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Saturday, October 19, 2019

पितिरबुर्ग से मास्को के यात्रा ; अध्याय 18. तरझोक - भाग 1


[*289]                                     तरझोक
हियाँ डाक स्टेशन में हमरा एगो अइसन व्यक्ति से मोलकात होलइ, जे एगो याचिका दायर करे खातिर पितिरबुर्ग के यात्रा पर हलइ। ई याचिका एहे शहर में एगो स्वतंत्र पुस्तक छापाखाना स्थापित करे खातिर अनुमति के निवेदन से संबंधित हलइ। हम ओकरा से बोललिअइ कि एकरा लगी अनुमति के जरूरत नञ् हलइ; काहेकि ई स्वतंत्रता सबके देल हइ[1]। लेकिन ऊ सेंसर-व्यवस्था (censorship) के मामले में स्वतंत्रता चाहऽ हलइ; आउ अइकी एकरा बारे ओकर विचार हइ।
हमन्हीं के देश में सब कोय के छापाखाना के मालिक बन्ने के अनुमति हइ, आउ ऊ समय गुजर गेलइ, जब निजी तौर पर अनुमति देवे से डरते जा हलइ; आउ ई आशंका से कि कहीं स्वतंत्र छापाखाना से झूठ बात नञ् छाप देल जाय, लोक-कल्याण आउ लाभदायक संस्थान के नकार देल जा हलइ। अभी कोय भी मुद्रण खातिर औजार रख सकऽ हइ, लेकिन जे कुछ मुद्रित कइल जा सकऽ हइ, ऊ निगरानी के अंतर्गत आवऽ हइ। सेंसर-कार्य विवेक, बुद्धिमानी, कल्पना, सब कुछ जे महान आउ प्रबुद्ध हइ - [*290] ई सबके एगो नर्स बना देवल गेले ह। लेकिन जाहाँ परी नर्स हइ, त एकर मतलब हइ कि बुतरुओ होवे के चाही, जे वाकर (walkers) पर चल्लऽ हइ, जेकरा चलते अकसर गोड़ लाँगड़ हो जा हइ; जाहाँ परी अभिभावक हइ, त एकर मतलब हइ कि कम उमर के लोग हइ, अपरिपक्व मस्तिष्क के, जे खुद के खियाल नञ् रख सकऽ हइ। अगर हमेशे नर्स आउ अभिभावक रहतइ, त बुतरुअन लमगर अवधि तक वाकर पर चलतइ आउ प्रौढ़ होला पर विकलांग रहतइ। मित्रोफ़ानुश्का[2] हमेशे अनाड़ी रहतइ, बिन अपन नौकर के एक कदम नञ् चल पइतइ, बिन अभिभावक के अपन उत्तराधिकार के संचालन नञ् कर सकऽ हइ। अइसने होवऽ हइ सगरो सामान्य सेंसर-कार्य के परिणाम, आउ जेतने जादे ई कठोर होवऽ हइ, ओतने जादे हानिकारक होवऽ हइ एकर परिणाम। हेर्डर[3] के बात सुन्नल जाय।
“कल्याण के बढ़ावा देवे के सबसे निम्मन तरीका हइ बाधा नञ् देना, अनुमति[4], विचार अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता। विज्ञान के क्षेत्र में छानबीन हानिकारक हइ - ई हावा के सघन कर दे हइ आउ साँस लेवे [*291] नञ् दे हइ। ऊ पुस्तक, जे प्रकाश में आवे के पहिले दस सेंसर-कार्य से गुजरऽ हइ, पुस्तक नञ् रह जा हइ, बल्कि पवित्र धर्माधिकरण (Holy Inquisition) द्वारा बनावल चीज हो जा हइ; अकसर एगो विकृत, डंडा से पिट्टल, मुँह में कपड़ा ठुँस्सल एगो कैदी, आउ हमेशे लगी एगो दास हइ। [...] सत्य के क्षेत्र में, विचार आउ आत्मा के राज में, कोय पार्थिव शक्ति निर्णय न दे सकऽ हइ, आउ न ओकरा देवे के