.18; 40.12; 96.16)
95    कमासुत (झगड़ू से मुक्त होवे ला सनीचरी पुरनका किसान हीं जाके गिड़गिड़ाल कि ऊ पाँच सौ रुपैया देथ तो दुनु जनी-मरद उनखे हीं काम करत औ धीरे-धीरे रुपैया वसूल कर देत । किसान जी के तो मांगले मुराद मिल गेल काहे कि ऐसन कमासुत औरत मरद उनखा मिल जा हल ।)    (मशिलो॰41.8)
96    कयास (= अनुमान, अटकल, कल्पना) (एही मौत एक ऐसन चीज हे जेकरा बारे में कोई भी आदमी आज तक नई कह सकल कि ई कैसे होवऽ हे, काहे होवऽ हे, एकरा संचालन के करऽ हे । एकरा बारे में सभे बात कयास पर टिक्कल हे ।)    (मशिलो॰9.18)
97    करकी (= काली स्त्री) (तब गाँव-घर के बात शुरू होल । हरि सिंह कहे लगला कि छिनरी करकी के अत्याचार बढ़ गेल ह । साँझे राजा के बुतरुआ के भर आँख देख के बोलल कि वाह ई बुतरु तो बड़ी खूबसूरत औ तन्दुरुस्त हे । औ आज भोरे से ऊ बुतरुआ के मिजाज बड़ी खराब हो गेल ।; से सभे सन्देह करे लगला हऽ कि हो न हो ई करकी छिनरी के करतूत हे । ई डइनी न जाने केतना के खात ।)    (मशिलो॰44.11, 20)
98    करम (~ पीटना) (एकरे बाद दुखिनी पानी पैलक । एगो तन्दुरुस्त बेटी जन्म लेलक । मगर भतिनी करम पीटलक कि एकरो बेटिये होल ।)    (मशिलो॰13.15)
99    कस्सल (= कसा हुआ) (गुलाब में कुछ सुधार के लक्षण देख के दुखिनी दाई सोचलक कि बड़घरिया से रुपैया के पोटरी ले आमू । से ऊ पोटरी ले आल । मगर जैसहीं पोटरी हाथ में पड़ल, लगल कि पोटरिया बड़ी ढील्ला हे जबकि पहिलका पोटरिया एकदम कस्सल हल ।)    (मशिलो॰22.7)
100    कहलाम (= कहनाम) (मगर करमचन्द दोसर बियाह करे ला एकदम राजी नई होला औ कहलका ... ई छोटा परिवार सुखी परिवार के आदर्श पूरा करम । यह भी कि एक नारी ब्रह्मचारी वाला कहलाम के भाव परिपूरित करम ।; ई सब के कहलाम हल कि जब इनकर जात के कोई उम्मीदवार नई हे तो दोसर वास्ते काहे ला टाँग अड़ा रहला हऽ । ई रूप में उनकर विरोधी के संख्या बढ़ते गेल ।; लोगन के ई कहलाम हे कि बेटी औ वोट जाते के देल जाहे ।)    (मशिलो॰71.22; 78.11; 84.9)
101    कहुआ (जज साहब लसोढ़ा कभी नई देखलका हल । वकील साहब उनखा बतैलका कि ई प्रजाति अब खतम हो रहल हऽ । पहिले सड़क के किनारे एने ओने फनेला, लसोढ़ा, इमली, आम, सिरिस, कहुआ आदि देशी पेड़ लगऽ हल जेकरा में औषधीय गुण भी हल ।)    (मशिलो॰57.1)
102    कागज-पत्तर (एने मैनेजर एतना डर गेल हल कि करीब-करीब सभे आवेदक के कागज-पत्तर पूरा करके कर्जा दे देलक ।)    (मशिलो॰26.5)
103    कार (= काला) (जब कस्टम वाला मट्टी के ढेला पर हथौड़ी चलावऽ हल तो बड़कू मियाँ के लगऽ हल कि उनकर छाती पर हथौड़ी से वार करल जा रहल हऽ औ समूचे देह गनगना जा हल । कभी-कभी झाँई बर जा हल, लगऽ हल कि आँख के सामने कार-कार गोल-गोल ऐसन आकार के चीज नाच रहल ह ।)    (मशिलो॰4.15, 16)
104    काहे (= क्यों; ~ कि = क्योंकि) (ईद के मोका पर तो रमजानपुर में ऐसहीं गहमागहमी रहऽ हके, ई साल एकरा में बढ़ोतरी हो गेल काहे कि कई बरस के बाद हसनैन साहब विदेश से घर आ रहला हऽ ।; ओही आँख के लाल के बरसों बाद देख के बड़कू मियाँ खुश काहे नई होता ।; मैनेजर जान के डर से तुरते चार लाख के गड्डी थम्हैलक । मैनेजर के कोठरी में बन्द कर देलक । डेरा में भी बाहर से सिकड़ी लगा के मोटर साइकिल पर रफू-चक्कर हो गेल । मैनेजर केस करत हल तो खुदे फँसत हल काहे कि एतना रुपइया के हिसाब ऊ कहाँ से देत हल ।)    (मशिलो॰1.3; 2.1; 25.20)
105    किराना (~ के दोकान) (जिन्दगी जीये ला कुछ ठोस आमदनी जरुरी हे । से रामजी पंचायत से मिलल एक हजार रकम तथा अप्पन औ ममता के कोसल के योग से बनल पूँजी से एगो छोटा किराना के दोकान हुआँ खोल देलका । एकरा से दुनु प्राणी के खरचा चले लगल ।)    (मशिलो॰54.19)
106    की (= क्या) (बड़कू मियाँ के उछाह के की ठिकाना । एके ठो बेटा हल । ओकरा कई बरस के बाद बुढ़ारी में देखता तो ऊ सुख के वर्णन करना कठिन हे ।; मगर जब जातरा के दिन आयल तो बड़कू मियाँ के मन अजब तरह के हो गेल । लगल कि पक्कल आम के की भरोसा, फिन घुर के रमजानपुर आम कि नई ।; हुआँ मालूम होल कि गाँव के दलाल औ चौकीदार दफादार सब थाना के खबर कइलक कि ममता के हत्या करके गंगा में फेंक देल गेल । मोदालेह सब के कुछ सुझवे नई करे कि की जवाब देल जाय ।)    (मशिलो॰1.9; 3.9; 55.13)
107    कुट्टी (घर में जाके की देखऽ हे कि एक भीतर में सोमर पड़ल हे । दोसर में झगड़ू के बैल बन्धल हे । समूचे घर गोबर, कुट्टी के गन्दगी से भरल हे ।)    (मशिलो॰39.5)
108    कुदार (ओही घड़ी गमछा के मुरेठा बाँधले, कंधा पर कुदार औ हाथ में खुरपी लेले रामजी जा रहला हल, से हरि सिंह के बैल बन्धल देख के भीतर झाँके ला ठमकला तो पाण्डे जी औ हरि सिंह के गलबात करते देखलका।)    (मशिलो॰44.2)
109    कुद्दी (= भाग, हिस्सा) (बाप-दादा के टाइम से एक सौ पुराना चान्दी के सिक्का हल । ... चार-चार रुपया के एक गण्डा बना के पच्चीस कुद्दी लगावऽ हल । पाँच गण्डा के एक बीस बना के अलग रखऽ हल ।; एही क्रम में एक दिन अइसन होल कि कुद्दी के कुछ रुपैया चौकी से नीचे पत्थर के पसेरी पर गिर गेल जेकरा से झन से आवाज निकस के बगल के कोठरी में सुत्तल गुलाब के जगा देलक ।; गुलाब के अवाज सुन के दुखिनी ढिबरी के बुता देलक औ रुपैया के कुद्दी सब पर ओढ़े वाला चद्दर ढाक देलक ।)    (मशिलो॰19.9, 10, 14, 19)
110    कुम्हार (अजादी के बाद धीरे-धीरे वोट के गन्दा राजनीति के वजह से जात-पात के भावना देहातन में तेजी से बढ़ल । बाभन, रजपूत, कुरमी, कोयरी, गोआला, दुसाध, पासी, चमार सब अलगे-अलगे खिचड़ी पकावे लगल । गाँव के एक दू घर बनिया, कुम्हार, धोबी, मुसलमान, बड़ही, नउआ के तो कोई कीमते नई हल । बेसी जात वालन के बिना पैसा के ई सब गुलाम बने ला मजबूर हो जा हल ।)    (मशिलो॰14.20)
111    कुरमी (= कुर्मी) (अजादी के बाद धीरे-धीरे वोट के गन्दा राजनीति के वजह से जात-पात के भावना देहातन में तेजी से बढ़ल । बाभन, रजपूत, कुरमी, कोयरी, गोआला, दुसाध, पासी, चमार सब अलगे-अलगे खिचड़ी पकावे लगल । गाँव के एक दू घर बनिया, कुम्हार, धोबी, मुसलमान, बड़ही, नउआ के तो कोई कीमते नई हल । बेसी जात वालन के बिना पैसा के ई सब गुलाम बने ला मजबूर हो जा हल ।)    (मशिलो॰14.18)
112    कुर्मी (गाँव में तेली, सोनार, सिन्दुरिया, ब्राह्मण, कायस्थ, यादव, कोयरी, कुर्मी, दुसाध, बड़ही, मुसलमान, मुशहर रहऽ हला । करीब दू सौ घर के ई रमजा गाँव हल । मगर जैसे ही पाकिस्तान बनल, मुसलमान सब भाग के कलकत्ता चल गेला । पीछे आके खेत-पथारी बेचलका ।)    (मशिलो॰77.2)
113    केतना (= कितना) (ओकरा लगे कि दोसर बेटा-बेटी के बाप केतना लड़कन के दुलारऽ हे, ढंग से बोलऽ हे । हम्मर बाप तो जिन्दगी में एके बार प्यार भरल मीठ बोली बोललक ।)    (मशिलो॰36.22)
114    केवाल (किसान सब सोमर के ई गुनी मानऽ हला कि हर जोते में ई हाबिर हल । खेत के मट्टी केतनो कड़ा रहे, केवाल रहे ओकरा जोत के भूर्रा बना दे हल ।)    (मशिलो॰27.11)
115    कै (= केतना, कितना) (एकर बाद ऊ कहलका कि कै ठो बाप के ई नसीब होवऽ हे कि बेटा पोता पुतोहू के सामने, ऊ भी विदेश में मरे ।)    (मशिलो॰10.1)
116    कै (= वमन, उलटी) (एक दू घंटा में सनीचरी ठीक हो गेल मगर बुधिया जे कै करे लगल तो करते ही रह गेल । आखिर सनीचरी दौड़ल-दौड़ल गेल औ बैद जी के बोला लइलक ।; पर भोर तक भी बुधिया ठीक नई होल, कै करते ही रहल ।)    (मशिलो॰29.13, 16)
117    कैसन (= कइसन) (सबसे पहिले पुछलका कि नइका बउआ कैसन हे । फेन बोलला कि पोता के देखे के बड़ी मन करऽ हे ।)    (मशिलो॰2.11)
118    कोड़नी (सनीचरी के रख के खिलावे के ओकरा औकात नई हल । ई गुनी सनीचरी के एगो भीतर रहे ला दे देलक । सनीचरी काम करे में हाबड़ हईये हल से निकौनी, कोड़नी, अनाज फटके, गोयठा ठोके के काम करे लगल ।)    (मशिलो॰37.16)
119    कोयरी (अजादी के बाद धीरे-धीरे वोट के गन्दा राजनीति के वजह से जात-पात के भावना देहातन में तेजी से बढ़ल । बाभन, रजपूत, कुरमी, कोयरी, गोआला, दुसाध, पासी, चमार सब अलगे-अलगे खिचड़ी पकावे लगल । गाँव के एक दू घर बनिया, कुम्हार, धोबी, मुसलमान, बड़ही, नउआ के तो कोई कीमते नई हल । बेसी जात वालन के बिना पैसा के ई सब गुलाम बने ला मजबूर हो जा हल ।; गाँव में तेली, सोनार, सिन्दुरिया, ब्राह्मण, कायस्थ, यादव, कोयरी, कुर्मी, दुसाध, बड़ही, मुसलमान, मुशहर रहऽ हला । करीब दू सौ घर के ई रमजा गाँव हल । मगर जैसे ही पाकिस्तान बनल, मुसलमान सब भाग के कलकत्ता चल गेला । पीछे आके खेत-पथारी बेचलका ।)    (मशिलो॰14.18; 77.2)
120    कोहड़ा (भण्डार कोण में एगो बड़का नीम के पेड़ हल । पिछला साल के तरह ई साल भी ओकरा पर कोहड़ा के लत्ती खूब फैलल हल । कोहड़ा के पीयर-पीयर फूल औ बतिया बहुत सा लटकल हल जे देखे में बड़ी निमन लगऽ हल ।)    (मशिलो॰81.7, 8)
121    कोहबर (ई केन्द्र में एगो कोहबर कक्ष हल ।; ई कोहबर कक्ष के प्रयोग ओइसने प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी ला हल जिनका यौन के अवैज्ञानिक क्रिया करे गुनी गर्भाधान नई होवऽ हल । सविता दुनु के वैज्ञानिक प्रक्रिया के शिक्षा देके ऊ कक्ष में भेजऽ हली औ बाहर से देखऽ हली कि यौन क्रिया वैज्ञानिक ढंग से होवऽ हे कि नई ।; ऊ मरदाना के दोसर दिन अकेले बुला के यौन के व्यावहारिक क्रिया बतावे के बहाने कोहबर कक्ष में ले जाके अप्पन यौन तृप्ति कर ले हली ।; सविता के व्यवहारिक यौन मनोविज्ञान प्रतिष्ठान चालू रहल । फरक एतने होल कि कोहबर कक्ष बन्द कर देल गेल ।)    (मशिलो॰67.12, 17; 68.8; 72.2)
