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Thursday, October 13, 2011

फैसला - भाग 15


- 15 -

दयाल के पूरे शरीर में नवचैतन्य भर गेल ।
“त्यागु की बोलल हल ? नन्दिनी ऊ दिन पेन्हलक हल नीला रंग के मिडि ! हीआँ .... नीला रंग के स्टिकर ... पहिले नन्दिनी के अप्पन प्रेयसी कहके सम्बोधित कइल अविनाश करोड़पति के एकलौती बेटी के साथ शादी ठीक हो गेला के तुरत्ते बाद नन्दिनी के खाली एगो परिचित कहऽ हके !”
अविनाश एगो वकील हइ । एकान्त घर । 14 तारीख के हीआँ आल ह । नन्दिनी के साथ । आउ ... आउ ओहे समय में भवानी के देखे ल मेनका आल ।

हुआँ की होल होत एरा बारे तर्क के सहारे अनुमान लगाना दयाल लगि सम्भव हो गेल । बइठे के जगह से उठके ऊ बेडरूम जाके सूक्षमावलोकन कइलका । बाद में बाकी जगह में घूमके देखलका । घर के पिछुत्ती में अइला । देखलका । आउ ... बोलला -
“थोड़े स अपने के फोन इस्तेमाल कर रहलिये ह, सर ।”

पहिले अप्पन स्टेशन के फोन कइलका । इन्सपेक्टर के साथ चर्चा कइलका । अप्पन जनकारी में जे कुछ आल हल ऊ सब विस्तार से बतइलका । डॉग-स्क्वैड के फोन करके बाहर अइला आउ ऑटोचालक के वापस भेज देलका । पुलिस के कुत्ता आवे तक चन्द्रु आउ भवानी के देल बयान के लिखित रूप देलका । फिर बोलला ।

“मिस्टर चन्द्रु, तोहर दोस्त महा घोर कृत्य कइलक होत अइसन हमरा लगऽ हइ । हम्मर अनुमान सही हइ कि गलत ऊ थोड़हीं समय के बाद पता चल जइतइ । तूँ अप्पन दोस्त के ऑफिस में फोन करके ओकरा हीआँ बोला ल ।”

भारत ऐण्ड भारत कम्पनी के चन्द्रु फोन कइलका त मालूम पड़लइ कि ऊ अभीये बाहर चल गेल ह । चन्द्रु ओक्कर घर पर फोन कइलका त मालूम चलल कि हुआँ अभी ऊ पहुँचल ह नयँ ।

ओहे समय में अविनाश आउ ओक्कर भावी पत्नी लता हँसते-हँसते होटल में खाना खा रहला हल । .... खाके बिल चुकाके बाहर अइतहीं लता बोलल - “हम अब चलऽ ही, लेट हो गेल ।”  फेर अप्पन कार में निकल गेल ।
अविनाश अप्पन कार में अइसहीं मीनाम्बक्कम् जाके हुआँ चन्द्रु से मिलके आउ बात करके अप्पन घर आवे के फैसला करके हुआँ से निकलल ।

आधा घंटा में भारतीनगर अइला पर ऊ दूर में चन्द्रु के घर के आगे पुलिस के तीन जीप से भरल आउ हुआँ लोग के चहल-पहल देखके अकचका गेल ।

कार के रोकके निच्चे उतरके सामने के अदमी के पूछलक - “ई की हइ, हुआँ ओतना अदमी के भीड़ ?”
“ऊ घर के कुआँ में एगो लड़की के लाश हलइ सर, कुत्ता सूँघके देखके पता लगइलकइ । लाश के बाहर निकालके रखलका ह । ऊ घर वला के दोस्त कोय अविनाश हइ । ओहे ई काम कइलक ह अइसन पुलिस वला बात कर रहला ह ।”

छूरी भोंक देवल गेल जइसे अविनाश के प्रतीत होल । पसीने-पसीने हो गेल । तुरत्ते अप्पन कार में बइठल । आवल दिशा में ही कार के मोड़के तेजी से भगइलक । ... दूर में एक ठो सार्वजनिक टेलिफोन से अहल्या के फोन कइलक ।

