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Friday, October 04, 2019

वेताल कथा - 2. प्रस्तावना (Frame Story)


प्रस्तावना (Frame Story)
बहुत प्राचीन काल के बात हइ। धारा नगरी में गंधर्वसेन नाम के एगो राजा राज करऽ हलथिन। उनका चार रानी हलथिन। उनका छो लड़का हलथिन जे सब के सब बड़ी चतुर आउ बलवान हलथिन। संयोग से एक दिन राजा के मृत्यु हो गेलइ आउ उनकर जगह पर उनकर बड़का बेटा शंख गद्दी पर बैठलइ। ऊ कुछ समय तक राज कइलकइ, लेकिन छोटका भाय विक्रम ओकरा मार देलकइ आउ खुद राजा बन बैठलइ। ओकर राज्य दिनोदिन बढ़ते गेलइ आउ ऊ पूरा जम्बूद्वीप के राजा बन बैठलइ। एक दिन ओकर मन में अइलइ कि घूमके सैर करे के चाही आउ जे-जे देश के नाम हम सुनलुँ हँ, ऊ सब के देखे के चाही। से ऊ गद्दी पर अपन छोटका भाय भर्तृहरि के सौंपके, योगी बनके, राज्य से निकस पड़लइ।


ऊ नगर में एगो ब्राह्मण तपस्या कर रहले हल। एक दिन देवता प्रसन्न होके ओकरा एगो फल देलथिन आउ कहलथिन कि एकरा जे कोय खइतइ, ऊ अमर हो जइतइ। ब्राह्मण ऊ फल लाके अपन पत्नी के दे देलकइ आउ देवता के बात बता देलकइ। ब्राह्मणी बोललइ, "हम सब अमर होके कीऽ करते जइबइ? हमेशे भीख माँगते रहबइ। एकरा से बेहतर तो मर जाना निम्मन होत। तूँ ई फल के राजा के दे आहो आउ बदले में कुछ धन ले आवऽ।"
ई सुनके ब्राह्मण फल लेके राजा भर्तृहरि बिजुन गेलइ आउ पूरा हाल कहके सुनइलकइ। भर्तृहरि फल ले लेलकइ आउ ब्राह्मण के एक लाख रुपइया देके विदा कर देलकइ। भर्तृहरि अपन एक रानी के बहुत चाहऽ हलइ। ऊ महल जाके ऊ फल ओकरे दे देलकइ। रानी के शहर के कोतवाल के साथ दोस्ती हलइ। ऊ, ऊ फल कोतवलवा के दे देलकइ। कोतवलवा एगो वेश्या भिर जइते रहऽ हलइ। ऊ, ऊ फल के वेश्या के दे अइलई। वेश्या सोचलकइ कि ई फल तो राजा के खाय के चाही। ऊ ओकरा लेके राजा भर्तृहरि बिजुन गेलइ आउ ओकरा दे देलकइ। भर्तृहरि ओकरा बहुत धन देलकइ, लेकिन जब ऊ, ऊ फल के निम्मन से देखलकइ त ओकरा पछान लेलकइ। ओकरा दिल में बड़ी चोट लगलइ, लेकिन ऊ केकरो से कुछ नञ् बोललइ। ऊ महल में जाके रानी से पुछलकइ कि तूँ फल के कीऽ कइलऽ। रानी कहलकइ, "हम तो खा गेलिअइ।" राजा ऊ फल के निकासके देखा देलकइ। रानी सकपका गेलइ आउ ऊ सब कुछ सच-सच बता देलकइ। भर्तृहरि पता लगइलकइ त ओकरा पूरा बात ठीक-ठीक मालुम हो गेलइ। ऊ बहुत दुखी होलइ। ऊ सोचलकइ, ई दुनियाँ माया-जाल हइ। एकरा में अप्पन कोय नञ्। ऊ फल लेके बहरसी अइलइ आउ ओकरा धोलवाके खुद्दे खा गेलइ। फेनु राजपाट छोड़के, योगी के भेस धरके, जंगल में तपस्या करे चल गेलइ।
भर्तृहरि के जंगल चल गेला से विक्रम के गद्दी सूना हो गेलइ। जब राजा इन्द्र के ई समाचार मिललइ त ऊ एगो राक्षस के धारा नगरी के रखवाली खातिर भेज देलथिन। ऊ रात-दिन हुएँ रहे लगलइ।
भर्तृहरि के राजपाट छोड़के जङगल चल जाय के बात विक्रम के मालुम होलइ, त ऊ लौटके अपन देश चल अइलइ। आधी रात के बखत हलइ। जब ऊ नगर में घुस्से लगलइ त रक्षसवा ओकरा रोकलकइ आउ पुछलकइ, "तूँ केऽ हँ? आउ जा हीं काहाँ? खड़ी रह आउ अपन नाम बता।" राजा कहलकइ, "हम विक्रम हिअउ। ई हम्मर राज हके। तूँ हमरा रोके वला केऽ?"
