[*306] सेंसर-कार्य के उद्गम के संक्षिप्त इतिहास[1]
अगर
हमन्हीं कहबइ, आउ स्पष्ट प्रमाण सहित पुष्टि करबइ कि सेंसर-कार्य आउ धर्माधिकरण
(Inquisition) के उद्गम एक्के स्रोत से होले ह; कि धर्माधिकरण के संस्थापक सेंसर, अर्थात्
प्रकाशन के पहिले पुस्तक के कार्यालयीन परीक्षण (समीक्षा), के आविष्कार कइलकइ; त हमन्हीं
वस्तुतः कुच्छो नावा नञ् कहबइ, लेकिन विगत काल के अन्हेरा से हम सब कइएक दोसर प्रमाण
के अतिरिक्त स्पष्ट प्रमाण निकासबइ कि पुरोहित लोग हमेशे बेड़ी के आविष्कारक हलइ, जेकरा
से विभिन्न काल में मानवीय मस्तिष्क पर भार लाद देइ, कि ओकन्हीं ओकर डैना के काट दे
हलइ, कि कहीं ई महानता आउ स्वतंत्रता के तरफ अपन उड़ान नञ् भर ले।
विगत
काल आउ शताब्दी-शताब्दी से होके गुजरते बखत, हम सब सगरो सत्ता (शक्ति) के विनाशक पहलू
देखऽ हिअइ, सगरो हम सब सत्य के विरुद्ध खड़ी होत शक्ति के देखऽ हिअइ, कभी-कभी एक अंधविश्वास
पर दोसरा अंधविश्वास के आक्रमण करते (देखऽ हिअइ) । [*307]
पुरोहित सब द्वारा उसकइला पर, एथेंस के लोग प्रोतागोरस (Protagoras) के रचना सब के
प्रतिबंधित कर देते गेलइ आउ औडर देलकइ कि ओकर सब प्रति के संग्रह करके जला देल जाय[2]। कीऽ
ई ओहे लोग नञ् हलइ, जे अपन पागलपन में, आउ अपन शाश्वत आउ अमिट तिरस्कार में, सत्य के
अवतार सुकरात[3]
(Socrates) के मौत के घाट उतार देते गेलइ? रोम में क्रोध के अइसन उदाहरण हमन्हीं के
जादे मिल्लऽ हइ। तितुस लिविउस[4]
(Titus Livius) रिपोर्ट करऽ हइ कि नुमा[5] के
कब्र में पावल गेल लेखन के सिनेट के आदेश पर जला देल गेले हल। विभिन्न काल में अइसन
होवऽ हलइ कि भविष्यवाणी के पुस्तक के आदेशानुसार प्रेतोर[6]
(praetor) के पास ले जाल जा हलइ। स्वेतोनिउस (Suetonius) रिपोर्ट करऽ हइ कि सीज़र अगस्तस
(Caesar Augustus) अइसन दू हजार पुस्तक के जलावे के आदेश देलके हल[7]। एगो
आउ उदाहरण विकृत मानवीय बुद्धि के! की वास्तव में अंधविश्वासी लेखन पर प्रतिबंध लगाके
ई सब शासक लोग सोचते जा हलइ कि एकरा से अंधविश्वास के उन्मूलन हो जइतइ? हरेक कोय के
निजी तौर पर भविष्यवाणी के सहारा लेवे पर प्रतिबंध हलइ, जे अकसर खाली क्षणिक असहनीय
दुख पर नियंत्रण करे खातिर कइल जा हलइ; [*308]
लेकिन भविष्यवक्ता (augurs) आउ सगुनिया[8] (haruspices) के सार्वजनिक आउ राज्य के भविष्यवाणी पर रोक नञ्
हलइ। लेकिन अगर आझकल के ज्ञानोदय (enlightenment) के समय में भविष्यवाणी सिखावे वला चाहे अंधविश्वास
के प्रचार-प्रसार करे वला पुस्तक के प्रतिबंधित करे चाहे जलावे के बात करतइ, त कीऽ
ई हास्यास्पद नञ् होतइ कि सत्य के अंधविश्वास दूर करे खातिर सोंटा उठावे पड़लइ? कि सत्य
के भ्रम के दूर करे खातिर शक्ति आउ तलवार के सहारा लेवे पड़लइ, जबकि एकर उपस्थिति मात्र
भ्रम खातिर सबसे भयंकर चाभुक हइ? लेकिन सीज़र अगस्तस[9] खाली
भविष्यवाणी पर अपन अत्याचार के हाथ नञ् फैलइलकइ, बल्कि ऊ तितुस लबियेनुस[10] (Titus Labienus) के पुस्तक भी जलावे के आदेश देलकइ।
"ओकर दुश्मन लोग", सेनेका अलंकारशास्त्री[11] (Seneca the Rhetorician) बोलऽ हइ, "ओकरा लगी ई नयका तरीका
के दंड के आविष्कार करते गेलइ।" अनसुन्नल आउ असाधारण बात हइ, उपदेश (लेखन) के
आधार पर दंड। लेकिन राज्य के भाग्य से, ई तर्कपूर्ण क्रोध के आविष्कार किकेरो (Cicero) के बाद कइल गेलइ। कीऽ होते हल, अगर त्रिशासक (triumvirs) किकेरो के लेखन पर दोषारोपण करना कल्याणकारी समझते
हल? लेकिन अत्याचारी जल्दीए लबियेनुस से प्रतिशोध लेलकइ [*309] ओकरा से, जे ओकर रचनावली के जला देलके हल। अपन जिनगी
में ई व्यक्ति देखलकइ कि ओकर रचनावली के आग के भेंट कर देल गेलइ।(*) "कोय बुरा
