कवि - उमेश प्रसाद 'उदय'
रोज नया मुद्दा अपना के गली-गली में टहलऽ हऽ !
वोट न देबो नेताजी, नित-दिन दल तूँ बदलऽ हऽ !
गोली, बम, बारूद ढेर के ढेरे हम जुटइली हल ।
बूथ-बूथ पर पुलिस भाई से लाठी भी हम खइली हल ।
विधान सभा आउ संसद में बइठल रसगुल्ला छीलऽ हऽ ।
वोट न देबो नेताजी, नित-दिन दल तूँ बदलऽ हऽ !
काँग्रेस से जनता दल, जनता दल से तूँ बसपा में,
हिन्दु के बिगुल बजत तब दउड़ल जयबऽ भाजपा में ।
ई पलड़ा से ऊ पलड़ा पर करके हमरा छलऽ हऽ !
वोट न देबो नेताजी, नित-दिन दल तूँ बदलऽ हऽ !
पहिन के खादी धोती कुरता, आवऽ ह तूँ कार पर ।
किसिम-किसिम के किरिया खाके रखलऽ हाथ मजार पर ।
ई घर में हवऽ तोहर जड़, ऊ घर में तूँ पलऽ हऽ !
वोट न देबो नेताजी, नित-दिन दल तूँ बदलऽ हऽ !
लूट-पाट, हिंसा, अपहरण अइसन-अइसन काम हे ।
राजनीति के तिकड़मबाजी दुनिया में बदनाम हे ।
खून चूस के, देश बेच के, रावण बन के पलऽ हऽ !
वोट न देबो नेताजी, नित-दिन दल तूँ बदलऽ हऽ !
केकर-केकर नाम धरूँ हम, सभे के ई चाल हे ।
आज के अइसन नेता से हम्मर देश बेहाल हे ।
भाषण में जनहित वाणी, शासन में तूँ छलऽ हऽ !
वोट न देबो नेताजी, नित-दिन दल तूँ बदलऽ हऽ !
[ मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी", बरिस-२, अंक-३, मार्च १९९६, पृ॰५ से साभार]
Friday, October 02, 2009
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