चाही; सरकार ई नञ् कर सकऽ हइ, ओकर सेंसर के तो बाते कीऽ, जे क्लबूक[5] चाहे तिम्ल्याक[6] में होवऽ हइ। सत्य के राज में ऊ जज नञ् हइ बल्कि लेखक नियन एगो जिम्मेदार व्यक्ति हइ। [...] संशोधन कइल जा सकऽ हइ खाली शिक्षा के माध्यम से; बिन सिर आउ दिमाग के न तो हाथ हिल सकऽ हइ आउ न गोड़। [...] जेतने जादे एगो राज्य अपन सिद्धान्त में सुदृढ़ हइ, जेतने जादे सुव्यवस्थित, चमकीला आउ मजबूत अपने आप में हइ, ओतने कम खतरा होतइ हरेक विचार के हावा से डगमगाय आउ मुसीबत आवे के, कोय क्रोधित लेखक के हरेक [*292] व्यंग्य (निन्दा-लेख) के; ओतने जादे विचार के अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता आउ लेखन के स्वतंत्रता प्रदान करतइ, आउ एकरा से अन्त में निस्संदेह सत्य के विजय होतइ। विनाश करे वला संदेहास्पद होवऽ हइ; गुप्त रूप से बुराई करे वला डरपोक होवऽ हइ। साफ दिल के व्यक्ति, जे सच बोलऽ हइ आउ अपन सिद्धान्त के पक्का होवऽ हइ, अपना बारे हर बात बोले दे हइ। ऊ दिन में बुल्लऽ-चल्लऽ हइ, आउ अपन दुश्मन सब के तोहमत या चुगली के खुद लगी उपयोगी बना ले हइ। [...] विचार के मामले में एकाधिकार (monopolies) हानिकारक होवऽ हइ। [...] राज्य के शासक विचार में निष्पक्ष होवे, ताकि ऊ सबके विचार के आलिंगन कर सके आउ अपन राज्य में ओकर अनुमति दे, प्रचार-प्रसार करे आउ लोक-कल्याण हेतु ओकरा तरफ प्रवृत्त कर सके - ओहे से वास्तव में महान शासक एतना विरल होवऽ हथिन।”
पुस्तक प्रकाशन के उपयोगिता समझके सरकार द्वारा एकरा लगी सबके अनुमति देल गेले ह; लेकिन ई बात के आउ अधिक समझके कि विचार अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध, प्रेस के स्वतंत्रता के निम्मन इरादा के व्यर्थ कर देतइ, सेंसर या प्रकाशन पर निरीक्षण (inspection) के काम [*293] लोक आचार विभाग[7] (Uprava Blagochiniya - Department of Public Morals) के सौंप देवल गेले ह। ई मामले में ओकर कर्तव्य हो सकऽ हइ खाली आपत्तिजनक रचना के बिक्री पर प्रतिबन्ध लगाना। लेकिन एहो सेंसर फालतू हइ। लोक आचार विभाग के एक मूर्ख  कर्मचारी शिक्षा प्रसार में बड़गो हानि कर सकऽ हइ, आउ बुद्धि के विकास कइएक साल तक लगी रोक दे सकऽ हइ; लाभकारी आविष्कार, नयका विचार के प्रतिबंधित कर दे सकऽ हइ आउ सबके कोय महान चीज से वंचित कर दे सकऽ हइ। एगो छोटगर उदाहरण प्रस्तुत हइ। एगो उपन्यास के अनुवाद लोक आचार विभाग के सामने अनुमोदन खातिर प्रस्तुत कइल गेलइ। अनुवादक, लेखक के अनुसरण करते, प्रेम के बारे बोलते एकरा कहलकइ - "धूर्त भगमान"। वरदी में सेंसर, हार्दिक श्रद्धा से भरल, ई अभिव्यक्ति के काट देलकइ, ई कहते - "भगमान के धूर्त कहना अनुचित हइ"। जेकरा समझ में नञ् आवऽ हइ, ओकरा दखल देवे के नञ् चाही। अगर सेहतगर आउ ताजा हावा चाही, त धुआँल घर से बाहर निकसऽ; अगर रोशनी चाही, त एकर बाधक के [*294] हटावऽ; अगर चाहऽ हो कि बुतरू शर्मीला नञ् रहे, त छड़ी के स्कूल से दूर करऽ। घर में, जाहाँ चाभुक आउ छड़ी फैशन में हइ, हुआँ परी नौकर-चाकर पियक्कड़, चोर आउ ओकरो से खराब होवऽ हइ।(*)