उदाहरण के हियाँ परी अनुकरण नञ् कइल गेलइ", सेनेका बोलऽ हइ, "बल्कि ओकरे।"(**) भगमान करे, बुराई हमेशे ओकरा करे वला पर हीं पलटा
खाय, कि विचार पर अत्याचार करे वला हमेशे अपन खुद के विचार पर खुद के हँसी के पात्र
बनते देखे आउ अपमान आउ विनाश के दोषी ठहरावल जाय! अगर प्रतिशोध कभियो क्षमा करे लायक
होवे, त वास्तव में एहे।
(*)
आरियास
मोनतानो (Arias Montano) के रचनावली,
जे नेदरलैंड में प्रतिबंधित पुस्तक के पहिला रजिस्टर प्रकाशित कइलके हल, ओहे रजिस्टर
में शामिल हलइ।[12] [लेखक रादिषेव
के टिप्पणी]
(**)
कासिउस
सेवेरुस (Cassius Severus), लबेनिउस के
मित्र, ओकर लेखन के आग में जलते देखके कहलइ, "अब हमरा जला देवे के चाही, काहेकि
ऊ सबके हम कंठस्थ जानऽ हिअइ"। ई अगस्तस के शासनकाल में अवसर देलकइ, अपमानजनक रचना
के बारे विधि-निर्माण के, जेकरा, मानव के वानरी प्रवृत्ति के कारण, इंग्लैंड आउ दोसर-दोसर
देश में अपनाऽ लेवल गेलइ।[13] [लेखक रादिषेव
के टिप्पणी]
[*310]
लोकतंत्र के
जमाना में
रोम में
अइसन प्रकार
के दमन
खाली अन्धविश्वास
के मामले
में कइल
जा हलइ,
लेकिन सम्राट्
लोग के
शासनकाल में
एकरा हर
तरह के
दृढ़ विचार
पर विस्तृत
कर देल
गेलइ। क्रेमुतिउस
कोर्दुस (Cremutius
Cordus)
अपन इतिहास
में कासिउस
(Cassius) के,
जे लबियेनिउस
के रचनावली
पर अगस्तस
के यातना
पर व्यंग्य
करे के
साहस कइलके
हल,
अंतिम रोमन
कहलके हल।
रोमन
सिनेट (Senate), तिबेरिउस
(Tiberius) के सामने रेंगते, ओकर सत्कार में औडर देलकइ, कि क्रेमुतिउस (Cremutius) के पुस्तक जला देल जाय। लेकिन एकर कइएक प्रति बच
गेलइ। "ओतने जादे", ताकितुस (Tacitus) बोलऽ हइ, "ओकन्हीं के संरक्षण
पर हँस्से के चाही, जे सोचऽ हइ कि अपन सर्वशक्तिमानता के चलते अगली पीढ़ी के स्मृति
के मिटा दे सकऽ हइ। हलाँकि शक्ति विचार के विरुद्ध क्रोध करके दंडात्मक कार्रवाई कर
सकऽ हइ, लेकिन अपन क्रोध में खुद लगी शरम आउ अपमान पैदा करऽ हइ आउ ओकन्हीं लगी यश।"[14]
अन्तिओख़ुस
एपिफ़ानेस (Antiochus Epiphanes), सिरिया के
राजा, के शासनकाल में यहूदी पुस्तक जल्ले से नञ् बचलइ।[15] क्रिश्चियन
लोग के पुस्तक [*311] के साथ अइसने होलइ। सम्राट्
दियोक्लेतियान (Diocletian) पवित्र लेखन
के आग में झोंके के आदेश देलकइ।[16] लेकिन
क्रिश्चियन धर्म अत्याचार पर विजय प्राप्त कइलकइ, अत्याचारी लोग के हीं जीत लेलकइ,
आउ आझ ई बात के अकाट्य प्रमाण हइ कि संकल्पना आउ विचार पर अत्याचार नञ् खाली ओकर उन्मूलन
करे में अशक्त हइ, बल्कि ओकर जड़ मजबूत करऽ हइ आउ ओकर प्रचार-प्रसार करऽ हइ। अरनोबिउस
(Arnobius) सहिए में अइसन
अत्याचार आउ यातना के विरुद्ध खड़ी रहऽ हइ। "कुछ लोग दावा करऽ हइ", ऊ बोलऽ हइ,
"कि ई राज्य लगी लाभदायक होतइ कि सिनेट ऊ लेखन के नष्ट करे के आदेश देइ, जे क्रिश्चियन
धर्म के प्रमाण के रूप में काम करऽ हइ आउ जे प्राचीन धर्म के महत्त्व के नकारऽ हइ।
लेकिन लेखन के प्रतिबंधित करना आउ प्रकाशित सामग्री के उन्मूलन करना भगमान के अस्तित्व
के समर्थन करना नञ् हइ, बल्कि प्रमाण के सत्य से भयभीत होना हइ।"[17] लेकिन
क्रिश्चियन धर्म के प्रचार-प्रसार के बाद, एकर पुरोहित लोग ऊ सब लेखन के प्रति ओतने
[*312] शत्रुता रक्खे लगलइ, जे ओकन्हीं के विरुद्ध
हलइ आउ जेकरा से कोय लाभ नञ् हलइ। हाल में विधर्मी लोग (pagans) में ई कठोरता के निंदा कइल गेले हल, हाल में ऊ विश्वास
में ओकरा अभाव के संकेत समझल गेले हल, जेकर बचाव कइल जा रहले हल, लेकिन जल्दीए खुद्दे
सर्वशक्तिमानता लगी हथियार से लैस हो गेते गेलइ। ग्रीक सम्राट् लोग, जे जादे चर्च के
विवाद में व्यस्त रहते जा हलइ बनिस्पत राज्य-कार्य में, आउ ओहे से पुरोहित लोग द्वारा
नियंत्रित कइल जा हलइ, ऊ सब लोग पर अत्याचार करते जा हलइ, जे जेसस (यीशु) के व्यवहार
