वेताल कथा - 3. पति कउन?
('बैताल पचीसी', कहानी संख्या-2)
[The story of the brahman Keshav, and of his daughter
Madhumalati (sweet-jasmine), who was promised in marriage to three different
persons, and being stung to death by a serpent, was restored to life by one of
her suitors, with whom the other two quarrelled for possession of her.
कहानी
ब्राह्मण केशव के, आउ ओकर बेटी मधुमालती के, जेकरा से विवाह कर देवे लगी तीन लोग के
वचन देल गेले हल, आउ जे साँप के काटला के चलते मर गेले हल, ऊ ओकर तीन विवाहार्थी में
से एगो द्वारा जीवित कर देल गेलइ, जेकरा साथ बाकी दू गो ओकरा प्राप्त करे लगी लड़े लगलइ।]
यमुना
के किनारे धर्मस्थल नाम के एगो नगर हलइ। ऊ नगर में गणाधिप नाम के राजा राज करऽ हलइ।
ओकरे में केशव नाम के एगो ब्राह्मणो रहऽ हलइ। ब्राह्मण यमुना के तट पर जप-तप करते रहऽ
हलइ। ओकरा एगो पुत्री हलइ, जेकर नाम मधुमालती हलइ। ऊ बड़ी सुन्दर हलइ। जब ऊ ब्याह के
योग्य होलइ त ओकर माता, पिता आउ भाय ओकर ब्याह के फिकिर करे लगलइ। संयोग से एक दिन
जब ब्राह्मण अपन कोय यजमान के बरात में गेले हल आउ भाय गाम में गुरू के हियाँ पढ़े,
तबहिंएँ ओकन्हीं के पीछू घर में एगो ब्राह्मण के लड़का अइलइ। लड़किया के मइया ओकर रूप
आउ गुण देखके ओकरा से कहलकइ कि हम तोहरा से अपन लडकी के ब्याह करबो। होनी के बिध कि
ओधिर ब्राह्मण पिता के भी एगो दोसर लड़का मिल गेलइ आउ ओहो ऊ लड़कावा के एहे वचन दे
देलकइ। ओधिर ब्राह्मण के लड़का जाहाँ पढ़े गेले हल, हुआँ परी ऊ एक लड़का से एहे वादा
कर अइलइ।
कुछ
दिन के बाद दुन्नु बाप-बेटा ऊ दुन्नु लड़कन के साथ लेके चल अइलइ त देखऽ हइ कि हुआँ परी
एगो तेसर लड़का पहिले से मौजूद हइ। एक के नाम त्रिविक्रम, दोसर के वामन आउ तेसर के नाम
मधुसूदन। तीनों रूप, गुण, विद्या, उमर में बराबर हलइ। ब्राह्मण, ओकर लड़का आउ ब्राह्मणी
बड़ी सोच में पड़ गेते गेलइ। अब की कइल जाय? एहे फिकिर में बैठल हलइ कि दैवयोग से लड़की
के साँप डँस लेलकइ। ओकर बाप, भाय आउ तीनो लड़कन बड़ी भाग-दौड़ करते गेलइ, गुनी-ओझा
जेतना मंत्र से जहर झाड़े वला हलइ, सब के बोलइलकइ। ऊ सब्भे लड़की के देखके कहलकइ कि
ई लड़की अब बच नञ् सकऽ हइ। पहिला बोललइ – “पचमी, छोम्मी, अठमी, नोम्मी, चौदस - ई तिथि
में साँप के काटल अदमी बच्चऽ हइ नञ्।” दोसरा बोललइ – “सनिच्चर आउ मंगलवार के डँस्सल
भी नञ् बच्चऽ हइ।” तेसरा बोललइ – “रोहिणी, मघा, अश्लेषा, विशाखा, मूल, कृत्तिका - ई
सब नक्षत्र के चढ़ल विष नञ् उतरऽ हइ।” चौठा बोललइ – “इंद्रिय, अधर (निचला होंठ), गाल,
गला, कोख (पेट), ढोंढ़ी (नाभि) - ई सब अंग के काटल बच्चऽ हइ नञ्।” पचमा बोललइ – “तोहर
कन्या के साँप अइसन वार, तिथि, नक्षत्र में डँसलको ह कि स्वयं धन्वन्तरी उपस्थित होलो
पर एकरा बचा नञ् पइथुन, हम सब कउन गिनती में हियो। अब एकर किरिया-करम करे के तैयारी
करते जा। हम सब बिदा होवऽ हियो।” एतना कहके गुनी लोग चल गेते गेलइ। कुछ पल के बाद लड़की
मर गेलइ।
दुखी
होके ब्राह्मण मुरदा के मसान ले गेलइ आउ ओकरा जराके चल गेलइ। फेर ओकर पीछू तीनों लड़कन
