भादो के महीना हल, घुच-घुच अँधरिया । हाथो न लउकऽ हल । बाकि ताव में रमेश लपकल जाइत हलन । कहीं ऊँच-नीच पर पैर पड़ जा हल तो रमेश आरी पर से धान के खेत में लोघड़ जा हलन । मन तो न करऽ हल आगे बढ़े के बाकि ससुरार के लोग से नोंक-झोंक में ऊ अधिराते में निकल गेलन हल ।
उनकर मेहरारू चंपा भी अप्पन मरद के खोजे ला चलल जाइत हल । उनकर माय-बाबूजी रोकलन, 'तूँ औरत जात होके ई अँधेरिया रात में कहाँ जयमें । कल्हे तोरा ससुरार पहुँचा देबउ ।'
रमेश राते में अप्पन घरे पहुँच गेलन । बिहाने होके उनकर ससुर चंपा के पहुँचा देलन । चंपा के देख के रमेश बजार जाय के बहाने घर से निकल जयतन हल बाकि चंपा समझ गेल आउ रमेश के पीछा धर लेलक । चंपा के पीछे-पीछे आवइत देख के रमेश उलटावे के कोशिश कैलन । बाकि चंपा लउटे ला तइयार न होलक । खीस में रमेश ओके दू-चार झापड़ जमा देलन ।
चंपा रोवइत गोसायल घरे लउट गेल आउ रमेश बजार के तरफ चल गेलन । अब चंपा घर में जाके गेहूँ में देवे वला कीटनाशक दवाई खा गेल आउ रात में स्वर्ग सिधार गेल । गाँव वला लोग मिल के राते में ओकरा जला देलन ।
कल होके ई समाचार चंपा के नइहर भेजा देवल गेल । अब का हल ? चंपा के बाबूजी थाना में जाके केस कर देलन ।
गाँव में पुलिस पहुँच गेल । जउन लोग लाश के जलौलन हल ओकरा में से कुछ लोग छुतका मेटावे ला माथा घोंटवा लेलन हल । पुलिस जेकर माथा घोटावल देखऽ हल ओकरे पकड़ ले हल । अब तो जेतना लोग अप्पन माथा घोंटवैलन हल ऊ पछताय लगलन आउ कोठी में लुकायल रहऽ हलन । कउन जाने कब पुलिस आ जाय ।
अगला दिन फिर पुलिस आ गेल । एगो बूढ़ अदमी अप्पन बंगला पर बैठल हलन । उनकर लइका कहलक, 'बाबूजी ! पुलिस आवइत हवऽ । घर में चल जा ।'
उनकर मेहरारू चंपा भी अप्पन मरद के खोजे ला चलल जाइत हल । उनकर माय-बाबूजी रोकलन, 'तूँ औरत जात होके ई अँधेरिया रात में कहाँ जयमें । कल्हे तोरा ससुरार पहुँचा देबउ ।'
रमेश राते में अप्पन घरे पहुँच गेलन । बिहाने होके उनकर ससुर चंपा के पहुँचा देलन । चंपा के देख के रमेश बजार जाय के बहाने घर से निकल जयतन हल बाकि चंपा समझ गेल आउ रमेश के पीछा धर लेलक । चंपा के पीछे-पीछे आवइत देख के रमेश उलटावे के कोशिश कैलन । बाकि चंपा लउटे ला तइयार न होलक । खीस में रमेश ओके दू-चार झापड़ जमा देलन ।
चंपा रोवइत गोसायल घरे लउट गेल आउ रमेश बजार के तरफ चल गेलन । अब चंपा घर में जाके गेहूँ में देवे वला कीटनाशक दवाई खा गेल आउ रात में स्वर्ग सिधार गेल । गाँव वला लोग मिल के राते में ओकरा जला देलन ।
कल होके ई समाचार चंपा के नइहर भेजा देवल गेल । अब का हल ? चंपा के बाबूजी थाना में जाके केस कर देलन ।
गाँव में पुलिस पहुँच गेल । जउन लोग लाश के जलौलन हल ओकरा में से कुछ लोग छुतका मेटावे ला माथा घोंटवा लेलन हल । पुलिस जेकर माथा घोटावल देखऽ हल ओकरे पकड़ ले हल । अब तो जेतना लोग अप्पन माथा घोंटवैलन हल ऊ पछताय लगलन आउ कोठी में लुकायल रहऽ हलन । कउन जाने कब पुलिस आ जाय ।
अगला दिन फिर पुलिस आ गेल । एगो बूढ़ अदमी अप्पन बंगला पर बैठल हलन । उनकर लइका कहलक, 'बाबूजी ! पुलिस आवइत हवऽ । घर में चल जा ।'
बुजुर्ग कहलन, 'हम तो अप्पन लड़की के मरे के छुतका में बाल मुड़वइली हे । हमरा पुलिस का करत ।'
उनकर बेटा कहलन, 'पुलिस के का पता हे कि तूँ केकर छुतका में माथा घोंटवैलऽ हे । पुलिस के तो माथा घोंटायल के सर्टिफिकेट मिल जाय के चाहीं, फिर तो जेल में खिचड़ी पचावहीं पड़तवऽ ।'