आउ उपदेश के निर्वचन (अर्थनिर्णय) में ओकन्हीं से भिन्न हलइ। अइसने यातना विवेक आउ
तर्क के रचना पर विस्तार पइलकइ। अत्याचारी कोन्स्तानतिन, जे महान कहला हलइ, निकिया
परिषद् (Council of Nicaea) के निर्णय के
अनुपालन करते, आरिउस (Arius) के उपदेश के अभिशाप देलकइ, ओकर
पुस्तक के प्रतिबंधित कर देलकइ, ओकरा आग के भेंट करे के निर्णय देलकइ, आउ जे कोय ऊ
सब पुस्तक के रखतइ ओकरा मृत्यु दंड। सम्राट् थियोदोसिउस द्वितीय (Theodosius II)
नेस्तोरिउस (Nestorius) के सब्भे अभिशप्त
पुस्तक के संग्रह करके जला देवे के आदेश देलकइ। ख़ाल्केदोन परिषद् (Council of Chalcedon) में एवतिख़ेस (Eutyches) के रचनावली के बारे [*313] अइसने अध्यादेश जारी कइल गेलइ। युस्तिनियान के पान्देक्त
(Pandects of Justinian) में ई सब निर्णय
में से कुछ के सुरक्षित रक्खल हइ।[18] ऐ
मूर्खो! ओकन्हीं नञ् जानऽ हलइ कि क्रिश्चियन धर्म के मिथ्या अथवा मूर्खतापूर्ण निर्वचन
के नष्ट करके आउ कइसनो विचार के जाँच करे में दिमाग लगावे के प्रयास पर प्रतिबंध लगाके,
ओकन्हीं ओकर प्रगति के रोक रहले हल; सत्य के दृढ़ सहारा, विचार में विविधता, चर्चा
(बहस), आउ अपन विचार के स्वतंत्र अभिव्यक्ति से वंचित कर रहले हल। केऽ ई बात के गारंटी
दे सकऽ हइ कि नेस्तोरिउस, आरिउस, एवतिख़ेस (Nestorius,
Arius, Eutyches)
आउ दोसर-दोसर विधर्मी (heretics) लूथर के पूर्ववर्ती
नञ् होते जइते हल, आउ अगर सार्वभौम परिषद् (Oecumenical
Councils) के आयोजन नञ् कइल जइते हल, त देकार्त (Descartes) दस शताब्दी पहिले नञ् पैदा होते हल? अंधकार आउ अज्ञानता
के कइसन पिछला कदम उठावल गेलइ!
रोमन
साम्राज्य के पतन के बाद, मठवासी (monks) लोग यूरोप में
विद्या आउ विज्ञान के संरक्षक हलइ। लेकिन ओकन्हीं जे कुछ चाहऽ हलइ, ओकर लेखन कार्य
में स्वतंत्रता के बारे कोय एतराज नञ् करऽ हलइ। सन् 768 में अम्बरोसिउस ओतपेर्तुस
(Ambrosius Autpertus), जे सेंट बेनिडिक्ट
के अनुयायी हलइ, रहस्योद्घाटन (Apocalypse) पर अपन निर्वचन
[*314] पोप स्टेफ़ेन तृतीय (Pope Stephen III) के प्रेषित करते बखत आउ अपन कार्य के
जारी रक्खे खातिर अनुमति लगी निवेदन करते आउ ओकरा प्रकाशित करे के बारे, बोलऽ हइ, कि
ऊ लेखक लोग में से पहिला हइ जे अइसन अनुमति के निवेदन कर रहले ह। "लेकिन",
ऊ बात जारी रक्खऽ हइ, "लेखन कार्य के स्वतंत्रता गायब नञ् होवे, काहेकि नम्रता
स्वेच्छा से झुक गेलइ।"[19] सेन्स
परिषद् (Council of Sens) सन् 1940 में
अबेलार्द (Abelard) के विचार के प्रतिबंधित कर देलकइ, आउ पोप ओकर रचनावली
के आग के हवाले कर देवे के आदेश देलकइ।[20] लेकिन
न तो ग्रीस में आउ न रोम में, आउ न अलगे कधरो विचार के मामले में कोय जज के नियुक्ति
के उदाहरण हमन्हीं के मिल्लऽ हइ कि जे ई बात कहे के साहस करइ कि हमर अनुमति के निवेदन
करऽ, अगर तूँ अपन होंठ खोलके बोले लगी चाहऽ ह; हमरा हीं बुद्धि, विज्ञान आउ शिक्षा
पर स्वीकृति के मुहर देल जा हइ, आउ ऊ सब कुछ जे हमर मुहर के बेगर प्रकाशित होवऽ हइ,
ओकरा हम सब पहिलहीं मूर्खतापूर्ण, घृणास्पद आउ बेकार घोषित करबइ। अइसन शरमनाक आविष्कार
क्रिश्चियन पुरोहितगिरी लगी हलइ, आउ सेंसर-कार्य धर्माधिकरण (Inquisition) के समकालिक हलइ।
[*315] अकसर
इतिहास के पन्ना पलटते बखत हम सब के विवेक के साथ-साथ अंधविश्वास भी मिल्लऽ हइ, आउ
अत्यन्त अज्ञानता के समकालिक सबसे उपयोगी आविष्कार। ऊ बखत जबकि अभिव्यक्त विचार के
भीरु अविश्वास मठवासी लोग (monks) के सेंसर के
स्थापना करे लगी आउ विचार के अपन जन्म के बखत हीं दमन कर देवे लगी प्रेरित कइलकइ, ठीक
ओहे बखत कोलम्बस समुद्र के अनिश्चितता में अमेरिका के खोज करे लगी साहस कइलकइ; केप्लर