“अहल्या, हम वकील अविनाश बोल रहलियो ह । ऊ हत्या के केस में लगऽ हइ कि हम फँस गेलूँ हँ । हमरा साथ सहयोग करे के चलते तूँहूँ पकड़इमँ, अइसन लगऽ हउ । एक घंटे के अन्दर अप्पन घर के सब के बाहर भेज दे, तूँहूँ अप्पन सिर छिपा ले । दोसर कोय गाँव चल जो । ई केस के हम रफा-दफा कर दिहउ । बाद में हम्मर समाचार देला पर तूँ आ सकऽ हँ । ... एक आउ बात । अप्पन सेबास्टियन के जरी भेज दे । कल रात के हम्मर घर पर आके हमरा से भेंट करे ल कह दे ।”

“ठीक हइ । अपने गिरफ्तार हो गेलथिन हँ, साहब जी ?”
“अभी तक तो नयँ, लेकिन हो जाम, ई तो सच हइ । फिर भी उनकर वश में हमरा कुछ करते नयँ बनत !”
रिसीवर रखके कार भगइलक, अप्पन सीनियर के घर तरफ । ओक्कर सीनियर नामी क्रिमिनल लायर (आपराधिक वकील) बदरीनाथ ।
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वकील बदरीनाथ सिर के बाल में बीचोबीच माँग निकालले हला । अविनाश के आवे समय अप्पन घर में पियानो बजा रहला हल । भयभीत अन्दर आल अविनाश के देखलका । “कम माइ सन” - कहते मुसकइला ।
उनका अविनाश अलगे बेडरूम में बोलाके ले गेल । अप्पन अपराध के स्वीकार करके जल्दी-जल्दी पनरहे मिनट में अप्पन पूरा के पूरा कथा बिना कुछ छोड़ले उनका बता देलक ।

“अविनाश ? .... अविनाश ? .... तूँ ? .... तूँ दू-दू हत्या कइलँ ?”
“येस ! येस ! येस ! एक ठो तो प्लान करके कइलूँ । दोसर आकस्मिक । अभी अचरज करे के समय नयँ, सर । अब हम की करूँ ? हम एगो करोड़पति के दमाद बने वला हकूँ । ई केस से हमरा पार लगाथिन । अपने के फीस के रूप में पाँच लाख देवे ल तैयार हिअइ ।”
“पइसा के पहिले तुरी हमरा आकर्षण होलो ह । ई केस चैलेंजिंग हउ । हम्मर जुनियर पर वकालत करना एहे पहिला ... अच्छा, हम जे कुछ कहऽ हिअउ ओक्कर अच्छा से उत्तर दे । नन्दिनी आउ तोरा बीच प्यार के कोय मैटीरियल एविडेंस हउ ?”
“कुच्छो नयँ सर, कुछ नयँ हइ ।”
“तूँ दूनहूँ के एक साथ देखे वला खाली चन्द्रु हकउ न ?”
“हाँ ।”
“तोर मारुति कार 14 तारीख के वर्कशॉप में ही हलउ न ?”
“हाँ ।”

“14 तारीख के रात के तूँ आउ कोय दोस्त के साथ दारु पार्टी में हलँ, अइसन तोरा देखावे में बनतउ ?”
“बिलकुल बनतइ ।”
“अप्पन घर के चाभी चन्द्रु के तोर हाथ में देते समय ओक्कर पत्नी के सिवा आउ कोय देखे वला नयँ हलउ न ?”
“नयँ ।”
“चाभी लेके जाके चन्द्रु के देलकउ तोर चपरासी । तूँ अप्पन चपरासी के पइसा के बल पर अप्पन वश में कर सकँ हँ ?”
“सम्भव हइ । दस रुपय्या में भी काम करे वला अदमी हकइ ।”

