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Friday, November 01, 2019

वेताल कथा (चान मामूँ) - 2. अदला-बदली कइल सिर


वेताल कथा (चान मामूँ) - 2. अदला-बदली कइल सिर
(चंदामामा- नवम्बर 1955, पृ॰23-26; वेतालपञ्चविंशति, कथा सं॰6)
[बहनोय आउ साला जब देवी मन्दिर में अपन-अपन सिर काटके खुद के देवी के बलिदान कर देते गेलइ आउ बाद में पत्नी मदनसुन्दरी आके दुन्नु के मरल देखके ऊ आत्महत्या करे पर उतारू हो गेलइ त देवी खुश होके ओकरा कहलथिन कि दुन्नु के सिर के धड़ से जोड़के रखला पर दुन्नु फेर से जीवित हो जइतउ, लेकिन पत्नी जल्दीबाजी में बहनोय आउ साला दुन्नु के सिर के धड़ से जोड़े बखत अदला-बदली कर देलकइ, त वेताल विक्रम के पुच्छऽ हइ कि अब ऊ लड़की के सचमुच के पति कउन हइ आउ भाय कउन?]


[23] विक्रम बहुत जिद्दी हलइ। प्रश्न के उत्तर देवे के कारण ओकर मौन-व्रत भंग हो गेले हल, आउ लाश के साथ वेताल फेर से ओहे पेड़ के डाढ़ से लटक गेले हल, ई विक्रमार्क जान गेले हल। ऊ वापिस गेलइ, पेड़ पर से लाश के उतरलकइ आउ कन्हा पर डालके श्मशान दने जाय लगलइ।
"राजा! तूँ बहुत ज्ञानी हकऽ। तोरा से पुछके अपन एक आउ संदेह दूर करे लगी चाहऽ हियो। पहिले ई कहानी सुन्नऽ।" एतना कहके वेताल ई कहानी सुनइलकइ -
"शोभावती नगर में काली के एगो मन्दिर हइ। हर साल आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी के दिन हियाँ परी एगो बड़गर मेला लगऽ हइ। दूर-दूर से लोग हियाँ अइते जा हइ, तलाब में स्नान करके काली माय के दर्शन करते जा हइ।
[24] एक साल ब्रह्मस्थल नामक गाम से धवल नाम के धोबी काली माय के दर्शन करे अइलइ। ऊ तलाब में नहइते बखत मदनसुन्दरी नाम के एगो धोबी-कन्या के देखलकइ। ओहो काली दर्शन खातिर आल हलइ। ऊ ओकर नाम, गाम, पिता के नाम आदि के बारे में भी पता लगइलकइ। ऊ सोचलकइ कि जब तक ऊ कन्या से विवाह नञ् कर लेतइ, तब तक भोजन के एगो कोर तक नञ् ग्रहण करतइ।
मेला के बाद धवल के दिन-दिन कमजोर होते देखके ओकर पिता ओकर कमजोरी के कारण पुछलकइ। धवल मदनसुन्दरी के बारे सब कुछ कह सुनइलकइ।
"अरे बेटा! ई छोटके बात लगी तूँ खान-पीना छोड़ बैठलँऽ हल? ओकर पिता हमर दोस्त हइ। अभी जाके विवाह निश्चित कर दे हिअउ। तूँ उठ, भोजन कर।" - ओकर पिता कहलकइ।
शुभ मुहूर्त में धवल आउ मदनसुन्दरी के विवाह हो गेलइ। धवल पत्नी के घर लाके अराम से रहे लगलइ।
ई दौरान धवल ओकर घर आके कहलकइ - "हम अपन घर में गौरी व्रत कर रहलिए ह। तोहरा आउ अपन बहिन के ले जाय लगी अइलिए ह।"
