लेखक - रामनाथ शर्मा, अमहरा, पटना
मगही-व्याकरण, ओकर शब्द-भंडार, ध्वनि, कहाउत, मुहावरा, रचना आउ भाषा-वैज्ञानिक पक्ष आदि के सम्पन्न बनावे में जउन लोग के हाथ रहल हे ओकरा में अंगरेज विद्वान फैलन, फ्रेडरिक, केलॉग आउ डॉ॰ ग्रियर्सन के नाम आदर के साथ लेल जाहे । हिन्दुस्तानी लोग में विश्वनाथ प्रसाद, डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री, राजेन्द्र कुमार यौधेय, डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी, डॉ॰ युगेश्वर, डॉ॰ ब्रजमोहन पाण्डेय 'नलिन', राजेश्वरी प्रसाद सिन्हा 'अंशुल', डॉ॰ सरयू प्रसाद, डॉ॰ त्रिभुवन ओझा, डॉ॰ रामानुग्रह शर्मा, डॉ॰ कुमार इन्द्रदेव, डॉ॰ सरोज कुमार त्रिपाठी, डॉ॰ जगदीश प्रसाद, डॉ॰ राम प्रसाद सिंह आउ डॉ॰ उमेशचन्द्र मिश्र के नाम विशेष रूप से उल्लेख लाइक हे ।
अइसे तो ई सबके भरपूर योगदान रहबे कैलक, बाकि राजेन्द्र कुमार यौधेय आउ डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी के अप्पन आत्म पहचान आउ महत्त्व हे । ई लोग अप्पन मातृभाषा मगही में लिख के विशेष आदर के पात्र बनलन आउ लोग तो अंगरेजी इया हिन्दी भाषा के माध्यम से ऊ काम कैलन । मगही भाषा के लिखवइया में भी हम डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी, एम॰ए॰ (हिन्दी आउ पालि), डी॰लिट्॰, पूर्व रीडर, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, पटना विश्वविद्यालय के सबसे ऊपर स्थान मानऽ ही । हमरा समझ से मगही व्याकरण के क्षेत्र में उनका ओहे स्थान मिले के चाही जे हिन्दी-व्याकरण के क्षेत्र में पं॰ कामता प्रसाद गुरु, साहित्य वाचस्पति, व्याकरणाचार्य के मिलल ।
अर्याणी जी के पहिले जउन लोग लिखलन उनकर रचना सब अंग से पूरा न भेल । जइसे यौधेय जी के 'मगही भासा के बेआकरन', पहिला भाग प्रकाशित तो ३० अगस्त १९५६ के भेल, बाकि ओकरा हम ग्रियर्सन साहेब के ढंग पर लिखल मानऽ ही । ५६ पेज के रचना में १९१ नियम आयल हे । ईमानदार लेखक के सराहना ई लेल करे लाइक हे कि ऊ निवेदन में स्पष्ट कर देलन हे - "हम डाक्टर ग्रियर्सन साहेब के रिनी ही । उनकर बेआकरन के केतना बात हम लेली हे । नियम २२, २४, २५, २६, ३३, ३९, ४०, ६८, ६९, ८१, ८८, ९२ से ९७ तक आउ १२९ से १३८ तक में देल विचार करीब-करीब बिल्कुले उनकरे गिरामर के विचार हे ।" फिर भी ऊ काफी बड़ाई के पात्र हथ । १९५६ में उनका निअन आउ के भेल ? उनकर व्याकरण पटना जिला में दक्खिनी हिस्सा आउ गया जिला के बोलल जाय ओली मगही के आधार पर हे । एकरा में पूरा मगही क्षेत्र न आयल ।
जहाँ तक अंशुल जी के ५ जुलाई १९७० में मलयज प्रकाशन, गया से छपल 'मगही-व्याकरण' के बात हे, इहे कहल जा सकऽ हे कि छब्बीस पेज के ई रचना व्याकरण सम्बन्धी सब बात के अपना में समावेश न कर सकल हे । फिन एकरा में कैथी लिपि में लिखल मगही के आधार पर अप्पन विचार के सुनिश्चित कैलन हे । इनका कहनाम हे - "देवनागरी की वर्तनी मगही भी स्वीकार कर ले, यह मुझे मान्य नहीं ।" ई रचना खड़ी बोली में हे, जे बतावऽ हे कि व्याकरणकार के झुकाव मगही के प्रति न हे । ई कहऽ हथ - "प्रस्तुत पुस्तिका में मैं मगही भाषा के व्याकरण के निर्माण की दिशा में कुछ संकेत करने जा रहा हूँ ।"
