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Thursday, October 13, 2011

फैसला - भाग 7


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सैदापेट में कृष्णपिल्ले रोड बहुत तंग जगह पर छिप्पल जइसन हल । ई इक ठो गन्दा-सन्दा गल्ली के हिस्सा हल । कइएक कतार में बन्नल झोपड़ी सब । बिजली के खम्भा में बन्हल जानवर । जन्ने-तन्ने गड्ढा में नाली वला पानी । 
रोड के अन्त में कार के रोकके कार से अविनाश के उतरे बखत एक बज गेल हल । रोड बिलकुल शान्त हल । एक घर के दरवाज़ा के पास डालल सुतरी के खटिया पर सुत्तल एगो अदमी अप्पन करवट बदललक । एगो कुत्ता ‘भौं’ बोललक ।

सिगरेट सुलगाके नाक के बन्द कइले धीरे-धीरे चलके अविनाश १८४ नम्बर के घर के सामने खड़ा होके देखलक । घर के ऊपर ऐंटेना हल । फोन वायर अन्दर गेल हल । परिचित ढंग से दरवाज़ा पर दस्तक देलक ।
“केऽ हकऽ ?” - औरत के कर्कश अवाज पूछलक । कुछ देर बाद घरके बत्ती जलल ।

दरवाज़ा खुल्ले के अवाज । दरवाज़ा के एक छोर पर बत्ती के एक लौ देखाय देलक । बाहर हुलकके देखला पर ऊ औरत ओरा देखके अकचका गेल ।

“ओ .. वकील साहब ! आथिन, आथिन । की कारण हइ अइसन टाइम में आवे के ?”

ओहे अहल्या हल । उमर चालीस । कम्पनी के सलाहकार के रूप में नियुक्त होवे के पहिले प्रैक्टिस करते बखत ऊ औरत लगि एहे वकील हल । दस लड़की के लेके वेश्यावृत्ति चला रहल हल । कोय भी पकड़ा गेला पर ओहे सब के अविनाश जामिन बना दे हल । एक तुरी मुम्बई में एक लड़की के बेचे के अपराध में पकड़ा गेला पर ई अहल्या के अविनाश से बचाव होल हल । ओहे से ओकरा ई वकील साहब के देखाय देना गौरव के बात हल । कोय भी समय आवे, कृतज्ञता के चुकावे ल इन्तज़ार कर रहल हल ।

तब खुद छुटकारा पावे ल ओक्कर फीस के रूप में दस हजार देलक हल । “साहब जी, हम्मर हाथ में देवे ल आउ पइसा चाही । अपने के ई मसोमात से कभी भी कुच्छो काम आवे त अइसन हालत में बिना कुछ सोचले-विचारले हमरा पूछ सकऽ हथिन ।”

“बइठ जाथिन साहब जी” - कहके कुर्सी डाललक त अविनाश बइठ गेल । पानी लइला पर पीलक ।
“ए ! कोय देखाय नयँ देहइ ?”
“अब सब कोय व्यस्त हो गेला ह त बहुत डिमांड हइ । बरसात देखथिन ... अपने नयँ अइलथिन हँ, अइसन लगऽ हइ । आवे के कारण कीऽ, कहथिन ।” - जमीन पर बइठके पूछलक ।
“अहल्या, तोरा से हमरा एक ठो उपकार के जरूरत हउ ।”
“अपने आज्ञा देथिन, एकरे प्रतीक्षा हइ ।”