122    खंढ (= खाँढ़) (दलान के आगे करीब 15 कट्ठा के खंढ हल जेकरा एने लगभग डेढ़ बरस पहिले कच्चा गारा पर ईंटा के चहारदीवारी से घेर देल गेल हल ।; पाँच बरस पहिले तक कोई के मजाल नई हल कि रामवदन जी के ई खंढ से एक पत्ता भी तोड़ ले ।; उनकर लड़कन कहलक कि घर-मकान बाकी खेत खंढ बेच के शहरे चल चलऽ ।; एने-ओने खंढ कोली में बाकस के बहुत पौधा पावल जाहे ।)    (मशिलो॰73.4, 15; 75.9; 76.6)
123    खनदान (= खानदान) (कुल-~) (गाँव वालन सब चकित हल कि ई बड़का घर के लड़का एता छोट काम कैसे करऽ हे । ई कुल खनदान के नइया डुबा देलक ।; तू भाग मनाओ बुधिया के माई कि तोर बियाह हमरा जैसन विजेता सोमर से हो गेलौ । एकरा से हम्मर औ तोर नैहर के दुनु खनदान तर गेल । हौ तोर नैहर में ऐसन विजेता ? औरत के अमूनन नहीरा के शिकायत तनिको बरदास्त नई होवऽ हे । से जब सोमर ओकर नहीरा के खनदान के कोसलक तो सनीचरी कहलक - "तू की कहमऽ । हम्मर भाई तो कर्मचारी बाबू बनल हे । ऊ सब किसान के खेत के हिसाब किताब रखऽ हे, मलगुजारी तसीलऽ हे, तोर खनदान में हौ कोई ऐसन अफसर ?")    (मशिलो॰17.10; 35.12, 16, 19)
124    खनदानी (= खानदानी) (रामवदन जी के खनदानी खेत हल । कुछ अपने औ कुछ चौरहा बटइया कराके अनाज पावऽ हला ।; आखिर हम भी तो ई घराना के खनदानी मजूर ही । हमरो कुछ अधिकार बनऽ हे कि परिवार के ऊँच-नीच पर विचार करी ।)    (मशिलो॰74.9; 91.15)
125    खरचा-वरचा (ई दुनु के लड़कन क.लेज में पढ़ऽ हला । पढ़ाई खतम होला पर पैरवी कोशिश, खरचा-वरचा करके सरकारी नौकरी पा गेला । इन्कन्हीं सब जिद करके थोड़ा खेत बेचवा करके, शहर में मकान बनाके किराया से आमदनी करे लगला ।)    (मशिलो॰75.5)
126    खाई (= खाय; खाना, भोजन) (करुणा छमछमा के माथा पर खेत में मजूर के खाई लेले खेत दने चल गेल ।; माथा पर से खाई के बट्टा उतार के हरवाहा हरखू माँझी के हँकैलक औ कहलक कि तू दुनु बाप-बेटा के खाई हो से ले जा । हरखू बोलल कि पाँच-सात मिनट में ई खेत के हरवाही खतम हो जात, ओकर बाद खैबो ।; संयोग ऐसन भेल कि खाई के खाली बर्तन वगैरह बट्टा में लेके जब करुणा लौट रहला हल तो महेश बाबू फेन भेंट गेला ।)    (मशिलो॰88.9; 89.7, 9; 93.4)
127    खाजिश (~ बूट) (बजार के एक सावजी ओकरा बतैलक कि खाजिश बूट के असली सत्तू के ऊ आध औ एक किलो के पोलिथिन में पैक करके बेचे ।)    (मशिलो॰18.14)
128    खातिर (मगर अब सवाल हो गेल कि खरचा कैसे चलत । बेटी के बियाह औ बेटा के पढ़ावे के बात हल । समस्या के समाधान खातिर अप्पन मरद के कलकत्ता से बोलइलक ।)    (मशिलो॰16.17)
129    खाद (छागल में आधा चाँदी औ आधा खाद हल । से गुनी ओकर दाम कम मिलल ।)    (मशिलो॰94.22)
130    खाना-खोराक (छोटकी तो ई भी कहऽ हल कि चोरी-चमारी के भय के वजह से करुणा सभे जेवर के तिजोरी में रखे ला छोटका बाबू के दे देथ । नाता-रिश्ता से छोटकी अक्सर कहऽ हली कि कपड़ा-लत्ता, खाना-खोराक, दूध-घी, साबुन-तेल तो इनखा सब देले जाहे तो इनखा जेवर से काहे ला मोह हे ।)    (मशिलो॰95.9)
131    खाहिस (= ख्वाहिश, इच्छा, कामना) (ए बेटा ! लगऽ हो कि हम अब नई बचवो । हमर खाहिस हो कि जब हम मरबो तो अपने देश भारत के बीनल गाँव के खादी के कफन के इन्तजाम करीहऽ ।; संयोग के बात हल कि हसनैन साहब के बिहार शरीफ के एगो दोस्त एक हफ्ता ला घर जा रहला हल । उनके से अप्पन बाबा के खाहिस कहके आरजू कैलका कि ई दुनु चीज लेले आवथ ।)    (मशिलो॰8.11, 22)
132    खिचड़ी (अलगे-अलगे ~ पकाना) (अजादी के बाद धीरे-धीरे वोट के गन्दा राजनीति के वजह से जात-पात के भावना देहातन में तेजी से बढ़ल । बाभन, रजपूत, कुरमी, कोयरी, गोआला, दुसाध, पासी, चमार सब अलगे-अलगे खिचड़ी पकावे लगल । गाँव के एक दू घर बनिया, कुम्हार, धोबी, मुसलमान, बड़ही, नउआ के तो कोई कीमते नई हल । बेसी जात वालन के बिना पैसा के ई सब गुलाम बने ला मजबूर हो जा हल ।)    (मशिलो॰14.19)
133    खिजखिज (रात दिन के खिजखिज से सनीचरी ऊब गेल । ओकरा लगे कि जमीन फट जाय तो ओकरा में ऊ समा जाय, कूआँ या तालाब में डूब मरे ।)    (मशिलो॰37.4)
134    खुटपुट (कहे के तो दुखिनी दाई कह देलक मगर ओकरा खुटपुट लगते रहल कि न जाने गुलाब की करत । गुलाब के चाल-चलन ठीक नई हे, ऐसन न होवे कि पुरखन के ई थाती के ऊ बेच के खा-पी जाये ।)    (मशिलो॰20.2)
135    खेत-पथारी (ई बीच में बड़कू मियाँ खेत-पथारी सब चौरहा बटइया लगा देलका औ अप्पन चचेरा भाई के घर दुआर खेत-पथारी पर नजर रखे ला कह देलका ।; गाँव में तेली, सोनार, सिन्दुरिया, ब्राह्मण, कायस्थ, यादव, कोयरी, कुर्मी, दुसाध, बड़ही, मुसलमान, मुशहर रहऽ हला । करीब दू सौ घर के ई रमजा गाँव हल । मगर जैसे ही पाकिस्तान बनल, मुसलमान सब भाग के कलकत्ता चल गेला । पीछे आके खेत-पथारी बेचलका ।; धर्म के नाम पर जेतना मानसिक दुराव होल हल ओकरा से बहुते बेसी बिखराव ई जात-पात के भाव पैदा कैलक । कम जात वालन के खेत-पथारी के अनाज बरबाद होवे लगल ।; ई कहल नई जा सकऽ हे कि की बात हे, मगर गाँव-जवार में ई चर्चा हे कि करुणा के सब कुछ मिल गेल - खेत-पथारी, घर-मकान, बेटा आउर ... ।)    (मशिलो॰3.4, 5; 77.6, 12; 100.15)
136    खेती-पथारी (उनका विलायत जाइ के मन हइए हल । मगर उनका ई बात लिखे में अच्छा नई लगऽ हल । सोचऽ हला कि बेटा कहत कि खेती पथारी छोड़ के कैसे विलायत जैवऽ औ हुआँ तो रहे वालन के बड़ी विकट समस्या हे ।)    (मशिलो॰2.21)
137    खेलवाड़ (= खिलवाड़) (तोर ई मजाल कि हम्मर विधवा जिन्दगी से खेलवाड़ करऽ । तोर मौगी मौज-मस्ती कराके बेटा जलमा के मरलो, हम्मर मरद तो बियाह के दोसरे साल मर गेला औ हमरा जिन्दगी भर तपस्या करे ला छोड़ देलका ।)    (मशिलो॰87.9)
138    खैनी (अभी पूरब के आसमान लाल धप्पे लगल हल कि रामवरण पाण्डेय खड़ाऊँ पहनले घूम घूम के खैनी टूंग रहला हल ।)    (मशिलो॰43.2)
139    खोढ़ा (= पहाड़ा) (बुधिया के गाँव के पाठशाला में पढ़े ला बैठा देलक । कुछ महीना में बुधिया हिन्दी के ककहरा सीख गेल औ दसका तक के खोढ़ा भी याद कर लेलक ।)    (मशिलो॰37.19)
140    खोराक (= खुराक) (सोमर सूख के काँटा हो गेल हल काहे कि खाये पीये के कोई ठेकाना नई हल । बूँट के सुखड़ा औ ताड़ी बस एही एकर खोराक हल ।)    (मशिलो॰39.8)
141    गण्डा (बाप-दादा के टाइम से एक सौ पुराना चान्दी के सिक्का हल । ... चार-चार रुपया के एक गण्डा बना के पच्चीस कुद्दी लगावऽ हल । पाँच गण्डा के एक बीस बना के अलग रखऽ हल ।)    (मशिलो॰19.9, 10)
142    गदराना (= अनाज का छीमी में पुष्ट होना; युवावस्ता में अंगों का सुडौल होना) (लसोढ़ा के फर जब पक जाहे तो थोड़ा पीयर लेले गुलाबी उज्जर रंग के हो जाहे । ... लसोढ़ा के ऊ फर के साथ-साथ रात के रानी नीयर गदराल फूल रहऽ हे जेकर खुशबू मादक होवऽ हे ।)    (मशिलो॰51.1)
143    गनगनाना (जब कस्टम वाला मट्टी के ढेला पर हथौड़ी चलावऽ हल तो बड़कू मियाँ के लगऽ हल कि उनकर छाती पर हथौड़ी से वार करल जा रहल हऽ औ समूचे देह गनगना जा हल ।)    (मशिलो॰4.14)
144    गमकना (= दुर्गन्ध करना, बदबू करना) (टोला वालन सब सोमर के खूब डाँटलका औ कहलका कि तोर मुँह तो बक-बक गमक रहलो हऽ । जरुरे तू सभे रुपैया के ताड़ी पी गेले हँ ।)    (मशिलो॰30.11)
145    गमछा (रोते-कलपते सोमर घर आल औ कहलक कि गमछा में जे रुपैया बांध के पीठ पर लटका लेलूँ हल से पीछे से कोई खोल के पाँचो रुपैया ले लेलक ।; ओही घड़ी गमछा के मुरेठा बाँधले, कंधा पर कुदार औ हाथ में खुरपी लेले रामजी जा रहला हल, से हरि सिंह के बैल बन्धल देख के भीतर झाँके ला ठमकला तो पाण्डे जी औ हरि सिंह के गलबात करते देखलका।)    (मशिलो॰30.5; 44.1)
146    गरीब-गुरबा (ओही दलाली के कमाई ऊ बेयाज पर जाते भाई औ गरीब-गुरबा के देके खूब बेयाज कमा हल ।; गरीब-गुरबा के मोके-बेमोके थोड़ा-बहुत रुपैया भी बिना बेयाज के दे दे हला ।)    (मशिलो॰40.20-21; 76.11)
147    गलबात (ओही घड़ी गमछा के मुरेठा बाँधले, कंधा पर कुदार औ हाथ में खुरपी लेले रामजी जा रहला हल, से हरि सिंह के बैल बन्धल देख के भीतर झाँके ला ठमकला तो पाण्डे जी औ हरि सिंह के गलबात करते देखलका। ऊ भी खैनी खा हला से खैनी औ गलबात में हिस्सा लेवे खातिर ऊ ओजा पहुँच गेला।)    (मशिलो॰44.4, 6)
148    गलमुच्छा (= गलमोछी) (गुलाब औ सतीश के ई बात मालूम हल कि घूस के सभे रुपैया मैनेजर अप्पन डेरे में रखऽ हे । बैंक में रखे में भेद खुल जाये के औ पकड़ा जाये के खतरा हल । से एक दिन गुलाब, सतीश औ तीसर घूस देवे वाला गौर-गट्ठा कैलक । तीनो गलमुच्छा बांध लेलक औ मोटर साइकिल पर चढ़ के मैनेजर के डेरा में धड़धड़ा के हेल गेल ।)    (मशिलो॰25.11)
149    गस (= गश) (भगत जी के बाँछ खिल गेल औ ममता के नइका बढ़नी से झमारे लगला । झमारते-झमारते भगत जी कुछ बुदबुदैते रहला । आखिर ममता गस खाके जमीन पर गिर पड़ल । तब ओकरा उठा के बगल के कोठरी में ले जाल गेल ।)    (मशिलो॰52.20)
150    गाँव-जवार (= गाँव-जेवार) (पाँच बरस पहिले तक कोई के मजाल नई हल कि रामवदन जी के ई खंढ से एक पत्ता भी तोड़ ले । ओकर वजह ई हल कि गाँव जवार में रामवदन जी के बड़ी धाक हल ।; ई कहल नई जा सकऽ हे कि की बात हे, मगर गाँव-जवार में ई चर्चा हे कि करुणा के सब कुछ मिल गेल - खेत-पथारी, घर-मकान, बेटा आउर ... ।)    (मशिलो॰73.16; 100.14)
