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Thursday, July 14, 2016

रूसी उपन्यास "आझकल के हीरो" ; भाग-1 ; बेला - अध्याय-7



रूसी उपन्यास – “आझकल के हीरो”
भाग-1
1. बेला - अध्याय-7

एहे दौरान हमन्हीं के चाय पीयल हो गेलइ; लम्मा समय से जोतल घोड़वन बरफ में ठिठुर रहले हल; पच्छिम में चाँद पीयर (फीका) पड़ रहले हल आउ अपन ऊ करिया बादर में डुब्बे लगी तैयार हलइ, जे दूर के पर्वत शिखर पर, फट-फुटके रुगदी होल परदा के धज्जी नियन लटकल हलइ; हमन्हीं साक्ल्या से बाहर निकसते गेलिअइ । हमर हमसफर के भविष्यवाणी के विपरीत, मौसम साफ हो गेलइ आउ शांत सुबह के उमीद होलइ; तरिंगन के वृत्तनृत्य दूर क्षितिज पर आश्चर्यजनक आकृति में अंतर्ग्रथित (interwoven) हलइ आउ अस्पृष्ट हिम (virgin snows) से आच्छादित पर्वत के खड़ा ढाल के क्रमशः पूरब के फीका चमक प्रकाशित करते, जइसे-जइसे बैंगनी मेहराब (आकाश) पर पसरे लगलइ, ओइसे-ओइसे एक के बाद दोसरा बुज्झे (बुताय) लगलइ । दहिना आउ बामा करगी उदास, रहस्यपूर्ण अगाध खाई (abysses) कार हो रहले हल, आउ कुहरा, साँप नियन कुंडली मारते आउ घुमते-घामते, आसपास के खड़ा चट्टान (cliffs) के दरार के दिशा में, मानूँ आवे वला दिन के आशंका आउ भय से, रेंगते ओद्धिर जा रहले हल । आकाश आउ जमीन पर सब कुछ शांत हलइ, जइसन कि सुबह के प्रार्थना के बखत अदमी के हृदय में होवऽ हइ; खाली कभी-कभार पूरब से ठंढगर हावा के झोंका आ जा हलइ, जे पाला से आच्छादित घोड़वन के अयाल (manes) के जरी उपरे उठा दे हलइ । हमन्हीं रस्ता धइलिअइ; मोसकिल से पाँच गो मरियल टट्टू गूद-गोरा के घुमावदार रस्ता से हमन्हीं के गाड़ी घींच रहले हल; हमन्हीं पैदले पीछू-पीछू जा रहलिए हल, चक्का के निच्चे पत्थल रखते, जब घोड़वन थकके चूर हो जा हलइ; लगऽ हलइ, रस्ता आकाश तक जा हलइ, काहेकि, जेतना आँख के नजर जा हलइ, ई रस्ता लगातार उपरे दने उठते जा हलइ आउ आखिरकार बादर में नजर से ओझल हो जा हलइ, जे कल्हिंएँ से गूद-गोरा के शिखर पर विश्राम कर रहले हल, जइसे गिद्ध अपन शिकार के प्रतीक्षा में रहऽ हइ; हमन्हीं के गोड़ के निच्चे बरफ चरचर (करकर) कर रहले हल; हावा एतना विरल हो गेले हल, कि साँस लेवे में तकलीफ होवऽ हलइ; मिनट-मिनट खून सिर पर चढ़ रहल हल, लेकिन तइयो एक प्रकार के प्रसन्नता के भावना हमर सब्भे नस में फैल रहल हल, आउ हमरा कइसूँ खुशी हल, कि हम दुनियाँ में एतना उँच्चा हकूँ - ई भावना बचकाना हइ, एकरा में हमर विवाद नयँ हइ, लेकिन समाज के नियम से दूर होके आउ प्रकृति के नगीच अइला पर, हमन्हीं अनजाने में बुतरू बन जा हिअइ; सब कुछ प्राप्त आत्मा से विलग हो जा हइ, आउ ऊ फेर से ओइसने हो जा हइ, जइसन कभी हलइ, आउ पक्का कभी फेर से होतइ । जेकरा हमरा नियन निर्जन पर्वत पर घुम्मे के, आउ लम्मा-लम्मा समय तक ओकर अनोखा आकृति देखे के, आउ लालच के साथ ओकर दर्रा में छलकावल जीवनदायी हावा के निंगले के अवसर मिलले ह, ऊ वास्तव में वर्णन करे, कहे, ई मनोहर चित्र बनावे के हमर इच्छा के समझ जइतइ । त आखिरकार हमन्हीं गूद-गोरा पर पहुँच गेलिअइ, ठहरलिअइ आउ चारो दने नजर फेरलिअइ - ओकरा पर धूसर रंग के बादर लटकल हलइ, आउ एकर ठंढगर साँस निकट तूफान के धमकी दे रहले हल; लेकिन पूरब में एतना साफ आउ सुनहरा हलइ, कि हमन्हीं, मतलब हम आउ स्टाफ-कप्तान, एकरा बारे बिलकुल भूल गेते गेलिअइ ... हाँ, स्टाफ-कप्तान भी - सीधा-सादा हृदय में प्रकृति के सौंदर्य आउ गरिमा सो गुना अधिक प्रबल आउ सजीव होवऽ हइ, बनिस्बत हमन्हीं, शब्द में आउ कागज पर (अर्थात् मौखिक चाहे लिखित रूप में वर्णन करे वला) भावविभोर कथाकार में ।