(*) कहल जा हइ, अइसने तरह के एगो सेंसर अइसन कोय रचना के प्रकाशित नञ् होवे दे हलइ, जाहाँ परी भगमान के उल्लेख हलइ, ई कहते कि "हमरा ओकरा से कोय मतलब नञ्"। अगर कोय रचना में ई चाहे ऊ देश के लौकिक रिवाज के बारे आलोचना कइल जा हलइ, त ऊ एकरा अमान्य समझऽ हलइ, ई कहते कि "रूस के ऊ देश के साथ मैत्रिक संबंध हइ"। अगर कहीं कोय राजकुमार (प्रिंस) चाहे काउंट के उल्लेख रहऽ हलइ, त ओकरा प्रकाशित करे के अनुमति नञ् दे हलइ, ई कहते कि "ई व्यक्तिगत (आक्षेप) हइ, काहेकि हमन्हीं हीं महत्त्वपूर्ण लोग के बीच राजकुमार आउ काउंट हथिन"। (लेखक रादिषेव के टिप्पणी)
जेकर जइसन मन में आवइ ओइसीं ओकरा मुद्रित करे देल जाय। अगर मुद्रण में कोय खुद लगी अपमानजनक पावऽ हइ, त ओकरा कोर्ट के सहारा लेवे देल जाय। हम कोय मजाक नञ् कर रहलिए ह। शब्द हमेशे क्रिया (action) नञ् हइ, विचार कोय अपराध नञ् हइ। ई नियम हइ नकाज़ (अध्यादेश) के नयका विधि संहिता[8] (New Code of Laws) में। लेकिन [*295] अपमान चाहे शब्द में रहइ चाहे मुद्रण में, हमेशा अपमाने रहऽ हइ। कानून के मोताबिक कोय केकरो गारी नञ् दे सकऽ हइ, आउ हर कोय के नालिश करे के अजादी हइ। लेकिन अगर कोय केकरो बारे सच कहऽ हइ, त ओकरा कानूनन गाली नञ् मानल जा सकऽ हइ। कइसन हानि हो सकऽ हइ, अगर पुस्तक के मुद्रण बिन पुलिस के ठप्पा के कइल जइतइ? नञ् खाली हानि नञ् होतइ, बल्कि एकरा से लाभ होतइ; लाभ शुरू से अंत तक, छोटका से बड़का तक, राजा से लेके अंतिम नागरिक तक।
सेंसर-कार्य के नियम हइ - मिटाना, काटना, प्रतिबंधित करना, फाड़ना, ऊ सब कुछ के जरा (जला) देना जे स्वाभाविक धर्म चाहे सत्यान्वेषण (Revelation) के विरुद्ध होवे, ऊ सब कुछ जे सरकार के विरुद्ध होवे, हरेक व्यक्तिगत आक्षेप के, जे शिष्टाचार, सार्वजनिक व्यवस्था आउ शांति के विरुद्ध होवे। एकर विस्तार से जाँच कइल जाय। अगर कोय मूर्ख अपन सपना में, नञ् खाली अपन दिल में बल्कि उच्च स्वर में बोलऽ हइ, "कोय भगमान नञ् हइ"; सब मूर्ख लोग के मुँह से सुनाय दे हइ उँचगर [*296] आउ त्वरित प्रतिध्वनि, "कोय भगमान नञ् हइ, कोय भगमान नञ् हइ"। लेकिन ओकरा से कीऽ? प्रतिध्वनि एगो ध्वनि हइ, हावा में प्रहार करऽ हइ, एकरा कंपित करऽ हइ आउ गायब हो जा हइ। मन पर विरले कोय छाप छोड़ऽ हइ; दिल पर तो कभी नञ्। भगमान हमेशे भगमान रहतइ, जे ओकरा में विश्वास नञ् करऽ हइ ओहो महसूस करऽ हइ। लेकिन अगर