“ई केस खतम होवे तक अहल्या मद्रास के अन्दर तो नयँ आवे वली ? ओकरा पुलिस के हाथ में पकड़ाय के सम्भावना तो नयँ न ?”
“नयँ आवे वली । ऊ महा खिलाड़ी हइ । कइएक तुरी ऊ अइसे सिर छिपाके रहल ह ।”
“तोर दोस्त के कार के चलइते तोर दोस्त में से कोय देखलक हल तो नयँ ?”
“नयँ ।”
“तोरा कार तोर दोस्त देलको हल न । ऊ कार तोरा देवे नयँ कइलको हल, अइसन कहलवाना सम्भव हउ ?”
“सम्भव हइ ।”

“अब बहुत मुख्य प्रश्न । तोर दोस्त चन्द्रु हउ न । ऊ अप्पन पत्नी के प्रेम से ई तोर आज के योजना में कहल जइसे सुन सकऽ हइ की ?”
“कोय भी होला से सुनहीं के चाही ।”
“तूँ सेबास्टियन के बारे बतयलँ न, ऊ अप्पन काम के बिलकुल ठीक से कर सकऽ हइ कीऽ ?”
“निश्चय ।”
“तोर अंगुरी के निशान पुलिस के हाथ में तो नयँ गेलो ह न ?”
“हाथ में हमेशे दस्ताना पेन्हले हलिअइ । ओहे से निशान मिल्ले के सम्भावना बिलकुल नयँ ।”

“अविनाश, त हम ई केस जीत लेलूँ । हुआँ पुलिस तैयार खड़ी होतउ । तोरा गिरफ्तार करतउ, वारण्ट देखाके । अइसन नयँ होतउ तइयो तोरा अडयार पुलिस स्टेशन बोलाके ले जइतउ । हमरा फोन करे के हके, अइसे कहके फोन कर । अगर तोरा फोन करे के मौका नयँ देतउ त तोर माय हमरा बोलाके सूचित कर सकऽ हथुन । त बताके हम हुआँ हाजिर हो जइबउ । कल क्रमबद्ध रूप से तोरा गिरफ्तार भी कइल जइतउ त जमानत देके हम छोड़ा लेबउ । बाकी इन्तज़ाम तूँ बाद में कर सकऽ हँ ।” - बदरीनाथ अप्पन पाइप जलाते कहलका ।
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अविनाश अप्पन घर आल त अपने लगि पुलिस के इन्तज़ार करते देखलक । पहिलहीं निश्चय कइल मोताबिक खुद के निरपराध बतइलक आउ बोलल - “चन्द्रु हमरा घर के चाभी देवे नयँ कइलक हल । हम केकरो से प्यार-व्यार नयँ कइलूँ । घटना घट्टल दिन हम अप्पन दोस्त के साथ पार्टी में हलूँ ।”
ओकरा अडयार पुलिस स्टेशन लेके गेल ।
पहिलहीं सूचित कइला के मोताबिक हुआँ हाजिर होके वकील बदरीनाथ इन्सपेक्टर के सामने कानून के प्वाइंट लेके अविनाश के छोड़ाके ले गेला ।

इन्सपेक्टर के सब-इन्सपेक्टर दयाल के खुद्दे देखावल सामर्थ्य देखके एक तरफ तो अचरज होल आउ दोसर तरफ गोस्सा  ।

कोचीन से आल मेनका के पति माधव के दयाल विस्तार से बित्तल घटना बतइलका । ऊ सिर पीटके रोवे लगल ।
“अन्त में हमरा पत्नी के मुँह भी देखे ल नयँ मिल्लल सर । लावारिस लाश नियन ओकरा जला देलक न, सर ।” - रोते-रोते हलकान हो गेल माधव ।
ओकरा ढाढ़स देके मेनका के मौसी के घर पर ले जाके छोड़के दयाल बीच-बीच में ओकरो सान्त्वना के दू शब्द बोलके अइला ।

नन्दिनी के माय आउ छोटका भाय से मिलके विवरण देके कुआँ से निकालल लाश के पोस्ट-मॉर्टम के बाद उनका सौंपे के इन्तज़ाम कर देलका ।
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दोसर दिन अविनाश के गिरफ्तारी वारण्ट के मोताबिक बाकायदा गिरफ्तार करके लॉक-अप में डाल देवल गेल । दूइये घंटा में जमानत के ऑर्डर लाके बदरीनाथ ओकरा लेके गेला ।