प्रकृति में गुरुत्वाकर्षण बल के अस्तित्व के खोज कइलकइ, जेकरा बाद में न्यूटन द्वारा
सिद्ध कइल गेलइ; ओहे समय में कोपर्निकस जन्म लेलकइ, जे अंतरिक्ष में आकाशीय पिंड सब
के कक्षा के रूपरेखा दर्शइलकइ। लेकिन मानवीय बुद्धिमता के बारे गहरा खेद के साथ हम
कहबइ कि महान विचार कभी-कभी अज्ञानता पैदा कइलकइ। पुस्तक मुद्रण सेंसर के जन्म देलकइ;
दार्शनिक बुद्धि अठरहमी शताब्दी में प्रबुद्ध[21] (Illuminati) के उत्पन्न कइलकइ।
सन्
1479 में हम पुस्तक मुद्रण हेतु अब तक के ज्ञात सबसे प्राचीन अनुमति पावल जा हइ। सन्
1480 में प्रकाशित होल “खुद के जानऽ” नामक शीर्षक वला पुस्तक के अन्त में [*316] निम्नलिखित अंश जोड़ल हइ – “हम, माफ़ेओ गेरार्दो
(Maffeo Gerardo) , भगमान के
कृपा से, वेनिस के प्राधिधर्माध्यक्ष (Patriarch) , दलमातिया के धर्माधिपति (Primate of Dalmatia), उपरिलिखित महोदय लोग के उपरिलिखित रचना
के बारे देल साक्षी के वाचन के बाद, आउ उनकन्हीं के निर्णय आउ संलग्न अधिकारपत्र के
अनुसार, घोषित करऽ हिअइ कि ई पुस्तक ऑर्थोडोक्स (प्राच्य) आउ भगवद्भीरु हइ।" सेंसर-कार्य
के प्राचीनतम स्मारक, लेकिन प्राचीनतम मूर्खता नञ्!
अभी
तक ज्ञात, सेंसर के बारे प्राचीनतम विधानीकरण (regulation,
ordinance),
सन् 1486 में पावल जा हइ, ठीक ओहे शहर में प्रकाशित, जाहाँ परी पुस्तकमुद्रण के आविष्कार
कइल गेले हल। मठवासीय प्राधिकारी (monastic
authorities)
के आभास हो गेलइ कि ई ओकन्हीं के शक्ति के विनाश के हथियार होतइ, कि ई सामान्य ज्ञान
के प्रचार-प्रसार त्वरित गति से करतइ, आउ सामान्य उपयोगिता पर आधारित नञ्, विचार पर
आधारित शक्ति, पुस्तक मुद्रण से गायब हो जइतइ। हियाँ परी हम सब के अनुमति देल जइतइ
[*317] कि एक दस्तावेज जोड़िअइ, जे अभियो अस्तित्व
में हइ, जे विचार अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता के विनाश आउ प्रबुद्धता (enlightenment) लगी कलंक दर्शावऽ हइ।
ग्रीक,
लैटिन आउ दोसर देशी भाषा में, बिन विद्वज्जन के पूर्व अनुमोदन के प्रकाशन के प्रतिषेध
के बारे उकाज़ (अध्यादेश), 1486 ई॰। (*)
"हम,
बेर्टोल्ड, भगमान के कृपा से, माइन्ट्स (Mainz) के पवित्र प्रान्त
के आर्कबिशप, जर्मनी में आर्कचान्सलर आउ एलेक्टर प्रिन्स[23]। हलाँकि
मानवीय ज्ञान के प्राप्ति खातिर मुद्रण के दैवी कला के माध्यम से प्रचुरता के साथ आउ
बड़ी असानी से विभिन्न ज्ञान-विज्ञान से संबंधित पुस्तक प्राप्त कइल जा सकऽ हइ; लेकिन
हमरा ई जनकारी में अइले ह कि कुछ लोग, अहंकार चाहे धन-दौलत के कामना से प्रेरित होके,
ई कला के दुरुपयोग करते जा हइ, आउ जे कुछ मानव जीवन में शिक्षा लगी देल गेले ह, ओकरा
विनाश आउ चुगली में बदलऽ हइ।
[*318] हम सब पवित्र पद आउ हमन्हीं के धर्म से संबंधित
अनुष्ठान पर पुस्तक देखते गेलिए ह, जेकर लैटिन से जर्मन में अनुवाद होले ह, आउ पवित्र
कानून पर बिन कोय ध्यान देले सामान्य जनता के हाथ में परिचालित कइल गेले ह, त आखिर
पवित्र नियम आउ कानून के निर्देश के बारे कीऽ कहल जाय; हलाँकि ई सब पुस्तक, धर्मविज्ञान
(theology) में कुशल, विद्वान आउ वाक्पटु लोग द्वारा तार्किक आधार पर आउ सावधानीपूर्वक
लिक्खल गेले ह, लेकिन ई विज्ञान अपने आप में एतना क्लिष्ट हइ कि सबसे वाक्पटु आउ सबसे
बुद्धिमान व्यक्ति लगी भी पूरा जीवन मोसकिल से एकरा लगी काफी होतइ।
कुछ
मूर्ख, साहसी आउ अज्ञानी लोग अइसन पुस्तक के सामान्य जन के भाषा में अनुवाद करे के
साहस करते जा हइ। कइएक विद्वज्जन ई अनुवाद के पढ़ला के बाद ई स्वीकार करऽ हथिन कि शब्द
के बहुत अस्वाभाविकता आउ दुष्प्रयोग के कारण मूल के अपेक्षा अधिक दुर्बोध हइ। त फेर