सोचऽ हो कि ईशनिन्दा से सर्वोच्च (Supreme Being) क्रोधित हो जइतइ; त कीऽ वास्तव में लोक आचार विभाग के कर्मचारी ओकरा खातिर वादी (मुद्दई, plaintiff) होतइ? सर्वशक्तिमान अइसन केकरो मुख्तारनामा (power of attorney) नञ् देतइ, जे त्रिशोत्का[9] बजावऽ हइ, चाहे घंटी। वज्र आउ विद्युत् के संचालक के, जेकरे प्रकृति के हरेक तत्त्व आज्ञापालन करऽ हइ; आउ विश्व के सीमा के बाहर हृदय के आंदोलित करे वला के, घृणा होतइ खुद लगी खास राजा द्वारा भी बदला लेवे में, जे पृथ्वी पर ओकर उत्तराधिकारी बन्ने के सपना देखऽ हइ। शाश्वत पिता के अपमान के मामले में केऽ जज हो सकऽ हइ? ओहे ओकरा अपमानित करऽ हइ, जे सोचऽ हइ कि ओकर अपमान में ऊ जज हो सकऽ हइ। ओकरा सामने ओकरे जवाब देवे पड़तइ।
[*297] स्पष्ट धर्म के विरोधी लोग रूस में कहीं अधिक हानि करते गेले ह, बनिस्पत नास्तिक लोग के, अर्थात् ऊ लोग के जे भगमान के अस्तित्व के नञ् मानऽ हइ। अइसनकन हमन्हीं हीं कम हइ; काहेकि हमन्हीं हीं अभियो कम लोग तत्त्वमीमांसा (metaphysics)  के बारे सोचते जा हइ। नास्तिक तत्त्वमीमांसा में भ्रमित हो जा हइ, आउ रस्कोलनिक (भिन्नमतावलंबी) तीन अँगुरी से क्रॉस[10] करे के मामले में। रस्कोलनिक हम ऊ सब रूसी लोग के कहते जा हिअइ, जे ग्रीक चर्च के सामान्य उपदेश से कइसनो तरह से भिन्न मत के होवऽ हइ। रूस में अइसन लोग बहुत हइ, आउ ओहे से ओकन्हीं के सेवा (पूजा) के अनुमति हइ। लेकिन हरेक भ्रांति के खुला रक्खे के अनुमति काहे नञ् देल जा हइ? जेतने ई खुला रहतइ, ओतने जल्दी ई समाप्त होतइ। यातना शहीद बनइलकइ; क्रूरता खुद क्रिश्चियन धर्म के आधार हलइ। धर्म के सम्प्रदाय में विभाजन कभी-कभी हानिकारक होवऽ हइ। ओकरा प्रतिबंधित करऽ। एकर प्रचार-प्रसार उदाहरण द्वारा होवऽ हइ। उदाहरण के नष्ट करऽ। मुद्रित पुस्तक से रस्कोलनिक खुद के आग में नञ् झोंकऽ हइ, बल्कि दाँव-पेंच के उदाहरण से। मूर्खता पर प्रतिबंध लगाना एकरा प्रोत्साहित करे के बराबर हइ।  एकरा अजाद [*298] कर देहो; हर कोय देखतइ कि कउची मूर्ख हइ आउ कउची चलाँक। जे प्रतिबंधित हइ ओकरे चाहल जा हइ। हम सब ईव [Eve]  के बाल-बच्चा हिअइ।
लेकिन पुस्तक मुद्रण के स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाते बखत कायर सरकार ईश-निन्दा से भयभीत नञ् होवऽ हइ, बल्कि खुद के आलोचक से। जे अपन पागलपन के बखत भगमानो के नञ् छोड़ऽ हइ, ऊ स्मृति आउ विवेक के सही-सलामत रहे पर अन्यायी शक्ति के नञ् छोड़तइ। जे सर्वशक्तिमान के वज्रपात से नञ् डरऽ हइ, ऊ टिकठी (फाँसी के तख्ता, gallows) भिर हँस्सऽ हइ। ओहे से विचार अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता सरकार लगी भयानक होवऽ हइ। स्वतंत्र विचारक, जे आंतरिक रूप से