"हमरा लगऽ हइ, अपने ई विलक्षण दृश्य के आदी हो गेलथिन होत ?" हम उनका कहलिअइ ।
"जी हाँ, गोली के सनसनाहट के भी आदी हो जाल जा सकऽ हइ, मतलब दिल के अनैच्छिक धड़कन के छिपावे के आदी ।"
"हम तो एकर विपरीत सुनलिए ह, कि कुछ पुरनकन सैनिक लगी ई संगीत मनोहर भी लगऽ हइ ।"
"जाहिर हइ, अगर चाहो, त एहो मनोहर लग सकऽ हइ; लेकिन ई सब कुछ ई कारण से, कि दिल आउ जादे जोर से धड़कऽ हइ । देखथिन", पूरब तरफ इशारा करते ऊ बात आगू बढ़इलकइ, "कइसन रमणीक प्रदेश हइ !"

आउ वास्तव में, अइसन परिदृश्य (panorama) हमरा कहीं अलगे देखे लगी विरले मिल्लऽ हइ - हमन्हीं के निच्चे, चानी के दूगो लहरदार लाइन नियन अराग्वा नदी आउ एगो दोसर नदी से प्रतिच्छिन्न (intersected) कोयशाउर घाटी हलइ । नीलगर (bluish) कुहरा ओकरा से होके सरक रहले हल, सुबह के गरम किरण से पड़ोस के दर्रा में जाके लुप्त होते; दहिने आउ बामे पर्वत के शिखर, जे एक दोसरा से उँचगर हलइ, प्रतिच्छेदित (intersect) करऽ हलइ, आगू फैलल हलइ, बरफ आउ झाड़ी से ढँक्कल; दूर में ओहे पर्वत, जे हलाँकि दूगो खड़ा चट्टान के रूप में हलइ, एक दोसरा से मिलता-जुलता हलइ, - आउ ई सब बरफ एतना आनंद से गहरा लाल चमक से जल रहले हल, एतना चमक के साथ, कि लगइ, कि हिएँ हमेशे लगी रहे के मन करऽ हलइ; सूरज मोसकिल से गहरा नीला पर्वत के पीछू से देखाय दे हलइ, जेकरा खाली अभ्यस्त आँख ही तूफानी बादर से अंतर बता सकऽ हलइ, लेकिन सूरज के उपरे रक्त नियन लाल धारी (streak) हलइ, जेकरा पर हमर साथी विशेष ध्यान आकृष्ट कइलका । "हम अपने के बतइलिए हल", ऊ आश्चर्यजनक उद्गार प्रकट कइलकइ, "कि आझ मौसम खराब होतइ; जल्दी करे के चाही, नयँ तो, शायद, ऊ हमन्हीं के क्रेस्तोवाया (पर्वत) पर पकड़ लेत । … चलते चल !" ऊ कोचवान सब के चिल्लइते कहलकइ । चकवन के निच्चे ब्रेक के बदले चेन डाल देवल गेले हल, ताकि ऊ फिसल नयँ जाय, घोड़वन के लगाम पकड़ लेल गेलइ आउ निच्चे उतरे लगलिअइ; दहिना दने खड़ा चट्टान हलइ, बामा दने अइसन खाई, कि ओकर तरलहटी में रहे वला पूरा ओसेतिन गाँव, अबाबील (swallow) पक्षी के खोंथा लगऽ हलइ; हम तो काँप गेलिअइ, ई सोचके, कि अकसर हियाँ, देर रात के, ई रस्ता से होके, जाहाँ दू गाड़ी साथ-साथ नयँ जा सकऽ हइ, कोय कुरियर साल में दस तुरी गुजरऽ हइ, अपन हचकोलेदार (झटकेदार) घोड़ागाड़ी से बिन उतरले । हमन्हीं के ड्राइवर लोग में से एगो यारोस्लाव के रूसी मुझीक (किसान) हलइ, दोसरा ओसेतिन - ओसेतिन, पहिलहीं किनारे के दूगो घोड़वन खोलके, सब तरह के संभव सवधानी के साथ गाड़ी में जोतल मुख्य घोड़ा (shaft-horse, leading horse) के रास पकड़ले जा रहले हल - जबकि बेपरवाह रूसी कोचवान के सीट से उतरवो नयँ कइलइ ! जब हम ओकरा कहलिअइ, कि बल्कि हमर सूटकेस खातिर तो कम से कम ओकरा ध्यान देवे के चाही हल, जेकरा खातिर हम ई खाई में उतरे लगी बिलकुल नयँ चाहऽ हलिअइ, त ऊ उत्तर देलकइ - "फिकिर नयँ करथिन, मालिक ! भगमान मदत करथिन, ओकन्हीं से कम सकुशल नयँ पहुँचते जइबइ - ई हमन्हीं के पहिले तुरी के यात्रा नयँ हकइ।" - आउ ऊ सही हलइ - हमन्हीं सकुशल नहिंयों पहुँच सकऽ हलिअइ, लेकिन तइयो पहुँच गेते गेलिअइ, आउ अगर सब लोग थोड़े अधिक तर्कसंगत विचार करते जाय, त विश्वास हो जाय कि जिनगी के बारे ओतना जादे फिकिर करे के बात नयँ हइ ।

