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Thursday, October 13, 2011

फैसला - भाग 5


- 5 -

अप्पन पूरा ताकत लगाके अविनाश के ढकेलके नन्दिनी ओकरा से छुटकारा पाके भागला पर भी फेर ओक्कर हाथ में पकड़ा गेल - ओहे सुत्ते के भित्तर में
रस्सी फेर ओक्कर गर्दन के कस लेलक; आउ भी जोर से डेढ़ मिनट तक संघर्ष कइला के बाद जीभ बाहर निकल गेल, आँख निकल गेल; हाथ झुक गेल ... बाद में बिना सहारा के ओक्कर देह जमीन पर ढब से गिर गेल
अविनाश उठके उच्छ्वास लेलक
थकके सोफा पर बइठके मुँह से साँस लेवे लगल चौड़ा खुल्लल आँख के साथ निश्चल पड़ल नन्दिनी के कुछ पल तक एक टक देखते रहल

सॉरी माइ डियर ! हत्या नयँ हउ तोर प्रियतम के भावी जीवन अनन्दमय बनावे लगि तोर कइल त्याग हउ दैट्स ऑल ... अब तो तोरा डिस्पोज़ करे के चाही ... फिर हीआँ देखाय देवे लायक सब निशान के मेटा देवे के चाही बहुत काम हउ
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भारतीनगर में रात के साढ़े सात बज गेल कि सब घर में शान्ति छा जा हइ बाहर कोय नयँ आवऽ हइ सब दोकान आठ बजे बन्द हो जा हइ
लोग के बिना आवा-जाही वला भारतीनगर में खुद के वांछित घर के पता पुच्छे एगो अच्छा अदमी के ढूँढ़ लेलक
लॉटरी के दोकान के सामने के भाग में बेंच के ऊपर सुत्तल एगो अदमी जगले हके, ओक्कर मुँह में बीड़ी के अगला हिस्सा में धौंकनी से जलते आग जइसे चमकते देखाय देवे से पता चलल
ओकरा पास जाके बोलल - “एक्सक्यूज़ मी

ऊठके बइठ गेला पर ओक्कर मुँह से बीड़ी के दुर्गन्ध तेज़ी से ओक्कर नाक में घुस गेल
हमरा से की काम हलो ?”
हमरा पता पर जाय के हलइ; भारतीनगर के एक्सटेंसन कउन रस्ता से जाय के चाही ?”
एक्सटेंसन ? अइसन एक्के ठो हइ ?”
बिलकुल नाया बनले ओहे से अप्पन सहेली के देखे अइलूँ हँ ओक्कर पति के नाम चन्द्रु हइ सरकारी दफ्तर में उनकर काम हइ उनकर घर अकेल्ले हकइ, अइसन पत्र में बतइलका हल
अच्छऽ , अच्छऽ ... नाया नाया घर बन्नल ? उनखा कोय बाल-बच्चा नयँ हइ, हइ ?”
हाँ, हाँ, ओहे घर
थोड़े दूर आउ पैदल जा हीआँ से सीधा  जाके बायें मुड़के फेर सीधे चलते-चलते एक ठो कच्चा रस्ता मिलतो एरा पकड़के सीधे गेला पर उनखर घर पासे में मिलतो
बहुत बहुत धन्यवाद !”

ओक्कर बतावल चिन्हा वला रस्ता से मेनका आगे बढ़ल

की कइल जाय, कइसे कइल जाय, एरा बारे अविनाश पहिलहीं निश्चित कइलक हल घर के पीछे बेकार पड़ल कुआँ के अन्दर नन्दिनी के लाश के फेंक देवे के चाही ओक्कर बैग, चप्पल, नायलन रस्सी सबके ओरा में डालके पासे के मट्टी के ढेर से मट्टी डालके झाँप देवे के चाही

घर में चपड़ा हके, अविनाश देख लेलक हल बालू के ढेर से एक फुट तक के बालू के उठाके कुआँ में डाल देवे के चाही फेर बालू लेवे के चिन्हा मिल्ले नयँ, एरा ढेर के सरिया देवे के चाही चपड़ा के साफ करके घर के, ओकरो में खास करके सुत्ते वला भित्तर के अच्छा से जाँच करके देख लेवे के चाही कोय भी सुराग नयँ मिल्ले, एरा पर ध्यान देके बाद में घर में ताला लगाके निकल जाय के चाही

नन्दिनी के हम प्यार करऽ हलूँ, एरा बारे केकरो कुछ मालूम नयँ भी केकरो बात नयँ बतइलक ओकरा साथ प्यार बढ़ावे के कोय भी बाहरी सबूत नयँ हमरा साथ ओकरा अइते कोय भी देखलक नयँ ... मतलब कोय भी चिन्ता के जगह नयँ रहल, सब कुछ असानी से प्लान के मोताबिक हो जात

घर के पीछे तरफ जाय के रस्ता में एक ठो कपबोर्ड पर अविनाश के नज़र पड़ल हल जेकरा में धैल चपड़ा उठइलक घर के पिछला दरवाजा खोललक सुत्ते के भित्तर में आल नीचे झुकके नन्दिनी के उठावे बखत घर के कॉलिंग बेल (घंटी) के अवाज़ सुनाय देलक !

