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“पीये ल थोड़े स पानी देथिन ?”
अविनाश पानी लावे ल रसोई घर में गेल । घर के सहज इच्छा से बइठल जगह से उठके मेनका टी.वी. के पास जाके एक्कर ऊपर धैल फूलदानी के देखके बड़ी खुश होल । बगले में बेडरूम (सुत्ते के भित्तर) ।
एक्कर दरवाजा खुल्लल हइ कि नयँ ई संशय में हैंडिल पकड़के अन्दर तरफ ढकेललक त ...
जमीन पर लाश नियर फेंकल औरत के देखके जोर से चीख पड़ल । हाथ में एक लोटा पानी लेले आल अविनाश ई घटना देखके काँपे लगल ।
“ई ... ई की हइ सर ?” - मेनका अप्पन सुक्खल गला से पूछलक ।
कीऽ जवाब देल जाय ई सूझिये नयँ रहल हल अविनाश के । ऊ संकट में पड़ गेल हल ।
“ई ह...ह...हत्या हइ कीऽ ?”
“नयँ ...ई ... आउ... ई ...आउ” - जीभ जइसे कुछ कहे ल ढूँढ़ रहल हल ।
“कहथिन सर । अपने केऽ ? ई केऽ ? एकरा कीऽ कइलथिन हँ ?”
हाथ पर के पानी के लोटा तिपाय पर रखलक अविनाश । ओक्कर दूनहूँ हाथ पैंट के जेभी में घुसके थोड़हीं देर पहिले कर चुकल आउ विश्राम कर रहल नायलन रस्सी के सहला के देखलक ।
ई औरत के आउ कोय भी तरह से वश में करे ल सम्भव नयँ । दस लाश होला पर भी ऊ कुआँ में डालल जा सकऽ हइ ... हमरा आउ कोय चारा ही नयँ ... एक्कर भी समाधि बनइले बिना आउ कोय रस्ता नयँ ।
मुँह में कोय प्रकार के भावना प्रकट कइले बिना धीरे-धीरे ओकरा तरफ बढ़ल ।
“हम पूछते जा रहलूँ हँ । एक्कर जवाब देले बिना ... ?”
अविनाश के जेभी से रस्सी निकाल के ओक्कर गर्दन में डाले के प्रयत्न करे बखत ऊ अप्पन ऊपर आक्रमण पर नज़र डाललहीं मेनका फट से ओरा से पीछे सरकके जोर से चिक्खे लगल ।
“आवऽ ! दौड़के आवऽ ! हत्या ! बचावऽ !”
“तोर चीख केकरो कान में पड़े वला नयँ हउ, समझलँ मूरख लड़की !”
ऊ उछलके बगल में हो गेल । ऊ दौड़के भागल दरवाजा तरफ । ऊ अगर बचके निकल भागल त हम्मर सब काम मट्टी में मिल जात, ई सोचके ओकरा पीछा कइलक ...
एतने में मेनका सिटकिनी खोलके बाहर निकलके भागे लगल । घर में अभी तक अहाता बन्नल नयँ हल । तब तक के लिए पत्थर के थुम्भा नियर खड़ा करके कँटीला तार के एरा चारो तरफ लगाके काठ के दरवाजा बना देवल गेल हल । दरवाजा के सिटकिनी खोलके कच्चा रस्ता पर गिरे-पड़े पर बिना ध्यान देले दौड़ पड़ल । ऊ जल्दी में गेट से ऊ पार बढ़ते बखत हवा के गति में फटाफट भागे लगल ।
शिकारी कुत्ता जइसे राक्षस गति से ओक्कर अविनाश पीछा कइलक । दूर में देखाय दे रहल हल भारतीनगर । मेनका भारतीनगर तरफ दौड़के भागल । “हत्या, हत्या” चिल्लइते भागला पर भी ...
