अइसे तो हमरा अप्पन बहिन, भगिनी आउ भतीजी के बरतुहारी करे के मौका मिल चुकल हे, बाकि अप्पन एगो साली के बिआह ला बरतुहारी करे में तो गजबे के अनुभव होल हे । हालाँकि हम्मर अप्पन, चचेरी, ममेरी आउ फुफेरी साली के संख्या बीस से कम नऽ हे, बाकि हम आज तक खाली अप्पन दू गो साली के बिआह ला बरतुहारी कयले ही । बाकी दू गो साली के बिआह ला हम्मर ससुर जी के ओतना दउड़े-धूपे नऽ पड़ल । बड़ा आसानी आउ बढ़ियाँ से बिआह हो गेल । हम्मर तेसरकी साली में थोड़ा-बहुत परेसानी जरूर होल, मगर हम्मर चौठकी साली नियन ओतना दउड़े-धूपे नऽ पड़ल । चार-पाँच तुरी तेसरकी साली के बरतुहारी में जाय पड़ल ।
एक रोज के बात हे कि साँझ के लड़का वाला के इहाँ बइठकी जमल, ऊ भी तीन-चार घंटा । लड़का वाला के तरफ से जब रंग-बिरंग के फरमाइस होवे लगल तब हमर मिजाज जरूर गरमायल, बाकि जाहिर होवे नऽ देली । हम्मर ससुर जी निहायत सीधा-सपाटा आदमी हथ । उनका कुच्छो माँग होवे पर "नऽ" कहे के हिम्मते नऽ पड़ऽ हल । हम उनखा एकरगी ले जा के कहली कि 'माँग ओतने मानल जाय, जेतना हमनी सब के अउकात हे, आउ जेकरा पूरा करे के सौख रखऽ ही ' । आपस में सलाह करके हम दुन्नो फिन सबके सामने अयली । हमनी सबके पार्टी में हम्मर बूढ़ा ददिया ससुर जी, दुन्नो साढ़ू आउ एगो सयान साला सामिल हलन । लड़का वाला के पार्टी के तरफ से जब अंधाधुंध माँग होवे लगल, तब हमरा, अपन समाज आउ बिरादरी पर बड़ा दुख होल आउ गुस्सा भी आयल । तइयो, हम बड़ा परहेज करके जवाब देली कि दुनियाँ में चीज के कमी नऽ हे । माँग तो ढेरो कैल जा सकऽ हे । ओकर कौनो अंत हे ? बाकि लड़की वाला कौ मजबूरी भी तो समझे के चाही । हम फिन कहली कि 'हम्मर ससुर जी के छौ गो लड़की आउ चार गो लड़का हे । तीन लड़की के बिआह बढ़ियाँ से कर देलन आउ बाकी तीनों के बिआह भी सुन्दर ढंग से करतन । हमर ससुर जी से जे बन पड़त, जरूर पूरा करतन । हम अप्पन बिआह के इयाद करित कहली कि "जब हम्मर बिआह के बात चलित हल, तब हम्मर बाबूजी इया मइया, कुच्छो चीज ला, मनमाना फरमाइस नऽ करलन हल । जे मिलल से हँसी-खुसी मंजूर कर लेलन । घड़ी खरिदावे ला हम्मर ददिया ससुर खुद अपने साथे बजार ले गेल हलन । हम अपने संगे एगो भाई के भी ले लेली हल । हम कम दाम वाला घड़ी पसन्द कैलूँ, हालाँकि हम्मर भाई भारी दाम के घड़ी खरीदे ला जोर देलक हल । पर हम अप्पन बात पर अड़ल रहलूँ । हमरा ला नीमन साइकिल खरीद के रखा गेल हल । जब हमर ससुराल वालन के मालूम होल कि हम साइकिल चलावे नऽ जानऽ ही, तब हमरा साइकिलो नऽ मिलल । तइयो हम कुछ नऽ कहली । खीर खाए के बेरा आयल, तब हम बिना रुसले-फुसले खा लेली , हालाँकि ऊ घड़ी हमर एगो ममेरा बड़ा भाई, जे हमरा साथे बइठल हला, हलके सनी चिकोटी काट के, कनखी मारके, आउ कान में फुसफुसा के कहलका हल कि बिना फर्स्ट क्लास सोना के अँगूठी लेले खीर मत खइहें । जब हम ई संस्मरण सुनैली तब लड़कावाला के पार्टी में थोड़ा मोलाइमियत आयल, माँग कुछ कम होल आउ बिआह तय हो गेल ।