हम दोसर विज्ञान से संबंधित रचना के बारे कीऽ कह सकऽ हिअइ, जेकरा में [*319] ओकन्हीं अकसर झूठ जोड़ दे हइ, जेकरा झूठ शीर्षक दे
हइ, आउ सबसे बढ़के तो ई बात कि जेकरा में अपन कल्पना के सबसे प्रसिद्ध लेखक के मानते
जा हइ ताकि जादे से जादे खरीदार मिल्ले।
अइसनकन
अनुवादक लोग घोषित करे, अगर ओकन्हीं के सत्य से प्रेम हइ, त कइसनो इरादा से काहे नञ्
करते जाय, निम्मन इरादा से चाहे खराब इरादा से, एकरा से मतलब नञ् हइ; ओकन्हीं घोषित
करे कि कीऽ जर्मन भाषा उचित हइ ऊ बात के अभिव्यक्त करे खातिर, जे ग्रीक आउ लैटिन के
प्रतिष्ठित लेखक, क्रिश्चियन धर्म के उच्च विचार के बारे आउ दोसर विज्ञान के बारे सटीक
रूप से आउ विद्वत्तापूर्वक लिखते गेलथिन हँऽ? ई स्वीकार करे के चाही कि अपन (शब्दावली
के) अभाव के कारण, हम सब के भाषा ई उद्देश्य लगी बिलकुल यथेष्ट नञ् हइ, आउ एकरा चलते
कइएक चीज के अज्ञात नाम लगी नयका शब्द गढ़े पड़तइ; आउ अगर प्राचीन नाम के प्रयोग करऽ
हइ, त ठीक-ठीक अर्थ के विकृत कर देतइ; ओकर महत्त्व के विचार से पवित्र लेखन में जेकर
सबसे जादे भय हइ। काहेकि असभ्य [*320] आउ अज्ञानी
लोग के, आउ स्त्री जन के, जेकन्हीं के हाथ में पवित्र पुस्तक पड़तइ, केऽ असली अर्थ बतइतइ?
पवित्र गोस्पेल (मंगल समाचार) के पाठ, चाहे धर्मप्रचारक पॉल (Apostle Paul) के संदेश देखहो, हरेक विद्वान स्वीकार
करऽ हइ कि ओकरा में कइएक लिपिकीय (scribal) प्रक्षेप आउ
संशोधन हइ।
हम
जे कहलिए ह, ऊ लोग के काफी मालुम हइ। हम सब के काहे लगी ऊ बात पर सोचे के चाही, जेकरा
में कैथोलिक चर्च के लेखक द्वारा सबसे अधिक सावधानी बरते लगी कहल गेले ह? हम अनेक उदाहरण
दे सकऽ हिअइ, लेकिन जे कुछ हम पहिलहीं कह चुकलिए ह, ऊ एकरा लगी काफी हइ।
चूँकि
ई कला के शुरुआत, हमन्हीं के गौरवशाली शहर माइन्ट्स (Mainz) में, सही शब्द में कहल
जाय, त दैवी शक्ति से प्रकट होले ह, आउ आझ बहुत कुछ सुधारल आउ संपन्न हइ; त ई न्यायसंगत
हइ कि महत्त्वपूर्ण होवे के चलते ई कला के सुरक्षा अपन अधीन लेते जइअइ। काहेकि पवित्र
लेखन के निष्कलंक पवित्रता में सुरक्षित रखना
हमन्हीं के [*321] कर्तव्य हइ। ई तरह से धृष्ट
आउ दुष्ट लोग के अशुद्धि आउ धृष्टता के बताके, हमरा लगी जेतना संभव हइ ओतना कामना करते,
भगमान के सहायता से, जिनका से संबंधित ई काम हइ, पूर्वसूचना देवे लगी आउ लगाम कस्से
लगी, सब्भे के आउ हरेक व्यक्ति के, हमर क्षेत्राधिकार (jurisdiction) के पुरोहिती आउ
लौकिक नागरिक के, आउ सिमाना के बाहर व्यवसाय करे वला के, चाहे ऊ कइसनो पदवी वला आउ
रियासत के काहे नञ् होवे, ई (अध्यादेश) के साथ हरेक के आदेश दे हिअइ कि कोय भी रचना,
चाहे ऊ कइसनो विज्ञान के, कला के या ज्ञान के काहे नञ् रहे, ग्रीक, लैटिन चाहे दोसर
भाषा से जर्मन भाषा में अनुवाद नञ् कइल जइतइ, चाहे जे पहलिहीं अनुवाद कइल जा चुकले
होत, खाली शीर्षक के परिवर्तन के साथ, चाहे आउ कुछ के साथ, खुल्लमखुल्ला चाहे गुप्त
रूप से, सीधे चाहे परोक्ष रूप से, वितरित कइल चाहे बेचल नञ् जइतइ, जब तक कि मुद्रण
के पहिले चाहे मुद्रण के बाद लेकिन प्रकाशन के पहिले, यूनिवर्सिटी के हमन्हीं के प्रिय
[*322] सुप्रसिद्ध आउ उदार डाक्टर आउ मास्टर
के तरफ से मुद्रण चाहे प्रकाशन के निश्चित अनुमति नञ् रहतइ, यानी - हमन्हीं के शहर
माइन्ट्स में, धर्मविज्ञान में योहानेस बेर्त्राम फ़ॉन नाउमबुर्ग से, कानून में अलेक्ज़ेंडर
डिट्रिख़्ट से, चिकित्सा शास्त्र में थेओडेरिश फ़ॉन मेशेडऽ से, भाषाशास्त्र में आन्द्रेयास
ईलर से; हमन्हीं के एअरफ़ुर्ट शहर में एकरा लगी चयनित डाक्टर आउ मास्टर से; जबकि फ़्रांकफ़ुर्ट
शहर में, [कोय पुस्तक नञ् बेचल जइतइ[24],]
अगर बिक्री के अइसन प्रकाशित पुस्तक के जाँच आउ पुष्टि कोय प्रतिष्ठित आउ धर्मविज्ञान