अविनाश के पैर लगातार ओक्कर आ रहल हल । आगे दुइये मिनट में ओक्कर पास पहुँच गेल । अगलहीं पल में हाथ फैलके ओक्कर लम्बा जुरवे पकड़ लेलक । अचानक थम गेल जइसे मेनका हाँफते-हाँफते ओकरा से छुटकारा पावे ल संघर्ष करे लगल ।
लेकिन ऊ नायलन के रस्सी ओक्कर गर्दन में फँसाके बेवकूफी से कस देलक आउ पागल नियन काम में लग गेल । अप्पन दाँत कटकटइते रस्सी के एद्धिर-ओद्धिर खिंच्चे लगल ।
हम काहे ल ई बिन काम के काम में दखल देउँ, ई तरह सोचके चन्द्रमा आकाश में छाल बादल के एक टुकड़ा के पीछे छिप गेल ।
मेनका मौत के आलिंगन कर रहल हल ।
जेतना दूर तक नज़र जा हल, दूर-दूर तक घुप्प अन्हेरा हल । ठंढा हावा सायँ-सायँ करके बह रहल हल ... दू-तीन पल तक लाश के पड़ल रहला पर झट कुछ निश्चय कइलक अविनाश ।
मेनका के देह के पीठ आउ पैर के बीच उठाके तेजी से चन्द्रु के घर तरफ बढ़ल । ड्योढ़ी में खड़ी अम्बासडर कार के पिछला सीट पर डाल देलक । ओक्कर कन्धा पर झूल रहल बैग उठाके घर में आल ।
“छी, एक हत्या के छिपावे लगि आउ एक ठो हत्या करे पड़ल न ! ई अभागिन देखके सब कुछ बर्बाद कर देलक न । .... अगर ऊ नन्दिनी के नयँ देखत हल त ... ओरा ओक्कर मौसी के घर पर छोड़ देवे ल कहलूँ हल न ... एक्कर लाश के कुआँ में डालना ठीक नयँ होत । ई घर में नन्दिनी के होवे के बात केकरो मालूम नयँ । लेकिन ई लड़की अप्पन मौसी के अप्पन भेंट करे वला के पूरा पता नयँ भी बतइलक होत तइयो भवानी के मिल्ले ल हम जा रहलियो ह, ई बात आउ केकरो बतइलक होत । मायावरम् में अप्पन पति के मद्रास में अप्पन सहेली भवानी से भेंट करे के हइ, ई बताके आल होत । ओहे से ई लाश के दोसर तरह से खपावे के चाही ... बहुत चलाकी से ई काम कइसे कइल जाय ? कइसे ?”
अविनाश अप्पन वकीली दिमाग के इस्तेमाल करके पाँचे मिनट में एक ठो योजना के रूप देलक ।
एकरा कार्य रूप देवे के पहिले थोड़े बड़गर सन मेनका के बैग के जाँचके देखलक । ओकरा अन्दर एक ठो साड़ी, एक जैकेट हलइ । छोट्टे स मेकअप सेट । छोट्टे गो बटुआ (मनी पर्स) । ओरा में दू सो रुपय्या खुदड़ा । वजन देखल छोट्टे गो टिकट । एक्कर साथ-साथ अप्पन मायावरम् के पता एक ठो छोट्टे गो कागज में लिखके रखले हल । एक ठो पेन, जेनरल नॉलेज के एक ठो पुस्तक । एरा में ‘मेनका’ अइसन हस्ताक्षर । रूमाल पर ‘एम’ ई कढ़ाई कइल अक्षर । बस एतने ।
पता लिक्खल कागज के अविनाश उठा लेलक । रूमाल, पुस्तक - ई तीनो चीज मेनका के पहचान के सबूत ।
अप्पन शर्ट के जेभी से एक ठो कागज निकाललक । ओरा से अप्पन लिखावट बदलके एक ठो पता लिखलक - ‘एल. प्रमिला, c/o श्रीमती अहल्या, 184 कृष्णपिल्ले रोड, सैदापेट, मद्रास’ ।
लिक्खल चीट के बैग में डालके ज़िप के लगाते समय साड़ी-ब्लाउज में धोबी के कोय निशान तो नयँ हके एक्कर जाँच कर लेलक । अइसन कुछ नयँ मिलल त ज़िप लगा देलक ।
घर के चाभी के झब्बा के उठाके सामने के पोस्ट बॉक्स के ताला खोललक । ओकरा अन्दर एक ठो अन्तर्देशीय पत्र हल । एरा उठाके आके खोलके देखलक । ई मेनका के नाम लिक्खल पत्र ...
आगे के काम के रूप में नन्दिनी के लाश के उठाके जाके पीछे के कुआँ में डाल देलक । मेनका के चिट्ठी, पुस्तक, अन्तर्देशीय पत्र, नायलन रस्सी आदि के एक-एक करके सिगरेट लाइटर के लौ में जलाके बानी के कुआँ में डाल देलक । नन्दिनी के बैग के जाँच कइलक । ओकरा में नन्दिनी के पहचान सूचित करे वला चिन्हा अथवा चीज नयँ हल ।
ओक्कर बैग के भी कुआँ में फेंक देलक । नन्दिनी अप्पन पसन्द के जे हील्स चप्पल पहन के आल ओकरो कुआँ में डालके चपड़ा से बालू उठा-उठाके कुआँ में डाललक । ई तरह से कुआँ के अन्दर फेंकल वस्तु के ऊपर बालू डालला के बाद टॉर्च जलाके देखके मट्टी के ढेर के सरिया देलक ।
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