में से एगो तो ओकर अस्थि (हड्डी) चुनके बान्ह लेलकइ आउ फकीर बनके जंगल चल गेलइ। दोसरा
लड़का राख के गठरी बन्हलकइ आउ हुएँ झोपड़ी बनाके रहे लगलइ। तेसरा योगी होके देश-देश
घुम्मे लगलइ।
एक
दिन के बात हइ, ऊ तेसरा लड़का घुमते-घामते कोय नगर में पहुँचलइ आउ एगो ब्राह्मण के
घर में भोजन करे लगी गेलइ। ऊ गृहस्थ ब्राह्मण ओकरा से कहलकइ, "अच्छऽ, आझ हिएँ
भोजन कर लऽ।" ई सुनके ऊ हुआँ बैठ गेलइ। जब रसोई तैयार होलइ, त ओकरा हाथ-गोड़ धोलवाके
चौका में बैठाके अपनहूँ ओकरा भिर बैठ गेलइ। जइसीं ब्राह्मणी भोजन परोसे लगी अइलइ, तइसीं
ओकर छोटका लड़का कनते-कनते ओकर आँचर पकड़ लेलकइ। ब्राह्मणी ओकरा छोड़ावऽ हलइ, लेकिन
बुतरुआ नञ् छोड़ऽ हलइ। ब्राह्मणी ओकरा जेतने जादे फुसलावइ ओतने जादे ऊ कन्नइ आउ जिद
करइ। ब्राह्मणी के बड़ी गोस्सा बरलइ। ऊ अपन बुतरुआ के डँटलकइ, मरलकइ-पिटलकइ, तइयो ऊ
नञ् मनलकइ, त ब्राह्मणी ओकरा उठाके जलते चुल्हा में पटक देलकइ। ऊ बुतरू जरके राख हो
गेलइ। ब्राह्मण बिन भोजन कइलहीं उठ खड़ी होलइ। तब ऊ गृहस्थ ब्राह्मण ओकरा विनती कइलकइ,
लेकिन ऊ भोजन करे लगी राजी नञ् होलइ। ऊ कहलकइ, जे घर में अइसन राक्षसी काम होवे, ओकरा
में हम भोजन नञ् कर सकऽ ही।
एतना
सुनके ऊ गृहस्थ अन्दर गेलइ आउ संजीवनी विद्या के पोथी लाके ओकरा में से एगो मन्त्र
खोजके जप कइलकइ। जरके राख हो चुकल लड़का फेर से जीवित हो गेलइ।
ई
देखके अतिथि ब्राह्मण सोचे लगलइ कि अगर ई पोथी हमर हाथ पड़ जाय तो हमहुँ अपन मरल प्रेयसी
के फेर से जिला सकऽ हूँ। ई मन में ठानके ऊ भोजन कइलकइ आउ हुएँ ठहर गेलइ।
जब
रात के सब खा-पीके सुत गेलइ त ऊ ब्राह्मण चुपचाप ऊ पोथी लेके चल देलकइ। जे स्थान पर
ऊ लड़की के जरावल गेले हल, हुआँ जाके ऊ देखलकइ कि दोसर दुन्नु ब्राह्मण लड़कन हुआँ परी
बैठल बात करब करऽ हइ। ऊ दुन्नु ओकरा पछान लेलकइ आउ ओकरा भिर आके मोलकात करते गेलइ।
फेर पुछलकइ, "ए भाय! तूँ तो देस-विदेस घुमके अइलऽ हऽ। लेकिन ई बतावऽ कि कोय विद्या-उद्या
सिखलऽ?" ई ब्राह्मण के ई कहे पर कि ओकरा संजीवनी विद्या के पोथी मिल गेले ह आउ
ऊ मन्त्र पढ़के लड़की के जिला सकऽ हइ। ऊ दुन्नु बोललइ कि अइसन विद्या सिखलऽ ह त हमर
प्यारी के जिलावऽ। ऊ कहलकइ कि अस्थि आउ राख जामा करऽ त हम जिला सकऽ हियो। ओकन्हीं अस्थि
आउ राख एकट्ठा करते गेलइ। ब्राह्मण ऊ पोथी में से एगो मंत्र निकासके ओकर जाप कइलकइ। ऊ लड़की जी उठलइ। लेकिन अब तीनों में से हरेक कोय
ऊ लड़की से ब्याह करे खातिर आपस में झगड़े लगलइ।
एतना
कहके वेताल (बैताल) बोललइ, “ऐ राजा, ई बतावऽ कि ऊ लड़की केकर पत्नी होलइ?”
राजा
विक्रम जवाब देलकइ, “जे हुआँ परी कुटिया बनाके रहलइ, ओक्कर।”
वेताल
पुछलकइ, “जे ऊ अस्थि नञ् रखते हल त लड़की कइसे जीते हल हल? आउ दोसरा संजीवनी विद्या
नञ् सीखते हल त ऊ कइसे जिलइते हल?”
राजा
बोललइ, “जे अस्थि रखलकइ, ऊ तो ओकर बेटा के बराबर होलइ। जे विद्या सीखके जीवन-दान देलकइ,
ऊ बाप के बराबर होलइ। ओहे से जे राख लेके झोपड़ी बान्हके हुआँ रहलइ, ओहे ओकर पत्नी होलइ।”
राजा
के ई जवाब सुनके वेताल फेर से उड़के ओहे पेड़ पर जाके लटक गेलइ।
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