आंदोलित हो चुकले ह, अपन साहसी लेकिन शक्तिशाली आउ निर्भय हाथ शक्ति के मूर्ति के सामने बढ़इतइ, ओकर मुखौटा आउ परदा के फाड़ देतइ, आउ ओकर वास्तिवकता के उजागर कर देतइ। हर कोय ओकर क्षणिक गोड़ देखतइ, हर कोय ओकरा देल अपन सहारा के वापिस ले लेतइ, शक्ति अपन स्रोत के पास वापिस आ जइतइ, मूर्ति ढह जइतइ। लेकिन अगर शक्ति, विचार के कुहासा पर नञ् टिक्कल हइ, अगर अगर एकर सिंहासन ईमानदारी आउ जन-कल्याण के सच्चा प्रेम पर आधारित हइ, त कीऽ आउ अधिक मजबूत नञ् होतइ [*299] जब एकर आधार उघरल देखाय देतइ, कीऽ सच्चा प्रेमी के प्रेम नञ् कइल जइतइ? पारस्परिकता एगो प्राकृतिक भावना हइ, आउ ई अभिलाषा स्वाभाविक रूप से हमन्हीं बीच अवस्थित हइ। ठोस आउ सुदृढ़ बिल्डिंग के ओकर खुद के नींव काफी होवऽ हइ; ओकरा लगी टेक आउ पुश्ता (buttresses) के जरूरत नञ्। अगर ई जादे उमर के चलते कमजोर हो जा हइ, तभिए खाली पार्श्व टेक के जरूरत पड़ऽ हइ। सरकार ईमानदार होवे आउ ओकर नेता लोग पाखंडी नञ् होवे; तब सब थूक, तब सब डकार, अपन दुर्गन्ध के ओकरा बाहर निकासे वला लोग के वापिस दे देतइ; आउ सच हमेशे स्वच्छ आउ उज्जर रहतइ। जे अपन शब्द से उसकावऽ हइ (सरकार के सम्मान में अइसीं कहल जाय ऊ सब दृढ़ विचार के, जे सत्य पर आधारित हइ, लेकिन सरकार के विरोध में हइ), ऊ ओइसने मूर्ख हइ, जइसन कि ऊ, जे ईश-निन्दा करऽ हइ। सरकार के अपन निश्चित कइल राह पर आगू बढ़े देल जाय; तब ऊ अपमान लेख के खोखला ध्वनि से क्रोधित नञ् होवऽ हइ, जइसे कि रोटिका के प्रभु (Lord of Hosts) [*300] ईश-निन्दा से उत्तेजित नञ् होवऽ हथिन। लेकिन ऊ शोकग्रस्त होवे, अगर अपन लालच में सत्य के तोड़ऽ हइ। तब खाली एक विचार एकर नींव के हिला दे हइ; सत्य के एक शब्द एकरा बरबाद कर देतइ, मरदानगी के एक काम एकरा हावा में उड़ा देतइ।
व्यक्तिगत आक्षेप, अगर ई कटु आक्षेप हइ, त अपमान हइ। सत्य कहल व्यक्तिगत आक्षेप ओतने मान्य हइ जेतना कि खुद सत्य। अगर कोय आन्हर जज गलत फैसला करऽ हइ, आउ निर्दोषता के प्रतिवादी (defender) ओकर गलत फैसला के उजागर करऽ हइ आउ अगर ओकर चाल आउ अन्याय के दर्शावऽ हइ, त ई व्यक्तिगत आक्षेप होतइ, लेकिन मान्य; अगर ऊ ओकरा भ्रष्ट, झूठा, मूर्ख जज कहऽ हइ, त ई व्यक्तिगत आक्षेप होतइ, लेकिन मान्य हइ। लेकिन अगर ओकरा गंदा नाम से पुकारे लगऽ हइ, आउ गारी-गल्लम करऽ हइ, जइसन कि बजार में सुन्नल जा हइ, त ई व्यक्तिगत आक्षेप हइ, लेकिन अपमानजनक आउ अमान्य हइ। लेकिन जज के पक्ष लेना सरकार के जिमेवारी [*301] नञ् हइ, बल्कि ओकरा वास्तव में काहे नञ् गारी-गल्लम कइल गेले होत। लेकिन जज एकरा में वादी (मुद्दई, plaintiff) नञ् होतइ, बल्कि अपमानित व्यक्ति। जज संसार के सामने आउ जे ओकरा जज पद पर नियुक्त करते गेले हल ओकन्हीं के सामने खाली अपन कृत्य से सफाई देइ।(*)