151    गारा (जब एकरा पीये के सीमित आदत हल तो औरत मरद दुनु अप्पन कमाई से गिरल-फुट्टल फूस के छौनी के झोपड़ीनुमा मकान तोड़ के अइटा गारा से दूगो छोटे गो भीतर बनैलक । ई दुनु भीतर के खपड़ा से छैलक ।)    (मशिलो॰28.6)
152    गारी (कम कम संख्या के जात वालन के कह देल जा हल कि तू सब वोट देवे के तकलीफ काहे ला करमऽ । तोहर वोट ऐसहीं पड़ जैतो, फेन भी वोट मांगे वालन सब ई कम जात वालन के गारी औ लाठी से बात करऽ हला ।)    (मशिलो॰77.21)
153    गियारी (= गरदन) (औ फेन करकी के साथे ओकर जुअनकी बेवा पुतहिया भी तो हो । ममता के बारे में अफवाह हे कि ई भी डायन के काम सीख रहल हऽ। जलमते बेटा के गियारी ममोर देलक, फेन मरदवो के खा गेल । ई गुनी एकरो साथे नचावे के इन्तजाम कर देल जाय ।; ममता रामजी के गियारी में जे फूल के माला डाललक ऊ फूल के एक-एक पंखुड़ी में माधुर्य औ प्रेम के रस सनल हल ।; गियारी में दर्जनो माला लटकैले रामजी आके उनकर गोड़ पर गिर गेला औ कहलका कि आशीर्वाद दऽ कि मन्त्री भी बन जइयो ।)    (मशिलो॰46.5; 54.5; 83.11)
154    गिरमी (= गिरवी) (दुखिनी दाई थोड़ा लगौनी-बझौनी के काम भी करऽ हल । जहाँ बजार में जेवर के गिरमी पर तीन चार रुपया सैकड़ा बेयाज लगऽ हल, दुखिनी दाई दू रुपया सैकड़ा बेयाज ले हल । एकरा से लोग खुश रहऽ हल । केवल पाँच हजार रुपया के गिरमी के काम दुखिनी दाई करऽ हल जेकरा से एक सौ रुपया के माहवारी आमदनी हल मगर हल्ला हल कि बाप रे बाप, दुखिनी दाई तो लाखों लाख के गिरमी गठा के काम करऽ हे से एकरा पास बड़ी रुपया हे । दुखिनी के जब ई बात मालूम होल तो गिरमी के काम भी धीरे-धीरे बन्द कर देलक ।)    (मशिलो॰16.5, 8, 11, 13)
155    गिरल-फुट्टल जब एकरा पीये के सीमित आदत हल तो औरत मरद दुनु अप्पन कमाई से गिरल-फुट्टल फूस के छौनी के झोपड़ीनुमा मकान तोड़ के अइटा गारा से दूगो छोटे गो भीतर बनैलक । ई दुनु भीतर के खपड़ा से छैलक ।)    (मशिलो॰28.5)
156    गुनी (= कारण; से ~ = उसके कारण;  ई ~ = इसलिए; एही ~ = इसी कारण) (हम तो चिट्ठी लिखलियो हल कि बहू-पोता के साथ आवऽ । हसनैन जवाब में कहलका कि बेटा के महतारी के तबियत अलील हल से गुनी ऊ अकेले अइला ।; हवाई जहाज पर चढ़े के पहिले बक्सा खोल के जब कस्टम वाला देखलक तो ओकरा ई बात समझ में नई आल कि ई मट्टी के ढेला काहे ला ले जा रहला हऽ । ई गुनी ढेला के फोड़ के चूर-चूर कर देलक ।; से अभी खेतिये पर चन्दा करे से ठीक रहत । रामजी जवाब देलका - "तू एही गुनी विरोध करऽ हऽ कि तोर घर के दू गो जवान बेटा सरकारी नौकर हो जे मुशहरा के अलावे बड़ी बेसी घूस कमा हो ।")    (मशिलो॰2.15; 4.10; 46.21)
157    गो (हियाँ लन्दन में ओइसन रौदा कहाँ । कभी-कभार रौदा होवऽ हल भी तो छोटे गो फ्लेट में गज दू गज तिरछा पतला धूपे मिले हल ।; ओने दुखनी के भी कलकत्ता में तनिको मन नई लगे । जिरि गो कोठरी में रहे पड़ऽ हल । पखाना के ओइसने किल्लत हल । बाड़ी में तीन गो पखाना हल, औ एक सौ के करीब बाल-बुतरु लगा के अदमी ।)    (मशिलो॰6.10; 11.19, 20)
158    गोआला (= ग्वाला) (अजादी के बाद धीरे-धीरे वोट के गन्दा राजनीति के वजह से जात-पात के भावना देहातन में तेजी से बढ़ल । बाभन, रजपूत, कुरमी, कोयरी, गोआला, दुसाध, पासी, चमार सब अलगे-अलगे खिचड़ी पकावे लगल । गाँव के एक दू घर बनिया, कुम्हार, धोबी, मुसलमान, बड़ही, नउआ के तो कोई कीमते नई हल । बेसी जात वालन के बिना पैसा के ई सब गुलाम बने ला मजबूर हो जा हल ।)    (मशिलो॰14.18)
159    गोड़ (~ भारी होना = गर्भवती होना; ~ लगना = पैर छूना; से दूर रहना)) (कुछ महीना बाद उनका मालूम होल कि सविता के गोड़ भारी हे, से सम्भावित पोता या पोती के गुनी फेन करमचन्द हीं आके कुछ दिन रहला । जाये बखत सास कहलकी कि पानी पावे बखत ऊ ऐती औ घर सम्हार देती काहे कि नया पानी पावे बखत एगो बूढ़-पुरनिया के रहना जरूरी हे ।; ई तरह पता नई कब औ कैसे ई रोग हम्मर खून में आ गेलो । जब एकर पता लगलो तो स्वेच्छाचार यौन के गोड़ लगलियो ।; गियारी में दर्जनो माला लटकैले रामजी आके उनकर गोड़ पर गिर गेला औ कहलका कि आशीर्वाद दऽ कि मन्त्री भी बन जइयो ।)    (मशिलो॰66.19; 69.16; 82.7)
160    गोतिया (ममता के गोरा-चिट्टा देह, भरल-पुरल शरीर में मासूमियत से भरल बेवा के आकृति देख के रामजी बेचैन हो जा हला । ममता के रामजी नजदीकी गोतिया हला औ रिश्ता में उनखा भोजाई लगऽ हली ।)    (मशिलो॰47.22)
161    गोदी (= गोद) (डेरा पहुँच के पोता के देख के बड़कू मियाँ के खुशी के ठेकाना नई रहल । अल्हो-मल्हो नीयर पोता के गोदी में लेके चूमे लगला, खेलावे लगला, धीमे-धीमे हँस के बतियावे लगला, हाथ के कँपत अंगुरी से कान नाक आँख के सहलावे लगला ।)    (मशिलो॰5.10)
162    गोयठा (= गोइठा) (~ ठोकना) (सनीचरी के रख के खिलावे के ओकरा औकात नई हल । ई गुनी सनीचरी के एगो भीतर रहे ला दे देलक । सनीचरी काम करे में हाबड़ हईये हल से निकौनी, कोड़नी, अनाज फटके, गोयठा ठोके के काम करे लगल ।)    (मशिलो॰37.16)
163    गौर-गट्ठा (गुलाब औ सतीश के ई बात मालूम हल कि घूस के सभे रुपैया मैनेजर अप्पन डेरे में रखऽ हे । बैंक में रखे में भेद खुल जाये के औ पकड़ा जाये के खतरा हल । से एक दिन गुलाब, सतीश औ तीसर घूस देवे वाला गौर-गट्ठा कैलक । तीनो गलमुच्छा बांध लेलक औ मोटर साइकिल पर चढ़ के मैनेजर के डेरा में धड़धड़ा के हेल गेल ।)    (मशिलो॰25.11)
164    घमना (= प्रसन्न होना) (बिकरी के बात जब गाँव वालन के पता चलल तो ई सब सोचलक कि अगर तरमन्ना औ झाड़-झंखाड़ नई रहत तो दिशा मैदान औ चरागाह के जगह खतम हो जात । से चार-पाँच गो गाँव के किसान सब अफसर साहेब के जाके निहोरा कैलका कि एकरा से गाँव के इज्जत हे से कुछ रियायत करके गाँवे वालन के दे देल जाय । गाँव वालन सब एकरा ऐसहीं रहे देता । अफसर साहेब के मन घम गेल औ कुछ कमे दाम में गाँव वालन के ई जमीन दे देलका ।)    (मशिलो॰31.20)
165    घरजमाय, घरजमाई (दुखिनी के माई बाप चाहऽ हला कि दुखिनी के ऐसन लड़का से बियाह कैल जाय जे घरजमये रह सके ।)    (मशिलो॰11.5)
166    घर-दुआर (ई बीच में बड़कू मियाँ खेत-पथारी सब चौरहा बटइया लगा देलका औ अप्पन चचेरा भाई के घर दुआर खेत-पथारी पर नजर रखे ला कह देलका ।)    (मशिलो॰3.5)
167    घरनी (= जन्नी, पत्नी, गृहिणी) (सोमर कहे लगल कि लोग-बाग ठीके कहऽ हथ कि 'बिन घरनी घर भूत के डेरा ।')    (मशिलो॰40.2)
168    घिसिन्डी (इनाम में जे नकदी पच्चीस रुपैया मिलल हल ओकरा सनीचरी के हवाले कैलक । शील्ड नीयर यादगार के रूप में तरकट्टी, लबनी, टकही औ ताड़ के पत्ता के दोना जे मिलल हल ओकरा तुरते मट्टी के घिसिन्डी नीयर बना के रख देलक ।; अखनी भी घिसिन्डी पर तरकट्टी, लबनी, टकही औ ताड़ के पत्ता के दोना रखल हे जेकरा पर विजेता सोमर खल्ली से लिखल हे ।)    (मशिलो॰34.14; 42.6)
169    घुरना (= लौटना) (मगर जब जातरा के दिन आयल तो बड़कू मियाँ के मन अजब तरह के हो गेल । लगल कि पक्कल आम के की भरोसा, फिन घुर के रमजानपुर आम कि नई ।)    (मशिलो॰3.9)
170    घैला (= घड़ा) (ताड़ी बेचे वालन सब तो ई ताड़ी में ढेर सा पानी, सेकरीन औ चीनी मिला के एक घैला के चार घैला बना के अफसर जी के तरमन्ना के ताड़ी के नाम पर बेच के पैसा कमा हला ।; ताड़ी पीये औ रखे वाला बरतन ऊ घड़ी चार साइज में इस्तेमाल कैल जा हल । सबसे छोटा टकही, दू टकही के एक लबनी, दू लबनी के तरकट्टी औ चार तरकट्टी के घैला होवऽ हल । घैला आज भी प्रचलित हे ।)    (मशिलो॰32.5, 6; 33.9, 10)
171    चखना (ई जे कम्पटीशन होल एकरा में ताड़ के पत्ता के दोना पीये ला रक्खल गेल । चखना लागी बूँट के सुखड़ा देल गेल । एकरा में पाँच पीयाँक जुटला ।)     (मशिलो॰33.17)
172    चचा (= चाचा) (दुखिनी गाँव के ज्यादातर लोगन से कोई न कोई रिश्ता बनइले हल । गाँव घर के कोई चचा, कोई चाची, कोई भाई, कोई भतीजा, कोई भतीजी, कोई भोजाई, कोई पुतहू हो गेल हल । ऊ सब दुखिनी के दुखिनी दाई कहे लगला ।)    (मशिलो॰15.9)
173    चटकल (= जूट का कारखाना) (दुखिनी के माई बाप चाहऽ हला कि दुखिनी के ऐसन लड़का से बियाह कैल जाय जे घरजमये रह सके । से कलकत्ता के चटकल में काम करे वाला गरीब घर के लड़का से दुखिनी के बियाह कर देल गेल ।; एकर लोर देख के राजू के भी दिल हिल गेल औ दोसरे दिन चटकल से छुट्टी लेके दुखिनी के बारा पहुँचा देलक ।)    (मशिलो॰11.5; 12.15)
174    चटचट (~ अवाज) (खूँटी के खड़ाऊँ पर बुले के चटचट अवाज हो रहल हल ।;  हरि सिंह कंधा पर हर औ दूगो बैल के पगहा पकड़ले खेत जोते जा रहला हल कि खड़ाऊँ के चटचट अवाज से इनका अहसास हो गेल कि पाण्डे जी बुल रहला ह ।)    (मशिलो॰43.3, 11)
175    चढ़ा-उतरी (एकर बाद ई तै होल कि अब तो रामवदन जी खेत औ मकान बेच के भागवे करता । से ई जमीन ओही सब खरीदत जेकर लाट में पड़ऽ हे । चढ़ा-उतरी कोई नई करत तो मंगनी के मोल में जमीन मिलत, नई तो सबके वाजिब दाम देल पार नई लगत ।)    (मशिलो॰85.3)
176    चमचम (सनीचरी घर के झाड़-बहाड़ नीप-पोत के चमचम बना देलक ।)    (मशिलो॰42.2-3)