के हमन्हीं के एगो शिष्ट मास्टर आउ एक चाहे दूगो डाक्टर आउ अनुमतिपत्रधारी (licentiates) द्वारा नञ् कइल जा हइ, जिनकर सलाना वेतन के खर्च
सिटी काउंसिल उठइतइ। अगर कोय हमन्हीं के ई एहतियाती अध्यादेश के उल्लंघन करे, चाहे
हमन्हीं के ई आदेश के विरुद्ध परामर्श, सहायता या सुविधा दे, खुद व्यक्तिगत रूप से
चाहे दोसरा के माध्यम से; [*323] त खुद के बहिष्कार
के दंड के भागी बनइतइ; आउ एकरा अलावे, ऊ सब पुस्तक रक्खे से वंचित हो जइतइ, आउ सो स्वर्ण
गुल्डेन[25]
हमन्हीं के कोषागार में चुकइतइ। आउ ई निर्णय के, कोय भी बिन हमर विशेष आदेश के,
उल्लंघन करे के साहस नञ् करे[26]।
सेंट मार्टिन के किला में प्रदत्त, हमर शहर माइन्ट्स में, आउ हमर मुहर के साथ। महिन्ना
जनवरी, सन् 1486 के चौठा दिन।"
ओहे
पूर्वोक्त (आर्कबिशप) से, सेंसर-कार्य के निष्पादन कइसे कइल जाय - "सन् 1486 के
ग्रीष्मकाल में बेर्टोल्ड आदि के, अत्यन्त प्रतिष्ठित, विद्वान आउ क्राइस्ट में हमन्हीं
के प्रिय जे॰ बेर्ट्राम, धर्मविज्ञान के डाक्टर के, अले॰ डिट्रिख़्ट, कानून के डाक्टर
के, थे॰ फ़ॉन मेशेडऽ, चिकित्सा शास्त्र के डाक्टर के आउ ए॰ ईलर, भाषाशास्त्र के मास्टर
के, अभिवादन आउ निम्नलिखित पर ध्यान हेतु निवेदन।
“विज्ञान
के कुछ अनुवादक आउ पुस्तक मुद्रक के प्रलोभन आउ जालसाजी के घटित घटना के बारे जानके,
आउ यथासंभव एकर पूर्वानुमान लगावे, [*324] आउ
आगू अइसन घटना के रोके लगी, आदेश दे हिअइ कि कोय भी हमर प्रान्त आउ क्षेत्राधिकार में,
जर्मन भाषा में पुस्तक अनुवाद करे, मुद्रण करे अथवा मुद्रित पुस्तक के वितरित करे के
साहस नञ् करे, जब तक कि अइसन रचना अथवा पुस्तक के, हमर शहर माइन्ट्स में, अपने सब द्वारा
समीक्षा नञ् कइल जाय, आउ जाहाँ तक कि विषय-वस्तु के संबंध हइ, त जब तक अनूदित कइल पुस्तक
के बिक्री लगी अपने सब द्वारा, उपर्युक्त अध्यादेश के अनुसार, अनुमोदन नञ् कइल जाय।
“अपने
सब के समझ-बूझ आउ सावधानी पर दृढ़ विश्वास करके, हम अपने सब के जिम्मेवारी सौंपऽ हिअइ
- जब कभी अनुवाद, मुद्रण अथवा बिक्री के इरादा से कोय रचना अथवा पुस्तक, अपने सब के
सामने प्रस्तुत कइल जाय, त अपने सब एकर विषय-वस्तु के जाँच करथिन, आउ अगर एकर वास्तविक
अर्थ समझना असान नञ् होवे, चाहे भ्रान्ति अथवा प्रलोभन पैदा करे, चाहे पवित्रता के
अनादर करे के संभावना होवे, त एकरा अस्वीकार कर देते जाथिन; लेकिन जेकर अपने सब अनुमोदन
करथिन, तब अपने सब अपन हाथ से हस्ताक्षर करथिन, आउ ठीक अन्त में अपने में से [*325] दू व्यक्ति; ताकि ई स्पष्ट होवे कि तत्तत् पुस्तक
अपने से निरीक्षण आउ अनुमोदन कइल गेले ह। हम सब के भगमान आउ राष्ट्र लगी ई आनंददायक
आउ लाभदायक कर्तव्य के निष्पादन करते जाथिन। सेंट मार्टिन के किला में प्रदत्त, सन्
1486 के 10 जनवरी।"
[1] रादिषेव के ई विषय पर पृष्ठ
331 तक के चर्चा के अधिकांश के मुख्य स्रोत हइ - Johann
Beckmann: Beiträge zur Geschichte der Erfindungen (आविष्कार के इतिहास में योगदान),
5 vols. (Leipzig, 1786-1805), I, 95-108; II, 246-253. पूरा भाग-I सन् 1786 में प्रकाशित
होलइ, पूरा भाग-II सन् 1788 में, लेकिन हरेक भाग धीरे-धीरे कइएक अलग-अलग खंड में निकसलइ।
रादिषेव जे सामग्री के उपयोग कइलथिन ऊ हलइ, भाग-I के खंड-I, भाग-II के खंड-II, जे क्रमशः
1783 आउ 1785 में निकसलइ। अंग्रेजी अनुवादः "A History of Inventions,
Discoveries, and Origins", Translated from the German into English by
William Johnston; 4th edition, revised and enlarged by William Francis and J.W.
Griffith, Vol.II, London, 1846; ch. "Book-censors", pp.512-518.
[2] Protagoras, ca. 480-411 B.C., Greek