अब रहल बात डॉ॰ युगेश्वर के व्याकरण के सम्बन्ध में । ओकर नाम हे 'मगही भाषा' । ई भारतीय साहित्य संस्थान, काशी विद्यापीठ, वाराणसी-२ से दिसम्बर १९६९ में प्रकाशित भेल । एकर आधार हे लेखक के एम॰ए॰ के थीसिस । ई मैथिली, भोजपुरी आउ दोसर भारतीय भाषा के सहारे लेके तइयार कैल गेल हे । एकरा में मगही के बड़ा क्षेत्र के समेटल गेल हे । लेखक मगही के ध्वनि-समूह, प्रत्यय, संज्ञा, लिंग, वचन, कारक रूप, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, अव्यय आउ पूर्वी मगही पर ठीक से प्रकाश डाललन हे ।
शोध-प्रबन्ध के माध्यम से जउम लोग मगही भाषा , व्याकरण, ध्वनि, शब्दावली आदि के बारे में विचार कैलन, ओकरा में डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी (मगही भाषा और साहित्य), श्रीकान्त शास्त्री (पटना एवं गया में बोली जानेवाली मगही का भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन), डॉ॰ ब्रजमोहन पाण्डेय 'नलिन' (मगही अर्थविज्ञान का विश्लेषणात्मक निर्वचन), डॉ॰ त्रिभुवन ओझा (बिहारी बोलियों का तुलनात्मक अध्ययन), डॉ॰ सरयू (मगही वर्तनी तथा ध्वनि), डॉ॰ लक्ष्मण प्रसाद सिन्हा (मगही एवं भोजपुरी की क्रियाएँ), डॉ॰ शिवरानी (मगही की कृषक एवं ग्रामोद्योग शब्दावली), डॉ॰ जगदीश प्रसाद (मगही कहावतों का विश्लेषणात्मक अध्ययन), डॉ॰ रामानुग्रह शर्मा (मगही कहावतों का समाजशास्त्रीय अध्ययन), डॉ॰ उमेशचन्द्र मिश्र (मगही क्रियापदों का भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन) आदि के नाम आवऽ हे ।
लेकिन व्याकरणिक पक्ष के दृष्टि से डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी के छोड़ के आउ लोग के रचना के सर्वांगपूर्ण न कहल जा सके । इहे तरह से डॉ॰ उमाशंकर भट्टाचार्य के 'मगही कहाउत संग्रह' आउ जयनाथ पति, महावीर सिंह के 'मगही मुहावरा और बुझौवल' एकपक्षीय रचना हे । जहाँ तक अंगरेज लेखक के सवाल हे, ई कहल जा सकऽ हे कि एकरा में जॉर्ज ग्रियर्सन मार्गदर्शक के काम कैलन । उनकर रचना 'सेवन ग्रामर्स ऑफ द डायलेक्ट्स ऐण्ड सबडायलेक्ट्स ऑफ द बिहारी लैंग्वेज' के तीसरा भाग, 'बिहार पीजेंट लाइफ', 'लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया' के पचमा भाग आउ 'ए कम्पेरेटिव डिक्शनरी ऑफ बिहारी लैंग्वेज' के सदा इयाद कैल जायत । रेवरेण्ड एच॰एम॰ केलॉग के रचना 'ए ग्रामर ऑफ दी हिन्दी लैंग्वेज' में १४ बोली के शब्द आउ धातु रूप के वर्णन करे में मगही के भी बखान भेल हे । इहे तरह से फैलन के योगदान मगही कहाउत के संग्रह करे में आउ हॉर्नले के शब्दकोश निर्माण में भेल । क्रिश्चियन मिशन प्रेस, कलकत्ता कैथी लिपि के सहारा लेके मगही व्याकरण निकाललक । बाकि ऊपर के सब रचना अंगरेजी में हे ।
ऊपर के पृष्ठभूमि में अब डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी के मगही के व्याकरण क्षेत्र में योगदान देखल जाय । इनकर लिखल सात किताब में मगही-व्याकरण आउ रचना स्थान पौलक हे । ई हे –
१. मगही भाषा और साहित्य - बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना
२. मगही व्याकरण कोश - हिन्दी साहित्य संसार, दिल्ली
३. मगही व्याकरण आउ रचना - संदीप प्रकाशन, पटना
४. मगही व्याकरण प्रबोध - संदीप प्रकाशन, पटना
५. मगही व्याकरण चन्द्रिका - संदीप प्रकाशन, पटना
६. मगही रचना चन्द्रिका - संदीप प्रकाशन, पटना