177    चमार (अजादी के बाद धीरे-धीरे वोट के गन्दा राजनीति के वजह से जात-पात के भावना देहातन में तेजी से बढ़ल । बाभन, रजपूत, कुरमी, कोयरी, गोआला, दुसाध, पासी, चमार सब अलगे-अलगे खिचड़ी पकावे लगल । गाँव के एक दू घर बनिया, कुम्हार, धोबी, मुसलमान, बड़ही, नउआ के तो कोई कीमते नई हल । बेसी जात वालन के बिना पैसा के ई सब गुलाम बने ला मजबूर हो जा हल ।)    (मशिलो॰14.19)
178    चरागाह (= चारागाह) (अब उनखा एगो 5-7 बीघा के तरमन्ना बचऽ हल । ई तरमन्ना में सगरो जंगल झाड़ हल । ई गाँव के जानवर के चरागाह औ मरद औरत के मैदान के जगह बन गेल हल ।)    (मशिलो॰31.9)
179    चलती (कुछ पुराना बूढ़ अदमी कभी कभार प्रणाम करे तो इनका बड़ी खुशी होवे औ ओकरा बोलाके दस मिनट बात कैला के बादे छोड़थ । इनकर जब चलती हल तो जे प्रणाम करऽ हल ओकरा आहिस्ते से मूड़ी झुका के जवाब देके अनठिया दे हला ।)    (मशिलो॰79.15)
180    चाह (= चाय) (दू तीन दिन तो सनीचरी खेत में कामो करे नई गेल औ आवे वालन के चाह बना के पिलैते रहल ।)    (मशिलो॰35.1)
181    चाही (= चाहिए) (आजकल के नइकन लोग जे ई कहऽ हथ कि बेटा-बेटी में कोई फरक करे के नई चाही से आके देखथ हम्मर हाल । ई खाली कहे के बात औ कोरा बकवास हे । बेटा होवे पर तो ऊ ऐसन कभी नई करत हल कि बूढ़ा बाप-माई के छोड़ के अपने मौज करे ला कलकत्ता चल जात हल ।; फेन महेश कहलका कि पोसपुत लेवे के कानून के मोताबिक लड़का या लड़की के उमर 14 बरस से ऊपर नई होवे के चाही । से करुणा सोच के निर्णय लेथ ।)    (मशिलो॰11.13; 98.2)
182    चिपाना (= दब जाना) (लसोढ़ा के फर जब पक जाहे तो थोड़ा पीयर लेले गुलाबी उज्जर रंग के हो जाहे । ... जब फर चिपा जाहे तो ओकर भीतर से गाढ़ा चिपचिपा पदार्थ निकलऽ हे ।)    (मशिलो॰51.3)
183    चुनना-चानना (सनीचरी गाँव के दोकान से आटा, पेयाज, नीमक मिचाई लैलक । चुन-चान के लकड़ी ले आल औ रोटी बना के पियाज, नीमक, मिचाई के साथ सोमर के खिला के अपने औ बुधिया खैलक ।)    (मशिलो॰39.18)
184    चोराना (= चुराना) (टोला वालन सब सोमर के खूब डाँटलका औ कहलका कि तोर मुँह तो बक-बक गमक रहलो हऽ । जरुरे तू सभे रुपैया के ताड़ी पी गेले हँ । बहाना बना के मौगी के ठग रहलँ हँ कि कोई चोरा लेलक ।; डेढ़ बरस पहिले चारो तरफ नकफेनी के काँटा लगल हल । पर जहाँ-तहाँ छीहर काँटा रहे से गाय-बकरी औ कभी-कभार अदमी भी हेल के लत्ती बरबाद कर दे हल । पपीता, सब्जी, टमाटर चोरा ले हल ।; नई मालकिन नई । हम अगर जेवर बेचे ला जाम तो बजार में सोना-चान्दी के दोकानदार कहत कि ई मुसहरवा के छागल कहाँ से आल । ई जरूर कहीं से चोरा के लैलक हऽ ।)    (मशिलो॰30.13; 73.13; 92.11)
185    चोरी-चमारी (छोटकी तो ई भी कहऽ हल कि चोरी-चमारी के भय के वजह से करुणा सभे जेवर के तिजोरी में रखे ला छोटका बाबू के दे देथ । नाता-रिश्ता से छोटकी अक्सर कहऽ हली कि कपड़ा-लत्ता, खाना-खोराक, दूध-घी, साबुन-तेल तो इनखा सब देले जाहे तो इनखा जेवर से काहे ला मोह हे ।)    (मशिलो॰95.6-7)
186    चौकोसी (लोग अब कहे लगला हऽ कि भगत जी लोभी हो गेला हऽ, से कभी-कभी डइनी से घूस लेके ओकरा नचावे के पूजा ठीक से नई करऽ हका । ई भी अफवाह हे कि छिनरी भगत जी के खुश कैले रहऽ हे । मगर लचारी ई हे कि चौकोसी भागवत भगत जी ऐसन कोई जानकार ओझा हे भी नई ।; करीब साठ बरस पहिले ऊ मैट्रिक पास कैलका हल से इलाका में शोर हो गेल हल काहे कि चौकोसी कोई दोसर अदमी मैट्रिक पास नई हल ।)    (मशिलो॰45.8; 75.21)
187    चौरहा (ई बीच में बड़कू मियाँ खेत-पथारी सब चौरहा बटइया लगा देलका औ अप्पन चचेरा भाई के घर दुआर खेत-पथारी पर नजर रखे ला कह देलका ।; नैहर में माई-बाप मर गेल हल । दू भाई में एक भाई सरकारी नौकरी में कर्मचारी औ दोसर घर में चौरहा बटइया खेत लेके जोत-कोड़ के खा हल ।; रामवदन जी के खनदानी खेत हल । कुछ अपने औ कुछ चौरहा बटइया कराके अनाज पावऽ हला ।; खेत जे बचऽ हल ओकरा चौरहा बटइया लगा देलका काहे कि बुढ़ारी के शरीर में एतना ताकत नई हल कि अपने खेत करैता हल ।)    (मशिलो॰3.4; 37.11; 74.10; 75.12)
188    छन्न (चूल्हा पर चढ़ल कड़ाही के गरम तेल में पानी पड़ गेला पर छन्न से आवाज करके जैसे आग के लहर उठ जाहे ओइसहीं करुणा के दिल के खौलल तेल में महेश के बात से पानी नीयर पड़ गेल ।)    (मशिलो॰87.2)
189    छागल (गोड़ के ~) (हम्मर मदद तू एतने करऽ कि हम तोरा अप्पन गोड़ के चागल दे हियो । एकरा बेच के रेजगी औ एक दू रुपैया के नोट ला दऽ ।; नई मालकिन नई । हम अगर जेवर बेचे ला जाम तो बजार में सोना-चान्दी के दोकानदार कहत कि ई मुसहरवा के छागल कहाँ से आल । ई जरूर कहीं से चोरा के लैलक हऽ ।; एकर बाद करुणा महेश बाबू से कहलक कि गोड़ के छागल बेच के ला देथ । छागल लेके दोसर दिन रुपैया देवे के बात कह के महेश बाबू बिदा होला ।; छागल में आधा चाँदी औ आधा खाद हल । से गुनी ओकर दाम कम मिलल ।)    (मशिलो॰91.20; 92.10; 93.16; 94.21)
190    छिनरी (तब गाँव-घर के बात शुरू होल । हरि सिंह कहे लगला कि छिनरी करकी के अत्याचार बढ़ गेल ह । साँझे राजा के बुतरुआ के भर आँख देख के बोलल कि वाह ई बुतरु तो बड़ी खूबसूरत औ तन्दुरुस्त हे । औ आज भोरे से ऊ बुतरुआ के मिजाज बड़ी खराब हो गेल ।; से सभे सन्देह करे लगला हऽ कि हो न हो ई करकी छिनरी के करतूत हे । ई डइनी न जाने केतना के खात ।; एही बीच में रामजी टुभक पड़ल कि ई छिनरी के भागवत भगत के बोलाके नचवा देल जाय ।; ई भी अफवाह हे कि छिनरी भगत जी के खुश कैले रहऽ हे ।)    (मशिलो॰44.11, 20; 45.1, 7)
191    छीहर (डेढ़ बरस पहिले चारो तरफ नकफेनी के काँटा लगल हल । पर जहाँ-तहाँ छीहर काँटा रहे से गाय-बकरी औ कभी-कभार अदमी भी हेल के लत्ती बरबाद कर दे हल ।)    (मशिलो॰73.11)
192    छेवना (ताड़ ~) (गाँव वालन जब ई तरमन्ना के खरीद लेलका तो पुरनकन ताड़ छेवे वालन के हटा के गाँव के दोसर पासी के देलका जेकरा में उनकन्हीं के पक्का दखल हो जाये ।; जौन दिन नइकन पासी ई सब ताड़ के छेवलका ऊ दिन तरमन्ना के मालिक सब के कहे पर गाँव भर के पीयाँक सब के जुटा के ताड़ी पीये के कम्पटीशन के आयोजन कैल गेल ।)    (मशिलो॰32.9, 12)
193    छोट (= छोटा) (गाँव के रिश्ता बनला के बावजूद कुछ सिर फिरल लोग अइसन हला जे दुखिनी दाई के माल असबाब पर नजर गड़ैले हला आउर चाहऽ हला कि दुखिनी दाई के किराना के छोट औ टुटपुंजिया दोकान से उधार मिले, जब चाहथ कीमत देथ चाहे नई भी देथ ।; गाँव वालन सब चकित हल कि ई बड़का घर के लड़का एता छोट काम कैसे करऽ हे । ई कुल खनदान के नइया डुबा देलक ।)    (मशिलो॰15.15; 17.9)
194    छोटका (गाँव के छोटका डाक्टर कहलक कि इनकर बीमारी हमरा से नई सँभलतो, बड़ा डाक्टर से शहर ले जाके देखलावऽ ।; हम छोटका बाबू से कहम कि बड़ी मालकिन के देख-रेख ठीक से होवे के चाही ।; ई की कहऽ हऽ हरखू जी । कहबऽ तो हम्मर आउर भी दुर्गति होत । छोटका बाबू समझता कि हमहीं तोरा कहे ला कहलूँ हँऽ ।)    (मशिलो॰12.19; 91.13, 18)
195    छोटकी (छोटका बाबू औ छोटकी के ई ख्वाहिस हल कि मरला पर सभे जेवर उन्कन्हीं के हाथ लग जाय ।; छोटकी तो ई भी कहऽ हल कि चोरी-चमारी के भय के वजह से करुणा सभे जेवर के तिजोरी में रखे ला छोटका बाबू के दे देथ । नाता-रिश्ता से छोटकी अक्सर कहऽ हली कि कपड़ा-लत्ता, खाना-खोराक, दूध-घी, साबुन-तेल तो इनखा सब देले जाहे तो इनखा जेवर से काहे ला मोह हे ।; नारियल के तेल के एक डिब्बा लेके अपने पास रखीहऽ औ ई छोटकी शीशी में ढार के दीहऽ । जब घटतो तो फेन शीशी दे देवो औ तू तेल भर के ले अइहऽ । समूचे डिब्बा तेल के अप्पन भीतर में रखम तो सब कहत कि राड़ी सौख करऽ हे ।)    (मशिलो॰95.3, 6, 8, 17)
196    छोट-मोट (गरीब-गुरबा के मोके-बेमोके थोड़ा-बहुत रुपैया भी बिना बेयाज के दे दे हला । छोट-मोट आपसी झगड़ा के पंचायती कर निपटा दे हला, कभी-कभार दोसर पार्टी के ले-देला के झंझट खतम करवा दे हला ।; हम्मर मदद तू एतने करऽ कि हम तोरा अप्पन गोड़ के चागल दे हियो । एकरा बेच के रेजगी औ एक दू रुपैया के नोट ला दऽ । एही पूंजी से हम जरुरत के छोट-मोट चीज खरीदवा के मंगाम ।; हाँ, हम कभी-कभार बजार से छोट-मोट चीज कीन के जरूर ला देवो ।)    (मशिलो॰76.13; 91.22; 92.17)
197    छौनी (जब एकरा पीये के सीमित आदत हल तो औरत मरद दुनु अप्पन कमाई से गिरल-फुट्टल फूस के छौनी के झोपड़ीनुमा मकान तोड़ के अइटा गारा से दूगो छोटे गो भीतर बनैलक । ई दुनु भीतर के खपड़ा से छैलक ।)    (मशिलो॰28.6)
198    जइसन (मगर दमाद राजू ऐसन जिद्दी निकसल कि कलकत्ता के चकमक के दुनिया छोड़ के बारा जइसन निपट देहात में रहे लागी तैयार नई होल ।)    (मशिलो॰11.8)
199    जनी (= जन्नी) (जब सनीचरी के कोई तरह से ई बात मालूम भेल तो ऊ बड़ी चिन्ता में पड़ गेल । ओकरा लगल कि न नहीरे सुख न ससुरे सुख । ई घड़ी ओकरा ऐसन भी लगल कि बिना मरद के जनी के कोई कीमत नई हे ।; एही खास वजह हल कि हजार विपरीत भाव मन में उठला के बावजूद ऊ चाहऽ हल कि सविता के अप्पन जनी बना ले ।)    (मशिलो॰38.15; 65.14)
200    जनी-मरद (झगड़ू से मुक्त होवे ला सनीचरी पुरनका किसान हीं जाके गिड़गिड़ाल कि ऊ पाँच सौ रुपैया देथ तो दुनु जनी-मरद उनखे हीं काम करत औ धीरे-धीरे रुपैया वसूल कर देत ।; पुनिया के दिन भगत जी मन्तर पढ़ के डायन के नचइता ् देहात में ऐसन तमासा देखे ला दूर-दूर से जनी-मरद जमा हो जा हका ।)    (मशिलो॰41.6; 51.5)