लेकिन, शायद, अपने बेला के कहानी के अंत जाने लगी चाहऽ होथिन ? पहिला, हम कोय लघु-उपन्यास (novella) नयँ लिख रहलिए ह, बल्कि एगो यात्रा संस्मरण; फलस्वरूप, स्टाफ-कप्तान के हम ऊ समय से पहिले सुनावे लगी विवश नयँ कर सकऽ हिअइ, जब ऊ वास्तव में सुनावे लगी चालू कइलथिन । अतएव, या तो प्रतीक्षा करथिन, चाहे अगर चाहऽ हथिन, त कुछ पेज पलट लेथिन, लेकिन हम अपने के अइसन सलाह नयँ दे हिअइ, काहेकि क्रेस्तोवाया पर्वत के पार करना (चाहे, जइसन कि विद्वान गाम्बा [1] एकरा कहऽ हथिन - le mont St.-Christophe) अपने के उत्सुकता के अनुरूप हइ । आउ ई तरह हमन्हीं गूद-गोरा से उतरके चिर्तोवा घाटी में पहुँचते गेलिअइ ... ई कइसन रोमांटिक नाम हइ ! अपने अब दूगो दुर्गम खड़ा चट्टान के बीच में दुष्टात्मा के घोंसला (खोंथा) देख रहलथिन हँ - लेकिन अइसन बात नयँ हलइ - चिर्तोवा घाटी के व्युत्पत्ति "चिर्ता" शब्द से हइ, "चोर्त" से नयँ [2], काहेकि कभी तो हियाँ परी जॉर्जिया के सिमाना (सीमा) हलइ । ई घाटी बरफ के ढेर से ढँक गेले हल, जे हमन्हीं के पितृभूमि के सरातोव, तांबोव, आउ दोसर-दोसर प्रिय स्थान के सजीवता से आद देलाब करऽ हलइ ।