अब हम अप्पन चउठकी साली के बिआह ला बरतुहारी के अनुभव सुनावइथी । इनखर बरतुहारी में बहुत जगह जाय के मौका मिलल । बाकि दू जगह तो बड़ा अद्भुत अनुभव होल । एगो जगह जब बातचीत चलित हल तब हम बातचीत के आखिरी दौर में लड़कावाला के घर पर पहुँचली । हमरा साथे हमर ससुराल के चार बेकत हलन । हमरा पहुँचे के पहिले हमर ददिया ससुर आउ फुफेरा ससुर दु-तीन बइठकी लड़कावाला के इहाँ कर चुकलन हल । जब हम अप्पन साथी सब के संगे भोर सात बजे लड़कावाला के घरे पधारली तब लड़का के बाबूजी, हमनी के दरवाजा खटखटैला पर, हाथ में एगो खाली तसला लेले आउ मुँह में कूची रगड़ते, केमारी खोललन आउ बइठे ला इसारा कयलन । अँगना में मुँह से थूक-खखार फेंक के फिन ऐलन आउ ई कह के चल गेलन कि हम दू मिनट में आवइथी । ऊ झटपट हमनी के मन बहलावे ला अप्पन एगो दमाद के भेज देलका । घंटा-भर एन्ने-ओन्ने के बात होल, तब दमाद साहेब फिन अन्दर चल गेला । लड़का के पिता जी से हमरा परिचय करावल गेल । पहिले तो हम्मर ददिया ससुर जी रमायन के कुछ दोहा-चौपाई बाँचलन, दु गो उर्दू के सेर सुनौलन, आउ अँगरेजियो में दु-चार गो बात कहलन । लड़का के पिता जी हाथ चमका के आउ मुँह बिचका के कहलका - "हमरा दिमाग में ई बात के सुबहा बइठ गेल हे कि टीपन गड़बड़ हे ।" हम उनखा हर तरह से समझइली, बाकि उनखा दिमाग से सुबहा के कीड़ा नऽ निकलल । हमनी तब साफ कह देली कि खुद तकलीफ करके लड़की के देख लेल जाय, आउ टीपन पंडित जी से चेक करवा लेल जाय, तब सुबहा मिट जायत । आखिर ऊ तइयार नहिंए होलन । लाचार हमनी सब लौट अयली । एतना दिन दौड़-धूप में समय, सक्ति आउ पइसा बेकारे खरच होल । परेसानी तो होबे कैल । लोग लड़की के रूप, गुन, सुभाव का देखतन, पहिले उनका मन-लायक फैसन के रंग-बिरंग चीज होवे के चाही । लड़कीवाला पूरा करे तो करे, न तो झख मारे । इमानदारी से कमाय वाला आउ खाली माहवारी वेतन पर गुजर करे वाला आदमी अप्पन बेटी के बिआह अइसन हालत में कइसे कर सकऽ हे ? औकात रहे साढ़े बाइस, पर लड़कावाला के दिमाग, पता नऽ काहे, असमान में घुमइत रहऽ हे । दोसर जात में विवाह करे के हिम्मत होवे के चाही लड़का के मन में । हो सकऽ हे कि लेन-देन के फेर में माय-बाप अप्पन बेटा के बिआह बुढ़ौठ में रचावथ आउ बेटा के इच्छा के खेयाल तनिको नऽ करथ । अइसने एगो मजेदार किस्सा सुनावइत ही ।