201    जन्नी (= औरत) (देखऽ नऽ, ई सगरो तो जन्नी मरद पड़ले हका, काम धाम छोड़ के ।; कोई तरह से अगर हम्मर खेत के हिस्सा मिल भी जात तो ओकर देख-भाल जन्नी जात से थोड़े होवत ।)    (मशिलो॰7.14; 91.4)
202    जरना (= जलना) (दू तीन दिन तो सनीचरी खेत में कामो करे नई गेल औ आवे वालन के चाह बना के पिलैते रहल । मगर जब अनाज के बरतन ढनढना गेल तो पेट जरे के नौबत आ जाये के खेयाल से सनीचरी गेहूँ फटके ला गाँव के बनिया हीं चल गेल औ मजूरी में गेहूँ लैलक ।; सनीचरी के तरक्की देख के ओकर भोजाई भीतर-भीतर जरे लगल ।; सोचे के क्रम में करुणा के लगल कि एकरा से अच्चा तो सती प्रथा हल । सती तो पति के साथ एक बार जर के भस्म हो जा हल । हियाँ तो तिनी-तिनी धुआँ धुआँ के रोज जलते रहे के मजबूरी हे ।)    (मशिलो॰35.3; 37.22; 94.9)
203    जरनी (~ बरना) (ई दुनु भीतर के खपड़ा से छैलक । छोटे गो ओसारा भी बनल । मगर ई ओसारा फूस के हल जेकर ओठगन तीन गो बड़ा समाठ हल । ई सब देख के दोसर मजूर सब के जरनी बढ़ गेल ।)    (मशिलो॰28.10)
204    जराना (= जलाना) (हम कह दे हियो अगर फेन ऐसन दिल जरावे वाला बात कहबऽ तो हमरा से बुरा कोई नई होतो ।)    (मशिलो॰88.2)
205    जरि (= जरी) (~-मनी) (तौले वाला के तो जरिमनी झुकता तौले के चाही, तराजू ओइसहीं नबे के चाही जैसे खाये में मुड़ी नवावल जाहे ।)    (मशिलो॰21.3)
206    जरिया (जब सब रुंजी-पूंजी खतम हो गेल औ अमदनी के कोई जरिया नई रहल तो दुखिनी दाई बगल के बजार के गोला में जाके अनाज फटके के काम करे लगल ।)    (मशिलो॰18.11)
207    जलमना (= पैदा होना, जन्म लेना) (उनकर लड़कन कहलक कि घर-मकान बाकी खेत खंढ बेच के शहरे चल चलऽ । मगर रामवदन जी औ उनकर मेहरारू एकरा ला तैयार नई होला । रामवदन जी कहलका कि हम हियें जलमलियो हऽ, हियें मरवो ।; ना, हम तो कोई कीमत पर रमजा गाँव छोड़ के शहर के जेल नीयर फ्लैट में नई रहम । हींयें जलमलूँ हँऽ, हींयें मरम ।; जब हम तोरा ऊ घड़ी कहलियो त तू कहे लगलऽ कि रमजा गाँव में जलमलूँ औ हुएँ मरम, मगर परिस्थिति से समझौता करके, हवा के रुख पहचान के नई चललऽ । ई नई सोचलऽ कि बदलल गाँव में विचार बदल के चले के चाही ।)    (मशिलो॰75.11; 83.8; 86.11)
208    जलमाना (= पैदा करना) (तोर ई मजाल कि हम्मर विधवा जिन्दगी से खेलवाड़ करऽ । तोर मौगी मौज-मस्ती कराके बेटा जलमा के मरलो, हम्मर मरद तो बियाह के दोसरे साल मर गेला औ हमरा जिन्दगी भर तपस्या करे ला छोड़ देलका ।)    (मशिलो॰87.10)
209    जात (= जाति) (बेटी ~; औरत ~; जन्नी ~) (अजादी के बाद धीरे-धीरे वोट के गन्दा राजनीति के वजह से जात-पात के भावना देहातन में तेजी से बढ़ल । बाभन, रजपूत, कुरमी, कोयरी, गोआला, दुसाध, पासी, चमार सब अलगे-अलगे खिचड़ी पकावे लगल । गाँव के एक दू घर बनिया, कुम्हार, धोबी, मुसलमान, बड़ही, नउआ के तो कोई कीमते नई हल । बेसी जात वालन के बिना पैसा के ई सब गुलाम बने ला मजबूर हो जा हल ।; ओकर वजह ऊ ई बतैलक कि चुनाव में मैनेजर बच्चा बाबू के काफी रकम दे हका, मैनेजर बच्चा बाबू के जात के हका, से ऊ कभी चिट्ठी के बात नई मानत ।; ई दोसर चटनी नीयर जात ला हम सब आपस काहे ला लड़ते जाम ।; आझ के युग में बनिया बकाल के कौन कीमत हे, ई तो चटनी नीयर हे । इन्कन्हीं ऐसन कम संख्या वालन जात के चुपे रहे में खैरियत हे ।; कोई तरह से अगर हम्मर खेत के हिस्सा मिल भी जात तो ओकर देख-भाल जन्नी जात से थोड़े होवत ।)    (मशिलो॰14.17, 21; 24.15; 84.21; 85.11; 91.4)
210    जात-पात (अजादी के बाद धीरे-धीरे वोट के गन्दा राजनीति के वजह से जात-पात के भावना देहातन में तेजी से बढ़ल । बाभन, रजपूत, कुरमी, कोयरी, गोआला, दुसाध, पासी, चमार सब अलगे-अलगे खिचड़ी पकावे लगल । गाँव के एक दू घर बनिया, कुम्हार, धोबी, मुसलमान, बड़ही, नउआ के तो कोई कीमते नई हल । बेसी जात वालन के बिना पैसा के ई सब गुलाम बने ला मजबूर हो जा हल ।; अजादी के कुछ बरस के बाद वोट पावे ला राजनीतिक पार्टी के लोग सब जात-पात के भावना पूरा फैलैलका । कम संख्या वालन जात के लोग के बेसी जात वालन बात-गारी देवे लगला ।)    (मशिलो॰14.17; 74.13)
211    जातरा (= जतरा; यात्रा) (ई बीच में बड़कू मियाँ खेत-पथारी सब चौरहा बटइया लगा देलका औ अप्पन चचेरा भाई के घर दुआर खेत-पथारी पर नजर रखे ला कह देलका । मगर जब जातरा के दिन आयल तो बड़कू मियाँ के मन अजब तरह के हो गेल ।)    (मशिलो॰3.7)
212    जादे (= ज्यादा) (पोता के मोह उनका ऊ बीच पर जादे देर ठहरे में बाधक हल, से ऊ जल्दीये डेरा वापस अइला ।)    (मशिलो॰7.20)
213    जाम (= जाऊँगा) (ठंढ तो नस-नस में प्रवेश कर गेल हल । बुढ़ारी के शरीर हल । कफ खाँसी बुखार से भी पीड़ित हो गेला । इनका लगे लगल कि अब नईं बचम, खतमें हो जाम ।)    (मशिलो॰8.9)
214    जिरि (= जरी, जिरी; थोड़ा; छोटा) (~ गो = छोट्टे गो) (एक दिन बाबा के हसनैन साहब समुन्दर के बीच यानि बालू पर ले गेला जौन दिन धप धप रौदा उगल हल । हुआँ बड़कू मियाँ देखलका कि औरत मरद जिरिगो बिस्टी पेहन के नंगे धड़ंगे बालू पर पड़ल हका ।; ओने दुखनी के भी कलकत्ता में तनिको मन नई लगे । जिरिगो कोठरी में रहे पड़ऽ हल । पखाना के ओइसने किल्लत हल ।)    (मशिलो॰6.22; 11.19)
215    जिरिको (= जरिक्को; जरा भी) (ई सुन के दुखिनी फफक-फफक के रोवे लगल । अइसने में माई भतिनी के चिट्ठी आल कि बापू बहुत बीमार हथ । अब तो दुखिनी के दिल में जिरिको चैन नई पड़े लगल ।)    (मशिलो॰12.11)
216    जिरी (= जरी; जरा-सा) (ओही तरह से ई बार भी अप्पन बक्सा में एक ढेला मट्टी रख लेलका । विदेश के बात हल से मट्टी के ढेला जिरी बड़े हल ।; करुणा रोते-रोते बोलली कि की कहियो हरखू जी, हम तो जिरी-जिरी चीज ला तरसऽ हियो ।)    (मशिलो॰4.5; 90.20)
217    जिरी-जिरी (लोग बाग उनका कहलक कि तू बेवा पर बड़ी जुलम कैलऽ हऽ । राड़ी के खाये-पीये पहने ओढ़े के अच्छा इन्तजाम नई कैलऽ, जिरी-जिरी चीज ला उमखा तरसैलऽ ।)    (मशिलो॰99.8)
218    जुअनकी (= जवान स्त्री) (चलऽ आझे साँझ के बस्ती में घूम के चन्दा कर लऽ । औ फेन करकी के साथे ओकर जुअनकी बेवा पुतहिया भी तो हो । ममता के बारे में अफवाह हे कि ई भी डायन के काम सीख रहल हऽ ।; करमचन्द प्रोफेसरी में मगन हला औ सविता अप्पन प्रतिष्ठान व्यावहारिक यौन मनोविज्ञान केन्द्र के संचालन में । जुआन, जुअनकी औ जरुरतमन्द लोग से निश्चित फीस लेके यौन के बारे में सलाह-मशविरा दे हली ।)    (मशिलो॰46.2; 67.8)
219    जुआन (= जवान) (उनकर रमजानपुर आवे के समाचार से गाँव औ इलाका में खुशी के लहर दौड़ गेल । जुआन सब में तो औ जादे उछाह देखे आवऽ हे, खास के पढ़ल लिखल बेरोजगार जवान के तो कई प्रकार के लाभ देखे में आवे लगल ।; करमचन्द प्रोफेसरी में मगन हला औ सविता अप्पन प्रतिष्ठान व्यावहारिक यौन मनोविज्ञान केन्द्र के संचालन में । जुआन, जुअनकी औ जरुरतमन्द लोग से निश्चित फीस लेके यौन के बारे में सलाह-मशविरा दे हली ।; मगर ई भावना के भूत फेन तब सवार हो गेल जब एक अमेरिकन जुआन पर्यटक ई प्रतिष्ठान के शोहरत सुन के सविता से मिलल ।; हमरा ऐसन कई जुआन लोग ई रोग फैला के देश के बर्बाद करे ला हियाँ आ गेला हऽ ।)    (मशिलो॰1.6; 67.8; 68.13; 70.15)
220    जुर्रत (तौले वाला के तो जरिमनी झुकता तौले के चाही, तराजू ओइसहीं नबे के चाही जैसे खाये में मुड़ी नवावल जाहे । दुखिनी के बाप तहीना से कम या वेशी तौले के जुर्रत नई कैलक ।)    (मशिलो॰21.5)
221    जुलुम (= जुल्म) (सनीचरी झगड़ू से मिलल तो झगड़ू कहलक कि फलना साव तो बीस पैसे रुपया फी माह बेयाज ले हलौ, हम तो दसे पैसे बेयाज जोड़लियो हऽ । ई सुन के सनीचरी के तरवा के धूर कपार पर चढ़ गेल । कहलक कि जात भाई होके तू एतना जुलुम करऽ हऽ ।; मोका पाके हरखू एक दिन महेश बाबू के ई सब बात कहलक । महेश बाबू के तरवा के धूर कपार पर चढ़ गेल । कहलका कि आजे छोटे बाबू से कहम कि राड़ी पर एतना जुलुम मत करऽ ।)    (मशिलो॰40.13; 96.18)
222    जे (= जो) (जैसे ही हसनैन साहब रमजानपुर पहुचला, बात बिजली ऐसन फैल गेल औ जे जहाँ जौन काम पर लगल हल छोड़-छाड़ के दौड़ पड़ल ।)    (मशिलो॰2.4)
223    जेकरा (= जिसे, जिसको; ~ बारे में = जिसके बारे में) (एही मौत एक ऐसन चीज हे जेकरा बारे में कोई भी आदमी आज तक नई कह सकल कि ई कैसे होवऽ हे, काहे होवऽ हे, एकरा संचालन के करऽ हे ।)    (मशिलो॰9.15)
224    जेतना (= जितना) (दुखिनी दाई के बाप राम बाबू के हियाँ सोनारी करऽ हला । सोनारी के मतलब ऊ घड़ी ई हल कि जेतना अनाज बिकऽ हल ओकर वजन सोनार करऽ हला ।)    (मशिलो॰20.16)
225    जैन (= चुनाई में दो ईंट या पत्थर के जुड़नों के बीच की संधि, जोड़ या दरार; चंगा, रोगमुक्त) (~ मारना = इस प्रकार जुड़ाई करना कि नीचे के रादे में ईंटों के मिलने की दरार बीच में पड़े; ~ होना = चंगा होना) (खाली एगो कूआँ बचऽ हल जेकरा में मरल जा सकऽ हल । कूआँ के बाल्टी में लगल एगो सीकड़ हल, सीकड़ ऊपर में सीमेन्ट से जैन कैले हल । केवल छो-सात इंच के मुड़ेरा हल । मुड़ेरा में पिछुल जाय के बहाना से ऊ सीकड़ के सहारे कूआँ के पानी में मरे ला चल गेल ।)    (मशिलो॰49.18)
226    जैसन (= जइसन) (बिजली के हीटर से उनका ओइसन सुकुन नई मिलऽ हल जैसन रमजानपुर में तेज रौदा में धान के पोआर पर बैठ के लगऽ हल ।)    (मशिलो॰6.8)
