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Monday, July 18, 2016

रूसी उपन्यास "आझकल के हीरो" ; भाग-1 ; बेला - अध्याय-10



रूसी उपन्यास – “आझकल के हीरो”
भाग-1
1. बेला - अध्याय-10

एहे दौरान ऊ अपन कहानी ई तरह जारी रखलकइ - काज़बिच फेर से देखाय नयँ देलकइ । खाली हमरा मालूम नयँ कि काहे, हम अपन दिमाग से ई विचार के निकास नयँ पइलिअइ, कि ऊ बिन कोय उद्देश्य के अइले होत आउ कुछ तो खतरनाक प्लान बना रहले होत ।

अइकी एक तुरी पिचोरिन हमरा सूअर के शिकार करे लगी मनावऽ हइ; हम देर तक ओकरा इनकार करते रहलिअइ - हूँ, एगो जंगली सूअर से हमरा की लेना-देना हलइ ! लेकिन ऊ हमरा अपन साथ आखिर घसीटके लेइए गेलइ । हमन्हीं पाँच गो सैनिक लेके भोरगरहीं गेलिअइ । दस बजे तक सरपत आउ जंगल में एन्ने-ओन्ने घुमलिअइ - कोय जंगली जानवर नयँ मिललइ । "ए, की हमन्हीं के वापिस नयँ चले के चाही ?" हम बोललिअइ, "जिद पर काहे लगी अड़ल रहना ? ई तो साफ देखाय दे हइ, कि हमन्हीं एगो अशुभ दिन के निकसते गेलिअइ !" लेकिन ग्रिगोरी अलिक्सांद्रविच, गरमी आउ थकान के बावजूद, बिन कोय शिकार के वापिस लौटे लगी नयँ चाहऽ हलइ, अइसन ऊ व्यक्ति हलइ - जे कुछ इरादा करइ, ओकरा मिलहीं के चाही; स्पष्टतः, बचपन में ओकरा मइया दुलार से बिगाड़ देलके हल ... आखिरकार दुपहर में अभिशप्त सूअर मिल गेलइ - धायँ ! धायँ ! ... लेकिन नयँ - ऊ सरपत के अंदर भाग गेलइ ... अइसन अशुभ दिन हलइ ! त हमन्हीं जरी सुन जिराके वापिस घर रवाना होते गेलिअइ ।

हमन्हीं चुपचाप पासे-पास रहते घोड़ा के लगाम ढीला रखले आ रहलिए हल, आउ लगभग ठीक किला के पास हलिअइ - खाली एगो झाड़ी के चलते ऊ हमन्हीं से आड़ हलइ । अचानक गोली चल्ले के अवाज अइलइ ... हमन्हीं एक दोसरा दने तकलिअइ - हमन्हीं एक्के शक्का से अचंभित होलिअइ; गोली के अवाज आवे के दिशा में हमन्हीं सरपट घोड़ा दौड़इलिअइ - देखऽ हिअइ - परकोटा पर सैनिक सब के एक समूह जामा होल हइ आउ अपन हथियार मैदान दने सीधिअइले हइ, आउ हुआँ एगो घुड़सवार सरपट घोड़ा दौड़इले जा रहल ह आउ जीन पर कुछ तो उज्जर रंग के पकड़ले हइ । ग्रिगोरी अलिक्सांद्रविच कइसनो चेचेन के अपेक्षा बत्तर नयँ चिल्लइलइ; खोल से अपन हथियार निकसलकइ - आउ ओधरे सरपट भागलइ; हम ओकर पीछू-पीछू ।

भाग्यवश, असफल शिकार के कारण, हमन्हीं के घोड़वन थक्कल-माँदल नयँ हलइ - जीन के निच्चे से ऊ सब पूरा जोर लगा रहले हल, आउ पल-पल हमन्हीं नगीच आउ नगीच पहुँच रहलिए हल ... आउ आखिरकार हम काज़बिच के पछान लेलिअइ, खाली पता नयँ लग पइलइ, कि ऊ अपन सामने कउची पकड़ले हइ । हम तब पिचोरिन के बराबर में आ गेलिअइ आउ ओकरा चिल्लाके कहऽ हिअइ - "ई तो काज़बिच हइ ! ..." ऊ हमरा दने तकलकइ, सिर हिलइलकइ आउ घोड़वा के चाभुक लगइलकइ ।

त अइकी आखिरकार हमन्हीं ओकरा से बंदूक के परास (gunshot) के अंदर पहुँच गेते गेलिअइ; काज़बिच के घोड़वा थकके चूर हलइ, कि हमन्हीं के घोड़वन से बत्तर हलइ, (मालूम नयँ,) लेकिन ओकर सब प्रयास के बावजूद, ऊ यथेष्ट गति से आगू नयँ बढ़ पइलइ । हमरा लगऽ हइ, अइसन पल में ओकरा कराग्योज़ के आद आवऽ होतइ ...