"अइकी एहे हइ क्रेस्तोवाया !" जब हमन्हीं चिर्तोवा घाटी में उतरलिअइ, त हमरा स्टाफ-कप्तान बतइलथिन, बरफ के चादर (shroud) से आच्छादित पहाड़ी दने इशारा करते; एकर शिखर पर एगो करिया पत्थल के क्रॉस देखाय दे हलइ, आउ ओकरा से होके मोसकिल से दृष्टिगोचर हो रहल एगो रस्ता जा हलइ, जेकरा से होके लोग तभिए जइते जा हइ, जब बगल वला रस्ता बरफ से आच्छादित रहऽ हइ; हमन्हीं के ड्राइवर लोग बतइते गेलइ, कि अभियो हिम-स्खलन (avalanches) नयँ होले हल, आउ घोड़वन के सुरक्षित रखते, हमन्हीं के घुम-घुमौआ (जलेबिया) रस्ता से ले गेते गेलइ । एगो मोड़ पर हमन्हीं के पाँच गो ओसेतिन अदमी मिललइ; ओकन्हीं हमन्हीं लगी सेवा के प्रस्ताव रखलकइ, आउ चक्का के धरके, चीखते-चिल्लइते हमन्हीं के गाड़ी के ढकले आउ सहारा देवे लगलइ । आउ वास्तव में ई रस्ता खतरनाक हइ - दहिना दने हमन्हीं के सिर के उपरे हिम (snow) के ढेर हलइ, जे लगऽ हलइ कि हावा के पहिलौके थपेड़ा में दर्रा में सरसराके निच्चे गिर जइतइ; सकेता (सँकरा) रस्ता आंशिक रूप से हिम से ढँक्कल हलइ, जे कुछ जगह में गोड़ के दबाव में धँस जा हलइ, आउ दोसर जगह में दिन में सूरज के किरण आउ रात में पाला (frosts) के प्रभाव से बरफ (ice) में बदल जा हलइ, ओहे से हमन्हीं मोसकिल से आगू बढ़ रहलिए हल; घोड़वन गिर-गिर पड़ऽ हलइ; बामा दने एगो गहिड़ा नाला मुँह बइले हलइ, जाहाँ परी धारा बह रहले हल, कभी बरफ के पपड़ी के अंदर छिप्पल, त कभी करिया-करिया पत्थर पर से होके फेन के साथ उछलते । दू घंटा में हमन्हीं मोसकिल से क्रेस्तोवाया पर्वत के एक परिक्रमा कर पइलिअइ - दू घंटा में दू विर्स्ता ! एहे दौरान बादर निच्चे आ गेलइ, पत्थल (ओला) आउ बरफ पड़े लगलइ; हावा, दर्रा में घुस अइलइ, आउ गरजे लगलइ, सोलोवेय डाकू (Solovei the Brigand) [3] नियन, सीटी मारे लगलइ, जल्दीए पत्थल के क्रॉस कुहरा में छिप गेलइ, जे पूरब से लहर के रूप में, एक के बाद दोसरा आउ अधिक घना, आ रहले हल ... संयोगवश, ई क्रॉस के बारे एगो विचित्र, लेकिन सामान्य किंवदंती हइ, कि एकरा सम्राट् प्योत्र प्रथम, काकेशिया से यात्रा करते बखत, स्थापित कइलथिन हल; लेकिन, पहिला, प्योत्र खाली दागेस्तान गेलथिन हल, आउ दोसरा, क्रॉस पर बड़गो अक्षर में लिक्खल हइ, कि एकरा स्थापित कइल गेले हल जेनरल येरमोलोव के औडर पर, आउ ठीक-ठीक सन् 1824 में । लेकिन, किंवदंती, अभिलेख (inscription) के बावजूद, अइसन जड़ जमा लेलके ह, कि वस्तुतः, समझ में नयँ आवऽ हइ, कि केकरा पर विश्वास कइल जाय, ई बात से आउ जादे कि हमन्हीं अभिलेख पर विश्वास करे के अभ्यस्त नयँ हिअइ ।