(*) मिस्टर डिकिन्सन (Dickinson), जे अमेरिका में हाल के क्रान्ति में भाग लेलके हल आउ एकरा से ओकरा यश मिलले हल, आउ बाद में जे पेनसिलवानिया के राष्ट्रपति होले हल, खुद पर आक्रमण करे वला से लड़ाई करे में घृणा नञ् कइलकइ। ओकरा विरुद्ध अत्यन्त क्रूर आरोप के पर्चा छपले हल। प्रादेशिक शहर के पहिला अधिकारी (गवर्नर) अखाड़ा में उतरलइ, अपन पक्ष में प्रकाशन कइलकइ, सफाई देलकइ, अपन प्रतिद्वन्द्वी लोग के दलील के गलत सिद्ध कइलकइ, आउ ओकन्हीं के लजा देलकइ ... ई उदाहरण अनुकरणीय हइ कि कइसे बदला लेवे के चाही, जब कोय केकरो सार्वजनिक रूप से मुद्रित रचना के साथ दोषी ठहरावऽ हइ। अगर कोय मुद्रित पंक्ति के विरुद्ध क्रोधावेश में आ जा हइ, त ऊ लोग के ई सोचे पर बाध्य कर दे हइ कि जे कुछ मुद्रित हइ ऊ सच हइ, आउ बदला लेवे वला ठीक ओइसने हइ जइसन ओकरा बारे मुद्रित कइल हइ।[11] [लेखक रादिषेव के टिप्पणी]
त ई तरह से व्यक्तिगत आक्षेप के बारे फैसला करे के चाही। ई दंडनीय हइ, लेकिन मुद्रण के मामले में ई जादे लाभदायक [*302] होतइ, आउ हानिकारक कम। जब सब कुछ व्यवस्थित होतइ, जब फैसला हमेशे कानून के मोताबिक होतइ, जब कानून सत्य पर आधारित होतइ, आउ निराशा के रोक देल जइतइ, तब वास्तव में, तब व्यक्तिगत आक्षेप दूर कइल जा सकऽ हइ। अब कुछ शिष्टाचार के बारे कहल जाय आउ शब्द ओकरा लगी केतना हानिकारक हइ।
अश्लील साहित्य, जे कामुक रूपरेखा से भरल रहऽ हइ आउ व्यभिचार अभिव्यक्त करऽ हइ, जेकर हरेक पृष्ठ आउ पंक्ति उत्तेजक नंगापन के साथ जम्हाई ले हइ, किशोर लोग खातिर आउ अपरिपक्व भावना खातिर हानिकारक हइ। उत्तेजित कल्पना के प्रज्वलित करके, सुप्त भावना के स्पर्श करके आउ शांतिपूर्वक आराम कर रहल हृदय के जगाके, अकालिक वयस्कता लावऽ हइ, किशोरावस्था के भावना के ओकर दृढ़ता के मामले में धोखा दे हइ, आउ ओकन्हीं के त्वरित बुढ़ापा लगी तैयार करऽ हइ। अइसन रचना हानिकारक हो सकऽ हइ, लेकिन ई व्यभिचार के असली जड़ नञ् हइ। अगर अइसन साहित्य के पढ़के, किशोर लोग के प्रेम के भावावेश के परमानन्द के धुन सवारो हो जा हइ, तइयो ओकन्हीं एकरा [*303] कार्यान्वित नञ् करते जा सकऽ हइ, अगर अपन सौन्दर्य के व्यापार करे वली नञ् मिल्लइ। रूस में अइसन रचना अभियो मुद्रण में नञ् हइ, लेकिन दुन्नु राजधानी में हरेक गल्ली में हमन्हीं के शृंगार कइले वेश्या देखाय दे हइ। शब्द के अपेक्षा कार्य जादे भ्रष्ट करऽ हइ आउ उदाहरण तो सबसे जादे। चक्कर लगइते वेश्या सब, जे सार्वजनिक रूप से सबसे अधिक बोली लगावे वला के अपन दिल दे हइ, ई बुराई से हजारो किशोर लोग के संक्रमित करऽ हइ आउ ई हजारो के सब भावी पीढ़ी के; लेकिन पुस्तक अभी तक कोय रोग नञ् देलके ह। आउ ई तरह से सेंसर व्यपार करे वली लड़कियन लगी स्थापित कइल जाय, लेकिन, बल्कि कोय लंपट दिमाग के रचना काहे नञ् होवइ, सेंसर के एकरा में कोय काम नञ् हइ।