227    जोखा (= तिकड़म, युक्ति) (छो सात लाख रुपइया घूस में लेके अप्पन बदली करावे के जोखा लगा रहल हल ।)    (मशिलो॰23.16)
228    जोगाना (= यत्न से रखना) (मगर ई बहाना केतना देर चलत हल । आखिर में रामजी कान में फुसक के कहलक कि कूप प्रेम प्रसंग के यादगार के रूप में लसोढ़ा के एगो छोटा टहनी, फर औ फूल तू जोगा के रखिहऽ ।)    (मशिलो॰51.15)
229    जोतना-कोड़ना (नैहर में माई-बाप मर गेल हल । दू भाई में एक भाई सरकारी नौकरी में कर्मचारी औ दोसर घर में चौरहा बटइया खेत लेके जोत-कोड़ के खा हल ।)    (मशिलो॰37.12)
230    जोतवाहा (उनखो खेत में जोताई हो रहल हल । से जोताई खतम होला पर ऊ जोतवाहा औ बैल के साथ लौट रहला हल ।)    (मशिलो॰93.7)
231    जौन (= जउन; जो, जिस) (जैसे ही हसनैन साहब रमजानपुर पहुचला, बात बिजली ऐसन फैल गेल औ जे जहाँ जौन काम पर लगल हल छोड़-छाड़ के दौड़ पड़ल ।; एक दिन बाबा के हसनैन साहब समुन्दर के बीच यानि बालू पर ले गेला जौन दिन धप धप रौदा उगल हल ।)    (मशिलो॰2.4; 6.20)
232    झटकना (पैसा ~) (नतीजा ई होल कि सनीचरी पर अकेले घर चलावे के भार आ गेल । अनाज के रूप में जे मजूरी मिलऽ हल ओकरे से अपने औ बेटी बुधिया आधा पेट खाये औ नकद मिलल पैसा सोमर झटक ले ।)    (मशिलो॰28.22)
233    झमारना (गाँव वालन सब एकर बाद सोमर के एतना झमारलक, थूक चटा के उठी-बैठी करैलक कि अब ताड़ी नई पीयम । औ सचमुच में सोमर ताड़ी पीना छोड़ देलक ।)    (मशिलो॰30.20)
234    झमेटगर (= झमेठगर) (उड़हुल के पेड़ झमेटगर होवऽ हे मगर ऊचाई में तीन-चार फीट के रहऽ हे ।)    (मशिलो॰81.12)
235    झाँई (= झाँय) (~ बरना) (जब कस्टम वाला मट्टी के ढेला पर हथौड़ी चलावऽ हल तो बड़कू मियाँ के लगऽ हल कि उनकर छाती पर हथौड़ी से वार करल जा रहल हऽ औ समूचे देह गनगना जा हल । कभी-कभी झाँई बर जा हल, लगऽ हल कि आँख के सामने कार-कार गोल-गोल ऐसन आकार के चीज नाच रहल ह ।)    (मशिलो॰4.14)
236    झाड़ना-बहाड़ना (सनीचरी घर के झाड़-बहाड़ नीप-पोत के चमचम बना देलक ।)    (मशिलो॰42.2)
237    झापना (= झाँपना, ढँकना) (करुणा कुछ दूर हट के लुंडी के कपड़ा खोल के घास पर पसार देलकी औ ओकरे पर लोघड़ गेली । साड़ी के अचरा से मुँह झाप लेलकी । मुँह झापते सिसक-सिसक के रोवे लगली । लोर से अचरा भींग गेल ।)    (मशिलो॰89.14)
238    झुकता (तौले वाला के तो जरिमनी झुकता तौले के चाही, तराजू ओइसहीं नबे के चाही जैसे खाये में मुड़ी नवावल जाहे ।)    (मशिलो॰21.3)
239    झुठे-मुठे (मगर ई सोच के दिल पर पत्थर रख देलका कि बेटवा कहत कि फौजी अदमी के दिल एतना कमजोर हे कि झुठे मुठे के मुँह देखे के बात करऽ हला ।)    (मशिलो॰3.13)
240    झुलुआ (करमचन्द के मन में एकर द्वन्द्व हपतों तक चलते रहल । कभी हाँ, कभी नई के विचार के झुलुआ में झूलते रहला । अल्पभाषी औ संयत स्वभाव के होवे गुनी इनका में मुखरता औ वाचालता नई हल जे कि सविता ऐसन प्रगल्भ औरत में हल ।)    (मशिलो॰64.13)
241    टँठगर (= टाँठ) (= पुष्ट, तगड़ा) (रामवदन जी करीब चौहत्तर बरस के बूढ़ा हला मगर बड़ी टँठगर हला ।)    (मशिलो॰75.19)
242    टकही (ऊ घड़ी मट्टी के बरतन में ताड़ी बिकऽ औ पीयल जा हल । एकरा से मट्टी बनावे वालन कुम्हार के रोजगार भी गाँव में मिल जा हल । से ताड़ी पीये औ रखे वाला बरतन ऊ घड़ी चार साइज में इस्तेमाल कैल जा हल । सबसे छोटा टकही, दू टकही के एक लबनी, दू लबनी के तरकट्टी औ चार तरकट्टी के घैला होवऽ हल । घैला आज भी प्रचलित हे ।; इनाम में जे नकदी पच्चीस रुपैया मिलल हल ओकरा सनीचरी के हवाले कैलक । शील्ड नीयर यादगार के रूप में तरकट्टी, लबनी, टकही औ ताड़ के पत्ता के दोना जे मिलल हल ओकरा तुरते मट्टी के घिसिन्डी नीयर बना के रख देलक ।; अखनी भी घिसिन्डी पर तरकट्टी, लबनी, टकही औ ताड़ के पत्ता के दोना रखल हे जेकरा पर विजेता सोमर खल्ली से लिखल हे ।)    (मशिलो॰33.8; 34.12; 42.6)
243    टनटनमा (नगद ~) (ई सरकारी नौकरी ऐसन धन्धा हो जेकरा में पत्थल पड़े, मारा हो, सूखा हो, महीना पुरलो नई कि नगद टनटनमा घर में आ गेलो ।)    (मशिलो॰47.4)
244    टनटनाना (करीब तीन महीना सनीचरी अकेले खेत में काम कैलक । तीन महीना के बाद जब सोमर पूरा टनटना गेल तो खेत में ई भी जुताई करे लगल । जब सोमर हर पर हाथ धैलक तो मरकुट्टा बैल भी सर-सर चले लगे औ खेत के जमीन जोता के बुकनी बन जाय ।)    (मशिलो॰41.19)
245    टन-टुन (पड़ोसियन सब सनीचरी के डाटलक औ कहलक कि कौन घर में टन-टुन नई होवऽ हे । मगर एकर ई मतलब थोड़े हे कि औरत घर छोड़ के चल जाये ।)    (मशिलो॰39.14)
246    टिप्पी (किसान जी के तो मांगले मुराद मिल गेल काहे कि ऐसन कमासुत औरत मरद उनखा मिल जा हल । से ऊ खुशी-खुशी पाँच सौ रुपैया देके दूगो पइया कागज पर दुनु के हाथ के टिप्पी ले लेलका ।)    (मशिलो॰41.11)
247    टीप्पा (एकाध महीना के बाद रामवदन जी जब फलैट के बरामदा में आराम कर रहला हल तो रजिस्ट्रार ऐला औ पाँच ठो रजिस्ट्री के कागज पर टीप्पा दस्खत लेलका । रामवदन जी पूछलका कि कैसे कट्ठा ई जमीन बिकल । लेवेवाला बोलल कि दू हजार रुपये कट्ठा ।)    (मशिलो॰86.3)
248    टुटपुंजिया (गाँव के रिश्ता बनला के बावजूद कुछ सिर फिरल लोग अइसन हला जे दुखिनी दाई के माल असबाब पर नजर गड़ैले हला आउर चाहऽ हला कि दुखिनी दाई के किराना के छोट औ टुटपुंजिया दोकान से उधार मिले, जब चाहथ कीमत देथ चाहे नई भी देथ ।; ऐसन लोग जब उधार नई लौटइलक तो दोसर के भी मन बढ़ गेल । धीरे-धीरे दुखिनी दाई के टुटपुंजिया दोकान के पूंजी-रूंजी खतम हो गेल । अब ऊ खाली निमक, हरदी, मिरचाई, आलू औ पत्तल बेचे लगल ।)    (मशिलो॰15.15; 16.1)
249    टूंगना (अभी पूरब के आसमान लाल धप्पे लगल हल कि रामवरण पाण्डेय खड़ाऊँ पहनले घूम घूम के खैनी टूंग रहला हल ।)    (मशिलो॰43.3)
250    टूअर (इनकर मेहरारू नई हे तो की, दू गो बाल-बच्चा तो हे । इनखा खतम होला पर बेचारा टूअर हो जात ।)    (मशिलो॰88.14)
251    टोना-टाना (सनीचरी से कहलक कि हम तू तो पढ़ल नई हे मगर एकरा पर खल्ली से लिखल हम्मर नाम विजेता सोमर, बुधिया पढ़त औ खुश होत । बुधिया के बोलावल गेल । ऊ टो टा के सोमर पढ़लक । सोमर ओकरा उठा के खुशी से गोदी में ले लेलक ।)    (मशिलो॰34.18)
252    टोला-मोहल्ला (मुड़ेरा में पिछुल जाय के बहाना से ऊ सीकड़ के सहारे कूआँ के पानी में मरे ला चल गेल । टोला-मोहल्ला में हल्ला हो गेल । सब दौड़ल । रामजी भी दौड़ल ।)    (मशिलो॰49.21)
253    ठो (= गो) (बड़कू मियाँ के उछाह के की ठिकाना । एके ठो बेटा हल । ओकरा कई बरस के बाद बुढ़ारी में देखता तो ऊ सुख के वर्णन करना कठिन हे ।)    (मशिलो॰1.10)
254    डंटा (= डंठल; डंडा, पैना) (ई कहऽ हला कि आयुर्वेद के किताब में लिखल हे कि बाकस के पौधा जब तक ई मट्टी में हे, खाँसी काहे ला कोई के सतावत । एने-ओने खंढ-कोली में बाकस के बहुत पौधा पावल जाहे । एकर पत्ता डंटा के रस गार के गरमा के पी जाय तो खाँसी भाग जात ।)    (मशिलो॰76.7)
255    डइनी (= डायन) (वंशी वैद्य आल तो दवाई देलक औ बोलल कि हगर ई दवाई फायदा नई कैलको तब समझिहऽ कि कोई एकरा नजरा देलक हऽ । दू घंटा हो गेल मगर दवाई के कोई असर नई होल । से सभे सन्देह करे लगला हऽ कि हो न हो ई करकी छिनरी के करतूत हे । ई डइनी न जाने केतना के खात ।; लोग अब कहे लगला हऽ कि भगत जी लोभी हो गेला हऽ, से कभी-कभी डइनी से घूस लेके ओकरा नचावे के पूजा ठीक से नई करऽ हका ।; घर वाला तो कोई तरह से ममता के घर में रखे ला तैयार नई होता । कहता कि ई मुझौसी डइनी के घर में कैसे रखम ।)    (मशिलो॰44.20; 45.5; 48.22)
256    डड़वारा (अब पुराना घर में बीच में डड़वारा पड़ गेल । एही घर में करुणा हरेन्द्र के साथ रहे लगली । ... करुणा के जीवन धारा बदल गेल । ओकर जीवन में फेन वसंत नीयर आ गेल ।)    (मशिलो॰99.16)
257    डहुरी (= डेहुड़ी, टहनी) (ई दुनु के पास जे लसोढ़ा के गदराल पुष्प के डहुरी जतन से रखल हल ऊ हवा के मन्द-मन्द बहे से, डोल के प्रेम के सफल कृत्य पर बधाई दे रहल हल ।)    (मशिलो॰54.13)
258    डाटना (= डाँटना) (पड़ोसियन सब सनीचरी के डाटलक औ कहलक कि कौन घर में टन-टुन नई होवऽ हे । मगर एकर ई मतलब थोड़े हे कि औरत घर छोड़ के चल जाये ।)    (मशिलो॰39.14)
259    डीबरी (= डिबरी, ढिबरी; दीपक) (ई सब गुनी इन्कर दलान पर हर समय दू-चार अदमी बैठल मिलवे करऽ हल । रात के दस-बारह अदमी ऊ दलान पर सुतऽ भी हल । सु्ते वालन के सुविधा लागी कुछ बन्डिल बीड़ी सलाई रखल रहऽ हल । भर रात एगो लालटेन जलते रहऽ हल जबकि ऊ बखत घर में डीबरी दीया से रात के अंधार कटऽ हल ।)    (मशिलो॰76.21)
260    डोमनी (आज राजा के बुतरु हे, कल राधे के बुतरु होत, परसो डोमनी के बुतरु होत । नईकी कनिआय औ पढ़े लिखे वाला तेज लड़कन के कम खतरा थोड़े हे । छिनरी जब तक नई नाचत गाँव के खैरियत नई होत ।)    (मशिलो॰45.8)
261    ढनढनाना (दू तीन दिन तो सनीचरी खेत में कामो करे नई गेल औ आवे वालन के चाह बना के पिलैते रहल । मगर जब अनाज के बरतन ढनढना गेल तो पेट जरे के नौबत आ जाये के खेयाल से सनीचरी गेहूँ फटके ला गाँव के बनिया हीं चल गेल औ मजूरी में गेहूँ लैलक ।)    (मशिलो॰35.2)
262    ढनर-ढुनर (~ करना) (गुलाब के अवाज सुन के दुखिनी ढिबरी के बुता देलक औ रुपैया के कुद्दी सब पर ओढ़े वाला चद्दर ढाक देलक । जल्दी-जल्दी में एतना करके ऊ जवाब देलक कि चुहवा मुझौसा ढनर-ढुनर करऽ हैऽ।)    (मशिलो॰19.21-22)
