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Friday, October 04, 2019

वेताल कथा - 1. अनुवादक के भूमिका


वेताल कथा - अनुवादक के भूमिका
छात्रजीवन में अधिकतर बुतरू 'बैताल पचीसी' चाहे 'चन्दामामा' मासिक पत्रिका में प्रकाशित 'वेताल कथा' से परिचित हो जा हथिन। बुतरुअन के अत्यन्त प्रिय 'चन्दामामा' पत्रिका पहिले-पहल जुलाई 1947 से तेलुगु और तमिल में प्रकाशित होलइ। बाद में हिन्दी के अलावे दोसर कइएक भारतीय भाषा में भी। परन्तु, अत्यन्त रोचक 'वेताल कथाएँ' हिन्दी में अक्तूबर 1955 से चालू होलइ, जे प्रकाशित अंतिम अंक तक जारी रहलइ।
'बैताल पचीसी' संस्कृत के 'वेतालपञ्चविंशति' नामक रचना के अनुवाद हइ। 'वेतालपञ्चविंशति' (जम्भलदत्त रचित) देवनागरी लिपि में सबसे पहिले पं॰ जीवानन्द विद्यासागर कलकत्ता से 1873 में प्रकाशित कइलथिन हल। एकर आलोचनात्मक संस्करण डॉ॰ M.B. Emeneau, Prof. Yale University, USA, संपादित कइलथिन, जेकर प्रकाशन American Oriental Society सन् 1934 में कइलकइ। लेकिन ई रोमन लिपि में होवे के कारण भारतीय लोग खातिर ई उपयुक्त नञ् हलइ। ई पुस्तक के सहायता से पूना से 1952 में एन.ए. गोरे संपादित करके एकरा देवनागरी में प्रकाशित करइलथिन।
 'वेतालपञ्चविंशति' के हिन्दी अनुवाद सबसे पहिले लल्लू जी लाल (1763-1835) सन् 1805 में कइलथिन हल। एकरे आधार पर ईश्वरचन्द्र विद्यासागर (1820-1891) एकर बंगला अनुवाद सर्वप्रथम 1847 में प्रकाशित कइलथिन।
"वेतालपंचविंशति" (1850) के बंगला में अनूदित द्वितीय संस्करण में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ई बंगला अनुवाद तैयार करे के प्रयोजन बतावऽ हथिन। उनकर कहना हइ कि फोर्ट विलियम कॉलेज (1800-1854) में छात्र लोग के पाठ खातिर बंगला भाषा में निश्चित कइल हितोपदेश के रचना अइसन हइ कि कहीं-कहीं छात्र लोग खातिर दुर्बोध हो जा हइ। ओहे से ई कॉलेज के अध्यक्ष जी. टी. मार्शल महोदय के आदेश पर नवीन पुस्तक तैयार कइलथिन। "वेतालपंचविंशति" के बंगला संस्करण खातिर ऊ "बैताल पचीसी" (लल्लू जी लाल द्वारा अनूदित) नामक प्रसिद्ध हिन्दी पुस्तक के आधार पर कइलथिन। आगू ऊ बतावऽ हथिन कि 1847 में जब पहिले तुरी एकरा प्रकाशित कइलथिन, त ऊ आशा नञ् कइलथिन हल कि ई पुस्तक एतना जादे लोकप्रिय हो जइतइ। दुइए साल के अन्दर पहिला संस्करण समाप्त हो गेलइ आउ उनकर दोसरा संस्करण प्रकाशित करे के मन नञ् रहलो पर लोग के निवेदन पर दोसरा संस्करण 1850 में निकसलथिन। ऊ एहो सूचित कइलथिन कि बंगला संस्करण में अश्लील पद, वाक्य या उपाख्यानभाग के हटा देवल गेले ह।
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के उपर्युक्त टिप्पणी से ई स्पष्ट होवऽ हइ कि बैताल पचीसी बहुत लोकप्रिय रहले ह। दोसर बात ई हइ कि मगही में बाल साहित्य के बड़गो कमी हइ। ओहे से "वेताल कथा" (चाहे ऊ "बैताल पचीसी" से होवे, चाहे "चन्दामामा" पत्रिका से) के मगही अनुवाद करे के विचार होलइ।
नोटः 'वेतालपञ्चविंशति' अथवा 'बैताल पचीसी' के पूरा इतिहास जाने खातिर शोधार्थी लोग के विकिपीडिया पर के निम्नलिखित लेख जरूर देखे के चाही -
https://en.wikipedia.org/wiki/Baital_Pachisi
https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_Vetala_Tales

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