Sophist who said, "Man is the measure of all things". In 411 he was accused of impiety by
Pythodorus, one of the Four Hundred, and his book “On the Gods” was
condemned to be burned. Diogenes Laertius, Lives of Eminent Philosophers,
IX, viii, 50-56. Cicero, De natura deorum, I, 23.
[3] सुकरात - दे॰ ब्रोन्नित्सी, पृ॰
[*116]; क्रेस्तित्सी, पृ॰ [*184].
[4] तितुस लिविउस - दे॰ पदबिरेज़्ये,
पृ॰ [*88].
[5] नुमा - दे॰ विद्रपुस्क, पृ॰
[*285].
[6] प्रेतोर (praetor)
- each of two ancient Roman magistrates ranking below consul. [consul - (in
ancient Rome) each of the two annually elected chief magistrates who ruled the
republic.]
[7]
13 B.C. Suetonius, Lives of the Caesars,
Vol.I, Book II ("The Deified Augustus"), text
with English translation by J.C. Rolfe,
London, 1979, p.171 (section xxxi); Suetonius, The Lives of the Twelve
Caesars, English translation by
Alexander Thomson, London, 1911, p.95 (section xxxi).
[8] सगुनिया (haruspex) - प्राचीन
रोम में बलि देवे जाय वला पशु के आंतरिक अंग के देखके भविष्य बतावे वला ज्योतिषी।
[9] सीज़र अगस्तस (63 ई॰पू॰ - 14 ई॰)
- रोम के पहिला सम्राट् (सीज़र)।
[10] तितुस लबियेनुस (Titus
Labienus)- लबियेनुस
(मृत्यु 12 ई॰), रोमन इतिहासवेत्ता एवं वक्ता, गणतंत्र के पक्षधर, साम्राज्यवाद के
विरोधी।
[11] सेनेका अलंकारशास्त्री (Seneca the Rhetorician) - Lucius
Annaeus Seneca Rhetor, "the Elder Seneca", ca. 54 B.C.-A.D. 39,
father of Seneca the philosopher and playwright. The passages quoted are from
his Controversiae, Book X, Preface 5-8.
[12] Benito Arias Montano, 1527-1598,
Spanish theologian, was the chairman of a committee of theologians who, at the
request of the Duke of Alba, published an Index expurgatorius librorum
at Antwerp in 1571, a kind of supplement to the Index published by the Council
of Trent in 1564. Arias Montano is better known as the editor of the famous
Antwerp polyglot Bible, Biblia sacra hebraice, chaldaice graece et latine
Phillipi 11 Regis catholici pietate et studio ad Sacrosanctae Ecclesiae usum,
cura et studio В. A. M., 8 vols. (Antwerp 1569-1573). Leon de Castro,
Professor of Oriental Languages at Salamanca, attacked the earlier volumes and
charged Arias Montano with heresy in 1571, but Pope Gregory XIII gave both the
polyglot Bible and Arias Montano himself his blessing on August 23, 1572. See
A. Lambert, "Arias Montano", Dictionnaire d'histoire et de
geographie ecclesiastiques, IV (Paris, 1930), 129-145.
[13] Cf. Blackstone, Commentaries
on the Laws of England, IV (1769), 151 (book IV, ch. 11, sect. 13):
"By the law of the twelve tables at Rome, libels, which affected the
reputation of another, were made a capital offence: but, before the reign of
Augustus, the punishment became corporal only. Under the emperor Valentinian it
was again made capital, not only to write, but to publish, or even to omit
destroying them. Our law, in this and many other respects, corresponds rather
with the middle age of Roman jurisprudence, when liberty, learning, and
humanity, were in their full vigour, than with the cruel edicts that were established
in the dark and tyrannical ages of the antient decemviri, or the later
emperors."