उनकर बेटा कहलन, 'पुलिस के का पता हे कि तूँ केकर छुतका में माथा घोंटवैलऽ हे । पुलिस के तो माथा घोंटायल के सर्टिफिकेट मिल जाय के चाहीं, फिर तो जेल में खिचड़ी पचावहीं पड़तवऽ ।'
उनका पर अप्पन बेटा के बात के कुच्छो प्रभाव न पड़ल, तो उनकर बेटा जबरदस्ती भर अकवार के उनका घर में ठेल के दरवाजा बाहर से बंद कर देलन ।
पुलिस के एक्को अदमी हाथ न लगल । ऊ दूसर नियम अपनयलक । जेकर घर में खाना में हरदी तेल नय पड़ऽ हल, ओकरा पकड़े लगल । अब जे भी हरदी तेल नय दे हल, ऊ पकड़ाय के डर से हरदी तेल भी देवे लगल । फिर पुलिस के एक्को अदमी हाथ न आयल तो अब तेसर नियम अपनैलक कि जे आदमी अप्पन घर-दुआर लीपत इया धोवत ओकरे पकड़ल जाय । अब पकड़ाय के भय से कोई भी न घर दुआर धोलक आउ न लिपलक ।
लोग के मन में भूत से जादे भय हो गेल पुलिसे से । छुतका अब ताखा पर रखा गेल हल ।
एक दिन रमेश के घर कुर्की-जप्ती के वारण्ट भी आ गेल । रमेश चाहइत हे कि केतनो रुपइया खरच हो जाय बाकि सजाय न होवे, काहे कि सजाय होला पर नौकरी खतम हो जायत । बाकि रमेश के ससुर चाहइत हथ कि कइसहूँ रमेश के नौकरी खतम हो जाय । एही चक्कर में दुन्नो तरफ से काफी पैरवी चल रहल हे ।
केस के फैसला तो बाद में होयत, बाकि गाँव पर बड़ी प्रभाव पड़ल हे । मेहरारू लोग के भाव बढ़ल हे आउ मरद लोग में सुधार होयल हे । लोग अप्पन मेहरारू के बड़ी परेम से रखऽ हथ । लड़ाई झगड़ा के नौबत से दूर रहे ला चाहऽ हथ । मेहरारू पर तनिको रोब न जमावऽ हथ । सोचऽ हथ कि एगो के अभी औरत के मारे के फेर में छुटकारा न होयल हे, अइसन न कि दूसर केस हमर घर में हो जाय ।
[ मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी", बरिस-२, अंक-१, जनवरी १९९६, पृ॰१५-१६ से साभार]
पुलिस के एक्को अदमी हाथ न लगल । ऊ दूसर नियम अपनयलक । जेकर घर में खाना में हरदी तेल नय पड़ऽ हल, ओकरा पकड़े लगल । अब जे भी हरदी तेल नय दे हल, ऊ पकड़ाय के डर से हरदी तेल भी देवे लगल । फिर पुलिस के एक्को अदमी हाथ न आयल तो अब तेसर नियम अपनैलक कि जे आदमी अप्पन घर-दुआर लीपत इया धोवत ओकरे पकड़ल जाय । अब पकड़ाय के भय से कोई भी न घर दुआर धोलक आउ न लिपलक ।
लोग के मन में भूत से जादे भय हो गेल पुलिसे से । छुतका अब ताखा पर रखा गेल हल ।
एक दिन रमेश के घर कुर्की-जप्ती के वारण्ट भी आ गेल । रमेश चाहइत हे कि केतनो रुपइया खरच हो जाय बाकि सजाय न होवे, काहे कि सजाय होला पर नौकरी खतम हो जायत । बाकि रमेश के ससुर चाहइत हथ कि कइसहूँ रमेश के नौकरी खतम हो जाय । एही चक्कर में दुन्नो तरफ से काफी पैरवी चल रहल हे ।
केस के फैसला तो बाद में होयत, बाकि गाँव पर बड़ी प्रभाव पड़ल हे । मेहरारू लोग के भाव बढ़ल हे आउ मरद लोग में सुधार होयल हे । लोग अप्पन मेहरारू के बड़ी परेम से रखऽ हथ । लड़ाई झगड़ा के नौबत से दूर रहे ला चाहऽ हथ । मेहरारू पर तनिको रोब न जमावऽ हथ । सोचऽ हथ कि एगो के अभी औरत के मारे के फेर में छुटकारा न होयल हे, अइसन न कि दूसर केस हमर घर में हो जाय ।
[ मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी", बरिस-२, अंक-१, जनवरी १९९६, पृ॰१५-१६ से साभार]
1 comment:
हालांकि हमें यह कहानी समझ न आयी, पर आपका परिचय पाकर अच्छा लगा,
धन्यवाद!
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