रक्षसवा बोललइ, "हमरा राजा इन्द्र ई नगर के रखवाली करे लगी भेजलथन हँ। तूँ सचमुच राजा विक्रम हकऽ त आवऽ, पहिले हमरा से युद्ध करऽ। फेर शहर में जा"
दुन्नु में लड़ाय होलइ। राजा थोड़हीं देर में रक्षवा के पछाड़के ओकर छाती पर चढ़ बैठलइ। तब रक्षसवा बोललइ, "ऐ राजा, तूँ हमरा पछाड़ देलऽ। हम तोरा जीवन-दान दे हियो।"
तब राजा हँसके कहलकइ, "तूँ पागल हो गेलँऽ हँ, केकरा जिँन-दान दे हीं, हम चाहिअउ त तोरा मार डालिअउ। तूँ हमरा की जीवन-दान देमँऽ।" तब ऊ रक्षसवा बोललइ, "ऐ राजा! हम तोरा काल से बचावऽ हियो। पहिले हमर एक बात सुन्नऽ, फेर बेफिकिर होके पूरा दुनियाँ पर राज करऽ।"
आखिर राजा ओकरा छोड़ देलकइ आउ ओकर बात ध्यान से सुन्ने लगलइ। तब रक्षसवा बोललइ, "ऐ राजा! तूँ तीन अदमी एक्के नगर, एक्के नक्षत्र आउ एक्के मुहूर्त में पैदा होते गेलऽ ह। तूँ राजा के घर में पैदा होलऽ, दोसरा तेली के घर में आउ तेसरा कुम्हार के हियाँ। तूँ हियाँ राज करऽ ह, तेलिया पताल के राज करऽ हलइ। कुम्हरवा योग साधके तेलिया के मारके मसान में पिशाच बनाके सिरिस के पेड़ से लटका देलके ह। अब ऊ तोरा मारे के फिराक में हको। ओकरा से सवधान रहिहऽ।"
एतना कहके रक्षसवा चल गेलइ आउ राजा महल में आ गेलइ। राजा विक्रम के देखके सब के बड़ी खुशी होलइ। नगर में आनन्द मनावल गेलइ। राजा फेर से राज करे लगलइ।
एक दिन के बात हइ। शान्तिशील नाम के एगो योगी राजा बिजुन दरबार में अइलइ आउ ओकरा एगो फल देके खुद एगो आसन पर बैठ गेलइ। फेर एक घड़ी के बाद चल गेलइ। राजा के आशंका होलइ कि रक्षसवा जे अदमी के बारे बतइलके हल, कहीं ई ओहे तो नञ् हइ! ई सोचके ऊ फल नञ् खइलकइ, भण्डारी के बोलाके ओकर हाथ में देलकइ आउ कहलकइ कि ई फल के निम्मन से रखिहँऽ। योगी रोज आवइ आउ राजा के एक फल देके चल जाय।
संयोग से एक दिन राजा अपन अस्तबल देखे गेले हल। योगी हुएँ पहुँचलइ आउ फल राजा के हाथ में दे देलकइ। राजा ओकरा उछललकइ त ऊ हाथ से छूटके जमीन पर गिर गेलइ। तखनिएँ एगो बन्दर ओकरा झपटके उठा लेलकइ आउ तोड़ देलकइ। ओकरा में से एगो लाल निकसलइ जेकर चमक से सबके आँख चौंधिया गेलइ। राजा के बड़ी अचरज होलइ। ऊ योगी से पुछलकइ, "अपने ई लाल हमरा रोज काहे लगी देके जा हथिन?"
