लघुकथाकार - कृष्ण कुमार भट्टा
गाड़ी जइसहीं नवादा टीसन से खुलल, हम्मर नजर एगो कड़कड़िया सौटकिया नोट पर पड़ल । अभी हम ओकरा उठावे ला करिये रहली हल कि एगो अदमी के लात से ठेला के ऊ आउ करगी लग गेल । थूक बिगे के बहाने हम ऊ नोट उठा लेली । सोचली के जेकर होयत ऊ बेचारा के नींद न आयत, ई लागी ठीक पहचान करके ई रुपइया दे देवे के चाही ।
हम्मर दिमाग में एक बात आयल, फिन हम सौ के नोट जेभी में रखके पचसटकिया कड़कड़िया नोट निकाल के सभे से कहली - "भाई जी, ई रुपइया किनकर हे ?"
तीन चार अदमी कहे लगलन - "हम्मर हे ! ई नोट हम्मर हे ।"
हम कहली -"केकरो भी होयत, त एक्के अदमी के न होयत ? सच-सच बोलऽ, त रुपइया दे देबुअ ।"
बाकि ऊ सब अप्पन दावा पर अड़ल हलन ।
एतने में एगो अदमी जे दूर में बइठल हल, धड़फड़ायल अयलक, बाकि नोट देख के चुप हो गेल ।
हमहीं उनका से पुछली - "का भाई जी, ई नोट तोहरे हवऽ का ?"
ऊ अदमी कपस के कहलक - "न भाई जी ! ई नोट हम्मर न हे । हम्मर नोट सौटकिया हेरायल हे आउ ई पचसटकिया हे ।"
बस, जेभी से सौटकिया नोट निकाल के ऊ अदमी के देके सभे से कहली - "भाई साब ! ई नोट इनकरे हे । काहे कि नोट पचास के नञ, सौ के मिलल हमरा । हम तो सब के जाँच करे के खातिर ई चाल चलली हल ।" सब लोग के मुड़ी लाज से झुकल रह गेल ।
[मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी", बरिस-४, अंक-१, जनवरी १९९८, पृ॰८ से साभार]
3 comments:
बहते बढिया तरीका से सच के जाँच करल नारायण परसाद जी बधाई
bahut hi sunder likha hai
sanjay
haryana
bahut hi sunder likha hai
sanjay
haryana
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