अविनाश तो ठक रह गेल दिल के धड़कन जोर हो गेल , एरा पर ध्यान गेला पर कुछ देर छाती के दबा के रखलक

आवे वला केऽ हो सकऽ हके ? ..... शरीर पसीना-पसीना हो गेल जीभ सूख गेल फेर से घंटी के अवाज़ !

अविनाश लार घोंट गेल मन ही मन बोलल
 “घबराय के नयँ मूरख चन्द्रु से भेंट करे कोय अइलो होत ओरा साथ अच्छा से बात करके छुटकारा पा जो उनखा कइसहूँ वापस भेज

सुत्ते वला भित्तर के दरवाजा बन्द करके अविनाश हॉल में आल जब तक दरवाजा तक पहुँचत हल कि तेसरा तुरी घंटी के अवाज़ होल दरवाजा के पास जाके माया नेत्र (मैजिक आइ ) में से देखलक
एगो नवयुवती केऽ हके ? बखत हीआँ काहे आल ?

केऽ हकऽ ?” - बिना दरवाज़ा खोलले जोर से पूछलक अविनाश
दरवाज़ा खोलथिन सर ! हम भवानी के सहेली मेनका हकिअइ

डरते-डरते दरवाज़ा खोललक
हैलो सर !” - कहके मेनका मुसकइला, “अपने के घर के पता लगाके आवे में की की हो गेलइ सर” - कहते सहज रूप से मेनका अन्दर आल, “भवानी काहाँ हका ? देखाय नयँ दे हका
घर पर नयँ हका
अपने मिस्टर चन्द्रु हथिन ?”
नयँ, हम चन्द्रु के दोस्त
एक्सक्यूज़ मी - चन्द्रु जी के ही घर हइ ?”
हाँ, लेकिन मियाँ-बीबी लंडन गेला घर के चाभी हमरा पले देके गेला हमरा फुरसत हलइ, ओहे से हीआँ अइलिअइ हम उनखर पारिवारिक दोस्त
हे भगवान” - कहते मेनका कुर्सी पर बइठ गेल
उठके जा सकऽ हके, सोचके अविनाश आशा में चुप रह गेल
हम भवानी के चिट्ठी लिखलिये हल
कब ?”
कल लिखलिये हल अब तक पहुँच गेले होत
कल साँझ के चल गेला

हम भवानी के बेस्ट फ्रेंड हम्मर गाँव मायावरम् सुबह-सुबह हीआँ अइलिअइ अप्पन मौसी के हीआँ ठहरलिये बैंक के परीक्षा लगि बइठलिये साँझ के मौसी के घर में बताके अइलिये ,’हम मीनाम्बक्कम् एगो सहेली के घर जा रहलियो रात में हुआँ ठहरके सुबह में अप्पन गाँव निकल जइबउ लेकिन रस्तवे में ऑटो खराब होके रुक गेलइ आधा घंटा पैदल चलके अइलिये ... छी, आज के दिन अच्छा नयँ !” - मेनका बोलल

अच्छऽ, अच्छऽ”, अविनाश बोलल आउ ओरा तरफ तीक्ष्ण दृष्टि से देखलक अब अपने मौसी के घर जा रहलथिन हँ ?”
मौसी के घर माम्बल में हइ बखत ऑटो मिलतइ ? हमरा मेन रोड जाय में आधा घंटा लगतइ ... बाहर खड़ी कार अपने के हइ, सर ?”
हाँ
अपने के नाम सर ?”
अविनाश
किरपा करके हमरा माम्बल में छोड़ सकऽ हथिन ?”

अविनाश के देह मानूँ जले लगल काहाँ से आल बला ? घर मेनन्दिनी के लाश अइसहीं छोड़के औरत के माम्बल ले चलूँ ? लेकिन आउ कोय चारा भी तो नयँ एक्कर बात नयँ मानलूँ बोलत, हीएँ एक रूम में सोके सुबह उठके जाम ओहे से ओकरा अपेक्षा एहे ठीक हके
ठीक हको” - अविनाश कहलक आल गोस्सा के पी गेल

ओक्कर गर्दन में मंगलसूत्र पर अचानक नज़र पड़ल
अपने के घर वला की करऽ हथिन ?”- अविनाश पूछलक
मेडिकल रेप्रज़ेन्टटिव हथिन
मेनका साड़ी के पल्लू से हावा कर रहल हल जरी पंखा चला देथिन पैदल अइते अइते थक गेलूँ हँ दस मिनट जरी अराम कर लेहूँ
तिरस्कार से पंखा चला देलक

घर तो बहुत अच्छा हइ, लेकिन बहुत दूर अभी अपने भी हीआँ नयँ रहथिन हल तो हम बड़गो तकलीफ में फँस जइतूँ हँल
अप्पन मौसी के घर के पता देके अइलथिन हँ ?”
नयँ ...’मीनाम्बक्कम् में एगो सहेली के घर पर रात बिताके सुबह गाँव चल जाम’, अइसे बतइलिये बात काहे पूछ रहलथिन हँ ?”
अइसहीं पूछ लेलिअइ चल्लल जाय ?”

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