योगी जवाब देलकइ, "महाराज! राजा, गुरु, ज्योतिषी, वैद्य आउ बेटी, इनकर घर कभी खाली हाथ नञ् जाय के चाही।"
राजा भण्डारी के बोलाके पहिले के सब फल मँगवइलकइ। तोड़वइला पर सब्भे में से एक-एक लाल निकसलइ। एतना लाल देखके राजा के बड़ी हर्ष होलइ। ऊ जौहरी के बोलाके ओकर कीमत पुछलकइ। जौहरी बोललइ, "महाराज, ई सब लाल एतना कीमती हइ कि हरेक लाल के एक-एक करोड़ रुपइया भी कहिअइ त कम पड़तइ। एक-एक लाल एक-एक राज्य के बराबर हइ।"
एतना सुनके राजा बहुत खुश होलइ आउ जौहरी के इनाम देके बिदा कइलकइ। फेनु योगी के हाथ पकड़के गद्दी पर ले गेलइ आउ बोललइ, " योगिराज! हमर तो पूरा मुल्क भी एक लाल के बराबर नञ् हइ। अपने दिगंबर होके जे एतना रतन हमरा देलथिन, एकरा पीछू कीऽ कारण हइ, से हमरा बताथिन।"
योगी बोललइ, "यंत्र, मंत्र, औषध, धर्म, घर के हाल, हराम के खाना, सुन्नल बुरा बात - ई सब मजलिस में नञ् कहल जा हइ, एकान्त में कहबो। ई कायदा हइ कि जे बात छो कान में पड़ऽ हइ, ऊ गुप्त नञ् रह सकऽ हइ, चार कान के बात कोय नञ् सुन्नऽ हइ, आउ दू कान के बात ब्रह्मा के भी नञ् मालुम, अदमी के बाते की करना।"
राजा ओकरा एकान्त में ले गेलइ। हुआँ गेला पर योगी बोललइ, "महाराज, बात ई हइ कि गोदावरी नदी के किनारे मसान में हम एगो मंत्र सिद्ध कर रहलिए ह। ऊ सिद्ध होला पर हमरा अष्टसिद्धि मिल जात। हम तोहरा से भिक्षा माँगऽ हियो कि एक रोज तूँ हमरा भिर रात भर रहिहऽ। तोहर हमरा साथ रहला पर हमर मंत्र सिद्ध हो जात।"
तब राजा कहलकइ, "ठीक हइ, हम आ जइबइ। हमरा ऊ दिन बता देथिन।"
योगी कहलकइ, "भादो कृष्णपक्ष चतुर्दशी मंगलवार के साँझ हथियार से लैस होके तूँ अकेल्ले हमरा बिजुन आ जइहऽ।"
एकर बाद योगी अपन मठ चल गेलइ आउ सब समान लेके तैयार होके मरघट में जाके बैठ गेलइ।
ऊ दिन अइला पर राजा अकेल्ले हुआँ पहुँचलइ। योगी ओकरा अपना भिर बैठा लेलकइ व। राजा की देखऽ हइ कि चारो दने भूत-प्रेत आउ डायन तरह-तरह के भयंकर सूरत बनाके नाचऽ हइ आउ योगी बीच में बैठल दू गो कपाल बजावऽ हइ। राजा ई सब देखके बिलकुल नञ् डरलइ आउ थोड़े देर बैठला पर राजा पुछलकइ, "महाराज, हमरा लगी की आज्ञा हइ?"