हम ई बात के एकरा से समाप्त करबइ - मुद्रित कइल चीज के सेंसर-कार्य समाज के हइ, जे रचनाकार के माला दे हइ, चाहे पन्ना के उपयोग कोय चीज लपेटे में करऽ हइ। बिलकुल ओइसीं जइसे कि थियेटर से संबंधित रचना के जनता अनुमोदन दे हइ, न कि थियेटर के निर्देशक। ओइसीं कोय प्रकाशित रचना के सेंसर न तो कोय यश दे हइ आउ न कोय अपमान। परदा उठलइ, सबके नजर [*304] प्रदर्शन तरफ टिक गेलइ; पसीन पड़ऽ हइ, लोग ताली बजइते जा हइ; नञ् पसीन पड़ऽ हइ, लोग थपकी दे हइ आउ सीटी बजावऽ हइ। जे सार्वजनिक विचार में मूर्खता हइ, ओकरा त्याग दऽ; एकरा लगी हजारो सेंसर मिल जइतइ। सबसे सतर्क पुलिस बकवास विचार के ओतना प्रभावकारी रूप से रोक नञ् सकऽ हइ, जेतना ओकरा से असंतुष्ट जनता। एकरा एक तुरी सुनते जइतइ, बाद में ऊ मर जइतइ आउ कइएक शताब्दी तक फेर नञ् पैदा होतइ। लेकिन अगर हम सेंसर के व्यर्थता के मान्य करते गेलिअइ, चाहे एकरो से जादे ज्ञान के राज में एकर हानि, त हम सब प्रेस के स्वतंत्रता के व्यापक आउ असीम उपयोगिता के भी मान्य करते जइबइ।
एकरा लगी सबूत के जरूरत नञ् प्रतीत होवऽ हइ। अगर हरेक व्यक्ति के विचार करे के स्वतंत्रता हइ, आउ अपन विचार के बिन कोय बाधा के सबके सामने घोषित कर सकऽ हइ, त स्वाभाविक हइ कि जे कुछ सोचल आउ खोजल जा हइ, ऊ ज्ञात हो जइतइ; जे महान हइ ऊ महान होतइ, जे सत्य हइ ऊ नञ् छिपतइ। देश के शासक लोग सत्य से दूर जाय के साहस नञ् करते जइतइ, आउ भय खइतइ,काहेकि ओकन्हीं के नीति, दुर्भावना आउ दाँव-पेंच [*305] प्रकट हो जइतइ। जज झूठ फैसला के हस्ताक्षर करते बखत काँपतइ आउ ओकरा फाड़ देतइ। जेकरा पास सत्ता होतइ ऊ ओकर प्रयोग खाली अपन सनक के पूर्ति खातिर करे से लजइतइ। गुप्त लूट के लूट कहल जइतइ, गुप्त हत्या के हत्या। सब्भे बुरा लोग सत्य के कठोर दृष्टि से डरतइ। शांति वास्तविक होतइ, काहेकि ओकरा में खमीर (ferment) नञ् होतइ। आझकल केवल सतह चिकना हइ, लेकिन तल में पड़ल कादो (कीचड़) पानी के पारदर्शिता के धुँधला करऽ हइ। हमरा से बिदा होते बखत सेंसर के निंदक हमरा एगो छोटगर नोटबुक देलकइ। पाठक, अगर तूँ बोर नञ् हो रहलऽ ह, त पढ़ऽ जे कुछ तोहर सामने हको। अगर संयोगवश तूँ खुद सेंसर कमिटी के सदस्य हकऽ, त पन्ना उलटऽ, आउ एगो विहंगम दृष्टि डालऽ।




[1] सन् 1783 के 15 जनवरी के उकाज़ (अध्यादेश, decree) के अनुसार छापाखाना (मुद्रणालय) के निर्माण क्रिया-कलाप (manufacturing activities) के अन्तर्गत मानल गेलइ, जे हरेक व्यक्ति के पुस्तक मुद्रण के अनुमति दे हलइ। दे॰ PSZ, XXI, 792, No.15634.