जे कुछ घट्टल ऊ सब देखके राजाराम के घृणा पैदा हो गेल ।

“मिस्टर दयाल, हम सब आरोप लगा रहलिये ह एगो वकील के ऊपर । ओक्कर पक्ष में वकालत कर रहला ह कानून पंडित बदरीनाथ । ऊ तरफ अहल्या अप्पन बोरिया-बिस्तर के साथ भाग गेल ह । ई हत्या करे वला अविनाश हइ, ई पारिस्थितिक प्रमाण (circumstantial evidence)  के अधार पर आउ चन्द्रु के बयान के बल पर विवाद कर रहलूँ हँ । लेकिन हत्या ल इस्तेमाल कइल औजार मिल्लल नयँ । एक्कर अंगुरी के निशान कहूँ मिल्लल नयँ । एक्कर कइल दून्नूँ हत्या के कोय भी चश्मदीद गवाह नयँ । ई केस रुक जात कि ई छूट जात ?”

“देखल जाय । एक्कर विरुद्ध आउ कोय सबूत ढूँढ़े के प्रयत्न कइल जाय । अभी तो चन्द्रु मुख्य गवाह हका ।” - दयाल बोलला ।
शेषगिरि कार में अप्पन भावी दमाद के खोजते दुखी होके दौड़के अइला ।
“की अविनाश, तोहरा गिरफ्तार करके जमानत पर छोड़ देलका, ई सुनके दौड़के अइलूँ ।”
“बाबू जी, हमरा आउ ई सब-इन्सपेक्टर दयाल के बीच में पहिलहीं से नयँ पट्टऽ हलइ । ताक में रहके इन्तज़ार कर रहल ई सब-इन्सपेक्टर हमरा ई हत्या के केस में फँसा देलक । अइसन कुछ नयँ हइ । ई केस के कोय अधार नयँ । जरूरत पड़ला पर अपने देखथिन” - निश्चिन्त होके अविनाश बोलल ।
अप्पन माय के सामने भी ओहे (पुरनका गढ़ल) कहानी सुनइलक
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सुनवाई शुरू होवे के एक दिन पहिले वला दिन । दूपहर के तीन बजे के समय । अविनाश घर जाके ओकरा से मिल्लल । जेतना तरह के दुष्ट विद्या होवऽ हइ ऊ सब के पचावल ई अदमी सेबास्टियन । ओकरा अविनाश कुछ बात बतइलक । जेतना पइसा माँगलक ओतना पइसा उँड़ेल देलक । “ठीक से बतावल बात के करके खतम कर ।” - कहके अविनाश अप्पन पोलरॉइड कैमरा ओक्कर हाथ में दे देलक ।

रात के सात बजे के समय । अप्पन स्कूटर पर ऑफिस से घर पर अइला चन्द्रु । घर पर ताला लग्गल देखके चौंक गेला । “ई समय में भवानी काहाँ चल गेल ?” - उनका अचरज होल ।

अचरज से खड़ा चन्द्रु के मुख के सामने चाभी के गुच्छा हिलइते देखाके हँस रहल हल सेबास्टियन । ‘चलथिन सर । अन्दर चलके बात कइल जाय ।’ घबराके अन्दर चलला चन्द्रु ।
“तूँ केऽ ? हम्मर घरवली काहाँ हके ?”
“बतावऽ हिअइ । कल अविनाश साहब के सुनवाई के पहिला दिन । अभियोग पक्ष के गवाह अपने हथिन । हुआँ अभी जइसे कहऽ हिअइ ओइसे कहथिन, मतलब घर में ताला लगाके चाभी अपने साथ लेके मुम्बई गेलूँ हल । एरा अविनाश के हाथ में नयँ सौंपलूँ हल । पुलिस सब-इन्सपेक्टर दयाल हमरा डरइलका हल । बाद में अविनाश साहब के चाभी देलूँ हल, अइसन हमरा से बयान लेवाके हम्मर सही करवाके चल गेला । अगर हम अइसे नयँ लिखके देतूँ हँल त ‘तोरा हम ई केस में फँसा देवउ, अइसे डरइला पर हम स्वीकृति दे देलूँ ।’ - मालूम पड़ गेलइ हम्मर कहल ?”