चउठी साली क दोसर बरतुहारी में हमरा जे अनुभव होल, ओकरा हम जिनगी में सायदे भूलम । लगातार चार महीना लड़कावाला के इहाँ हमरा तो दउड़े के परबे करल, हमर ससुरालवाला लोग भी खूब परेसान होलका । लड़का के पता-ठेकाना हमरे एगो बहनोई से मिलल । एक दिन हम अप्पन एगो साढ़ू जौरे लड़कावाला के इहाँ पहुँचली । बातचीत होल । लड़का के पिता जी दुनियाँ-भर के लाभ-काफ बतिऔलका । कहलका कि हम्मर लड़का तो लाख में एक हे, हालाँकि ऊ अप्पन लड़का तीन महीना के बाद देखैलका । लड़का कोई खास सुन्दर आउ होनहार नऽ हल । सधारने लगल । लड़का के टीपन वास्ते उनखा घरे हमरा बीसियों दफे दउड़े पड़ल । ऊ हरसट्ठे बहाना मार दे हलन । टीपन बइठ गेल तब हम अप्पन ससुर, साढ़ू, साला, सबके लिया गेली । लड़का के बाबू, हमनी के उनखा इहाँ पहुँचे पर, सबसे पहिले घर में घुस जा हलन । ऊ दू गो बेटा रहला पर भी दोसर बीबी बियाह के ले अयलन हल, जेकर कोख से एक्को संतान पैदा नऽ होल हल । दोसरकिए बीबी के इसारा कयला पर ऊ बाहर आवऽ हलन आउ लेन-देन के बात करइत-करइत कुच्छो-कुच्छो पूछे लगी फिन अन्दर चल जा हलन । उनखर ई ड्रामा देख के हमर दिमाग में एगो घोर मउगमेहरा के तस्वीर उभर जा हल । अप्पन बीबी से मसविरा कयले पर ऊ फाइनल बात हमनी के बतावऽ हलन । अप्पन अइसन लच्छन से ऊ हमनी के बड़ा पसोपेस में डालले हलन । कौनो सवाल पर 'हँ' इया 'नऽ' ऊ साफ कहबे नऽ करऽ हलन ।
हमनी सब लड़की के फोटो तो सुरूए में दे देली हल । बाकि लड़का के फोटो देवे में ऊ एक महीना लगा देलन हल । ऊ एगो तांत्रिक बाबा के जबरदस्त भक्त हलन । ऊ ई बात भी कह देलका हल कि बिना बाबा के आसिरबाद या आर्डर के, बिआह तय नऽ हो सके हे । एही सबसे, बाद में, लड़का के बाबू हमरा बड़ा गड़बड़ आउ लीचड़ टाइप आदमी बुझाए लगलन । कभीओ कुछ, कभीओ कुछ ।
एक रोज अइसन भेल कि हमनी छेंका-रसम करे ला उनखा हीं पहुँचली । बाहर दरवाजा पर हमनी के देख के ऊ फट से अन्दर दाखिल हो गेलन आउ दू मिनट के बाद बाहर आ के, खाली हम्मर हाथ पकड़ के, घर के पिछवाड़ा वाला मैदान में ले गेलन । सब कोई उनकर ई हरकत देख के दंग हलन । खैर । बातचीत होल । ऊ अप्पन असली मंसा खोले नऽ चाहित हलन । डेढ़-दू घंटा खड़े बात होल, पूरा कसरत हो गेल । ओन्ने, दोसर दने, हमर ससुर जी अप्पन बेटा आउ दमाद के साथ सड़क पर बइठल हलन । हमनी सब खुसी में बाबा महादेव के चढ़ावल परसाद उनखा हीं ले गेली हल । ऊ बड़ा खुसामद कयला पर मीठा परसादी के पैकेट लेवे ला तइयार होलन । फिन, जब हमनी सब एकाध सप्ताह के बाद उनखा हीं गेली तो हमनी के चढ़ावल ओही परसाद ऊ हमनी खिला देलन । ई हरकत से ऊ हमरा बड़ा टोटकाबाज आउ तपाकी बुझैलन । अइसन बेपेंदी के लोटा वाला आदमी के चक्कर में पड़के हमनी के बुरा हाल हल । लड़की के बिआह के बात हल, आउ बा बहुत आगे बढ़ गेल हल, न तो उनखर हमनी के साथ जइसन सलूक होल, जीउ करित हल कि अइसन बेसर्म आउ लालची आदमी के डट के खबर लेल जाय ।
