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मीनाम्बक्कम् में मेनका के जाहाँ छोड़लक हल, ऊ जगह देखा देलक । मेन रोड से सटले भारतीनगर के जे फुट्टल रस्ता में ऊ लड़की के जाते देखलक हल ऊ रस्ता के जनकारी दे देलक ।
भारतीनगर अइते गेला । एक ठो दूकान के सामने में बाइक रोकके दयाल पूछलका –
“भारतीनगर एक्सटेंसन काहाँ हइ, भई ?”
“एहे तो एक्सटेंसन हइ, सर । हुआँ एक्के ठो घर हइ । बाकी सब खाली प्लॉट हकइ ।”
“तूँ रस्ता देखावऽ ।”
बतावल रस्ता में बाइक बढ़इले दयाल ऊ एक्सटेंसन के पूरा रस्ता लाल मट्टी से भरल ध्यान में आल !! मेनका के साड़ी आउ पेटीकोट के किनारे में लाल मट्टी लगल खियाल में आल । ऊ ई रस्ता में निश्चित आल हल !
ऊ रस्ता के अन्त में खाली प्लॉट के बीच में चन्द्रु के घर देखाय देलक । एक्कर कँटेदार तार के बाहर बाइक रोकलका आउ उतर गेला ।
“तूँ हीएँ रहऽ भई” - दयाल बोलला । काठ के दरवाजा के सिटकिनी खोलके अन्दर जाके अचानक रुक गेला । हुआँ तार के काँटा पर ध्यान से नज़र डललका ।
ऊ काँटा पर छोट्टे गो बस्तर के टुकड़ा फँस्सल हलइ । ओक्कर रंग हलइ क्रीम ! .... बहुत परिश्रम से अंगुरी से अलगे करके देखलका । मेनका के पेन्हल साड़ी के किनारा थोड़े स फट्टल हल, ई खियाल में आल ।
“ई घर में 14 तारीख के मेनका के अप्पन सहेली से मिल्ले ल अइला पर कोय अनहोनी हो गेल ह ।”
दरवाजा पर के घंटी दबइते भवानी दरवाजा खोललका ।
अप्पन परिचय देके दयाल बइठ गेला ।
“अपने के नाम की अम्मा ?” - अराम से पुच्छे ल शुरू कइलका ।
“भवानी ।”
“परसूँ रात मायावरम् से मेनका नाम के अपने के सहेली अपने के घर पर अइला हल ?”
“परसूँ ? .... यू मीन (अपने के कहे के मतलब हइ) 14 तारीख के ?” - बीचे में बोलला चन्द्रु ।
“हाँ ।”
“हम सब 13 तारीख के साँझ के मुम्बई चल गेलिये हल ... अभी आधा घंटा पहिले वापस अइलिये ह !” - एतना बतइला के अलावे अप्पन लन्दन के यात्रा रद्द करे के विचार के बारे भी जनकारी देके पूछलका - “ह्वाट इज़ रौंग (कीऽ बात हइ), सर ?”
“मेनका मद्रास आल ह, ई बात भी हमरा मालूम नयँ । मेनका के कीऽ होले ह सर ?”- भवानी पूछलका ।
“14 तारीख के मेनका अपने से भेंट करे ल अकेल्ले अइला हल । आवे वला जगह में कुछ अनहोनी हो गेल ह । दोसरे दिन सुबह में उनकर लाश बेसेंटनगर के समुद्रतट पर हमरा मिल्लल ।”
“अय्यो ! मेनका के मौत हो गेलइ ?”
“अपने कीऽ कहऽ हथिन ?”
“मिस्टर चन्द्रु, अपने के मुम्बई जाके वापस आवे के बात सच तो हइ ? ई बात में कोय झूठ-वूठ तो नयँ ? सच-सच बात कइला पर ही अच्छा होतो ।”
“ई कीऽ सर ? अभी आ रहलिये ह, ई हम कहलिअइ न .... ठहरथिन !” - बोलके चन्द्रु अन्दर जाके विमान यात्रा करके वापस आवे के साक्षी के रूप में विमान टिकट देखइलका ।
“मुम्बई में अप्पन भौजी के घर ठहरलिये हल, पता दे हिअइ । फोन नम्बर दे हिअइ । अपने उनका साथ जे मन होवइ, ऊ बात पूछ सकऽ हथिन ।”
“ठीक हइ । अपने अप्पन घर के चाभी केकरो हाथ में देके गेलथिन हल ?”
“हाँ, अप्पन दोस्त अविनाश के पास देके गेलिये हल । ऊ भारत ऐण्ड भारत कम्पनी में कानूनी सलाहकार हका । दू दिन में एक तुरी आके घर के देखभाल करते रहऽ .... अइसन उनका कहलिये हल ।”
“अविनाश के चरित्र कइसन हइ ?”