देखऽ हिअइ - पिचोरिन सरपट जइते बंदूक से निशाना लगाब करऽ हइ ... "गोली मत चलावऽ !" हम ओकरा तरफ चिल्लइलिअइ । "गोली बचाके रक्खऽ; हमन्हीं ओकरा भिर अइसीं  पहुँच जइते जइबइ ।" ओह, ई नौजवान लोग ! हमेशे गलत समय पर भड़क जा हइ ... लेकिन गोली के अवाज सुनाय देलकइ, आउ गोली घोड़वा के पिछला गोड़ के घायल कर देलकइ - ऊ जोश में करीब दस उछाल लगइलकइ, लड़खड़ा गेलइ आउ टेहुना के बल गिर पड़लइ; काज़बिच जीन पर से उछल पड़लइ, आउ तब हमन्हीं देखलिअइ, कि ऊ अपन हाथ में एगो औरत के धइले हलइ, जे बुर्का से लपटल हलइ ... ई बेला हलइ ... बेचारी बेला ! ऊ हमन्हीं के संबोधित करके अपन भाषा में कुछ तो चिल्लइलइ आउ ओकरा (बेला) पर अपन खंजर उठइलकइ ... एक्को पल देरी करे के समय नयँ हलइ - हम गोली चला देलिअइ, अपन तरफ से, अनुमान से; शायद, गोली ओकर कन्हा में लगलइ, काहेकि अचानक ऊ अपन हाथ निच्चे कर लेलकइ ... जब धुआँ साफ हो गेलइ, त जमीन पर घायल घोड़ा पड़ल देखाय देलकइ आउ ओकरे बगली में बेला; आउ काज़बिच, अपन बंदूक फेंकके, झाड़ी से होते, बिलाय नियन, हाथ-गोड़ के बल पे ढालू चट्टान पर चढ़ रहले हल; ओकरा हुआँ से निच्चे उतार देवे के मन कइलकइ - लेकिन बंदूक में कारतूस बोजल नयँ हल ! हमन्हीं घोड़ा पर से उछलके उतर गेते गेलिअइ आउ बेला दने दौड़के गेलिअइ । बेचारी बिन हिलले-डुलले पड़ल हलइ, आउ घाव से खून के धारा बह रहले हल ... कइसन निर्दय हलइ; अगर ऊ दिल में प्रहार करते हल - त एक्के तुरी सब कुछ तखनहीं खतम हो जइते हल, लेकिन पीठ में ... बिलकुल डाकू नियन प्रहार ! ऊ बेहोश हलइ । हमन्हीं बुर्का के फाड़ लेलिअइ आउ घाव के यथासंभव कसके बान्ह देलिअइ; बेकार में पिचोरिन ओकर ठंढाल होंठ के चूम रहले हल - कुच्छो ओकरा होश में नयँ ला सकऽ हलइ ।

पिचोरिन घोड़ा पर सवार हो गेलइ; हम बेला के जमीन पर से उठा लेलिअइ आउ कइसूँ ओकरा भिर जीन पर पाड़ देलिअइ; पिचोरिन ओकरा हथवा से धर लेलकइ, आउ हमन्हीं वापिस रवाना होलिअइ । कुछ मिनट के मौन के बाद ग्रिगोरी अलिक्सांद्रविच हमरा कहलकइ - "सुनथिन, माक्सीम माक्सीमिच, हमन्हीं ई तरह से ओकरा जिंदा घर तक पहुँचा नयँ पइते जइबइ ।" - "सही बात हइ !" हम कहलिअइ, आउ हमन्हीं घोड़ा के पूरे गति से सरपट दौड़इलिअइ ।


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