अगलहीं दिन धवल, अपन पत्नी आउ साला के साथ, ससुराल लगी निकस पड़लइ। रस्ता में शोभावती नगर पड़ऽ हलइ। धवल के काली माय के दर्शन करे के इच्छा होलइ। जब ऊ साला आउ पत्नी के बोलइलकइ त ओकन्हीं खाली हाथ काली माय के देखना अच्छा नञ् समझलकइ, त धवल अकेल्ले मन्दिर गेलइ।
मन्दिर में, काली माय के देखतहीं धवल भक्ति के कारण मूर्छित नियन हो गेलइ। अठारह भुजा वली काली माय, महिषासुर [25] के पैर के तले रौंदते एगो विजेता नियन देखाय देलथिन। काली माय के मूर्ति के पासे में एगो गँड़ासा हलइ।
"ई देवी के हर कोय बलि देके पुण्य कमा हइ, हम खुद के हीं बलि देके मोक्ष पाम।" ई सोचके धवल गँड़ासा उठइलकइ आउ अपन सिर खुद काटके मूर्ति के अर्पित कर देलकइ।
पति के नञ् अइते देखके पत्नी अपन भाय के भेजलकइ। जब ऊ मन्दिर में गेलइ त ऊ देखलकइ कि बहनोय अपन हाथ से मूर्ति के सामने खुद के बलि दे देलक ह। ओकरा में एक प्रकार के भक्ति-आवेश पैदा होलइ। ओहो गँड़ासा से अपन गला काटके काली माय के अर्पित कर देलकइ।
मदनसुन्दरी ऊ दुन्नु के बहुत इंतजार कइलकइ। जब ओकन्हीं नञ् अइते गेलइ, तब ऊ खुद हैरान होके मन्दिर में गेलइ। हुआँ अपन भाय आउ पति के सिर पड़ल देखके ऊ दुखी होके कहलकइ - "माय! कीऽ तूँ हमर भाय आउ पति के एक्के साथ बलि ले लेलऽ? अब हमरो जीए से कीऽ फयदा? हम तोर सामनहीं फाँसी लगाके [26] मर जइबो।" ऊ आत्महत्या करे के प्रयास कइलकइ। तब ओकरा देवी के मुख से ई शब्द सुनाय देलकइ -
"अरे पगली! आत्महत्या मत कर। हम तो न तोर पति के बलि मँगलियो हल, न तोर भाइए के। ओकन्हीं अपन भक्ति में खुद के बलि दे देते गेलो ह। ओकन्हीं के धड़ बिजुन सिर रख, हम ओकन्हीं के जिला दे हिअउ।"
काली माय के शब्द सुनतहीं मदनसुन्दरी बहुत्ते खुश होलइ। ओकर आँख से आँसू झरे लगलइ। ऊ आँसू पोछते-पोंछते मन्दिर के अन्हेरा में, दुन्नु सिर के धड़ बिजुन रखलकइ। ओकन्हीं तुरम्मे जीवित हो गेते गेलइ। लेकिन एगो गलती हो गेले हल। मदनसुन्दरी अपन पति के सिर भाय के धड़ पर रख देलके हल आउ भाय के सिर के पति के धड़ पर। ओकन्हीं अइसीं जीवित हो गेते गेले हल।
ई कहानी सुनाके वेताल पुछलकइ - "राजा! हमर संदेह ई हइ कि मदन सुन्दरी के सचमुच के पति कउन हइ? आउ भाय कउन हइ? अगर तूँ एकर उत्तर जानतहूँ नञ् देलऽ त तोर सिर के टुकड़ा-टुकड़ा हो जइतो।"
"एकरा में कइसनो संदेह के गुंजाइशे नञ् हइ। पूरे शरीर में सिर हीं प्रधान होवऽ हइ। ओहे से पति के सिर वला हीं पति हइ। भाय के सिर वला भाय।" - विक्रम उत्तर देलकइ।
ई तरह राजा के मौनभंग होतहीं वेताल लाश के साथ उड़के ओहे पेड़ पर जाके फेर से लटक गेलइ।


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