“सज्जन व्यक्ति । करोड़पति शेषगिरि के लड़की के साथ शादी ठीक होले ह ।”
“अइसन कीऽ ? चौदह तारीख के अपने के दोस्त हीआँ अइला होत न ?”
“अइला हल कि नयँ, हमरा मालूम नयँ, सर । हम विस्तार से बात नयँ कर पइलिये ह । एयरपोर्ट से उनका फोन कइलिये हल । अप्पन चपरासी के हाथ से घर के चाभी भेजवइलका हल ।”
दयाल अपने आप हिसाब लगइलका ।
मेनका ई घर तक आल जरूर ! साड़ी, पेटीकोट के किनारे लाल मट्टी, अहाता के कँटेदार तार में साड़ी के टुकड़ा अटकल ह । ऑटोचालक के बयान से ई निश्चित हो जा हइ .... लेकिन बिना कोय सम्बन्ध के बेसेंटनगर में .... समुद्रतट पर ओक्कर लाश मिलना दिमाग खा रहल ह । पोस्ट-मॉर्टम के मोताबिक ओक्कर मौत रात के नौ-दस बजे के बीच होल ह । ऊ हत्या हीएँ काहे नयँ हो सकल होत ? आभूषण वगैरह ल हत्या नयँ होल, ई निश्चित लगऽ हके .... त फिर आउ कोय कारण से हत्या कइल गेल ? .... ऊ औरत पर बलात्कार भी नयँ होल ह, ई पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट से पता चलऽ हइ .... कहीं कोय अइसन चीज तो नयँ देख लेलक जे देखे के नयँ चाही हल .... ओकरा चलते ई दण्ड मिल्लल होत ?”
घटना जे सन्दर्भ में होल ओरा में अविनाश हल कि नयँ ई मालूम करे के चाही ।
“मिस्टर चन्द्रु, अपने के घर में रक्खल समान सब में कोय बदलाव देखाय तो नयँ दे हइ ? .... मतलब अपने के बाहर गेला के बाद अविनाश के आवे के कोय निशान के रूप में कुछ अन्तर देखाय दे हइ ? रक्खल वस्तु सब रक्खल जगह से अलग होल कुच्छो ?”
“फिर .... फिर !” - भवानी कुछ कहे के प्रयास कइलका ।
“ई कीऽ भवानी ? तोरा कुछ देखाय देलको ह त सर के बता दे !” - चन्द्रु बोलला ।
“हम्मर घर के बेडरूम में एक ठो नीला रंग के स्टिकर मिल्लल । आउ ... हम नीरार पर कुमकुम ही लगावऽ ही । हम्मर घर में हम दुन्नूँ के सिवाय आउ दोसर कोय नयँ । एरा सिवाय बिछावन पर बेडशीट थोड़े स सुक्खल हलइ । इनका ई बतावे के चाही, ई सोच रहलिये हल .... एतने में तूँ आ गेलऽ ।”
“कइसन बदमाश !” - चन्द्रु बोलला - “सर, अविनाश हम्मर दोस्त हइ, ई बात सच हइ । ई सच्चाई के छिपावे के जरूरत नयँ । ऊ थोड़े स हँसमुख टाइप के हइ । गप हाँकऽ हइ । औरत से सम्पर्क हइ । पापी ! हमरा चाभी देके गेला के नाजायज फयदा उठइलक, अइसन लगऽ हइ । ‘ई सब छोड़ दे’ अइसे ऊ दिन भी ओरा फोन पर बात करते बखत बतइलिये हल । एक दिन थियेटर में ओकरा एगो सुन्दर लड़की के साथ में देखलिये हल । ऊ केऽ हइ, ई पूछलिये हल । ओरा अप्पन प्रेयसी बतइलक हल ... ऊ दिन फोन पर बात करे बखत ‘ऊ खाली दोस्त हके’ अइसे बतइलक !”
“ऊ प्रेयसी के नाम कीऽ हइ, मालूम हको ?”
“शायद नन्दिनी नाम हइ ।”
दयाल के दिमाग में बिजली के संचार जइसन होल । ऊ दिन दूपहर के ऊ औरत आउ लड़का बतइलका हल न ? “नन्दिनी गायब हो गेल ह । अप्पन प्रेमी के साथ में शायद भाग गेल ह ।” .... ऊ भी 14 तारीख के साँझ से ही लापता होल ह ! आउ ओक्कर सुराग भी नयँ !
“मिस्टर चन्द्रु, थियेटर में देखल लड़की के फेर से देखला पर पहचान लेथिन ?”
“अवश्य ... अप्रतिम सुन्दरी ! ओतना असानी से भुलाय वला चेहरा नयँ ।”
त्यागु के देल फोटो के जेभी से बाहर निकालके दयाल पूछलका - “ई लड़की के देखके बताथिन !”
“एहे लड़की तो हइ !” - चन्द्रु उत्तेजित होके बोलला ।
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