छेंका के रसम पूरा होला पर जब एक रोज अप्पन एगो छोटका साला जौरे थोड़ा एड्वांस देवे ला उनखा हीं पहुँचली तो ऊ घर पर नऽ हलन । उनखर मेहरारू बड़ा तेबर में कहलन कि 'एतना पइसा से का होयत ! तिलक के बारह आना हिस्सा एकट्ठे दे देथी तो हमरा एगो कोठरी बन जायत आउ घर के मरम्मत करवा देम' । हम मने-मन लोछिया के लौट अयली । फिन दू दिन के बाद उनखा हीं गेली । पुआ-पुरी खैला आउ चाय-पान कैला के बाद, लड़का के बाबू से हम ई बात सुन के दंग रह गेली कि "कल-परसों तक तिलक के सब पइसा गिन देथी । सब पइसा हमरा मिल जायत तो बिआह हो गेल समझल जाय । असली तो पइसा हे । फलाँ दिन खाली बरात ले जा के सेन्दुरकराई के रसम पूरा कर देवल जायत । अगर परसों तक गछल पइसा नऽ मिलल तो एही मानल जायत कि लड़का अपने के बन्धन में नऽ रहत । कहे के मतलब कि बिआह के बात खुद-ब-खुद कट जायत । बिआह तो साल भर के बादे होयत । काहे कि हम अप्पन बड़का बेटा के बात नऽ टाल सकऽ ही ।" उनखर ई बात से हम हक्का-बक्का रह गेली आउ मने-मन तकलीफ-भरल करोध के भाव समेटले उनखा से अन्तिम बिदा ले लेली । एकर बाद उनखर घर पर फिन आज तक नऽ गेली । भगवान के बहुत सुकुर हे कि अइसन कुटुम में हम्मर साली के बिआह होते-होते रह गेल ।
["इंटरमीडिएट मगही गद्य-पद्य संग्रह (मातृभाषा)" (1984), बिहार मगही अकादमी, पटना, पृ॰ 87-90 से साभार]
एक रोज के बात हे कि साँझ के लड़का वाला के इहाँ बइठकी जमल, ऊ भी तीन-चार घंटा । लड़का वाला के तरफ से जब रंग-बिरंग के फरमाइस होवे लगल तब हमर मिजाज जरूर गरमायल, बाकि जाहिर होवे नऽ देली । हम्मर ससुर जी निहायत सीधा-सपाटा आदमी हथ । उनका कुच्छो माँग होवे पर "नऽ" कहे के हिम्मते नऽ पड़ऽ हल । हम उनखा एकरगी ले जा के कहली कि 'माँग ओतने मानल जाय, जेतना हमनी सब के अउकात हे, आउ जेकरा पूरा करे के सौख रखऽ ही ' । आपस में सलाह करके हम दुन्नो फिन सबके सामने अयली । हमनी सबके पार्टी में हम्मर बूढ़ा ददिया ससुर जी, दुन्नो साढ़ू आउ एगो सयान साला सामिल हलन । लड़का वाला के पार्टी के तरफ से जब अंधाधुंध माँग होवे लगल, तब हमरा, अपन समाज आउ बिरादरी पर बड़ा दुख होल आउ गुस्सा भी आयल । तइयो, हम बड़ा परहेज करके जवाब देली कि दुनियाँ में चीज के कमी नऽ हे । माँग तो ढेरो कैल जा सकऽ हे । ओकर कौनो अंत हे ? बाकि लड़की वाला कौ मजबूरी भी तो समझे के चाही । हम फिन कहली कि 'हम्मर ससुर जी के छौ गो लड़की आउ चार गो लड़का हे । तीन