[2]  देनिस इवानोविच फ़ोनविज़िन (1744-1792) के हास्य नाटक "नेदरस्ल" (अनाड़ी) में मित्रोफ़ानुश्का अनाड़ी के भूमिका वाला पात्र हइ । दे॰ पदबिरेज़्ये, नोट 32, पृ॰ [*89].
[3] दे॰ Johann Gottfried von Herder (1744-1803), "Vom Einfluss der Regierung auf die Wissenschaften und der Wissenschaften auf die Regierung (On the Influence of Governments on the Sciences, and of the Sciences on Governments)", Berlin, 1780, pp.5-94, excerpts from pp.47-48, 50-51; Ausgewählte Werke in einem Bande (Selected Works in One Volume), Stuttgart und Tübingen, 1844, pp.1215-1244, excerpts from pp.1229-1230; Herders Sämmtliche Werke (Herder’s Collected Works), ed. Bernhard Suphan, 33 vols. (Berlin, 1877-1913), IX (1893), pp.307-408; excerpts from pp.357-358, 361.
[4] रादिषेव खाली "अनुमति" लिखलथिन हँ, हेर्डर के "eine gute Sache zu treiben" (निम्मन काम करे खातिर) के छोड़ देलथिन हँ, लेकिन अइसन परित्यक्ति के कइएक बिन्दु से नञ् दर्शइलथिन हँ, जइसन कि बाकी जगह ऊ कइलथिन हँ।
[5] क्लबूक (klobuk) - An Orthodox monastic headdress of a cylindrical shape with a black or white fabric blanket falling on the shoulders (among the patriarchs and metropolitans).
[6] तिम्ल्याक (temlyak) - A loop from a belt or tape on the handle of a sword, saber, checkers, worn on the hand when using a weapon.
[7] उप्रावा ब्लागाचिन्या (Uprava Blagochiniya) के स्थापना 1782 में कइल गेले हल। अन्य कर्तव्य के अलावे एकरा "व्यवस्था आउ निम्मन रीति-रिवाज" के गारंटी देना हलइ।
[8] दे॰ साम्राज्ञी एकातेरिना (Empress Catherine) II के नकाज़ (Nakaz), 1767, अध्याय XX, विशेष रूप से, अनुच्छेद 480-484.
[9] रादिषेव के स्पष्ट संकेत हइ पुलिस आउ चर्च संबंधी व्यवस्था के तरफ। त्रिशोत्का एक प्रकार के दाँतेदार घिरनी (ratchet) हलइ जेकर प्रयोग कानून प्रवर्तन अधिकारी (law enforcement officers) द्वारा ध्यान आकृष्ट करे लगी कइल जा हलइ।
[10] दे॰ ल्युबानी, नोट-2.
[11] दे॰ Charles J. Stillé: "The Life and Times of John Dickinson, 1732-1808"; Philadelphia, 1891; pp.223-242., on Dickinson's election as President of the Supreme Executive Council of Pennsylvania (he served from 1782 to 1785) and the anonymous attacks on him by "Valerius". "Valerius" is conjecturally identified as General John Armstrong (later Secretary of War under Madison), pp.421-423. Dickinson's "Vindication" is printed, pp.364-414.

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