योगी कहलकइ, "राजन्, हियाँ से दक्षिण दिशा में दू कोस के दूरी पर मसान में एगो सिरिस के पेड़ पर एगो मुर्दा लटकल हको। ओकरा हमरा भिर ले आवऽ, तब तक हम हियाँ पूजा करबो।"
एतना सुनके राजा हुआँ से चल देलकइ। बड़ी भयंकर रात हलइ। सगरो अन्हेरा हलइ। जोर के पानी बरस रहले हल। भूत-प्रेत शोर मचा रहले हल। साँप आ-आके गोड़ में लिपट जा हलइ जेकरा मंत्र पढ़के छोड़ा ले हलइ। राजा हिम्मत करके आगू बढ़ते गेलइ। जब मसान में पहुँचलइ त देखऽ हइ कि शेर दहाड़ रहल ह, हाथी चिंघाड़ रहल ह, भूत-प्रेत अदमी लोग के पटक-पटकके मार रहल ह आउ चारो दने से अवाज आ रहल ह, "मार मार, ले ले, खबरदार, जाय नञ् पावे।" राजा ई हाल देखके डरलइ नञ्, बेधड़क चलते गेलइ आउ सिरिस के पेड़ भिर पहुँच गेलइ। पेड़ जड़ से फुलंगी तक आग से दहक रहले हल। राजा सोचलकइ, हो-न-हो, ई ओहे योगी हइ, जेकरा बारे राक्षस बतइलके हल। पेड़ पर रस्सी से बन्हल मुर्दा लटक रहले हल। राजा पेड़ पर चढ़ गेलइ आउ तलवार से रस्सी काट देलकइ। मुर्दा निच्चे गिर पड़लइ आउ आग गिरतहीं छाती पीट-पीटके कन्ने लगलइ।
राजा निच्चे आके पुछलकइ, "तूँ केऽ हँऽ?"
राजा के एतना कहना हलइ कि ऊ मुर्दा ठठाके हँस पड़लइ। राजा के बड़ी अचरज होलइ जब देखलकइ कि मुर्दा जाके ओहे पेड़ से लटक गेलइ। राजा फेर चढ़के उपरे गेलइ आउ रस्सी काटके मुर्दा के बगल में दबइलकइ आउ निच्चे अइलइ। पुछलकइ, "चंडाल, बता तूँ केऽ हँऽ?"
मुर्दा कुछ जवाब नञ् देलकइ। राजा सोचलकइ, शायद ई ओहे तेली हइ जेकरा बारे रक्षसवा बतइलके हल। फेर राजा ओकरा एगो चद्दर में बन्हलकइ आउ योगी बिजुन ले चललइ। रस्ता में ऊ मुर्दा बोललइ, "हम वेताल हिअउ। तूँ केऽ हँऽ आउ हमरा काहाँ लेले जा रहलँऽ हँऽ?"
राजा कहलकइ, "हमर नाम विक्रम हके। हम धारा नगरी के राजा ही। हम तोरा योगी बिजुन ले जा रहलियो ह।"
बेताल बोललइ, "हम एक शर्त पर चलबो। अगर तूँ रस्ता में कुच्छो बोलबऽ त लौटके फेर से पेड़ पर जाके लटक जइबो।"
राजा ओकर बात मान लेलकइ। फेनु वेताल बोललइ, "पंडित, चतुर आउ ज्ञानी, इनकर दिन निम्मन-निम्मन बात में बित्तऽ हइ, जबकि मूर्ख लोग के दिन कलह आउ नीन में। निम्मन होतो कि हमन्हीं के राह निम्मन बात के चर्चा में बीत जाय। हम तोरा एगो कहानी सुनावऽ हियो। लऽ, सुन्नऽ।



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