लड़की के बिआह बढ़ियाँ से कर देलन आउ बाकी तीनों के बिआह भी सुन्दर ढंग से करतन । हमर ससुर जी से जे बन पड़त, जरूर पूरा करतन । हम अप्पन बिआह के इयाद करित कहली कि "जब हम्मर बिआह के बात चलित हल, तब हम्मर बाबूजी इया मइया, कुच्छो चीज ला, मनमाना फरमाइस नऽ करलन हल । जे मिलल से हँसी-खुसी मंजूर कर लेलन । घड़ी खरिदावे ला हम्मर ददिया ससुर खुद अपने साथे बजार ले गेल हलन । हम अपने संगे एगो भाई के भी ले लेली हल । हम कम दाम वाला घड़ी पसन्द कैलूँ, हालाँकि हम्मर भाई भारी दाम के घड़ी खरीदे ला जोर देलक हल । पर हम अप्पन बात पर अड़ल रहलूँ । हमरा ला नीमन साइकिल खरीद के रखा गेल हल । जब हमर ससुराल वालन के मालूम होल कि हम साइकिल चलावे नऽ जानऽ ही, तब हमरा साइकिलो नऽ मिलल । तइयो हम कुछ नऽ कहली । खीर खाए के बेरा आयल, तब हम बिना रुसले-फुसले खा लेली , हालाँकि ऊ घड़ी हमर एगो ममेरा बड़ा भाई, जे हमरा साथे बइठल हला, हलके सनी चिकोटी काट के, कनखी मारके, आउ कान में फुसफुसा के कहलका हल कि बिना फर्स्ट क्लास सोना के अँगूठी लेले खीर मत खइहें । जब हम ई संस्मरण सुनैली तब लड़कावाला के पार्टी में थोड़ा मोलाइमियत आयल, माँग कुछ कम होल आउ बिआह तय हो गेल ।
अब हम अप्पन चउठकी साली के बिआह ला बरतुहारी के अनुभव सुनावइथी । इनखर बरतुहारी में बहुत जगह जाय के मौका मिलल । बाकि दू जगह तो बड़ा अद्भुत अनुभव होल । एगो जगह जब बातचीत चलित हल तब हम बातचीत के आखिरी दौर में लड़कावाला के घर पर पहुँचली । हमरा साथे हमर ससुराल के चार बेकत हलन । हमरा पहुँचे के पहिले हमर ददिया ससुर आउ फुफेरा ससुर दु-तीन बइठकी लड़कावाला के इहाँ कर चुकलन हल । जब हम अप्पन साथी सब के संगे भोर सात बजे लड़कावाला के घरे पधारली तब लड़का के बाबूजी, हमनी के दरवाजा खटखटैला पर, हाथ में एगो खाली तसला लेले आउ मुँह में कूची रगड़ते, केमारी खोललन आउ बइठे ला इसारा कयलन । अँगना में मुँह से थूक-खखार फेंक के फिन ऐलन आउ ई कह के चल गेलन कि हम दू मिनट में आवइथी । ऊ झटपट हमनी के मन बहलावे ला अप्पन एगो दमाद के भेज देलका । घंटा-भर एन्ने-ओन्ने के बात होल, तब दमाद साहेब फिन अन्दर चल गेला । लड़का के पिता जी से हमरा परिचय करावल गेल । पहिले तो हम्मर ददिया ससुर जी रमायन के कुछ दोहा-चौपाई बाँचलन, दु गो उर्दू के सेर सुनौलन, आउ अँगरेजियो में दु-चार गो बात कहलन । लड़का के पिता जी हाथ चमका के आउ मुँह बिचका के कहलका - "हमरा दिमाग में ई बात के सुबहा बइठ गेल हे कि टीपन गड़बड़ हे ।" हम उनखा हर तरह से समझइली, बाकि उनखा दिमाग से सुबहा के कीड़ा नऽ निकलल । हमनी तब साफ कह देली कि खुद तकलीफ करके लड़की के देख लेल