“हम्मर शादी पक्का हो गेल ह । अइसन समय में हम एक ठो तरद्दुद में फँस गेलूँ हँ । कीऽ, केद्धिर ई सब विवरण मत पूछ । साफ-साफ कहऽ हिअउ । सुन ले । कल सुबह प्रमिला नाम के लड़की के लाश पुलिस के हाथ में पड़तउ । ओक्कर बैग में तोर घर के पता हउ । ओक्कर अधार पर पुलिस हीआँ पहुँच जइतउ । ऊ पुलिस वला के कहे के चाही - ‘प्रमिला एगो अनाथ लड़की । एक सप्ताग पहिले हम्मर पास आल हल । ओकरो अप्पन ग्रुप में शामिल कर लेलूँ हँल । कल साँझ के एक ग्राहक के साथ चल गेल हल’ । ओक्कर पास जे कुछ गहना-गुरिया आउ समान हल, सब कुछ कोय नष्ट कर देलक । ई तरह से कहला पर पुलिस वला के विश्वास हो जात । एरा बारे उचित तरीका से तूँ बतिया सकऽ हँ । हम तोरा सब कुछ बता दिहउ । पुलिस तोरा बोलाके जाके पहचान बतावे कगहतउ । तूँ लाश देखके एहे प्रमिला हइ, अइसन बतइहँ । पुलिस तोर हाथ में लाश सौंप देतउ । एकरा पाके जला देवे के चाही । ई काम पूरा कइला पर अहल्या, तोरा हम दस हजार रुपय्या देवउ ।”

“जाथिन साहब जी । दस बरस से जादे ल अन्दर डाल देवल जात हल, अगर अपने नयँ रहथिन हल त । अपने हमरा बचइलथिन हल ... अपने के समय लगि हमरा मौका नयँ मिलत कीऽ, ई इन्तज़ार में हलूँ । अपने के पइसा हमरा नयँ चाही । की बतिआय के चाही, ई बता देथिन; अपने जइसे कहथिन, ओइसहीं कर देवइ ।”

अविनाश चैन के साँस लेलक आउ अराम से सब कुछ खुलासा-खुलासा ओरा बता देलक ।

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सुबह के छो बजे के समय । लोग के तुरत्ते उट्ठे के जरूरत नयँ, ई उदारता से प्रभात के सूर्य समुद्र के किनारा के पार करके बिना ऊपर चढ़ल जइसे ही स्थिर हला ।

दुब्बर-पातर अदमी लमछड़ हलइ । गला में सोना के एगो सिकरी पेन्हले हलइ । जबड़ा वला भाग में एक ठो गड्ढा । चेहरा पे पुलिस के खुद्दे आवे वला चिड़चिड़ापन अभीयो उनका पर आक्रमण नयँ कइलक हल - .... अइसन स्टैण्डर्ड वर्णन के पात्र सब-इन्स्पेक्टर दयाल पुलिस स्टेशन में नाइट ड्यूटी कइला से थकके चूर होके अप्पन अंगुरी तोड़ रहला हल ।
चपरासी के लावल कॉफी के लोटा में उठाके एक्कर गरमी के हथेली पर फैलइते गुटुर-गुटुर पीके समाप्त कइला पर टेलिफोन के अवाज सुनाय देलक ।

“हैलो, पुलिस स्टेशन ।”
“सर, बेसेण्ट नगर के समुद्री तट पर एगो लड़की के लाश पड़ल हइ । जल्दी आथिन ।”
“अपने केऽ ?”
“छोड़थिन सर, काहे ल बेकार के तरद्दुद ।”

दयाल के ओरा गरियावे लगि मुँह खोले तक ओद्धिर शान्ति छा गेल ।
“छी ! सुबहे-सुबहे उठला पर लाश के गराहक !”
हेड ऑफिस में इन्सपेक्टर राजाराम के फोन कइलका दयाल । उनका समाचार पहुँचइलका । जीप तइयार करके चार सिपाही के साथ तइयार होवे ल कहलका इन्सपेक्टर । दस मिनट में आवे के बारे भी बतइलका ... बतावल मोताबिक अइला । जीप में निकलला ।

“समाचार देवे वला केऽ हका, ई पूछलऽ ?”
“पूछलिये हल सर । ई सब जरूरत नयँ कहके रिसीवर रख देलकइ । डरपोक ।”
“पुलिस के नाम लेतहीं लोग के एक तरह से भय लग जा हइ ।”
“कीऽ कहऽ हथिन सर ?”
“ओहे जी ... भय ।”
“ई डर सर ।”
“हमहूँ एहे कहलिअइ ! आवे के हड़बड़ी में पानदान लावे ल भूल गेलूँ ।”

समुद्री तट पर अइते गेला । हुआँ छोट्टे गो जमा होल भीड़ के हटा देलका । मेन रोड से थोड़े स दूर बालू पर तीस फुट पार करके लहर अप्पन हाथ आउ टेहुना के सहारे सरकते रेंगते आ रहल हल । निर्जीव पड़ल हल - मेनका; बगले में हल ओक्कर हैंड बैग ।