७. मगही निबन्ध सौरभ - मगही अकादमी, बिहार
साहित्य रचना डी॰लिट्॰ के थीसिस पर आधारित हे । खड़ी बोली में । विक्रमाब्द २०३२ में प्रकाशित डिमाई साइज । पेज संख्या ५७२ (मूल्य २७.५० । एकर भाषा-खंड के दोसर, तेसर अध्याय में 'आधुनिक मगही भाषा का सर्वेक्षण' आउ 'मगही शब्द-भण्डार' के विवेचन कैल गेल हे ।
दोसर रचना 'मगही व्याकरण कोश' डी॰लिट्॰ उपाधि ला स्वीकार कैल गेल 'मगही भाषा और साहित्य' शीर्षक शोध-प्रबन्ध के एक अंश हे । खड़ी बोली में हे । १९६५ में छपल । पृष्ठ संख्या १५४ । एकरा में मगही के ध्वनि, व्याकरण आउ शब्दकोश स्थान पौलक हे । विवेचन सराहे जुकुर हे ।
इहे तरह से 'मगही व्याकरण आउर रचना' नाम के २६३ पन्ना के विशाल ग्रंथ में लेखिका बहुत बढ़िया से व्याकरण के ध्वनि, शब्द, विकारी शब्द, रसर्वनाम, विशेषण, क्रिया, अव्यय, शब्द-रचना, समास, वाक्य-रचना, वाक्य-विग्रह, वाक्य-परिवर्तन, पद-परिचय आउ विराम-चिह्न के आउ रचना-खंड में संक्षेपण, व्याख्या, अपठित गद्यांश, भावार्थ, अर्थ इया आशय, पल्लवन, पत्रलेखन, अनुवाद आउ साहित्य के विविध विधा के ठीक से वर्णन कैलन हे । मूल्य चालीस रुपइया हे । प्रकाशन काल २१ मार्च १९९२ ई॰ । मगही व्याकरण के क्षेत्र में ईहे रचना मील के पत्थर हे ।
अइसहीं इनकर अन्य रचना भी मगही व्याकरण के क्षेत्र में इनकर योगदान के लाजवाब प्रमाण हे । १९८९ ई॰ में मुद्रित 'मगही निबन्ध सौरभ' के अन्तर्गत 'मगही साहित्य में भाषा-प्रयोग', 'पटना सिटी के मगही' आउ 'भोजपुरी आउर मगही भाषा के तुलनात्मक विवेचन' शीर्षक निबन्ध विदुषी लेखिका के व्याकरण आउ भाषा सम्बन्धी प्रेम के सूचक हे । सम्पत्ति जी कई पत्र-पत्रिका में भी मगही व्याकरण विषयक लेख लिख के अप्पन योगदान के अच्छा परिचय देलन हे ।
इनकर व्याकरण सम्बन्धी सब रचना के पढ़ला पर पता चलऽ हे कि मगही व्याकरण इनका पास पहुँच के सब तरह से पूर्णता पौलक हे । रचना के भी एही हाल हे । लगऽ हे, ई कोई पक्ष के न छोड़लन ।
हमरा जानकारी में अचानक कोई अइसन व्यक्ति पैदा न भेल जे मगही व्याकरण ला एक साथ एतना किताब लिखलक । इनकर सब रचना अनमोल तो हइए हे, मगही जगत के बहुमूल्य धरोहर भी हे । इनकर व्याकरण आउ रचना के टक्कर लेवे वाला कोई रचना न हे, ऊ भी मातृभाषा मगही के साथे-साथ हिन्दी में भी । इनकर हरेक रचना 'गागर में सागर' इया 'बूंद में समुन्दर' हे , सर्वांगपूर्ण हे, मगही के सब शिष्ट रूप आउ प्रयोग के विवेचन करके स्थिरता लावे वाला भी हे । ओकरा पढ़ला पर मगही के स्वरूप के पूरा पता चल जाहे ।
कुल मिलाके हम कह सकऽ ही कि मगही व्याकरण के साथ मगही रचना के क्षेत्र में डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी के योगदान के कभी भुलायल न जायत । इनकर व्याकरण मगही के सब व्याकरण के अपेक्षा जादे सर्वांगपूर्ण, व्यापक, प्रामाणिक आउ शुद्ध हे । इनका मगही के सर्वसम्मत व्याकरणकार सिद्ध करे में हमरा बहुत खुशी हो रहल हे ।
[मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी", बरिस-७, अंक-१२, दिसम्बर २००१, पृ॰११-१२,१८ से साभार]
1 comment:
आप बहुत प्रशंसनीय कार्य कर रहे हैं।
धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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