जाय, आउ टीपन पंडित जी से चेक करवा लेल जाय, तब सुबहा मिट जायत । आखिर ऊ तइयार नहिंए होलन । लाचार हमनी सब लौट अयली । एतना दिन दौड़-धूप में समय, सक्ति आउ पइसा बेकारे खरच होल । परेसानी तो होबे कैल । लोग लड़की के रूप, गुन, सुभाव का देखतन, पहिले उनका मन-लायक फैसन के रंग-बिरंग चीज होवे के चाही । लड़कीवाला पूरा करे तो करे, न तो झख मारे । इमानदारी से कमाय वाला आउ खाली माहवारी वेतन पर गुजर करे वाला आदमी अप्पन बेटी के बिआह अइसन हालत में कइसे कर सकऽ हे ? औकात रहे साढ़े बाइस, पर लड़कावाला के दिमाग, पता नऽ काहे, असमान में घुमइत रहऽ हे । दोसर जात में विवाह करे के हिम्मत होवे के चाही लड़का के मन में । हो सकऽ हे कि लेन-देन के फेर में माय-बाप अप्पन बेटा के बिआह बुढ़ौठ में रचावथ आउ बेटा के इच्छा के खेयाल तनिको नऽ करथ । अइसने एगो मजेदार किस्सा सुनावइत ही ।
चउठी साली क दोसर बरतुहारी में हमरा जे अनुभव होल, ओकरा हम जिनगी में सायदे भूलम । लगातार चार महीना लड़कावाला के इहाँ हमरा तो दउड़े के परबे करल, हमर ससुरालवाला लोग भी खूब परेसान होलका । लड़का के पता-ठेकाना हमरे एगो बहनोई से मिलल । एक दिन हम अप्पन एगो साढ़ू जौरे लड़कावाला के इहाँ पहुँचली । बातचीत होल । लड़का के पिता जी दुनियाँ-भर के लाभ-काफ बतिऔलका । कहलका कि हम्मर लड़का तो लाख में एक हे, हालाँकि ऊ अप्पन लड़का तीन महीना के बाद देखैलका । लड़का कोई खास सुन्दर आउ होनहार नऽ हल । सधारने लगल । लड़का के टीपन वास्ते उनखा घरे हमरा बीसियों दफे दउड़े पड़ल । ऊ हरसट्ठे बहाना मार दे हलन । टीपन बइठ गेल तब हम अप्पन ससुर, साढ़ू, साला, सबके लिया गेली । लड़का के बाबू, हमनी के उनखा इहाँ पहुँचे पर, सबसे पहिले घर में घुस जा हलन । ऊ दू गो बेटा रहला पर भी दोसर बीबी बियाह के ले अयलन हल, जेकर कोख से एक्को संतान पैदा नऽ होल हल । दोसरकिए बीबी के इसारा कयला पर ऊ बाहर आवऽ हलन आउ लेन-देन के बात करइत-करइत कुच्छो-कुच्छो पूछे लगी फिन अन्दर चल जा हलन । उनखर ई ड्रामा देख के हमर दिमाग में एगो घोर मउगमेहरा के तस्वीर उभर जा हल । अप्पन बीबी से मसविरा कयले पर ऊ फाइनल बात हमनी के बतावऽ हलन । अप्पन अइसन लच्छन से ऊ हमनी के बड़ा पसोपेस में डालले हलन । कौनो सवाल पर 'हँ' इया 'नऽ' ऊ साफ कहबे नऽ करऽ हलन ।
हमनी सब लड़की के फोटो तो सुरूए में दे देली हल । बाकि लड़का के फोटो देवे में ऊ एक महीना लगा देलन हल । ऊ एगो तांत्रिक बाबा के जबरदस्त भक्त हलन । ऊ ई बात भी कह देलका हल कि बिना बाबा के आसिरबाद या आर्डर के, बिआह तय नऽ हो सके हे । एही सबसे, बाद में, लड़का के बाबू हमरा बड़ा गड़बड़ आउ लीचड़ टाइप आदमी बुझाए लगलन । कभीओ कुछ, कभीओ कुछ ।