मेनका के कान में पेन्हल सोना के झुमका अब गायब हल आउ हाथ के कंगन भी नयँ हल । दोसर हाथ में घड़ी भी नयँ । लेकिन ऊ सब के होवे के निशान हाथ पर साफ-साफ देखाय दे रहल हल । गर्दन पर मंगलसूत्र भी नयँ हल ।

“गहना के लालच में लड़की के हत्या कइल गेल ह” - इन्सपेक्टर राजाराम बोलला ।

ई विचार में पक्का निश्चय पर आना दयाल के पसन्द नयँ पड़ऽ हइ । लेकिन कुच्छो नयँ बोलला पर उनका गोस्सा आके मिरगी रोगी नियन व्यवहार करे ल प्रारम्भ कर देता । ओहे से दयाल चुपचाप रहला ।

“गर्दन में कुछ डालके दबावल गेल ह ?”
“हो सकऽ हइ सर ।”
“हो सकऽ हइ ? एरा में सन्देह के बात की हइ ? बता सकऽ ह दयाल ? ... हैंडबैग खोलके देखऽ ।”

दयाल हैंडबैग उठाके एक्कर ज़िप खींचके अन्दर में कीऽ हके, ई देखलका । एक-एक करके बाहर निकललका ।
---हरियर रंग के एगो साड़ी । एहे रंग के एक ठो जैकेट । मेकअप सेट । पेन । छोट्टे गो मनी पर्स । एरा में खाली छुट्टा पइसा । साथ में वजन लेल कार्ड ... ४९ किलो ।

“पर्वत जइसन आवे वला संकट बरफ जइसे पिघल जात” - अइसन मुद्रण-दोष के साथ अंग्रेज़ी लिखावट हल । साथ में मोड़ल-माड़ल एक ठो कागज । एकरा में - “प्रमिला, c/o श्रीमती अहल्या ....” पता हल !

“एक ठो पता हइ सर !”
“वेरी गुड !” - कहते एरा खोलके देखलका राजाराम,  “एक्कर नाम प्रमिला हइ ?”
“ई जेकरा से भेंट करे ल चाहऽ होत ऊ व्यक्ति के पता हो सकऽ हइ सर ।”
“दयाल, तोरा साफ .... सीधा बात करे ल आवऽ हको, हइ न ?  ई बलात्कार के केस जइसे नयँ देखाय दे हइ ?”
“लेकिन साड़ी के पल्लू फट्टल हइ सर । केहुनियाँ में खरोंच होल हइ ।”
“लगऽ हइ कि आवे वला के साथ संघर्ष कइलक ह । तब तो घाव होत । पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट अइला से पता चलतइ ।”

मेनका के पेन्हल क्रीम रंग के कॉटन साड़ी थोड़े स घसकल हल क्रीम रंग के अन्दर के लहँगा (पेटीकोट) थोड़े स ही देखाय दे रहल हल । साड़ी के किनारे पर आउ लहँगा के किनारे पर लाल मट्टी लग्गल हइ, एरा पर दयाल के नज़र पड़ल ।

राजाराम एक सिपाही के बोलइलका । पता वला चीट ओकरा देलका ।

“जो । कुछ मत बोल । हीआँ लिक्खल अहल्या रहे से भी ठीक, आउ कोय मर्दाना रहे से भी ठीक; ओरा स्टेशन बोलइले आव । हम ओकरा जानके कहम । समझलँ ?”

दयाल मेनका के मुख पर एक टक देख रहला हल । ई जमाना में गाल पर हल्दी लगाके केऽ स्नान करऽ हइ ? कइसन सुत्थर मुख हइ ? शादी-शुदा होल नयँ लगऽ हइ । छोट्टे उमर ! ..... एक्कर पेन्हल आभूषणे एक्कर शत्रु हो गेल कीऽ ?”

“ई कीऽ दयाल जी, चुचाप देखते खड़ा हकऽ । काम शुरू करऽ ।” - राजाराम बोलला ।
उनकर आँख आसपास पान के दोकान खोज रहल हल ।

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