कोबी स्टेशन पहुँचे खातिर, बरफ से आच्छादित चट्टान आउ दलदल हिम से हमन्हीं के अभियो पाँच विर्स्ता निच्चे उतरे के हलइ । घोड़वन थकके चूर होल हलइ, हमन्हीं ठिठुरल हलिअइ; बर्फानी तूफान (blizzard, snowstorm) अधिकाधिक जोर से गूँज रहले हल, बिलकुल हमन्हीं के मातृभूमि के उत्तरी बर्फानी तूफान नियन, खाली एकर भीषण धुन (लय) जादे उदास, जादे विषादपूर्ण हलइ । "तूँहूँ निर्वासिता", हम सोचलिअइ, "अपन चौड़गर, विस्तृत स्तेप (steppes) के बारे रो रहलँऽ हँ ! हुआँ परी अपन ठंढगर डैना फैला सकऽ हलँऽ, लेकिन हियाँ परी तोरा लगी दमघोंटू आउ सकेत माहौल हकउ, एगो उकाब (eagle) नियन, जे चीख के साथ लोहा के अपन पिंजड़ा के जंगला (grating, bars) के ठोलियावऽ हइ ।"

"मौसम केतना खराब हइ !" स्टाफ-कप्तान बोललइ, "देखथिन, चारो तरफ आउ कुच्छो नयँ देखाय दे हइ, सिवाय कुहरा आउ हिम के; अगर ध्यान नयँ देल जाय, त बिलकुल संभव हइ, कि गहरा खाई में लुढ़क जइअइ, चाहे कोय झाड़-झंखाड़ में फँस जइअइ, आउ चाहे हुआँ थोड़े निच्चे, शायद, बायदारा (नद्दी) में, जे एतना उफनाल हइ, कि एकरा पार करना असंभव हइ । आउ अइकी हइ एशिया ! की लोग, की नद्दी - कइसूँ विश्वास नयँ कइल जा सकऽ हइ !" ड्राइवर लोग चीखते आउ गरिअइते घोड़वन के चाभुक से पिट्टऽ हलइ, जे फूफकार करऽ हलइ, अड़ जा हलइ आउ बल्कि दुनियाँ में कुच्छो हो जाय, अपन जगह से टस से मस नयँ होवऽ हलइ, चाभुक के संगीतमय सटासट मार के बावजूद । "महामहिम", आखिरकार एक ड्राइवर कहलकइ, "आझ तो हमन्हीं कोबी पहुँच नयँ पइबइ; की अपने औडर दे सकऽ हथिन, जब तक संभव हइ, कि बामा दने मुड़ल जाय ? अउकी ढलान पर कुछ तो कार-कार देखाय दे रहले ह - शायद, साक्ल्या हइ - हुआँ हमेशे, जी, यात्रा करे वलन खराब मौसम में ठहरते जा हइ; ओकन्हीं के कहना हइ, कि अगर वोदका लगी पैसा देथिन त हुआँ तक मार्गदर्शन कर देतइ", ऊ बात जारी रखलकइ, एगो ओसेतिन दने इशारा करते ।
"जानऽ हिअइ, भाय, तोरा कहे बेगर हम जानऽ हिअइ !" स्टाफ-कप्तान कहलकइ, "ई बदमाश लोग ! कइसनो छिद्रान्वेषण करके वोदका लगी पैसा ऐंठे में प्रसन्न होवऽ हइ ।"
"लेकिन ई बात स्वीकार करथिन", हम कहलिअइ, "कि ओकन्हीं बेगर हमन्हीं के हालत बत्तर हो जइतइ ।"
"सही हइ, सही हइ", ऊ बड़बड़इलइ, "एकन्हीं हमर गाइड ! गन्ह से सुन ले हइ, काहाँ पैसा ऐंठल जा सकऽ हइ, मानूँ ओकन्हीं बेगर रस्ता खोजना असंभव हइ ।"

त हमन्हीं बामा दने मुड़लिअइ आउ कइसूँ, बहुत दौड़-धूप के बाद, अपर्याप्त आश्रय तक पहुँचते गेलिअइ, जेकरा में दूगो साक्ल्या हलइ, जे पत्थल के सिल्ला (stone slabs) आउ पनपत्थर (rubble) के बन्नल हलइ, आउ ओकरे से चारो तरफ से घेरल छरदेवाली; फट्टल-फुट्टल बस्तर में साक्ल्या के मालिक हमन्हीं के खुशी से स्वागत कइलकइ । हमरा बाद में पता चललइ, कि प्रशासन (सरकार) ओकन्हीं के भुगतान करऽ हइ आउ पेट भरऽ हइ, ई शर्त पर, कि आँधी में पकड़ाल यात्री सब के  ओकन्हीं स्वागत करइ ।


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