मार्को पोलो (1254-1324) के साहसिक विश्व-यात्रा
1. भूमिका
मार्को
पोलो, जेकर जन्म सन् 1254 में होले हल, इटली के वेनिस शहर के व्यापारी निकोलो पोलो
(Niccolò Polo) के बेटा हलइ। कुछ साल के बाद ओकर बाप आउ चाचा काला सागर से होते साहसिक
व्यापार पर रवाना होते गेलइ। लेकिन मंगोल गृह युद्ध में पकड़ा गेते गेलइ आउ घर वापिस
आवे में असमर्थ हो गेलइ। आखिर ओकन्हीं एगो दूत (envoy) के साथ हो गेलइ, जे मंगोल शासक
कुबिलाय खान (1216-1294) के हियाँ जा रहले हल। खान ओकन्हीं से पूछताछ कइलकइ आउ अपन
दूत के रूप में पोप के पास भेजलकइ। सन् 1269 में वापिस वेनिस अइते गेलइ आउ निकोलो के
अपन 15 साल के बेटा मार्को के साथ पुनर्मिलन होलइ। दू साल बाद सन् 1271 में जब ओकन्हीं
फेर से पूरब के यात्रा पर रवाना होते गेलइ, त मार्को भी साथ हो गेलइ। ई यात्रा चोबीस
साल चल्ले वला हलइ। मार्को जल्दीए मंगोल साम्राज्य के भाषा आउ रीति-रिवाज सीख लेलकइ।
ऊ अपन योग्यता के आधार पर कुबिलाय खान के प्रिय एजेंट बन गेलइ, जे ओकरा पेइचिंग के
दरबार से लम्बा मिशन पर भेजलकइ। ई सब यात्रा के उद्देश्य आउ ठीक-ठीक मार्ग हलाँकि अभियो
विवादास्पद हइ, तइयो कम से कम एक यात्रा दक्खिन-पच्छिम में बर्मा तक, दोसरा चीन के
आझकल के छ्वानचोउ (Quanzhou) के आउ तेसरा समुद्री मार्ग से दक्खिन आउ दक्खिन-पूरब एशिया
के यात्रा कइलकइ। सन् 1291 में सब्भे पोलो एगो मंगोल कूटनीतिक मिशन के साथ हो गेते
गेलइ जे जहाजी बेड़ा के रूप में समुद्री यात्रा पर सुमात्रा आउ भारत होते फारसी खाड़ी
तक लगी रवाना होलइ। हुआँ से वापिस ओकन्हीं 1295 में वेनिस अइते गेलइ। एकर कुछहीं समय
बाद मार्को एगो नौका युद्ध (naval battle) के दौरान बंदी बना लेल गेलइ आउ उत्तरी-पश्चिमी
इटली के बन्दरगाह शहर जेनोवा (Genoa, या Genova) में कैद में रक्खल गेलइ। हुआँ परी
ओकर भेंट पिसा के रुस्तिचेलो (Rustichello of Pisa) नाम के एगो रोमांस लेखक से होलइ।
ओकन्हीं दुन्नु मिलके "यात्रा" (The Travels) लिखते गेलइ। एकर अद्वितीय विस्तार
आउ विवरण मध्य काल के पुस्तक सब के बीच एकरा सबसे अधिक असरदार बना देलकइ। सन् 1324
में मार्को पोलो के मृत्यु हो गेलइ आउ ऊ अपन पीछू पत्नी आउ तीन बेटी छोड़ गेलइ।
मार्को पोलो अपन यात्रा के दौरान जे कुछ देखलके आउ अनुभव कइलके हल, ऊ सब देश-देश के रीति-रिवाज, रहन-सहन, हियाँ तक कि भौगोलिक स्थिति के वर्णन अपन पुस्तक में कइलके ह। ई पुस्तक के कइएक बात पर लोग के विश्वास नञ् होलइ। लेकिन ई पुस्तक से संसार के कइएक अन्वेषक के बाद में प्रेरणा मिललइ। ओकर पुस्तक के पढ़के संसार के देखे लगी निकसे वला में कोलम्बस भी एक हलइ। ऊ समुद्र यात्रा द्वारा भारत लगी रवाना होलइ, लेकिन पहुँच गेलइ अमेरिका। ई तरह अमेरिका के पता लगइलकइ। ई तरह संसार के अन्वेषक के रूप में मार्को पोलो के बहुत ख्याति मिललइ।
मार्को पोलो अपन यात्रा के दौरान जे कुछ देखलके आउ अनुभव कइलके हल, ऊ सब देश-देश के रीति-रिवाज, रहन-सहन, हियाँ तक कि भौगोलिक स्थिति के वर्णन अपन पुस्तक में कइलके ह। ई पुस्तक के कइएक बात पर लोग के विश्वास नञ् होलइ। लेकिन ई पुस्तक से संसार के कइएक अन्वेषक के बाद में प्रेरणा मिललइ। ओकर पुस्तक के पढ़के संसार के देखे लगी निकसे वला में कोलम्बस भी एक हलइ। ऊ समुद्र यात्रा द्वारा भारत लगी रवाना होलइ, लेकिन पहुँच गेलइ अमेरिका। ई तरह अमेरिका के पता लगइलकइ। ई तरह संसार के अन्वेषक के रूप में मार्को पोलो के बहुत ख्याति मिललइ।
"मार्को
पोलो के यात्रा" पुस्तक काफी बड़गर हइ (कोय 500 पृष्ठ से लेके 1500 पृष्ठ तक के)
। लेकिन एकर एगो अति संक्षिप्त रूपांतर हिन्दी मासिक पत्रिका "चन्दामामा"
में मई से दिसम्बर 1960 आउ जनवरी 1961 में कुल नो किस्त में प्रकाशित होले हल। एहे
संक्षिप्त रूपांतर के मगही अनुवाद आगू प्रस्तुत कइल जइतइ।
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