“ए चण्डाल, बिलकुल झूठ जइसन-तइसन जोड़के हमरा कहे ल बता रहलँ हँ कीऽ ?”
“हाँ, नयँ त तोहर घरवली के देह पर लाल-लाल निशान पड़ जात न । अभी तो ऊ हम्मर कस्टडी में हका न ... अपने के ऐक्सिडेंट हो गेले ह, अइसे कहके उनका पुकरलिअइ । डर के मारे दौड़के आ गेला । उनकर फोटो देखऽ ह ?”

सेबास्टियन भवानी के एक ठो खम्भा में बाँधके ओक्कर फोटो ले लेलक हल । ऊ फोटो चन्द्रु के देखइलक । अविनाश के देल कैमरा से सेबास्टियन ऊ फोटो खींचलक हल । फोटो वापस ले लेलक सेबास्टियन ।

“त हम अब चलऽ हिअइ । कल कोर्ट में जइसे गवाही देथिन, ओकरे मोताबिक अपने के घर वली के ऊपर अत्याचार करके ओकरा मौत देवे के चाही, कि अइसहीं मौत देवे के चाही, चाहे उनका बिना कुछ कइले अपने के सौंपे के चाही, ई हम फैसला करबइ । अच्छा तरह से सोचके निश्चय करथिन ।” - एतना कहके ऊ चल गेल ।
चन्द्रु ई तरह से खड़ा रह गेला जइसे पिशाच से मार खइलका ह ।
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दोसरे दिन न्यायालय में अपराधी स्थान में अविनाश खड़ा हल । चश्मा पेन्हले विख्यात न्यायाधीश । उनकर सामने प्लास्टिक ढक्कन से ढँक्कल लोटा में पानी ।
पब्लिक प्रोज़ेक्युटर (लोक अभियोजक) आरम्भ में ई मुकदमा के बारे परिचय देलका । बाद में डिफ़ेन्स (प्रतिपक्ष) के तरफ से बदरीनाथ उठला ।

“हम्मर मुवक्किल एक वकील हका । एम.ए.बी.एल. कइले हका । एक ठो बड़गर कम्पनी में कानूनी सलाहकार । एक भद्र व्यक्ति । उनका पर लगावल सब अभियोग के हम निराकरण कर देवइ । जइसे चाही ओइसे जोड़के ई केस में हम्मर मुवक्किल के फँसा देवल गेले हे । एक्कर पीछे सब-इन्सपेक्टर दयाल आउ हम्मर मुवक्किल के बीच रहल पुराना विरोध । एक तुरी सब-इन्सपेक्टर दयाल के बाइक के डिक्की हम्मर मुवक्किल अविनाश के कार से टूट गेल । ई आकस्मिक घटना । तब ऊ दूनहूँ के बीच में गरमागरमी हो गेल । हम्मर मुवक्किल एक वकील हका, ई कारण से थोड़े स दुरहंकार से उनका नराज़ कर देलका सब-इन्सपेक्टर । अन्त में सब-इन्सपेक्टर धमकी देले बोलला – ‘उचित समय में तोरा से बदला नयँ लेलिअउ त कहिहँ’ - एहे मन में गुर्रह रखले वास्तव में अपराधी के रूप में इनका पकड़के देखावे के चाही, अइसन प्रयत्न कइलका ह !”

बाद में बहस चालू होल ।

पहिला गवाह के रूप में चन्द्रु कटघड़ा में खड़ा होला । सामने खड़ा अविनाश के अइसे देखलका मानूँ ऊ ओकरा चबा जइता । बाद में ऊ लार घोंट लेलका ।

पब्लिक प्रोज़ेक्युटर उनका साम्प्रदायिक रूप से कुछ प्रश्न करके बाद में पूछलका - “मिस्टर चन्द्रु, मुम्बई जायके पहिले अप्पन घर के चाभी केक्कर हाथ में देके गेलथिन हँल ?”