एक रोज अइसन भेल कि हमनी छेंका-रसम करे ला उनखा हीं पहुँचली । बाहर दरवाजा पर हमनी के देख के ऊ फट से अन्दर दाखिल हो गेलन आउ दू मिनट के बाद बाहर आ के, खाली हम्मर हाथ पकड़ के, घर के पिछवाड़ा वाला मैदान में ले गेलन । सब कोई उनकर ई हरकत देख के दंग हलन । खैर । बातचीत होल । ऊ अप्पन असली मंसा खोले नऽ चाहित हलन । डेढ़-दू घंटा खड़े बात होल, पूरा कसरत हो गेल । ओन्ने, दोसर दने, हमर ससुर जी अप्पन बेटा आउ दमाद के साथ सड़क पर बइठल हलन । हमनी सब खुसी में बाबा महादेव के चढ़ावल परसाद उनखा हीं ले गेली हल । ऊ बड़ा खुसामद कयला पर मीठा परसादी के पैकेट लेवे ला तइयार होलन । फिन, जब हमनी सब एकाध सप्ताह के बाद उनखा हीं गेली तो हमनी के चढ़ावल ओही परसाद ऊ हमनी खिला देलन । ई हरकत से ऊ हमरा बड़ा टोटकाबाज आउ तपाकी बुझैलन । अइसन बेपेंदी के लोटा वाला आदमी के चक्कर में पड़के हमनी के बुरा हाल हल । लड़की के बिआह के बात हल, आउ बा बहुत आगे बढ़ गेल हल, न तो उनखर हमनी के साथ जइसन सलूक होल, जीउ करित हल कि अइसन बेसर्म आउ लालची आदमी के डट के खबर लेल जाय ।
छेंका के रसम पूरा होला पर जब एक रोज अप्पन एगो छोटका साला जौरे थोड़ा एड्वांस देवे ला उनखा हीं पहुँचली तो ऊ घर पर नऽ हलन । उनखर मेहरारू बड़ा तेबर में कहलन कि 'एतना पइसा से का होयत ! तिलक के बारह आना हिस्सा एकट्ठे दे देथी तो हमरा एगो कोठरी बन जायत आउ घर के मरम्मत करवा देम' । हम मने-मन लोछिया के लौट अयली । फिन दू दिन के बाद उनखा हीं गेली । पुआ-पुरी खैला आउ चाय-पान कैला के बाद, लड़का के बाबू से हम ई बात सुन के दंग रह गेली कि "कल-परसों तक तिलक के सब पइसा गिन देथी । सब पइसा हमरा मिल जायत तो बिआह हो गेल समझल जाय । असली तो पइसा हे । फलाँ दिन खाली बरात ले जा के सेन्दुरकराई के रसम पूरा कर देवल जायत । अगर परसों तक गछल पइसा नऽ मिलल तो एही मानल जायत कि लड़का अपने के बन्धन में नऽ रहत । कहे के मतलब कि बिआह के बात खुद-ब-खुद कट जायत । बिआह तो साल भर के बादे होयत । काहे कि हम अप्पन बड़का बेटा के बात नऽ टाल सकऽ ही ।" उनखर ई बात से हम हक्का-बक्का रह गेली आउ मने-मन तकलीफ-भरल करोध के भाव समेटले उनखा से अन्तिम बिदा ले लेली । एकर बाद उनखर घर पर फिन आज तक नऽ गेली । भगवान के बहुत सुकुर हे कि अइसन कुटुम में हम्मर साली के बिआह होते-होते रह गेल ।
["इंटरमीडिएट मगही गद्य-पद्य संग्रह (मातृभाषा)" (1984), बिहार मगही अकादमी, पटना, पृ॰ 87-90 से साभार]
1 comment:
आपकी भाषा तो काफी मनोरंजक है लिखने की कल आप हमारे चर्चा में है
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