[14] A.D. 25. Tacitus, Annals,
IV, 34-35. Aulus Cremutius Cordus, Roman historian in the time of Augustus and
Tiberius. It was not Cassius Severus whom Cremutius called the last Roman, but
Caius Cassius Longinus, Brutus' fellow conspirator against Caesar. Cremutius,
condemned by the Senate, committed suicide, A.D. 25. Cassius Severus (ca. 50
B.C.-A.D. 33), Roman orator and satirist, was banished by Augustus ca. A.D. 9,
and again by Tiberius ca. A.D. 24.
[15] Antiochus IV Epiphanes, ca.
200-164 B.C.; Seleucid King of Syria, 175-164 B.C.; burned the Sacred Books of
the Jews ca. 168 в.с. See (in The Apocrypha to the Old Testament) The
First Book of the Maccabees, 1:10-6:16.
[16] Diocletian, A.D. 245-313; Roman
Emperor, 284-305; on February 23, 303 issued his edict commanding that the
Christian Scriptures be burned. See Eusebius of Caesarea, Historia
ecclesiastica, VIII, 2; and Lactantius, De mortibus persecutorum,
ch. 12.
[18] The Council of Nicaea
anathematized Arius, and the Emperor Constantine I ordered his books burned,
A.D. 325: Sozomen, Historia ecclesiastica, I, 21; Socrates
Scholasticus, Historia ecclesiastica, I, 9, letter of Constantine
to the bishops and people. Nestorius was condemned by the Council of Ephesus,
A.D. 431: Mansi, ed., Sacrorum Conciliorum Nova et Amplissima Collectio,
IV (Florence, 1760), 1211. The Emperor Theodosius II in 435 ordered Nestorius'
writings burned: Sacrorum Conciliorum, V (Florence, 1761), 413.
The Codex lustinianus, book I, title 5, section 6, sub-section 1,
contains an order for the burning of Nestorius' books. Eutyches was
excommunicated by the Council of Chalcedon, A.D. 451: Sacrorum
Conciliorum, VI (Florence, 1761), 745 ff. In 452 the Emperor Marcian
ordered that the writings of Eutyches be burned: Sacrorum Conciliorum,
VII (Florence, 1762), 501 ff. In Justinian's Pandects (Digests),
book X, title 2, Section 4, subsection 1, it is ordered that books of magic and
other objectionable books be destroyed.
[19] Ambrosius Autpertus, born in Gaul,
wrote ten books of commentaries on the Apocalypse, became abbot of the
monastery of St. Vincent on the Volturno in Italy, died in 778. See Maxima
Bibliotheca Veterum Patrum, et Antiquorum Scriptorum Ecclesiasticorum,
ed. Marguerin de La Bigne et al., 27 vols. (Lyons, 1677), XIII, 403-404, for
his letter to the Pope; and XIII, 404-657, for his commentaries on the
Apocalypse.
[20] Sacrorum Conciliorum, XXI
(Venice, 1776), 559-570.
[21] Illuminati, a benevolent
society founded in 1776 by Adam Weishaupt, a professor at the University of
Ingolstadt, Bavaria. Closely associated with the Masons, they had three classes
of membership — novices, freemasons, and priests. The lower classes were
pledged to obey their superiors. In the late eighteenth century, the Illuminati
had the reputation of being politically subversive. Thomas Mann includes an
interesting discussion of the Illuminati in The Magic Mountain,
trans. H. T. Lowe-Porter (New York, 1953), pp. 509 ff. The fullest account is
Leopold Engel, Geschichte des llluminaten-Ordens (Berlin, 1906).
[22] Codex diplomaticus
anecdotorum, res Moguntinas, Francicas, Trevirenses, Hassiacas, finitimarumque
regionum пес поп ius Germanicum et S. R. I. historiam vel maxime illustrantium,
ed Valentin Ferdinand, Freiherr von Gudenus, et al., 5 vols. (Gottingen,
Frankfurt, and Leipzig, 1743-1768), IV (1758), 469-471, 473-474. Hereafter
cited as Codex.
[23] A German prince entitled to take
part in the election of the Holy Roman Emperor.
[24] "कोय पुस्तक नञ् बेचल
जइतइ" - एतना अंश मूल रूसी पाठ में नञ् हइ, लेकिन अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच
आउ इटैलियन अनुवाद में ई अंश डालल हइ। ई मगही अनुवाद में भी एतना अंश कोष्ठक में डाल
देल गेले ह, नञ् तो अर्थ ठीक नञ् बैठऽ हइ।
[25] गुल्डेन = गिल्डर; (ऐतिहासिक)
नेदरलैंड, जर्मनी आउ आस्ट्रिया में प्रयुक्त सोना चाहे चाँदी के सिक्का। अंग्रेजी आउ
इटैलियन अनुवाद में "गुल्डेन" के स्थान पर "फ़्लोरिन"
(florins) के प्रयोग हइ, जे Codex में प्रयुक्त मूल लैटिन पाठ के अनुसार उचित
हइ।
[26] Codex,
p. 471, के मूल लैटिन
पाठ के अनुसार "आउ कोय भी, बिन हमर विशेष अनुमति के, ई अध्यादेश के उल्लंघन कइला
के चलते केकरो दंड से मुक्त करे के साहस नञ् करे।"
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