चन्द्रु पल भर ल पीछे हट गेला ।
“केकरो हाथ में देलूँ नयँ । अप्पन घर के चाभी हमहीं साथ में लेके गेलूँ हँल ।”
दयाल चौंक गेला । अविनाश हँस पड़ल ।
“ठीक से सोचके बोलथिन सर । पुलिस के अप्पन देल बयान में अप्पन घर के चाभी कटघड़ा में खड़ा अविनाश के हाथ में देवे के बारे जनकारी देके अप्पन सही कइलथिन हल ।”
“ई तरह के बयान लिखके देलूँ नयँ, मतलब हमरो ई केस में फँसा देवे ल सब-इन्सपेक्टर धमकी देलका हल, सर । ओहे से लिखके दे देलिअइ !”
कोर्ट स्तब्ध हो गेल !
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सब-इन्सपेक्टर अप्पन घर में छत पर नज़र डालले बइठल हला ।
रिपोर्टर बालाजी उनका दिलासा देलका ।
“आज कानूनी काम करे वला के लक्षण अइसने हइ सर । ओहे हत्या कइलक ह, ई अच्छा से मालूम हइ । लेकिन आवल फैसला यथेष्ट प्रमाण के नयँ रहला से केस के रद्द कर देल गेल । अपने के सस्पेंड (निलम्बित) काहे नयँ कइल जाय, एरा बारे अपने सफाई देथिन, अइसन ‘कारण बताओ नोटिस’ देलका ह । केतना कष्ट अपने के होले ह ।  अन्त में ….”

दयाल गोस्सा से बोलला -
“बालाजी, ऊ कानून पंडित । ओहे एकरा असानी से चढ़के पार कर गेल । खुद निकल गेलूँ, अइसन सोच रहल ह । लेकिन ऊ कहूँ एक बरियार अधार से फिसलल होत । एरा हम बिना पता लगइले छोड़म नयँ ।”
“फेर एहे केस । ओकरा गिरफ्तार करके ओकरा दण्ड मिल्ले अइसन हालत बना देम कहे में हमरा तकलीफ होव हइ, सर । कल ओक्कर बियाह हइ । करोड़पति शेषगिरि के दमाद बन्ने वला हइ । ओकरा हिलावल नयँ जा सकऽ हइ !” - बालाजी के ई कहनी पर दयाल आवेश में आके बालाजी के मुँह देखलका
हो जइतइ बालाजी, हो जइतइ” - दयाल बोलला ।
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दोसरे दिन सुबह में ऊ बड़का गो मंगल कार्यालय । कार के भीड़ । अन्दर में बहुत सारा कुर्सी भरल - विवाह मण्डप में दमाद के रूप में अविनाश । साथ में लता । पुरोहित जी के  मंगलसूत्र हाथ में उठाते बखत --
आँधी नियर कहीं से दौड़ते आल ऊ अचानक अविनाश के गर्दन में पट्टी से पकड़के अप्पन कमर से बाहर निकालके दू बोतल पेट्रोल ओकरा पर उझल देलक । ओतना सब एक पल में घट गेल ।
“कोय हम्मर पास नयँ आवे” - चिल्लाके ऊ बोलल - “कुत्ते, तोरा बियाह करे के हउ ? एक्कर लायक भी हँ तूँ ? हत्यारा, कानून पढ़के तूँ जइसे मन करे ओइसे एकरा मोड़ रहलँ हँ, अनावश्यक रूप से एक स्त्री के विधवा होवे के नयँ चाही, ओहे से पहिलहीं तोरा ई दण्ड दे रहलियो ह । हम्मर पत्नी के जान मारला के साथ-साथ सुमंगली स्त्री के मंगलसूत्र तोड़के ओकरा वेश्या के रूप में देखाके लावारिस लाश नियर जलवा देलँ, चण्डाल कहीं के ! जे अग्नि के सामने तूँ विवाह करे के मनसूबा बाँध रहलँ हँ, ओहे अग्नि तोरा निंगल जाव !!”
पागल नियर चिल्लाके माधव अविनाश के विवाह मण्डप के सामने लहलहइते प्रज्वलित घी वला अग्निकुंड में ढकेल देलक । अग्नि ओकरा झट से जकड़ लेलक ।

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