263    ढाड़स (= ढाढ़स) (ई हाल देख के सनीचरी भोकार पार के रोवे लगल । मइया के रोते देख के बुधिया भी रोवे लगल । रोलाई सुन के आसपास के घर वालन सब आ गेल औ दुनु के ढाड़स देलक ।)    (मशिलो॰39.13)
264    ढारना (नारियल के तेल के एक डिब्बा लेके अपने पास रखीहऽ औ ई छोटकी शीशी में ढार के दीहऽ । जब घटतो तो फेन शीशी दे देवो औ तू तेल भर के ले अइहऽ । समूचे डिब्बा तेल के अप्पन भीतर में रखम तो सब कहत कि राड़ी सौख करऽ हे ।)    (मशिलो॰95.17)
265    ढिबरी (कभी-कभी एगो रुपया हाथ में लेके ढिबरी के मद्धिम रोशनी में उलट-पुलट के देखऽ हल ।; गुलाब के अवाज सुन के दुखिनी ढिबरी के बुता देलक औ रुपैया के कुद्दी सब पर ओढ़े वाला चद्दर ढाक देलक ।)    (मशिलो॰19.13, 18)
266    ढील्ला (= ढीला) (गुलाब में कुछ सुधार के लक्षण देख के दुखिनी दाई सोचलक कि बड़घरिया से रुपैया के पोटरी ले आमू । से ऊ पोटरी ले आल । मगर जैसहीं पोटरी हाथ में पड़ल, लगल कि पोटरिया बड़ी ढील्ला हे जबकि पहिलका पोटरिया एकदम कस्सल हल ।)    (मशिलो॰22.6)
267    ढेला (एक ~ मट्टी; एक ~ गुड़) (गाँव से उनका एतना प्यार हल, गाँव के मट्टी के एतना महत्व दे हला कि फौज में जहाँ जा हला एक ढेला मट्टी पास में बक्सा में बन्द करके रख ले हला । फौज में जब कभी गाँव के ख्याल आवऽ हल ई मट्टी के जरा सा छू के देह में इत्तर नीयर लगा ले हला । एकरा से उनका बड़ी सुकुन मिलऽ हल ।; हम अब एक ढेला गुड़ ला, नारियल के तेल ला, साबुन-सर्फ ला तरसऽ ही । छोटका बाबू से ई सब चीज ला कभी-कभार दबल जबान कहऽ ही तो ऊ कहऽ हका कि राड़ी औरत के ई सब चीज प्रयोग नई करे के चाही, सीधा सरल रहन-सहन रखे के चाही ।)    (मशिलो॰3.20; 92.2)
268    तकाजा (= तगादा, माँग) (एकरा पर दुखिनी दाई कुछ नई बोले । दुखिनी दाई बड़ी पितमरु मनमरु औरत हल जे उधार लेवे वालन के उधार चुकावे ला निहोरा करऽ हल, आरजू करऽ हल । दुष्ट प्रवृत्ति वालन के ऐसन तकाजा भी खल जा हल ।)    (मशिलो॰15.20)
269    तरकट्टी (ऊ घड़ी मट्टी के बरतन में ताड़ी बिकऽ औ पीयल जा हल । एकरा से मट्टी बनावे वालन कुम्हार के रोजगार भी गाँव में मिल जा हल । से ताड़ी पीये औ रखे वाला बरतन ऊ घड़ी चार साइज में इस्तेमाल कैल जा हल । सबसे छोटा टकही, दू टकही के एक लबनी, दू लबनी के तरकट्टी औ चार तरकट्टी के घैला होवऽ हल । घैला आज भी प्रचलित हे ।; इनाम में जे नकदी पच्चीस रुपैया मिलल हल ओकरा सनीचरी के हवाले कैलक । शील्ड नीयर यादगार के रूप में तरकट्टी, लबनी, टकही औ ताड़ के पत्ता के दोना जे मिलल हल ओकरा तुरते मट्टी के घिसिन्डी नीयर बना के रख देलक ।; अखनी भी घिसिन्डी पर तरकट्टी, लबनी, टकही औ ताड़ के पत्ता के दोना रखल हे जेकरा पर विजेता सोमर खल्ली से लिखल हे ।)    (मशिलो॰33.9; 34.12; 42.6)
270    तरमन्ना (= तरबन, तरबना, तरबन्ना, तड़बन्ना; ताड़ का जंगल ) (एही गाँव बनडीहा के एगो बड़का किसान अफसर बन के दिल्ली में रहऽ हला । उनखर कई ठो बगीचा औ तरमन्ना हल । कुछ बरस पहिले ऊ सभे बगीचा बेच देलका, जेकर पेड़ काट के किसान सब खेत बना लेलका । अब उनखा एगो 5-7 बीघा के तरमन्ना बचऽ हल । ई तरमन्ना में सगरो जंगल झाड़ हल ।; ऊ तरमन्ना में ताड़ के बड़ा-बड़ा पुष्ट पेड़ हल । एकर ताड़ी एतना गाढ़ा औ मीठा होवऽ हल कि दूर-दूर से लोग ई ताड़ी पीये ला हियाँ आवऽ हला ।; तरमन्ना के ताड़ी के याद करके ओकर मन खुश हो जाहे । से ऊ सनीचरी के गिड़गिड़ा के कहलक कि देख सनीचरी, ई यादगार के तू तोड़-फोड़ मत कर । जब तक हम जीयम, 'तरमन्ना के ताड़ी' के स्वाद नई भूलम ।)    (मशिलो॰31.5, 8; 32.1; 42.18, 21)
271    तरवा (~ के धूर कपार पर चढ़ना) ) (ई सुन के गुलाब औ सतीश के तरवा के धूर कपार पर चढ़ गेल ।; सनीचरी झगड़ू से मिलल तो झगड़ू कहलक कि फलना साव तो बीस पैसे रुपया फी माह बेयाज ले हलौ, हम तो दसे पैसे बेयाज जोड़लियो हऽ । ई सुन के सनीचरी के तरवा के धूर कपार पर चढ़ गेल ।; मोका पाके हरखू एक दिन महेश बाबू के ई सब बात कहलक । महेश बाबू के तरवा के धूर कपार पर चढ़ गेल । कहलका कि आजे छोटे बाबू से कहम कि राड़ी पर एतना जुलुम मत करऽ ।)    (मशिलो॰24.17; 40.11; 96.16)
272    तरेंगन (= तरिंगन, तारा) (~ सुझना) (ई सरकारी नौकरी ऐसन धन्धा हो जेकरा में पत्थल पड़े, मारा हो, सूखा हो, महीना पुरलो नई कि नगद टनटनमा घर में आ गेलो । तोहीं बतावऽ न कि तीन बरस से केतना धान  घर में लइलऽ । ई तो गेहूँ हो कि पत रखले हो । अगर गेहूँ पैदा नई होतो हल तो सब के तरेंगन सुझे लगतो हल ।)    (मशिलो॰47.7)
273    तहिना (= उस दिन) (सोमर कई बार कहलक कि पढ़लका बउआ के बोला के ई फीका नाम पर फेन से खल्ली चलवा दे जेकरा से विजेता सोमर के नाम साफ से पढ़ल जा सके । मगर सनीचरी कहऽ हे कि जौन दिन तू ई करवऽ तहिने हम आव देखवो न ताव, सभे बरतन औ दोना के नदी में परवा कर देवो ।)    (मशिलो॰42.13)
274    तहीना (= तहिना) (तौले वाला के तो जरिमनी झुकता तौले के चाही, तराजू ओइसहीं नबे के चाही जैसे खाये में मुड़ी नवावल जाहे । दुखिनी के बाप तहीना से कम या वेशी तौले के जुर्रत नई कैलक ।; हरखू कहलक कि सब ठीक हो मगर हम्मर तो तहीने करम फूट गेल जब बउआ बाबू तोरा भरल जवानी में छोड़ के चल गेला ।)    (मशिलो॰21.4; 90.6)
275    ताखा (= ताक) (चुनावे में देखऽ न । जाति, धर्म, क्षेत्र स्वार्थ के भावना जब बलवती हो जाहे तो देशप्रेम के विवेक ताखा पर रखा जाहे ।)    (मशिलो॰59.22)
276    तापना (पोता के मोह उनका ऊ बीच पर जादे देर ठहरे में बाधक हल, से ऊ जल्दीये डेरा वापस अइला । मगर जब डेरा ऐला तो फेन ठंढ के मारे काँपे लगला । उनका लगल कि लकड़ी भूसा के आग तापूँ मगर हुआँ ई सब कहाँ । हुआँ तो बिजली के हीटर हल मगर ओकरा से उनखा संतोष नई होवऽ हल ।)    (मशिलो॰8.2)
277    तिकड़मी (ई सब देख के दोसर मजूर सब के जरनी बढ़ गेल । कुछ तिकड़मी सोचलक कि एकरा से पैसा मूड़ के पीये के चाही औ पीये के एकर आदत एतना बढ़ा देल जाय कि रात-दिन पी के पड़ल रहे, जेकरा से किसान सब एकरा नई पूछत आउर दोसर के खेत में काम मिले लगे । होल भी अइसने ।)    (मशिलो॰28.11)
278    तीसरका (दोसर उड़हुल के पेड़ पर कद्दू के लत्तरी चढ़ गेल हल । कद्दू के उज्जर फूल औ उड़हुल के लाल फूल मिल के अजीब शोभा बिखेर रहऽ हल । उड़हुल के तीसरका फुलाल पेड़ पर भूआ के लत्ती के पीयर-पीयर चीलम नीयर टोंटीदार फूल उड़हुल के लाल रंग के मुर्गा के चोटी नीयर फूल के साथ मनमोहक छवि प्रस्तुत कर रहल हल ।)    (मशिलो॰81.22)
279    तोर (= तेरा, तुम्हारा) (राजू ओकरा नहिरा जाये देवे ला तैयारे नई हल । कहऽ हल कि जब तोर माई-बाप अपने पास रखे ला चाहऽ हला तो हमरा से बियाह काहे ला कैलका ।)    (मशिलो॰12.5)
280    तोरा (= तुझे, तुम्हें) (राजू ओकरा नहिरा जाये देवे ला तैयारे नई हल । कहऽ हल कि जब तोर माई-बाप अपने पास रखे ला चाहऽ हला तो हमरा से बियाह काहे ला कैलका । तोरा कुमारे रखता हल, लंगड़ा काना से बियाह करके ओकरो साथ रखता हल ।)    (मशिलो॰12.5)
281    तोहन्हीं (= तुमलोग) (एही गुनी हरियाणा औ आन्ध्र प्रदेश में तोहन्हीं मेहरारु जात के कहला पर दारू बेचे पर रोक लग गेल मगर ताड़ी पर कोई रोक नई लगल, काहे कि ई सबसे पुराना औ सस्ता स्वदेशी पेय हे ।)    (मशिलो॰36.13)
282    तोहरा (= आपको; तोहरे = आपको ही) (हम तो चिट्ठी लिखलियो हल कि बहू-पोता के साथ आवऽ । हसनैन जवाब में कहलका कि बेटा के महतारी के तबियत अलील हल से गुनी ऊ अकेले अइला । ई भी कहलका कि तोहरे साथ लेले चलबो ।)    (मशिलो॰2.16)
283    थम्हाना (मैनेजर जान के डर से तुरते चार लाख के गड्डी थम्हैलक ।)    (मशिलो॰25.17)
284    थोड़िके (= थोड़े; थोड़हीं; थोड़ा ही, जरा ही) (थोड़िके देर में इनका अप्पन पोतवा के याद आ गेल कि हम हियाँ रौदा में मौज मना रहलूँ हऽ औ ऊ बेचारा बुतरु हुआँ रो रहल होत ।; छो सात लाख रुपइया घूस में लेके अप्पन बदली करावे के जोखा लगा रहल हल । थोड़िके सन के काम कैलक हल ।; औ सचमुच में सोमर ताड़ी पीना छोड़ देलक । पहिले जैसन खेत में हर जोते में लग गेल । थोड़िके दिन के बाद ओकर दिन फेन फिर गेल ।)    (मशिलो॰7.5; 23.16; 31.1)
285    दमाद (= दामाद) (दुखिनी के माई बाप चाहऽ हला कि दुखिनी के ऐसन लड़का से बियाह कैल जाय जे घरजमये रह सके । से कलकत्ता के चटकल में काम करे वाला गरीब घर के लड़का से दुखिनी के बियाह कर देल गेल । मगर दमाद राजू ऐसन जिद्दी निकसल कि कलकत्ता के चकमक के दुनिया छोड़ के बारा जइसन निपट देहात में रहे लागी तैयार नई होल ।)    (मशिलो॰11.7)
286    दर (= दरवाजा; एक उपसर्ग, यथा: दर-दलान, दर-दुकान, दर-देवान, दर-दरवाजा) (ई बंगलानुमा दलान हल । बंगला कहे से जे शान-शौकत, गाड़ी-छकड़ा, नौकर-चाकर के आभास मिलऽ हे ऊ एकरा में नई हल । मगर साफ-सुथरा तीन दर के ओसारा, अगल-बगल दुनु तरफ छोट-छोट दू गो भीतर, पीछे से बड़गो हौल नीयर बड़ कोठरी जरूरे हल ।)    (मशिलो॰73.4)
287    दरखास्त (= दरखास, अर्जी) (करीब साठ बरस पहिले ऊ मैट्रिक पास कैलका हल से इलाका में शोर हो गेल हल काहे कि चौकोसी कोई दोसर अदमी मैट्रिक पास नई हल । गाँव औ इलाका के लोग सब इनका से दरखास्त लिखावे, तार-चिट्ठी पढ़ावे-लिखावे आवैत रहऽ हलन ।)    (मशिलो॰75.22)
288    दलान (= दालान) (ई बंगलानुमा दलान हल । बंगला कहे से जे शान-शौकत, गाड़ी-छकड़ा, नौकर-चाकर के आभास मिलऽ हे ऊ एकरा में नई हल । मगर साफ-सुथरा तीन दर के ओसारा, अगल-बगल दुनु तरफ छोट-छोट दू गो भीतर, पीछे से बड़गो हौल नीयर बड़ कोठरी जरूरे हल ।; गरीब-गुरबा के मोके-बेमोके थोड़ा-बहुत रुपैया भी बिना बेयाज के दे दे हला । छोट-मोट आपसी झगड़ा के पंचायती कर निपटा दे हला, कभी-कभार दोसर पार्टी के ले-देला के झंझट खतम करवा दे हला । ई सब गुनी इन्कर दलान पर हर समय दू-चार अदमी बैठल मिलवे करऽ हल । रात के दस-बारह अदमी ऊ दलान पर सुतऽ भी हल ।)    (मशिलो॰73.1; 76.16, 18)
289    दसका (~ तक के खोढ़ा) (बुधिया के गाँव के पाठशाला में पढ़े ला बैठा देलक । कुछ महीना में बुधिया हिन्दी के ककहरा सीख गेल औ दसका तक के खोढ़ा भी याद कर लेलक ।)    (मशिलो॰37.19)
290    दस्खत (= दस्तखत; सही, हस्ताक्षर) (एकाध महीना के बाद रामवदन जी जब फलैट के बरामदा में आराम कर रहला हल तो रजिस्ट्रार ऐला औ पाँच ठो रजिस्ट्री के कागज पर टीप्पा दस्खत लेलका । रामवदन जी पूछलका कि कैसे कट्ठा ई जमीन बिकल । लेवेवाला बोलल कि दू हजार रुपये कट्ठा ।)    (मशिलो॰86.3)
291    दाई-माई (बूढ़ी दाई-माई ठीके कहऽ हकी कि बेवा औरत के शान्त रहे के चाही । महेश ओतना कहबे कइलन हल तो हमरा ओइसन कठोर वचन बोले के नई चाहऽ हल ।)    (मशिलो॰88.17)
292    दिशा-मैदान (= दिसा-मैदान) (खेत बनावे ला एगो बगल के गाँव के बड़का किसान से बेचे के बात चले लगल । बिकरी के बात जब गाँव वालन के पता चलल तो ई सब सोचलक कि अगर तरमन्ना औ झाड़-झंखाड़ नई रहत तो दिशा मैदान औ चरागाह के जगह खतम हो जात ।)    (मशिलो॰31.15)
293    दीया (= दीपक) (सु्ते वालन के सुविधा लागी कुछ बन्डिल बीड़ी सलाई रखल रहऽ हल । भर रात एगो लालटेन जलते रहऽ हल जबकि ऊ बखत घर में डीबरी दीया से रात के अंधार कटऽ हल ।)    (मशिलो॰76.21)
294    दुखछल (हम तोहर नाम लेम तो छोटका बाबू के फटाक से मालूम हो जात । ऐसन में हम दुनु पर ऊ बिगड़ता । से तू महेश बाबू के हाथ ई जेवर बिकवावऽ । ऊ तोरा पर ख्याल रखवे करऽ हथुन । ऐसे भी महेश बाबू परोपकारी हका औ दुखछल लोग पर संवेदनात्मक रुख रखऽ हका ।)    (मशिलो॰92.15)
295    दुदलिया (सोचलक कि एकरा बेच के ऊ पोटरी में नइका रुपैया रख देम । सोच-साच के अंग्रेजे के बखत के पचास के दशक में बनल दुदलिया रुपैया जेकरा में पुरनका सिक्का के तेरह आना फी भरी चांदी के बजाय चार आना भर चांदी रहऽ हे, खरीद के ओही पोटरी में रख देलक ।)    (मशिलो॰21.19)
296    दुनु (= दोनो) (कलकत्ता जाये ला दुखिनी औ बेटवा दुनु तैयार नई होल तो आखिर में राजू कहलक कि ऊ बेटी के बियाहे के पूरा खरच देत । ओ लड़का खोज के बियाह भी देलक ।; दुनु छूरा रखके इम्तहान देलक, छूरा देखके कोई मास्टर ओकन्हीं से छेड़-छाड़ नई कैलक औ इम्तहान में पास हो गेल । एकरा से दुनु के मन बहुत बढ़ गेल । दोसर के खेत से आलू मुरई कबाड़ के बेच दे ।)    (मशिलो॰16.19; 17.4, 7)
297    दुराव (धर्म के नाम पर जेतना मानसिक दुराव होल हल ओकरा से बहुते बेसी बिखराव ई जात-पात के भाव पैदा कैलक । कम जात वालन के खेत-पथारी के अनाज बरबाद होवे लगल ।)    (मशिलो॰77.10)
298    दुसाध (अजादी के बाद धीरे-धीरे वोट के गन्दा राजनीति के वजह से जात-पात के भावना देहातन में तेजी से बढ़ल । बाभन, रजपूत, कुरमी, कोयरी, गोआला, दुसाध, पासी, चमार सब अलगे-अलगे खिचड़ी पकावे लगल । गाँव के एक दू घर बनिया, कुम्हार, धोबी, मुसलमान, बड़ही, नउआ के तो कोई कीमते नई हल । बेसी जात वालन के बिना पैसा के ई सब गुलाम बने ला मजबूर हो जा हल ।; गाँव में तेली, सोनार, सिन्दुरिया, ब्राह्मण, कायस्थ, यादव, कोयरी, कुर्मी, दुसाध, बड़ही, मुसलमान, मुशहर रहऽ हला । करीब दू सौ घर के ई रमजा गाँव हल । मगर जैसे ही पाकिस्तान बनल, मुसलमान सब भाग के कलकत्ता चल गेला । पीछे आके खेत-पथारी बेचलका ।)    (मशिलो॰14.18)
299    दुहारी (सोमर कामचोर नई हल । एही गुनी रोज एकर दुहारी पर भोरे-भोरे दू चार किसान चलावे ला आवऽ हला । किसान सब के आपाधापी एतना बढ़ते गेल कि निश्चित मजूरी के अलावे एकरा ताड़ी पीये के पैसा अलग से मिले लगल ।)    (मशिलो॰27.14)
300    दू (= दो) (बाड़ी में तीन गो पखाना हल, औ एक सौ के करीब बाल-बुतरु लगा के अदमी । भोरे दू घंटा तक पखाना में लाइने लगल रहऽ हल ।)    (मशिलो॰12.1)
301    देखलाना (= दिखलाना) (गाँव के छोटका डाक्टर कहलक कि इनकर बीमारी हमरा से नई सँभलतो, बड़ा डाक्टर से शहर ले जाके देखलावऽ। मगर भतिनी के पास एतना रकम कहाँ हल कि ऊ बड़का डाक्टर से देखावत हल ।)    (मशिलो॰12.20)
302    देखाना (= दिखाना) (गाँव के छोटका डाक्टर कहलक कि इनकर बीमारी हमरा से नई सँभलतो, बड़ा डाक्टर से शहर ले जाके देखलावऽ। मगर भतिनी के पास एतना रकम कहाँ हल कि ऊ बड़का डाक्टर से देखावत हल ।; बगल के कोठरी में बैठल गुलाब के दोस्त सतीश ई सब देख रहल हल । से कोई तरह से ई पोटरी में से एक रुपैया निकास के गुलाब के देखैलक औ सब बात कहलक ।)    (मशिलो॰12.22; 21.12)
303    दोकान (= दुकान) (हसनैन साहब कहलका कि ऐसन खुशनुमा धूप जब हियाँ ऊगऽ हे तो सभे ऑफिस दोकान बन्द हो जाहे औ सब एही बीच पर पहुँच के आनन्द ले हका ।)    (मशिलो॰7.12)
304    दोकानदार (= दोकनदार; दुकानदार) (नई मालकिन नई । हम अगर जेवर बेचे ला जाम तो बजार में सोना-चान्दी के दोकानदार कहत कि ई मुसहरवा के छागल कहाँ से आल । ई जरूर कहीं से चोरा के लैलक हऽ ।)    (मशिलो॰92.9)
305    दोना (ताड़ी पीये के ताड़ के छोट पेड़ के मुलायम पत्ता के कलात्मक दोना पासी सब बनावऽ हला एकरे में ताड़ी पीयल जा हल ।; इनाम में जे नकदी पच्चीस रुपैया मिलल हल ओकरा सनीचरी के हवाले कैलक । शील्ड नीयर यादगार के रूप में तरकट्टी, लबनी, टकही औ ताड़ के पत्ता के दोना जे मिलल हल ओकरा तुरते मट्टी के घिसिन्डी नीयर बना के रख देलक ।; अखनी भी घिसिन्डी पर तरकट्टी, लबनी, टकही औ ताड़ के पत्ता के दोना रखल हे जेकरा पर विजेता सोमर खल्ली से लिखल हे ।)    (मशिलो॰33.11; 34.13; 42.7)
306    दोसर (= दूसरा) (बात ई हल कि बड़कू मियाँ फौज में हवलदार हला औ जब ई बाहरे हला तो हसनैन के जनम देके महतारी बेचारी चल बसला । बड़कू मियाँ एही बेटा के खातिर दोसर शादी नई कैलका ।; करीब साठ बरस पहिले ऊ मैट्रिक पास कैलका हल से इलाका में शोर हो गेल हल काहे कि चौकोसी कोई दोसर अदमी मैट्रिक पास नई हल ।)    (मशिलो॰1.15; 75.21)
307    धइल (= धरा हुआ; रखा हुआ) (खैर, पोता के मुँह-देखाई में की देता एकर चिन्ता उनका हो गेल । सोचते-सोचते सोचलका कि सोना के पुराना लौकेट जे धइल हे से ही ले जैता ।)    (मशिलो॰3.17)
308    धत्त (देवर के रिश्ता बता के कुछ मजाकिया लहजा में कहलका कि आज तो तू जवान लगऽ हऽ भौजी । करुणा धत्त कह के लजा गेली औ गोड़ के अँगूठा से जमीन खोदे लगली । महेश समझलका कि कुछ काम चलल, दोसर दिन 'अज्ञेय' के 'नदी के द्वीप' पढ़े ला देलका । 'नदी के द्वीप' पढ़ला के बाद तो ऊ महेश से खुल के बात करे लगली ।)    (मशिलो॰97.14)
309    धनबाल (थोड़ा दूर पर बैगन औ पुरी-परोर के गाछ हल, कुछ भुट्टा भी हल । बैगन के नीला फूल, पुरी-परोर के उज्जर बैगनी फूल, भुट्टा के मोछ औ धनबाल सब मन के मोह रहल हल ।)    (मशिलो॰82.7)
310    धप-धप (~ रौदा) (एक दिन बाबा के हसनैन साहब समुन्दर के बीच यानि बालू पर ले गेला जौन दिन धप धप रौदा उगल हल ।)    (मशिलो॰6.20)
311    धपना (अभी पूरब के आसमान लाल धप्पे लगल हल कि रामवरण पाण्डेय खड़ाऊँ पहनले घूम घूम के खैनी टूंग रहला हल ।)    (मशिलो॰43.1)
312    धमसाना (= धमकाना) (झगड़ू मंगरू साव के धमसा देलक हल कि ऊ हियाँ नून तेल वगैरह बेचे, बेयाज पर रुपैया लगावत तो ठीक नई होत ।)    (मशिलो॰40.22)
313    धींगामुस्ती (मजबूत जात के लोग पइन, नहर भर के अप्पन खेत में मिला लेलका । धींगामुस्ती एतना बढ़ गेल कि कमजोर लोग सुटकल रहे लगला ।)    (मशिलो॰77.14)
314    धुआँना (सोचे के क्रम में करुणा के लगल कि एकरा से अच्चा तो सती प्रथा हल । सती तो पति के साथ एक बार जर के भस्म हो जा हल । हियाँ तो तिनी-तिनी धुआँ धुआँ के रोज जलते रहे के मजबूरी हे ।)    (मशिलो॰94.4)
315    धूर (= धूरी, धूल) (तरवा के ~ कपार पर चढ़ना) (ई सुन के गुलाब औ सतीश के तरवा के धूर कपार पर चढ़ गेल ।; सनीचरी झगड़ू से मिलल तो झगड़ू कहलक कि फलना साव तो बीस पैसे रुपया फी माह बेयाज ले हलौ, हम तो दसे पैसे बेयाज जोड़लियो हऽ । ई सुन के सनीचरी के तरवा के धूर कपार पर चढ़ गेल ।; मोका पाके हरखू एक दिन महेश बाबू के ई सब बात कहलक । महेश बाबू के तरवा के धूर कपार पर चढ़ गेल । कहलका कि आजे छोटे बाबू से कहम कि राड़ी पर एतना जुलुम मत करऽ ।)    (मशिलो॰24.17; 40.12; 96.16)
316    धोबी (अजादी के बाद धीरे-धीरे वोट के गन्दा राजनीति के वजह से जात-पात के भावना देहातन में तेजी से बढ़ल । बाभन, रजपूत, कुरमी, कोयरी, गोआला, दुसाध, पासी, चमार सब अलगे-अलगे खिचड़ी पकावे लगल । गाँव के एक दू घर बनिया, कुम्हार, धोबी, मुसलमान, बड़ही, नउआ के तो कोई कीमते नई हल । बेसी जात वालन के बिना पैसा के ई सब गुलाम बने ला मजबूर हो जा हल ।)    (मशिलो॰14.20)
 

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